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“19वीं सदी का औपनिवेशिक भारत: नवजागरण और जाति प्रश्न” पुस्तक पर परिचर्चा
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डॉ. एस.आनंद को मिला ‘भोलानाथ गहमरी स्मृति सम्मान ‘
वाराणसी । विश्व भोजपुरी सम्मेलन के बैनर तले अन्तर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस के अवसर पर जीवन दीप शिक्षण समूह के प्रेक्षागृह में एक भव्य समारोह आयोजित किया गया। शहर के अतिरिक्त बिहार, बलिया, छत्तीसगढ़, दिल्ली तथा अन्य कई प्रदेशों के प्रतिभागियों ने इसमें शिरकत की तथा भोजपुरी को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने की पुरजोर मांग की। विश्व भोजपुरी सम्मेलन के राष्ट्रीय महासचिव डॉ अशोक सिंह ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के वाराणसी आगमन पर उन्हें एक ज्ञापन देने की बात कही तथा भोजपुरी के प्रचार प्रसार की अनेक योजनाओं पर प्रकाश डाला। विश्व भोजपुरी सम्मेलन के उत्तर प्रदेश इकाई के उपाध्यक्ष ओम धीरज तथा सचिव चंद्रकांत सिंह के अतिरिक्त भोजपुरी के प्रोफेसर जयकांत सिंह, पाखी पत्रिका के संपादक अशोक द्विवेदी, गुरुशरण सिंह एवं कई विशिष्ट वक्ताओं ने अपने विचार व्यक्त किए। दूसरे क्रम में सम्मान समारोह आयोजित किया गया जिसमें कुछ प्रमुख हस्तियों को भोजपुरी भाषा के प्रचार-प्रसार में सक्रिय भूमिका निभाने के लिए विभिन्न स्मृति सम्मान प्रदान किए गये। डॉ, एस.आनंद को भोजपुरी के स्वनामधन्य कवि भोलेनाथ गहमरी स्मृति सम्मान से नवाजा गया। यह सम्मान प्रो. जयकांत सिंह, ममता सिंह व अशोक द्विवेदी के कर कमलों से दिया गया। सम्मान मिलने के बाद एस.आनंद ने संस्था के पदाधिकारियों को धन्यवाद ज्ञापित करते हुए कहा – गहमरी जी से मेरी दो पीढ़ियों का संबंध रहा तथा मुझे इलाहाबाद में एक साल तक उनके साथ रहने का सौभाग्य भी मिला था। आज उनके नाम का सम्मान पाकर मैं बहुत खुश हूं।
प्रख्यात कानूनविद फली एस. नरीमन का 95 वर्ष की उम्र में निधन
नयी दिल्ली । भारत के जाने-माने कानूनविद और सुप्रीम कोर्ट के अनुभवी वरिष्ठ वकील फली एस नरीमन का बुधवार को 95 वर्ष की उम्र में निधन हो गया। उन्होंने दिल्ली में आखिरी सांस ली। नरीमन का वकील के तौर पर 70 साल से ज्यादा का अनुभव रहा।नवंबर 1950 में फली एस नरीमन बॉम्बे हाईकोर्ट में वकील के तौर पर रजिस्टर हुए। उन्हें 1961 में वरिष्ठ वकील का दर्जा दिया गया था। बॉम्बे हाईकोर्ट के बाद नरीमन ने 1972 से भारत की सुप्रीम कोर्ट में प्रैक्टिस शुरू की। वे मई 1972 में भारत के एडिशनल सॉलिसिटर जनरल नियुक्त हुए थे। नरीमन को जनवरी 1991 को पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था। वहीं 2007 में उन्हें पद्म भूषण दिया गया। वरिष्ठ वकील के साथ वे 1991 से 2010 तक बार एसोसिएशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष भी रहे। इसके साथ ही अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी उनका कद काफी ऊंचा रहा। नरीमन 1989 से 2005 तक इंटरनेशनल चैंबर ऑफ कॉमर्स की अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता कोर्ट के उपाध्यक्ष भी रहे। वे 1995 से 1997 तक जेनेवा के कानूनविदों के अंतरराष्ट्रीय आयोग की एग्जीक्यूटिव कमेटी के अध्यक्ष भी रहे।
जल्द आ रहा है यू ट्यूब जैसा देसी वीडियो पोर्टल
नयी दिल्ली ।सूचना और प्रसारण मंत्रालय (एमआईबी) जल्द चार सरकारी ऑनलाइन पोर्टल लॉन्च करने वाली है। ऑनलाइन पोर्टल को अगले हफ्ते तक लॉन्च किया जा सकता है। इन पोर्टल में वीडियो पोर्टल भी शामिल है, जो यूट्यूब जैसे वीडियो अपलोड और देखने में मदद करेगा। इसके अलावा सरकार न्यू पेपर और मैगजीन के पंजीकरण के लिए एक नई वेबसाइट और सभी सरकारी विज्ञापनों के लिए एक केंद्रीकृत वेबसाइट भी लॉन्च करेगी।
कब लॉन्च होंगे पोर्टल? एचटी की रिपोर्ट के अनुसार, सभी चार पोर्टल लाइव होने के लिए तैयार हैं और सूचना एवं प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर द्वारा औपचारिक लॉन्च का इंतजार कर रहे हैं।
नवीगेट (एनएवीआई गेट) – नेशनल वीडियो गेटवे ऑफ भारत, जिसे संक्षिप्त रूप से NaViGate भारत कहा जा रहा है को भी जल्द लॉन्च किया जाएगा। यह यूट्यूब के जैसा ही प्लेटफार्म होगा, जहां विभिन्न केंद्र सरकार के मंत्रालयों और विभागों द्वारा तैयार किए गए सभी वीडियो पोस्ट किए जाएंगे। और कोई भी यूजर्स इन वीडियो को देख सकेगा। इसमें वर्तमान में विभिन्न मंत्रालयों से संबंधित लगभग 2,500 वीडियो हैं।
प्रेस सेवा पोर्टल – इसके अलावा एक प्रेस सेवा पोर्टल भी लॉन्च किया जाएगा। बता दें कि अधिसूचित प्रेस और आवधिक पंजीकरण अधिनियम, 2023 के तहत मसौदा नियमों में प्रेस सेवा पोर्टल बनाने का प्रस्ताव दिया था। पंजीकरण प्रमाणपत्र के लिए सभी आवेदनों को मसौदा नियमों के तहत प्रेस सेवा पोर्टल पर जमा करना होगा।
आरएनआई और पीएसपी की नई वेबसाइट – इसके अलावा दो अन्य आरएनआई और पीएसपी की नई वेबसाइट भी लॉन्च होंगी। पीएसपी की अन्य विशेषताएं, जैसे एप्लिकेशन की प्रोसेसिंग, अप्रैल में दूसरे चरण के दौरान लॉन्च होने की उम्मीद है। नए अधिनियम के तहत नई आरएनआई वेबसाइट का नाम बदलकर पीआरजी की वेबसाइट कर दिया जाएगा।
उज्जैन में 1 मार्च से शुरु होगी दुनिया की पहली वैदिक घड़ी
चलने वाली हैं 50 अमृत भारत ट्रेनें; रेलमंत्री अश्विनी वैष्णव का ऐलान
नयी दिल्ली । एक बार फिर रेलवे यात्रियों के लिए एक नई खुशखबरी लेकर आया है। जी हां! एक नहीं, दो नहीं, 10 नहीं बल्कि पूरे 50 अमृत भारत एक्सप्रेस ट्रेनों की सौगात रेलवे जल्द देने वाला है। रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ने बताया कि सरकार ने 50 नई अमृत भारत ट्रेनों को मंजूरी दी है। दरभंगा-अयोध्या-आनंद विहार टर्मिनल अमृत भारत एक्सप्रेस और मालदा टाउन-सर एम विश्वेश्वरैया टर्मिनस (बेंगलुरु) के बीच चलने वाली दो अमृत भारत ट्रेनों के सफलता के बाद रेलवे इस ट्रेन को अलग-अलग रूटों पर चलाने का प्लान जल्द ही तैयार करने वाला है।
50 अमृत भारत ट्रेनें जल्द होंगी लॉन्च – केंद्रीय रेल मंत्री ने एक्स पर लिखा और घोषणा की कि 30 दिसंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा हरी झंडी दिखाई गई पहली दो ट्रेनों के लिए प्राप्त सकारात्मक प्रतिक्रिया के आधार पर 50 नई अमृत भारत ट्रेनों को मंजूरी दी गई है। बता दें इस ट्रेन की शुरुआत के बाद यात्रियों ने इसे हाथों-हाथ लिया। ट्रेन की खूबसूरती के साथ-साथ इसमें लगाए गए अत्याधुनिक उपकरण और अन्य डिवाइस यात्रियों के सफर को सुखद बना देते हैं। अमृत भारत एक्सप्रेस सुपरफास्ट पैसेंजर ट्रेन लिंके हॉफमैन बुश (एलएचबी) तकनीक वाली है। यह नॉन-एसी कोच वाली पुश-पुल ट्रेन है। अमृत भारत एक्सप्रेस ट्रेनों में रेल यात्रियों के लिए आकर्षक डिजाइन वाली सीटें, बेहतर सामान रैक, उपयुक्त मोबाइल होल्डर के साथ मोबाइल चार्जिंग प्वाइंट, एलईडी लाइट, सीसीटीवी, सार्वजनिक सूचना प्रणाली जैसी बेहतर सुविधाएं हैं।
नमक की वजह से तनख्वाह का नाम पड़ा है सैलरी
किसी भी नौकरीपेशा इंसान के जीवन में सैलरी का सबसे अहम रोल होता है। हर महीने के अंत में लोगों को अपनी सैलरी का इंतजार रहता है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि ये सैलरी शब्द कहां से आया है ? आज हम आपको बताएंगे कि तनख्वाह के नाम पर नमक मिलने से से शुरू हुआ सैलरी तक कैसे पहुंचा। जानें इसके पीछे की पूरी कहानी –
सैलरी के रुप में मिलता था नमक – बता दें कि प्राचीन रोम में पहले पैसे की जगह नमक का इस्तेमाल किया जाता था । उस वक्त जो सैनिक रोमन साम्राज्य के लिए काम करते थे, उन्हें काम के बदले मेहनताना के रूप में नमक ही दिया जाता था। माना जाता है कि ‘नमक का कर्ज’ जैसी कहावतों की शुरुआत यहां से हुई थी ।
कैसे आया सैलरी का नाम – इंडिया टुडे की एक रिपोर्ट के मुताबिक रोमन इतिहासकार प्लीनी द एल्डर अपनी किताब नैचुरल हिस्ट्री में लिखते हैं कि रोम में पहले सैनिकों का मेहनताना नमक के रुप में दिया जाता था। इससे ही सैलरी शब्द बना है. कहा जाता है कि Salt से ही Salary शब्द आया है। कई रिपोर्ट में दावा किया गया है कि Soldier शब्द लैटिन में ‘sal dare’ से बना है, जिसका अर्थ भी नमक देने से ही है. रोमन में नमक को सैलेरियम कहते हैं, इसी से सैलरी शब्द बना है।
जब वेतन के तौर पर मिला नमक – फ्रांस के इतिहासकारों का मानना है कि पहली बार सैलरी 10,000 ईसा पूर्व से 6,000 ईसा पूर्व के बीच दी गई थी। प्राचीन रोम में लोगों को काम के बदले पैसे या मुद्रा के बदले नमक दिया जाता था । तब रोमन साम्राज्य के सैनिकों को ड्यूटी के बदले पगार के तौर पर एक मुट्ठी नमक दिया जाता था। उस वक्त नमक का व्यापार भी किया जाता था । इससे पहले वेतन के बारे में बहुत जानकारी नहीं मिलती है ।
नमक मिलना वफादारी – हिब्रू किताब एजारा में 550 और 450 ईसा पूर्व का जिक्र है जिसमें लिखा गया है कि अगर आप किसी व्यक्ति से नमक लेते हैं, तो ये पगार देने के बराबर है। उस वक्त नमक की बहुत अहमियत होती थी। किसी जमाने में नमक पर उसी का हक होता था, जिसका राज होता था। इस किताब में एक मशहूर फारसी राजा आर्टाजर्क्सीस प्रथम का जिक्र है, जिनके नौकर अपनी वफादारी के बारे में बताते हुए कहते हैं कि हमें राजा से नमक मिलता है. इसलिए वे उनके प्रति समर्पित और वफादार हैं।
शुभजिता स्वदेशी – दुनिया की सबसे बड़ी दुग्ध उत्पादक सहकारिता संस्था अमूल
नयी दिल्ली । अमूल डेयरी गुजरात सहकारी दुग्ध विपणन महासंघ (जीसीएमएमएफ) का हिस्सा है। आज ये दुनिया की सबसे बड़ी दुग्ध संस्था है। इसके साथ आज सीधे तौर पर करीब 36 लाख से ज्यादा किसान जुड़े हुए हैं। इसमें गुजरात के 18 जिला दुग्ध संघ शामिल हैं। दूध का ब्रांड बन चुकी अमूल डेयरी 22 फरवरी को स्वर्ण जयंती मना रही है। अमूल को चलाने वाली गुजरात सहकारी दुग्ध विपणन महासंघ (जीसीएमएमएफ) की स्थापना साल 1973-74 में हुई थी। इस संस्था को बने हुए 50 साल पूरे हो गए हैं। इसकी स्थापना का विचार भी बड़े ही खराब हालात के दौरान आया था। साल 1946 से 1974 के बीच डेयरी सहकारी आंदोलन चला था। उस दौरान ये आंदोलन गुजरात के छह जिलों में चल रहा था। यह आंदोलन बिचौलियों से परेशान होकर शुरू हुआ था। यह वो दौर था जब बिचौलिए दूध की सारी मलाई खा रहे थे और किसानों को काफी कम पैसा मिलता था। आज किसान आंदोलन के दौर में अमूल की यह अनूठी कहानी एक मिसाल है। आईए जानते हैं अमूल की शुरुआत किस तरह से हुई थी। कैसे यह आंदोलन चला था।
बिचौलियों से थी परेशानी – एक समय तक दूग्ध उत्पादक अपना मिल्क बिचौलियों और व्यापारियों को बेचने पर मजबूर थे। इस दौरान दूग्ध उत्पादकों को काफी कम पैसा मिलता था। बिचौलिए उनकी कमाई का बड़ा हिस्सा ले जाते थे। 1940 के दशक में गुजरात में व्यापारियों द्वारा दूध उत्पादक किसानों का खूब शोषण किया जाता था। उस वक़्त की मुख्य डेयरी पोलसन के एजेंटों द्वारा कम दामों में किसानों से दूध खरीदकर महंगे दामों में बेचा जा रहा था। ऐसे में एक सहकारी समिति स्थापित करने की जरूरत महसूस की गई, जिसमें दूग्ध उत्पादकों के ही प्रतिनिधि हों। इसके लिए लंबा आंदोलन चला था।
सरदार पटेल का विचार – इस समस्या से निजात दिलाने के लिए किसानों ने वहां के स्थानीय नेता त्रिभुवनदास पटेल से संपर्क साधा था। इसके बाद उन्होंने अपने लोगों के साथ सरदार वल्लभ भाई पटेल से मुलाकात की थी। सरदार पटेल ने समाधान करने के लिए मोरारजी देसाई को गुजरात भेजा था। उन्होंने हालात का जायजा लिया, फिर साल 1945 में बॉम्बे सरकार ने बॉम्बे मिल्क योजना शुरू की थी। साल 1949 में त्रिभुवन भाई पटेल ने डॉक्टर वर्गीज कुरियन से मुलाकात कर इस क्षेत्र में कार्य करने के लिए राजी किया था। दोनों ने सरकार की मदद से गुजरात के दो गांवों को सदस्य बनाकर डेयरी सहकारिता संघ की स्थापना की थी।ऐसे पड़ा अमूल नाम
वर्गीज कुरियन सहकारिता संघ को कोई आसान नाम देना चाहते थे, जो आसानी से जुबान पर आ जाए। इस दौरान कुछ कर्मचारियों ने इसका नाम संस्कृत शब्द अमूल्य सुझाया, जिसका मतलब अनमोल होता है। इसी को बाद में अमूल के नाम पर रखा गया। इसकी शुरुआत में कुछ किसानों द्वारा डेयरी में 247 लीटर दूध का उत्पादन किया जाता था। इसके लिए गांव में कई सहकारी समितियों का गठन किया गया था। 14 दिसंबर 1946 में त्रिभुवन दास पटेल के प्रयासों द्वारा अहमदाबाद से 100 किमी दूर आणंद शहर में खेड़ा जिला सहकारी समिति की स्थापना की गई थी।
लाखों किसानों का बदला जीवन – आनंद मिल्क यूनियन लिमिटेड (अमूल) एक डेयरी सहकारी संस्था है। यह गुजरात के आणंद में स्थित है। अमूल ब्रॉन्ड गुजरात को-ऑपरेटिव मिल्क मार्केटिंग फेडरेशन लिमिटेड (जीसीएमएमएफ) के अधीन है। आज देशभर में अमूल की 144,500 डेयरी सहकारी समितियों में 15 मिलियन से ज्यादा दूग्ध उत्पादक अपना मिल्क पहुंचाते हें। इस दूध को 184 जिला सहकारी संघों में प्रोसेस किया जाता है। इसके बाद 22 राज्य मार्केटिंग संघों द्वारा इनकी मार्केटिंग की जाती है। यह दूध हर दिन लाखों लोगों तक पहुंचता है।