श्रीराम प्राण प्रतिष्ठा समारोह….500 वर्ष की तपस्या के बाद सत्य हुआ ऐतिहासिक क्षण

शुभजिता फीचर डेस्क
भगवान श्रीराम की जन्मस्थली अयोध्या में उनके जन्मस्थान पर करीब 5 शताब्दियों के बाद ऐसा पल आने वाला है, जिसका साक्षी पूरा देश बनेगा। रामलला अपने गर्भगृह में विराजमान होने वाले हैं। इसकी तैयारियां शुरू करा दी गई हैं। मंदिर बनकर तैयार हो रहा है। माना जा रहा है कि दिसंबर तक पहले चरण का निर्माण कार्य पूरा करा लिया जाएगा। इसके बाद मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा की तैयारियों को अंतिम रूप दिया जाना शुरू कर दिया जाएगा। श्रीराम जन्‍मभूमि मंदिर के गर्भगृह में रामलला की प्राण प्रतिष्‍ठा कार्यक्रम को देश के 5 लाख मंदिरों तक आयोजित किए जाने की योजना है। पूरे देश को 12 दिनों तक राममय करने की तैयारी चल रही है। इसके अलावा प्राण प्रतिष्‍ठा समारोह के दौरान अयेाध्‍या में आयोजित होने वाले कार्यक्रम में भी करीब 5 लाख श्रद्धालुओं के पहुंचने का अनुमान है। उनके ठहरने और भोजन की व्‍यवस्‍था भी मंदिर ट्रस्‍ट की ओर से तैयारी चल रही है। इस ऐतिहासिक क्षण को स्मृतियों में देखने का क्षण हैं, इस नजर इतिबास के पन्नों में तैयारियों के साथ उन नांव की ईंट को स्मरण करते हुए यह आलेख प्रस्तुत है –
आजादी के कुछ समय बाद ही बाबरी मस्जिद में रातों-रात राललला की मूर्तियां रख दी गई थीं. यही नहीं, उन्‍होंने तत्‍कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के आदेश की अनदेखी करते हुए मूर्तियों को विवादित स्‍थल से हटवाने से भी इनकार कर दिया था। हम बात कर रहे हैं तब के फैजाबाद जिले के डीएम केके नायर की। विवादित स्थल पर रखी गईं रामलला की मूर्तियों को हटवाने के लिए तत्‍कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने उन्हें दो बार आदेश दिया। केके नायर ने दोनों बार उनके आदेश का पालन करने में असमर्थता जता दी। इससे उनकी छवि हिंदूवादी अधिकारी के तौर पर बन गई। बाद में इसका उन्‍हें बड़ा फायदा मिला। उन्‍होंने और उनकी पत्‍नी ने बाद में लोकसभा चुनाव लड़ा ही नहीं, जीता भी. यही नहीं, उनकी छवि का फायदा उनके ड्राइवर तक को मिला। उनके ड्राइवर ने उत्‍तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में ताल ठोकी और जीतकर विधायक बना।
अलेप्‍पी के नायर थे 1930 बैच के आइसीएस अफसर – दरअसल, 22 और 23 दिसंबर 1949 की आधी रात बाबरी मस्जिद में कथित तौर पर गुपचुप तरीके से रामलला की मूर्तियां रख दी गयीं।. इसके बाद अयोध्या में शोर मच गया कि जन्मभूमि में भगवान प्रकट हुए हैं। लिब्राहन आयोग की रिपोर्ट के मुताबिक, मौके पर तैनात कॉन्स्टेबल माता प्रसाद ने घटना की सूचना थाना इंचार्ज राम दुबे को दी। माता प्रसाद ने बताया कि 50 से 60 लोग परिसर का ताला तोड़कर अंदर घुस गए। इसके बाद उन्‍होंने वहां श्रीराम की मूर्ति स्थापित कर दी, साथ ही पीले और गेरुए रंग से श्रीराम लिख दिया। हेमंत शर्मा ने अपनी किताब ‘युद्ध में अयोध्या’ में लिखा है कि केरल के अलेप्पी के रहने वाले केके नायर 1930 बैच के आईसीएस अधिकारी थे। उनके फैजाबाद के डीएम रहते बाबरी ढांचे में मूर्तियां रखी गयीं। 23 दिसंबर 1949 की सुबह अयोध्‍या में अचानक शोर होने लगा कि बाबरी मस्जिद में रामलला प्रकट हुए हैं।
क्‍या कहकर नायर ने टाल दिया पं. नेहरू का आदेश – हेमंत शर्मा किताब में लिखते हैं कि बाबरी मामले से जुड़े आधुनिक भारत में नायर ऐसे व्‍यक्ति हैं, जिनके कार्यकाल में इस मामले में सबसे बड़ा मोड़ आया।  इससे देश के सामाजिक-राजनीतिक ताने-बाने पर बड़ा असर पड़ा। केके नायर 1 जून 1949 को फैजाबाद के कलेक्टर बने थे। 23 दिसंबर 1949 को जब भगवान राम की मूर्तियां मस्जिद में रखी हुईं तो नेहरू ने यूपी के तत्‍कालीन सीएम गोविंद बल्लभ पंत से तत्‍काल मूर्तियां हटवाने को कहा। उत्तर प्रदेश सरकार ने मूर्तियां हटवाने का आदेश दिया, लेकिन जिला मजिस्ट्रेट केके नायर ने दंगों और हिंदुओं की भावनाओं के भड़कने के डर से इस आदेश को पूरा करने में असमर्थता जताई.।
नायर बने सांसद, तो उनका ड्राइवर बना विधायक – किताब के मुताबिक, तत्‍कालीन पीएम नेहरू ने मूर्तियां हटाने को दोबारा कहा तो नायर ने सरकार को लिखा कि मूर्तियां हटाने से पहले मुझे हटाया जाए। देश के सांप्रदायिक माहौल को देखते हुए सरकार पीछे हट गई। डीएम नायर ने 1952 में स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ले ली, फिर देश की चौथी लोकसभा के लिए उन्‍होंने उत्तर प्रदेश की बहराइच सीट से जनसंघ के टिकट पर चुनाव लड़ा और जीत गए। उनकी पत्‍नी शकुंतला नायर भी जनसंघ के टिकट पर कैसरगंज से तीन बार लोकसभा पहुंचीं। बाद में उनका ड्राइवर भी उत्तर प्रदेश विधानसभा का सदस्य बना। विवादित स्थल से मूर्तियां नहीं हटाने का मुसलमानों ने विरोध किया। दोनों पक्षों ने कोर्ट में मुकदमा दायर कर दिया. फिर सरकार ने इस स्थल को विवादित घोषित करके ताला लगा दिया। पं. नेहरू के आदेश को अनदेखा करने वाले केके नायर की पत्‍नी शकुंतला नायर तीन बार कैसरगंज से लोकसभा चुनाव जीतीं।
कहां से लाई गई थी भगवान राम की मूर्ति – 23 दिसंबर 1949 की सुबह 7 बजे अयोध्या थाने के तत्कालीन एसएचओ रामदेव दुबे रूटीन जांच के दौरान मौके पर पहुंचे, तो वहां सैकड़ों लोगों की भीड़ जमा हो चुकी थी। रामभक्तों की भीड़ दोपहर तक बढ़कर 5000 लोगों तक पहुंच गई। अयोध्या के आसपास के गांवों से श्रद्धालुओं की भीड़ बालरूप में प्रकट हुए भगवान राम के दर्शन के लिए टूट पड़ी. हर कोई ‘भय प्रकट कृपाला’ गाता हुआ विवादित स्‍थल की ओर बढ़ा चला जा रहा था। भीड़ को देखकर पुलिस और प्रशासन के हाथपांव फूलने लगे. उस सुबह बाबरी मस्जिद के मुख्य गुंबद के ठीक नीचे वाले कमरे में वही मूर्ति प्रकट हुई थी, जो कई दशकों से राम चबूतरे पर विराजमान थी. इनके लिए वहीं की सीता रसोई या कौशल्या रसोई में भोग बनता था।
2100 किलो का घंटा, 108 फीट लंबी अगरबत्ती… राम मंदिर के लिए देश-विदेश से आये उपहार
इस मौके को खास बनाने के लिए देश-विदेश से अयोध्या के लिए उपहार भेजे गये। इसमें 108 फुट लंबी अगरबत्ती, 2100 किलोग्राम की घंटा, 1100 किलोग्राम वजनी एक विशाल दीपक, सोने के खड़ाऊं, 10 फुट ऊंचा ताला और चाबी और आठ देशों का समय एक साथ बताने वाली एक घड़ी विशेष आकर्षण हैं। इन अनोखे उपहारों को बनाने वाले कलाकारों को उम्मीद है कि उनके उपहारों का भव्य मंदिर में उपयोग किया जाएगा। नेपाल के जनकपुर से हजारों उपहारों से लदे 30 वाहन अयोध्या पहुंचे। सीता की जन्मभूमि नेपाल के जनकपुर से भगवान राम के लिए 3,000 से अधिक उपहार अयोध्या पहुंचे हैं। इनमें चांदी के जूते, आभूषण और कपड़ों सहित कई अन्य उपहार शामिल हैं. नेपाल के जनकपुर धाम रामजानकी मंदिर से लगभग 30 वाहनों के काफिले में रखकर इन उपहारों को अयोध्या लाया जा रहा है।
 श्रीलंका के एक प्रतिनिधिमंडल ने भी अशोक वाटिका से एक विशेष उपहार के साथ अयोध्या का दौरा किया। प्रतिनिधिमंडल ने महाकाव्य रामायण में वर्णित अशोक वाटिका से लाई गई एक चट्टान भेंट की। बताते चलें कि अशोक वाटिका वहीं जगह है, जहां रावण ने माता सीता का अपहरण करने के बाद उन्हें रखा था।
वडोदरा के विहा भरवाड की बनाई ये अगरबत्ती करीब डेढ़ महीने तक चलेगी। गुजरात के वडोदरा में छह महीने में तैयार की गई 108 फुट लंबी अगरबत्ती 18 जनवरी को अयोध्या पहुंच चुकी है। भरवाड और 25 अन्य भक्त 1 जनवरी को विशाल अगरबत्ती के साथ वडोदरा से रवाना हुए हैं। इसका वजन 3,610 किलोग्राम है और यह लगभग 3.5 फीट चौड़ी है। अगरबत्ती तैयार करने वाली वडोदरा के रहने वाले विहा भरवाड ने बताया, ”यह अगरबत्ती पर्यावरण के अनुकूल है। यह करीब डेढ़ महीने तक चलेगी और इसकी सुगंध कई किलोमीटर तक फैलेगी।” उन्होंने कहा कि 376 किलोग्राम गुग्गुल (गोंद राल), 376 किलोग्राम नारियल के गोले, 190 किलोग्राम घी, 1,470 किलोग्राम गाय का गोबर, 420 किलोग्राम जड़ी-बूटियों को मिलाकर अगरबत्ती को तैयार किया गया है। इसकी ऊंचाई दिल्ली में प्रतिष्ठित कुतुब मीनार की लगभग आधी है।
गुजरात ने दरियापुर से आया विशाल नगाड़ा – सोने की परत चढ़ा यह 56 इंच का विशाल नगाड़ा राम मंदिर में स्थापित किया गया।  मंदिर के प्रांगण में सोने की परत चढ़ा यह 56 इंच का नगाड़ा स्थापित किया इस 44 फुट लंबे पीतल के ध्वज स्तंभ और अन्य छोटे छह ध्वज स्तंभ हैं। वडोदरा के रहने वाले किसान अरविंदभाई मंगलभाई पटेल ने 1,100 किलोग्राम वजन का एक विशाल दीपक तैयार किया है। पटेल ने कहा, “दीपक 9.25 फीट ऊंचा और 8 फीट चौड़ा है. इसकी क्षमता 851 किलोग्राम घी की है। दीपक ‘पंचधातु’ यानी सोना, चांदी, तांबा, जस्ता और लोहा से मिलकर बना है।
सूरत से आयी माता सीता की विशेष साड़ी और हार – माता सीता के लिए भव्य राम मंदिर और श्रीराम की तस्वीर वाली यह विशेष साड़ी सूरत से आई है। इसमें भगवान राम और अयोध्या मंदिर की तस्वीरों वाली साड़ी भगवान राम की पत्नी सीता के लिए है, जिन्हें आदरपूर्वक मां जानकी के नाम से जाना जाता है और इसका पहला टुकड़ा रविवार को सूरत के एक मंदिर में चढ़ाया गया। सूरत के ही एक हीरा व्यापारी ने 5,000 अमेरिकी डायमंड और 2 किलो चांदी का उपयोग करके राम मंदिर की थीम पर एक हार बनाया है. चालीस कारीगरों ने 35 दिनों में डिजाइन पूरा किया और हार को राम मंदिर ट्रस्ट को उपहार में दिया गया है।
यूपी से आया 400 किलो का ताला और घंटा – दुनिया का सबसे बड़ा ताला 10 फीट ऊंचा है। उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ के ताला बनाने वाले सत्य प्रकाश शर्मा ने 10 फीट ऊंचा, 4.6 फीट चौड़ा और 9.5 इंच मोटाई वाला 400 किलोग्राम वजन का ताला और चाबी तैयार की है। उन्होंने बताया कि ”यह दुनिया का सबसे बड़ा ताला और चाबी है। मैंने इसे ट्रस्ट को उपहार में दिया है, ताकि इसे मंदिर में प्रतीकात्मक ताले के रूप में इस्तेमाल किया जा सके।” उत्तर प्रदेश में एटा के जलेसर में अष्टधातु से बना 2,100 किलोग्राम वजन का घंटा तैयार किया गया है। घंटा तैयार करने में शामिल एक कारीगर ने कहा कि “घंटा तैयार करने में दो साल लग गए। सभी अनुष्ठानों को करने और धूमधाम के साथ घंटी को अयोध्या भेजा जा रहा है।”
8 देशों का समय एक साथ बताती है लखनऊ की यह खास घड़ी – लखनऊ स्थित एक सब्जी विक्रेता ने विशेष रूप से एक ऐसी घड़ी डिजाइन की है, जो एक ही समय में आठ देशों का समय बताती है। 52 साल के अनिल कुमार साहू ने कहा कि उन्होंने 75 सेंटीमीटर व्यास वाली घड़ी मंदिर ट्रस्ट के महासचिव चंपत राय को उपहार में दी है। साहू ने कहा कि उन्होंने पहली बार 2018 में घड़ी बनाई थी और इसे भारत सरकार के पेटेंट कार्यालय द्वारा ‘डिजाइन के पंजीकरण का प्रमाण पत्र’ दिया गया था। यह घड़ी भारत, टोक्यो (जापान), मॉस्को (रूस), दुबई (यूएई), बीजिंग (चीन), सिंगापुर, मैक्सिको सिटी (मेक्सिको), वाशिंगटन डीसी और न्यूयॉर्क (यूएस) का समय एक साथ बताती है।
नागपुर, मथुरा, तिरुपति से भोग के लिए मिठाई और लड्डू आएंगे – नागपुर में रहने वाले शेफ विष्णु मनोहर ने घोषणा की है कि वह अभिषेक समारोह में शामिल होने वाले भक्तों के लिए 7,000 किलोग्राम पारंपरिक मिठाई “राम हलवा” तैयार करेंगे। वहीं, मथुरा में श्री कृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान ‘यज्ञ’ के लिए 200 किलोग्राम लड्डू अयोध्या भेजने की तैयारी कर रहा है। तिरूपति में श्री वेंकटेश्वर मंदिर के आधिकारिक संरक्षक, तिरुमला तिरूपति देवस्थानम (टीटीडी) ने भी घोषणा की है कि वह इस बड़े दिन पर भक्तों को वितरण के लिए एक लाख लड्डू भेजेगा।
हैदराबाद से राम भक्त लाया सोने की परत चढ़े जूते – भगवान राम के प्रति अटूट श्रद्धा और अपने ‘कार सेवक’ पिता के सपने को पूरा करने की इच्छा के साथ हैदराबाद के 64 वर्षीय चल्ला श्रीनिवास शास्त्री अयोध्या पहुंचे। वह भगवान राम को भेंट करने के लिए अपने साथ सोने की परत चढ़े जूते ला रहे हैं। वह लगभग 8,000 किमी की दूरी तय करके पैदल ही अयोध्या पहुंचे हैं।
तारीखों की डायरी में रामजन्म भूमि विवाद और समाधान
राम मंदिर का भव्य भूमिपूजन आज अय़ोध्या में होने जा रहा है। अयोध्या नगरी पूरी तरह से रोशनी से जगमगा रही है। वहीं शहर में चारों तरफ सिर्फ भूमिपूजन और पीएम मोदी की होर्डिंग्स लगी है। होर्डिंग्स में बस एक ही संदेश लिखा है कि पीएम मोदी भूमिपूजन करेंगे। लेकिन इस भूमिपूजन तक पहुंचने में ढेरों कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। आपको हम बताने जा रहे हैं कि आखिर 1528 के विवाद से लेकर समाधान तक कैसा रहा सफर।
1528 : अयोध्या में एक ऐसे स्थल पर मस्जिद का निर्माण, जिसे हिंदू भगवान राम का जन्मस्थान मानते थे। मस्जिद बनवाने का आरोप बाबर पर लगा। कहा जाता है कि बाबर की शह पर ही उसके सेनापति मीर बाकी ने मंदिर तोड़कर मस्जिद बनवाई थी।
1853 : मुगलों और नवाबों के शासन के चलते 1528 से 1853 तक इस मामले में हिंदू बहुत मुखर नहीं हो पाए, पर मुगलों और नवाबों का शासन कमजोर पड़ने तथा अंग्रेजी हुकूमत के प्रभावी होने के साथ ही हिंदुओं ने यह मामला उठाया और कहा कि भगवान राम के जन्मस्थान मंदिर को तोड़कर मस्जिद बना ली गई। इसको लेकर हिंदुओं और मुसलमानों में झगड़ा हो गया।
1859 : अंग्रेजी हुकूमत ने तारों की एक बाड़ खड़ी कर विवादित भूमि के आंतरिक और बाहरी परिसर में मुस्लिमों तथा हिंदुओं को अलग-अलग पूजा और नमाज की इजाजत दे दी।
न्यायालय पहुंचा मामला – 19 जनवरी 1885 ढांचे के बाहरी आंगन में स्थित राम चबूतरे पर बने अस्थायी मंदिर को पक्का बनाने और छत डालने के लिए निर्मोही अखाड़े के मंहत रघुबर दास ने 1885 में पहली बार सब जज फैजाबाद के न्यायालय में अंग्रेजी सरकार के खिलाफ स्वामित्व को लेकर दीवानी मुकदमा किया। सब जज ने निर्णय दिया कि वहां हिंदुओं को पूजा-अर्चना का अधिकार है। पर, वे जिलाधिकारी के फैसले के खिलाफ मंदिर को पक्का बनाने और छत डालने की अनुमति नहीं दे सकते।
22 दिसंबर 1949 ढांचे के भीतर गुंबद के नीचे मूर्तियों का प्रकटीकरण। प्रधानमंत्री थे जवाहर लाल नेहरू, मुख्यमंत्री थे गोविंद वल्लक्ष पंत और जिलाधिकारी थे केके नैय्यर ।
16 जनवरी 1950 गोपाल सिंह विशारद ने  फैजाबाद के सिविल जज की अदालत में मुकदमा दायर कर ढांचे के मुख्य (बीच वाले) गुंबद के नीचे स्थित भगवान की प्रतिमाओं की पूजा-अर्चना की मांग की।
 5 दिसंबर 1950  ऐसी ही याचना करते हुए महंत रामचंद्र परमहंस ने सिविल जज के यहां मुकदमा दाखिल किया। मुकदमे में दूसरे पक्ष को संबंधित स्थल पर पूजा-अर्चना में बाधा डालने से रोकने की मांग की गई थी।
3 मार्च 1951 – गोपाल सिंह विशारद मामले में न्यायालय ने दूसरे पक्ष (मुस्लिम) को पूजा-अर्चना में बाधा न डालने की हिदायत दी। ऐसा ही आदेश परमहंस की तरफ से दायर मुकदमे में भी दिया गया।
17 दिसंबर 1959 – रामानंद संप्रदाय की तरफ से निर्मोही अखाड़े के छह व्यक्तियों ने मुकदमा  दायर कर इस स्थान पर अपना दावा ठोका। साथ ही मांग की कि रिसीवर प्रियदत्त राम को हटाकर उन्हें पूजा-अर्चना की अनुमति दी जाए। यह उनका अधिकार है।
18 दिसंबर 1961 – उत्तर प्रदेश के केंद्रीय सुन्नी वक्फ बोर्ड ने मुकदमा दायर किया। प्रार्थना की कि यह जगह मुसलमानों की है। ढांचे को हिंदुओं से लेकर मुसलमानों को दे दिया जाए। ढांचे के अंदर से मूर्तियां हटा दी जाएं। ये मामले न्यायालय में चलते रहे।
कारसेवा आंदोलन
 24 मई 1990 – हरिद्वार में विराट हिंदू सम्मेलन हुआ। संतों ने देवोत्थान एकादशी (30 अक्तूबर 1990) को मंदिर निर्माण के लिए  कारसेवा की घोषणा की।
1 सितंबर 1990 – अयोध्या में अरणी मंथन कार्यक्रम हआ और उससे अग्नि प्रज्ज्वलित की गई। विहिप ने इसे ‘राम ज्योति’ नाम दिया। इस ज्योति को गांव-गांव पहुंचाने के अभियान के सहारे विहिप ने लोगों को कारसेवा में हिस्सेदारी के लिए तैयार किया। तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने कारसेवा पर प्रतिबंध लगाने की घोषणा की। कहा, ‘अयोध्या में परिंदा भी पर नहीं मार पाएगा।’
25 सितंबर 1990 – भाजपा के तत्कालीन अध्यक्ष लालकृष्ण आडवाणी ने कारसेवा में हिस्सेदारी की घोषणा के साथ गुजरात के सोमनाथ से अयोध्या के लिए रथयात्रा शुरू की। पर, उन्हें बिहार के समस्तीपुर में तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू यादव ने गिरफ्तार कर लिया। भाजपा ने केंद्र सरकार से समर्थन वापस ले लिया।
30 अक्तूबर 1990 – अयोध्या में कारसेवक जन्मभूमि स्थल की ओर बढ़े। सुरक्षा बलों से भिड़ंत। अशोक सिंहल सहित कई कारसेवक घायल। कुछ कारसेवकों ने गुंबद पर पहुंचकर भगवा झंडा लगाया।
2 नवंबर 1990 – कारसेवकों के जन्मभूमि मंदिर कूच की घोषणा हुई। पुलिस ने गोली चलाई। कोठारी बंधुओं सहित कई कारसेवकों की मृत्यु। विरोध में जेल भरो आंदोलन।
4 अप्रैल 1991 – दिल्ली में मंदिर निर्माण को लेकर विराट हिंदू रैली। उसी दिन मुलायम सिंह यादव सरकार ने इस्तीफा दे दिया। चुनाव हुए और कल्याण सिंह के नेतृत्व में भाजपा की सरकार बनी।
अक्तूबर 1991 – कल्याण सिंह सरकार ने ढांचे और उसके आसपास की 2.77 एकड़ जमीन अपने अधिकार में ले ली। श्रीराम जन्मभूमि न्यास ने  श्री राम कथाकुंज के लिए भूमि की मांग की। कल्याण सिंह सरकार ने 42 एकड़ जमीन  श्रीराम  कथाकुंज के लिए न्यास को पट्टे पर दी।  इसके बाद न्यास ने वहां भूमि का समतलीकरण किया।
आंदोलन का फैसला
8 अप्रैल 1984 : वर्ष 1982 में विश्व हिंदू परिषद ने राम, कृष्ण और शिव के स्थलों पर मस्जिदों के निर्माण को साजिश करार दिया और इनकी मुक्ति के लिए अभियान चलाने का फैसला किया। फिर 8 अप्रैल 1984 को दिल्ली में संत-महात्माओं, हिंदू नेताओं ने अयोध्या के श्रीराम जन्मभूमि स्थल की मुक्ति और ताला खुलवाने को आंदोलन का फैसला किया।
1 फरवरी 1986 : फैजाबाद के जिला न्यायाधीश केएम पाण्डेय ने स्थानीय अधिवक्ता उमेश पाण्डेय की अर्जी पर इस स्थल का ताला खोलने का आदेश दे दिया। मुस्लिमों ने बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी का गठन किया। इस फैसले के खिलाफ इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ खंडपीठ में अपील खारिज हुई।
और हो गया शिलान्यास – जनवरी 1989 में प्रयाग में कुंभ मेले के अवसर पर मंदिर निर्माण के लिए गांव-गांव शिला पूजन कराने का फैसला हुआ। साथ ही  9 नवंबर 1989 को श्रीराम जन्मभूमि स्थल पर मंदिर के शिलान्यास की घोषणा की गई। काफी विवाद और खींचतान के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने शिलान्यास की इजाजत दे दी। बिहार निवासी अनुसूचित जाति के कामेश्वर चौपाल से शिलान्यास कराया गया।
6 दिसंबर 1992 अयोध्या पहुंचे हजारों कारसेवकों ने ढांचा गिरा दिया। इसकी जगह इसी दिन शाम को अस्थायी मंदिर बनाकर पूजा-अर्चना शुरू कर दी। केंद्र की तत्कालीन नरसिंह राव सरकार ने कल्याण सिंह सहित अन्य राज्यों की भाजपा सरकारों को भी बरखास्त कर दिया। उत्तर प्रदेश सहित देश में कई जगह सांप्रदायिक हिंसा हुई, जिसमें अनेक लोगों की मौत हो गई।
6 दिसंबर 1992 : अयोध्या श्रीराम जन्मभूमि थाना में ढांचा ध्वंस मामले में हजारों लोगों पर मुकदमा।
8 दिसंबर 1992 : अयोध्या मेें कर्फ्यू लगा था। वकील हरिशंकर जैन ने उच्च न्यायालय की लखनऊ खंडपीठ में गुहार लगाई कि भगवान भूखे हैं। राम भोग की अनुमति दी जाए।
16 दिसंबर 1992 : ढांचे ढहाने के लिए जिम्मेदार लोगों की पहचान के लिए लिब्राहन आयोग गठित किया। इसे 16 मार्च 1993 को रिपोर्ट सौंपनी थी।
महत्वपूर्ण तारीखें
1 जनवरी 1993: न्यायाधीश हरिनाथ तिलहरी ने दर्शन-पूजन की अनुमति दे दी।
7 जनवरी 1993 : केंद्र सरकार ने ढांचे वाले स्थान और कल्याण सिंह सरकार द्वारा न्यास को दी गई भूमि सहित यहां पर कुल 67 एकड़ भूमि का अधिग्रहण किया।
अप्रैल 2002: उच्च न्यायालय की लखनऊ खंडपीठ ने विवादित स्थल का मालिकाना हक तय करने के लिए सुनवाई शुरू की।
5 मार्च 2003: भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण को संबंधित स्थल पर खुदाई का निर्देश दिया।
22 अगस्त  2003 : भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने न्यायालय को रिपोर्ट सौंपी। इसमें संबंधित स्थल पर जमीन के नीचे एक विशाल हिंदू धार्मिक ढांचा (मंदिर) के होने  की बात कही गई।
5 जुलाई 2005: अयोध्या में विवादित स्थल पर छह आतंकियों के आत्मघाती आतंकी दस्ते का हमला। इसमें सभी मारे गए। तीन नागरिकों की भी मौत।
30 जून 2009: लिब्राहन आयोग ने तत्कालीन पीएम मनमोहन सिंह को रिपोर्ट सौंपी। आयोग का कार्यकाल 48 बार बढ़ाया गया।
30 सितंबर 2010 इस स्थल को तीनों पक्षों श्रीराम लला विराजमान, निर्मोही अखाड़ा और सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड में बराबर-बराबर बंाटने का आदेश दिया। न्यायाधीशों ने बीच वाले गुंबद के नीचे जहां मूर्तियां थीं, उसे जन्मस्थान माना।
21 मार्च 2017 : सर्वोच्च न्यायालय ने मध्यस्थता से मामले सुलझाने की पेशकश की। यह भी कहा कि दोनों पक्ष राजी हों तो वह भी इसके लिए तैयार है।
6 अगस्त 2019 : सर्वोच्च न्यायालय ने प्रतिदिन सुनवाई शुरू की।
16 अक्तूबर 2019: सुनवाई पूरी। फैसला सुरक्षित। 40 दिन चली सुनवाई।
9 नवंबर 2019: सर्वोच्च न्यायालय ने संबंधित स्थल को श्रीराम जन्मभूमि माना और 2.77 एकड़  भूमि रामलला के स्वामित्व की मानी । निर्मोही अखाड़ा और सुन्नी वक्फ बोर्ड के दावों को खारिज कर दिया। निर्देश दिया कि मंदिर निर्माण के लिए केंद्र सरकार तीन महीने में ट्रस्ट बनाए और ट्रस्ट निर्मोही अखाड़े के एक  प्रतिनिधि को शामिल करे। उत्तर प्रदेश की सरकार मुस्लिम पक्ष को वैकल्पिक रूप से मस्जिद बनाने के लिए 5 एकड़ भूमि किसी उपयुक्त स्थान पर उपलब्ध कराए ।
5 फरवरी 2020 : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अयोध्या में मंदिर निर्माण के लिए राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट की घोषणा की।
 5 अगस्त 2020 : श्रीराम जन्मभूमि मंदिर निर्माण के लिए भूमिपूजन।
आभामंडल में दशावतार, जानें रामलला की मूर्ति की विशेषताएं
रामलला की मूर्ति की बेहद खास तस्वीर सामने आई है। इस तस्वीर में उनके पूरे स्वरूप को देखा जा सकता है। तस्वीर में रामलला माथे पर तिलक लगाए बेहद सौम्य मुद्रा में दिख रहे हैं। हालांकि, रामलला की यह तस्वीर गर्भ गृह में लाने से पहले की है। अभी भगवान की आंखों में पट्टी बंधी हुई है। आइये जानते हैं रामलला की मूर्ति की सभी विशेषताएं…
मूर्ति करीब 200 किलोग्राम वजनी तो ऊंचाई 4.24 फीट
मूर्ति की विशेषताएं देखें तो इसमें कई तरह की खूबियां हैं। मूर्ति श्याम शिला से बनाई गई है जिसकी आयु हजारों साल होती है। मूर्ति को जल से कोई नुकसान नहीं होगा। चंदन, रोली आदि लगाने से भी मूर्ति पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। मूर्ति का वजन करीब 200 किलोग्राम है। इसकी कुल ऊंचाई 4.24 फीट, जबकि चौड़ाई तीन फीट है। कमल दल पर खड़ी मुद्रा में मूर्ति, हाथ में तीर और धनुष है। कृष्ण शैली में मूर्ति बनाई गई है।
मूर्ति के ऊपर स्वास्तिक, ॐ, चक्र, गदा, सूर्य भगवान विराजमान हैं। रामलला के चारों ओर आभामंडल है। श्रीराम की भुजाएं घुटनों तक लंबी हैं। मस्तक सुंदर, आंखें बड़ी और ललाट भव्य है। भगवान राम का दाहिना हाथ आशीर्वाद की मुद्रा में है। मूर्ति में भगवान विष्णु के 10 अवतार दिखाई दे रहे हैं। मूर्ति नीचे एक ओर भगवान राम के अनन्य भक्त हनुमान जी तो दूसरी ओर गरुड़ जी को उकेरा गया है। मूर्ति में पांच साल के बच्चे की बाल सुलभ कोमलता झलक रही है। मूर्ति को मूर्तिकार अरुण योगीराज ने बनाया है। श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र के अधिकारियों का कहना था कि जिस मूर्ति का चयन हुआ उसमें बालत्व, देवत्व और एक राजकुमार तीनों की छवि दिखाई दे रही है।अयोध्या के श्रीराम मंदिर में तीन मूर्तियों को स्थापित किया जाएगा, जिसमें से एक मूर्ति को गर्भगृह में स्थापित किया जाएगा। इनके बनने के बाद सबसे बड़ा सवाल तो यह था कि गर्भ गृह में किस रूप में राम लला विराजमान होंगे। मूर्तिकारों ने तीनों मूर्तियों को इतना सुंदर बनाया कि चयन करना कठिन हो रहा था कौन सी सुंदर है और कौन सी उतनी नहीं है। अंततः बाल रूप वाली मूर्ति को राम मंदिर के गर्भ गृह में विराजने का फैसला लिया गया।
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शुभजिता

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