Saturday, May 24, 2025
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लोगों को एक रुपये में संगीत सिखाते हैं ‘गिटार राव’

हैदराबाद : मशहूर संगीतकार इलैयाराजा ने कभी कहा था कि संगीत में वह ताकत है, जेल में कैद आतंकवादी को भी साधु बना दे। इलैयाराजा की उसी सीख ने उनके जीवन की दिशा बदल दी। संगीत की रुहानी ताकत वैज्ञानिकों को भी अपनी शक्ति का अहसास करा चुकी है।  आंध्र प्रदेश के सिविल इंजीनियर एसवी राव के सिर पर पचपन साल की उम्र में ऐसा जुनून सवार हुआ कि इंजीनियरिंग की लगी-लगाई नौकरी छोड़कर स्वयं संगीत की शिक्षा लेने के बाद लोगों को सिर्फ एक-एक रुपये में संगीत सिखाने लगे हैं। गिटार, बांसुरी सिखाते- सिखाते अब तो उनका नाम ही ‘गिटार राव’ पड़ गया है। वह सिखाते ही नहीं, प्रशिक्षुओं को तोहफे में एक बांसुरी भी देते हैं। वर्ष 2009 में नौकरी छोड़ने पर उन्हें जो पीएफ के दो लाख रुपये मिले, उस राशि से उन्होंने संगीत प्रेमियों देने के लिए सौ गिटार खरीद लिए थे। अब दिल्ली स्थित आंध्रा भवन उनका ठिकाना बन गया है। उनका जन्म आंध्र प्रदेश में हुआ था। पढ़ाई पूरी होने के बाद उन्होंने कई साल तक एक प्राइवेट कंपनी में सिविल इंजीनियर की नौकरी की। उन्ही दिनो वह घरेलू झमेले में कर्जदार हो गए। कर्ज उनके लिए बोझ बन गया तो नौकरी के साथ-साथ घर भी छोड़कर तिरुपति चले गए।
तिरुपति की संगीत अकादमी में उन्होंने गिटार-बांसुरी आदि बजाने का प्रशिक्षण लिया। इससे उनका तनाव कम होने लगा। उसके बाद घर वापस लौटे इस संकल्प के साथ कि अब वह सिर्फ एक रुपए लेकर लोगों को संगीत सिखाने के अलावा और कोई काम नहीं करेंगे। संगीत शिक्षा ही उनके जीवन का लक्ष्य बन गया। घर-गृहस्थी व्यवस्थित करने के बाद वह एक बार फिर घर से निकल पड़े लोगों को संगीत सिखाने के लिए। वर्ष 2012 में दिल्ली आ गए। आंध्र भवन की लॉबी में रहते हैं। वहीं रात में सो जाते हैं, वहीं का बाथरुम का इस्तेमाल करते हैं। बाकी समय आंध्र भवन से विजय चौक तक लोगों को गिटार-बांसुरी सिखाते और बांटते रहते हैं। इसका भी उन्होंने एक टाइम टेबल बना रखा है। सुबह सात से नौ बजे तक आंध्रा भवन पर, दोपहर दो से छह बजे तक विजय चौक पर और शाम में छह से नौ बजे तक इंडिया गेट के पास लोगों को संगीत सिखाते हैं।
गिटार राव की जिंदगी में कभी हर वक्त दुख का राग गूंजा करता था, अब सुख का संगीत बजता रहता है। उनका मानना है कि ‘संगीत में है ऐसी फुहार, पतझड़ में भी जो लाए बहार, संगीत को न रोके दीवार, संगीत जाए सरहद के पार, संगीत माने न धर्म जात, संगीत से जुड़ी कायनात, संगीत की न कोई ज़ुबान, संगीत में है गीता क़ुरान, संगीत में है अल्लाह-ओ-राम, संगीत में है दुनिया तमाम, तूफान का भी रुख मोड़ता है, संगीत टूटे दिल को जोड़ता है।’ वह कहते हैं कि मशहूर संगीतकार इलैयाराजा ने कभी कहा था कि संगीत में वह ताकत है, जेल में कैद आतंकवादी को भी साधु बना दे। इलैयाराजा की उसी सीख ने उनके जीवन की दिशा बदल दी। संगीत की रुहानी ताकत वैज्ञानिकों को भी अपनी शक्ति का अहसास करा चुकी है। पौधों को संगीत सुनाइए तो वह भी स्वस्थ रहते हैं, इसे सुनकर दुधारू मवेशी ज्यादा दूध देने लगते हैं, संगीत सुनकर बीमार आदमी स्वस्थ हो जाता है। वह कहते हैं कि अब लोग मेरा नाम लेने की बजाय गिटार राव कहकर बुलाते हैं। वह स्वयं को ‘यूएसए’ यानी यूनिवर्सिटी ऑफ संगीत कहते हैं। वह बचपन से ही संगीत सीखना चाहते थे लेकिन अवसर नहीं मिला।
गिटार राव बताते हैं कि दिल्ली आने के बाद से उनसे लगभग हज़ार लोग संगीत सीख चुके हैं, जिनमें पुलिस और फौज के आला अधिकारियों से लेकर सामान्य लोग तक शामिल हैं। मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल, चंद्रबाबू नायडू तक उनकी सराहना कर चुके हैं। वह कहते हैं कि फुटपाथ हो या जंगल, हर जगह संगीत का अपना अलग ही आनंद होता है। वह चाहते हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी स्वच्छ भारत मिशन की तरह ‘संगीत भारत’ मिशन को प्रोत्साहित करें ताकि ज्यादा से ज्यादा देशवासियों तक संगीत पहुंचे। प्रशिक्षुओं से मिलने वाले एक-एक रुपए से उनका दैनिक खर्च निकल जाता है। खर्च भी क्या है मात्र दस-बीस रुपये। एक ही वक्त खाना खाते हैं, वह भी ज्यादातर सिर्फ गाजर-चुकंदर। ट्रेन यात्राओं के समय टिकट की बजाए टीटी को गिटार सुनाकर बांसुरी थमा देते हैं। परिवार में पत्नी और दो बेटियां हैं। एक बेटी की शादी हो गई है, दूसरी नेत्रहीन है, जो घर न लौटने के कारण उनसे नाराज़ रहती है। वह उससे बहाना कर चुके हैं कि संगीत से पीएचडी कर रहे हैं। पढ़ाई पूरी होने के बाद घर लौट आएंगे। पत्नी और बेटी उनके भाई के परिवार के साथ रहती हैं।

(साभार – द योर स्टोरी)

सिर्फ 10 प्रतिशत महिलाओं को टिकट, बड़े दल नहीं मानते जिताऊ

भोपाल :  नगरीय निकायों चुनाव में 50 फीसदी आरक्षण के बावजूद इस बार भी बड़े दलों ने महिलाओं को टिकट देने में कंजूसी दिखाई। भाजपा-कांग्रेस ने सिर्फ 10 फीसदी टिकट महिलाओं को दिए। भाजपा ने 230 में से 25 तो कांग्रेस ने 229 में से 28 महिलाओं पर भरोसा जताया। ताज्जुब की बात है कि दोनों दलों ने महिला विंग की प्रमुखों को भी जिताऊ नहीं माना। कांग्रेस से महिला कांग्रेस की मांडवी चौहान हुजूर (भोपाल) तथा भाजपा महिला मोर्चा की अध्यक्ष लता ऐलकर बालाघाट से टिकट मांग रही थीं। उल्लेखनीय है कि इस बार 385 महिलाएं चुनाव में उतरी हैं।
शिवराज सरकार में सिर्फ पांच महिला मंत्री रहीं। इनमें से भी दो मंत्रियों माया सिंह और कुसुम मेहदेले का टिकट काट दिया। पूरे मंत्रिमंडल से चार मंत्रियों को टिकट नहीं मिला। महिला मोर्चा प्रभारी कृष्णा गौर को ही अपने टिकट के लिए भारी मशक्कत करनी पड़ी। इसी तरह कांग्रेस में वर्तमान महिला कांग्रेस अध्यक्ष मांडवी चौहान की दावेदारी बेकार गई। इससे पहले मसर्रत शाहिद को 2013 और अब 2018 में भी टिकट दिया गया। मसर्रत से पहले अर्चना जायसवाल थी, जिन्हें टिकट दिया गया और वो हार गईं। साफ है कि मप्र में अभी भी महिलाओं को दावेदारी के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है।
दावेदार थीं पर कट गया नाम : दिग्विजय के शासनकाल में भाजपा की महिला मोर्चा की कमान वर्तमान वित्तमंत्री जयंत मलैया की पत्नी सुधा मलैया के पास थी। उन्हें आज तक टिकट नहीं मिला। इसके बाद करुणा शुक्ला कांग्रेस से मोर्चा की अध्यक्ष थीं, जिन्हें छत्तीसगढ़ में टिकट मिला है। इसके बाद से महिला मोर्चा की प्रमुख की राह कठिन होती गई। ऊषा चतुर्वेदी चुनाव लड़ना चाहती थीं, लेकिन उन्हें समाज कल्याण बोर्ड और बाल कल्याण बोर्ड तक ही सीमित रखा गया। अंजू माखीजा भी इंतजार करती रह गईं। सीमा सिंह को कुछ नहीं मिला। 2005 में पार्षद का टिकट दिया गया तो तत्कालीन संगठन महामंत्री कप्तान सिंह ने टिकट वापस लेकर किसी और को दे दिया।
भाजपा ने घटाए, कांग्रेस ने बढ़ाए टिकट
2013 : भाजपा ने 28 महिलाओं को टिकट दिया था। इनमें से 22 विधायक बनीं। कांग्रेस ने 21 को टिकट दिया था, 6 जीतीं। तब 200 सीटों पर महिला प्रत्याशी थीं। 144 की जमानत जब्त हुई थी।
2008 : भाजपा ने 22 महिलाएं मैदान में उतारी थीं। इनमें से 15 जीतीं। कांग्रेस की 11 महिलाएं विधायक बनीं थीं। तब 200 सीटों पर महिलाएं मैदान में थीं। 167 की जमानत जब्त हुई थी।

31 मंत्रालय, 584 योजनाएं, इस साल 96 हजार करोड़ खर्च; कितना फायदा- पता ही नहीं

अमित कुमार निरंजन
नयी दिल्ली : 1950 में संविधान संशोधन कर पहली बार एससी/एसटी आरक्षण को मान्यता दी गई। 2017-18 के बजट के मुताबिक कें केन्द्र सरकार 31 मंत्रालयों के जरिए इन वर्गों के लिए 584 स्कीमें चला रही है। योजनाओं पर इस वर्ष 95 हजार 754 करोड़ रुपए खर्च किए जा रहे हैं। लेकिन, इतना पैसा खर्च करने और तमाम योजनाओं को चलाने व आरक्षण देने से आखिरकार एससी/एसटी वर्ग को कितना, क्या और कैसा फायदा हो रहा है, इसका कोई हिसाब-किताब सरकार या अारक्षण से जुड़ी दूसरी तमाम एजेंसियों के पास है ही नहीं।
भाजपा-कांग्रेस दोनों आरक्षण के खिलाफ रहे। एक ने मंडल कमीशन की रिपोर्ट दबाई, दूसरे ने लागू करने वाले की सरकार गिराई। इस समय एससी वर्ग को 15 और एसटी वर्ग को 7.5% आरक्षण सरकारी नौकरियों में मिल रहा है। इस गंभीर मुद्दे को खंगालते हुए भास्कर ने सरकार और आरक्षण की मांग या विरोध करने वाले संगठनों से दो सवाल पूछे। पहला- कितने एससी/एसटी वर्ग के परिवारों ने आरक्षण का फायदा लिया और कितने वंचित हैं? दूसरा- एससी/एसटी की कल्याणकारी योजनाओं का नतीजा क्या है?
इन दोनों ही सवालों के पुख्ता जवाब किसी के पास नहीं मिले। सिर्फ योजनाओं के लाभ बताने के मामले में ही पांच मंत्रालय थोड़ी-बहुत जानकारी दे पाए। आरक्षण को लेकर हुए बड़े आंदोलनों में अब तक 180 से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है।
मंत्री के पास भी नहीं जवाब
भास्कर ने करीब 10 राजनीतिज्ञों, 30 वर्तमान व रिटायर्ड आईएएस, 10 सामाजिक और राजनीतिक संगठनों और आंकड़े जुटाने वाले विशेषज्ञों से बात की। केन्द्रीय समाज कल्याण मंत्री थावर चंद गहलोत ने तो दो टूक कह दिया कि- यह आंकड़ा जुटाना असंभव है कि कितने दलितों-आदिवासियों को आरक्षण का फायदा हुआ या कितने वंचित रह गए। ऐसा कोई आंकड़ा मंत्रालय के पास नहीं है। हालांकि, उनके ही मंत्रालय के अधिकारियों का कहना है कि एससी/एसटी वेलफेयर स्कीम पर कई मंत्रालय रुचि नहीं दिखा रहे हैं। इसलिए वे इस तरह के आंकड़े नहीं दे पा रहे हैं।
दावा- एससी वर्ग के सिर्फ 10% लोगों को आरक्षण का फायदा
दलित कार्यकर्ता और नेशनल कैम्पेन फॉर दलित ह्ययूमन राइटस के जनरल सेक्रेटरी पॉल दिवाकर ने बताया कि इस तरह का आंकड़ा मिलना फिलहाल मुश्किल है। मद्रास इंस्टीट्यूट ऑफ डेवलपमेंट स्टडीज के पूर्व प्रोफेसर और भारत में जाति और रिजर्वेशन विषयों के विशेषज्ञ पी राधाकृष्णन ने बताया कि पूरे देश में एससी वर्ग के अधिकतम औसत 10% लोग ही आरक्षण का फायदा उठा पा रहे हैं। वोट बैंक की राजनीति के चलते इस बात की समीक्षा नहीं हो पा रही है कि एससी वर्ग में ही कितने कमजोर लोगों को रिजर्वेशन का फायदा मिला।
बड़े अफसरों के बच्चों को न मिले आरक्षण लाभ’
बिहार में सवर्ण क्रांति मोर्चा के संयोजक कुमार सौरभ सिंह ने बताया कि यह बात सही है कि आरक्षण के फायदे नुकसान से संबंधित डेटा किसी के पास नहीं है। अखिल भारतीय सिविल एवं प्रशासनिक सेवा परिसंघ के पूर्व अध्यक्ष बाबा हरदेव ने बताया उत्तरप्रदेश में अनुसूचित जातियों में से सिर्फ 5% से 10% लोग हैं जो रिजर्वेशन का फायदा ले पा रहे हैं बाकी के करीब 90% अनुसूचित जातियों के लोग ऐसे हैं जो रिजर्वेशन का फायदा नहीं ले रहे हैं। इसलिए क्लास 1 और 2 रैंक वाले अधिकारियों के बच्चों को रिजर्वेशन का फायदा नहीं दिया जाना चाहिए। ताकि अन्य एससी वर्ग के लोगों को इसका फायदा मिल सके।
अगली जनगणना में आंकड़े जुटाने का सुझाव
आरक्षण से संबंधित आंकड़ों की उपलब्धता पर दैनिक भास्कर ने सांख्यिकी मंत्रालय के एक संस्थान में अधिकारी रह चुके प्रोफेसर एमआर सलूजा से भी बात की। सलूजा ने बताया कि ये बात सही है कि फायदे-नुकसान का डेटा अभी किसी भी रिपोर्ट में नहीं है। लेकिन सरकार चाहे तो आंकड़ा एकत्रित कर सकती है। जनगणना 2021 के दौरान इस तरह के आंकड़े मिल सकते हैं। जो फॉर्म लोगों से इस दौरान भरवाए जाते हैं, उसमें एक सवाल यह भी रख सकते हैं। इस तरह से यह पता लग जाएगा कि एक ही परिवार की कितनी पीढ़ियों को आरक्षण का फायदा मिला है या एक भी परिवार को फायदा नहीं मिला है।
भास्कर ने पूछे 2 सवाल
सवाल-1 : कितने एससी/एसटी वर्ग के परिवारों ने आरक्षण का फायदा लिया और कितने वंचित हैं?
सवाल-2 : एससी/एसटी की कल्याणकारी योजनाओं का नतीजा क्या है
4 जिम्मेदारों के जवाब
सरकार : यह पता लगाना बेहद मुश्किल।
दलित संगठन : ऐसा कोई आँकड़े नहीं, लेकिन समाज का फायदा हुआ है।
सवर्ण संगठन : आंकड़े नहीं पता, लेकिन देश का नुकसान हुआ है।
विशेषज्ञ : आंकड़े अभी नहीं हैं, लेकिन जनगणना के समय डेटा जुटाना संभव है।

(साभार – दैनिक भास्कर। यह इस अखबार की तरफ से किया गया सर्वेक्षण है जिसे हमने जस का तस दिया है।)

गाँधी जी के साथ 180 किलोमीटर चलीं, इन्होंने छेड़ी थी अंग्रेजों के खिलाफ़ जंग!

सब जानते हैं कि गांधी जी द्वारा शुरु किये गये आज़ादी के आन्दोलन में सबसे अहम भूमिका आम औरतों ने निभाई थी। हर तबके की औरत ने अपने घरों से निकलकर गाँधी जी का साथ दिया, उनके साथ दांडी मार्च किया। औरतें ही वजह थीं जो उनका यह आन्दोलन सफल हो पाया। 3 नवम्बर 1917 को जन्मीं अन्नपूर्णा महाराणा भारतीय स्वतन्त्रता आंदोलन में सक्रिय स्वतन्त्रता सेनानी थी। इसके अलावा वह एक प्रमुख सामाजिक और महिला अधिकार कार्यकर्ता भी थीं। अन्नपूर्णा, महात्मा गांधी के करीबी सहयोगी थी।
उनके माता-पिता, रमा देवी और गोपबंधु चौधरी भी स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय थे। अन्नपूर्णा को ‘चुनी आपा’ के नाम से भी पुकारा जाता था। 14 साल की उम्र से ही उन्होंने राजनीतिक गतिविधियों में भाग लेना शुरू कर दिया था। अन्नपूर्णा इंदिरा गाँधी द्वारा बने गयी बच्चों की ब्रिगेड ‘बानर सेना’ का हिस्सा बन गयीं।
1934 में, वह महात्मा गांधी के पुरी से भद्रक तक के “हरिजन पद यात्रा” रैली में ओडिशा से जुड़ गईं। अगस्त 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन, सविनय अवज्ञा अभियान के दौरान महाराणा को कई बार गिरफ्तार किया गया था। 1942 से 1944 तक ब्रिटिश सरकार ने उन्हें ओडिशा के कटक जेल में बंद कर दिया था।
कारावास के दौरान ही उन्होंने आजीवन गरीबों की सेवा करने का प्रण लिया। स्वतंत्रता के बाद, अन्नपूर्णा भारत में महिलाओं और बच्चों की आवाज बनी। उन्होंने क्षेत्र के आदिवासी बच्चों के लिए ओडिशा के रायगडा जिले में एक स्कूल खोला। अन्नपूर्णा विनोबा भावे द्वारा शुरू किया गये भूदान आन्दोलन का भी हिस्सा बनीं।
साथ ही उन्होंने चम्बल घाटी के डकैतों का पुन: स्थापित करने के लिए भी काम किया था। ताकि, ये सभी लोग डकैती छोड़कर अपने परिवारों के पास लौट सकें।
आपातकाल के दौरान उन्होंने अपनी माँ रामदेवी चौधरी के ग्राम सेवा प्रेस द्वारा प्रकाशित अख़बार की मदद से विरोध जताया। सरकार ने इस समाचार पत्र पर प्रतिबन्ध लगा कर रामदेवी और अन्नपूर्णा के साथ उड़ीसा के अन्य नेताओं जैसे नाबक्रुश्ना चौधरी, हरिकेष्णा महाबत, मनमोहन चौधरी, जयकृष्ण मोहंती आदि को भी गिरफ्तार कर लिया था।
इसके अलावा उन्होंने महात्मा गाँधी और आचार्य विनोबा भावे के हिन्दी लेखों को उड़िया भाषा में भी अनुवादित किया है। देश के लिए उनकी निस्वार्थ सेवा के लिए उन्हें ‘उत्कल रत्न’ से सम्मानित किया गया था। 96 वर्ष की उम्र में 31 दिसम्बर 2016 को उन्होने दुनिया से विदा ली।
(साभार – द बेटर इंडिया)

छठ पूजा के दो गीत

पहिले पहिल हम कईनी

पहिले पहिल हम कईनी, छठी मईया व्रत तोहार।
करिहा क्षमा छठी मईया, भूल-चूक गलती हमार।
सब के बलकवा के दिहा, छठी मईया ममता-दुलार।
पिया के सनईहा बनईहा, मईया दिहा सुख-सार।
नारियल-केरवा घोउदवा, साजल नदिया किनार।
सुनिहा अरज छठी मईया, बढ़े कुल-परिवार।
घाट सजेवली मनोहर, मईया तोरा भगती अपार।
लिहिएं अरग हे मईया, दिहीं आशीष हजार।
पहिले पहिल हम कईनी, छठी मईया व्रत तोहर।
करिहा क्षमा छठी मईया, भूल-चूक गलती हमार।

 

कबहुँ ना छूटी छठि मइया

कबहुँ ना छूटी छठि मइया, हमनी से बरत तोहार
हमनी से बरत तोहार
तहरे भरोसा हमनी के, छूटी नाही छठ के त्योहार
छूटी नाही छठ के त्योहार
अपने सरन में ही रखिह∫, दिह∫ आसिस हज़ार
दिह∫ आसिस हज़ार
गोदिया भराईल छठी मइय्या, बाटे राऊर किरपा अपार
बाटे राऊर किरपा अपार
चाहें रहब देसवा बिदेसवा, छठ करब हम हर बार
छठ करब हम हर बार
डूबतो सुरुज के जे पूजे, इहे बाटे हमर बिहार
इहे बाटे हमर बिहार
फलवा दउरवा सजाके, अईनी हम घाट पे तोहार
अईनी हम घाट पे तोहार
दिहनी अरघ छठी मईया, करीं हमर आरती स्वीकार
करीं हमर आरती स्वीकार
कबहुँ ना छूटी छठि मइया, हमनी से बरत तोहार
हमनी से बरत तोहार
तहरे भरोसा हमनी के, छूटी नाही छठ के त्योहार
छूटी नाही छठ के त्योहार
छूटी नाही छठ के त्योहार
छूटी नाही छठ के त्योहार

आदि पर्व है लोक आस्था का पर्व छठ

त्योहारों के देश भारत में कई ऐसे पर्व हैं, जिन्हें काफी कठिन माना जाता है और इन्हीं में से एक है लोक आस्था का महापर्व छठ, जिसे रामायण और महाभारत काल से ही मनाने की परंपरा रही है।
नहाय-खाय के साथ आज से आरंभ हुए लोकआस्था के इस चार दिवसीय महापर्व को लेकर कई कथाएं मौजूद हैं। एक कथा के अनुसार, महाभारत काल में जब पांडव अपना सारा राजपाट जुए में हार गए, तब द्रौपदी ने छठ व्रत किया। इससे उनकी मनोकामनाएं पूर्ण हुईं तथा पांडवों को राजपाट वापस मिल गया। इसके अलावा छठ महापर्व का उल्लेख रामायण काल में भी मिलता है। एक अन्य मान्यता के अनुसार, छठ या सूर्य पूजा महाभारत काल से की जाती है। कहते हैं कि छठ पूजा की शुरुआत सूर्य पुत्र कर्ण ने की थी। कर्ण भगवान सूर्य के परम भक्त थे। मान्याताओं के अनुसार, वे प्रतिदिन घंटों कमर तक पानी में खड़े रहकर सूर्य को अर्घ्य देते थे। सूर्य की कृपा से ही वे महान योद्धा बने थे।
किंवदंती के अनुसार, ऐतिहासिक नगरी मुंगेर के सीता चरण में कभी मां सीता ने छह दिनों तक रह कर छठ पूजा की थी। पौराणिक कथाओं के अनुसार 14 वर्ष वनवास के बाद जब भगवान राम अयोध्या लौटे थे तो रावण वध के पाप से मुक्त होने के लिए ऋषि-मुनियों के आदेश पर राजसूय यज्ञ करने का फैसला लिया। इसके लिए मुग्दल ऋषि को आमंत्रण दिया गया था, लेकिन मुग्दल ऋषि ने भगवान राम एवं सीता को अपने ही आश्रम में आने का आदेश दिया। ऋषि की आज्ञा पर भगवान राम एवं सीता स्वयं यहां आए और उन्हें इसकी पूजा के बारे में बताया गया। मुग्दल ऋषि ने मां सीता को गंगा छिड़क कर पवित्र किया एवं कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष षष्ठी तिथि को सूर्यदेव की उपासना करने का आदेश दिया। यहीं रह कर माता सीता ने छह दिनों तक सूर्यदेव भगवान की पूजा की थी।
लोकआस्था और सूर्य उपासना का महान पर्व छठ की शुरुआत हो गई है। इस चार दिवसीय त्योहार की शुरुआत नहाय-खाय की परम्परा से होती है। यह त्योहार पूरी तरह से श्रद्धा और शुद्धता का पर्व है। इस व्रत को महिलाओं के साथ ही पुरुष भी रखते हैं। चार दिनों तक चलने वाले लोकआस्था के इस महापर्व में व्रती को लगभग तीन दिन का व्रत रखना होता है जिसमें से दो दिन तो निर्जला व्रत रखा जाता है।
छठ को पहले केवल बिहार, झारखंड और उत्तर भारत में ही मनाया जाता था, लेकिन अब धीरे-धीरे पूरे देश में इसके महत्व को स्वीकार कर लिया गया है। छठ पर्व षष्ठी का अपभ्रंश है। इस कारण इस व्रत का नामकरण छठ व्रत हो गया। छठ वर्ष में दो बार मनाया जाता है। पहली बार चैत्र में और दूसरी बार कार्तिक माह में। चैत्र शुक्ल पक्ष षष्ठी पर मनाए जाने वाले छठ पर्व को चैती छठ और कार्तिक शुक्ल पक्ष षष्ठी पर मनाए जाने वाले पर्व को कार्तिकी छठ कहा जाता है।
इस पूजा के लिए चार दिन महत्वपूर्ण हैं नहाय-खाय, खरना या लोहंडा, सांझा अर्घ्य और सूर्योदय अर्घ्य। छठ की पूजा में गन्ना, फल, डाला और सूप आदि का प्रयोग किया जाता है। मान्यताओं के अनुसार, छठी मइया को भगवान सूर्य की बहन बताया गया हैं। इस पर्व के दौरान छठी मइया के अलावा भगवान सूर्य की पूजा-आराधना होती है। कहा जाता है कि जो व्यक्ति इन दोनों की अर्चना करता है उनकी संतानों की छठी माता रक्षा करती हैं। कहते हैं कि भगवान की शक्ति से ही चार दिनों का यह कठिन व्रत संपन्न हो पाता है।
छठ वास्तव में सूर्योपासना का पर्व है। इसलिए इसे सूर्य षष्ठी व्रत के नाम से भी जाना जाता है। इसमें सूर्य की उपासना उनकी कृपा प्राप्त करने के लिए की जाती है। ऐसा विश्वास है कि इस दिन सूर्यदेव की आराधना करने से व्रती को सुख, सौभाग्य और समृद्धि की प्राप्ति होती है और उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। इस पर्व के आयोजन का उल्लेख प्राचीन ग्रंथों में भी पाया जाता है। इस दिन पुण्यसलिला नदियों, तालाब या फिर किसी पोखर के किनारे पर पानी में खड़े होकर सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, कार्तिक शुक्ल पक्ष की षष्ठी के सूर्यास्त और सप्तमी के सूर्योदय के मध्य वेदमाता गायत्री का जन्म हुआ था। प्रकृति के षष्ठ अंश से उत्पन्न षष्ठी माता बालकों की रक्षा करने वाले विष्णु भगवान द्वारा रची माया हैं। बालक के जन्म के छठे दिन छठी मैया की पूजा-अर्चना की जाती है, जिससे बच्चे के ग्रह-गोचर शांत हो जाएं और जिंदगी में किसी प्रकार का कष्ट नहीं आए। इस मान्यता के तहत ही इस तिथि को षष्ठी देवी का व्रत होने लगा।
छठ पूजा की धार्मिक मान्यताएं भी हैं और सामाजिक महत्व भी है। लेकिन इस पर्व की सबसे बड़ी बात यह है कि इसमें धार्मिक भेदभाव, ऊंच-नीच, जात-पात भूलकर सभी एक साथ इसे मनाते हैं। इसके लिए किसी पुरोहित की जरूरत नहीं पड़ती। डूबते सूर्य को अर्घ्य देना इस पर्व की बड़ी विशेषता है।
किसी भी लोक परम्परा में ऐसा नहीं है। सूर्य, जो रोशनी और जीवन के प्रमुख स्रोत हैं और ईश्वर के रूप में जो रोज सुबह दिखाई देते हैं उनकी उपासना की जाती है। इस महापर्व में शुद्धता और स्वच्छता का विशेष ख्याल रखा जाता है। सबसे बड़ी बात है कि यह पर्व सबको एक सूत्र में पिरोने का काम करता है। इस पर्व में अमीर-गरीब, बड़े-छोटे का भेद मिट जाता है। सब एक समान एक ही विधि से भगवान की पूजा करते हैं। अमीर हो वो भी मिट्टी के चूल्हे पर ही प्रसाद बनाता है और गरीब भी, सब एक साथ गंगा तट पर एक जैसे दिखते हैं। बांस के बने सूप में ही अर्घ्य दिया जाता है। प्रसाद भी एक जैसा ही और गंगा और भगवान भास्कर सबके लिए एक जैसे हैं।
छठ पर्व के संबंध में पौराणिक मान्यता के अनुसार छठ उत्सव के केंद्र में छठ व्रत है, जो एक कठिन तपस्या की तरह है। यह प्राय: महिलाओं द्वारा किया जाता है किंतु कुछ पुरुष भी यह व्रत रखते हैं।
व्रत रखने वाली महिला को परवैतिन भी कहा जाता है। चार दिनों के इस व्रत में व्रती को लगातार उपवास करना होता है। भोजन के साथ ही सुखद शैया का भी त्याग किया जाता है।
छठ पर्व के लिए बनाए गए कमरे में व्रती द्वारा फर्श पर एक कंबल या चादर के सहारे ही रात बिताई जाती है। इस उत्सव में शामिल होने वाले लोग नए कपड़े पहनते हैं, पर व्रती बिना सिलाई किए कपड़े पहनते हैं। महिलाएं साड़ी और पुरुष धोती पहन कर छठ करते हैं। इस व्रत को शुरू करने के बाद छठ पर्व को सालोसाल तब तक करना होता है, जब तक कि अगली पीढ़ी की किसी विवाहिता महिला को इसके लिए तैयार न कर लिया जाए।
घर में किसी की मृत्यु हो जाने पर यह पर्व नहीं मनाया जाता है।

लगाइए बिहारी स्वाद का तड़का

दाल पूड़ी

सामग्री : 250 ग्राम चने की दाल, 500 ग्राम गेहू का आटा, 250 ग्राम गरम मसाला, आधा चम्मच गरम मसाला: , आधा चम्मच जीरा-कालीमिर्च पाउडर, आधा चम्मच लाल मिर्च पाउडर , 2 चम्मच बारीक़ कटा हरी धनिया, आधा चम्मच अदरक लहसन पेस्ट, आधा चम्मच हल्दी पाउडर , नमक: स्वादानुसार
विधि: सबसे पहले चना दाल धो कर इसे प्रेशर कूकर में अगर चना दाल 1 ग्लास हो तो डेढ़ ग्लास पानी डाल कर उबाल ले, 2 सिटी लगने पर इसे उतार ले।  ठंडा होने के बाद चना दाल को मिक्सी में गरम मसाला, जीरा-कालीमिर्च पाउडर, लाल मिर्च पाउडर, हरी धनिया, अदरक लहसन पेस्ट, हल्दी पाउडर, नामक डाल के बारीक़ पीस कर पीठी बना ले, अब आटे को अच्छी तरह गूंथ लें। आटे का छोटा गोला (लोई) ले कर इसमें चना दाल के पीठी डाल कर गोल-गोल बनाये तलहथी के सहायता से उसे चपटा कर ले, ध्यान रहे की आटे से पीठी बाहर ना निकले (पुड़ी फाटे ना) कढाई को गर्म कर के उसमे सरसों तेल डाल कर जब तेल गर्म हो जाये तो उसमे पूड़ी डाले। इसे छलनी से सहयता से पलट-२ कर अच्छी तरह से सेक ले, जब पूड़ी लाल हो जाये तो प्लेट में निकाले इसी तरह सभी पुड़ी तैयार करे इसे खीर मन पसंद सब्जी के साथ खाए
( यदि आप भोग के लिए बना रहे तो लहसन-प्याज़ न डाले)

 

अनरसा

सामग्री : कप चावल, एक कप गुड़, दो बड़ा चम्मच सूजी, घी जरूरत के अनुसार, चीनी जरूरत के अनुसार
विधि : सबसे पहले एक कटोरी में चावल को धोकर रातभर भिगोकर रख दें। अगले दिन चावल को एक पेपर पर डालकर सुखा लें। अब चावल को मिक्सर में डालकर इसका पाउडर बनाएं। चावल के पाउडर को छन्नी से छानकर एक अलग कटोरी में निकाल लें। अब इसमें गुड़ और घी मिलाकर इसे गूंद लें. ध्यान रहे कि पानी का बिल्कुल भी इस्तेमाल न करें। गूंथे हुए आटे को कुछ घंटे के लिए ढककर रख दें। आटे से छोटी-छोटी लोइयां तोड़ लें और इनके बॉल्स बनाएं। एक प्लेट में सूजी, चीनी और तिल डालकर मिक्स कर लें। मध्यम आंच में एक पैन में घी गरम करने के लिए रखें। घी के गरम होते ही बॉल्स को प्लेट में रखे मिश्रण पर लपेटते हुए पैन में डालें। हल्का सुनहरा होने तक इसे चारो तरफ से अच्छे से तल लें और आंच बंद कर दें। अनरसा तैयार है

बायो आयुर्वेदा की ब्रांड अम्बास्डर बनीं माधवी श्री

पत्रकार माधवी श्री अब ब्रांड अम्बास्डर की भूमिका में दिखायी देंगी। सौन्द्रर्य प्रसाधन कम्पनी बायो आयुर्वेदा ने माधवी को इस कम्पनी के सौन्दर्य उत्पादों के लिए ब्रांड अम्बास्डर बनाया है। अपनी नयी भूमिका से उत्साहित माधवी श्री ने कम्पनी की निदेशक हरबीन अरोड़ा का आभार जताते हुए कहा कि शायद कभी बचपन में कोई सपना या दबी इच्छा रही होगी ब्रांड अम्बैस्डर बनने की, उसे भगवान ने पूरा करने का अवसर दिया है इस अवसर के माध्यम से। बायो आयुर्वेदा की ब्रांड अम्बास्डर के रूप में अपनी तरफ से इस नयी जिम्मेदारी को निभाने की पूरी कोशिश करेंगी। गौरतलब है कि माधवी मूल रूप से कोलकाता से ही जुड़ी हैं मगर दिल्ली में रहते उन्होंने मीडिया के क्षेत्र में अपनी विशेष जगह बनायी है।

टूटे चश्मों के पीछै नैनों से अपनों की बाट जोहती जिन्दगियां

सुमन त्रिपाठी 
भोपाल  :  जिन्दगी भर सपनों और अपनों के साथ जीने वाले जिन्दगी के आखिरी सोपान में परायों के बीच अपनों को तलाशते हुए खुशियों को सहेजने की कोशिश कर रहे हैं। जिन्दगी में जहां उन्हें बहुत खुशियां दीं वहीं बहुत गम भी दिए हुए हैं। शायद इसीलिए वह लोग अब जिन्दगी के उस पूरे हिस्से को बिसार कर नया जीवन जीने की कोशिश कर रहे हैं। शहर में बुजुर्गों के लिए बने अनेक वृद्धाश्रमों में दीपावली के मौके पर लगभग यही नजारा दिखाई पड़ा।
कोलार रोड पर बने वृद्धाश्रम ‘अपने घर’ का नजारा कुछ अलग ही दिखाई पड़ रहा था। यहां पर सभी बुजुर्ग त्यौहार के अवसर पर गुझियों सहित पकवान बनाने में लगे थे। मानो इस घर और इसमें रहने वालों के अलावा वे किसी को जानते ही नहीं। इनमें से जब चेरहों और उनके पीछे छिपे दर्द को जानना चाहा तो ऐसी कहानियां उभर कर सामने आईं जिन्हें सुन पत्थर दिल भी पिघल जाए।
अंजनी श्रीवास्तव– भोपाल शहर रहने वाली हैं। इनके पति पोस्ट आॅफिस में थे, वैसे तो यह इनका दूसरा विवाह था। बिन के हो जाने पर तीनों बच्चों की मां बनकर आईं। यही बच्चे उनकी जिन्दगी बन गए। पढ़ाया लिखाया और विवााह भी किए। उनके बच्चों को भी लोरी सुना बड़ा किया अब इनकी आवश्यकता नहीं रह गई थी इसलिए बच्चों को इनके अन्दर सौतेलापन दिखने लगा। एक मंदिर पर छोड़ दिया गया। फिर कुछ दिन बाद अपना घर का पता चलने पर यहां लेकर आए कि अगले गुरूवार को ही इन्हें घर ले जाएंगे। लेकिन तीन वर्ष बीत गए, गुरुवार नहीं आया और न ही बच्चे देखने आए। तब से यही इनका घर के अलावा सब कुछ।
आशा गोप- जबलपुर की रहने वाली आशा गोप के खुद के कोई संतान नहीं थी। अत: भाई के बच्चे को गोद लिया था। उसी में अपनी जिन्दगी देखने लगीं। सब कुछ ठीक चल रहा था। पति की मृत्यु के बाद उस गोद ली हुई संतान का भी रंग बदलना शुरू हो गया। घर की मरम्मत के नाम पर होटल में कुछ दिन के लिए कमरा किराए से लिया कि आठ-दस दिन में किराए से घर लेकर रहेंगे। मरम्मत के बाद अपने घर में वापस आ जाएंगे। वहां छोड़कर जो गया फिर वापस ही नहीं आया। मोबाइल नं. बदल चुका था। पल्ले पड़ा सिर्फ इंतजार। होटल वाले के द्वारा किराया मांगे जाने पर कान के टॉप्स और गले में पहनी चैन को बेचकर होटल का किराया चुका जब वापस अपने घर पहुंची, तो वहां जाकर मालुम हुआ कि यह घर तो उनका रहा ही नहीं। इसका मालिक तो अब कोई और है। पेपर आदि में कभी ‘अपने घर’ की छपने वाली खबरें पढ़कर दूसरों के लिए दु:ख होता था, उसी की राह पकड़ यहां आ गईं।
शीला ठाकुर- इनकी कहानी भी एक अलग ही कहानी गढ़ती है। दो बेटे हैं, पति छोटा बेटा जब सवा माह का हुआ तो कहीं चले गए तो वापस नहीं आए। उनके साधु बन जाने और कभी वापस न आने की खबर के साथ इंतजार खत्म हुआ। पुस्तैनी संपत्ति पर जेठ ने कब्जा कर लिया। किसी तरह बच्चोंं को पाला। जेठ को डर लग गया कि कहीं यह संपत्ति का हिस्सेदार न बन जाए तो उसे अपने साथ थोड़ी-थोड़ी शराब पिलाने लगे, दूसरा छोटा बेटा बहुत सीधा था उसे डरा-धमका कर भगा दिया। बड़ा बेटा अब मां से शराब के लिए पैसे मांगने लगा, नहीं देने पर इतना मारा कि आंख फोड़ दी। पिपरिया पर खड़ी ट्रेन में बैठ गईं, हबीबगंज उतर गईं। अंधेरा होते देख आंखों के सामने और जिन्दगी में छाए अंधेरे से घबरा चुपचाप रो रहीं थी। जी.आर.पी. पुलिस की निगाह पड़ी उन्होंने ‘अपना घर’ फोन किया और तब से इस घर की सदस्य हैं।
ग्वालियर की साधना पाठक – शादी के एक साल के अन्दर ही जिन्दगी पर पहाड़ टूट पड़ा। बेटी के जन्म की खुशियां मना रहे थे। पहला जन्मदिन भी नहीं मना पाईं कि डेंगू बुखार में चली गई। कुछ दिनों बाद पति की भी डेंगू बुखार में मृत्यु हो गई। प्राइवेट स्कूल होने से कुछ नहीं मिला। ससुराल वालों ने घर से निकाल दिया। तब से वृद्धाश्रम ही उनका घर है, यहां रहने वाले ही उनका परिवार, बाकी किसी को अब वे जानती ही नहीं।
निर्मला अय्यर- पति एम.पी.ई.व्ही. में थे, दो बेटों के जन्म ने मानो उन्हें स्वर्ग दे दिया था। ठाठ-बाट से ब्याह कर बहुएं आईं। बेटों की विदेश में नौकरी लग गई। सब ठीक चल रहा था, अचानक पति की मृत्यु हो गई। बेटे आए पर मां को लेने नहीं, यहां की संपत्ति को बेचकर अपना-अपना हिस्सा लेने। चुपचाप मकान बेच दिया, मां को कानोकान खबर भी नहीं हो पाई साइन भी करा लिए। वापस जाने के आठ-दस दिन पूर्व से मां को खिड़के से बांध मुंह में कपड़ा ठूंस मारा जाता। कान और नाक में पहने सोने की चीजों को खींच कर उतारा गया कि उनके कान और नाक फट गए, खून बह कर सूख चुका था। मां को खिड़की से बंधा और मकान को खुला छोड़ कब चले गए किसी को पता नहीं चला। खाली मकान में पड़ोस के बच्चों द्वारा छुपन-छुपाई खेलने पर वह बंधी मिली। पुलिस ने ‘अपने घर’ फोन कर पहुंचाया।
राममोहिनी – जज बन कई जिन्दगियों के फैसले किए। पर उनका खुद का फैसला ही गलत हो गया। नाक पर गुस्सा रहता था। फिर किसी के द्वारा बोले गए अपशब्द कैसे सहन कर पातीं। कोर्ट में किसी कर्मचारी के द्वारा कुछ कह देने पर पेपरबेट फेंक कर मारा। नौकरी गई, पर समझौता नहीं किया। उस वक्त तक विवाह हुआ नहीं था। बीमार होने पर परिवार के लोग हॉस्पिटल की बैंच पर बैठाकर गायब हो गए। किसी के फोन करने पर अपना घर के सदस्य उन्हें लेकर आए। आज तो मानसिक स्थिति ही खराब हो गई। अब वे गंदगी कर उसे पैरों से उचाट देती हैं। उनके लिए एक सफाई कर्मी को लगाना पड़ा है। यह खर्चा उनकी बहन आकर वहन करती है।
चांद भाई (कश्मीर के)- यह भी लगभग आठ-दस साल से यहीं हैं। वे भी किसी को नहीं जानते, बस यह उनका घर है और इसमें रहने वाले सभी सदस्य उनका परिवार।
किशन बत्रा – विवाह भी नहीं हो पाया था कि माता-पिता चल बसे। बड़े भाईयों के मन में लालच आ गया। उन्हें कमरे में भूखा-प्यासा बंद रखा जाता था। उन्हें पागल करने के लिए इंजेक्शन दिए जाते थे। महीनों इस कहर को सहने के बाद एक दिन मौका मिलने पर भाग निकले। दूर शहर में एक डेयरी पर काम करने लगे लेकिन हर समय डरे और सहमे रहते थे। डेयरी मालिक ने प्यार से कारण पूछा। सुन वह भी दंग रह गए, उनकी सुरक्षा की दृष्टि से यहां पहुंचाया।
इनके अलावा कुछ ऐसे लोग भी हैं जो अपनों के दर्द को छुपाए तो हैं लेकिन जुबां पर नहीं आने दे रहे। भीग रही आंखों से आंसुओं को रोक रहे हैं, रुंधे गले की आवाज में उत्साह और उमंग घोलने की कोशिश कर रहे हैं। पर मुंह से बच्चों के लिए आशीश देते हुए यह कह रहे हैं कि नहीं हमारे बच्चे बेहद अच्छे हैं, हम उन्हें परेशान नहीं करना चाहते। हम आजाद पंछी हैं इससे उन्हें परेशानी होगी। हम सुबह पांच बजे उठकर उनकी नींद खराब नहीं करना चाहते। हमारे बच्चे दिन भर व्यस्त रहते हैं ऐसे में हम कैसे उन्हें परेशान करें। हमारे बच्चे हमारे लिए रोते हैं, जब इच्छा होती है वे यहां आ जाते हैं और जब हमारी इच्छा होती है हम वहां जाकर जब तक मन करता है, रहकर आते हैं। यह कितना सच है यह तो सुनने पर ही आभास हो जाता है। इनमें कोई जज है तो कोई आईपीएस अधिकारी रहा है तो कोई अन्य महत्वपूर्ण पद पर। लेकिन आज इन सबके साथ आज कोई दीपावली का पहला दीपक जला रहा था तो कोई अपना जन्मदिन भी इन्हीं अपनों के बीच मना रहा था तो कोई इस त्यौहार पर इन सबको नए कपड़े पहना कर खुद पहनना चाह रहा था। इन्हीं में पीपुल्स थिएटर ग्रुप भोपाल की सिन्धु धौलपुरे ने अपने अन्य साथियों के साथ इन बुजुर्गों का आशीर्वाद ले अपने जन्मदिन का केक काटा तो वहीं भोपाल की समाज सेवी समता अग्रवाल जो हर त्यौहार इन बुजुर्गों और स्लम एरिया के बच्चों के साथ ही मनाती हैं। दीपावली पांच दिन के त्यौहार में धनतेरस का पहला दीपक इन बुजुर्गों के साथ ही मनाया तो वहीं अगला दिन वे स्लम एरिया के बच्चों में पटाखे और मिठाई के साथ डांस कर खुशियों को बांटा।