पुस्तक समीक्षा – साहस और शौर्य की गाथा: दुर्गावती

समीक्षक: डॉ. सीमा शर्मा

इतिहास में जब साहसी, पराक्रमी और शिक्षित महिलाओं की चर्चा की जाती है तो हमारा ज्ञान कुछ नामों तक ही सीमित रह जाता है। जबकि ऐसा नहीं है कि हमारे इतिहास में कुछ गिनी-चुनी महिलाएँ ही अत्यंत महत्वपूर्ण रही हैं, बल्कि यह कि हमें अपनी उस विरासत का ज्ञान ठीक-ठीक नहीं है और हम अपने इतिहास की अनेक महिलाओं के विषय में जानते ही नहीं हैं जिन्होंने अपने-अपने क्षेत्र में अद्भुत और अविश्वसनीय कार्य किए हैं और अभूतपूर्व सफलताएँ प्राप्त की हैं। ज्ञान के अभाव में हम कई बार इस तरह की बातें करते हैं कि हमारे इतिहास में महिलाओं को वह स्थान प्राप्त नहीं था जिसकी वे हकदार थी या कि वे अत्यंत पिछड़ी हुई थी और उनमें किसी तरह की क्षमताओं का विकास नहीं हो सका था।

ऐसी अनेक बातें हैं, किंतु जब हम ध्यानपूर्वक अपने इतिहास के पन्नों को टटोलते हैं और उन छुपे हुए साहसी स्त्री चरित्रों को खोजते हैं और बात करते हैं तो आश्चर्यचकित रह जाते हैं।

ऐसा ही एक ऐतिहासिक चरित्र है रानी दुर्गावती का, जिन्होंने अपने समय में पचास से अधिक युद्ध लड़े, जिनसे अकबर को भी भय था क्योंकि रानी दुर्गावती की प्रसिद्धि निरंतर बढ़ती ही जा रही थी  और वे कूटनीतिक दृष्टि से अत्यधिक चतुर थीं। अबुल फज़ल ने रानी दुर्गावती के विषय ‘अकबरनामा’ में लिखा है- “महारानी दुर्गावती गोंडवाना साम्राज्य की अति धीर, वीर, पराक्रमी, विश्व की प्रथम अद्भुत वीरांगना बहादुर महिला थी। उसके समान न पहले कभी हुई न बाद में कोई हो सकी।” रानी दुर्गावती की पहचान भारतीय जनमानस में इतनी व्यापक नहीं है जितनी की होनी चाहिए थी।

राजगोपाल सिंह वर्मा ऐसे लेखक हैं जो इतिहास के उन स्त्री चरित्रों को लेकर शोधपरक लेखन का रहे हैं जिन्हें इतिहास में उतना स्थान प्राप्त नहीं हुआ जितना होना चाहिए था। उनका सद्यः प्रकाशित जीवनीपरक ‘दुर्गावती: गढ़ा की पराक्रमी रानी’ उपन्यास ऐसा ही है। इससे पूर्व भी उनका एक जीवनी परक उपन्यास ‘बेगम समरू’ प्रकाशित हो चुका है जिसने साहित्य जगत में अपनी विशेष पहचान बनाई और इस कृति पर लेखक को कई महत्वपूर्ण सम्मान भी प्राप्त हुए हैं।

वर्मा साहित्य की अन्य गद्य विधाओं में भी बहुत अच्छा लिख रहे हैं लेकिन उनका इतिहासपरक लेखन मुझे अधिक महवपूर्ण दिखाई देता है क्योंकि इस तरह के लेखन का हिंदी साहित्य में अभाव है।

मध्य प्रदेश के गढ़ा की परक्रमी रानी दुर्गावती की कहानी अनोखी है। मात्र चालीस वर्ष के अल्प जीवन में उन्होंने जितने कीर्तिमान स्थापित किये वे अविश्वसनीय है। दुर्गावती का सम्पूर्ण जीवन प्रेरणास्पद है। उन्होंने ऐसे कई कार्य किए जो आज के समाज में भी किसी मिसाल से कम नहीं हैं फिर चाहे अंतर्जातीय विवाह हो या उनका राज्य कौशल। समीक्ष्य उपन्यास दुर्गावती अत्यंत पठनीय है क्योंकि यह इतिहास को कलात्मक ढंग से प्रस्तुत करता है जिससे पाठक को न केवल इतिहास के बारे में जानकारी मिलती है वरन उसमें व्याप्त तथ्य आत्मगौरव का भाव भी उत्पन्न करते हैं।

उपन्यास: दुर्गावती: गढ़ा की पराक्रमी रानी
लेखक – राजगोपाल सिंह वर्मा
प्रकाशक- शतरंग प्रकाशन, लखनऊ
मूल्य -६५०  रुपये

-डॉ. सीमा शर्मा
L-235,शास्त्रीनगर ,मेरठ
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