नयी दिल्ली : प्रणब मुखर्जी के बारे में एक बात अक्सर कही जाती है कि वे ऐसे प्रधानमंत्री थे जो देश को ही मिले नहीं नहीं। राज्यसभा सदस्य से सियासी कैरियर शुरू करने वाले प्रणब दा राष्ट्रपति तो बने लेकिन दो बार मौका आने के बाद भी प्रधानमंत्री नहीं बन सके। पश्चिम बंगाल में वीरभूम जिले के मिराती गांव में 11 दिसंबर 1935 को स्वतंत्रता संग्राम सेनानी कामदा मुखर्जी और राजलक्ष्मी मुखर्जी के घर जन्मे मुखर्जी को भारतीय राजनीति में उत्कृष्ट राजनेता, सादगी पसंद और कांग्रेस के संकटमोचक के तौर पर जाना जाता है।
पांच बार राज्यसभा और दो बार लोकसभा के लिए चुने गए प्रणब इंदिरा गांधी से लेकर मनमोहन सिंह सरकार तक महत्वपूर्ण विभागों के मंत्री रहे। राजनीति विज्ञान के शिक्षक के तौर पर कैरियर शुरू करने वाले प्रणब दा की राजनीतिक प्रतिभा को देखते हुए मात्र 34 वर्ष की उम्र में इंदिरा गांधी ने उन्हें राज्यसभा भेजा। इंदिरा सरकार में वित्त मंत्री बने। उनके निधन के बाद माना गया कि सबसे सीनियर मंत्री होने के नाते प्रणब कार्यवाहक प्रधानमंत्री बनेंगे। हालांकि प्रधानमंत्री बने राजीव गांधी और इसके बाद प्रणब को पार्टी में दरकिनार किया जाने लगा। लंबे समय तक साइड लाइन रहे प्रणब ने कांग्रेस छोड़ दी। करीब तीन साल बाद उनकी पार्टी का फिर कांग्रेस में विलय हो गया। 1991 में राजीव की हत्या के बाद पीवी नरसिंहराव ने प्रणब को योजना आयोग का उपाध्यक्ष बनाया। इसके बाद वे विदेश मंत्री बने।
दूसरी बार भी पिछड़ गए
2004 में सोनिया गांधी के नेतृत्व में यूपीए को बहुमत मिला। विदेशी मूल के मुद्दे पर सोनिया ने प्रधानमंत्री न बनने की घोषणा की तो प्रधानमंत्री पद के लिए मनमोहन सिंह के साथ प्रणब का भी नाम आगे आया। यहां दूसरी बार भी प्रणब पीएम की रेस में पिछड़ गए और बाजी मनमोहन के हाथ रही। जिस व्यक्ति को प्रणब ने रिजर्व बैंक का गवर्नर बनवाया था वो प्रधानमंत्री बना और प्रणब पहले रक्षामंत्री और फिर विदेश मंत्री बनाए गए। मनमोहन के दोनों कार्यकाल में, राष्ट्रपति बनने से पहले तक सारे राजनीतिक मामलों मुखर्जी ही संभालते रहेे। 2004 से 2012 के बीच प्रणब 95 से ज्यादा मंत्री-समूहों के अध्यक्ष रहे।
बहन ने कहा था राष्ट्रपति बनोगे
प्रणब दा पहली बार सांसद बने तो उनसे मिलने उनकी बहन आई थीं। चाय पीते हुए प्रणब ने कहा, वो अगले जनम में राष्ट्रपति भवन में बंधे रहने वाले घोड़े के रूप में पैदा होना चाहते हैं। इस पर उनकी बहन अन्नपूर्णा देवी ने कहा था, घोड़ा क्यों, तुम इसी जनम में राष्ट्रपति बनोगे। भविष्यवाणी सही साबित हुई और प्रणब दा 25 जुलाई 2012 को दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के राष्ट्रपति बने।
बेटी का विरोध फिर भी संघ के कार्यक्रम में गए
बीते साल जब प्रणब मुखर्जी के संघ के कार्यक्रम में बतौर मुख्य अतिथि नागपुर जाने की खबर आई तो कांग्रेस में उनके सहयोगी रहे नेताओं ही नहीं बल्कि खुद उनकी बेटी शर्मिष्ठा मुखर्जी ने भी असमति जताई। शर्मिष्ठा ने ट्वीट कर अपने पिता को वहां न जाने को कहना था। शर्मिष्ठा ने कहा था, आपकी बातें भुला दी जाएंगी बस तस्वीरें रह जाएंगी। इसके बावजूद मुखर्जी संघ के कार्यक्रम में गए और संघ के संस्थापक केशव बलिराम हेडगेवार को देश का महान सपूत बताया। मुखर्जी ने सहिष्णुता का पाठ पढ़ाते हुए कहा था, राष्ट्रवाद किसी धर्म या जाति से बंधा नहीं है। नफरत से देश की पहचान को संकट है। कौटिल्य के अर्थशास्त्र के एक श्लोक का उद्धरण देते हुए उन्होंने कहा था, प्रजा की खुशी में ही राजा की खुशी हो। लगभग जिंदगीभर कांग्रेस में रहे प्रणब हमेशा भाजपा की विचारधारा की मुखालफत करते रहे। इसके बावजूद मौजूदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से उनके रिश्ते बेहद अच्छे हैं। एक बार मोदी ने प्रणब को पितातुल्य कहा था।
‘भारत के रत्न’ पूर्व राष्ट्रपति प्रणव दा… सादगी पसंद, कांग्रेस के संकटमोचक
‘भारत के रत्न’ नानाजी देशमुख… अजातशत्रु बन अपने काम में लगे रहे
राजनीति के शिखर पर पहुंचकर एक झटके से सब छोड़ देना कठिन होता है। आजाद भारत में इसके कम उदाहरण हैं। चार दशक पहले ऐसा नानाजी देशमुख ऐसा ही दुस्साहस करके गाँवों के समग्र विकास का मॉडल खड़ा करने के लिए निकल पड़े थे। सब वर्गों और विचारधारा के लोगों के बीच अजातशत्रु बनकर काम किया।
नानाजी ने दीनदयाल उपाध्याय के एकात्म मानववाद दर्शन को धरातल पर उतारने का कठिनतम काम करने का बीड़ा उठाया था। उत्तर प्रदेश के गोंडा से शुरू हुई इस विकास यात्रा की पूर्णाहुति चित्रकूट के बहुआयामी ग्रामोदय प्रकल्प से हुई।
राष्ट्रवादी विचारक और राजनेता नानाजी देशमुख को समाज के पुनर्निर्माण के लिए जाना जाता है। उन्होंने यूपी और मध्यप्रदेश के लगभग 500 गांवों की सूरत बदलने का काम किया। वे कहते थे कि 60 साल की उम्र के बाद राजनीति से संन्यास ले लेना चाहिए। नानाजी ने भगवान राम की तपोभूमि चित्रकूट को अपनी कर्मभूमि बनाया।
उनका मानना था कि जब भगवान राम अपने वनवास काल के प्रवास के दौरान चित्रकूट में आदिवासियों तथा दलितों के उत्थान का कार्य कर सकते हैं तो वे क्यों नहीं कर सकते। बचपन से किशोरावस्था के बीच उनके मन में भारत के गाँवों की दुर्दशा ने गहरी छाप छोड़ी थी। इसलिए नानाजी गांवों के विकास और लोगों के उत्थान के लिए चिंतित रहते थे। ग्रामीण विकास में नानाजी देशमुख के महत्वपूर्ण योगदान ने गाँवों में रहने वाले लोगों को सशक्त बनाने के लिए आदर्श राह दिखाई। वे दलितों के लिए विनम्रता, करुणा और सेवा का साकार रूप थे। वह सही मायने में भारत रत्न हैं।
‘भारत के रत्न’ भूपेन दा… हिन्दी फिल्मों में घोली असमिया महक
कोई एक व्यक्ति अकेले क्या-क्या हो सकता है? गीतकार, संगीतकार, गायक, कवि, पत्रकार, अभिनेता, फिल्म-निर्देशक, पटकथा लेखक, चित्रकार, राजनेता। असम की संगीत-संस्कृति और फिल्मों को दुनियाभर में पहचान दिलाने वाले सबसे पुराने और शायद इकलौते कलाकार। ये सारे परिचय असम की मिट्टी से निकले भूपेन हजारिका के हैं। जो हिन्दी फिल्मों में असमिया खुशबू बिखेर गए।
भूपेन गाते कई भाषाओं में थे, लेकिन असम की संस्कृति, ब्रह्मपुत्र नदी, लोक परंपराओं और समसामयिक समस्याओं पर गीत और कविताएं वो अपनी भाषा असमिया में ही लिखते थे। भूपेन दा ने हिन्दी फिल्मों असमिया की महक घोली। ‘रुदाली’ फिल्म का प्रसिद्ध गीत ‘दिल हूम-हूम करे’ लोकप्रिय असमिया गीत ‘बूकु हूम-हूम करे’ के तर्ज पर बना था। भूपेन दा ने एक हजार से ज्यादा गीत और कविताएं लिखीं। लघुकथा, निबंध, यात्रा वृतांत और बाल कविताओं की 15 किताबें लिखीं।
बहुमुखी प्रतिभा के धनी भूपेन दा को 1977 में पद्मश्री से सम्मानित किया गया। 1993 में उन्हें दादा साहब फाल्के पुरस्कार से नवाजा गया। 2009 में असम रत्न और संगीत नाटक अकादमी अवॉर्ड मिला। 2011 में उन्हें पद्म भूषण से अलंकृत किया गया। उन्होंने फिल्म ‘गांधी टू हिटलर’ में बापू का पसंदीदा भजन ‘वैष्णव जन’ गाया था।
असमिया फिल्म ‘चमेली मेमसाहब’ के लिए उन्हें राष्ट्रीय पुरस्कार मिला। 1926 में असम के सादिया कस्बे में जन्में भूपेन दा ने 1942 में गुवाहाटी से 12वीं पास की। 1944 में बीएचयू से ग्रेजुएशन और 1946 में पॉलिटिकल साइंस में एमए किया। इसके बाद वे न्यूयॉर्क चले गए और कोलंबिया यूनिवर्सिटी से जनसंचार में पीएचडी की। भूपेन दा ने सियासत में भी हाथ आजमाया और 1967 से 72 तक असम में निर्दलीय विधायक रहे। 2004 में गुवाहाटी सीट से भाजपा के टिकट पर लोकसभा का चुनाव लड़े लेकिन सफल नहीं हो सके।
हाट बाजार

दुनिया हाट बाजार
सब कुछ बिकता है यार,
उड़ने वाले पिजरो में
बधे पड़े लाचार ..
दुनिया है हाट बाज़ार
रिश्तो का व्यापार
कौन भला पहचाने
जो रहा नही दरकार
जरूरत सब पे भारी,
बाकी सब लाचारी,
जरूरत से है संसार
लेन देन और प्यार
दुनिया हाट बाजार
सब कुछ बिकता है यार..
अभिव्यक्ति जरूरी है मगर उससे भी जरूरी है सकारात्मक और सन्तुलित होना
ऑक्सफोर्ड शब्दकोश (भारत) में नारी शक्ति को साल का हिन्दी शब्द चुना है। यह महीना भी विद्या की देवी माँ सरस्वती की आराधना का है। इसके बाद वेलेन्टाइन दिवस का भारतीयकरण कर दिया जाए तो राधा अनायास ही चली आती हैं…कहने का मतलब यह है कि भारत में नारी शक्ति को ऊपरी तौर पर महत्ता तो बहुत दी जाती है…अगले महीने ही महिला दिवस मनाया भी जाएगा..मगर क्या उसकी उपस्थिति को स्वीकार करना भारतीय समाज ने सीखा है? कम से कम प्रियंका गाँधी के राजनीति में कदम रखने के बाद जिस प्रकार शब्दों के नाले बहाए जा रहे हैं, उसे देखकर तो नहीं लगता…एक के बाद एक बेहूदे बयान आ रहे हैं और कोई पीछे नहीं है…यह खलबली सिर्फ प्रियंका के राजनीति में प्रवेश को लेकर नहीं है…महिला सशक्तीकरण का झंडा बुलन्द करने वाली पार्टियों का भी यही हाल है। यही हाल दफ्तरों में भी है और यही स्थिति घरों में भी है। हम अपनी असुरक्षा की कैद से बाहर ही नहीं निकल पा रहे हैं..जरा सी स्थिति बदलती देख अपने अस्तित्व को लेकर आशंकित रहने वाली स्त्री ही हर दूसरी स्त्री का रास्ता रोकती है। ऐसी स्थिति में पुरुषों को अगर बहाना मिलता है और जब ‘नारी की दुश्मन नारी’ चलती है तो यह दोष किसका है…खैर इस पर हम विस्तार से बात करेंगे।
अपराजिता के लिए फरवरी बहुत खास है…हमने तीन साल पूरे कर लिए हैं…जैसा कि आप सब जानते हैं कि हमारा उद्देश्य युवाओं को लिखने की चाह रखने वालों को मंच देना है तो अब हम इस दिशा में कदम बढ़ा रहे हैं। मूल बात है कि परिवर्तन की बात हो तब भी मर्यादा का ध्यान रखना तो आवश्यक है उससे भी जरूरी है कि अभिव्यक्ति में सन्तुलन और सकारात्मकता का ध्यान रखने की जरूरत है। चुनाव का साल है तो चुनावी गहमा -गहमी तो तेज होगी ही..आप क्या सोचते हैं,आप क्या देखते हैं और कहना चाहते हैं…यह महत्लपूर्ण है..आपकी संतुलित अभिव्यक्ति का स्वागत है…एक जिम्मेदार और सजग नागरिक होकर कर्तव्य निभाने का समय है…बहुत सारी शुभकामनाएं
नानाजी देशमुख, भूपेन हजारिका, एवं प्रणब मुखर्जी को भारत रत्न
नयी दिल्ली : पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी, प्रसिद्ध संगीतकार भूपेन हजारिका, एवं आरएसएस से जुड़े नेता एवं समाजसेवी नानाजी देशमुख को देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारत रत्न’ से सम्मानित किया जायेगा । गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर राष्ट्रपति भवन से जारी विज्ञप्ति में कहा गया कि नानाजी देशमुख एवं भूपेन हजारिका को यह सम्मान मरणोपरांत प्रदान किया जायेगा । पूर्व राष्ट्रपति मुखर्जी कांग्रेस के वरिष्ठ नेता रहे। वह संप्रग प्रथम और द्वितीय सरकारों में महत्वपूर्ण पदों पर रहे। संघ से जुड़े नानाजी देशमुख पूर्व में भारतीय जनसंघ से जुड़े थे। 1977 में जनता पार्टी की सरकार बनने के बाद उन्होंने मन्त्री पद स्वीकार नहीं किया और जीवन पर्यन्त दीनदयाल शोध संस्थान के अन्तर्गत चलने वाले विविध प्रकल्पों के विस्तार हेतु कार्य करते रहे। अटल बिहारी वाजपेयी सरकार ने उन्हें राज्यसभा का सदस्य मनोनीत किया था। वाजपेयी के कार्यकाल में ही भारत सरकार ने उन्हें शिक्षा, स्वास्थ्य व ग्रामीण स्वालम्बन के क्षेत्र में अनुकरणीय योगदान के लिये पद्म विभूषण भी प्रदान किया। भूपेन हजारिका पूर्वोत्तर राज्य असम से ताल्लुक रखते थे। अपनी मूल भाषा असमिया के अलावा भूपेन हजारिका हिंदी, बंगला समेत कई अन्य भारतीय भाषाओं में गाना गाते रहे थे। उनहोने फिल्म “गांधी टू हिटलर” में महात्मा गांधी का पसंदीदा भजन “वैष्णव जन” गाया था। उन्हें पद्मभूषण सम्मान से भी सम्मानित किया गया था।
पद्म पुरस्कार पाने वालों की सूची
नयी दिल्ली : पुरस्कारों के लिए चुनी गई जानी मानी हस्तियों की सूची इस प्रकार है-
पद्म विभूषण
तीजन बाई, लोक कला छत्तीसगढ़
इस्लाइल उमर गुइले, लोक विषय, जिबूती
अनिल कुमार मणिभाई नाइक, व्यापार एवं उद्योग
बलवंत मोरेश्वर पुरंदरे, कला-अभिनय-रंगमंच, महाराष्ट्र
पद्म भूषण
जॉन चैम्बर्स (विदेशी), व्यापार एवं उद्योग, अमेरिका
सुखदेव सिंह ढींढसा, लोक विषय, पंजाब
प्रवीण गोर्धन (विदेशी), लोक विषय, दक्षिण अफ्रीका
महाशय धरम पाल गुलाटी, उद्योग, दिल्ली
दर्शन लाल जैन, सामाजिक कार्य, हरियाणा
अशोक लक्ष्मणराव कुकडे, किफायती स्वास्थ्य सुविधाएं, महाराष्ट्र
करिया मुंडा, लोक विषय, झारखंड
बुधादित्य मुखर्जी, कला-संगीत-सितार, पश्चिम बंगाल
मोहनलाल विश्वनाथन नैयर, कला-अभिनय-फिल्म, केरल
एस नंबी नारायण, विज्ञान, केरल
कुलदीप नैय्यर (मरणोपरांत), पत्रकारिता, दिल्ली
बछेंद्री पाल, पर्वतारोहण, उत्तराखंड
वी के शुंगलू, सिविल सेवा, दिल्ली
हुकुमदेव नारायण यादव, लोक विषय, बिहार
पद्म श्री
राजेश्वर आचार्य, कला-गायन-हिंदुस्तानी, उत्तर प्रदेश
बंगारू आदिगलार, आध्यात्मिकता, तमिलनाडु
इलियास अली, औषध-सर्जरी, असम
मनोज बाजपेयी, कला-अभिनय-फिल्म, महाराष्ट्र
उधब कुमार भराली, जमीनी स्तर पर नए-नए प्रयोग, असम
उमेश कुमार भारती, औषधि-रेबीज, हिमाचल प्रदेश
प्रीतम भारतवान, कला-गायन-लोक, उत्तराखंड
ज्योति भट्ट, कला-चित्रकारी, गुजरात
दिलीप चक्रवर्ती, पुरातत्व, दिल्ली
मम्मी चांडी, औषधि-रुधिर विज्ञान, पश्चिम बंगाल
स्वपन चौधरी, कला-संगीत-तबला, पश्चिम बंगाल
कंवल सिंह चौहान, कृषि, हरियाणा
सुनील छेत्री, खेल-फुटबॉल, तेलंगाना
दिन्यार कॉन्ट्रैक्टर, कला-अभिनय-थिएटर, महाराष्ट्र
मुक्ताबेन पंकजकुमार दागली, सामाजिक कार्य-दिव्यांग, गुजरात
बाबूलाल दहिया, कृषि, मध्य प्रदेश
थंगा दारलोंग, कला-संगीत-बांसुरी, त्रिपुरा
प्रभु देवा, कला-नृत्य, कर्नाटक
राजकुमारी देवी, कृषि, बिहार
भागीरथी देवी, लोक विषय, बिहार
बलदेव सिंह ढिल्लों, विज्ञान एवं इंजीनियरिंग, पंजाब
हरिका द्रोणावली, खेल-शतरंज, आंध्र प्रदेश
गोधावरी दत्ता, कला-चित्रकारी, बिहार
गौतम गंभीर, खेल-क्रिकेट, दिल्ली
द्रौपदी घिमराय, सामाजिक कार्य-दिव्यांग, सिक्किम
रोहिणी गोडबोले, परमाणु-विज्ञान, कर्नाटक
संदीप गुलेरिया, औषधि-सर्जरी, दिल्ली
प्रताप सिंह हार्डिया, औषधि-नेत्र विज्ञान, मध्य प्रदेश
बुलू इमाम, सामाजिक, कार्य-संस्कृति, झारखंड
फ्रीडेरिक इरिना (विदेशी), सामाजिक कार्य-पशु, जर्मनी
जोरावर सिंह जाधव, कला-नृत्य-लोक,गुजरात
एस जयशंकर, सिविल सेवा, दिल्ली
नरसिंह देव जम्वाल, साहित्य, जम्मू कश्मीर
फैयाज अहमद, कला-शिल्प, जम्मू कश्मीर
के जी जयन, कला-संगीत-भक्ति, केरल
सुभाष काक(विदेशी), विज्ञान, अमेरिका
शरत कमल, खेल-टेबल टेनिस, तमिलनाडु
रजनी कांत, सामाजिक कार्य, उत्तर प्रदेश
सुदाम केत, औषधि-सिकल सेल, महाराष्ट्र
वामन केंद्रे, कला-अभिनय-थिएटर, महाराष्ट्र
कादर खान(मरणोपरांत-विदेशी), कला, कनाडा
अब्दुल गफूर खत्री, कला-चित्रकारी, गुजरात
रवींद्र कोल्हे और स्मिता कोल्हे, औषधि, महाराष्ट्र
बोम्बायला देवी लेशराम, खेल-तीरंदाजी, मणिपुर
कैलाश मडैया, साहित्य, मध्य प्रदेश
रमेश बाबाजी महाराज, सामाजिक कार्य-पशु कल्याण, उत्तर प्रदेश
वल्लभभाई वासराभाई, कृषि, गुजरात
गीता मेहता (विदेशी), साहित्य, अमेरिका
शादाब मोहम्मद, औषधि-दंत चिकित्सा, उत्तर प्रदेश
के के मुहम्मद, पुरातत्व, केरल
श्यामा प्रसाद मुखर्जी, औषधि, झारखंड
दैतारी नाइक, सामाजिक कार्य, ओडिशा
शंकर महादेवन नारायण, कला-गायन-फिल्म, महाराष्ट्र
शांतनु नारायण(विदेशी), उद्योग, अमेरिका
नर्तकी नटराज, कला-नृत्य, तमिलनाडु
शेरिंग नोरबू, औषधि-सर्जरी, जम्मू कश्मीर
श्री अनूप राजन पांडे, कला-संगीत छत्तीसगढ़
जगदीश प्रसाद पारिख, कृषि, राजस्थान
गणपतभाई पटेल (विदेशी), साहित्य, अमेरिका
बिमल पटेल, कृषि, गुजरात
हुकुमचंद पाटीदार, कृषि, राजस्थान
हरविंदर सिंह फूलका, लोक विषय, पंजाब
मदुरई चिन्ना पिल्लई, सामाजिक कार्य, तमिलनाडु
ताओ पोर्चोन लिंच(विदेशी), योग, अमेरिका
कमला पुझारी, कृषि, ओडिशा
बजरंग पुनिया, खेल-कुश्ती, हरियाणा
जगत राम, औषधि- नेत्र चिकित्सा, चंडीगढ़
आर वी रमनी, औषधि-नेत्र चिकित्सा, तमिलनाडु
देवरपल्ली प्रकाश राव, सामाजिक कार्य-किफायती शिक्षा, ओडिशा
अनूप साह, कला-फोटोग्राफी, उत्तराखंड
मिलेना सल्वानी (विदेशी), कला-नृत्य-कत्थकली, फ्रांस
नगिनदास संघवी, पत्रकारिता, महाराष्ट्र
सिरीवेनेला सीताराम शास्त्री, कला-गीत, तेलंगाना
शब्बीर सैय्यद, सामाजिक कार्य-पशु कल्याण, महाराष्ट्र
महेश शर्मा, सामाजिक कार्य- आदिवासी कल्याण, मध्य प्रदेश
मोहम्मद हनीफ खान शास्त्री, साहित्य, दिल्ली
ब्रजेश कुमार शुक्ला, साहित्य, उत्तर प्रदेश
नरेंद्र सिंह, पशुपालन, हरियाणा
प्रशांति सिंह, खेल-बास्केटबॉल, उत्तर प्रदेश
सुल्तान सिंह, पशुपालन, हरियाणा
ज्योति कुमार सिन्हा, सामाजिक कार्य-किफायती शिक्षा, बिहार
आनंदन शिवमणि, कला-संगीत, तमिलनाडु
शारदा श्रीनिवासन, पुरातत्व, कर्नाटक
देवेंद्र स्वरूप (मरणोपरांत), साहित्य, उत्तर प्रदेश
अजय ठाकुर, खेल-कबड्डी, हिमाचल प्रदेश
राजीव तारानाथ, कला-संगीत, सरोद, कर्नाटक
सालुमारदा थिमक्का, सामाजिक कार्य-पर्यावरण, कर्नाटक
जमुना टुडू, सामाजिक कार्य-पर्यावरण, झारखंड
भारत भूषण त्यागी, कृषि, उत्तर प्रदेश
रामस्वामी वेंकटस्वामी, औषधि-सर्जरी, तमिलनाडु
राम सरन वर्मा, कृषि, उत्तर प्रदेश
स्वामी विशुद्धानंद, आध्यात्मिकता, केरल
हीरालाल यादव, कला-गायन-लोक, उत्तर प्रदेश
वेंकटेश्वर राव यादलापल्ली, कृषि, आंध्र प्रदेश।
देश के सबसे ज्यादा भरोसेमंद नेता मोदी, राहुल दूसरे स्थान पर
नयी दिल्ली : प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर जनता का भरोसा बना हुआ है। एक राष्ट्रीय सर्वेक्षण में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 53 प्रतिशत की रेटिंग के साथ देश के सबसे ज्यादा भरोसेमंद राजनेता बनकर उभरे हैं। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी दूसरे सबसे ज्यादा भरोसेमंद राजनेता हैं, लेकिन मोदी की तुलना में काफी पीछे हैं। सर्वे में राहुल को 26.9 प्रतिशत की रेटिंग मिली है।
फर्स्टपोस्ट-आईपीएसओएस नेशनल ट्रस्ट सर्वेक्षण के अनुसार, दक्षिण के राज्यों आंध्र प्रदेश, केरल और तमिलनाडु में राहुल सबसे लोकप्रिय नेता बनकर उभरे हैं। इस सवेर्क्षण में 291 शहरी वार्डों और 690 गांवों के 34,470 लोगों ने भाग लिया। इस सूची में बंगाल की मुख्यमंत्री ममजा बनर्जी को चार प्रतिशत और बहुजन समाज पार्टी प्रमुख मायावती को दो प्रतिशत वोट मिला है।
हिन्दी पट्टी में भाजपा को ज्यादा समर्थन
सवेर्क्षण में भारतीय जनता पार्टी ने भी अच्छा समर्थन हासिल किया है, खासकर हिंदी पट्टी के राज्यों में पार्टी के प्रति समर्थन बना हुआ है। हिंदी पट्टी के राज्यों और पश्चिमी भारत के लोगों ने मोदी सरकार को काफी नंबर दिए। वहीं क्षेत्रीय पार्टियों के प्रति संबंधित राज्यों के लोगों ने जबरदस्त विश्वास दिखाया है। ये राज्य तमिलनाडु, ओडिशा, पश्चिम बंगाल, केरल, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना हैं।
पीएमओ सबसे ज्यादा विश्वसनीय संस्थान
सर्वेक्षण के अनुसार, सार्वजनिक संस्थानों में भारतीयों ने सबसे ज्यादा विश्वास प्रधानमंत्री कायार्लय (75 प्रतिशत) पर जताया है। उसके बाद सर्वोच्च न्यायालय (73 प्रतिशत) और फिर संसद (72 प्रतिशत) पर भरोसा जताया गया है। केवल 53 प्रतिशत लोगों ने ‘मुख्य विपक्षी पार्टी’ पर विश्वास जताया।
लेखिका गीता मेहता ने पद्मश्री के लिए सरकार को कहा शुक्रिया, सम्मान लेने से इनकार
+नयी दिल्ली : लेखिका गीता मेहता ने पद्मश्री सम्मान के लिए सरकार को धन्यवाद कहा है। इसके साथ ही उन्होंने यह सम्मान लेने से इनकार भी किया। गीता का कहना है कि आम चुनाव नजदीक हैं और इसकी टाइमिंग पर सवाल उठ सकते हैं। यह स्थिति मेरे और सरकार दोनों के लिए असहज हो सकती है। गीता ने अपने बयान में कहा, मुझे सम्मान देने के लिए मैं सरकार का शुक्रिया अदा करती हूं। इससे मुझे गर्व की अनुभूति हो रही है, लेकिन इस वक्त मैं यह सम्मान नहीं ले सकती। बता दें कि सरकार ने देश के 70वें गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर उन्हें पद्मश्री सम्मान से सम्मानित करने का फैसला किया है। ज्ञात हो कि गीता मेहता ओडिशा के पूर्व मुख्यमंत्री बीजू पटनायक की बेटी और मौजूदा मुख्यमंत्री नवीन पटनायक की बेटी हैं। इस बीच ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक ने अपने राज्य के उन सभी लोगों को बधाई दी है, जिन्हें पद्म सम्मान के लिए चुना गया है।
प्रख्यात लेखिका कृष्णा सोबती का निधन
नयी दिल्ली : हिंन्दी की लब्धप्रतिष्ठित लेखिका कृष्णा सोबती का 93 वर्ष की उम्र में शुक्रवार को निधन हो गया। सोबती के मित्र एवं राजकमल प्रकाशन के प्रबंध निदेशक अशोक माहेश्वरी ने बताया कि कृष्णा सोबती ने सुबह दिल्ली के एक अस्पताल में अंतिम सांस ली। वह पिछले दो महीने से अस्पताल में भर्ती थीं। उन्होंने बताया, “वह फरवरी में 94 साल की होने वाली थीं, इसलिए उम्र तो बेशक एक कारण था ही। पिछले एक हफ्ते से वह गहन चिकित्सा कक्ष में भर्ती थीं। बहुत बीमार होने के बावजूद वह अपने विचारों एवं समाज में जो हो रहा है उसको लेकर काफी सजग थीं।” सोबती का अंतिम संस्कार शुक्रवार शाम को निगम बोध घाट पर किया गया। उन्हें मुखाग्नि उनके छोटे भाई जगदीश ने दी। सूत्रों ने बताया कि उन्हें अंतिम विदाई वालों में अशोक वाजपेयी, विश्वनाथ त्रिपाठी, सुरेंद्र शर्मा और लीलाधर मंडलोई सहित विभिन्न साहित्यकार एवं गणमान्य लोग शामिल थे। कृष्णा सोबती की प्रमुख रचनाकर्म में उपन्यास ‘मित्रो मरजानी’, ‘सूरजमुखी अंधेरे के’, ‘सोबती एक सोहबत’, ‘जिंदगीनामा’, ‘ऐ लड़की’, ‘दिलो दानिश’, ‘हम हशमत’ और कहानी संग्रह ‘बादलों के घेरे’ प्रमुख हैं। साहित्य अकादमी ने 1996 में कृष्णा सोबती को सर्वोच्च सम्मान महत्तर सदस्यता से नवाजा था। उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार, ज्ञानपीठ पुरस्कार जैसे प्रतिष्ठित पुरस्कारों से नवाजा गया था। 18 फरवरी 1925 को कृष्णा सोबती का जन्म गुजरात प्रांत के उस हिस्से में हुआ जो वर्तमान में पाकिस्तान में है। पटना से आयी खबर के अनुसार बिहार के राज्यपाल लालजी टंडन ने कृष्णा सोबती के निधन पर शोक व्यक्त किया है और इसे हिन्दी साहित्य की अपूरणीय क्षति बताया है। लेखक-कवि अशोक वाजपेयी ने कहा कि साहित्य में अपने योगदान के माध्यम से वह “भारतीय लोकतंत्र की संरक्षक’’ थीं। वाजपेयी ने कहा, “भारतीय साहित्य के लिए उन्होंने जो किया वह बेजोड़ है। उनके काम के जरिए उनका सामाजिक संदेश बिलकुल स्पष्ट होता था, अगर हम एक लेखक को लोकतंत्र एवं संविधान का संरक्षक कह सकते हैं, तो वह सोबती थीं। वह सिर्फ हिंदी की ही नहीं बल्कि समस्त भारतीय साहित्य की प्रख्यात लेखिका थीं। कवि अशोक चक्रधर ने उनके निधन को “विश्व साहित्य के लिए क्षति” करार देते हुए कहा कि वह ‘‘महिला सम्मान के लेखन की अगुआ थीं।” चक्रधर ने कहा, “उनकी ‘मित्रो मरजानी’ ने भारतीय साहित्य में लेखन की एक नयी शैली स्थापित की। उन्हें जानना मेरी खुशकिस्मती है। उनका निधन देश की ही नहीं बल्कि पूरे विश्व के लिए क्षति है।”





