Friday, September 19, 2025
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लिटिल थेस्पियन के 21वें रंग अड्डे की पिचकारी ने बिखेरे साहित्य के रंग

कोलकाता ।  हाजरा के सुजाता देवी विद्या मंदिर के प्रांगण में 23 मार्च 2024 की शाम निर्धारित समय पर आरंभ हुआ कोलकाता की सुप्रसिद्ध नाट्यसंस्था लिटिल थेस्पियन का 21 वा रंग अड्डा। यह मासिक रंग अड्डा लिटिल थेस्पिएन के संस्थापक और वरिष्ठ रंगकर्मी अजहर आलम और उमा झुनझुनवाला की सोच और मिलन का खूबसूरत परिणाम है। कार्यक्रम का आगाज़ उमा झुनझुनवाला के प्रेरणादायक वक्तव्य से हुआ। उन्होंने रंग अड्डे का मुख्य उद्देश्य विद्यार्थियों के भीतर नाट्य साहित्य के संस्कार को जगाना और नाट्य कला के सभी अंगों से छात्रों को परिचित करवाना बताया। साहित्य के रंगों में पहला रंग अज्ञेय का था जिनका परिचय पाठ खिदिरपुर कॉलेज की छात्रा नेहा मालिक ने किया और उनके उपन्यास नदी के द्वीप के पत्रों पर रोशनी डालते हुए आलेख पठन प्रस्तुत किया खिदिरपुर कॉलेज की प्रोफेसर सुधा गौड़ ने। इस श्रृंखला को आगे बढ़ते हुए साजदा खातून ने जयदेव तनेजा का साहित्यिक परिचय दिया तो वही ज्योतिका प्रसाद ने ने उनके आलेख देहांतर तथा निशा गुप्ता ने शुतुरमुर्ग पर प्रभावशाली प्रस्तुति दी। इस अवसर पर उमा झुनझुनवाला ने 2004 में खेले गए शुतुरमुर्ग नाटक की कुछ रोचक बातें भी साझा की। इस क्रम में ज्योति साह ने नाटककार हृषिकेश सुलभ का परिचय पाठ प्रस्तुत किया।पार्वती कुमारी शॉ ने बिहारी ठाकुर और उनसे परिचित स्त्रियों की दशा को दर्शाता नाटक बटोही’ का शब्दचित्र उकेरा,कथित अंशों का अभिनयात्मक पाठ लिटिल थेस्पियन के कलाकार–संगीता व्यास, सुधा गौड़, राधा ठाकुर, मोहम्मद आसिफ अंसारी,दानिश वारिस ख़ान ने किया। कार्यक्रम का कुशल संचालन प्रियंका सिंह द्वारा संपन्न हुआ। इस रंग रंग अड्डे में मुख्य अथिति के रूप मे उपस्थित थी प्रभात खबर की वरिष्ठ पत्रकार भारती जैनानी, कवियत्री मौसमी प्रसाद तथा वी. अरुणा। उमा जुनझुनवाला ने सभी उपस्थित लोगों को धन्यवाद दिया और बताया कि लिटिल थेस्पियन 17 अप्रैल को अपने संस्थापक- निर्देशक एस.एम. अज़हर आलम का जन्मोत्सव मनाएगा और इस अवसर पर उनके द्वारा निर्देशित नाटक एंडगेम का मंचन करेंगा ।अल्पाहार ,साहित्य और होली के रंगों से संपन्न हुआ 21वा रंग अड्डा।

होली में नोटों पर लग जाए रंग तो क्या करें, क्या कहता है आरबीआई

होली के लिए शहर से लेकर गांव देहात में रंगों में डूब चुका है। रंग,अबीर और पिचकारी की धूम मची है. चारों ओर रंग ही रंग है। होली के रंगों से आप तो रंग ही जाते हैं, कई बार आपकी जेब में रखे नोट भी रंगीन हो जाते हैं। होली के हुड़दंग में, मौज मस्ती में, नोट को संभालना बड़ा मुश्किल हो जाता है। जेब में रखे नोट रंगीन हो जाते हैं। नोट रंगीन हुआ नहीं कि कई बार लोगों के चहरे का रंग उतर जाता है। कई बार इन नोटों को दुकानदार लेने से मना कर देते हैं. बहाने बनाते हैं कि भाई रंग लगा हुआ है, दूसरा नोट दो.
रंगीन नोट के लिए क्या है नियम – होली तो खत्म हो जाती है, लेकिन रंगीन नोटों को चलाने की आपकी कोशिश जारी रहती है। दुकान, पेट्रोल पंप हर जगह आप उस नोट को चलाने की कोशिश करते हैं। रंग लगे नोट यहां वहां सब जगह आपको देखने को मिल जाएंगे, लेकिन क्या आपको पता है कि नोट को साफ सुथरा रखना आपकी जिम्मेदारी है। रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया का नियम के मुताबिक नोटों को साफ-सुधरा रखना आपकी जिम्मेदारी है।
क्या रंगीन नोट चलेंगे? – होली के दौरान कई बार ऐसा भी होता है कि जब आपकी जेब में मौजूद नोट भी रंगीन हो जाते हैं, या फट जाते है। ऐसी स्थिति में जब आप इन नोट को किसी दुकानदार को देते हैं तो वो अक्सर उसे लेने से इनकार कर देता है, लेकिन आपको बता दें कि रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के नियम के मुताबिक दुकानदार ऐसा नहीं कर सकते हैं। वो इन नोट को लेने से मना नहीं कर सकते हैं। आरबीआई के नियम के मुताबिक भले ही नोट रंगीन हैं, लेकिन उनके सिक्योरिटी फीचर प्रभावित नहीं हुए तो बैंक भी उसे लेने से मना नहीं कर सकता है। अगर आपके नोट पर रंग लग गया है तो आप उसे सुखाकर बाजार में वापस चला सकते है। हालांकि जान लें कि नोटों का जानबूझ खराब करना या फिर उससे छेड़छाड़ करना गलत है। रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने इसी के लिए साल 1988 में ‘क्लीन नोट पॉलिसी’ लागू की. आरबीआई एक्ट 1934 की धारा 27 के मुताबिक कोई भी शख्स किसी भी तरीके से नोटों को ना तो नष्ट कर सकता है और न ही उसमें किसी तरह की छेड़छाड़ कर सकता है। नोटों को साफ-सुधरा रखना लोगों की जिम्मेदारी है।
क्या करें अगर नोट में रंग लग जाए – अगर आपने नोट में रंग लग जाए या फिर वो कट-फट जाए तो आपको परेशान होने की जरूरत नहीं है। आप किसी भी बैंक में जाकर इन नोटों को बदल सकते हैं. आरबीआई के नियम के मुताबिक देश के सभी बैंकों में पुराने फटे, मुड़े हुए नोट, रंग लगे नोटों को बदला जा सकता है। इसके लिए बैंक आपसे कोई शुल्क नहीं वसूलेगा. नोट बदलने के लिए जरूरी नहीं है कि आपका खाता उस बैंक में हो।
नोट बदलने पर कितना वापस मिलेगा – अब जान लें कि किसी भी फटे हुए नोट को बैंक में बदलने पर आपको कितना रुपया वापस मिलेगा। बता दें कि बैंक में बदलने पर बैंक आपको उस नोट की स्थिति के मुताबिक पैसा वापस करता है। इसे उदाहरण से समझिए. 2000 रुपये के नोट का 88 वर्ग सेंटीमीटर (सीएम) होने पर पूरा पैसा मिलेगा, लेकिन 44 वर्ग सीएम पर आधा ही पैसा मिलेगा य़ इसी तरह 200 रुपये फटे नोट में 78 वर्ग सीएम हिस्सा देने पर पूरा पैसा मिलेगा। वहीं 39 वर्ग सीएम पर आधा पैसा ही मिलता है। बता दें कि भारतीय रिजर्व बैंक के नियमानुसार हर बैंक को पुराने, फटे या मुड़े नोट स्वीकार करने होंगे बशर्ते वह नकली नहीं होने चाहिए।
(साभार – जी न्यूज)

शुभजिता स्वदेशी : चूड़ियों से शुरुआत और आज घर – घर में हैं सेलो वर्ल्ड के उत्पाद

कहते हैं सही दिशा में संघर्ष हो तो सफलता मिलने में कोई संशय नहीं. ऐसी ही कुछ कहानी है मुंबई सेलो वर्ल्‍ड की. आज यह कंपनी 13 हजार करोड़ रुपये का कारोबार करती है, लेकिन एक समय इस कंपनी के मालिक प्‍लास्टिक की चूड़ियां बेचते थे । मेहनत रंग लाई और आज इसके प्रोडक्‍ट देश के घर-घर में इस्‍तेमाल किए जाते हैं. खाने की मेज से लेकर स्‍टडी टेबल तक इस कंपनी के प्रोडक्‍ट आपको दिख जाएंगे।
सेलो वर्ल्‍ड ने नवंबर, 2023 में शेयर बाजार में भी कदम रख दिया और मार्केट में लिस्‍ट हो गई। कंपनी के मालिक प्रदीप राठौर, जो बतौर मैनेजिंग डायरेक्‍टर और चेयरमैन अपनी सेवाएं दे रहे हैं, उनकी गिनती अब देश के अरबपतियों में होने लगी है। मुंबई की इस कंपनी ने अब 1,700 से ज्‍यादा प्रोडक्‍ट बनाने शुरू कर दिए हैं। किचन के प्रोडक्‍ट से लेकर फर्नीचर और पेन बनाने तक की फील्‍ड में कदम रख दिया है ।
प्रदीप राठौर की संपत्ति – फोर्ब्‍स के मुताबिक, कंपनी के चेयरमैन प्रदीप राठौर की सेलो वर्ल्‍ड में करीब 44 फीसदी हिस्‍सेदारी है और आज उनकी कुल संपत्ति 1 अरब डॉलर यानी करीब 8,300 करोड़ रुपये पहुंच गई है । कंपनी की कमाई में 66 फीसदी हिस्‍सेदारी किचेन प्रोडक्‍ट से आती है, जबकि पेन, पेंसिल और स्‍टेशनरी व फर्नीचर सेग्‍मेंट से भी करीब 34 फीसदी कमाई हो जाती है।
कैसे शुरू हुई कंपनी की यात्रा – सेलो की नींव साल 1967 में घीसूलाल राठौर ने रखी थी। तब यह कंपनी सिर्फ प्‍लास्टिक के फुटवियर और चूड़ियां ही बेचती थी । साल 1980 में घीसूलाल अमेरिका गए और वहां से किचन प्रोडक्‍ट बनाने का आइडिया लेकर आए। यह आइडिया चल निकला और कंपनी का किचन प्रोडक्‍ट की दुनिया में नाम हो गया। इसके बाद 2017 में ग्‍लासवेयर और ओपल मार्केट में कदम रखा, जहां जबरदस्‍त सफलता मिली ।
बेटों ने बना दी हजारों करोड़ की कंपनी – सेलो वर्ल्‍ड को ऊंचाई तक पहुंचाने में प्रदीप राठौर, पंकज राठौर और उनके पुत्र गौरव प्रदीप राठौर का खासा योगदान है। बीते 2 साल में ही सेलो वर्ल्‍ड की बिक्री में 70 फीसदी का उछाल दर्ज किया गया है।  कंपनी ने मार्च, 2023 को समाप्‍त वित्‍तवर्ष में 17.97 अरब रुपये का राजस्‍व हासिल किया। इसके साथ ही कंपनी का मुनाफा भी 58 फीसदी बढ़कर 230 करोड़ रुपये पहुंच गया। कंपनी को बाजार में कई नामी कंपनियों से लोहा लेना पड़ रहा है। बोरोसिल, टीटीके, मिल्‍टन और ला ओपला जैसी दिग्‍गज कंपनियों के बीच सेलो के प्रोडक्‍ट बाजार पर अपनी पकड़ बनाए हुए हैं।

होली के उत्साह में बच्चों का रखें खास ख्याल

रंगों का त्योहार होली आने वाली है। इस वर्ष होली 25 मार्च को है। इस पर्व को बच्चों से लेकर बड़े बुजुर्ग तक सभी उत्साह से मनाते हैं। बच्चे तो होली को लेकर अति उत्साहित रहते हैं। पहले से ही अपनी पिचकारी मंगवा लेते हैं, और उसमें पानी भरकर खेला करते हैं। होली वाले दिन तो पिचकारी और रंग लेकर घर के बाहर निकल जाते हैं। दोस्तों, आस पड़ोसियों पर पिचकारी के रंगों की बौछार करने से बच्चों को रोकना मुश्किल हो जाता है। बच्चों के इस उत्साह और मस्ती को देख माता पिता के साथ ही करीबी भी बहुत खुश होते हैं। लेकिन होली में कई बार कुछ लापरवाही रंग में भंग का काम करती हैं। होली के उत्साह में अगर आप बच्चों की मस्ती को नजरअंदाज कर रहे हैं या उनका ध्यान नहीं दे रहे हैं तो त्योहार के मजे में खलल पड़ सकता है। इसलिए होली के दौरान बच्चों का खास ख्याल रखने की जरूरत है, साथ ही कुछ सावधानियां भी बरतनी चाहिए।
गुब्बारों से दूरी – होली में बच्चे नई नई तरह की पिचकारी की डिमांड करते हैं। पिचकारी सिर्फ रंग खेलने के लिए होनी चाहिए। सुरक्षा की दृष्टि से वह खराब न हो। इसलिए ऐसी पिचकारी घर लाएं जो आपके बच्चे या दूसरे बच्चों को चोटिल न कर दें। इसके अलावा होली में अक्सर बच्चे गुब्बारों में पानी भरकर खेलते हैं। एक दूसरे पर पानी भरे गुब्बारे फेंकते हैं जो फटने पर सामने वाले को चोटिल कर सकता है इसलिए होली में रंग वाले गुब्बारे खेलने से बचना चाहिए। बच्चों के लिए होली में पिचकारी और रंग तो लाएं लेकिन गुब्बारे लेकर घर न आएं। साथ ही उन्हें मना करें कि बाहर दोस्तों के रंग वाले गुब्बारों से भी न खेलें।
केमिकल रंगों से बचाएं – आजकल होली में जिन रंगों की उपयोग होता है वह अधिकांश केमिकलयुक्त होते हैं। बाजारों में मिलावट और केमिकल वाले रंग मिलते हैं, जो त्वचा, आंखों को नुकसान पहुंचाते हैं। ऐसे रंगों की पहचान करके ऑर्गेनिक कलर ही लाएं। हालांकि हो सकता है कि दूसरे बच्चे मिलावटी रंगों का उपयोग कर रहे हों, उस से अपने बच्चे को बचाने के लिए कलरफुल और फंकी गॉगल्स पहनाएं ताकि उन की आंखें सुरक्षित रहें। इसके अलावा फुल बांह के कपड़े पहनाएं, जिससे त्वचा ढकी रहे और रंगों के सम्पर्क में आने की संभावना कम रहे।
रखें नजर – बच्चा जब रंग खेलने के लिए घर से बाहर सोसायटी या कॉलोनी में निकले तो आप काम में व्यस्त न हो जाएं। उसे अपने दोस्तों संग खेलने के लिए अकेला न छोड़ें, बल्कि नजर रखें। बीच-बीच में देखें कि आपका बच्चा कहां और किन लोगों के साथ खेल रहा है। अक्सर बच्चे खेलते वक्त गिर जाते हैं या रंग उनकी आंखों में जा सकता है। ऐसे वक्त पर अगर आप सही समय पर उन्हें मदद नहीं करेंगे तो समस्या बढ़ भी सकती है। सुरक्षा की दृष्टि से भी निगरानी जरूरी है।
खान-पान न बिगाड़ दे सेहत – होली में सिर्फ रंग ही नहीं, तला भुना खाना, बहुत अधिक मिठाई और तरह तरह के व्यंजनों का अधिकता से सेवन भी बच्चे के पाचन को बिगाड़ सकता है। फूड पॉइजनिंग का खतरा भी रहता है। इसलिए होली की मस्ती में उनकी सेहत खराब न हो जाए, इसके लिए खानपान का विशेष ध्यान रखें।

और हंसते – हंसते फांसी पर चढ़ गये वे आजादी के मतवाले

शुभांगी उपाध्याय
“वतन के नाम पर जीना, वतन के नाम मर जाना, शहादत से बड़ी कोई इबादत हो नहीं सकती।।”
भारत को परतंत्रता की बेड़ियों से मुक्त कराने के दो मुखर स्वर थे, एक अहिंसक आंदोलन तो वहीं दूसरी ओर सशस्त्र क्रांतिकारी आंदोलन। सन् 1857 से लेकर 1947 तक भारतीय स्वतंत्रता हेतु जितने भी प्रयत्न हुए, उनमें क्रांतिकारियों का आंदोलन सर्वाधिक प्रेरणाप्रद रहा। भारत को मुक्त कराने के लिए सशस्त्र विद्रोह की एक अखण्ड परम्परा रही है। यहां अंग्रेज़ी राज्य की स्थापना के साथ ही सशस्त्र विद्रोह का आरम्भ हो गया था। वस्तुतः क्रांतिकारी आंदोलन भारतीय इतिहास का गौरवशाली स्वर्ण युग ही था। अपनी मातृभूमि की सेवा, उसके लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर कर देने की जो भावना उस दौर में प्रस्फुटित हुई, आज उसका नितांत अभाव हो गया है। स्वतंत्रता प्राप्ती के पश्चात आधुनिक नेताओं ने भारत के सशस्त्र क्रांतिकारी आंदोलन को प्रायः दबाते हुए उसे इतिहास में कम महत्व दिया और कई स्थानों पर उसे विकृत भी किया गया। स्वराज्य उपरान्त यह सिद्ध करने की चेष्टा की गई कि हमें स्वतंत्रता केवल कांग्रेस के अहिंसात्मक आंदोलन के माध्यम से मिली है। इस नये विकृत इतिहास में स्वाधीनता के लिए प्राणोत्सर्ग करने वाले, सर्वस्व समर्पित करने वाले असंख्य क्रांतिकारियों, अमर हुतात्माओं की पूर्ण रूप से उपेक्षा की गई।
23 मार्च 1931 का दिन भारतीय इतिहास में अत्यन्त ही हृदयविदारक घटना के रुप में याद किया जाता है। ये वही काला दिन है जब क्रूर अंग्रेज़ी हुक़ूमत ने मात्र 23 वर्षीय भगत सिंह और सुखदेव थापर तथा 22 वर्षीय शिवराम हरि राजगुरु को राष्ट्रप्रेम के अपराध में फांसी की सज़ा दे दी और आज़ादी के ये मतवाले सदा के लिए अमर हो गए।
लाला लाजपत राय की हत्या का प्रतिशोध : सन् 1927 में काकोरी कांड के सिलसिले में भगत सिंह ने अपना नाम बदलकर ‘विद्रोही’ नाम से एक लेख लिखा था जिस कारण उन्हें पहली बार गिरफ़्तार किया गया था। लाहौर में दशहरे के मेले में बम विस्फोट का आरोप भी उन पर लगाया गया था। बाद में अच्छे व्यवहार के कारण उन्हें जेल से रिहा कर दिया गया था। उसी वर्ष जब साइमन कमीशन भारत आया तो लाला लाजपत राय ने उसका पुरजोर विरोध किया। विरोध प्रदर्शन के दौरान एसपी जेम्स ए स्कॉट ने निर्दोष भीड़ पर लाठीचार्ज करने का आदेश दे दिया। उसने दूर से ही लाला लाजपतराय को देख लिया। उस धूर्त ने बड़ी निर्ममता से लाला जी पर लाठी बरसानी शुरू कर दी और वह बुरी तरह लहूलुहान हो गए। लाला जी ने घोर पीड़ा में भी दहाड़ते हुए कहा था, “हमारे ऊपर चलाई गई हर लाठी ब्रिटिश साम्राज्य के ताबूत में ठोकी गई कील साबित होगी।” 17 नवंबर को उनकी शहादत से समूचा भारतवर्ष आहत और आक्रोशित था। भगत सिंह जैसे तमाम क्रांतिकारी लाला जी को अपना आदर्श मानते थे और वे चुप नहीं बैठने वाले थे। 10 दिसंबर, 1928 को भगवतीचरण वोहरा की पत्नी दुर्गा देवी की अध्यक्षता में देश भर के क्रांतिकारियों की लाहौर में बैठक हुई और यह तय हुआ कि लाला जी की मौत का बदला लिया जाएगा।
सैंडर्स की हत्या : योजना अनुसार भगत सिंह, राजगुरु, चंद्रशेखर आज़ाद और जयगोपाल स्कॉट को मारने के अभियान में निकल पड़े। स्कॉट की कार का नंबर था 6728। उसके थाने पहुँचने की सूचना देने की ज़िम्मेदारी जयगोपाल को सौंप दी गई। उन्होंने स्कॉट को पहले कभी नहीं देखा था। उस दिन स्कॉट छुट्टी पर था और थाने से बाहर निकल रहे असिस्टेंट एसपी जेपी सैंडर्स को ही भूलवश स्कॉट समझकर उन्होंने अपने साथियों को संकेत दे दिया। राजगुरू ने अपनी जर्मन माउज़र पिस्टल से गोली चला दी। भगत सिंह चिल्लाते ही रह गए, ‘नहीं, नहीं, नहीं ये स्कॉट नहीं हैं।’ लेकिन तब तक देर हो चुकी थी। जब सैंडर्स गिरा तो भगत सिंह ने भी उसपर कुछ गोलियाँ दाग दी। स्वतंत्रता सेनानी शिव वर्मा अपनी किताब ‘रेमिनिसेंसेज़ ऑफ़ फ़ेलो रिवोल्यूशनरीज़’ में लिखते हैं, “जब भगत सिंह और राजगुरु सैंडर्स को मारने के बाद भाग रहे थे तो एक हेड कॉन्सटेबल चानन सिंह उनका पीछा करने लगा। जब आज़ाद के चिल्लाने पर भी वो नहीं रुका तो राजगुरु ने उसे भी गोली मार दी।” अगले दिन शहर की दीवारों पर लाल स्याही से बने पोस्टर चिपके पाए गए जिन पर लिखा था ‘सैंडर्स इज़ डेड। लाला लाजपत राय इज़ एवेंज्ड।’
बहरों को सुनाने के लिए सेंट्रल एसेंब्ली में धमाका: उन दिनों सेंट्रल एसेंब्ली में दो बिलों पर विचार किया जाना था। एक था पब्लिक सेफ़्टी बिल जिसमें सरकार को बिना मुक़दमा चलाए किसी को भी गिरफ़्तार करने का अधिकार दिया गया था और दूसरा था ट्रेड डिस्प्युट बिल जिसमें श्रमिक संगठनों को हड़ताल करने की मनाही हो गई थी। 8 अप्रैल को जब यह बिल पेश किए जाने वाले थे तब भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त सेंट्रल एसेंब्ली की दर्शक दीर्घा में पहुँच गए। कुलदीप नैयर लिखते हैं, “भगत सिंह ने बहुत सावधानी से उस जगह बम लुढ़काया जहाँ एसेंबली का कोई सदस्य मौजूद नहीं था। जैसे ही बम फटा पूरे हॉल में अंधेरा छा गया। बटुकेश्वर दत्त ने दूसरा बम फेंका। तभी दर्शक दीर्घे से एसेंब्ली में कागज़ के पैम्फ़लेट उड़ने लगे। असेंबली के सदस्यों को ‘इंक़लाब ज़िंदाबाद’ और ‘लॉन्ग लिव प्रोलिटेरियट’ के नारे सुनाई दिए। उन पैम्फ़लेटों पर लिखा था बहरों को सुनाने के लिए ऊँची आवाज़ की ज़रूरत होती है।” पूर्व निर्धारित योजना के अनुसार दोनों ही क्रांतिवीरों ने स्वयं को गिरफ़्तार करवाया। भगत सिंह ने तो अपनी वह पिस्टल भी सौंप दी जिससे उन्होंने सैंडर्स की हत्या की थी ताकि इस बात की पुष्टि हो जाए कि वह भी हत्या में शामिल थे। दोनों क्रांतिकारियों को बम फैंकने के जुर्म में आजीवन कारावास की सज़ा मिली, लेकिन सैंडर्स की हत्या के लिए भगत सिंह, राजगुरू और सुखदेव को फाँसी की सज़ा सुनाई गई।
कुलदीप नैयर अपनी किताब ‘विदाउट फ़ियर, द लाइफ़ एंड ट्रायल ऑफ़ भगत सिंह’ में लिखते हैं, “जल्लाद ने पूछा था कौन पहले जाएगा ? सुखदेव ने जवाब दिया था, मैं सबसे पहले जाऊँगा। जल्लाद ने एक के बाद एक तीन बार फाँसी का फंदा खींचा था। तीनों के शरीर बहुत देर तक फाँसी के तख़्ते से लटकते रहे थे।”
शहादत के पश्चात : भारत माता के वीर सपूतों से अंग्रेज़ी हुक़ूमत इतना भयभीत थी कि 24 मार्च के बदले 23 मार्च को ही कायरों की तरह शाम के समय उन्हें फांसी पर लटका दिया। पहले योजना थी कि तीनों का अंतिम संस्कार जेल में ही किया जाएगा परन्तु उठते हुए धुएं को देखकर जेल के बाहर उमड़े जनसैलाब के उत्तेजित होने के भय से यह निर्णय लिया गया कि उनका अंतिम संस्कार सतलज के तट पर कसूर में किया जाएगा। रातोंरात जेल की पिछली दीवार तुड़वाई गई और वहाँ से एक ट्रक को अंदर लाया गया। तीनों क्रांतिवीरों के पार्थिव शरीर को घसीटते हुए ले जाकर उन ट्रकों में फेंक दिया गया। मन्मथनाथ गुप्त अपनी किताब ‘हिस्ट्री ऑफ़ इंडियन रिवॉल्यूशनरी मूवमेंट’ में लिखते हैं, “सतलज नदी के तट पर दो पुजारी उन शवों का इंतज़ार कर रहे थे। उन तीनों के मृत शरीर को चिता पर रखकर आग लगा दी गई, जैसे ही भोर होने लगी जलती चिता की आग बुझाकर आधे जले हुए शरीरों को सतलज नदी में फेंक दिया गया। बाद में इस जगह की शिनाख़्त चौकी नंबर 201 के रूप में हुई। जैसे ही पुलिस और पुजारी वहाँ से हटे, गाँव वाले पानी के अंदर घुस गए। उन्होंने अधजले शरीर के टुकड़ों को पानी से निकाला और फिर ढंग से उनका अंतिम संस्कार किया।”
शहीदों की करो पूजा तो हिंदुस्तान बदलेगा : यह समस्त संसार आशा भरी दृष्टि से आज भारत जैसे युवा देश की ओर देख रहा है। अब समय आ गया है कि भारत का युवा कमर कसे और समूचे विश्व का नेतृत्व करे। जिस विश्वगुरु अखण्ड भारत की कल्पना तमाम देशभक्तों ने की थी, जिसे साकार करने हेतु उन वीरों ने अपने प्राणों तक की आहुति दे दी, उस श्रेष्ठ भारत के स्वप्न को साकार करने का एकमात्र उद्देश्य अब हर भारतीय का जीवनोद्देश्य होना चाहिए। यही उन वीर हुतात्माओं के प्रति हमारी सच्ची श्रद्धांजलि होगी। उन महापुरूषों पर केवल माल्यार्पण कर देने मात्र से नहीं अपितु उनसे प्रेरणा पाकर अपना जीवन राष्ट्रहित में लगा देना ही उनकी सच्ची पूजा होगी।
(शोधार्थी, कलकत्ता विश्वविद्यालय)

ब्रज का परंपरागत फाग उत्सव और नंदगांव की लठमार होली

होली के उत्सव की अगर धूम आपको देखनी है तो आपको ब्रज क्षेत्र में आना होगा. क्योंकि जैसी होली ब्रज में खेली जाती है दुनिया में और कहीं आपको देखने को नहीं मिलेगी। ब्रज की होली उत्सव दुनिया भर में अपनी अनोखी छटा के लिए विश्व प्रसिद्ध है। होली के अवसर पर दूर-दूर से लोग ब्रज में पहुंचते हैं और होली उत्सव के रंग में रंग जाते हैं। ब्रज की होली विशेष इसलिए मानी जाती है क्योंकि यहां राधा कृष्ण के होली खेलने की पौराणिक यादें जीवंत हैं। होली के उत्सव पर अपने इष्ट की एक झलक पाने के लिए श्रद्धालु आतुर नजर आ रहे हैं. राधा रानी और भगवान श्री कृष्ण की एक झलक पाकर उनके साथ होली के उत्सव को मना रहे है तो श्रद्धालु उनके साथ होली खेलने के लिए ब्रज में पहुंच रहे है. इन दिनों ब्रज में श्रद्धालुओं की भारी भीड़ नजर आ रही है।
ब्रज इकलौता क्षेत्र जहां लठमार होली – ब्रज की ऐसी होली जिसमें हुरियारन हाथ में लठ लेकर होली का उत्सव मनाती हैं. आमतौर पर अगर आपको किसी के हाथ में लाठी नजर आएगी तो लगेगा कि कहीं झगड़ा तो नहीं हुआ लेकिन ब्रज इकलौता ऐसा क्षेत्र है जहां लाठी के साथ ही होली खेली जाती है, जिसे कहा जाता है लठमार होली. मथुरा , वृंदावन , बरसाना , रेवती रमण , दाऊजी , रमनरेती जैसे कई धार्मिक पौराणिक स्थल है, जहां पर इन दोनों होली उत्सव की धूम मची है. दूर-दूर से लोग ब्रज की होली के रंग में रंगने के लिए पहुंच रहे है. इसके साथ ही लोग भगवान श्री कृष्ण और राधा रानी के साथ होली खेल रहे हैं.
ब्रज में छाया रंग गुलाल अबीर – मथुरा वृंदावन बरसाना की होली का रंग ही अलग होता है. जहां रंग गुलाल अबीर की अलग छटा छाई रहती है। यहां आने वाले श्रद्धालु होली के रंग में रंगे नजर आ रहे हैं। ब्रज की महारानी राधा रानी और ठाकुर बांके बिहारी लाल के दर्शनों के लिए श्रद्धालु आतुर नजर आ रहे है। मथुरा वृंदावन बरसाना में फाग उत्सव को बड़ी धूमधाम से मनाया जा रहा है जिसमें चारों ओर रंग गुलाल अबीर की छठ छाई हुई है।
परंपरागत और प्राचीन है ब्रज की होली – ब्रज की होली में अनोखे अंदाज नजर आते हैं जो परंपरागत और प्राचीन है। ब्रज की होली में लठमार होली विशेष मानी जाती है. इस दिन हुरियारन अपने हाथों में लठ लेकर चलती है और नंदगांव से होली खेलने आए सखाओ पर लाठी चलाती है। लठमार होली का अलग ही रंग नजर आता है. जिसे देखने के लिए बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहले से ही ब्रज में जमा होने लगते हैं। ब्रज की होली की अनोखी छटा और ब्रज की महारानी राधा रानी- ठाकुर बांके बिहारी लाल के दर्शन कर श्रद्धालुओं अलग ही अनुभूति करते है.
नंदगांव की लट्ठमार होली
साल फाल्गुन माह में मथुरा के नंदगांव में अनोखी लट्ठमार होली खेली जाती है, जो आज है। ऐसा माना जाता है कि इस लट्ठमार होली की परंपरा 17वीं शताब्दी से चली आ रही है। इस लट्ठमार होली परंपरा में नंदगांव की महिलाएं ब्रज के पुरुषों पर लाठियों से हमला करती हैं। और पुरुष खुद को लाठियों के प्रहार से बचाने के लिए ढाल का उपयोग करते हैं। यह परंपरा इतनी प्रसिद्ध है कि इस लट्ठमार होली को देखने के लिए देश-विदेश से लोग आते हैं।लट्ठमार होली का यह त्योहार हर साल फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। सबसे पहले लट्ठमार होली बरसाना में ही खेली जाती है और फिर नंदगांव में। इस परंपरा को शक्ति और साहस का प्रतीक माना जाता है। लट्ठमार होली के दौरान नंदगांव और ब्रज के लोग रंगों, गीतों और नृत्यों के साथ उत्साहपूर्वक जश्न मनाते हैं। इस अवसर पर महिलाएं पारंपरिक पोशाक पहनती हैं।
नंदगांव को खास माना जाता है – कथाओं के अनुसार श्रीकृष्ण के माता-पिता नंद बाबा और माता यशोदा पहले गोकुल में रहते थे। कुछ समय बाद ये नंद बाबा और उनकी मां यशोदा अपने परिवार, गाय-बैल और गोपियों के साथ गोकुल छोड़ कर नंदगांव में बस गये। नंदगांव नंदीश्वर पहाड़ी की चोटी पर स्थित है और इसी पहाड़ी की चोटी पर नंद बाबा ने अपना महल बनाया था और सभी चरवाहों, गोपों और गोपियों ने पहाड़ी के आसपास के क्षेत्र में अपने घर बनाए थे। इस गांव को नंदबाबा द्वारा बसाए जाने के कारण नंदगांव कहा जाता था।
नन्दभवन – नंदगांव के नंद भवन को नंद बाबा की हवेली या महल भी कहा जाता है। इस भवन में काले ग्रेनाइट से बनी भगवान श्री कृष्ण की मूर्ति स्थापित है। वहीं नंद बाबा, मां यशोदा, बलराम और उनकी मां रोहिणी की भी मूर्तियां हैं।
यशोदा कुंड – नंदभवन के पास ही एक सरोवर स्थित है जो यशोदा कुंड के नाम से प्रसिद्ध है। मान्यता है कि माता यशोदा प्रतिदिन यहां स्नान करने आती थीं। और कभी-कभी वे श्रीकृष्ण और बलराम को भी अपने साथ ले आती थीं। झील के किनारे भगवान नरसिम्हा जी का मंदिर स्थित है। यशोदा कुंड के पास ही एक रेगिस्तानी स्थान पर एक अत्यंत प्राचीन गुफा भी स्थित है। ऐसा माना जाता है कि कई साधु-संतों ने यहां ज्ञान प्राप्त किया था।
हाऊ बिलाऊ – यशोदा कुंड के पास भगवान कृष्ण की बचपन की क्रीड़ाओं का स्थान है जिसे हाऊ बिलाऊ के नाम से जाना जाता है। यहां भाई भगवान कृष्ण और बलराम अपने बचपन के दोस्तों के साथ बचपन के खेल खेलते थे। इस जगह को हाउ वन भी कहा जाता है।
नंदीश्वर मंदिर – नंदगांव में भगवान शिव का एक मंदिर भी है जिसे नंदीश्वर महादेव मंदिर के नाम से जाना जाता है। इस मंदिर से जुड़ी एक कहानी में कहा गया है कि भगवान कृष्ण के जन्म के बाद भोले नाथ एक साधु के विचित्र रूप में उनसे मिलने नंदगांव आए थे। लेकिन माता यशोदा ने उनका विचित्र रूप देखकर उन्हें अपने पुत्र से मिलने नहीं दिया। तब भगवान शिव वहां से चले गए और जंगल में जाकर तपस्या करने लगे। इसके बाद भगवान श्री कृष्ण अचानक रोने लगे और चुप नहीं रहे तो माता यशोदा के अनुरोध पर भगवान शिव एक बार फिर वहां आ गए। जैसे ही बालक श्रीकृष्ण ने भगवान शिव को देखा, उन्होंने तुरंत रोना बंद कर दिया और मुस्कुराने लगे। ऋषि के वेश में भगवान शिव ने माता यशोदा से बच्चे को देखने और उसे प्रसाद के रूप में अपना पका हुआ भोजन देने के लिए कहा। तभी से भगवान कृष्ण को भोग लगाने और फिर नंदीश्वर मंदिर में शिवलिंग पर चढ़ाने की परंपरा चली आ रही है। नंदीश्वर मंदिर जंगल में उसी स्थान पर बनाया गया है जहां भगवान शिव ने श्री कृष्ण का ध्यान किया था।
शनि मंदिर – प्राचीन शनि मंदिर पान सरोवर से कुछ दूरी पर कोकिला वन में स्थित है। ऐसा माना जाता है कि जब शनिदेव यहां आए तो भगवान कृष्ण ने उन्हें एक जगह स्थिर कर दिया ताकि ब्रजवासियों को शनिदेव से किसी भी तरह की परेशानी का सामना न करना पड़े। इस मंदिर में हर शनिवार को हजारों भक्त शनि के दर्शन के लिए आते हैं। देव.शनिश्चरी अमावस्या के अवसर पर यहां भव्य मेले का आयोजन किया जाता है।

इन घरेलू तरीकों से छुड़ाएं होली के रंग

देश भर में होली का जश्न बड़ी धूम-धाम से मनाया जाता है, इस साल होली 25 मार्च को है। रंगो के इस पर्व पर लोग जम कर गुलाल के साथ खेलते है, खुशी के साथ इस त्योहार को मनाते है और मिठाई भी खाते है लेकिन रंगो के इस त्योहार की भारी कीमत भी चुकानी पड़ती है जब खेलने के बाद कैमिकल भरे रंग अपना असर दिखाते हैं। रंग साफ करने में लोगो को बहुत दिक्कतौं का सामना करना पड़ता है क्या आपको भी होती है परेशानी? घबराए नही बस ये घरेलू उपचार अपनाएं –
नींबू और शहद – इसका आप एक पेस्ट तैयार करें जिसे अपनी स्किन पर अप्लाई कर सकते हैं इसे बनाना आसान है बस नींबू के रस को शहद में मिला दें और पेस्ट बना कर लगाएं। 40 मिनट तक के लिए छोड़ दें फिर गर्म पानी से धो लें और सर्कुलर मोशन में स्क्रब करें।
नींबू और बेसन – बेसन को थोड़े से दूध में मिला कर उसमे नींबू का रस डाले घोल बना कर पेस्ट को 20 मिनट तक चेहरे पर लगाएं रखें। फिर फेस को पानी से साफ कर लें और आप देखे के रंग साफ हो जायेगा।
संतरे का छिलका – संतरे को स्क्रब के रूप में यूज़ किया जाता है आपको बस होली का रंग साफ करने के लिए संतरे के छिलके में मसूर की दाल, दूध और बादाम पीस कर घोल बनाना है इसे 20 मिनट तक चेहरे पर लगाएं रखे, गर्म पानी से ही साफ करे इसका कोई साइड इफेक्ट भी नहीं है।
खीरा और गुलाब जल – खीरे का रस निकल लें, गुलाब जल मिला ले फिर उसमे एक चम्मच सिरका भी डालें। खीरा रंग छुड़ाने में काफी कारगर है। 3 से 4 बार इस घोल को फेस पर लगाएं, रंग साफ हो जायेगा।
कैस्टर ऑयल – स्किन पर लगे रंग को हटाने के लिए आप जिंक ऑक्साइड और कैस्टर ऑयल मिलाए दोनो की मात्रा दो चम्मच होनी चाहिए। एक लेप तैयार कर चेहरे पर हल्के हाथ से लगाएं। 20 मिनट बाद साबुन लगाकर फेस धोए, रंग साफ हो जायेगा।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लॉन्च किया पीएम सूरज पोर्टल

नयी दिल्ली । केंद्र सरकार कई सारी योजनाओं का संचालन कर रही है, जिनमें राशन, आवास, पेंशन और बीमा जैसी अनेकों योजनाएं शामिल हैं। इस बीच समय-समय पर कई नई योजनाएं भी लॉन्च होती रहती है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए वंचित वर्गों को ऋण सहायता के लिए राष्ट्रव्यापी जनसंपर्क को चिह्नित करने वाले एक कार्यक्रम में भाग लिया। इस दौरान पीएम मोदी ने पीएम सूरज पोर्टल को लॉन्च किया। साथ ही एक लाख लोगों को ऋण राशि भी दी गई। अब आप सोच रहे होंगे कि ये पोर्टल क्या है और इसका लाभ क्या है और किसे मिलेगा? तो चलिए बिना देरी के इस बारे में जानने की कोशिश करते हैं। आप आगे इस पीएम सूरज योजना के बारे में विस्तार से जान सकते हैं…
क्या है ये पोर्टल? – दरअसल, पीएम सूरज पोर्टल एक राष्ट्रीय पोर्टल है, जो सामाजिक उत्थान और रोजगार पर आधारित और जनकल्याण के लिए है। इस पोर्टल के जरिए ऋण सहायता स्वीकृत की जाएगी। इससे पात्र लोगों को ऋण लेने में सुविधा मिलेगी। इस पोर्टल के जरिए लोग आसानी से लोन ले पाएंगे, जिसमें 15 लाख रुपये तक के बिजनेस लोन के लिए आवेदन किया जा सकेगा। इससे बैंक के चक्कर नहीं काटने पड़ेंगे और इसी पोर्टल के जरिए आवेदन किया जा सकेगा।
क्या मिलेगा लाभ? – पीएम सूरज पोर्टल को एक परिवर्तनकारी पहल बताया जा रहा है। इससे समाज के सबसे वंचित वर्गों का उत्थान करना और सशक्तिकरण उद्धेश्य है। वहीं, इस योजना के अंतर्गत ऋण मुहैया कराया जाएगा।
वहीं, मिली जानकारी के मुताबिक, इस पीएम सूरज पोर्टल के जरिए व्यवसाय के नए अवसर भी तैयार होंगे। उम्मीद की जा रही है कि केंद्र सरकार द्वारा जारी किए गए इस पोर्टल से काफी संख्या में लोग लाभान्वित होंगे।
कौन ले सकता है लाभ? – प्रधानमंत्री कार्यालय के अनुसार इस पीएम सूरज पोर्टल के जरिए वंचित वर्गों को लाभ मिल सकेगा। वहीं, बाकी जानकारी योजना की नोटफिकेशन जारी होने के बाद सामने आ पाएगी।
पीएम सूरज पोर्टल के अंतर्गत पात्र लोगों को बैंक, गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों, सूक्ष्म वित्त संस्थान और अन्य संगठनों के जरिए ऋण दिया जाएगा।

गंगा, ब्रह्मपुत्र जैसी प्रमुख नदियों पर पड़ेगा जलवायु परिवर्तन का गहरा प्रभाव

नयी दिल्ली । मानवीय गतिविधियों और क्रिया-कलापों के कारण दुनिया का तापमान बढ़ रहा है और इससे जलवायु में होता जा रहा परिवर्तन अब मानव जीवन के हर पहलू के लिए खतरा बन चुका है। ऐसे में एक रिपोर्ट में दावा किया गया है कि गंगा, सिंधु और ब्रह्मपुत्र सहित दक्षिण एशिया की प्रमुख नदियों पर जलवायु परिवर्तन का गहरा प्रभाव पड़ेगा।
साथ ही बताया गया, कि मानवीय गतिविधियों और जलवायु परिवर्तन के कारण करीब एक अरब लोगों को गंभीर परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं। तीनों नदियों पर तैयार की गई इस रिपोर्ट का शीर्षक ‘एलिवेटिंग रिवर बेसिन गवर्नेंस एंड कोऑपरेशन इन द एचकेएच रीजन’ है। रिपोर्ट में कहा गया है, कि नदी घाटी प्रबंधन के लिए लचीला दृष्टिकोण अपनाने की तुरंत जरूरत है।
हिंदू कुश हिमालय (एचकेएच) दक्षिण एशिया और दक्षिण पूर्व एशिया के कुछ हिस्सों के मीठे पानी का स्रोत हैं. उनकी बर्फ, ग्लेशियरों और वर्षा से उत्पन्न पानी एशिया की 10 सबसे बड़ी नदी प्रणालियों को भरता है। गंगा भारतीय उपमहाद्वीप में 60 करोड़ से अधिक व्यक्तियों के लिए पवित्र और महत्वपूर्ण नदी मानी जाती है। अब बढ़ते पर्यावरणीय खतरों का सामना कर रही है.। तीव्र औद्योगिकीकरण, शहरीकरण और गहन कृषि प्रथा ने नदी के पारिस्थितिक स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डाला है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि ‘सीवेज’ और औद्योगिक कचरे ने पानी को गंभीर रूप से प्रदूषित कर दिया है, जिससे मानव स्वास्थ्य और पर्यावरण दोनों के लिए जोखिम पैदा हो गया है। सिंधु नदी जलवायु परिवर्तन के कारण अभूतपूर्व स्थिति में है। बढ़ता तापमान, अनियमित मानसून और पर्यावरणीय गिरावट घाटी को संकट की ओर धकेल रहे हैं।
साथ ही रिपोर्ट में कहा गया है, कि सिंधु घाटी में जलवायु परिवर्तन का प्रभाव बहुत अधिक है, जिससे खाद्य सुरक्षा, आजीविका और जल सुरक्षा कमजोर हो रही है। साथ ही कहा गया है, कि ब्रह्मपुत्र घाटी में जलवायु परिवर्तन से बाढ़ और सूखे की स्थिति उत्पन्न हो सकती है, खासकर इसके निचले स्थान पर।

“ड्रेंच इन लक्जरी” थीम पर फायरफ्लाइज की 14वीं प्रदर्शनी

कोलकाता । कोलकाता की अग्रणी फैशन और लाइफस्टाइल इवेंट फायरफ्लाइज की ओर से कोलकाता के ताज बंगाल में 14वां सफल संस्करण सफलतापूर्वक संपन्न हुआ। “ड्रेंच इन लक्ज़री” थीम पर आधारित इस एक दिवसीय प्रदर्शनी में उत्पादों की चमकदार श्रृंखला प्रदर्शित की गई। फायरफ्लाइज का आयोजन प्रीति अग्रवाल, स्नेहा तापड़िया, सलोनी भालोटिया और शिल्पी गोयल द्वारा किया गया था। विविध पृष्ठभूमि वाली यह टीम, अत्याधुनिक फैशन और जीवन शैली में रचनात्मकता और पूर्णता के लिए अपने जुनून से एकजुट है। इस भव्य प्रदर्शनी में समाज के विभिन्न क्षेत्र से जुड़े मशहूर हस्तियां, जिनमे तनुश्री चक्रवर्ती, शाहेब भट्टाचार्य, ऋचा शर्मा, मुमताज सरकार, मौबानी सरकार, मल्लिका बनर्जी, सायंतनी गुहा ठाकुरता, श्रेया पांडेय, फलाक रशीद रॉय, सुभमिता बनर्जी, रीता भिमानी, सुदर्शन चक्रवर्ती, सोनल रवि श्रीवास्तव, पॉलोमी पोलो दास, जेसिका गोम्स इनमे शामिल हुए।
फायरफ्लाइज की ओर से हर तरह के ग्राहकों की पसंद को ध्यान में रखकर उनके लिए वन-स्टॉप शॉप की पेशकश की गई है। जिसमें 65 से अधिक क्यूरेटेड स्टॉल शामिल थे । प्रसिद्ध डिज़ाइनर लेबल और उभरती प्रतिभाओं से लेकर होमवेयर और वेलनेस हेवन तक इस कार्यक्रम को सफल बनाने में अहम भूमिका अदा की। यह आयोजन वर्तमान रुझानों पर केंद्रित है। यह एक ही छत के नीचे विशिष्ट उत्पादों की विविध श्रृंखला को पेश करने का एक अनूठा अवसर प्रदान करता है।
फायरफ्लाइज की क्यूरेटर प्रीति अग्रवाल और स्नेहा तापड़िया ने कहा कि हमारे लिए फैशन पैशन ही फैशन है, क्योंकि फैशन में बहुत जुनून होता है। हमारा लक्ष्य फैशन और जीवन शैली की दुनिया में एक जगह बनाना है। इस अवसर पर, फायरफ्लाइज़ की क्यूरेटर सलोनी भालोटिया और शिल्पी गोयल ने कहा, फायरफ्लाइज में उच्च गुणवत्ता वाली सामग्री, जटिल डिजाइन और विशिष्टता की भावना पर ध्यान केंद्रित किया गया है। हमने विलासिता और शांति का माहौल बनाने के लिए नीले और हरे रंग के ठंडे, पानी वाले रंगों का उपयोग किया है। प्रदर्शनी में सीमित-संस्करण संग्रह, डिजाइनर सहयोग और शानदार जीवनशैली उत्पाद प्रदर्शित किए गए हैं, जो लोगों को बेहद पसंद आते हैं। इस कार्यक्रम ने न केवल व्यवसायियों और उद्यमियों के लिए एक इंटरैक्टिव मंच प्रदान किया, बल्कि डिजाइनरों को अपने लेटेस्ट संग्रह प्रदर्शित करने का मौका भी दिया। उपभोक्ताओं के लिए सात्विका, मेधाविनी खेतान, ओहास, हाउस ऑफ जियानी, हाउस ऑफ गैंगेज, रेवेलरी, यूमा, अवामा ज्वैलर्स, ऑफ द हुक, रुतुजा थॉमस, जुइली, हर्षिता सुल्तानिया, प्रशांत चौहान, हाउस ऑफ प्रीति मेहता, सुमन थर्ड, अंशिका जैन, विर्राया, नोना सरना, स्टाइल एडिक्ट, बिनीता तन्ना, शी शू, टैड, जस्ट बिली, रुचिका मलिका प्रेट, लंदन होम्स और भी अन्य ब्रांड की डिजाइन ‘ड्रेंच इन लक्ज़री” थीम वाली फायरफ्लीज़ प्रदर्शनी की शानदार उपलब्धि रही। इस प्रदर्शनी ने यहां उपस्थित लोगों को और अधिक डिजाइन के उपहार पाने के लिए और भी उत्सुक कर दिया है।