विज्ञान के सिद्धांतों की उत्पत्ति वेदों से हुई है. ये कहना है भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन के चीफ एस सोमनाथ का । उनकी मानें तो अलजेब्रा से लेकर एविएशन तक, सबकुछ पहले वेदों में ही पाया गया था । बाद में अरब देशों के जरिए ये सारा ज्ञान यूरोप तक पहुंचा जिसे बाद में वहां के वैज्ञानिकों की खोजों के रूप में पेश किया गया ।
एस सोमनाथ के मुताबिक अलजेब्रा, स्क्वार रूट्स समय का परा कॉन्सेप्टस आर्किटेक्चर, ब्रह्मांड का ढांचा, जैसी कई चीजें सबसे पहले वेदों में पाई गई थीं । सोमनाथ ने ये बात उज्जैन में महर्षि पाणिनि संस्कृत और वैदिक यूनिवर्सिटी के दीक्षांत समारोह को संबोधित करते हुए कही ।
‘संस्कृत का इस्तेमाल करते थे वैज्ञानिक’
उनके मुताबिक एक समस्या ये भी थी कि भारतीय वैज्ञानिक संस्कृत भाषा का इस्तेमाल करते थे इसकी कोई लिखित लिपि नहीं थी । इसे सुना गया और याद कर लिया गया, बाद में लोगों ने संस्कृत के लिए देवनागरी लिपि का इस्तेमाल करना शुरू किया ।
‘कंप्यूटर की भाषा को सूट करती है संस्कृत’
उन्होंने संस्कृत के महत्व पर बात करते हुए बताया कि इंजीनियरों और वैज्ञानिकों को संस्कृत बहुत पसंद है । यह कंप्यूटर की भाषा को सूट करती है और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस सीखने वाले इसे सीखते हैं. गणना के लिए संस्कृत का इस्तेमाल कैसे किया जा सकता है, इस पर भी रिसर्च किया जा रहा है ।
अंतरिक्ष विभाग के सचिव और अंतरिक्ष आयोग के अध्यक्ष सोमनाथ ने संस्कृत के कुच अन्य लाभ भी बताए । उनके मुताबिक ये लाभ विज्ञान से भी परे हैं. उन्होंने बताया कि भारतीय साहित्य जो संस्कृत में लिखा गया । वो मूल और दार्शनिक रूप से काफी ज्यादा समृद्ध है । संस्कृत में वैज्ञानिकों ने कितना योगदान दिया इसकी अंदाजा भारतीय संस्कृति की हजारों सालों की यात्रा से लगाया जा सकता है । संस्कृत में वैज्ञानिकों के योगदान की छाप हजारों वर्षों की भारतीय संस्कृति की यात्रा में देखी जा सकती है ।
अलजेब्रा से लेकर ब्रह्मांड तक, वेदों से आए वैज्ञानिक सिद्धांत, यूरोप ने की नकल – इसरो प्रमुख
नकदी से बरकरार भारतीयों का लगाव, नोटबंदी के बाद एटीएम से निकाले 2.84 लाख करोड़
कोलकाता । नोटबंदी के 76 महीने बाद भी नकद का बोलबाला है। मार्च 2023 के अंत में एटीएम से नकदी निकासी 235 फीसदी बढ़ कर 2.84 लाख करोड़ रुपये हो गयी । इस बात का खुलासा बैंकिंग लॉजिस्टिक्स और टेक्नोलॉजी सर्विस प्रोवाइडर सीएमएस इन्फोसिस्टम्स की तरफ से जारी किए गए आंकड़ों में हुआ है।
एटीएम में डाला जा रहा ज्यादा नकद
ईटी की रिपोर्ट में सीएमएस इन्फो सिस्टम में कैश मैनेजमेंट सर्विसेज के प्रेसिडेंट अनुष राघवन के हवाले से बताया गया है कि वित्त वर्ष 2022-23 में एटीएम में मंथली कैश रीफिलिंग (फिर से कैश डालना) में 10.1 फीसदी की वृद्धि देखी गई है। वहीं ई-कॉमर्स कंपनियों से एवरेज कैश कलेक्शन में 1.3 गुना की मजबूत वृद्धि देखी गई है।
इन राज्यों में सबसे अधिक कैश इस्तेमाल
सीएमएस इंफोसिस्टम्स ने देश भर के एटीएम में जितना पैसा डाला है, उसमें से 43.1 फीसदी कैश केवल महाराष्ट्र, गुजरात, तमिलनाडु, कर्नाटक और उत्तर प्रदेश के एटीएम में डाला गया। सीएमएस इंफोसिस्टम्स के अनुसार इत्तेफाक ये है कि महाराष्ट्र, गुजरात, तमिलनाडु, कर्नाटक और उत्तर प्रदेश ही वो 5 राज्य हैं जिनकी सकल राज्य घरेलू उत्पाद (जीएसडीपी) वित्तीय वर्ष 2021-22 में सबसे अधिक रही थी।
प्रति एटीएम इन राज्यों में सबसे अधिक कैश डाला गया
वित्त वर्ष 2022-23 में जिन राज्य में प्रति एटीएम सबसे अधिक कैश डाला गया, उनमें पहले नंबर पर है कर्नाटक। राज्य के हर एटीएम में सालाना 1.73 करोड़ रु एवरेज कैश डाला गया, जो वित्त वर्ष 2021-22 के दौरान प्रति एटीएम 1.46 करोड़ रु की तुलना में 18.1 फीसदी अधिक रहा।
इस मामले में दूसरे नंबर पर रहा छत्तीसगढ़। छत्तीसगढ़ में वित्त वर्ष 2022-23 में प्रति एटीएम 1.58 करोड़ रु की राशि डाली गई, जो वित्त वर्ष 2021-22 में 1.62 करोड़ रु से 2.1 फीसदी की कम है।
(स्त्रोत – टाइम्स नाऊ)
संरक्षित की जाएगी पुरानी संसद की 96 साल पुरानी ऐतिहासिक इमारत
नयी दिल्ली । साल 2021 मार्च में, केंद्रीय मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने राजयसभा के अपने संबोधन में बताया था कि नए संसद भवन के निर्माण के बाद इस भवन की मरम्मत की जाएगी ।
इसे फिर से तैयार किया जाएगा । इंडिया टुडे ने अपने रिपोर्ट में बताया कि सरकार इसके पुरातात्विक महत्त्व को देखते हुए इसे संरक्षित रखने का विचार कर रही है। इस भवन को ढहाया नहीं जाएगा बल्कि इसे संरक्षित किया जाएगा. और इसका इस्तेमाल संसद से जुड़े कार्यक्रमों के आयोजन के लिए इस इमारत का इस्तेमाल किया जाएगा ।
सरकार के मुताबिक, पुरानी संसद को गिराया नहीं जाएगा, बल्कि उसे संरक्षित किया जाएगा । 2022 के रिपोर्ट में बताया गया था कि ने संसद भवन के निर्माण के बाद अभी इस्तेमाल हो रहे संसद भवन को संग्रहालय के रूप में तब्दील किया जाएगा । वहीं, विज़िटर्स को लोकसभा के चेम्बर में बैठने की अनुमति दी जाएगी ।
केंद्रीय मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने बताया कि नए संसद भवन के लिए आवंटित बजट लगभग 862 करोड़ रुपये था और परियोजना के लिए डिजाइन सलाहकार बिमल पटेल के नेतृत्व वाली गुजरात स्थित आर्किटेक्चर फर्म एचसीपी डिजाइन है । वहीं, नई संसद भवन की जरूरत पर बात करते हुए केंद्रीय मंत्री ने बताया कि इस भवन का निर्माण काउंसिल हाउस के तौर पर निर्माण किया गया था, इसे कभी भी पूर्ण संसद के रूप नहीं डिज़ाइन किया गया था ।
यूपीएससी : 3 साल पहले हुई थी पिता की हत्या, हत्यारों को सजा दिलाने के जुनून ने बनाया आईएएस
लखनऊ । यूपीएससी का परिणाम आने के बाद तमाम कामयाबी हासिल करने वाले छात्रों को बधाई दी जा रही हैं, उनके इस मुकाम हासिल करने के पीछे की कहानी को सुनकर लोग प्रभावित हो रहे हैं।
इसी बीच बस्ती जिले में रहने वाले बजरंग यादव के IAS बनने की कहानी किसी फिल्म से कम नहीं है। दरअसल, बजरंग यादव अपने पिता के हत्यारों को सजा दिलाने के जुनून ने आज वह आईएएस बना गए हैं। आपको बता दें कि बीते 23 मई को UPSC परीक्षा 2022 में बहादुरपुर विकास क्षेत्र के धोबहट गांव के रहने वाले बजरंग ने 454वां स्थान हासिल कर देश के साथ-साथ अपने गांव और समाज का नाम रोशन किया है। बजरंग की मां कुसुमकला धोबहट ग्राम पंचायत की ग्राम प्रधान हैं।
बजरंग प्रसाद यादव 4 भाई हैं, जिसमें अम्बिका यादव घर का काम देखते हैं। अरविंद यादव इंटरमीडिएट की परीक्षा पास किए हैं और विकास अभी 8वीं की परीक्षा पास किए हैं। बहन अभी दो माह पूर्व देश की सेवा के लिए आर्मी में मैटेरियल असिस्टेंट के पद पर भर्ती हुई है। बजरंग की इस सफलता पर घर में दादी रेशमा देवी, चाचा दिनेश यादव, चाचा उमेश यादव, चाची सुमनदेवी, मंजू देवी ने खुशी जताई।
2020 में ही हुई थी बजरंग के पिता की हत्या मिली जानकारी के अनुसार, बजरंग यादव के पिता राजेश यादव किसान थे, गांव में ही वह खेती बाड़ी किया करते थे। इसके साथ ही वह गांव केगरीब और असहाय लोगों की मदद भी किया करते थे। इनके पिता का जुनून इस कदर था कि किसी भी गरीब का यदि कोई जमीन कब्जा कर लेता था तो उन दबंगों से बजरंग यादव के पिता अकेले ही भिड़ जाते थे और उन्हें उनकी जमीन वापस दिला कर ही रहते थे। बजरंग के पिता का यह कार्य गांव के दबंगों को रास नहीं आया और 2020 में दबंगों ने साजिश करके इनके पिता की हत्या कर दी थी, जिसके बाद बजरंग का घर तबाह हो गया।
घर में पिता के साथ घटना होने के बाद बजरंग ने पिता के हत्यारों को सजा दिलाने और गरीबों को न्याय दिलाने के लिए आईएएस अधिकारी बनने की ठान ली और जुनून सिर पर इस कदर सवार हुआ कि उन्होंने पीछे मुड़कर कभी नहीं देखा। यूपीएससी की तैयारी दिल्ली में कर रहे थे आपको बता दें कि बजरंग प्रसाद यादव की शुरुआती पढ़ाई उनके गांव में हुई थी। दसवीं की परीक्षा लिटिल फ्लावर स्कूल कलवारी और इंटरमीडिएट की परीक्षा उर्मिला एजुकेशनल एकेडमी बस्ती से हुई। अपने अरमानों को लेकर वह साल 2019 में बीएससी मैथ से इलाहाबाद यूनिवर्सिटी गए जहां उन्होंने पढ़ाई पूरी की और यूपीएससी की तैयारी दिल्ली दिल्ली से करने लगे। बजरंग प्रसाद यादव के इस सफलता के बाद लोगों में खुशी का माहौल है।
ऋण नहीं चुका पाने पर गाड़ी जब्त नहीं कर सकते बैंक एवं रिकवरी एजेंट – पटना हाईकोर्ट
पटना । पटना शीर्ष अदालत ने ऋण पर गाड़ी लेने वाले लोगों के हित में एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। दरअसल, कोर्ट ने कहा है कि अगर कोई व्यक्ति गाड़ी खरीदने के लिए फाइनेंस कंपनी ने ऋण लेता है और ऋण की किश्त को समय पर नहीं चुका पाता है तो फाइनेंस कंपनी के वसूली एजेंट द्वारा गाड़ी जब्त करना गैरकानूनी माना जाएगा।
हाई कोर्ट ने आगे कहा कि बहुत से ऐसे मामले देखे गए हैं जहां गाड़ी की किश्त समय पर भुगतान न करने पड़ने फाइनेंस कंपनी जबरदस्ती उस व्यक्ति से उसकी गाड़ी को जब्त कर लेते है जो की गैरकानूनी है और इसको ध्यान में रखते हुए कोर्ट ने फाइनेंस कंपनी और बैंक पर जुर्माना लगाया है। हाई कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि, अगर कोई फाइनेंस कंपनी या कोई बैंक के रिकवरी एजेंट लोन ईएमआई चुकाने की स्थिति में जबरदस्ती किसी व्यक्ति से गाड़ी जब्त करता है तो उसके खिलाफ शिकायत दर्ज की जाएगी और कार्रवाई भी होगी।
वसूली एजेंट के खिलाफ होगा एफआईआर दर्ज-
पटना हाई कोर्ट में जस्टिस राजीव रंजन की सिंगल बेंच ने इस मामले से संबंधित कई याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए फैसला सुनाया है। जस्टिस राजीव रंजन की सिंगल बेंच ने फैसला सुनाते हुए कहा कि कोई भी फाइनेंस कंपनी या कोई भी बैंक के द्वारा लोन की भुगतान समय पर न कर पाने की स्थिति में उनके वसूली एजेंट अब उनकी गाड़ी जब्त नहीं कर सकते हैं, अगर वह ऐसा करते है तो इसे गैरकानूनी माना जाएगा और उसके खिलाफ एफआईआर भी दर्ज किया जाएगा, जिसके बाद जिला के पुलिस अधीक्षक से दबंग रिकवरी एजेंट के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने का सुनिश्चित करेंगे।
19 मई को पटना हाईकोर्ट ने सुनाया था फैसला
पटना हाई कोर्ट का यह फैसला 19 मई को सुनाया गया था जिसमें कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए कहा था कि रिकवरी एजेंटों के द्वारा अगर गाड़ी जबरन जब्त करना संविधान की जीवन और आजीविका के मौलिक अधिकार का उल्लंघन करना है।
64 प्रतिशत भारतीयों के पास 2000 के नोट नहीं, ‘नोटबंदी’ के फैसले से खुश : सर्वे
गत 19 मई को भारतीय रिज़र्व बैंक ने 2 हजार के नोटों को वापस लेने की योजना की घोषणा की थी। आरबीआई की घोषणा के बाद से तेल, सोने और चांदी के आभूषणों की खरीदारी में वृद्धि की खबरें आई हैं।
हालाँकि इस बार लोगों में डर या घबराहट की स्थिति नहीं दिख रही है। लोकल सर्कल की ओर से किए गए सर्वे में यह बात सामने आई है कि देश में 3 में से दो लोग 2 हजार के नोट वापस लेने के फैसले का समर्थन करते हैं। लोकल सर्कल की ओर से पता लगाने के लिए एक सर्वेक्षण किया है कि नागरिक इस नए आर्थिक विकास को कैसे देखते हैं और क्या छोटे और मध्यम आकार के व्यवसायों को 2000 रुपये के नोट को वापस लेने के कारण कोई दिक्कत है। देशभर के 341 जिलों 57,000 से अधिक लोगों ने इस सर्वे में हिस्सा लिया। सर्वे के अनुसार 64 फीसदी लोग आरबीआई के कदम का समर्थन कर रहे हैं। 22 फीसदी लोग ही 2 हजार रुपए के नोट वापस लेने का विरोध कर रहे हैं। 12 फीसदी ने कहा कि इससे कोई फर्क नहीं पड़ता जबकि 2 प्रतिशत लोगों ने कोई जवाब नहीं दिया।
64 फीसदी लोगों के पास 2 हजार के नोट नहीं
सर्वेक्षण में शामिल 64 फीसदी लोगों ने कहा कि उनके पास 2000 रुपये के नोट नहीं हैं। 6 फीसदी लोगों ने कहा कि उनके पास 2000 रुपए के नोट 1 लाख रुपए या उससे अधिक के हैं। आंकड़ों से पता चलता है कि 15 प्रतिशत लोगों के पास 20,000 रुपये तक हैं, जबकि 7 फीसदी लोगों के पास 20-40 हजार रुपए तक 2 हजार के नोट हैं। 2 फीसदी लोग 2 हजार के नोटों के बारे में जानकारी देना नहीं चाहते।
30 सितंबर के बाद भी लीगल टेंडर रहने से कालेधन वालों को फायदा
सर्वे में शामिल 68 फीसदी लोग मानते हैं कि 30 सितंबर के बाद 2000 रुपये के नोट का लीगल टेंडर बने के आरबीआई के प्रस्तावित फैसले से काले धन वालों को फायदा मिलेगा। सिर्फ 14 फीसदी लोग ही मानते हैं वे इसके इस्तेमाल नहीं कर पाएंगे। कुल मिलाकर, अधिकांश लोगों का मानना है कि आरबीआई का फैसला कालेधन वालों को फायदा पहुंचाएगा।
सर्वे के आंकड़े:
2 हजार के नोट वापसी पर राय
समर्थन 64%
विरोध 22%
कोई फर्क नहीं 12%
नहीं कह सकते 2%
2 हजार के कितने नोट हैं लोगों के पास?
एक भी नहीं 64%
20 हजार रुपए तक 15%
20-40 हजार रुपए तक 7%
40 हजार से 1 लाख तक 6%
1 लाख से 2 लाख तक 2%
2 लाख से 10 लाख तक 2%
10 लाख से अधिक 2%
नहीं बताना 2%
आरबीआई की घोषणा के बाद 2000 के नोट खर्च में कहां दिक्कतें हुईं?
पेट्रोल पंप 6%
ज्वेलर्स 4%
दवा दुकान 13%
खुदरा दुकान 15%
अस्पताल 9%
सेवा प्रदाता 9%
ऑनलाइन सीओडी 4%
अन्य 13%
(स्त्रोत – हिन्दुस्तान)
नयी संसद में स्थापित होगा राजदंड सेंगोल
नयी दिल्ली । 28 मई 2023 को देश के नये संसद भवन का उद्घाटन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी करने वाले हैं। इस संसद भवन के तैयार होने के साथ ही अब एक शब्द तेजी से सुर्खियों में आ गया है। अब से लोकसभा अध्यक्ष के आसन के पास सेंगोल होगा। यह सेंगोल शब्द तेजी से सुर्खियों में आया है। आज से पहले शायद किसी को नहीं पता था कि यह सेंगोल क्या है और अचानक यह क्यों कई सालों बाद खबरों में आता है। आपको बता दें कि सेंगोल का मतलब है राजदंड। अक्सर आपने देखा होगा कि पुराने जमाने में भारतीय राजाओं के पास राजदंड होता था जिसका आदेश सभी को मानना होता था।
इलाहाबाद संग्रहालय में मिला सेंगोल
सेंगोल के बारे में प्रधानमंत्री कार्यलय को एक खत के द्वारा पता चला। दरअसल 2 साल पहले एक खत में सेंगोल के बारे में बताया गया था। यह खत चर्चित डांसर पद्मा सुब्रमण्यम ने लिका था। द हिंदू में प्रकाशित एक लेख के मुताबिक पद्मान सुब्रमण्यम ने पीएमओं को लिखी अपनी चिट्ठी में तमिल मैगजीन ‘तुगलक’ एक आर्टिकल का हवाला दिया था। जिसमें भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू को सेंगोल सौंपने की बात कगी गई थी।
सेंगोल तक पहुंची मंत्रालय की टीम
पीएमओ को जब भारत की इस धरोहर के बारे में पता चला तो इसकी खोज में संस्कृति मंत्रालय जुट गया। संस्कृति मंत्रालय ने इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र की मदद ली। कला केंद्र के एक्सपर्ट्स ने अर्काइव्स को छान मारा तो उन्हें पता चला कि यह सेंगोल इलाहाबाद के म्यूजियम में रखा हुआ है। सेंगोल के अस्तित्व को कंफर्म करने के लिए मंत्रालय की टीम वुम्मिडी बंगारू चेट्ठी परिवार से भी मिली जिन्होंने कंफर्म किया कि सेंगोल तैयार किया गया था।
15000 रुपये में बना था सेंगोल
इस जांच में संस्कृति मंत्रालय को यह भी पता चला कि साल 1947 में भारत के अंतिम वायसराय लॉर्ड माउंटबेटन द्वारा नेहरू को सेंगोल सौंपा गया था। इस सेंगोल को मद्रास के प्रसिद्ध ज्वैलर्स वुम्मिडी बंगारू चेट्टी एंड सन्स द्वारा तैयार किया गया था। बता दें कि साल 1947 में इसे तैयार करने में कुल 15 हजार रुपये खर्च करने पड़े थे।
भारत में कभी चलन में थे 5,000 और 10,000 रुपये के नोट
नयी दिल्ली । कई लोगों के जहन में सवाल उठ रहा होगा कि क्या 2,000 रुपये का नोट भारत के केंद्रीय बैंक द्वारा मुद्रित उच्चतम मूल्य की करंसी है? इसका जवाब है ‘नहीं’. आपको जानकर हैरानी होगी कि भारत में पहले 5,000 और 10,000 रुपये के नोट भी हुआ करते थे । हां, 10,000 रुपये आरबीआई द्वारा मुद्रित अब तक की सबसे अधिक मूल्य वाली करंसी थी ।
आरबीआई ने पहली बार 1938 में 10,000 रुपये का नोट छापा था । जनवरी 1946 में इसे विमुद्रीकृत कर दिया गया था लेकिन 1954 में इसे फिर से शुरू किया गया था । अंततः 1978 में इसे फिर से विमुद्रीकृत कर दिया गया ।
जब रघुराम राजन ने दिया था 10,000 रुपये के नोट का आइडिया
पूर्व गवर्नर रघुराम राजन के तहत आरबीआई ने 5,000 रुपये और 10,000 रुपये के नोटों को फिर से पेश करने का सुझाव दिया था । आरबीआई द्वारा लोक लेखा समिति को प्रदान की गयी जानकारी के अनुसार, केंद्रीय बैंक ने अक्टूबर 2014 में सिफारिश की थी ।
इस विचार के पीछे कारण यह बताया गया था कि 1,000 रुपये के नोट का मूल्य मुद्रास्फीति से कम हो रहा था । मई 2016 में, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के तहत सरकार ने आरबीआई को 2,000 रुपये के नोटों की एक नई श्रृंखला पेश करने के अपने “सैद्धांतिक रूप से” निर्णय के बारे में सूचित किया। प्रिंटिंग प्रेसों को अंततः जून 2016 में निर्देश दिए गए।
भारत के तत्कालीन वित्त मंत्री स्वर्गीय अरुण जेटली ने बाद में कहा था कि सरकार ने 5,000 रुपये और 10,000 रुपये के नोटों की सिफारिश को स्वीकार नहीं किया क्योंकि वह तुरंत प्रतिस्थापन मुद्रा उपलब्ध कराना चाहती थी और इसलिए 2,000 रुपये के नोटों को चलन में लाया गया ।
बाद के चरण में रघुराम राजन ने बताया कि जालसाजी के डर से बड़े मूल्यवर्ग के करेंसी नोटों को रखना मुश्किल था । शायद इसी वजह से सरकार ने आरबीआई के विचार को खारिज कर दिया था । बता दें कि देश आमतौर पर अति-उच्च मुद्रास्फीति के कारण उच्च-मूल्य वाले नोटों को प्रिंट करते हैं । ऐसी स्थिति में मुद्रा का मूल्य इतना कम हो जाता है कि छोटी खरीदारी के लिए भी बड़ी संख्या में करेंसी नोटों की आवश्यकता होती है ।
(स्त्रोत – जी न्यूज)
शुभजिता स्वदेशी : कभी मंदिर के बाहर स्टॉल लगाते थे, सेंगोल ने चमका दी थी बंगारू ब्रदर्स की किस्मत
देश के नए संसद भवन में सेंगेाल की स्थापना की जाएगी । इसे शासन की शक्ति का केंद्र माना जाता रहा है । संसद में उद्घाटन समारोह में यह सेंगोल स्पीकर की सीट के पास नजर आएगा । यह वही सेंगोल है जिसका निर्माण चेन्नई की ज्वैलरी कंपनी वुमुदी बंगारू ने किया था, जिसे लॉर्ड माउंबेटन ने 15 अगस्त 1947 को भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू को सौंपा था । सेंगोल का निर्माण किया था इस कंपनी के संस्थापक वुमुदी बंगार चेट्टी के दोनों बेटों वुम्मिदी एथिराजुलु और वुम्मिदी सुधाकर ने, जिसने कंपनी की किस्मत ही बदल दी थी. इसे तैयार करने में 15 हजार रुपये का खर्च आया था.
120 साल पुरानी इस कंपनी की नींव वुमुदी बंगार चेट्टी ने रखी थी। बात 1900 की है । वैल्लौर जैसे छोटे से शहर में जन्मे बंगारू ने गहने बेचने की शुरुआत मंदिरों के बाहर स्टॉल्स से की थी । उस समय बंगारू के घर के पास दो मंदिर हुआ करते थे. पल्लिकोंडा पेरूमल और अम्मन। मंदिर के इर्द-गिर्द ऐसी बहुत दुकाने लगती थीं, जहां नाक-कान छेदे जाते थे । बंगारू यहीं ज्वैलरी के स्टॉल लगाते थे । महीने में 10 दिन यहां मेले का माहौल रहता था. बाकी 20 दिन वो गहने बनाने में व्यस्त रहते थे ।
यह वो समय था जब उनके पास कोई दुकान नहीं थी। वो एक बॉक्स में सामान रखकर मंदिर के आसपास बेचते थे. लेकिन गहनों के कारोबार की बहुत जानकारी नहीं थी, इसलिए उन्होंने मद्रास यानी चेन्नई आने का फैसला लिया । 1900 में उन्होंने जॉर्ज टाउन में पहली बार दुकान खोली । यह दुकान चल निकली । अगले 7 से 8 सालों में उन्होंने अपने नाम से ज्वैलरी बनाना शुरू किया और बेचने लगे । बंगारू यहीं नहीं रुके व्यापार बढ़ाने के लिए वो योजनाएं बनाने लगे ।
मद्रास ने बदल दी तकदीर
मद्रास में उन्होंने नाम कमाया । घर पर ही शोरूम और मैन्युफैक्चरिंग यूनिट तैयार की । 1940 में उन्होंने एनएससी रोड पर दुकान खोली और 1950 में पहला आधिकारिक ज्वैलरी स्टोर पणगल पार्क में खोला । उन्होंने ज्वैलरी शोरूम के लिए जो जगह तय की थी वो रेलवे स्टेशन और बस स्टैंड के करीब थी, यही वजह थी कि लोगों के लिए शोरूम तक पहुंचना आसान रहा।
यह शोरूम तेजी से प्रख्यात हुआ और एक के बाद एक शोरूम खुलने लगे. धीरे-धीरे कारोबार को व्यवस्थित करना शुरू किया गया. अलग-अलग डिपार्टमेंट तैयार किए जाने लगे । लोग क्या पसंद करते हैं और क्या नहीं, इसे समझना शुरू किया । मैटेरियल मैनेजमेंट, स्टाफ ट्रेनिंग और दूसरी जरूरी बातों को कारोबार को हिस्सा बनाया ।
बदलाव की रणनीति अपनाई
कंपनी ने हमेशा से ही कारोबार में अंतराष्ट्रीय मानकों को लागू किया. ज्वैलरी सर्टिफिकेशन से लेकर डायमंड की गारंटी तक की बात को कारोबार का हिस्सा बनाया । कंपनी ने इंटरनेशनल वर्ल्ड स्किल फोरम में 2019 में ज्वैलरी डिजाइनिंग में ब्रॉन्ज अवॉर्ड जीता ।
कंपनी ने समय-समय दुनिया के कई देशों में फैशन शो और दूसरे इवेंट्स में ब्रैंडिंग की । अपने ज्वैलरी कलेक्शन पेश किए । 2019 में बंगारू ज्वैलर्स ने लैक्मे इंडिया फैशन वीक के दौरान पहला प्लेटिनम कलेक्शन पेश किया, जिसके काफी पसंद किया । अब कंपनी एक बार फिर अपने सेंगोल के कारण चर्चा में है.
(स्त्रोत – टीवी 9 भारतवर्ष)
दुनिया की शीर्ष 20 नवाचार करने वाली कम्पनियों में टाटा का नाम
देश की दिग्गज कंपनी टाटा ने अपने नाम एक और बड़ा खिताब हासिल कर लिया है. दुनिया की मोस्ट इनोवेटिव-50 कंपनियों की सूची में टाटा को 20वां स्थान मिला है । सूची में शामिल होने वाली टाटा एकमात्र भारतीय कंपनी है । बोस्टन कंसल्टिंग ग्रुप की मोस्ट इनोवेटिव कम्पनीज 2023 की सूची जारी कर दी गई है ।
कई मापदंडों को देखकर किया जाता है लिस्ट में शामिल
कंपनी की परफॉर्मेंस के साथ ही उनकी विपरीत परिस्थितियों को सहने की क्षमता जैसे कई पैरामीटर को देखकर उनकों इस लिस्ट में शामिल किया जाता है । इसके अलावा टाटा ग्रुप ने साल 2045 तक नेट-जीरो एमिशन का टारगेट सेट किया हुआ है ।
ऐपल को मिला पहला स्थान
आपको बता दें इस लिस्ट में अमेरिका की एप्पल कंपनी को पहला स्थान मिला है । वहीं, एलन मस्क की टेस्ला कंपनी को दूसरा स्थान मिला है । टेस्ला पहले की तुलना में 3 स्थान ऊपर पहुंच गई है । वहीं, अमेजन को लिस्ट में तीसरा स्थान मिला है ।
टॉप-10 में ये कंपनियां हैं शामिल
इसके अलावा गूगल की पेरेंट कंपनी अल्फाबेट को चौथा नंबर मिला है। माइक्रोसॉफ्ट पांचवें नंबर पर है। इसके बाद अमेरिका की फार्मा कंपनी मॉडर्ना दक्षिण कोरिया की सैमसंग चीन की हुआवे और बीवाईडी कंपनी तथा सिमंस का नंबर है ।
मेटा को मिला है 16वां स्थान
आपको बता दें टॉप-10 लिस्ट में अमेरिका की 6 कंपनियां शामिल हैं । इसके अलावा चीन की भी 2 कंपनियों के नाम लिस्ट में शामिल है । फाइजर को 11वां स्थान, स्पेसएक्स को 12वां स्थान और मेटा को 16वां स्थान मिला है।
1869 में हुई थी टाटा की शुरुआत
टाटा ग्रुप की बात करें तो इस कंपनी की शुरुआत साल 1869 में हुई थी । देश में नमक से लेकर टाटा ग्रुप लग्जरी गाड़ियों और अन्य सभी तरह के सेंगमेंट में कारोबार कर रहा है । आईटी सेक्टर की सबसे बड़ी कंपनी टीसीएस , टाटा स्टील, टाटा मोटर्स समेत ज्यादातर देश के सभी सेक्टर में टाटा का नाम शामिल है ।