Monday, August 18, 2025
खबर एवं विज्ञापन हेतु सम्पर्क करें - [email protected]
Home Blog Page 117

भारतीय इतिहास का गौरव संरक्षित करने वाली ये माताएं

भारतीय इतिहास बलिदान और त्याग की गाथाओं से भरा पड़ा है। राष्ट्रहित के लिए ऐसी कितनी ही माताएं थी जिन्होंने जगत जननी ,हम सभी की माता, भारत माता के लिए अपने वंशजों की बलिदानी दे दी। साथ ही ऐसी भी माताएं रही जिन्होंने उस समय की विषम परिस्थितियों में अपनी परवरिश और उच्च स्तर की संस्कारवान नैतिक और मौलिक शिक्षा से सिंह के समान वीर वंशज दिए जिन्होंने अपनी विजयी पताकाओं से सम्पूर्ण भारत में परचम लहरा दिया और उनका स्मरण करके आज भी गर्व से मस्तक ऊंचा हो जाता है और स्वाभिमान से रीढ़ की हड्डी सीधी हो जाती है।

चलिए जानते हैं ऐसे ही कुछ मातृ चरित्रों के बारे में – 
जीजामाता 
जितना भारत में छत्रपति शिवाजी महाराज का आदर होता है, उतना ही उन्हें एक शिवाजी से हिन्दवी स्वराज की स्थापना करने वाले छत्रपति शिवाजी महाराज बनाने वाली जीजामाता का होता है। शिवाजी के साथ बचपन से ही परिस्थितियां प्रतिकूल रही। उन्हें अपने पिता का साया नहीं मिल पाया। उनके पिता बीजापुर दरबार में अपनी उपस्थिति देने के कारण अपने परिवार से दूर रहे। ऐसे में जीजामाता ने ही शिवाजी का माता और पिता दोनों के रूप में पालनपोषण किया। उन्हें बचपन से ही मातृभूमि से प्रेम करने, लोककल्याण की नीति अपनाने और स्वाधीनता प्राप्ति के लिए हिन्दवी स्वराज्य की स्थापना के संस्कार दिए। वह जीजामाता की ही शिक्षा और प्रोत्साहन था जिससे एक सोलह वर्ष के वीर बालक ने तोरणा दुर्ग विजयी किया और बाल्यकाल में ही शिवलिंग पर अपने अंगूठे से रक्त चढ़ाकर स्वाधीनता और हिन्दवी स्वराज्य का संकल्प लिया।
माता गुजरी 
माता गुजरी एक ऐसा चरित्र है जिनका नाम उनके त्याग के लिए स्वर्णाक्षरों से लिखा जाना चाहिए। कहते हैं कि भारत की माताओं की कोख से सिंह पैदा होते हैं। माता गुजरी का विवाह बचपन में ही गुरु तेगबहादुर जी से हो गया था। उन्होंने गुरु तेग्बहादुर जी की वीरता को युद्ध में सराहा और कश्मीरी हिन्दुओं की सहायता के लिए उन्होंने ही तेगबहादुर जी को बलिदान देने के लिए भेजने की वीरता दिखाई थी। यह वह वीर माता थी जिन्होंने गुरु गोबिंद सिंह जी को वीरता, धर्मरक्षा, मातृभूमि प्रेम, बलिदान इत्यादि के समान वह निवाले खिलाए जिससे वह आज भी एक महाप्रतापी के नाम से जाने जाते हैं। आनंदपुर के मुगलों के हमले में माता गुजरी अपने पौत्रों साहिबजादे जोरावरसिंह (7 वर्ष) और फतहसिंह (5 वर्ष) के साथ परिवार से बिछड़ गई थी और बाद में मुगलों द्वारा बंदी बना ली गई थी । उन्हें अनेक प्रकार की मानसिक प्रताड़ना और धर्म परिवर्तन के प्रलोभन दिए गए। साहिबजादों ने भी अपनी दादी से वीरता के संस्कार पाए। साहिबजादों को दीवार में चुनवाकर मारा गया, इसके बाद माता गुजरी ने भगवान को शुक्रिया कहा कि उनका पति, उनका पुत्र और उनके पौते सभी धर्मरक्षा हेतु बलिदान हुए। बाद में उनका भी स्वर्गवास हो गया।
पन्ना धाय 
यह वह माता है, जो अगर अपने पुत्र का बलिदान न देती तो आज मेवाड़ का दीपक न जल रहा होता। पन्ना धाय का पूरा नाम पन्ना गुजरी था। धाय उस महिला को कहते हैं जो राजपुत्र को रानी के स्थान पर स्वयं का दूध पिलाती है और एक दासी के रूप में उसकी सेवा और परवरिश करती है। महाराणा संग्राम सिंह जिन्हें महाराणा सांगा के नाम से जाना जाता है, का स्वर्गवास होने के बाद मेवाड़ के दरबार में राजनीतिक उथलपुथल चल रही थी। बनवीर जो महाराणा सांगा का रिश्ते से भाई लगता था, अपने स्वार्थ और राजा बनने की लालसा से कुछ भी करने को तैयार था। उस समय महाराणा सांगा के पुत्र उदयसिंह मात्र 12 वर्ष के थे। वह ही मेवाड़ के भावी राणा बनाए जाने वाले थे। बनवीर मेवाड़ के वंश जो समाप्त करने की इच्छा से उस बालक उदयसिंह को मारने के लिए निकल पड़ा। जब यह बात पन्ना धाय को पता लगी तो उन्हें अपने राष्ट्र मेवाड़ और उसके भविष्य की चिंता हुई। उन्होंने अपने पुत्र चन्दन को उदयसिंह के स्थान पर लेटा दिया। जब बनवीर आया और उसने पूछा कि उदयसिंह कहां है तो उन्होंने अपने लेते हुए पुत्र की ओर इशारा कर दिया।  बनवीर ने उस वीर मां के सामने ही उसके बेटे का गला काट दिया पर वह साहसी माँ इसलिए नही रोई कि कहीं बनवीर को संदेह नहीं हो जाए। इसके बाद पन्ना धाय उदयसिंह को सभी की आंखों से छुपाते हुए कुम्भलगढ़ ले गयी और यहां उदयसिंह आरम्भ में अपनी पहचान छुपाते हुए बड़े हुए। बाद में सभी दूसरे दरबारों ने उदयसिंह को अपना नया राणा मान लिया और वह गद्दी पर बैठे। सोचिए, अगर वह माता अपने पुत्र का अपने राजवंश की रक्षा के खातिर बलिदान नहीं करती तो न ही महाराणा प्रताप होते और न ही मेवाड़।
गौरा धाय 
इन्होने भी पन्ना धाय की ही तरह अपने वंश का बलिदान देकर मारवाड़ का वंश बचाया था। इनका पूरा नाम गौरा टांक था। जोधपुर के राजा जसवंतसिंह की मृत्यु के बाद उनके पुत्र अजीतसिंह का जन्म हुआ। औरंगजेब की नज़र हमेशा से राजपुताना के साथ साथ दूसरी सभी रियासतों पर थी जिन्होंने अपने स्वाभिमान से अपना ध्वज बुलंद कर रखा था। उसने एक साजिश रची। उसने मारवाड़ के संरक्षक दुर्गादास राठौड़ को पत्र भेजा कि वह अजीतसिंह के जन्म का उत्सव दिल्ली में मानना चाहते हैं। उस समय की स्थितियां इतनी नाजुक मोड़ पर थी कि मारवाड़ औरंगजेब का विरोध नहीं कर सकता था, न चाहते हुए भी मारवाड़ से एक दल दिल्ली गया। औरंगजेब ने आए हुए सरदारों को अनेक प्रलोभन दिए कि अगर वह उससे मिल जाएंगे तो वह उन्हें आधा राज्य दे देगा, पर राष्ट्रभक्त राजपूत उसकी चालों में नहीं फंसे। दुर्गादास राठौड़ इस चाल को समझ गए उन्होंने सभी को एकत्रित कर के बताया कि उनके कक्षों को घेर लिया गया है और हमारे नवजात राजकुमार के प्राण संकट में हैं। यहां  से अगर युद्ध करते हुए निकलते हैं तो एक आघात भी मारवाड़ का वंश समाप्त कर सकता है। ऐसी तनावपूर्ण परिस्थिति में गौरा धाय ने कहा कि उनका पुत्र भी राजकुमार की उम्र का है। अगर उनके पुत्र को राजकुमार के स्थान पर उनके वेश में रख देंगे और वह मेहतरानी के भेष में राजकुमार को टोकरी में रख कर ले जाएंगी तो मारवाड़ का भविष्य सुरक्षित यहां से निकल जाएगा। एक धाय से यह सुनकर दुर्गादास भावुक हो गए उन्होंने कहा कि तुमने साक्षात् जगदम्बा बन हमें संकट से निकाला है। मेवाड़ की पन्नाधाय के समान तुम्हारा बलिदान भी मारवाड़ के इतिहास में सदा अमर रहेगा। गोरा धाय अजीतसिंह को टोकरी में लेकर भेष बदल कर बाहर निकल गई और दुर्गादास राठौड़ जो स्वयं सपेरे के भेष में बाहर थे उन्हें अजीतसिंह को सौंप दिया और मारवाड़ का वंश सकुशल पुनः मारवाड़ आ गया। औरंगजेब ने अपने सैनिकों को कक्ष से अजीतसिंह को लाने को कहा, ,लेकिन अजीतसिंह के भेष में गौरा धाय को पकड़ लिया गया, उसे अजीतसिंह मान कर उनका धर्मान्तरण किया गया और मुग़ल दरबार में ही एक गुलाम के रूप में रख कर प्रताड़ित किया गया। कुछ वर्षों बाद उनकी प्लेग से मृत्यु हो गई। औरंगजेब को जब यह ज्ञात हुआ कि मेवाड़ का वंश सकुशल है और जोधपुर में है तो वह बौखला उठा। वह अचंभित भी हुआ कि भारत की माताएं अपने राष्ट्रप्रेम के भाव के कारण अपने पुत्र का बलिदान देने में तनिक भी नहीं सोचती।
मातोश्री देवी अहिल्याबाई होल्कर
अहिल्याबाई होल्कर को उनके न होने के इतने वर्ष बाद भी ‘मातोश्री’ की उपाधि से सम्मानित किया जाता है। वह प्रजा का अपनी संतान की तरह पालन पोषण करती थी। उनके न्याय की तुलना राजा भोज के न्याय से की जाती है। उन्हें आज भी न्याय की देवी कहा जाता है। आज भी इंदौरवासी उन्हें माता मानते हैं और उनके चित्र अपने घरों में लगाते हैं, उनका प्रातः स्मरण करते हैं, भगवान के बाद उनकी जयकार करते हैं।
उनके बारे में एक प्रसंग पढ़ने को मिलता है जो इंदौरवासियों की जिव्हा पर है। उनके पुत्र मालेराव होल्कर उद्दंड थे। उनकी हरकतों से प्रजा परेशान रहती थी। एक बार वह रथ से जा रहे थे तो मार्ग के बीच में गाय का बछड़ा आ गया। मालेराव ने उसपर रथ चढ़ा दिया और उसकी ओर ध्यान ना देते हुए आगे प्रस्थान किया। इस कारण वह तड़प तड़प कर मर गया और उसकी मां उसी के पास आकर उसे चाटती रही। अहिल्याबाई जब उस मार्ग से निकली तो उन्हें पूरा प्रकरण ज्ञात हुआ। उन्होंने अपनी वधु से पूछा कि अगर कोई तुम्हारे सामने तुम्हारे पुत्र को कुचल दे तो उसका क्या करना चाहिए, उनकी वधु ने कुछ सोचकर कहा कि उसे मृत्युदंड मिलना चाहिए।
अहिल्याबाई ने मालेराव को भी मृत्युदंड का आव्हान किया। उनके हाथ पैर बांध कर उन्हें हाथी से कुचलने की सजा सुनाई। जब वहां कोई भी हाथी को चलाने के लिए तैयार नहीं हुआ तो स्वयं अहिल्याबाई उस पर चढ़कर आगे बढ़ने लगी। तभी वह गाय उनके सामने आ गयी और हटाए जाने के बाद भी बार बार सामने आने लगी। मंत्रियों ने अहल्यामाता को कहा कि आप उस गाय का संकेत समझिए। वह नहीं चाहती कि कोई और मां पुत्रविहीन हो, मालेराव को अपनी भूल ज्ञात हो गई है और वह पश्चाताप भी करेंगे। यह वह माता थी जिन्हें उनकी प्रजा के साथ साथ पशु भी स्नेह और आदर करते थे। वह अपनी प्रजा के हित के लिए अपना सर्वस्व त्याग सकती थी।
(साभार – वेबदुनिया)

भारतीय परम्परा में ऐसा है माता का महत्व

वेदों में ‘मां’ को ‘अंबा’,’अम्बिका’,’दुर्गा’,’देवी’,’सरस्वती’,’शक्ति’,’ज्योति’,’पृथ्वी’ आदि नामों से संबोधित किया गया है। इसके अलावा ‘मां’ को ‘माता’, ‘मात’, ‘मातृ’, ‘अम्मा’, ‘अम्मी’, ‘जननी’, ‘जन्मदात्री’, ‘जीवनदायिनी’, ‘जनयत्री’, ‘धात्री’, ‘प्रसू’ आदि अनेक नामों से पुकारा जाता है ।
‘जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गदपि गरीयसी।’
अर्थात, जननी और जन्मभूमि स्वर्ग से भी बढ़कर है।
महाभारत में जब यक्ष धर्मराज युधिष्ठर से सवाल करते हैं कि ‘भूमि से भारी कौन?’ तब युधिष्ठर जवाब देते हैं-
‘माता गुरुतरा भूमेरू।’
अर्थात, माता इस भूमि से कहीं अधिक भारी होती हैं।
इसके साथ ही महाभारत महाकाव्य के रचियता महर्षि वेदव्यास ने ‘मां’ के बारे में लिखा है-
‘नास्ति मातृसमा छाया, नास्ति मातृसमा गतिः।
नास्ति मातृसमं त्राण, नास्ति मातृसमा प्रिया।।’
अर्थात, माता के समान कोई छाया नहीं है, माता के समान कोई सहारा नहीं है। माता के समान कोई रक्षक नहीं है और माता के समान कोई प्रिय नहीं है….
तैतरीय उपनिषद में ‘मां’ के बारे में इस प्रकार उल्लेख मिलता है-
‘मातृ देवो भवः।’
अर्थात, माता देवताओं से भी बढ़कर होती है।
‘शतपथ ब्राह्मण’ की सूक्ति कुछ इस प्रकार है-
‘अथ शिक्षा प्रवक्ष्यामः
मातृमान् पितृमानाचार्यवान पुरुषो वेदः।’
अर्थात, जब तीन उत्तम शिक्षक अर्थात एक माता, दूसरा पिता और तीसरा आचार्य हो तो तभी मनुष्य ज्ञानवान होगा।
‘मां’ के गुणों का उल्लेख करते हुए आगे कहा गया है-
‘प्रशस्ता धार्मिकी विदुषी माता विद्यते यस्य स मातृमान।’
अर्थात, धन्य वह माता है जो गर्भावान से लेकर, जब तक पूरी विद्या न हो, तब तक सुशीलता का उपदेश करे।हितोपदेश-
आपदामापन्तीनां हितोऽप्यायाति हेतुताम् ।
मातृजङ्घा हि वत्सस्य स्तम्भीभवति बन्धने ॥
जब विपत्तियां आने को होती हैं, तो हितकारी भी उनमें कारण बन जाता है। बछड़े को बांधने में मां की जांघ ही खम्भे का काम करती है।
महर्षि वेदव्यास
माता के समान कोई छाया नहीं, कोई आश्रय नहीं, कोई सुरक्षा नहीं। माता के समान इस दुनिया में कोई जीवनदाता नहीं।

क्रिकेटर शुभमन गिल ने दी भारतीय स्पाइडर-मैन पवित्र प्रभाकर को अपनी आवाज!

कोलकाता । सन 2021 में ‘स्पाइडर-मैन: नो वे होम’ की भारी सफलता के बाद, प्रशंसक स्पाइडर-मैन यूनिवर्स में वापसी के लिए उत्साहित हैं। यह मौका भारत के लिए और भी खास है क्योंकि हमारे अपने भारतीय स्पाइडर-मैन पवित्र प्रभाकर इसके द्वारा बड़े पर्दे पर डेब्यू कर रहे हैं।

इस फिल्म के हिंदी और पंजाबी वर्जन में क्रिकेटर शुभमन गिल की आवाज होगी, जो पवित्र के किरदार को भारतीय दर्शकों के लिए और भी खास बना देगी। गिल अपने बल्लेबाजी कौशल के साथ क्रिकेट प्रशंसकों के लिए आकर्षण का केंद्र रहे हैं, और ‘स्पाइडर-मैन: अक्रॉस द स्पाइडर-वर्स’ में पवित्र प्रभाकर के रूप में वह अब पूरे भारत के क्रिकेट प्रशंसकों का दिल जीतने के लिए तैयार हैं। स्पाइडर-मैन को अपना चहेता सुपरहीरो बताने वाले शुभमन गिल ने स्पाइडर-मैन की दुनिया में बड़ी एंट्री ली है। वह किसी भी फिल्म के लिए अपनी आवाज देने वाले पहले स्पोर्ट्स पर्सनालिटी हैं, और वह भी हॉलीवुड की सबसे बड़ी फ्रेंचाइजी में से एक के लिए।

भारतीय स्पाइडर-मैन, पवित्र प्रभाकर को अपनी आवाज देने के बारे में बताते हुए, शुभमन कहते हैं, “मैं स्पाइडर-मैन को देखते हुए बड़ा हुआ हूं, और वह निश्चय ही अधिक सबसे ज्यादा रिलेटेबल सुपरहीरो में से एक है। चूंकि इस फिल्म से स्क्रीन पर भारतीय स्पाइडर-मैन की शुरुआत हो रही है, हमारे अपने भारतीय स्पाइडर-मैन पवित्र प्रभाकर की, हिंदी और पंजाबी भाषाओं में आवाज़ बनना मेरे लिए एक शानदार अनुभव था। मैं पहले से ही खुद को सुपर ह्यूमन महसूस कर रहा हूं। मुझे इस फिल्म की रिलीज का बेसब्री से इंतजार है।”

हल्दीघाटी लिखकर महाराणा प्रताप की गाथा जन -जन तक पहुँचाने वाले श्याम नारायण पांडेय

वाराणसी । अपने हर काव्य में वीरता का सजीव चित्रण करने वाले कवि श्याम नारायण पाण्डेय ने स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान भी अपने उपाख्यानों से लोगों में अप्रतिम जोश का संचार किया था…

स्वातंत्र्य पूर्व भारत के वीर रस के सुविख्यात कवि श्याम नारायण पाण्डेय एक अप्रतिम कवि होने के साथ-साथ अपनी परम ओजस्वी वाणी के द्वारा वीर रस के अन्यतम प्रस्तोता भी थे। यह उनकी वाणी का ही प्रभाव था कि उनको सुनने वाला श्रोता, किसी चलचित्र को देखता हुआ सा मंत्रमुग्ध हो जाया करता था- ‘वैरी दल को ललकार गिरी, वह नागिन सी फुफकार गिरी। था शोर मौत से बचो-बचो, तलवार गिरी तलवार गिरी।।’

कवि श्यामनारायण पाण्डेय का जन्म सन् 1907 में डुमरांव गांव, मऊ, उत्तर प्रदेश में हुआ था। गांव में ही अपनी प्रारंभिक शिक्षा के बाद उन्होंने काशी आ कर संस्कृत का अध्ययन किया और यहीं रहते हुए काशी विद्यापीठ से हिंदी में साहित्याचार्य किया। सन् 1991 में 84 वर्ष की अवस्था में वह कैवल्यधामवासी हुए।

कवि श्यामनारायण पाण्डेय वस्तुत: हमारे धरोहर कवियों की पंक्ति में अग्रगण्य थे जिनकी वाणी में उनके संस्मरणों को उनकी मृत्यु के पूर्व आकाशवाणी गोरखपुर ने सहेजकर रख लिया था।

कहते हैं कि देश के लिए गौरव भावना बीजरूप में बालमन में यदि विकसित की जाती है तो उसका प्रभाव अचूक होता है। यही कारण था कि प्रचंड ओज के कवि श्यामनारायण पाण्डेय जितने लोकप्रिय देश के लिए मर मिटने की भावना से लबरेज आजादी के मस्तानों के बीच में रहे, आगे चलकर वह- उतने ही मान्य उन नन्हें-मुन्हें बच्चों के बीच भी हुए जो अपनी पाठ्य पुस्तकों की ‘चेतक और महाराणा प्रताप की सचित्र कविताओं’ का पाठ पूरे जोशो-उमंग के साथ छोटे-छोटे तिरंगों को हाथ में लिए गणतंत्र और स्वतंत्रता दिवस के अवसरों पर विशेष रूप से किया करते रहे।

जन्मभूमि के स्वातंत्र्य के प्रति तड़प और उसके प्रति गौरव भावना का ज्वाजल्यमान दृष्टांत हल्दीघाटी के उपाख्यानों में हम एक-एक कर पाते हैं। राणा प्रताप के स्वाभिमान का ओजस्वीपूर्ण वर्णन असंख्य लोगों को उनका मुरीद बनाता है।

स्वतंत्रता आंदोलन का वह युग, एक ऐसा युग था जब देश में व्याप्त उथल-पुथल को हिंदी कविता का विषय बनाकर कवि अपने दोहरे दायित्व का निर्वहन कर रहे थे। वह एक ओर तो राष्ट्र के प्रति अपने स्वधर्म का निर्वाह राष्ट्रीय भावनाओं को अपनी कविता का विषय बना कर रहे थे तो वहीं दूसरी ओर वह राष्ट्रव्यापी स्वातंत्र्य चेतना को युवाओं की धड़कनों में अपनी कलम के द्वारा अनवरत उद्दीप्त कर रहे थे। स्वाभाविक था कि उर्वर प्रज्ञा भूमि के चलते कवि ने तत्युगीन समस्याओं को अत्यधिक संवेदनशीलता के साथ ऐतिहासिक सांचे में रखकर समूचे युग के सामने एक दृष्टान्त रखा। इसके पीछे जो महनीय उद्देश्य कार्य कर रहा था वह यही था कि राष्ट्रीय भावनाओं से ओत-प्रोत कविताओं की कोख में स्वातंत्र्य चेतना का विकास होता रहे और यही कारण था उनके हर काव्य, महाकाव्य में क्रांति कामना चरितार्थ हुई है।

श्यामनारायण पाण्डेय ने बहुत सी उत्कृष्ट काव्यसर्जनाएं की हैं। ‘हल्दीघाटी’, ‘जौहर’, ‘तुमुल’, ‘रूपान्तर’, ‘आरती’, ‘जय हनुमान’, ‘परशुराम’, ‘जय पराजय’, ‘गोरा-वध’ इत्यादि जिनमें प्रमुख हैं। इनमें ‘हल्दीघाटी’ सर्वाधिक लोकप्रिय हुआ। राजस्थान की ऐतिहासिक रणभूमि ‘हल्दीघाटी’ जो अकबर और महाराणा के युद्ध की साक्षी थी। कहते हैं की हल्दीघाटी की मिट्टी जो कि हल्दी की तरह पीली थी, भीषण युद्ध के कारण रक्त निमज्जित होकर लाल हो गई। उसी को आधार बनाकर लिखा गया था ‘हल्दीघाटी’ महाकाव्य उस समय के सर्वश्रेष्ठ सम्मान ‘देव पुरस्कार’ से भी सम्मानित किया गया था। हल्दीघाटी महाराणा प्रताप और अकबर के बीच हुए प्रसिद्ध ऐतिहासिक युद्ध पर निबद्ध किया गया है। प्रताप के ऐतिहासिक त्याग, आत्म बलिदान, शौर्य, स्वतंत्रता के प्रति प्रतिबद्धता एवं जातीय गौरव के उद्बोधन ‘हल्दीघाटी’ में उस दौर की आजादी के दीवाने युवाओं के बीच खासी लोकप्रियता अर्जित की। सन् 1939 का समय, वह समय था जब भारत का स्वतंत्रता आंदोलन अपनी परिपक्वता की ओर बढ़ रहा था। ऐसे समय में ‘हल्दीघाटी’ ने युवाओं के उबाल खाते रुधिर में एक पवित्र आहुति का कार्य किया और ‘हल्दीघाटी’ तत्कालीन विद्यार्थियों और स्वतंत्रता के पुजारियों का कंठमाल बन गई।

‘जौहर’ में चित्तौड़ की रानी पद्मिनी का हृदयहारी आख्यान है। रानी पद्मिनी जो न सिर्फ राजपूती स्वाभिमान का अपितु भारतीय नारी के उस गौरव का प्रतीक हैं जो अपने सतीत्व और सम्मान के स्वातंत्र्य की रक्षा हेतु हंसते-हंसते जौहर की ज्वाला में कूदकर प्राणों को स्वाहा कर देती है। आजादी के उसी युग में यह उस अप्रतिम भाव का द्योतक नहीं तो और क्या है, कि जब स्वातंत्रता की अभीप्सा लिए तरुण दीवाने किसी भी प्रकार के बलिदान यहां तक कि आत्माहुति देने में भी पीछे नहीं हटते थे।

श्यामनारायण पाण्डेय जी की कृतियों की विशेष बात यह है कि यदि वह पौराणिक आख्यान को भी अपने काव्य का आधार बनाते हैं तो भी उसकी विषयवस्तु के चुनाव में वह ओज तथा वीर रस को ही प्रमुखता देते हैं। वह वीरता जो उस युग की पहचान थी। वह ओजस्विता जो पराधीन भारत में भी स्वाभिमान और राष्ट्रगौरव के भाव से भारतीय जन-मन को ओत-प्रोत रखा करती थी। यहां ‘तुमुल’ और ‘परशुराम’ का उल्लेख समीचीन होगा। जब तुमुल के अंतर्गत दो पराक्रमी और विलक्षण व्यक्तित्व के धनी युवाओं लक्ष्मण और मेघनाद के बीच धर्मयुद्ध हुआ तो वस्तुत: उसके माध्यम से भारतीय संस्कृति और समाज के उद्दात्त प्रतिमानों को उपस्थापित किया गया है। वहीं परशुराम विष्णु के ही रौद्र अवतारस्वरूप धर्मसंस्थापनार्थ की भावभूमि पर रचे-बसे एक ऐसे व्यक्तित्व हैं जो अपनी प्रतिबद्धताओं के पालनार्थ कुछ भी कर सकते हैं-‘

आखों से बहती अग्निसरित्,

मुख तेज वर्तुलाकार हार।

जिह्वा पर बुदबुद शिवस्तोत्र,

रुधिरेच्छु भयंकर परशुधार।।’

स्वाभाविक था कि उस युग का जनमानस अपनी मातृभूमि के लिए सर्वस्व समर्पण के सहज भाव से आप्लावित होता। ‘जय हनुमान’ भी उसी प्रतिकार का प्रतीक है जो उस दौरान गांधी जी के ‘करो या मरो’ के आह्वान के बाद ‘करेंगे या मरेंगे’ के रूप में कोटि-कोटि आवाज बनकर उद्घोषित हो उठा-

‘ज्वलल्लाट पर प्रचण्ड तेज वर्तमान था,

प्रचण्ड मानभंगजन्य क्रोध वर्धमान था।

ज्वलंत पुच्छबाहु व्योम में उछालते हुए,

अराति पर असह्य अग्निदृष्टि डालते हुए।

उठे कि दिग्दिगंत में अवण्र्य ज्योति छा गई,

कपीश के शरीर में प्रभा स्वयं समा गई।।

पाण्डेयजी के काव्य में भाव और अलंकारों का हम अद्भुत सम्मिश्रण पाते हैं। वह अपने समय में कवि सम्मेलनों के शीर्षस्थ कवि थे। कहा जाता है कि उनके शौर्यपूर्ण काव्य को उन्हीं की ओजस्वी वाणी में सुनने की इच्छा लिए श्रोतागण मीलों-मील पैदल चलकर पहुंचा करते थे। कवि पाण्डेयजी के व्यक्तित्व का एक पक्ष यह भी था कि वे बहुत स्पष्टवक्ता थे। कविधर्म के विशेष गुणों से अलंकृत होने के बावजूद चारणधर्मिता या चाटुकारिता को उन्होंने स्वयं से कोसों दूर रखा था। आज आजादी का अमृत महोत्सव मनाते हुए कवि श्यामनारायण पाण्डेय जैसे दुर्धर्ष कवि योद्धा का पावन स्मरण अनिवार्य प्रतीत होता है।

(साभार – दैनिक जागरण पर प्रकाशित डॉ. श्रुति मिश्रा का आलेख)

बायो फ्लॉक विधि से किया मछली पालन, कमाए लाखों

बगैर तालाब के होता है मछली पालन

चाईबासा । झारखंड राज्य का पश्चिम सिंहभूम जिला वन, पर्यावरण, खनिज संपदा से भरापूरा हैं। फिर भी युवा वर्ग का पलायन करना एक विकट समस्या है। प्रायः देखा जाता है, कि शिक्षित बेरोजगार युवक-युवती जिला छोड़कर किसी और राज्य में रोजगार के लिए पलायन कर जाते हैं। बेरोजगारों के लिए सरकार की ओर से अनेकों योजनाएं चलाई जाती है, परंतु जमीन की कमी और पैसों की कमी होने के कारण लोग अपना रोजगार नहीं ले पा रहे हैं। इसी को देखते हुए बायोफ्लॉक तकनीक से मछली पालन करना रोजगार का एक अच्छा जरिया माना जाने लगा है। बायोफ्लॉक तकनीक से कम भूमि, कम लागत, कम जल से भी अच्छा मुनाफा कमाया जा सकता है। इसलिए आज के दौर में बायोफ्लॉक तकनीक का प्रयोग तेजी से किया जा रहा है।
नौकरी छूटने के बाद मछली पालन, अब 5 लाख की आमदनी
पश्चिमी सिंहभूम जिले के चक्रधरपुर के रहने वाले बालवीर सेन पहले किसी कंपनी में राज्य के बाहर काम करते थे। परंतु नौकरी चले जाने के बाद रोजगार की तलाश में जिला मत्स्य कार्यालय पहुंचे। वहां उन्हें चल रही योजनाओं के बारे में विस्तार पूर्वक जानकारी दी गई। जिसमें उन्होंने बायोफ्लॉक तकनीक पर विशेष रुचि दिखाई। फिर उन्हें प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना की मदद से मछली पालन की शुरुआत की। अभी वे कवई, कोमोनकार और अमुरकार मछलियों का कारोबार कर रहे हैं। वर्तमान में वे सलाना 04 से 05 लाख का आमदनी कमा रहे हैं।
कोरोना काल में स्थिति दयनीय हुई, अब 6 क्विंटल मछली उत्पादन
चाईबासा सदर निवासी राजकुमार मुंडा एक शिक्षित कृषक हैं। काफी समय से ये खेती कर रहे हैं, परंतु उम्मीद के अनुसार मुनाफा नहीं मिला। ज्यादातर उन्हें घाटा का सामना करना पड़ा है। जिसके कारण कोरोना काल में पूरे पूरे परिवार की दयनीय स्थिति हो गई। जिसके बाद उन्होंने जिला मत्स्य कार्यालय से संपर्क किया। उन्हें प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा के तहत बायोफ्लॉक तकनीक का लाभ दिया गया। इस तकनीक से उन्होंने कोमोनकार, मोनोसेल्स, तेलपिया और देसी मांगुर जैसे प्रजाति का पालन किया। प्रत्येक टैंक से वे 05 से 06 क्विंटल मछली का उत्पादन करते है। इससे उनके जीवनशैली में काफी सुधार आया हैं। क्योंकि इससे ज्यादा मुनाफा कमा रहे है। उन्होंने बताया कि आज वह अच्छी आमदनी के कारण अपने बच्चों को बेहतर शिक्षा मुहैया करा रहे हैं और अच्छी जीवन निर्वाह कर रहे हैं।
खेती-किसानी के साथ मछली पालन से आमदनी में बढ़ोतरी हुई
हाटगम्हरिया प्रखंड के सिलदौरी गांव निवासी ज्योति बिरुवा भी कम मेहनत और कम लागत से ज्यादा मुनाफा कमाकर सुकून की जिंदगी जीना चाहते थे। इसी क्रम में रोजगार की खोज में उन्हे जिला मत्स्य कार्यालय की ओर से बायोफ्लॉक तकनीक योजना अपनाने का सुझाव दिया गया। इस योजना को अपनाकर ज्योति बिरूवा अब एक खुशहाल जिंदगी जी रहे हैं और अपने बाकी के समय में अन्य कार्य भी कर रहे हैं।
जमीन की कमी और जल स्तर नीचे जाने के कारण बायोफ्लॉक तकनीक कारगर
मछली पालन क्षेत्र के जानकारों का कहना है कि बढ़ती हुई जनसंख्या के कारण लोगों के पास अब पर्याप्त जमीन नहीं है, जिससे वे तालाब बनवा कर मछली पालन कर सके। साथ ही साथ वर्षा भी दिनों-दिन कम होने के कारण भूमिगत जल का स्तर भी नीचे जा रहा है। ऐसे में बायोफ्लॉक तकनीक से मछली पालन करना भविष्य में रोजगार के एक अच्छा स्रोत साबित होगा।

केरल के त्रिशूर में पुरोहित बनकर इतिहास रच रही हैं माँ – बेटी की जोड़ी

त्रिशूर । केरल में 24 वर्षीय ज्योत्सना पद्मनाभन और उनकी मां अर्चना कुमारी पुरोहिताई अनुष्ठान में सदियों पुरानी पुरुष वर्चस्व की दीवारें तोड़कर खामोशी के साथ एक नया इतिहास रच रही हैं। दोनों महिलाएं केरल के त्रिशूर जिले में एक मंदिर में कुछ वक्त से पुरोहित की भूमिकाएं निभा रही हैं। दोनों पड़ोसी मंदिरों व अन्य स्थलों पर तांत्रिक अनुष्ठान कर रही हैं जिसे आम तौर पर पुरुषों के वर्चस्व वाला क्षेत्र माना जाता है।
हालांकि, 47 वर्षीय अर्चना और उनकी बेटी अपनी पुरोहिताई को लैंगिक समानता की कोई पहल या समाज में व्याप्त लैंगिक रूढ़ियों को तोड़ने की कोई कोशिश करार नहीं देती। कट्टूर के थरनेल्लूर थेक्किनियेदातु माना के एक ब्राह्मण परिवार से आने वाली ज्योत्सना और अर्चना ने एक सुर में कहा कि वे समाज में कुछ साबित करने के लिए नहीं बल्कि अपनी भक्ति के कारण पुरोहिताई करने लगीं।
सात साल की उम्र से सीखा तंत्र
वेदांत और साहित्य में पोस्ट ग्रैजुएट कर चुकीं ज्योत्सना ने कहा कि उन्होंने सात साल की उम्र से ही तंत्र सीखना और उससे पहले से ही पुरोहित की भूमिका निभाने का सपना देखना शुरू कर दिया था। उन्होंने कहा, ‘मैं अपने पिता पद्मनाभन नम्बूदरिपाद को पूजा और तांत्रिक अनुष्ठान करते हुए देखकर बड़ी हुई हूं। इसलिए इसे सीखने का सपना मेरे दिमाग में तब से ही पनपना शुरू हो गया था जब मैं बहुत छोटी थी।’
ज्योत्सना ने कहा, ‘जब मैंने अपने पिता से अपनी ख्वाहिश जाहिर की तो उन्होंने विरोध नहीं किया। उन्होंने पूरा सहयोग किया।’ उन्होंने कहा कि किसी भी प्राचीन ग्रंथ या परंपरा में महिलाओं को तांत्रिक अनुष्ठान करने व मंत्र पढ़ने से नहीं रोका गया है। ज्योत्सना ने अपने परिवार के पैतृक मंदिर पैनकन्निकावु श्री कृष्ण मंदिर में देवी भद्रकाली की तांत्रिक अनुष्ठान से प्रतिस्थापना की थी। इस मंदिर के मुख्य पुजारी उनके पिता हैं।
वेदांत और साहित्य में पोस्ट ग्रेजुएट
वह मंदिर में पुरोहित की भूमिका निभा रही हैं और वहां रोज पूजा-पाठ करती हैं। वह पिछले कई वर्षों से दूसरे मंदिरों में भी पूजा-पाठ कर रही हैं। जब बेटी ने पूजा-पाठ करना और तांत्रिक अनुष्ठान सीखना शुरू किया तो अभी तक घरेलू कामकाज करने वाली उनकी मां अर्चना कुमारी भी इसमें अपनी बेटी के साथ जुड़ गईं। माहवारी के दौरान दोनों मां बेटी पुरोहिताई और पूजा पाठ से दूर रहती हैं। ज्योत्सना ने कांची और मद्रास यूनिवर्सिटी से वेदांत व साहित्य में पोस्ट ग्रैजुएट की डबल डिग्री हासिल की है।

प्रतिबंधित हुआ 50 रुपये किलो और उससे कम वाले सेब का आयात

भूटान प्रतिबन्ध के दायरे से बाहर

नयी दिल्ली । केंद्र सरकार ने सेब  के आयात को लेकर बड़ा फैसला किया है। सरकार ने 50 रुपये प्रति किलो से कम कीमत वाले सेब के आयात पर प्रतिबन्ध लगा दिया है। इसका लाभ सेब किसानों को मिलेगा। सेब के किसान लंबे वक्त से आयातित सेब पर बैन लगाने की मांग कर रहे थे। उनकी कहना था कि बाहर से सेब मंगाने की वजह से घरेलू दाम प्रभावित होते हैं, जिसका नुकसान उन्हें होता है। अब सरकार ने इस दिशा में बड़ा फैसला लिया है। हालांकि इससे भूटान को अलग रखा गया है। यानी भूटान से आयात होने वाले सेब पर इस पाबंदी का असर नहीं होगा। डायरेक्टर जनरल ऑफ फॉरेन ट्रेड (डीजीएफटी) ने इस आदेश के बारे में जानकारी देते हुए कहा कि 50 रुपये से कम की कीमत वाले सेबों के इंपोर्ट पर प्रतिबंध लगाने का फैसला किया गया है। इसमें कॉस्ट, बीमा, ट्रैवल खर्च शामिल है। अगर आंकड़ों पर गौर करें तो वित्तीय वर्ष साल 2022-23 में अप्रैल से फरवरी के 296 मिलियन डॉलर सेब क आयात किया गया था तो वहीं साल 2021-22 भारत ने 385 मिलियन डॉलर सेब आयात किया था।
इन देशों से आयात होता है सेब
भारत अलग-अलग देशों से सेब आयात करता है। इसमें अमेरिका, ईरान, ब्राजील, यूनाइडेट अरब अमीरात, अफगानिस्तान, फ्रांस, बेल्जियम, चिली, इटली, तुर्की के अलावा न्यूजीलैंड, अफ्रीका और पोलैंड जैसे देश शामिल हैं। सेब को लेकर आयात की शर्तों के बाद इन देशों से सेबों के आयात पर प्रभाव पड़ेगा। सरकार के इस फैसले से किसानों के चेहरे खिल गए है। कश्मीर के सेब किसानों में खुशी है। कश्मीर के सेब किसानों की मांग की थी कि सरकार ईरानी सेब के आयात पर प्रतिबंध लगाए। उनकी दलील है कि आयातित सेब के कारण घरेलू सेब की कीमतों पर दबाब बढ़ता है। किसानों के लिए बाजार उपलब्ध होगा।

बॉम्बे हाई कोर्ट के आदेश पर 93 साल की महिला को 80 साल बाद वापस मिले 2 फ्लैट

मुम्बई । बॉम्बे हाई कोर्ट ने एक अहम फैसला सुनाते हुए एक 93 साल की बुजुर्ग महिला को बड़ी राहत दी है। यह महिला दक्षिण मुंबई स्थित अपने दो फ्लैट पर कब्ज़ा पाने के लिए बीते 80 साल से कानूनी लड़ाई लड़ रही थी। अदालत ने राज्य सरकार को यह आदेश दिया है कि वह महिला को दोनों फ्लैट वापस करे। जिसे साल 1940 में कब्जे में लिया गया था। इतनी लंबी कानूनी लड़ाई लड़ने वाली महिला का नाम अलाइस डिसूजा है। यह फ्लैट मुंबई के मेट्रो सिनेमा के पीछे मौजूद रूबी मेंशन के पहले फ्लोर पर हैं। जो पांच सौ और छह सौ स्क्वायर फुट के हैं। 28 मार्च 1948 के दिन रूबी मेंशन को ‘डिफेंस ऑफ़ इंडिया’ के लिए अधिगृहित किया गया था।
हालांकि, बाद में फर्स्ट फ्लोर को छोड़कर बाकि घरों को धीरे धीरे उनकी मूल मालिकों को लौटा दिया गया। गुरुवार को हाई कोर्ट के जज रमेश धानुका और मिलिंद साठ्ये ने राज्य सरकार को यह निर्देश दिया कि वह इन घरों का शांतिपूर्ण तरीके और खाली कराकर याचिकाकर्ता को वापस लौटाएं। अदालत ने अपने आदेश में यह काम आठ सप्ताह के भीतर करने का आदेश दिया है। अदालत ने 93 साल की महिला के पक्ष में फैसला देते हुए फ्लैट पर मौजूदा कब्जेदारों की याचिका को ख़ारिज कर दिया है।
मौजूदा कब्जेदार कौन हैं?
17 जुलाई 1946 को बॉम्बे के तत्कालीन गवर्नर ने डिफेंस ऑफ़ इंडिया नियम के अंतर्गत इस प्रॉपर्टी के असली मालिक और डिसूजा के पिता एचएस डीएस को यह आदेश दिया था कि वह यह प्रॉपर्टी लॉड नाम के गवर्नमेंट कर्मचारी को दे दें। हालांकि ,24 जुलाई 1946 को कलेक्टर ने इन संपत्तियों को ‘रिक्वीजिशन’ के दायरे के बाहर कर दिया। हालांकि, निर्देशों के बाद भी इन फ्लैट्स का कब्ज़ा एचएस डीएस को नहीं सौंपा गया। 21 जून 2010 को एकमोडेशन कंट्रोलर बॉम्बे लैंड रिक्वीजिशन एक्ट 1948 के तहत फ्लैट के कब्जेदारों (लॉड के बेटे मंगेश और बेटी कुमुद फोंडकर) को इसे खाली करने का निर्देश दिया। तब तक लॉड की मौत हो गयी थी।
इसके बाद 26 अगस्त 2011 को संबंधित (अपीलेट अथॉरिटी) ने भी इस फैसले को सही ठहराया। इस बीच मंगेश और कुमुद के गुजरने के बाद उनके पोते ने इस आदेश को बॉम्बे हाई कोर्ट में चैलेंज किया था। अदालत ने माना कि इस मामले में कोई दम नहीं है। साथ ही अदालत ने कहा कि बॉम्बे लैंड रिक्विजिशन एक्ट 11 अप्रैल 1948 को अस्तित्व में आया था। जबकि यह मामला उसके पहले का है। ऐसे में इस कानून के तहत इसपर कैसे सुनवाई हो सकती है। इस मामले में अदालत ने सुप्रीम कोर्ट के भी कुछ आदेशों का हवाला दिया।

पांच करोड़ से अधिक के कारोबार वाली कंपनियों के लिए भी ई-चालान जरूरी

नयी दिल्ली । सालाना पांच करोड़ रुपये से अधिक के कारोबार वाली कंपनियों को एक अगस्त, 2023 से सभी बिजनेस-टु-बिजनेस (बी2बी) लेनदेन के लिए इलेक्ट्रॉनिक या ई-इनवॉयस (चालान) निकालना होगा। अभी तक 10 करोड़ या उससे अधिक के कारोबार वाली कंपनियों को बी2बी लेनदेन के लिए ई-चालान निकालना होता है। इस कदम से न सिर्फ फर्जीवाड़ा रोकने में मदद मिलेगी बल्कि सरकारी राजस्व में भी बढ़ोतरी होगी।
वित्त मंत्रालय की 10 मई को जारी अधिसूचना के मुताबिक, बी2बी लेनदेन के लिए ई-चालान निकालने की सीमा को 10 करोड़ रुपये से घटाकर 5 करोड़ रुपये कर दिया गया है। जीएसटीएन पोर्टल पर मौजूद 11 मई तक आंकड़ों के मुताबिक, ई-चालान निकालने के लिए कारोबार की सीमा घटाने से देशभर के 45 लाख और उत्तर प्रदेश के तीन लाख से ज्यादा व्यापारी ऑनलाइन निगरानी के दायरे में आ गए हैं।
जीएसटी लागू होने के बाद यानी 2017 से मार्च, 2023 तक किसी भी एक साल में अगर कंपनी का कारोबार 5 करोड़ रुपये से ज्यादा है तो उसे भी एक अगस्त, 2023 से ई-चालान निकालना होगा।
इसलिए लागू की जा रही व्यवस्था
ई-चालान व्यवस्था को 2020 में 500 करोड़ रुपये से अधिक के कारोबार वाली कंपनियों के लिए लागू किया गया था। उसी समय कर संस्थानों ने इसके पांच साल में छोटे व्यापारियों पर भी लागू होने का अनुमान जता दिया था। पिछले एक साल में जीएसटी चोरी 54,000 करोड़ से बढ़कर एक लाख करोड़ रुपये के पार पहुंच गई। बढ़ती कर चोरी पर लगाम लगाने के लिए छोटे कारोबारों को भी ई-चालान के दायरे में शामिल किया जा रहा है।

तीन साल में बढ़ा ई-चालान का दायरा
साल       सालाना     कारोबार
अक्तूबर, 2020 500 करोड़ से अधिक
जनवरी, 2021 100 करोड़ से ज्यादा
अप्रैल, 2021 50 करोड़
अप्रैल, 2022 20 करोड़
अक्तूबर, 2022 10 करोड़
अगस्त, 2023 5 करोड़ से अधिक

लागत में कमी आने के साथ होंगे ये लाभ
डेलॉय इंडिया के भागीदार महेश जयसिंह ने कहा, सरकार की इस घोषणा से ई-चालान के तहत सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यमों (एमएसएमई) का दायरा बढ़ेगा। ई-चालान कंपनियों के लिए एक वरदान है। इसे उन्हें लागू करने की आवश्यकता होगी। एमएसएमई क्षेत्र को ई-चालान व्यवस्था के दायरे में शामिल करने से लागत घटेगी। तेजी से चालान का प्रसंस्करण सुनिश्चित होगा। सौदों की ऑनलाइन जानकारी राज्य और केंद्र के जीएसटी विभाग के निगरानी में आ जाएगी।
कर चोरी की गुंजाइश खत्म होगी। खास तौर पर फर्जी बिल काटकर इनपुट टैक्स क्रेडिट लेने जैसे फर्जीवाड़े पर रोक लगेगी।
ई-चालान हर लेनदेन का यूनिक नंबर
जीएसटी में ई-चालान ऐसा सिस्टम है, जिसमें किसी भी लेनदेन की रसीद को जीएसटी नेटवर्क सत्यापित करता है। वह हर सामान्य रसीद को ई-रसीद में बदल देता है। हर रसीद के लिए विशिष्ट पहचान संख्या (यूनिक नंबर) जारी होती है।

 

कोलकाता में खुला म‍िसाइल पार्क, दिखेंगे 6 स्‍वदेशी म‍िसाइलों के मॉडल

कोलकाता । राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी दिवस पर गुरुवार को कोलकाता के साइंस सिटी में नवनिर्मित मिसाइल पार्क को जनता के लिए खोल दिया गया। मिसाइल पार्क को स्वदेशी मिसाइलों की आदमकद प्रतिकृति के माध्यम से भारत के मिसाइल विकास कार्यक्रम को प्रदर्शित करने के लिए डिजाइन और विकसित किया गया है। साइंस सिटी, कोलकाता के निदेशक अनुराग कुमार और डीआरडीओ की इकाई सीएमएसडीएस की निदेशक मधुमिता चक्रवर्ती ने संयुक्त रूप से इसका उद्घाटन किया।
6 स्‍वदेशी म‍िसाइलों का द‍िखेगा अद्भुत दृश्य
लोग अब यहां भारत की छह प्रमुख स्वेदेशी मिसाइलों, ब्रह्मोस, पृथ्वी, मिशन शक्ति, आकाश, अस्त्र और नाग के आदमकद मॉडल का अद्भुत दृश्य देख सकते हैं। इस पार्क का एक खास आकर्षण भारत के मिसाइल मैन के नाम से विख्यात रहे पूर्व राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम की मूर्ति भी है, जिसे स्थापित किया गया है। कलाम ने अपने प्रारंभिक वर्षों के दौरान भारत के मिसाइल विकास कार्यक्रम की अगुवाई की थी।
अधिकारियों ने बताया कि इस मिसाइल पार्क को रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) की इकाई सीएमएसडीएस और केंद्रीय संस्कृति मंत्रालय अंतर्गत राष्ट्रीय संग्रहालय विज्ञान परिषद की इकाई साइंस सिटी द्वारा संयुक्त रूप से विकसित किया गया है। निदेशक अनुराग कुमार ने बताया क‍ि गणतंत्र दिवस परेड के अवसर पर आम तौर पर लोग अपने टीवी पर जो देखते हैं, उसे अब साइंस सिटी की यात्रा के दौरान लाइव देखा जा सकता है।
उन्‍होंने बताया, मिसाइल प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में भारत द्वारा किए गए महान कदमों के बारे में आगंतुकों को उत्साहित करने के लिए मिसाइलों के आदमकद प्रतिकृतियों के साथ मिसाइल पार्क स्थापित किया है। हम उम्मीद करते हैं कि मिसाइल पार्क खासकर युवाओं को विज्ञान और प्रौद्योगिकी को अपने करियर के रूप में अपनाने के लिए प्रोत्साहित करने में सक्षम होगा। उन्होंने बताया कि साइंस सिटी के प्रवेश टिकट के साथ मिसाइल पार्क में प्रवेश नि:शुल्क होगा।