Thursday, August 21, 2025
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विश्व संगीत दिवस – वेदों से हुई है भारतीय शास्त्रीय संगीत की उत्पत्ति

भारतीय शास्त्रीय संगीत की उत्पत्ति वेदों से मानी जाती है। सामवेद में संगीत के बारे में गहराई से चर्चा की गई है। भारतीय शास्त्रीय संगीत गहरे तक आध्यात्मिकता से प्रभावित रहा है, इसलिए इसकी शुरुआत मनुष्य जीवन के अंतिम लक्ष्य मोक्ष की प्राप्ति के साधन के रूप में हुई। संगीत की महत्ता इस बात से भी स्पष्ट है कि भारतीय आचार्यों ने इसे पंचम वेद या गंधर्व वेद की संज्ञा दी है। भरत मुनि का नाट्यशास्त्र पहला ऐसा ग्रंथ था जिसमें नाटक, नृत्य और संगीत के मूल सिद्धांतों का प्रतिपादन किया गया है।

भारतीय शास्त्रीय संगीत की उत्पत्ति वेदों से मानी जाती है। सामवेद में संगीत के बारे में गहराई से चर्चा की गई है। भारतीय शास्त्रीय संगीत गहरे तक आध्यात्मिकता से प्रभावित रहा है, इसलिए इसकी शुरुआत मनुष्य जीवन के अंतिम लक्ष्य मोक्ष की प्राप्ति के साधन के रूप में हुई। संगीत की महत्ता इस बात से भी स्पष्ट है कि भारतीय आचार्र्यों ने इसे पंचम वेद या गंधर्व वेद की संज्ञा दी है। भरत मुनि का नाट्यशास्त्र पहला ऐसा ग्रंथ था जिसमें नाटक, नृत्य और संगीत के मूल सिद्धांतों का प्रतिपादन किया गया है।
भारतीय शास्त्रीय संगीत को पूरी दुनिया में सबसे ज्यादा जटिल व संपूर्ण संगीत प्रणाली माना जाता है।

भारतीय शास्त्रीय संगीत की शैलियां
भारतीय शास्त्रीय संगीत की दो प्रमुख शैलियां निम्नलिखित हैं-

हिंदुस्तानी शैली
हिंदुस्तानी शैली के प्रमुख विषय ऋंगार, प्रकृति और भक्ति हैं। तबलावादक हिंदुस्तानी संगीत में लय बनाये रखने में मदद देते हैं। तानपूरा एक अन्य वाद्ययंत्र है जिसे पूरे गायन के दौरान बजाय जाता है। अन्य वाद्ययंत्रों में सारंगी व हरमोनियम शामिल हैं। हिंदुस्तानी शैली पर काफी हद तक फारसी संगीत के वाद्ययंत्रों और शैली दोनों का ही प्रभाव है।

हिंदुस्तानी गायन शैली के प्रमुख रूप

  • ध्रुपद: ध्रुपद गायन की प्राचीनतम एवं सर्वप्रमुख शैली है। ध्रुपद में ईश्वर व राजाओं का प्रशस्ति गान किया जाता है। इसमें बृजभाषा की प्रधानता होती है।
  • खयाल: यह हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत की सबसे लोकप्रिय गायन शैली है। खयाल की विषयवस्तु राजस्तुति, नायिका वर्णन, श्रृंगार रस आदि होते हैं।
  • धमार: धमार का गायन होली के अवसर पर होता है। इसमें प्राय: कृष्ण-गोपियों के होली खेलने का वर्णन होता है।
  • ठुमरी: इसमें नियमों की अधिक जटिलता नहीं दिखाई देती है। यह एक भावप्रधान तथा चपल चाल वाला श्रृंगार प्रधान गीत है। इस शैली का जन्म अवध के नवाब वाजिद अली शाह के राज दरबार में हुआ था।
  • टप्पा: टप्पा हिंदी मिश्रित पँजाबी भाषा का श्रृंगार प्रधान गीत है। यह गायन शैली चंचलता व लच्छेदार तान से युक्त होती है।

कर्नाटक शैली
कर्नाटक शास्त्रीय शैली में रागों का गायन अधिक तेज और हिंदुस्तानी शैली की तुलना में कम समय का होता है। त्यागराज, मुथुस्वामी दीक्षितार और श्यामा शास्त्री को कर्नाटक संगीत शैली की त्रिमूर्ति कहा जाता है, जबकि पुरंदर दास को अक्सर कर्नाटक शैली का पिता कहा जाता है। कर्नाटक शैली के विषयों में पूजा-अर्चना, मंदिरों का वर्णन, दार्शनिक चिंतन, नायक-नायिका वर्णन और देशभक्ति शामिल हैं।

कर्नाटक गायन शैली के प्रमुख रूप

  • वर्णम: इसके तीन मुख्य भाग पल्लवी, अनुपल्लवी तथा मुक्तयीश्वर होते हैं। वास्तव में इसकी तुलना हिंदुस्तानी शैली के ठुमरी के साथ की जा सकती है।
  • जावाली: यह प्रेम प्रधान गीतों की शैली है। भरतनाट्यम के साथ इसे विशेष रूप से गाया जाता है। इसकी गति काफी तेज होती है।
  • तिल्लाना: उत्तरी भारत में प्रचलित तराना के समान ही कर्नाटक संगीत में तिल्लाना शैली होती है। यह भक्ति प्रधान गीतों की गायन शैली है।

 

योग दिवस विशेष – महर्षि पतंजलि एवं पतंजलि योग सूत्र से सम्बन्धित कुछ तथ्य

महर्षि पतञ्जलि (पतंजलि) एक संत हैं जो दूसरी शताब्दी ईसा पूर्व के दौरान कुछ समय रहे थे। इन्हे नागनाथ, गोणिकापुत्र, अहितापति आदि कई नामों से जाना जाता है। “पतञ्जलि (पतंजलि) योग सूत्र” नामक योग पर अपने ग्रंथ के लिए मशहूर, वह केवल योग के विज्ञान पर एक प्राधिकारी ही नहीं बल्कि एक वैज्ञानिक और डॉक्टर भी थे, जिनकी स्पष्टता और ज्ञान उल्लेखनीय है।

पतञ्जलि परंपरा के अनुसार- महर्षि पतञ्जलि (पतंजलि) “महाभाष्य” ग्रंथ के भी लेखक थे। जो पाणिनि की “अष्टाध्यायी” पर एक प्रदर्शनी थी, हालांकि इस बात के लिए काफी बहस हुई कि क्या दो कार्य “योग सूत्र” और “महाभाष्य” एक ही लेखक द्वारा हैं? इसके अलावा परंपराओं की मान्यता है कि उन्हें एक चिकित्सा पाठ “चरकप्राटिसमस्क्राट” का श्रेय जाता है, जो चरक के चिकित्सा ग्रंथ और संशोधन हैं – हालांकि यह कार्य खो गया था।

इसलिए परम्परा महर्षि पतञ्जलि (पतंजलि) की इस प्रकार प्रशंसा करती है- “मैं विशिष्ट पतञ्जलि (पतंजलि) को झुक कर अपने दोनों हाथों को जोड़ते हुए प्रणाम करता हूं, जिन्होंने योग के माध्यम से मन, भाषण के माध्यम से व्याकरण एवं औषधि के माध्यम से शरीर की अशुद्धताओं को हटाया।”

राजा भोज ने भी महर्षि पतञ्जलि (पतंजलि) की सराहना की है। –

योगेन चित्तस्य पदेन वाचां । मलं शरीरस्य च वैद्यकेन ॥
योऽपाकरोत्तमं प्रवरं मुनीनां । पतञ्जलिं प्राञ्जलिरानतोऽस्मि ॥

मन की चित्त वृत्तियों को को योग से, वाणी को व्याकरण से और शरीर की अशुद्धियों को आयुर्वेद द्वारा शुद्ध करने वाले मुनियों में सर्वश्रेष्ठ महर्षि पतञ्जलि (पतंजलि) को में दोनों हाथ जोड़कर नमन करता हूँ। – इस श्लोक को योगाभ्यास के शुरू में गाया जाता है।

महर्षि पतञ्जलि (पतंजलि) काशी मंडल में दूसरी शताब्दी के दौरान रहते थे। महर्षि पतञ्जलि (पतंजलि) का जीवन समाधी मंदिर तिरुपत्तूर ब्रह्मपुरेश्वर मंदिर में है ऐसा माना जाता है।

महर्षि पतञ्जलि (पतंजलि) की जन्म कहानी

महर्षि पतञ्जलि (पतंजलि) से जुडी कई कहानियाँ है।

एक लोकप्रिय कहानी के अनुसार वह ऋषि अत्री और उनकी पत्नी अनुसूया के पुत्र थे।

महर्षि पतञ्जलि (पतंजलि) को अनंत का अवतार कहा जाता है, पवित्र नाग जिस पर महाविष्णु योग निद्रा में विश्राम करते हैं।

एक अन्य कथा के अनुसार भगवान विष्णु को शिव का नृत्य देखने के लिए उत्साहित देखकर, आदिशेष नृत्य सीखना चाहता था। ताकि वह अपने भगवान को खुश कर सके, इसके द्वारा प्रभावित होकर भगवान विष्णु ने आदिशेष को आशीर्वाद दिया, और कहा कि भगवान शिव उनकी भक्ति के लिए, उन्हें आशीर्वाद देंगे। वह जन्म लेंगे ताकि वह मानव जाति को आशीर्वाद दे सकें और नृत्य कला का नेतृत्व कर सकें।

इस समय गोनिका नाम की एक सुप्रसिद्ध महिला, जो पूरी तरह योग के लिए समर्पित थी, एक योग्य पुत्र के लिए एक मुट्ठी भर जल के साथ प्रार्थना कर रही थी, जब उसने एक छोटा सांप उसके हाथ में घूमता देखा। वह सांप एक मानव रूप में बदल गया। वह सर्प आदिशेष के अलावा कोई नहीं था। जिसने महर्षि पतञ्जलि (पतंजलि) के रुप में जन्म लिया था।

जहाँ तक जन्म भूमि की बात रही, परंपरा कहती है कि वह किसी भी साधारण स्थान पर पैदा नहीं हुए थे। वह एक ऊँचे स्थान, एक दिव्य खगोलीय निवास से थे। आर्ट ऑफ लीविंग के श्री श्री रविशंकर जी ने महर्षि पतञ्जलि (पतंजलि) को उच्च सम्मान में रखा है। उन्होंने पतञ्जलि (पतंजलि) योग सूत्र पर एक सरल और सुंदर टिप्पणी दी है। टिप्पणी इसकी प्रमाणिकता और गहराई में उत्कृष्टता देती है।

यह भी पढ़ें – योग के जनक पतंजलि को माना जाता है शेषनाग का अवतार

पतञ्जलि (पतंजलि) योग सूत्र क्या है? 

पतञ्जलि (पतंजलि) योग सूत्र में महर्षि पतञ्जलि (पतंजलि) ने विभिन्न ध्यानपारायण अभ्यासों को सुव्यवस्थित कर उनकों सूत्रों में संहिताबद्ध किया है। यह सूत्र योग के आठ अंगों को दर्शाते है। इसमें कुल १९५ सूत्र है जिन्हे ४ पदों में विभाजित किया गया है।

  • समाधी पद – इसमें ५१ सूत्र है। – इसके अनुसार मन की वृतियों का निरोध ही योग है।
  • साधना पद – इसमें ५५ सूत्र है। – “क्रिया योग” क्या है और उसके अंगो का वर्णन इस पद में शामिल है। तप, स्वाध्याय, ईश्वर प्रणिधान।
  • विभूति पद – इसमें भी ५५ सूत्र है। – इस अध्याय में संयम का वर्णन है। जिसमे ध्यान, धारणा और समाधी यह योग के आठ अंगो में से अंतिम तीन अंग शामिल है।
  • केवल्य पद – इसमें ३४ सूत्र है। – परम मुक्ति पर आधारित यह अध्याय सबसे छोटा है।

योग के आठ अंग इस प्रकार है – यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान, समाधी

पतञ्जलि (पतंजलि) योगसूत्र पर गुरुदेव श्री श्री रवि शंकर जी के प्रवचन पर आधारित विस्तृत लेखों की सूचि निचे दी गयी है।

(साभार – आर्ट ऑफ लीविंग की वेबसाइट)

जगन्नाथ मंदिर के प्रसाद का क्या है रहस्य?

आषाढ़ माह में भगवान रथ पर सवार होकर अपनी मौसी रानी गुंडिचा के घर जाते हैं। यह रथयात्रा 5 किलो‍मीटर में फैले पुरुषोत्तम क्षेत्र में ही होती है। आषाढ़ शुक्ल दशमी को वापसी की यात्रा होती है। इस बार यह यात्रा 20 जून 2023 को आयोजित होगी, जिसमें 25 लाख लोगों के शामिल होने की संभावना है। कैसे बांटेंगे 25 लाख लोगों को प्रसाद और भोजन? जानिए रहस्य।
दुनिया का सबसे बड़ा रसोईघर :-
500 रसोइए 300 सहयोगियों के साथ मिलकर बनाते हैं भगवान जगन्नाथजी का प्रसाद।
लगभग 20 लाख भक्त कर सकते हैं यहां भोजन।
मंदिर के अंदर पकाने के लिए भोजन की मात्रा पूरे वर्ष के लिए रहती है।
प्रसाद की एक भी मात्रा कभी भी व्यर्थ नहीं जाती।
कहा जाता है कि मंदिर में प्रतिदिन प्रसाद 20 हजार लोगों के लिए ही बनाया जाता है।
त्योहार वाले दिन 50 हजार लोगों के लिए बनाया जाता है।
कहा जाता है कि यदि किसी दिन लाखों लोग भी आ जाए तो भी वह प्रसाद ग्रहण करके ही जाते हैं।
56 भोग का होता है प्रसाद :-
भोग के लिए रोजाना 56 तरह के भोग तैयार किए जाते हैं।
ये सारे व्यंजन मिट्टी के बर्तनों में तैयार किए जाते हैं।
अद्भुत तरीके से ही पकता है चावल:-
रसोई में प्रसाद पकाने के लिए 7 बर्तन एक-दूसरे पर रखे जाते हैं।
सब कुछ लकड़ी पर ही पकाया जाता है।
इस प्रक्रिया में शीर्ष बर्तन में सामग्री पहले पकती है फिर क्रमश: नीचे की तरफ एक के बाद एक पकती जाती है।
अर्थात सबसे ऊपर रखे बर्तन का खाना पहले पक जाता है, यही यहां का चमत्कार है।

(साभार – वेब दुनिया)

जानिए बलभद्र और सुभद्रा सो जुड़े तथ्य

ओड़ीसा के पुरी में प्रतिवर्ष आषाढ़ द्वितीया पर प्रभु जगन्नाथ की रथयात्रा निकाली जाती है। इस रथयात्रा में श्री बलभद्र और और सुभद्रा जी के रथ भी शामिल होते हैं। आओ जानते हैं देवी सुभद्रा और बलभद्र के बार में अनजाने राज।
बलभद्र 
1. भगवान बलभद्र को बलराम, दाऊ और बलदाऊ भी कहते हैं। बलवानों में श्रेष्ठ होने के कारण उन्हें बलभद्र भी कहा जाता है।
2. बलभद्र को शेषनाग तो भगवान जगन्नाथ अर्थात श्रीकृष्ण को विष्णुजी का अवतार माना जाता है।
3. कहते हैं कि जब कंस ने देवकी-वसुदेव के छ: पुत्रों को मार डाला, तब देवकी के गर्भ में शेषावतार भगवान बलराम पधारे। योगमाया ने उन्हें आकर्षण करके नन्द बाबा के यहां निवास कर रही श्री रोहिणीजी के गर्भ में पहुंचा दिया था। इसलिए उनका एक नाम संकर्षण पड़ा। श्रीकृष्‍ण और बलराम की माताएं अलग अलग हैं लेकिन पिता एक ही हैं। हालांकि देखा जाए तो पहले वे देवकी के गर्भ में ही थे।
4. बलराम जी का विवाह सतयुग के महाराज कुकुदनी की पुत्री रेवती से हुआ था। रेवती बलरामजी से बहुत लंबी थी तो बलरामजी ने उन्हें अपने हल से अपने समान कर दिया था।
5. जगन्नाथ की रथयात्रा में बलभद्रजी का भी एक रथ होता है। यह गदा धारण करते हैं। बलरामजी ने दुर्योधन और भीम दोनों को ही गदा सिखाई थी। उनके लिए कौरव और पांडव दोनों ही समान थे इसलिए उन्होंने युद्ध में भाग नहीं लिया था। मौसुल युद्ध में यदुवंश के संहार के बाद बलराम ने समुद्र तट पर आसन लगाकर देह त्याग दी थी।

सुभद्रा

1. योगमाया के अलावा सुभद्रा भी श्रीकृष्ण की बहन थीं।
2. बलराम चाहते थे कि सुभद्रा का विवाह कौरव कुल में हो लेकिन बलराम के हठ के चलते कृष्ण ने सुभद्रा का अर्जुन के हाथों हरण करवा दिया था। बाद में द्वारका में सुभद्रा के साथ अर्जुन का विवाह विधिपूर्वक संपन्न हुआ।
3. विवाह के बाद वे एक वर्ष तक द्वारका में रहे और शेष समय पुष्कर क्षेत्र में व्यतीत किया। 12 वर्ष पूरे होने पर वे सुभद्रा के साथ इंदप्रस्थ लौट आए।
4. सुभद्रा का पुत्र अभिमन्यु था जिसकी महाभारत के युद्ध में चक्रव्यूह फंसने के कारण दुर्योधन, कर्ण सहित कुल सात आठ लोगों ने मिलकर निर्मम हत्या कर दी थी। अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा थी जिसके गर्भ से परीक्षित का जन्म हुआ और परीक्षित का पुत्र जनमेजय था।
5. कहा जाता है कि नरकासुर का वध करने के बाद भगवान श्रीकृष्ण अपनी बहन सुभद्रा से मिलने भाई दूज के दिन उनके घर पहुंचे थे। सुभद्रा ने उनका स्वागत करके अपने हाथों से उन्हें भोजन कराकर तिलक लगाया था।
6. पुरी, उड़ीसा में ‘जगन्नाथ की यात्रा’ में बलराम तथा सुभद्रा दोनों की मूर्तियां भगवान श्रीकृष्ण के साथ-साथ ही रहती हैं।
7. सुभद्रा वसुदेव की दूसरी पत्नी रोहिणी की पुत्री थीं, जबकि वसुदेकी की दूसरी पत्नी देवकी के पुत्र श्रीकृष्ण थे। इस तरह श्रीकृष्ण और सुभद्रा के पिता एक ही थे परंतु माताएं अलग अलग थी।

जानिए, जगन्नाथ पुरी मंदिर की 13 आश्चर्यजनक बातें

पुरी का जगन्नाथ मंदिर भक्तों की आस्था केंद्र और विश्वभर में प्रसिद्ध है। यह हिन्दुस्तान ही नहीं, बल्कि विदेशी श्रद्धालुओं के भी आकर्षण का केंद्र है। मं‍दिर का स्थापत्य इतना भव्य है कि दूर-दूर के वास्तु विशेषज्ञ इस पर रिसर्च करने आते हैं। प्रस्तुत हैं आपके लिए 13 आश्चर्यजनक चर्चित तथ्य-
1. मंदिर की ऊंचाई 214 फुट है।
2. पुरी में किसी भी स्थान से आप मंदिर के शीर्ष पर लगे सुदर्शन चक्र को देखेंगे तो वह आपको सदैव अपने सामने ही लगा दिखेगा।
3. मंदिर के ऊपर स्थापित ध्वज सदैव हवा के विपरीत दिशा में लहराता है।
4. सामान्य दिनों के समय हवा समुद्र से जमीन की तरफ आती है और शाम के दौरान इसके विपरीत, लेकिन पुरी में इसका उल्टा होता है।
5. मुख्य गुंबद की छाया दिन के किसी भी समय अदृश्य ही रहती है।
6. मंदिर के अंदर पकाने के लिए भोजन की मात्रा पूरे वर्ष के लिए रहती है। प्रसाद की एक भी मात्रा कभी भी व्यर्थ नहीं जाती, लाखों लोगों तक को खिला सकते हैं।
7. मंदिर की रसोई में प्रसाद पकाने के लिए 7 बर्तन एक-दूसरे पर रखे जाते हैं और सब कुछ लकड़ी पर ही पकाया जाता है। इस प्रक्रिया में शीर्ष बर्तन में सामग्री पहले पकती है फिर क्रमश: नीचे की तरफ एक के बाद एक पकती जाती है।
8. मंदिर के सिंहद्वार में पहला कदम प्रवेश करने पर ही (मंदिर के अंदर से) आप सागर द्वारा निर्मित किसी भी ध्वनि को नहीं सुन सकते। आप (मंदिर के बाहर से) एक ही कदम को पार करें, तब आप इसे सुन सकते हैं। इसे शाम को स्पष्ट रूप से अनुभव किया जा सकता है।
9. मंदिर का रसोईघर दुनिया का सबसे बड़ा रसोईघर है।
10. मंदिर का क्षेत्रफल 4 लाख वर्गफुट में है।
11. प्रतिदिन सायंकाल मंदिर के ऊपर स्थापित ध्वज को मानव द्वारा उल्टा चढ़कर बदला जाता है।
12. पक्षी या विमानों को मंदिर के ऊपर उड़ते हुए नहीं पाएंगे।
13. विशाल रसोईघर में भगवान जगन्नाथ को चढ़ाए जाने वाले महाप्रसाद का निर्माण करने हेतु 500 रसोइए एवं उनके 300 सहायक-सहयोगी एकसाथ काम करते हैं। सारा खाना मिट्टी के बर्तनों में पकाया जाता है। हमारे पूर्वज कितने बड़े इंजीनियर रहे होंगे, यह इस एक मंदिर के उदाहरण से समझा जा सकता है।

(साभार – वेब दुनिया)

आखिर क्यों रथयात्रा से पहले 15 दिन तक एकांतवास में रहते हैं भगवान जगन्नाथ?

जगन्नाथ रथयात्रा के पहले प्रभु जगन्नाथ को 108 कलशों से शाही स्नान कराया जाता है। फिर 15 दिन तक प्रभु जी को एक विशेष कक्ष में रखा जाता है। जिसे ओसर घर कहते हैं। आखिर उन्होंने क्यों एकांत में 15 दिन के लिए रखा जाता है और उसके बाद ही रथयात्रा प्रारंभ होती है? आओ जानते हैं इस रहस्य को।
कथा के अनुसार प्रभु जगन्नाथ के कई भक्तों में से एक थे माधवदास। बचपन में ही उनके माता पिता शांत हो गए थे तो बड़े भाई के आग्रह पर उन्होंने विवाह कर लिया और अंत में भाई भी उन्हें छोड़कर संन्यासी बन गए तो उन्हें बहुत बुरा लगा। फिर एक दिन पत्नी का अचानक देहांत हो गया तो वे फिर से अकेले रह गए। पत्नी के ही कहने पर वे बाद में जगन्नाथ पुरी में जाकर प्रभु की भक्ति करने लगे।
माधवदास के संबंध में बहुत सारी कहानियां प्रचलित है उन्हीं में से एक कहानी है प्रभु जगन्नाथ के 15 दिन तक बीमार पड़ने की कहानी। प्रभु जगन्नाथ रथयात्रा के 15 दिन पहले बीमार पड़ जाते हैं और 15 दिन तक बीमार रहते हैं।
माधवदासजी जगन्नाथ पुरी में अकेले ही रहते थे। वे अकेले ही बैठे बैठे भजन किया करते थे और अपना सारा काम खुद ही करते थे। प्रभु जगन्नाथ ने उन्हें कई बार दर्शन दिए थे। वे नित्य प्रतिदिन श्री जगन्नाथ प्रभु का दर्शन करते थे और उन्हीं को अपना मित्र मानते थे। एक बार माधवदास जी को अतिसार (उलटी-दस्त) का रोग हो गया। वह इतने दुर्बल हो गए कि चलना-फिरना भी मुश्किल हो गया। फिर भी अपना सारा काम खुद किया करते थे।
उनके परिचितों ने कहा कि महाराज हम आपकी सेवा करें तो माधवदासजी ने कहा कि नहीं, मेरा ध्यान रखने वाले तो प्रभु श्रीजगन्नाथजी है। वे कर लेंगे मेरी देखभाल, वही मेरी रक्षा करेंगे।
फिर धीरे धीरे उनकी तबीयत और बिगड़ गई और वे उठने-बैठने में भी असमर्थ हो गए तब भगवान श्रीजगन्नाथ जी स्वयं सेवक बनकर इनके घर पहुंचे और माधवदासजी से कहा कि हम आपकी सेवा करें। उस वक्त माधवदासजी की बेसुध से ही थे। उनका इतना रोग बढ़ गया था की उन्हें पता भी नहीं चलता था कि कब मल-मूत्र त्याग देते थे और वस्त्र गंदे हो जाते थे।
भगवान जगन्नाथ ने उनकी 15 दिन तक खूब सेवा की। उनके गंदे कपड़ों को भी धोया और उन्हें नहलाया भी। जब माधवदास जी को होश आया, तब उन्होंने तुरंत पहचान लिया कि यह तो मेरे प्रभु ही हैं। यह देखकर माधवदासजी ने पूछा, प्रभु आप तो त्रिलोक के स्वामी हैं, आप मेरी सेवा कर रहे हैं। आप चाहते तो मेरा रोग क्षण में ही दूर कर सकते थे। परंतु आपने ऐसा न करके मेरी सेवा क्यों की?
प्रभु श्री जगन्नाथ जी ने कहा- देखो माधव! मुझसे भक्तों का कष्ट नहीं सहा जाता। इसी कारण तुम्हारी सेवा मैंने स्वयं की है। दूसरी बात यह कि जिसका जैसा प्रारब्द्ध होता है उसे तो वह भोगना ही पड़ता है। मैं नहीं चाहता था कि तुम्हें प्रारब्ध का भोगना न पड़े और फिर से जन्म लेना पड़े। अगर उसको भोगेगे-काटोगे नहीं तो इस जन्म में नहीं तो उसको भोगने के लिए फिर तुम्हें अगला जन्म लेना पड़ेगा। इसीलिए मैंने तुम्हारी सेवा की। परंतु तुम फिर भी कह रहे हो तो अभी तुम्हारे हिस्से के 15 दिन का प्रारब्ध का रोग और बचा है तो अब 15 दिन का रोग मैं ले लेता हूं और अब तुम मुक्त हो। इसके बाद प्रभु जगन्नाथ खुद 15 दिन के लिए बीमार पड़ गए।
इस घटना की स्मृति में तभी से रथयात्रा के पूर्व प्रभु जगन्नाथ बीमार पड़ जाते हैं। तब 15 दिन तक प्रभु जी को एक विशेष कक्ष में रखा जाता है। जिसे ओसर घर कहते हैं। इस 15 दिनों की अवधि में महाप्रभु को मंदिर के प्रमुख सेवकों और वैद्यों के अलावा कोई और नहीं देख सकता। इस दौरान मंदिर में महाप्रभु के प्रतिनिधि अलारनाथ जी की प्रतिमा स्थपित की जाती हैं तथा उनकी पूजा अर्चना की जाती है। 15 दिन बाद भगवान स्वस्थ होकर कक्ष से बाहर निकलते हैं और भक्तों को दर्शन देते हैं। जिसे नव यौवन नैत्र उत्सव भी कहते हैं। इसके बाद द्वितीया के दिन महाप्रभु श्री कृष्ण और बडे भाई बलराम जी तथा बहन सुभद्रा जी के साथ बाहर राजमार्ग पर आते हैं और रथ पर विराजमान होकर नगर भ्रमण पर निकलते हैं।

फादर्स डे पर विशेष : और एक पिता ने अपना लीवर देकर बचा लिया अपने कलेजे का टुकड़ा

अमेजन में डिलिवरी का काम करते हैं सौरभ, उपचार के लिए की गयी क्राउंड फंडिंग

सोशल मीडिया पर पोस्ट किया तो साथ आए लोग, गाृयक अरिजीत ने की आर्थिक सहायता

चेन्नई के अपोलो में कोलकाता के तनीश की सफल पीडियाट्रिक लीवर ट्रांसप्लांट सर्जरी

कोलकाता । पिता चट्टान होता है और साधनहीन होने पर भी समय आने पर अपनी संतान की रक्षा के लिए खुद ईश्वर के सामने खड़ा हो जाता है । कुछ घटनाएं ऐसी होती हैं जो आपको परेशान करती हैं और तब ईश्वर आपकी सहायता के लिए स्वयं आ जाता है और आप हर बाधा को पार कर जाते हैं।  यह घटना आपके चेहरे पर मुस्कान भी ला देगी और मानवता पर, ईश्वर पर आपका विश्वास बढ़ा देगी । यह घटना सोशल मीडिया की सकारात्मकता की शक्ति बताती है । घटना मुर्शिदाबाद के सौरभ की है जो अमेजन में डिलिवरी का काम करते हैं…वेतन मात्र 12 हजार और तब एक दिन उनको अपने मासूम बेटे की बीमारी का पता चलता है । इससे वह विचलित जरूर होते हैं मगर हिम्मत नहीं हारते । उनके दोस्त, परिजन और सोशल मीडिया के साथ आने वाले शुभचिंतक उनके लिए ईश्वर की तरह खड़े हो जाते हैं और वह अपना लीवर देकर अपने बच्चे को सौरभ बचा लेते हैं । अमेजन के लिए डिलिवरी का काम करने वाले सौरभ घोष की जिन्दगी में भी ऐसा ही तूफान आया जब उनको अपने नन्हें बेटे की बीमारी का पता चला । ऐसी स्थिति में सोशल मीडिया पर क्राउंड फंडिंग से उनको आर्थिक सहायता मिली जिसके लिए प्रख्यात गायक अरिजीत सिंह भी सामने आए । अन्ततः सबकी कोशिशें रंग लायीं, कोलकाता के तनीश का उपचार चेन्नई के अपोलो अस्पताल में हुआ । सौरभ ने अपना लीवर दिया । चिकित्सकों के अनुसार लीवर का एक छोटा अंश निकाला गया । पिता और बच्चा…दोनों स्वस्थ हैं । अपोलो हॉस्पिटल, चेन्नई ने गर्व के साथ अपोलो में कोलकाता के उस बच्चे में पीडियाट्रिक लिवर ट्रांसप्लांट के लिए सफल रोबोटिक डोनर हेपेटेक्टोमी की घोषणा की । प्रत्यारोपण में उनके पिता सौरभ घोष द्वारा दान किए गए लीवर का एक हिस्सा शामिल था, जिसके परिणामस्वरूप छोटे बच्चे के लिए जीवन रक्षक प्रक्रिया हुई। लिवर ट्रांसप्लांट प्रोग्राम के प्रमुख डॉ. एलानकुमारन के नेतृत्व में सर्जिकल टीम ने इसका प्रदर्शन किया । मास्टर तनिश घोष पर किया गया सफल प्रत्यारोपण अपोलो अस्पताल, चेन्नई में उपलब्ध उन्नत चिकित्सा क्षमताओं पर प्रकाश डालता है। डॉ. एलानकुमारन, ने 2000 से अधिक लीवर प्रत्यारोपण और 5000 से अधिक लीवर सर्जरी की है । उन्होंने लीवर की बीमारियों और अस्पताल की व्यापकता पर प्रकाश डाला। डॉ. एलानकुमारन ने हमारे देश में लिवर की बीमारियों के बढ़ते प्रसार पर प्रकाश डाला और अपोलो में उपलब्ध प्रगति के लिए आभार व्यक्त किया।” उन्होंने कहा “दाता हेपेटेक्टोमी में रोबोटिक तकनीक का उपयोग हमें परिशुद्धता बढ़ाने और आक्रमण को कम करने में सक्षम बनाता है, जिसके परिणामस्वरूप हमारे रोगियों के लिए बेहतर परिणाम और कम वसूली का समय होता है। यह ऐतिहासिक उपलब्धि लीवर प्रत्यारोपण के क्षेत्र में हमारे द्वारा की गई उल्लेखनीय प्रगति को दर्शाती है।” कोलकाता से ताल्लुक रखने वाले मास्टर तनिश घोष को लिवर की गंभीर स्थिति का पता चला था जिसमें तत्काल हस्तक्षेप की आवश्यकता थी। सौरभ घोष, जिन्होंने अपने लीवर का एक हिस्सा दान किया, जिस कारण तनिश को एक नया जीवन मिला| अपोलो अस्पताल, चेन्नई में टीम द्वारा उपयोग किए गए रोबोटिक सर्जिकल दृष्टिकोण ने न्यूनतम इनवेसिव प्रक्रिया की सुविधा प्रदान की, जिससे जोखिम कम हो गया जाता हैं । मास्टर तनिश घोष का सफल रोबोटिक पीडियाट्रिक ट्रांसप्लांट देश भर में लीवर की बीमारियों से पीड़ित रोगियों के लिए आशा की किरण के रूप में काम करता है। अस्पताल बना हुआ है देखभाल की उच्चतम गुणवत्ता प्रदान करने, नवीन तकनीकों को नियोजित करने और ज़रूरतमंद रोगियों के लिए सकारात्मक परिणाम सुनिश्चित करने के लिए प्रतिबद्ध है।

आईएनआईएफडी साल्टलेक प्लेटिनम सेंटर के रूप में सम्मानित

कोलकाता । आईएनआईएफडी साल्टलेक को प्लेटिनम सेंटर के रूप में सम्मानित किया गया है। साल दर साल 100 फीसदी जाॅब प्लेसमेंट, अत्याधुनिक बुनियादी ढांचे और औद्योगिक आवश्यकताओं के अनुकूल शिक्षा व्यवस्था हेतु यह सम्मान प्रदान किया गया । दुनियाभर में यहां के छात्रों को लंदन फैशन वीक,डेकोरेक्स इंटीरियर फेयर,न्यूयॉर्क फैशन वीक और लक्मे फैशन वीक में सीधे प्रवेश मिलता है। इसी कड़ी में आईएनआईएफडी साल्टलेक की ओर से 15 से 17 जून 2023 तक लगातार तीन दिनों तक कैंपस में ‘द एनुअल इंटीरियर डिजाइन एक्जीबिशन’इन्फ्यूसियो’23 का आयोजन किया गया। इस वर्ष आईएनआईएफडी ने ‘डायमेंशंन्स’की थीम के साथ प्रदर्शनी तैयार की है। जैसा कि हम सभी जानते हैं कि डायमेंशंन्स के बिना डिजाइन असंभव है,ऐसे में हमारे छात्रों ने अपने सभी प्रदर्शनों में तीनों के साथ-साथ चौथे आयाम का भी उपयोग किया। इस असर पर कुछ प्रसिद्ध ब्रांडों को यहां जर्नी थ्रू टाइम के अनुभव केंद्रों के रूप में दिखाया गया है। प्रदर्शनी का उद्घाटन महानगर कोलकाता में चीनी महावाणिज्यदूत, प्रख्यात डांसर आलोकानंद रॉय समेत अन्य गणमान्य लोगों द्वारा किया गया। प्रख्यात आर्किटेक्ट्स और डिजाइनर जैसे एआर.अयान सेन,आर.राजदीप सिन्हा, राजा सिन्हा, अजीत जैन और दुलाल पॉल ने आईएनआईएफडी साल्टलेक की शोभा बढ़ाई ताकि छात्रों के कार्यों का आकलन किया जा सके और उन्हें उनके मूल्यवान विचारों से अवगत कराया जा सके। इस अवसर पर डॉ. दीपांकर बनर्जी और डेकोफुर के आनंद गुप्ता समेत कई अन्य लोग उपस्थित रहे। आईएनआईएफडी के अनुसार डिजाइन के इस उत्सव के पीछे रेखांकित उद्देश्य तकनीकी सटीकता के साथ-साथ हमारे छात्रों में सौंदर्य बोध पैदा करना है। हमारे विशाल परिसर में पूरे प्रदर्शनी स्थल को हमारे वरिष्ठ छात्रों द्वारा डिजाइन और सजाया गया है,जिसमें गेट,कॉरिडोर,विभिन्न उपयोगिता क्षेत्र मंच आदि शामिल हैं। इन तीन दिनों में प्रदर्शनी को और अधिक रोचक बनाने के लिए, टॉक शो,सांस्कृतिक गतिविधियां,वाद-विवाद आदि आयोजित किया गया। भव्य प्रदर्शनी पुरस्कार समारोह के साथ समाप्त हुई। इसमें हर वर्ग के विद्यार्थियों ने उत्साह और उत्सुकता से भाग लिया।

रिटायर होने के बाद बना डाली 30,000 करोड़ की कंपनी

अमूमन लोग रिटायर होने के बाद अपनी बाकी जिंदगी आराम के साथ बिताना चाहते हैं। लेकिन वेंकटसामी जगन्नाथन जब यूनाइटेड इंडिया इंश्योरेंस के सीएमडी पद से रिटायर हुए तो उनका कुछ और ही प्लान था। सरकारी इंश्योरेंस कंपनी से रिटायर होने के बाद उन्होंने मई 2006 में देश की पहले स्टैंडअलोन हेल्थ इंश्योरेंस कंपनी स्टार हेल्थ ऐंड अलायड इंश्योरेंस कंपनी की शुरुआत की। तब उनके 12 कर्मचारी चेन्नई में माधा चर्च रोड पर एक छोटे से कमरे में बैठकर काम करते थे। जगन्नाथन ने गत शनिवार को स्टार हेल्थ के नॉन-एग्जीक्यूटिव चेयरमैन एवं डायरेक्टर के पद से इस्तीफा दे दिया। आज इस कंपनी का मार्केट कैप करीब 30,100 करोड़ रुपये है। कंपनी के कर्मचारियों की संख्या करीब 14,000 पहुंच गई है। 78 साल की उम्र में जगन्नाथन एक नया वेंचर शुरू करने की तैयारी में हैं।

जगन्नाथन कहते हैं कि उन्होंने 12 लोगों के साथ किराये के एक मकान में स्टार हेल्थ की शुरुआत की थी। तब उस मकान का किराया 30,000 रुपये था। आज स्टार हेल्थ की वैल्यू 30,000 करोड़ रुपये से अधिक है। इसमें दिवंगत इन्वेस्टर राकेश झुनझुनवाला और उनकी पत्नी रेखा झुनझुनवाला का भी भारी निवेश है। जगन्नाथन ने कहा, ‘मैंने 53 साल पहले इंश्योरेंस की दुनिया में कदम रखा था और पिछले साल रेकॉर्ड प्रॉफिट दिया। स्टार हेल्त का प्रॉफिट 2022-23 में सबसे ज्यादा रहा। इस दौरान कंपनी का प्रॉफिट 619 करोड़ रुपये रहा जबकि फाइनेंशियल ईयर 2022 में कंपनी को 1041 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ था।’

53 साल का कॅरियर
जगन्नाथन ने अपना करियर 1970 को हरक्यूलस इंश्योरेंस के साथ शुरू किया था। राष्ट्रीयकरण के दौरान वह यूनाइटेड के साथ प्रशासनिक अधिकारी के तौर पर जुड़ गए और बाद में कंपनी के सीएमडी के पद तक पहुंचे। यूनाइटेड इंडिया इंश्योरेंस को भी बुलंदियों पर पहुंचाने का श्रेय उनको जाता है। जब साल 2001 में उन्हें कंपनी की कमान मिली थी, तब कंपनी करीब 50 लाख रुपये के नुकसान में थी। अक्टूबर 2004 में जब जगन्नाथन रिटायर हुए तो यह 400 करोड़ रुपये से ज्यादा के मुनाफे में थी। सरकारी कंपनी से रिटायरमेंट के बाद उन्होंने दुबई की कंपनी ईटीए ग्रुप के साथ स्टार हेल्थ की शुरुआत की।
वह कहते हैं, ‘इस कंपनी ने मैंने ए-टु-जेड सब कुछ शुरू किया। हमने हेल्थ सेगमेंट में प्रवेश किया, क्योंकि मध्यम आय वर्ग को वित्तीय सहायता की जरूरत है।’ उन्होंने पैसे बचाने के लिए टाइपराइटर खरीदने के बजाय उन्हें किराये पर लिया। शुरुआत में लोगों को उनके बिजनस के सफल होने पर संदेह था। लेकिन आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु के हेल्थ प्रोग्राम्स ने इस धारणा को बदल दिया। इसके बाद लोगों ने स्टार हेल्थ में दिलचस्पी दिखानी शुरू कर दी। आज पूरे देश में कंपनी के नेटवर्क में करीब 13,000 अस्पताल शामिल हैं। कंपनी की 2021-22 की रिपोर्ट के मुताबिक उसकी 26 राज्यों और चार केंद्र शासित प्रदेशों में मौजूदगी है। कंपनी का 29 फीसदी रेवेन्यू साउथ इंडिया से, 23 परसेंट पश्चिमी राज्यों से 30 परसेंट नॉर्थ इंडिया से और आठ परसेंट पूर्वी भारत से आता है।
उम्र बाधा नहीं
जगन्नाथन कहते हैं कि उम्र कभी भी काम के आड़े नहीं आनी चाहिए। अगर आप संकल्प के साथ काम करें तो सफलता आपके कदम चूमेगी। यह सबके लिए मेरा मैसेज है। मैंने हर कदम पर अपना बेस्ट देने की कोशिश की। उन्होंने कहा, ‘मुझे ईटीए ग्रुप का पूरा साथ मिला। उन्होंने कंपनी में कैपिटल डाली। कोरोना के दौरान कंपनी की स्थिति ठीक नहीं रही। मैं उस दौरान कंपनी नहीं छोड़ना चाहता था। अब कंपनी की फाइनेंशियल पोजीशन स्ट्रॉन्ग हो गई है। हर शुरुआत का अंत होता है और हर अंत की शुरुआत होती है। मैं अगले दो महीने में कुछ नया करना चाहता हूं। यह किसी भी इंडस्ट्री में हो सकता है। यह मेरे दिल के काफी करीब है।’

सकारात्मक रहें, खुद को कमतर न समझें

खुद को कमतर आंकना आत्मविश्वास कम करता है और हम लक्ष्य से पीछे रह जाते हैं । वहीं सकारात्मक विचार एवं सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाकर आप अपनी क्षमताओं को बढ़ा सकते हैं । आत्मविश्वास को बढ़ाने के लिए आत्म विश्वास का होना जरूरी है.और वह आप इस प्रकार बढ़ा सकते हैं –

नकारात्मक बातें न करें
खुद को लेकर नकारात्मक सोच से हम अपने आप को कम आंकते हैं । इससे निजी विकास बाधित होता है। जितना हो सके अपने अंदर की चीजों को सकारात्मक चीजों में बदलें. ऐसी बातों पर ध्यान दें, जिससे आपका आत्मविश्वास बढ़ता हो ।
असफलता से निराश न हों
हम असफल होने से डरते हैं और यही वजह है कि हम खुद को कम आंकते हैं। असफलता पर सोचने की बजाय आप उससे सीखने की क्षमता रखें। अपनी गलतियों को स्वीकार करें । आपसे क्या गलतियां हुई हैं और उसे कैसे ठीक करना है, इन बातों का विश्लेषण करते रहें.
सकारात्मक लोगों के साथ रहें
हमेशा सकारात्मक लोगों के साथ रहें । ऐसे लोगों को अपना दोस्त बनाएं, जो आपको आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करते हों। उन लोगों के आसपास रहें, जिनसे आप कुछ सीख पाते हैं और जो हमेशा आपको प्रोत्साहित करते हैं।

छोटी सफलताओं को सेलिब्रेट करें
अपनी उपलब्धियों को स्वीकार करें और उनको सेलिब्रेट करें चाहे वे कितनी भी छोटी क्यों न लगें । अपनी उपलब्धियों को पहचानने से आत्मविश्वास बढ़ता है और सकारात्मक रहने में मदद मिलती है। इससे आपको अपनी क्षमताओं के बारे में पता चलता है।
कंफर्ट जोन से बाहर निकलें
अपने आप को हमेशा चुनौती देती रहें। कंफर्ट जोन में रहकर आपका विकास संभव नहीं है । आगे बढ़ने के लिए आपको अपने कंफर्ट जोन से बाहर निकलना जरूरी होगा।