Friday, September 19, 2025
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महाशिवरात्रि पर ऐसे पंचामृत 

महाशिवरात्रि के दिन भोलेनाथ का जल, दूध, घी, शहद, गन्ने के रस के साथ पंचामृत से अभिषेक किया जाता है। इतना ही नहीं, शिव भक्तों के बीच प्रसाद के रूप में पंचामृत भी बांटा जाता है. आपको बता दें, पंचामृत पांच पवित्र चीजों से बनता है। इसे बनाने के लिए पांच अमृत सामग्री- दूध, दही, घी, शहद और चीनी का उपयोग किया जाता है। दरअसल, सभी देवी-देवताओं की पूजा में पंचामृत का उपयोग किया जाता है। लेकिन महादेव को यह बहुत प्रिय है. ऐसे में अगर आप भी महाशिवरात्रि के दिन शिव पूजा के लिए घर पर पंचामृत बनाना चाहते हैं तो इस रेसिपी को अपनाएं।
पंचामृत बनाने के लिए सामग्री- 5-6 बड़े चम्मच दही, 1 बड़ा चम्मच घी, 2 कप दूध, 1 चम्मच सूखे मेवे, 2 बड़े चम्मच पिसी हुई चीनी,1 बड़ा चम्मच शहद, 4-5 तुलसी के पत्ते
पंचामृत बनाने की विधि- पंचामृत बनाने के लिए सबसे पहले एक बर्तन को अच्छी तरह धोकर साफ कपड़े से पोंछ लें। इसके बाद बर्तन में दूध, दही, घी, शहद और चीनी डालकर सभी सामग्री को अच्छी तरह मिला लें। आप चाहें तो इसके लिए ग्राइंडर का भी इस्तेमाल कर सकते हैं। अब इस मिश्रण में तुलसी के पत्ते और कटे हुए सूखे मेवे मिलाएं। महाशिवरात्रि पर भगवान शिव का अभिषेक करने के लिए पंचामृत तैयार है।

गोटा पट्टी से सजाएं साधारण सलवार कमीज

हम सभी को बाज़ार में खरीदारी करना बहुत पसंद होता है। इसलिए हम अक्सर ट्रेंडी डिज़ाइन वाले कपड़े पहनते हैं। लेकिन कई बार हम एक ही डिजाइन के कपड़े पहनकर थक जाते हैं। ऐसे में आप अपने सादे कपड़ों को फैंसी बनाने के लिए गोटा पट्टी का इस्तेमाल कर सकती हैं।
इसमें आपका लुक भी अच्छा लगेगा. इसके अलावा आपके कपड़ों का लुक भी बदल जाएगा। आइए हम आपको बताते हैं कि आप इसका इस्तेमाल कैसे कर सकते हैं.
सूट के गले पर प्रयोग करें -अगर आपको लगता है कि सूट की नेकलाइन प्लेन है तो आप इसे फैंसी बनाने के लिए इस पर गोटा पट्टी का इस्तेमाल कर सकती हैं। इसके लिए आपको एक पतली पट्टी लगानी होगी ताकि आप इसकी परत बना सकें। इसके बाद आप इससे चौकोर या बॉक्स डिजाइन बना सकते हैं। आप चाहें तो इसे सूट की स्लीव्स और बॉटम पर भी लगा सकती हैं। इसके साथ आपका सिंपल सूट अच्छा लगेगा।
सूट के किनारे पर गोटा पट्टी लगाएं – अगर आपको लगता है कि सूट में प्रिंट की कमी के कारण वह प्लेन दिखता है तो ऐसे में आप इसके किनारों पर गोटा का इस्तेमाल कर सकती हैं। इसके लिए एक पतली पट्टी का प्रयोग करें। ऐसा स्कार्फ खरीदें जो सूट के रंग से मेल खाता हो और फिर आप चाहें तो इसे दुपट्टे के ऊपर भी पहन सकती हैं। इससे आपका सूट भी अच्छा लगेगा. इसके अलावा आप चाहें तो छोटे-छोटे फूलों के डिजाइन बनाकर भी गर्दन पर लगा सकती हैं।
प्रिंटेड सूट पर गोटा पट्टी लगाएं – अगर आपका सूट प्रिंटेड है तो आप उसे फैंसी बनाने के लिए गोटा पट्टी का इस्तेमाल कर सकती हैं। इसके लिए आप इसे गर्दन और आस्तीन और नीचे के बॉर्डर पर लगा सकती हैं। इससे आपका सूट अच्छा दिखेगा। इसके लिए आप चाहें तो मोटे बकरे का इस्तेमाल कर सकते हैं. ऐसे पीस आपको बाजार में 20 से 40 रुपये में मिल जाएंगे ।

‘चिठ्ठी आई है, आई है चिठ्ठी आई’, गाने से मिली पंकज उधास को गायकी में पहचान

मुम्बई । ‘चिठ्ठी आई है, आई है चिठ्ठी आई’ यह गाना किसकी जुबान पर नहीं होगा। जो लोग विदेश में बसे हैं या अपने घर से दूर रहते हैं। उनके गानों की पसंदीदा सूची में पंकज उधास का ये गाना शामिल जरूर होगा। ‘चिठ्ठी आई है, आई है चिठ्ठी आई’ से लोगों के दिलों में जगह बनाने वाले पंकज उधास का 26 फरवरी को लंबी बीमार के बाद मुंबई में निधन हो गया। वह 72 वर्ष के थे। पंकज उधास का जन्म 17 मई 1951 को गुजरात के राजकोट के निकट जेटपुर में जमींदार गुजराती परिवार में हुआ। उनके बड़े भाई मनहर उधास जाने माने है।
घर में संगीत के माहौल से पंकाज उधास की भी रूचि संगीत की ओर हो गई। महज सात वर्ष की उम्र से ही पंकज उधास गाना गाने लगे। उनके इस शौक को उनके बड़े भाई मनहर उधास ने पहचान लिया और उन्हें इस राह पर चलने के लिये प्रेरित किया। मनहर उधास अक्सर संगीत से जुड़े कार्यक्रम में हिस्सा लिया करते थे। उन्होंने पंकज उधास को भी अपने साथ शामिल कर लिया। 1980 में रलीज हुई पहली एल्बम पंकज उधास ने गजल के अलावा बहुत सारी फिल्मों में गाने भी गाये। वर्ष 1986 में आई फिल्म ‘नाम’से उनको पहचान मिली। उधास ने नाम फिल्म में एक गाना ‘चिठ्ठी आई है, आई है चिठ्ठी आई’, गाया था।
इस गाने के बाद पंकज उधास ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। चिठ्ठी आई है, आई है चिठ्ठी आई ने उनको नई पहचान दी और उधास की आवास घर, घर तक पहुंचीं। उनकी पहली गजल एल्बम ‘आहट’ 1980 में रिलीज हुई थी। यहां से उन्हें सफलता मिलनी शुरू हो गयी । 2009 तक 40 एल्बम रिलीज कर चुके थे। कई फिल्मों में गाये सुपरहिट गाने गायक के तौर पर उन्होंने साजन, ये दिल्लगी और फिर तेरी याद आई जैसी कुछ फिल्मों में गाने गाये थे। पंकज उधास की आखिली एल्बम 2010 में आया था। पंकज उधास को ‘चिठ्ठी आई है, आई है चिठ्ठी आई’ के अलावा चांदी जैसा रंग है तेरा, थोड़ी, थोड़ी पिया करो, जिएं तो जिएं कैसे बिन आपके भी गाने गाए हैं।
इसके अलावा नाम फिल्म का में ‘तू कल चला जाएगा, तो मैं क्या करूंगा’, हम आपके हैं कौन फिल्म में ‘दीदी तेरा देवर दीवाना’, पास वो आने लगे धीरे-धीरे, प्यार दिलों का मेला है…गाने भी गाये थे। एक बार पकंज को एक संगीत कार्यक्रम में हिस्सा लेने का मौका मिला जहां उन्होंने .ए मेरे वतन के लोगों जरा आंख में भर लो पानी (गीत गाया। इस गीत को सुनकर श्रोता भाव.विभोर हो उठे। उनमें से एक ने पंकज उधास को खुश होकर 51 रूपये दिए। इस बीच पंकज उधास राजकोट की संगीत नाट्य अकादमी से जुड़ गए और तबला बजाना सीखने लगे। कुछ वर्ष के बाद पंकज उधास का परिवार बेहतर जिंदगी की तलाश में मुंबई आ गया। पंकज उधास ने अपनी स्नातक की पढ़ाई मुंबई के मशहूर सैंट जेवियर्स कॉलेज से हासिल की। इसके बाद उन्होंने स्नाकोत्तर पढ़ाई करने के लिये दाखिला ले लिया लेकिन बाद में उनकी रूचि संगीत की ओर हो गई और उन्होंने उस्ताद नवरंग जी से संगीत की शिक्षा लेनी शुरू कर दी।
पंकज उधास के सिने कॅरियर की शुरूआत 1972 में प्रदर्शित फिल्म (कामना) से हुई लेकिन कमजोर पटकथा और निर्देशन के कारण फिल्म टिकट खिड़की पर बुरी तरह असफल साबित हुई। इसके बाद गजल गायक बनने के उद्देश्य से पंकज उधास ने उर्दू की तालीम हासिल करनी शुरू कर दी। वर्ष 1976 में पंकज उधास को कनाडा जाने का अवसर मिला और वह अपने एक मित्र के यहां टोरंटो में रहने लगे। उन्हीं दिनों अपने दोस्त के जन्मदिन के समारोह में पंकज उधास को गाने का अवसर मिला। उसी समारोह में टोरंटो रेडियो में हिंदी के कार्यक्रम प्रस्तुत करने वाले एक सज्जन भी मौजूद थे उन्होंने पंकज उधास की प्रतिभा को पहचान लिया और उन्हें टोरंटो रेडियो और दूरदर्शन में गाने का मौका दे दिया। लगभग दस महीने तक टोरंटो रेडियो और दूरदर्शन में गाने के बाद पंकज उधास का मन इस काम से उब गया।

इस तरह संवारिए अपना छोटा सा घर

जरूरी नहीं है कि घर को सजाने के लिए बेहद महंगे शोपीस या अन्य महंगी चीजों का ही इस्तेमाल किया जाए। कई बार घर की सादगी ही उसकी असली खूबसूरती होती है। चूंकि घर आपका है तो उसमें अपनेपन का एहसास होना बहुत जरूरी है और एक घर तभी घर बनता है, जब आप उसे अपने हाथों से सजाते हैं। इसे अपने प्यार के रंगों से भरें. तो आज हम आपको घर को सजाने के कुछ बेहद आसान लेकिन बेहद उपयोगी टिप्स बता रहे हैं-
फर्नीचर को पुनर्व्यवस्थित करें – किसी भी घर में फर्नीचर एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है। लेकिन हर बार फर्नीचर बदलना संभव नहीं है, लेकिन अगर आप अपने घर में बदलाव चाहते हैं तो इसे अपने घर की जगह के अनुसार पुनर्व्यवस्थित करें। हालाँकि, आप चाहें तो अपने फर्नीचर को ब्राइट पेंट करके नया लुक दे सकते हैं। यकीन मानिए यह छोटा सा बदलाव आपके घर का पूरा लुक बदल देगा।
एक केंद्र बिंदु बनाएं – कमरे में एक केंद्र बिंदु बनाने का प्रयास करें। जब आप किसी कमरे की एक दीवार को केंद्र बिंदु बनाते हैं, तो इसका फायदा यह होता है कि यह कमरे के पूरे स्वरूप को संतुलित करती है। साथ ही आपको कमरे में हर जगह सजावट पर पैसे खर्च करने की भी जरूरत नहीं है। इस प्रकार की सजावट जेब के अनुकूल होती है। हालाँकि, दीवार को केंद्र बिंदु बनाना आवश्यक नहीं है। आप कमरे में कोई बड़ा गमला रखकर या किसी अन्य तरीके से फोकल प्वाइंट बना सकते हैं।
पर्यावरण के अनुकूल बनें – अगर घर में हरियाली हो तो पूरा घर खूबसूरत दिखता है। पौधों की मदद से अपने घर को सजाने के कई फायदे हैं। ये सस्ते तो हैं ही, आपकी सेहत भी अच्छी रखते हैं. आप कई तरीकों से अपने घर में हरियाली ला सकते हैं। आप चाहें तो एक दीवार पर पौधे लगाकर उसे नया लुक दे सकते हैं या फिर अगर आपका घर छोटा है तो आप हैंगिंग प्लांटिंग की मदद भी ले सकते हैं। कोशिश करें कि घर में ऐसे पौधों को जगह दें जो किचन के साथ-साथ हवा को भी शुद्ध करने में आपकी मदद कर सकें।
दीवार को नया आकार दें – कमरे की दीवारें आपके पूरे कमरे की शान होती हैं। इसमें बदलाव करने से कमरे में जान आ जाती है। आप इसे कई तरीकों से नया लुक दे सकते हैं। चाहे आप दीवारों का रंग बदलना चाहें या फिर आजकल 3डी वॉल डिजाइन का चलन है जो कमरे को रियल लुक देता है।
छोटे परिवर्तन – अगर आप अपने घर में कुछ नया चाहते हैं तो छोटी-छोटी चीजों में बदलाव करें। जैसे आप कुशन कवर, टेबल रनर, बेडशीट, पर्दे आदि बदलते हैं। साथ ही घर के लिए ऐसे कुशन कवर, टेबल रनर, बेडशीट, पर्दे चुनें जो न सिर्फ घर में रंगत भरें बल्कि थोड़े अलग और फंकी भी हों।

महाशिवरात्रि पर विशेष : नंदी कैसे बने शिव जी का वाहन

नंदी को शिव जी का सबसे प्रिय गण माना जाता है । हिंदू धर्म में सभी देवी-देवताओं के वाहन हैं, नंदी को भोलेनाथ का वाहन माना जाता है। शिवालय में भोलेनाथ की मूर्ति के सामने बैल रूपी नंदी जरुर विराजित होते हैं, 8 मार्च 2024 को महाशिवरात्रि का पर्व है, चारों ओर शिवमय का वातावरण है ।ऐसे में आइए जानते हैं आखिर नंदी कैसे बने शिव के प्रिय वाहन –
कौन हैं नंदी – संस्कृत में ‘नन्दि’ का अर्थ प्रसन्नता या आनंद है। नंदी को शक्ति-संपन्नता और कर्मठता का प्रतीक माना जाता है। नंदी शिव जी के निवास स्थान कैलाश के द्वारपाल भी माने जाते हैं, और भोलेनाथ के वाहन भी. जिन्हें प्रतीकात्मक रूप से बैल के रूप में शिव मंदिर में प्रतिष्ठित किया जाता है । शैव पंरपरा में नंदी को नंदीनाथ संप्रदाय का मुख्य गुरु माना जाता है। प्राचीन काल में चार वेदों के साथ चार अन्य शास्त्र भी लिखे गए थे – धर्मशास्त्र, अर्थशास्त्र, कामशास्त्र और मोक्षशास्त्र. इसमें से कामशास्त्र के रचनाकार नंदी माने जाते हैं ।
नंदी कैसे बने शिव की सवारी – प्राचीन काल में ऋषि शिलाद ने शिव की कठोर तपस्या कर नंदी को पुत्र रूप में पाया था। शिलाद ऋषि ने नंदी को वेद-पुराण सभी का ज्ञान दिया। एक दिन शिलाद ऋषि के आश्रम में दो संत पधारे। नंदी ने पिता के कहने पर उनकी खूब सेवा की। जब वे ऋषिगण जाने लगे तो उन्होंने शिलाद ऋषि को तो लंबी उम्र का आशीर्वाद दिया, लेकिन नंदी के लिए एक शब्द भी नहीं बोला।


ऋषि शिलाद ने सन्यासियों से इसका कारण पूछा, तो उन्होंने बताया कि नंदी अल्पायु है। बेटे के लिए ऐसी बातें सुनकर पिता ऋषि शिलाद चिंतित हो गए। तब नंदी ने उन्हें समझाते हुए कहा कि पिताजी आपने मुझे शिव जी की कृपा से पाया है, तो वो ही मेरी रक्षा करेंगे। इसके बाद नंदी ने शंकर जी के निमित्त कठोर तप किया, नंदी की तपस्या से प्रसन्न हुए और उन्हें अपना वाहन बना लिया।
नंदी के कानों में क्यों कहते हैं कामना – धार्मिक मान्यता है कि भगवान शिव अक्सर तपस्या में लीन रहते हैं। ऐसे में नंदी भक्तों की मनोकामनाएं सुनते हैं और शिव जी तपस्या पूरी होने पर भक्तों की मनोकामनाएं उन्हें बताते हैं।
शिव के प्रति नंदी का असीम प्रेम – पौरणिक कथाओं के अनुसार समुद्र मंथन के दौरान जो समुद्र से वस्तुएं निकलीं उसे लेकर देवता और असुरों में लड़ाई होने लगी। ऐसे में शिव जी ने समुद्र मंथन के दौरान निकले हलाहल विष को पीकर संसार की रक्षा की थी। इस दौरान विष की कुछ बूंदे जमीन पर गिर गई थीं जिसे नंदी ने अपनी पी लिया। नंदी का ये प्रेम और लगाव देख शिव जी ने नंदी को सबसे बड़े भक्त की उपाधि दी, साथ ही ये भी कहा कि लोग शिव जी की पूजा के साथ उनकी भी अराधना करेंगे ।

फ्रिज में ऐसे रखें सब्जियां, कई दिनों तक नहीं होंगी खराब

रोज रोज सब्जी मंडी जाकर सब्जी लाने का समय किसी के पास नहीं होता । ऐसे में बहुत से लोग हफ्ते भर की सब्जियां एक साथ ही लें आते हैं. अब सवाल ये उठता है कि इन सब्जियों को लंबे समय तक ताजा कैसे रखा जाए?

खरीदते वक्त सब्जी की ताजगी कैसे पहचानें? – सबसे खास बात ये है कि सब्जी ताजी हो।  ताजी सब्जी की पहचान करने के लिए ये तरीके सही हो सकते हैं। सब्जी का रंग चमकीला यानी हरा-भरा होना चाहिए। सब्जी में कोई भी भाग सड़ा न हो या बदबू नहीं होनी चाहिए। सब्जी की पत्तियां या और किसी भागों में कोई भी कीड़े या बीमारियां नहीं होनी चाहिए। सब्जी का औसतन आकार एक समान होना चाहिए। अपने आकार से छोटे-बड़े सब्जी खाने में बेहतर स्वाद नहीं मिल सकता है। सब्जी मजबूत होनी चाहिए, ज्यादा गली सब्जी भी नुकसानदायक हो सकता है। सब्जी की त्वचा चिकनी और मुलायम होनी चाहिए।

वैसे तो सब्जियों को लंबे समय तक फ्रेश रखने के लिए फ्रिज का इस्तेमाल किया जाता है लेकिन कई बार फ्रिज में सब्जियां रखने के बावजूद भी कुछ सब्जियां खराब हो जाती हैं। इसका कारण सही से सब्जियों को स्टोर न करना होता है। सब्जियों को अलग अलग तरह से स्टोर करने की जरूरत पड़ती है। कुछ सब्जियां रूम टेंपरेचर में ही फ्रेश रखी जा सकती हैं तो कुछ फ्रिज में रखने से फ्रेश रहती हैं. ऐसे में आइए जानते हैं किस सब्जी को किस तरह स्टोर करके लंबे समय तक फ्रेश रखा जा सकता है.
पत्तेदार सब्जियों को ऐसे करें स्टोर – पत्तेदार सब्जियां जैसे पालक, धनिया को स्टोर करने के लिए इन सब्जियों को सीधा फ्रिज में न रखें। फ्रिज में इन सब्जियों को रखने से पहले इन्हें अच्छी तरह से धो लें और सुखा लें। इसके बाद इन सब्जियों को पेपर टॉवल में लपेटकर सील्ड पैक में रखें। इस तरह पैक करने के बाद सब्जियों को आप फ्रिज में रख सकते हैं ।
आलू, प्याज और बाकी सब्जियों को इस तरह करें स्टोर – आलू और प्याज जैसी सब्जियों को 1 से 2 हफ्ते तक बड़ी ही आसानी से स्टोर किया जा सकता है। आलू और प्याज को फ्रिज में स्टोर न करें. इन्हें थोड़ी ठंडी और डार्क जगह पर रखें । वहीं खीरे और टमाटर को पानी में डालकर फ्रिज में स्टोर करेंय़ इस तरह से स्टोर करने पर ये सब्जियां लंबे समय तक फ्रेश रहेगी। गाजर को धोकर और अच्छी तरह से सुखाकर ही फ्रिज में स्टोर करें ।

सब्जी का दाम आपके बजट के हिसाब से कैसे होने चाहिए?

सब्जी का मूल्य भी उचित होना चाहिए। ज्यादातर सब्जियों की कीमत बाजार में एक समान होती है, लेकिन कुछ सब्जियों की कीमत मौसम के आधार पर बदल भी सकती है।

खरीदी जा रही सब्जियों की मात्रा भी आपकी जरूरत के मुताबिक होनी चाहिए। ज्यादा सब्जियां खरीदने से वे खराब होने का खतरा बढ़ जाता है पर इसके फ्रिज में कैसे रखा जाए ये भी मायने रखता है।

अगर आप सब्जियों को घर ले जाने के लिए पैक करवा रहे हैं, तो ध्यान रखें कि पैकेजिंग अच्छी होनी चाहिए। सब्जियों को सुरक्षित और ताजा रखने के लिए पैकिंग में काफी जगह होनी चाहिए।

आप सब्जियां खरीदते वक्त,दुकानदार विश्वासयोग्य होना चाहिए। उसके पास अच्छी क्वालिटी वाली सब्जियां हों।

4 प्रतिशत बढ़ा केंद्रीय कर्मचारियों का डीए, 1 जनवरी 2024 से प्रभावी

नयी दिल्ली । केंद्रीय कर्मचारियों और पेंशनभोगियों को भारत सरकार ने महंगाई भत्ता बढ़ाते हुए राहत दी है। केंद्रीय मंत्रिमंडल ने गुरुवार को केंद्रीय कर्मचारियों व पेंशनधारियों के महंगाई भत्ता में 4 प्रतिशत की वृद्धि का ऐलान किया है। सरकार के इस फैसले से एक करोड़ से अधिक कर्मचारियों व पेंशनधारकों को फायदा पहुंचेगा। लोकसभा चुनाव के पहले केंद्र सरकार ने कर्मचारियों व पेंशनभोगियों को बड़ी राहत दी है।
1 जनवरी से प्रभावी होगा बढ़ा हुआ महंगाई भत्ता – केंद्रीय मंत्रिमंडल ने गुरुवार को केंद्र सरकार के कर्मचारियों के लिए महंगाई भत्ते और पेंशनभोगियों के लिए महंगाई राहत में बढ़ोत्तरी का फैसला किया। चार प्रतिशत बढ़ा हुआ डीए, 1 जनवरी 2024 से प्रभावी होगा।
केंद्र सरकार के फैसले की जानकारी देते हुए केंद्रीय वाणिज्य और उद्योग मंत्री पीयूष गोयल ने बताया कि सरकार के फैसले से 49.18 लाख कर्मचारियों और 67.95 लाख पेंशनभोगियों को फायदा होगा। उन्होंने कहा कि इस फैसले से सरकारी खजाने पर प्रति वर्ष 12,868.72 करोड़ रुपये का बोझ पड़ेगा। उन्होंने बताया कि पीएम नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में हुई कैबिनेट में यह फैसला लि
पेंशनभोगियों को महंगाई भत्ते (डीए) और महंगाई राहत (डीआर) की अतिरिक्त किस्त मूल्य वृद्धि की भरपाई के लिए मूल वेतन/पेंशन के 46 प्रतिशत की मौजूदा दर से 4 प्रतिशत की वृद्धि की गई है। एक आधिकारिक विज्ञप्ति में कहा गया है कि यह बढ़ोतरी स्वीकृत फॉर्मूले के तहत है। यह सातवें केंद्रीय वेतन आयोग की सिफारिशों पर आधारित है।

मातृभाषा दिवस पर आयोजित समारोहों की रही धूम

कोलकाता । मातृभाषा दिवस हर जगह उत्साह के साथ गत 21 फरवरी को मनाया गया। कई संस्थाओं एवं शिक्षण संस्थानों में कार्यक्रम आयोजित किए गए । कुछ ऐसे ही कार्यक्रमों की झलक –
भवानीपुर कॉलेज ने मनाया अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस 
भवानीपुर एजुकेशन सोसाइटी कॉलेज के बंगाली विभाग और आईक्यूएसी द्वारा 21 फरवरी 2024 को अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस का आयोजन किया गया। उद्घाटन समारोह में रेक्टर प्रो दिलीप शाह, टीआईसी डॉ सुभब्रत गंगोपाध्याय, गुजराती की विभागाध्यक्ष डॉ प्रीति शाह, बांग्ला की विभागाध्यक्ष डॉ मिली समद्दार, अंग्रेजी विभागाध्यक्ष डॉ तथागत सेनगुप्ता, हिंदी विभागाध्यक्ष डॉ कविता मेहरोत्रा और अन्य विभाग के शिक्षक और शिक्षिकाओं ने दीप प्रज्वलित कर कार्यक्रम का शुभारंभ किया। इस अवसर पर हिंदी, बांग्ला, अंग्रेजी, गुजराती, सिंधी आदि सभी भाषाओं में अपनी भावनाओं को व्यक्त करके सभी मातृभाषाओं के प्रति सम्मान प्रदर्शित किया गया । इस दिवस को मनाने का उद्देश्य है कि विश्व में भाषायी एवं सांस्कृतिक विविधता और बहुभाषिता को बढ़ावा मिले।
यूनेस्को द्वारा अन्तरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस की घोषणा से बांग्लादेश के भाषा आन्दोलन दिवस को अन्तरराष्ट्रीय स्वीकृति मिली, जो बांग्लादेश में सन १९५२ से मनाया जाता रहा है। 21 फरवरी को विश्व मातृभाषा दिवस है। मातृभाषा वह भाषा होती है, जिसे हम मां की गोद में खेलते हुए बिना किसी ट्रेनिंग के खुद-ब-खुद सीख लेते हैं। डॉ सुभब्रत गंगोपाध्याय, प्रो दिलीप शाह, डॉ तथागत सेनगुप्ता ने भाषा के विभिन्न पहलुओं पर अपने महत्वपूर्ण विचारों को रखा ।हिंदी कविताएँ, बांग्ला रवीन्द्र संगीत, शास्त्रीय नृत्य और आवृत्ति में विद्यार्थियों ने भाग लिया। कार्यक्रम का संयोजन और संचालन किया डॉ मिली समद्दार ने। कार्यक्रम की जानकारी दी डॉ वसुंधरा मिश्र ने ।
विद्यासागर विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग में अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस
विद्यासागर विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग द्वारा अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस के अवसर पर ‘भारत की सामासिक संस्कृति और मातृभाषा की प्रयोजनीयता’ विषय पर परिचर्चा आयोजित की गई। इस अवसर पर बहुभाषी काव्यपाठ का भी आयोजन हुआ। स्वागत वक्तव्य देते हुए विभागाध्यक्ष डॉ. प्रमोद कुमार प्रसाद ने कहा कि अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा का उद्देश्य है कि हम सभी मिलकर अपनी-अपनी मातृभाषा को और समृद्ध करें। हम बहुभाषी जरूर बनें लेकिन अपनी मातृभाषा को मार कर नहीं। अध्यक्षीय वक्तव्य देते हुए प्रो. दामोदर मिश्र ने कहा कि भाषा का परिवेश के साथ संबंध होता है। परिवेश बदलते ही कई शब्दों के अर्थ लोप हो जाते हैं। बंग भूमि पर रह कर बांग्ला भाषा सीखना सही अर्थों में मातृभाषा दिवस को सार्थक बनाना है। भारत की बहुसांस्कृतिक यात्रा में मातृभाषाएं सहयात्री की तरह है। अंग्रेजी विभाग की डॉ. जॉली दास ने कहा कि हम आधुनिक बनने के नाम पर अपनी मातृभाषा को न छोड़ें। बांग्ला विभाग के डॉ. सुजीत पाल ने अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस की पृष्ठभूमि की ओर संकेत किया और अपनी-अपनी मातृभाषा का सम्मान करने का आग्रह किया। इस अवसर पर बहुभाषी काव्यपाठ में नेहा शर्मा, टीना परवीन,सुषमा कुमारी, वैद्यनाथ चक्रवर्ती, राया सरकार, नाजिया सनवर, सुषमा कुमारी, प्रसन्ना सिंह, बेबी सोनार, राम दंडपाणि, रैनाज राई, उस्मिता गौड़ ने हिंदी, बांग्ला, नेपाली, उड़िया और संस्कृत भाषा में रचित कविताओं का पाठ किया और श्रेया सरकार ने रवींद्र संगीत प्रस्तुत की। संचालन करते हुए डॉ. संजय जायसवाल ने कहा कि मातृभाषा दिवस का यह अवसर दुनिया भर के लोगों की बोली जानेवाली भाषाओं के प्रति सम्मान का पर्व है। भारत की सामासिक संस्कृति का आख्यान कई मातृभाषाओं में संरक्षित एवं सुरक्षित है। बहुभाषिकता एवं बहुसांस्कृतिकता के जरिए ही मातृभाषाओं को व्यापक बनाया जा सकता है। धन्यवाद ज्ञापन करते हुए डॉ. श्रीकांत द्विवेदी ने कहा कि मातृभाषा दिवस का यह आयोजन विभिन्न भाषाओं के बीच एक पुल की तरह है।
साहित्य अकादेमी द्वारा बहुभाषी कवि सम्मिलन का आयोजन
साहित्य अकादेमी द्वारा अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस के अवसर पर बहुभाषी कवि सम्मिलन का आयोजन किया गया, जिसकी अध्यक्षता प्रतिष्ठित मैथिली कवि प्रो. विद्यानंद झा ने की। कार्यक्रम में दस भाषाओं में कविताएँ पढ़ी गईं। कविताएँ मूल भाषा के साथ हिंदी/बांग्ला/अंग्रेजी अनुवाद में प्रस्तुत की गईं। आरंभ में अकादेमी के क्षेत्रीय सचिव डॉ. देवेंद्र कुमार देवेश ने औपचारिक स्वागत करते हुए साहित्य अकादेमी द्वारा भारतीय भाषाओं के संवर्धन के लिए किए जाने वाले प्रयासों के बारे में बताया। कार्यक्रम में अदिति बसुराय (बांग्ला), जीवन सिंह (भोजपुरी), शेखर बनर्जी (अंग्रेजी), पूनम सोनछात्रा (हिंदी), शैवालिनी साहू (ओड़िआ), नारायण प्रसाद होमगाई (नेपाली), छाया मांडी (संताली), गुरदीप सिंह संघा (पंजाबी) और अबुज़ार हाशमी (उर्दू) ने अपनी कविताओं का पाठ किया। पठित कविताओं में समय- समाज और निजी अनुभूतियों के विशाल परिदृश्य की अभिव्यक्तियों को श्रोताओं ने बहुत पसंद किया। कविता पाठ के साथ अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में विद्यानंद झा ने भारतीय भाषाओं के उन्नयन के लिए अकादेमी द्वारा किए जा रहे कार्यों की सराहना की तथा मातृभाषाओं के उत्थान के लिए यह अपील की कि प्रत्येक वर्ष हर व्यक्ति अपनी मातृभाषा में कम से कम एक पुस्तक अवश्य पढ़े तथा एक पुस्तक
खरीदकर अन्य किसी व्यक्ति को उपहार में दे। कार्यक्रम के अंत में अकादेमी के सहायक संपादक क्षेत्रवासी नायक द्वारा औपचारिक धन्यवाद ज्ञापन किया गया। कार्यक्रम में बड़ी संख्या में स्थानीय साहित्यकार और साहित्यप्रेमी उपस्थित थे।
खुदीराम बोस सेंट्रल कॉलेज में मातृभाषा दिवस
गत 21 फरवरी को खुदीराम बोस सेंट्रल कॉलेज के बांग्ला विभाग द्वारा अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा  दिवस का आयोजन किया गया। स्वागत गीत कॉलेज की छात्रा स्वर्णाली बनर्जी ने प्रस्तुत किया। स्वागत भाषण देते हुए कॉलेज की टीआईसी डॉ शुभ्रा उपाध्याय ने कहा कि मातृभाषा को सामाजिक प्रतिष्ठा एवं रोजगार से जोड़ने की जरूरत है तभी मातृभाषा का विकास संभव हो पाएगा। अतिथि वक्ता ऋषिकेश हलदार ने कहा कि भाषा आंदोलन में आंदोलनकारियों ने अपने प्राण गवाएं हैं उनके बलिदान की रक्षा करना हमारा दायित्व है। डॉ. प्रथमा रॉय मंडल ने कहा कि अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा का अर्थ सभी भाषाओं से प्रेम और उनका सम्मान करना है। कॉलेज के प्रेसिडेंट देवाशीष मल्लिक ने कहा कि भाषा को गंभीरता से लेने की जरूरत है क्योंकि भाषा ही वो माध्यम है जिससे हम लोगों से संवाद कर पाते हैं। इस अवसर पर हिंदी विभाग की शिक्षिका मधु सिंह ने कविता पाठ किया। कार्यक्रम का सफल संचालन बांग्ला विभाग के प्रो. रामकृष्ण घोष ने किया। धन्यवाद ज्ञापन देते हुए बांग्ला विभाग के प्रो. डॉ विष्णु सिकदर ने कहा कि मातृभाषा का प्रयोग हमें गर्व से करना चाहिए ताकि हम उस भाषा की संस्कृति और परंपरा को भी जान सकें।
एचआईटीके में मनाया गया मातृभाषा दिवस
 हेरिटेज इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी ने हेरिटेज परिसर में अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस मनाया। 17 नवंबर, 1999 को यूनेस्को द्वारा 21 फरवरी को अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस घोषित किया गया था। यह 21 फरवरी, 2000 से दुनिया भर में मनाया जाता है। यह घोषणा बांग्लादेश में हुए भाषा आंदोलन को श्रद्धांजलि देने के लिए की गई थी। इस दिन के महत्व के बारे में विद्यार्थियों  के बीच जागरूकता बढ़ाने के लिए, संस्थान ने 21 फरवरी, 1952 को बांग्लादेश में शुरू हुए भाषा आंदोलन को दर्शाने के लिए एक प्रदर्शनी और एक सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन किया, जहां बंगाली के उपयोग के लिए अभियान चलाते समय चार छात्रों की मौत हो गई थी। बांग्लादेश में उनकी आधिकारिक मातृभाषा। हेरिटेज इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के प्रिंसिपल प्रोफेसर बासब चौधरी ने प्रत्येक बंगालियों के लिए इस दिन के सार के बारे में बात की और बताया कि कैसे कठोर संघर्ष और बलिदान के बाद बांग्लादेश में बांग्ला को मातृभाषा के रूप में स्वीकार किया गया। प्रोफेसर चौधरी ने कहा, “आज हमें उन छात्रों को श्रद्धांजलि देने के लिए दो मिनट का मौन रखना चाहिए जिन्होंने बंगाली को बांग्लादेश की मातृभाषा बनाने के लिए अपने जीवन का बलिदान दिया। हेरिटेज इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी का प्रवासी क्लब संस्थान के भाषा और समाचार क्लबों द्वारा समर्थित इस कार्यक्रम में सक्रिय रूप से शामिल था। भाषा आंदोलन पूरी दुनिया के लिए एक उदाहरण था कि बंगाली अपनी मातृभूमि को बचाने के लिए क्या कर सकते हैं,” हेरिटेज इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के कंप्यूटर विज्ञान और इंजीनियरिंग विभाग के डीन यूजी, प्रोग्राम और विभाग प्रमुख प्रोफेसर सुभासिस मजूमदार ने कहा। , कोलकाता।

लॉक डाउन की सच्ची घटना पर आधारित है कुसुम का बियाह

कोलकाता । कोरोना काल और लॉक डाउन की पृष्ठभूमि पर कई फिल्में बनी हैं । निर्देशक शुवेंदु राज घोष की फिल्म “कुसुम का बियाह” बेहद वास्तविक है। एक सच्ची घटना से प्रेरित होकर बनी इस फ़िल्म का खास प्रीमिय हाल ही में शो पीवीआर, मनी स्क्वॉयर कोलकाता में किया गया  जहां बंगाल फ़िल्म इण्डस्ट्री के कई दिग्गज कलाकार और शहर के सामाजिक हस्तियाँ थीं। अभिनेता व निर्माता प्रदीप चोपड़ा, निर्देशक शुवेंदु राज घोष, सह निर्माता बलवंत पुरोहित, अभिनेता लवकेश गर्ग भी उपस्थित रहे । निर्माता प्रदीप चोपड़ा ने भी फिल्म में महत्वपूर्ण भूमिका भी निभाई है। उन्होंने कहा कि 100 मिनट की इस फ़िल्म को सेंसर ने यू सर्टिफिकेट दिया है। फिल्म कुसुम का बियाह कोविड 19 महामारी के दौरान हुई एक सत्य घटना पर आधारित है। महामारी के कारण सरकार द्वारा लगाए गए लॉकडाउन के हालात में कई परिवार बुरी तरह फंस गए थे। यह फ़िल्म बिहार से झारखंड जा रही एक बारात के फंस जाने की सच्ची घटना पर आधारित है। लॉक डाउन के दौरान दो राज्यों की सीमा पर कुसुम की बारात फंस जाती है। इस रियल इंसिडेंट को बड़े ही मजेदार ढंग से इस फ़िल्म के द्वारा दिखाया गया है। फ़िल्म “कुसुम का बियाह’ में कुसुम का टाइटल रोल सिक्किम की सुजाना दार्जी ने निभाया है वहीं लवकेश गर्ग ने फ़िल्म में कुसुम के पति का किरदार अदा किया है। इनके अलावा राजा सरकार, सुहानी बिस्वास, प्रदीप चोपड़ा, पुण्य दर्शन गुप्ता, रोज़ी रॉय भी महत्वपूर्ण चरित्रों में दिखाई देते हैं। फिल्म की कहानी और पटकथा लेखक विकास दुबे और संदीप दुबे हैं जबकि इसके संगीतकार भानु सिंह हैं। अभिनेता और निर्माता प्रदीप चोपड़ा ने कहाकि “कुसुम का बियाह” बहुत ही संवेदनशील फ़िल्म है, साथ ही एक सत्य घटना पर आधारित हैं इस कहानी में उत्तर भारत की संस्कृति और संगीत की महक है। किरदार और घटनायें वास्तविक हैं किसी भी तरह की नाटकीयता नहीं देखने को मिलेगी । हम पूरे परिवार के साथ मिलकर देखने वाली एक मनोरंजक फ़िल्म को लेकर दर्शकों के पास आये हैं । फ़िल्म सिनेमागृहों में प्रदर्शित हो चुकी है।

अब चार्नॉक लोहिया अस्पताल बनेगा बड़ाबाजार का लोहिया अस्पताल

कोलकाता । चार्नॉक अस्पताल शहर के उत्तरी भाग में रहनेवाले लोगों के लिए एक प्रेरक शक्ति है, जो एक दशक से ज्यादा समय से लोगों की सेवा प्रदान करने के बाद हजारों लोगों का विश्वास अर्जित करने वाला एकमात्र अस्पताल है। अब  मध्य कोलकाता ने रहनेवाले लोगों की सेवा के लिए अस्पताल की तरफ से इस अस्पताल की एक शाखा खोल कर वहां परिचालन शुरू करने का फैसला लिया गया है। बड़ाबाजार में स्थित लोहिया अस्पताल, जो एक राजसी विरासत की संरचना पर बनी है, जिसका उपयोग कभी लोहिया मातृ सेवा सदन नाम से एक माँ एवं शिशु अस्पताल के रूप में किया जाता था , अब यह इमारत अप्रयुक्त पड़ी है। चार्नॉक अस्पताल इस संपत्ति को पट्टे पर ले रहा है, और इसे एक सुपर स्पेशलिटी अस्पताल में परिवर्तित कर रहा है। जिसे मध्य कोलकाता के घनी आबादी वाले इलाकों में रहनेवाले लोगों की सेवा के लिए चार्नॉक लोहिया अस्पताल का नाम दिया जाएगा।
4 बीघे भूमि में फैला चार्नॉक लोहिया अस्पताल जो पहले के ‘लोहिया मातृसदन’ को 4-6 ओटी, एक कैथलैब और एक सीटीवीएस/न्यूरो ओटी के साथ 200 बिस्तरों वाले सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल में तब्दील किया जाएगा। इसमें 90 से अधिक वार्ड बेड, 20 केबिन, 10 बेड वाली इमरजेंसी, 70 बेड वाली आईसीयू और 10 बेड वाली डायलिसिस यूनिट बनाने की योजना है। जीडी बिड़ला इस परिसर के संस्थापक सदस्यों में से एक थे। गिरीश पार्क मेट्रो स्टेशन के 500 मीटर के मध्य में स्थित, यह व्यापक पार्किंग सुविधा और सभी तरफ से पहुंच के साथ निमताला घाट स्ट्रीट, जोड़ासांको और विवेकानंद रोड से पैदल चलने योग्य दूरी पर स्थित है।
चार्नॉक अस्पताल का तत्काल लक्ष्य ‘रोगी पहले’ इस आदर्श वाक्य के साथ समाज में सभी वर्ग के लोगों की स्वास्थ्य की देखभाल की जरूरतों को पूरा करने के लिए पूरे पश्चिम बंगाल की परिधि में फैले 100-200 बिस्तरों वाले सुपर स्पेशियलिटी अस्पतालों के साथ विस्तार करना है। दशकों से बड़ाबाजार को कोलकाता के ‘बिजनेस हब’ के रूप में जाना जाता है। यहां रहनेवाले स्थानीय निवासियों की निजी स्वास्थ्य देखभाल की आवश्यकता में व्यापक अंतर है क्योंकि आसपास के 5 किमी के क्षेत्र में कोई सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल नहीं है। मरीजों को गंभीर स्वास्थ्य सेवा होने पर बेहतर इलाज के लिए कोलकाता के अन्य अस्पतालों या साल्टलेक, उल्टाडांगा या फिर बीटी रोड में जाना पड़ता है, जिसमें काफी समय लग जाता है। कुछ मामलों में यह घातक साबित हो सकता है। चार्नॉक लोहिया अस्पताल में 160 करोड़ का निवेश किया जायेगा।
 ‘बंगाल का मतलब व्यवसाय’ है, इस तथ्य के अनुरूप इस अस्पताल के होने पर 900 से ज्यादा रोजगार सृजन के साथ अर्थव्यवस्था पर सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। हमारे राज्य में ऐसी कई संपत्तियां खाली, बेकार और अप्रयुक्त पड़ी हैं। चार्नॉक अस्पताल इन मौजूदा परिसरों को दीर्घकालिक पट्टे पर लेने और पूरे बंगाल में सुपर स्पेशलिटी अस्पतालों में परिवर्तित करने के लिए तैयार है, इस प्रकार बढ़ती स्वास्थ्य देखभाल से जुड़ी आवश्यकताओं को पूरा किया जा सकेगा।
अभी कोलकाता हवाई अड्डे के पास चार्नॉक अस्पताल 300 बिस्तरों वाला एक सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल है, जिसमें हृदय विज्ञान, तंत्रिका विज्ञान, गैस्ट्रो विज्ञान, गुर्दे के विज्ञान, पल्मोनरी और अंग प्रत्यारोपण जैसी सेवाएं उपलब्ध हैं। वहां 100 आईसीयू बेड, मॉड्यूलर ओटी, विश्व स्तरीय जर्मन और अमेरिकी चिकित्सा उपकरण, पूर्णकालिक सलाहकार और सुंदर माहौल सहित कला बुनियादी ढांचा उपलब्ध है। चार्नॉक अस्पताल पीपीपी मॉडल में ईएसआई श्रीरामपुर और ईएसआई बैंडेल में 2 आईसीयू इकाइयां चला रहा है। यह अस्पताल पश्चिम बंगाल के विभिन्न स्थानों में राज्य सरकार के साथ पीपीपी मॉडल के साथ सुपर स्पेशलिटी अस्पताल खोलकर लोगों की सेवा के लिए तत्पर है।