राम अबकी आएं तो शांता और सीता के साथ आएं…स्वप्न वहीं खड़ा है
यूनिवर्ल्ड सिटी में बनाई गई राम मंदिर की भव्य रंगोली
कोलकाता : सोमवार को अयोध्या में ऐतिहासिक राम मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा को लेकर पूरा देश राममय हो गया है। महानगर कोलकाता भी इससे परे नहीं है। राम मंदिर और भगवान श्रीराम में आस्था रखने वाला हर एक व्यक्ति अपनी-अपनी भावना के अनुसार अपनी भक्ति को प्रकट कर रहा है। कोलकाता शहर में भी राम मंदिर को लेकर लोगों में जबर्दस्त उत्साह का माहौल देखने को मिल रहा है। इसी उत्साह की झलक राजारहाट स्थित यूनीवर्ल्ड सिटी में देखने को मिली। यहाँ नीता मिश्रा, शाएला मिश्रा, नम्रता महराना और शगुन सिंह ने मिलकर राम मंदिर की एक भव्य रंगोली बनाई है। रंगोली की खूबसूरती ऐसी है कि एक बार जिसकी नज़र इस पर पड़ रही है, उसकी नज़र हटने को तैयार नहीं है।
तीसरा मनीषा त्रिपाठी स्मृति अनहद सम्मान डॉ.अभिज्ञात को
कोलकाता । मनीषा त्रिपाठी फाउंडेशन फिल्म तथा वेब पत्रिका अनहद कोलकाता की ओर से दिया जाने वाला तीसरा मनीषा त्रिपाठी स्मृति अनहद कोलकाता सम्मान-2023 हिन्दी भाषा के महत्वपूर्ण कवि-कथाकार डॉ.अभिज्ञात को प्रदान किया जाएगा। अनहद कोलकाता के प्रबंध निदेशक उमेश त्रिपाठी ने बताया कि यह सम्मान हर वर्ष कला की किसी भी विधा में महत्वपूर्ण योगदान देने वाले एक कला साधक को दिया जाता है। इसके पूर्व यह सम्मान हिन्दी के महत्वपूर्ण कवि एवं एक्टिविस्ट केशव तिवारी और महिलाओं के सवालों को अपनी कविता में पुरजोर तरीके से उठाने वाली रूपम मिश्र को दिया जा चुका है। सम्मान स्वरूप ग्यारह हजार रुपये की मानदेय राशि सहित प्रशस्ति पत्र प्रदान किया जाता है। अभिज्ञात हिन्दी में उस परम्परा के लेखक हैं, जिनकी जड़ें आज भी गाँव में हैं। अभिज्ञात ने अपने लेखन के माध्यम से समाज के वंचितों और शोषितों के प्रश्नों को उठाया है और पिछले तीस सालों से लगातार साहित्य की दुनिया में सार्थक-सक्रिय रहे हैं। इस बार के निर्णायक हिन्दी के महत्वपूर्ण कवि केशव तिवारी एवं अनहद कोलकाता के संस्थापक विमलेश त्रिपाठी थे। केशव तिवारी ने अपनी टिप्पणी में कहा है कि यह सम्मान एक ऐसे साहित्यकार को दिया जा रहा है, जो अपने रचना और जीवन के बीच की खाई को दूर करने की दिशा में महत्वपूर्ण कार्य की ओर प्रवृत हैं एवं उन्होंने अपने साहित्य में समय के ज्वलंत मुद्दे उठाए हैं। यह सम्मान डॉ. अभिज्ञात कोलकाता में ही आयोजित एक कार्यक्रम में प्रदान किया जाएगा, जिसमें कोलकाता एवं भारत के अन्य हिस्से से आए साहित्यकार शामिल होंगे।
22 युवा लेखकों को मिला साहित्य अकादमी का युवा पुरस्कार 2023
200 विद्यार्थियों को दी जाएगी ज्योति मेधा छात्रवृत्ति
संत शिरोमणि जगद्गुरु स्वामी रामभद्राचार्य

प्राचीन काल से ही भारत भूमि महान ऋषि-मुनियों की जननी रही है। गुरु-शिष्य परंपरा से सुशोभित इस धरा पर अनगिनत संत और महापुरुष जन्में, जिन्होंने सम्पूर्ण विश्व का मार्गदर्शन किया। अपने तेज, त्याग और तपस्या से संपूर्ण ब्रह्माण्ड को आलोकित किया। सदियों से ही धर्म भारत की आत्मा रही है। अपने आध्यात्म के बल पर ही यह राष्ट्र विश्वगुरू के पद पर आसीन था। कालांतर में युग बदले तब अनेक रूपों में धर्म की हानि हुई। ऐसे में धर्म की संस्थापना हेतु भारत के दिव्य संतों ने समाज-सुधार का बीड़ा उठाया और असंख्य कष्टों का सामना करते हुए समय-समय पर जनमानस में निर्भीकता, जागरूकता, आस्था, भक्ति, सत्यपरायणता, राष्ट्रीयता जैसे श्रेष्ठ मानवीय मूल्यों को स्थापित करने का साहसिक कार्य किया।
जब सन् 1528 में विधर्मी मुग़ल आक्रांता बाबर ने अयोध्या स्थित श्रीराम जन्मभूमि मंदिर को तोड़कर वहां मस्जिद बनाने का आदेश दिया तब उस कुकृत्य से भारतीय अस्मिता को गहरी ठेस पहुँची। राम हमारी आस्था हैं, आदर्श हैं, इष्ट हैं, गौरवशाली सनातन संस्कृति के परिचायक हैं। ऐसे में, जनमानस में विद्रोह की ज्वाला का भड़क उठना स्वाभाविक था। इन विधर्मियों ने हिंदू आस्था के केंद्र कहलाने वाले सैकड़ों मंदिर तोड़ डाले जिनका आज तक जीर्णोंद्धार न हो सका।
श्रीराम के अनन्य भक्त का जन्म : धर्म की स्थापना हेतु माघ कृष्ण एकादशी विक्रम संवत 2006 (तदनुसार 14 जनवरी, सन् 1950), मकर संक्रांति की तिथि को रात 10:34 बजे, उत्तर प्रदेश के जौनपुर जिले के शांडीखुर्द नामक ग्राम में एक रामभक्त का जन्म हुआ। माता शची देवी और पिता पण्डित राजदेव मिश्र ने उनका नाम गिरिधर मिश्र रखा। जन्म के मात्र दो माह पश्चात ही बालक की नेत्रदृष्टि क्षीण हो गई और त्वरित उपचार के बाद भी कोई लाभ न हुआ। वे तभी से प्रज्ञाचक्षु हो गए अर्थात लिख-पढ़ नहीं सकते। केवल श्रवण कर सीख पाने और बोलकर रचनाएँ लिपिबद्ध करवाना ही उनकी शिक्षा का एकमात्र साधन है।
मात्र 3 वर्ष की अल्पायु में गिरिधर ने अवधी में अपनी सर्वप्रथम कविता रची और अपने पितामह को सुनायी। एकश्रुत प्रतिभा से युक्त बालक गिरिधर ने अपने पड़ोसी पण्डित मुरलीधर मिश्र की सहायता से 5 वर्ष की आयु में मात्र 15 दिनों में श्लोक संख्या सहित 700 श्लोकों वाली सम्पूर्ण भगवद्गीता कण्ठस्थ कर ली। 7 वर्ष की आयु में गिरिधर ने अपने पितामह की सहायता से छन्द संख्या सहित सम्पूर्ण श्रीरामचरितमानस 60 दिनों में कण्ठस्थ कर ली। किसे ज्ञात था कि नियति ने यह चमत्कार किसी विराट उद्देश्य के लिए किया है।
शैक्षणिक योग्यता एवं उपलब्धियाँ : 7 जुलाई 1967 को जौनपुर स्थित आदर्श गौरीशंकर संस्कृत महाविद्यालय से गिरिधर मिश्र ने अपनी औपचारिक शिक्षा प्रारम्भ की, जहाँ उन्होंने संस्कृत व्याकरण के साथ-साथ हिन्दी, आङ्ग्लभाषा, गणित, भूगोल और इतिहास का अध्ययन किया। तीन महीनों में उन्होंने वरदराजाचार्य विरचित ग्रन्थ लघुसिद्धान्तकौमुदी का सम्यक् ज्ञान प्राप्त कर लिया। प्रथमा से मध्यमा की परीक्षाओं में चार वर्ष तक कक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त किया। तत्पश्चात उच्च शिक्षा हेतु वाराणसी स्थित सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय में संस्कृत व्याकरण में उन्होंने शास्त्री (स्नातक उपाधि) से लेकर वाचस्पति (डी.लिट्) तक की उपाधि प्राप्त की। इस दौरान उन्हें परीक्षा में स्वर्णपदक भी प्राप्त हुए। उनके चतुर्मुखी ज्ञान के कारण विश्वविद्यालय ने उन्हें केवल व्याकरण ही नहीं अपितु वहां अध्यापित सभी विषयों का आचार्य घोषित कर दिया।
19 नवम्बर 1983, कार्तिक पूर्णिमा के दिन रामानन्द सम्प्रदाय में श्री श्री 1008 श्री रामचरणदास महाराज फलाहारी से विरक्त दीक्षा लेकर गिरिधर मिश्र रामभद्रदास नाम से आख्यात हुए। 1987 में उन्होंने चित्रकूट में तुलसीपीठ की स्थापना की और श्रीचित्रकूटतुलसीपीठाधीश्वर की उपाधि से अलंकृत हुए। 24 जून 1988 को काशी विद्वत् परिषद् वाराणसी ने रामभद्रदास का तुलसीपीठस्थ जगद्गुरु रामानन्दाचार्य के रूप में चयन किया। 3 फरवरी 1989 को प्रयाग में महाकुंभ में रामानन्द सम्प्रदाय के तीन अखाड़ों के महन्तों, सभी सम्प्रदायों, खालसों और संतों द्वारा सर्वसम्मति से काशी विद्वत् परिषद् के निर्णय का समर्थन किया गया। इसके बाद 1 अगस्त 1995 को अयोध्या में दिगंबर अखाड़े ने रामभद्रदास का जगद्गुरु रामानन्दाचार्य के रूप में विधिवत अभिषेक किया। रामभद्रदास अब जगद्गुरु रामानन्दाचार्य स्वामी रामभद्राचार्य हो गए। स्वामी वल्लभाचार्य के 500 वर्षों पश्चात पहली बार संस्कृत में प्रस्थानत्रयी पर भाष्य लिखकर लुप्त हुई जगद्गुरु परम्परा को स्वामी रामभद्राचार्य ने पुनर्जीवित किया।
श्रीराम मंदिर आंदोलन में योगदान : अयोध्या नगरी को उजाड़ने जैसे असहनीय आपराधिक कृत्य से संपूर्ण हिन्दू समाज आक्रोशित था। श्रीराम मंदिर निर्माण के लिए देश में अनेकों प्रयास किए गए थे। लगभग 500 वर्षों से अधिक समय से यह मामला न्यायालय से निर्णित होने के मोड़ पर पहुँचकर अटका हुआ था। एक विराट आंदोलन हुआ जिसमें जगद्गुरु रामभद्राचार्य भी शामिल थे। पुलिस ने उनपर लाठीचार्ज की जिससे उनकी दाहिनी कलाई चोटिल हो गई और आज भी टेढ़ी है। उन्हें 8 दिनों तक निरपराध होने के बावजूद जेल में बंद किया गया।
माननीय उच्च न्यायालय ने जब प्रश्न किया क्या रामलला के अयोध्या में जन्म का शास्त्रों में कोई प्रमाण है? ऐसे में, बड़े-बड़े दिग्गज जवाबदेही से पीछे हट गए परन्तु पूज्य स्वामी जी साक्ष्य देने हेतु स्वयं कठघरे में प्रस्तुत हो गए। न्यायालय ने स्वाभाविक प्रश्न किया कि आप बिना देखे साक्ष्य कैसे देंगे? इस पर प्रज्ञाचक्षु श्री रामभद्राचार्य जी ने कहा कि शास्त्रीय साक्ष्य के लिए भौतिक आँखों की आवश्यकता नहीं होती। शास्त्र ही सबकी आँखें हैं। जिनके पास शास्त्र नहीं वे दृष्टिहीन हैं। उनके इस वक्तव्य को न्यायालय ने स्वीकार कर पूछा कि शास्त्रीय प्रमाण दीजिए तब उन्होंने अथर्ववेद के दशम काण्ड के 31वें अनुवाक्य के दूसरे मंत्र को प्रमाण स्वरूप प्रस्तुत करते हुए कहा कि-
अष्टचक्रा नवद्वारा देवानां पूरयोध्या। तस्या हिरण्यय: कोश: स्वर्गो ज्योतिषवृत:।।
अर्थात वेदों में स्पष्ट कहा गया है कि 8 चक्र और 9 द्वार वाली अयोध्या, श्रीरामजन्मभूमि से 300 धनुष उत्तर में सरयू नदी विद्यमान है और आगे इस तरह के 441 साक्ष्य प्रस्तुत किए और जब वहां खुदाई हुई तब 437 साक्ष्य स्पष्ट निकले। उनमें से केवल 4 अस्पष्ट थे, लेकिन वह भी रामलला के ही प्रमाण थे। इस प्रकार 8 अक्टूबर 2019 को तीन सदस्यीय जजों की बेंच ने महाराज श्री द्वारा प्रस्तुत साक्ष्यों की रोशनी में कोटि-कोटि भारतवासियों के आराध्य भगवान श्रीराम की जन्मभूमि से विवादों का समापन करते हुए निर्णय दिया।
वर्ष 2015 में स्वामी रामभद्राचार्य को भारत के द्वितीय सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्मविभूषण से विभूषित किया गया। उन्होंने भारतीय संस्कृति, साहित्य और दर्शन विषय पर 225 से अधिक पुस्तकों की रचना की है। 22 भाषाएँ बोलते हैं। संस्कृत, हिन्दी, अवधी, मैथिली सहित कई भाषाओं में कवि और रचनाकार हैं। वे चित्रकूट स्थित ‘जगद्गुरु रामभद्राचार्य विकलांग विश्वविद्यालय’ के संस्थापक और आजीवन कुलपति हैं। समस्त भारतवर्ष आज उनका आभारी है, जिनके महत्वपूर्ण योगदान से हम सभी मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम के भव्य मंदिर के साक्षी बन पा रहे हैं। यह दैविक संयोग है कि अयोध्या में नव निर्मित श्री राममंदिर के भव्य शुभारम्भ और पूज्यपाद जी के 75वें जन्मोत्सत्व का सुअवसर एक साथ आया । ऐसे महान संत के श्रीचरणों में विनम्र प्रणति।
( लेखिका शुभांगी उपाध्याय, कलकत्ता विश्वविद्यालय में पी.एच.डी. शोधार्थी हैं।)
जानिए लोहड़ी से जुड़ी कुछ खास बातें
नए साल की शुरुआत के बाद पहला त्योहार लोहड़ी इस साल 14 जनवरी को मनाया जा रहा है। पंजाब, हरियाणा और हिमाचल प्रदेश में पारंपरिक रूप से प्रमुख होने के बावजूद, लोहड़ी ने देश के अन्य हिस्सों में भी लोकप्रियता हासिल की है।
यह त्यौहार समृद्धि, प्रचुरता और खुशी का प्रतीक है, जिसमें लोग जश्न मनाने के लिए एक साथ आते हैं और खुशी के गीत गाते हैं। यह कृषि के लिए भी महत्व रखता है और नई फसल की पूजा के लिए समर्पित है।
लोहड़ी के दौरान एक अनोखी परंपरा में अलाव जलाना और आग में गुड़, मूंगफली और तिल चढ़ाना शामिल है। यह अनुष्ठान अत्यंत शुभ माना जाता है। आइए जानें लोहड़ी के बारे में कुछ रोचक तथ्य:
अग्नि को समर्पण: लोहड़ी भगवान सूर्य (सूर्य देवता) और अग्नि (अग्नि देवता) के सम्मान के लिए समर्पित है। त्योहार के दौरान, लोग अग्नि देव को नई फसल चढ़ाते हैं, जो दिव्य संस्थाओं को फसल की प्रस्तुति का प्रतीक है। ऐसा माना जाता है कि लोहड़ी उत्सव के माध्यम से, नई फसल का इनाम देवताओं को अर्पित किया जाता है।
नई दुल्हनों का जश्न: पंजाब राज्य में, लोहड़ी का विशेष महत्व है, विशेषकर नवविवाहित दुल्हनों वाले परिवारों के लिए। यह त्यौहार जीवंत गिद्दा और भांगड़ा नृत्यों के साथ मनाया जाता है। जिन घरों में हाल ही में एक नई दुल्हन का स्वागत हुआ है, वे लोहड़ी को अतिरिक्त उत्साह के साथ मनाते हैं, जिससे यह नवविवाहितों के लिए एक यादगार अवसर बन जाता है।
फसल संबंधी परंपराएँ: लोहड़ी का गन्ने और मूली की बुआई से गहरा संबंध है। त्योहार से पहले, सर्दियों की फसलों की कटाई की जाती है, और उपज को अन्न भंडार में संग्रहीत किया जाता है। बैसाखी के उत्सव के समान, लोहड़ी एक ऐसा त्योहार है जो कृषि चक्र और लोगों के जीवन के बीच संबंध को उजागर करता है।
दुल्ला भट्टी की कथा: लोहड़ी के गीतों और लोककथाओं में दुल्ला भट्टी का जिक्र एक आम विषय है। दुल्ला भट्टी एक महान व्यक्ति थे, जिन्हें एक अन्यायी राजा से दो लड़कियों, सुंदरी और मुंदरी को बचाने के लिए जाना जाता था। लोहड़ी का जश्न अक्सर पारंपरिक गीतों के साथ मनाया जाता है जो दुल्ला भट्टी की बहादुरी और वीरता की कहानी बताते हैं।
लोहड़ी, अपने जीवंत उत्सव के साथ, प्रकृति, कृषि और मानव जीवन के बीच संबंध का उत्सव है। जैसे ही अलाव जलते हैं और गाने गूंजते हैं, लोग खुशी, समृद्धि और फसल का आशीर्वाद साझा करने के लिए एक साथ आते हैं। चाहे पंजाब के हृदय क्षेत्र में हों या भारत के विविध परिदृश्यों में, लोहड़ी भौगोलिक सीमाओं से परे एक उत्सव में समुदायों को एकजुट करती है।
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कारगिल की दुर्गम हवाई पट्टी पर पहली बार रात में हुई C-130J विमान की लैंडिंग
भारतीय वायुसेना ने भारतीय वायुसेना का C-130J विमान हाल ही में पहली बार रात में कारगिल हवाई पट्टी पर उतारा गया है। नाइट लैंडिंग का वीडियो शेयर करते हुए वायुसेना ने कहा कि पहली बार, IAF C-130 J विमान ने कारगिल हवाई पट्टी पर नाइट लैंडिंग की है। इस अभ्यास ने गरुड़ के प्रशिक्षण मिशन को भी पूरा किया। हालांकि वायुसेना ने प्रशिक्षण मिशन के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं दी है.
जानकारी के मुताबिक, पिछले साल नवंबर में वायुसेना ने अपने दो लॉकहीड मार्टिन C-130J-30 ‘सुपर हरक्यूलिस’ सैन्य परिवहन विमानों को उत्तराखंड में एक दुर्गम हवाई पट्टी पर सफलतापूर्वक उतारा था। मिशन को खराब मौसम में पास की निर्माणाधीन पहाड़ी सुरंग के अंदर फंसे श्रमिकों को बचाने में मदद करने के लिए भारी इंजीनियरिंग उपकरण पहुंचाने के लिए मिशन में लगाया गया था। इसके अलावा पिछले साल भारतीय वायुसेना ने सूडान में भी एक साहसी नाइट मिशन के लिए इस विमान का इस्तेमाल किया था। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, 8,800 फीट से ज्याद की ऊंचाई पर चुनौतीपूर्ण हिमालयी इलाके के बीच स्थित कारगिल हवाई पट्टी पायलटों के लिए काफी चुनौतियां पेश करती है। अप्रत्याशित मौसम और भयानक हवाओं के साथ ऊंचाई पर बातचीत करने के लिए पायलटों को लैंडिंग प्रक्रिया के दौरान असाधारण सटीकता और कौशल प्रदर्शन की जरूरत होती है।
ऐसी चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों में विशेष रूप से अंधेरे में सी-130जे विमान की लैंडिंग को सफलतापूर्वक नेविगेट करना, भारतीय वायुसेना की सावधानीपूर्वक योजना और उसके पायलटों की विशेषज्ञता को दिखाता है। इसके अलावा कारगिल में नाइट लैंडिंग अभ्यास को भारतीय वायुसेना की विशिष्ट बल इकाई, गरुड़ के लिए एक प्रशिक्षण मिशन के लिए किया गया है।
इन बेहतरीन विचारों के साथ घर से शुरू करें अपना रोजगार
रातोंरात गायब हो गए थे इस गांव के लोग, आज भी है रहस्य
भारत के राजस्थान में स्थित जैसलमेर में एक ऐसा गांव भी है, जो लगभग 200 साल से वीरान पड़ा हुआ है। जैसलमेर शहर रेगिस्तानी क्षेत्र में स्थित है. शहर के बाहर सैकड़ों मील दूर तक यहां पर रेगिस्तान फैला हुआ है। यहां पर रेत के बड़े-बड़े टीले मौजूद हैं। इस शहर से कुछ मील की दूरी पर कुलधरा नाम का एक खूबसूरत गांव है, जो पिछले 200 साल से वीरान पड़ा हुआ है। कहा जाता है कि इस गांव के लोग 200 साल पहले रातोंरात अपना गांव छोड़कर गायब हो गए थे, इसके बाद वे वापस यहां पर कभी भी नहीं आए। स्थानीय परंपरा के अनुसार, करीब 200 साल पहले जैसलमेर में रजवाड़ों की एक रियासत थी। उस समय कुलधरा नाम का यह गांव सबसे खुशहाल था। यहां से काफी अधिक राजस्व आता था। यहां पर उत्सव और समारोह हुआ करते थे। इस गांव में पालीवाल ब्रह्माण रहते थे। इस गांव की एक लड़की की शादी होने वाली थी। वह लड़की बहुत ही खूबसूरत थी। जैसलमेर रियासत के दीवान सालिम सिंह की नजर उस लड़की पर पड़ गई। वह उस लड़की की सुंदरता का दीवाना हो गया. इस पर उसने उस लड़की से शादी की जिद की।
स्थानीय कहानियों के अनुसार, सालिम सिंह एक अत्याचारी व्यक्ति था. उसकी क्रूरता की कहानियां दूर-दूर तक मशहूर थीं। इस बावजूद कुलधरा के लोगों ने सालिम सिंह को शादी के लिए मना कर दिया। गांव वालों को यह मालूम था कि उन्होंने सालिम सिंह की बात नहीं मानी तो वह कत्लेआम मचा देगा। इस कारण कुलधरा के लोगों ने गांव के मंदिर के पास स्थित एक चौपाल में पंचायत की और गांव की बेटी व सम्मान को बचाने के लिए हमेशा के लिए उस गांव को छोड़कर जाने का फैसला किया। सारे गांव वाले रात के सन्नाटे में अपना सारा सामान, मवेशी, अनाज और कपड़े आदि को लेकर उस गांव को छोड़कर हमेशा के लिए चले गए।
अब यह गांव पुरातत्व विभाग की निगरानी में है. जैसलमेर में आज भी साालिम सिंह की हवेली मौजूद है, लेकिन उसे कोई देखने नहीं आता है। कुलधरा गांव में कई सारे पत्थर के मकान बने हुए हैं. ये मकान अब धीरे-धीरे खंडहर बन चुके हैं। कुछ घरों में आज भी चूल्हे, बैठने की जगहों और घड़ों को रखने की जगहों को देखने से आज भी ऐसा लगता है कि जैसे अभी हाल में ही कोई इस गांव को छोड़कर गया हो। यहां की दीवारों से उदासी का अहसास होता है.
स्थानीय लोगों की मानें तो रात के सन्नाटे में कुलधरा के खंडहरों में किसी के कदमों की आहट सुनाई देती है। लोगों की मान्यताएं हैं कि कुलधरा के लोगों की आत्माएं आज भी यहां भटकती हैं.। राजस्थान सरकार ने पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए यहां के कुछ घरों को दोबारा से निर्मित किया है। गांव का मंदिर आज भी स्थित है।
माना जाता है कि कुलधरा के लोग जब इस गांव को छोड़कर जा रहे थे तो उन्होंने इस गांव का श्राप दिया था कि यह गांव अब कभी नहीं बसेगा। उनके जाने के दो सौ साल बाद भी आज यह गांव रेगिस्तान के जैसलमेर में रेगिस्तान में वीरान पड़ा है। हर साल कई पर्यटक इस गांव को देखने आते हैं और यहां के लोग इस जगह का काफी सम्मान करते हैं।