मातृभाषा दिवस पर आयोजित समारोहों की रही धूम

कोलकाता । मातृभाषा दिवस हर जगह उत्साह के साथ गत 21 फरवरी को मनाया गया। कई संस्थाओं एवं शिक्षण संस्थानों में कार्यक्रम आयोजित किए गए । कुछ ऐसे ही कार्यक्रमों की झलक –
भवानीपुर कॉलेज ने मनाया अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस 
भवानीपुर एजुकेशन सोसाइटी कॉलेज के बंगाली विभाग और आईक्यूएसी द्वारा 21 फरवरी 2024 को अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस का आयोजन किया गया। उद्घाटन समारोह में रेक्टर प्रो दिलीप शाह, टीआईसी डॉ सुभब्रत गंगोपाध्याय, गुजराती की विभागाध्यक्ष डॉ प्रीति शाह, बांग्ला की विभागाध्यक्ष डॉ मिली समद्दार, अंग्रेजी विभागाध्यक्ष डॉ तथागत सेनगुप्ता, हिंदी विभागाध्यक्ष डॉ कविता मेहरोत्रा और अन्य विभाग के शिक्षक और शिक्षिकाओं ने दीप प्रज्वलित कर कार्यक्रम का शुभारंभ किया। इस अवसर पर हिंदी, बांग्ला, अंग्रेजी, गुजराती, सिंधी आदि सभी भाषाओं में अपनी भावनाओं को व्यक्त करके सभी मातृभाषाओं के प्रति सम्मान प्रदर्शित किया गया । इस दिवस को मनाने का उद्देश्य है कि विश्व में भाषायी एवं सांस्कृतिक विविधता और बहुभाषिता को बढ़ावा मिले।
यूनेस्को द्वारा अन्तरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस की घोषणा से बांग्लादेश के भाषा आन्दोलन दिवस को अन्तरराष्ट्रीय स्वीकृति मिली, जो बांग्लादेश में सन १९५२ से मनाया जाता रहा है। 21 फरवरी को विश्व मातृभाषा दिवस है। मातृभाषा वह भाषा होती है, जिसे हम मां की गोद में खेलते हुए बिना किसी ट्रेनिंग के खुद-ब-खुद सीख लेते हैं। डॉ सुभब्रत गंगोपाध्याय, प्रो दिलीप शाह, डॉ तथागत सेनगुप्ता ने भाषा के विभिन्न पहलुओं पर अपने महत्वपूर्ण विचारों को रखा ।हिंदी कविताएँ, बांग्ला रवीन्द्र संगीत, शास्त्रीय नृत्य और आवृत्ति में विद्यार्थियों ने भाग लिया। कार्यक्रम का संयोजन और संचालन किया डॉ मिली समद्दार ने। कार्यक्रम की जानकारी दी डॉ वसुंधरा मिश्र ने ।
विद्यासागर विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग में अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस
विद्यासागर विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग द्वारा अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस के अवसर पर ‘भारत की सामासिक संस्कृति और मातृभाषा की प्रयोजनीयता’ विषय पर परिचर्चा आयोजित की गई। इस अवसर पर बहुभाषी काव्यपाठ का भी आयोजन हुआ। स्वागत वक्तव्य देते हुए विभागाध्यक्ष डॉ. प्रमोद कुमार प्रसाद ने कहा कि अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा का उद्देश्य है कि हम सभी मिलकर अपनी-अपनी मातृभाषा को और समृद्ध करें। हम बहुभाषी जरूर बनें लेकिन अपनी मातृभाषा को मार कर नहीं। अध्यक्षीय वक्तव्य देते हुए प्रो. दामोदर मिश्र ने कहा कि भाषा का परिवेश के साथ संबंध होता है। परिवेश बदलते ही कई शब्दों के अर्थ लोप हो जाते हैं। बंग भूमि पर रह कर बांग्ला भाषा सीखना सही अर्थों में मातृभाषा दिवस को सार्थक बनाना है। भारत की बहुसांस्कृतिक यात्रा में मातृभाषाएं सहयात्री की तरह है। अंग्रेजी विभाग की डॉ. जॉली दास ने कहा कि हम आधुनिक बनने के नाम पर अपनी मातृभाषा को न छोड़ें। बांग्ला विभाग के डॉ. सुजीत पाल ने अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस की पृष्ठभूमि की ओर संकेत किया और अपनी-अपनी मातृभाषा का सम्मान करने का आग्रह किया। इस अवसर पर बहुभाषी काव्यपाठ में नेहा शर्मा, टीना परवीन,सुषमा कुमारी, वैद्यनाथ चक्रवर्ती, राया सरकार, नाजिया सनवर, सुषमा कुमारी, प्रसन्ना सिंह, बेबी सोनार, राम दंडपाणि, रैनाज राई, उस्मिता गौड़ ने हिंदी, बांग्ला, नेपाली, उड़िया और संस्कृत भाषा में रचित कविताओं का पाठ किया और श्रेया सरकार ने रवींद्र संगीत प्रस्तुत की। संचालन करते हुए डॉ. संजय जायसवाल ने कहा कि मातृभाषा दिवस का यह अवसर दुनिया भर के लोगों की बोली जानेवाली भाषाओं के प्रति सम्मान का पर्व है। भारत की सामासिक संस्कृति का आख्यान कई मातृभाषाओं में संरक्षित एवं सुरक्षित है। बहुभाषिकता एवं बहुसांस्कृतिकता के जरिए ही मातृभाषाओं को व्यापक बनाया जा सकता है। धन्यवाद ज्ञापन करते हुए डॉ. श्रीकांत द्विवेदी ने कहा कि मातृभाषा दिवस का यह आयोजन विभिन्न भाषाओं के बीच एक पुल की तरह है।
साहित्य अकादेमी द्वारा बहुभाषी कवि सम्मिलन का आयोजन
साहित्य अकादेमी द्वारा अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस के अवसर पर बहुभाषी कवि सम्मिलन का आयोजन किया गया, जिसकी अध्यक्षता प्रतिष्ठित मैथिली कवि प्रो. विद्यानंद झा ने की। कार्यक्रम में दस भाषाओं में कविताएँ पढ़ी गईं। कविताएँ मूल भाषा के साथ हिंदी/बांग्ला/अंग्रेजी अनुवाद में प्रस्तुत की गईं। आरंभ में अकादेमी के क्षेत्रीय सचिव डॉ. देवेंद्र कुमार देवेश ने औपचारिक स्वागत करते हुए साहित्य अकादेमी द्वारा भारतीय भाषाओं के संवर्धन के लिए किए जाने वाले प्रयासों के बारे में बताया। कार्यक्रम में अदिति बसुराय (बांग्ला), जीवन सिंह (भोजपुरी), शेखर बनर्जी (अंग्रेजी), पूनम सोनछात्रा (हिंदी), शैवालिनी साहू (ओड़िआ), नारायण प्रसाद होमगाई (नेपाली), छाया मांडी (संताली), गुरदीप सिंह संघा (पंजाबी) और अबुज़ार हाशमी (उर्दू) ने अपनी कविताओं का पाठ किया। पठित कविताओं में समय- समाज और निजी अनुभूतियों के विशाल परिदृश्य की अभिव्यक्तियों को श्रोताओं ने बहुत पसंद किया। कविता पाठ के साथ अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में विद्यानंद झा ने भारतीय भाषाओं के उन्नयन के लिए अकादेमी द्वारा किए जा रहे कार्यों की सराहना की तथा मातृभाषाओं के उत्थान के लिए यह अपील की कि प्रत्येक वर्ष हर व्यक्ति अपनी मातृभाषा में कम से कम एक पुस्तक अवश्य पढ़े तथा एक पुस्तक
खरीदकर अन्य किसी व्यक्ति को उपहार में दे। कार्यक्रम के अंत में अकादेमी के सहायक संपादक क्षेत्रवासी नायक द्वारा औपचारिक धन्यवाद ज्ञापन किया गया। कार्यक्रम में बड़ी संख्या में स्थानीय साहित्यकार और साहित्यप्रेमी उपस्थित थे।
खुदीराम बोस सेंट्रल कॉलेज में मातृभाषा दिवस
गत 21 फरवरी को खुदीराम बोस सेंट्रल कॉलेज के बांग्ला विभाग द्वारा अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा  दिवस का आयोजन किया गया। स्वागत गीत कॉलेज की छात्रा स्वर्णाली बनर्जी ने प्रस्तुत किया। स्वागत भाषण देते हुए कॉलेज की टीआईसी डॉ शुभ्रा उपाध्याय ने कहा कि मातृभाषा को सामाजिक प्रतिष्ठा एवं रोजगार से जोड़ने की जरूरत है तभी मातृभाषा का विकास संभव हो पाएगा। अतिथि वक्ता ऋषिकेश हलदार ने कहा कि भाषा आंदोलन में आंदोलनकारियों ने अपने प्राण गवाएं हैं उनके बलिदान की रक्षा करना हमारा दायित्व है। डॉ. प्रथमा रॉय मंडल ने कहा कि अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा का अर्थ सभी भाषाओं से प्रेम और उनका सम्मान करना है। कॉलेज के प्रेसिडेंट देवाशीष मल्लिक ने कहा कि भाषा को गंभीरता से लेने की जरूरत है क्योंकि भाषा ही वो माध्यम है जिससे हम लोगों से संवाद कर पाते हैं। इस अवसर पर हिंदी विभाग की शिक्षिका मधु सिंह ने कविता पाठ किया। कार्यक्रम का सफल संचालन बांग्ला विभाग के प्रो. रामकृष्ण घोष ने किया। धन्यवाद ज्ञापन देते हुए बांग्ला विभाग के प्रो. डॉ विष्णु सिकदर ने कहा कि मातृभाषा का प्रयोग हमें गर्व से करना चाहिए ताकि हम उस भाषा की संस्कृति और परंपरा को भी जान सकें।
एचआईटीके में मनाया गया मातृभाषा दिवस
 हेरिटेज इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी ने हेरिटेज परिसर में अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस मनाया। 17 नवंबर, 1999 को यूनेस्को द्वारा 21 फरवरी को अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस घोषित किया गया था। यह 21 फरवरी, 2000 से दुनिया भर में मनाया जाता है। यह घोषणा बांग्लादेश में हुए भाषा आंदोलन को श्रद्धांजलि देने के लिए की गई थी। इस दिन के महत्व के बारे में विद्यार्थियों  के बीच जागरूकता बढ़ाने के लिए, संस्थान ने 21 फरवरी, 1952 को बांग्लादेश में शुरू हुए भाषा आंदोलन को दर्शाने के लिए एक प्रदर्शनी और एक सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन किया, जहां बंगाली के उपयोग के लिए अभियान चलाते समय चार छात्रों की मौत हो गई थी। बांग्लादेश में उनकी आधिकारिक मातृभाषा। हेरिटेज इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के प्रिंसिपल प्रोफेसर बासब चौधरी ने प्रत्येक बंगालियों के लिए इस दिन के सार के बारे में बात की और बताया कि कैसे कठोर संघर्ष और बलिदान के बाद बांग्लादेश में बांग्ला को मातृभाषा के रूप में स्वीकार किया गया। प्रोफेसर चौधरी ने कहा, “आज हमें उन छात्रों को श्रद्धांजलि देने के लिए दो मिनट का मौन रखना चाहिए जिन्होंने बंगाली को बांग्लादेश की मातृभाषा बनाने के लिए अपने जीवन का बलिदान दिया। हेरिटेज इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी का प्रवासी क्लब संस्थान के भाषा और समाचार क्लबों द्वारा समर्थित इस कार्यक्रम में सक्रिय रूप से शामिल था। भाषा आंदोलन पूरी दुनिया के लिए एक उदाहरण था कि बंगाली अपनी मातृभूमि को बचाने के लिए क्या कर सकते हैं,” हेरिटेज इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के कंप्यूटर विज्ञान और इंजीनियरिंग विभाग के डीन यूजी, प्रोग्राम और विभाग प्रमुख प्रोफेसर सुभासिस मजूमदार ने कहा। , कोलकाता।

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