Friday, September 19, 2025
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भारत जैन महामंडल लेडीज विंग ने मनाया रंगारंग होली मिलन

कोलकाता। भारत जैन महामंडल लेडिज विंग कोलकाता शाखा की सदस्याओं ने होली का कार्यक्रम आयोजित किया। प्रसिद्ध रेस्टोरेंट स्टन द सन में विनय सेठिया के शानदार आयोजन में सभी ने डीजे पार्टी के जरिए राजस्थानी गीतों का जमकर आनंद लिया । कई तरह के गेम, धमाल, मस्ती, लज़ीज़ खाना, स्टार्टर, शीतय पेय और राजस्थानी व्यंजनों के साथ कुल्फी के जायके के साथ‌ सबने खूब एन्जॉय किया। सभी बहनों में उत्साह देखने लायक था। रंग – बिरंगी पोशाकें मे सजी बहनों ने मस्ती धमाल के साथ राजस्थानी भाषा में बातचीत करते हुए मायड़ भाषा को बढ़ावा देने पर जोर दिया। जो बहनें फर्राटेदार अंग्रेजी बोला करती है वो भी प्रोग्राम में राजस्थानी भाषा में ही बातें करने के साथ राजस्थानी गीत गा रही थीं। समाजसेवी और भारत जैन महामंडल लेडिज विंग की संस्थापक, सलाहकार श्रीमती अंजू सेठिया ने बताया जबतक राजस्थानी भाषा की शुरुआत अपने घर से नहीं होगी सकारात्मक परिणाम नहीं मिल पाएंगे। प्रोग्राम में मुख्य अतिथि के रुप में डाक्टर वसुंधरा मिश्र विशेष रुप से उपस्थित रही। वसुंधरा मिश्र का स्वागत अध्यक्ष चंदा गोलछा ने उत्तरीय ओढ़ाकर किया। रेस्टोरेंट के मालिक विनय सेठिया का सुंदर सहयोग रहा, समाज सेवा के तौर पर उन्होंने काफी डिस्काउंट दिया। भारत जैन महामंडल लेडिज विंग कोलकाता शाखा की अध्यक्ष चंदा गोलछा ने विनय सेठिया को भारत जैन महामंडल का मोमेंटो और उत्तरीय ओढ़ाकर सम्मानित किया। अध्यक्ष चंदा गोलछा, संस्थापक और सलाहकार सरोज भंसाली, अंजू सेठिया, कोषाध्यक्ष अंजु बैद ,रुबी गोलछा, राजश्री भंसाली, कान्ता लुनिया, कविता बोहरा’, सीमा बेगानी, अंजु सुराना, रेशम दुगड, कविता दुगड , उषा बैद, राज कोठारी, इन्द्रा बागरेचा, सज्जन भंसाली, सीमा भावसिंहका, सुमन फुलफगर, सरिता बैद,सुषमा नाहटा, मंजु चोरडिया, कनकलता चोपड़ा ,सुमन कोठारी, सुनीता सेठिया, बेला सेठिया, सीमा बैद, चंदा प्रहलादका, अमराव रामपुरिया, सरोज बैद, गुलाब बैगानी, सुपयार पुगलिया, सुमित्रा सेठिया, स्नेह बागरेचा, निर्मला बागरेचा, भारती लुनिया, सुनीता कुडलिया, प्रमिला कुंडलिया, मीना सोनी आदि सदस्याएं आयोजन की सफलता के लिए सक्रिय रही । उपस्थित सभी बहनों को प्रताप मल गोविंद राम विक्रम सरिता भसालीकी तरफ से होली रंग उपहार स्वरूप दिया गया। चंदा गोलछा,सरोज भंसाली, इंद्रा बागरेचा‌ का आज के प्रोग्राम मे सहयोग रहा।

भारतीय भाषा परिषद का कर्तृत्व समग्र सम्मान-2024

कोलकाता । भारतीय भाषा परिषद का हर साल चार भारतीय भाषाओं को दिए जाने वाले कर्तृत्व समग्र सम्मान और युवा पुरस्कारों की आज घोषणा हुई। कर्तृत्व समग्र सम्मान 1 लाख  की राशि और युवा पुरस्कार 51 हजार रुपये का है। परिषद की अध्यक्ष डॉ. कुसुम खेमानी और निदेशक शंभुनाथ ने आज प्रेस विज्ञप्ति जारी करते हुए सर्वसम्मति से तय किए गए पुरस्कारों की घोषणा की।
कर्तृत्व समग्र सम्मान प्रदान किया जाएगा- जसवीर भुल्लर (पंजाबी), एम. मुकुंदन (मलयालम), राधावल्लभ त्रिपाठी (संस्कृत) और भगवानदास मोरवाल (हिंदी) को। युवा पुरस्कार से सम्मानित किए जाएंगे- आरिफ रजा (कन्नड़), संदीप शिवाजीराव जगदाले (मराठी), गुंजन श्री (मैथिली) और जसिंता केरकेट्टा (हिंदी) को। यदि विशेष स्थिति पैदा नहीं हुई तो ये पुरस्कार 20 अप्रैल को प्रदान किए जाएंगे।
भारतीय भाषा परिषद भारतीय भाषाओं और साहित्य के विकास और प्रोत्साहन के लिए कार्य कर रही देश की प्रतिनिधि सांस्कृतिक संस्था है। इसकी स्थापना 1975 में हुई थी। कर्तृत्व समग्र सम्मान की शुरुआत 1980 में की गई थी। बाद में युवा पुरस्कार भी जुड़े। भारत की सभी राष्ट्रीय भाषाओं के अब तक सौ से अधिक वरिष्ठ और युवा साहित्यकार पुरस्कृत किए जा चुके हैं। परिषद भारतीय भाषाओं के बीच सेतुबंधन के लिए अपने सभागार में राष्ट्रीय स्तर के सेमिनारों के आयोजन के अलावा ‘वागर्थ’ मासिक का भी प्रकाशन करती है। इसने महानगर कोलकाता के सांस्कृतिक गौरव और हिंदी की राष्ट्रीय भूमिका के तौर पर अपनी सारस्वत परंपराओं को अक्षुण्ण रखा है।

राहुल सांकृत्यायन एशियाई जागरण पर सोचते थे

कोलकाता । भारतीय भाषा परिषद में ’इतिहास और साहित्य अध्ययन केंद्र’ द्वारा मिलकर आयोजित एक व्याख्यान कार्यक्रम में ऑस्ट्रेलिया और कोरिया के विश्वविद्यालयों तथा नालंदा विश्वविद्यालय में  प्रोफेसर रह चुके वरिष्ठ शिक्षाविद ने राहुल सांकृत्यायन के इतिहास, दर्शन और साहित्य के क्षेत्र में योगदान पर चर्चा की। उन्होंने कहा कि  राहुल ने एशिया की महानता की अवधारणा दी और एशिया का इतिहास लिखने की शुरुआत की। राहुल एक विश्वकोशीय सोच के व्यक्तित्व थे। मुख्य स्थिति के रूप में व्याख्यान देते हुए प्रो. पंकज मोहन ने बताया कि  राहुल ने कहा था कि यदि हमें अपनी प्राचीन महानता के बारे में चिंतन करना है तो सबसे पहले  एक–दूसरे को समझना होगा। सभी संस्कृतियों को एक–दूसरे को समझना होगा। आज एशिया में दूरियां और तनाव हों, पर एक समय सभी जातियां आपस में संवाद करती थीं। खासकर बौद्ध धर्म के प्रचार के काल में इस महादेश के लोग एक दूसरे के नजदीक आ रहे थे। खासकर नालंदा बौद्ध धर्म से ऊपर उठकर हिंदू धर्म और और विभिन्न पंथों के अध्ययन का केंद्र था।
डा. शंभुनाथ ने कहा कि राहुल सांकृत्यायन ने एशिया के इतिहास लेखन का काम शुरू करके अपने समय में पगडंडी निर्माण का काम किया जो आज चौड़ी सड़क बनाने से ज्यादा कठिन था। वह जमाना आज की तरह विशेषज्ञता का न होकर बहुज्ञता का था। वे नवजागरण और प्रगतिशील आंदोलनों के बीच पुल थे। प्रो. हितेंद्र पटेल ने कहा कि ’इतिहास और साहित्य अध्ययन केंद्र’ कोलकाता के युवा बौद्धिक जगत को विचारों की दुनिया में, बहसों में शामिल करने के लिए है। हम चाहते हैं कि शोधकर्ता, शिक्षक और उच्च शिक्षा से जुड़े विद्यार्थियों को विचार विमर्श का एक खुला मंच मिले। आज इसके पहले आयोजन का उद्घाटन डा. कुसुम खेमानी की उपस्थिति में हुआ। सभा के प्रश्न काल के बाद डा.सोमा बसु ने धन्यवाद दिया। इस चर्चा में  डा. कुसुम खेमानी, डा टेरेसा चोई ( कोरिया) , मृत्युंजय श्रीवास्तव, मंजर जमील, डा देबारती तरफदार, डा  बुलू मोदक , डा नंदिता बनर्जी समेत बहुत सारे  शोधार्थी और छात्र छात्राऐं उपस्थित थे।

भवानीपुर कॉलेज के एन सी सी कैडेटों द्वारा डिकोडिंग एस एस बी सेमिनार

कोलकाता ।  डिकोडिंग एसएसबी सेमिनार स्वयं से पहले सेवा की धारणा को ध्यान में रखते हुए, 27 फरवरी 2024 को, हमारे पूर्व कैडेट जेयूओ शिवांश सोमवंशी (बैच 2020-2023) ने हमारे एनसीसी कैडेटों के लिए एक कार्यशाला आयोजित की, जिसमें उन्होंने एसएसबी साक्षात्कार के अपने अनुभव और टिप्स और ट्रिक्स साझा किए। इससे उन्हें अपने पहले प्रयास में ही सफल होने में मदद मिली। शिवांश को एनसीसी स्पेशल एंट्री के लिए 19 एसएसबी-इलाहाबाद 55वें कोर्स से अनुशंसित किया गया और उसने अखिल भारतीय रैंक 35 हासिल की है।
सेमिनार एसएसबी साक्षात्कार के सभी विभिन्न चरणों के बारे में था। साक्षात्कार पांच दिनों की अवधि में आयोजित किया जाता है, और इसे 2 चरणों में वर्गीकृत किया जाता है। उन्होंने पहले दिन की शुरुआती स्क्रीन-इन के बारे में बताया, जिसमें ओआईआर (ऑफिसर्स रेटिंग टेस्ट), पीपीडीटी (पिक्चर परसेप्शन एंड डिस्कशन टेस्ट) और उसके बाद ग्रुप डिस्कशन शामिल था। शिवांश ने नियमों पर प्रकाश डाला और हमारे सीडीटी को कुछ नोट्स दिए। चरण दो में मनोवैज्ञानिक परीक्षण, समूह कार्य और बाधाएं, व्याख्यान, समूह योजना अभ्यास, साक्षात्कार और अंतिम सम्मेलन शामिल है। उन्होंने एसएसबी साक्षात्कार के लिए क्या करें और क्या न करें के बारे में विस्तृत जानकारी दी। उन्होंने अपना अनुभव भी साझा किया। बाद में, प्रोफेसर दिलीप शाह, रेक्टर और डीन बीईएससी ने उन्हें उनकी उपलब्धि के लिए एक स्मृति चिन्ह भेंट किया और साथ ही सशस्त्र बलों में करियर चुनने के लिए कैडेटों को परामर्श देने और प्रेरित करने के लिए उन्हें एक स्मृति चिन्ह भी भेंट किया। अरित्रिका दुबे एनसीसी प्रभारी एयर विंग ने आयोजन और संयोजन में भाग लिया। कार्यक्रम की जानकारी दी डॉ वसुंधरा मिश्र ने ।

समीक्षा – काव्य संग्रह ‘एक उत्सव :एक महोत्सव’ बावरे मन की ये ज़ुबानी चिट्ठी

डॉ वसुंधरा मिश्र, भवानीपुर एजूकेशन सोसाइटी कॉलेज, हिंदी विभाग, कोलकाता
वीणा जैन कृत ‘एक उत्सव: एक महोत्सव’ कविता वीणा जैन का सातवाँ कविता संग्रह है। आख़िर माजरा क्या है?, तरणी तरणी आदि कई कविता संग्रहों की रचनाकार वीणा जैन जानी-पहचानी एक स्थापित कवयित्री हैं। प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में उनकी कविताएँ अक्सर प्रकाशित होती रहती हैं। दिलचस्प बात यह है कि वह चित्रकार भी हैं। तैलचित्रों में उन्हें महारत हासिल है। उनकी एकल प्रदर्शनी कोलकाता और विशाखापत्तनम जैसे शहरों में लग चुकी हैं। एक उत्सव: एक महोत्सव अस्सी कविताओं का संग्रह है जो अक्टूबर 2022 में प्रकाशित हुई है। किताब के आवरण की सादगी कवयित्री की सहजता, सरलता और गहराई से रूबरू कराती है। आवरण कुंवर रवीन्द्र ने बनाया है जिसमें जीवन के खुरदरेपन का अहसास तो है ही लेकिन जीवन का महोत्सव भी समाया हुआ है।
प्रत्येक कविता नए पृष्ठ से आरम्भ होती है। कविताओं में कवयित्री का चित्रकार मन अपनी तूलिका के रंग भी बिखेरती नजर आती है । 90 के दशक से कवयित्री की जो शब्दों की नाव चली वह आज भी सागर की मदमाती लहरों से अनादि काल से लड़ती हुई उस स्त्री की कथा को कहती चली जाती है जो सागर तट पर खड़ी किसी अप्रत्याशित विजय गाथा की कठिन भूमिका को लिखने का कार्य कर रही है। ‘वो दीप जला कर बैठी थी,और तेल चुकने वाला था।’ उम्र के इस पडा़व पर भी वह विचारशील और जीवंतता से परिपूर्ण है।
पांच दशकों से कविता और चित्रकारी एक दूसरे के पूरक बन रहे हैं। 1946 में राजस्थान के सरदाशहर में जन्मी वीणा जैन सरस्वती की सच्ची साधक हैं जिन्होंने वाक् देवी की आराधना की और उन्हें शब्दों की भाव भूमि पर उतारा है ।
वीणा की कविताओं को पढ़ते हुए अनामिका की
‘स्त्रियाँ’ कविता स्मरण हो आईं हैं जिसमें अनामिका क्रियात्मक बोध के बरक्स स्त्री के वजूद को तलाशती हैं । इस कविता में पढ़ना, देखना और सुनना तीन क्रियाओं के प्रयोग द्वारा समाज की उस चेतना को परखा गया है जिसके माध्यम से वे स्त्री को पढ़ते, देखते और सुनते हैं और इतना ही नहीं, भोगने की व्यथा की कथा भी अनामिका लिखती हैं।
वीणा जैन की ‘औरत ‘कविता में कवयित्री का मानना है कि कहीं यह बदले की भावना तो नहीं है, कहीं अतीत के इतिहास का रूपांतरण तो नहीं हो रहा है? ये पंक्तियाँ सचेत कराती हैं – –
‘यह दारुण दौड़ किसलिए?
वजूद को ही…
नर्क की ओर ढकेलता
ये मोड़ किसलिए?
… तुम तो खुद रोशनी हो…
अपनी रोशनी को विस्तार दो…
पुरुष!!
सहयात्री है तुम्हारा
तुम भी तो हमसफ़र हो…
फिर ये कैसी प्रतिस्पर्धा है
कैसा अंतर्द्वंद है?’ (पृष्ठ 75 एक उत्सव :एक महोत्सव)
विभिन्न अस्मिताओं के संघर्ष का प्रतिनिधित्व करते-करते स्त्री के विभिन्न अहसास जिंदगी से पूछे अनगिनत सवालों के जवाब के रूप में कवयित्री’ आहट’ कविता में अपनी’ भोली सी अनुभूतियाँ’ महसूस करती है और उसे अच्छे दिनों की आहट समझती है। (पृष्ठ 39 एक उत्सव)
‘एक अनूठा किस्सा हूँ मैं’ कविता में कवयित्री मानती है कि इस कायनात में, चहल-पहल में, एक हलचल, बैचेनी एक तिश्नगी, भ्रांत, क्लांत वातावरण में कितने ही मुखौटे लगाए इस चहल-पहल का अहम हिस्सा है।
स्त्री के अतीत, वर्तमान और भविष्य की तमाम यादों और रंगों का शब्द चित्रण इस काव्य संग्रह के उत्सव और महोत्सव हैं।
प्रथम कविता ‘जब मैं मुझसे मिलती हूँ!!’ में कवयित्री स्पष्टीकरण करती है। चिड़िया , नवल नवोढा़, नव प्रसूता, झुर्रियों के जंगलों से चुपचाप गुजरना, बचपन से आज तक की सारी यादों को बटोरती हुई वह ध्यान में चली जाती है और मोहबंध से मुक्त हो शून्य में समा जाना चाहती है।
इस जीवन को ही’ एक उत्सव एक महोत्सव ‘के रूप में देखती है। जन्म को उत्सव और मृत्यु को महोत्सव में उसका जीवन पिरोया है। इस जीवन के लंबे सफ़र में पथरीले पत्थर, सुंदर घाटियां, समंदर, गीत गाती नदियां, कंटीले जंगल, लहलहाती हरियाली के साथ – साथ मृत्यु के महोत्सव का इंतज़ार है। कवयित्री अपनी आध्यात्मिक यात्रा में  मृत्यु के महोत्सव के देखने की इच्छा व्यक्त करती है जो जादू है।( पृ 14)
कवयित्री  ध्यानस्थ हो कविता के शब्दों में जीवन के सभी पडा़व, सभी पहलुओं पर विचार रखती है।
वीणा की कविताओं को तीन प्रकार से महसूस किया जा सकता है। अध्यात्म का प्रथम, द्वितीय और तृतीय सोपान जहांँ वह साधक के अंतिम पड़ाव को पार करती नजर आ रही है।
कवयित्री की कविता सुलगते मरुस्थल से भी गुजरी है लेकिन अब उसकी कविता थक गई है वह परिंदों की मीठी बोलियाँ सुनने के लिए आतुर है। पृ 20
जीवन की अंतिम यात्रा में सत्य को जानने के लिए उत्सुक है कवयित्री  कहती है कि ‘कुछ ही दिन तो बचे हैं शेष.. ‘पृ 23
वह स्त्री की तुलना उस नदी से करती है जो निरंतर बहती रहती है और वह थकती नहीं है। वह कहती है नदी भी तो स्त्री है मेरी तरह क्या स्त्री थकती नहीं पृष्ठ 48 । लोग मुझे कहते हैं कवि , मैं ठहरी हुई अनुभूति हूँ उड़ता पंछी कविता में कवयित्री कहती है ।मैं अंतर्मुखी कविता मेरी सखी जैसे पंक्तियाँ कवयित्री के साधक मन को व्यक्त करती हैं।
बिंब प्रयोग भी अद्भुत हैं और स्त्री की उपमा नदी की मनःस्थिति और उसके भौतिक रूप के साथ समानता देखती है – – नदी की छरहरी काया, उसके तीखे कटी – कटाव, काजल घुले ज्यूं नयन कजरारे, दिपते – झिपते किनारे और अद्भुत न्यारे नज़ारे पृष्ठ 69 आदि के प्रयोग से कवयित्री एक कविता बना लेती है।  छलक – छलक कर अंतर को छू लेती नदी कवयित्री को शीत की भोर, छितरे- छितरे श्यामघन से जोड़ते हैं तो  केदारनाथ के आंसूं समंदर, प्रेम, कुछ दिन हुए, खुशी की गौरेया, रुक जाओ वसंत, यायावरी, इस पिघलती उम्र में आदि कविताओं में कवयित्री की अनुभूति के स्तर की ऊंँचाइयों को देखा जा सकता है।
भूख से रोता बच्चा, दूर वहाँ परदेस में, जहाज की डेक पर खड़ी मैं और कोलकाता का रिक्शेवाला आदि कविताओं में कवयित्री की संवेदनशीलता का और सच्चे मानवीय भावों के चित्र मिलते हैं ।
‘औरत’ कविता में कवयित्री अपनी कथा के क्लाईमेक्स को लाती है और अपनी इच्छाओं को जाहिर करती है – – छूना है आकाश /ढूंढने है अपने इंद्रधनुष /हाँ अब वक्त आ गया है/बेवजह कसी बेड़ियों को तोड़कर /अपने अद्भुत सपनों को सच करने का वक्त। पृष्ठ 75
औरत को समझाती हैं – तू औरत ही अच्छी है /औरत ही बनी रहना… पृष्ठ 76 ।उसे एक अदद नखलिस्तान की खोज है। पृष्ठ 114 अंतिम कविता ‘तुम नहीं समझोगे’ में ब्रह्मांड के लिए चिट्ठी  है जिसमें कई अनछुई चाहतें लिख देती है।
उसका बावरा मन है। वह जानती है कि ये जुबानी चिट्ठी है। पृष्ठ 128।
‘एक उत्सव :एक महोत्सव’ कविता संग्रह एक स्त्री के मन के भावों के विभिन्न चित्र बिंबों को उकेरती है। भाषा सरल और सहज है। कविताओं में ताल, छंद और लय  की गति है जो सौंदर्य को बढ़ाता है। मन की उदासी और निराशा को दूर कर सकारात्मक ऊर्जा को बढ़ाती हैं ये कविताएँ। पठनीय हैं।
किताब – एक उत्सव: एक महोत्सव
विधा – कविता
रचनाकार – वीणा जैन
प्रकाशक – कलमकार मंच
मूल्य- 170 रुपए
पेज संख्या- 128
आवरण-कुंवर रवीन्द्र
संस्करण वर्ष – 2022
कवयित्री सम्पर्क- [email protected]

भवानीपुर कॉलेज ने मनाया विद्यार्थियों के साथ इबीजा फ़र्न रिज़ॉर्ट में पिकनिक

कोलकाता ।  भवानीपुर एजुकेशन सोसाइटी कॉलेज ने 200 छात्र छात्राओं के साथ 26 फरवरी 2024 को, 14 संकायों के साथ लगभग  इबीसा फ़र्न रिज़ॉर्ट में पिकनिक मनाया गया जिसका उद्देश्य शिक्षक, शिक्षिकाओं और विद्यार्थियों के साथ आपसी विश्वास को मजबूत करना था । भवानीपुर कॉलेज के परिसर से  4 बसों में विद्यार्थियों ने अपनी यात्रा  शुरू की जिसमें विद्यार्थियों ने अपने स्पोर्ट्स गियर, म्यूजिक सिस्टम और चेहरे पर एक बड़ी मुस्कान  साथ लिए डेढ़ घंटे की लंबे सफर को तय किया। रास्ते में यात्रा को आनंददायक बनाने के लिए बीईएससी का नारा लगाते हुए गीत और नृत्य किए । भरपूर नाश्ते के बीच प्रकृति का अभिवादन और स्वागत किया गया, पिकनिक में ज्ञात और अज्ञात चेहरों से जुड़ने के कारण परिचय का दायरा भी बढ़ा। दिन भर में शामिल होने के लिए कई विकल्पों के साथ, रिज़ॉर्ट में जिप लाइन, बोटिंग, साइकिलिंग के साथ-साथ शतरंज, टेबल टेनिस, कैरम जैसे खेल भी उपलब्ध थे। दोपहर तक छात्र छात्राओं ने  डिस्कोथेक की ओर  गए और दोपहर के भोजन तक जमकर नृत्य किया। दोपहर का भोजन हो चुका था और सभी ने प्रकृति का आनंद लिया परिसर में आनंद और म्यूजिकल चेयर खेल जमकर खेला। शाम 4.00 बजे तक इबीज़ा रिज़ॉर्ट में दिन भर चले उत्सव को समाप्त करने के लिए चाय और नाश्ते की पेशकश की गई। 5.30 बजे तक छात्र पुराने और नए चेहरों के साथ दोस्ती के अपने बंधन को नवीनीकृत करते हुए शाम को कॉलेज लौट आए। कॉलेज की पिकनिक जीवन की मीठी यादों को संजोए रखती है। कार्यक्रम की जानकारी दी डॉ वसुंधरा मिश्र ने ।

महिला दिवस पर आपसे कुछ सवाल शुभजिता के

गृहलक्ष्मी, दुर्गा, सरस्वती…जाने कितनी शुभकामनाएं….पर क्या स्त्री के सम्मान का यह मापदंड हो सकता है । हम यह सोच ही रहे थे कि वेबदुनिया पर हमें यह प्रश्न मिले और ऐसा लगा कि यह प्रश्न तो वह प्रश्न हैं जो हम भी पूछना चाहते हैं तो चलिए वेबदुनिया पर प्रीति सोनी ने जो शानदार प्रश्न पूछे हैं, वही शुभजिता भी आपसे पूछना चाहती है…चलिए अब बताइए –
1. क्या किसी बस, ट्रेन या सार्वजनिक स्थल पर खड़ी महिला को सीट देने के लिए आप पहल करते हैं, या फिर आप अपनी सीट पर बैठे-बैठे उन्हें परेशान होता देखना पसंद करते हैं?
2. क्या आप किसी महिला को उसके अच्छा या बुरा दिखने पर घूर-घूरकर ऊपर से नीचे तक बार-बार देखते हैं, या एक बार नजर देखने के बाद दूसरी बार ऐसा नहीं करते?.
3. किसी महिला की गलती होने पर आप उससे बदतमीजी से बात करते हैं, या सामान्य तरीके से उसे समझाने का प्रयास करते हैं?
4. सड़क पार कर रही, या वहां से गुजर रही महिला या किशोरी पर क्या आप अच्छा या बुरा कमेंट करते हैं, या सहयोगात्मक रवैया जताकर उसे निकलने के लिए रास्ता देते हैं?
5. क्या महिलाओं की निजता से जुड़ी किसी बात पर आप अकेले में या समूह में खि‍सियाकर अपनी हंसी छुपाने का प्रयास करते हैं?
6. क्या आपने कभी महिला या किसी युवती को अवांछित रूप से छूने का प्रयास किया है? अपने अनुसार परिस्थि‍ति न बनने या आपकी बात न मानने पर आप महिलाओं के चरित्र को लेकर सवाल उठाते हैं ?
7. कुछ स्थि‍तियों में क्या आप महिलाओं की मदद सिर्फ इसलिए करते हैं, कि आपको उन पर दया आ रही हो?
8. क्या आप अपने घर में या बाहर महिलाओं के लिए अपशब्द या गाली का प्रयोग करते हैं, या फिर उनपर हथ उठाने का प्रयास करते हैं?
9. क्या आप महिलाओं को केवल उसकी देह की दृष्टि से देखते हैं, या फिर उसका अपना कोई व्यक्तित्व और अस्तित्व है इस पर यकीन करते हैं?
10. किसी महि‍ला के सफल होने या प्रतिष्ठा और कार्य के मामले में आपसे आगे निकल जाने की स्थि‍ति में आप उसका उत्साहवर्धन करते हैं, या उसका उत्साह कम करने का प्रयास करते हैं ?
इन सारे सवालों के सही जवाब आप खुद जानते हैं, लेकिन अगर आपके जवाब, सही जवाबों से मेल नहीं खाते, तो आपको एक बार विचार करने की आवश्यकता है, खुद के लिए…कि क्या आप सच में नारी का सम्मान करते हैं।
(साभार – वेबदुनिया)

महाशिवरात्रि पर ऐसे पंचामृत 

महाशिवरात्रि के दिन भोलेनाथ का जल, दूध, घी, शहद, गन्ने के रस के साथ पंचामृत से अभिषेक किया जाता है। इतना ही नहीं, शिव भक्तों के बीच प्रसाद के रूप में पंचामृत भी बांटा जाता है. आपको बता दें, पंचामृत पांच पवित्र चीजों से बनता है। इसे बनाने के लिए पांच अमृत सामग्री- दूध, दही, घी, शहद और चीनी का उपयोग किया जाता है। दरअसल, सभी देवी-देवताओं की पूजा में पंचामृत का उपयोग किया जाता है। लेकिन महादेव को यह बहुत प्रिय है. ऐसे में अगर आप भी महाशिवरात्रि के दिन शिव पूजा के लिए घर पर पंचामृत बनाना चाहते हैं तो इस रेसिपी को अपनाएं।
पंचामृत बनाने के लिए सामग्री- 5-6 बड़े चम्मच दही, 1 बड़ा चम्मच घी, 2 कप दूध, 1 चम्मच सूखे मेवे, 2 बड़े चम्मच पिसी हुई चीनी,1 बड़ा चम्मच शहद, 4-5 तुलसी के पत्ते
पंचामृत बनाने की विधि- पंचामृत बनाने के लिए सबसे पहले एक बर्तन को अच्छी तरह धोकर साफ कपड़े से पोंछ लें। इसके बाद बर्तन में दूध, दही, घी, शहद और चीनी डालकर सभी सामग्री को अच्छी तरह मिला लें। आप चाहें तो इसके लिए ग्राइंडर का भी इस्तेमाल कर सकते हैं। अब इस मिश्रण में तुलसी के पत्ते और कटे हुए सूखे मेवे मिलाएं। महाशिवरात्रि पर भगवान शिव का अभिषेक करने के लिए पंचामृत तैयार है।

गोटा पट्टी से सजाएं साधारण सलवार कमीज

हम सभी को बाज़ार में खरीदारी करना बहुत पसंद होता है। इसलिए हम अक्सर ट्रेंडी डिज़ाइन वाले कपड़े पहनते हैं। लेकिन कई बार हम एक ही डिजाइन के कपड़े पहनकर थक जाते हैं। ऐसे में आप अपने सादे कपड़ों को फैंसी बनाने के लिए गोटा पट्टी का इस्तेमाल कर सकती हैं।
इसमें आपका लुक भी अच्छा लगेगा. इसके अलावा आपके कपड़ों का लुक भी बदल जाएगा। आइए हम आपको बताते हैं कि आप इसका इस्तेमाल कैसे कर सकते हैं.
सूट के गले पर प्रयोग करें -अगर आपको लगता है कि सूट की नेकलाइन प्लेन है तो आप इसे फैंसी बनाने के लिए इस पर गोटा पट्टी का इस्तेमाल कर सकती हैं। इसके लिए आपको एक पतली पट्टी लगानी होगी ताकि आप इसकी परत बना सकें। इसके बाद आप इससे चौकोर या बॉक्स डिजाइन बना सकते हैं। आप चाहें तो इसे सूट की स्लीव्स और बॉटम पर भी लगा सकती हैं। इसके साथ आपका सिंपल सूट अच्छा लगेगा।
सूट के किनारे पर गोटा पट्टी लगाएं – अगर आपको लगता है कि सूट में प्रिंट की कमी के कारण वह प्लेन दिखता है तो ऐसे में आप इसके किनारों पर गोटा का इस्तेमाल कर सकती हैं। इसके लिए एक पतली पट्टी का प्रयोग करें। ऐसा स्कार्फ खरीदें जो सूट के रंग से मेल खाता हो और फिर आप चाहें तो इसे दुपट्टे के ऊपर भी पहन सकती हैं। इससे आपका सूट भी अच्छा लगेगा. इसके अलावा आप चाहें तो छोटे-छोटे फूलों के डिजाइन बनाकर भी गर्दन पर लगा सकती हैं।
प्रिंटेड सूट पर गोटा पट्टी लगाएं – अगर आपका सूट प्रिंटेड है तो आप उसे फैंसी बनाने के लिए गोटा पट्टी का इस्तेमाल कर सकती हैं। इसके लिए आप इसे गर्दन और आस्तीन और नीचे के बॉर्डर पर लगा सकती हैं। इससे आपका सूट अच्छा दिखेगा। इसके लिए आप चाहें तो मोटे बकरे का इस्तेमाल कर सकते हैं. ऐसे पीस आपको बाजार में 20 से 40 रुपये में मिल जाएंगे ।

‘चिठ्ठी आई है, आई है चिठ्ठी आई’, गाने से मिली पंकज उधास को गायकी में पहचान

मुम्बई । ‘चिठ्ठी आई है, आई है चिठ्ठी आई’ यह गाना किसकी जुबान पर नहीं होगा। जो लोग विदेश में बसे हैं या अपने घर से दूर रहते हैं। उनके गानों की पसंदीदा सूची में पंकज उधास का ये गाना शामिल जरूर होगा। ‘चिठ्ठी आई है, आई है चिठ्ठी आई’ से लोगों के दिलों में जगह बनाने वाले पंकज उधास का 26 फरवरी को लंबी बीमार के बाद मुंबई में निधन हो गया। वह 72 वर्ष के थे। पंकज उधास का जन्म 17 मई 1951 को गुजरात के राजकोट के निकट जेटपुर में जमींदार गुजराती परिवार में हुआ। उनके बड़े भाई मनहर उधास जाने माने है।
घर में संगीत के माहौल से पंकाज उधास की भी रूचि संगीत की ओर हो गई। महज सात वर्ष की उम्र से ही पंकज उधास गाना गाने लगे। उनके इस शौक को उनके बड़े भाई मनहर उधास ने पहचान लिया और उन्हें इस राह पर चलने के लिये प्रेरित किया। मनहर उधास अक्सर संगीत से जुड़े कार्यक्रम में हिस्सा लिया करते थे। उन्होंने पंकज उधास को भी अपने साथ शामिल कर लिया। 1980 में रलीज हुई पहली एल्बम पंकज उधास ने गजल के अलावा बहुत सारी फिल्मों में गाने भी गाये। वर्ष 1986 में आई फिल्म ‘नाम’से उनको पहचान मिली। उधास ने नाम फिल्म में एक गाना ‘चिठ्ठी आई है, आई है चिठ्ठी आई’, गाया था।
इस गाने के बाद पंकज उधास ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। चिठ्ठी आई है, आई है चिठ्ठी आई ने उनको नई पहचान दी और उधास की आवास घर, घर तक पहुंचीं। उनकी पहली गजल एल्बम ‘आहट’ 1980 में रिलीज हुई थी। यहां से उन्हें सफलता मिलनी शुरू हो गयी । 2009 तक 40 एल्बम रिलीज कर चुके थे। कई फिल्मों में गाये सुपरहिट गाने गायक के तौर पर उन्होंने साजन, ये दिल्लगी और फिर तेरी याद आई जैसी कुछ फिल्मों में गाने गाये थे। पंकज उधास की आखिली एल्बम 2010 में आया था। पंकज उधास को ‘चिठ्ठी आई है, आई है चिठ्ठी आई’ के अलावा चांदी जैसा रंग है तेरा, थोड़ी, थोड़ी पिया करो, जिएं तो जिएं कैसे बिन आपके भी गाने गाए हैं।
इसके अलावा नाम फिल्म का में ‘तू कल चला जाएगा, तो मैं क्या करूंगा’, हम आपके हैं कौन फिल्म में ‘दीदी तेरा देवर दीवाना’, पास वो आने लगे धीरे-धीरे, प्यार दिलों का मेला है…गाने भी गाये थे। एक बार पकंज को एक संगीत कार्यक्रम में हिस्सा लेने का मौका मिला जहां उन्होंने .ए मेरे वतन के लोगों जरा आंख में भर लो पानी (गीत गाया। इस गीत को सुनकर श्रोता भाव.विभोर हो उठे। उनमें से एक ने पंकज उधास को खुश होकर 51 रूपये दिए। इस बीच पंकज उधास राजकोट की संगीत नाट्य अकादमी से जुड़ गए और तबला बजाना सीखने लगे। कुछ वर्ष के बाद पंकज उधास का परिवार बेहतर जिंदगी की तलाश में मुंबई आ गया। पंकज उधास ने अपनी स्नातक की पढ़ाई मुंबई के मशहूर सैंट जेवियर्स कॉलेज से हासिल की। इसके बाद उन्होंने स्नाकोत्तर पढ़ाई करने के लिये दाखिला ले लिया लेकिन बाद में उनकी रूचि संगीत की ओर हो गई और उन्होंने उस्ताद नवरंग जी से संगीत की शिक्षा लेनी शुरू कर दी।
पंकज उधास के सिने कॅरियर की शुरूआत 1972 में प्रदर्शित फिल्म (कामना) से हुई लेकिन कमजोर पटकथा और निर्देशन के कारण फिल्म टिकट खिड़की पर बुरी तरह असफल साबित हुई। इसके बाद गजल गायक बनने के उद्देश्य से पंकज उधास ने उर्दू की तालीम हासिल करनी शुरू कर दी। वर्ष 1976 में पंकज उधास को कनाडा जाने का अवसर मिला और वह अपने एक मित्र के यहां टोरंटो में रहने लगे। उन्हीं दिनों अपने दोस्त के जन्मदिन के समारोह में पंकज उधास को गाने का अवसर मिला। उसी समारोह में टोरंटो रेडियो में हिंदी के कार्यक्रम प्रस्तुत करने वाले एक सज्जन भी मौजूद थे उन्होंने पंकज उधास की प्रतिभा को पहचान लिया और उन्हें टोरंटो रेडियो और दूरदर्शन में गाने का मौका दे दिया। लगभग दस महीने तक टोरंटो रेडियो और दूरदर्शन में गाने के बाद पंकज उधास का मन इस काम से उब गया।