Tuesday, July 1, 2025
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पटना महावीर मंदिर में एक महीने में 1 लाख किलो नैवेद्यम की रिकार्ड बिक्री

चढ़ावा से 10 लाख रुपये रोज की कमाई
महावीर मंदिर पटना में नैवेद्यम प्रसाद की रिकार्ड बिक्री
पटना । उत्तर भारत के सबसे प्रसिद्ध मंदिर में शामिल पटना जंक्शन स्थित महावीर मंदिर का इतिहास काफी पुराना है । महावीर मंदिर सिर्फ पटना ही नहीं बल्कि देश के प्रमुख मंदिरों में एक है । महावीर मंदिर की आय प्रतिदिन 10 लाख रुपये से अधिक हो गयी है । महावीर मंदिर न्यास महासचिव किशोर कुणाल ने बताया है कि पहले महावीर मंदिर की अधिकतम आय पूरे साल में 11 हजार दिखलाई जाती थी, लेकिन अब ये आय बढ़कर 10 लाख रुपये से अधिक हो गयी है । महावीर मंदिर के आय में अस्पतालों या अन्य संस्थाओं की आय, व्यय राशि का समावेश नहीं है ।
सचिव किशोर कुणाल ने बताया कि राष्ट्रपति रहते रामनाथ गोविंद जब मंदिर दर्शन के लिए आए थे तो उन्होंने महावीर मंदिर को मनोकामना मंदिर बताया था, जिससे बाद श्रद्धालुओं और भक्तों की भीड़ में भी इजाफा हुआ है । इसका नतीजा है कि महावीर मंदिर की आय बढ़ गई है । उन्होंने कहा कि यहां हर महीने सवा लाख किलो नैवेद्यम लड्डू की बिक्री हो रही है । हनुमान जी के प्रति लोगों की श्रद्धा बढ़ी है प्रतिदिन हजारों दर्शनार्थी मंदिर पहुंचते हैं । वहीं उन्होंने बताया कि वर्तमान समय में महावीर मंदिर के पास सवा सौ एकड़ से अधिक की जमीन है । केसरिया के पास विराट रामायण मंदिर निर्माण के लिए 7 लाख रुपये प्रति एकड़ से लेकर 12 लाख रुपय प्रति एकड़ की दर से 100 एकड़ जमीन खरीदी गई है जबकि सरकारी रेट 80 लाख रुपये एकड़ है । महावीर मंदिर के तरफ से अलग-अलग शहरों में मंदिर निर्माण कराया जा रहा है, जिसमें हाजीपुर के प्रसिद्ध पौराणिक गजेंद्र मोक्ष अस्थल पर एक भव्य विशाल नाथ मंदिर, इस्लामपुर में नवीन आकर्षक राम जानकी मंदिर का निर्माण किया है । गया शहर के कचहरी के पास माधवनंद मंदिर, मुजफ्फरपुर शहर में विशाल राम जानकी मंदिर, कोईलवर के नजदीक सकड़डीह हनुमान मंदिर ये पास में एक बीघा जमीन है वहां भव्य शिव मंदिर बन रहा है ।
किशोर कुणाल कहा कि पहले महावीर मंदिर के पास में इतनी जमीन नहीं थी, लेकिन आज महावीर मंदिर के पास इतनी जमीन है जहां पर अन्य मंदिर भी बनाये जा रहे हैं । उन्होंने कहा कि अयोध्या के इतिहास में पहली बार पटना महावीर मंदिर की और से तीर्थयात्रियों को निःशुल्क भोजन की व्यवस्था की गई है । 2020 विवाह पंचमी से प्रारंभ राम रसोई में मार्च 2023 तक 13,42,797 भक्तों को प्रसाद ग्रंथियां और इसमें उत्तम कोटि के नौ व्यंजन परोसे गए हैं । महावीर मंदिर की तरफ से अयोध्या में हो रहे मंदिर निर्माण में 10 करोड़ रुपये देने की घोषणा की गई है जो अभी तक की सबसे बड़ी रकम है । अब तक किसी एक संस्था की तरफ से इतना बड़ी रकम नहीं दी गयी है ।
(स्त्रोत – ई टीवी भारत)

केरल के जगदीश ने किया रामचरित मानस का पाठ, बनाया 138 घंटे का सबसे लम्बा गीत

वाराणसी । धर्म नगरी काशी में रहने वाले केरल के जगदीश पिल्लई ने 138 घंटे में रामचरितमानस को गाने के रूप में गाकर वर्ल्ड रिकार्ड बना दिया ।15 हजार से ऊपर चौपाइयों को लयबद्ध कर के संगीत के साथ सजाकर दुनिया का सबसे लंबा गीत बना दिया है । डॉ. जगदीश पिल्लई वाराणसी में लेखक और शोधकर्ता हैं । इन्होंने पहले भी अन्य विधाओं में रिकार्ड बनाया है लेकिन इस बार इनके रिकार्ड की चर्चा खूब हो रही है. इस बार 138 घंटे, 41 मिनट और 2 सेकेंड तक लगातार चलने वाला रामचरित मानस का ऑडियो पाठ का गाना बना दिया । यह दुनिया का सबसे लम्बा गीत बन गया है । जिस पर गिनीज वर्ल्ड रिकार्ड ने मुहर भी लगा दी है । इसके पहले इंग्लैंड की म्यूजिक बैंड के नाम यह रिकॉर्ड 115 घंटे और 45 मिनट का था, जिसे डॉ. पिल्लई ने तोड़ दिया है ।
पिल्लई ने यह गाना कोरोना काल में लयबद्ध करना शुरू किया था
इस रामचरित मानस सॉन्ग को गिनीज बुक ने सर्वाधिक लम्बा आधिकारिक रूप से प्रदर्शित गाना यानी लॉन्गेस्ट रिलीज्ड ऑफिशियल सॉन्ग यानी आधिकारिक तौर पर दुनिया का सबसे लंबा गाना माना है । पिल्लई ने यह गाना कोरोना काल में लयबद्ध करना शुरू किया था, लेकिन फिर यह काम रूक गया । इसके बाद पिल्लई फिर से यह गाना खुद लयबद्ध करना शुरू किया जिसका नतीजा उन्हें 10 दिन पहले मिला, जब सभी फॉर्मेलिटी पूरी करने के बाद गिनीज बुक ने यह रिकॉर्ड सौंपा । उन्होंने भगवान राम को आदर्श बताया और उनसे प्रभावित होने की बात कही जिसके बाद उन्होंने यह रिकॉर्ड बनाया ।

डॉ. पिल्लई ने बताया कि पूरी रामायण को 50 घंटे में इन्होंने गा लिया था, लेकिन उन्हें रिकार्ड बनाना था तो उन्होंने 15 हजार श्लोकों, छंदों, चौपाइयों और भजन कीर्तन गाकर इसे पूरा 138 घण्टे 41 मिनट 2 सेकेंड का तैयार किया. मानस पाठ में जहां-जहां पॉज है, वहां-वहां इन्होंने भजन-कीर्तन जोड़े । इस गाने को दुनिया भर के आधिकारिक म्यूजिक चैनल्स जैसे एप्पल म्यूजिक, स्पॉटीफाई, अमेजन म्यूजिक आदि 100 से ज्यादा प्लेटफार्म पर प्रसारित कर चुके हैं ।
रामचरित गीत को बनारस में लांच किया
डॉ पिल्लई ने यह उपलब्धि हासिल करने के बाद इस रामचरित गीत को बनारस में लांच किया, जिसमें यूपी सरकार के मंत्री दया शंकर मिश्रा शामिल थे। पिल्लई के इस कदम को धर्म और संस्कृति के लिए बड़ा माना है औए उन्हें साधुवाद दिया है । पिल्लई इस गाने को चार साल से संगीत में पिरोने की कोशिश कर रहे थे लेकिन उन्हें उपलब्धि 2023 में मिली ।
(स्त्रोत – हमारा महानगर)

 

हादसे में दोनों पैर और एक हाथ गंवाये, यूपीएससी में चमका सूरज

917वीं रैंक हासिल की
मैनपुरी । उत्तर प्रदेश मैनपुरी के सूरज तिवारी ने 2017 में गाजियाबाद के दादरी में एक ट्रेन दुर्घटना में अपने दोनों पैरों के साथ-साथ अपने दाहिने हाथ और बाएं हाथ की दो अंगुलियों को खो दिया था।
हादसे के बाद भी हिम्मत न हारते हुए सूरज ने लाखों युवाओं को रोशनी दिखाते हुए यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा पास की है। सूरज तिवारी की सफलता पर उनके पिता रमेश कुमार तिवारी कहते हैं कि मैं आज बहुत खुश हूं, मेरे बेटे ने मुझे गौरवान्वित किया है। वह बहुत बहादुर है। उसकी तीन उंगलियां ही काफी हैं। उन्होंने बताया कि घटना के बाद भी उसका मन कभी छोटा नहीं हुआ। वह हमेशा कहता था कि आप लोग घबराए मत। सूरज जैसा बेटा हर घर में पैदा हो।
मां बोलीं- सूरज कहता था, चिंता मत करिए, मैं बहुत पैसा कमाऊंगा
सूरज तिवारी की मां आशा देवी तिवारी कहती हैं कि मेरा बेटा बहुत बहादुर है। सूरज ने कभी हार नहीं मानी और अपने जीवन में सफल होने के लिए कड़ी मेहनत की। वह हमेशा अपने छोटे भाई-बहनों को कड़ी मेहनत करने के लिए कहता है। सूरज की मां ने कहा कि उसके हौसले बुलंद थे, घटना के बाद भी उसने कभी हिम्मत नहीं हारी बल्कि उसने हमें ही हौसला दिलाया कि आप चिंता मत करिए मैं बहुत पैसा कमाऊंगा।
सूरज तिवारी मैनपुरी के कुरावली नगर के घरनाजपुर मोहल्ला के रहने वाले हैं। उन्होंने अपनी दिव्यांगता की परवाह न करते हुए यूपीएससी परीक्षा में 917वीं रैंक हासिल की। उनकी इस सफलता पर आम से लेकर खास तक ने उन्हें बधाई दी है।
सूरज तिवारी की प्रारंभिक शिक्षा कुरावली नगर के महर्षि परशुराम स्कूल में हुई। इसके बाद उन्होंने 2011 में एसबीआरएल इंटर कॉलेज मैनपुरी से हाईस्कूल परीक्षा पास की। इसके बाद 2014 में संपूर्णानंद इंटर कॉलेज अरम सराय बेवर से 12वीं की परीक्षा पास की। 2021 में उन्होंने जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय से बीए किया। सूरज तिवारी के पिता राजेश तिवारी पेशे से दर्जी हैं।
वहीं, यूपीएससी में सफलता हासिल करने वाले सूरज का कहना है कि परिस्थितियां चाहे जैसी भी हो, कुछ भी हो, हिम्मत नहीं हारनी चाहिए। जीवन में उतार-चढ़ाव आते रहते हैं। घबराकर कभी अपना मनोबल नहीं तोड़ना चाहिए। उन्होंने कहा कि यूपीएससी की परीक्षा में सफलता के लिए बिना किसी कोचिंग और क्लासेज के मैंने 18 से 20 घंटे तक पढ़ाई की।

 

सेंधा नमक सच में स्वस्थ के लिए है फायदेमंद

नमक के उपयोग को लेकर डब्ल्यूएचओ ने हाल में रिपोर्ट जारी की । डब्ल्यूएचओ ने नमक के उपयोग को पूरी दुनिया के लिए चिंता का विषय बताया । डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट में सामने आया था कि पूरी दुनिया में प्रत्येक इंसान हर दिन 10.8 ग्राम नमक का उपयोग कर रहा है जबकि इसे 5 ग्राम तक लाया जाना चाहिए । अभी जो नमक का प्रयोग किया जा रहा है । वह स्वास्थ्य के लिहाज से बिल्कुल ठीक नहीं है । भारत में भी सफेद नमक का अंधाधुंध उपयोग किया जाता है । आमतौर पर भारत में घरों में सफेद नमक का प्रयोग किया जाता है । उपवास में सेंधा नमक का प्रयोग होता है । आज जानने की कोशिश करते हैं कि उपवास में प्रयोग किया जाने वाला सेंधा नमक क्या वाकई फायदेमंद है ।
एंग्जाइटी में लाभकारी
सेंधा नमक ब्रेन को एक्टिव रखने का काम करता है । इसके उपयोग से सेरोटोनिन और मेलाटोनिन हार्मोन को नियंत्रण करने का काम करता है । इसके सेवन से एंग्जाइटी को काफी राहत मिलती है ।
हाइपरटेंशन कम करे
साधारण नमक ब्लड प्रेशर हाई करने का काम करता है । डॉक्टर सफेद नमक को कम करने की सलाह देते हैं । वहीं सेंधा नमक ब्लड प्रेशर को नियंत्रित करने का काम करता है । इससे बीपी काबू में रहता है । कोलेस्ट्रॉल बेहतर रहता है ।
खत्म करता है गले की खराश
कोविड के बाद से लोगों को गले की खराश की समस्या बनी हुई है । गले में दर्द या सूजन भी हो जाता है । गुनगुने पानी में सेंधा नमक डालकर गरारे करने से गले को खासा आराम मिलता है ।
पेट की गड़बड़ी सुधारे
आमतौर पर खराब खानपान के कारण पाचनतंत्र संबंधी दिक्कत हो जाती हैं । ऐसे लोगों के लिए सेंधा नमक खासा लाभकारी हो सकता है । इसमें मौजूद पोषक तत्व आंत और अन्य अंग को फायदा पहुंचाते हैं । वहीं, एसिडिटी, कब्ज जैसी समस्या से भी राहत मिलती है ।
(स्त्रोत – नवयुग सन्देश)

भारत की धरोहर हैं महाराणा प्रताप का स्मृति चिह्न बने ये किले

मेवाड़ के शासक और वीर योद्धा महाराणा प्रताप की जयंती हर साल अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार 9 मई को मनायी जाती है। महाराणा प्रताप ने मुगलों से युद्ध करते हुए सभी राजसी वैभव को त्याग कर जंगलों में भटकना मंजूर किया लेकिन मुगल शासकों के सामने कभी घुटने नहीं टेके।
साल में दो बार मनायी जाती है जयंती
महाराणा प्रताप का जन्म अंग्रेजी कैलेंडर के मुताबिक 9 मई 1540 को हुआ था। इस साल उनकी 489वीं जयंती मनायी गयी लेकिन हिंदू पंचांग के मुताबिक उनका जन्म जेष्ठ माह की तृतीया को गुरु पुष्य नक्षत्र में हुआ है। विक्रम संवत के अनुसार महाराणा प्रताप का जन्म 22 मई को हुआ था। इसी वजह से साल में दो बार मेवाड़ के महाराणा प्रताप की जयंती मनायी जाती है।
चित्तौड़गढ़ के किले में कभी नहीं रख पाए कदम
चित्तौड़गढ़ के किले को महाराणाओं की शान कहा जाता था। सन् 1303 में चित्तौड़गढ़ के किले पर अलाउद्दीन खिलजी ने अपना साम्राज्य स्थापित कर लिया था। 1540 में जब महाराणा प्रताप को जयवंता बाई ने जन्म दिया उसी समय उनके पिता महाराणा उदय सिंह ने खोए हुए चित्तौड़गढ़ के किले को फिर से जीत लिया और यहां एक विजय स्तंभ स्थापित किया। अपने जीवनकाल में महाराणा प्रताप कभी भी चित्तौड़गढ़ के किले में कदम नहीं रख सके। दरअसल, मुगल बादशाह अकबर ने 1568 को खुद इस किले पर चढ़ाई की और इसे जीत लिया। 27 साल की उम्र में गद्दी संभालने के बाद से लेकर मृत्यु तक महाराणा प्रताप मुगलों से युद्ध लड़ते रहे और बाबर से लेकर अकबर तक जितने किले भी मुगलों ने जीते थे, सबको वापस ले लिया। सिर्फ चित्तौड़गढ़ का किला ही बचा हुआ था। इसके बाद अकबर ने अपनी पूरी ताकत इस किले की सुरक्षा में झोंक दी और हजारों सैनिकों को तैनात कर दिया। सन् 1597 को महाराणा प्रताप ने अपनी मृत्यु तक इस किले को वापस लेने के लिए संघर्ष किया लेकिन वह ना तो इसे जीत सकें और ना ही इस किले में उन्होंने कभी कदम रखा।


गोगुन्दा
उदयपुर, जिसे महाराणा प्रताप के पिता महाराणा उदय सिंह ने बसाया था, से करीब 35 किमी दूर स्थित गोगुन्दा का किला कई महाराणाओं की आपातकालिन राजधानी भी रही है। इसी किले में महाराणा प्रताप का राजतिलक हुआ था। महाराणा प्रताप ने भी अपने पिता के निधन के बाद गोगुन्दा को अपनी राजधानी बनाया था लेकिन बाद में वह उदयपुर चले गये। जब अकबर ने उदयपुर छीन लिया तो महाराणा प्रताप फिर से गोगुन्दा आ गये।
मायरा की गुफा
गोगुन्दा के पास ही मायरा की गुफा है जिसे महाराणा प्रताप ने अपना शस्त्रागार बनाया था। इसी भूलभुलैया जैसी गुफा में वह अपने प्रिय घोड़े चेतक को भी बांधा करते थे और इसी गुफा में खुफिया मंत्रणा भी करते थे। महाराणा प्रताप ने प्रण लिया था कि जब तक वह मेवाड़ से मुगलों को पूरी तरह से खदेड़ नहीं देते, तब तक महलों को छोड़कर जंगलों में ही रहेंगे। प्रताप के जंगलों में रहने के दौरान यह गुफा काफी महत्वपूर्ण रहा है।
कुंभलगढ़ किला
हल्दीघाटी के युद्ध के बाद काफी समय तक महाराणा प्रपात कुंभलगढ़ किले में रहे थे। इस किले या दुर्ग से प्रताप की कई स्मृतियां जुड़ी हुई है। इस किले में ही पन्नाधाय ने महाराणा उदय सिंह (प्रताप के पिता) का लालन-पालन किया था। यह किला सात पहाड़ियों के बीच बना हुआ है, इसी वजह से नजदीक पहुंचने पर ही यह शत्रु को नजर आता था। यह किला सैनिक और सुरक्षा की दृष्टि से भी काफी महत्वपूर्ण था जिस कारण यह दुर्ग अजेय रहा है।
चावण्ड
उदयपुर से लगभग 60 किमी की दूरी पर चावण्ड गांव की पहाड़ी पर महाराणा प्रताप का महल बना हुआ है। उनसे जुड़ा होने की वजह से इस स्थान का ऐतिहासिक महत्व है। इसी महल में महाराणा प्रताप ने अपनी आखिरी सांसे ली थी। हालांकि अब यह महल टूट कर किसी खंडहर में तब्दील हो चुका है।
(स्त्रोत – नेटिव प्लानेट)

जानिए कैसे पड़ा इन्दौर का नाम..जहाँ हैं 4 हजार साल पुराने इंद्रेश्वर महाराज

मध्य प्रदेश का प्रमुख शहर इंदौर एक व्यवसायिक शहर है। इसी वजह से इसे मिनी मुंबई भी कहा जाता है। इस शहर के नामकरण को लेकर कई कहानियां प्रचलित हैं। कोई कहता है कि भगवान इंद्र के नाम पर इस शहर का नामकरण हुआ तो कोई इंदौर का नाम इंद्रेश्वर महादेव से जोड़ता है। आइए इंदौर के नामकरण और इसके पीछे की कहानियां बताते हैं :
देवराज इंद्र से जुड़ी कहानियां
इंदौर के नामकरण के बारे में कहा जाता है कि यहां कभी भगवान इंद्र का सुन्दर और भव्य मंदिर हुआ करता था। उस मंदिर के आसपास के इलाके को ही इंदौर के नाम से जाना जाने लगा। हालांकि इस बात की कोई ऐतिहासिक प्रमाणिकता नहीं मिली। इसके बावजूद इंदौर में रहने वाले लोगों का विश्वास है कि यह शहर दुनिया में राजा इंद्र का एकलौता नगर है।
इंद्रेश्वर महादेव की स्थापना
ऐतिहासिक प्रमाणों की बात की जाए तो कहा जाता है कि माना जाता है कि 8वीं शताब्दी में राजकोट के राजपूत राजा इंद्र तृतीय ने एक त्रिकोणीय युद्ध में जीत हासिल की थी। इसके बाद ही उन्हों इंद्रेश्वर महादेव के मंदिर की स्थापना की। इस मंदिर के साथ वह अपनी जीत को यादगार बनाना चाहते थे। इस मंदिर की वजह से ही यह पूरा क्षेत्र इंद्रपुरी कहलाने लगा। 18 शताब्दी में जब मराठा शासनकाल स्थापित हुआ तो इंद्रपुरी को मराठी अपभ्रंश इंदूर कहा जाने जो कालांतर में धीरे-धीरे इंदौर में परिवर्तित हो गया। ब्रिटिश काल में इंदौर का अंग्रेज नाम ‘INDORE’ लिखा जाता था, जो इंदूर से इंदौर बनने की प्रमुख वजह भी है।
मंदिर से जुड़ी मान्यताएं
4000 साल से भी पुराने इस मंदिर के बारे में कहा जाता है कि वर्षा के देवता इंद्रदेव ने कान्ह नदी से शिवलिंग को निकालकर इस मंदिर में स्थापित किया था। कहा जाता है कि जब सफेद दाग के रोग से भगवान इंद्र पीड़ित हुए थे तो उन्होंने इस मंदिर में तपस्या की थी। इस मंदिर को लेकर यह भी मान्यता है कि भगवान शिव पर चढ़ाए गये पानी को जिस भूमि पर डाला जाता है, वहां खुदाई करने से निश्चित रूप से पानी निकलता है। इसी मान्यता की वजह से तुकोरावजी प्रथम भी इस मंदिर तक खिंचे चले आते थे। जब भी उनके राज्य में बारिश कम होती थी, वह इस मंदिर में आकर पूजा करवाया करते थे। उन्होंने ही इस मंदिर के जीर्णोद्धार का कार्य किया था।
मंदिर का स्थापत्य
इंद्रेश्वर महादेव का जिक्र शिव पुराण में भी किया गया है। इस मंदिर को इंडो-आर्यन और द्रविड़ शैली का मिश्रण कहा जाता है। मंदिर का गर्भगृह दक्कन शैली में बनायी गयी है। मंदिर का गर्भगृह जमीन के नीचे बनाया गया है और गर्भगृह की दीवारों और खंभों पर नक्काशी भी दक्कन शैली की ही है। कहा जाता है कि जब-जब शहर में पानी की किल्लत होती है तब शिवलिंग को जलाभिषेक कर पूरी तरह से जलमग्न कर दिया जाता है। इसके बाद ही शहर से जल संकट दूर हो जाता है।
(स्त्रोत – नेटिव प्लानेट)

ट्रेनों में भी होते हैं लगेज को लेकर नियम

रेलवे हर भारतीय के लिए परिवहन का ही नहीं बल्कि आम जिन्दगी की जीवन रेखा है । यात्रियों को ढोने से लेकर माल ढोने तक और अब धार्मिक यात्राएं करवाने तक रेलवे ने लम्बा सफर तय किया है । ट्रेनों में अफरा – तफरी आम बात है मगर रेलवे यात्रा के कुछ नियम भी होते हैं। चलिए आज इन नियमों को जानते हैं –

:1. फोन पर जोर से बात करना

रेलवे की नियमावली के अनुसार कोई भी यात्री फोन पर ना तो तेज बातें कर सकता है और ना ही लाउड स्पीकर पर गाने सुन सकता है। कोई यात्री दूसरों को ऐसे परेशान ना कर पाएं, इसके लिए रेलवे ने अपने टीटीई, केटरिंग स्टाफ और अन्य सभी कर्मियों को इसका खास ध्यान रखने के लिए कहा है।

2. रात के 10 बजे के बाद के नियम

ट्रेन में रात को 10 बजे के बाद कुछ खास नियम होते हैं। रात को 10 बजे के बाद टीटीई आपकी टिकट चेक करने के लिए नहीं आ सकता है। नाइट लैंप के अलावा कोच की बाकी सभी लाइटों को बंद रखना होगा। समूह में यात्रा कर रहे यात्री भी एक-दूसरे से रात 10 बजे के बाद बात नहीं कर सकते और ना ही ऑनलाइन फुड ऑर्डर किया जा सकता है। हालांकि आप चाहे तो ई-केटरिंग सेवा से भोजन ऑर्डर कर सकते हैं। अगर आप मिडिल बर्थ को खोलते हैं तो लोअर बर्थ वाला यात्री कोई ऑब्जेक्शन नहीं कर सकता है।

3. मिडिल बर्थ का नियम

ट्रेन में अगर आपको मिडिल बर्थ मिलता है तो आप उसपर सिर्फ रात को 10 बजे से लेकर सुबह 6 बजे तक ही सो सकते हैं। अगर आप इससे पहले या इसके बाद भी मिडिल बर्थ का इस्तेमाल करना चाहते हैं तो आपका सहयात्री आपको ऐसा करने से रोक भी सकता है।

4. सामानों ले जाने के नियम

विमान की तरह ही सामानों को लेकर भी ट्रेन में नियम हैं। एसी कोच में यात्रा करने वाला यात्री अपने साथ अधिकतम 70 किलो, शयनयान श्रेणी से यात्रा करने वाले यात्री को अधिकतम 40 किलो और सेकंड क्लास श्रेणी से यात्रा करने वाले यात्री को अधिकतम 35 किलो सामान ही अपने साथ लेकर यात्रा करने की अनुमति है।

5. सर्कुलर टिकट पर यात्रा करने के नियम

अगर आप ट्रेन से पर्यटन स्थलों की यात्रा करने वाले हैं तो आप सर्कुलर यात्रा टिकट से यात्रा कर सकते हैं। इस टिकट पर आप अपनी यात्रा के बीच में 8 ब्रेक तक ले सकते हैं। इसके लिए आप रेलवे के अपने नजदीकी जोनल ऑफिस में जाकर अपनी सुविधा के अनुसार ही सर्कुलर टिकट ले सकते हैं।

6. ब्रेक जर्नी करने के नियम

क्या आपको पता है, आप अपने गंतव्य तक पहुंचने से पहले रास्ते में ब्रेक भी ले सकते हैं। भारतीय रेलवे 500 किमी तक की यात्रा के बीच में एक बार और 1000 किमी तक की यात्रा के बीच में 2 बार ब्रेक लेने की अनुमति देती है। यह ब्रेक यात्रा शुरू और खत्म होने के दिन को छोड़कर 2 दिनों तक का हो सकता है। हालांकि राजधानी, शताब्दी और जनशताब्दी एक्सप्रेस जैसी ट्रेनों में ब्रेक लेने की अनुमति नहीं होती है।

7. गंतव्य स्टेशन बदलने का नियम

कई बार टिकट नहीं मिलने की वजह से यात्री अपने गंतव्य स्टेशन से एक या दो स्टेशन पहले तक का ही टिकट ले पाते हैं। कई बार यात्री अपने निर्धारित स्टेशन पर किसी कारणवश नहीं उतर पाते हैं। ऐसी स्थिति में यात्री टिकट कलेक्टर से अतिरिक्त स्टेशनों का टिकट यात्रा के दौरान ही बनवा सकता है। ऐसी स्थिति में हो सकता है कि यात्री को सीट उपलब्धता के आधार पर अपनी सीट या कोच बदलना पड़े।

8. ट्रेन छुटने के बाद उसमें चढ़ने का नियम

क्या आपको पता है, अगर किसी वजह से निर्धारित स्टेशन से आपकी ट्रेन छुट गयी हो तो आप उस ट्रेन में अगले 2 स्टेशन पार करने से पहले तक चढ़ सकते हैं। अगर आपके पास रिजर्वेशन का टिकट है तो टीटीई निर्धारित स्टेशन के बाद दो अन्य स्टेशनों के गुजरने तक आपकी सीट किसी और को नहीं दे सकता है। 2 स्टेशनों के गुजरने के बाद भी अगर आप ट्रेन में नहीं चढ़े और सीट पर नहीं पहुंचे तो RAC लिस्ट के आधार पर टीटीई आपकी सीट किसी और को दे सकता है।

9. वेटिंग लिस्ट पर यात्रा के नियम

अगर आपने पीआरएस  काउंटर (रेलवे काउंटर) से टिकट लिया है और आपका टिकट कंफर्म नहीं बल्कि वेटिंग लिस्ट वाला है, तब भी आप उस टिकट से ट्रेन में यात्रा कर सकते हैं। लेकिन अगर आपने आईआरसीटीसी की वेबसाइट से ई-टिकट लिया है और वह वेटिंग लिस्ट में है तो आप उस टिकट पर यात्रा नहीं कर सकते हैं। रेलवे सिर्फ चार्ट तैयार हो जाने के बाद ही रुपये रिफंड करती है इसलिए काउंटर वाले टिकटों पर यात्रा करने की अनुमति होती है। अगर आपने ई-टिकट पर यात्रा करने की कोशिश की तो आप बिना टिकट यात्रा करते हुए माने जाएंगे।

10.चेन खींचने का नियम

ट्रेन में लटकती चेन को देखकर अक्सर हम उसे खींचने के बारे में बातें करते हैं। लेकिन क्या आपको पता है, बेवजह ट्रेन की चेन खींचना एक कानूनन जूर्म है। ट्रेन में चेन को आपातकालिन परिस्थितियों के लिए ही दिया जाता है। ट्रेन की चेन सिर्फ तभी खींची जा सकती है जब किसी सहयात्री, बुजूर्ग, बच्चे या फिर दिव्यांग की ट्रेन छुट गयी हो या फिर कोई आपातकाल हो।
(स्त्रोत – नेटिव प्लानेट)

युवाओं और विद्वानों के उत्साह से सजा वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. शंभुनाथ का 75 वर्षपूर्ति उत्सव

‘सभ्यताओं का संवाद’ एवं ‘एक भारतीय बुद्धिजीवी के सपने’ का लोकार्पण

युवाओं की सांस्कृतिक प्रस्तुतियों ने छोड़ा प्रभाव

कोलकाता। डॉ. शंभुनाथ एक प्रसिद्ध शिक्षाविद और साहित्यकार ही नहीं हैं, बल्कि कोलकाता के हिंदी जगत के सांस्कृतिक प्राणपुरुष हैं। उन्होंने देश-विदेश में हिंदी के प्रसार के लिए विपुल कार्य किया है। भक्ति आंदोलन और भारतीय नवजागरण पर उनके काम हिंदी आलोचना के क्षितिज का विस्तार करते हैं। कलकत्ता विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफेसर एवं प्रसिद्ध लेखक डॉ. शम्भुनाथ की 75वीं वर्षपूर्ति के अवसर पर आज ये बातें देश भर से आए विद्वानों ने कहीं। इसका आयोजन कलकत्ता विश्वविद्यालय के उनके विद्यार्थियों और साहित्यप्रेमियों ने भारतीय भाषा परिषद के सभागार में किया था। इस अवसर पर उनकी कविताओं पर कोलाज और उनकी एक कहानी का नाट्य रूपांतरण भी प्रस्तुत हुआ।
कार्यक्रम की शुरुआत डॉ. शंभुनाथ की जीवन यात्रा पर बनी डॉक्यूमेंट्री ‘सृजन यात्रा’ से हुई। भारतीय भाषा परिषद की अध्यक्ष डॉ. कुसुम खेमानी ने उनको सम्मानित करते हुए कहा कि शंभुनाथ जी ने परिषद की कई परियोजनाओं को राष्ट्रीय स्तर प्रदान किया है, जिनमें एक ‘हिंदी साहित्य ज्ञानकोश’ का निर्माण है। प्रो. राजश्री शुक्ला ने कहा कि शंभुनाथ एक निरंतर सृजनशील और सक्रिय व्यक्तित्व बने रहें, यह हम सबकी कामना है।
सम्मान समारोह में कृतज्ञता ज्ञापित करते हुए डॉ शम्भुनाथ ने कहा कि विद्यार्थियों और नौजवानों की सभागार में बड़ी उपस्थिति हिंदी भाषा और साहित्य के उज्ज्वल भविष्य की ओर संकेत है। उन्होंने यह भी कहा कि आज के परिदृश्य में ‘झूठ जिधर है, उधर शक्ति’। साहित्य हजारों साल से सत्य का रक्षक और मानवता की आवाज है। यह उनका हथियार है, जो हार रहे हैं लेकिन हार मानने को तैयार नहीं हैं। मैं अपने शिष्यों और देश भर से आए विद्वानों का आभारी हूँ, जिन्होंने मुझे इतना सम्मान दिया। वाणी प्रकाशन की ओर से अरुण कुमार माहेश्वरी और अदिति माहेश्वरी ने दिल्ली से आकर उनका सम्मान किया।
इस अवसर पर भक्ति आंदोलन पर राष्ट्रीय संगोष्ठी में अध्यक्षीय वक्तव्य देते हुए डॉ. विजयबहादुर सिंह ने कहा कि भक्ति आंदोलन को समझने के लिए गांधी की धार्मिक दृष्टि को समझना बहुत जरूरी है। इस भक्ति का सूफियों के प्रेम से गहरा संबंध रहा है। रांची विश्वविद्यालय के डॉ. रविभूषण ने कहा कि भारत के विभिन्न प्रदेशों में भक्ति आंदोलन विविध तरह से आया और उसका मुख्य संदेश ईश्वर के समक्ष सबको समान समझना था। बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के प्रोफेसर श्रीप्रकाश शुक्ल ने कहा कि शंभुनाथ ने ‘सनातन में सर्जनात्मकता’ की बात कह कर भक्ति साहित्य को देखने का एक नया परिप्रेक्ष्य दिया है। आज के धार्मिक शोर में भक्ति का संदेश खो गया है। रवीन्द्र भारती विश्वविद्यालय के इतिहासविद प्रो. हितेन्द्र पटेल ने कहा, रवीन्द्रनाथ और गांधी दोनों को भक्ति आंदोलन ने प्रभावित किया था और उनकी दृष्टि ने भक्ति आंदोलन के मूल्यांकन को काफी प्रभावित किया है।
‘भक्ति आंदोलन और वर्तमान समय’ पर विचार के दूसरे सत्र में अंबेदकर विश्वविद्यालय दिल्ली के प्रो. वैभव सिंह ने कहा, भक्ति आंदोलन के दौर में जड़ धार्मिक व्यवस्था की आलोचना थी और आज भी धर्म के संबंध में कई बातें कही जा रही हैं। इन दोनों में फर्क है। आज धर्म पर बाजार और राजनीति का असर बहुत ज्यादा है। दिल्ली से आए कवि और फिल्मकार देवी प्रसाद मिश्र ने कहा, भक्ति आंदोलन से प्रेरणा लेकर एक ऐसी सभ्यता का निर्माण करना होगा, जो मानवीय हो।
दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रो. गोपेश्वर सिंह ने कहा कि गांधी तुलसी के रामराज्य से प्रभावित थे, तो वे कबीर के प्रेम, श्रमचेतना और अहिंसा के विचारों से भी प्रभावित थे। उन्होंने ईश्वर को अपने जीवन की प्रेरणा बना ली थी। डॉ. अवधेश प्रधान ने कहा कि भक्ति साहित्य की प्रेरणा से ही आज मनुष्य जाति सुख और शांति की ओर बढ़ सकती है। श्री रामनिवास द्विवेदी ने कहा कि एक प्रोफेसर के रूप में शंभुनाथ का विद्यार्थियों के बौद्धिक निर्माण में एक बड़ी भूमिका है। श्री मृत्युंजय ने कहा कि शंभुनाथ ने हिंदी आलोचना को एक नई भूमि प्रदान की है। इस अवसर पर भाषाविद डॉ. अवधेश प्रसाद सिंह सहित शिक्षा जगत के कई गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे।
इस आयोजन के मुख्य आह्वायक प्रो. संजय जायसवाल द्वारा डॉ. शंभुनाथ की कृतियों पर संपादित ग्रंथ ‘सभ्यताओं का संवाद’ और रामनिवास द्विवेदी द्वारा संपादित सचित्र पुस्तक ‘एक भारतीय बुद्धिजीवी के सपने’ का लोकार्पण हुआ। प्रो. संजय जायसवाल ने कहा कि दिन भर सभागार में डॉ. शंभुनाथ के विद्यार्थियों और साहित्यप्रेमियों की व्यापक उपस्थिति और इतने विद्वानों का आगमन उनकी राष्ट्रीय लोकप्रियता का प्रमाण है।
सांस्कृतिक प्रस्तुतियों में श्रीप्रकाश गुप्ता, रमाशंकर सिंह, इबरार खान, मधु सिंह, पूजा गोंड, सूर्यदेव राय, राजेश सिंह, रूपेश यादव, अपराजिता, सपना खरवार, राज घोष, सुशील सिंह, आदित्य तिवारी, विशाल बैठा, आदित्य साव और चंदन भगत ने नाटक तथा स्नेहा चौधरी, अंकिता कुमारी, शाहीन परवीन, रिया सिंह, इशरत जहां, संजना, अंशुल, कुसुम भगत, अदिति दुबे, कंचन भगत, मधु साव, अदिति, ज्योति चौरसिया, सुषमा कुमारी, मनीषा गुप्ता ने कविता कोलाज किया। इस सम्मान समारोह में विश्वम्भर नेवर, डॉ. शुभ्रा उपाध्याय, अजय राय, डॉ मंजूरानी सिंह, अरुण माहेश्वरी, अदिति माहेश्वरी, शंकर सान्याल, कृष्ण श्रीवास्तव, रविशंकर सिंह, ऋषि भूषण चौबे, जयराम पासवान, यतीश कुमार, प्रियांगु पाण्डेय, मानव जायसवाल सहित सैकड़ों की संख्या में साहित्यप्रेमी, सर के पूर्व विद्यार्थीगण मौजूद थे। कार्यक्रम का संचालन डॉ संजय जायसवाल, डॉ गीता दुबे, डॉ श्रद्धांजलि सिंह, नागेंद्र पंडित ने तथा धन्यवाद ज्ञापन प्रो. राजश्री शुक्ला, डॉ प्रीति सिंघी, राजेश कुमार साव ने दिया।

भवानीपुर कॉलेज के प्रातःकालीन कॉमर्स सत्र में “कैलकुलेटर रहस्य” पर संगोष्ठी

कोलकाता । भवानीपुर एजुकेशन सोसाइटी कॉलेज के प्रातःकालीन वाणिज्य विभाग और आईक्यूएसी के सहयोग से गुरुवार, 11 मई, 2023 को प्रोफेसर विवेक पटवारी के साथ “कैलकुलेटर सीक्रेट्स” सेमिनार के छठवें संस्करण का आयोजन किया गया। दो घंटे तक चलने वाले इस सेमिनार में छात्रों और संकाय सदस्यों सहित 250 से अधिक प्रतिभागियों ने हिस्सा लिया जो महत्वपूर्ण बात रही।
कार्यक्रम के आरंभ में डीन ऑफ स्टूडेंट्स अफेयर्स प्रो दिलीप शाह ने कैलकुलेटर के रहस्य जैसे गंभीर विषय पर रुचिकर तरीके से सहज बनाने के लिए प्रो विवेक पटवारी के प्रति उत्साह व्यक्त किया। प्रो पटवारी वाणिज्य के क्षेत्र में केलकुलेटर के त्वरित प्रयोग के लिए अपनी विशिष्टता के लिए जाने जाते हैं। उन्होंने आगामी करियर कनेक्ट सोर्सेज और कॉमर्स लैब 3.0 की भी घोषणा की। वाणिज्य विभाग (मॉर्निंग सेक्शन) के सभी शिक्षण और गैर-शिक्षण कर्मचारियों ने आयोजन को सफल बनाने में अपना योगदान दिया। प्रो पटवारी ने संगोष्ठी में विभिन्न युक्तियों और तरकीबों को शामिल किया जिनका उपयोग नियमित कैलकुलेटर का उपयोग करके जटिल गणितीय गणना करने के लिए किया जा सकता है।
सभागार में उपस्थित सभी 250 विद्यार्थियों को संगोष्ठी के दौरान कवर की गई तकनीकों की एक हार्ड कॉपी प्रदान की गई। इसके अतिरिक्त, छात्रों को तकनीकों से संबंधित 30 व्यावहारिक चित्रों का एक पीडीएफ दिया गया, जो अवधारणाओं को समझने में उनकी सहायक हो।
प्रतिभागियों की प्रतिक्रिया उत्साहजनक रही । संगोष्ठी के दौरान छात्र अत्यधिक व्यस्त थे और उन्होंने अपनी शंकाओं को दूर करने के लिए कई प्रश्न पूछे। उन्होंने प्रोफेसर पटवारी की अनूठी शिक्षण शैली की सराहना की, जिससे जटिल अवधारणाओं को समझना आसान हो गया। संकाय सदस्यों ने भी संगोष्ठी को अत्यधिक जानकारीपूर्ण और उनकी सिक्रेट शिक्षण पद्धतियों को उपयोगी पाया।
संगोष्ठी में भाग लेने वाले छात्रों को प्रशंसा के प्रतीक के रूप में प्रमाण पत्र प्रदान किए गए । प्रभारी शिक्षक डॉ सुभब्रत गंगोपाध्याय ने भी इस कार्यक्रम में भाग लिया और सेमिनार को सफल बनाने के लिए प्रोफेसर पटवारी और आयोजकों द्वारा किए गए प्रयासों की सराहना की।एम प्लस, एम माइनस, एम आर सी मैमरी रिकॉल क्लीयर, जी टी, जीटी और एम आर सी को एक साथ करना और लोगोरिथम, स्टेस्टिक आदि को सुलझाने के बहुत से सरल सूत्रों को साझा किया। डॉ वसुंधरा मिश्र ने बताया कि कैलकुलेटर सीक्रेट्स पर यह मूल्यवान अंतर्दृष्टि सत्र एम सी क्यू परीक्षा प्रतिभागियों के लिए उपयोगी और प्रभावी है।

व्यवसायिक विचार से कार्यान्वयन तक – यूपीआई की कहानी

कोलकाता । भवानीपुर एजुकेशन सोसाइटी कॉलेज ने यूपीआई स्टोरी पर केंद्रित एक उल्लेखनीय सत्र आयोजित किया, जो 19 मई 2023 को कॉलेज के जुबली हॉल में हुआ। कार्यक्रम की शुरुआत छात्र मामलों के डीन प्रोफेसर दिलीप शाह द्वारा दिए गए एक उत्साहजनक परिचयात्मक भाषण से हुई, विशिष्ट वक्ता की विशेषज्ञता पर प्रकाश डाला। वक्ता डॉ सुपर्णा धर, कंप्यूटिंग और एनालिटिक्स के क्षेत्र में एक अत्यधिक कुशल पेशेवर, अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से सूचना प्रणाली में विशेषज्ञता के साथ बिजनेस एडमिनिस्ट्रेशन में पीएचडी रखती हैं। वर्तमान में डॉ धर एनएसएचएम कॉलेज, कोलकाता में आईटी वर्टिकल की प्रमुख हैं।

अपने सत्र के दौरान, डॉ धर ने डिजिटल इंडिया के दृष्टिकोण पर प्रकाश डालते हुए दर्शकों को यूपीआई पर काम करते हुए उनके सामने आने वाली सामाजिक चुनौतियों के बारे में बताया। उन्होंने वित्तीय समावेशन को बढ़ावा देने के उद्देश्य से डिजिटल सेवाओं के एक महत्वपूर्ण घटक के रूप में डिजिटल भुगतान के महत्व पर जोर दिया। साथ ही डॉ धर ने यूपीआई के मुख्य उद्देश्य पर प्रकाश डाला, जो भुगतान को आसान बनाता है। उन्होंने भारतीयों द्वारा इसके व्यापक उपयोग पर प्रकाश डालते हुए भारत के भीतर इसके विकास, कार्यान्वयन और प्रचार पर जोर देते हुए यूपीआई समाधान के बारे में विस्तार से बताया। एक विचार की शुरुआत से लेकर इसके व्यावहारिक अहसास तक इसे आगे बढ़ाने की प्रक्रिया पर प्रकाश डालते हुए, छात्रों के साथ एक समृद्ध अनुभवों की अपनी अंतर्दृष्टि से साझा किया।

कार्यक्रम में प्रश्नोत्तर सत्र के साथ एक इंटरैक्टिव मोड़ आया लिया, जहांँ छात्रों जतिन मूंदड़ा, अनीश अग्रवाल और नोमिक टांटिया ने यूपीआई स्टोरी पर उत्कृष्ट प्रश्न पूछे। जिसमें एक उल्लेखनीय प्रश्न उन कारकों के बारे में था जिन्होंने उपयोगकर्ताओं और व्यवसायों दोनों के बीच यूपीआई को व्यापक रूप से अपनाने में योगदान दिया। इसके अतिरिक्त फैकल्टी सदस्य प्रो विवेक पटवारी ने व्यक्तियों की खर्च करने की आदतों पर यूपीआई भुगतान के प्रभाव और क्रेडिट कार्ड के साथ इसके संबंध के बारे में एक सम्मोहक प्रश्न उठाया। डॉ. धर ने प्रत्येक प्रश्न का उत्तर बड़ी चतुराई और उत्साह के साथ दिया, अंतर्दृष्टिपूर्ण और सूक्ष्म उत्तर प्रदान किए।

बौद्धिक उत्तेजना और ज्ञान के माहौल को बढ़ावा देने के लिए इस घटना ने दर्शकों को मोहित कर लिया। इसने छात्रों और प्रतिभागियों को एक प्रसिद्ध पेशेवर से मूल्यवान ज्ञान बटोरने, उनके क्षितिज का विस्तार करने और उन्हें विषय वस्तु पर व्यापक दृष्टिकोण प्रदान करने का एक अनूठा अवसर प्राप्त किया। यूपीआई कहानी पर भवानीपुर एजुकेशन सोसाइटी कॉलेज के कार्यक्रम ने अपने छात्रों को अत्याधुनिक ज्ञान और उभरते क्षेत्रों के संपर्क में लाने के लिए संस्थान की प्रतिबद्धता का उदाहरण दिया।
डॉ. सुपर्णा धर की विशेषज्ञता और प्रो दिलीप शाह के सहयोग से यह आयोजन अकादमिक उत्कृष्टता के लिए महत्त्वपूर्ण रहा। कार्यक्रम का समापन प्रो. शाह द्वारा डॉ. सुपर्णा धर के सम्मान के साथ हुआ। प्रभारी शिक्षक डॉ सुभब्रत गंगोपाध्याय भी सत्र में उपस्थित रहे।
कार्यक्रम में लगभग 200 प्रतिभागियों की उपस्थिति ने एक स्थायी प्रभाव छोड़ा। इसने प्रतिभागियों के बीच नवाचार और बौद्धिक जिज्ञासा की भावना को बढ़ावा देने के लिए एक उत्प्रेरक के रूप में कार्य किया।इसके रिपोर्टर रुचिका सचदेव और फोटोग्राफर पारस गुप्ता रहे। जानकारी दी डॉ वसुंधरा मिश्र ने ।