भारतीय संस्कृति गुरु – शिष्य परंपरा पर आधारित दिव्य नृत्य संध्या 

कोलकाता । प्राचीन काल से ही भारतीय संस्कृति में गुरु-शिष्य परंपरा का महत्वपूर्ण स्थान रहा है। गत 15 जून को कोलकाता के दर्शकों ने ज्ञान मंच सभागार में नृत्य माध्यम से एक दिव्य आध्यात्मिक शाम का आयोजन हुआ।
आचार्य अनुसूया घोष बनर्जी ने अपनी शिष्या श्रीमती संचयिता मुंशी साहा के साथ “एकात्म-सर्वोच्च आनंद की ओर एक यात्रा” शीर्षक से युगल नृत्य प्रस्तुति दी जो आज के युग में एक मिसाल है । कार्यक्रम के आरंभ में आदि शंकराचार्य द्वारा रचित काशी काल भैरव अष्टकम पर आधारित नृत्य से हुआ , इसके पश्चात प्रसिद्ध मराठी अभंग “मन मंदिरा” में साधक और साधना की भूमिका को दर्शाया गया। अगले श्रृंखला का नृत्य वर्णम चारुकेसी राग पर आधारित रहा जो जीवात्मा की परमात्मा के साथ विसर्जन की निरंतर भूमिका का वर्णन करता है। गुरु और शिष्य दोनों ने ही मंच पर अपनी उत्कृष्ट कला का प्रदर्शन किया। इसके बाद त्यागराज कृति “नीदु चरणमुले” ने आचार्य अनुसूया घोष बनर्जी द्वारा आध्यात्मिक गहराई और दिव्यता के साथ सबरी की कहानी सुनाई। इस मनोहर संध्या की अंतिम प्रस्तुति पलानी थिलाना और टैगोर की “आनंद धारा” थी जो जीवन के शाश्वत प्रवाह को आगे बढ़ाती है।
इस नृत्य प्रस्तुति में श्री सुकुमार जी कुट्टी (गायन), मलय डे (मृदंगम), शाहरुख अहमद (तबला), विशाल जी (वायलिन), शेखर दा (बांसुरी), राजीव खान (नट्टुवंगम), देबज्योति (रवींद्र संगीत) ने संगीतमय सहयोग दिया। यह आयोजन नृत्यक्षेत्र एकेडमी ऑफ परफॉर्मिंग आर्ट्स द्वारा नृत्यभाष एकेडमी ऑफ परफॉर्मिंग आर्ट के सहयोग से किया गया था। कार्यक्रम की जानकारी दी डॉ वसुंधरा मिश्र ने ।

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