कोलकाता । प्राचीन काल से ही भारतीय संस्कृति में गुरु-शिष्य परंपरा का महत्वपूर्ण स्थान रहा है। गत 15 जून को कोलकाता के दर्शकों ने ज्ञान मंच सभागार में नृत्य माध्यम से एक दिव्य आध्यात्मिक शाम का आयोजन हुआ।
आचार्य अनुसूया घोष बनर्जी ने अपनी शिष्या श्रीमती संचयिता मुंशी साहा के साथ “एकात्म-सर्वोच्च आनंद की ओर एक यात्रा” शीर्षक से युगल नृत्य प्रस्तुति दी जो आज के युग में एक मिसाल है । कार्यक्रम के आरंभ में आदि शंकराचार्य द्वारा रचित काशी काल भैरव अष्टकम पर आधारित नृत्य से हुआ , इसके पश्चात प्रसिद्ध मराठी अभंग “मन मंदिरा” में साधक और साधना की भूमिका को दर्शाया गया। अगले श्रृंखला का नृत्य वर्णम चारुकेसी राग पर आधारित रहा जो जीवात्मा की परमात्मा के साथ विसर्जन की निरंतर भूमिका का वर्णन करता है। गुरु और शिष्य दोनों ने ही मंच पर अपनी उत्कृष्ट कला का प्रदर्शन किया। इसके बाद त्यागराज कृति “नीदु चरणमुले” ने आचार्य अनुसूया घोष बनर्जी द्वारा आध्यात्मिक गहराई और दिव्यता के साथ सबरी की कहानी सुनाई। इस मनोहर संध्या की अंतिम प्रस्तुति पलानी थिलाना और टैगोर की “आनंद धारा” थी जो जीवन के शाश्वत प्रवाह को आगे बढ़ाती है।
इस नृत्य प्रस्तुति में श्री सुकुमार जी कुट्टी (गायन), मलय डे (मृदंगम), शाहरुख अहमद (तबला), विशाल जी (वायलिन), शेखर दा (बांसुरी), राजीव खान (नट्टुवंगम), देबज्योति (रवींद्र संगीत) ने संगीतमय सहयोग दिया। यह आयोजन नृत्यक्षेत्र एकेडमी ऑफ परफॉर्मिंग आर्ट्स द्वारा नृत्यभाष एकेडमी ऑफ परफॉर्मिंग आर्ट के सहयोग से किया गया था। कार्यक्रम की जानकारी दी डॉ वसुंधरा मिश्र ने ।
भारतीय संस्कृति गुरु – शिष्य परंपरा पर आधारित दिव्य नृत्य संध्या
आईसीएआई के बोर्ड ऑफ स्टडीज (ऑपरेशंस) द्वारा सीए छात्रों हेतु राष्ट्रीय सम्मेलन
कोलकाता । ईस्टर्न इंडिया रिजनल काउंसिल (ईआईआरसी) और ईस्टर्न इंडिया चार्टर्ड अकाउंटेंट्स स्टूडेंट्स एसोसिएशन (ईआईसीएएसए) द्वारा संयुक्त रूप से स्टूडेंट्स स्किल इनरिचमेंट बोर्ड, आईसीएआई के तत्वावधान में रिस्किल, रिसॉल्व और रिजॉइस ‘आरआरआर’ विषय पर सीए छात्रों के लिए कोलकाता के साइंस सिटी ऑडिटोरियम में 24 और 25 जून, को दो दिवसीय राष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन किया गया।
इस क्षेत्र में लंबे समय से सफलता का मुकाम हासिल करनेवाले वक्ताओं ने अपने वक्तव्य में अपने अनुभवों को शेयर किया। जिसमें अफ्रीका और लद्दाख में विशेष सलाहकार मेड इन इंडिया फॉर द वर्ल्ड डॉ. दीपक वोहरा, बोट के सीएमओ सीए अमन गुप्ता, प्रेरक वक्ता जया किशोरी, विश्व के सबसे कम उम्र के हेडमास्टर बाबर अली, सबसे कम उम्र में सीए बनने वाली सीए नंदिनी अग्रवाल ने अपने अनुभवों को साझा किया ।
आईसीएआई के उपाध्यक्ष सीए रणजीत कुमार अग्रवाल, सीए (डॉ.) देबाशीष मित्रा (पूर्व अध्यक्ष, आईसीएआई), सीए सुशील कुमार गोयल (कार्यक्रम निदेशक और परिषद सदस्य, आईसीएआई), सीए मंगेश किनारे (स्किल इनरिचमेंट बोर्ड, आईसीएआई के अध्यक्ष, केंद्रीय परिषद सदस्य), सीए दयानिवास शर्मा, सीए विशाल दोशी, सीए चरणजोत सिंह नंदा, सीए अभय कुमार छाजेड़, सीए देबायन पात्रा (आईसीएआई के पूर्वी भारत क्षेत्रीय परिषद, ईआईआरसी के अध्यक्ष), सीए संजीब सांघी (ईआईआरसी के ईआईसीएएसए के वाइस चेयरमैन) के साथ क्षेत्रीय परिषद के पदाधिकारियों और सदस्यों की टीम इस मौके पर मौजूद थी।
इस तरह के सम्मेलन के आयोजन ने देश भर के चार्टर्ड अकाउंटेंसी पाठ्यक्रम के छात्रों को सीए छात्रों के रूप में उनके हित के लिए मिलने और उनके बारे में चर्चा करने का अवसर प्रदान किया। इस मौके पर देशभर से आये पेपर प्रस्तुतकर्ताओं ने अपने पेपर प्रस्तुत किये। विशिष्ट क्षेत्रों के प्रसिद्ध वक्ताओं को लेकर उनके अबतक के अनुभवों को छात्रों के बीच साझा करने के लिए विशेष सत्र का आयोजन किया गया था। इसमें वक्ताओं ने विविध पेशेवर और प्रेरक विषयों पर बातें कर यहां मौजूद छात्रों का मार्ग प्रशस्त किया।
भारतीय भाषा परिषद में कवि पर्व के रूप में मनाई गई नागार्जुन जयंती
कोलकाता । हिंदी के प्रसिद्ध कवि नागार्जुन की जयंती के अवसर पर भारतीय भाषा परिषद द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में वरिष्ठ और नए कवियों ने कविता पाठ किया और नागार्जुन की कविताओं पर कोलाज प्रस्तुत किया गया। यह दिन राष्ट्रीय स्तर पर कवि पर्व के रूप में मनाया जाता है। परिषद की अध्यक्ष डा. कुसुम खेमानी ने अपने संदेश में कहा कि नागार्जुन हिंदी और मैथिली के बीच एक सेतु की तरह हैं। उनकी स्मृति एक पावन पर्व है। श्रीमती विमला पोद्दार ने अतिथियों का स्वागत किया।
सबसे पहले आकस्मिक रूप से दिवंगत श्रीप्रकाश गुप्त को श्रद्धांजलि दी गई। प्रो. संजय जायसवाल ने कहा कि वे हिंदी अंचल के एक प्रमुख सांस्कृतिक व्यक्तित्व थे। वे प्रगति शोध संस्थान, सांस्कृतिक पुनर्निर्माण मिशन सहित कई संस्थाओं से जुड़े थे और हुगली में एक स्कूल स्टडी मिशन के प्रधान थे। उनका अचानक न होना हम सभी को काफी रिक्त कर गया है। डॉ. आशुतोष, रामनिवास द्विवेदी, राज्यवर्धन, प्रो. गीता दूबे, डा. राजेश मिश्र, मंजु श्रीवास्तव,विनोद यादव आदि ने इसे अपूरणीय क्षति बताते हुए अपनी श्रद्धांजलि अर्पित की।
आयोजन के अध्यक्ष डॉ. शंभुनाथ ने अंत में कहा कि नागार्जुन जून के ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन जन्मे थे। उनकी कविताओं में जेठ का ताप और पूर्णिमा का सौंदर्य है। खासकर आपातकाल की स्मृति दिलाने वाले दिन उन्हें याद करना अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की महत्ता को समझना है।
कवि पर्व पर यशवंत सिंह, सेराज खान बातिश, राजेश मिश्रा, अभिज्ञात, निर्मला तोदी, मनोज मिश्र, शिप्रा मिश्रा, इबरार खान, सूर्य देव रॉय, सुषमा कुमारी, आशुतोष राउत, नमिता जैन, रेशमी सेन शर्मा, नैन्सी पाण्डेय, प्रिया श्रीवास्तव और राज घोष ने कविताओं का पाठ किया तथा सुषमा कुमारी,पूजा गौंड़, ज्योति चौरसिया, अदिति दूबे, कंचन भगत, मधु साव, नंदिनी साहा, आदित्य तिवारी, कुसुम भगत और संजना जायसवाल ने नागार्जुन की कविताओं पर कोलाज प्रस्तुत किया। निर्देशन मनीषा गुप्ता ने किया। कार्यक्रम का सफल संचालन प्रो. संजय जायसवाल और धन्यवाद ज्ञापन घनश्याम सुगला ने किया।
पुस्तक समीक्षा – साहस और शौर्य की गाथा: दुर्गावती
समीक्षक: डॉ. सीमा शर्मा
इतिहास में जब साहसी, पराक्रमी और शिक्षित महिलाओं की चर्चा की जाती है तो हमारा ज्ञान कुछ नामों तक ही सीमित रह जाता है। जबकि ऐसा नहीं है कि हमारे इतिहास में कुछ गिनी-चुनी महिलाएँ ही अत्यंत महत्वपूर्ण रही हैं, बल्कि यह कि हमें अपनी उस विरासत का ज्ञान ठीक-ठीक नहीं है और हम अपने इतिहास की अनेक महिलाओं के विषय में जानते ही नहीं हैं जिन्होंने अपने-अपने क्षेत्र में अद्भुत और अविश्वसनीय कार्य किए हैं और अभूतपूर्व सफलताएँ प्राप्त की हैं। ज्ञान के अभाव में हम कई बार इस तरह की बातें करते हैं कि हमारे इतिहास में महिलाओं को वह स्थान प्राप्त नहीं था जिसकी वे हकदार थी या कि वे अत्यंत पिछड़ी हुई थी और उनमें किसी तरह की क्षमताओं का विकास नहीं हो सका था।
ऐसी अनेक बातें हैं, किंतु जब हम ध्यानपूर्वक अपने इतिहास के पन्नों को टटोलते हैं और उन छुपे हुए साहसी स्त्री चरित्रों को खोजते हैं और बात करते हैं तो आश्चर्यचकित रह जाते हैं।
ऐसा ही एक ऐतिहासिक चरित्र है रानी दुर्गावती का, जिन्होंने अपने समय में पचास से अधिक युद्ध लड़े, जिनसे अकबर को भी भय था क्योंकि रानी दुर्गावती की प्रसिद्धि निरंतर बढ़ती ही जा रही थी और वे कूटनीतिक दृष्टि से अत्यधिक चतुर थीं। अबुल फज़ल ने रानी दुर्गावती के विषय ‘अकबरनामा’ में लिखा है- “महारानी दुर्गावती गोंडवाना साम्राज्य की अति धीर, वीर, पराक्रमी, विश्व की प्रथम अद्भुत वीरांगना बहादुर महिला थी। उसके समान न पहले कभी हुई न बाद में कोई हो सकी।” रानी दुर्गावती की पहचान भारतीय जनमानस में इतनी व्यापक नहीं है जितनी की होनी चाहिए थी।
राजगोपाल सिंह वर्मा ऐसे लेखक हैं जो इतिहास के उन स्त्री चरित्रों को लेकर शोधपरक लेखन का रहे हैं जिन्हें इतिहास में उतना स्थान प्राप्त नहीं हुआ जितना होना चाहिए था। उनका सद्यः प्रकाशित जीवनीपरक ‘दुर्गावती: गढ़ा की पराक्रमी रानी’ उपन्यास ऐसा ही है। इससे पूर्व भी उनका एक जीवनी परक उपन्यास ‘बेगम समरू’ प्रकाशित हो चुका है जिसने साहित्य जगत में अपनी विशेष पहचान बनाई और इस कृति पर लेखक को कई महत्वपूर्ण सम्मान भी प्राप्त हुए हैं।
वर्मा साहित्य की अन्य गद्य विधाओं में भी बहुत अच्छा लिख रहे हैं लेकिन उनका इतिहासपरक लेखन मुझे अधिक महवपूर्ण दिखाई देता है क्योंकि इस तरह के लेखन का हिंदी साहित्य में अभाव है।
मध्य प्रदेश के गढ़ा की परक्रमी रानी दुर्गावती की कहानी अनोखी है। मात्र चालीस वर्ष के अल्प जीवन में उन्होंने जितने कीर्तिमान स्थापित किये वे अविश्वसनीय है। दुर्गावती का सम्पूर्ण जीवन प्रेरणास्पद है। उन्होंने ऐसे कई कार्य किए जो आज के समाज में भी किसी मिसाल से कम नहीं हैं फिर चाहे अंतर्जातीय विवाह हो या उनका राज्य कौशल। समीक्ष्य उपन्यास दुर्गावती अत्यंत पठनीय है क्योंकि यह इतिहास को कलात्मक ढंग से प्रस्तुत करता है जिससे पाठक को न केवल इतिहास के बारे में जानकारी मिलती है वरन उसमें व्याप्त तथ्य आत्मगौरव का भाव भी उत्पन्न करते हैं।
उपन्यास: दुर्गावती: गढ़ा की पराक्रमी रानी
लेखक – राजगोपाल सिंह वर्मा
प्रकाशक- शतरंग प्रकाशन, लखनऊ
मूल्य -६५० रुपये
-डॉ. सीमा शर्मा
L-235,शास्त्रीनगर ,मेरठ
पिन -250004 ( उ.प्र.)
मो .9457034271
ई-मेल- [email protected]
स्त्री पर तीन कविताएं

स्त्री -1
आज घर में सन्नाटा था
शीशे के सामने खङी रही देर तक।
शीशे ने कहा-
देख ले जी भर आज स्वयं को
छोङ दे चूल्हा-चौका ,रोटी,डस्टिंग
जी ले, जी भर।
क्यो दिया है तेरा नाम स्त्री
तू तो व्यक्ति है जीता-जागता।
देखो ना–
तुम्हारे भीतर जल रही है
साहस की लौ।
सच!
नहीं जीया तुमने जीवन
अपने लिए।
कहाँ था समय
शीशे में देखने का,
सोचने का।
शीशे से पलटना
नहीं था गंवारा।
शीशा भी चिपका रहा,
मै भी खङी रही
खङी रही
शीशे के सामने।
………
स्त्री-2
लङकी जब तब्दील
होती है किताबों की
जिंदगी से गृहिणी में,
आटा-दाल से
सम्बंध जोङ कर
बचत का हिसाब लगाना
साङी बांधना,
पल्लू सम्हालते हुए रोटी बेलना
चूडियों और पायल के
बंधनों से बंधना ।
नये सम्बंध और संबोधनों को
दिनचर्या का हिस्सा बनाना ।
कितना मुश्किल है
नये संबंधों को
पल्लू से बांधना
और विसंगतियों में जीना।
किन्तु-
प्यार के रस में
डूबने की आशा में
आँख मूँदकर
करती रहती है समझौते ।
बीते समय का
बहुत कुछ रह जाता है
अनबोला-
जब लङकी
किताबों की जिंदगी से
गृहिणी में तब्दील होतीहै।
…..
स्त्री-3
यदि पढना चाहते हो मुझे
तो पढो कोमल आखों से
जैसे पढ़ी जाती है
गीता शुद्ध भावों से ।
छूना चाहते हो मुझे
तो छुओ चिङिया के कोमल बच्चे को पकड़ने की अदा से ।
छुओ जैसे छूती है हवा
धीरे से फूलों को,
जैसे छुआ जाता है तुलसी को
कोमल हाथों से ।
बस,ऐसे ही कोमल हाथों से
कोमल आखों से
कोमल भावों से पढो मुझे ।
मेरा कहा-अनकहा पढो।
पढो मेरे भाव-अभाव।
पढो तल्लीन हो कर ।
जुड़वा बच्चों के कुंवारे पिता बने देश के ‘आखिरी सिंगल डैड’ प्रीतेश
अहमदाबाद । एक ऐसा आदमी जिसकी शादी सिर्फ इसलिए नहीं होती है कि उसकी सरकारी नौकरी नहीं लग पाती है। देश में सरकारी नौकरी का क्रेज किसी से छुपा नहीं है। शादी भले ही नहीं हुई लेकिन पिता बनने की चाहत बनी रही। आखिरकार पिछले साल सरोगेसी वह जुड़वा बच्चों के पिता भी बन गए। जुड़वा बच्चों में एक लड़का और एक लड़की है। ये कहानी सूरत के प्रीतेश दवे की है। प्रीतेश उन आखिरी खुशकिस्मत लोगों में से हैं जिन्हें सरोगेसी के जरिये सिंगल पिता बनने का सौभाग्य मिला है। इसकी वजह है कि देश में अब सरोगेसी के नए नियम लागू हो चुके हैं।
खुद को खुशकिस्मत मानते हैं दवे
इनफर्टिलिटी स्पेशलिस्ट डॉ. पार्थ बाविशी ने कहा कि दवे उन कुछ अंतिम पुरुषों में से एक हैं जिन्होंने नए सरोगेसी कानून के लागू होने से महीनों पहले यह उपलब्धि हासिल की थी। उन्होंने कहा कि नए नियमों के अनुसार, सिंगल पुरुषों, महिलाओं, लिव-इन और सेम सेक्स कपल के लिए सरोगेसी की अनुमति नहीं है। दवे जानते हैं कि वह कितने भाग्यशाली हैं। उन्होंने कहा कि मैं इस मामले में खुशकिस्मत हूं। दवे का कहना है कि अब मेरे जैसा अविवाहित व्यक्ति सरोगेसी के लिए अर्हता प्राप्त नहीं कर सकता है। दवे सूरत में अपने माता पिता के साथ रहते हैं। वह भावनगर में एक नेशनलाइज्ड बैंक के लिए ग्राहक सेवा केंद्र चलाते हैं। अब बच्चों से ही बदली दुनिया
प्रीतेश दवे का कहना है कि धैर्य और दिव्या के आने से, उसका समय अब पहले से कहीं अधिक हो गया है। उन्होंने कहा कि जब मुझे शादी के लड़की नहीं मिली तो मेरे माता-पिता बहुत निराश हुए। हालांकि, जुड़वा बच्चों के आने के बाद हमारा घर खुशियों से भर गया। दवे ने कहा कि उनकी मां उनके बच्चों को पालने में सहारा रही हैं। उन्होंने कहा कि मेरा कोई जीवन साथी नहीं हो सकता है, लेकिन अब मेरे पास जिंदगी को जीने के लिए के लिए एक परिवार है। उन्होंने कहा कि यह सबसे बड़ा आशीर्वाद है।
सरकारी नौकरी नहीं तो दुल्हन नहीं
दवे ने कहा कि उनके समुदाय में ऐसे कई पुरुष हैं जो दुल्हन नहीं ढूंढ पा रहे हैं। इसकी वजह है कि माता-पिता अपनी बेटियों की शादी सरकारी नौकरी वाले युवाओं से करना पसंद करते हैं। दवे 12वीं के बाद कॉलेज की पढ़ाई नहीं कर पाए थे। उन्होंने कहा कि हमारे पास जमीन और जायदाद है, लेकिन इसका कोई मतलब नहीं है।
भारत ने दूसरी बार जीता इंटरकांटिनेंटल कप
लेबनान को फाइनल में 2-0 से हराया
नयी दिल्ली । कप्तान सुनील छेत्री और लल्लिंजुआला छांगते के गोल के दम पर भारत ने इंटरकांटिनेंटल कप के फाइनल में गत रविवार को लेबनान को 2-0 से शिकस्त दी। मैच का पहला हाफ में कोई गोल ना पड़ने के बाद अपने करियर के अंतिम दौर से गुजर रहे 38 वर्षीय छेत्री ने 46वें मिनट में गोल कर भारत को बढ़त दिलाई। यह उनका 87वां अंतरराष्ट्रीय गोल है और एक्टिव खिलाड़ियों में सबसे ज्यादा अंतरराष्ट्रीय गोल करने के मामले में वह तीसरे स्थान पर हैं।
इस गोल में मददगार की भूमिका निभाने वाले छांगते ने 66वें मिनट में टीम की बढ़त को दोगुना कर मैदान में भरे दर्शकों को झूमने का मौका दिया तो वहीं विश्व रैंकिंग में 99वें स्थान पर काबिज टीम को सन्न कर दिया। विश्व रैंकिंग में 101वें स्थान पर काबिज भारत ने दूसरी बार इस टूर्नामेंट को अपने नाम किया है। टीम ने 2018 में इसके शुरुआती सत्र के फाइनल में कीनिया को हराकर चैम्पियन बनीं थी जबकि 2019 उत्तर कोरिया ने खिताब जीता था और भारत चौथे और आखिरी स्थान पर रहा था। उमस भरी गर्मी में दोनों टीमों के पास शुरुआती हाफ में बढ़त बनाने का मौका था लेकिन वे इसका फायदा उठाने में नाकाम रहे। यह हाफ उसी तरह था जैसा की दोनों टीमों ने दो दिन पहले राउंड रोबिन चरण के आखिरी मैच को बिना कोई गोल दागे ड्रॉ खेला था। इस दौरान भारत ने गेंद को अधिक समय तक अपने पास रखने पर ध्यान दिया तो वही लेबनान का जोर आक्रमण करने पर था। लेबनान ने भारतीय गोल पोस्ट की तरफ सात बार हमले किए तो वही गेंद को 58 प्रतिशत समय तब अपने नियंत्रण में रखने वाली भारतीय टीम तीन बार ही लेबनान के गोल पोस्ट की ओर आक्रमण कर पाई।
छेत्री और छांगते ने दूसरे हाफ में किया कमाल
हाफ टाइम के बाद सबसे पहले छांगते ने बॉक्स के पास से गेंद को अपने नियंत्रण में लेकर छेत्री को दिया और भारतीय कप्तान ने लेबनान के गोलकीपर अली सबेह को छकाने में कोई गलती नहीं की। टीम ने खिलाड़ियों के शानदार सामंजस्य से इस मौके को बनाया । निखिल पुजारी ने बेहद कम जगह में से लेबनान के खिलाड़ियों के बीच से गेंद को छांगते की ओर धकेला और इस खिलाड़ी ने अपने प्रेरणादायी कप्तान के लिए मौका बनाने में कोई गलती नहीं की।
एक गोल की बढ़त लेने के बाद भारतीय खिलाड़ियों ने घरेलू परिस्थितियों का फायदा उठाते हुए छांगते के प्रयास से इस बढ़त को दोगुना कर दिया। सब्स्टीट्यूट नाओरेम महेश सिंह ने छेत्री के पास पर गोल करने का प्रयास किया लेकिन लेबनान के गोलकीपर ने गेंद को गोल में जाने से रोक दिया। हालांकि गोलकीपर गेंद को नियंत्रण में नहीं रख सके जो छिटक कर छांगते के पास गई और खिलाड़ी ने गेंद को गोल पोस्ट में डाल दिया।
नारियल के खोल से कप बनाते हैं भोपाल के ज्ञानेश्वर शुक्ला
भोपाल । नारियल के कई इस्तेमाल आपने देखे होंगे, लेकिन भोपाल के ज्ञानेश्वर शुक्ला ने वेस्ट टू बेस्ट का अनोखा उदाहरण पेश किया है। ज्ञानेश्वर नारियल के खोल से कप बनाते हैं। इसकी सबसे बड़ी खासियत यह है कि इस कप में चाय पीना सेहत के लिए अच्छा है। दूसरा यह कि वे मंदिरों में चढ़ाए जाने वाले कप को रिसाइकिल करते हैं। तीसरी, वे इससे होने वाली आमदनी स्वयंसेवी संस्था को देते हैं।
भोपाल के अवधपुरी इलाके में रहने वाले ज्ञानेश्वर यूं तो कंस्ट्रक्शन सेक्टर से जुड़े हैं, लेकिन मंदिरों में नारियलों की हालत देखकर उन्हें इसे रीसाइकिल करने का ख्याल आया। मंदिरों में चढ़ाए जाने वाले हजारों नारियलों का कोई इस्तेमाल नहीं होता। खराब होने के बाद उन्हें पानी में विसर्जित कर दिया जाता है। यह देखकर ज्ञानेश्वर के मन में इसे रीसाइकिल करने का ख्याल आया। उन्हें पता चला कि नारियल के खोल में कई विटामिन और मिनरल्स होते हैं जो सेहत के लिए फायदेमंद हैं। तब उन्होंने इससे कप बनाने का फैसला किया।
ज्ञानेश्वर अपने पेशेवर काम को निपटाने के बाद वे कप बनाने का काम करते हैं। उन्होंने अपने घर में ही एक छोटा सा कारखाना बनाया है। वे रोजाना तीन-चार घंटे यह काम करते हैं। एक कप को बनाने में उन्हें तीन दिन का समय लगता है। पहले वे यह कप इपने दोस्तों को गिफ्ट करते थे। अब वे सोशल मीडिया और मार्केटिंग वेबसाइट्स के जरिये इसे बेचते हैं।
ज्ञानेश्वर का कहना है कि वे युवा पीढ़ी को यह कला सिखाना चाहते हैं। इसके लिए वो जल्द ही वर्कशॉप आयोजित करने वाले हैं। इससे युवा हेल्थ और वेल्थ दोनों बना सकते हैं। युवा अतिरिक्त आमदनी के लिए भी यह काम कर सकते हैं।
गीता प्रेस,गोरखपुर को मिलेगा गांधी शांति पुरस्कार
पुरस्कार राशि नहीं लेगा, एक करोड़ की राशि ठुकराई
गोरखपुर । सनातन धर्म और संस्कृति के प्रचार-प्रसार में जुटी विश्व प्रसिद्ध प्रकाशन संस्थान गीता प्रेस को वर्ष 2021 का गांधी शांति पुरस्कार देने का ऐलान किया गया है। पीएम नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता वाली जूरी ने इस संबंध में फैसला लिया। केंद्रीय संस्कृति मंत्रालय की ओर से इसका ऐलान किया गया। इसके बाद से ही सवाल उठने लगा था कि क्या इस पुरस्कार को गीता प्रेस संस्था स्वीकार करेगी। दरअसल, अब तक गीता प्रेस ने कभी भी कोई पुरस्कार स्वीकार नहीं किया था। संस्कृति मंत्रालय की ओर से हुए ऐलान के बाद संस्था का पक्ष सामने आया है। संस्था की ओर से साफ किया गया है कि उनकी ओर से गांधी शांति पुरस्कार को स्वीकार किया जाएगा।
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हालांकि, संस्था ने इसके साथ मिलने वाली धनराशि को लेने से इनकार कर दिया है। गांधी शांति पुरस्कार विजेता को पुरस्कार के साथ एक करोड़ की राशि भी दी जाती है। गीता प्रेस, गोरखपुर 100 सालों से सनातन संस्कृति का प्रचार-प्रसार कर रहा है। वैश्विक स्तर पर संस्था को सनातन संस्कृति और पुस्तकों के तीर्थ के रूप में माना जाता है। गीता प्रेस में सम्मान स्वीकार करने की परंपरा नहीं रही है। हालांकि, पुरस्कार की घोषणा के बाद गीता प्रेस बोर्ड की बैठक हुई। इस बैठक में पुरस्कार को प्रबंधन से जुड़े पक्ष ने सनातन संस्कृति का सम्मान बताया। बोर्ड की बैठक में परंपरा को तोड़ते हुए सम्मान को स्वीकार करने का फैसला लिया गया है।
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हालांकि, बोर्ड से जुड़े सदस्यों ने कहा कि पुरस्कार के साथ मिलने वाली एक करोड़ रुपये की राशि को स्वीकार नहीं करने का निर्णय लिया है। गीता प्रेस बोर्ड की बैठक में केंद्र सरकार के फैसले पर गंभीर चर्चा हुई। दरअसल, गांधी शांति पुरस्कार के तहत विजेता को एक प्रशस्ति पत्र, एक पट्टिका, एक उत्कृष्ट पारंपरिक हस्तकला, हथकरघा की कलाकृति के साथ एक करोड़ रुपये दिए जाते हैं। बोर्ड ने तय किया है कि पुरस्कार में मिलने वाले पैसे को छोड़कर प्रशस्ति पत्र, पट्टिका और हस्तकला, हथकरघा की कलाकृति आदि को स्वीकार किया जाएगा।
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इस संबंध में गीता प्रेस के प्रबंधक लालमणि तिवारी ने कहा कि अभी तक कोई सम्मान स्वीकार न करने की परंपरा रही है। इस बार निर्णय लिया गया है कि हम सम्मान स्वीकार करेंगे। लालमणि तिवारी ने साफ किया कि पुरस्कार के साथ मिलने वाली राशि स्वीकार नहीं की जाएगी। गीता प्रेस की स्थापना के 100 वर्ष पूरे होने पर पुरस्कार मिलने पर उन्होंने खुशी जताई। प्रबंधक ने कहा कि सनातन संस्कृति का सम्मान हुआ है। इस सम्मान के लिए भारत सरकार के सांस्कृतिक मंत्रालय, पीएम नरेंद्र मोदी और सीएम योगी आदित्यनाथ का बोर्ड की बैठक में आभार भी जताया गया। उन्होंने कहा कि यह सम्मान हमें अभिभूत कर रहा है। हम निरंतर ही इस प्रकार का काम करते रहेंगे।
रवि सिन्हा ने सम्भाली रॉ की कमान
नयी दिल्ली । आईपीएस के वरिष्ठ अधिकारी रवि सिन्हा को आज खुफिया एजेंसी रॉ का नया चीफ बनाया गया है। रवि सिन्हा छत्तीसगढ़ कैडर के 1998 आईपीएस बैच के अधिकारी हैं। सिन्हा बिहार के भोजपुर के रहने वाले हैं। रवि सिन्हा इस समय सचिवालय में विशेष सचिव के रूप में काम कर रहे हैं। केंद्र सरकार के आदेश के अनुसार, रॉ के नए चीफ के रूप में रवि सिन्हा का कार्यकाल 2 साल का होगा। देश की खुफिया एजेंसी रॉ के नए प्रमुख रवि सिन्हा के बारे में जानते हैं।
रवि सिन्हा मूल रूप से बिहार के भोजपुर के रहने वाले हैं। रवि सिन्हा की शिक्षा दिल्ली से ही हुई है। राजधानी दिल्ली के सेंट स्टीफंस कॉलेज से रवि सिन्हा ने पढ़ाई की है। कॉलेज की पढ़ाई पूरी कर उन्होंने आईपीएस की तैयारी की जिसके बाद साल 1998 में यूपीएसएससी परीक्षा पास की थी। रवि सिन्हा को सबसे पहले मध्य प्रदेश कैडर मिला था। बाद में जब मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ अलग हुए तो रवि सिन्हा को छत्तीसगढ़ कैडर मिला। रवि सिन्हा मौजूदा समय में सचिवालय में प्रिंसिपल स्टाफ ऑफिसर के पद पर हैं।
रवि सिन्हा को लो प्रोफाइल रहना है पसंद
रवि सिन्हा के बारे में कहा जाता है कि उन्हें लो प्रोफाइल रहकर काम करना पसंद है। रवि सिन्हा के बारे में कहा जाता है कि वह खुफियाजानकारी जुटाने के लिए आधुनिक तकनीक का इस्तेमाल करते हैं। यही वजह है कि जब वह रॉ की कमान संभालेंगे तब इंटिग्रेटेड टेक्नोलॉजी और ह्यूमन इंटिलिजेंस को साथ लेकर काम करने में मदद मिलेगी। रवि सिन्हा ने इससे पहले जम्मू-कश्मीर, उत्तर-पूर्व और वामपंथी चरमपंथी डोमेन के अलावा कई जगह अपनी सेवाएं दी हैं।
सामंत गोयल की जगह लेंगे सिन्हा
इस समय रॉ के चीफ के रूप में सामंत गोयल कमान संभाल रहे हैं। उनका कार्यकाल 30 जून को समाप्त हो रहा है। सामंत गोयल ने साल 2019 में रॉ चीफ का पद संभाला था। दो बार के विस्तार के बाद कुल 4 साल तक वह इस पद पर बने रहे थे। सामंत गोयल के बारे में खास बात यह है कि 2019 के पुलवामा हमले का बदला लेने के लिए भारत की ओर से बनाए गए प्लान का श्रेय भी इन्हें ही जाता है।