Friday, May 23, 2025
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कैफ़ी और फै़ज़ की थी समान विचारधारा : शबाना आजमी

लाहौर : पाकिस्तान के लाहौर में आयोजित चौथे इंटरनेशनल फ़ैज़ फेस्टिवल में शामिल होने आईं वरिष्ठ अभिनेत्री शबाना आज़मी ने कहा कि उनके पिता और मशहूर शायर कैफ़ी आज़मी और चर्चित शायर फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ की विचारधारा समान थी और वे बहुत गहरे दोस्त थे। वह तीन दिवसीय समारोह में भाग लेने के लिए अपने पति और नामचीन शायर जावेद अख्तर के साथ यहां पहुंची थीं।
सम्मेलन के उद्घाटन सत्र ‘‘ कैफी़ और फ़ैज़’’ में शबाना ने कहा, ‘‘हमारा घर थोड़ा छोटा था, लेकिन वहां फ़ैज़ अहमद फ़ैज़, जोश मलीहाबादी और फ़िराक़ गोरखपुरी जैसे साहित्य जगत के दिग्गज जुटा करते थे। मुझे तब शायरी की समझ नहीं थी लेकिन उन बैठकों का जो माहौल था वह बहुत उम्दा हुआ करता था।’’ प्रसिद्ध अभिनेत्री ने कहा कि उनके बचपन के समय उनका परिवार ऐसी जगह रहता था जो कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया के सदस्यों के मिलने की जगह भी थी।
शबाना आज़मी ने पुराने दिन याद करते हुए कहा, ‘‘ हम लोग एक छोटे कमरे में रहते थे और कम्युनिस्ट पार्टी का लाल झंडा उस इमारत का अहम हिस्सा था।’ उन्होंने कैफ़ी आज़मी के फिल्मी गीत लिखने के तरीके की चर्चा करते हुये कहा कि उनकी फिल्म ‘अर्थ’ का यह गाना, ‘‘कोई ये कैसे बताए वो तन्हा क्यों हैं…’’ बहुत आसान शब्दों में लिखा गया है लेकिन उनके मायने बहुत गहरे हैं।
उन्होंने कहा कि फै़ज़ और कैफ़ी दोनों की विचारधारा एक ही थी। दोनों मानवतावादी थे, इंसानों से प्यार करते थे और उनमें सहिष्णुता का स्तर गहरा था। इस दौरान अभिनेत्री ने मां शौकत आज़मी और पिता कैफ़ी आज़मी को याद करते हुए बताया कि कैसे 1947 में एक मुशायरे में दोनों की मुलाकात हुई और उनकी मुहब्बत परवान चढ़ी। शबाना ने फ़ैज़ की मशहूर नज़्म ‘‘ बोल के लब आज़ाद हैं तेरे’’ भी गुनगुनाई।
वहां मौजूद फ़ैज़ की पुत्री सलीमा हाशमी ने कहा, ‘‘ फ़ैज़ की बड़ी तमन्ना थी कि वह टेस्ट क्रिकेटर बनें और फिल्में बनाएं। उन्होंने ‘‘जागो हुआ सवेरा’’ और ‘‘ दूर है सुख का गांव’’ नाम से फिल्में बनायीं पर उनकी क्रिकेटर बनने की ख्वाहिश पूरी नहीं हो सकी। जावेद अख्तर ने भी अपनी रचनाएं वक्त, नया हुक्मनामा और आंसू भी श्रोताओं को सुनाईं।

लोंगेवाला की लड़ाई के शूरवीर महावीर चक्र से सम्मानित चांदपुरी का निधन

चंडीगढ़ : भारत पाकिस्तान के बीच 1971 में हुए  युद्ध के समय लोंगेवाला की लड़ाई के नायक रहे ब्रिगेडियर (सेवानिवृत्त) कुलदीप सिंह चांदपुरी का मोहाली के एक अस्पताल में निधन हो गया। उनके परिवार ने यह जानकारी दी। 78 साल के ब्रिगेडियर चांदपुरी कैंसर से पीडि़त थे। उनके परिवार में पत्नी और तीन बेटे हैं।
उन्हें राजस्थान के थार रेगिस्तान की लोंगेवाला चौकी में निभाई भूमिका के लिए देश का दूसरा सर्वोच्च सैन्य सम्मान महावीर चक्र प्रदान किया गया था। उन्होंने 1971 युद्ध की एक रात भारतीय सैनिकों की एक छोटी टुकड़ी का नेतृत्व करते हुये पाकिस्तानी हमले को नाकाम कर दिया था। वर्ष 1997 में आयी हिंदी फिल्म ‘बॉर्डर’ राजस्थान में हुई इसी भारत-पाकिस्तान लड़ाई पर बनी थी। उसमें सन्नी देओल ने ब्रिगेडियर चांदपुरी की भूमिका निभायी थी। ये फिल्म क्लासिक का दर्जा पा चुकी है। 1963 में ऑफीसर्स ट्रेनिंग एकेडमी, चेन्नई से प्रशिक्षण पूरा करने के बाद उन्हें पंजाब रेजीमेंट की 23वीं बटालियन में कमीशन दिया गया।
उन्होंने 1965 में हुये युद्ध में भी हिस्सा लिया था। इसके बाद उन्होंने एक साल संयुक्त राष्ट्र आपात बल (यूएनईएफ) में भी सेवाएं दीं। उन्होंने महू में इन्फैंट्री स्कूल में दो बार बतौर प्रशिक्षक भी काम किया। पंजाब के मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह ने ब्रिगेडियर चांदपुरी के निधन पर शोक प्रकट करते हुये कहा कि लोंगेवाला की लड़ाई में उनका अनुकरणीय एवं नायकों वाला नेतृत्व रक्षा सेवााओं के युवा सैनिकों और अधिकारियों को अपने कर्तव्यों को समर्पण, प्रतिबद्धता और निष्कपट भाव से निभाने के लिए प्रेरित करता है।
महावीर चक्र सम्मान के उद्धरण में लिखा गया है: “मेजर कुलदीप सिंह चांदपुरी राजस्थान क्षेत्र में पंजाब रेजिमेंट की एक कंपनी बटालियन का नेतृत्व कर रहे थे जो एक इलाके में तैनात थी।” लोंगेवाला की लड़ाई में, ब्रिगेडियर चांदपुरी ने अपना गतिशील नेतृत्व, असाधारण साहस और दृढ़ संकल्प प्रदर्शित किया। इसमें कहा गया है कि जब तक और सैनिक वहां नहीं पहुंचे, तब तक उन्होंने एक बंकर से दूसरे बंकर तक जाकर जवानों को प्रेरणा देने का काम किया।

नफीसा अली तीसरे चरण के कैंसर से पीड़ित

नयी दिल्ली : दिग्गज फिल्म एवं थियेटर अभिनेत्री नफीसा अली ने बताया कि वह तीसरे चरण के कैंसर से पीड़ित हैं और उसका इलाज करा रही हैं। उन्होंने इंस्टाग्राम पर इसका खुलासा किया, जिसमें उन्होंने अपनी अच्छी दोस्त और कांग्रेस नेता सोनिया गांधी के साथ अपनी एक तस्वीर साझा की है। तस्वीर के साथ 61 वर्षीय अली ने लिखा, ‘‘बस अभी-अभी मैं अपनी अत्यंत प्रिय दोस्त से मिली जिन्होंने मुझे हाल में पता चले स्टेज 3 कैंसर से जल्दी ठीक होने की शुभकामनाएं दीं।’ पश्चिम बंगाल में जन्मी नफीसा ने 1979 में शशि कपूर की फिल्म ‘‘जुनून’’ के साथ फिल्मी दुनिया का अपना सफर शुरू किया था। उन्होंने ‘‘मेजर साब’’, ‘‘लाइफ इन ए मेट्रो’’, ‘‘यमला पगला दीवाना’’ और ‘‘साहब बीवी और गैंगस्टर 3‘‘ जैसी फिल्मों में काम किया है। वर्तमान में अली कांग्रेस पार्टी की सदस्य हैं। उन्होंने 2009 में समाजवादी पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ा था। अली ने अर्जुन अवॉर्ड विजेता खिलाड़ी कर्नल आर एस सोढ़ी से शादी की है और उनके तीन बच्चे हैं।

अभिनेत्री नेहा धूपिया ने दिया बेटी को जन्म

मुम्बई : बॉलीवुड अभिनेत्री नेहा धूपिया ने रविवार को एक बेटी को जन्म दिया है। नेहा के प्रचार अधिकारी के मुताबिक, उन्हें खार उपनगर के एक अस्पताल में भर्ती कराया गया था जहां सुबह 11 बजे उन्होंने अपनी पहली संतान को जन्म दिया। अधिकारी ने कहा कि नेहा और उनकी बेटी दोनों स्वस्थ हैं। नेहा धूपिया ने इसी साल 10 मई को बॉलीवुड अभिनेता अंगद बेदी से शादी की थी। 24 अगस्त को नेहा ने सोशल मीडिया पर अपने गर्भवती होने का खुलासा किया था।

स्थायी नहीं है स्टारडम, वर्तमान में जीता हूँ : पंकज त्रिपाठी

मुम्बई : ‘गैंग्स ऑफ वासेपुर’ के मशहूर अभिनेता पंकज त्रिपाठी का कहना है कि वह वर्तमान में जीते हैं तथा उन्हें मिला स्टारडम स्थायी नहीं है। राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के छात्र रहे त्रिपाठी ने अपने पुराने दिनों को याद करते हुए पीटीआई-भाषा से कहा, ‘मैं पहले ज्यादा चिंतित नहीं रहता था। अब सफल होने के बावजूद मैं अंहकारी नहीं हूं, न ही आसमान में उड़ रहा हूं, क्योंकि मैं जानता हूं कि मुझे जो स्टारडम मिला है, वह स्थायी नहीं है।’ त्रिपाठी ने कहा, ‘मैं जानता हूं कि कुछ समय बाद कोई और पंकज आएगा, जिसके बाद मेरी कामयाबी फीकी पड़ सकती है। हालांकि मैं पहले भी चिंतित नहीं था, न ही अब हूं।” अभिनेता ने कहा कि वह हमेशा खुश रहने और वर्तमान में जीने में विश्वास करते हैं। पंकज 2012 में आई फिल्म ‘गैंग्स ऑफ वासेपुर’ से मशहूर हुए थे। इसके बाद उन्होंने न्यूटन, बरेली की बर्फी, रुद्र भैया और स्त्री में भी बेहतरीन अभिनय किया। फिलहाल वह सतीश कौशिक की आगामी फिल्म ‘कागज’ को लेकर उत्साहित हैं। इस फिल्म में वह आजमगढ़ के लाल बिहारी का किरदार निभाते नजर आएंगे, जिन्होंने खुद को जीवित साबित करने के लिए 18 साल तक कानूनी लड़ाई लड़ी थी।

पत्नियों को छोड़ा, रद हुए 25 प्रवासी भारतीयों के पासपोर्ट

नयी दिल्ली : भारत सरकार ने अपनी-अपनी पत्नियों को छोड़ने के चलते 25 प्रवासी भारतीयों के पासपोर्ट रद कर दिए हैं। महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के एक अधिकारी ने जानकारी दी। उन्होंने बताया कि इनमे आठ लोगों का पासपोर्ट मंत्रालय की सिफारिश पर रद किया गया है। अन्य मामलों में राज्य पुलिस ने कार्रवाई की मांग की थी।
अधिकारी ने बताया कि प्रवासी भारतीयों द्वारा पत्नियों को छोड़ने की शिकायतें हमें लगातार मिलती रहती हैं। उन शिकायतों पर प्राथमिकता के आधार पर कार्रवाई की जाती है। पासपोर्ट रद करने के अलावा कुछ मामलों में पुलिस के पास लुकआउट सर्कुलर जारी करने का भी अधिकार है। संज्ञेय अपराध के मामलों में जब जांच एजेंसी को लगता है कि कोई पति गैरजमानती वारंट जारी होने के बावजूद कोर्ट में हाजिर नहीं हो रहा है या जान-बूझकर गिरफ्तारी से भाग रहा है, तो उसके खिलाफ लुकआउट सर्कुलर जारी किया जा सकता है।

भारत की पहली मिस वर्ल्ड रीता फारिया..

52 वर्ष पहले एशिया समेत भारत को मिस वर्ल्ड का पहला खिताब दिलाने वाली रीता फारिया ने एक साल बाद ही मॉडलिंग को अलविदा कह दिया था। उन्हें चकाचौंध भरी ये दुनिया खोखली लगने लगी थी। आपने हॉलिवुड-बॉलिवुड फिल्मों में बहुत सी विश्व सुंदरियों को काम करते देखा होगा और उनके बारे में जानते भी होंगे। इनकी पूरी जिंदगी चकाचौंध में गुजर जाती है, लेकिन हम यहां एक ऐसी विश्व सुंदरी की बात कर रहे, जो इस ग्लैमरस दुनिया को छोड़कर लंबे अर्से से गुमनामी में जीवन जी रही हैं। हम बात कर रहे हैं 52 साल पहले भारत को विश्व सुंदरी का पहला खिताब दिलाने वाली रीता फारिया की। भारत के साथ ही वह एशिया में भी विश्व सुंदरी का खिताब जीतने वाली पहली भारतीय महिला थीं। वह पहली ऐसी मिस वर्ल्ड रहीं जो पेशे से एक डॉक्टर (फिजीशियन) भी हैं। उन्होंने आज ही के दिन 17 नवंबर 1966 को भारत को दुनिया में ये सम्मान दिलाया था। उनके नक्शे कदम पर चलते हुए भारत को अब तक छह विश्व सुंदरी और दो ब्रह्मांड सुंदरी (MISS UNIVERSE) मिल चुकी हैं।


21 वर्ष की उम्र में जीता था खिताब
1945 में मुंबई में जन्मी रीता फारिया पॉवेल ने 17 नवंबर 1966 को जब मिस वर्ल्ड का खिताब जीता, वह महज 21 वर्ष की थीं। इससे पहले वह मिस मुंबई भी रह चुकी थीं। उनकी परवरिश गोवा के एक परिवार में हुई थी। उस वक्त वह डॉक्टरी की पढ़ाई कर रहीं थीं। मिस वर्ल्ड का खिताब जीतने के बाद उन्होंने करीब एक साल तक मॉडलिंग की। इसके बाद उन्होंने मॉडलिंग को अलविदा कह दिया। वर्ष 1998 में उन्होंने फैशन की दुनिया में दोबारा कदम रखा और फेमिना मिस इंडिया की जज भी बनीं। मिस वर्ल्ड प्रतियोगिता में भी वह बतौर जज शामिल हो चुकी हैं।
दो बेटे और पांच पोते-पोतियां हैं अब
मिस वर्ल्ड का खिताब जीतने के एक वर्ष बाद मॉडलिंग को अलविदा कह चुकी रीता ने इसके बाद मुंबई स्थित ग्रांट मेडिकल कॉलेज व सर जमशेदजी जीजाबाई ग्रुप ऑफ हॉस्पिटल से एमबीबीएस की अपनी पढ़ाई पूरी की। इसके बाद वह आगे की पढ़ाई के लिए लंदन के किंग्स कॉलेज एवं हॉस्पिटल चलीं गईं। वर्ष 1971 में उन्होंने डेविड पॉवेल नाम के युवक से शादी कर ली। 1998 में उन्होंने ग्लैमरस लाइफ में एक बार वापसी की, लेकिन ज्यादा दिन वह इस चकाचौंध में नहीं रह सकीं। फिलहाल वह अपने पति एंडोक्राइनोलॉजिस्ट डेविड पॉवेल के साथ आयरलैंड के डबलिन में रहती हैं। यहीं दोनों डॉक्टरी की प्रैक्टिस कर रहे हैं। इनके दो बेटे (डेडर्रे व एन मैरी) और पांच पोते-पोतियां (पैट्रिक, कॉमैक, डेविड, मारिया व जॉनी) हैं।

नहीं रहे स्पाइडरमैन-हल्क के रचयिता स्टैन ली

लॉस एंजिल्स : अअमेरिका के मशहूर कॉमिक लेखक स्टैन ली का 95 साल की उम्र में निधन हो गया। उन्होंने स्पाइडर मैन और द हल्क जैसे सुपरहीरो कैरेक्टर रचे थे। साथ ही, अमेरिका में कॉमिक कल्चर लाए थे। इसके अलावा स्टैन ली ने भारतीय सुपरहीरो ‘चक्र’ भी रचा था। इस भारतीय सुपरहीरो पर 2013 में फिल्म भी बनी। बीते कुछ सालों से स्टैन ली कई बीमारियों से पीड़ित थे।
ली की बेटी ने हॉलीवुड की एक मैगजीन टीएमजेड को बताया, “मेरे पिता अपने सभी प्रशंसकों से प्यार करते थे। वह एक महान और शानदार व्यक्ति थे।” न्यूयॉर्क में रहने वाले ली अपने चश्मे के चलते जाने जाते थे और वह अकसर समारोहों में दिखाई देते थे।
भारतीय युवा की कहानी थी ‘चक्र’ में
स्टेन ली ने 2013 में भारतीय सुपरहीरो को लेकर एक फिल्म बनाई। इसका नाम ‘चक्र’ था। कार्टून नेटवर्क, ग्राफिक इंडिया और पॉ इंटरनेशनल की साझेदारी में बनी फिल्म ‘चक्र : द इंविंसिबल’ कार्टून नेटवर्क पर रिलीज हुई थी। उस वक्त ली ने कहा था कि वे इस फिल्म को लेकर काफी उत्साहित हैं। यह फिल्म एक युवा भारतीय राजू राय पर आधारित थी, जो जो मुंबई में रहता है। फिल्म में राजू अपने मार्गदर्शक डॉ. सिंह के साथ मिलकर एक ऐसी पोशाक बनाता है, जिसे पहनने से शरीर के रहस्यमयी चक्र सक्रिय हो जाते हैं।
अंकल ने दिलाई पहली नौकरी
स्टैन ली को उनके अंकल ने किशोरावस्था में पहली नौकरी दिलाई। इसमें ली को बतौर फिलिंग आर्टिस्ट कार्टून कैरेक्टर में स्याही भरनी होती थी। एक बार ली ने कहा था, “मुझे एक दिन लगा था कि मैंने एक महान अमेरिकी नॉवेल लिखा और उसमें अपने सही नाम का इस्तेमाल नहीं किया।” उनका सही नाम स्टैनली लीबर था। ली ने जो कैरेक्टर बनाए उनमें असाधारण शक्ति थी। लोगों को उनमें पूरे ब्रह्मांड में राज करने की ताकत नजर आती थी। ली के बनाए सुपरहीरो दशकों तक छाए रहे।
ब्रांड बन चुके हैं ली के कैरेक्टर
स्पाइडरमैन हो या ब्लैक पेंथर, एक्समैन, फेंटास्टिक फोर, आयरन मैन, थोर, डॉक्टर स्ट्रेंज, ये सारे एक ब्रांड बन चुके हैं। स्पाइडर मैन, थोर, आयरन मैन की हॉलीवुड में कई फिल्मों की सीरीज आ चुकी हैं। ये फिल्में पिछले एक दशक में 1.3 लाख करोड़ रुपए से ज्यादा कमा चुकी हैं। इस लिहाज से उनकी एक फिल्म की औसत कमाई 6500 करोड़ रुपए रही।
फिल्मों में छोटा सा रोल भी करते थे
अपने कैरेक्टर पर बनने वाली फिल्म में ली एक छोटा सा रोल भी करते थे। ‘एवेंजर्स: इनफिनिटी वॉर’ में ली एक बस ड्राइवर के रोल में दिखाई दिए थे। सॉ और इनसाइडस जैसी फिल्मों के निर्देशक और ऑस्ट्रेलियाई फिल्मकार ने जेम्स वॉन ने ट्वीट किया, “ली सही मायने में लेजेंड थे। मेरे दर्शक उनके बिना अच्छा महसूस नहीं करेंगे। मैं उनके काम के लिए किस तरह शुक्रिया अदा करूं, यह समझ नहीं आता।”

कोलकाता में खुलेगा हैंगिंग रेस्तरां

कोलकाता : अगर आप हवा में तैरते हुए खाने का मजा लेना चाहते हैं तो इसके लिए बेल्जियम, फ्रांस और मलेशिया जाने की जरूरत नहीं है। हैंगिंग रेस्तरां में खाने का मजा आप कोलकाता में भी ले सकते हैं। बेंगलुरु के बाद अब अगले महीने सिटी ऑफ ज्वॉय कोलकाता में हैंगिंग रेस्तरां खुलने जा रहा है। यह रेस्तरां कोलकाता के न्यूटाउन इलाके में बनाया गया है, जहां विश्व बांग्ला गेट है। इस रेस्तरां से कोलकाता की खूबसूरती का नजारा भी देखा जा सकता है। जानकारी के मुताबिक, कोलकाता में बने इस हैंगिंग रेस्तरां को अगले महीने आम लोगों के लिए खोल दिया जाएगा। बता दें कि इसी साल भारत का पहला हैंगिंग रेस्तरां बेंगलुरु में खुला था।
यह है खासियत -न्यूटाउन में बने इस हैंगिंग रेस्तरां की उँचांई 55 मीटर और चौड़ाई 200 मीटर है। यहां से 360 डिग्री की पॉजिशन में पूरे शहर का नजारा भी देखा जा सकता है। इस हैंगिंग रेस्तरां में लगभग 50 लोग एक साथ बैठ कर खाना खा सकते हैं। हालांकि खाने का रेट अभी तय नहीं किया गया है।

एक टोकरी-भर मिट्टी

माधवराव सप्रे

किसी श्रीमान् जमींदार के महल के पास एक गरीब अनाथ विधवा की झोंपड़ी थी। जमींदार साहब को अपने महल का हाता उस झोंपड़ी तक बढा़ने की इच्‍छा हुई, विधवा से बहुतेरा कहा कि अपनी झोंपड़ी हटा ले, पर वह तो कई जमाने से वहीं बसी थी; उसका प्रिय पति और इकलौता पुत्र भी उसी झोंपड़ी में मर गया था। पतोहू भी एक पाँच बरस की कन्‍या को छोड़कर चल बसी थी। अब यही उसकी पोती इस वृद्धाकाल में एकमात्र आधार थी। जब उसे अपनी पूर्वस्थिति की याद आ जाती तो मारे दु:ख के फूट-फूट रोने लगती थी। और जबसे उसने अपने श्रीमान् पड़ोसी की इच्‍छा का हाल सुना, तब से वह मृतप्राय हो गई थी। उस झोंपड़ी में उसका मन लग गया था कि बिना मरे वहाँ से वह निकलना नहीं चाहती थी। श्रीमान् के सब प्रयत्‍न निष्‍फल हुए, तब वे अपनी जमींदारी चाल चलने लगे। बाल की खाल निकालने वाले वकीलों की थैली गरम कर उन्‍होंने अदालत से झोंपड़ी पर अपना कब्‍जा करा लिया और विधवा को वहाँ से निकाल दिया। बिचारी अनाथ तो थी ही, पास-पड़ोस में कहीं जाकर रहने लगी।

एक दिन श्रीमान् उस झोंपड़ी के आसपास टहल रहे थे और लोगों को काम बतला रहे थे कि वह विधवा हाथ में एक टोकरी लेकर वहाँ पहुँची। श्रीमान् ने उसको देखते ही अपने नौकरों से कहा कि उसे यहाँ से हटा दो। पर वह गिड़गिड़ाकर बोली, ”महाराज, अब तो यह झोंपड़ी तुम्‍हारी ही हो गई है। मैं उसे लेने नहीं आई हूँ। महाराज क्षमा करें तो एक विनती है।” जमींदार साहब के सिर हिलाने पर उसने कहा, ”जब से यह झोंपड़ी छूटी है, तब से मेरी पोती ने खाना-पीना छोड़ दिया है। मैंने बहुत-कुछ समझाया पर वह एक नहीं मानती। यही कहा करती है कि अपने घर चल। वहीं रोटी खाऊँगी। अब मैंने यह सोचा कि इस झोंपड़ी में से एक टोकरी-भर मिट्टी लेकर उसी का चूल्‍हा बनाकर रोटी पकाऊँगी। इससे भरोसा है कि वह रोटी खाने लगेगी। महाराज कृपा करके आज्ञा दीजिए तो इस टोकरी में मिट्टी ले आऊँ!” श्रीमान् ने आज्ञा दे दी।

विधवा झोंपड़ी के भीतर गई। वहाँ जाते ही उसे पुरानी बातों का स्‍मरण हुआ और उसकी आँखों से आँसू की धारा बहने लगी। अपने आंतरिक दु:ख को किसी तरह सँभालकर उसने अपनी टोकरी मिट्टी से भर ली और हाथ से उठाकर बाहर ले आई। फिर हाथ जोड़कर श्रीमान् से प्रार्थना करने लगी, ”महाराज, कृपा करके इस टोकरी को जरा हाथ लगाइए जिससे कि मैं उसे अपने सिर पर धर लूँ।” जमींदार साहब पहले तो बहुत नाराज हुए। पर जब वह बार-बार हाथ जोड़ने लगी और पैरों पर गिरने लगी तो उनके मन में कुछ दया आ गई। किसी नौकर से न कहकर आप ही स्‍वयं टोकरी उठाने आगे बढ़े। ज्‍योंही टोकरी को हाथ लगाकर ऊपर उठाने लगे त्‍योंही देखा कि यह काम उनकी शक्ति के बाहर है। फिर तो उन्‍होंने अपनी सब ताकत लगाकर टोकरी को उठाना चाहा, पर जिस स्‍थान पर टोकरी रखी थी, वहाँ से वह एक हाथ भी ऊँची न हुई। वह लज्जित होकर कहने लगे, ”नहीं, यह टोकरी हमसे न उठाई जाएगी।”

यह सुनकर विधवा ने कहा, ”महाराज, नाराज न हों, आपसे एक टोकरी-भर मिट्टी नहीं उठाई जाती और इस झोंपड़ी में तो हजारों टोकरियाँ मिट्टी पड़़ी है। उसका भार आप जन्‍म-भर क्‍योंकर उठा सकेंगे? आप ही इस बात पर विचार कीजिए।”

जमींदार साहब धन-मद से गर्वित हो अपना कर्तव्‍य भूल गए थे पर विधवा के उपर्युक्‍त वचन सुनते ही उनकी आँखें खुल गयीं। कृतकर्म का पश्‍चाताप कर उन्‍होंने विधवा से क्षमा माँगी और उसकी झोंपड़ी वापिस दे दी।

(1900)