Friday, May 23, 2025
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राष्ट्रभाषा : हिन्दी तेरी यही कहानी 

बरुण कुमार सिंह

हम भारत के लोग!

देववाणी की भाषा ‘संस्कृत’ भूल चुके हैं
राष्ट्रभाषा हिन्दी पर राजनीति जारी है
इंसाफ की सबसे बड़ी अदालत सुप्रीमकोर्ट में
आज भी राष्ट्रभाषा में बहस बेमानी है
इंसाफ की तराजू पर राष्ट्रभाषा हारी है
हिन्दी दिवस और हिन्दी पखवाड़ा
राष्ट्रभाषा के नाम पर सिर्फ निशानी है
नारा हिन्दी के नाम पर लगाना है
बच्चों को हिन्दी नहीं पढ़ाना है।

आज हिन्दी का हाल है बेहाल

रोजगार के नाम पर सिर्फ बेमानी है
आज राष्ट्रभाषा की यही कहानी है
नेताओं ने यह ठाना है!
भाषा के नाम पर जनता को उल्लू बनाना है
भाषा के नाम पर अपनी राजनीति चमकाना है।

आज हिन्दी जड़ से कट गयी है
आज हिन्दी बिल्कुल बदल गयी है
हैलो! हाय! बाय! हम बोलते हैं
अपनी आवाज को, अपनों के साथ
अपनी भाषा में, नहीं बोलते हैं
राष्ट्रभाषा होने पर भी
आज हिन्दी तेरी यही कहानी है!

 

आज मोबाइल जेनरेशन ने हिन्दी को

ऐसी-तैसी करने की ठानी है
हिन्दी वर्तनी को सबक सिखानी है
तेरे नाम की तो खिचड़ी पकानी है
तेरे नाम को अपडेथ वर्जन का
यूथ जेनरेशन ने सबक सिखानी है
आज के मैकाले तुम्हें
रोमन हिन्दी के नाम से जानते हैं
आज की पीढ़ी तूझे ऐसी गत बनाते हैं
हिन्दी को हिंगलिश बनाकर चिढ़ाते हैं
आज हिन्दी तेरी यही कहानी है!

आज अपनी भाषा और संस्कृति में
पिछड़ापन नजर आता है
आज की यंग जेनरेशन ने
हिन्दी को प्रतीक्षा सूची में रखा है
अपने लाडले को क, ख, ग… पढ़ाने में
गंवारापन का बोध होता है
बच्चा अपने को हीन समझता है
आज का बच्चा अपवाद में भी नहीं
माँ! माताजी! पिता! बाबूजी! नहीं बोलता
लेकिन आज माँ! पिताजी सुनना कौन चाहते?

ए. बी. सी. और फिरंगी अंग्रेजी पहले सीखता है
पापा! पोप! पे-पे! डैड! और डेड!
मम्मी! ममी! मम! और में-में! मिमियाना है!
एडवांस समझी जाना है
बच्चा जन्म से तो हिन्दुस्तानी
और भाषा और संस्कार से फिरंगी होना है
फिरंगी भाषा और संस्कार की अमिट निशानी है
माॅर्डन एजुकेशन में अपडेट जेनरेशन ने
मम! डैड! को ओल्डऐज होम में रख
फिरंगी भाषा की फर्ज निभाना है।

मैकाले की भविष्यवाणी व्यर्थ नहीं जानी है
उसे साकार करने हम हिन्दुस्तानी ने ठानी है
आज हिन्दी तेरी यही कहानी है!
अपनी राष्ट्रभाषा बोलने पर
अंग्रेजी स्कूल में डांट खानी है
राष्ट्रभाषा में नहीं पढ़ने की ठानी है।

आज भारतीयता कहां से आनी है
भारतीयता की सिर्फ गीत गाना है
चंद सिक्के पर अपने को बिक जाना है
पहले सिक्के को कैसे पाना है,
इसकी तरकीब पहले लगाना है
भारतीयता तो कल को अपनानी है
सब सुधर जाए, हमें नहीं सुधरना
यहीं तो हमने ठानी है
आज हिन्दी तेरी यही कहानी है!
चंद सिक्कों के लोभ में
इंसान को बिक जाना है
इंसानियत धर्म को नहीं निभाना है
आज हर इंसान की यही कहानी है
तुम पहले सुधरो!
हमने तो बाद में सुधरने को ठानी है।
आज हिन्दी तेरी यही कहानी है।

सम्पर्क
ए-56/ए, प्रथम तल
लाजपत नगर-2 
नयी दिल्ली-110024
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17 से आरम्भ होने जा रहा है नाटकों का जश्न

लिटिल थेस्पियन का 8वां राष्ट्रीय नाट्य उत्सव जश्न-ए-रंग उन्हीं भावों और संवेदनाओं का रोचक प्रदर्शन है। यह 17 से 22 नवम्बर तक चलेगा। उत्सव का विवरण इस प्रकार है –
17 नवम्बर से 22 नवम्बर 2018
स्थान : ज्ञानमंच, कोलकाता
समय : रोज़ाना शाम 6:00 बजे से

याँ 

लेखक: उमा झुनझुनवाला
निर्देशन: एस. एम. अज़हर आलम
नाट्य संस्था: लिटिल थेस्पियन, कलकत्ता
अवधि: 1 घंटा 40 मिनट

18 नवम्बर 2018, रविवार
नाटक: हमी नाइ आफाई आफ़
पद्मा सचदेव के उपयास ‘अब न बनेगी देहरी’ पर आधारित
निर्देशन: बिपिन कुमार
नाट्य संस्था: NSD, सिक्किम
अवधि: 1 घंटा 30 मिनट


19 नवम्बर 2018, सोमवार
नाटक: ग़रीब नवाज़
लेखक: संतोष चौबे
निर्देशक: देवेन्द्र राज अंकुर
नाट्य संस्था: संभव, दिल्ली
अवधि: 1 घंटा 5 मिनट

20 नवम्बर 2018, मंगलवार
नाटक: दूसरा अध्याय
लेखक: अजय शुक्ला
निर्देशक: शाकिर तस्नीम,
नाट्य संस्था: मुख़ातिब, भोजपुर
अवधि: 1 घंटा 5 मिनट
और
नाटक: आराम बाग़
लेखक: आफ़ताब हसनैन
निर्देशक: सय्यद इक़बाल
नाट्य संस्था: एक्ट ग्रुप, सोलापुर
अवधि: 45 मिनट

21 नवम्बर 2018, बुधवार
नाटक: क़िस्सा अंधेर नगरी का
लेखक: भारतेंदु हरिश्चंद्र
निर्देशक: स्वप्न मंडल
नाट्य संस्था: शूद्रक, हैदराबाद
अवधि: 1 घंटा 10 मिनट

22 नवम्बर 2018, बृहस्पतिवार
नाटक: निठल्ले की डायरी
लेखक: हरिशंकर परसाई
निर्देशक: अरुण पाण्डेय
नाट्य संस्था: विवेचना रंगमंडल, जबलपुर
अवधि: 1 घंटा 40 मिनट

खुला मंच
18 नवम्बर 2018: काव्य प्रस्तुति – दिनकर (हिन्दी) / प्रस्तुति- लिटिल थेस्पियन
19 नवम्बर 2018: विभिन्न कलाकारों द्वारा नाटकों के गीत की प्रस्तुति (हिन्दी/ बंगला)
नुक्कड़ नाटक – रूपकथा केलेंकारी (बंगला) / प्रस्तुति- कैंडिड थिएटर
20 नवम्बर 2018: नुक्कड़ नाटक – पोस्ट मार्टम (बंगला) / प्रस्तुति- 10th प्लेनेट
21 नवम्बर 2018: नुक्कड़ नाटक – भ्रूण हत्या (हिन्दी) / प्रस्तुति- ब्लैक स्ट्रीट
22 नवम्बर 2018: नुक्कड़ नाटक – मृत (बंगला) / कालीघाट कुमार रॉय नाट्य अकादेमी

 

 

 

सेंसेक्स की शीर्ष दस में से पांच कम्पनियों का बाजार पूंजीकरण 26,157 करोड़ रुपये बढ़ा

नयी दिल्ली : सेंसेक्स की शीर्ष दस में से पांच कंपनियों के बाजार पूंजीकरण (मार्केट कैप) में कुल मिलाकर 26,157.12 करोड़ रुपये की बढ़ोतरी हुई। सबसे अधिक लाभ में रिलायंस इंडस्ट्रीज रही। एचडीएफसी बैंक, हिंदुस्तान यूनिलीवर, आईसीआईसीआई बैंक और मारुति सुजुकी का बाजार पूंजीकरण भी बीते सप्ताह बढ़ा। वहीं दूसरी ओर आईटीसी, एचडीएफसी, इन्फोसिस और भारतीय स्टेट बैंक के बाजार पूंजीकरण में गिरावट आई।
टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज (टीसीएस) की बाजार हैसियत में कोई बदलाव नहीं हुआ। सप्ताह के दौरान रिलायंस इंडस्ट्रीज का बाजार पूंजीकरण 12,111.87 करोड़ रुपये बढ़कर 6,93,022.48 करोड़ रुपये पर पहुंच गया। हिंदुस्तान यूनिलीवर की बाजार हैसियत 8,431.31 करोड़ रुपये बढ़कर 3,62,048.36 करोड़ रुपये पर पहुंच गई, वहीं मारुति सुजुकी का बाजार पूंजीकरण 3,888.27 करोड़ रुपये की बढ़ोतरी के साथ 2,19,476.27 करोड़ रुपये रहा।
आईसीआईसीआई बैंक का बाजार मूल्यांकन 978.28 करोड़ रुपये बढ़कर 2,29,008.87 करोड़ रुपये और एचडीएफसी बैंक का 747.39 करोड़ रुपये की वृद्धि के साथ 5,29,869.96 करोड़ रुपये पर पहुंच गया। वहीं दूसरी ओर आईटीसी का बाजार मूल्यांकन 6,244.29 करोड़ रुपये घटकर 3,39,456.93 करोड़ रुपये और एसबीआई का 2,186.52 करोड़ रुपये घटकर 2,52,565.83 करोड़ रुपये पर आ गया। एचडीएफसी का बाजार पूंजीकरण 927.42 करोड़ रुपये घटकर 3,12,042.60 करोड़ रुपये और इन्फोसिस का 262.1 करोड़ रुपये घटकर 2,88,947.62 करोड़ रुपये पर आ गया।
आईटी क्षेत्र की प्रमुख कंपनी टीसीएस का बाजार मूल्यांकन 7,16,630.43 करोड़ रुपये पर कायम रहा। शीर्ष दस की सूची में टीसीएस पहले स्थान पर रही। उसके बाद रिलायंस इंडस्ट्रीज, एचडीएफसी बैंक, हिंदुस्तान यूनिलीवर, आईटीसी, एचडीएफसी, इन्फोसिस, एसबीआई, आईसीआईसीआई बैंक और मारुति सुजुकी का स्थान रहा। बीते सप्ताह दिवाली के उपलक्ष्य में दो दिन बाजार बंद रहे।

बीते सप्ताह बंबई शेयर बाजार का सेंसेक्स 146.9 अंक चढ़कर 35,158.55 अंक पर पहुंच गया।

रूस, अमेरिका और अन्य देशों से भारत पर हुए 4.36 लाख साइबर हमले

नयी दिल्ली : देश को 2018 की पहली छमाही में सबसे ज्यादा साइबर हमले रूस, अमेरिका, चीन और नीदरलैंड जैसे देशों की ओर से झेलने पड़े हैं। साइबर सुरक्षा कंपनी एफ-सिक्योर के मुताबिक जनवरी-जून 2018 में इस तरह की 4.36 लाख से ज्यादा घटनाएं हुईं।
वहीं इस अवधि में भारत की ओर किए गए साइबर हमले झेलने वाले शीर्ष पांच देश ऑस्ट्रिया, नीदरलैंड, ब्रिटेन, जापान और यूक्रेन हैं। इन देशों पर भारत से कुल 35,563 साइबर हमले किए गए।
एफ-सिक्योर की रपट के अनुसार उसने यह आंकड़े ‘हनीपॉट्स’ से जुटाए हैं। कंपनी का कहना है कि उसने दुनियाभर में ऐसे 41 से ज्यादा ‘हनीपॉट्स’ लगाए हैं जो साइबर अपराधियों पर ‘बगुले’ की तरह ध्यान लगाकर नजर रखते हैं। साथ ही यह नवीनतम मालवेयर के नमूने और नई हैकिंग तकनीकों के आंकड़े भी जुटाते हैं।
‘हनीपॉट्स’ मूल रूप में प्रलोभन देने वाले सर्वर की तरह काम करते हैं, जो किसी कारोबार के सूचना प्रौद्योगिकी ढांचे का अनुकरण करते हैं। यह हमला करने वालों के लिए होते हैं। यह वास्तविक कंपनियों के सर्वर की तरह दिखते हैं जो आमतौर पर कमजोर होते हैं।
एफ-सिक्योर के अनुसार इस तरीके से हमले के तरीकों को करीब से जानने में मदद मिलती है। साथ ही हमलावरों ने सबसे ज्यादा किस को लक्ष्य बनाया, स्रोत क्या रहा, कितनी बार हमला किया और इसके तरीके, तकनीक और प्रक्रिया क्या रही, यह सब जानने में भी मदद मिलती है।
रपट में कहा गया है कि भारत में सबसे ज्यादा साइबर हमले करने वाले पांच प्रमुख देशों में रूस शीर्ष पर रहा। रूस से भारत में 2,55,589 साइबर हमले, अमेरिका से 1,03,458 हमले, चीन से 42,544 हमले, नीदरलैंड से 19,169 हमले और जर्मनी से 15,330 हमले यानी कुल 4,36,090 साइबर हमले हुए।
वहीं भारत से ऑस्ट्रिया में 12,540 साइबर हमले, नीदरलैंड में 9,267 हमले, ब्रिटेन में 6,347 हमले, जापान में 4,701 हमले और यूक्रेन में 3,708 हमले किए गए।

लड़कियों की तुलना में दुगने है इंटरनेट पर रिश्ता खोजने वाले लड़के

नयी दिल्ली : लगातार व्यस्त होती जिंदगी के बीच ऑनलाइन मैट्रिमोनियल साइट्स पर जीवनसाथी ढूंढ़ने की रफ्तार बढ़ी है। खास बात यह है कि ऑनलाइन मैट्रिमोनियल साइट्स पर महिलाओं की तुलना में पुरुष दोगुने से ज्यादा रजिस्ट्रेशन करवा रहे हैं। रजिस्ट्रेशन करवाने के मामले में पुरुष 69% और महिलाओं की भागीदारी 31% है।
अगले दो वर्ष में देश में मैट्रिमोनियल साइट्स पर रजिस्ट्रेशन करीब 60% वार्षिक दर से बढ़ने का अनुमान है। ऐसी साइट्स पर सर्वाधिक रजिस्ट्रेशन फाइनेंशियल बैकग्राउंड, आईटी और इंजीनियरिंग क्षेत्र के युवा करवा रहे हैं। इसके साथ ही दूसरी शादी का चलन भी देश में बढ़ रहा है। शादी डॉटकॉम जैसी साइट्स पर करीब 10% लोग दूसरी शादी के लिए भी रजिस्ट्रेशन करवा रहे हैं। आम धारणा से उलट 35% तक ऑनलाइन शादियों के रजिस्ट्रेशन छोटे शहरों और ग्रामीण क्षेत्र से हो रहे हैं।
ऑनलाइन मैट्रिमोनियल बाजार 2 साल में ढाई गुना बढ़ने के आसार
इंडस्ट्री चेम्बर एसोचैम के मुताबिक वर्ष 2017-18 तक देश में ऑनलाइन मैट्रिमोनियल सर्च का बाजार करीब 2400 करोड़ रुपए था, जिसके वर्ष 2020 तक 6000 करोड़ रुपए होने का अनुमान है। देश में करीब एक करोड़ शादियां प्रति वर्ष होती हैं। देश में होने वाली शादियों में अभी 10% से कम हिस्सेदारी ऑनलाइन मैट्रिमोनियल साइट्स की है। देश में इस क्षेत्र में सक्रिय प्रमुख मैट्रिमोनियल साइट्स 300 से 350 करोड़ रुपए वार्षिक राजस्व कमा रही हैं।
लोगों को हर लिहाज से बेहतर लग रहा यह तरीका
ऐसोचैम की निदेशक मंजू नेगी के मुताबिक मैट्रिमोनियल साइट्स के बढ़ने के पीछे मुख्य कारण जोड़े ढूंढने में आसानी, समय की बचत और योग्य साथी का मिलना है। साइट्स पर खुद को रजिस्टर्ड करवाने वाले 21 से 35 वर्ष के युवा सर्वाधिक होते हैं। मैट्रिमोनियल साइट्स अप्रवासी भारतीयों के लिए भी बेहतर वर-वधू खोजने में सहायक सिद्ध हो रही हैं। यही कारण है कि अमेरिका, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड और मिडिल ईस्ट से रजिस्ट्रेशन हो रहे हैं। ऐसी साइट्स पर युवक-युवतियों का रजिस्ट्रेशन 25% परिजनों द्वारा किया जा रहा है।
20 से 35 की उम्र के युवा करा रहे रजिस्ट्रेशन
शादी डॉट कॉम के सीईओ गौरव रक्षित ने बताया कि पिछले 15 वर्ष में हम 50 लाख से अधिक शादियों के जोड़े मिलवा चुके हैं। हमारी वेबसाइट पर सर्वाधिक रजिस्ट्रेशन साल के आखिरी में और जनवरी-फरवरी महीनों के दौरान किए जाते हैं। हमारी साइट पर रजिस्टर्ड होने वाले युवक-युवतियों में से 75% की उम्र 20 से 35 वर्ष होती है। उन्होंने कहा कि हम रजिस्ट्रेशन करवाने वाले प्रति व्यक्ति से 4,450 से 14,650 रुपए तक ले रहे हैं।
एक जैसा प्रोफेशन चाहते हैं पार्टनर
रामोजी फिल्म सिटी के प्रमुख राजीव जालनापुरकर कहते हैं कि ऑनलाइन मैट्रिमोनियल साइट्स अपना बिजनेस बढ़ाना चाहती हैं और उनकी ओर से लगातार इंक्वायरी आती रहती है। वहीं, डेस्टीनेशन वेडिंग से बीते 20 वर्ष से जुड़े वेडिंग प्लानर सत्यपाल कुशवाह कहते हैं कि आज के युवा सेम प्रोफेशन वाले पार्टनर को ही पसंद कर रहे हैं। अब दूसरी शादी के लिए विधवा और विधुर के लिए सेक्शन या अलग ही वेबसाइट्स खुल गई हैं। हमारे पास अभी तक कोई भी ऐसा ऑर्डर नहीं आया है जो ऑनलाइन साइट्स द्वारा मिला हो।
एक लाख करोड़ का है शादी का बाजार
मैट्रिमोनियल साइट्स के अलावा शादियों के लिए गिफ्ट, ज्वेलरी, कैटरर्स, वेडिंग कार्ड चुनने जैसे कार्यों के लिए भी स्टार्टअप हैं। जहां आपको वेडिंग गिफ्ट चुनने के अलावा उनकी खरीदारी करने के विभिन्न विकल्प मुहैया करवाए जाते हैं। करीब एक लाख करोड़ रुपए की वेडिंग इंडस्ट्री है। देवउठनी ग्यारस से देश में शादियों का सिलसिला शुरू हो जाएगा।
20 से 35 वर्ष के युवाओं में से 75% खुद अपना प्रोफाइल रजिस्टर करते हैं। वहीं 25% युवाओं के प्रोफाइल परिजन और परिवार के सदस्यों के द्वारा रजिस्टर किए जाते हैं।
अमेरिका, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड और मिडिल ईस्ट के देशों में बसे लोग वर-वधू ढूंढ़ने में ऐसी साइट्स से सर्वाधिक मदद लेते हैं।
वित्त वर्ष 2017-18 में ऑनलाइन मैट्रिमोनियल का बाजार 2400 करोड़ रुपए रहने का अनुमान है, वहीं वर्ष 2020 तक इसके छह हजार करोड़ रुपए पहुंचने का अनुमान है।
शादी डॉटकॉम जैसी साइट्स पर रजिस्टर होने वाले लोगों में करीब 35% युवक-युवती छोटे शहरों और ग्रामीण क्षेत्रों से आते हैं।
केन रिसर्च के मुताबिक देश में अन्य राज्यों के मुकाबले ऐसी साइट्स पर तमिलनाडु से सर्वाधिक रजिस्ट्रेशन होते हैं।
प्रमुख ऑनलाइन वेडिंग साइट्स
मेट्रीमोनी डॉट कॉम देश की सबसे प्रमुख ऑनलाइन मैट्रिमोनियल वेबसाइट है। वर्ष 2001 से कार्यरत। इसकी कई वेबसाइट्स हैं। डिफेंस वाले और तलाकशुदा लोगों के लिए भी अलग-अलग वेबसाइट्स हैं।
शादी डॉट कॉम 1996 में स्थापित हुई। साइट के प्लेटफॉर्म पर अभी तक 3.5 करोड़ लोग पहुंच चुके हैं। 11 भाषाओं, पांच धर्म की अलग से लिंक उपलब्ध।
जीवनसाथी डॉट कॉम को इंफो एज ने 2004 में खरीदा। 2015-16 तक 76 लाख प्रोफाइल साइ‌ट पर लोड हो चुके हैं।
नोट : सर्वे शादी डॉट कॉम का है, जो इस वर्ष अप्रैल 2018 में  हुआ, जिसमें 24 से 35 वर्ष की उम्र के 7400 लोगों ने हिस्सा लिया और जवाब दिए।

इस आईएएस दम्पति ने कराया बच्चे का आंगनबाड़ी में दाखिला

गोपेश्वर : हमारे देश में सरकारी स्कूलों की हालत किसी से छिपी नहीं है। फिर चाहे वह प्राइमरी स्कूलों की बात हो या फिर डिग्री कॉलेज की। देश की विडंबना यह है कि सरकारी स्कूलों में पढ़ाने वाले अध्यापक तक अपने बच्चों को सरकारी स्कूलों में नहीं पढ़ाते, बल्कि उन्हें किसी महंगे प्राइवेट स्कूलों में भेज देते हैं। इससे समझा जा सकता है कि वे अपने बच्चों को सरकारी स्कूलों में क्यों नहीं पढ़ाना चाहते। अक्सर ये बात सामने आती रहती है कि अगर सरकारी अध्यापक और अधिकारी अपने बच्चों को सरकारी स्कूलों में भेजने लग जाएं तो इन स्कूलों की हालत अपने आप सुधर जाएगी। कुछ इसी सोच के साथ एक आईएएस दम्पति ने अपने बच्चे को किसी महंगे प्ले ग्रुप स्कूल में भेजने की बजाय सरकार द्वारा संचालित आंगनबाड़ी में पढ़ने भेजा।
हम बात कर रहे हैं उत्तराखंड के आईएएस नितिन भदौरिया व उनकी पत्नी स्वाति श्रीवास्तव की। ये दोनों दंपती पूरे देश के अधिकारियों और माता-पिताओं के लिए एक नायाब उदाहरण पेश कर रहे हैं। दम्पति ने अपने दो साल के बेटे अभ्युदय को पढ़ने के लिए आंगनबाड़ी भेजा। स्वाति उत्तराखंड के चमोली जिले की डीएम हैं तो वहीं उनके पति नितिन अल्मोड़ा के जिलाधिकारी हैं।  वे अपने बच्चे को कितने भी बड़े और महंगे स्कूल में भेज सकते थे, लेकिन उन्होंने एक ऐसी सरकारी संस्था को चुना जिसे कुलीन वर्ग के लोग हेय दृष्टि से देखते हैं।
स्वाति ने अपने बच्चे अभ्युदय का गोपेश्वर गांव स्थित आंगनबाड़ी केंद्र में दाखिला कराया है। उन्हें इस बात की खुशी भी है कि बड़े बंगले के अंदर की हलचल से हटकर आम बच्चों के साथ रहकर बच्चा खुश है और नए माहौल में कुछ नया सीख रहा है। मीडिया से बात करते हुए स्वाति ने कहा, ‘आंगनबाड़ी केन्द्र में वे सारी सुविधाएं मौजूद होती हैं जिन्हें किसी छोटे बच्चे के विकास के लिए जरूरी माना जाता है।’ वह अपने बच्चे को एक ऐसे माहौल में बड़ा होते देखना चाहती थीं जहां वह बहुत कुछ अपने आप सीख सके। आंगनबाड़ी केंद्रों में खाना, नाश्ता, वजन, चिकित्सा सुविधा की व्यवस्था है। यहां पर टेक होम के जरिये आसपास के बच्चों को भी राशन दी जाती है।
वहीं स्वाति के पति नितिन भदौरिया ने कहा, ‘हमने यह फैसला एक अभिभावक के रूप में लिया है। आंगनबाड़ी केंद्र को देखकर यह लगा कि यहां पर बच्चों के लिए बहुत अच्छा वातावरण है। ईश्वर ने सबको बराबर बनाया है। शुरू से ही बच्चा आम बच्चों के साथ ही खेलता था। आंगनबाड़ी केंद्र में उसे बेहतर माहौल मिल रहा है। घर पर अकेला रहेगा तो कई चीजें नहीं सीख पाएगा। घर से बाहर निकलकर ग्रुप में रहकर बच्चे का विकास भी होगा।’
स्वाति ने कहा कि आंगनबाड़ी जैसी संस्थाओं के प्रति लोगों का नजरिया बदलना चाहिए। उन्होंने कहा, ‘मेरा बच्चा अपने साथी बच्चों के साथ खाना बांटकर खाता है और घर लौटने पर वह खुश भी नजर आता है।’ इसके साथ ही अब आंगनबाड़ी केंद्र भी सजग रहेगा और वहां किसी भी बच्चे को कोई परेशानी नहीं हो पाएगी। इस आईएएस दम्पति ने जो काम किया है वह अतुलनीय और सराहनीय जरूर है, लेकिन ऐसा पहली बार नहीं हो रहा है। इसी साल केरल के वायनाड जिले के आईएएस अधिकारी सुहास शिवन्ना ने सरकारी स्कूल के बच्चों के साथ लन्च शेयर किया था। छत्तीसगढ़ के भी एक अधिकारी ने अपने बच्चे का दाखिला सरकारी स्कूल में ही कराया है और वह अपने बच्चे के साथ मिडडे मील करते नजर आते हैं।
उत्तराखंड में भी ऐसे और भी अधिकारी हैं जो सरकारी स्कूलों की स्थिति पर ध्यान देते हैं। रुद्रप्रयाग के डीएम मंगेश घिल्डियाल व उनकी पत्नी उषा घिल्डियाल सरकारी स्कूलों में छात्रों से रू-ब-रू होकर न केवल उनकी समस्याएं सुनते हैं, बल्कि होनहार छात्रों की लिस्ट भी तैयार करते हैं। इसके अलावा वह इंटर कक्षाओं में पढ़ने वाले बच्चों को मेडिकल, इंजीनियरिंग व सिविल सेवा की निश्शुल्क तैयारी भी करा रहे हैं। स्वाति और नितिन भदौरिया जैसे आईएएस अधिकारी इस सिस्टम में हमारा भरोसा तो मजबूत करते ही हैं साथ ही उन सभी को सोचने को मजबूर कर देते हैं जिनका सोचना है कि सिर्फ प्राइवेट स्कूल में ही अच्छी पढ़ाई संभव है।

(साभार – योर स्टोरी हिन्दी)

नयी सिम के लिए आधार जरूरी नहीं; आईडी-एड्रेस प्रूफ से ही मिलेगा कनेक्शन

नयी दिल्ली :  सुप्रीम कोर्ट ने सितंबर में सिम कार्ड रजिस्ट्रेशन के लिए आधार की अनिवार्यता खत्म करने का फैसला दिया था। इसके बाद सरकार ने टेलीकॉम कंपनियों को मौजूदा ग्राहक और नए ग्राहक को कनेक्शन देने के लिए आधार ई-केवाईसी वेरिफिकेशन बंद करने के आदेश दिए थे। इसके तहत टेलीकॉम डिपार्टमेंट (डीओटी) ने टेलीकॉम कंपनियों के लिए नई गाइडलाइन जारी की है। इसमें मौजूदा ग्राहकों को नई सिम देने के लिए कंपनियां आधार ई-केवाईसी का इस्तेमाल नहीं कर सकतीं। नए सिम कार्ड के रजिस्ट्रेशन के लिए आधार का नंबर देना जरूरी नहीं है। यह काम अब आईडी प्रूफ और एड्रेस प्रूफ के जरिए ही किया जाएगा।
टेलीकॉम कंपनियां अब कस्टमर एक्यूजिशन फॉर्म (सीएएफ) के जरिए वेरिफिकेशन करेंगी। इसमें ग्राहक की लाइव फोटो और एड्रेस प्रूफ की स्कैन इमेज लगानी होगी। लाइव फोटो में सीएएफ नंबर, जीपीएस कॉर्डिनेट, रिटेल आउटलेट का नाम, आइडेंटिटी प्रूफ और यूनिक कोड वॉटरमार्क करना होगा। साथ ही फोटो पर समय और तारीख भी दर्ज करनी होगी।
ऐसे आईडी प्रूफ जिनमें क्यूआर कोड रहता है, उसे भी स्कैन कर सकते हैं। जैसे- अगर कोई ग्राहक अपना आधार कार्ड देता है, तो उसे स्कैन कर उसका नाम, लिंग, जन्मतिथि को लिया जा सकता है। इनके अलावा अब नए सिम कार्ड के रजिस्ट्रेशन के लिए ग्राहक के पास दूसरा सिम कार्ड होना भी जरूरी है, क्योंकि इसी आधार पर नई सिम दी जाएगी। दूसरी सिम पर ही ओटीपी नंबर आएगा जिससे ग्राहक का वेरिफिकेशन किया जाएगा।
अगर ग्राहक के पास पहले से कोई सिम नहीं है तो उसे अपने किसी परिजन का मोबाइल नंबर देना होगा, जिस पर ओटीपी आएगा। जो ग्राहक के दस्तखत के तौर पर मान्य होगा।सिम कार्ड रजिस्ट्रेशन के लिए ग्राहक के दिए गए आईडी प्रूफ और एड्रेस प्रूफ का वेरिफिकेशन करना टेलीकॉम कंपनियों की जिम्मेदारी होगी। वेरिफिकेशन के बाद ही सिम कार्ड एक्टिवेट होगा।
एक दिन में सिर्फ 2 सिम ही मिलेंगी
टेलीकॉम डिपार्टमेंट की तरफ से जारी नई गाइडलाइंस के तहत टेलीकॉम कंपनियां डिजिटल केवाईसी प्रोसेस का उपयोग कर ग्राहक को हर दिन उनके आईडी प्रूफ और एड्रेस प्रूफ के जरिए सिर्फ दो सिम कार्ड दे सकेंगी। इसके अलावा ग्राहक के दूसरे नंबर पर मिले ओटीपी के जरिए ही टेली-वेरिफिकेशन किया जाएगा।

88 साल पुरानी फॉर्च्यून मैगजीन को 1095 करोड़ रु में खरीदेंगे पोकफेंड ग्रुप के जेरावेनन

न्यूयॉर्क : मेरीडिथ पब्लिशर कंपनी 88 साल पुरानी फॉर्च्यून मैगजीन को 1,095 करोड़ रुपये (15 करोड़ डॉलर) में बेचने के लिए तैयार हो गई है। कम्पनी ने शुक्रवार को इसकी जानकारी दी। थाईलैंड के बिजनेसमैन चेटचेवल जेरावेनन (56) फॉर्च्यून को खरीदेंगे। वो केरॉइन पोकफेंड ग्रुप की कई कंपनियों के बोर्ड में शामिल हैं। वो ग्रुप के चेयरमैन सुमेत जेरावेनन के बेटे हैं। लेकिन, फॉर्च्यून पत्रिका के लिए व्यक्तिगत तौर पर डील की है। अगले महीने के आखिर तक सौदा पूरा होने की उम्मीद है।
फॉर्च्यून की सम्पादकीय टीम में बदलाव नहीं होगा
पोकफेंड ग्रुप थाईलैंड के सबसे बड़े बिजनेस घरानों में से एक है। टेलीकम्युनिकेशंस, फूड, रिटेल, ऑटोमेटिव, फाइनेंस और फार्मा समेत कई दूसरे सेक्टर में समूह का कारोबार फैला हुआ है। जेरावेनन का परिवार थाइलैंड के सबसे अमीर परिवारों में शामिल है। चेटचेवल जेरावेनन का कहना है कि वो फॉर्च्यून को दुनिया के लीडिंग मीडिया ब्रांड के तौर पर स्थापित करना चाहते हैं। फॉर्च्यून के प्रेसिडेंट एलन मुरे सीईओ के तौर पर जिम्मेदारी संभालेंगे। उन्होंने कहा कि मैगजीन के नए मालिक चीन में खासतौर से इसका विस्तार चाहते हैं। क्लिफटन लीफ एडिटर-इन-चीफ बने रहेंगे।
फॉर्च्यून के प्रेसिडेंट मुरे ने बतााया कि कुछ सालों में प्रिंट से रेवेन्यू कम हुआ और मैगजीन की बिक्री भी घटी है। पिछले साल बिक्री 10 करोड़ डॉलर से भी कम रही थी। फॉर्च्यून का 60% रेवेन्यू डिजिटल एटवरटाइजिंग और कॉन्फ्रेंस से आता है।
मेरेडिथ ने जनवरी में टाइम कम्पनी को खरीद लिया था
टाइम कंपनी के को-फाउंडर हेनरी लूस ने 1930 में फॉर्च्यून को शुरू किया था। इस साल जनवरी ने टाइम कंपनी को मेरेडिथ ग्रुप ने खरीद लिया था। मेरेडिथ ने उसी दौरान अपने न्यूज और स्पोर्ट्स ब्रांड को बेचने का ऐलान कर दिया था। मेरेडिथ ने सितंबर में टाइम मैगजीन को 19 करोड़ डॉलर में बेच दिया था। उसे सेल्सफोर्स डॉट कॉम के फाउंडर मार्क बेनिऑफ और उनकी पत्नी ने खरीदा था।

मार्क जकरबर्ग की पत्नी प्रिसिला नयी पीढ़ी पर 61 अरब डॉलर खर्च करेंगी

कैलिफॉर्निया : फेसबुक के सीईओ मार्क जकरबर्ग की पत्नी प्रिसिला चान (33) नई पीढ़ी की भलाई में 61 अरब डॉलर खर्च करेंगी। फेसबुक के मौजूदा शेयर प्राइस के हिसाब से दोनों की संपत्ति इस रकम से ज्यादा है। जकरबर्ग और चान तीन साल पहले बेटी के जन्म पर अपनी 99% संपत्ति दान करने का ऐलान कर चुके हैं। पिछले साल उन्होंने चान जकरबर्ग फाउंडेशन को 1.9 अरब डॉलर दिए थे।
चान जकरबर्ग फाउंडेशन की संस्थापक हैं प्रिसिला
चान जकरबर्ग फाउंडेशन साल 2015 से बच्चों में समानता को बढ़ावा देने और उनके शिक्षा-स्वास्थ्य पर काम कर रहा है। इसे जकरबर्ग की पत्नी प्रिसिला चान सम्भालती हैं।
नयी पीढ़ी को बीमारियों से बचाना और उनका इलाज करना प्रिसिला चान के एनजीओ का अहम मकसद है। वैज्ञानिकों और शोधकर्ताओं की मदद, टेक्नोलॉजी से जुड़ा सपोर्ट और निवेश के जरिए चान का एनजीओ यह काम करता है। प्रिसिला खुद भी बच्चों की डॉक्टर हैं।
साल 2017 में अमेरिकियों ने सामाजिक कार्यों के लिए रिकॉर्ड 410 अरब डॉलर की राशि दान की। यह 2016 के मुकाबले 5% ज्यादा है। दान की रकम में 70% हिस्सा व्यक्तिगत डोनेशन का था। अमेरिका के फाउंडेशन की दान राशि में भी पिछले साल 16% इजाफा हुआ। मार्क जकरबर्ग और प्रिसिला चान ने चान जकरबर्ग फाउंडेशन को 1.9 अरब डॉलर चैरिटी में दिए।
एक बच्ची ने प्रिसिला की जिंदगी बदल दी
प्रिसिला चान वियतनाम के शरणार्थी परिवार से थीं। परिवार और शिक्षकों की मदद से हार्वर्ड यूनिवर्सिटी की स्कॉलरशिप के लिए उनका चयन हुआ था। पिछले महीने सीएनएन को दिए इंटरव्यू में चान ने बताया कि हार्वर्ड में मौका मिलने की खुशी बहुत थी लेकिन, उन्हें वहां काफी मुश्किलें आईं। उन्हें लगा कि वो यहां कामयाब नहीं हो पाएंगी। प्रिसिला ने हार्वर्ड से ट्रांसफर का आवेदन तैयार कर लिया था लेकिन, एक घटना ने उनकी जिंदगी बदल दी। चान उस दौरान निम्न आय वाले परिवारों की भलाई के सामाजिक कार्यों से जुड़ी हुई थीं। चान को एक बच्ची पूरे हफ्ते नजर नहीं आई तो उन्हें चिंता होने लगी। एक दिन खेल के मैदान में उन्हें बच्ची मिली। उसके दो दांत टूटे हुए थे। यह देखकर चान को बहुत दुख हुआ। तभी उनके दिमाग में डॉक्टर बनने का विचार आया।

गुलाब की पत्तियों से बनाए नैनो डॉट्स जो कैंसर कोशिकाओं ढूंढ़कर नष्ट कर देंगे

आईआईटी रुड़की के शोधकर्ताओं ने कैंसर सेल्स का पता लगाने और खत्म करने वाले कार्बन नैनोडॉट्स विकसित किए हैं। ये कार्बन मैटेरियल गुलाब की पत्तियों से हासिल किए गए हैं। इसलिए इन्हें फ्लोरेसेंट कार्बन नैनो डॉट्स नाम दिया गया है। ये कैंसर सेल्स पता लगाकर और उसे खत्म करने में मदद करते हैं।
रिसर्च टीम के हेड डॉ. पी गोपीनाथ के मुताबिक नैनो आकार (10-9 मीटर) के कार्बन पार्टिकल को रोजी पेरिविंकल प्लांट की पत्तियों से तैयार किया गया है। इस उपलब्धि को साइंस एंड इंजीनियरिंग रिसर्च बोर्ड, डिपार्टमेंट ऑफ बायोटेक्नोलॉजी और भारत सरकार ने भी सराहा है।
कैंसर कोशिकाओं की लोकेशन पता लगा सकते हैं
डॉ. पी गोपीनाथ के अनुसार नैनो कार्बन पार्टिकल की मदद से कैंसर कोशिकाओं को आसानी से देखा जा सकता है और इमेजिंग सिस्टम की मदद से कहां जा रही हैं इसका भी पता लगाया जा सकता है। लोकेशन का पता चलने के बाद इसे खत्म किया जा सकता है। डॉ. पी गोपीनाथ के मुताबिक नैनोटैग आधारित रिसर्च जानवरों और क्लीनिकल ट्रायल में सफल रही है। यह एक लो-कॉस्ट नैनो मेडिसन है जो कैंसर जैसे खतरनाक रोग को दूर करने में मदद करेगी।
पौधे का आयुर्वेद दवाओं में हो रहा है इस्तेमाल
डॉ. पी गोपीनाथ के अनुसार रोजी पेरिविंकल प्लांट का इस्तेमाल आयुर्वेदिक दवाओं को बनाने में काफी पहले से ही किया जा रहा है। इसमें कई रोगों से लड़ने की क्षमता है। स्टडी के अगले चरण में यह तय किया जाएगा कि यह कैंसर कोशिकाओं को लक्ष्य मानते हुए कितनी तेजी से काम कर सकता है और परिणाम दे सकता है।