अभिव्यक्ति जरूरी है मगर उससे भी जरूरी है सकारात्मक और सन्तुलित होना 

ऑक्सफोर्ड शब्दकोश (भारत) में नारी शक्ति को साल का हिन्दी शब्द चुना है। यह महीना भी विद्या की देवी माँ सरस्वती की आराधना का है। इसके बाद वेलेन्टाइन दिवस का भारतीयकरण कर दिया जाए तो राधा अनायास ही चली आती हैं…कहने का मतलब यह है कि भारत में नारी शक्ति को ऊपरी तौर पर महत्ता तो बहुत दी जाती है…अगले महीने ही महिला दिवस मनाया भी जाएगा..मगर क्या उसकी उपस्थिति को स्वीकार करना भारतीय समाज ने सीखा है? कम से कम प्रियंका गाँधी के राजनीति में कदम रखने के बाद जिस प्रकार शब्दों के नाले बहाए जा रहे हैं, उसे देखकर तो नहीं लगता…एक के बाद एक बेहूदे बयान आ रहे हैं और कोई पीछे नहीं है…यह खलबली सिर्फ प्रियंका के राजनीति में प्रवेश को लेकर नहीं है…महिला सशक्तीकरण का झंडा बुलन्द करने वाली पार्टियों का भी यही हाल है। यही हाल दफ्तरों में भी है और यही स्थिति घरों में भी है। हम अपनी असुरक्षा की कैद से बाहर ही नहीं निकल पा रहे हैं..जरा सी स्थिति बदलती देख अपने अस्तित्व को लेकर आशंकित रहने वाली स्त्री ही हर दूसरी स्त्री का रास्ता रोकती है। ऐसी स्थिति में पुरुषों को अगर बहाना मिलता है और जब ‘नारी की दुश्मन नारी’ चलती है तो यह दोष किसका है…खैर इस पर हम विस्तार से बात करेंगे।
अपराजिता के लिए फरवरी बहुत खास है…हमने तीन साल पूरे कर लिए हैं…जैसा कि आप सब जानते हैं कि हमारा उद्देश्य युवाओं को लिखने की चाह रखने वालों को मंच देना है तो अब हम इस दिशा में कदम बढ़ा रहे हैं। मूल बात है कि परिवर्तन की बात हो तब भी मर्यादा का ध्यान रखना तो आवश्यक है उससे भी जरूरी है कि अभिव्यक्ति में सन्तुलन और सकारात्मकता का ध्यान रखने की जरूरत है। चुनाव का साल है तो चुनावी गहमा -गहमी तो तेज होगी ही..आप क्या सोचते हैं,आप क्या देखते हैं और कहना चाहते हैं…यह महत्लपूर्ण है..आपकी संतुलित अभिव्यक्ति का स्वागत है…एक जिम्मेदार और सजग नागरिक होकर कर्तव्य निभाने का समय है…बहुत सारी शुभकामनाएं

शुभजिता

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