‘भारत के रत्न’ नानाजी देशमुख… अजातशत्रु बन अपने काम में लगे रहे

राजनीति के शिखर पर पहुंचकर एक झटके से सब छोड़ देना कठिन होता है। आजाद भारत में इसके कम उदाहरण हैं। चार दशक पहले ऐसा नानाजी देशमुख ऐसा ही दुस्साहस करके गाँवों के समग्र विकास का मॉडल खड़ा करने के लिए निकल पड़े थे। सब वर्गों और विचारधारा के लोगों के बीच अजातशत्रु बनकर काम किया।
नानाजी ने दीनदयाल उपाध्याय के एकात्म मानववाद दर्शन को धरातल पर उतारने का कठिनतम काम करने का बीड़ा उठाया था। उत्तर प्रदेश के गोंडा से शुरू हुई इस विकास यात्रा की पूर्णाहुति चित्रकूट के बहुआयामी ग्रामोदय प्रकल्प से हुई।
राष्ट्रवादी विचारक और राजनेता नानाजी देशमुख को समाज के पुनर्निर्माण के लिए जाना जाता है। उन्होंने यूपी और मध्यप्रदेश के लगभग 500 गांवों की सूरत बदलने का काम किया। वे कहते थे कि 60 साल की उम्र के बाद राजनीति से संन्यास ले लेना चाहिए। नानाजी ने भगवान राम की तपोभूमि चित्रकूट को अपनी कर्मभूमि बनाया।
उनका मानना था कि जब भगवान राम अपने वनवास काल के प्रवास के दौरान चित्रकूट में आदिवासियों तथा दलितों के उत्थान का कार्य कर सकते हैं तो वे क्यों नहीं कर सकते। बचपन से किशोरावस्था के बीच उनके मन में भारत के गाँवों की दुर्दशा ने गहरी छाप छोड़ी थी। इसलिए नानाजी गांवों के विकास और लोगों के उत्थान के लिए चिंतित रहते थे। ग्रामीण विकास में नानाजी देशमुख के महत्वपूर्ण योगदान ने गाँवों में रहने वाले लोगों को सशक्त बनाने के लिए आदर्श राह दिखाई। वे दलितों के लिए विनम्रता, करुणा और सेवा का साकार रूप थे। वह सही मायने में भारत रत्न हैं।

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