समीक्षा – काव्य संग्रह ‘एक उत्सव :एक महोत्सव’ बावरे मन की ये ज़ुबानी चिट्ठी

डॉ वसुंधरा मिश्र, भवानीपुर एजूकेशन सोसाइटी कॉलेज, हिंदी विभाग, कोलकाता
वीणा जैन कृत ‘एक उत्सव: एक महोत्सव’ कविता वीणा जैन का सातवाँ कविता संग्रह है। आख़िर माजरा क्या है?, तरणी तरणी आदि कई कविता संग्रहों की रचनाकार वीणा जैन जानी-पहचानी एक स्थापित कवयित्री हैं। प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में उनकी कविताएँ अक्सर प्रकाशित होती रहती हैं। दिलचस्प बात यह है कि वह चित्रकार भी हैं। तैलचित्रों में उन्हें महारत हासिल है। उनकी एकल प्रदर्शनी कोलकाता और विशाखापत्तनम जैसे शहरों में लग चुकी हैं। एक उत्सव: एक महोत्सव अस्सी कविताओं का संग्रह है जो अक्टूबर 2022 में प्रकाशित हुई है। किताब के आवरण की सादगी कवयित्री की सहजता, सरलता और गहराई से रूबरू कराती है। आवरण कुंवर रवीन्द्र ने बनाया है जिसमें जीवन के खुरदरेपन का अहसास तो है ही लेकिन जीवन का महोत्सव भी समाया हुआ है।
प्रत्येक कविता नए पृष्ठ से आरम्भ होती है। कविताओं में कवयित्री का चित्रकार मन अपनी तूलिका के रंग भी बिखेरती नजर आती है । 90 के दशक से कवयित्री की जो शब्दों की नाव चली वह आज भी सागर की मदमाती लहरों से अनादि काल से लड़ती हुई उस स्त्री की कथा को कहती चली जाती है जो सागर तट पर खड़ी किसी अप्रत्याशित विजय गाथा की कठिन भूमिका को लिखने का कार्य कर रही है। ‘वो दीप जला कर बैठी थी,और तेल चुकने वाला था।’ उम्र के इस पडा़व पर भी वह विचारशील और जीवंतता से परिपूर्ण है।
पांच दशकों से कविता और चित्रकारी एक दूसरे के पूरक बन रहे हैं। 1946 में राजस्थान के सरदाशहर में जन्मी वीणा जैन सरस्वती की सच्ची साधक हैं जिन्होंने वाक् देवी की आराधना की और उन्हें शब्दों की भाव भूमि पर उतारा है ।
वीणा की कविताओं को पढ़ते हुए अनामिका की
‘स्त्रियाँ’ कविता स्मरण हो आईं हैं जिसमें अनामिका क्रियात्मक बोध के बरक्स स्त्री के वजूद को तलाशती हैं । इस कविता में पढ़ना, देखना और सुनना तीन क्रियाओं के प्रयोग द्वारा समाज की उस चेतना को परखा गया है जिसके माध्यम से वे स्त्री को पढ़ते, देखते और सुनते हैं और इतना ही नहीं, भोगने की व्यथा की कथा भी अनामिका लिखती हैं।
वीणा जैन की ‘औरत ‘कविता में कवयित्री का मानना है कि कहीं यह बदले की भावना तो नहीं है, कहीं अतीत के इतिहास का रूपांतरण तो नहीं हो रहा है? ये पंक्तियाँ सचेत कराती हैं – –
‘यह दारुण दौड़ किसलिए?
वजूद को ही…
नर्क की ओर ढकेलता
ये मोड़ किसलिए?
… तुम तो खुद रोशनी हो…
अपनी रोशनी को विस्तार दो…
पुरुष!!
सहयात्री है तुम्हारा
तुम भी तो हमसफ़र हो…
फिर ये कैसी प्रतिस्पर्धा है
कैसा अंतर्द्वंद है?’ (पृष्ठ 75 एक उत्सव :एक महोत्सव)
विभिन्न अस्मिताओं के संघर्ष का प्रतिनिधित्व करते-करते स्त्री के विभिन्न अहसास जिंदगी से पूछे अनगिनत सवालों के जवाब के रूप में कवयित्री’ आहट’ कविता में अपनी’ भोली सी अनुभूतियाँ’ महसूस करती है और उसे अच्छे दिनों की आहट समझती है। (पृष्ठ 39 एक उत्सव)
‘एक अनूठा किस्सा हूँ मैं’ कविता में कवयित्री मानती है कि इस कायनात में, चहल-पहल में, एक हलचल, बैचेनी एक तिश्नगी, भ्रांत, क्लांत वातावरण में कितने ही मुखौटे लगाए इस चहल-पहल का अहम हिस्सा है।
स्त्री के अतीत, वर्तमान और भविष्य की तमाम यादों और रंगों का शब्द चित्रण इस काव्य संग्रह के उत्सव और महोत्सव हैं।
प्रथम कविता ‘जब मैं मुझसे मिलती हूँ!!’ में कवयित्री स्पष्टीकरण करती है। चिड़िया , नवल नवोढा़, नव प्रसूता, झुर्रियों के जंगलों से चुपचाप गुजरना, बचपन से आज तक की सारी यादों को बटोरती हुई वह ध्यान में चली जाती है और मोहबंध से मुक्त हो शून्य में समा जाना चाहती है।
इस जीवन को ही’ एक उत्सव एक महोत्सव ‘के रूप में देखती है। जन्म को उत्सव और मृत्यु को महोत्सव में उसका जीवन पिरोया है। इस जीवन के लंबे सफ़र में पथरीले पत्थर, सुंदर घाटियां, समंदर, गीत गाती नदियां, कंटीले जंगल, लहलहाती हरियाली के साथ – साथ मृत्यु के महोत्सव का इंतज़ार है। कवयित्री अपनी आध्यात्मिक यात्रा में  मृत्यु के महोत्सव के देखने की इच्छा व्यक्त करती है जो जादू है।( पृ 14)
कवयित्री  ध्यानस्थ हो कविता के शब्दों में जीवन के सभी पडा़व, सभी पहलुओं पर विचार रखती है।
वीणा की कविताओं को तीन प्रकार से महसूस किया जा सकता है। अध्यात्म का प्रथम, द्वितीय और तृतीय सोपान जहांँ वह साधक के अंतिम पड़ाव को पार करती नजर आ रही है।
कवयित्री की कविता सुलगते मरुस्थल से भी गुजरी है लेकिन अब उसकी कविता थक गई है वह परिंदों की मीठी बोलियाँ सुनने के लिए आतुर है। पृ 20
जीवन की अंतिम यात्रा में सत्य को जानने के लिए उत्सुक है कवयित्री  कहती है कि ‘कुछ ही दिन तो बचे हैं शेष.. ‘पृ 23
वह स्त्री की तुलना उस नदी से करती है जो निरंतर बहती रहती है और वह थकती नहीं है। वह कहती है नदी भी तो स्त्री है मेरी तरह क्या स्त्री थकती नहीं पृष्ठ 48 । लोग मुझे कहते हैं कवि , मैं ठहरी हुई अनुभूति हूँ उड़ता पंछी कविता में कवयित्री कहती है ।मैं अंतर्मुखी कविता मेरी सखी जैसे पंक्तियाँ कवयित्री के साधक मन को व्यक्त करती हैं।
बिंब प्रयोग भी अद्भुत हैं और स्त्री की उपमा नदी की मनःस्थिति और उसके भौतिक रूप के साथ समानता देखती है – – नदी की छरहरी काया, उसके तीखे कटी – कटाव, काजल घुले ज्यूं नयन कजरारे, दिपते – झिपते किनारे और अद्भुत न्यारे नज़ारे पृष्ठ 69 आदि के प्रयोग से कवयित्री एक कविता बना लेती है।  छलक – छलक कर अंतर को छू लेती नदी कवयित्री को शीत की भोर, छितरे- छितरे श्यामघन से जोड़ते हैं तो  केदारनाथ के आंसूं समंदर, प्रेम, कुछ दिन हुए, खुशी की गौरेया, रुक जाओ वसंत, यायावरी, इस पिघलती उम्र में आदि कविताओं में कवयित्री की अनुभूति के स्तर की ऊंँचाइयों को देखा जा सकता है।
भूख से रोता बच्चा, दूर वहाँ परदेस में, जहाज की डेक पर खड़ी मैं और कोलकाता का रिक्शेवाला आदि कविताओं में कवयित्री की संवेदनशीलता का और सच्चे मानवीय भावों के चित्र मिलते हैं ।
‘औरत’ कविता में कवयित्री अपनी कथा के क्लाईमेक्स को लाती है और अपनी इच्छाओं को जाहिर करती है – – छूना है आकाश /ढूंढने है अपने इंद्रधनुष /हाँ अब वक्त आ गया है/बेवजह कसी बेड़ियों को तोड़कर /अपने अद्भुत सपनों को सच करने का वक्त। पृष्ठ 75
औरत को समझाती हैं – तू औरत ही अच्छी है /औरत ही बनी रहना… पृष्ठ 76 ।उसे एक अदद नखलिस्तान की खोज है। पृष्ठ 114 अंतिम कविता ‘तुम नहीं समझोगे’ में ब्रह्मांड के लिए चिट्ठी  है जिसमें कई अनछुई चाहतें लिख देती है।
उसका बावरा मन है। वह जानती है कि ये जुबानी चिट्ठी है। पृष्ठ 128।
‘एक उत्सव :एक महोत्सव’ कविता संग्रह एक स्त्री के मन के भावों के विभिन्न चित्र बिंबों को उकेरती है। भाषा सरल और सहज है। कविताओं में ताल, छंद और लय  की गति है जो सौंदर्य को बढ़ाता है। मन की उदासी और निराशा को दूर कर सकारात्मक ऊर्जा को बढ़ाती हैं ये कविताएँ। पठनीय हैं।
किताब – एक उत्सव: एक महोत्सव
विधा – कविता
रचनाकार – वीणा जैन
प्रकाशक – कलमकार मंच
मूल्य- 170 रुपए
पेज संख्या- 128
आवरण-कुंवर रवीन्द्र
संस्करण वर्ष – 2022
कवयित्री सम्पर्क- [email protected]

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