Thursday, February 13, 2025
खबर एवं विज्ञापन हेतु सम्पर्क करें - [email protected]
Home Blog

सृजन यात्रा के नौ वर्ष….पथ पर चलें निरंतर

शुभजिता 13 फरवरी को अपनी सृजन यात्रा का एक और पड़ाव पार कर रही है। 2026 में पूरा एक दशक होने जा रहा है। 2025 में आपकी यह वेब पत्रिका 9 वर्ष पूरे कर चुकी है। जब 2016 में वसंत पंचमी के दिन आज की शुभजिता ने अपराजिता बन चलना आरम्भ किया था, तब कहां पता था कि यहां तक आ सकेंगे। इस पर एक जिद थी कि लीक से हटकर चलना है, पत्रकारिता की सकारात्मकता को सामने रखना है, मुद्दे रखने हैं, सनसनी से बचना है। यह एक विनम्र…बहुत विनम्र शुरुआत थी और हमें कतई उम्मीद नहीं थी कि इसे कोई गम्भीरता से लेगा..यह भी उम्मीद नहीं थी कि लोग जुड़ेंगे..लिखेंगे..किसी अन्य मीडिया संस्थान की तरह हमें कार्यक्रमों में बुलाया जाएगा। हमारे पास था भी क्या उम्मीदों के लिए तो खोने के लिए भी कहां कुछ था। आज मुझे खुद मीडिया में 21 साल हो रहे हैं । पत्रकारिता की दुनिया से बहुत कुछ मिला है..पहचान भी और प्रेम भी..प्रेम इतना मिला कि कड़वाहटें हावी नहीं हो पायीं। इतने संघर्ष और इतनी बाधाएं देखीं कि लगा कि ऐसी जगह हो जहां काम करने का मन करे । अपनी शक्ति भर युवाओं की अभिव्यक्ति को मंच दे सकें हम..प्रतिभाओं को सामने ला सकें। कोरोना काल हमने बहुत कुछ ऐसा किया जो हम करना चाहते थे..संसाधनहीन थे..सार्मथ्यहीन नहीं थे। हमें नहीं पता कि हम कहां तक क्या कर सके हैं क्योंकि यह निर्णय लेना हमारा काम नहीं है..यह फैसला आप करेंगे। हमने शुभजिता का पीडीएफ संस्करण भी निकालना आरम्भ किया। दो दर्जन अंक निकाले भी मगर व्यस्तता व तकनीकी कारणों से इसमें विध्न पड़ते रहे। दरअसल, आर्थिक जरूरतें और आर्थिक दिक्कतें अपनी जगह है और जीवन संचालन एक महती कार्य है इसलिए दोनों कार्य साथ ही संचालित करने पड़ते हैं। आज 10 लाख से अधिक अतिथि इस वेबपत्रिका पर आ चुके हैं। हम दो शुभजिता सृजन प्रहरी तथा तीन शुभ सृजन सारथी सम्मान आयोजित कर चुके हैं। यू ट्यूब पर भी 1 हजार से अधिक सदस्य शुभजिता के चैनल पर हैं। प्रयास जारी है। हो सकता है कि खबरें लाने में थोड़ा विलम्ब हो मगर खबरें आती रहेंगी, यह तय है। इस सृजन यात्रा पर पथ एकाकी भी हो तो भी हम चलते ही रहेंगे क्योंकि यही हमारा कर्म है। फल हमारे हाथ में नहीं है पर जो कर्म है..वह हम करते ही रहेंगे और हमें विश्वास है कि आपका सहयोग हमें मिलता ही रहेगा…एक विनम्र धन्यवाद के अतिरिक्त हम और क्या दें..जब रहीम के शब्दों में –
देनहार कोई और है, भेजत है दिन रैन
लोग भरम हम पर करें, ताते नीचे नैन
शुभजिता का सारा लोहा आप ही हैं, अपनी तो केवल धार ही है. नयी यात्रा पर शुभजिता का नया अवतार…
……………
अशेष आभार
सुषमा त्रिपाठी कनुप्रिया
सम्पादक, शुभजिता

ऐसी स्थिति में बदल डालिए टूथ ब्रश

सही तरह से ब्रश करने का मतलब सिर्फ सही टूथपेस्ट या ब्रश करने का तरीका नहीं, बल्कि इसमें समय-समय पर टूथब्रश बदलना भी शामिल है। अक्सर लोगों के टूथब्रश के ब्रिसल बुरी तरह से फैल कर खराब हो जाते हैं, फिर भी लोग उसे फेंकते नहीं हैं। नया टूथब्रश न लेने के आलस में या पैसे बचाने के चक्कर में वे उसी पुराने ब्रश को इस्तेमाल करते रहते हैं, जो बिल्कुल सरासर गलत है। जरूरत से ज्यादा ब्रश का इस्तेमाल करने से ब्रश करने का असली मकसद खत्म हो जाता है।ब्रश करने का मकसद है दांतों और ओरल कैविटी की सफाई, जिससे कैविटी और अन्य बीमारियों से बचाव किया जा सके। हालांकि, ज्यादा समय तक एक ही ब्रश का इस्तेमाल करने से उसमें बैक्टीरिया पनपने लगते हैं और सफाई करने की उनकी क्षमता खत्म हो जाती है, जिससे ब्रश साफ करने से ज्यादा ओरल कैविटी को नुकसान पहुंचा सकते हैं।
टूथब्रश हैबिट को मैनेज करना बहुत जरूरी है। सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रीवेंशन (सीडीसी) और इंडियन डेंटल एसोसिएशन (आईडीए) के अनुसार हर 3 से 4 महीने में टूथब्रश बदल लेना चाहिए। इसके अलावा कुछ और मामलों में भी टूथब्रश बदलना जरूरी हो जाता है, जिनमें निम्न शामिल हैं-
अगर टूथब्रश के ब्रिसल फैल गए हैं या फिर टेढ़े हो गए हैं, तो इन्हें बदल लें।
अगर ब्रश के कुछ ब्रिसल टूट गए हैं, तो टूथब्रश बदलें। टेढ़े-मेढ़े और फैले हुए ब्रिसल दांतों को साफ करने में सक्षम नहीं होते हैं।
अगर बहुत तेजी से ब्रश करते हैं, तो टूथब्रश को हर दूसरे महीने ही बदलना सही होता है। हालांकि, तेज और जोर से ब्रश करना ठीक नहीं होता है और अक्सर बच्चे ही तेजी से ब्रश करते हैं, जिसका ख्याल पेरेंट्स को रखना चाहिए।
अगर आप गंभीर रूप से बीमार हैं, तो इस दौरान आपने जिस ब्रश का इस्तेमाल किया है, उसे बदल देना ही उचित है। क्योंकि बीमारी के दौरान बैक्टीरिया और माइक्रोब्स की मात्रा बढ़ जाती है, जो आपके ब्रश में ट्रांसफर हो जाती है।
अगर आप इलेक्ट्रिक टूथब्रश का इस्तेमाल करते हैं, तो अमेरिकन डेंटल एसोसिएशन (एडीए) के अनुसार इसके हेड को भी हर 3 महीने पर बदल लेना चाहिए। साथ ही इलेक्ट्रिक टूथब्रश को हर 3 से 5 साल में बदल देना चाहिए। कई इलेक्ट्रिक टूथब्रश के ब्रश हेड में कलर इंडिकेटर भी होते हैं, जो कि ब्रश हेड बदलने का संकेत देते हैं।
…………………

 

गीले चावल से बनाइए अनोखे व्यंजन

अक्सर पानी ज्यादा पड़ जाने या फिर कुकर में सीटी ज्यादा लग जाने के चलते चावल खराब हो जाते हैं। ऐसे में जल्दी काम करना हो और काम बिगड़ जाए फिर तो और भी ज्यादा गुस्सा आता है। इनसे ही बनाइए स्वादिष्ट व्यंजन-

क्रिस्पी कॉइन

सामग्री – चावल,मसले हुए उबले आलू, नमक, काली मिर्च, चाट मसाला, चिली फ्लैक्स, ऑरिगेनो और ब्रेड क्रम्स
विधि – इसको बनाने के लिए सबसे पहले आपको गीले चावलों को लेना है। अब इसमें उबले(कद्दूकस किए) हुए आलू भी मैश कर लें। फिर आपको नमक, काली मिर्च, चाट मसाला, चिली फ्लैक्स, ऑरिगेनो और ब्रेड क्रम्स डालें। सभी चीजों को अच्छी तरह मिला लें। इसके बाद आपको इस मिश्रण की गोल लोई बनाकर हथेली से दबाते हुए गोल शेप देना है। गैस पर पैन रखकर उसमें तेल डालकर गर्म करें और इन कोइन को हल्की आंच पर सेक लें। आपके क्रिस्पी कॉइन बनाकर तैयार हैं आप इनको सॉस के साथ गर्मागर्म सर्व करें।

स्पाइसी टेंगी वेजिटेबल रोल


सामग्री – चावल, गाजर, पत्ता गोभी, प्याज, शिमला मिर्च, मटर, सरसो तेल,करीपत्ता, काली मिर्च, सोया सॉस, टोमेटो सॉस, नमक
विधि – सबसे पहले आपको चिपचिपे चावलों को मिक्सी जार में बिना पानी डालें अच्छी तरह पीस लेना है। अब इस मिश्रण को के बाउल में निकालें और उसमें एक चुटकी नमक और ज्यादा गाढ़ा हो तो अपनी डालकर मिला करें। एक नॉन स्टिक तवा गैस पर रखकर गर्म करें और उसपर ये मिश्रण डालें और पेपर डोसा जैसा बना लें। जब सब बन जाएं तो आप गाजर, पत्ता गोभी, प्याज, शिमला मिर्च को अच्छी तरह बारीक काट लें और मटर उबाल लें। अब एक कड़ाही गैस पर रखें और उसमें एक चम्मच तेल डालकर राई और करीपत्ता डालें। फिर इसमें सभी सब्जियां डालकर नमक, काली मिर्च, सोया सॉस और टोमैटो सॉस डालकर हल्का सोटे कर लें। सभी चीजों को गैस से उतारकर ठंडा करें फिर तैयार किए गए पेपर डोसा में आपको यह भरना है और टूथपिक से बंद करें। अब गैस पर कड़ाही रखकर तेल डालें हल्का गर्म होने पर इन रोल्स को ब्राउन होने तक सेंक लें। प्लेट में निकलकर गर्मागर्म पीस कट करके चटनी, सॉस या डिप के साथ सर्व करें।

महाशिवरात्रि पर आलता से करें अपने पैंरों का श्रृंगार

महाशिवरात्रि हिंदुओं के लिए बहुत बड़ा त्‍योहार होता है। इस दिन भगवान शिव और माता पार्वती की शादी हुई थी। हर साल इस दिन को बहुत ही धूम-धाम से मनाया जाता है। इस दिन महिलाएं भी सोलह श्रृंगार में कोई कसर नहीं छोड़ती हैं। ऐसे में हाथों में मेहंदी और पैरों में आलता लगाए बिना तो उनका श्रृंगार ही पूरा नहीं होता है। इस बार महाशिवरात्रि के पावन पर्व पर पैरों में अगर आप आलता लगाने के बाद में सोच रही हैं तो आज हम आपको उसके भी कुछ डिजाइंस दिखाएंगे।
आपने साधारण दिखने वाली आलता डिजाइंस तो कई बार लगाई होंगी आज हम आपको कुछ बेहद खूबसूरत और स्‍टाइलिश आलता डिजाइंस दिखाएंगे, जिन्‍हें आप यदि पैरों पर लगा लें तो लोग आपकी तारीफ करते नहीं रुकेंगे।
अगर आप अपने पैरों को एक अनोखा और आकर्षक रूप देना चाहती हैं, तो मेहंदी के साथ आलता का तालमेल एक बेहतरीन विकल्प हो सकता है। इसमें आप पहले पैरों पर मेहंदी की सुंदर डिजाइन बनाएं और फिर किनारों पर आलता से आउटलाइनिंग करें। यह कॉम्बिनेशन ट्रेडिशनल के साथ आलता डिजाइन को मॉडर्न टच भी देता हैं और महाशिवरात्रि जैसे खास मौकों पर एकदम परफेक्ट लगता है। मेहंदी और आलता का यह मेल राजस्थानी और बंगाली संस्कृति में काफी लोकप्रिय है और इसे विशेष अवसरों पर महिलाएं अपनाती हैं।
आलता का नाम जहन में आता है तो केवल गोल टिक्‍की डिजाइन की छवि ही दिमाग में उभरती है। मगर अब आलता में भी आपको महंदी जैसी घनी और खूबसूरत डिजाइन देखने को मिलेगी। अगर आप गहरे और बोल्ड डिजाइन पसंद करती हैं, तो घनी आलता डिजाइन आपके लिए एक बेहतरीन विकल्प हो सकता है। इसमें पूरे पैर को गहरे लाल रंग से खूबसूरती से सजाया जाता है, जिससे पैर आकर्षक और पारंपरिक दिखते हैं। इस डिजाइन को विशेष रूप से बंगाल और ओडिशा की महिलाएं शादी, त्योहारों और धार्मिक अनुष्ठानों के दौरान अपनाती हैं। आप इसे सिंपल रख सकती हैं या फिर हल्के फूलों और ज्यामितीय पैटर्न के साथ एक्सपेरिमेंट कर सकती हैं। अगर आप इसे और भी ज्‍यादा सजाना चाहती हैं, तो आपको इसमें व्‍हाइट कलर का भी प्रयोग करना चाहिए। इसके लिए आप फैब्रिक कलर इस्तेमाल कर सकती हैं।
अगर आप सिंपल लेकिन स्टाइलिश लुक चाहती हैं, तो बॉर्डर आलता डिजाइन ट्राई कर सकती हैं। इसमें पैरों के किनारों को आलता से खूबसूरती से लगा सकती हैं। अगर आपको महीन और भरी-भरी डिजाइन चाहिए तो तीली भी आपको पतली ही लेनी चाहिए। अगर आप लाल रंग की स्‍याही वाले पेन से पहले ही पैर पर खूबसूरत डिजाइन बना जेती हैं, तो नोकीली तीली से आपको डिजाइन पर आलता घुमाने में आसानी होगी और ज्‍यादा वक्‍त भी नहीं लगेगा। यह डिजाइन उन महिलाओं के लिए परफेक्ट है, जो हल्का लेकिन ट्रेडिशनल लुक चाहती हैं। यह खासतौर पर बंगाल, बिहार और उड़ीसा की दुल्हनों और विवाहित महिलाओं द्वारा अधिक पसंद किया जाता है। इसे महाशिवरात्रि पर पारंपरिक साड़ी या लहंगे के साथ अपनाकर आप अपने लुक को और भी खूबसूरत बना सकती हैं।
अगर आप फूलों से प्रेरित डिजाइंस पसंद करती हैं, तो फ्लोरल आलता डिजाइन आपके लिए एकदम सही है। इसमें पैरों पर फूलों की आकृतियां बनाई जाती हैं, जो बेहद आकर्षक और स्त्रीत्व का प्रतीक होती हैं। इस डिजाइन में आप छोटे फूलों, बेलों या बड़े फ्लोरल पैटर्न को चुन सकती हैं। यह न केवल पैरों को खूबसूरत बनाता है, बल्कि इसे पहनने से एक पारंपरिक और फेस्टिव फील भी आता है। फ्लोरल डिजाइंस खासकर शादी, तीज, कजरी तीज और महाशिवरात्रि जैसे त्योहारों पर बेहद लोकप्रिय होती हैं।
अगर आप एक क्लासिक और पारंपरिक लुक चाहती हैं, तो गोल टिक्की आलता डिजाइन एक बेहतरीन विकल्प है। इसमें पैरों के बीचों-बीच आलता से एक गोलाकार आकृति यानी टिक्की बनाई जाती है और उसके चारों ओर छोटे-छोटे पैटर्न उकेरे जाते हैं। यह पैटर्न आप व्‍हाइट फैब्रिक कलर से भी बना सकती हैं। यह डिजाइन बेहद मिनिमलिस्ट और क्लासी लगता है। इसे बनाना आसान भी है और यह कम समय में भी लग जाता है।

गीता प्रेस ने 87 वर्षों बाद ‘श्री कृष्ण लीला दर्शन’ का किया पुनर्मुद्रण 

गोरखपुर । गोरखपुर के विश्व प्रसिद्ध गीता प्रेस ने 87 वर्षों के बाद प्रतिष्ठित पुस्तक ‘श्रीकृष्ण लीला दर्शन’ को पुनः प्रकाशित किया है, जो मूल रूप से 1938 में छपी थी। गीता प्रेस प्रबंधन ने मंगलवार को यह जानकारी दी। उसने बताया कि उच्च गुणवत्ता वाले ‘आर्ट पेपर’ पर मुद्रित नए संस्करण में पहली बार जीवंत रंग चित्रण शामिल है, जो भगवान कृष्ण की दिव्य लीलाओं को एक आकर्षक तरीके से जीवंत करता है। गीता प्रेस के अधिकारियों ने कहा कि कुल 3,000 प्रतियां छापी गई हैं, जिनमें से 50 नेपाल भेजी गई हैं। संत प्रभुदत्त ब्रह्मचारी द्वारा लिखित यह पुस्तक भगवान कृष्ण की बचपन का लीलाओं का विस्तार से वर्णन करती है। पहला संस्करण 1938 में छपा था और तब उसकी कीमत मात्र 2.50 रुपये थी। गीता प्रेस के प्रबंधक लालमणि तिवारी ने बताया कि इस बार, उच्च-गुणवत्ता वाली छवियों को शामिल करके इसकी अपील को बढ़ाया है, जिससे पाठकों के लिए कथन अधिक प्रभावशाली हो गया है। उन्होंने कहा कि 256 पृष्ठों वाली यह पुस्तक कृष्ण के जीवन के महत्वपूर्ण क्षणों, उनके जन्म से लेकर उनके चंचल बचपन के प्रसंगों को शब्दों और उत्कृष्ट कलाकृति दोनों के माध्यम से चित्रित करती है। तिवारी ने कहा कि पिछले संस्करणों के विपरीत, जो पूरी तरह से पाठ-आधारित थे, यह सचित्र संस्करण युवा पाठकों और भक्तों को समान रूप से जोड़ने के लिए डिज़ाइन किया गया है। उन्होंने कहा कि गीता प्रेस ने भारत भर में अपनी शाखाओं में उसकी प्रतियां वितरित की हैं और मांग के आधार पर अतिरिक्त प्रिंट पर विचार कर सकता है। तिवारी ने कहा, “यह पुस्तक हमेशा पाठकों द्वारा पसंद की गई है। मांग को देखते हुए, हमने इसे एक नए, अधिक आकर्षक प्रारूप में वापस लाने का फैसला किया। अगर दिलचस्पी बढ़ती रही तो हम और प्रतियां छापेंगे।”

महाशिवरात्रि विशेष : ये हैं बिहार के प्रसिद्ध शिव मंदिर

महाशिवरात्रि इस साल 26 फरवरी 2025 को मनाई जाएगी। इस पावन अवसर पर श्रद्धालु भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा-अर्चना कर आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। बिहार में कई प्रसिद्ध शिव मंदिर हैं, जहां इस दिन भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है। माना जाता है कि इन मंदिरों में सच्चे मन से की गई पूजा से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। आइए जानते हैं बिहार के उन प्रख्यात शिव मंदिरों के बारे में-
बाबा कोटेश्वर नाथ धाम, जहानाबाद-गया – बिहार के गया और जहानाबाद जिले की सीमा पर स्थित बाबा कोटेश्वर नाथ धाम एक प्राचीन शिव मंदिर है। यह मंदिर अपने ऐतिहासिक महत्व के कारण प्रसिद्ध है। मंदिर का गर्भगृह लाल पत्थर के टुकड़ों से बना है, जो इसकी खास पहचान है। इस मंदिर के निर्माण को लेकर एक रोचक कथा प्रचलित है।
उषा और अनिरुद्ध के विवाह से है सम्बन्ध – बाणासुर की बेटी उषा भगवान श्रीकृष्ण के पोते अनिरुद्ध से प्रेम करती थीं, लेकिन बाणासुर श्रीकृष्ण को अपना शत्रु मानता था। उषा ने अनिरुद्ध को पाने के लिए इस मंदिर की स्थापना करवाई। जब उषा ने भगवान शिव की उपासना की, तो शिव प्रकट हुए और उसे 1008 शिवलिंग स्थापित करने का आदेश दिया। उषा ने एक विशाल शिवलिंग की स्थापना की, जिसमें सभी 1008 शिवलिंग समाहित थे। बाद में उषा और अनिरुद्ध का विवाह हुआ, और तब से इस मंदिर की पूजा की परंपरा चली आ रही है। हर साल महाशिवरात्रि और सावन के महीने में यहां हजारों श्रद्धालु जलाभिषेक करने आते हैं।
अशोक धाम मंदिर, लखीसराय – लखीसराय स्थित अशोक धाम मंदिर बिहार का एक प्रमुख शिव मंदिर है, जिसे “बिहार का देवघर” भी कहा जाता है। इस शिवलिंग की खोज 1977 में एक चरवाहे अशोक ने की थी, जिसके नाम पर ही इस मंदिर का नाम रखा गया। दरअसल, चरवाहा अशोक गाय चराने के दौरान गिल्ली-डंडा खेल रहा था। खेल के दौरान गिल्ली की तलाश में उसने मिट्टी के नीचे एक विशाल शिवलिंग पाया। बाद में स्थानीय लोगों की मदद से उस स्थान पर अशोक धाम मंदिर का निर्माण कराया गया। हर साल महाशिवरात्रि के दिन यहां भव्य शिवरात्रि महोत्सव का आयोजन किया जाता है। श्रद्धालु जलाभिषेक, रुद्राभिषेक और भजन-कीर्तन के माध्यम से भगवान शिव की पूजा-अर्चना करते हैं।
बाबा गरीबनाथ मंदिर, मुजफ्फरपुर – बाबा गरीबनाथ मंदिर बिहार के मुजफ्फरपुर जिले में स्थित एक ऐतिहासिक शिव मंदिर है। यह मंदिर सौ वर्षों से भी अधिक पुराना है। माना जाता है कि पहले इस स्थान पर एक विशाल बरगद का पेड़ था। जब इस पेड़ को काटने का प्रयास किया गया, तो पेड़ के नीचे एक अद्भुत शिवलिंग प्रकट हुआ। तभी से इस स्थान पर भगवान गरीबनाथ शिव की पूजा की जाने लगी। इस मंदिर में मनोकामना पूरी होने की कई कहानियां प्रचलित हैं। एक कथा के अनुसार, एक गरीब भक्त की बेटी की शादी में धन की कमी थी। उसने बाबा गरीबनाथ से प्रार्थना की, और अगले ही दिन उसके घर में चमत्कारिक रूप से विवाह का सारा सामान आग गया। तभी से इस मंदिर में आने वाले श्रद्धालु मनोकामना पूर्ति के लिए विशेष पूजा करते हैं।

 

 

 

 

 

 

 

महाशिवरात्रि विशेष : शिव ही शक्ति हैं, शक्ति ही शिव हैं

पुराणों में उल्लेख है कि ब्रह्मा जी के द्वारा बनाई गई सृष्टि में आदि और प्रकृति ने मिलकर धरती पर नये प्राणियों को जन्म देकर धरती का विकास किया। पौराणिक कथाओं के अनुसार, आदि को शिव जी और प्रकृति को शक्ति माना जाता है। इसका अर्थ हुआ कि शिव जी और शक्ति ने ही धरती पर प्राणियों के लिए जीवन संभव बनाया। इसलिए आज भी शिव जी और शक्ति को एक साथ आदिशक्ति के रूप में पूजा जाता है। शास्त्रों में बताया गया है कि शिव ही शक्ति है, शक्ति ही शिव है।
शिव ने ही सृष्टि के हित के लिए शक्ति का रूप बनाया था ताकि धरती पर नये प्राणियों का जीवन शुरू हो सके। इसलिए शिव और शक्ति एक-दूसरे के बिना अधूरे है। आज इस लेख के माध्यम से हम आपको बताएंगे कि आखिर शिव, शक्ति के बिना अधूरे क्यों है।सृष्टि के निर्माण के बाद ब्रह्मा जी ने देखा कि धरती पर किसी भी तरह का कोई विकास नहीं हो रहा। कोई भी नया जीव जन्म नहीं ले रहा है। इसलिए ब्रह्मा जी विष्णु जी से सहायता मांगी। विष्णु जी ने ब्रह्मा जी को शिव जी की तपस्या का सुझाव दिया। ब्रह्मा जी शिव जी की तपस्या की, तब शिव जी ने अपने आधे शरीर से एक रूप बनाया जिसे शक्ति नाम दिया गया।
शिव-शक्ति का यह रूप अर्धनारीश्वर कहलाया। ब्रह्मा जी ने शिव जी से पूछा कि आपका यह दूसरा रूप कौन है, तब शिव जी ने अपने दोनों रूपों को अलग-अलग किया और एक पुरुष और एक नारी की आकृति बनाई। शिव के पुरुष रूप और नारी रूप शक्ति ने मिलकर धरती पर नए जीवों को बनाया जिससे धरती पर जीवों की संख्या बढ़ने लगी और धरती का विकास होने लगा। शिव जी का शक्तिरूप, मां पार्वती के रूप का आधार है। अगर शिव जी ने शक्ति नही बनाई होती तो मां पार्वती भी कभी अस्तित्व में नहीं आती।
शिव और शक्ति एक-दूसरे के पूरक माने जाते हैं, क्योंकि शिव और शक्ति एक ही है।शास्त्रों में बताया गया है कि शिव जी और शक्ति का अर्धनारीश्वर रूप स्त्री और पुरुष की समानता को बताता है। शिव जी और शक्ति का यह रूप आज के युग में बहुत अधिक महत्व रखता है। शिव जी के अर्धनारीश्वर रूप से यह पता चलता है कि स्त्री और पुरुष को हमेशा अपने जीवन में संतुलन बनाए रखना चाहिए ताकि उनका सम्पूर्ण विकास हो सके। पुरुषों को यह ध्यान रखना चाहिए की उनके हर तरह के कार्यों में नारी का भी पूर्ण योगदान होता है। इसलिए नारी का सम्मान करना चाहिए। शिव- शक्ति मिलकर यह सीख देते है कि स्त्री और पुरुष एक- दूसरे के लिए समान रूप से समर्पित रहना चाहिए ताकि वो अपने जीवन में आने वाली सभी समस्याओं को मिलकर समझदारी से खत्म कर सकें।

एआई का अपना फाउंडेशनल मॉडल विकसित करेगा भारत: अश्विनी वैष्णव

नयी दिल्ली । भारत आने वाले महीनों में एआई का अपना फाउंडेशनल यानी मूलभूत मॉडल तैयार करेगा। इस संबंध में गुरुवार को नई दिल्ली में मीडिया को जानकारी देते हुए इलेक्ट्रॉनिक्स और आईटी मंत्री अश्विनी वैष्णव ने कहा कि भारत का फाउंडेशनल मॉडल दुनिया के सर्वश्रेष्ठ मॉडल से प्रतिस्पर्धा करने में सक्षम होगा। उन्होंने कहा कि भारत का अपना एआई मॉडल विकसित करने के लिए प्रस्ताव आमंत्रित करते हुए एक रूपरेखा तैयार की गई है। केंद्रीय मंत्री ने एक एआई सुरक्षा संस्थान स्थापित किए जाने की भी घोषणा की। उन्होंने इंडिया एआई मिशन की प्रगति पर रोशनी डाली, जो पहले से ही अपने शुरुआती ग्राफिक्स प्रोसेसिंग यूनिट जीपीयू लक्ष्यों को पार कर चुका है।
केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने कहा, 18 हजार 693 जीपीयू के साथ एक सामान्य कंप्यूटिंग सुविधा शुरू की गई है और आने वाले दिनों में स्टार्टअप, शोधकर्ताओं और डेवलपर्स के लिए उपलब्ध होगी। उन्होंने कहा, भारत में अब 15 हजार हाई-एंड जीपीयू उपलब्ध हैं।
इसे जल्द ही भारतीय सर्वर पर किया जाएगा होस्ट -डीपसीक को लेकर गोपनीयता संबंधी चिंताओं पर एक सवाल पर, केंद्रीय मंत्री वैष्णव ने बताया कि इसे जल्द ही भारतीय सर्वर पर होस्ट किया जाएगा। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सोच है कि आधुनिक तकनीक सभी को उपलब्ध होनी चाहिए।

रोज 600 किमी हवाई जहाज से यात्रा कर नौकरी पर जाती है यह मां

नयी दिल्ली । यह कहानी मलेशिया के पेनांग में रहने वाली एक भारतीय मूल की मां रचेल कौर की है। वह रोज पेनांग से 300 किलोमीटर कुआलालंपुर जाती और वापस आती हैं। इतना सफर करने की वजह से लोग उन्हें “सुपर कम्यूटर” कह रहे हैं। यह महिला हर रोज़ सुबह 4 बजे उठकर नौकरी पर जाने की तैयारी करती है। वह हफ्ते में पांच दिन ऑफिस जाती है और दो दिन बच्चों के साथ क्वालिटी टाइम बिताती हैं। लेकिन खास बात यह है कि वह सड़क से नहीं, बल्कि हवाई जहाज़ से ऑफिस जाती है।
एक रिपोर्ट के अनुसार, रचेल कौर एयर एशिया के फाइनेंस डिपार्टमेंट में सहायक प्रबंधक है। एक इंटरव्यू में उन्होंने बताया कि कैसे वह रोज़ाना आने-जाने का सफर फ्लाइट से करती हैं। रचेल का कहना है कि यह तरीका न सिर्फ़ सस्ता है, बल्कि इससे उन्हें अपने बच्चों के साथ ज़्यादा समय बिताने का भी मौका मिलता है। रचेल ने सीएनए इनसाइडर को बताया, “मेरे दो बच्चे हैं, दोनों बड़े हो रहे हैं। मेरा बड़ा बेटा, 12 साल का है। और, बेटी 11 साल की। जैसे-जैसे वे बड़े हो रहे हैं, मुझे लगता है कि एक मां का उनके साथ ज़्यादा रहना ज़रूरी है। इस व्यवस्था से मैं हर रोज़ घर जा सकती हूं और रात में उनके साथ वक्त बिता सकती हूं।” पहले रचेल कुआलालंपुर में अपने दफ्तर के पास ही किराए के मकान में रहती थीं। इस वजह से वह हफ्ते में सिर्फ़ एक बार पेनांग जा जाती थीं। यह रूटीन उनके काम और निजी जीवन के बीच संतुलन बिगाड़ रहा था। बच्चों को कम समय दे पाती थीं। इसलिए, साल 2024 की शुरुआत में, उन्होंने रोज़ाना हवाई जहाज़ से यात्रा करने का फ़ैसला किया। उनका कहना है कि इससे उन्हें अपने निजी और पेशेवर जीवन के बीच बेहतर तालमेल बिठाने में मदद मिली है।आप सोच रहे होंगे कि दफ्तर के पास किराये के मकान में रहने के बजाय रोज फ्लाइट से यात्रा तो महंगा ऑप्शन होगा। लेकिन आपको यह जान कर आश्चर्य होगा कि यह सस्ता ऑप्शन है। रिपोर्ट के मुताबिक, ऑफिस के पास किराए का मकान और वहां भोजन का उनका रोज़ का खर्च, हवाई जहाज की यात्रा में होने वाले खर्च से कम है। जब वह किराये पर रहती थीं तो हर महीने $474 (लगभग 42,000 रुपये) खर्च करती थीं। लेकिन, अब उनका खर्च कम होकर $316 (लगभग 28,000 रुपये) प्रति माह हो गया
द्वारा शेयर किए गए एक वीडियो में, कौर ने बताया कि वह हर सुबह 4:00 बजे उठकर काम पर जाने के लिए तैयार होती हैं। वह 5:55 AM तक एयरपोर्ट पहुंच जाती हैं और अपनी फ्लाइट में बैठ जाती हैं। सभी ज़रूरी प्रक्रियाओं के बाद, वह “सुबह 7:45 AM तक” अपने ऑफिस पहुंच जाती हैं। कुआलालंपुर में उनका दफ्तर एयरपोर्ट के पास ही है। तभी तो लैंडिंग के बाद वह पैदल ही पांच-सात मिनट में ऑफिस पहुंच जाती हैं। वहां पूरा दिन काम करने के बाद, वह रात 8:00 बजे तक वापस पेनांग स्थित अपने घर पहुंच जाती हैं। रोज 600 किलोमीटर लंबे सफर से असुविधा नहीं होती? इस सवाल पर उन्होंने बताया, “लोगों से घिरे रहने से… काम करना आसान होता है। आप जानते हैं… जब आप लोगों से आमने-सामने बात कर पाते हैं।” उन्होंने अपने नियोक्ता, एयर एशिया की भी प्रशंसा की, जो इस व्यवस्था के लिए तैयार हैं, जिससे उन्हें काम और जीवन में संतुलन बनाए रखने में मदद मिलती है। ‘जब मैं यहाँ होती हूं, तो मैं अपना 100 प्रतिशत ध्यान काम पर लगाती हूँ, और जब मैं घर पर होती हूं, तो मैं अपना 100 प्रतिशत ध्यान अपने परिवार पर दे सकती हूं।’ कौर ने बताया, ‘हर रोज़ सुबह 4:00 बजे उठना थका देने वाला होता है। लेकिन जिस पल मैं घर पहुंचती हूं और अपने बच्चों को देखती हूं, सारी थकान गायब हो जाती है। यह बस अद्भुत है।’ वह “भविष्य में” भी इसी तरह काम पर जाना जारी रखने की योजना बना रही हैं।

कूड़े में फेंकी जानी थी हैरी पॉटर की दुर्लभ किताब, नीलामी में मिले 22 लाख 78 हजार रुपये

लंदन। ब्रिटेन में हैरी पॉटर की एक दुर्लभ किताब 22 लाख रुपये से अधिक कीमत पर बिकी है। इस किताब को कुछ दिनों में कूड़े में फेंक दिया जाना था। हालांकि, उसके पहले पता चला कि यह किताब हैरी पॉटर एंड द फिलॉसफर्स स्टोन का एक दुर्लभ पहला संस्करण है। ऐसे में इसे नीलाम करने का फैसला किया गया। जब इसकी नीलामी की गई तो यह किताब 21,000 पाउंड से अधिक में बिकी। भारतीय मुद्रा में इसकी कीमत 2278737 से अधिक है। बीबीसी की रिपोर्ट के अनुसार, शनिवार को पैग्नटन में एनएलबी नीलामी में इस वस्तु की नीलामी की गई, जिसमें बोली लगाने वाले कमरे में, फोन पर और ऑनलाइन मौजूद थे। नीलामी घर चलाने वाले डैनियल पीयर्स ने इसे ब्रिक्सहम के एक मृत व्यक्ति के सामानों के बीच पाया, जिसे कूड़े में फेंकने के लिए रखा गया था। उन्होंने कहा कि यह कीमत “पहले संस्करण की हार्डबैक के लिए एक बेहतरीन परिणाम है।”यह पुस्तक 500 प्रतियों के पहले प्रिंट रन से थी और सार्वजनिक पुस्तकालयों में वितरित की गई 300 कॉपियों में से एक थी। कॉपी के पीछे ‘फिलॉसफर्स’ की गलत वर्तनी उन चीजों में से एक थी, जिससे श्री पीयर्स को यह पहचानने में मदद मिली कि यह पहला संस्करण है। उन्होंने कहा, “इसमें अंत में ओ गायब है।” नीलामी घर ने यूएसए के पश्चिमी तट पर इच्छुक पार्टियों के लिए समय के अंतर को समायोजित करने के लिए लगभग 16:00 GMT के लिए लॉट निर्धारित किया।