Saturday, March 15, 2025
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दुप्पटा लें कुछ अलग अंदाज में

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चाहे वो शादी हो, डिनर पार्टी या फिर ऑफिस का एक आम दिन, आपके दुपट्टा पहनने का तरीका पूरी तरह से आपके लुक को बदल सकता है. क्लासिक्स से लेकर सीधे रैंप से लिए गए न्यू-एज स्टाइल्स तक, आपके पास हैं ढेर सारे तरीके अपने दुपट्टे को पहनने के। तो जरा आजमा कर देखिए दुप्पटे के अलग – अलग अंदाज –

सिंपल और बेसिक वी-स्टाइल

दुपट्टे को बीच से मोड़ें और मोड़ी ही जगह को अपने गले के बीच वाली जगह पर लाएं. दुपट्टे को दोनों हिस्से अपने दोनों कंधों के पीछे डाल लें और ये आप तय करें कि आपको इसका ‘वी’ वाला हिस्सा कितना गहरा चाहिए. आसान है!Screen-Shot-2015-12-28-at-7.49.12-pm

वी-स्टाइल को दें थोड़ा ट्विस्ट

पिछले वी-स्टाइल को थोड़ा ट्विस्ट देते हुए, किसी भी एक खुले सिरे को क तरफ से आगे की ओर ले आएं जिससे एक Y बन जाए!

 वन-शोल्डर क्लीन ड्रेप

दुपट्टे को आधा मोड़ें और उसके मोड़ को अपने एक कंधे पर पिन कर लें. ये स्टाइल इससे आसान नहीं हो सकता. ये सबसे आसान तरीका है अपनी सेक्सी कॉलर बोन्स को फ्लॉन्ट करने का!

 कलाई पर बंधा हुआ वन-शोल्डर ड्रेप

पिछली स्टाइल की तरह ही दुपट्टे को ओढ़ें, बस पीछे वाले सिरे को थोड़ा लंबा रखें. अब अपने दूसरे हाथ से दुपट्टे को लंबे हिस्से को अपने हिप के ऊपर से लाते हुए से अपनी कलाई पर बांधे. आप से अपनी चूड़ी पर भी फंसा सकती हैं.

 कलाई पर रखा हुआ वन-शोल्डर ड्रेप

ये स्टाइल बेहद ग्रेसफुल है और हमारा पसंदीदा भी. पुराने स्टाइल को ही फॉलो करें और एक सिरे को कलाई पर बांधने की जगह इसे कलाई पर एक बार घुमाकर ऐसे ही थोड़ा सा लटकना दें.

 बेल्ट के साथ

बेल्ट्स पहले से ही इंडियन फैशन सीन में अपनी मौजूदगी दर्ज करा रहे हैं. जाने-माने डिज़ाइनर Tarun Tahiliani बेल्टेड साड़ियां और लहंगे पेश कर चुके हैं. तो हम सलाह देंगे कि आप बेल्टेड दुपट्टा लुक किसी भी चीज़ से के साथ ट्राय करें, जो आपको पसंद हो. पायल सिंघल के इस आउटफिट की तरह आप भी इसे धोती पैंट्स और ट्यूनिक्स के साथ ट्राय कर सकती हैं.duppata 4

 दुपट्टा बने साड़ी

एक और आसान लुक है लहंगा साड़ी का. दुपट्टे के एक सिरे को अपने लहंगे के एक तरफ कमर पर खोंसे र दूसरे हिस्से को हिप के ऊपर से आगे लाते हुए कंधे पर डालें. और आप तैयार हैं! आप इसे और ज़्यादा साड़ी का लुक दे सकती हैं दुपट्टे में साड़ी की तरह प्लीट्स बनाकर, साड़ी की तरह ड्रेप करके पिन कर सकती हैं।duppata with belt

 गले के पीछे से आगे को किया गया ड्रेप

आखिर में आप इसे गर्दन के पीछे की तरफ से आगे की तरफ ला सकती हैं. इसमें थोड़ा ड्रामा डालें, अपने गले पर पहनकर और एक छोर को कलाई पर घुमाकर दूसरे हिस्से को ऐसे ही छोड़ दें।

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सशक्तिकरण की राह तो हमारे घर से ही निकलती है

महिला सशक्तिकरण की बातें यूँ तो साल भर चलती रहती हैं मगर मार्च आते ही इसमें अनायास तेजी आ जाती है। साल में एक दिन महिलाओं के सम्मान को लेकर बड़े – बड़े दावे और बड़ी – बड़ी बातें की जाती हैं और 8 मार्च बीतते ही एक बार फिर घड़ी की सुई पुराने समय पर लौट आती है। समय बदला है और महिलाओं की स्थिति भी बदली है मगर क्या जमीनी हकीकत बदली है? यह सच है कि महिलाएं आगे बढ़ रही हैं और आवाज भी उठा रही हैं और बढ़ती चुनौतियों या यूँ कहें कि बढ़ते महिला अपराधों का एक बड़ा कारण यह है कि अब पितृसत्तात्मक व्यवस्था को बड़ी चुनौती मिल ही है। दिल्ली का निर्भया कांड हो या पार्क स्ट्रीट का सुजैट जॉर्डन कांड, अभियुक्त इन दोनों महिलाओं को सबक सिखाना चाहते थे। आज भी फतवे, पाबंदी और नसीहतों के साथ बयानबाजी सब महिलाओं के हिस्से आ रही है। महिलाओं को लेकर सोच आज भी नहीं बदली है। आज भी दोहरी मानसिकता महिलाएं हो रही हैं। एक ओर उनको परदे पर सराहा जाता है, इंटरनेट पर खोजा जाता है तो दूसरी ओर उनको अछूत मानकर लोग किनारा भी करते हैं। जाट आरक्षण के नाम पर आंदोलन में महिलाओं को शिकार बनाया जाता है तो दूसरी ओर विश्वविद्यालयों में आजादी के नाम पर महिलाओं की गरिमा को ताक पर रखने का काम भी खुद महिलाएं ही कर रही हैं और इन सब के बीच जो पिस रही है, वह एक आम औरत है। वह आज भी अपनी रोजमर्रा की जिंदगी में ये सारे संघर्ष उठा रही है। यह सही है कि जब कुछ टूटता है तो प्रतिक्रिया होती है और इन अपराधों के पीछे महिलाओं की खामोशी का टूटना है। यह तस्वीर का एक पहलू है मगर स्वाधीनता, अधिकार और अभिव्यक्ति के नाम पर कहीं न कहीं रास्ते भटक रहे हैं और महिलाएं खुद आम महिलाओं की राह में मुश्किलें ला रही हैं। ऐसे में हमारी कठिनाइयों के लिए सिर्फ पुरुष नहीं, कहीं न कहीं हम भी जिम्मेदार हैं क्योंकि एक अदद पुरुष के लिए स्त्री के खिलाफ स्त्री ही खड़ी होती है और पुरुष की गलतियों को नजरअंदाज भी वही रिश्तों के नाम पर करती है। जरा सोचिए कि अगर बलात्कार, हत्या और ऐसे तमाम आरोपियों के घरों की स्त्रियाँ अगर इन अपराधियों का बहिष्कार करने लगे, पति की गलतियों को छुपाने की जगह पत्नी उसका साथ छोड़ दे और अपराध की राह पर चलने वाले या लड़कियाँ छेड़ने वाले भाई को माँ और बहन ही छोड़ दे तो क्या अपराधियों का मनोबल बचेगा? फिर भी ऐसा होता नहीं है। रिश्वत की कमाई से किटी पार्टी करने वाली और घरेलू सहायिकाओं के खिलाफ ज्यादती करने वाली, धारा 498 का दुरुपयोग कर एक आम औरत की लड़ाई को मुश्किल बनाने वाली भी औरतें ही हैं। यह सही है कि महिला सशक्तिकरण जरूरी है मगर क्या एक पहिए को ऊपर उठाने के लिए दूसरे पहिए को जमीन में गाड़ना क्या समस्या का समाधान है? क्या यह गलती को दोहराना नहीं है? प्रतिशोध से विनाश हो सकता है मगर सृजन और परिवर्तन करने के लिए संतुलन होना जरूरी है। जो गलत है, उसे छोड़िए और इसके लिए एक औरत बनकर सोचने की जरूरत है, रिश्ते उसके बाद में आते हैं। निश्चित रूप से हमें अपना अधिकार चाहिए मगर उसके लिए शुरुआत घरों से करनी होगी, जिस दिन हर घर का बेटा महिलाओं का सम्मान करना सीखेगा, उस दिन से अपराध भी अपने – आप कम होंगे और यह काम कोई और नहीं हमें और आपको करना होगा। अपराजिता की ओर से सभी को महिला दिवस और फाल्गुन की होली की हार्दिक शुभकामनाएं।

प्राणशक्ति की वैज्ञानिक समझ

डॉ. राखी राय हल्दरrakhi di

 

नए नए विकल्पों के भंडार खोलते बाज़ार में इच्छाओं को थामे आज इंसान अनजानी मंज़िल की ओर बेलगाम दौड़  रहा है। इच्छाएं मन में पनपती हैं। मन, जिसे चंचल, हठीला कहा जाता है, जब खुश होता है तो सिर से लेकर पैर तक खुशी की लहर दौड़ा देता है। भयभीत हो तो सीने में कंपकपी भर देता है। अगर उदास हो तो सीने में कहीं पाताल में धँसते जाने का एहसास भर देता है। जो मन सिर से लेकर पैर तक हलचल पैदा करने की ताकत रखता है उसकी स्थिति आखिर है कहाँ?

शास्त्रों में इंसान के शरीर के पाँच स्तर माने गए हैं। इन स्तरों को कोश कहा गया है। अन्नमय कोश भौतिक शरीर है जिसे हम देख पाते हैं। प्राणमय कोश चेतना का कोश है। अन्नमय और प्राणमय कोश के बीच आत्मा की नगरी मानी जाती है। मनोमय कोश हमारे आवेगों और संवेगों का वाहक कोश है। विचारधारा के निर्माण में यह कोश खास भूमिका निभाता है। विज्ञानमय कोश को अंतःप्रज्ञा कहा जाता है। शास्त्रों के अनुसार यह कोश सृष्टि के रहस्य की अनुभूति सहज ज्ञान द्वारा कराती है। आज के युग में इन्सानों के विज्ञानमय कोश की भूमिका पर अगर नज़र डालें तो दिखता है कि आज सृष्टि के रहस्य को समझने की श्रद्धापूर्ण चाह से ज्यादा आविष्कार का घमंड और रहस्य को जानकर शक्ति केंद्रों के शोषण से लाभ कमाने की चाह इन्सानों पर हावी है। आनंदमय कोश परम चैतन्य की आध्यात्मिक अनुभूति का आधार स्थल होने के कारण साधु संतों की चर्चा का विषय रहा है। मनोमय और विज्ञानमय कोश मिलकर सूक्ष्म शरीर का निर्माण करते हैं।

प्राणमय कोश मे प्राण प्रकाश रूप में रहता है। प्रत्येक व्यक्ति के शरीर से प्रकाश की किरणें निकलती हैं। इसे औरा कहते हैं। शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक स्वास्थ्य पर इस आभा का तेज निर्भर करता है। इसे वैज्ञानिक शब्दावली में बायो प्लाज़्मिक रेज़ कहते हैं। किर्लियन फोटोग्राफी से यह पकड़ में आती है। 1939 में रूसी गवेषक साइमन किर्लियन ने इसका आविष्कार किया था। जड़ एवं चेतन पदार्थ से निकलने वाली अलग अलग रंगों की किरणें पहली बार इसी फोटोग्राफी से पकड़ में आई। इंसान की सोच और मानसिकता पर शरीर से निकलने वाली किरणों का रंग निर्भर करता है। पीले या सुनहरे रंग की किरणें जो अक्सर देवी – देवताओं के चित्रों में मुखमंडल को घेरे रहती है वही आदर्श औरा की स्थिति है। सूक्ष्म दृष्टि के बगैर खुली आँखों से औरा को देख पाना संभव नहीं हो पाता। आज किर्लियन फोटोग्राफी द्वारा इसे देखना संभव है।

दृश्य जगत के प्रति इंसान की धारणा उसके ज्ञानेन्द्रियों के सहारे तैयार होती है। लेकिन उसकी छोटी बड़ी धारणाओं से विकसित उसकी सोच का असर उसकी औरा पर पड़ता है। आजकल कठिन रोगों की चिकित्सा के लिए किर्लियन फोटोग्राफी से औरा का चित्र खींचकर उसके भंग होने की जगह के सहारे भी बीमारी के उत्स को समझने की कोशिश होने लगी है। एक बड़ी विडंबना यह है कि आम तौर पर समाज में यही बात प्रचलित है कि औरा सिर्फ देवी देवताओं के चित्रों में दिखने वाला काल्पनिक प्रकाश पुंज है। विश्व ने यकीनन वैज्ञानिक स्तर पर उन्नति की है लेकिन व्यक्ति के शरीर और आत्मतत्व की जो बातें ऋषि मुनियों के विचारों की तिजोरी में बंद पड़ी हैं उनपर कायदे से अनुसंधान आज तक नहीं हो पाया।

औरा को दृढ़ बनाने का सवाल दरअसल सार्थक व्यक्तित्व के गठन के सवाल से जुड़ा है। इसी संदर्भ में हठयोग में सात चक्रों का जिक्र मिलता है। सूक्ष्म शरीर में स्थित सात चक्र प्राणशक्ति के चेतना केंद्र माने जाते हैं। हिन्दी साहित्य के पाठ्यक्रम में नाथ संप्रदाय एवं कबीर के प्रसंग में हठयोग की बात आती है। लेकिन अक्सर इस प्रसंग को सतही तैर पर बताकर ही आगे बढ़ जाने का रिवाज शिक्षा क्षेत्र में प्रचलित है। हालांकि यह एक ऐसा प्रसंग है जिससे  ‘जो ये पिंडे सोई ब्रहमंडे’ की बात चरितार्थ होती है। सात चक्रों के बैंगनी, गहरा नीला, आसमानी, हरा , पीला ,नारंगी , लाल रंग आसमान के इंद्रधनुष में दिखने वाले सात रंग ही हैं। इंद्रधनुष जैसे आसमान की शोभा बढ़ता है ठीक उसी तरह ध्यान या साधना से पुष्ट सात चक्र व्यक्तित्व को दृढ़ता और सौंदर्य से भरता है।

माथे के सर्वोच्च स्थल पर सहस्रार चक्र है। दो भौहों के बीच में जहां देवी देवताओं के चित्रों में तीसरे नेत्र की स्थिति मानी गई है उसके पीछे आज्ञा चक्र की स्थिति है। गौर करने लायक बात यह है कि प्राणी विज्ञान के हिसाब से यहीं भौतिक शरीर में ‘पिट्यूटरी ग्रंथि’ है जिसे शरीर को नियंत्रित करने वाली प्रमुख ग्रंथि कहते हैं। कंठ के पीछे मेरुदंड पर विशुद्धि चक्र है। हृदय के पीछे मेरुदंड पर अनाहद चक्र की स्थिति है। योगियों ने गहरे ध्यान की अवस्था में यहीं अनाहद नाद के गूंजने की बात की है। मणिपुर चक्र का स्थान मेरुदंड पर नाभी से ऊपर है। मणिपुर अर्थात रत्न की नगरी। इस चक्र को ‘प्राणशक्ति का मोटर’ भी कहते है। यही विवेक के विकास का केंद्र माना जाता है। अधिष्ठान चक्र की स्थिति जंघास्थियों के समांतर मेरुदंड पर है। इस चक्र में आत्म तत्व के संस्कार और स्मृतियाँ एकत्रित रहती हैं। इसलिए इसे अधिष्ठान चक्र कहते हैं। अर्थात ‘स्व के अधिष्ठान का स्थल’ । मूलाधार चक्र सूक्ष्म और स्थूल दोनों शक्तियों का मूल केंद्र है। यहीं कुंडलिनी का निवास माना जाता है। इसी कुंडलिनी जागरण का प्रसंग हठयोगियों में पाया जाता है। दरअसल सूक्ष्म शरीर में जहां चक्रों की स्थिति मानी गई है वहीं भौतिक शरीर की ग्रंथियां भी मौजूद है। चक्रों का प्रभाव ग्रंथियों पर पड़ता है और ग्रंथियों से हॉरमोन निकलकर रक्त में घुलमिल जाते हैं। हॉरमोन से स्वास्थ्य के संबंध की बात एक प्रमाणित सत्य है।हालांकि हठयोग की राह लेना आम लोगों के लिए संभव नहीं, पर प्राणशक्ति को सतेज करने वाले केन्द्रों की समझ और इन केन्द्रों को सुदृढ़ करने की सहज राह पर सोच विचार से सांस्कृतिक विकास के नए आयाम खुलने की संभावनाएं अवश्य बढ़ जाती है। लंबे समय से बुद्धिवाद के सहारे बाजारवाद पर हमला करने में इतनी ऊर्जा व्यय हुई है कि साहित्यिक एवं वैज्ञानिक स्तर पर प्राणशक्ति से संबन्धित बातों को समझकर शारीरिक और मानसिक दृष्टि से स्वस्थ जीवन जीने की सहज राह खोजने की बात पर ध्यान केन्द्रित ही नहीं हो पाया। साहित्य की बौद्धिक और तार्किक बात आम आदमी को न छू पाई। जनमानस बाजारवाद से प्रभावित विज्ञापनों की धुरी पर ही घूमता रहा। आम आदमी के लिए शरीर की समझ केवल डॉक्टरों की जरूरत की विषय वस्तु बनकर रह गयी।

इंसान के शरीर के अंगों का विवरण आज जीवविज्ञान की मामूली से मामूली किताबों में मिल जाता है। लेकिन इस शरीर को चलाने वाली प्राणशक्ति , प्राणशक्ति और सूक्ष्म शरीर के संबंध की बात, सूक्ष्म शरीर में स्थित चक्रों के पोषण से प्राणशक्ति के पोषण की बात शिक्षा के पाठ्यक्रम में नहीं मिलती। आज नैतिक शिक्षा (वैल्यू एडुकेशन) कई शिक्षण संस्थानों में विषय के रूप में पढ़ाया जाता है लेकिन व्यक्ति की आत्म सत्ता को पहचानने की प्रेरणा दिये बगैर और प्राणशक्ति के पोषण की प्रचलित राहों की उपेक्षा करके ऊपर से नैतिक शिक्षा के आरोपण की कोशिश गलत है।

भौतिक विज्ञान से संबन्धित क्वांटम सिद्धांत आज निर्णय लेने की प्रक्रिया में क्वांटम की भूमिका की बात कर रहा है। एक व्यक्ति में निर्णय लेने के पहले कई विकल्प सूझना दरअसल आत्मशक्ति का बिखराव है। इस शक्ति का  एक बिन्दु पर केन्द्रित होना जरूरी है। तभी व्यक्तित्व में दृढ़ता आ पाएगी । ध्यान  के जरिये इस शक्ति को ही एक बिन्दु पर केन्द्रित करने की कोशिश की जाती है। गौर करें कि आज मेडिटेशन की विद्या को भी बाज़ार की  शर्तों पर बेचा जा रहा है।  बात साफ है कि बाजारवाद प्राणशक्ति को बचाने की राह पर भी जाल बिछा चुका है।

ब्रह्मांड के समस्त पदार्थ की तरह ही इंसान का शरीर भी परमाणु से बना है। इस लिहाज से देखें तो शिक्षण संस्थानों में विषयों को पढ़ाने का एक बड़ा उद्देश्य दृश्य जगत के जड़ और चेतन के बीच साम्य को महसूस करने के साथ साथ इंसान की विलक्षण शक्तियों का एहसास दिलाना होना चाहिए। इस उद्देश्य से शिक्षा ग्रहण करते हुए जीवन और समाज को समृद्ध करने का संकल्प रखना जरूरी है। शिक्षा का लक्ष्य आज सूचनाएँ देने तक ही सिमट कर रह गया है। शिक्षा से आत्मिक विकास और आत्म विस्तार का प्रश्न आज उपेक्षित है। निश्चित रूप से वर्तमान शिक्षा व्यवस्था की गाड़ी जिस राह पर चल रही है उससे आत्मविस्तार के लिए शिक्षा की राह काफी अलग है। विद्यार्थियों में अलग अलग विषयों की सार्थक समझ पैदा करने के लिए पाठ्यक्रम के पुनर्गठन पर लगातार कार्यशालाओं के जरिए विचार विमर्श करना जरूरी है। वरना शिक्षण संस्थान पीढ़ी दर पीढ़ी बाज़ार के शर्त पर विद्यार्थियों को मार्केट के प्रॉडक्ट के रूप में तैयार करती रहेगी। इसके साथ समाज में संवेदनहीनता का जहर भरता जाएगा।

जापान, कोरिया जैसे देशों में शिक्षा क्षेत्रों में रोबोट प्रयोग में लाये जाने लगे हैं। शिक्षा का उद्देश्य अगर सूचना देना हो और उसमे आत्मविस्तार की गुंजाइश न हो तो शिक्षा कार्य के लिए कालांतर में रोबोट की नियुक्ति  होना अस्वाभाविक बात नहीं है। शिक्षा भावी पीढ़ी को आकार देती है। रोबोट के हाथों बनी भावी पीढ़ी कितनी संवेदनहीन होगी और इसके प्रभाव से समाज कैसा बनेगा इस बात पर कायदे से विचार करना जरूरी है।

(लेखिका लोरेटो कॉलेज, कोलकाता में असिस्टेंट  प्रोफेसर तथा सोदपुर सोलीडरिटी सोसाइटी की सचिव हैं)

 

दवा कैबिनेट को दें नया रूप

पुरानी दवाओं, खत्म होते बैंडेज के बॉक्सेस और दवाओं के ट्यूब को मैनेज करना तो आसान है लेकिन दवाओं का अप-टू-डेट कैबिनेट बनाने के लिए उन दवाओं को सही रूप में ऑर्गेनाइज करना भी जरूरी है। इससे आप बीमारी के हिसाब से दवाएं तुरंत निकाल पाएंगे और कब क्या परेशानी हो जाए इसके बारे में अंदाजा लगाना भी तो कठिन होता है। आइए करते हैं दवाओं के इस कैबिनेट का मेकओवर :

ओरल केयर शेल्फ

अपने दांतों और मसूड़ों को टूथपेस्ट और डेंटल फ्लॉस के जरिए स्वस्थ और साफ रखें। कैविटी से बचाव के लिए ऐसे पेस्ट का चुनाव करें, जिसमें फ्लोराइड हो। इस प्रकार का टूथपेस्ट इस्तेमाल करने की सलाह इसलिए दी जाती है ताकि दांतों को कमजोर होने से बचाया जा सके। कई लोगों को फ्लोराइड के नुकसान को लेकर चिंता होती है लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि इस केमिकल की अत्यधिक मात्रा पेट में चले जाने के बाद ही वह टॉक्सिक हो सकता है।

हर एक से तीन महीने के अंदर ब्रश को बदलें, जब ब्रश के ब्रिसेल्स खराब नजर आने लगें। खासतौर से जब आप बीमार होने की स्थिति में अपना ब्रश इस्तेमाल करते हैं तो बैक्टीरिया उसमें जम जाते हैं और स्वस्थ होने पर दोबारा आपको संक्रमित कर सकते हैं।

इस तरह बनाए अलग-अलग शेल्फ

फर्स्ट एड शेल्फ

विभिन्‍न प्रकार के पेनकिलर्स फर्स्ट एड बॉक्स या शेल्‍फ में रखें। बुखार और दर्द के लिए दवा जरूर रखें, जिसमें आइब्रूफेन सूजन को कम करने में भी मददगार होगी। बैंडेज के भी पैकेट इस शेल्फ पर रखें और उनकी एक्सपायरी डेट का जरूर खयाल रखें। समय के साथ चिपकाने वाली पट्टी अपनी गुणवत्ता खोती जाती है और कुछ ब्रांड में पटि्टयों पर एंटीबायोटिक ऑइंटमेंट रहता है जोकि एक्सपायर हो जाता है। एक शोध में यह बात सामने आई है कि फर्स्ट एड बॉक्स में रखा जाने वाला हाइड्रोजन पैराऑक्साइड का प्रयोग कभी भी कटने-छिलने पर नहीं करना चाहिए, इससे जख्म को ठीक होने में वक्त लगता है।

कोल्ड एंड एलर्जी शेल्फ

मौसम बदलने के साथ ही कोल्ड एवं एलर्जी की शिकायत होती रहती है इसके लिए पहले से ही तैयारी कर लेना बेहतर होता है। वेपॉराइजर और सलाइन या डिकंजेस्टेंट नेजल स्प्रे कोल्ड एंड एलर्जी शेल्फ पर रखें। कोल्ड की समस्या में प्रयोग की जाने वाली दवाएं खांसी में आराम पहुंचाती है, गले की सूजन और दर्द को कम करता है। कोल्ड और इन्फ्लूएंजा की स्थिति में बुखार एक आम समस्या होती है ऐसे में सही-सही तापमान का पता लगाने के लिए डिजिटज थर्मोमीटर का होना जरूरी है।

पुराने प्रकार के ग्लास थर्मोमीटर, जिसके टूटने पर खतरनाक मरक्यूरी लीक हो सकती है ऐसे में डिजिटल थर्मोमीटर अधिक तेज और सुरक्षित होते हैं। कुछ आम प्रकार की मौसमी एलर्जी को दूर करने के लिए एंटीहिस्टामाइंस इस शेल्फ पर होना जरूरी है।

 

किसान पिता के पास पैसा नहीं, गांव की 30 युवतियों ने किया शादी से इन्‍कार

(काल्पनिक चित्र)

बीड़। महाराष्‍ट्र में सूख प्रभावित किसानों की हालत खराब है। राज्‍य के लगभग 15 हजार गांवों को सूखा प्रभावित घोषित कर दिया गया है। हालांकि, सरकार ने किसानों की मदद के लिए हाथ बढ़ाया है लेकिन यह भी नाकाफी है। किसानों के इस बुरी हालत के चलते अब उनकी बेटियों ने शादी से इन्‍कार कर दिया है।

खबरों के अनुसार महाराष्‍ट्र के बीड़ जिले में रहने वाले किसानों की बेटियों ने अगले एक साल तक शादी ना करने का निर्णय लिया है। जानकारी के अनुसार बीड़ के मजालगांव में गांव की ही 25-30 युवतियों ने फैसला किया है कि पिता की तंग आर्थिक हालत के चलते वो शादी नहीं करेंगी।

इनमें से एक युवती सविता के अनुसार यह इलाका पिछले 2-3 सालों से सूखा ग्रस्‍त है और मेरे पिता साल में मुश्किल से तीस हजार रुपये तक कमा पाते हैं ऐसे में शादी कैसे हो पाएगी। एक अन्‍य युवती सरिता के अनुसार गांव में लगभग 30 लड़कियों है और हम सब ने निर्णय लिया है कि हम शादी नहीं करेंगे।

हम चाहते हैं सरकार हमारी मदद करे। मालूम हो कि सरकार ने इन किसानों की मदद के लिए हाथ बढ़ाया है लेकिन फिर भी इनकी हालत खराब ही है।

निष्ठुर कौन?

– डॉ. ब्रज भूषण सिंह

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पौष की रात थी

ओस और कुहासे के अँधेरे में

थका हुआ मैं चला जा रहा था

फुटपाथ पर, अचानक

एक आलीशान गाड़ी पास से गुजरी

बैठी थी एक सुन्दर नारी

चुम्बन कर पुचकार रही थी

गोद में बैठे स्वान को

सोचा, मैंने – नारी हृदय कितना कोमल!

आगे, एक बालक को देख

हो गया मैं भौचक्का

अर्द्धनग्न बालक।

काँप रहा था ठंड में

भूखा –प्यासा, वह माँग रहा था रोटी

फटकार रही थी सुन्दर नारी

बिलख – बिलख कर रो रहा था

मासूम वह बालक।

टक – टक देख रहा था,

उस स्वान को

जो खा रहा था जलेबी – रोटी

सोचा मैंने – नारी हृदय है निष्ठुर?

या मानव जाति ही निष्ठुर?

(कवि एनसीसी (पश्चिम बंगाल तथा सिक्किम) डायरेक्टरेट के जनसम्पर्क अधिकारी व प्रख्यात हिन्दी माध्यम स्कूल के हेडमास्टर हैं।

जब प्रधानमंत्री ने छुए बकरियाँ बेचकर टॉयलेट बनवाने वाली महिला के पैर

रायपुर. राजनांदगांव के कुर्रूभाठ गांव में रविवार को आयोजित सभा में पीएम मोदी ने 104 साल की कुंवर बाई के पांव छूकर आशीर्वाद लिया। कुंवर ने पीएम के स्वच्छता मिशन से प्रेरित होकर बकरियां बेचकर शौचालय बनवाया था। पीएम नें मंच पर उन्हें सम्मानित किया और मंच पर मिनटों तक उनकी तारीफ करते रहे। कुंवर के बारे में पीएम ने क्या कहा…

– मोदी ने जनसभा में कुंवर बाई का जिक्र करते हुए कहा, “यहां 104 वर्ष की मां कुंवर बाई आशीर्वाद पाने का सौभाग्य मिला।”

– जो लोग अपने आप को नौजवान मानते हैं, वे तय करें कि उनकी सोच भी जवान है क्या ?

– एक सौ चार वर्ष की मां कुंवर बाई न टीवी देखती हैं और न ही पढ़ी-लिखी हैं, लेकिन उन्हें पता चला के देश के प्रधानमंत्री लोगों को घरों में शौचालय बनवाने के लिए कहते हैं।

– उन्होंने बकरी पालन की राशि से अपने घर में शौचालय बनवाया और गांव वालों को भी शौचालय बनाने के लिए मजबूर किया।

– कुंवर बाई जैसी बुजुर्ग महिला का यह विचार पूरे देश में तेजी से आ रहे बदलाव का प्रतीक है। मैं उन्हें प्रणाम करता हूं।

– मोदी ने मीडिया से आव्हान किया कि वे भले ही उनका भाषण न दिखाए, लेकिन कुंवर बाई के इस प्रेरणादायक कार्य को जरूर जन-जन तक पहुंचाएं।

स्वच्छता छोटी बात नहीं

– मोदी ने दो आदिवासी बहुल विकासखंडों-अम्बागढ़ चौकी और छुरिया को खुले में शौच मुक्त विकासखंड घोषित करते हुए दोनों विकासखंडों के निवासियों को बधाई दी।

– पीएम ने कहा कि इन विकासखंडों के सेवा भावी नौजवानों, माताओं, बहनों ने काम कर दिखाया है, जो सामाजिक जागरूकता का परिचायक है।

– “स्वच्छता छोटी बात नहीं है। शैचाालयों का निर्माण बीमारियों से मुक्ति के लिए जरूरी है, स्वच्छता के लिए जरूरी है, स्वच्छ भारत के लिए जरूरी है।”

– “देश को खुले में शौच की सदियों पुरानी आदत से मुक्ति की जरूरत है।”

– “हमारी माताओं और बहनों का सबसे बड़ा सम्मान यही होगा कि उन्हें हम शौचालय बनवाकर दें।”

पढ़िए, कुंवर की कहानी उन्हीं की जुबानी…

– हम जहां रहते हैं, वहां आप लोग आएंगे, तो देखेंगे कि जिंदगी कितनी मुश्किल है। गंगरेल के बीच टापू की तरह है हमारा बरारी गांव। एक बारिश हो, तो जिंदगी दुनिया से कट गई सी लगती है।

– पचास साल हो गए मुझे यहां रहते। हम लोगों ने कभी टॉयलेट की जरूरत तो महसूस नहीं की, लेकिन जब घर में बहुएं आईं तो ठीक नहीं लगा। घर के पैसे की जरूरत बकरियों से पूरी होती है। मेरे पास आठ-दस बकरियां थीं।

– बहुओं, पोतियों और नातिनों को अच्छी जिंदगी और अच्छी सेहत देने बकरियां बेच दीं। उससे मिले 22 हजार रुपयों से दो टॉयलेट बनाए। जब कोई घर में आता, तो उन्हें बताती। देखो, मेरे घर के लोग अब बाहर नहीं जाते, तुम भी बनवाओ।

– सब लोग पैसों से काबिल नहीं थे, इसलिए टॉयलेट बनाने दूसरों की जो मदद हो सकी, वो भी की। अब हमारे गांव में हर घर में टॉयलेट है।

 

आसन पर बैठकर इसलिए करते हैं धार्मिक कार्य

हम सभी अमूमन धार्मिक कार्य पूजा, हवन, साधना करते समय आसन पर बैठते हैं लेकिन क्यों ? इसके पीछे वैज्ञानिक और धार्मिक मत दोनों ही हैं। दरअसल आसन पर बैठकर कर्मकांड करने से जहां व्यक्ति के मन में सात्विक विचार उत्पन्न होते हैं तो वहीं आत्मिक शुद्धता मिलती है। यह पूरी तरह से प्राकृतिक प्रक्रिया है। जो सेहत के लिए भी बेहतर मानी गई है।

जब भी हम आसन पर किसी भी धार्मिक कार्य करने या सामान्य रूप से बैठते हैं तो यह प्रक्रिया हमारे शिष्ठाचार और अनुशासन को इंगित करती है। आसन स्वयं में एक योग है। ऐसा करने से शरीर में स्थित विकार काफी हद तक नष्ट हो जाते हैं।

ब्रह्मांड पुराण के तंत्रसार में उल्लेख है कि, धार्मिक कर्मकांड करते समय यदि जमीन पर बैठते हैं तो मनुष्य का दुःख बढ़ जाता है, यदि पत्थर पर बैठते हैं तो रोग हो जाता है। अगर पत्तों पर बैठते हैं तो चित्त भ्रम की स्थिति में पहुंच जाता है। यदि लकड़ी पर बैठते हैं तो घर में दुर्भाग्य का आगमन होता है। घांस पर बैठकर धार्मिक कर्मकांड करना भी मना है ऐसा करने पर घर में अपयश आता है। इसलिए हमेशा कर्मकांड या कोई भी धार्मिक कार्य करते समय आसन पर बैठकर ही पूजा करनी चाहिए।

प्राचीन काल में ऋषि-मुनि, साधू-संत और तपस्वी जब किसी कार्य की सिद्धि के लिए प्रयत्न करते थे तो मृगछाल( हिरण की खाल), गोबर का चोक, वाघ या चीता की खाल, लाल कंबल का प्रयोग किया करते थे। इस बात के प्रमाण हमारे धर्मग्रंथों में मिलता है।

वर्तमान समय में गोबर के चोक में बैठकर पूजा आदि करने का प्रचलन ग्रामीण अंचलों में है। आसन पर बैठकर पूजा करने से आपकी आध्यात्मिक शक्ति बढ़ती है।

वैज्ञानिक दृष्टि में भी आसन उतना ही महत्वपूर्ण है। आसन पर बैठने से आपके चेहरे की लालिमा बड़ती है। आसन कुचालक( जो विद्युत को समाहित न करे) होना चाहिए। यदि आप प्रतिदिन आसन पर बैठकर पूजा करते हैं तो आपके चेहरे में आध्यात्मिक शक्तियों का समावेश होता है। आपकी आंखे बेहतर रहती हैं।

 

अब एयर होस्टेस की तरह ट्रेन में भी होस्टेस, गुलाबों से करेंगी स्वागत

नई दिल्ली: कल्पना कीजिए कि आप किसी ऐसी ट्रेन में सफर कर रहे हों, जहां धीमे संगीत के बीच कोई होस्टेस आपको गुलाब का फूल दे। यह कल्पना अब सच्चाई में बदलने जा रही है, क्योंकि रेलवे ने जल्द शुरू की जाने वाली दिल्ली-आगरा गतिमान एक्सप्रेस सेवा में ट्रेन होस्टेस तैनात करने का फैसला किया है। यह ट्रेन 160 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से चलने वाली पहली ट्रेन होगी। ट्रेन में एक उच्च क्षमता वाली आपातकालीन ब्रेक प्रणाली, स्वचालित फायर अलार्म, जीपीएस आधारित यात्री सूचना प्रणाली और डिब्बों में स्लाइडिंग दरवाजे होंगे।train hostes

साथ ही उसमें लाइव टीवी सेवा भी मौजूद होगी। रेल मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि हम उड़ान सेवाओं की तर्ज पर गतिमान एक्सप्रेस में सर्वश्रेष्ठ संभव सेवाएं मुहैया कराने की कोशिश कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि उड़ानों की तरह ट्रेन में होस्टेस होंगी और उनमें कैटरिंग सेवा भी एयरलाइनों के स्तर की होगी। भारतीय रेलवे कानपुर-दिल्ली, चंडीगढ़-दिल्ली, हैदराबाद-चेन्नई, नागपुर-बिलासपुर, गोवा-मुंबई और नागपुर-सिकंदराबाद सहित नौ और मार्गों पर इस तरह की ट्रेनें शुरू करेगा। रेलवे सूत्रों के अनुसार ट्रेन का किराया शताब्दी ट्रेनों के किराये से 25 प्रतिशत अधिक होगा। साथ ही इसमें बेहतर कैटरिंग सेवा भी होगी।

 

दामाद और ससुर का रिश्ता हो प्यारा सा

घर का मुखिया होने के नाते पुरुषों के मन में सदैव अहं का भाव रहता है। यही भाव ससुर-दामाद के सम्माननीय और प्रेम से भरे रिश्ते के आड़े आकर सबकुछ तहस-नहस कर सकता है। लेकिन जिन परिवारों में बेटे नहीं होते वहां दामाद ही ससुर के बाद मुखिया माने जाते हैं और उन्हें ही सारी पारिवारिक जिम्मेदारियां वहन करनी होती हैं।

दामाद युवा इसलिए जिम्मेदारी ज्यादा

अच्छा दामाद बनने के लिए कोई हार्ड रूल्स एंड रेगुलेशन्स नहीं हैं। जब माता पिता बेटी के तौर पर आपको अपनी सबसे खास चीज सौंपते हैं तो यह आपका फर्ज है कि कुछ सामान्य बातों को अपनाकर उन्हें खुश होने के मौके दें। आपका थोड़ा सा प्रयास आपको भावी पीढ़ी के लिए रोल मॉडल बना सकता है।father-in-law-at-wedding

एक-दूसरे का सम्मान बेहद जरूरी

अधिकतर युवा अपने माता-पिता के लिए पत्नी से अपेक्षा रखते हैं कि वह उनके साथ भी वैसा ही व्यवहार करे, जैसा कि वह स्वयं के माता पिता के साथ करती है। इस हिसाब से एक दामाद को भी इसी धर्म का पालन करना चाहिए। यहां अंग्रेजी के “इन लॉ’ शब्द का परित्याग करें और माता-पिता व पुत्र का रिश्ता बनाएं। सम्मान एक पारस्परिक प्रक्रिया है। अपने सास ससुर को प्यार और सम्मान दें और निश्चित ही वे भी आपके साथ ऐसा ही व्यवहार करेंगे। जब भी कभी कठिन समय आता है तो बच्चे अपने माता पिता की जिम्मेदारी उठाते हैं। अत: अच्छा दामाद बनने के लिए इसी नियम को यहां भी अपनाएं। यदि आपको यह महसूस होता है कि उन्हें सहारे की आवश्यकता है तथा वे सही हैं तो उनके साथ खड़े रहें, भले ही दुनिया विरोध में हो।

प्यार जताना भी है जरूरी

जब तक भावनाएं व्यक्त न हों, महसूस नहीं की जा सकतीं। इसलिए प्रेम का प्रदर्शन बेहद जरूरी है। कुछ दिन उनके साथ रहकर वक्त बिताएं, छुट्टियों पर जाएं, उन्हें फोन करें तथा उन्हें उपहार दें। उन्हें ये सब अच्छा लगेगा तथा उन्हें इन सब बातों से खुशी मिलेगी जो उनके लिए जीवन की अन्य किसी भी खुशी से बढ़कर होगी। कोई आदान प्रदान न रखें पैसा और संपत्ति सभी संबंधों में झगड़े का मूल कारण होते हैं। अच्छा दामाद बनने का अगला सुझाव यही है कि इस बात को हर संबंधों पर लागू करें विशेष रूप से सास-ससुर के साथ। आपकी यह छोटी सी कोशिश आपके लिए हमेशा उनके मन में सम्मान और कृतज्ञता का भाव पैदा कर देगी। इस तरह से आप भी उनके ज्यादा करीब आ सकेंगे।

मर्यादा बनाए रखें

किसी भी रिश्ते को हेल्दी बनाए रखने के लिए हमेशा कुछ सीमाओं और मर्यादाओं का पालन करना जरूरी होता है। इस नाजुक रिश्ते में भी कुछ मर्यादाएं रखें

ससुर रखें इस बात का ध्यान

सामाजिक परिवर्तन एकाएक नहीं होते इसलिए दामाद के मन में पल रहे सम्मान के उस भाव का ख्याल रखें जिसके साथ वह युवा हुआ है।

बेटी और दामाद के बीच अगर किसी विषय काे लेकर मनमुटाव है तो उसे महज बेटी का पिता होने की नजर से न देखें। दोनों पक्षों को समझते हुए निराकरण कराएं।

दामाद का भी स्वयं का परिवार है, इसलिए रह- रहकर उसे अपनी समस्याओं में उलझाने से बचें।

घर के महत्वपूर्ण मसलों पर उसकी राय लें ताकि उसे अपनेपन और महत्ता का एहसास हो।