भारत जैन महामंडल लेडिज विंग द्वारा सुरंगों राजस्थान का आयोजन
रामायण के पन्नों में रहकर भी दबा रह गया श्रीराम की बड़ी बहन शांता का त्याग
क्या आपको पता है भगवान राम की एक बहन भी थीं, जिनका नाम शांता थाI शायद ही हममें से किसी को शांता के बारे में कुछ पता हो, क्योंकि हमने जो रामायण देखा व पढ़ा है उसमें शांता का जिक्र है ही नहींI इसलिए आज हम आपको भगवान श्री राम की बहन शांता के बारे में बताएँगे कि आखिर कौन थीं शांता? उनका जन्म कैसे हुआ और क्या है उनकी कहानीI
कौन थीं प्रभु श्री राम की बहन शांता – महाराज दशरथ की तीन रानियाँ थीं, कौशल्या, कैकयी और सुमित्राI दशरथ और कौशल्या अयोध्या के राजा-रानी थेI सभी जानते हैं कि राजा दशरथ के चार पुत्र थेI लेकिन यह बहुत कम लोगों को पता है कि इन चार पुत्रों के अलावा उनकी एक पुत्री भी थी, जिनका नाम शांता थाI शांता माता कौशल्या और दशरथ की पुत्री थींI शांता बहुत ही सुंदर एक होनहार कन्या थीं, वो हर क्षेत्र में निपुण थींI शांता को वेद, कला, शिल्प, युद्ध कला, विज्ञान, साहित्य एवं पाक कला सभी का अनूठा ज्ञान प्राप्त थाI अपने युद्ध कौशल से वह सदैव अपने पिता राजा दशरथ को गौरवान्वित कर देती थींI
रामायण में क्यों नहीं है देवी शांता का जिक्र? – रामायण में शांता का जिक्र इसलिए नहीं मिलता, क्योंकि वे बचपन में ही राजा दशरथ का महल छोड़कर अंगदेश चली गई थींI शांता के बारे में इतिहास में बहुत ही कम उल्लेख मिलता हैI उनके बारे में कई कहानियां प्रचलित हैंI
पहली कथा– पौराणिक कथाओं के अनुसार राजा दशरथ की पहली पत्नी महारानी कौशल्या की बहन रानी वर्षिणी और उनके पति अंगदेश के राजा रोमपद को कोई संतान नहीं थीI एक बार वर्षिणी ने कौशल्या और राजा दशरथ से कहा कि काश उनके पास भी शांता जैसी एक सुशील और गुणवती पुत्री होतीI राजा दशरथ से उनकी पीड़ा देखी नहीं गई और उन्होंने अपनी पुत्री शांता को उन्हें गोद देने का वचन दे दियाI रघुकुल की रित प्राण जाई पर वचन न जाई के अनुसार राजा दशरथ एवं माता कौशल्या को अपनी पुत्री को अंगदेश के राजा रोमपद एवं रानी वर्षिणी को गोद देना पड़ाI शांता को पुत्री के रूप में पाकर रोमपद और वर्षिणी बहुत प्रसन्न हो गए और उन्होंने राजा दशरथ का आभार व्यक्त कियाI इस प्रकार शांता अंगदेश की राजकुमारी बन गईंI
दूसरी कथा – बात उस समय की है जब राजा दशरथ और कौशल्या का विवाह भी नहीं हुआ थाI ऐसा कहा जाता है कि रावण को पहले से ही पता चल चुका था कि अयोध्या के राजा दशरथ और कौशल्या की संतान ही उसकी मृत्यु का कारण बनेगीI इसलिए रावण ने कौशल्या को पहले ही मारने की योजना बनाईI उसने कौशल्या को एक संदूक में बंद किया और नदी में बहा दियाI वही से राजा दशरथ शिकार के लिए जा रहे थेI उन्होंने कौशल्या को बचाया और उस समय नारद जी ने उनका गन्धर्व विवाह कराया थाI उनके विवाह के बाद उनके यहां एक कन्या ने जन्म लिया, जिसका नाम शांता थाI वो जन्म से दिव्यांगना थी राजा दशरथ ने उसका कई बार उपचार कराया लेकिन कोई लाभ नहीं हुआI तब कई ऋषि मुनियों से सलाह की गई, तो उन्हें पता चला कि रानी कौशल्या और राजा दशरथ का गोत्र एक ही है इसीलिए उन्हें इन समस्याओं का सामना करना पड़ रहा हैI उन्हें यह भी सलाह दी गई कि अगर इस कन्या के माता पिता को बदल दिया जाए, तो यह कन्या ठीक हो जाएगीI यही कारण था कि राजा दशरथ ने शांता को रोमपद और वर्षिणी को गोद दे दिया थाI
तीसरी कथा- कई अन्य कथाओं के अनुसार राजा दशरथ ने शांता को इसलिए त्यागा क्योंकि वह पुत्री थी और कुल आगे नहीं बढ़ा सकती थी, ना ही राज्य को संभाल सकती थीI इसलिए राजा दशरथ ने शांता को रोमपद और वर्षिणी को गोद दे दिया थाI शांता को गोद दे देने के बाद दशरथ की कोई भी संतान नहीं थी, जिसके कारण वे परेशान रहने लगे थे और इसी कारण संतान के लिए राजा दशरथ ने पुत्रकामेष्ठि यज्ञ करवाया, जिसके बाद उन्हें चार पुत्रों की प्राप्ति हुईI
किससे और कैसे हुआ था शांता का विवाह? – राजा रोमपद को अपनी पुत्री से बहुत लगाव थाI वे अपनी बेटी से बहुत प्यार करते थेI एक बार एक ब्राह्मण उनके द्वार पर आयाI किन्तु वे शांता से बातचीत में इतने व्यस्त थे कि उन्होंने ब्राह्मण की तरफ़ ध्यान ही नहीं दिया और ब्राह्मण को खाली हाथ ही लौटना पड़ाI इसके कारण ब्राह्मण को काफी गुस्सा आया। वह ब्राह्मण इंद्र देव का भक्त था, इसलिए भक्त के अनादर से देवों के देव इंद्र देव क्रोधित हो उठें और उन्होंने वरुण देव को आदेश दिया कि अंगदेश में वर्षा न होI इंद्र देव की आज्ञा के अनुसार वरुण देव ने ठीक वैसा ही कियाI कई वर्षों तक वर्षा न होने के कारण अगंदेश में सूखा पड़ गया था और चारों तरफ़ हाहाकार मच गयाI राजा रोमपद को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि वे क्या करें, उनसे अपनी प्रजा की तकलीफ देखी नहीं गई और इस समस्या का समाधान पाने के लिए राजा रोमपद ऋषि ऋंग के पास गएI ऋषि ऋंग ने उन्हें वर्षा के लिए एक यज्ञ का आयोजन करने को कहाI
ऋषि के निर्देशानुसार रोमपद ने पूरे विधि-विधान के साथ यज्ञ कियाI यज्ञ के संपन्न होते ही अंगदेश में वर्षा होने लगीI प्रजा इतनी खुश हुई कि अंगदेश में जश्न का माहौल बन गया, सभी ख़ुशी से झूम उठे थेI तभी वर्षिणी और रोमपद ने ऋषि ऋंग से प्रसन्न होकर अपनी पुत्री शांता का विवाह उनसे करने का फैसला कियाI पुराणों के अनुसार ऋषि ऋंग विभंडक ऋषि के पुत्र थेI एक दिन जब विभंडक ऋषि नदी में स्नान कर रहे थे, तब नदी में ही उनका वीर्यपात हो गयाI उस जल को एक हिरणी ने पी लिया था, जिसके फलस्वरूप ऋंग ऋषि का जन्म हुआ थाI
राजा दशरथ को पुत्र प्राप्ति में कैसे सहायक बनी बेटी शांता – जब कई सालों तक राजा दशरथ को पुत्र की प्राप्ति नहीं हुई तो वे परेशान रखने लगेI राजा दशरथ और उनकी तीनों रानियां इस बात को लेकर चिंतित रहती थीं कि पुत्र नहीं होने पर उत्तराधिकारी कौन होगाI उनकी चिंता दूर करने के लिए ऋषि वशिष्ठ ने सलाह दिया कि ऋंग ऋषि से पुत्रेष्ठि यज्ञ करवाया जाएI इस यज्ञ से पुत्र की प्राप्ति होगीI दशरथ ने उनके मंत्री सुमंत की सलाह पर पुत्रकामेष्ठि यज्ञ में महान ऋषियों को बुलायाI इस यज्ञ में दशरथ ने ऋंग ऋषि को भी बुलायाI ऋंग ऋषि एक पुण्य आत्मा थे तथा जहां वे पांव रखते थे वहां यश फैल जाता थाI राजा दशरथ ने आयोजन करने का आदेश दियाI ऋषि ऋंग अपनी एक घोर तपस्या को पूरा करके उन्हीं दिनों अपने आश्रम लौटे थेI पहले तो ऋषी ऋंग ने इस यज्ञ के लिए मना कर दिया था लेकिन पत्नी शांता के कहने पर वो तैयार हो गएI कहते हैं कि पुत्रेष्ठि यज्ञ कराने वाले का जीवनभर का पुण्य इस यज्ञ की आहुति में नष्ट हो जाता हैI लेकिन उन्होंने एक शर्त रखी, ”मैं अकेला नहीं आ सकताI मैं यज्ञ कराने के लिए सहमत हूं, लेकिन मेरी पत्नी शांता भी मेरे साथ आएगीI वह भी ऋत्विक के रूप में कार्य करेगीI” राजा दशरथ के मंत्री सुमंत इस शर्त को मानने के लिए सहमत हो गएI ऋषी ऋंग और शांता अयोध्या पहूंचेI शांता ने जहां भी पैर रखा, वहां से सूखा गायब हो गयाI दशरथ और कौशल्या सोच में पड़ गए कि आखिर यह कौन है? तब शांता ने स्वयं अपनी पहचान प्रकट कीI उन्होंने कहा, ”मैं आपकी पुत्री शांता हूं।” दशरथ और कौशल्या को यह जानकर बहुत खुशी हुई कि वह उनकी पुत्री शांता हैI ऐसा माना जाता है कि ऋंग ऋषि और शांता का वंश ही आगे चलकर सेंगर राजपूत बनाI सेंगर राजपूत को ऋंगवंशी राजपूत कहा जाता हैI
कैसे मिले भगवान श्री राम और शांता? – काफी लंबे समय तक भगवान श्री राम और उनके तीनों भाइयों को उनकी बहन शांता के बारे में कोई जानकारी नहीं थीI वे नहीं जानते थे कि उनकी एक बड़ी बहन भी हैI कई साल बीतने के बाद भी माता कौशल्या अपनी पुत्री शांता के वियोग को भूल नहीं पाई थीI उन्हें हमेशा शांता की याद आती रहती थी, जिसके कारण कई बार रानी कौशल्या और राजा दशरथ के बीच मतभेद हो जाता थाI अपनी माता के दुख को महसूस कर भगवान राम ने माता कौशल्या से प्रश्न किया कि ऐसी क्या चीज़ है जिसके बारे में वे हमेशा सोचती रहती हैं, किस बात के कारण वे हमेशा हमेशा उदास रहती है? तब माता कौशल्या ने भगवान राम को अपने मन की पीड़ा के बारे में बतायाI प्रभु राम को उनकी बड़ी बहन शांता के बारे में बताया और जिसके बाद भगवान राम अपने तीनों भाइयों के साथ अपनी बड़ी बहन शांता से मिलने गएI जब भगवान राम अपनी बहन शांता से मिलते, तब शांता अपने त्याग का फल उनसे मांगती हैI तब भगवान राम हमेशा उनके साथ रहने का वचन देते हैं और इस तरीके से जीवन भर वे एक दूसरे की परछाई बनकर रहते हैंI
भारत में यहां होती है देवी शांता की पूजा – हिमाचल के कुल्लू में ऋंग ऋषि के मंदिर में भगवान राम की बड़ी बहन शांता की पूजा अर्चना की जातीI यह मंदिर कुल्लू से 50 कि.मी दूर बना हुआ हैI यहां देवी शांता की प्रतिमा भी स्थापित हैI इस मंदिर में देवी शांता और उनके पति ऋंग ऋषि की साथ में पूजा होती हैI दोनों की पूजा के लिए कई जगहों से भक्त दर्शन के लिए आते हैंI शांता देवी के इस मंदिर में जो भी भक्त देवी शांता और ऋंग ऋषि की सच्चे मन से पूजा करता है उसे भगवान राम का आशीर्वाद प्राप्त होता हैI देवी शांता के मंदिर में दशहरा बड़ी धूम-धाम से मनाई जाती हैI इसके अलावा उत्तर प्रदेश के बस्ती जिले के हरैया तालुका में श्रृंगी नारी के मंदिर में आज भी देवी शांता की पूजा होती हैI यहां आज भी लोग प्रतिदिन श्रद्धा के साथ पूजा करने आते हैंI ऐसी मान्यता है कि इस मंदिर में पूजा करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैंI
श्रंगेरी के पास ही इसी नाम से एक पर्वत भी है। श्रंगेरी में श्रंगी ऋषि और शांता के मंदिर हैं। श्रंगेरी शहर का नाम श्रंगी ऋषि के नाम पर ही है। यहीं उनका जन्म हुआ था। दक्षिण भारत में, खासतौर पर कर्नाटक, केरल के कुछ इलाकों में भगवान राम की बहन की मान्यता है। इसके अलावा छत्तीसगढ़ सहित कुछ अन्य जगहों पर ऐसी लोक कथा प्रचलित हैं।
(साभार – गृहलक्ष्मी)
श्रीराम प्राण प्रतिष्ठा समारोह….500 वर्ष की तपस्या के बाद सत्य हुआ ऐतिहासिक क्षण


रामलला की मूर्ति की बेहद खास तस्वीर सामने आई है। इस तस्वीर में उनके पूरे स्वरूप को देखा जा सकता है। तस्वीर में रामलला माथे पर तिलक लगाए बेहद सौम्य मुद्रा में दिख रहे हैं। हालांकि, रामलला की यह तस्वीर गर्भ गृह में लाने से पहले की है। अभी भगवान की आंखों में पट्टी बंधी हुई है। आइये जानते हैं रामलला की मूर्ति की सभी विशेषताएं…
मूर्ति करीब 200 किलोग्राम वजनी तो ऊंचाई 4.24 फीट
मूर्ति की विशेषताएं देखें तो इसमें कई तरह की खूबियां हैं। मूर्ति श्याम शिला से बनाई गई है जिसकी आयु हजारों साल होती है। मूर्ति को जल से कोई नुकसान नहीं होगा। चंदन, रोली आदि लगाने से भी मूर्ति पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। मूर्ति का वजन करीब 200 किलोग्राम है। इसकी कुल ऊंचाई 4.24 फीट, जबकि चौड़ाई तीन फीट है। कमल दल पर खड़ी मुद्रा में मूर्ति, हाथ में तीर और धनुष है। कृष्ण शैली में मूर्ति बनाई गई है।
मूर्ति के ऊपर स्वास्तिक, ॐ, चक्र, गदा, सूर्य भगवान विराजमान हैं। रामलला के चारों ओर आभामंडल है। श्रीराम की भुजाएं घुटनों तक लंबी हैं। मस्तक सुंदर, आंखें बड़ी और ललाट भव्य है। भगवान राम का दाहिना हाथ आशीर्वाद की मुद्रा में है। मूर्ति में भगवान विष्णु के 10 अवतार दिखाई दे रहे हैं। मूर्ति नीचे एक ओर भगवान राम के अनन्य भक्त हनुमान जी तो दूसरी ओर गरुड़ जी को उकेरा गया है। मूर्ति में पांच साल के बच्चे की बाल सुलभ कोमलता झलक रही है। मूर्ति को मूर्तिकार अरुण योगीराज ने बनाया है। श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र के अधिकारियों का कहना था कि जिस मूर्ति का चयन हुआ उसमें बालत्व, देवत्व और एक राजकुमार तीनों की छवि दिखाई दे रही है।अयोध्या के श्रीराम मंदिर में तीन मूर्तियों को स्थापित किया जाएगा, जिसमें से एक मूर्ति को गर्भगृह में स्थापित किया जाएगा। इनके बनने के बाद सबसे बड़ा सवाल तो यह था कि गर्भ गृह में किस रूप में राम लला विराजमान होंगे। मूर्तिकारों ने तीनों मूर्तियों को इतना सुंदर बनाया कि चयन करना कठिन हो रहा था कौन सी सुंदर है और कौन सी उतनी नहीं है। अंततः बाल रूप वाली मूर्ति को राम मंदिर के गर्भ गृह में विराजने का फैसला लिया गया।
पद्म पुरस्कार : 88 वर्ष में भी ज्ञान की विरासत को सहेज कर रख रहे हैं डॉ यशवंत सिंह कठोच
गणतंत्र दिवस विशेष : 26 जनवरी 1950 को ऐसे बना भारत एक गणतांत्रिक देश
गणतंत्र दिवस विशेष : इसरो की झांकी में दिखे चंद्रयान-3, आदित्य एल-1
नयी दिल्ली । गणतंत्र दिवस के अवसर पर निकाली गई झांकियों में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) की झांकी बेहद आकर्षक रही और इसमें चंद्रयान-3, आदित्य एल-1 को प्रमुखता दी गई। झांकी में इसरो के विभिन्न मिशनों में महिला वैज्ञानिकों की भागीदारी को भी प्रदर्शित किया गया। इसरो अगले वर्ष भारत की पहली मानव अंतरिक्ष उड़ान को अंजाम देने की योजना बना रहा है।
इस झांकी में ‘लॉन्च व्हीकल मार्क-3’ का एक मॉडल पेश किया गया जिसके जरिए चंद्रयान-3 को श्रीहरिकोटा से चंद्रमा तक भेजा गया था। झांकी में अंतरिक्ष यान के चंद्रमा में उतरने के स्थान को भी दर्शाया गया। इस स्थान को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने शिव शक्ति प्वाइंट नाम दिया है। इसरो की झांकी में सूरज के अध्ययन के लिए निचली कक्षा में भेजे गए आदित्य एल-1 को भी प्रदर्शित किया गया। इसके अलावा इसरो के भविष्य के मिशन गगनयान और भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन आदि को भी झांकी में स्थान दिया गया।
गणतंत्र दिवस विशेष : ‘नारी शक्ति’ का साक्षी बना कर्तव्य पथ
नयी दिल्ली । गणतंत्र दिवस परेड में शुक्रवार को ‘नारी शक्ति’ की विशेष झलक देखने को मिली। इसमें ग्रामीण उद्योग, समुद्री क्षेत्र, रक्षा, विज्ञान से लेकर अंतरिक्ष तक विभिन्न क्षेत्रों में महिलाओं की महत्वपूर्ण भूमिका को रेखांकित किया गया। इस भव्य परेड की थीम ‘विकसित भारत’ और ”भारत-लोकतंत्र की मातृका” थी। इसकी शुरुआत में एक संगीतमय समूह ‘आवाहन’ के साथ हुई। यह एक मनमोहक प्रदर्शन था, जिसमें देश के विभिन्न कोनों से आए भारतीय संगीत वाद्ययंत्रों की एक श्रृंखला शामिल थी। कुल 112 महिला कलाकारों के एक बैंड ने लोक वाद्ययंत्रों से लेकर आदिवासी वाद्ययंत्रों तक को बड़ी कुशलता से बजाया, जो महिलाओं की ताकत और कौशल का प्रतीक है। मणिपुर, मध्य प्रदेश, राजस्थान, हरियाणा, ओडिशा, झारखंड और छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों ने अपनी झांकियों में विविध क्षेत्रों में महिलाओं की भूमिकाएं प्रदर्शित कीं।
मणिपुर की झांकी में महिलाओं को नावों पर प्रसिद्ध लोकटक झील से कमल के डंठल इकट्ठा करते हुए और पारंपरिक ‘चरखों’ का उपयोग करके सूत बनाते हुए दिखाया गया। झांकी में एक प्राचीन बाजार ‘इमा कीथेल’ पर भी प्रकाश डाला गया था और इसने महिलाओं के नेतृत्व वाले वाणिज्य की स्थायी विरासत पर जोर दिया था।
मध्य प्रदेश की झांकी ने कल्याणकारी योजनाओं के माध्यम से राज्य की विकास प्रक्रिया में महिलाओं के जुड़ने का जश्न मनाया। आधुनिक सेवा क्षेत्रों, लघु उद्योगों और पारंपरिक क्षेत्रों में महिलाओं की सक्रिय भागीदारी पर ध्यान केंद्रित किया गया था। इसमें राज्य की सांस्कृतिक समृद्धि में योगदान देने वाली महिला कलाकारों के चित्रण के साथ-साथ पहली महिला फाइटर पायलट अवनी चतुर्वेदी को भी दिखाया गया। ओडिशा की झांकी ने हस्तशिल्प और हथकरघा क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी पर प्रकाश डाला, जबकि छत्तीसगढ़ की झांकी ने बस्तर के आदिवासी समुदायों में महिलाओं के प्रभुत्व को प्रदर्शित किया।
राजस्थान की झांकी में महिलाओं के नेतृत्व वाले हस्तशिल्प उद्योगों के विकास को प्रदर्शित किया गया और प्रसिद्ध ‘घूमर’ नृत्य भी प्रदर्शित किया गया। झांकी में दर्शाया गया कि मीरा बाई की मूर्ति भक्ति और शक्ति का प्रतीक है। हरियाणा की झांकी में सरकारी कार्यक्रम ”मेरा परिवार, मेरी पहचान” के माध्यम से महिला सशक्तीकरण पर प्रकाश डाला गया। इसमें डिजिटल इंडिया पहल के माध्यम से सरकारी योजनाओं तक पहुंच को प्रदर्शित किया गया। आंध्र प्रदेश ने अपनी झांकी का विषय स्कूली शिक्षा में बदलाव पर केंद्रित किया। लद्दाख की झांकी में भारतीय महिला आइस हॉकी टीम को प्रदर्शित किया गया, जिसमें लद्दाखी महिलाएं भी शामिल थीं।
रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) की झांकी ने रक्षा और अनुसंधान के मुख्य क्षेत्रों में महिला वैज्ञानिकों के महत्वपूर्ण योगदान पर प्रकाश डाला। इसमें एंटी-सैटेलाइट मिसाइल और तीसरी पीढ़ी की एंटी-टैंक गाइडेड मिसाइल जैसी उपलब्धियां शामिल थीं। पोत परिवहन और जलमार्ग मंत्रालय ने महिला नाविकों की संख्या में वृद्धि और लाइटहाउस और क्रूज पर्यटन में प्रगति पर जोर देते हुए भारत के समुद्री क्षेत्र के विकास का प्रदर्शन किया।
गणतंत्र दिवस परेड में सेना के तीनों अंगों की एक महिला टुकड़ी भी शामिल थी, जो आतंकवाद प्रभावित क्षेत्रों में अभियान, सियाचिन ग्लेशियर और रेगिस्तान सहित विभिन्न इलाकों में उनकी असाधारण सेवा को दर्शाती है। सशस्त्र बल चिकित्सा सेवाओं ने परेड में पहली बार एक पूर्ण महिला दल ने मार्च किया। मोटरसाइकिलों पर 265 महिलाओं ने विभिन्न साहसी करतबों के माध्यम से साहस, वीरता और दृढ़ संकल्प का प्रदर्शन किया। उन्होंने योग सहित भारतीय मूल्यों और संस्कृति की ताकत का भी प्रदर्शन किया और एकता और समावेशिता का संदेश दिया। भारतीय नौसेना की झांकी में ”नारी शक्ति” को भी दर्शाया गया है। इस सैन्य बल द्वारा सभी भूमिकाओं और सभी रैंकों में महिलाओं का स्वागत करने की हाल में घोषणा की गई है। कर्तव्य पथ पर पहली बार, उप-निरीक्षक श्वेता सिंह की कमान में ‘बीएसएफ महिला ब्रास बैंड’ ने परेड में भाग लिया। सीमा सुरक्षा बल की महिला टुकड़ी में 144 ”महिला प्रहरी” शामिल थीं।
पद्म पुरस्कार 2024 : वेंकैया नायडू को पद्म विभूषण तो मिथुन को पद्म भूषण , देखें विजेताओं की पूरी सूची
पद्म पुरस्कार 2024 : पद्मश्री से सम्मानित होंगी मशहूर गायिका ऊषा उत्थुप
ऊषा उत्थुप के संघर्ष की बात करें, इससे पहले कुछ गाने याद कीजिए. ‘दोस्तों से प्यार किया, दुश्मनों से बदला लिया… जो भी किया हमने किया…शान से’, ‘हरि ओम हरि-हरि ओम हरि, ‘रंबा हो हो… संबा हो, कोई यहां आहा नाचे नाचे, कोई वहां आहा नाचे नाचे, एक दो च च च, डार्लिंग आंखों से आंखे चार करने दो।
ये वो चुनिंदा गाने हैं जो कहीं भी बज रहे हों, आप गुनगुनाने लगते हैं. ये सारे गाने प्लेबैक सिंगर ऊषा उत्थुप की बड़ी पहचान हैं। उनकी आवाज अलग है। उनकी अदायगी अलग है. उनका अंदाज अलग है. लेकिन ये पहचान बनाना उनके लिए बहुत मुश्किल था। हुआ यूं कि ऊषा को गायकी का शौक बचपन से था. एक रोज वो स्कूल टीचर के पास गईं। छोटी सी ऊषा ने संगीत सीखने की इच्छा जताई. टीचर ने जब ऊषा उत्थुप का गाना सुना, तो उन्होंने मना कर दिया। शिक्षक का कहना था कि ऊषा की आवाज गायकी के लिए है ही नहीं. गायकी के लिए आवाज में मुलायमियत होनी चाहिए जबकि ऊषा उत्थुप की आवाज मर्दानी आवाज के काफी करीब थी। शिक्षक के इस बेरूखे अंदाज का सामना कम ही बच्चे कर सकते हैं। आप ही सोच कर देखिए अगर किसी छोटी सी बच्ची को टीचर ऐसे मना कर दे तो ज्यादातर बच्चे मायूस हो जाएंगे। उनकी आंखों में आंसू होंगे लेकिन ऊषा उत्थुप ने इसका ठीक उलट किया. उन्होंने टीचर की बात को ही अनसुना कर दिया, जैसे गाती थीं वैसे ही गाती रहीं।
ऊषा उत्थुप को कहां से लगा संगीत का चस्का – आजादी के कुछ ही महीने बाद की बात है. मुंबई में ऊषा उत्थुप का जन्म हुआ। पिता क्राइम ब्रांच में नौकरी करते थे. ऐसे परिवार में संगीत हो, ऐसा कम ही सोचा जाएगा लेकिन ऊषा की मां को संगीत का बहुत शौक था. वो शौकिया गाती भी थीं। दिलचस्प बात ये है कि पचास के दशक में भी ऐसा नहीं था कि इस परिवार में कुछ चुनिंदा कलाकारों को सुना जाता हो. बल्कि गजब की वेराइटी थी. वेस्टर्न क्लासिकस में बीथोवेन, मोजार्ट सुने जाते थे। भारतीय शास्त्रीय संगीत में पंडित भीमसेन जोशी, बड़े गुलाम अली खान, बेगम अख्तर से लेकर किशोरी अमोनकर की आवाज घर में गूंजती रहती थी यानि संगीत के शौक की ‘रेंज’ भी कमाल की थी। ऊषा उत्थुप में संगीत के संस्कार यहीं से आए।स्कूल में जैसे ही खाली समय मिलता ऊषा उत्थुप की गायकी शुरू हो जाती। पढ़ाई की टेबल तबले में तब्दील हो जाती. क्लास के बाकि बच्चे ‘कोरस’ में शामिल हो जाते।
ये सिलसिला काफी समय तक चला. घर पर ऊषा की बहनों को भी गाने का शौक था। कुल मिलाकर संगीत सुनने का चस्का धीरे-धीरे गायकी सीखने की तरफ बढ़ा लेकिन जब संगीत सीखने की इच्छा जताई तो उन्हें नकार दिया गया लेकिन फिर कुछ ऐसा हुआ कि ऊषा ने अपने इरादे मजबूत कर लिए. ऊषा 22 साल की थीं, मद्रास में एक कार्यक्रम में उन्होंने गाया। खूब तालियां बजीं. हालांकि वो एक इंग्लिश गाना था। उस दिन मिली तारीफ से ऊषा उत्थुप को एक बड़ा सबक मिला. उन्होंने समझ लिया कि अगर गायकी में पहचान बनानी है तो सबसे पहले ‘ओरिजिनल होना बहुत जरूरी है। इसके बाद वो गायकी के रास्ते पर निकल गयी।
नाइट क्लब में गायकी से शुरू हुआ था सफर – ऊषा उत्थुप ने तो सिंगर बनने का फैसला कर लिया था, लेकिन वो उस दौर में ये प्रयास करने जा रही थीं जब इंडस्ट्री में लता मंगेशकर, आशा भोंसले जैसी गायिका थीं. ऐसे में ऊषा का सफर नाइट क्लब में गायकी के साथ शुरू हुआ। दिल्ली में ऐसे ही एक कार्यक्रम के दौरान ऊषा उत्थुप की किस्मत बदली. दिल्ली से पहले मद्रास, कोलकाता जैसे शहरों में भी ऊषा उत्थुप ने नाइट क्लबों में गायकी की थी। ऊषा की वेशभूषा भी अलग ही होती थी- आज भी वो वैसी ही हैं। चटक रंग की साड़ी… बड़ी सी बिंदी. ऊषा जब नाइट क्लब में फिल्मी गाने गाती थीं तो उस दौरान एक और गाना उनका पसंदीदा था-काली तेरी गुथ ते परांदा तेरा लालनी। दिल्ली के उस नाइट क्लब में नवकेतन फिल्म्स की यूनिट के कुछ बड़े लोग मौजूद थे। उस समय ‘हरे रामा हरे कृष्णा’ फिल्म के लिए काम चल रहा था। ये उस दौर के बहुत बड़े स्टार देव आनंद की फिल्म थी। इस फिल्म का संगीत पंचम दा बना रहे थे। फिल्म की यूनिट के लोगों ने क्लब में गा रही लड़की के बारे में पता किया। सारी जानकारी इकट्ठा करने के बाद उन्होंने ऊषा उत्थुप से संपर्क किया. ऑफर बिल्कुल सीधा था- क्या आप हमारी अगली फिल्म में गाएंगी? ऊषा के सामने कोई ऐसी वजह नहीं थी कि वो मना करतीं. उन्होंने हामी भर दी। उस फिल्म के लिए गाना बना- हरे कृष्णा हरे राम…बाकि इसके बाद की कहानी इतिहास में दर्ज है। ऊषा उत्थुप के गाने पर आज भी लोग झूमते हैं- नाचते हैं। ऊषा उत्थुप गायकी के साथ साथ एक्टिंग भी कर चुकी हैं लेकिन वो कहती है उन्होंने जो गाया दिल से गाया। अपनी जिंदगी को वो अपने ही गाने से परिभाषित करती हैं- दोस्तों से प्यार किया, दुश्मनों से बदला लिया… जो भी किया हमने किया…शान से।
गणतंत्र दिवस विशेष : संविधान ही नहीं, अधिकार भी जानें
भारत आज अपना 75वां गणतंत्र दिवस मना रहा है। गणतंत्र दिवस भारत का एक राष्ट्रीय पर्व है। इस दिन भारत का संविधान लागू हुआ था। भारत ने आज के दिन समानता, धर्मनिरपेक्षता और स्वशासन के लिए प्रतिबद्ध एक गणतंत्र के रूप में अपनी पहचान अपनाई। हमारे संविधान ने महिलाओं को आजादी से जीने के लिए कई अधिकार दिए हैं, जिनका इस्तेमाल हम एक सम्मान भरी जिंदगी जीने के लिए कर सकते हैं। लेकिन अपने संविधान की ही तरह क्या वाकई महिलाएं अपने अधिकारों को अच्छी तरह जानती हैं। समाज इस बात को स्वीकार करे या ना करे, पर यह सच्चाई है कि महिलाओं पर जिम्मेदारियों का दोहरा बोझ होता है। घर,ऑफिस,बच्चे,परिवार और रसोई की जिम्मेदारियां अकसर एक-दूसरे से घालमेल होती नजर आती हैं। पर, जिम्मेदारियों का इतना बोझ उठाने का मतलब यह नहीं है कि उन्हें अपने सारे वाजिब अधिकार भी मिल जाते हैं। कभी वह घर में तिरस्कार का शिकार हो जाती है, तो कभी ऑफिस में शोषण का। उसे कई बार सिर्फ औरत होने का खामियाजा भुगतना पड़ता है, तो कई बार अपने अधिकारों की जानकारी का अभाव उसे शोषण का शिकार रहने के लिए मजबूर कर देता है। यह समझना जरूरी है कि हम महिलाओं के ऊपर सिर्फ जिम्मेदारियों का बोझ ही नहीं है बल्कि हमारे पास अपनी हिफाजत के लिए कई अधिकार भी हैं। जैसे मातृत्व अवकाश का अधिकार, घर में रहने का अधिकार, ऑफिस में समान वेतन का अधिकार, अपनी बात रखने का अधिकार आदि। समय की जरूरत है कि हम महिलाएं ना सिर्फ अपने अधिकारों के प्रति जागरूक रहें बल्कि उन्हें उठाने के लिए उचित कदम भी उठाएं।
मातृत्व से जुड़े अधिकार- क्या आप जानती हैं कि गर्भवती महिलाओं को संविधान द्वारा कुछ खास अधिकार प्राप्त हैं? संविधान के अनुच्छेद -42 के तहत कामकाजी महिलाओं को तमाम अधिकार हासिल हैं। इसमें महिला यदि किसी सरकारी और गैर सरकारी संस्था, फैक्ट्री में जिसकी स्थापना इम्प्लॉइज स्टेट इंश्योरेंस एक्ट, 1948 के तहत हुई हो में काम करती है, तो उसे मातृत्व से जुड़े तमाम लाभ मिलेंगे, जिसमें 12 सप्ताह से लेकर छह माह तक का मातृत्व अवकाश शामिल है। इस अवकाश को वह अपनी आवश्कता के अनुसार ले सकती है। गर्भपात की स्थिति में भी इस एक्ट का लाभ मिलता है। महिला गर्भावस्था या फिर गर्भपात के चलते बीमार हो जाती है, तो मेडिकल रिपोर्ट के आधार पर उसे अतिरिक्त एक महीने की छुट्टी मिल सकती है। महिला को मैटरनिटी लीव के दौरान किसी तरह के आरोप पर नौकरी से नहीं निकाला जा सकता। अगर उसे यह सुविधा नियोक्ता द्वारा नहीं दी जाती है, तो वह इसकी शिकायत कर सकती है। यहां तक कि वह कोर्ट भी जा सकती है।
मुफ्त कानूनी सलाह का अधिकार – अगर कोई महिला किसी केस में आरोपी है, तो वह मुफ्त कानूनी मदद ले सकती है। वह अदालत से मुफ्त में सरकारी खर्चे पर वकील की गुहार लगा सकती है, जिसे महिला की आर्थिक स्थिति देखते हुए मुहैया कराया जाता है। पुलिस महिला की गिरफ्तारी के बाद कानूनी सहायता कमिटी से संपर्क करती है और महिला की गिरफ्तारी के बारे में उन्हें सूचित किया जाता है। लीगल ऐड कमेटी महिला को मुफ्त कानूनी सलाह देती है।
स्त्री धन है सिर्फ आपका – स्त्री धन? हैरान होने की जरूरत नहीं है। यह वह धन है, जो महिला को शादी के वक्त उपहार के तौर पर मिलता है। इस पर महिला का पूरा हक होता है। इसके अतिरिक्त वर-वधू दोनों के इस्तेमाल के लिए साझा सामान दिए जाते हैं, वह भी इसी श्रेणी में आते हैं। इस बाबत वरिष्ठ अधिवक्ता संजीव गुप्ता कहते हैं कि अगर ससुरालवालों ने महिला का स्त्री धन अपने पास रख लिया है तो महिला इसके खिलाफ आईपीसी की धारा 406 (अमानत में खयानत) की भी शिकायत दर्ज करा सकती है।
आपकी हां, है जरूरी – महिला की सहमति के बिना उसका गर्भपात नहीं कराया जा सकता। जबरन गर्भपात कराए जाने के लिए सख्त कानून मौजूद हैं। अब आप सोच रही होंगी कि गर्भपात करना ही कानूनी नहीं है। पर, कुछ खास परिस्थितियों में गर्भपात कराया जा सकता है। मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रग्नेंसी एक्ट के तहत अगर गर्भ के कारण महिला की जान को खतरा हो या फिर स्थिति मानसिक और शारीरिक रूप से गंभीर परेशानी पैदा करने वाली हों या फिर गर्भ में पल रहा बच्चा विकलांगता का शिकार हो तो गर्भपात कराया जा सकता है।
लिव इन के भी हैं अधिकार – अब लिव इन रिलेशनशिप को कानूनी मान्यता मिल चुकी है। पर यहां सबसे पहले यह समझना होगा कि आखिर लिव इन है क्या? सिर्फ उसी रिश्ते को लिन-इन रिलेशनशिप माना जा सकता है, जिसमें स्त्री और पुरुष विवाह किए बिना पति-पत्नी की तरह रहते हैं। इसके लिए जरूरी है कि दोनों बालिग और शादी योग्य हों। यदि दोनों में से कोई एक भी पहले से शादीशुदा है, तो उसे लिव-इन रिलेशनशिप नहीं कहा जाएगा। इस रिश्ते में रहने वाली महिलाओं को भी घरेर्लू ंहसा कानून के तहत सुरक्षा हासिल है। अगर उसे किसी भी तरह से प्रताड़ित किया जाता है, तो वह अपने साथी के खिलाफ इस एक्ट के तहत शिकायत कर सकती है। ऐसे में संबंध में रहते हुए उसे राइट-टू-शेल्टर भी मिलता है। यानी जब तक यह रिश्ता कायम है, तब तक उसे घर से निकाला नहीं जा सकता। लिव-इन में रहने वाली महिला गुजारा भत्ता पाने की भी अधिकारी है।
एफआईआर दर्ज होगी कहीं भी – डीवी एक्ट की धारा-12 इसके तहत महिला मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट की कोर्ट में शिकायत कर सकती है। शिकायत की सुनवाई के दौरान अदालत सुरक्षा अधिकारी से रिपोर्ट मांगता है। महिला जहां रहती है या जहां उसके साथ घरेर्लू ंहसा हुई है या फिर जहां प्रतिवादी रहते हैं, वहां शिकायत की जा सकती है। सुरक्षा अधिकारी घटना की रिपोर्ट अदालत के सामने पेश करता है और उस रिपोर्ट को देखने के बाद अदालत अपना आदेश पारित करती है। इस दौरान अदालत महिला को उसी घर में रहने देने , खर्चा देने या फिर उसकी सुरक्षा का आदेश दे सकती है। अगर अदालत महिला के पक्ष में आदेश पारित करती है और प्रतिवादी उस आदेश का पालन नहीं करता है तो डीवी एक्ट-31 के तहत प्रतिवादी पर केस बनता है।
पिता की नौकरी पर भी है अधिकार – नौकरी पर रहते हुए पिता की मौत होने पर बेटियों को भी मुआवजे के तौर पर नौकरी पाने का अधिकार है। फिर चाहे बेटी शादीशुदा हो या कुंवारी। 2015 से लागू हुए नियम के तहत नौकरी में रहते हुई पिता की मौत पर शादीशुदा बेटी भी मुआवजे में पिता की नौकरी पाने का अधिकारी रखती है।
समान वेतन का अधिकार – समानता का अधिकार महिलाओं के कार्यक्षेत्र में सामान वेतन पर भी लागू होती है, जिसमें एक जैसा काम करने वाले महिला-पुरुष को एक सा वेतन मिलेगा । कंपनी में जितनी भी सुविधा पुरुष कर्मचारी को मिलती है, उतनी ही सुविधा महिला कर्मचारी को भी मिलेगी। कुछ खास जगहों को छोड़कर शाम सात बजे के बाद और सुबह छह बजे के पहले महिला कर्मचारी को काम पर नहीं लगाया जा सकता है। छुट्टी के दिन महिला कर्मचारी को काम पर नहीं बुलाया जा सकता है। अगर उन्हें बुलाना है तो उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करनी होती है। अगर कोई कंपनी इस कानून को मानने से इंकार करती है तो उसके मालिक को सजा का प्रावधान है। समस्या होने पर श्रम आयुक्त से शिकायत की जा सकती है।
घरेलू हिंसा का शिकार महिला को घर में रहने का पूरा अधिकार है। धारा 17-18 के तहत कानून प्रक्रिया के अतिरिक्त उसका निष्कासन नहीं किया जा सकता।
घरेलू हिंसा की शिकायत व्यक्ति के घरेलू संबंध में रहने वाली महिला के द्वारा अथवा उसके प्रतिनिधि द्वारा दर्ज कराई जा सकती है। पत्नी, बहनें ,माताएं, बेटियां भी शिकायत दर्ज करवा सकती हैं।
आईपीसी की धारा 354डी के अंतर्गत किसी महिला का पीछा करने, बार-बार मना करने के बाद भी संपर्क करने, इलेक्ट्रॉनिक कम्यूनिकेश जैसे ई-मेल, इंटरनेट आदि के जरिए मॉनिटर करने वाले शख्स पर कानूनी कार्रवाई हो सकती है।
आपराधिक कानून (संशोधन) अधिनियम, 2013 के तहत स्टॉकिंग करने पर जेल हो सकती है।
किसी महिला को सूरज डूबने के बाद और उगने से पहले गिरफ्तार नहीं किया जा सकता। किसी खास मामले में एक प्रथम श्रेणी के मजिस्ट्रेट के आदेश पर ही यह संभव है।
प्रत्येक पुलिस स्टेशन में एक महिला पुलिस अधिकारी (हेड कांस्टेबल से नीचे नहीं होना चाहिए) पूरे समय होना अनिवार्य है।
महिला कॉन्स्टेबल की अनुपस्थिति में, पुरुष पुलिस अधिकारी द्वारा महिला को गिरफ्तार नहीं किया जा सकता।
महिला की तलाशी सिर्फ महिला पुलिस कर्मी ही ले सकती है।
बिना वॉरेंट गिरफ्तार महिला को तुरंत गिरफ्तारी का कारण बताना जरूरी है और उसे जमानत संबंधी अधिकार के बारे में भी बताना जरूरी है।
पुलिस केवल महिला के निवास पर ही उसकी जांच कर सकती है।
एक बलात्कार पीड़िता अपनी पसंद के स्थान पर ही अपना बयान रिकॉर्ड कर सकती है और पीड़िता की चिकित्सा प्रक्रिया केवल सरकारी अस्पताल में ही हो सकती है।