Tuesday, September 16, 2025
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सावन विशेष – ये हैं भगवान शिव के प्रतीक चिह्न

भी देवी-देवतओं के पास कोई न कोई वाद्य यंत्र जरूर रहता है । उसी तरह भगवान शिव के पास डमरू था, जो नाद का प्रतीक है. ऐसी मान्यता है कि संगीत के जनक भगवान शिव ही थे। डमरू की उत्पत्ति से पहले दुनिया में कोई भी नाचना, गाना बिल्कुल भी नहीं जानता था। मान्यता है कि नाद से ही वाणी के चारों रूपों-पर, पश्यंती, मध्यमा और वैखरी की उत्पत्ति हुई है।

त्रिशूलभगवान शिव के पास हमेशा एक त्रिशूल भी रहता है. त्रिशूल तीन प्रकार के कष्टों दैनिक, दैविक और भौतिक के विनाश का सूचक भी है. इस त्रिशूल में सत, रज व तम आदि तीनों शक्तियां पायी जाती हैं. त्रिशूल के तीन शूल सृष्टि के क्रमश: उदय, संरक्षण और लयीभूत होने का प्रतिनिधित्व भी करते हैं.

रुद्राक्षरुद्राक्ष को देवों के देव महादेव का स्वरूप माना गया है, मान्यताओं के अनुसार, रुद्राक्ष की उत्पत्ति भगवान शिव के आंसू से हुई थी। रुद्राक्ष दो शब्दों से मिलकर बना है। पहला शब्द है-रुद्र अर्थात भगवान शिव और दूसरा-अक्ष अर्थात नेत्र. शिवजी के नेत्रों से जहां-जहां अश्रु गिरे, वहां रुद्राक्ष के वृक्ष उग आये। रुद्राक्ष की माला से जाप करने से शिवजी की असीम कृपा मिलती है।

चंद्रमाभगवान भोलेनाथ को सोम यानी चंद्रमा के नाम से भी जाना जाता है। भगवान शिव द्वारा चंद्रमा को धारण करना मन के नियंत्रण का भी प्रतीक है। हिमालय पर्वत और समुद्र से चंद्रमा का सीधा संबंध है.। कहा जाता है कि शिवजी के सभी त्योहार और पर्व चांद्रमास पर ही आधारित होते हैं।

गंगा नदीगंगा नदी का स्रोत भगवान शिव हैं। शिव की जटाओं से स्वर्ग से मां गंगा का धरती पर आगमन हुआ था। मान्यता है कि जब पृथ्वी की विकास यात्रा के लिए गंगा का आह्वान किया गया, तो पृथ्वी की क्षमता इनके आवेग को सहने में असमर्थ थी। ऐसे में शिवजी ने मां गंगा को अपनी जटाओं में धारण किया। गंगा को जटा में धारण करने के कारण ही शिव को जल चढ़ाए जाने की प्रथा शुरू हुई।

भगवान शिव के गले में नांगभगवान शिव के गले में लिपटे नजर आने वाले सांप का नाम वासुकी है जो भगवान शिव के अति प्रिय भक्त हैं। शिवजी अपने गले में नाग धारण करते हैं इसलिए महादेव का नागेश्वर ज्योतिर्लिंग इसी नाम से प्रसिद्ध है। नाग कुंडलिनी शक्ति का भी प्रतीक है।

महादेव के शरीर पर भस्मदेवों के देव महादेव अपने शरीर पर भस्म धारण करते हैं। भस्म जगत की निस्सारता का बोध कराती है। भस्म आकर्षण, मोह, अहंकार आदि से मुक्ति का प्रतीक भी है। देश के एकमात्र जगह उज्जैन के महाकाल मंदिर में शिव की भस्म आरती होती है, जिसमें श्मशान की भस्म का इस्तेमाल किया जाता है।

ब‍िकने की कगार पर आजादी से पहले शुरू हुई यह दवा कंपनी

जयराम रमेश ने एक सूचना पर आधारित करके कहा कि दुनिया के सबसे बड़े प्राइवेट इक्विटी फंड ‘ब्लैकस्टोन’ (Blackstone) सप्ताह के अंत तक सिप्ला के प्रमोटर के 33.47 प्रतिशत हिस्सेदारी को अगले सप्ताह तक गैर-बाध्यकारी बोली में खरीद सकता है। पूर्व स्वतंत्रता के दौर से चलने वाली दवा कंपनी सिप्ला (Cipla) बेचने की प्रक्रिया में पहुंच गई है। जयराम रमेश, कांग्रेस के वरिष्ठ नेता, ने इस कंपनी की सौदी पर ‘ब्लैकस्टोन’ के अधिग्रहण के संदर्भ में अपनी चिंता व्यक्त की है। उन्होंने यह कहा कि यह कंपनी देश के राजनीतिक, आर्थिक, और सामाजिक इतिहास का महत्वपूर्ण हिस्सा रही है। उन्होंने एक समाचार की ओर संकेत करते हुए यह दावा किया कि दुनिया के सबसे बड़े प्राइवेट इक्विटी फंड ‘ब्लैकस्टोन’ (Blackstone) सिप्ला के प्रमोटर की 33.47 प्रतिशत हिस्सेदारी को अगले सप्ताह तक बिना किसी बाध्यकारी बोली के खरीदने की संभावना है।

33.47 प्रतिशत की ह‍िस्‍सेदारी ब‍िकेगी
कांग्रेस महासचिव रमेश ने एक ट्वीट किया कि ‘यह सुनकर दुख हुआ कि दुनिया के सबसे बड़े प्राइवेट इक्विटी फंड ‘ब्लैकस्टोन’  द्वारा देश की पुरानी दवा कंपनी सिप्ला में पूरे 33.47 प्रतिशत के हिस्सेदारी हासिल करने की बातचीत चल रही है। सिप्ला की शुरुआत 1935 में ख्वाजा अब्दुल हामिद ने की थी। ख्वाजा अब्दुल हामिद का महात्मा गांधी, पं. जवाहरलाल नेहरू, सरदार वल्लभ भाई पटेल और मौलाना अबुल कलाम आजाद पर गहरा प्रभाव था। उन्होंने सीएसआईआर  के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।’

भारतीय राष्ट्रवाद का उदाहरण मानकर उभरा, उन्होंने कहा, ‘सिप्ला जल्द ही भारतीय राष्ट्रवाद का चमकदार उदाहरण बनकर उभरा। उनके बेटे, यूसुफ हामिद ने सिप्ला को कम लागत वाली जेनेरिक दवाओं का विश्‍वव्यापी आपूर्तिकर्ता बनाने में सफलता पाई। इसी कंपनी ने अमेरिकी, जर्मन, और ब्रिटिश पेटेंट धारकों को सफलतापूर्वक चुनौती दी।’ उनके अनुसार, ‘यूसुफ हामिद ने कई अन्य भारतीय कंपनियों को विभिन्न देशों में स्थापित करने के लिए एक निश्चित मार्ग प्रशस्त किया। वह सबसे प्रासंगिक और दिलचस्प उद्यमियों में से एक हैं, जिनके बारे में जानकर मेरा भाग्य बढ़ गया है।’ जयराम रमेश ने यह कहा, ‘सिप्ला भारत के राजनीतिक, आर्थिक, और सामाजिक इतिहास का अविभाज्य हिस्सा है और ब्लैकस्टोन द्वारा इसके तुरंत अधिग्रहण से सभी को दुखी होना चाहिए।’

यूरोपीय देशों ने स्थानीय भाषा के लिए शुरू किया अंग्रेजी को शिक्षण संस्थानों से हटाना

घर में ही टूट रहा अंग्रेजी का वर्चस्व

नीदरलैंड्स, नॉर्वे या फिर स्वीडन, कई यूरोपीय देशों के नागरिक अंग्रेजी बोलने में पारंगत हैं। इस भाषा पर पकड़ से सैलानियों को आसानी से इंप्रेस कर लेते हैं। हालांकि, इस खासियत ने अब विवाद की स्थिति पैदा कर दी है। इन देशों की यूनिवर्सिटीज भी उत्कृष्ट होती गईं और अंतरराष्ट्रीय स्तर के कोर्स पढ़ाने लगी हैं, लेकिन ज्यादातर कोर्स अभी अंग्रेजी में ही हैं। एक्सपर्ट इसे यूरोपीय देशों की लग्जरी समस्या कहते हैं। नीदरलैंड्स और नॉर्डिक देशों के कुछ लोग हैरानी जताते हुए और तर्क देते हैं कि उनकी प्रमुख यूनिवर्सिटी अपनी भाषा में पढ़ाई नहीं कराएंगी तो उनकी राष्ट्रीय भाषाओं के लिए कहां जगह बचेगी? भाषाविद् इसे ‘डोमेन लॉस’ कहते हैं। उनका मानना है भाषा खत्म नहीं होती है, क्योंकि बच्चों की नई पीढ़ियां इसके साथ बढ़ती रहती हैं, पर बोलने वाले इसका उपयोग शैक्षणिक संदर्भों में कम करते हैं।

ग्रेजुएशन कोर्स दो-तिहाई कोर्स डच भाषा में हों
जून में नीदरलैंड्स के शिक्षा मंत्री रॉबर्ट डिज्कग्राफ ने घोषणा की कि अंडरग्रेजुएट प्रोग्राम में कम से कम दो-तिहाई कोर्स डच भाषा में होना चाहिए। यूनिवर्सिटी के नीति निर्माताओं ने इसे सही नहीं माना। उदाहरण के तौर पर आइंडहोवन टेक्नोलॉजी यूनिवर्सिटी के प्रमुख ने एआई का हवाला देते हुए कहा कि कई कोर्सेस के लिए हमें ऐसे प्रोफेसर भी नहीं मिल रहे हैं जो डच बोल सकें। (कुछ ही दिन बाद डच सरकार गिर गई, जिससे नीति अधर में लटक गई)।

उधर, ओस्लो यूनिवर्सिटी नॉर्वेजियन शिक्षा को अहमियत देती है। स्पष्ट है कि अंग्रेजी का इस्तेमाल जरूरत होने पर ही होगा। सभी छात्रों को नॉर्वेजियन सीखने के लिए स्पेशल क्लासेस दी जानी चाहिए। किताबें दोनों भाषा में होनी चाहिए बेलफास्ट की अल्स्टर यूनिवर्सिटी की मिशेल गज़ोला कहती हैं, ‘यूनिवर्सिटी की वैश्विक रैंकिंग में उनके मूल्यांकन के हिस्से के रूप में अंतरराष्ट्रीय छात्रों और शिक्षकों की संख्या को देखा जाता है। यह यूनिवर्सिटी की रैंकिंग में ऊपर उठने के लिए और अंग्रेजी में ज्यादा से ज्यादा पढ़ाई के लिए प्रेरित करता है। इससे उन पर दबाव बढ़ता है कि क्लासेस भी बड़ी संख्या में अंग्रेजी में ही लगाई जाएं।’

डेनमार्क में भी इसी तरह विवाद शुरू हुआ, पर सरकार बैकफुट पर आ गई

नीदरलैंड्स की तरह डेनमार्क में भी 2021 में यह विवाद जन्मा था। डेनिश भाषा को बढ़ावा देने के लिए सरकार ने अंग्रेजी में पढ़ाए जाने वाले कोर्सेस में सीट्स सीमित कर दी थीं। अब वो बैकफुट पर आ गई है। अंग्रेजी भाषा के मास्टर्स कोर्स में सीट्स की संख्या बढ़ी हैं। कोपेनहेगन यूनिवर्सिटी के जानूस मोर्टेसन कहते हैं कि नई नीति में शिक्षण संस्थानों को निर्देशित किया गया है कि वे आगामी छह वर्षों में डेनिश पढ़ाने में योगदान देंगे, लेकिन यूनिवर्सिटीज को समय पर क्लासेस लगानी है, कोर्स पूरे करवाने हैं। ऐसे में अपनी भाषा में पढ़ाई का वक्त कैसे मिलेगा, इसका जवाब किसी के पास नहीं है।

(साभार – दैनिक भास्कर)

1503 करोड़ से होगी बंगाल के 37 स्टेशनों की कायापलट

कोलकाता । पीएम ने बंगाल में 37 रेलवे स्टेशनों के पुनर्विकास की आधारशिला भी रखी जिनमें पूर्व रेलवे के 28 स्टेशनों के आधुनिकीकरण का काम किया जाएगा। शेष 9 स्टेशन नॉर्थ-ईस्ट फ्रंटियर के अंतर्गत हैं। पूर्व रेलवे के अंतर्गत सियालदह डिवीजन के 7 स्टेशनों को अत्याधुनिक सुविधाओं के साथ पुनर्विकास किया जाएगा। इन 37 स्टेशनों पर छोटे-बड़े समारोहों के साथ परियोजना का आधिकारिक उद्घाटन किया गया।
बढ़ रही है आधुनिक ट्रेनों की संख्या

नई परियोजना की आधारशिला रखते हुए पीएम मोदी ने कहा कि देश में आधुनिक ट्रेनों की संख्या बढ़ रही है। पिछले 9 वर्षों में देश में रेलवे लाइनों का रेकॉर्ड विस्तार हुआ है। ट्रेनों के साथ-साथ स्टेशनों के विकास पर भी जोर दिया गया है। भारत के 1300 प्रमुख रेलवे स्टेशनों को अब अमृत भारत’ रेलवे स्टेशनों के रूप में विकसित किया जाएगा। पूर्व रेलवे के महाप्रबंधक अमर प्रकाश द्विवेदी ने राज्यपाल सीवी आनंद बोस का स्वागत किया। क्रिकेटर झूलन गोस्वामी, बोम्बायला देवी लैशराम, तीरंदाज और पद्म पुरस्कार विजेता, प्रीतिकाना गोस्वामी, कलाकार और पद्म पुरस्कार विजेता, रमा रानी देवी, स्वतंत्रता सेनानी, प्रीति रेखा बोस, स्वतंत्रता सेनानी अन्य उपस्थित रहे। सियालदह डिवीजन के डिवीजनल कल्चरल एसोसिएशन की सांस्कृतिक टीम द्वारा लोक नृत्य और गीत पेश किया गया।

किस स्टेशन के लिए कितना आवंटन

बंगाल में 37 स्टेशनों के आधुनिकीकरण के लिए कुल 1503 करोड़ आवंटित किए गए हैं। रेल सूत्रों के अनुसार सबसे अधिक आवंटन आसनसोल मंडल में 431 करोड़ किया गया है। इसके बाद बर्दवान में 64.2 करोड़। सियालदह के लिए 27 करोड़ आवंटित किये गये हैं। कटवा में 33.6, रामपुरहाट में 38.6, बोलपुर शांतिनिकेतन में 21.1, तारकेश्वर में 24.4, बैरकपुर 26.7 शांतिपुर 23, नवद्वीप धाम 21.8, कृष्णानगर शहर 29.6 मालदह टाउन 43, न्यू फरक्का 31, जलपाईगुड़ी 25.5,बहरमपुर कोर्ट 29.8, न्यू अलीपुरद्वार जंक्शन में 36.3 करोड़ रुपए का आवंटन किया गया है।

मुनाफे में आने वाली पहली ई-कॉमर्स कंपनी बनी मीशो

नयी दिल्ली । ऑनलाइन सामान बेचने वाली कंपनी मीशो मुनाफे में आ गई है। सॉफ्टबैंक के निवेश वाली इस कंपनी ने कहा कि ऑर्डर की संख्या और राजस्व में इजाफे तथा खर्चों में कटौती के कारण जुलाई में उसे कर पश्चात मुनाफा हुआ है। कंपनी के मुख्य कार्याधिकारी एवं संस्थापक विदित अत्रेय ने कहा, ‘हम हर तरह का सामान बेचने वाले भारत के पहले ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म हैं, जो मुनाफे में आए हैं। हम लगातार वृद्धि के लिए, सभी को ई-कॉमर्स मुहैया कराने के लिए और भारत के हर हिस्से की असली संभावना सामने लाने के लिए प्रतिबद्ध हैं।’

सभी खंडों और श्रेणियों से आया मुनाफा 

सॉफ्टबैंक, मेटा प्लेटफॉर्म्स और प्रोसस जैसे दिग्गजों के निवेश वाली बेंगलूरु की कंपनी मीशो का जुलाई में हुआ मामूली मुनाफा सभी खंडों और श्रेणियों से आया है, जिनमें ईसॉप्स भी शामिल हैं। कंपनी ने कर के बाद मुनाफे का सही आंकड़ा बताने से इनकार कर दिया मगर यह 10 करोड़ रुपये से कम है।

मीशो के मुख्य वित्त अधिकारी धीरेश बंसल ने कहा, ‘पिछले 12 महीनों में मीशो का कारोबार शानदार रहा है। ऑर्डरों की संख्या 43 प्रतिशत बढ़ गई है और 1 अरब से भी अधिक ऑर्डर आए हैं।’ बंसल ने कहा कि पिछले 12 महीनों में कंपनी का राजस्व 5 प्रतिशत बढ़ गया। उन्होंने कहा कि कारोबार में भारी बढ़ोतरी और इससे अधिक कमाई होने से राजस्व बढ़ा है। उन्होंने कहा, ‘जनवरी से जून 2023 के दौरान मीशो की आय 40 करोड़ डॉलर रही। इस साल के अंत तक हमें 80 करोड़ डॉलर से अधिक सालाना राजस्व का अनुमान है।’ बंसल ने कहा कि वित्त वर्ष 2025 तक 10,000 करोड़ रुपये राजस्व का कंपनी का लक्ष्य है।

रोजाना 35 लाख ऑर्डर निकाल रही है मीशो 

मीशो इस समय रोजाना 35 लाख ऑर्डर निकाल रही है। कंपनी का कहना है कि पूंजी के बेहतर इस्तेमाल और कम संपत्ति पर जोर के कारण उसे मुनाफा कमाने में मदद मिली है। मीशो अपने प्लेटफॉर्म पर सामान बेचने वालों से कमीशन नहीं लेती। इससे मीशो पर सामान बेचने वालों (मुख्य रूप से छोटे कारोबार एवं उद्यमी) को अच्छी कमाई हो जाती है। कंपनी छोटे शहरों में सेवा पर ज्यादा जोर दे रही है और उन ग्राहकों को जोड़ रही है, जो पहले ई-कॉमर्स इस्तेमाल नहीं करते थे।

बंसल ने कहा कि पिछले 1 साल में 14 करोड़ लोगों ने मीशो पर सामान खरीदा। इनमें से ज्यादातर ऑर्डर छोटे शहरों से आए हैं। मीशो का दावा है कि भारत में सबसे ज्यादा डाउनलोड होने वाली शॉपिंग ऐप उसी की है। कंपनी ने कहा कि ग्राहक जोड़ने पर आने वाले खर्च में बड़ी कटौती और मार्केटिंग पर सालाना व्यय 80 प्रतिशत घटाने के बाद भी कोई फर्क नहीं पड़ा है। मीशो तकनीकी पहलुओं पर खर्च सालाना 60 प्रतिशत कम करने में कामयाब रही है। इससे उसका कारोबारी परिचालन और मजबूत हो गया है। कंपनी अधिक पूंजी निवेश करने के बजाय आपूर्ति ढांचे पर विशेष जोर देती है। यह रणनीति कंपनी के लिए काफी कारगर साबित हुई है और दूसरी कंपनियों की तुलना में यह मजबूत स्थिति में आ गई है।

इसरों का दावा, चंद्रमा के काफी पास पहुंचा चंद्रयान-3, तस्वीरें वायरल

 भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) भारत के तीसरे चंद्र मिशन चंद्रयान-3 में लगातार सफलता हासिल कर रहा है। इसरो ने रविवार को कहा कि जीएसएलवी मार्क 3 (एलवीएम 3) हेवी-लिफ्ट लॉन्च वाहन, जिसने चंद्रयान -3 अंतरिक्ष यान के साथ सफलतापूर्वक उड़ान भरी थी, अब चंद्रमा के करीब आ गया है।

इंजनों की रेट्रोफिटिंग ने इसे चंद्रमा की सतह के करीब ला दिया, जो अब 170 किमी x 4313 किमी है। इसके अलावा इसरो ने भारत के तीसरे चंद्र मिशन चंद्रयान-3 द्वारा ली गई चंद्रमा की पहली तस्वीरें भी जारी की हैं। अंतरिक्ष एजेंसी ने कहा कि वह इस तरह का अगला ऑपरेशन 9 अगस्त को करेगी।

चंद्रयान-3 ने चंद्रमा की सतह की अद्भुत तस्वीरें लीं

शनिवार को चंद्र कक्षा में प्रवेश करने के बाद चंद्रयान-3 ने चंद्रमा की सतह की अद्भुत तस्वीरें खींचीं। मिशन के आधिकारिक ट्विटर हैंडल ने ट्वीट किया, “5 अगस्त, 2023 को चंद्र कक्षा में प्रवेश (एलओआई) के दौरान, चंद्रयान -3 अंतरिक्ष यान द्वारा चंद्रमा को देखा गया था। इसरो के अनुसार, चंद्रयान -3 अंतरिक्ष यान, जो अपने प्रक्षेपण के बाद सफलतापूर्वक चंद्रमा में प्रवेश कर गया शनिवार को कक्षा में, चंद्रमा से लगभग दो-तिहाई दूरी तय की।

चंद्रमा पर एक दिन पृथ्वी के 14 दिनों के बराबर होता है

जीएसएलवी मार्क 3 (एलवीएम 3) हेवी-लिफ्ट लॉन्च वाहन पर स्थापित अंतरिक्ष यान ने 14 जुलाई को आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा में सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से सफलतापूर्वक उड़ान भरी। अमेरिका, चीन और रूस के बाद, भारत चंद्रमा की सतह पर अपना अंतरिक्ष यान उतारने वाला चौथा देश बन गया, जिसने चंद्रमा की सतह पर सुरक्षित और सॉफ्ट लैंडिंग की देश की क्षमता का प्रदर्शन किया। उतरने पर, यह एक चंद्र दिवस तक काम करेगा, जो लगभग 14 पृथ्वी दिवस के बराबर है। चंद्रमा पर एक दिन पृथ्वी के 14 दिनों के बराबर होता है।

शुरुआत में इसे 2021 में लॉन्च करने की योजना बनाई गई थी

चंद्रयान-3 की स्वीकृत लागत 250 करोड़ रुपये (प्रक्षेपण वाहन लागत को छोड़कर) है। चंद्रयान-3 का विकास चरण जनवरी 2020 में शुरू हुआ और शुरुआत में इसे 2021 में लॉन्च करने की योजना बनाई गई थी। हालाँकि, कोविड-19 महामारी के कारण मिशन की प्रगति में अप्रत्याशित रूप से देरी हुई। चंद्रयान-2 मिशन को 2019 में चंद्रमा की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग के दौरान चुनौतियों का सामना करने के बाद चंद्रयान-3 इसरो का अनुवर्ती प्रयास है और अंततः इसे अपने मुख्य मिशन उद्देश्यों में विफल माना गया।

340 टन की व्हेल का हुआ शोध, 4 करोड़ साल पहले धरती पर पाई जाती थी

वैज्ञानिकों ने एक व्हेल की खोज की है जो लगभग 40 मिलियन वर्ष पहले पृथ्वी पर सबसे भारी जानवर थी। इसका आधा अधूरा कंकाल पेरू में मिला है, जिसका अध्ययन करने के बाद वैज्ञानिकों ने अनुमान लगाया है कि यह धरती पर अब तक का सबसे भारी जीव रहा होगा।इस खोज से पहले, ब्लू व्हेल को पृथ्वी पर सबसे  बड़ा जानवर माना जाता था। यानी डायनासोर से भी बड़ा. लेकिन पेरू की खोज ने शायद इतिहास में एक नया नाम जोड़ दिया है।

वैज्ञानिकों ने इसे पेरुसेटस कोलोसस नाम दिया है। यह पेरू की एक विशाल व्हेल है जिसे पृथ्वी पर सबसे भारी जानवर के रूप में मान्यता दी गई है। एनडीटीवी के मुताबिक, यह अध्ययन नेचर जर्नल में प्रकाशित हुआ है। शोधकर्ताओं की एक अंतरराष्ट्रीय टीम को पेरू के रेगिस्तान में विशाल हड्डियाँ मिली हैं। इन्हें देखकर अनुमान लगाया गया है कि ये हड्डियां जिस भी जानवर की होंगी, इनका वजन करीब कई सौ टन रहा होगा। लेकिन दूसरी तरफ ये भी सच है कि गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड में सबसे बड़ी ब्लू व्हेल 190 टन की बताई गई है.

वहीं, पेरू में पाई जाने वाली व्हेल के बारे में शोधकर्ताओं ने कहा है कि इसका वजन 85 से 340 टन तक भी हो सकता है। यानी यह साफ तौर पर नहीं कहा जा रहा है कि असल में व्हेल कितनी भारी रही होगी. इस संबंध में अध्ययन चल रहा है. प्रथम व्हेल जीवाश्म की खोज मारियो अर्बिना ने की थी। पेरू के दक्षिणी किनारे पर इसे खोजने में जीवाश्म विज्ञानियों को दशकों लग गए। अर्बिना का कहना है कि इतने बड़े जीव का इतिहास में कोई रिकॉर्ड नहीं है। यह अब तक का सबसे बड़ा जानवर है. लेकिन जब उसे इसका पता चला तो किसी ने उस पर विश्वास नहीं किया।

शोधकर्ताओं ने इसकी लंबाई लगभग 20 मीटर यानी 65 फीट होने का अनुमान लगाया है। घटनास्थल पर विशाल हड्डियां मिली हैं, जिनका वजन 200 किलोग्राम बताया जा रहा है। इनमें से चार हड्डियाँ पसलियां और एक कूल्हे की हड्डी होती है। इस प्रक्रिया में कई साल लग गए. इन बड़े जीवाश्मों को इकट्ठा करने के लिए कई यात्राएँ करनी पड़ीं। इसके बाद पेरू और यूरोप के शोधकर्ताओं को यह समझने में कई साल लग गए कि उन्होंने क्या खोजा है।

झारखंडी भाषा में श्रीमद्भागवत गीता, लोहरदगा के लेखक ने नागपुरी में किया अनुवाद

लोहरदगा । श्रीमद्भागवत गीता को हम सब ने पढ़ा होगा या फिर हम सब उसके बारे में जानते जरूर हैं। भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को गीता का ज्ञान दिया था । भगवान श्रीकृष्ण ने जीवन का सत्य गीता के रूप में बताया है। श्रीमद्भागवत गीता को लोहरदगा के लेखक लाल राजेंद्र प्रताप देव ने नागपुरी भाषा में अनुवाद किया है। नागपुरी में अनुवादित श्रीमद्भागवत गीता लाल राजेंद्र प्रताप देव की मेहनत से गीता महात्मय के नाम से जल्द ही प्रकाशित होकर बाजार में उपलब्ध होगी।       लाल राजेंद्र प्रताप देव लोहरदगा के सेन्हा प्रखंड के आराहंसा गांव के रहने वाले हैं। 88 साल के लाल राजेंद्र प्रताप देव प्रारंभ से ही धार्मिक प्रवृत्ति के रहे हैं। गायत्री परिवार के साथ जुड़े रहे लाल राजेंद्र प्रताप देव का जीवन संत महात्माओं के साथ भी काफी समय तक गुजरा है। लाल राजेंद्र प्रताप देव का कहना है कि संत महात्माओं के संपर्क में रहने के दौरान ही उन्हें यह अहसास हुआ कि गीता काफी कठिन ग्रंथ है। इसे सरल रूप से आम लोगों के बीच लाने के लिए विशेष तौर पर दक्षिणी छोटानागपुर क्षेत्र में लोगों को गीता का महत्व बताने के लिए इसका नागपुरी अनुवाद करना चाहिए। कई साल यह सोचने में ही गुजर गए।

इसी बीच जनवरी 2023 में इसे प्रारंभ किया। इस दौरान उन्होंने कई बार नागपुरी में लिखा लेकिन उनकी समझ में नहीं आ रहा था कि इसे कैसे पूरा किया जाए। रात में भी उठ कर इसे लिखना शुरू कर देते थे। धीरे-धीरे 3 महीने में गीता के 18 अध्याय का नागपुरी अनुवाद 128 पन्नों में पूरा किया। अब नागपुरी में गीता का अनुवाद प्रकाशित हो रहा है, जो आगामी दिनों में आम लोगों के बीच उपलब्ध हो जाएगा। उन्होंने इसके अलावे भारत दर्शन, ठाकुर जगन्नाथ शाहदेव सहित कई पुस्तकें लिखी हैं। आगे भी वह इस तरह की पुस्तक लिखना चाहते हैं। लाल राजेंद्र प्रताप देव के इस पहल की सराहना हो रही है। पुस्तक के प्रकाशन में उन्हें लगभग एक लाख रुपये का खर्च हुआ है। इसकी दो हजार प्रतियां प्रकाशित हो रही हैं। प्रकाशन का कार्य अंतिम चरण में है।

दक्षिणी छोटानागपुर में आमतौर पर नागपुरी भाषा बोली जाती है। यह भाषा यहां के लोगों के रग-रग में बसी हुई है। नागपुरी भाषा में गीता को अनुवाद करने का काम लोहरदगा के लाल राजेंद्र प्रताप देव ने किया है। गायत्री परिवार और धार्मिक जीवन से जुड़े रहे लाल राजेंद्र प्रताप देव के इस पहल की सराहना की जा रही है। जल्द ही अनुवादित गीता बाजार में उपलब्ध होगी।

भारतीय मूल के वैभव तनेजा बने एलन मस्क की कंपनी टेस्ला के सीएफओ 

न्यूयॉर्क, अमेरिका । भारतीय मूल के वैभव तनेजा को अमेरिका की इलेक्ट्रिक कार कंपनी टेस्ला  का नया चीफ फाइनेंशियल ऑफिसर (सीएफओ) बनाया गया है।। ऑटोमेकर टेस्ला ने सोमवार को एक एक्सचेंज फाइलिंग में शेयर बाजार को यह जानकारी दी । कंपनी के पिछले सीएफओ जॅचरी किरखोर्न के पद छोड़ने के बाद यह घोषणा की गई।

जानकारी के मुताबिक, वैभव तनेजा (45) को शुक्रवार को टेस्ला का सीएफओ बनाया गया । इसके साथ ही वह कंपनी के चीफ अकाउंटिंग ऑफिसर यानी सीएओ (CAO) की वर्तमान भूमिका भी निभाते रहेंगे। एलन मस्क के नेतृत्व वाली कंपनी के साथ किरखोर्न के 13 साल के कार्यकाल को कंपनी ने ‘जबर्दस्त विस्तार और विकास” का दौर बताया है। पिछले चार वर्षों से टेस्ला के मास्टर ऑफ कॉइन और सीएफओ किरहॉर्न ने अपने पद से ने इस्तीफा दे दिया।

आपको बता दें कि वैभव तनेजा मार्च, 2019 से टेस्ला के सीएओ और मई, 2018 से कॉरपोरेट कंट्रोलर के रूप में काम कर रहे हैं। उन्होंने फरवरी 2017 और मई 2018 के बीच असिसटेंट कॉर्पोरेट कंट्रोलर के रूप में काम किया और मार्च 2016 से, 2016 में टेस्ला द्वारा अधिग्रहित यूएस-बेस्ड सौर पैनल डेवलपर सोलरसिटी कॉर्पोरेशन में फाइनेंस और अकाउंटिंग रोल में काम किया है। कंपनी की फाइलिंग के अनुसार, इससे पहले वह  जुलाई 1999 और मार्च 2016 के बीच भारत और अमेरिका दोनों में प्राइसवाटर हाउसकूपर्स में कार्यरत थे।

नहीं रहे पेपरफ्राई के सह-संस्थापक अंबरीश मूर्ति

नयी दिल्ली । पेपरफ्राई के सह-संस्थापक अंबरीश मूर्ति का दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया। उनके साथी सह-संस्थापक आशीष शाह ने मंगलवार को इसकी घोषणा की। शाह ने ट्वीट किया, “यह बताते हुए बेहद दुख हो रहा है कि मेरे दोस्त, गुरु, भाई, आत्मीय अंबरीश मूर्ति अब नहीं रहे । कल रात लेह में दिल का दौरा पड़ने से उन्हें खो दिया। कृपया उनके लिए और उनके परिवार और प्रियजनों को शक्ति प्रदान करने के लिए प्रार्थना करें।” अंबरीश वेदांतम मूर्ति एक भारतीय उद्यमी और व्यवसाय कार्यकारी थे। वह ई-कॉमर्स फर्नीचर और घरेलू सामान कंपनी पेपरफ्राई के सह-संस्थापक और सीईओ थे, जिसकी उन्होंने 2012 में आशीष शाह के साथ सह-स्थापना की थी। पेपरफ्राई की स्थापना से पहले मूर्ति मार्च 2008 और जून 2011 के बीच ईबे, भारत, फिलीपींस और मलेशिया में कंट्री मैनेजर थे।

मूर्ति ने दिल्ली कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग से बीई किया है और भारतीय प्रबंधन संस्थान, कलकत्ता से एमबीए किया है। मूर्ति का उद्यमिता से जुड़ाव उनके स्नातक स्तर की पढ़ाई के दौरान शुरू हुआ जब उन्होंने ग्यारहवीं और बारहवीं कक्षा के छात्रों को भौतिकी और गणित में घर पर पढ़ाया। उन्होंने ट्यूटर्स ब्यूरो नामक एक छोटा व्यवसाय स्थापित किया जो प्रतिभाशाली ट्यूटर्स को स्कूली छात्रों से जोड़ता था। उन्होंने 1990 के दशक की शुरुआत में दो साल तक उद्यम चलाया। मूर्ति ने 1996 में कैडबरी इंडिया के साथ एक प्रबंधन प्रशिक्षु के रूप में अपना कॉर्पोरेट करियर शुरू किया। उन्होंने अगले पांच साल कंपनी के मार्केटिंग डिवीजन में बिताए और ब्रांड मैनेजर के पद तक पहुंचे और 2001 तक कैडबरी के दिल्ली, राजस्थान और मुंबई कार्यालयों में काम किया।

कुछ वर्षों में उन्होंने आईसीआईसीआई प्रूडेंशियल एएमसी के साथ वीपी (मार्केटिंग) और लेवी स्ट्रॉस इंडिया में ब्रांड लीडर जैसे नेतृत्व पदों पर रहते हुए कई उद्योग क्षेत्रों में काम किया। 2012 में अंबरीश मूर्ति और आशीष शाह ने फर्नीचर और घरेलू सामानों के लिए भारत के अग्रणी ई-कॉमर्स मार्केटप्लेस पेपरफ्राई को लॉन्च करने के लिए ओमनीचैनल रिटेल का नेतृत्व किया। पिछले दशक में पेपरफ्राई ने एक ऑनलाइन वर्चुअल कैटलॉग, एक व्यापक इन-हाउस आपूर्ति श्रृंखला और भारत के 100 से अधिक शहरों को कवर करने वाले एक बड़े ओमनीचैनल पदचिह्न को मिलाकर क्लासिकल रिटेल के सिद्धांतों को बाधित किया है।