कोलकाता । अंतरराष्ट्रीय क्षत्रिय वीरांगना महासभा के वाराणसी में आयोजित भव्य समारोह में विख्यात गायिका प्रतिभा सिंह को सरस्वती स्वर सम्मान प्रदान किया गया। लंका स्थित सर्वेश्वरी होटल में देश के 22 राज्यों, अमेरिका और नेपाल की दो सौ से अधिक वीरांगनाओं ने भाग लिया। समारोह में उत्तर प्रदेश महिला कल्याण निगम की अध्यक्ष कमलावती सिंह, विशिष्ट अतिथि नेपाल राष्ट्रीय मधेसी आयोग की सदस्य आभासेतु सिंह, विशिष्ट अतिथि चम्बल की रहने वाली सीमा परिहार व संगठन के संस्थापक सह मुख्य संरक्षक डॉ.एमएस सिंह मानस विशेष तौर पर उपस्थित थे। समारोह में अमेरिका से पधारीं महाराणा एसोसिएशन ऑफ अमेरिका की संस्थापक अध्यक्ष व समाजसेविका रम्भा सिंह को अंतरराष्ट्रीय क्षत्रिय वीरांगना महासभा का अध्यक्ष निर्वाचित किया गया। सतना की प्रो.रश्मि सिंह बैस को राष्ट्रीय महासचिव, आस्ट्रेलिया के पर्थ की रूपाबा जडेजा को अंतरराष्ट्रीय उपाध्यक्ष, नेपाल की आभा सिंह को अंतरराष्ट्रीय संरक्षक, पश्चिम बंगाल की प्रदेश अध्यक्ष प्रतिभा सिंह, पटना की प्रो.प्रीति कश्यप, मुंबई की सुनीता सिंह, दिल्ली की डॉ. संजू सिंह, मध्य प्रदेश की अध्यक्ष वंदना सिंह को राष्ट्रीय उपाध्यक्ष चुना गया।
काजल की मेड़’ का लोकार्पण एवं परिचर्चा
हिंदी को लेकर गैर हिंदीभाषियों के विचार
हिंदी भारतीयों के मन में बसी भाषा है, हिंदी की वजह से ही गैरहिंदी भाषी वक्ताओं ने हिंदी जगत में अपनी पहचान बनाई और उन्हें राष्ट्रव्यापी लोकप्रियता मिली। हिंदी को लेकर गैरहिंदी भाषी नेताओँ, मनीषियों और विद्वानों ने समय समय पर अपने विचार व्यक्त कर हिंदी के महत्त्व को प्रमाणित किया है। प्रस्तुत है ऐसे ही विद्वानों द्वारा व्यक्त विचारों का संकलन।
गुजराती
स्वामी दयानंद सरस्वतीः-हिंदी के द्वारा ही सारे भारत को एक सूत्र में पिरोया जा सकता है।
मोहनदास कर्मचंद गांधीः-अंग्रेजी में स्वतंत्र भारत की गाड़ी चले, इससे बड़ा दुर्भाग्य भारत का और नहीं हो सकता।
-हिंदी अब सारे देश की भाषा हो गयी है। उस भाषा का अध्ययन कपने और उसकी उन्नति करने में गर्व का अनुभव होना चाहिए।
-मैं अपनी बात अपनी भाषा में कहूंगा, जिसको गरज होगी वह सुनेगा। आप इस प्रतिज्ञा के साथ काम करेंगे, तो हिंदी का दर्जा बढ़ेगा।
-राष्ट्रभाषा की जगह एक हिंदी ही ले सकती है, कोई दूसरी भाषा नहीं।
-अगर स्वराज्य अंग्रेजी बोलने वाले भारतीयों का और उन्हीं के लिए होने वाला हो, तो नि:संदेह अंग्रेजी राष्ट्रभाषा होगी। लेकिन अगर स्वराज्य करोड़ों भखों मरने वालों का, करोड़ों निरक्षरों का, दलितों और अन्य लोगों हो और इन सबके लिये हो, तो हिंदी ही एकमात्र राष्ट्रभाषा हो सकती है।
-विदेशी भाषा के माध्यम से शिक्षा की हिमायत करने वाले जनता के दुशमन हैं। राष्ट्रभाषा के बिना राष्ट्र गूंगा है। राष्ट्रीय व्यवहार में हिदी को काम में लाना देश की एकता और उन्नति के लिये आवश्यक है।
-यदि हिंदी बोलने में भूलें हो, तो भी उनकी कतई चिंता नहीं करनी चाहिए। भूलें करते-करते भूलों को सुधारने का अभ्यास हो जायगा, पर भूलों की चिंता न करने की सलाह आलसी लोगों के लिए नहीं, वरन मुझ जैसे भाषा सीखने के इच्छुक अव्यवसायी सेवकों के लिए है।
-अपनी संस्कृति की विरासत हमें संस्कृत, गुजराती इत्यादि देशी भाषाओं के द्वारा ही मिल सकती है। अंग्रेजी से अपनाने से आत्मनाश होगा, सांस्कृतिक आत्महत्या होगी।
-विदेशी भाषा के माध्यम से शिक्षा की हिमायत करने वाले देश के दुश्मन हैं।
-भारतीय भाषाओं में प्रतिष्ठापन में एक-एक दिन का विलंब देश के लिए सांस्कृतिक हानि है।
-भाषाओं के क्षेत्र में हमारी जो स्थिति है, उसे मैंने समझा है और उसके आधार पर मैं कहता हूं कि यदि हमें अस्पर्श्यता निवारण जैसे सुधार के लिए काम करना है तो हिंदी का ज्ञान सर्वत्र आवश्यक है, क्योंकि वह एक ऐसी भाषा है जिसे हमारे देश के तीस करोड़ लोगों में से २० करोड़ लोग बोलते हैं और चूंकि हम सब अपने को भारतीय कहते हैं इसलिये हमें यह कहने का अधिकार है कि ३० करोड़ लोग २० करोड़ लोगों की भाषा सीखने का यत्न करें।
-हिंदी भाषा के शब्दों को अपना लेने में शर्म की कोई बात नहीं है। शर्म तो तब है, जब हम अपनी भाषा के प्रचलित शब्दों को न जानने के कारण दूसरी भाषा के शब्दों का प्रयोग करें। जैसे घर को ‘हॉउस’ माता को ‘मदर’ पिता को ‘फादर’ पति को ‘हसबैंड’ और पत्नि को ‘वाइफ’ कहें।
सरदार वल्लभभाई पटेलः-राष्ट्रभाषा हिंदी किसी व्यक्ति या प्रांत की सम्पत्ति नहीं है। उस पर सारे देश का अधिकार है।
भाई योगेन्द्र जीतः-हिंदी में भारत की आत्मा है। हिंदी की वाणी में भारत बोलता है, भारतीय संस्कृति बोलती है।
कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशीः-हिंदी ही हमारे राष्ट्रीय एकीकरण का सबसे शक्तिशाली और प्रधान माध्यम है।
तमिल
वेंकट रम्मैया-सबको हिंदी सीखनी चाहिए। इसके द्वारा भाव-विनिमय से सारे भारत को सुविधा होगी।
-हिंदी का श्रंगार, राष्ट्र के सभी भागों के लोगों ने किया है, वह हमारी राष्ट्रभाषा है।
-यदि भारतीय लोग कला, संस्कृति और राजनीति में एक रहना चाहते हैं तो इसका माध्यम हिंदी ही हो सकती है।
के. कामराज -मैं हिंदी में भाषण देना अपनी भाषा का गौरव बढ़ाना मानता हूं।
अनंत शयनम अयंगार -अंग्रेजी के समर्थकों ने देश के राष्ट्रीय जीवन में एक अभेद्य दीवार खड़ी कर दी है और वे अन्य भाषाओं की चाहें वह तमिल, तेलुगु अथवा हिंदी, उसमें घुसने नहीं दे रहे।
विश्वनाथन् सत्यनारायण -हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने में प्रांतीय भाषाओं की हानि नहीं, लाभ है।
-एक राष्ट्रभाषा से हमारी संस्कृति एक होगी और हमारा राष्ट्र दढ़ होगा।
-किसी देश में विदेशी भाषा को राजभाषा के रूप में काम में नहीं लिया जाता है। अंग्रेजी को सम्मान तथा राजभाषा बनाना थोथा सपना है।
एन. ई. मुत्तूस्वामी–राष्ट्रीय एकता के लिए देश की सर्वमान्य भाषा के रूप में हिंदी का पठन अनिवाय है।
सुब्रह्मण्यम भारती–तमिलनाडु में हिंदी विरोध कुछ लोगों का फैशन है।
के. एन. सुब्रह्मण्यम- -राष्ट्र की एकता को यदि बनाकर रखा जा सकता है, तो उसका माध्यम हिंदी हो सकती है।
डॉ. जी. रामचन्द्रन: -भाषा के क्षेत्र में घृणा का नहीं, प्रेम और सौहार्द का सथान होना चाहिए।
श्रीमती कमला रत्नम: -यह यथार्थता है कि हिंदी के अलावा और कोई भाषा भारत की सम्पर्क भाषा नहीं हो सकेगी। यह यथार्थता इस मिट्टी में समाई हुई है। इसमें संदेह नहीं। कि यह यथार्थता अंकुरित होगी और एक बड़ा वृक्ष बनकर पल्लवित-पुष्पित होगा…यदि हिंदी को हमें जोड़ने वाली भाषा बनाना है, तो सरकारों को बहुत बड़ा दायित्व निभाना होगा…विविध भाषा-भाषी भारतीयों का आपसी सम्पर्क हिंदी के माध्यम से ही हो सकता है। हिंदी समझने वालों की संख्या बहुत अधिक है।
श्रीमती कमला रत्नम: -हमें मालूम हो गया है कि राष्ट्रीय धारा में मिलकर चलने के लिये हिंदी सीखे बिना काम नहीं चलेगा।
मराठी
विनोबा भावे: -मैं दुनिया की सब भाषाओं की इज्जत करता हूं, मेरे देश में हिंदी की इज्जत न हो, यह मैं नहीं सह सकता। देवनागरी भारत के लिए वरदान है।
-यदि मैंने हिंदी का सहारा न लिया होता तो कश्मीर से कन्याकुमारी तक और असम से केरल तक के गांव-गांव में भूदान का क्रांति संदेश जनता तक कदापि न पहुंच पाता। इसलिए मैं यह कहता हूं कि हिंदी भाषा का मुझ पर बड़ा उपकार है, इसने मेरी बहुत बड़ी सेवा की है।
-केवल अंग्रेजी सीखने में जितना श्रम करना पड़ता है, उतने श्रम में हिंदुस्तान की सभी भाषाएं सीखी जा सकती है।
-हर एक भारतीय अपनी दो आंखों से देखेगा-एक होगी मातृभाषा, दूसरी होगी राष्ट्रभाषा हिंदी।
डॉ़. अम्बेडकर:-हम सभी भारतवासियों का यह अनिवार्य कर्त्तव्य है कि हम हिंदी को अपनी भाषा के रूप में अपनाएं।
डॉ़ जयंत विष्णु नार्लीकर (वैज्ञानिक): -थोड़े से अभ्यास से विज्ञान पर एक सीमा तक हिंदी में अच्छी तरह लिखा और बोला जा सकता है, क्योंकि जनता से सम्पर्क स्थापित करने के लिये जनभाषा का सहारा बहुत जरूरी है।
लोकमान्य तिलक: –अगर भारत की सोई हुई वैज्ञानिक प्रतिभाओं को जगाना है, तो विज्ञान की शिक्षा का माध्यम हिंदी को बनाना होगा। इसके बिना भारतीय जनता और वैज्ञानिक विचारों के बीच विद्यमान दूरी को खत्म नहीं किया
जा सकता और ऐसी दशा में जनता से सम्पर्क स्थापित करने के लिए जनभाषा का सहारा लेना बहुत जरूरी है।
मधु दण्डवते:–राष्ट्र के एकीकरण के लिए सर्वमान्य भाषा से अधिक बलशाली कोई तत्व नहीं है। मेरे विचार में हिंदी ऐसी ही भाषा है। सरलता और शीघ्रता से सीखी जाने योग्य भाषाओं में हिंदी सर्वोपरि है।.
.जब एक प्रांत के लोग दूसरे प्रांत के लोगों से मिले तो परस्पर वार्तालाप हिंदी में ही होना चाहिए।.
.यदि भारत में सभी भाषाओं के लिए एक देवनागरी लिपि हो, तो भारतीय जनता की एकता और ज्ञान का अंतर प्रांतीय आदान-प्रदान सुगम हो जायगा।
काका कालेलकर:
-भाषा जनजीवन की चेतना का स्पदंन होती है। इसके लिए समुचित विचारों का भरपूर प्रचार आवश्यक है। हिंदी इसका एक उत्तम माध्यम सिद्ध हो सकती है।
विष्णु वामन शिरवाड़कर ‘कुसुमाग्रज’:-हिंदी एक संगठित करने वाली शक्ति है। हिंदी का प्रचार कार्य एक वाग्यज्ञ है।
श्री गोपाल राव एकबोटे:-स्वभाषा और राष्ट्रभाषा के द्वारा ही समाज में परिवर्तन और सामाजिक क्रांति संभव है।
डॉ. पाण्डुरंग राव: –भाषा सक्षम होती जाती है, उसे उपयोग में लाने से। संसार में एक भी उदाहरण ऐसा नहीं है, जहां भाषा को पहले सब कामें के लिए पूर्णत: तैयार कर लिया गया हो और उसके बाद उसका शासन कार्य में उपयोग किया गया हो।
डॉ. रंगराव दिवाकर: -आजकल सरल हिंदी के संबंध में काफी चर्चा हो रही है और इस संबंध में जनसाधारण में और शिक्षित समाज में भी काफी मतभेद है। उत्तर में जिस भाषा को सरल या आसान समझा जाता है, वह दक्षिण में पढ़े-लिखे आदमी के लिए दुर्बोध बन जाती है। संस्कृत निष्ठ भाषा समझने में किसी को भी सुविधा होती है, तो किसी को उर्दू के रोजमर्रे की ताजगी मेॉ अधिक आनंद आता है। प्रत्येक व्यक्ति का अपना पर्यावरण होता है। भाषा भी पर्यावरण का एक अंग है। अपनी मातृभाषा के जिस पर्यावरण में एक व्यक्ति
पलता है, उसी को लेकर वह दूसरी भाषा के क्षेत्र में भी प्रवेश करता है।
रमेश भावसार ‘ऋषि’:-मैं राष्ट्र प्रेमी हूं, इसलिये सब राष्ट्रीय चीजों का, सब राष्ट्रवासियों का प्रेमी हूं तथा राष्ट्रभाषा का भी। राष्ट्रभाषा का प्रेम, राष्ट्र के अंतर्गत भिन्न-भिन्न लोगों का प्रेम और राष्ट्रभाषा का प्रेम, इसमें कुछ फर्क नहीं देखता हूं। जो राष्ट्रप्रेमी हैं, उसे राष्ट्रभाषा प्रेमी होना ही चाहिए। नहीं तो कुछ हद तक राष्ट्रप्रेम अधूरा ही रहेगा। -हिंदी बोलो, हिंदी लिखो, हिंदी पढ़ो-पढ़ाओ रे,राष्ट्रभाषा हिंदी के गौरव, गीत सदा ही गाओ रे।
कन्नड़
वी. वी. गिरी,पूर्व राष्ट्रपति: -हिंदी के बिना भारत की राष्ट्रीयता की बात करना व्यर्थ है।
के. हनुमंथैया –मैसूर, केरल तथा आंध्रप्रदेश ने हिंदी को संपर्क भाषा स्वीकार कर लिया है।
एस. निजलिंगप्पा :-इसमें संदेह नहीं कि राष्ट्रीय एकता में हिंदी का महत्तवपूर्ण स्थान है।
डॉ. सरगु कृष्णमूर्ति:-भारत विभिन्न धर्मों एवं भाषाओ का अखाड़ा है। किसी भी समय यहां मजहब, भाषा या किसी अन्य भेद के कारण ज्वालाएं फूट सकती है। इन सबको यदि हम राष्ट्रीय भावात्मक एकता के सूत्र से बांधकर भारत रूपी माला में नहीं गूथेंगे तो ये धर्म, ये भाषाएं और ये लोग बिखर-बिखर जायेंगे। इन सबको हम आज किसी एक मजहब के नीचे नहीं ला सकते, किसी एक दल का नहीं बना सकते। इन सबको अस्सी करोड़ मणियों की माला के रूप में हम सम्पर्क भाषा हिंदी के सूत्र के द्वारा ही स्थापित कर सकते हैं, वरना तलुगुभाषी, कन्नड़ भाषियों से संपर्क स्थापित नहीं कर सकता। बंगाली-पंजाबियों से हटकर रहेगा यह राष्ट्र , राष्ट्र नहीं रह कर प्रांतों की एकता विहीन एक भूखण्ड मात्र रहेगा। राष्ट्र की आत्मा व्यथित, राष्ट्र मन दु:खित एवं राष्ट्र की एकता लुप्त प्राय: हो जायगी।
प्रोफेसर चन्द्रहासन:- –उत्तर और दक्षिण भारत का सेतु हिंदी ही हो सकती है।
बांग्ला:
सुभाषचन्द्र बोस: -देश के सबसे बड़े भू-भाग में बोली जाने वाली हिंदी ही राष्ट्रभाषा की अधिकारिणी है।
-प्रांतीय ईर्ष्या, द्वेष दूर करने में जितनी सहायता हिंदी प्रचार से मिलेगी, उतनी किसी दूसरी चीज से नहीं।
रवीन्द्रनाथ ठाकुर: –आधुनिक भारत की संस्कृति एक विकसित शतदल कमल के समान है, जिसका एक-एक दल प्रांतीय भाषा और उसकी साहित्य-संस्कृति है। किसी एक को मिटा देने से उस कमल की शोभा ही नष्ट हो जायगी। हम चाहते हैं कि भारत की सब प्रांतीय बोलियां जिनमें सुंदर साहित्य सृष्टि हुई है, अपने-अपने घर (प्रांत में) रानी बनकर रहे, प्रांत के जन-गण को हार्दिक चिंतन की प्रकाश भूमि-स्वरूप कविता की भाषा होकर रहे और आधुनिक भाषाओं के हार की मध्यमणि ‘हिंदी’भारत-भारती होकर विराजती रहे।
-उस भाषा को राष्ट्रभाषा के रूप में स्वीकार किया जाना चाहिए जो देश के सबसे बड़े हिस्से में बोली जाती हो, अर्थात् हिंदी।
-राष्ट्रीय कार्य के लिए हिंदी आवश्यक है। इस भाषा से देश की उन्नति होगी।
-भारतीय भाषाएं नदियां हैं और हिंदी महानदी।
क्षितिज मोहन सेन:-हिंदी विश्व की सरलतम भाषाओं में से एक है।
-हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने के लिएअनेक अनुष्ठान हुए । उनको मैं राजसूर्य यज्ञ मानता हूं।
महर्षि अरविंद घोष:-भारत के विभिन्न प्रदेशों के बीच हिंदी प्रचार के द्वारा एकता स्थापित करने वाले लोग सच्चे भारत बंधु हैं।
-सब लोग अपनी-अपनी मातृभाषा की रक्षा करते हुए हिंदी को साधारण भाषा के रूप में पढ़ें।
बंकिमचन्द्र चट्टोपाध्याय (चटर्जी): -हिंदी भाषा के द्वारा भारत के अधिकांश स्थानों का मंगल साधन करें।
-अंग्रेजी के विषय में लोगों की जो कुछ भी भावना हो, पर मैं दावे के साथ कह सकता हीं कि हिंदी के बिना हमारा कार्य नहीं चल सकता। हिंदी की पुस्तकें लिखकर और हिंदी बोलकर भारत के अधिकांश भाग को निश्चय ही लाभ हो सकता है। यहि हम देश में बंगला और अंग्रेजी जानने वालों की संख्या का पता चलाएं, तो हमें साफ प्रकट हो जायेगा कि वह कितनी न्यून है ? जो सज्जन हिंदी भाषा द्वारा भारत में एकता पैदा करना चाहते हैं, वे निश्चय ही भारत बंधु हैं।
-विमल मित्र:-हिंदी समस्त देश को एक सूत्र में बांधने वाली भाषा है, इसलिए इसको राष्ट्रभाषा के पद पर प्रतिष्ठित होना उचित है।
डॉ. सुनीतिकुमार चटर्जी: -मैं हिंदी प्रेमी हूं, सांस्कृतिक जीवन में हिंदी के महत्त्व को भली-भांति समझता हूं। भारती एकता का मुख्य साधन हिंदी ही बन चुकी है। इसलिए हिंदी का विरोध करना भारती राष्ट्र का विरोध करना है।
न्यायमूर्ति शारदाचरण मित्र:अब भारत में एक लिपि के व्यवहारएवं उसके आसेतु हिमालय प्रसार का समय आ गया है और वह लिपि देवनागरी के अतिरिक्त दूसरी कोई नहीं हो सकती।
तेलुगु
पी. वी. नरसिंहराव:-हिंदी को हम सब एक भाषा के रूप में नहीं, अपितु एक सेतु के रूप में देखते हैं।
डॉ. मोटूरी सत्यनारायण:-किसी प्रांत विशेष की भाषा होने से हिंदी राष्ट्रभाषा नहीं मान ली गयी, बल्कि इसलिए मानी गई है कि वह अपनी सरलता, काव्यमयता और क्षमता के कारण सारे देश की भाषा हो सकती है।
-हिंदी के विकास में दो क्षेत्रों से मदद प्राप्त होना अनिवार्य है-हिंदी क्षेत्र तथा अहिंदी क्षेत्र। राष्ट्रभाषा के आंदोलन में सबसे बड़ी और विकट समस्या क्षेत्रीय हिंदी तथा क्षेत्रीय भाषाओं का समन्वय है। पारस्परिक सहानुभूमि सहानुभूति और सहनशीलता के बिना यह समन्वय प्राप्त नहीं हो सकता। अत: हिंदी तथा प्रादेशिक भाषाओं की वृद्धि तथा समृद्धि एक साथ होने में ही राष्ट्रीय हिंदी का विकास निहित है।
-भाषा समन्वय राष्ट्रीय एकता के लिए जितना आवश्यक है, उतना लिपि समन्वय भी, इसमें सबसे अधिक सहायक वर्तमान नागरी लिपि की लेखन प्रक्रिया है जिसे सुलभ बनाने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर काम होना चाहिए, जबकि हिंदी संघ राज्य की प्रशासनिक भाषा और नागरी संघ राज्य की लिपि मान ली गयी है।
नीलम संजीव रेड्डी:जो हिंदी अपनायेगा वही आगे चलकर अखिल भारतीय सेवा में जा सकेगा और देश का नेतृत्व भी वहीं कर सकेगा, जो हिंदी जानता होगा।
डॉ. वी.के.आर.वी.राव: -यदि सभी भारतीय भाषाओं के लिये नागरी लिपि का उपयोग हो, तो देश की विभिन्न भाषाएं सीखने में आसानी हो।
डॉ. वी.राघवन:-अखिल भारतीय कार्यों के लिये एक समान लिपि के रूप में देवनागरी का ही समर्थन किया जा सकता है।
डॉ. बी. गोपाल रेड्डी: -क्षेत्रीय भाषाओं को अपनाने के जोश में संपर्क भाषा हिंदी के विकास की उपेक्षा नहीं की जाना चाहिए।
विश्वनाथ सत्यनारायण: -राष्ट्रीय एकता के लिये देश की सर्वमान्य भाषा के रूप में हिंदी का पठन अनिवार्य है।
उड़िया
कालीचरण पाणिग्रही:-मैं शुद्ध अंग्रेजी बोलने के बजाय अशुद्ध हिंदी बोलना पसंद करता हूं, क्योंकि वह मेरी राष्ट्रभाषा है। -राष्ट्रभाषा हिंदी की अभिवृद्धि से ही अन्य भारतीय भआषाओं की अभिवृद्धि संभव है।
-सरोजिनी नायडू:अगर हम साधारण बुद्धि से काम लें, तब हमें पता चलेगा कि हमारी कौमी जबान हिंदी हो सकती है।
डॉ. भुवनेश्वर तिवारी:-आओ भारत-भारती की हम उतारे आरती, पूज्य है पूजब बने हम, मातृ-भूमि की भारती,संस्कृति संवाहिका श्री श्रेष्ठ भारत-भारती, अर्चना है, वंदना है, जय-जय भारत-भारती।चेतना में, चिंता में, कर्मणा में भारती,व्याप्त सारे देश में, उदात्त भारत-भारती,विपुल भावों से भरा, यह लो समर्पण भारती,
विश्व आसन पर विराजो, दिव्य भारत-भारती।
मलयालम
कामरेड इ.एम.एस. नम्बुदरीपाद:-विदेशों से सम्पर्क के लिये हिंदी माध्यम हो। अंग्रेजी के कारण विदेशों में हमें लज्जित होना पड़ता है।
-बी.के.बालकृष्णन:-हिंदी हमारी राष्ट्रभाषा और नागरी हमारी राष्ट्र लिपि है।
-महाकवि कुरुप: -भारत की अखण्डता और व्यक्तित्व बनाये रखने के लिये हिंदी प्रचार अत्यंत आवश्यक है।
पंजाबी-
लाला लाजपतराय:-आरंभिक जीवन से ही मुझे यह निश्चय हो गया था कि राष्ट्रीय मेल और राजनैतिक एकता के लिये सारे देश में हिंदी और नागरी का प्रचार आवश्यक है। तब मैंने। अपने लाभ-हानि के विचारों को एक ओर रख कर हिंदी का प्रचार प्रारंभ किया।
डॉ. राजाराम महरोत्रा:-राष्ट्रभाषा को अपने ही घर में दासी मत बनाइये।
ज्ञानी जैल सिंह: -लोकमान्य तिलक और महात्मा गांधी जैसे महानुभाव हिंदी भाषी प्रांतों में पैदा नहीं हुए थे, पर उन सब ने आजादी की लड़ाई हिंदी के द्वारा ही लड़ी थी। यह हिंदी इतनी प्रचलित है कि प्रांतीय भाषाओं के शब्दों को भी हजम करती है। भारत के निवासियों को यह समझ लेना चाहिए कि हिंदी के बिना हमारी आजादी अधूरी है, हिंदी भाषा न तो पंजाबी को मारना चाहती है, न गुजराती को, न मराठी, न तमिल, तेलुगु और बंगला को ही, यह तो सबको जिंदा रखने के लिये तैयार है। इसी भाषा से हम आगे बढ़े हैं और यही भाषा हमको आगे बढ़ा सकती है।
-हिंदी ही एकमात्र भाषा है, जे समूचे देश को एक कड़ी में पिरोती है। अगर हिंदी कमजोर होती है, तो देश कमजोर होगा, अगर हिंदी मजबूत हुई तो देश की एकता, अखण्डता मजबूत होगी।
-भारत यदि हिंदी को भूल गया तो अपनी संस्कृति को भी भूल जायगा।
भाषायी लोकतंत्र का नेतृत्व तो हिन्दी को ही करना है
हिन्दी दिवस की शुभकामनाएं देते हुए याद दिलाना चाहती हूँ कि अब दुकानों के बोर्ड बांग्ला में लिखना अनिवार्य कर दिया गया है। कहने का मतलब यह है कि आप किसी भी भाषा के हों, बांग्ला में ही लिखना होगा। यह अनिवार्य पहले भी था हिन्दी व अंग्रेजी के साथ बांग्ला लिखी जाती थी। उन इलाकों में जहां बांग्ला ही बोली जाती है, वहां पर यह समझ में आता है मगर जहाँ हिन्दीभाषी ही अधिक हों…वहाँ इस नियम का क्या अर्थ है, समझ के बाहर है। बंगाल सरकार, महाराष्ट्र, कर्नाटक, तमिलना़डु समेत तमाम हिन्दी के प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष हिन्दी विद्वेषियों से पूछना चाहती हूँ कि अगर आप पर हिन्दी थोपना गलत है तो आपके राज्यों में जो हो रहा है, वह सही है। क्या सारे अधिकार क्षेत्रीयता के आधार पर निर्धारित होंगे..जब आप सिर्फ अपने राज्य की बात करते हैं तो कहीं न कहीं अपने राज्य के विस्तार को संकुचित कर रहे होते हैं। क्या आपके राज्यों में सिर्फ आपकी भाषा बोलने वाले लोग ही रहते हैं या फिर ऐसा है क्या कि वह राजस्व नहीं भरते। बंगाल का सत्ता पक्ष अपनी उपलब्धियां गिनवा रहा है. इस संदर्भ में, मैं यह बताना चाहूंगी कि 2011 से हमने राज्य में हिंदी भाषी लोगों के विकास के लिए कई कदम उठाए हैं। जिन क्षेत्रों में 10 प्रतिशत से अधिक आबादी हिंदी बोलती है, वहां हिंदी को आधिकारिक भाषा के रूप में उपयोग करने का प्रावधान किया गया है।’’ इस अवसर पर बनर्जी ने हिंदी अकादमी की स्थापना, हावड़ा में हिंदी विश्वविद्यालय की स्थापना, बनरहाट और नक्सलबाड़ी में हिंदी माध्यम के कॉलेज और कई कॉलेजों में हिंदी स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम शुरू करने जैसी पहलों का उल्लेख किया। उन्होंने बताया कि रवींद्र मुक्त विद्यालय में उच्चतर माध्यमिक परीक्षा के प्रश्नपत्र और माध्यमिक परीक्षाएं अब हिंदी में उपलब्ध हैं। बनर्जी ने कहा कि असंगठित क्षेत्र के हिंदी भाषी श्रमिकों के लिए सामाजिक सुरक्षा योजनाओं का विस्तार किया गया है। क्यों हर एक राज्य में यूपी व बिहार के लोगों को टारगेट किया जा रहा है। एक बात जान लीजिए जब आप किसी को अनावश्यक नीचा दिखाते हैं तो यह आपकी कुंठा को दिखाता है।
हम जानना चाहते हैं कि वह लोग कौन थे जिन्होंने इन्द्रधनुष के बांग्ला पर्याय रामधनु को रंगधनु बना दिया था। राज्य सरकार की नौकरियों में हिंदी, संथाली और उर्दू को खत्म कर बांग्ला भाषा का पेपर अनिवार्य कर दिया गया है। प्रश्नपत्र का स्तर माध्यमिक (10वीं) के समकक्ष रखा गया है। पिछले कई वर्षों से यह नीति धीरे-धीरे क्रमिक रूप से लागू की गई है। पहले पुलिस जवानों की नियुक्ति में बांग्ला को अनिवार्य किया गया। उसके बाद इसे धीरे-धीरे सभी सरकारी नियुक्तियों में अनिवार्य कर दिया गया। 15 मार्च, 2023 को राज्य सरकार ने अधिसूचना जारी कर सरकारी अधिकारियों (सिविल सर्विसेज एग्जीक्यूटिव) की नियुक्ति में भी बांग्ला अनिवार्य कर दिया है। हिंदी, उर्दू और संथाली के विकल्प को बिना किसी वैकल्पिक व्यवस्था के हटा दिया गया है। इससे स्पष्ट है कि अब सरकारी नौकरियों में हिंदी, उर्दू और संथाली भाषा के युवक-युवतियों के प्रवेश पर पूर्ण रोक लगा दी गई है। बंगाल के भाषाई अल्पसंख्यक छात्र-छात्राओं को 43 साल पहले से 10वीं कक्षा तक आवश्यक तीसरी भाषा के रूप में बांग्ला लिखने, पढ़ने और बोलने की सुविधा से वंचित रखा गया। अब 2023 से उन्हें 10वीं कक्षा में अनिवार्य रूप से बांग्ला भाषा का पेपर उत्तीर्ण करने के लिए कहा जा रहा है। बांग्ला दक्षता परीक्षा अनिवार्य रूप से ली जा रही है। यह स्पष्ट रूप से संविधान के अनुच्छेद 16 के प्रावधानों के खिलाफ भाषाई अल्पसंख्यक छात्रों के साथ भेदभाव है। भाषाई अल्पसंख्यक छात्रों को बांग्ला पढ़ने से एतराज नहीं है। उनका कहना है कि हिंदी, उर्दू, संथाली माध्यम के स्कूलों में दक्षता हासिल करने के लिए 10वीं कक्षा तक बांग्ला भाषा को अनिवार्य भाषा के रूप में लागू किया जाना चाहिए। जैसा कि वर्ष 1980 तक था। वर्ष 1981 से 2023 तक मध्यमा उत्तीर्ण करने वाले छात्रों के लिए पश्चिम बंगाल सरकार द्वारा बांग्ला भाषा में एक वर्षीय प्रमाणपत्र या डिप्लोमा पाठ्यक्रम की व्यवस्था की जानी चाहिए। बांग्ला भाषा में दक्षता हासिल करने के लिए भाषाई अल्पसंख्यक छात्रों को ग्रेस मार्क्स मिलने चाहिए। जब तक हिंदी, उर्दू, संथाली और नेपाली भाषी छात्रों को ऐसी सुविधा नहीं दी जाती, तब तक सभी सरकारी नियुक्ति परीक्षा के संबंध में अधिसूचना को स्थगित रखा जाना चाहिए। इसे लेकर अब तक बात कहां तक बढ़ी…पता नहीं। तमिलनाडु में हिंदी विरोधी आंदोलन इस हद तक पहुंच गया है कि वहां हाल ही में बजट लोगो से भी रुपये का देवनागरी सिंबल हटाकर तमिल अक्षर कर दिया गया है। तमिलनाडु में हिंदी पर मचे संग्राम के बीच अब आंध्र प्रदेश के उप मुख्यमंत्री पवन कल्याण की टिप्पणी आई है। उन्होंने इस मामले में तमिलनाडु सरकार के रवैये पर सवाल खड़े किए हिन्दी कोई बाहरी भाषा नहीं कि उसे अपने ही देश में उपनिवेश स्थापित करना पड़े। यह तो देश के बहुलांश द्वारा बोले जाने वाली भाषा है। मनसे और उद्धव सेना पहले से ही हिन्दीभाषियों को मराठी न बोल पाने की सजा दे रही है। कर्नाटक में कन्नड़ बुलवाने के लिए हिंदीवालों को प्रताड़ित किया जा रहा है। यहां बात भाषायी लोकतंत्र की है। संसाधन और शिक्षकों की कमी से न जाने कितने स्कूल बंद हो चुके हैं। इस देश का हर राज्य, हर एक क्षेत्र एक दूसरे पर निर्भर है और हिन्दी वह धागा है जो समूचे राष्ट्र को जोड़ती है।
बैक्टीरियल इंफेक्शन भी हो सकता है दिल के दौरे का कारण
नयी दिल्ली । अब तक हम दिल का दौरा आने के पीछे केवल ब्लॉकेज और कोलेस्ट्रॉल को ही कारण मानते थे, लेकिन एक नए अध्ययन ने बताया है कि दिल के दौरे का कारण बैक्टीरियल इंफेक्शन भी हो सकता है। यह अध्ययन फिनलैंड और यूके के वैज्ञानिकों ने किया और इसे अमेरिकन हार्ट एसोसिएशन के जर्नल में प्रकाशित किया गया। शोधकर्ताओं का कहना है कि यह खोज दिल की बीमारियों के इलाज, टेस्टिंग और यहां तक कि वैक्सीन बनाने के नए रास्ते खोल सकती है। अब तक यह समझा जाता था कि कोरोनरी आर्टरी रोग की शुरुआत केवल ऑक्सीडाइज्ड एलडीएल कोलेस्ट्रॉल से होती है। शरीर इसे बाहरी चीज समझकर उस पर प्रतिक्रिया करता है और धीरे-धीरे धमनी में ब्लॉकेज बनने लगता है।
लेकिन लंबे समय से यह शक भी था कि इसमें जीवाणुओं (बैक्टीरिया) का हाथ हो सकता है, हालांकि पुख्ता सबूत नहीं थे। शोधकर्ताओं ने पाया कि धमनी में बनने वाले एथेरो स्क्लेरोटिक प्लेक (यानी कोलेस्ट्रॉल जमा होकर बनी परत) में अक्सर बैक्टीरिया की बायोफिल्म मौजूद होती है। यह बायोफिल्म एक जिलेटिन जैसी परत है, जिसमें बैक्टीरिया छिपे रहते हैं। यहां ये बैक्टीरिया लंबे समय तक सुप्त अवस्था में रह सकते हैं। इस दौरान ये शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली और एंटीबायोटिक दवाओं से सुरक्षित रहते हैं क्योंकि दवाएं और इम्यून सेल बायोफिल्म के अंदर आसानी से नहीं पहुंच पाते।
इस अध्ययन का नेतृत्व करने वाले फिनलैंड के टैम्पीयर विश्वविद्यालय के प्रोफेसर पेक्का करहुनेन ने कहा, “कोरोनरी धमनी रोग में जीवाणुओं की भागीदारी का संदेह लंबे समय से रहा है, लेकिन प्रत्यक्ष और ठोस सबूतों का अभाव रहा है।”
अगर शरीर में कोई वायरल इंफेक्शन या बाहर से कुछ ट्रिगर होता है, तो ये निष्क्रिय बैक्टीरिया अचानक सक्रिय हो जाते हैं। बैक्टीरिया तेजी से फैलते हैं और सूजन पैदा करते हैं। सूजन के कारण धमनी में जमा प्लेक की परत कमजोर होकर फट जाती है। जब यह परत टूटती है तो वहां खून का थक्का (थ्रोम्बस) बनता है, और यही थक्का दिल का दौरा ला सकता है। यह खोज बताती है कि दिल का दौरा सिर्फ कोलेस्ट्रॉल से नहीं, बल्कि बैक्टीरिया और संक्रमण से भी जुड़ा हो सकता है। यह आने वाले समय में हार्ट अटैक रोकने के लिए नए इलाज और टीकाकरण की दिशा में बड़ी उम्मीद है। अब दिल की बीमारियों के इलाज और टेस्टिंग के नए तरीके विकसित किए जा सकते हैं।
आंखों को मलने लगते हैं तो रहिए सावधान
नयी दिल्ली । आंखें न सिर्फ इस दुनिया को देखने का जरिया हैं, बल्कि ये हमारी भावनाओं का आईना भी होती हैं। जब हम खुश होते हैं, दुखी होते हैं, थक जाते हैं या नींद से भर जाते हैं, तो आंखें अपने आप बहुत कुछ कह जाती हैं। ऐसे ही थकान, जलन या खुजली के वक्त हम अक्सर बिना सोचे-समझे अपनी आंखों को मलने लगते हैं। यह काम उस वक्त हमें राहत देने वाला लग सकता है, लेकिन यह आदत हमारी आंखों पर बुरा असर डालती है। आंखों को बार-बार मलना खतरनाक आदत साबित हो सकती है। यह आदत धीरे-धीरे हमारी आंखों को खराब कर सकती है। यह एक ऐसी समस्या है जो खासतौर पर बच्चों, युवाओं और उन लोगों में ज्यादातर देखी जाती है जो लंबे समय तक स्क्रीन के सामने रहते हैं। अमेरिकन नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसिन की रिसर्च के मुताबिक, आंखों को बार-बार मलने से संक्रमण का खतरा बढ़ता है। हमारे हाथ दिनभर कई चीजों को छूते हैं, दरवाजों की कुंडी से लेकर मोबाइल फोन तक। इन पर बैक्टीरिया होते हैं, जो हमारी आंखों तक पहुंच जाते हैं, जब हम बिना हाथ धोए उन्हें मलते हैं। इससे आंखों में जलन, लालिमा, पानी आना और यहां तक कि कंजक्टिवाइटिस हो सकता है। अगर यह आदत बनी रही तो आंखों की प्राकृतिक सुरक्षा प्रणाली भी कमजोर हो जाती है और छोटी-छोटी चीजों से भी आंखें प्रभावित होने लगती हैं। इसके अलावा, इस आदत से आंखों की सतह यानी कॉर्निया पर भी बुरा असर बढ़ सकता है। कॉर्निया काफी नाजुक होती है। जब हम आंखों को जोर से या बार-बार मलते हैं, तो इससे कॉर्निया पर छोटे-छोटे घाव या खरोंच पड़ सकते हैं, जिसे मेडिकल की भाषा में ‘कॉर्नियल एब्रेशन’ कहा जाता है। यह स्थिति न केवल दर्दनाक होती है, बल्कि इससे रोशनी में देखने में परेशानी, धुंधलापन और लगातार जलन हो सकती है। अगर समय रहते इसका इलाज न किया जाए, तो यह आगे चलकर संक्रमण का रूप भी ले सकता है। ग्लूकोमा भी आंखों को बार-बार मलने की आदत से उभर सकता है। ग्लूकोमा एक ऐसी बीमारी है जिसमें आंखों की ऑप्टिक नर्व धीरे-धीरे खराब होने लगती है। बार-बार आंखों को मलने से आंखों में दबाव बढ़ जाता है और अगर यह दबाव लंबे समय तक बना रहे, तो ग्लूकोमा का खतरा पैदा हो सकता है। यह बीमारी धीरे-धीरे नजर को खत्म करती है और अगर सही समय पर इलाज न मिले, तो इंसान अपनी रोशनी हमेशा के लिए खो सकता है। आंखों के आसपास की त्वचा बहुत नाजुक और पतली होती है। जब हम उन्हें बार-बार मलते हैं, तो वहां की रक्त नलिकाएं क्षतिग्रस्त हो सकती हैं, जिससे डार्क सर्कल गहरे हो जाते हैं। साथ ही, स्किन की लचक खत्म होने लगती है, जिसकी वजह से झुर्रियां समय से पहले दिखाई देने लगती हैं। यह आदत न सिर्फ आंखों की सेहत, बल्कि चेहरे की सुंदरता को भी खराब कर सकती है। अगर किसी को पहले से चश्मा है या फिर आंखों की कोई समस्या है, तो आंख मलने से यह और बढ़ सकती है। बार-बार रगड़ने से कॉर्निया का आकार बदल सकता है, जिससे चश्मे का नंबर तेजी से बढ़ सकता है। कई मामलों में यह आदत कराटोकोनस जैसी गंभीर बीमारी को जन्म दे सकती है, जिसमें कॉर्निया पतला और शंकु जैसा हो जाता है, और इसके कारण व्यक्ति को हर चीज धुंधली दिखने लगती है।
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सेहत का खजाना है संतरे का छिलका
नयी दिल्ली। संतरे का मीठा और रसीला स्वाद हर किसी को पसंद आता है, लेकिन खाने के बाद जो हिस्सा सबसे पहले कूड़ेदान में फेंका जाता है, वो है छिलका। जिस छिलके को आमतौर पर लोग बेकार समझकर फेंक देते हैं, वो असल में आयुर्वेद और विज्ञान की नजर में सेहत का खजाना है। संतरे के छिलके में कई ऐसे गुण होते हैं, जो शरीर को बीमारियों से बचाने में मदद करते हैं। अमेरिका की नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसिन के मुताबिक, संतरे के छिलके में विटामिन सी की मात्रा बहुत ज्यादा होती है, जो हमारे शरीर की इम्यूनिटी को बढ़ाता है। यह स्किन के लिए भी बेहद फायदेमंद है। अगर चेहरे पर दाग-धब्बे, मुंहासे या झाइयां हैं, तो संतरे के सूखे छिलकों का पाउडर बनाकर उसका फेसपैक लगाने से त्वचा निखर जाती है और दमकने लगती है। संतरे के छिलके में पाए जाने वाले फ्लैवोनॉइड्स और एंटीऑक्सिडेंट्स हमारे दिल की सेहत के लिए भी बहुत फायदेमंद हैं। ये शरीर में बुरे कोलेस्ट्रॉल को कम करते हैं और अच्छे कोलेस्ट्रॉल को बढ़ाते हैं। इससे दिल की धड़कनें ठीक रहती हैं और हार्ट अटैक का खतरा कम हो जाता है। अगर किसी को डायबिटीज है, तो संतरे के छिलके का सेवन उनके लिए भी मददगार हो सकता है। इसमें मौजूद नेचुरल तत्व ब्लड शुगर को संतुलित करने में मदद करते हैं। संतरे का छिलका पेट के लिए भी किसी वरदान से कम नहीं है। यह पाचन तंत्र को सुधारता है और गैस, कब्ज और अपच जैसी समस्याओं को दूर करता है। अगर किसी का पेट बार-बार फूलता है या खाने के बाद भारीपन महसूस होता है, तो संतरे के छिलके की चाय बनाकर पीना एक अच्छा घरेलू इलाज हो सकता है। इसके लिए बस छिलकों को सुखाकर पानी में उबाल लें और थोड़ी सी शहद मिलाकर पी लें। संतरे का छिलका मानसिक स्वास्थ्य के लिए भी असरदार है। कुछ शोधों में पाया गया है कि संतरे की खुशबू डिप्रेशन और चिंता को दूर करने में सहायक होती है। कई लोग इसकी सुगंध को अपने घर या दफ्तर में फैलाते हैं ताकि वातावरण सुकून भरा बना रहे। वहीं, इसका पाउडर दांतों के लिए लाभकारी है। इसको दांतों पर हल्के से रगड़ने से दांत सफेद होते हैं और सांस की दुर्गंध दूर होती है।
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हाजरा पार्क दुर्गोत्सव के 83वें वर्ष की थीम ‘दृष्टिकोण’
कोलकाता । हाजरा पार्क दुर्गोत्सव कमेटी इस वर्ष अपने 83वें वर्ष में प्रवेश कर रहा है। यह कमेटी अपनी विरासत को केवल एक उत्सव से कहीं अधिक, समावेशिता, परंपरा और सामुदायिक भावना में निहित एक आंदोलन के रूप में कायम रखे हुए है। 1942 में कोलकाता निगम के तत्कालीन मेयर सुभाष चंद्र बोस के दृष्टिकोण से स्थापित इस पूजा की परिकल्पना उन हाशिए पर पड़े लोगों को गले लगाने के लिए की गई थी जिन्हें लंबे समय से मुख्यधारा के उत्सवों से अलग रखा गया था। पद्मपुकुर में अपनी शुरुआत से लेकर हाजरा पार्क में स्थायी रूप से स्थापित होने तक, यह पूजा अपने मूल आदर्शों के प्रति सच्ची लगन के साथ बड़े पैमाने पर विकसित हुई है। 2016 से, इसे गर्व से हाज़रा पार्क दुर्गोत्सव के रूप में जाना जा रहा है। इस वर्ष, हज़रा पार्क दुर्गोत्सव अपनी थीम “दृष्टिकोण” प्रस्तुत कर रहा है।दूरदर्शी कलाकार बिमान साहा द्वारा परिकल्पित यह विषय वस्तु, इस मंडप में रंगों को न केवल एक दृश्य आनंद के रूप में, बल्कि आत्म-अभिव्यक्ति की एक गहन भाषा के रूप में भी प्रस्तुत करेगी। एक कलाकार के लिए, प्रत्येक रंग उसके आंतरिक स्वरूप का एक अंश प्रकट करता है, जिसमें उसके विचार, भावनाएँ और दर्शन भी शामिल हैं। जब ये रंग देवी दुर्गा के रूप पर प्रवाहित होते हैं, तो वे एक मौन काव्य का निर्माण करते हैं। बिना शब्दों के कही गई कहानियाँ, जो रचनाकार के हृदय से उत्पन्न होती हैं, उसे इस मंडप में उतारने की कोशिश की जा रही है। हाजरा पार्क दुर्गोत्सव समिति के संयुक्त सचिव सायन देब चटर्जी ने कहा, “रंग दुनिया के लिए सिर्फ एक आभूषण नहीं, बल्कि यह उसकी धड़कन है। हर रंग खुद में एक भावना समेटे हुए है, जिसमें प्रेम की गर्माहट, विरोध की आग, दृढ़ विश्वास का साहस, आशा की चमक मौजूद है। रंग जीवन की धड़कन है। ‘दृष्टिकोण’ के जरिए, हम चाहते हैं कि लोग प्रत्यक्ष से परे देखें, यह देखें कि कैसे रंग न केवल देवी के स्वरूप को, बल्कि हमारी सोच को भी आकार देते हैं। हर रंग एक कहानी कहता है, और इस साल, हम सभी को उस कहानी का हिस्सा बनने के लिए मंडप में सपरिवार आमंत्रित करते हैं।” उन्होंने सभी को परिवार और दोस्तों के साथ पूजा में आने का निमंत्रण दिया। इस साल का पंडाल और मूर्ति रंगों की बहुआयामी प्रकृति को दर्शाएगी, जो हर कलात्मक विवरण, डिज़ाइन की हर परत और उत्सव के हर कोने में समाहित है। यहां आनेवाले आगंतुकों को न केवल मण्डप की सजावट देखने के लिए, बल्कि यहां के अनुभव के भीतर उतरने के लिए भी आमंत्रित किया जा रहा है ताकि उन्हें इन रंगों के जरिए अपने दृष्टिकोण को बदलने का मौका मिल सके। हाजरा पार्क दुर्गोत्सव में इस वर्ष 2025 में कला, दर्शन और भावना के माध्यम से एक उज्ज्वल यात्रा होने का वादा करता है, जहां हर रंग एक कहानी कहेगा और हर कहानी हमारे देखने के तरीके को बदलने की क्षमता रखती है।
सीए नीरज कुमार हरोदिया बने एसीएई के नये अध्यक्ष
कोलकाता । वित्तीय वर्ष 2025-26 के कार्यकाल के लिए सीए नीरज कुमार हरोदिया एसीएई के 64वें अध्यक्ष का पदभार एडवोकेट (सीए) तरुण कुमार गुप्ता से ग्रहण करेंगे। एसीएई वर्ष 1960 में स्थापित सबसे पुराने और प्रतिष्ठित संघों में से एक है। इसके लगभग 1650 से अधिक सदस्य पेशेवर, व्यवसायी और उद्योगपति हैं। सीए नीरज कुमार हरोदिया ने अपने कार्यकाल के दौरान “कनेक्ट, एंगेज, इंस्पायर” शीर्षक वाली थीम अपनाने का प्रस्ताव रखा हैं, जो प्रगति, उत्कृष्टता और सकारात्मक विकास के विचार को मूर्त रूप देती है। चुने गए नए अध्यक्ष को इन निम्नलिखित लोगों का समर्थन प्राप्त है, जिनमें एडवोकेट रमेश पाटोदिया (उपाध्यक्ष), छह बार की केटलबेल विश्व चैंपियन सीए शिवानी शाह अग्रवाल (उपाध्यक्ष), सीए मोहित भूतेरिया (महासचिव), सीए विवेक नेवतिया (संयुक्त सचिव) और सीए आयुष जैन (कोषाध्यक्ष) के अलावा एसोसिएशन की एक सक्रिय कार्यकारी समिति भी शामिल होगी। एसोसिएशन ऑफ कॉर्पोरेट एडवाइजर्स एंड एक्जीक्यूटिव्स के अध्यक्ष सीए नीरज कुमार हरोदिया ने मीडिया से बात करते हुए कहा, “मिलो, जुड़ो, प्रेरित करो” की भावना को आगे बढ़ाते हुए, मेरा प्राथमिक लक्ष्य उन मूल्यों को कायम रखते हुए, जो हमें परिभाषित करते हैं, हमारी एसोसिएशन की दृश्यता और ब्रांडिंग को बढ़ाने के लिए सक्रिय रूप से जुड़ना होगा। एकजुटता और परस्पर निर्भरता मेरी यात्रा के प्रमुख शब्द होंगे और अध्यक्ष के रूप में मेरा लक्ष्य सभी सदस्यों के साथ मिलकर काम करना, हमारी एसोसिएशन को मजबूत और उन्नत बनाना और निरंतर विकास, उत्कृष्टता, नवाचार और सकारात्मक वृद्धि की संस्कृति को अपनाना होगा।
लिटिल थेस्पियन ने आयोजित किया 37व रंग अड्डा
कोलकाता । लिटिल थेस्पियन ने गत 31 अगस्त 2025 को सुजाता देवी विद्या मंदिर, हाजरा में अपना 37व रंग अड्डा आयोजित किया। इस रंग अड्डा का केंद्र बिंदु रंगमंच के दिग्गज नेमिचंद्र जैन, ज्ञानदेव अग्निहोत्री, शंभु मित्रा और उमा झुनझुनवाला थे। रंग अड्डा की शुरुआत लिटिल थेस्पियन की अध्यक्षा उमा झुनझुनवाला के स्वागत भाषण से हुई, जिसमें उन्होंने उभरते रंगमंच कलाकारों के बौद्धिक विकास के लिए इन आयोजनों के महत्व पर प्रकाश डाला। प्रो. रेशमी पांडा मुखर्जी (गोखले मेमोरियल गर्ल्स कॉलेज, कोलकाता) ने “भारतीय रंगमंच में नेमिचंद्र जैन का अवदान” विषय पर एक मार्मिक प्रस्तुति दी। उनकी छात्रा सुप्रिया चौधरी ने नेमिचंद्र जैन के जीवन और कार्यों का संक्षिप्त परिचय दिया। अगली चर्चा का विषय “ज्ञानदेव अग्निहोत्री और नाटक शुतुरमुर्ग” था। खिदिरपुर कॉलेज की श्वेता कुमारी राजभर ने नाटककार ज्ञानदेव अग्निहोत्री का संक्षिप्त परिचय दिया। उमा झुनझुनवाला ने 2004 में नाटक शुतुरमुर्ग के निर्माण की प्रक्रिया और कुछ चित्रात्मक किस्से साझा किए | डॉ. रमा शंकर सिंह, कुमकुम चौधरी शंभु सिंह, भावेश भगत, अभिजीत पासवान और मो. आसिफ़ अंसारी ने नाटक शुतुरमुर्ग के कुछ दृश्यों का अभिनयात्मक पाठ किया। बंगाल के प्रसिद्ध रंगकर्मी शंभु मित्रा का संक्षिप्त परिचय दिव्या पांडे (कलकत्ता विश्वविद्यालय) ने दिया, इसके बाद प्रो. अल्मास हुसैन (हरि मोहन घोष कॉलेज, कोलकाता) ने “बंगाल का रंगमंच और शंभु मित्रा” पर एक रोचक चर्चा की। उमा झुनझुनवाला का संक्षिप्त परिचय ख़ालिदा ख़ातून (खिदिरपुर कॉलेज) ने दिया। इसके बाद, उमा झुनझुनवाला की कहानी “लाल फूल का एक जोड़ा” का अभिनयात्मक पाठ संगीता व्यास, सुधा गौड़, पार्वती कुमारी शॉ, एनी दास, मो. आसिफ़ अंसारी और अभिजीत पासवान द्वारा किया गया। रंग अड्डा का संचालन लिटिल थेस्पियन के वरिष्ठ सदस्य पद्माकर व्यास ने किया।