पिता

डॉ. वसुंधरा मिश्र

पुरुषार्थ और पुरुषत्व का बीज है पिता
अपनी रचनात्मक ममत्व से माँ रचती मुझे
चलना सिखाया भले ही माँ ने
पिता की हथेलियों ने हर कदम पर संभाला मुझे
समाज और घर का सेतु बन
सजगता और निडरता की डोर थमाई मुझे
कोमलता और कठोरता के साथ
संघर्षशील बनने की प्रक्रिया में लगाया मुझे
पिता तो परिभाषित स्वयं है
वह आकाश है, पुरुष है, अधिकार है
एक व्यक्तित्व है, सृष्टि का एक पहिया है
जीवटता है, चट्टानों के बीच रिसती हुई जलधारा है
पिता परमेश्वर का अंश है, उष्णता का एकांश है
सृष्टि का एक पहिया है जो प्रकृति के गर्भ की स्थिति है
वह मेरा पिता है वह अंश है मुझमें ।

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