Saturday, September 20, 2025
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भारत जैन महामंडल लेडिज विंग द्वारा सुरंगों राजस्थान का आयोजन

कोलकाता । भारतीय भाषा परिषद् में भारत जैन महामंडल लेडिज विंग कोलकाता शाखा ने सुरंगों राजस्थान कार्यक्रम आयोजन 27 जनवरी भारतीय भाषा परिषद में किया गया। राजस्थानी भाषा के ज्यादा से ज्यादा बोलने का आह्वान किया। मुख्य अतिथि के तौर पर लोकगायक राजस्थान जयपुर के संजय मुकुन्दगढ़ को बुलाया गया जिन्होंने राजस्थान के प्रमुख लोकगीतों चांद चढयो गिगनार, पल्लो लटको,ओर रंग दे, बाई सारा बीरा आदि बहुत सारे गीतों से सभी महिला सदस्याओं को आनंदित कर दिया। सभी ने संजय मुकुंदगढ के ढप के साथ नृत्य में भी भाग लिया। विशेष अतिथि के तौर पर श्री विश्वंभर जी नेवर जी प्रधान सम्पादक छपते छपते अखबार और निदेशक ताजा टीवी एवम् डॉ वसुंधरा मिश्र हिंदी भवानीपुर कालेज रहीं । सभी ने राजस्थानी भाषा को अपनाने पर जोर दिया। श्रीमती अंजू सेठिया ने इस बात पर जोर दिया कि हमें पहली शुरुआत राजस्थानी भाषा को अपने घर से करनी चाहिए। संजय मुकुन्दगढ़ प्रसिद्ध अंतरराष्ट्रीय लोक गीत गायक है। संजय जी ने बहुत सुंदर लोकगीत प्रस्तुत किये, सभी मंत्रमुग्ध हो गए। – प्रत्येक देश एवं समाज में लोक – भावों की अभिव्यंजना के लिए अलग – अलग अवसर पर कई प्रकार के गीत प्रचलित रहते हैं। लोक में गीत गाने वाला व्यक्ति अपने भावों की अभिव्यक्ति कर आनन्द का अनुभव करता है, पर साथ ही उसके द्वारा गाए गए अच्छे गीतों से श्रोता भी भाव – विभोर हो जाता है। इस तरह आत्मिक सुख का ही नहीं, अपितु सामाजिक जीवन में उल्लास एवं सुखानुभूति का भी प्रसार करते हैं।इस अवसर पर भवानीपुर जास्मिन ने गजल सुनाई। पूर्व अध्यक्ष सरोज भंसाली और रूबी गोलछा ने मेहमानों का स्वागत उत्तरीय ओढ़ाकर किया। साथ ही राजस्थानी चाय नाश्ते का भी प्रबंध किया गया। यह कार्यक्रम अध्यक्ष चंदा गोलछा,सुमन मालु और नाश्ता कनक चोपड़ा के सहयोग से किया गया। भारत जैन महामंडल लेडिज विंग कोलकाता शाखा के लगभग 75 प्रोग्राम आयोजित किए जा चुके है। पूरी तरह भारत जैन महामंडल लेडिज विंग कोलकाता शाखा की बहनों के सहयोग से हर प्रोग्राम किया जाता है।   कोलकाता की प्रसिद्ध  अध्यापिका रेखा शॉ, सरोज भंसाली, कल्पना बाफना, अंजू बैद, 50 की उपस्थित रही। विश्वंभर नेवर ने विषय पर अपनी बातें रखीं। डॉ वसुंधरा मिश्र ने धन्यवाद ज्ञापन दिया ।यह जानकारी भारत जैन महामंडल लेडिज विंग कोलकाता शाखा की संस्थापिका सलाहकार अंजू सेठिया ने दी।

रामायण के पन्नों में रहकर भी दबा रह गया श्रीराम की बड़ी बहन शांता का त्याग

क्या आपको पता है भगवान राम की एक बहन भी थीं, जिनका नाम शांता थाI शायद ही हममें से किसी को शांता के बारे में कुछ पता हो, क्योंकि हमने जो रामायण देखा व पढ़ा है उसमें शांता का जिक्र है ही नहींI इसलिए आज हम आपको भगवान श्री राम की बहन शांता के बारे में बताएँगे कि आखिर कौन थीं शांता? उनका जन्म कैसे हुआ और क्या है उनकी कहानीI
कौन थीं प्रभु श्री राम की बहन शांता – महाराज दशरथ की तीन रानियाँ थीं, कौशल्या, कैकयी और सुमित्राI दशरथ और कौशल्या अयोध्या के राजा-रानी थेI सभी जानते हैं कि राजा दशरथ के चार पुत्र थेI लेकिन यह बहुत कम लोगों को पता है कि इन चार पुत्रों के अलावा उनकी एक पुत्री भी थी, जिनका नाम शांता थाI शांता माता कौशल्या और दशरथ की पुत्री थींI शांता बहुत ही सुंदर एक होनहार कन्या थीं, वो हर क्षेत्र में निपुण थींI शांता को वेद, कला, शिल्प, युद्ध कला, विज्ञान, साहित्य एवं पाक कला सभी का अनूठा ज्ञान प्राप्त थाI अपने युद्ध कौशल से वह सदैव अपने पिता राजा दशरथ को गौरवान्वित कर देती थींI
रामायण में क्यों नहीं है देवी शांता का जिक्र? – रामायण में शांता का जिक्र इसलिए नहीं मिलता, क्योंकि वे बचपन में ही राजा दशरथ का महल छोड़कर अंगदेश चली गई थींI शांता के बारे में इतिहास में बहुत ही कम उल्लेख मिलता हैI उनके बारे में कई कहानियां प्रचलित हैंI
पहली कथा– पौराणिक कथाओं के अनुसार राजा दशरथ की पहली पत्नी महारानी कौशल्या की बहन रानी वर्षिणी और उनके पति अंगदेश के राजा रोमपद को कोई संतान नहीं थीI एक बार वर्षिणी ने कौशल्या और राजा दशरथ से कहा कि काश उनके पास भी शांता जैसी एक सुशील और गुणवती पुत्री होतीI राजा दशरथ से उनकी पीड़ा देखी नहीं गई और उन्होंने अपनी पुत्री शांता को उन्हें गोद देने का वचन दे दियाI रघुकुल की रित प्राण जाई पर वचन न जाई के अनुसार राजा दशरथ एवं माता कौशल्या को अपनी पुत्री को अंगदेश के राजा रोमपद एवं रानी वर्षिणी को गोद देना पड़ाI शांता को पुत्री के रूप में पाकर रोमपद और वर्षिणी बहुत प्रसन्न हो गए और उन्होंने राजा दशरथ का आभार व्यक्त कियाI इस प्रकार शांता अंगदेश की राजकुमारी बन गईंI

दूसरी कथा – बात उस समय की है जब राजा दशरथ और कौशल्या का विवाह भी नहीं हुआ थाI ऐसा कहा जाता है कि रावण को पहले से ही पता चल चुका था कि अयोध्या के राजा दशरथ और कौशल्या की संतान ही उसकी मृत्यु का कारण बनेगीI इसलिए रावण ने कौशल्या को पहले ही मारने की योजना बनाईI उसने कौशल्या को एक संदूक में बंद किया और नदी में बहा दियाI वही से राजा दशरथ शिकार के लिए जा रहे थेI उन्होंने कौशल्या को बचाया और उस समय नारद जी ने उनका गन्धर्व विवाह कराया थाI उनके विवाह के बाद उनके यहां एक कन्या ने जन्म लिया, जिसका नाम शांता थाI वो जन्म से दिव्यांगना थी राजा दशरथ ने उसका कई बार उपचार कराया लेकिन कोई लाभ नहीं हुआI तब कई ऋषि मुनियों से सलाह की गई, तो उन्हें पता चला कि रानी कौशल्या और राजा दशरथ का गोत्र एक ही है इसीलिए उन्हें इन समस्याओं का सामना करना पड़ रहा हैI उन्हें यह भी सलाह दी गई कि अगर इस कन्या के माता पिता को बदल दिया जाए, तो यह कन्या ठीक हो जाएगीI यही कारण था कि राजा दशरथ ने शांता को रोमपद और वर्षिणी को गोद दे दिया थाI
तीसरी कथा- कई अन्य कथाओं के अनुसार राजा दशरथ ने शांता को इसलिए त्यागा क्योंकि वह पुत्री थी और कुल आगे नहीं बढ़ा सकती थी, ना ही राज्य को संभाल सकती थीI इसलिए राजा दशरथ ने शांता को रोमपद और वर्षिणी को गोद दे दिया थाI शांता को गोद दे देने के बाद दशरथ की कोई भी संतान नहीं थी, जिसके कारण वे परेशान रहने लगे थे और इसी कारण संतान के लिए राजा दशरथ ने पुत्रकामेष्ठि यज्ञ करवाया, जिसके बाद उन्हें चार पुत्रों की प्राप्ति हुईI
किससे और कैसे हुआ था शांता का विवाह? – राजा रोमपद को अपनी पुत्री से बहुत लगाव थाI वे अपनी बेटी से बहुत प्यार करते थेI एक बार एक ब्राह्मण उनके द्वार पर आयाI किन्तु वे शांता से बातचीत में इतने व्यस्त थे कि उन्होंने ब्राह्मण की तरफ़ ध्यान ही नहीं दिया और ब्राह्मण को खाली हाथ ही लौटना पड़ाI इसके कारण ब्राह्मण को काफी गुस्सा आया। वह ब्राह्मण इंद्र देव का भक्त था, इसलिए भक्त के अनादर से देवों के देव इंद्र देव क्रोधित हो उठें और उन्होंने वरुण देव को आदेश दिया कि अंगदेश में वर्षा न होI इंद्र देव की आज्ञा के अनुसार वरुण देव ने ठीक वैसा ही कियाI कई वर्षों तक वर्षा न होने के कारण अगंदेश में सूखा पड़ गया था और चारों तरफ़ हाहाकार मच गयाI राजा रोमपद को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि वे क्या करें, उनसे अपनी प्रजा की तकलीफ देखी नहीं गई और इस समस्या का समाधान पाने के लिए राजा रोमपद ऋषि ऋंग के पास गएI ऋषि ऋंग ने उन्हें वर्षा के लिए एक यज्ञ का आयोजन करने को कहाI
ऋषि के निर्देशानुसार रोमपद ने पूरे विधि-विधान के साथ यज्ञ कियाI यज्ञ के संपन्न होते ही अंगदेश में वर्षा होने लगीI प्रजा इतनी खुश हुई कि अंगदेश में जश्‍न का माहौल बन गया, सभी ख़ुशी से झूम उठे थेI तभी वर्षिणी और रोमपद ने ऋषि ऋंग से प्रसन्न होकर अपनी पुत्री शांता का विवाह उनसे करने का फैसला कियाI पुराणों के अनुसार ऋषि ऋंग विभंडक ऋषि के पुत्र थेI एक दिन जब विभंडक ऋषि नदी में स्नान कर रहे थे, तब नदी में ही उनका वीर्यपात हो गयाI उस जल को एक हिरणी ने पी लिया था, जिसके फलस्वरूप ऋंग ऋषि का जन्म हुआ थाI
राजा दशरथ को पुत्र प्राप्ति में कैसे सहायक बनी बेटी शांता – जब कई सालों तक राजा दशरथ को पुत्र की प्राप्ति नहीं हुई तो वे परेशान रखने लगेI राजा दशरथ और उनकी तीनों रानियां इस बात को लेकर चिंतित रहती थीं कि पुत्र नहीं होने पर उत्तराधिकारी कौन होगाI उनकी चिंता दूर करने के लिए ऋषि वशिष्ठ ने सलाह दिया कि ऋंग ऋषि से पुत्रेष्ठि यज्ञ करवाया जाएI इस यज्ञ से पुत्र की प्राप्ति होगीI दशरथ ने उनके मंत्री सुमंत की सलाह पर पुत्रकामेष्ठि यज्ञ में महान ऋषियों को बुलायाI इस यज्ञ में दशरथ ने ऋंग ऋषि को भी बुलायाI ऋंग ऋषि एक पुण्य आत्मा थे तथा जहां वे पांव रखते थे वहां यश फैल जाता थाI राजा दशरथ ने आयोजन करने का आदेश दियाI ऋषि ऋंग अपनी एक घोर तपस्या को पूरा करके उन्हीं दिनों अपने आश्रम लौटे थेI पहले तो ऋषी ऋंग ने इस यज्ञ के लिए मना कर दिया था लेकिन पत्नी शांता के कहने पर वो तैयार हो गएI कहते हैं कि पुत्रेष्ठि यज्ञ कराने वाले का जीवनभर का पुण्य इस यज्ञ की आहुति में नष्ट हो जाता हैI लेकिन उन्होंने एक शर्त रखी, ”मैं अकेला नहीं आ सकताI मैं यज्ञ कराने के लिए सहमत हूं, लेकिन मेरी पत्नी शांता भी मेरे साथ आएगीI वह भी ऋत्विक के रूप में कार्य करेगीI” राजा दशरथ के मंत्री सुमंत इस शर्त को मानने के लिए सहमत हो गएI ऋषी ऋंग और शांता अयोध्या पहूंचेI शांता ने जहां भी पैर रखा, वहां से सूखा गायब हो गयाI दशरथ और कौशल्या सोच में पड़ गए कि आखिर यह कौन है? तब शांता ने स्वयं अपनी पहचान प्रकट कीI उन्होंने कहा, ”मैं आपकी पुत्री शांता हूं।” दशरथ और कौशल्या को यह जानकर बहुत खुशी हुई कि वह उनकी पुत्री शांता हैI ऐसा माना जाता है कि ऋंग ऋषि और शांता का वंश ही आगे चलकर सेंगर राजपूत बनाI सेंगर राजपूत को ऋंगवंशी राजपूत कहा जाता हैI
कैसे मिले भगवान श्री राम और शांता? – काफी लंबे समय तक भगवान श्री राम और उनके तीनों भाइयों को उनकी बहन शांता के बारे में कोई जानकारी नहीं थीI वे नहीं जानते थे कि उनकी एक बड़ी बहन भी हैI कई साल बीतने के बाद भी माता कौशल्या अपनी पुत्री शांता के वियोग को भूल नहीं पाई थीI उन्हें हमेशा शांता की याद आती रहती थी, जिसके कारण कई बार रानी कौशल्या और राजा दशरथ के बीच मतभेद हो जाता थाI अपनी माता के दुख को महसूस कर भगवान राम ने माता कौशल्या से प्रश्न किया कि ऐसी क्या चीज़ है जिसके बारे में वे हमेशा सोचती रहती हैं, किस बात के कारण वे हमेशा हमेशा उदास रहती है? तब माता कौशल्या ने भगवान राम को अपने मन की पीड़ा के बारे में बतायाI प्रभु राम को उनकी बड़ी बहन शांता के बारे में बताया और जिसके बाद भगवान राम अपने तीनों भाइयों के साथ अपनी बड़ी बहन शांता से मिलने गएI जब भगवान राम अपनी बहन शांता से मिलते, तब शांता अपने त्याग का फल उनसे मांगती हैI तब भगवान राम हमेशा उनके साथ रहने का वचन देते हैं और इस तरीके से जीवन भर वे एक दूसरे की परछाई बनकर रहते हैंI
भारत में यहां होती है देवी शांता की पूजा – हिमाचल के कुल्लू में ऋंग ऋषि के मंदिर में भगवान राम की बड़ी बहन शांता की पूजा अर्चना की जातीI यह मंदिर कुल्लू से 50 कि.मी दूर बना हुआ हैI यहां देवी शांता की प्रतिमा भी स्थापित हैI इस मंदिर में देवी शांता और उनके पति ऋंग ऋषि की साथ में पूजा होती हैI दोनों की पूजा के लिए कई जगहों से भक्त दर्शन के लिए आते हैंI शांता देवी के इस मंदिर में जो भी भक्त देवी शांता और ऋंग ऋषि की सच्चे मन से पूजा करता है उसे भगवान राम का आशीर्वाद प्राप्त होता हैI देवी शांता के मंदिर में दशहरा बड़ी धूम-धाम से मनाई जाती हैI इसके अलावा उत्तर प्रदेश के बस्ती जिले के हरैया तालुका में श्रृंगी नारी के मंदिर में आज भी देवी शांता की पूजा होती हैI यहां आज भी लोग प्रतिदिन श्रद्धा के साथ पूजा करने आते हैंI ऐसी मान्यता है कि इस मंदिर में पूजा करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैंI
श्रंगेरी के पास ही इसी नाम से एक पर्वत भी है। श्रंगेरी में श्रंगी ऋषि और शांता के मंदिर हैं। श्रंगेरी शहर का नाम श्रंगी ऋषि के नाम पर ही है। यहीं उनका जन्म हुआ था। दक्षिण भारत में, खासतौर पर कर्नाटक, केरल के कुछ इलाकों में भगवान राम की बहन की मान्यता है। इसके अलावा छत्तीसगढ़ सहित कुछ अन्य जगहों पर ऐसी लोक कथा प्रचलित हैं।
(साभार – गृहलक्ष्मी)

श्रीराम प्राण प्रतिष्ठा समारोह….500 वर्ष की तपस्या के बाद सत्य हुआ ऐतिहासिक क्षण

शुभजिता फीचर डेस्क
भगवान श्रीराम की जन्मस्थली अयोध्या में उनके जन्मस्थान पर करीब 5 शताब्दियों के बाद ऐसा पल आने वाला है, जिसका साक्षी पूरा देश बनेगा। रामलला अपने गर्भगृह में विराजमान होने वाले हैं। इसकी तैयारियां शुरू करा दी गई हैं। मंदिर बनकर तैयार हो रहा है। माना जा रहा है कि दिसंबर तक पहले चरण का निर्माण कार्य पूरा करा लिया जाएगा। इसके बाद मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा की तैयारियों को अंतिम रूप दिया जाना शुरू कर दिया जाएगा। श्रीराम जन्‍मभूमि मंदिर के गर्भगृह में रामलला की प्राण प्रतिष्‍ठा कार्यक्रम को देश के 5 लाख मंदिरों तक आयोजित किए जाने की योजना है। पूरे देश को 12 दिनों तक राममय करने की तैयारी चल रही है। इसके अलावा प्राण प्रतिष्‍ठा समारोह के दौरान अयेाध्‍या में आयोजित होने वाले कार्यक्रम में भी करीब 5 लाख श्रद्धालुओं के पहुंचने का अनुमान है। उनके ठहरने और भोजन की व्‍यवस्‍था भी मंदिर ट्रस्‍ट की ओर से तैयारी चल रही है। इस ऐतिहासिक क्षण को स्मृतियों में देखने का क्षण हैं, इस नजर इतिबास के पन्नों में तैयारियों के साथ उन नांव की ईंट को स्मरण करते हुए यह आलेख प्रस्तुत है –
आजादी के कुछ समय बाद ही बाबरी मस्जिद में रातों-रात राललला की मूर्तियां रख दी गई थीं. यही नहीं, उन्‍होंने तत्‍कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के आदेश की अनदेखी करते हुए मूर्तियों को विवादित स्‍थल से हटवाने से भी इनकार कर दिया था। हम बात कर रहे हैं तब के फैजाबाद जिले के डीएम केके नायर की। विवादित स्थल पर रखी गईं रामलला की मूर्तियों को हटवाने के लिए तत्‍कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने उन्हें दो बार आदेश दिया। केके नायर ने दोनों बार उनके आदेश का पालन करने में असमर्थता जता दी। इससे उनकी छवि हिंदूवादी अधिकारी के तौर पर बन गई। बाद में इसका उन्‍हें बड़ा फायदा मिला। उन्‍होंने और उनकी पत्‍नी ने बाद में लोकसभा चुनाव लड़ा ही नहीं, जीता भी. यही नहीं, उनकी छवि का फायदा उनके ड्राइवर तक को मिला। उनके ड्राइवर ने उत्‍तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में ताल ठोकी और जीतकर विधायक बना।
अलेप्‍पी के नायर थे 1930 बैच के आइसीएस अफसर – दरअसल, 22 और 23 दिसंबर 1949 की आधी रात बाबरी मस्जिद में कथित तौर पर गुपचुप तरीके से रामलला की मूर्तियां रख दी गयीं।. इसके बाद अयोध्या में शोर मच गया कि जन्मभूमि में भगवान प्रकट हुए हैं। लिब्राहन आयोग की रिपोर्ट के मुताबिक, मौके पर तैनात कॉन्स्टेबल माता प्रसाद ने घटना की सूचना थाना इंचार्ज राम दुबे को दी। माता प्रसाद ने बताया कि 50 से 60 लोग परिसर का ताला तोड़कर अंदर घुस गए। इसके बाद उन्‍होंने वहां श्रीराम की मूर्ति स्थापित कर दी, साथ ही पीले और गेरुए रंग से श्रीराम लिख दिया। हेमंत शर्मा ने अपनी किताब ‘युद्ध में अयोध्या’ में लिखा है कि केरल के अलेप्पी के रहने वाले केके नायर 1930 बैच के आईसीएस अधिकारी थे। उनके फैजाबाद के डीएम रहते बाबरी ढांचे में मूर्तियां रखी गयीं। 23 दिसंबर 1949 की सुबह अयोध्‍या में अचानक शोर होने लगा कि बाबरी मस्जिद में रामलला प्रकट हुए हैं।
क्‍या कहकर नायर ने टाल दिया पं. नेहरू का आदेश – हेमंत शर्मा किताब में लिखते हैं कि बाबरी मामले से जुड़े आधुनिक भारत में नायर ऐसे व्‍यक्ति हैं, जिनके कार्यकाल में इस मामले में सबसे बड़ा मोड़ आया।  इससे देश के सामाजिक-राजनीतिक ताने-बाने पर बड़ा असर पड़ा। केके नायर 1 जून 1949 को फैजाबाद के कलेक्टर बने थे। 23 दिसंबर 1949 को जब भगवान राम की मूर्तियां मस्जिद में रखी हुईं तो नेहरू ने यूपी के तत्‍कालीन सीएम गोविंद बल्लभ पंत से तत्‍काल मूर्तियां हटवाने को कहा। उत्तर प्रदेश सरकार ने मूर्तियां हटवाने का आदेश दिया, लेकिन जिला मजिस्ट्रेट केके नायर ने दंगों और हिंदुओं की भावनाओं के भड़कने के डर से इस आदेश को पूरा करने में असमर्थता जताई.।
नायर बने सांसद, तो उनका ड्राइवर बना विधायक – किताब के मुताबिक, तत्‍कालीन पीएम नेहरू ने मूर्तियां हटाने को दोबारा कहा तो नायर ने सरकार को लिखा कि मूर्तियां हटाने से पहले मुझे हटाया जाए। देश के सांप्रदायिक माहौल को देखते हुए सरकार पीछे हट गई। डीएम नायर ने 1952 में स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ले ली, फिर देश की चौथी लोकसभा के लिए उन्‍होंने उत्तर प्रदेश की बहराइच सीट से जनसंघ के टिकट पर चुनाव लड़ा और जीत गए। उनकी पत्‍नी शकुंतला नायर भी जनसंघ के टिकट पर कैसरगंज से तीन बार लोकसभा पहुंचीं। बाद में उनका ड्राइवर भी उत्तर प्रदेश विधानसभा का सदस्य बना। विवादित स्थल से मूर्तियां नहीं हटाने का मुसलमानों ने विरोध किया। दोनों पक्षों ने कोर्ट में मुकदमा दायर कर दिया. फिर सरकार ने इस स्थल को विवादित घोषित करके ताला लगा दिया। पं. नेहरू के आदेश को अनदेखा करने वाले केके नायर की पत्‍नी शकुंतला नायर तीन बार कैसरगंज से लोकसभा चुनाव जीतीं।
कहां से लाई गई थी भगवान राम की मूर्ति – 23 दिसंबर 1949 की सुबह 7 बजे अयोध्या थाने के तत्कालीन एसएचओ रामदेव दुबे रूटीन जांच के दौरान मौके पर पहुंचे, तो वहां सैकड़ों लोगों की भीड़ जमा हो चुकी थी। रामभक्तों की भीड़ दोपहर तक बढ़कर 5000 लोगों तक पहुंच गई। अयोध्या के आसपास के गांवों से श्रद्धालुओं की भीड़ बालरूप में प्रकट हुए भगवान राम के दर्शन के लिए टूट पड़ी. हर कोई ‘भय प्रकट कृपाला’ गाता हुआ विवादित स्‍थल की ओर बढ़ा चला जा रहा था। भीड़ को देखकर पुलिस और प्रशासन के हाथपांव फूलने लगे. उस सुबह बाबरी मस्जिद के मुख्य गुंबद के ठीक नीचे वाले कमरे में वही मूर्ति प्रकट हुई थी, जो कई दशकों से राम चबूतरे पर विराजमान थी. इनके लिए वहीं की सीता रसोई या कौशल्या रसोई में भोग बनता था।
2100 किलो का घंटा, 108 फीट लंबी अगरबत्ती… राम मंदिर के लिए देश-विदेश से आये उपहार
इस मौके को खास बनाने के लिए देश-विदेश से अयोध्या के लिए उपहार भेजे गये। इसमें 108 फुट लंबी अगरबत्ती, 2100 किलोग्राम की घंटा, 1100 किलोग्राम वजनी एक विशाल दीपक, सोने के खड़ाऊं, 10 फुट ऊंचा ताला और चाबी और आठ देशों का समय एक साथ बताने वाली एक घड़ी विशेष आकर्षण हैं। इन अनोखे उपहारों को बनाने वाले कलाकारों को उम्मीद है कि उनके उपहारों का भव्य मंदिर में उपयोग किया जाएगा। नेपाल के जनकपुर से हजारों उपहारों से लदे 30 वाहन अयोध्या पहुंचे। सीता की जन्मभूमि नेपाल के जनकपुर से भगवान राम के लिए 3,000 से अधिक उपहार अयोध्या पहुंचे हैं। इनमें चांदी के जूते, आभूषण और कपड़ों सहित कई अन्य उपहार शामिल हैं. नेपाल के जनकपुर धाम रामजानकी मंदिर से लगभग 30 वाहनों के काफिले में रखकर इन उपहारों को अयोध्या लाया जा रहा है।
 श्रीलंका के एक प्रतिनिधिमंडल ने भी अशोक वाटिका से एक विशेष उपहार के साथ अयोध्या का दौरा किया। प्रतिनिधिमंडल ने महाकाव्य रामायण में वर्णित अशोक वाटिका से लाई गई एक चट्टान भेंट की। बताते चलें कि अशोक वाटिका वहीं जगह है, जहां रावण ने माता सीता का अपहरण करने के बाद उन्हें रखा था।
वडोदरा के विहा भरवाड की बनाई ये अगरबत्ती करीब डेढ़ महीने तक चलेगी। गुजरात के वडोदरा में छह महीने में तैयार की गई 108 फुट लंबी अगरबत्ती 18 जनवरी को अयोध्या पहुंच चुकी है। भरवाड और 25 अन्य भक्त 1 जनवरी को विशाल अगरबत्ती के साथ वडोदरा से रवाना हुए हैं। इसका वजन 3,610 किलोग्राम है और यह लगभग 3.5 फीट चौड़ी है। अगरबत्ती तैयार करने वाली वडोदरा के रहने वाले विहा भरवाड ने बताया, ”यह अगरबत्ती पर्यावरण के अनुकूल है। यह करीब डेढ़ महीने तक चलेगी और इसकी सुगंध कई किलोमीटर तक फैलेगी।” उन्होंने कहा कि 376 किलोग्राम गुग्गुल (गोंद राल), 376 किलोग्राम नारियल के गोले, 190 किलोग्राम घी, 1,470 किलोग्राम गाय का गोबर, 420 किलोग्राम जड़ी-बूटियों को मिलाकर अगरबत्ती को तैयार किया गया है। इसकी ऊंचाई दिल्ली में प्रतिष्ठित कुतुब मीनार की लगभग आधी है।
गुजरात ने दरियापुर से आया विशाल नगाड़ा – सोने की परत चढ़ा यह 56 इंच का विशाल नगाड़ा राम मंदिर में स्थापित किया गया।  मंदिर के प्रांगण में सोने की परत चढ़ा यह 56 इंच का नगाड़ा स्थापित किया इस 44 फुट लंबे पीतल के ध्वज स्तंभ और अन्य छोटे छह ध्वज स्तंभ हैं। वडोदरा के रहने वाले किसान अरविंदभाई मंगलभाई पटेल ने 1,100 किलोग्राम वजन का एक विशाल दीपक तैयार किया है। पटेल ने कहा, “दीपक 9.25 फीट ऊंचा और 8 फीट चौड़ा है. इसकी क्षमता 851 किलोग्राम घी की है। दीपक ‘पंचधातु’ यानी सोना, चांदी, तांबा, जस्ता और लोहा से मिलकर बना है।
सूरत से आयी माता सीता की विशेष साड़ी और हार – माता सीता के लिए भव्य राम मंदिर और श्रीराम की तस्वीर वाली यह विशेष साड़ी सूरत से आई है। इसमें भगवान राम और अयोध्या मंदिर की तस्वीरों वाली साड़ी भगवान राम की पत्नी सीता के लिए है, जिन्हें आदरपूर्वक मां जानकी के नाम से जाना जाता है और इसका पहला टुकड़ा रविवार को सूरत के एक मंदिर में चढ़ाया गया। सूरत के ही एक हीरा व्यापारी ने 5,000 अमेरिकी डायमंड और 2 किलो चांदी का उपयोग करके राम मंदिर की थीम पर एक हार बनाया है. चालीस कारीगरों ने 35 दिनों में डिजाइन पूरा किया और हार को राम मंदिर ट्रस्ट को उपहार में दिया गया है।
यूपी से आया 400 किलो का ताला और घंटा – दुनिया का सबसे बड़ा ताला 10 फीट ऊंचा है। उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ के ताला बनाने वाले सत्य प्रकाश शर्मा ने 10 फीट ऊंचा, 4.6 फीट चौड़ा और 9.5 इंच मोटाई वाला 400 किलोग्राम वजन का ताला और चाबी तैयार की है। उन्होंने बताया कि ”यह दुनिया का सबसे बड़ा ताला और चाबी है। मैंने इसे ट्रस्ट को उपहार में दिया है, ताकि इसे मंदिर में प्रतीकात्मक ताले के रूप में इस्तेमाल किया जा सके।” उत्तर प्रदेश में एटा के जलेसर में अष्टधातु से बना 2,100 किलोग्राम वजन का घंटा तैयार किया गया है। घंटा तैयार करने में शामिल एक कारीगर ने कहा कि “घंटा तैयार करने में दो साल लग गए। सभी अनुष्ठानों को करने और धूमधाम के साथ घंटी को अयोध्या भेजा जा रहा है।”
8 देशों का समय एक साथ बताती है लखनऊ की यह खास घड़ी – लखनऊ स्थित एक सब्जी विक्रेता ने विशेष रूप से एक ऐसी घड़ी डिजाइन की है, जो एक ही समय में आठ देशों का समय बताती है। 52 साल के अनिल कुमार साहू ने कहा कि उन्होंने 75 सेंटीमीटर व्यास वाली घड़ी मंदिर ट्रस्ट के महासचिव चंपत राय को उपहार में दी है। साहू ने कहा कि उन्होंने पहली बार 2018 में घड़ी बनाई थी और इसे भारत सरकार के पेटेंट कार्यालय द्वारा ‘डिजाइन के पंजीकरण का प्रमाण पत्र’ दिया गया था। यह घड़ी भारत, टोक्यो (जापान), मॉस्को (रूस), दुबई (यूएई), बीजिंग (चीन), सिंगापुर, मैक्सिको सिटी (मेक्सिको), वाशिंगटन डीसी और न्यूयॉर्क (यूएस) का समय एक साथ बताती है।
नागपुर, मथुरा, तिरुपति से भोग के लिए मिठाई और लड्डू आएंगे – नागपुर में रहने वाले शेफ विष्णु मनोहर ने घोषणा की है कि वह अभिषेक समारोह में शामिल होने वाले भक्तों के लिए 7,000 किलोग्राम पारंपरिक मिठाई “राम हलवा” तैयार करेंगे। वहीं, मथुरा में श्री कृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान ‘यज्ञ’ के लिए 200 किलोग्राम लड्डू अयोध्या भेजने की तैयारी कर रहा है। तिरूपति में श्री वेंकटेश्वर मंदिर के आधिकारिक संरक्षक, तिरुमला तिरूपति देवस्थानम (टीटीडी) ने भी घोषणा की है कि वह इस बड़े दिन पर भक्तों को वितरण के लिए एक लाख लड्डू भेजेगा।
हैदराबाद से राम भक्त लाया सोने की परत चढ़े जूते – भगवान राम के प्रति अटूट श्रद्धा और अपने ‘कार सेवक’ पिता के सपने को पूरा करने की इच्छा के साथ हैदराबाद के 64 वर्षीय चल्ला श्रीनिवास शास्त्री अयोध्या पहुंचे। वह भगवान राम को भेंट करने के लिए अपने साथ सोने की परत चढ़े जूते ला रहे हैं। वह लगभग 8,000 किमी की दूरी तय करके पैदल ही अयोध्या पहुंचे हैं।
तारीखों की डायरी में रामजन्म भूमि विवाद और समाधान
राम मंदिर का भव्य भूमिपूजन आज अय़ोध्या में होने जा रहा है। अयोध्या नगरी पूरी तरह से रोशनी से जगमगा रही है। वहीं शहर में चारों तरफ सिर्फ भूमिपूजन और पीएम मोदी की होर्डिंग्स लगी है। होर्डिंग्स में बस एक ही संदेश लिखा है कि पीएम मोदी भूमिपूजन करेंगे। लेकिन इस भूमिपूजन तक पहुंचने में ढेरों कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। आपको हम बताने जा रहे हैं कि आखिर 1528 के विवाद से लेकर समाधान तक कैसा रहा सफर।
1528 : अयोध्या में एक ऐसे स्थल पर मस्जिद का निर्माण, जिसे हिंदू भगवान राम का जन्मस्थान मानते थे। मस्जिद बनवाने का आरोप बाबर पर लगा। कहा जाता है कि बाबर की शह पर ही उसके सेनापति मीर बाकी ने मंदिर तोड़कर मस्जिद बनवाई थी।
1853 : मुगलों और नवाबों के शासन के चलते 1528 से 1853 तक इस मामले में हिंदू बहुत मुखर नहीं हो पाए, पर मुगलों और नवाबों का शासन कमजोर पड़ने तथा अंग्रेजी हुकूमत के प्रभावी होने के साथ ही हिंदुओं ने यह मामला उठाया और कहा कि भगवान राम के जन्मस्थान मंदिर को तोड़कर मस्जिद बना ली गई। इसको लेकर हिंदुओं और मुसलमानों में झगड़ा हो गया।
1859 : अंग्रेजी हुकूमत ने तारों की एक बाड़ खड़ी कर विवादित भूमि के आंतरिक और बाहरी परिसर में मुस्लिमों तथा हिंदुओं को अलग-अलग पूजा और नमाज की इजाजत दे दी।
न्यायालय पहुंचा मामला – 19 जनवरी 1885 ढांचे के बाहरी आंगन में स्थित राम चबूतरे पर बने अस्थायी मंदिर को पक्का बनाने और छत डालने के लिए निर्मोही अखाड़े के मंहत रघुबर दास ने 1885 में पहली बार सब जज फैजाबाद के न्यायालय में अंग्रेजी सरकार के खिलाफ स्वामित्व को लेकर दीवानी मुकदमा किया। सब जज ने निर्णय दिया कि वहां हिंदुओं को पूजा-अर्चना का अधिकार है। पर, वे जिलाधिकारी के फैसले के खिलाफ मंदिर को पक्का बनाने और छत डालने की अनुमति नहीं दे सकते।
22 दिसंबर 1949 ढांचे के भीतर गुंबद के नीचे मूर्तियों का प्रकटीकरण। प्रधानमंत्री थे जवाहर लाल नेहरू, मुख्यमंत्री थे गोविंद वल्लक्ष पंत और जिलाधिकारी थे केके नैय्यर ।
16 जनवरी 1950 गोपाल सिंह विशारद ने  फैजाबाद के सिविल जज की अदालत में मुकदमा दायर कर ढांचे के मुख्य (बीच वाले) गुंबद के नीचे स्थित भगवान की प्रतिमाओं की पूजा-अर्चना की मांग की।
 5 दिसंबर 1950  ऐसी ही याचना करते हुए महंत रामचंद्र परमहंस ने सिविल जज के यहां मुकदमा दाखिल किया। मुकदमे में दूसरे पक्ष को संबंधित स्थल पर पूजा-अर्चना में बाधा डालने से रोकने की मांग की गई थी।
3 मार्च 1951 – गोपाल सिंह विशारद मामले में न्यायालय ने दूसरे पक्ष (मुस्लिम) को पूजा-अर्चना में बाधा न डालने की हिदायत दी। ऐसा ही आदेश परमहंस की तरफ से दायर मुकदमे में भी दिया गया।
17 दिसंबर 1959 – रामानंद संप्रदाय की तरफ से निर्मोही अखाड़े के छह व्यक्तियों ने मुकदमा  दायर कर इस स्थान पर अपना दावा ठोका। साथ ही मांग की कि रिसीवर प्रियदत्त राम को हटाकर उन्हें पूजा-अर्चना की अनुमति दी जाए। यह उनका अधिकार है।
18 दिसंबर 1961 – उत्तर प्रदेश के केंद्रीय सुन्नी वक्फ बोर्ड ने मुकदमा दायर किया। प्रार्थना की कि यह जगह मुसलमानों की है। ढांचे को हिंदुओं से लेकर मुसलमानों को दे दिया जाए। ढांचे के अंदर से मूर्तियां हटा दी जाएं। ये मामले न्यायालय में चलते रहे।
कारसेवा आंदोलन
 24 मई 1990 – हरिद्वार में विराट हिंदू सम्मेलन हुआ। संतों ने देवोत्थान एकादशी (30 अक्तूबर 1990) को मंदिर निर्माण के लिए  कारसेवा की घोषणा की।
1 सितंबर 1990 – अयोध्या में अरणी मंथन कार्यक्रम हआ और उससे अग्नि प्रज्ज्वलित की गई। विहिप ने इसे ‘राम ज्योति’ नाम दिया। इस ज्योति को गांव-गांव पहुंचाने के अभियान के सहारे विहिप ने लोगों को कारसेवा में हिस्सेदारी के लिए तैयार किया। तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने कारसेवा पर प्रतिबंध लगाने की घोषणा की। कहा, ‘अयोध्या में परिंदा भी पर नहीं मार पाएगा।’
25 सितंबर 1990 – भाजपा के तत्कालीन अध्यक्ष लालकृष्ण आडवाणी ने कारसेवा में हिस्सेदारी की घोषणा के साथ गुजरात के सोमनाथ से अयोध्या के लिए रथयात्रा शुरू की। पर, उन्हें बिहार के समस्तीपुर में तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू यादव ने गिरफ्तार कर लिया। भाजपा ने केंद्र सरकार से समर्थन वापस ले लिया।
30 अक्तूबर 1990 – अयोध्या में कारसेवक जन्मभूमि स्थल की ओर बढ़े। सुरक्षा बलों से भिड़ंत। अशोक सिंहल सहित कई कारसेवक घायल। कुछ कारसेवकों ने गुंबद पर पहुंचकर भगवा झंडा लगाया।
2 नवंबर 1990 – कारसेवकों के जन्मभूमि मंदिर कूच की घोषणा हुई। पुलिस ने गोली चलाई। कोठारी बंधुओं सहित कई कारसेवकों की मृत्यु। विरोध में जेल भरो आंदोलन।
4 अप्रैल 1991 – दिल्ली में मंदिर निर्माण को लेकर विराट हिंदू रैली। उसी दिन मुलायम सिंह यादव सरकार ने इस्तीफा दे दिया। चुनाव हुए और कल्याण सिंह के नेतृत्व में भाजपा की सरकार बनी।
अक्तूबर 1991 – कल्याण सिंह सरकार ने ढांचे और उसके आसपास की 2.77 एकड़ जमीन अपने अधिकार में ले ली। श्रीराम जन्मभूमि न्यास ने  श्री राम कथाकुंज के लिए भूमि की मांग की। कल्याण सिंह सरकार ने 42 एकड़ जमीन  श्रीराम  कथाकुंज के लिए न्यास को पट्टे पर दी।  इसके बाद न्यास ने वहां भूमि का समतलीकरण किया।
आंदोलन का फैसला
8 अप्रैल 1984 : वर्ष 1982 में विश्व हिंदू परिषद ने राम, कृष्ण और शिव के स्थलों पर मस्जिदों के निर्माण को साजिश करार दिया और इनकी मुक्ति के लिए अभियान चलाने का फैसला किया। फिर 8 अप्रैल 1984 को दिल्ली में संत-महात्माओं, हिंदू नेताओं ने अयोध्या के श्रीराम जन्मभूमि स्थल की मुक्ति और ताला खुलवाने को आंदोलन का फैसला किया।
1 फरवरी 1986 : फैजाबाद के जिला न्यायाधीश केएम पाण्डेय ने स्थानीय अधिवक्ता उमेश पाण्डेय की अर्जी पर इस स्थल का ताला खोलने का आदेश दे दिया। मुस्लिमों ने बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी का गठन किया। इस फैसले के खिलाफ इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ खंडपीठ में अपील खारिज हुई।
और हो गया शिलान्यास – जनवरी 1989 में प्रयाग में कुंभ मेले के अवसर पर मंदिर निर्माण के लिए गांव-गांव शिला पूजन कराने का फैसला हुआ। साथ ही  9 नवंबर 1989 को श्रीराम जन्मभूमि स्थल पर मंदिर के शिलान्यास की घोषणा की गई। काफी विवाद और खींचतान के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने शिलान्यास की इजाजत दे दी। बिहार निवासी अनुसूचित जाति के कामेश्वर चौपाल से शिलान्यास कराया गया।
6 दिसंबर 1992 अयोध्या पहुंचे हजारों कारसेवकों ने ढांचा गिरा दिया। इसकी जगह इसी दिन शाम को अस्थायी मंदिर बनाकर पूजा-अर्चना शुरू कर दी। केंद्र की तत्कालीन नरसिंह राव सरकार ने कल्याण सिंह सहित अन्य राज्यों की भाजपा सरकारों को भी बरखास्त कर दिया। उत्तर प्रदेश सहित देश में कई जगह सांप्रदायिक हिंसा हुई, जिसमें अनेक लोगों की मौत हो गई।
6 दिसंबर 1992 : अयोध्या श्रीराम जन्मभूमि थाना में ढांचा ध्वंस मामले में हजारों लोगों पर मुकदमा।
8 दिसंबर 1992 : अयोध्या मेें कर्फ्यू लगा था। वकील हरिशंकर जैन ने उच्च न्यायालय की लखनऊ खंडपीठ में गुहार लगाई कि भगवान भूखे हैं। राम भोग की अनुमति दी जाए।
16 दिसंबर 1992 : ढांचे ढहाने के लिए जिम्मेदार लोगों की पहचान के लिए लिब्राहन आयोग गठित किया। इसे 16 मार्च 1993 को रिपोर्ट सौंपनी थी।
महत्वपूर्ण तारीखें
1 जनवरी 1993: न्यायाधीश हरिनाथ तिलहरी ने दर्शन-पूजन की अनुमति दे दी।
7 जनवरी 1993 : केंद्र सरकार ने ढांचे वाले स्थान और कल्याण सिंह सरकार द्वारा न्यास को दी गई भूमि सहित यहां पर कुल 67 एकड़ भूमि का अधिग्रहण किया।
अप्रैल 2002: उच्च न्यायालय की लखनऊ खंडपीठ ने विवादित स्थल का मालिकाना हक तय करने के लिए सुनवाई शुरू की।
5 मार्च 2003: भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण को संबंधित स्थल पर खुदाई का निर्देश दिया।
22 अगस्त  2003 : भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने न्यायालय को रिपोर्ट सौंपी। इसमें संबंधित स्थल पर जमीन के नीचे एक विशाल हिंदू धार्मिक ढांचा (मंदिर) के होने  की बात कही गई।
5 जुलाई 2005: अयोध्या में विवादित स्थल पर छह आतंकियों के आत्मघाती आतंकी दस्ते का हमला। इसमें सभी मारे गए। तीन नागरिकों की भी मौत।
30 जून 2009: लिब्राहन आयोग ने तत्कालीन पीएम मनमोहन सिंह को रिपोर्ट सौंपी। आयोग का कार्यकाल 48 बार बढ़ाया गया।
30 सितंबर 2010 इस स्थल को तीनों पक्षों श्रीराम लला विराजमान, निर्मोही अखाड़ा और सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड में बराबर-बराबर बंाटने का आदेश दिया। न्यायाधीशों ने बीच वाले गुंबद के नीचे जहां मूर्तियां थीं, उसे जन्मस्थान माना।
21 मार्च 2017 : सर्वोच्च न्यायालय ने मध्यस्थता से मामले सुलझाने की पेशकश की। यह भी कहा कि दोनों पक्ष राजी हों तो वह भी इसके लिए तैयार है।
6 अगस्त 2019 : सर्वोच्च न्यायालय ने प्रतिदिन सुनवाई शुरू की।
16 अक्तूबर 2019: सुनवाई पूरी। फैसला सुरक्षित। 40 दिन चली सुनवाई।
9 नवंबर 2019: सर्वोच्च न्यायालय ने संबंधित स्थल को श्रीराम जन्मभूमि माना और 2.77 एकड़  भूमि रामलला के स्वामित्व की मानी । निर्मोही अखाड़ा और सुन्नी वक्फ बोर्ड के दावों को खारिज कर दिया। निर्देश दिया कि मंदिर निर्माण के लिए केंद्र सरकार तीन महीने में ट्रस्ट बनाए और ट्रस्ट निर्मोही अखाड़े के एक  प्रतिनिधि को शामिल करे। उत्तर प्रदेश की सरकार मुस्लिम पक्ष को वैकल्पिक रूप से मस्जिद बनाने के लिए 5 एकड़ भूमि किसी उपयुक्त स्थान पर उपलब्ध कराए ।
5 फरवरी 2020 : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अयोध्या में मंदिर निर्माण के लिए राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट की घोषणा की।
 5 अगस्त 2020 : श्रीराम जन्मभूमि मंदिर निर्माण के लिए भूमिपूजन।
आभामंडल में दशावतार, जानें रामलला की मूर्ति की विशेषताएं
रामलला की मूर्ति की बेहद खास तस्वीर सामने आई है। इस तस्वीर में उनके पूरे स्वरूप को देखा जा सकता है। तस्वीर में रामलला माथे पर तिलक लगाए बेहद सौम्य मुद्रा में दिख रहे हैं। हालांकि, रामलला की यह तस्वीर गर्भ गृह में लाने से पहले की है। अभी भगवान की आंखों में पट्टी बंधी हुई है। आइये जानते हैं रामलला की मूर्ति की सभी विशेषताएं…
मूर्ति करीब 200 किलोग्राम वजनी तो ऊंचाई 4.24 फीट
मूर्ति की विशेषताएं देखें तो इसमें कई तरह की खूबियां हैं। मूर्ति श्याम शिला से बनाई गई है जिसकी आयु हजारों साल होती है। मूर्ति को जल से कोई नुकसान नहीं होगा। चंदन, रोली आदि लगाने से भी मूर्ति पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। मूर्ति का वजन करीब 200 किलोग्राम है। इसकी कुल ऊंचाई 4.24 फीट, जबकि चौड़ाई तीन फीट है। कमल दल पर खड़ी मुद्रा में मूर्ति, हाथ में तीर और धनुष है। कृष्ण शैली में मूर्ति बनाई गई है।
मूर्ति के ऊपर स्वास्तिक, ॐ, चक्र, गदा, सूर्य भगवान विराजमान हैं। रामलला के चारों ओर आभामंडल है। श्रीराम की भुजाएं घुटनों तक लंबी हैं। मस्तक सुंदर, आंखें बड़ी और ललाट भव्य है। भगवान राम का दाहिना हाथ आशीर्वाद की मुद्रा में है। मूर्ति में भगवान विष्णु के 10 अवतार दिखाई दे रहे हैं। मूर्ति नीचे एक ओर भगवान राम के अनन्य भक्त हनुमान जी तो दूसरी ओर गरुड़ जी को उकेरा गया है। मूर्ति में पांच साल के बच्चे की बाल सुलभ कोमलता झलक रही है। मूर्ति को मूर्तिकार अरुण योगीराज ने बनाया है। श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र के अधिकारियों का कहना था कि जिस मूर्ति का चयन हुआ उसमें बालत्व, देवत्व और एक राजकुमार तीनों की छवि दिखाई दे रही है।अयोध्या के श्रीराम मंदिर में तीन मूर्तियों को स्थापित किया जाएगा, जिसमें से एक मूर्ति को गर्भगृह में स्थापित किया जाएगा। इनके बनने के बाद सबसे बड़ा सवाल तो यह था कि गर्भ गृह में किस रूप में राम लला विराजमान होंगे। मूर्तिकारों ने तीनों मूर्तियों को इतना सुंदर बनाया कि चयन करना कठिन हो रहा था कौन सी सुंदर है और कौन सी उतनी नहीं है। अंततः बाल रूप वाली मूर्ति को राम मंदिर के गर्भ गृह में विराजने का फैसला लिया गया।
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पद्म पुरस्कार : 88 वर्ष में भी ज्ञान की विरासत को सहेज कर रख रहे हैं डॉ यशवंत सिंह कठोच

डॉ कठोच इतिहास और पुरातत्व के क्षेत्र में लंबे समय से योगदान दे रहे हैं। डॉ कठोच पौड़ी जनपद के एकेश्वर विकासखंड स्थित मांसों गांव के मूल निवासी हैं। उन्होंने 1974 में आगरा विवि से प्राचीन भारतीय इतिहास, संस्कृति तथा पुरातत्व विषय में विवि में प्रथम स्थान प्राप्त किया। वर्ष 1978 में हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल विवि के गढ़वाल हिमालय के पुरातत्व पर शोध ग्रंथ प्रस्तुत किया और विवि ने उन्हें डीफिल की उपाधि से नवाजा। एक शिक्षक के रूप में उन्होंने 33 साल सेवाएं दीं। वर्ष 1995 में वह प्रधानाचार्य के पद से सेवानिवृत्त हुए।
डॉ कठोच भारतीय संस्कृति, इतिहास एवं पुरातत्व के क्षेत्र में निरंतर शोध कर रहे हैं। वह वर्ष 1973 में स्थापित उत्तराखंड शोध संस्थान के संस्थापक सदस्य हैं। उनकी मध्य हिमालय का पुरातत्व, उत्तराखंड की सैन्य परंपरा, संस्कृति के पद.चिन्ह, मध्य हिमालय की कला, एक वास्तु शास्त्रीय अध्ययन, सिंह.भारती सहित 12 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं।
डॉक्टर कठोच द्वारा लिखी उत्तराखंड इतिहास की पुस्तक पढ़ाई करने वाले छात्रों के लिए प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी में खासा मददगार रहती है। डॉक्टर कठोच मूलतः पौड़ी जिले से ही हैं। उनका जन्म 27 दिसंबर 1935 को मासों, विकास खंड एकेश्वर, चौंदकोट पौड़ी गढ़वाल में हुआ।
उनका स्नातकोत्तर राजनीति विज्ञान और इतिहास में आगरा विश्वविद्यालय से हुआ। वे डी० फिल० भी हैं। वे एक शिक्षक से होते हुए प्रधानाचार्य के पद से सेवानिवृत हुए। मध्य हिमालय के 3 खंड, मध्य हिमालय का पुरातत्व, संस्कृति के पद चिन्ह, उत्तराखंड का नवीन इतिहास उनकी प्रमुख कृतियां हैं।
भारत वर्ष का ऐतिहासिक स्थल कोश उनका अखिल भारतीय ग्रंथ है। डॉक्टर कठोच ने जौनसार, महासू मंदिर, कण्वाश्रम, अल्मोड़ा, बागेश्वर, कटारमल्ल, बैजनाथ आदि जगहों का भ्रमण कर उनका पुरातात्विक अध्ययन किया। अपने शैक्षणिक प्रयासों के अलावा, डॉ कठोच ने उत्तराखंड में महत्वपूर्ण पुरातात्विक स्थलों और ऐतिहासिक स्मारकों के संरक्षण और संरक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

गणतंत्र दिवस विशेष : 26 जनवरी 1950 को ऐसे बना भारत एक गणतांत्रिक देश  

26 जनवरी भारत के लिए बेहद महत्वपूर्ण है। इसकी कहानी 1950 से शुरु होती है। भारत 26 जनवरी 1950 को एक संप्रभु, लोकतांत्रिक गणराज्य बना। इस दिन हमें अपना संविधान मिला। ये संविधान दुनिया का सबसे बड़ा लिखित संविधान है। आज़ादी के बाद भारत के लिए दूसरा ये ख़ास पल था. इस दिन पूरी दुनिया में हमें एक नई पहचान मिली। संविधान को लागू करने के लिए 26 जनवरी की तारीख को चुनना एक खास वजह हुआ। बता दें कि देश में पहली बार स्‍वतंत्रता दिवस 26 जनवरी 1930 को मनाया गया था।
इसकी कहानी की शुरुआत 31 दिसंबर, 1929 को हुई थी. इस दिन कांग्रेस के लाहौर अधिवेशन में जवाहरलाल नेहरू की अध्यक्षता में एक प्रस्ताव पास हुआ, जिसमें पूर्ण स्वराज्य की मांग की गई. कांग्रेस के अधिवेशन में यह मांग हुई कि अगर अगर ब्रिटिश सरकार ने 26 जनवरी 1930 तक भारत को डोमीनियन स्टेट का दर्जा नहीं दिया तो देश को पूर्ण स्वतंत्र घोषित कर दिया जाएगा. 26 जनवरी, 1930 को देश में पहला स्वतंत्रता दिवस भी मनाया गया था। हालांकि, आजादी हमें 15 अगस्त 1947 को मिली, मगर 26 जनवरी हमारे दिल में हमेशा के लिए जुड़ गया।
विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र – विश्व का सबसे बड़ा लिखित संविधान बनाने के लिए संविधान सभा का गठन हुआ था। इसमें कुल 22 समितियां थी।प्रारूप समिति (ड्राफ्टिंग कमेटी) सबसे प्रमुख समिति थी, जिसका काम संपूर्ण संविधान का निर्माण करना था। प्रारूप समिति के अध्यक्ष डॉ. भीमराव आंबेडकर थे. करीब 2 साल, 11 महीने और 18 दिन की मेहनत के बाद दुनिया का सबसे बड़ा लिखित संविधान तैयार किया गया।
डॉ. भीमराव आंबेडकर ने संविधान सभा के अध्यक्ष डॉ. राजेंद्र प्रसाद को 26 नवंबर 1949 को भारतीय संविधान सौंप दिया लेकिन सबसे हैरानी वाली बात ये है कि इसे लागू करने के लिए दो महीने की देरी की गई। आखिर किस वजह से संविधान को लागू करने में इतने दिन लगे? इसका तर्क दिया जाता है कि 26 जनवरी के ‘पूर्ण स्वराज’ के ऐलान के महत्व को कायम रखने के लिए संविधान को दो महीने बाद लागू किया गया। इस तरह 26 नवंबर 1949 की जगह 26 जनवरी 1950 को पहला गणतंत्र दिवस मनाया गया. 1950 से लेकर आजतक गणतंत्र दिवस देश में बहुत ही शान से मनाया जाता है।
गणतंत्र दिवस समारोह, जिसे नई दिल्ली में एक भव्य सैन्य परेड के साथ चिह्नित किया गया। 1950 में राष्ट्रीय राजधानी में पुराना किला के सामने इरविन एम्फीथिएटर में गणतंत्र दिवस की शुरुआत हुई, जो अब एक परंपरा बन चुकी है। भारत के गणतंत्र की उत्पत्ति का पता वर्ष 1920 में लगाया जा सकता है, जब पहले आम चुनाव उद्घाटन द्विसदनीय केंद्रीय विधायिका – दो सदनों वाली विधायिका – और प्रांतीय परिषदों के सदस्यों को चुनने के लिए आयोजित किए गए थे। 9 फरवरी, 1921 को ड्यूक ऑफ कनॉट की उपस्थिति में एक समारोह में दिल्ली में संसद का उद्घाटन किया गया था। देश को कम ही पता था कि यह एक महान परिवर्तन का अग्रदूत था जो दशकों बाद सामने आएगा।
संविधान का मूल – नवनिर्मित भारतीय संविधान की प्रस्तावना में कहा गया है, “हम, भारत के लोग भारत को एक संप्रभु समाजवादी धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक गणराज्य बनाने और इसके सभी नागरिकों को न्याय, स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व प्रदान करने का गंभीरता से संकल्प लेते हैं।”
गणतंत्र दिवस समारोह, जिसे नई दिल्ली में एक भव्य सैन्य परेड के साथ चिह्नित किया गया, ने सैन्य परेड की औपनिवेशिक परंपरा को अपनाया और उसका पुनराविष्कार किया। 1950 में राष्ट्रीय राजधानी में पुराना किला के सामने इरविन एम्फीथिएटर में आयोजित उद्घाटन गणतंत्र दिवस परेड ने एक ऐसी परंपरा के लिए मंच तैयार किया जो वर्षों में विकसित होगी।
26 जनवरी का महत्व न केवल संविधान को अपनाने में है, बल्कि भारत द्वारा ब्रिटिश साम्राज्य से अपने अंतिम संबंधों को तोड़ने में भी है। गणतंत्र दिवस के रूप में चुना गया यह दिन स्वतंत्रता के लिए वर्षों के संघर्ष की परिणति और एक स्वशासित राष्ट्र बनने के सपने के साकार होने का गवाह बना।26 जनवरी 1950 से लेकर अब तक गणतंत्र के 75 साल हो गए हैं। इतने सालों में भारत एक मज़बूत लोकतंत्र के रूप में उभरा है।

गणतंत्र दिवस विशेष : इसरो की झांकी में दिखे चंद्रयान-3, आदित्य एल-1

नयी दिल्ली । गणतंत्र दिवस के अवसर पर निकाली गई झांकियों में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) की झांकी बेहद आकर्षक रही और इसमें चंद्रयान-3, आदित्य एल-1 को प्रमुखता दी गई। झांकी में इसरो के विभिन्न मिशनों में महिला वैज्ञानिकों की भागीदारी को भी प्रदर्शित किया गया। इसरो अगले वर्ष भारत की पहली मानव अंतरिक्ष उड़ान को अंजाम देने की योजना बना रहा है।
इस झांकी में ‘लॉन्च व्हीकल मार्क-3’ का एक मॉडल पेश किया गया जिसके जरिए चंद्रयान-3 को श्रीहरिकोटा से चंद्रमा तक भेजा गया था। झांकी में अंतरिक्ष यान के चंद्रमा में उतरने के स्थान को भी दर्शाया गया। इस स्थान को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने शिव शक्ति प्वाइंट नाम दिया है। इसरो की झांकी में सूरज के अध्ययन के लिए निचली कक्षा में भेजे गए आदित्य एल-1 को भी प्रदर्शित किया गया। इसके अलावा इसरो के भविष्य के मिशन गगनयान और भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन आदि को भी झांकी में स्थान दिया गया।

गणतंत्र दिवस विशेष : ‘नारी शक्ति’ का साक्षी बना कर्तव्य पथ

नयी दिल्ली । गणतंत्र दिवस परेड में शुक्रवार को ‘नारी शक्ति’ की विशेष झलक देखने को मिली। इसमें ग्रामीण उद्योग, समुद्री क्षेत्र, रक्षा, विज्ञान से लेकर अंतरिक्ष तक विभिन्न क्षेत्रों में महिलाओं की महत्वपूर्ण भूमिका को रेखांकित किया गया। इस भव्य परेड की थीम ‘विकसित भारत’ और ”भारत-लोकतंत्र की मातृका” थी। इसकी शुरुआत में एक संगीतमय समूह ‘आवाहन’ के साथ हुई। यह एक मनमोहक प्रदर्शन था, जिसमें देश के विभिन्न कोनों से आए भारतीय संगीत वाद्ययंत्रों की एक श्रृंखला शामिल थी। कुल 112 महिला कलाकारों के एक बैंड ने लोक वाद्ययंत्रों से लेकर आदिवासी वाद्ययंत्रों तक को बड़ी कुशलता से बजाया, जो महिलाओं की ताकत और कौशल का प्रतीक है। मणिपुर, मध्य प्रदेश, राजस्थान, हरियाणा, ओडिशा, झारखंड और छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों ने अपनी झांकियों में विविध क्षेत्रों में महिलाओं की भूमिकाएं प्रदर्शित कीं।
मणिपुर की झांकी में महिलाओं को नावों पर प्रसिद्ध लोकटक झील से कमल के डंठल इकट्ठा करते हुए और पारंपरिक ‘चरखों’ का उपयोग करके सूत बनाते हुए दिखाया गया। झांकी में एक प्राचीन बाजार ‘इमा कीथेल’ पर भी प्रकाश डाला गया था और इसने महिलाओं के नेतृत्व वाले वाणिज्य की स्थायी विरासत पर जोर दिया था।
मध्य प्रदेश की झांकी ने कल्याणकारी योजनाओं के माध्यम से राज्य की विकास प्रक्रिया में महिलाओं के जुड़ने का जश्न मनाया। आधुनिक सेवा क्षेत्रों, लघु उद्योगों और पारंपरिक क्षेत्रों में महिलाओं की सक्रिय भागीदारी पर ध्यान केंद्रित किया गया था। इसमें राज्य की सांस्कृतिक समृद्धि में योगदान देने वाली महिला कलाकारों के चित्रण के साथ-साथ पहली महिला फाइटर पायलट अवनी चतुर्वेदी को भी दिखाया गया। ओडिशा की झांकी ने हस्तशिल्प और हथकरघा क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी पर प्रकाश डाला, जबकि छत्तीसगढ़ की झांकी ने बस्तर के आदिवासी समुदायों में महिलाओं के प्रभुत्व को प्रदर्शित किया।
राजस्थान की झांकी में महिलाओं के नेतृत्व वाले हस्तशिल्प उद्योगों के विकास को प्रदर्शित किया गया और प्रसिद्ध ‘घूमर’ नृत्य भी प्रदर्शित किया गया। झांकी में दर्शाया गया कि मीरा बाई की मूर्ति भक्ति और शक्ति का प्रतीक है। हरियाणा की झांकी में सरकारी कार्यक्रम ”मेरा परिवार, मेरी पहचान” के माध्यम से महिला सशक्तीकरण पर प्रकाश डाला गया। इसमें डिजिटल इंडिया पहल के माध्यम से सरकारी योजनाओं तक पहुंच को प्रदर्शित किया गया। आंध्र प्रदेश ने अपनी झांकी का विषय स्कूली शिक्षा में बदलाव पर केंद्रित किया। लद्दाख की झांकी में भारतीय महिला आइस हॉकी टीम को प्रदर्शित किया गया, जिसमें लद्दाखी महिलाएं भी शामिल थीं।
रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) की झांकी ने रक्षा और अनुसंधान के मुख्य क्षेत्रों में महिला वैज्ञानिकों के महत्वपूर्ण योगदान पर प्रकाश डाला। इसमें एंटी-सैटेलाइट मिसाइल और तीसरी पीढ़ी की एंटी-टैंक गाइडेड मिसाइल जैसी उपलब्धियां शामिल थीं। पोत परिवहन और जलमार्ग मंत्रालय ने महिला नाविकों की संख्या में वृद्धि और लाइटहाउस और क्रूज पर्यटन में प्रगति पर जोर देते हुए भारत के समुद्री क्षेत्र के विकास का प्रदर्शन किया।
गणतंत्र दिवस परेड में सेना के तीनों अंगों की एक महिला टुकड़ी भी शामिल थी, जो आतंकवाद प्रभावित क्षेत्रों में अभियान, सियाचिन ग्लेशियर और रेगिस्तान सहित विभिन्न इलाकों में उनकी असाधारण सेवा को दर्शाती है। सशस्त्र बल चिकित्सा सेवाओं ने परेड में पहली बार एक पूर्ण महिला दल ने मार्च किया। मोटरसाइकिलों पर 265 महिलाओं ने विभिन्न साहसी करतबों के माध्यम से साहस, वीरता और दृढ़ संकल्प का प्रदर्शन किया। उन्होंने योग सहित भारतीय मूल्यों और संस्कृति की ताकत का भी प्रदर्शन किया और एकता और समावेशिता का संदेश दिया। भारतीय नौसेना की झांकी में ”नारी शक्ति” को भी दर्शाया गया है। इस सैन्य बल द्वारा सभी भूमिकाओं और सभी रैंकों में महिलाओं का स्वागत करने की हाल में घोषणा की गई है। कर्तव्य पथ पर पहली बार, उप-निरीक्षक श्वेता सिंह की कमान में ‘बीएसएफ महिला ब्रास बैंड’ ने परेड में भाग लिया। सीमा सुरक्षा बल की महिला टुकड़ी में 144 ”महिला प्रहरी” शामिल थीं।

पद्म पुरस्कार 2024 : वेंकैया नायडू को पद्म विभूषण तो मिथुन को पद्म भूषण , देखें विजेताओं की पूरी सूची

केंद्र सरकार ने 75 वें गणतंत्र दिवस समारोह की पूर्व संध्या यानी गुरुवार शाम प्रतिष्ठित पद्म पुरस्कारों की घोषणा की है। जिनमें भारत की पहली मादा हाथी महावत पारबती बरुआ को इस साल पद्म श्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। वहीं, पद्म विभूषण से मशहूर अभिनेत्री वैजयंती माला बाली, कोनिदेला चिरंजीवी, एम वेंकैया नायडू, बिंदेश्वर पाठक (मरणोपरांत) और पद्मा सुब्रमण्यम को सम्मानित किया गया है। पद्म भूषण पुरस्कार पाने वालों में सर्वोच्च न्यायालय की पहली महिला न्यायाधीश मुख्य न्यायाधीश एम फातिमा बीवी (मरणोपरांत), अभिनेता मिथुन चक्रवर्ती और बॉम्बे समाचार के मालिक होर्मूसजी एन क नाम शामिल है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर उन सभी लोगों को बधाई दी है, जिन्हें पद्म पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। कहा कि भारत विभिन्न क्षेत्रों में उनके योगदान को महत्व देता है। वे अपने असाधारण कार्यों से लोगों को प्रेरित करते रहें।
आइए जानते हैं किन-किन हस्तियों को मिला सम्मान?
5 पद्म विभूषण से सम्मानित
वैजयंती माला बाली (कला) – तमिलनाडु
कोनिडेला चिरंजीवी (कला) – आंध्र प्रदेश
एम वेंकैया नायडू (सार्वजनिक मामले) – आंध्र प्रदेश
बिंदेश्वर पाठक (सामाजिक कार्य) – बिहार
पद्मा सुब्रह्मण्यम (कला) – तमिलनाडु
पद्म भूषण 2024 से ये सम्मानित
एम फातिमा बीवी (सार्वजनिक मामले) – केरल
होर्मूसजी एन कामा (साहित्य एवं शिक्षा) – महाराष्ट्र
मिथुन चक्रवर्ती (कला) – पश्चिम बंगाल
सीताराम जिंदल (व्यापार और उद्योग) – कर्नाटक
यंग लियू (व्यापार और उद्योग) – ताइवान
अश्विन बालचंद मेहता (मेडिसिन) – महाराष्ट्र
सत्यब्रत मुखर्जी (सार्वजनिक मामले) – पश्चिम बंगाल
राम नाईक (सार्वजनिक मामले) – महाराष्ट्र
तेजस मधुसूदन पटेल (मेडिसिन) – गुजरात
ओलानचेरी राजगोपाल (सार्वजनिक मामले) – केरल
दत्तात्रेय अंबादास मयालू उर्फ ​​राजदत्त (कला) – महाराष्ट्र
तोगदान रिनपोछे (अन्य – अध्यात्मवाद) – लद्दाख
प्यारेलाल शर्मा (कला) – महाराष्ट्र
चन्द्रेश्वर प्रसाद ठाकुर (चिकित्सा)-बिहार
उषा उथुप (कला) – पश्चिम बंगाल
विजयकांत (कला) – तमिलनाडु
कुन्दन व्यास (साहित्य एवं शिक्षा-पत्रकारिता)-महाराष्ट्र
‘पद्म भूषण से सम्मानित’ हुक्मदेव नारायण की नहीं सुनी जा रही बात, पूर्व केंद्रीय मंत्री का छलका दर्द
पद्म श्री 2024 से सम्मानित
गुमनाम नायक पारबती बरुआ – भारत की पहली महिला मादा हाथी महावत
चामी मुर्मू – प्रसिद्ध आदिवासी पर्यावरणविद्
संगथंकिमा – मिजोरम की सामाजिक कार्यकर्ता
जागेश्वर यादव – आदिवासी कल्याण कार्यकर्ता
गुरविंदर सिंह-सिरसा के दिव्यांग सामाजिक कार्यकर्ता
सत्यनारायण बेलेरी – कासरगोड के चावल किसान
दुखु माझी – सिंदरी गांव के आदिवासी पर्यावरणविद्
के चेल्लाम्मल – अंडमान के जैविक किसान
हेमचंद मांझी – नारायणपुर के चिकित्सक
यानुंग जमोह लेगो – अरुणाचल प्रदेश के हर्बल चिकित्सा विशेषज्ञ
सोमन्ना – मैसूरु के आदिवासी कल्याण कार्यकर्ता
सरबेश्वर बसुमतारी – चिरांग के आदिवासी किसान
प्रेमा धनराज – प्लास्टिक सर्जन और सामाजिक कार्यकर्ता
उदय विश्वनाथ देशपांडे – अंतरराष्ट्रीय मल्लखंभ कोच
यज़्दी मानेकशा इटालिया – सिकल सेल एनीमिया में विशेषज्ञ माइक्रोबायोलॉजिस्ट
शांति देवी पासवान और शिवन पासवान – पति-पत्नी की जोड़ी गोदना चित्रकार
रतन कहार – भादू लोकगायक
अशोक कुमार विश्वास – विपुल टिकुली चित्रकार
बालकृष्णन सदनम पुथिया वीटिल – प्रतिष्ठित कल्लुवाझी कथकली नर्तक
उमा माहेश्वरी डी – महिला हरिकथा प्रतिपादक
गोपीनाथ स्वैन – कृष्ण लीला गायक
स्मृति रेखा चकमा – त्रिपुरा की चकमा लोनलूम शॉल बुनकर
ओमप्रकाश शर्मा – माच थिएटर कलाकार
नारायणन ईपी – कन्नूर के अनुभवी थेय्यम लोक नर्तक
भागवत पधान – सबदा नृत्य लोक नृत्य विशेषज्ञ
सनातन रुद्र पाल – प्रतिष्ठित मूर्तिकार
बदरप्पन एम – वल्ली ओयिल कुम्मी लोक नृत्य के प्रतिपादक
जॉर्डन लेप्चा – लेप्चा जनजाति के बांस शिल्पकार
माचिहान सासा – उखरुल का लोंगपी कुम्हार
गद्दाम सम्मैया – प्रख्यात चिंदु यक्षगानम थिएटर कलाकार
जानकीलाल – भीलवाड़ा के बहरूपिया कलाकार
दसारी कोंडप्पा – तीसरी पीढ़ी के बुर्रा वीणा वादक
बाबू राम यादव – पीतल मरौरी शिल्पकार
नेपाल चंद्र सूत्रधार – तीसरी पीढ़ी छऊ मुखौटा निर्माता
वैजयंती माला को भारतीय सिनेमा की बेहतरीन अदाकारा और डांसर में से एक माना जाता है। 1955 की फिल्म ‘देवदास’ में चंद्रमुखी के किरदार के लिए उन्होंने खूब प्रशंसा बटोरी। वह बीआर चोपड़ा की ‘नया दौर’ का भी हिस्सा थीं, जिसमें उन्होंने दिवंगत अभिनेता दिलीप कुमार के साथ अभिनय किया था। वहीं, मिथुन ने अपने अभिनय करियर की शुरुआत मृगया (1976) से की। अपने अभिनय के लिए उन्होंने सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार जीता। बाद में, उन्होंने ताहादेर कथा (1992) और स्वामी विवेकानंद (1998) में अपनी भूमिकाओं के लिए दो और राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार जीते।

पद्म पुरस्कार 2024 : पद्मश्री से सम्मानित होंगी मशहूर गायिका ऊषा उत्थुप

ऊषा उत्थुप के संघर्ष की बात करें, इससे पहले कुछ गाने याद कीजिए. ‘दोस्तों से प्यार किया, दुश्मनों से बदला लिया… जो भी किया हमने किया…शान से’, ‘हरि ओम हरि-हरि ओम हरि, ‘रंबा हो हो… संबा हो, कोई यहां आहा नाचे नाचे, कोई वहां आहा नाचे नाचे, एक दो च च च, डार्लिंग आंखों से आंखे चार करने दो।
ये वो चुनिंदा गाने हैं जो कहीं भी बज रहे हों, आप गुनगुनाने लगते हैं. ये सारे गाने प्लेबैक सिंगर ऊषा उत्थुप की बड़ी पहचान हैं। उनकी आवाज अलग है। उनकी अदायगी अलग है. उनका अंदाज अलग है. लेकिन ये पहचान बनाना उनके लिए बहुत मुश्किल था। हुआ यूं कि ऊषा को गायकी का शौक बचपन से था. एक रोज वो स्कूल टीचर के पास गईं। छोटी सी ऊषा ने संगीत सीखने की इच्छा जताई. टीचर ने जब ऊषा उत्थुप का गाना सुना, तो उन्होंने मना कर दिया। शिक्षक का कहना था कि ऊषा की आवाज गायकी के लिए है ही नहीं. गायकी के लिए आवाज में मुलायमियत होनी चाहिए जबकि ऊषा उत्थुप की आवाज मर्दानी आवाज के काफी करीब थी। शिक्षक के इस बेरूखे अंदाज का सामना कम ही बच्चे कर सकते हैं। आप ही सोच कर देखिए अगर किसी छोटी सी बच्ची को टीचर ऐसे मना कर दे तो ज्यादातर बच्चे मायूस हो जाएंगे। उनकी आंखों में आंसू होंगे लेकिन ऊषा उत्थुप ने इसका ठीक उलट किया. उन्होंने टीचर की बात को ही अनसुना कर दिया, जैसे गाती थीं वैसे ही गाती रहीं।
ऊषा उत्थुप को कहां से लगा संगीत का चस्का – आजादी के कुछ ही महीने बाद की बात है. मुंबई में ऊषा उत्थुप का जन्म हुआ। पिता क्राइम ब्रांच में नौकरी करते थे. ऐसे परिवार में संगीत हो, ऐसा कम ही सोचा जाएगा लेकिन ऊषा की मां को संगीत का बहुत शौक था. वो शौकिया गाती भी थीं। दिलचस्प बात ये है कि पचास के दशक में भी ऐसा नहीं था कि इस परिवार में कुछ चुनिंदा कलाकारों को सुना जाता हो. बल्कि गजब की वेराइटी थी. वेस्टर्न क्लासिकस में बीथोवेन, मोजार्ट सुने जाते थे। भारतीय शास्त्रीय संगीत में पंडित भीमसेन जोशी, बड़े गुलाम अली खान, बेगम अख्तर से लेकर किशोरी अमोनकर की आवाज घर में गूंजती रहती थी यानि संगीत के शौक की ‘रेंज’ भी कमाल की थी। ऊषा उत्थुप में संगीत के संस्कार यहीं से आए।स्कूल में जैसे ही खाली समय मिलता ऊषा उत्थुप की गायकी शुरू हो जाती। पढ़ाई की टेबल तबले में तब्दील हो जाती. क्लास के बाकि बच्चे ‘कोरस’ में शामिल हो जाते।
ये सिलसिला काफी समय तक चला. घर पर ऊषा की बहनों को भी गाने का शौक था। कुल मिलाकर संगीत सुनने का चस्का धीरे-धीरे गायकी सीखने की तरफ बढ़ा लेकिन जब संगीत सीखने की इच्छा जताई तो उन्हें नकार दिया गया लेकिन फिर कुछ ऐसा हुआ कि ऊषा ने अपने इरादे मजबूत कर लिए. ऊषा 22 साल की थीं, मद्रास में एक कार्यक्रम में उन्होंने गाया। खूब तालियां बजीं. हालांकि वो एक इंग्लिश गाना था। उस दिन मिली तारीफ से ऊषा उत्थुप को एक बड़ा सबक मिला. उन्होंने समझ लिया कि अगर गायकी में पहचान बनानी है तो सबसे पहले ‘ओरिजिनल होना बहुत जरूरी है। इसके बाद वो गायकी के रास्ते पर निकल गयी।
नाइट क्लब में गायकी से शुरू हुआ था सफर – ऊषा उत्थुप ने तो सिंगर बनने का फैसला कर लिया था, लेकिन वो उस दौर में ये प्रयास करने जा रही थीं जब इंडस्ट्री में लता मंगेशकर, आशा भोंसले जैसी गायिका थीं. ऐसे में ऊषा का सफर नाइट क्लब में गायकी के साथ शुरू हुआ। दिल्ली में ऐसे ही एक कार्यक्रम के दौरान ऊषा उत्थुप की किस्मत बदली. दिल्ली से पहले मद्रास, कोलकाता जैसे शहरों में भी ऊषा उत्थुप ने नाइट क्लबों में गायकी की थी। ऊषा की वेशभूषा भी अलग ही होती थी- आज भी वो वैसी ही हैं। चटक रंग की साड़ी… बड़ी सी बिंदी. ऊषा जब नाइट क्लब में फिल्मी गाने गाती थीं तो उस दौरान एक और गाना उनका पसंदीदा था-काली तेरी गुथ ते परांदा तेरा लालनी। दिल्ली के उस नाइट क्लब में नवकेतन फिल्म्स की यूनिट के कुछ बड़े लोग मौजूद थे। उस समय ‘हरे रामा हरे कृष्णा’ फिल्म के लिए काम चल रहा था। ये उस दौर के बहुत बड़े स्टार देव आनंद की फिल्म थी। इस फिल्म का संगीत पंचम दा बना रहे थे। फिल्म की यूनिट के लोगों ने क्लब में गा रही लड़की के बारे में पता किया। सारी जानकारी इकट्ठा करने के बाद उन्होंने ऊषा उत्थुप से संपर्क किया. ऑफर बिल्कुल सीधा था- क्या आप हमारी अगली फिल्म में गाएंगी? ऊषा के सामने कोई ऐसी वजह नहीं थी कि वो मना करतीं. उन्होंने हामी भर दी। उस फिल्म के लिए गाना बना- हरे कृष्णा हरे राम…बाकि इसके बाद की कहानी इतिहास में दर्ज है। ऊषा उत्थुप के गाने पर आज भी लोग झूमते हैं- नाचते हैं। ऊषा उत्थुप गायकी के साथ साथ एक्टिंग भी कर चुकी हैं लेकिन वो कहती है उन्होंने जो गाया दिल से गाया। अपनी जिंदगी को वो अपने ही गाने से परिभाषित करती हैं- दोस्तों से प्यार किया, दुश्मनों से बदला लिया… जो भी किया हमने किया…शान से।

गणतंत्र दिवस विशेष : संविधान ही नहीं, अधिकार भी जानें

भारत आज अपना 75वां गणतंत्र दिवस मना रहा है। गणतंत्र दिवस भारत का एक राष्ट्रीय पर्व है। इस दिन भारत का संविधान लागू हुआ था। भारत ने आज के दिन समानता, धर्मनिरपेक्षता और स्वशासन के लिए प्रतिबद्ध एक गणतंत्र के रूप में अपनी पहचान अपनाई। हमारे संविधान ने महिलाओं को आजादी से जीने के लिए कई अधिकार दिए हैं, जिनका इस्तेमाल हम एक सम्मान भरी जिंदगी जीने के लिए कर सकते हैं। लेकिन अपने संविधान की ही तरह क्या वाकई महिलाएं अपने अधिकारों को अच्छी तरह जानती हैं। समाज इस बात को स्वीकार करे या ना करे, पर यह सच्चाई है कि महिलाओं पर जिम्मेदारियों का दोहरा बोझ होता है। घर,ऑफिस,बच्चे,परिवार और रसोई की जिम्मेदारियां अकसर एक-दूसरे से घालमेल होती नजर आती हैं। पर, जिम्मेदारियों का इतना बोझ उठाने का मतलब यह नहीं है कि उन्हें अपने सारे वाजिब अधिकार भी मिल जाते हैं। कभी वह घर में तिरस्कार का शिकार हो जाती है, तो कभी ऑफिस में शोषण का। उसे कई बार सिर्फ औरत होने का खामियाजा भुगतना पड़ता है, तो कई बार अपने अधिकारों की जानकारी का अभाव उसे शोषण का शिकार रहने के लिए मजबूर कर देता है। यह समझना जरूरी है कि हम महिलाओं के ऊपर सिर्फ जिम्मेदारियों का बोझ ही नहीं है बल्कि हमारे पास अपनी हिफाजत के लिए कई अधिकार भी हैं। जैसे मातृत्व अवकाश का अधिकार, घर में रहने का अधिकार, ऑफिस में समान वेतन का अधिकार, अपनी बात रखने का अधिकार आदि। समय की जरूरत है कि हम महिलाएं ना सिर्फ अपने अधिकारों के प्रति जागरूक रहें बल्कि उन्हें उठाने के लिए उचित कदम भी उठाएं।
मातृत्व से जुड़े अधिकार- क्या आप जानती हैं कि गर्भवती महिलाओं को संविधान द्वारा कुछ खास अधिकार प्राप्त हैं? संविधान के अनुच्छेद -42 के तहत कामकाजी महिलाओं को तमाम अधिकार हासिल हैं। इसमें महिला यदि किसी सरकारी और गैर सरकारी संस्था, फैक्ट्री में जिसकी स्थापना इम्प्लॉइज स्टेट इंश्योरेंस एक्ट, 1948 के तहत हुई हो में काम करती है, तो उसे मातृत्व से जुड़े तमाम लाभ मिलेंगे, जिसमें 12 सप्ताह से लेकर छह माह तक का मातृत्व अवकाश शामिल है। इस अवकाश को वह अपनी आवश्कता के अनुसार ले सकती है। गर्भपात की स्थिति में भी इस एक्ट का लाभ मिलता है। महिला गर्भावस्था या फिर गर्भपात के चलते बीमार हो जाती है, तो मेडिकल रिपोर्ट के आधार पर उसे अतिरिक्त एक महीने की छुट्टी मिल सकती है। महिला को मैटरनिटी लीव के दौरान किसी तरह के आरोप पर नौकरी से नहीं निकाला जा सकता। अगर उसे यह सुविधा नियोक्ता द्वारा नहीं दी जाती है, तो वह इसकी शिकायत कर सकती है। यहां तक कि वह कोर्ट भी जा सकती है।
मुफ्त कानूनी सलाह का अधिकार – अगर कोई महिला किसी केस में आरोपी है, तो वह मुफ्त कानूनी मदद ले सकती है। वह अदालत से मुफ्त में सरकारी खर्चे पर वकील की गुहार लगा सकती है, जिसे महिला की आर्थिक स्थिति देखते हुए मुहैया कराया जाता है। पुलिस महिला की गिरफ्तारी के बाद कानूनी सहायता कमिटी से संपर्क करती है और महिला की गिरफ्तारी के बारे में उन्हें सूचित किया जाता है। लीगल ऐड कमेटी महिला को मुफ्त कानूनी सलाह देती है।
स्त्री धन है सिर्फ आपका – स्त्री धन? हैरान होने की जरूरत नहीं है। यह वह धन है, जो महिला को शादी के वक्त उपहार के तौर पर मिलता है। इस पर महिला का पूरा हक होता है। इसके अतिरिक्त वर-वधू दोनों के इस्तेमाल के लिए साझा सामान दिए जाते हैं, वह भी इसी श्रेणी में आते हैं। इस बाबत वरिष्ठ अधिवक्ता संजीव गुप्ता कहते हैं कि अगर ससुरालवालों ने महिला का स्त्री धन अपने पास रख लिया है तो महिला इसके खिलाफ आईपीसी की धारा 406 (अमानत में खयानत) की भी शिकायत दर्ज करा सकती है।
आपकी हां, है जरूरी – महिला की सहमति के बिना उसका गर्भपात नहीं कराया जा सकता। जबरन गर्भपात कराए जाने के लिए सख्त कानून मौजूद हैं। अब आप सोच रही होंगी कि गर्भपात करना ही कानूनी नहीं है। पर, कुछ खास परिस्थितियों में गर्भपात कराया जा सकता है। मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रग्नेंसी एक्ट के तहत अगर गर्भ के कारण महिला की जान को खतरा हो या फिर स्थिति मानसिक और शारीरिक रूप से गंभीर परेशानी पैदा करने वाली हों या फिर गर्भ में पल रहा बच्चा विकलांगता का शिकार हो तो गर्भपात कराया जा सकता है।
लिव इन के भी हैं अधिकार – अब लिव इन रिलेशनशिप को कानूनी मान्यता मिल चुकी है। पर यहां सबसे पहले यह समझना होगा कि आखिर लिव इन है क्या? सिर्फ उसी रिश्ते को लिन-इन रिलेशनशिप माना जा सकता है, जिसमें स्त्री और पुरुष विवाह किए बिना पति-पत्नी की तरह रहते हैं। इसके लिए जरूरी है कि दोनों बालिग और शादी योग्य हों। यदि दोनों में से कोई एक भी पहले से शादीशुदा है, तो उसे लिव-इन रिलेशनशिप नहीं कहा जाएगा। इस रिश्ते में रहने वाली महिलाओं को भी घरेर्लू ंहसा कानून के तहत सुरक्षा हासिल है। अगर उसे किसी भी तरह से प्रताड़ित किया जाता है, तो वह अपने साथी के खिलाफ इस एक्ट के तहत शिकायत कर सकती है। ऐसे में संबंध में रहते हुए उसे राइट-टू-शेल्टर भी मिलता है। यानी जब तक यह रिश्ता कायम है, तब तक उसे घर से निकाला नहीं जा सकता। लिव-इन में रहने वाली महिला गुजारा भत्ता पाने की भी अधिकारी है।
एफआईआर दर्ज होगी कहीं भी – डीवी एक्ट की धारा-12 इसके तहत महिला मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट की कोर्ट में शिकायत कर सकती है। शिकायत की सुनवाई के दौरान अदालत सुरक्षा अधिकारी से रिपोर्ट मांगता है। महिला जहां रहती है या जहां उसके साथ घरेर्लू ंहसा हुई है या फिर जहां प्रतिवादी रहते हैं, वहां शिकायत की जा सकती है। सुरक्षा अधिकारी घटना की रिपोर्ट अदालत के सामने पेश करता है और उस रिपोर्ट को देखने के बाद अदालत अपना आदेश पारित करती है। इस दौरान अदालत महिला को उसी घर में रहने देने , खर्चा देने या फिर उसकी सुरक्षा का आदेश दे सकती है। अगर अदालत महिला के पक्ष में आदेश पारित करती है और प्रतिवादी उस आदेश का पालन नहीं करता है तो डीवी एक्ट-31 के तहत प्रतिवादी पर केस बनता है।
पिता की नौकरी पर भी है अधिकार – नौकरी पर रहते हुए पिता की मौत होने पर बेटियों को भी मुआवजे के तौर पर नौकरी पाने का अधिकार है। फिर चाहे बेटी शादीशुदा हो या कुंवारी। 2015 से लागू हुए नियम के तहत नौकरी में रहते हुई पिता की मौत पर शादीशुदा बेटी भी मुआवजे में पिता की नौकरी पाने का अधिकारी रखती है।
समान वेतन का अधिकार – समानता का अधिकार महिलाओं के कार्यक्षेत्र में सामान वेतन पर भी लागू होती है, जिसमें एक जैसा काम करने वाले महिला-पुरुष को एक सा वेतन मिलेगा । कंपनी में जितनी भी सुविधा पुरुष कर्मचारी को मिलती है, उतनी ही सुविधा महिला कर्मचारी को भी मिलेगी। कुछ खास जगहों को छोड़कर शाम सात बजे के बाद और सुबह छह बजे के पहले महिला कर्मचारी को काम पर नहीं लगाया जा सकता है। छुट्टी के दिन महिला कर्मचारी को काम पर नहीं बुलाया जा सकता है। अगर उन्हें बुलाना है तो उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करनी होती है। अगर कोई कंपनी इस कानून को मानने से इंकार करती है तो उसके मालिक को सजा का प्रावधान है। समस्या होने पर श्रम आयुक्त से शिकायत की जा सकती है।
घरेलू हिंसा का शिकार महिला को घर में रहने का पूरा अधिकार है। धारा 17-18 के तहत कानून प्रक्रिया के अतिरिक्त उसका निष्कासन नहीं किया जा सकता।
घरेलू हिंसा की शिकायत व्यक्ति के घरेलू संबंध में रहने वाली महिला के द्वारा अथवा उसके प्रतिनिधि द्वारा दर्ज कराई जा सकती है। पत्नी, बहनें ,माताएं, बेटियां भी शिकायत दर्ज करवा सकती हैं।
आईपीसी की धारा 354डी के अंतर्गत किसी महिला का पीछा करने, बार-बार मना करने के बाद भी संपर्क करने, इलेक्ट्रॉनिक कम्यूनिकेश जैसे ई-मेल, इंटरनेट आदि के जरिए मॉनिटर करने वाले शख्स पर कानूनी कार्रवाई हो सकती है।
आपराधिक कानून (संशोधन) अधिनियम, 2013 के तहत स्टॉकिंग करने पर जेल हो सकती है।
किसी महिला को सूरज डूबने के बाद और उगने से पहले गिरफ्तार नहीं किया जा सकता। किसी खास मामले में एक प्रथम श्रेणी के मजिस्ट्रेट के आदेश पर ही यह संभव है।
प्रत्येक पुलिस स्टेशन में एक महिला पुलिस अधिकारी (हेड कांस्टेबल से नीचे नहीं होना चाहिए) पूरे समय होना अनिवार्य है।
महिला कॉन्स्टेबल की अनुपस्थिति में, पुरुष पुलिस अधिकारी द्वारा महिला को गिरफ्तार नहीं किया जा सकता।
महिला की तलाशी सिर्फ महिला पुलिस कर्मी ही ले सकती है।
बिना वॉरेंट गिरफ्तार महिला को तुरंत गिरफ्तारी का कारण बताना जरूरी है और उसे जमानत संबंधी अधिकार के बारे में भी बताना जरूरी है।
पुलिस केवल महिला के निवास पर ही उसकी जांच कर सकती है।
एक बलात्कार पीड़िता अपनी पसंद के स्थान पर ही अपना बयान रिकॉर्ड कर सकती है और पीड़िता की चिकित्सा प्रक्रिया केवल सरकारी अस्पताल में ही हो सकती है।