Tuesday, December 16, 2025
खबर एवं विज्ञापन हेतु सम्पर्क करें - [email protected]
Home Blog Page 526

परिचित हूँ मैं

नीलम सिंह

परिचित हूँ मैं,
स्वयं की क्षमता से,
परिचित हूँ मैं,
स्वयं की शक्ति से,

मुझे फर्क नहीं पड़ता तुम्हारे प्रोत्साहन का,
जब तुम कहते हो ,
मैं अग्नि हूँ,
मैं दुर्गा हूँ,
कि,मैं शक्ति स्वरूपा हूँ,
कि ,मैं जन्मदात्री हूँ,
ऐसे अनेको अलंकरण,
जिसे तुम स्वयं तार-तार कर देते हो,
अवसर पाकर,
कभी चहारदीवारी में,
तो कभी सुनसान एकांत में।

एहसास है मुझे,
कि ,मैं अभिन्न अंग हूँ
इस सृष्टि की,
कि मेरे बिना अधूरे हो तुम,
जैसे ,मुझे अधूरा समझते हो अपने बिना।

एहसानों के बोझ से मत दबाओ मुझे ,
यह नीला अम्बर मेरा भी उतना है,
जितना तुम्हारा है,
एक टुकडा़ मेरा ही मुझे देकर,
एहसान का मुलम्मा मत चढा़ओ तुम।

परिचित हूँ मैं……

सुनिए कभी!

सिम्पी मिश्रा

बेशक “वो” …..
साथ चाहती हो, पर सहारा नहीं।
अपने हिस्से का….
सम्मान चाहती, पर सामान नहीं।
सम्भवतः वो सिर्फ…
समर्पण चाहती हो, आपका बलिदान नहीं।
दिन के अंत में केवल..
सहज संवाद चाहती हो, नाहक वाद-विवाद नहीं।
वो भी बनना चाहती हो….
एक मिसाल, महज मज़ाक नहीं।
उसको भी तो दरवाज़े की
नेमप्लेट पर ख्वाहिश होती होगी …..
कभी अपने नाम की,
न कि सिर्फ एक अदद सरनाम की।

तो सुनिए कभी ….
क्योंकि
“वो” तो बस
अपने हिस्से की
ज़मीन चाहती है ।
उसे ज़रूरत ही नहीं
आपके हिस्से के आसमान की।।

ऑल की दिल्ली चैप्टर चेयरपर्सन फॉर पॉजिटिव न्यूज बनीं माधवी श्री

नयी दिल्ली : केन्द्र सरकार द्वारा आयोजित 100 विमेन फेसेज 2018 में शामिल पत्रकार माधवी श्री अब ऑल लेडीज लीग में सकारात्मक खबरों का जिम्मा उठाएंगी। ऑल ने उनको सकारात्मक खबरों का प्रसार करने के लिए दिल्ली चैप्टर का चेयरपर्सन बनाया है। लाडली मीडिया अवार्ड विजेता माधवी को 2013 में एक्सचेंज ऑफ मीडिया से पीपल्स च्वाइस अवार्ड मिला था। एक उपन्यास व एक कविता सँग्रह के बाद उनका नया काव्य सँग्रह दुनिया मेरे कदमों में हाल ही में प्रकाशित हुआ। महिला सशक्तीकरण पर इनके विचार

वीडियो सौजन्य – दूरदर्शन

चौबीसवाँ ‘देवीशंकर अवस्थी स्मृति सम्मान’ मृत्युंजय पाण्डेय को

नयी दिल्ली/ कोलकाता : देवीशंकर अवस्थी की स्मृति में आलोचना के लिए प्रतिवर्ष ‘देवीशंकर अवस्थी स्मृति सम्मान’ दिया जाता है । इस वर्ष यह सम्मान ‘मृत्युंजय पाण्डेय’ को 2018 में प्रकाशित उनकी आलोचना पुस्तक ‘रेणु का भारत’ पर दिए जाने की घोषणा की गई है । यह निर्णय सम्मान-समिति के सभी सदस्यों सर्वश्री अशोक वाजपेयी, नंदकिशोर आचार्य, राजेन्द्र कुमार, द्वारा 20 फरवरी 2019को सर्वसम्मति से लिया गया । निर्णायक समिति की संयोजक श्रीमती कमलेश अवस्थी ने बताया कि मृत्युंजय पाण्डेय को ‘देवीशंकर अवस्थी स्मृति सम्मान’ देवीशंकर अवस्थी के जन्म दिवस 5 अप्रैल 2019 को नयी दिल्ली के रवीन्द्र भवन के साहित्य अकादेमी सभागार में एक आयोजन में शाम को दिया जायेगा ।


चौबीसवाँ ‘देवीशंकर अवस्थी स्मृति सम्मान’ पाने वाले युवा आलोचक मृत्युंजय पाण्डेय का जन्म बिहार के दिधवा दुबौली, गोपालगंज नामक कस्बे में वर्ष 1982 में हुआ था । कलकत्ता विश्वविद्यालय से शिक्षा पूर्ण करके इसी से सम्बद्ध सुरेन्द्रनाथ कालेज में वे हिन्दी के प्राध्यापक हैं ।
‘देवीशंकर अवस्थी स्मृति सम्मान’ की स्थापना हिन्दी के सुप्रसिद्ध आलोचक स्वर्गीय देवीशंकर अवस्थी की स्मृति में उनकी पत्नी श्रीमती कमलेश अवस्थी के परिवार द्वारा वर्ष 1995 में स्थापित की गई थी । यह पुरस्कार हर वर्ष पैंतालिस वर्ष तक के युवा आलोचक को दिया जाता है । अभी तक यह पुरस्कार सर्वश्री मदन सोनी, पुरुषोत्तम अग्रवाल, विजय कुमार, सुरेश शर्मा, शंभुनाथ, वीरेन्द्र यादव, अजय तिवारी, पंकज चतुर्वेदी, अरविन्द त्रिपाठी, कृष्ण मोहन, अनिल त्रिपाठी, ज्योतिष जोशी, प्रणयकृष्ण, प्रमिला के. पी., संजीव कुमार, जितेन्द्र श्रीवास्तव, प्रियम अंकित, विनोद तिवारी, जीतेन्द्र गुप्त, वैभव सिंह, पंकज पराशर, और अमिताभ राय को मिल चुका है ।

मुश्किल नहीं ब्रेकअप के गम से बाहर निकलना

ब्रेकअप के बाद मानसिक तौर पर टूटना लाजमी है लेकिन दुख के इस घेरे से बाहर आना भी जरूरी है। बेशक जीवन का यह दौर अच्छा नहीं है लेकिन जीवन का अंत भी तो नहीं। ब्रेकअप के बाद के दुख को कम करने के कई तरीके हैं। मनोचिकित्सक डॉ. अनुनीत संभरवाल से जानिए ब्रेकअप के दुख से कैसे बाहर निकलें।

दर्द ही बनेगा दवा
आंसुओं को बह जाने दें। दुख और दर्द दिल से बाहर निकल जाए तो दवा बन जाता है।आप डर रहे होंगे कि एक बार आंसू निकलना शुरू कर देंगे तो थमने का नाम नहीं लेंगे। लेकिन ऐसा नहीं है। कई शोध भी बताते हैं किआंसू व्यक्ति को मजबूत करते हैं, कमजोर नहीं।
खुद को व्यस्त रखें
एक्सरसाइज करें, किताब पढ़ें, सेल्फ हेल्प वाले वीडियोज देखें, मेडिटेशन करें। खुद को रचनात्मक कार्यों में व्यस्त रखें। ऐसे काम करें, जिसमें मजा आए। मूड के ठीक होने का इंतजार न करें, मूड को ठीक करने की कोशिश करें।
भावनात्मक मदद जरूरी
दोस्तों से बातें करें। उनके साथ समय व्यतीत करें, इस दुख से उबरने में उनकी मदद लें। एक सच्चा और अच्छा दोस्त आपको हर तरह के गम से उबार सकता है।
घर से बाहर निकलें
यदि आपकी नींद सुबह जल्दी खुल जाती है टहलने चले जाएं। बाहर की ताजी हवा आपके अंदर के गुबार को बाहर कर देगी। खरीदारी करने बाजार चले जाएं। चाहें तो फिल्म देखने सिनेमा हॉल जाएं। अगर नींद आने में दिक्कत हो रही है तो पजल खेलें, पढ़ें या टीवी देखें।
ब्रेकअप के बाद मिलने की जरूरत नहीं
यदि आपका एक्स पको फोन करता है या मिलने की कोशिश करता है तो उससे बचें। उसे बताएं कि ब्रेकअप के बाद मिलने का कोई मतलब नहीं है। उनसे दूरी बनाकर रखें। यदि वह आपको परेशान करे तो बता दें कि कानून अभी जिंदा है।

दक्षिण की मीरा – आंडाल

दक्षिण भारत में श्री विल्लीपुत्तूर नामक एक प्रसिद्ध तीर्थ है। वह राज्य के रामनाद जिले में है। वहां विष्णु का एक पुराना मंदिर है, लेकिन लोग उस मंदिर को ही देखने के लिए वहां नहीं जाते हैं। श्री विल्लीपुत्तूर का नाम इसलिए प्रसिद्ध हुआ है कि वह दक्षिण की एक महान भक्त-कवयित्री आंडाल की जन्मभूमि है। उत्तर भारत में जिस तरह मीरा के पदों का प्रचार है, उसी तरह दक्षिण भारत में आंडाल के पद घर-घर गाये जाते हैं दक्षिण के हर विष्णु मंदिर में उसकी मूर्ति प्रतिष्ठित है और लोग श्रद्धा से उसकी पूजा करते हैं।
पुराने समय में श्री विल्लीपुत्तुर के आसपास का प्रदेश जंगलों में घिरा था। वहां पहले आदिवासी लोग रहा करते थे। उन आदिवासियों में ‘मल्लि’ नाम की कोई नामी महिला हुई थी, जिसके कारण वह इलाका ‘मल्लिनाहु’ कहलाता था। मल्लि के लड़के का नाम ‘विल्ली’ था। वह भी बड़ा प्रभावशाली निकला। उसने एक बार आसपास के जंगलों को साफ करना शुरू किया। जंगल साफ करते-करते अचानक उसे एक बहुत ही पुराना विष्णु मंदिर मिला। उसने उस मंदिर का उद्धार किया ओर उसके चारों ओर एक गांव बसाया। विल्ली के नाम पर ही यह गांव ‘श्रीविल्लीपुत्तुर’ कहलाया। यह अब दक्षिण का एक महान पुण्यक्षेत्र बन गया है।आज से कोई तेरह सौ साल पहले श्रीविल्लीपुत्तूर में एक आलवार भक्त रहते थे। उनका असली नाम वैसे विष्णुचित्त था, किन्तु लोग उनको पेरियालवार कहते थे। आलवार दक्षिण के प्राचीन वैष्णव भक्तों को कहते हैं, जिनकी संख्या बारह है। बारहों आलवारों में पेरियालवार का बहुत ऊंचा स्थान है। पेरियालवार शब्द का अर्थ ही होता है—महान आलवार। आंडाल उन्हीं की पालिता कन्या थी।पेरियालवार बड़ें ही ज्ञानी और भावुक भक्त थे। अपनी कुटिया के आगे उन्होंने एक फुलवारी लगा रखी थी। रंग-बिरंगे फूल उसमें खिला करते थे। फूलों को खिलते देखकर उनको लगता, जैसे भगवान ही प्रसन्न होकर मुस्करा रहे हैं। रोज बड़े तड़के वे उठते और फुलवारी में जाकर ताजे फूल तोड़ते।

आण्डाल की एक प्रतिमा

भगवान के लिए उन फूलों को माला वह अपने-आप तैयार करते थे। भगवान की पूज-अर्चना करना और उनकी महिमा गाना ही उनका रोज का काम था। सदा की तरह एक दिन पेरियालवार बड़े सवेरे उठे। फुलवारी में उस दिन बहुत सारे फूल खिले थे। सुबह की ठंडी हवा और फूलों की मधुर गंध ने उनके मन को पुलकित कर दिया था। फूल तोड़ते समय वह भावों में डूबकर भगवान की महिमा का गान करने लगे। फूलों की डलिया भर चली थी कि अचानक उन्होंने एक तुलसी के पौधे के नीचे किसी चीज को हिलते-डुलते देखा। उनको बड़ा कौतूहल हुआ। पास जाने पर उन्होंने देखा तो उनके अचरज का ठिकाना न रहा। वहां एक नवजात बच्ची पड़ी हुई थी। फूल की तरह उस कोमल बच्ची को उन्होंने पुलकित हो तुरंत गोद में उठा लिया।
वह भागे-भागे मंदिर में गये और भगवान की मूर्ति के सामने उस बच्चीmको रखकर कहने लगे, “हे प्रभो, मैं आज एक अनूठा फूल तुम्हारे लिए लाया हूं। यह बच्ची तुमने दी है, तुमको ही भेंट करता हूं।” कहते हैं, पेरियलवार को उसी समय आकाशवाणी सुनाई दी, “इसका नाम गोदा रखना और अपनी बेटी की तरह इसका पालन-पोषण करना।”
तमिल में ‘गोदा’ शब्द का अर्थ होता है-‘फूलों की माला-सी सुन्दर’। गोदा वास्तव में वैसी ही सुन्दर थी। भक्तराज की पुत्री होने के कारण गोदा के मन पर भक्ति के संस्कार शुरू से ही जमते गये। फूल तोड़ना, माला गूंथना, पूजा की सामग्री जुटाना आदि सब कामों में वह अपने पिता की मदद करती। पिता जब गाते, तब वह भी उनके साथ गाती। भगवान की आराधना के सिवा बाप-बेटी को और कोई काम नहीं था। इस सबका असर धीरे-धीरे गोदा पर यह पड़ा कि उसने मान लिया, उसका जीवन केवल भगवान के लिए है। वह दिन-रात भगवान के ही बारे में सोचा करती। उनको कौन-सा फूल पसन्द आयेगा, कैसी माला पहनकर वे प्रसन्न होंगे—इसी तरह की बातों पर वह घंटों विचार किया करती थी।
एक दिन मंदिर के पुजारी ने पेरियालवार से कहा, “आपको माला भगवान की पूजा के योग्य नहीं है, क्योंकि किसी ने उसे पहनकर अपवित्र कर दिया है।” पेरियालवार को इस पर सहसा विश्वास नहीं हुआ, लेकिन उन्होंने कुछ कहा नहीं। ताजे फूलों की दूसरी माला तैयार की और भगवान को चढ़ाई। लेकिन दूसरे दिन भी वही बात हुई। जो माला वह घर से पूजा के लिए ले गये थे, उसे लेने से पुजारी ने फिर इन्कार कर दिया। यही नहीं, उसने माला में से एक बाल निकालकर दिखाते हुए कहा, “आप स्वयं देख लीजिये। इस माला को किसी ने पहना है। कई फूलों की पंखुड़ियां भी मसली हुई-सी लगती हैं।”
पेरियालवार यह सुनकर चिंता में पड़ गये। भगवान को चढ़ाई जानेवाली माला कौन पहन सकता है! माला तो गोदा तैयार करती है। वह पहन लेगी, ऐसा सोच भी नहीं जा सकता। फिर बात क्या है? प्रभु की यह कैसी माया है! इस तरह के विचारों में काफी देर तक खोये रहे। दूसरे दिन पेरियालवर जरा पहले ही नह-धोकर मंदिर जाने के लिए तैयार हो गये। गोदा कुटिया के अन्दर थी। उन्होंने आवाज दी, “बेटी, माला तैयार हो गई क्या?”लेकिन कोई उत्तर नहीं मिला। पेरियालवार ने झांककर देखा तो स्तब्ध रह गये। पुजारी के कथन की सचाई उनकी आंखों के आगे थी। गोदा शीशे के सामने बैठी थी। भगवान के लिए जो माला उसने तैयार की थी, वह उसके गले में झूल रही थीं वह उस माला को देखती, उसकी शोभा को निहारती, धीरे-धीरे कुछ बुदबुदाती जा रही थी।
पेरियालवार ने झुँझलाकर कहा, “अरी नासमझ! तू यह क्या कर रही है?”गोदा का ध्यान भंग हुआ। वह चौंकी, फिर पिता को देखकर तुरन्त संभल गई। गले से माला निकालते हुए वह बोली, “कुछ नहीं पिताजी, देखिये, आज मैंने कितनी सुन्दर माला बनाई है!” भोली गोदा का यह उत्तर पिता के नहीं भाया। जीवन में पहली और शायद आखिरी बार उन्हें क्रोध आया था। वह गरज उठे, “तूने सर्वनाश कर डाला! भगवान की माला पहनकर अपवित्र कर दी। ऐसी मूर्खता आखिर तूने कैसे की?”
गोदा इतनी भोली थी कि पिता के क्रोध से डरने के बदले खिल-खिलाकर हंस पड़ी। बोली, “पिताजी, आप इतने नाराज क्यों होते हैं? आज यह कोई नई बात तो नहीं है। मैं तो रोज ही माला गूंथती हूं और पहनकर देख लेती हूं कि अच्छी बनी या नहीं। जो माला मुझे ही नहीं जंचेगी, वह भला उन्हें कैसे पसन्द आयेगी?”
पेरियालवार ने गोदा का यह जवाब सुनकर अपना सिर पीट लिया—”इस मूरख से बात करना व्यर्थ है। भगवान मुझे कभी क्षमा नहीं करेंगे। महीनों से मैं अपवित्र माला ही उनको चढ़ाता रहा हूं। आखिर दोष मेरा ही है। प्रभु के लिए माला तो मुझे स्वयं अपने हाथों से गूंथनी थी!” इतना कहते-कहते वह बहुत अशान्त हो उठे और जल्दी-जल्दी दूसरी माला गूंथने लगे, क्योंकि पूजा का समय पास ही था।
पिता का ऐसा रंग-ढंग देखकर गोदा को लगा कि कोई बड़ी बात हो गई है। वह पत्थर की मूर्ति की तरह खड़ी-की-खड़ी रह गई। उसके हाथ से वह माला छूटकर नीचे जा गिरी, जिसे उसने बड़े जतन से तैयार किया था। इतनी सुन्दर माला इससे पहले वह कभी नहीं गूंथ पाई थी। भगवान इसे पाकर कितने प्रसन्न होंगे, यही सोचकर वह मगन थी, लेकिन यह क्या हो गया अचानक! उसके माला पहन लेने मात्र से भगवान क्यों नाराज होने लगे! यह सोचते सोचते वह विचलित हो उठी। इसी बीच पेरियालवार ने दूसरी माला तैयार कर ली। वह गोदा से कुछ बोले बिना ही मंदिर चले गये। उसको साथ चलने के लिए भी नहीं कहा। यह देखकर उसकी आंखों में आंसू उमड़ आये। बड़ी देर तक वह सामने पड़ी हुई माला को अपने आंसुओं से भिगोती रही।
पेरियालवार दिन-भर बहुत ही उदास रहे। कुछ खाया-पिया भी नहीं। रात में बड़ी देर तक उनको नींद नहीं आई। आधी रात बीते जब उनकी आंख लगी तो उन्होंने एक सपना देखा। श्रीरंगम के शेषशायी भगवान रंगनाथ कह रहे थे, “भक्तराज, व्यर्थ क्यों दुखी होते हो! तुमने कोई अपराध नहीं किया है। मैं गोदा के प्रेम के वश में हूं। उसकी पहनी हुई माला मुझे बहुत प्रिय है। आगे से मुझे वही भेंट करना!”
विष्णुभक्त पेरियालवार मारे आनन्द के गदगद् हो उठे। भगवान के चरणों में गिरने को उन्होंने जो चेष्टा की, तो सहसा उनकी आंख खुल गई। वह हड़बड़ाकर उठ बैठे। उन्होंने उसी समय गोदा की ओर देखा। वह एक कोने में चटाई पर पड़ी सो रही थी। चेहरा देखने से ऐसा लगता था, मानो वह काफी रात गये तक जागती और आंखू बहाती रही है। पेरियालवार दीपक के मंद प्रकाश में एकटक उसको देखते रहे। उन्हें सहसा ख्याल आया कि इसने भी आज दिन-भर कुछ खाया-पिया नहीं होगा। स्नेह और करुणा का सागर उनके हृदय में लहराने लगा। तुरंत उन्होंने गोदा को जगाया और आनंद के आंसू बरसाते हुए बोले, “बेटी, तू धन्य है! तेरे कारण आज मैं भी धन्य हो गया। अभी स्वयं भगवान ने मुझे दर्शन दिये हैं। अब मैं जान पाया कि तूने उन्हें अपने प्रेम के वश में कर लिया है। गोदा की जगह आज से मैं तुझे आंडाल कहूंगा।”
बस, गोदा उसी समय से आंडाल के नाम से प्रसिद्ध हुई। ‘आंडाल’ शब्द का अर्थ होता है—’अपने प्रेम से दूसरे को वश में करनेवाली’।संयोग की बात कि उसी रात भगवान ने मंदिर के पुजारी को भी सपने में आदेश दिया कि आगे से गोदा की पहनी हुई माला को लेने से इन्कार न करे। आंडाल अब सयानी हो गई। भगवान के प्रति उसका प्रेम-भाव इतना गहरा हो गया था कि वह कुमारी कन्या की तरह भगवान के साथ अपने ब्याह की कल्पना करने लगी। वह रहती थी श्रीविल्लीपुत्तूर में, लेकिन उसका मन सदा गोकुल की गलियों और वृन्दावन के कुंजों में विहार करता था। वह सोचा करती कि कृष्ण ही मेरे दूल्हा हैं और उन्हीं के साथ मेरा ब्याह होगा। भावविभोर होकर वह कृष्ण की लीलाओं का गान करने लगती। उस समय उसके मुंह से अपने-आप नये-नये पद निकलने लगते। ये मधुर पद ही आगे ‘तिरुप्पावै’ और ‘नाच्चियार तिरुमोलि’ के पद कहलाये।
एक रात आंडाल ने सपना देखा कि भगवान कृष्ण के साथ उसके ब्याह का समय समीप आ गया है। धूमधाम से उसके विवाह की तैयारियां हो रही हैं और मण्डप सजाया जा रहा है। सवेरे जागने पर उसने यह बात अपनी सखियों से कही। विवाह के अवसर पर जो प्रथाएं उन दिनों प्रचलित थीं, उन पर कई मधुर पर रच डाले। आज भी तामिलनाडु में विवाह के मंगल अवसर पर वे पद गाये जाते हैं।
पेरियालवार को अब आंडाल के विवाह की चिंता सताने लगी। एक रात भगवान ने फिर स्वप्न में उन्हें दर्शन दिये और कहा, “भक्तराज, आंडाल अब विवाह-योग्य हो गई है। उसको लेकर श्रीरंगम के मन्दिर में आओ। मैं उसका पाणिग्रहण करूंगा।” पेरियालवार अपने आराध्य का आदेश कैसे टाल सकते थे! भगवान की धरोहर भगवान को सौंप दी जाय, यह उनके लिए बड़ी प्रसन्नता की बात थी। उन्होंने यात्रा की तैयारियां शुरू कर दीं।
मदुरै में उन दिनों पांड्य राजा राज करते थे। एक रात उन्हें भगवान ने स्वप्न में आदेश दिया कि वह आंडाल को श्रीविल्लीपुत्तूर से श्रीरंग ले आयें। इसी तरह का स्वप्न श्रीरंगम के मंदिर के पुजारियों को भी आया फिर क्या था, सब-से-सब श्रीविल्लीपुत्तूर आ धमकें विष्णुप्रिया आंडाल चरणों की धूल सबने अपने सिर पर ली और राजसी धूमधाम से उसकी सवारी निकली। वह सजी-सजाई दुलहिन की भांति डोली में बैठी थी। पेरियालवार एक सजे हुए हाथी पर बैठे भगवान की महिमा गाते जा रहे थे। आगे-पीछे रथों, हाथियों, घोड़ों और पैदल सैनिकों की लंबी कतारें थीं। तरह-तरह के बाजे बज रहे थे। दसों दिशाओं से लोगों की भीड़ उमड़ रही थी। रास्तों के किनारे लोग छतों पर से फूलों की वर्षा कर रहे थे। ऐसा लगता था, मानो कोई राजकुमारी अपने पति के देश जा रही हो। मीलों की यात्रा करके वह जुलूस श्रीरंगम पहुंचा। कावेरी के किनारे पर स्थित भगवान रंगनाथ के मंदिर के सामने जाकर वह रुका। आंडाल डोली से उतरी। मंदिर के गर्भ-गृह में उसने प्रवेश किया। शेषशायी भगवान रंगनाथ की मूर्ति को देखते ही वह रोमांचित हो उठी। धीरे-धीरे वह आगे बढ़ी और भगवान के चरणों में बैठ गई। लेकिन यह क्या! लोगों ने दूसरे ही क्षण चकित होकर देखा कि आंडाल वहां नहीं है। वह सबके देखते-देखते अदृश्य हो गई। भगवान की मूर्ति में समा गई।
कहते हैं मीराबाई भी इसी तरह भगवान की मूर्ति में समा गई थीं। भक्ति-भाव की यह चरम सीमा है, जब भगवान और भक्त एकाकार हो जाते हैं। पेरियालवार का हृदय इस घटना से व्याकुल हो उठा। कुछ भी हो, आखिर उन्होंने आंडाल को अपनी बेटी की तरह पाला था। वह शोक के महासागर में डूब गये। उन्होंने अपने-आपको संभाला और सब भगवान की लीला है ऐसा समझकर संतोष किया।
कहते हैं, उस अवसर पर उन्हें यह आकाशवाणी सुनाई दी थी, “भक्तराज, तुमने आंडाल को नहीं पहचाना। उसके रूप में तो स्वयं भूदेवी ने जन्म लिया था। तुम व्यर्थ क्यों दु:खी होते हो! मेरी प्रिया आंडाल मुझसे आ मिली है, इससे तो तुमको प्रसन्न होना चाहिए। तुम भी अब जल्दी ही मुझसे आ मिलोगे।”आंडाल के कारण श्रीविल्लीपुत्तूर की महिमा बहुत बढ़ गई। वहां हर साल रंगनाथ की (आंडाल) और रंगनाथ (भगवान विष्णु) का विवाहोत्सव आज भी बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। रंगनाथ के साथ ही रंगनायकी के रूप में आज आंडाल की पूजा दक्षिण में सब जगह होती है। दक्षिण के हर विष्णु-मंदिर में उसकी प्रतिमा मिलती है। वहां ऐसा घर शायद ही मिलेगा, जिसकी दीवार पर उसके चित्र न हों। ‘तिरुप्पावै’ और ‘शूडिकोडुत्त नाच्चियार तिरुमोलि’ के मधुर पदो के कारण तो वह अमर रहेगी। ‘गोदा’ का दूसरा अर्थ ‘वाणी की देवी’ करें, तो वह भी उस पर ठीक ही उतरेगा।
उत्तर भारत के चैतन्य, विद्यापति, सूर, तुलसी, कबीर और मीरा से भी सैकड़ों साल पहले दक्षिण में कई महान् भक्त पैदा हुए। उन भक्तों में शैव भी थे और वैष्णव भी। शिव के भक्त नायन्मार नाम से प्रसिद्ध हुए। भक्ति-भावना में बेसुध होकर उन भक्तों ने बहुत सारे मूल्यवान प्राचीन भक्ति-साहित्य इन्हीं नायन्मार और आलवार भक्तों की देन है। आलवारों में आंडाल की लोकप्रियता सबसे अधिक है। उसके रचे पद ‘नालायिर दिव्य प्रबंधम्’ के पहले भाग में मिलते हैं। यह उस महान ग्रंथ का नाम है, जिसमें बारहों आलवारों के पदों का संग्रह है। तामिलनाडु में यह पवित्र ग्रंथ दूसरे वेद के समान पूजित है। ग्रंथ के चार भाग हैं। हर भाग में लगभग एक हजार पद हैं। पदों की संख्या चार हजार होने के कारण ही इसका नाम ‘नालायिर’ (चार हजार) पड़ा है।
आंडाल ने कुल मिलाकर १८३ पद रचे। पहले के तीस पद ‘तिरुप्पवै’ के पद कहलाते हैं और बाकी १५३ पद ‘शुडिकोडुत्त नाच्चियार तिरुमोलि’ के। तामिलनाडु में मार्गशीर्ष (अगहन) मास का विशेष महत्व है। यह महीना वहां ‘तिरुप्पावै’ का महीना माना जाता है।’तिरुप्पावै’ शब्द ‘तिरु’ और ‘पावै’ शब्दों के मिलने से बना है। तमिल में ‘तिरु’ का अर्थ ‘श्री’ होता है और ‘पावै’ का अर्थ है ‘व्रत’ या ‘त्योहार’। अत: ‘तिरुप्पावै’ को हम ‘श्रीव्रत’ भी कह सकते हैं। मार्गशीर्ष महीने में यह त्योहार हर साल बड़े उत्साह से मनाया जाता है। यह त्योहार खासकर महिलाओं के लिए है। विवाहित स्त्रियां सुख-सुहाग के लिए और कुमारियाँ मनचाहे वर के लिए इस व्रत को रखती हैं। तड़के उठकर वे स्नान के लिए जाती हैं और ‘तिरुप्पावै’ के पद गाती हैं। जगह-जगह पर कथाएं होती हैं। भगवान की महिमा के साथ ही आंडाल के यश का गान होता है।
तिरुप्पावै त्योहार से सम्बन्धित होने के कारण आँडाल के तीस पदों को ‘तिरुप्पावै’ कहा जाता है। भागवत में गोपिकाओं के एक व्रत का वर्णन है। शायद आँडाल को उसी से प्रेरणा मिली। गोपिकाओं के जीवन से ही मिलता-जुलता उसका अपना जीवन था। गोपिकाओं की तरह ही उसके जीवन का एक मात्र उद्देश्य था अपने प्रियतम कृष्ण को प्रसन्न रखना।
‘तिरुप्पावै’ के पद ‘प्रभाती’ या ‘जागरण-गीत’ जैसे हैं। उनमें कुछ सखियों द्वारा दूसरी सखियों, कृष्ण और नन्दगोप आदि को जगाने का वर्णन है।
कहते हैं, एक बार गोकुल की गोपिकाओं को कृष्ण से मिलने की मनाही कर दी गई। गाँव के बड़े-बड़े को कृष्ण की हरकतें पसन्द नहीं थीं। लेकिन उन्हीं दिनों अचानक अकाल पड़ा। पानपी न पड़ने से हरियाली सूख गई। पशु मरने लगे। वर्षा बुलाने को यह जरूरी हो गया कि गोकुल के किशोर-किशारियों का दल ‘कात्यायनी व्रत’ का उत्सव मनाये। कृष्ण तो बड़े-बूढ़ों की बात सुनने वाले नहीं थे, इसलिए उनको मनाने के लिए गोपिकाओं को कहा गया। इस तरह गोपिकाओं को कृष्ण से मिलने की छूट देनी ही पड़ी। वे बड़े उछाह से एक-एक कर सखियों को जगाती हुई कृष्ण के पास पहुंची और उनको उत्सव की सफलता के लिए राजी किया। आंडाल के ‘तिरुप्पावै’ के पदों की रचना का मूल-आधार यही पौराणिक कथा है। ‘तिरुप्पावै’ के सभी पद बड़े सरल, मधुर और गाने योग्य हैं। वे मन को रसमय कर देते हैं। केवल भारत में ही नहीं, बल्कि दूर-दूर के देशों मे भी इनका प्रचार है। दो हजार मील दूर स्याह देश में भी ‘तिरुप्पावै’ के पद गाये जाते हैं।
शूडिकोडुत्त’ नाच्चियार तिरुमोलि’ आँडाल के १५३ फुटकर पदों का संग्रह है।’शूडिकोडुत्त नाच्चियार’ का अर्थ है, ‘पहले माला पहनने वाली रमणी’ और ‘तिरुमोलि’ का अर्थ है ‘दिव्य वाणी’। आंडाल भगवान से पहले स्वयं माला पहन लेती थी, उसी का संकेत यहाँ पर है। आंडाल की यह दिव्य वाणी सचमुच अनुपम है। मीरा की भाँति वह भी कृष्ण को अपना पति मानती थी। उसके मन में जब भी जो भाव उठते थे, उन्हें वह पदों का रूप दे डालती थी। किसी पद में प्रेम की प्रबलता है तो किसी में विरह की व्याकुलत है। किसी पद में वह कृष्ण के उलाहना देती है तो किसी में मिलन का विश्वास प्रकट करती है। आँडाल और मीरा दोनों ही कृष्ण के प्रेम-रस में सराबोर थीं। दोनों ही कृष्ण को अपना प्रियतम मानती थी। दोनों उन्हीं की प्रेम-भावना में जीवनभर बेसूध रहीं। दोनों के ही मधुर पद जन-जन के कण्ड में बसे हुए हैं।

(साभार – विकीसोर्स)

अभिनंदन : वीरता की विरासत निभाता वायुसेना का जांबाज

नयी दिल्ली : पिछले चार दिन में विंग कमांडर अभिनंदन वर्धमान के रूप में देश को एक नया सुपर हीरो मिला है। यह हवा में विमान उड़ाता है , दुश्मन के जहाज को मार गिराता है , शत्रु की धरती पर निडर होकर 60 घंटे बिताता है और फिर विजेता की तरह सधी और निर्भीक चाल से सीमा पार करके अपने देश की सुरक्षित जमीन पर कदम रखता है। एफ-16 विमान गिराकर पाकिस्तान को गहरा जख्म देने वाला भारतीय वायु सेना का जांबाज लड़ाका अभिनंदन जब तक दुश्मन की गिरफ्त में रहा, देश के करोड़ों लोग हर पल उसकी सुरक्षित वापसी की दुआ करते रहे।
21 जून, 1983 को जन्मे अभिनंदन का भारतीय वायु सेना के साथ पीढ़ियों पुराना रिश्ता है। वह आज मिग-21 उड़ाते हैं और उनके पिता सिंहकुट्टी वर्धमान मिग-21 उड़ा चुके हैं। पांच वर्ष पहले ही सेवानिवृत्त हुए अभिनंदन के पिता देश के उन चुनिंदा पायलट में से हैं, जिनके पास 4000 घंटे से ज्यादा तक 40 तरह के विमान उड़ाने का अनुभव हासिल हैं। वह करगिल युद्ध के दौरान वायुसेना की मिराज स्क्वाड्रन के चीफ आपरेशंस आफिसर थे। अभिनंदन के दादा भी भारतीय वायु सेना में रहे हैं। इस लिहाज से कहें तो देशभक्ति और देश के लिए कुछ करने का जुनून उनकी रगों में दौड़ता है।
देशसेवा और बहादुरी में अभिनंदन की मां डा. शोभा वर्धमान का भी कुछ कम योगदान नहीं है। अपने परिवार और बच्चों के प्रति अपने दायित्वों का निर्वहन करने के साथ ही उन्होंने मानवता की सेवा में अपना पूरा जीवन लगा दिया। वह दुनियाभर में मुफ्त में चिकित्सा सेवाएं देने वाले स्वयंसेवकों में शामिल रही हैं। मद्रास मेडिकल कॉलेज से स्नातक डा. शोभा ने रॉयल कॉलेज आफ सर्जन्स ऑफ इंग्लैंड से स्नातकोतर की उपाधि ली। वह युद्धरत देशों में हजारों माताओं को प्रसव के बाद होने वाली दिक्कतों से उबारने में मदद करती रही हैं। अपनी जान जोखिम में डालकर अपने देश और मानवता की सेवा को तत्पर एक मां के बेटे का जिगर ही ऐसा हो सकता है।
तमिलनाडु के तिरूवन्नामलाई जिले के रहने वाले अभिनंदन के दादा और माता पिता के अलावा उनकी पत्नी और भाई भी वायुसेना से जुड़े रहे हैं। उन्होंने स्कूल के दिनों की अपनी साथी तन्वी मरवाह से विवाह किया है। तन्वी भी वायु सेना में स्क्वाड्रन लीडर रही हैं। दोनों बहुत छुटपन से एक-दूसरे के साथी रहे हैं और स्कूली शिक्षा पूरी करने के बाद दोनों ने माइक्रोबायोलॉजी में आगे की पढ़ाई भी एक साथ ही की। दोनो के दो बच्चे हैं।
अभिनंदन के पाकिस्तान की सीमा में पहुंचने और वहां से वापस लौट आने की कड़ियों को जोड़ें तो हर गुजरते लम्हे के साथ उनका जज्बा और आत्मविश्वास बढ़ता दिखाई देता है। पाक अधिकृत कश्मीर के भिंभर जिले में बुधवार सुबह नियंत्रण रेखा से सात किलोमीटर दूर हुर्रान गांव के लोगों ने एक विमान को गिरते और पायलट को पैराशूट से जमीन पर लैंड करते देखा।
कुछ ही देर में ग्रामीणों ने उन्हें घेर लिया। खुद को दुश्मन से घिरा होने की भनक लगते ही अभिनंदन ने सबसे पहले अपने पास मौजूद सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण कागजात को नष्ट करना शुरू किया। ग्रामीणों से बचकर भागते हुए वह नजदीक के एक छोटे से तालाब तक जा पहुंचे। इस दौरान ग्रामीणों ने उनके साथ मारपीट भी की। उन्होंने कुछ कागजात निगल लिए और कुछ को पानी में भिगोकर नष्ट कर दिया।
दुश्मन की सेना की हिरासत में रहते हुए भी उन्होंने देश की वायुसेना और अपने बारे में कोई भी संवेदनशील जानकारी देने से पूरी सख्ती से इंकार कर दिया और अपनी जान हथेली पर लिए चाय की चुस्कियां लेते नजर आए। देश वापसी के समय चमकदार ललाट, गंभीर और गहरी आंखों और घनी मूछों वाले रौबदार चेहरे पर गंभीरता लगातार बनी रही। दुश्मन की धरती से अपनी मातृभूमि की तरफ बढ़ते इस वीर के हर कदम पर 130 करोड़ भारतीयों ने सदका उतारा और उनके देशप्रेम को सलाम किया।

पुंछ और राजोरी में बनेंगे 400 बंकर

श्रीनगर :  भारत-पाकिस्तान के बीच तनाव को देखते हुए केंद्र सरकार ने बड़ा फैसला लिया है। सरकार ने जम्मू कश्मीर के पुंछ और राजौरी जिले में और बंकर निर्माण को मंजूरी दी है। पिछले पांच दिनों में नियंत्रण रेखा पर पाकिस्तानी फौज ने राजौरी और पुंछ जिलों में 51 बार संघर्ष विराम उल्लंघन किया है जिसमें एक ही परिवार के तीन सदस्यों सहित चार नागरिकों की मौत हो गई और आठ सुरक्षाकर्मियों सहित 14 अन्य लोग घायल हो गए।
खबरों के अनुसार केंद्र सरकार ने पुंछ और राजौरी जिले में कुल 400 अतिरिक्त बंकर के निर्माण को मंजूरी दी। इन दोनों जिलों को 200 बंकर मिले हैं और इन बंकरों का निर्माण अगले एक महीने में हो जाएगा। सेना प्रमुख जनरल बिपिन रावत ने शनिवार को जम्मू स्थित व्हाइट नाइट कोर का दौरा किया और तैयारियों का जायजा लेते हुए सभी जवानों को सतर्क रहने को कहा।

47 साल की माँ, 28 साल की बेटी को एक साथ मिली सरकारी नौकरी

चेन्नई : तमिलनाडु के थेनी जिले की तीन बच्चों की मां शांतिलक्ष्मी और उसकी 28 साल की बेटी आर थेनमोझी ने राज्य सेवा आयोग ग्रुप-4 की परीक्षा पास कर सरकारी नाैकरी हासिल की है। शांतिलक्ष्मी की स्वास्थ्य विभाग में नियुक्ति होगी। वहीं, थेनमोझी को धर्मस्व विभाग में नौकरी मिली है। शांतिलक्ष्मी को उम्मीद है कि उनकी पोस्टिंग उनके गृह जिले थेनी में होगी। बीएड कर चुकी 47 साल की शांतिलक्ष्मी और तमिल साहित्य में बीए कर चुकी थेनीमोझी ने नौकरी के लिए पिछले साल एकसाथ प्रतियोगी परीक्षा की कोचिंग शुरू की थी।
बेटी कोचिंग से आकर मां को पढ़ाती थी
शांतिलक्ष्मी ने बताया कि 2014 में उनके पति ए रामचंद्र की मृत्यु हो गई। इसके बाद परिवार को संभालने की जिम्मेदारी आ गई। तब उन्हें लगा कि नौकरी करना जरूरी है। बीए के बाद बीएड कर चुकी शांतिलक्ष्मी ने अपनी बेटी के साथ ही कोचिंग जाॅइन की। बच्चों की देखभाल और अन्य पारिवारिक जिम्मेदारी के कारण जब वह क्लास नहीं जा पाती थीं, तो बेटी उन्हें घर पर कोचिंग क्लास की पढ़ाई दोहराती थी।

केंद्र ने दी जम्मू कश्मीर आरक्षण संशोधन अध्यादेश 2019 को मंजूरी

नयी दिल्ली : केंद्रीय मंत्रिमंडल ने बृहस्पतिवार को जम्मू कश्मीर आरक्षण संशोधन अध्यादेश 2019 को मंजूरी प्रदान कर दी। वित्त मंत्री अरूण जेटली ने यह जानकारी दी । प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में हुई केंद्रीय मंत्रिमंडल की बैठक में इस आशय का निर्णय किया गया । केंद्रीय मंत्रिमंडल ने आज की बैठक में जम्मू कश्मीर सरकार के जम्मू कश्मीर संशोधन अध्यादेश को राष्ट्रपति द्वारा जारी करने के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी । इसके तहत जम्मू कश्मीर आरक्षण अधिनियम 2004 में संशोधन करने की बात कही गई है । इसके जरिये अंतरराष्ट्रीय सीमा के पास रहने वाले लोगों को भी आरक्षण का लाभ वास्तविक नियंत्रण रेखा के पास रहने वाले लोगों की तरह की प्राप्त हो सकेगा ।