Saturday, September 20, 2025
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अयोध्या और राम मंदिर का संपूर्ण इतिहास समेटे है 6 फुट की रामकथा

अयोध्या । अयोध्या में 22 जनवरी को होने वाले राम मंदिर के उद्घाटन को लेकर पूरे देश में एक लहर देखने को मिल रही है। समूचा भारत इन दिनों राममय हो चला है। घर-घर जाकर लोगों को इस कार्यक्रम में शामिल होने के लिए निमंत्रण दिया जा रहा है। राम मंदिर उद्घाटन और भगवान राम की मूर्ति के प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम के लिए गुजरात के अपूर्व शाह ने एक अनूठा उपहार तैयार किया है। अपूर्व शाह ने 6 फुट की आदमकद पुस्तक बनाई है। ‘राम एक आस्था का मंदिर’ नामक यह पुस्तक लोगों के बीच आकर्षण का केंद्र बनी हुई है। अपूर्व शाह का कहना है कि उन्होंने यह पुस्तक राम मंदिर ट्रस्ट के चंपतराय को भेंट करने के लिए बनाई है। स्टील के फ्रेम में जड़ी इस पुस्तक की निर्माण लागत 80 हजार रुपये है। अपूर्व शाह अहमदाबाद में नवरंग प्रिंटर्स नाम से एक डिजिटल प्रिंटिंग प्रेस चलाते हैं। उन्होंने लगभग एक साल पहले इस पुस्तक को तैयार किया था। देशभर में होने वाले पुस्तक मेलों में इस पुस्तक का प्रदर्शन किया जाता है। इन दिनों अहमदाबाद बुक फेयर में यह पुस्तक लगाई गई है.अपूर्व शाह ने बताया कि 36 पन्नों की इस पुस्तक में अलग-अलग अध्याय दिए गए हैं। 90 इंच की इस पुस्तक में 1528 से लेकर 2020 तक का अयोध्या राम मंदिर का इतिहास दिया गया है। अयोध्या के इतिहास के अलावा इसमें भगवान राम के गुण और राम राज्य के बारे में लिखा है। पुस्तक में राम मंदिर पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के लिए भी दो पन्ने दिए गए हैं। अपूर्व शाह ने 6 फुट की ‘राम एक आस्था का मंदिर’ पुस्तक की केवल एक ही प्रति तैयार की है. आम लोगों के लिए उन्होंने 11 इंच की छोटी पुस्तक तैयार की है। इस पुस्तक का मूल्य 300 रुपये है। इसमें भगवान राम का जीवन, पौराणिक अयोध्या का वर्णन, अयोध्या का इतिहास, हनुमान गढ़ी का इतिहास, भगवान राम मर्यादा पुरुषोत्तम क्यों कहलाए जाते हैं, सीता रसोई का इतिहास, लक्ष्मण घाट, सरयू नदी का इतिहास, राजनीति और अयोध्या विवाद के बारे में विस्तार से लिखा गया है. कुल मिलाकर यह पुस्तक अयोध्या और राम मंदिर को जानने का एक अच्छा माध्यम है।

सीआईएसएफ की पहली महिला प्रमुख बनीं नीना सिंह

नयी दिल्ली। नोबेल पुरस्कार विजेताओं के साथ शोध पत्र की सह-लेखिका से लेकर शीना बोरा हत्याकांड जैसे हाई-प्रोफाइल मामलों की निगरानी तक, राजस्थान कैडर की इस भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) अधिकारी नीना सिंह केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल (सीआईएसएफ) की पहली महिला प्रमुख के रूप में अपनी भूमिका में अनुभव का खजाना लेकर आई हैं।
अगस्त में अपने पूर्ववर्ती शील वर्धन सिंह की सेवानिवृत्ति के बाद वह पहले से ही बल के विशेष (अंतरिम) महानिदेशक का पद संभाल चुकी हैं। 1989 आईपीएस बैच की अधिकारी सिंह का राजस्थान पुलिस से लेकर केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) तक शानदार कॅरियर रहा है. उन्होंने अपने करियर में कई चीज़ें पहली बार कीं, जिनमें 2021 में राजस्थान पुलिस में महानिदेशक बनने वाली पहली महिला आईपीएस अधिकारी भी शामिल हैं।
बिहार की बेटी – बिहार के दरभंगा जिले की रहने वाली सिंह ने माध्यमिक शिक्षा पटना महिला कॉलेज से पूरी की और फिर दिल्ली की जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी (जेएनयू) से ग्रेजुएशन की डिग्री हासिल की। उन्होंने दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में एमफिल करने के लिए दाखिला लिया, लेकिन पुलिस सेवा में शामिल होने के बाद उन्होंने इसे पूरा नहीं किया। सिंह के पास हार्वर्ड यूनिवर्सिटी से लोक प्रशासन में मास्टर की डिग्री भी है. हार्वर्ड में ही उन्होंने नोबेल पुरस्कार विजेता अभिजीत बनर्जी और एस्थर डुफ्लो के साथ सिस्टम में सुधार और पुलिस प्रदर्शन में सुधार के विषय पर दो सह-शोध पत्र लिखे थे, जिसमें उन्होंने राजस्थान पुलिस के संदर्भ दिए थे। मणिपुर कैडर आवंटित, आईपीएस अधिकारी को राजस्थान कैडर के आईएएस अधिकारी रोहित कुमार सिंह से शादी के बाद उनके कॅरियर की शुरुआत में ही राजस्थान स्थानांतरित कर दिया गया था। उनके पति वर्तमान में केंद्रीय उपभोक्ता मामले मंत्रालय में सचिव के पद पर कार्यरत हैं।
जयपुर में पुलिस अधीक्षक के रूप में उन्हें दोपहिया वाहन चालकों के लिए हेलमेट के उपयोग को सख्ती से अनिवार्य करने का श्रेय दिया जाता है। वह उप-महानिरीक्षक, जयपुर रेंज और महानिरीक्षक, अजमेर रेंज बनीं। वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी को पेशेवर उत्कृष्टता के लिए अति उत्कृष्ट सेवा पद के साथ-साथ सराहनीय सेवा के लिए पुलिस पदक और राष्ट्रपति पुलिस पदक भी मिला है। सिंह प्रशासक की भूमिका में थीं और उन्होंने राजस्थान पुलिस के विभिन्न विशिष्ट विभागों में काम किया था। नागरिक अधिकार एवं मानव तस्करी विरोधी विभाग की प्रभारी एडीजी बनने से पहले वह एडीजी (प्रशिक्षण) थीं। 2021 में सीआईएसएफ में एडीजी के रूप में प्रतिनियुक्ति पर आने से पहले उन्हें उसी विभाग में डीजी स्तर पर पदोन्नत किया गया था।
सीआईएसएफ में उनका कार्यकाल उनकी दूसरी केंद्रीय प्रतिनियुक्ति है। उन्होंने 2013 और 2018 के बीच सीबीआई में संयुक्त निदेशक के रूप में काम किया था। उन्होंने सीबीआई के विशेष अपराध क्षेत्र का नेतृत्व किया और उनकी इकाई ने कई मामलों को सुलझाया जिनमें गुरुग्राम के एक स्कूल में एक छात्र की हत्या और हिमाचल प्रदेश में कोटखाई सामूहिक बलात्कार और हत्या का मामला भी शामिल है. उन्होंने सोशलाइट इंद्राणी मुखर्जी की बेटी शीना बोरा की हत्या सहित हाई-प्रोफाइल मामलों की भी निगरानी की थी। उन्हें 2018 में होम कैडर में वापस भेज दिया गया जहां उन्होंने अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक के रूप में काम किया और 2021 में वे राजस्थान पुलिस में डीजी रैंक की पहली महिला पुलिस अधिकारी बनीं।
शैक्षणिक अधिकारी’ – सीआईएसएफ के वरिष्ठ अधिकारियों ने दिप्रिंट को बताया कि चार महीने पहले जब उन्होंने बल के महानिदेशक के रूप में कार्यभार संभाला है। उन्होंने बल और देश भर में काम करने वाली सभी इकाइयों को “प्रेरित” किया है। सीआईएसएफ के वरिष्ठ अधिकारियों में से एक ने कहा कि उनके शैक्षणिक गुणों को सरकार ने भी अच्छी तरह से मान्यता दी है और वह बल को जनादेश के सभी पहलुओं में लागू करने और तैयार करने के लिए उनका उपयोग कर रही हैं। खासकर अंतर-विभागीय संचार में जैसा कि साप्ताहिक सम्मेलनों में देखा गया है, जहां प्रशासन, संचालन और कल्याण पर चर्चा की जाती है.
सीआईएसएफ की स्थापना 1969 में हुई थी और यह गृह मंत्रालय के तहत काम करता है। यह वर्तमान में देश भर में 358 प्रतिष्ठानों को सुरक्षा कवर प्रदान करता है। 13 दिसंबर की सुरक्षा उल्लंघन के बाद हाल ही में गृह मंत्रालय ने सीआईएसएफ को संसद परिसर का सर्वे करने के लिए कहा था।

अयोध्या का राम मंदिर : जानें- राम मंदिर की 20 विशेषताएं

अयोध्या में भव्य राम मंदिर के पहले चरण का कार्य लगभग पूरा हो गया है. 22 जनवरी को भगवान रामलला की प्राण प्रतिष्ठा होगी जिसके बाद तमाम रामभक्त अपने आराध्य के दर्शनों के लिए मंदिर आ सकेंगे। अयोध्या में बन रहे श्रीराम जन्मभूमि मंदिर की कई विशेषताएं. श्रीराम जन्मभूमि ट्रस्ट की ओर इसकी जानकारी दी गई हैं।
ट्रस्ट के मुताबिक राम मंदिर परम्परागत नागर शैली में बनाया जा रहा है। इस मंदिर की लंबाई (पूर्व से पश्चिम) 380 फीट, चौड़ाई 250 फीट तथा ऊंचाई 161 फीट रहेगी। मंदिर का निर्माण तीन मंजिला रहेगा. प्रत्येक मंजिल की ऊंचाई 20 फीट रहेगी. मंदिर में कुल 392 खंभे व 44 द्वार होंगे. आईए आपको मंदिर की अन्य ख़ास बातों के बारे में बताते हैं –
राम मंदिर की विशेषताएं
– राम मंदिर में मुख्य गर्भगृह में प्रभु श्रीराम का बालरूप (श्रीरामलला सरकार का विग्रह), तथा प्रथम तल पर श्रीराम दरबार होगा।
– मंदिर में 5 मंडप होंगे. नृत्य मंडप, रंग मंडप, सभा मंडप, प्रार्थना मंडप व कीर्तन मंडप होगा।
– खंभों व दीवारों में देवी देवता तथा देवांगनाओं की मूर्तियां उकेरी जा रही हैं।
– मंदिर में प्रवेश पूर्व दिशा से, 32 सीढ़ियां चढ़कर सिंहद्वार से होगा।
– दिव्यांगजन एवं वृद्धों के लिए मंदिर में रैम्प व लिफ्ट की व्यवस्था रहेगी।
– मंदिर के चारों ओर चारों ओर आयताकार परकोटा रहेगा। चारों दिशाओं में इसकी कुल लंबाई 732 मीटर तथा चौड़ाई 14 फीट होगी।
– परकोटा के चारों कोनों पर सूर्यदेव, मां भगवती, गणपति व भगवान शिव को समर्पित चार मंदिरों का निर्माण होगा। उत्तरी भुजा में मां अन्नपूर्णा, व दक्षिणी भुजा में हनुमान जी का मंदिर रहेगा।
– मंदिर के समीप पौराणिक काल का सीताकूप विद्यमान रहेगा।
– मंदिर परिसर में प्रस्तावित अन्य मंदिर- महर्षि वाल्मीकि, महर्षि वशिष्ठ, महर्षि विश्वामित्र, महर्षि अगस्त्य, निषादराज, माता शबरी व ऋषिपत्नी देवी अहिल्या को समर्पित होंगे।
– दक्षिण पश्चिमी भाग में नवरत्न कुबेर टीला पर भगवान शिव के प्राचीन मंदिर का जीर्णोद्धार किया गया है एवं तथा वहां जटायु प्रतिमा की स्थापना की गई है।
– मंदिर में लोहे का प्रयोग नहीं होगा। धरती के ऊपर बिलकुल भी कंक्रीट नहीं है.
– मंदिर के नीचे 14 मीटर मोटी रोलर कॉम्पेक्टेड कंक्रीट (आरसीसी) बिछाई गई है। इसे कृत्रिम चट्टान का रूप दिया गया है।
– मंदिर को धरती की नमी से बचाने के लिए 21 फीट ऊंची प्लिंथ ग्रेनाइट से बनाई गई है।
– मंदिर परिसर में स्वतंत्र रूप से सीवर ट्रीटमेंट प्लांट, वॉटर ट्रीटमेंट प्लांट, अग्निशमन के लिए जल व्यवस्था तथा स्वतंत्र पॉवर स्टेशन का निर्माण किया गया है, ताकि बाहरी संसाधनों पर न्यूनतम निर्भरता रहे।
– 25 हजार क्षमता वाले एक दर्शनार्थी सुविधा केंद्र का निर्माण किया जा रहा है, जहां दर्शनार्थियों का सामान रखने के लिए लॉकर व चिकित्सा की सुविधा रहेगी।
– मंदिर परिसर में स्नानागार, शौचालय, वॉश बेसिन, ओपन टैप्स आदि की सुविधा भी रहेगी।
– मंदिर का निर्माण पूर्णतया भारतीय परम्परानुसार व स्वदेशी तकनीक से किया जा रहा है। पर्यावरण-जल संरक्षण पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है. कुल 70 एकड़ क्षेत्र में 70% क्षेत्र सदा हरित रहेगा।

आंख में चोट लगी तो 16 साल के युवा ने बना दी ‘ब्रेल लिपि’

वह खुद नेत्रहीन थे पर नेत्रहीनों के मसीहा माने जाते हैं। महज तीन साल की उम्र में उन्होंने चोट लगने के कारण अपनी आंखों की रोशनी गंवा दी थी इसलिए नेत्रहीनों का दर्द बखूबी समझते थे इसलिए जैसे-जैसे बड़े हुए नेत्रहीनों की राह आसान करने की ठानी और 16 साल की उम्र में एक ऐसी भाषा का आविष्कार कर डाला जिसे नेत्रहीन भी पढ़ सकें। इस भाषा को हम ब्रेल लिपि के नाम से जानते हैं। इसे इसके आविष्कारक लुई ब्रेल की मौत के 16 साल बाद मान्यता मिली जब दुनिया ने उनकी देन को माना । चार जनवरी को हर साल विश्व ब्रेल दिवस मनाया जाने लगा । जानते हैं उन्हीं लुई ब्रेल की कहानी-
फ्रांस में हुआ था लुई ब्रेल का जन्म – चार जनवरी 1809 को लुई ब्रेल का जन्म फ्रांस की राजधानी पेरिस से लगभग 40 किलोमीटर दूर कूपरे नाम के एक गांव में हुआ था। चार भाई बहनों में सबसे छोटे लुई के पिता का नाम सायमन ब्रेल और मां का नाम मोनिका था। लुई के पिता घोड़ों की जीन बनाने वाली फैक्टरी चलाते थे। लुई तीन साल के थे, तभी एक दिन खेल-खेल में चाकू से घोड़े की जीन के लिए चमड़ा काटने की कोशिश करने लगे। उसी दौरान चाकू हाथ से फिसला और उनकी एक आंख में जा लगा। इस चोट के कारण हुए इंफेक्शन से लुई को एक आंख से दिखना बंद हो गया। इस संक्रमण का ऐसा बुरा असर पड़ा कि धीरे-धीरे उनकी दूसरी आंख की रोशनी भी चली गई।
जिस स्कूल में पढ़े, वहीं बने शिक्षक – आंखों की रोशनी जाने के बाद लुई के बचपन के नौ साल ऐसे ही गुजर गए। वह 10 साल के हुए तो पिता ने पेरिस के एक ब्लाइंड स्कूल में उनका दाखिला करवा दिया। वह पढ़ाई में अव्वल रहे और अपनी अकादमिक प्रतिभा के बल पर उन्हें रॉयल इंस्टीट्यूट फॉर ब्लाइंड यूथ की स्कॉलरशिप भी मिली। बाद में लुई ब्रेल इसी स्कूल में शिक्षक भी नियुक्त हुए।
पढ़ाई के दौरान बनाया टच कोड – रॉयल इंस्टीट्यूट फॉर ब्लाइंड में पढ़ाई के दौरान नेत्रहीनों की समस्या हल करने के लिए लुई ब्रेल ने एक टच कोड (स्पर्श कोड) विकसित कर लिया जिससे देखने में अक्षम लोग बिना किसी की मदद के पढ़ाई कर सकें। इसी दौरान उनकी मुलाकात सेना के कैप्टन चार्ल्स बार्बियर से हो गई। उन्होंने भी एक खास लिपि विकसित की थी, जिसे क्रिप्टोग्राफी लिपि कहा जाता था। यह लिपि सेना के काम आती थी. इसकी मदद से रात के अंधेरे में भी सैनिकों को मैसेज पढ़ने में कोई दिक्कत नहीं आती थी। उन्हीं कैप्टन बार्बियर की मदद और सैना की क्रिप्टोग्राफी लिपि से प्रेरणा लेकर लुई ब्रेल ने बाद में एक और नई तरकीब ईजाद की, जिससे नेत्रहीन पढ़ सकें. इस ईजाद के वक्त लुई ब्रेल की उम्र सिर्फ 16 साल थी।
इस तरह काम करती थी लुई की लिपि – नेत्रहीनों के लिए तैयार की गई लुई ब्रेल की खास लिपि 12 प्वाइंट्स पर आधारित थी। इन सभी 12 प्वाइंट्स को 66 की लाइन में रखते थे। उस समय इसमें फुलस्टॉप, नंबर और मैथ्स के तमाम सिम्बल के लिए कोई जगह नहीं थी. इस कमी को दूर करने के लिए बाद में लुई ब्रेल ने 12 की जगह केवल छह प्वाइंट्स का इस्तेमाल किया। इसके बाद अपनी खास लिपि में 64 लेटर (अक्षर) और साइन (चिह्न) जोड़े. यही नहीं, उन्होंने फुलस्टॉप, नंबर और यहां तक कि म्यूजिक के नोटेशन लिखने के लिए भी जरूरी साइन इसमें शामिल किया।
1829 में प्रकाशित की ब्रेल लिपि – लुई ब्रेल को जब यकीन हो गया कि उनकी बनाई लिपि अब दुनिया के किसी काम आ सकती है तो पहली बार सन् 1824-25 में इसे सबके सामने लेकर आए । इसके बाद और तैयारी की और पहली बार 1829 ईस्वी में इस लिपि की प्रणाली को प्रकाशित किया, जिसे बाद में उन्हीं के नाम पर ब्रेल लिपि कहा गया. हालांकि, इसे जब मान्यता मिली, तब तक वह जीवित नहीं थे।
अब पूरी दुनिया में मान्य है लुई ब्रेल की भाषा – सिर्फ 43 साल की उम्र में छह जनवरी 1852 को लुई ब्रेल ने दुनिया को अलविदा कह दिया। तब तक उनकी लिपि को मान्यता नहीं दी गई थी। लुई ब्रेल की मौत के 16 साल बाद सन् 1868 ईस्वी में ब्रेल लिपि को प्रमाणिक रूप से मान्य करार दिया गया। तबसे लुई ब्रेल की यह भाषा आज भी पूरी दुनिया में मान्य है।
संयुक्त राष्ट्र महासभा ने दिया सम्मान – भले ही जीते जी लुई ब्रेल के काम को दुनिया ने ढंग से न तो सराहा और न ही उसका महत्व समझ पाई पर मरने के बाद उनके काम को प्रशंसा ही नहीं, अपनत्व भी मिला। फिर तो पूरी दुनिया में उनका सम्मान होने लगा। संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 2019 में फैसला किया कि लुई ब्रेल के सम्मान में हर साल चार जनवरी यानी उनकी जयंती पर पूरी दुनिया में लुई ब्रेल दिवस मनाया जाएगा। पहली बार उसी साल चार जनवरी को यह दिवस मनाया भी गया और तबसे लगातार हर साल मनाया जाता है।
भारत सरकार ने जारी किया था डाक टिकट – लुई ब्रेल के जन्म के दो सौ साल पूरे होने पर चार जनवरी 2009 को भारत सरकार ने भी लुई ब्रेल के सम्मान में डाक टिकट जारी किया था, जिस पर उनकी तस्वीर थी। आज विश्व भर के देखने में अक्षम लोगों को ब्रेल लिपि रास्ता दिखा रही है। वे आसानी से इसका इस्तेमाल पढ़ने-लिखने के लिए करते हैं।

भारत का वह साहूकार, अंग्रेज-मुगल भी मांगते थे इनसे उधार

भारत सदियों से दुनिया के लिए एक बड़ा व्यापारिक केंद्र रहा. दुनियाभर से कई लोग भारत में व्यापार करने के लिए आए। आज भारतीय उद्योगपतियों का पूरी दुनिया में जलवा और व्यापार है, लेकिन क्या आप सदियों पुराने एक व्यवसायी के बारे में जानते हैं जिनकी ख्याति 400 साल पहले ही दुनियाभर में हो चुकी थी। हम बात कर रहे हैं वीरजी वोरा की, जिनक नाम बहुत कम लोग ही जानते हैं। यह शख्स अंग्रेजों के जमाने में भारत का सबसे अमीर बिजनेसमैन हुआ करता था । इतना नही नहीं वीर जी वोरा ने मुगल काल भी देखा। आइये आपको बताते हैं वीर जी वोरा की कहानी और मशहूर किस्से..
वीरजी वोरा को अंग्रेज मर्चेंट प्रिंस के नाम से जानते थे। बताया जाता है कि वे 1617 और 1670 के बीच ईस्ट इंडिया कंपनी के एक बड़े फाइनेंसर थे। उन्होंने ईस्ट इंडिया कंपनी को 2,00,000 रुपये की संपत्ति उधार दी थी। डीएनए की रिपोर्ट के अनुसार, 16वीं शताब्दी के दौरान वीरजी वोरा की नेटवर्थ लगभग 8 मिलियन डॉलर यानी 65 करोड़ रुपये से ज्यादा थी। सोचिये आज से 400 साल पहले के 65 करोड़ की कीमत खरबों रुपये में होगी। आज के नामी उद्योगपतियों से वे कई गुना अमीर थे.।
मुगल बादशाह ने मांगी थी मदद -ऐतिहासिक मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, वीरजी वोरा कई सामानों का व्यापार करते थे जिनमें काली मिर्च, सोना, इलायची और अन्य चीजें शामिल थीं. वीरजी वोरा 1629 से 1668 के बीच अंग्रेजों के साथ कई व्यापारिक काम किए। वह अक्सर किसी उत्पाद का पूरा स्टॉक खरीद लेते थे और उसे भारी मुनाफे पर बेच देते थे। वीर जी वोरा एक साहूकार भी था और यहां तक की अंग्रेज भी उससे पैसा उधार लेते थे। कुछ इतिहासकारों की मानें तो जब मुगल बादशाह औरंगजेब भारत के दक्कन क्षेत्र को जीतने के लिए युद्ध के दौरान वित्तीय बाधाओं का सामना कर रहा था, तो उसने पैसे उधार लेने के लिए अपने दूत को वीरजी वोहरा के पास भेजा था।
वीरजी वोरा का व्यवसाय और लेन-देन पूरे भारत और फारस की खाड़ी, लाल सागर और दक्षिण-पूर्व एशिया के बंदरगाह शहरों में फैला हुआ था। वीरजी वोरा के पास उस समय के सभी महत्वपूर्ण व्यापारिक केंद्रों पर एजेंट भी थे, जिनमें आगरा, बुरहानपुर, डेक्कन में गोलकुंडा, गोवा, कालीकट, बिहार, अहमदाबाद, वडोदरा और बारूच शामिल थे। 1670 में वीर जी वोरा ने दुनिया को अलविदा कह दिया. लेकिन एक व्यवसायी के तौर पर उनकी पहचान आज भी कायम है।

ऐसे कीजिए बचे हुए खाने का सही उपयोग 

अक्सर खाना बच जाता है और हम सोच में पड़ जाते हैं कि इसका क्या करें….और ऐसा क्या करें कि खाना सही तरीके से इस्तेमाल किया जा सके और बर्बाद न हो। अगर आप भी यही सोच रहे हैं तो इंटरनेट की दुनिया से हम आपके लिए खोज लाए हैं बचे हुए भोजन का सदुपयोग करने के कुछ तरीके…तो चलिए आप भी देख लीजिए –
1.यदि चावल बच गया है तो उसमें सूजी,नमक, दही और गुनगुना  पानी मिलाकर मिक्सी में पीस लें और इस से इडली बना लें।
2. बचे हुए चावल में सफेद तिल, साबूत धनिया, सौंफ ,लाल मिर्च पाउडर, हल्दी पाउडर, बेसन और नमक मिलाकर उसके पकौड़े भी बना सकते हैं।
 3. नूडल्स बच जाये तो सूप ,स्प्रिंग रोल बनाने में इस्तेमाल कर सकते हैं या मिक्स सब्जियों को मिलाकर कटलेट भी बना सकते हैं।
4. रोटियां बच जाए तो मिक्सर में पीस कर घी , सूखे मेवे और गुड़/ चीनी मिलाकर लड्डू बना सकते हैं।
 5. साबूत उड़द की दाल बच गई हो तो 1/2 कप दूध और थोडा बटर मिलाकर  पकाएं।   प्याज ,लहसून, ,अदरक ,हरी मिर्च और थोड़ा गरम मसाला मिलाकर  तड़का लगा दे । स्वादिष्ट दाल मक्खनी तैयार है।
6. बची हुई रोटी को गर्म घी में तलकर/ तवे पर सेक कर ऊपर जीरावन डालें। कुरकुरा पापड़ तैयार है।
7. मावे की मिठाई बच जाए तो मसलकर थोड़े से घी में भून लें। आटे को गूंथ लें और इसे भरकर मीठी पूरियां तल लें।पूरन पोली तैयार है।
8. इडली बच जाये तो राई, लाल मिर्च और कढ़ी पत्ते का तड़का  लगा दें। नमक और धनिया मिलाये.फ्राइड इडली तैयार है।
9. गाजर के हलवे को आटे में भरकर  मीठी पूरी या परांठे बना लें।
10. बची हुई ब्रेड स्लाइस पर शिमला मिर्च,प्याज और चीज को कद्दूकस करके लगाए और ग्रिल  कर लें। ब्रेड पिज्जा तैयार।
11. बचे हुए ब्रेड का चूरा कर ले । दूध , मलाई,घी और मैदा मिलाकर छोटे-छोटे गोले बनाकर तल लें और चीनी की चाशनी में डाल दें। ब्रेड के गुलाब जामुन तैयार है।
12. बची हुई सब्जियों को मैश करके उसमें ब्रेड का चूरा या बेसन, अदरक और हरी मिर्च मिलाकर  कटलेट बना लें।
13. सब्जी को मैश करके, बेसन के घोल में डुबाकर तल लें। कोफ्ते तैयार। ग्रेवी में डाल कर कोफ्ते की सब्जी बना सकते हैं।
14. सब्जियां बच गयी है तो एक पैन में घी गरम कर के राई का तड़का लगाए. टमाटर, गरम मसाला, पाव भाजी मसाला डाल कर मैश कर लें। पाव भाजी तैयार है।
15. बची हुई पूरी /रोटी को सुखा ले और चुरा कर ले. तेल में राई, जीरा, हींग,कढ़ी पत्ते का तड़का  लगाकर प्याज व तले हुए मूंगफली के दाने भी मिला दें। इसमें पूरी या रोटी का चूरा डालकर पोहा बना लें। नींबू, हरा धनिया मिलाए।
16. बची हुई  रोटी के बीच में बची हुई पत्ता गोभी की सब्जी रख कर मोड़ दे और तवे पर घी लगा कर सेक ले….रोटी पिज़्ज़ा तैयार है।
17. दही बड़े बच जाएं तो कढ़ी में डाल दें। बड़े वाली कढ़ी तैयार है।
18.कटे टमाटर, प्याज, पनीर, हरा धनिया और बचे हुए छोलों को एक साथ मिला लें। ऊपर से कालीमिर्च पाउडर, काला नमक , चाट मसाला, जीरा पाउडर, नमक, चटनी ,नींबू का रस मिलाएं चना चाट तैयार है।
19. बची हुई दाल/ सब्जी में हरी मिर्च, हरा धनिया, कसूरी मेथी, सौंफ, अजवाइन, नमक और आटा डालकर गूंथ लें और परांठे बना लें।
20. बची हुई दाल में आटा, सूजी, व घी मिलाकर गूंथ लें और छोटी-छोटी मठरियां बेलकर तल लें।
21. बची हुई अरहर की दाल, लौकी और अन्य सब्जियां, सांभर मसाला और टमाटर  डालकर उबाल लें।राई और कढ़ी पत्ते का तड़का लगाए. सांबर तैयार.
22. बचे हुए चावल में बारीक कटी सब्ज़ियाँ मिलाकर वेजीटेबल पुलाव बना लें।
23. बचे हुए चावल में घी, चीनी या गुड़ और ड्राई फ्रूड्स डालकर मीठे चावल बना ले.
24. बचे हुए चावल में उबला आलू ,ब्रेड का चूरा, नमक, हरी मिर्च, हरा धनिया, गरम मसाला मिलाकर कटलेट बना लें।
25. बची ही चाशनी में मैदा और सूजी मिलाकर मीठे शक्कर पारे बना लें।
26. बची हुई चाशनी में इमली का गूदा, ,सोंठ, नमक आदि डालकर मीठी चटनी भी बना सकते हैं।
27. चाशनी को शरबत/ खीर, हलवा  बनाने मे उपयोग कर सकते हैं।
28. छाछ खट्टी हो गई हो तो उसमें पानी मिला कर कुछ देर रख दें। उसके बाद ऊपर से पानी निकाल दें, छाछ का खट्टापन कम हो जाएगा।
29. यदि दही ज्यादा खट्टा हो गया है तो उसमें थोड़ा दूध मिला दे खटाई  कम हो जाएगी.

एफटीएस युवा के एकल रन के 5वें संस्करण का गीता फोगाट ने किया उद्घाटन

फ्रेंड्स ऑफ ट्राइबल्स सोसाइटी की युवा शाखा है
 कोलकाता । फ्रेंड्स ऑफ ट्राइबल्स सोसाइटी की युवा शाखा एफटीएस युवा की ओर से गत रविवार को कोलकाता के गोदरेज वाटरसाइड में अपने वार्षिक कार्यक्रम एकल रन का आयोजन किया गया। जिसमें 5 हजार से अधिक प्रतिभागियों ने समयबद्ध दौड़ की अपनी चुनी हुई श्रेणी – 21 किमी, 10 किमी, 5 किमी और के लिए एक दूसरे के साथ दकम से कदम मिलाया। इस मैराथन में सबसे दिलचस्प 3 किमी की गैर-समयबद्ध दौड़ में सभी आयु वर्ग के लोगों ने भाग लिया। रविवार सुबह एकल दौड़ का उद्घाटन एथलीट गीता फोगाट ने किया। इसके साथ इस कार्यक्रम में नील भट्टाचार्य (अभिनेता), राहुल देव बोस (अभिनेता), देबद्रिता बसु (अभिनेत्री), सौमोजीत अदक (निदेशक), एके आर्या (डीआइजी बीएसएफ), सुरजीत सिंह गुलेरिया (डिप्टी इंस्पेक्टर जनरल (जी), मुख्यालय, एसडीआर (ईसी), बीएसएफ) के साथ आईसीएआई के उपाध्यक्ष सीए रणजीत कुमार अग्रवाल के अलावा कई अन्य  गणमान्य व्यक्ति इस मौके पर मौजूद थे।  एफटीएस युवा कोलकाता चैप्टर के अध्यक्ष श्री गौरव बागला ने कहा, एकल रन के 5वें संस्करण में गीता फोगाट को अपने साथ पाकर हम काफी अभिभूत हैं। हर व्यक्ति के जीवन में दौ़ड़ना सबसे बड़ा रूपक माना जाता है। ग्रामीण बच्चों को शिक्षित करने की प्रेरणा के साथ यह एकल रन सिटी ऑफ जॉय के निवासियों को काफी उत्साहित करता है। इस मैराथन में हिस्सा लेनेवाले प्रतिभागियों को टी-शर्ट, गुडी बैग और फूड बॉक्स दिए गए। इसके विजेताओं के साथ उपविजेताओं को पदक और स्मृति चिन्ह देकर सम्मानित किया गया। एफटीएस युवा बोर्ड के प्रमुख सदस्यों में – अनिरुद्ध मोदी (सलाहकार), नीरज हरोदिया (राष्ट्रीय समन्वयक), गौरव बागला (अध्यक्ष), ऋषभ सरावगी (उपाध्यक्ष), विकास पोद्दार (उपाध्यक्ष), अभय केजरीवाल (उपाध्यक्ष), विनय चुघ (सलाहकार), रौनक फतेसरिया (सचिव), रोहित बुचा (संयुक्त सचिव), ऋषव गादिया, (कोषाध्यक्ष), रचित चौधरी (संयुक्त कोषाध्यक्ष), मयंक सरावगी (हेड, डोनेशन एंड फंड रेजिंग), अंकित दीवान (प्रमुख सदस्यता), योगेश चौधरी (पीआरओ), वैभव पांड्या और मनीष धारीवाल (बोर्ड सदस्य) हमेशा सक्रिय रहते हैं।

55वें गारमेंट बायर्स एंड सेलर्स मीट और बी2बी एक्सपो में 850-900 करोड़ के कारोबार की उम्मीद

पश्चिम बंगाल गारमेंट मैन्युफैक्चरर्स एंड डीलर्स एसोसिएशन का आयोजन
कोलकाता । पश्चिम बंगाल गारमेंट मैन्युफैक्चरर्स एंड डीलर्स एसोसिएशन ने अपने समर्पित सेवा के गौरवशाली 58 वर्ष पूर्ण कर लिए हैं। राज्य में गारमेंट सेक्टर के व्यवसायियों के लिए तीन दिवसीय 55वां गारमेंट बायर्स एंड सेलर्स मीट और बी2बी एक्सपो का आयोजन 8, 9 और 10 जनवरी 2024 को कोलकाता के इको पार्क फेयरग्राउंड में किया गया है। 55वें गारमेंट बायर्स एंड सेलर्स मीट और बी2बी एक्सपो में 900 राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय ब्रांड भाग लें रहे हैं। इससे करोड़ों रुपये की आय होने की उम्मीद है। इस एक्सपो में थोक सौदों में 850-900 करोड़ रुपये का व्यापारिक लेनदेन होने की उम्मीद जतायी जा रही है । राज्य की अर्थव्यवस्था को विकसित करने में एसोसिएशन के इस प्रयास के महत्व को ध्यान में रखते हुए, इस कार्यक्रम में राज्य सरकार के साथ बड़े-बड़े उद्योगपति के साथ प्रमुख व्यापारिक घरानों के व्यवसायी इसमें शामिल हुए। इस कार्यक्रम का उद्घाटन सुजीत बोस (अग्निशमन राज्य मंत्री, पश्चिम बंगाल सरकार) ने किया। इस कार्यक्रम में उपस्थित रहनेवाले अन्य प्रतिष्ठित हस्तियों में निर्मल जैन (संस्थापक, एवरग्रीन होजियरी उद्योग), हरि किशन राठी (डब्ल्यूबीजीएमडीए के अध्यक्ष), विजय करीवाला (डब्ल्यूबीजीएमडीए के वरिष्ठ उपाध्यक्ष), प्रदीप मुरारका (डब्ल्यूबीजीएमडीए के उपाध्यक्ष), देवेन्द्र बैद (डब्ल्यूबीजीएमडीए के माननीय सचिव), डी मित्रा (संयुक्त निदेशक, एमएसएमई- डीएफओ, कोलकाता) के साथ समाज के अन्य क्षेत्र से जुड़ी कई अन्य प्रसिद्ध हस्तियां इसमें शामिल हुए। यह एसोसिएशन एक आधुनिक जीवंत और प्रतिस्पर्धी परिधान उद्योग, मुख्य रूप से एमएसएमई विकसित करने और देश को वैश्विक गारमेंट आपूर्ति श्रृंखला में एक मजबूत केंद्र के रूप में विकसित करने में सक्षम बनाने के लिए अपनी स्थापना के बाद से लगातार गारमेंट मेला और बी2बी एक्सपो का आयोजन करता आ रहा है। अब बायर एंड सेलर्स मीट का यह आयोजन देश के पूर्वी हिस्से में सबसे लोकप्रिय और भरोसेमंद कंपनियों के लिए एक संगम स्थल बन गया है। इस अवसर पर वेस्ट बंगाल गारमेंट मैन्युफैक्चरर्स एंड डीलर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष हरि किशन राठी ने कहा, पिछले कुछ वर्षों में हमें अपने व्यपारी भाईयों से जो अपार समर्थन मिला है वह अभूतपूर्व है। इस उद्योग के हमारे पूर्व पीढ़ी के लोगों ने ऐसे रास्ते बनाए हैं, जहां से हमे आगे बढ़ने के मार्ग को सरल बनाती हैं। हम खुशी से उनके नक्शेकदम पर चल सकते हैं, और व्यवसाय को आगे बढ़ाने के साथ नयी-नयी नौकरियों का सृजन कर सकते हैं। यह नई पीढ़ी के लिए नया और ब़ड़ा अवसर है। वेस्ट बंगाल गारमेंट मैन्युफैक्चरर्स एंड डीलर्स एसोसिएशन के सचिव देवेन्द्र बैद ने कहा कि हमारे एसोसिएशन द्वारा आयोजित खरीदारों और विक्रेताओं की इस तरह के आयोजन ने देश के पूर्वी हिस्से में पिछले पांच दशकों के दौरान लगातार कारोबार में सफलता हासिल की है। यह पूर्वी भारत की सबसे बड़ी रेडीमेड गारमेंट मीट है। इस बैठक को एमएसएमई विभाग द्वारा मंजूरी दे दी गई है, जिससे हमारी बैठक इस क्षेत्र में अपनी तरह की पहली बैठक बन गई है। वेस्ट बंगाल गारमेंट मैन्युफैक्चरर्स एंड ट्रेडर्स एसोसिएशन में उपस्थित अन्य प्रमुख समिति के सदस्यों में श्री कन्हियालाल लखोटिया (कोषाध्यक्ष), प्रेम कुमार सिंहल (संयुक्त कोषाध्यक्ष), अमरचंद जैन, तरूण कुमार झाझरिया, आशीष झंवर, मनीष राठी, कमलेश केडिया, मनीष अग्रवाल, किशोर कुमार गुलगुलिया, विक्रम सिंह बैद, सौरव चांडक, साकेत खंडेलवाल, अजय सुल्तानिया, राजीव केडिया, संदीप राजा, बृज मोहन मूंधड़ा, भुवन अरोड़ा, मोहित दुगड़ के अलावा कार्यकारी समिति के सदस्य और पूर्व अध्यक्ष हरि प्रसाद शर्मा के साथ चांद मल लाढ़ा ने इस कार्यक्रम को सफल बनाने में काफी अहम भूमिका निभाई।

 सॉल्टलेक में खुला एचपी घोष अस्पताल

कोलकाता । ईस्टर्न इंडिया हार्ट केयर एंड रिसर्च फाउंडेशन की इकाई एचपी घोष हॉस्पिटल का साल्टलेक के सेक्टर-3 में रविवार को उद्घाटन किया गया। 184 बेड वाले इस मल्टीस्पेशलिटी अस्पताल का उद्घाटन प्रसिद्ध क्रिकेटर एवं बीसीसीआई के पूर्व अध्यक्ष और भारतीय क्रिकेट टीम के पूर्व कप्तान सौरव गांगुली ने किया।
इस अवसर पर सम्मानीय अतिथि सुजीत बोस (अग्निशमन राज्य मंत्री, पश्चिम बंगाल), बंधन बैंक के एमडी और सीईओ चंद्र शेखर घोष और समाज के अन्य गणमान्य व्यक्ति यहां उपस्थित थे। 75,000 वर्ग फुट में फैले 10 मंजिली इस अस्पताल में अत्याधुनिक सुविधाओं से सुसाज्जित विदेशी तकनीक की लेटेस्ट मशीने उपलब्ध हैं। अत्याधुनिक तकनीकों के साथ सर्वोत्तम श्रेणी की चिकित्सा सेवाओं से लैस इस अस्पताल में प्रतिष्ठित हेल्थकेयर विशेषज्ञों की पूरी टीम मौजूद है। एचपी घोष अस्पताल में कार्डियोलॉजी, न्यूरो, स्पाइन और ऑर्थोपेडिक उपचार पर विशेष ध्यान केंद्रित किया गया है। इस अस्पताल में बेहतरीन सेवाओं की पूरी श्रृंखला प्रदान की जायेगी। इस अस्पताल में अत्याधुनिक ऑपरेशन थिएटर मौजूद हैं, जिसे सभी आधुनिक और अद्यतन उपकरणों से सुसज्जित किया गया हैं। एच पी घोष अस्पताल के सीईओ श्री सोमनाथ भट्टाचार्य ने कहा, हम इस अस्पताल में मरीजों के लिए विश्व स्तरीय स्वास्थ्य सेवाएं लाये हैं। हमारी कोशिश यहां चिकित्सा के हर क्षेत्र में रोगी-अनुकूल समग्र स्वास्थ्य देखभाल को बढ़ावा देना है, जिससे रोगियों को घर जैसा माहौल फील हो सके। हम इस अस्पताल में मरीजों की सेवा जुनून, करुणा और विशेष अनुभव के साथ करेंगे, जिससे वे जल्द से जल्द स्वस्थ हो सकें।
इस अवसर पर सौरव और डोना गांगुली ने एचपी घोष अस्पताल को एक ऐसी जगह बनाने के लिए बधाई दी, जहां मरीज़ अपनी चिकित्सा आरामदायक और शांत वातावरण में करा सकेंगे। सौरव के साथ डोना ने अस्पताल को स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र में उसके नेक प्रयास के लिए शुभकामनाएं दीं।

सिखाएं घर के काम और बच्चे को बनाएं स्वतंत्र एवं जिम्मेदार

पूर्ण और आत्मविश्वासी व्यक्तियों के पोषण की हमारी खोज में, बच्चों में स्वतंत्रता की भावना पैदा करना सर्वोपरि है। इसे हासिल करने का एक प्रभावी तरीका उन्हें छोटे-छोटे घरेलू काम सौंपना है। ये साधारण प्रतीत होने वाले कार्य बच्चे के चरित्र को आकार देने, जिम्मेदारी को बढ़ावा देने और आत्मविश्वास पैदा करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। आइए उन कारणों पर गौर करें कि क्यों बच्चों को घरेलू कामों में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित करना एक पालन-पोषण की रणनीति है।
1. जिम्मेदारी की भावना पैदा करना – जब बच्चों को विशिष्ट कार्य दिए जाते हैं, तो वे जिम्मेदारी का सार सीखते हैं। चाहे उनका बिस्तर बनाना हो या खाने की मेज सजाना हो, ये काम छोटी उम्र से ही कर्तव्य और जवाबदेही की भावना पैदा करते हैं।
2. आत्म-सम्मान बढ़ाना – कार्यों को सफलतापूर्वक पूरा करने से बच्चों को उपलब्धि का एहसास होता है। आत्म-सम्मान में यह वृद्धि उनके जीवन के अन्य पहलुओं में भी काम करती है, जिससे वे चुनौतियों से निपटने में अधिक लचीला और आश्वस्त हो जाते हैं।
3. जीवन कौशल का विकास करना – घरेलू कामकाज व्यावहारिक जीवन कौशल सिखाते हैं जो वयस्कता में अपरिहार्य हैं। बुनियादी सफाई तकनीकों से लेकर समय प्रबंधन तक, बच्चे कौशल का भंडार हासिल करते हैं जो जीवन भर उनके काम आएगा।
4. टीम वर्क और सहयोग को बढ़ावा देना – काम सौंपने में अक्सर भाई-बहनों या परिवार के सदस्यों का सहयोग शामिल होता है। यह टीम वर्क की भावना को बढ़ावा देता है, बच्चों को एक समान लक्ष्य के लिए मिलकर काम करने का मूल्य सिखाता है।
5. अनुशासन स्थापित करना – कामकाज में नियमित रूप से शामिल होने से बच्चों में अनुशासन स्थापित होता है और दिनचर्या स्थापित होती है। वे निरंतरता और संगठन के महत्व को सीखते हैं, जो जीवन के विभिन्न पहलुओं में सफलता के लिए महत्वपूर्ण गुण हैं।
6. प्रयास की सराहना – काम पूरा करना बच्चों को सिखाता है कि प्रयास सीधे परिणामों से जुड़ा होता है। यह समझ एक मजबूत कार्य नीति और उनके प्रयासों में समय और ऊर्जा निवेश करने की इच्छा की नींव रखती है।
7. क्रियाओं और परिणामों के बीच संबंध – कार्य कार्यों और परिणामों के बीच एक ठोस संबंध प्रदान करते हैं। जब बच्चे अपनी जिम्मेदारियों की उपेक्षा करते हैं, तो वे अपनी पसंद के स्वाभाविक परिणाम का अनुभव करते हैं, जिससे उन्हें जीवन के मूल्यवान सबक मिलते हैं।
8. समय प्रबंधन कौशल – अपने काम कब करने हैं इसकी योजना बनाने से लेकर उन्हें एक निर्धारित समय सीमा के भीतर पूरा करने तक, बच्चे आवश्यक समय प्रबंधन कौशल विकसित करते हैं जो बाद में जीवन में शैक्षणिक और व्यावसायिक गतिविधियों पर लागू होते हैं।
9. व्यावहारिक ज्ञान का निर्माण – घरेलू कामों में व्यस्त रहने से बच्चों को घर के माहौल के बारे में व्यावहारिक ज्ञान प्राप्त होता है। वे बुनियादी घरेलू वस्तुओं, उनके उपयोग और रखरखाव से परिचित हो जाते हैं, जिससे एक सर्वांगीण शिक्षा में योगदान मिलता है।
10. उत्साहवर्धक पहल – जैसे-जैसे बच्चे अपने निर्धारित कार्यों के आदी हो जाते हैं, वे अक्सर अतिरिक्त कार्यों को पहचानने और उन्हें पूरा करने की पहल करते हैं। यह सक्रिय व्यवहार उनकी स्वतंत्रता को और बढ़ाता है।
11. औजारों और उपकरणों को संभालना सीखना – कुछ कार्यों में औज़ारों और उपकरणों का उपयोग शामिल होता है। इन वस्तुओं को सुरक्षित रूप से संभालना सीखने से न केवल क्षमता का निर्माण होता है बल्कि जिम्मेदारी की स्वस्थ समझ को भी बढ़ावा मिलता है।
12. वयस्कता की तैयारी – घरेलू कामकाज के माध्यम से हासिल किए गए कौशल वयस्कता की चुनौतियों के लिए नींव के रूप में काम करते हैं। चाहे घर संभालना हो या करियर में उत्कृष्ट प्रदर्शन करना हो, ये अनुभव अमूल्य साबित होते हैं।
13. समस्या-समाधान क्षमताओं को बढ़ाना – कामकाज अक्सर अप्रत्याशित चुनौतियाँ पेश करते हैं। बच्चे इन व्यावहारिक अनुभवों के माध्यम से अपने पैरों पर खड़ा होकर सोचना, परिस्थितियों के अनुरूप ढलना और प्रभावी समस्या-समाधान कौशल विकसित करना सीखते हैं।
14. पात्रता कम करना – जब बच्चे घर के कामकाज में सक्रिय रूप से योगदान करते हैं, तो इससे अधिकार की भावना कम हो जाती है। वे समझते हैं कि परिवार का हिस्सा होने के नाते साझा ज़िम्मेदारियाँ शामिल होती हैं।
15. व्यक्तिगत रुचियों के अनुरूप कार्य तैयार करना – बच्चे की रुचियों के आधार पर कार्यों को अनुकूलित करने से कार्य अधिक आकर्षक हो जाते हैं। चाहे वह बागवानी हो, खाना बनाना हो, या आयोजन करना हो, कामों को रुचियों के साथ जोड़ना उत्साह जगाता है।
16. खुले संचार को प्रोत्साहित करना – काम सौंपने और चर्चा करने से परिवार के भीतर खुले संचार को बढ़ावा मिलता है। बच्चे महसूस करते हैं कि उनकी बात सुनी गई है और यह सहयोगात्मक दृष्टिकोण पारिवारिक संबंधों को मजबूत करता है।
17. स्वामित्व की भावना का निर्माण – काम पूरा करने से स्वामित्व और अपनेपन की भावना आती है। बच्चे समझते हैं कि घर के सुचारु संचालन में उनका योगदान अभिन्न है।
18. प्रगति का जश्न मनाना – काम के पूरा होने को स्वीकार करना और उसका जश्न मनाना, चाहे वह कितना भी छोटा क्यों न हो, सकारात्मक व्यवहार को मजबूत करता है। यह उत्सव बच्चों के लिए प्रेरक कारक बनता है।
19. सहानुभूति का पोषण – ऐसे काम जिनमें पालतू जानवरों की देखभाल करना या जरूरतमंद परिवार के सदस्यों की सहायता करना शामिल है, बच्चों में सहानुभूति विकसित करते हैं। वे दूसरों की भलाई के बारे में सोचना सीखते हैं और दयालु दृष्टिकोण विकसित करते हैं।
20. उम्र और क्षमता के अनुसार काम करना – काम सौंपते समय अनुकूलनशीलता महत्वपूर्ण है। बच्चे की उम्र और क्षमता के अनुसार कार्यों को तैयार करना यह सुनिश्चित करता है कि जिम्मेदारियाँ चुनौतीपूर्ण होने के साथ-साथ प्राप्त करने योग्य भी हों। निष्कर्षतः, घरेलू कामों को बच्चे की दिनचर्या में शामिल करना स्वतंत्रता और आत्मविश्वास को बढ़ावा देने का एक समग्र दृष्टिकोण है। ये छोटे-छोटे कार्य दुनिया का सामना करने के लिए तैयार जिम्मेदार और सक्षम व्यक्तियों के भविष्य की नींव तैयार करते हैं।
(साभार – न्यूज ट्रैक)