नयी दिल्ली : भारतीय सुपरस्टार एम सी मैरीकाम समेत ऐसी कई धुरंधर हैं जो घर के अलावा रिंग में जलवा बिखेकर अपने देशों का नाम इतिहास में दर्ज करवाती रही हैं। मैग्नीफिसेंट मैरी हालांकि इन सभी में एकमात्र ऐसी मुक्केबाज हैं जो पांच बार विश्व चैम्पियन बनने का गौरव हासिल कर चुकी हैं और छठी बार यह कारनामा करने की कोशिश में जुटी हैं। लंदन ओलंपिक की यह कांस्य पदकधारी कई मुक्केबाजों के लिये प्रेरणास्रोत भी है और पैंतीस साल की उम्र में उनका फिटनेस का स्तर शानदार है। अपार अनुभव की धनी मैरीकाम ने हाल में गोल्ड कोस्ट राष्ट्रमंडल खेलों में स्वर्ण पदक अपने नाम किया था। उनके नाम एशियाई चैम्पियनशिप में भी पांच स्वर्ण और एक रजत पदक हैं। मैरीकाम ने मां बनने के बाद वापसी करते हुए कई अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में जीत का परचम लहराया। उन्हीं की तरह डेनमार्क की वाईवोने बाएक रासमुसेन भी दो बच्चों के जन्म के बाद वापसी कर रही हैं जबकि उन्होंने 2008 में खेल को अलविदा कह दिया था, उन्होंने 2014 में ट्रेनिंग शुरू करना शुरू किया।
फिनलैंड की मीरा पोटकोनेन ने 2016 रियो ओलंपिक खेलों में कांस्य पदक अपने नाम किया था और अस्ताना में हुई पिछली एआईबीए महिला विश्व चैम्पियनशिप में भी वह तीसरे स्थान पर रही थी। गत यूरोपीय चैम्पियन मीरा की दो बेटिया हैं और उनकी अनुपस्थिति में उनकी देखभाल उनके पति करते हैं। मीरा ने घर और रिंग की जिम्मेदारी संभालने के बारे में यहां आई जी स्टेडियम में कहा, ‘‘जब मैं टूर्नामेंट के लिये बाहर होती हूं तो मेरी दोनों बेटियों की देखभाल मेरे पति करते हैं। ’’
मीरा ने दूसरी बेटी के जन्म के बाद मोटापे को कम करने के लिये मुक्केबाजी करना शुरू किया था लेकिन धीरे धीरे यह खेल उनका जुनून बनता गया। उन्होंने कहा, ‘‘मां बनने से मेरा मुक्केबाजी करियर प्रभावित नहीं हुआ। जब बेटियां छोटी थीं, तब थोड़ी मुश्किल आती थी लेकिन उनके बड़े होने के बाद घर और मुक्केबाजी के बीच अच्छा संतुलन बन गया है। ’’
डेनमार्क की रासमुसेन 64 किग्रा लाइट वेल्टरवेट में खेलती हैं, उन्होंने 2005 में अपना पहला अंतरराष्ट्रीय पदक जीता था। वह अपने बच्चों का स्कूल का काम करवाती हैं, दिन में दो बार ट्रेनिंग करती हैं और साथ ही अपने पारिवारिक कृषि व्यवसाय में हाथ बंटाती हें। मुक्केबाजी के लिये खुद को फिट रखने के लिये हर दिन अपने मुक्केबाजी क्लब के लिये डेढ़ घंटे ड्राइविंग करती हैं। कोलंबिया की रियो ओलंपिक की कांस्य पदकधारी इनग्रिट वालेंसिया ने 2006 में अपने बेटे के जन्म के बाद दो साल के लिये ट्रेनिंग छोड़ दी थी लेकिन वापसी के बाद उन्होंने ओलंपिक में कांसे के अलावा इस साल दक्षिण अमेरिकी खेलों और अमेरिकी एंड कैरेबियन खेलों में भी जीत हासिल की। तीस साल की यह मुक्केबाज फ्लाईवेट 51 किग्रा में खेलती है।
फिलीपींस की 31 साल की मुक्केबाज जोसी गाबुको ने 2012 विश्व चैम्पियनशिप में स्वर्ण पदक जीता था और यह उनके देश के इस प्रतियोगिता में इतिहास में एकमात्र स्वर्ण पदक है। उनका 11 साल का बेटा है जिसने एक साक्षात्कार में कहा था, ‘‘प्लीज मेरी मां को मत मारना। ’’
विश्व मुक्केबाजी चैम्पियनशिप में जलवा बिखेर रही हैं कई मांएं
2030 तक 9.8 करोड़ भारतीय हो सकते हैं मधुमेह के शिकार :लांसेट
बोस्टन : एक ताजा रिपोर्ट के अनुसार भारत में 2030 तक करीब 9.8 करोड़ लोग टाइप 2 के मधुमेह या डायबिटीज का शिकार हो सकते हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि दुनियाभर में मधुमेह से ग्रस्त वयस्कों की संख्या 20 प्रतिशत बढ़ सकती है।
लांसेट डायबिटीज एंड एंडोक्रायनोलॉजी पत्रिका में प्रकाशित अध्ययन में पता चला कि टाइप 2 की डायबिटीज के प्रभावी उपचार के लिए जरूरी इंसुलिन की मात्रा अगले 12 साल में दुनियाभर में 20 प्रतिशत से ज्यादा बढ़ जाएगी।
अमेरिका में स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी के अनुसंधानकर्ताओं ने कहा कि इंसुलिन की पहुंच में अधिक सुधार नहीं होने के कारण यह टाइप 2 डायबिटीज से ग्रस्त 7.9 करोड़ लोगों के करीब आधे लोगों की पहुंच से बाहर होगी जिन्हें 2030 में इसकी जरूरत होगी। इस अध्ययन के निष्कर्षों में खासकर अफ्रीकी, एशियाई और समुद्री क्षेत्रों के लिए चिंता जताई गयी है।
परिणाम बताते हैं कि दुनियाभर में टाइप 2 मधुमेह से ग्रस्त वयस्कों की संख्या में 2030 में 20 प्रतिशत से ज्यादा इजाफा हो सकता है। 2018 में यह संख्या 40.6 करोड़ है जो 2030 में 51.1 करोड़ पहुंच सकती है।
अनुसंधानकर्ताओं ने कहा कि इनमें से आधे केवल तीन देशों- चीन (13 करोड़), भारत (9.8 करोड़) और अमेरिका (3.2 करोड़) में होंगे। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के अनुसार 2015 में भारत में मधुमेह ग्रस्त लोगों की संख्या 6.92 करोड़ थी।
पूरे देश को स्टील की सड़कें देगा झारखंड
नयी दिल्ली/जमशेदपुर : झारखंड अब पूरे देश को स्टील की सड़कें देगा। जमशेदपुर में स्टील से बनी ढाई किमी सड़क का प्रयोग सफल रहा है। अब प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना के तहत बनने वाली सड़कों में स्टील स्लैग का इस्तेमाल किया जाएगा। काउंसिल ऑफ साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च (सीएसआईआर) और सेंट्रल रोड रिसर्च इंस्टीट्यूट (सीआईआईआर) ने नागपुर में इंडियन रोड कांग्रेस में इसकी रिपोर्ट जारी की है। अभी ग्रामीण क्षेत्रों की सड़कों में इसका प्रयोग किया जाएगा। हाईवे के लिए तकनीक पर और रिसर्च चल रही है।
एनएच-33 पर करीब दो साल पहले पारडीह काली मंदिर के आगे 500 मीटर लंबी रोड में स्टील स्लैग का इस्तेमाल किया गया था। 2014-15 में जमशेदपुर में डिमना के पास भी स्टील स्लैग से दो किमी लंबी सड़क बनाई गई थी। इसे मजबूती और गुणवत्ता में बेहतर पाया गया। सड़क आज भी सही सलामत है। इस रोड पर रोजाना 1200 से 1300 भारी वाहन (3 टन से ज्यादा वजनी) रोजाना गुजरते हैं। दोनों सड़कें परीक्षण में ठीक पाई गई हैं।
सीएसआईआर और सीआईआईआर की रिपोर्ट के मुताबिक, जब नेशनल हाईवे पर प्रयोग सफल है तो ग्रामीण इलाकों में नई तकनीक से बनी रोड की उम्र और भी बढ़ जाएगी, क्योंकि वहां पर भारी वाहन कम संख्या में गुजरते हैं। स्टील प्लांट के आसपास के क्षेत्रों में प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के तहत बनने वाली सड़कों में स्टील स्लैग का इस्तेमाल किया जाएगा। फिलहाल, झारखंड और ओडिशा की ग्रामीण सड़कों के निर्माण में इस मटेरियल का इस्तेमाल किया जाना है।
स्टील के स्लैग का बाई प्रोडक्ट है एग्रेटो
टाटा स्टील के इंडस्ट्रियल बाई प्रोडक्ट डिवीजन के सीनियर एक्जीक्यूटिव प्रभात कुमार के मुताबिक, यह स्टील के स्लैग से बनने वाला बाई प्रोडक्ट है। स्टील स्लैग की सड़कों में गिट्टी की जगह इसका प्रयोग किया जाता है। टाटा स्टील से निकलने वाले 0-65 मिमी स्लैग को प्रोसेस कर एग्रेटो बनाया जाता है। इसे बनाने में तीन से छह महीने का वक्त लगता है। 18 जनवरी, 2017 को टाटा स्टील ने कोलकाता में आयोजित आईबीएमडी (इंडस्ट्रियल बाय-प्रोडक्ट्स मैनेजमेंट डिवीजन) के ग्राहक सम्मेलन में एग्रेटो लांच किया था। यह चार अलग-अलग आकारों में होता है और बिटुमिन और पक्की सड़क के निर्माण में इस्तेमाल के लिए उपयुक्त है।
स्टील सड़क की उम्र भी ज्यादा
स्टील स्लैग की कीमत 250 से 300 रु. प्रति टन होती है, जबकि गिट्टी की कीमत 850 से 1000 रु. या कई जगह इसकी कीमत 2 हजार रु. प्रति टन तक पहुंच जाती है। इसलिए गिट्टी के मुकाबले स्टील की सड़क सस्ती पड़ेगी। सीएसआईआर और सीआईआईआर के सीनियर साइंटिस्ट और प्रोजेक्ट के प्रमुख सतीश पांडेय ने बताया कि यह भारी होती है। इसकी घर्षण प्रतिरोधक क्षमता ज्यादा होती है, जिससे इसकी उम्र गिट्टी वाली सड़क से अधिक होगी। साथ ही सड़कों से उठने वाले धूल-धुएं से निजात मिलेगी।
स्लैग से पर्यावरण को फायदा
प्रभात कुमार बताते हैं कि पर्यावरण को देखते हुए एग्रेटो का निर्माण किया जा रहा है। आमतौर पर सड़कों में अभी गिट्टी का प्रयोग होता है। इसके लिए पहाड़ काटने पड़ते हैं। इससे पर्यावरण को काफी नुकसान हो रहा है। इसकी डस्ट से मजदूर और ग्रामीण बीमारी के शिकार होते हैं, लेकिन स्टील स्लैग से न तो पर्यावरण पर असर पड़ता है और न ही सड़क किनारे रहने वाले लोगों की सेहत पर।
नहीं रहीं मेरठ की बेटी और पाकिस्तान की मशहूर शायर फहमीदा रियाज
लाहौर : भारत के मेरठ शहर में जन्मीं पाकिस्तान की मशहूर लेखिका और शायरा फहमीदा रियाज का बुधवार रात यहां निधन हो गया। वह 73 साल की थीं और लंबे समय से बीमार चल रही थीं। उन्होंने पाकिस्तान में महिलाओं के अधिकारों और लोकतंत्र के पक्ष में हमेशा आवाज उठाई। सैन्य तानाशाह जनरल जियाउल हक के शासन के दौरान उन्हें पाकिस्तान छोड़ना पड़ा था। उस दौरान उन्होंने भारत में सात साल स्व-निर्वासित जीवन व्यतीत किया था। जियाउल हक के निधन के बाद वह पाकिस्तान लौट गई थीं। साहित्य में रुचि रखने वाले मेरठ के एक परिवार में जुलाई, 1945 में उनका जन्म हुआ था। पिता का तबादला सिंध प्रांत में होने के बाद वह हैदराबाद (पाकिस्तान) शहर में बस गई थीं। प्रगतिशील उर्दू लेखिका, शायरा और मानवाधिकार कार्यकर्ता के तौर पर पहचान बनाने वाली फहमीदा ने रेडियो पाकिस्तान और बीबीसी उर्दू के लिए भी काम किया था। फहमीदा ने 15 से ज्यादा किताबें लिखी थीं। उनकी गजलों का पहला संग्रह ‘पत्थर की जुबान’ 1967 में प्रकाशित हुआ था। इसके बाद ‘धूप’, ‘पूरा चांद’ और ‘आदमी की जिंदगी’ प्रकाशित हुए। उन्होंने ‘जिंदा बहार’, ‘गोदावरी’ और ‘कराची’ जैसे कई उपन्यास भी लिखे थे। फहमीदा अपनी क्रांतिकारी और परंपरा के विपरीत रचनाओं को लेकर ज्यादा चर्चित हुई थीं। 1973 में उनकी रचना ‘बदन दरीदा’ को लेकर खूब हंगामा हुआ था। उन पर इसमें कामुकता का इस्तेमाल करने का आरोप लगाया गया था। जियाउल हक के शासनकाल में फहमीदा पर देशद्रोह समेत दस से ज्यादा मुकदमे दर्ज हुए थे। फहमीदा और उनके पति को गिरफ्तार कर लिया गया था। जमानत पर छूटने के बाद वह मुशायरे का आमंत्रण मिलने की आड़ में अपने दो बच्चों और बहन के साथ भारत चली आई थीं। फहमीदा की मित्र और जानीमानी लेखिका अमृता प्रीतम ने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से बात की थी जिसके बाद उन्हें शरण मिली थी। ।
कन्नड़ अभिनेता एवं नेता अंबरीश का निधन
बेंगलुरू : कन्नड़ अभिनेता एवं नेता अंबरीश का दिल का दौरा पड़ने से यहां एक निजी अस्पताल में निधन हो गया। वह 66 वर्ष के थे। अस्पताल के अधिकारियों ने बताया कि पूर्व केंद्रीय मंत्री अंबरीश को सांस लेने में शिकायत के बाद अस्पताल लाया गया था जहां उनका निधन हो गया। अस्पताल के प्रवक्ता के मुताबिक अंबरीश अपने घर में अचेत अवस्था में मिले थे और उन्हें होश में लाने की कोशिश की गई। अस्पताल ले जाने के दौरान भी ये कोशिशें जारी रहीं। प्रवक्ता ने बताया कि सभी कोशिशों के बावजूद उनकी हालत जस की तस बनी रही और 10 बजकर 15 मिनट पर उन्हें मृत घोषित कर दिया गया। अंबरीश तीन बार लोक सभा सदस्य तथा राज्य के पूर्व मंत्री भी रह चुके हैं। उनके परिवार में पत्नी सुमालता (अभिनेत्री) और बेटा अभिषेक है। नका जन्म 29 मई, 1952 को हुआ था। वह ‘विद्रोही स्टार’ के रूप में विख्यात हैं। उन्होंने चार दशक के लंबे करियर में 200 से ज्यादा फिल्मों में काम किया था। अभिनेता की सेहत कुछ वर्षों से खराब चल रही थी और उन्हें कई बार अस्पताल में भर्ती कराया गया था।
अंबरीश के निधन की खबर फैलते ही मुख्यमंत्री एच डी कुमार स्वामी सहित अनेक नेता तथा अभिनेता अस्पताल पहुंचे। मुख्यमंत्री ने उनके निधन पर दुख व्यक्त किया है। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार ने अंबरीश के सम्मान में तीन दिन का शोक रखने का निर्णय किया है और उनका अंतिम संस्कार पूरे राजकीय सम्मान के साथ किया जाएगा। मुख्यमंत्री ने अभिनेता को ‘अजातशत्रु’ बताया और उनके प्रशंसकों से शांति बनाए रखने की अपील की है।
डॉ.वर्गीज कुरियन, श्वेत क्रांति के पिता और अमूल के संस्थापक
उन्होंने आनंद में काम करते हुए देखा कि गरीब और अशिक्षित किसानों को दूध के वितरकों के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है। पोलसन डेयरी 1930 में स्थापित की गई, जोकि आनंद जिले और गुजरात में एकमात्र डेयरी थी। हालांकि उनके उत्पाद उच्च गुणवत्ता वाले थे। लेकिन भारतीय किसानों का शोषण किया जा रहा था। प्रथम, उन सभी को दूध का अच्छी तरह से भुगतान नहीं किया जा रहा था। दूसरा, उन्हें सीधे विक्रेताओं को दूध बेचने की अनुमति नहीं थी। काम करते समय, कुरियन नेता त्रिभुवनदास पटेल से प्रेरित हुए जो इस शोषण के खिलाफ सहकारी आंदोलन पर काम कर रहे थे। कुरियन ने पटेल के साथ मिलकर खेड़ा जिले में सहकारी समितियों पर काम करना शुरू किया। इससे यह हुआ कि 14 दिसंबर 1949 को अमूल की स्थापना हुई। आरम्भ में इसे केडीसीएमपीयूएल (कैरा जिला सहकारी दूध उत्पादक संघ लिमिटेड) के रूप में जाना जाता था और यह उचित आपूर्ति श्रृंखला के बिना दूध और अन्य डेयरी उत्पादों की आपूर्ति करता था। जब यह शुरू हुआ तो इसमें दो सहकारी समितियां थी जिसमें प्रतिदिन 247 लीटर दूध का उत्पादन होता था। वर्तमान में अमूल 15 मिलियन लीटर दूध का उत्पादक और देश भर में 1,44,246 डेयरी सहकारी समितियों का संरक्षक है।
अमूल नाम कैसे मिला?
डॉ कुरियन ने दूध सहकारी आंदोलन शुरू किया और इसका नाम कैरा जिला सहकारी दूध उत्पादक संघ लिमिटेड (केडीसीएमपीयूएल) रखा, जिसे बाद में अमूल के रूप में जाना जाने लगा क्योंकि श्री कुरियन एक सरल और आसान उच्चारण वाला नाम चाहते थे। इसके अलावा ऐसा नाम होना चाहिए जो संघ के विकास में मदद करे। नाम के बारे में सुझाव कर्मचारियों और किसानों से पूछा गया। तब गुणवत्ता नियंत्रण पर्यवेक्षक द्वारा ‘अमूल्य’ की सिफारिश की गई थी यह एक संस्कृत का शब्द है जिसका अर्थ ‘अनमोल’ है। बाद में इस संगठन को सम्मिलित करने के लिए इसका नाम बदलकर अमूल कर दिया गया, वहाँ से ब्रांड अमूल-आनंद मिल्क यूनियन लिमिटेड अस्तित्व में आया। अमूल को पूर्ण सफलता तब मिली जब डॉ. कुरियन के दोस्त एच.एम. दलाया ने गाय के दूध के बजाय भैंस के दूध से मलाई निकाले हुए दूध का सूखा पाउडर और गाढ़ा दूध बनाने की प्रक्रिया का आविष्कार किया। अमूल सहकारी योजना पर काम कर रहे थे, यह इतना लोकप्रिय हो गया कि इसने सरकार का ध्यान खींच लिया।
सहकारी समितियाँ कैसे काम करती हैं?
गाँवों के समूह के लिए कई सहकारी समितियों का गठन किया गया था। इन गाँवों के किसानों का मुख्य कार्य दिन में दो बार दूध इकट्ठा करना था। जहाँ तक भुगतान का संबंध था, उसमें दूध और वसा सामग्री की गुणवत्ता निर्णायक कारक थी। अप्रत्याशित जाँचें, किसानों को शिक्षित करना और वसा मापने की आधुनिक मशीनें इस प्रक्रिया को सरल बनाने और इसमें आने वाली परेशानियों को दूर करने का अहम हिस्सा थीं। इसी समय दूध के प्रतिदिन संग्रह करने वाले केन को दूध को ठंडा रखने वाली इकाइयों में स्थानान्तरित कर दिया गया था। इसके कुछ समय बाद पास्चुरीकरण (दूध में रोगों और कमियों से नष्ट करना), ठंडा करने और पैकिंग का कार्य किया जाता था। पैक किए गए दूध को पहले थोक वितरक और उसके बाद खुदरा विक्रेताओं के पास ले जाया जाता है और अंत में उपभोक्ताओं को भेजा जाता है। इस आपूर्ति श्रृंखला में संशोधन के साथ अमूल ब्रांड एक प्रसिद्ध नाम बन गया है।
दुग्ध क्रांति – श्वेत क्रांति
1964 में, अमूल के नये पशुपालन संयंत्र का उद्घाटन करने के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री को आनंद में आमंत्रित किया गया था। वे पूरी प्रक्रिया से बहुत प्रभावित हुए, उन्होंने डॉ. कुरियन से देश भर में इस प्रतिरूप की नकल करने को कहा चूँकि यह प्रतिरूप किसानों को उनकी आर्थिक स्थिति सुधारने में मदद कर रहा था। इस उद्देश्य को पूरा करने के लिए, वर्ष 1965 में राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड (एनडीडीबी) का गठन किया गया और डॉ. कुरियन को इस बोर्ड का प्रभारी बनाया गया था। उस समय दूध की मांग बढ़ रही थी जो आपूर्ति को भी पार कर गई। धन की कमी एक और बड़ी समस्या थी। एनडीडीबी ने इसको हल करने के लिए विभिन्न विश्व बैंकों से बिना किसी शर्त के दान में पैसा माँगने की कोशिश की। 1969 में, जब विश्व बैंक के अध्यक्ष भारत आए तब डॉ. कुरियन ने उनसे कहा कि “मुझे पैसे दे दो और इसके बारे में भूल जाओ” (अर्थात दूध की कमी को) कुछ दिन बाद बिना किसी शर्त के ऋण मंजूर हो गया और जो कि बाद में दुग्ध क्रांति के रूप में जाना जाने लगा। इसका मुख्य उद्देश्य पूरे भारत में आनंद परियोजना के काम को दोहराना था। दुग्ध क्रांति को क्रमिक तीन चरणों में कार्यान्वित किया गया था।
पुरस्कार
दुनिया भर के विश्वविद्यालयों ने उन्हें सम्मानित किया, उन्होंने 12 मानद डिग्री प्राप्त कीं। 1999 में उन्हें पद्म विभूषण, 1993 में इंटरनेशनल पर्सन ऑफ द इयर, 1989 में विश्व खाद्य पुरस्कार, 1986 में वटलर शांति पुरस्कार, 1986 में कृष्णा रत्न पुरस्कार, 1966 में पद्म भूषण, 1965 में पद्म श्री और 1963 में रैमन मैगसेसे पुरस्कार मिला। इस तरह के उल्लेखनीय प्रयासरत इंजीनियर का 9 दिसंबर 2012 को गुजरात के आनंद के करीब नडियाड़ में निधन हो गया। डॉ. कुरियन को हमेशा उनके महान प्रयासों और डेयरी क्षेत्र में योगदान देने और किसानों का उत्थान करने के लिए याद किया जाएगा।
(साभार – मेन इंडिया)
विश्व पुरुष दिवस पर अपराजिता से साझा किये गये सन्देश

#lets_celebrate_mens_dayसच तो है कि पुरूषों के संघर्ष के बिना स्त्रियों की वर्तमान स्थिति संभव नहीं थी। राजा राममोहन राय, ईश्वरचंद्र विद्यासागर हो या परिवार में अपनी बहन बेटियों के हक के लिए लङने वाले वे प्रगतिशील पिता और भाई हो जो समाज के विरुद्ध भी गए या फिर सुल्तान इल्तुतमिश हो जिन्होंने रजिया को रजिया सुल्तान बनाया या 16 दिसम्बर की घटना के विरोध प्रदर्शन में शामिल वे तमाम पुरुष हो जिन्होंने पुलिसकर्मियों की लाठियों, आँसू गैसों को झेला । हम सभी,प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से ऐसे पुरूषों के शुक्रगुजार अवश्य हैं ।

आज पुरुष दिवस के शुभ अवसर पर हर वो पुरुष को बधाई,जो मर्यादा पुरुषोत्तम के समान हैं ।।पहले तो मेरे पापा,फिर मेरे शिक्षक,फिर मेरे खास दोस्त,दोस्त तो बहुत होते हैं पर खास कोई एक ही ।
जिन्होने हमेसा हर घड़ी सुख हो या दुख मेरे साथ रहा हो।शिक्षक बहुत सारे मिलें जीवन में पर असल जीवन जीने की कला,जीवन और समय के महत्व,हिंदी जैसे भाषा, को जागरूक करने के प्रयाश को महत्व दिया तो वो हैं हमारे प्रिय Sanjay Jaiswal सर ।।
किताबों के कविताओं को हम बस पढ़ कर याद करते थे,पर सर ने हमें कविताओं के गहराइयों तक ले जाकर दिखाया,अर्थ समझाया एक-एक कवि के जीवन की अमूल्य घटनाओ को बतलाया,जो शायद हमें आज तक किसी ने न बताया हो ।।
वो हर छात्राओं को एक समान रूप से देखते हैं,उनके पास नहीं बोलकर कुछ नही,वो हर चीज को संभव करते हैं
वे हम जैसे बच्चों को एकसाथ जोड़कर आगे बढ़ रहे हैं,की किस प्रकार #हिंदी को अधिक से अधिक मान्यता दी जाय ।।
नई-नई कविताओं का सृजन करना,कहानियों को पढ़ना सर हमें बतलाते हैं,हमे अच्छे लेखक-कवि बड़े-बड़े ऊँचपद्ध्द लोगों के बीच लेकर आते हैं,और ज्ञान के साथ नयी-नयी ऊर्जा भर्ते हैं हमारे अंदर ।।
धन्यवाद 😊 #अपराजिता 💐
(तस्वीर – साभार दैनिक भास्कर)
मेरे छोटे बाबू

आज पुरुष दिवस है। जी हाँ, आपने बिल्कुल सही सुना और सही समझा। पुरुष दिवस। मैं जानती हूँ कि हमलोग इसके पहले कभी भी पुरुष दिवस का नाम नहीं सुने हैं। पर अब तो सुना। सुना तो। तो चलिए मना लेते हैं पुरुष दिवस। वैसे हमारे जीवन में बिना पुरुष के कोई दिन, कोई तीज-त्योहार, कोई खुशी, कोई गम होता ही नहीं है। हम जबसे इस दुनिया को जानते हैं, पहचानते हैं। पुरुष हमारे जीवन में वैसे ही हैं, जैसे पानी, हवा , धरती और आसमान। जिस तरह हम धरती और आसमान के बिना रहने की कल्पना नहीं कर सकते, वैसे ही हम पुरुष के विभिन्न रूपों के बिना हम नहीं रह सकते। बचपन से दादा, नाना, पिता, मामा, चाचा, भाई, भतीजा, पति, जेठ, देवर, बेटा, दोस्त, सहपाठी, बॉस और न जाने पुरुष के कितने रूप हमें मिलते हैं और उनके साथ ही जीते हैं। पुरुष के विभिन्न रूपों से हम ऐसे जुड़े हैं, कि हम उनके बिना कल्पना ही नहीं कर सकते। हमें जिस तरह माँ का आंचल चाहिए, उसी तरह पिता की छाया चाहिए। जिस तरह हमें बहनों के साथ गुफ्तगू करने को चाहिए, ठीक उसी तरह भाईयों के साथ उठा-पटक भी होनी चाहिए। प्यार करने के लिए जिस तरह पति का साथ चाहिए, तो चुहलबाजी व रखवाली करने के लिए देवर भी चाहिए। घर की चहारदीवारी में अगर नाना-दादा सुरक्षा कवच होते हैं, तो बाहरी दुनिया में हमारा दोस्त हमारे साथ होता है। यानी नमक की तरह ही पुरुष हैं हमारे जीवन में। हम कभी कल्पना ही नहीं कर सकते कि पुरुष के बिना भी जिंदगी होती है। इसलिए हमारे जीवन के नमक यानी पुरुष को हैप्पी पुरुष डे।
आज पुरुष दिवस है। सोचा मेरे जीवन के किसी पुरुष के बारे में विस्तार से लिखा जाए। सोचते सोचते मैंने उनके बारे में लिखने का तय किया, जो मेरे पापा की तरह थे। पर पापा से भी ज्यादा प्यारे थे। गुस्सा करने में तो भैया से भी आगे थे, पर जब नरम पड़ते तो बिल्कुल बच्चे जैसे होते। कई बार तो उनसे डर लगता, तो कई बार वो मुझसे डर जाते। जी, वो मेरे चाचा थे। यानी मेरे पिता के भाई अर्थात् चाचा। जिन्हें हम भाई-बहन प्यार से छोटे बाबु कहा करते थे। छोटे बाबु बिल्कुल सामान्य व्यक्ति थे। लंबा कद, मोटा शरीर और सांवला रंग। पर उनका व्यक्तित्व बहुत अच्छा था। वह सारी जिंदगी अपने भैया-भाभी के साथ गुजार दिये। वह कलयुग के लक्ष्मण थे। जहाँ एक तरफ पूरी ईमानदारी और मेहनत से पापा के मानव पत्रिका के कार्य में सहयोग निभाया करते थे, वहीं भाभी के एकमात्र देवर अपनी भाभी का हमेशा ख्याल रखा करते थे। भाभी अगर छठ पूजा का व्रत करती थी, तो देवर बड़ी श्रद्धा और लगन से छठ पूजा का प्रसाद बनाने में साथ देते थे। जहाँ भाभी बीमार पड़ती, देवर उनकी सेवा के लिए तत्पर रहते। एक पल भी पीछे नहीं होते। वह कहते थे कि भाभी माँ बराबर होती है, तो उनकी सेवा करने में शर्म कैसी? कभी-कभी गुस्सा भी करते थे। जिस दिन माँ की बीमारी के बारे में उन्हें पता चला, उस दिन भी किसी बात पर माँ पर गुस्सा कर रहे थे। माँ के वहाँ से जाने पर जब मैंने कहा कि माँ बीमार है, पर आप अभी भी माँ से लड़ रहे हैं, तो उन्होंने कहा कि अगर मैं उनके सामने नहीं लड़ता तो वह कमजोर पड़ जाती और मैं उनको कमजोर नहीं देख सकता। और उन्होंने कहा था कि हे भगवान मुझे मेरी भाभी से पहले अपने पास बुला लेना। वह हम पाँच भाई-बहनों को भी बहुत ज्यादा प्यार करते थे। बड़े भैया और भाभी को प्यार भी करते थे, पर उनके सामने डरते भी थे। फिर पीछे कहते कि मैं डरता नहीं, बच्चे बड़े हो गये इसलिए उसके सामने ज्यादा नहीं बोलता। मझले भाई का हमेशा ख्याल रखा। छोटे वाले भैया से उनका तू-तू-मैं-मैं होता रहता था। एक साथ काम करते, एक साथ लड़ते। पर उनके बीच प्यार भी खास था। यहाँ तक कि एक समय वह छोटे भाई को गोद लेना चाहते थे। पर पापा ने कहा कि पाँचों बच्चे ही तुम्हारे बच्चे है, तो किसी एक को गोद क्यों लेना। दीदी के साथ उनका जबरदस्त 36 का आंकड़ा था। पर कुछ चीजों में दोनों समान थे। दोनों को ही खाने-पीने का बहुत शौक था। शाम होते ही दोनों चाट-पकौड़ी की दुकानों के इर्द-गिर्द नजर आते। और घर में सबसे छोटा अर्थात बड़े भैया का लाडला किंशुक उनका भी लाडला था। वह कई वर्षों तक किंशुक को रवि नाम से पुकारते थे क्योंकि वह रविवार को हुआ था। वह सबसे ज्यादा उसे प्यार करते थे। पर जब वह छोटा था और हावड़ा वाले घर आने वाला होता था, तो छोटे बाबु अपने बाल काफी छोटे करवा लेते थे और कहते थे कि देखो अब तुम मेरे बाल खींच नहीं पाओगे। जहाँ एक तरफ किंशुक को ढेर सारा प्यार करते थे, वही दूसरी तरफ मेरे पतिदेव की काफी इज्जत करते थे। कुछ खाने-पीने की इच्छा हुई, तो वहाँ फोन कर देते थे। उन दोनों में घंटों चर्चा का दौर चलता। कभी राजनीति की, दुनियादारी की, तो कभी परिवार की। वह अपना दुख-दर्द भी उनके साथ सांझा करते थे। मेरे साथ उनका बहुत प्यारा रिश्ता था। जब उन्हें कुछ कहना हो, कुछ चाहिए हो, किसी तरह की बात करनी हो तो वो मुझे कहते। मुझे बहुत अच्छा लगता था। उनकी तबीयत जब मई 2008 में खराब लगने लगी तो, उन्होंने एक दिन मुझे फोन करके हावड़ा वाले घर में बुलाये और कहा कि मेरी तबियत अच्छी नहीं लग रही है। मैं बोली कि चलिए डॉक्टर को दिखा देती हूँ तो उन्होंने कहा कि डॉक्टर के पास नहीं जाऊँगा। मुझे लग रहा है कि तबीयत ज्यादा खराब है, इसलिए मुझे अस्पताल ले चलो। मैंने तुरंत वहीं से अपने बड़े भैया को फोन किया। उन्होंने कहा कि ठीक है, उन्हें हमलोग अस्पताल ले जायेंगे। अगले दिन उन्हें अस्पताल में भर्ती करवाया गया और करीबन तीन हफ्ता अस्पताल में रहने के बाद 24 जून 2008 की सुबह उन्होंने अंतिम सांस ली। जिस समय यह घटना घटी, उस समय एक तरफ मेरी माँ कैंसर से लड़ रही थी और दूसरी तरफ मैं प्रिगनेंट थी और डिलीवरी का दिन नजदीक आ चुका था। माँ को यह सूचना देर से दी गई। माँ ज्यादा रोये नहीं, और उनकी तबियत बिगडे नहीं इसलिए हमलोगों ने भी अंदर ही अंदर रोकर उन्हें अंतिम विदाई दी। उनका अंतिम संस्कार उनके प्रिय भतीजे किशोर ने ही किया। आज पुरुष दिवस के दिन उन्हें याद करने का एक बहाना मिल गया।
दिग्गज विज्ञापन निर्माता एलिक पदमसी का निधन
मुम्बई : दिग्गज विज्ञापन निर्माता एवं रंगमंच की दुनिया की मशहूर शख्सियत एलिक पदमसी का यहां शनिवार को एक बीमारी के बाद निधन हो गया। यह जानकारी पदमसी के परिवार ने दी। वह 90 वर्ष के थे। पदमसी विज्ञापन कंपनी लिंटास के भारत में पूर्व मुख्य कार्यकारी रह चुके हैं और उन्होंने कंपनी को देश में शीर्ष रचनात्मक एजेंसियों में से एक बनने में मदद की। वह बाद में दक्षिण एशिया में लिंटास के क्षेत्रीय समन्वयक बने।
उन्होंने एजेंसी में मशहूर विज्ञापन बनाये जिसमें सर्फ के लिए ‘ललिताजी’, आटो कंपनी बजाज के लिए ‘हमारा बजाज’ ‘चेरी ब्लॉसम’ शू पॉलिश के लिए ‘चेरी चार्ली’, एमआरएफ के लिए ‘मसल मैन’ और ‘लिरिल’ के लिए झरने के नीचे मॉडल वाला विज्ञापन शामिल है। एक कलाकार के तौर पर पदमसी को रिचर्ड एडिनबरो की पुरस्कृत फिल्म ‘गांधी’ में जिन्ना के किरदार के लिए याद किया जाएगा। पदमसी का जन्म 1928 में पारंपरिक रूप से धनी कच्छी खोजा मुस्लिम परिवार में हुआ था। उन्होंने अपने बड़े भाई बॉबी द्वारा निर्देशित नाटक ‘मर्चेंट आफ वेनिस’ से सात वर्ष की आयु में रंगमंच की दुनिया में कदम रखा। साठ वर्ष से अधिक समय के अपने करियर में उन्होंने 70 से अधिक नाटकों का निर्देशन किया और उन्हें अपने थिएटर प्रोडक्शन एविटा, जीसस क्राइस्ट सुपरस्टार और तुगलक के लिए जाना जाता है। पदमसी ने कई सामाजिक मुद्दों का समर्थन किया जिसमें वित्तीय राजधानी का महानगरीय चरित्र का संरक्षण शामिल है। उन्हें 2000 में पद्मश्री से सम्मानित किया गया। उनके निधन पर कई गणमान्य व्यक्तियों ने संवेदना व्यक्त की। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने उनको विज्ञापन उद्योग के ‘रचनात्मक गुरू’ और ‘दिग्गज’ थे जबकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उन्हें ‘गजब का संप्रेषक’ बताया। कोविंद ने ट्वीट किया, ‘‘रचनात्मक गुरू, रंगमंच व्यक्तित्व और विज्ञापन उद्योग के दिग्गज एलिक पदमसी के निधन के बारे में सुनकर दुख हुआ। उनके परिवार, मित्रों और सहयोगियों के प्रति मेरी संवेदना।’ मोदी ने कहा, ‘‘एलिक पदमसी के निधन से दुखी हूं। वे एक गजब के संप्रेषक थे, विज्ञान के क्षेत्र में उनके व्यापक कार्य को हमेशा याद रखा जाएगा। रंगमंच के क्षेत्र में भी उनका योगदान उल्लेखनीय है। उनके परिवार, मित्रों और सहयोगियों के प्रति मेरी संवेदना।’’
इटली में शादी कर भारत लौटे दीपिका-रणवीर
मुम्बई : इटली में शादी करने के बाद अभिनेता रणवीर सिंह और अभिनेत्री दीपिका पादुकोण रविवार की सुबह भारत लौटे। इस दौरान हाथों में हाथ लिए नवविवाहित जोड़े ने हवाईअड्डे पर मौजूद अपने प्रशंसकों का अभिवादन किया।
दोनों सितारे पारंपरिक परिधानों में नजर आए। रणवीर जहां लाल और सुनहरे रंगे के रेशमी कुर्ते-पायजामे में दिखे तो वहीं दीपिका सुनहरे रंग के सूट और बनारसी दुपट्टे में नजर आईं। इसके बाद गृह प्रवेश के लिए घर पहुंचा जोड़ा मीडिया से रूबरू हुआ और हाथ जोड़कर पत्रकारों की बधाई स्वीकार की।
दीपिका-रणवीर ने 14 और 15 नवंबर को इटली के लेक कोमो में शादी की थी। 14 नवंबर को उनका विवाह कोंकणी रस्मो-रिवाज से और 15 नवंबर को उत्तर भारतीय रस्मो-रिवाज से हुआ। दोनों करीब 6 साल से एक-दूसरे को डेट कर रहे थे। दीपिका और रणवीर ने 21 नवंबर को बेंगलुरु और 28 नवंबर को मुंबई में रिसेप्शन रखा है।