राहुल सांकृत्यायन एशियाई जागरण पर सोचते थे

कोलकाता । भारतीय भाषा परिषद में ’इतिहास और साहित्य अध्ययन केंद्र’ द्वारा मिलकर आयोजित एक व्याख्यान कार्यक्रम में ऑस्ट्रेलिया और कोरिया के विश्वविद्यालयों तथा नालंदा विश्वविद्यालय में  प्रोफेसर रह चुके वरिष्ठ शिक्षाविद ने राहुल सांकृत्यायन के इतिहास, दर्शन और साहित्य के क्षेत्र में योगदान पर चर्चा की। उन्होंने कहा कि  राहुल ने एशिया की महानता की अवधारणा दी और एशिया का इतिहास लिखने की शुरुआत की। राहुल एक विश्वकोशीय सोच के व्यक्तित्व थे। मुख्य स्थिति के रूप में व्याख्यान देते हुए प्रो. पंकज मोहन ने बताया कि  राहुल ने कहा था कि यदि हमें अपनी प्राचीन महानता के बारे में चिंतन करना है तो सबसे पहले  एक–दूसरे को समझना होगा। सभी संस्कृतियों को एक–दूसरे को समझना होगा। आज एशिया में दूरियां और तनाव हों, पर एक समय सभी जातियां आपस में संवाद करती थीं। खासकर बौद्ध धर्म के प्रचार के काल में इस महादेश के लोग एक दूसरे के नजदीक आ रहे थे। खासकर नालंदा बौद्ध धर्म से ऊपर उठकर हिंदू धर्म और और विभिन्न पंथों के अध्ययन का केंद्र था।
डा. शंभुनाथ ने कहा कि राहुल सांकृत्यायन ने एशिया के इतिहास लेखन का काम शुरू करके अपने समय में पगडंडी निर्माण का काम किया जो आज चौड़ी सड़क बनाने से ज्यादा कठिन था। वह जमाना आज की तरह विशेषज्ञता का न होकर बहुज्ञता का था। वे नवजागरण और प्रगतिशील आंदोलनों के बीच पुल थे। प्रो. हितेंद्र पटेल ने कहा कि ’इतिहास और साहित्य अध्ययन केंद्र’ कोलकाता के युवा बौद्धिक जगत को विचारों की दुनिया में, बहसों में शामिल करने के लिए है। हम चाहते हैं कि शोधकर्ता, शिक्षक और उच्च शिक्षा से जुड़े विद्यार्थियों को विचार विमर्श का एक खुला मंच मिले। आज इसके पहले आयोजन का उद्घाटन डा. कुसुम खेमानी की उपस्थिति में हुआ। सभा के प्रश्न काल के बाद डा.सोमा बसु ने धन्यवाद दिया। इस चर्चा में  डा. कुसुम खेमानी, डा टेरेसा चोई ( कोरिया) , मृत्युंजय श्रीवास्तव, मंजर जमील, डा देबारती तरफदार, डा  बुलू मोदक , डा नंदिता बनर्जी समेत बहुत सारे  शोधार्थी और छात्र छात्राऐं उपस्थित थे।

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