सिनी के बच्चों के लिए अभिनेत्री मुमताज सरकार ने इस बार का फ्रेंडशिप डे काफी अनूठा बनाया दिया और इसमें साथ दिया पाम रेस्तरां ने। अभिनेत्री मुमताज ने न सिर्फ बच्चों के साथ वक्त दिया बल्कि इन 20 बच्चों के लिए उन्होंने केक भी बनाया। मुमताज ने कहा कि अपनी सुविधा भरी भागदौड़ वाली जिंन्दगी से बाहर निकलकर बच्चों के साथ वक्त बिताकर उनको काफी अच्छा लगा। पाम रेस्तरां की प्रमुख व संचालक प्रियदर्शिनी दे ने कहा कि दोस्ती का दिन काफी खास होता ह और बच्चों के मुस्कुराते चेहरे देखकर अच्छा लगा।
मोहम्मद ज़हीर जो सावन में ही नहीं, साल भर लगे रहते हैं शिवलिंग की सेवा में
खंडवा/इंदौर। धर्म के नाम पर बात-बात पर मरने-मारने को आमादा होने वालों के ये खबर आई ओपनर है। सावन का महीना मोहम्मद जहीर के लिए बहुत व्यस्तता भरा होता है, क्यूंकि वे शिवलिंग की सेवा में जुटे रहते हैं। यूँ तो वे 12 महीने शिव मंदिर की देखरेख वैसे ही करते हैं, जैसे दरगाह की।
क्यों इतनी शिद्दत से करते हैं शिवलिंग की सेवा….
सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त तक जहीर यहां सेवा देते हैं, लेकिन कभी भी उन्होंने धर्म की बाधा को आड़े नहीं आने दिया। मंदिर परिसर की सफाई तथा गर्भगृह में शिवलिंग पर पड़े हार-फूल बदलते उन्हें जो भी देखता, उनसे धर्म की बाधा के बारे में प्रश्न जरूर करता है। वह भी सहजता से जवाब देते हैं, ईश्वर-अल्लाह एक है। इनमें फर्क नहीं, फर्क है तो हमारी सोच में।
बुरहानपुर से 20 किमी दूर असीरगढ़ किले के सामने बने ऐतिहासिक शिव मंदिर की। असीरगढ़ के रहने वाले 40 वर्षीय जहीर यहां सात साल से सेवा दे रहे हैं। पुरातत्व विभाग के अधीन इस शिव मंदिर में लेबर के रूप में कार्यरत जहीर ने कहा इससे पहले परिवार के किसी भी सदस्य ने यहां काम नहीं किया। पहले मैं खुली मजदूरी करता था। जब मुझे मंदिर में काम करने का अवसर मिला तो इसे कैसे छोड़ सकता था।
कोई पुजारी नहीं है तो खुद संभाल लिया जिम्मा…
उन्होंने बताया यहां कोई स्थायी पंडित नहीं है। जो पर्यटक शिवजी की पूजा करने आते हैं, उनके द्वारा चढ़ाई गई फूलमालाएं बदलने का काम भी मैं ही करता हूं। साफ-सफाई तो करना ही है। उन्होंने बताया कि श्रावण मास यहां बहुत से भक्त शिव आराधना के लिए पहुंचते हैं। वहीं प्रतिवर्ष महाशिवरात्रि पर खंडवा का पंसारी परिवार यहां पूजन करवाता है।
दरगाह पर भी देते हैं सेवा
इस मंदिर से करीब 100 मीटर की दूरी पर स्थित दरगाह पर भी जहीर सेवा देते हैं। यह दरगाह भी पुरातत्व विभाग के अधीन है। उन्होंने बताया मेरे लिए जैसी दरगाह है, वैसा ही शिव मंदिर भी। दोनों ही जगह बराबर ध्यान देता हूं। रमजान या ईद का दिन भी मंदिर की सेवा के आड़े नहीं आता। उन्होंने बताया मेरे पांच बच्चे हैं। उन्हें भी इस तरह की एकता को बनाए रखने की सीख दूंगा।
हबीब बना ‘बजरंगी भाईजान’, 9 साल की बच्ची को 7 महीने बाद मां से मिलवाया
गाजियाबाद. रीयल लाइफ के एक बजरंगी भाईजान ने अपनी मां से बिछुड़ी 9 साल की बच्ची को करीब 7 महीने बाद उसके परिजनों को सौंप दिया। इस दौरान हबीब नाम के इस व्यक्ति ने उसकी परवरिश अपनी बेटी की तरह की। बेटी वापस पाकर उसकी मां बेहद खुश है।
अलीगढ़ की रहने वाली मंजू 7 जनवरी को गाजियाबाद में अपने बेटे के इलाज के लिए आई थी। उसके साथ उसकी बड़ी बेटी 9 वर्षीय रितू भी थी। मंजू अपनी बेटी रितू को अस्पताल में एक जगह बैठाकर दवा लेने चली गई थी। जब वह वापस वहां पहुंची तो उसकी बेटी वहां नहीं थी। उसने उस वक्त उसकी काफी तलाश की लेकिन उसका कुछ पता नहीं चला तो वह वापस अलीगढ़ चली आई।
हबीब को मिली थी रास्ते में खाना मांगते हुए
मसूरी स्थित मयूर विहार निवासी हबीब का कहना है कि उसे रितू रास्ते में खाना मांगते हुए मिली थी। उसने जब उससे पूछताछ की थी तब उसने अपनी मां से बिछुड़ने की बात कही थी। हबीब ने बताया कि तब वह रितू को अपने साथ अपने घर ले आया। उसने थाना मसूरी पुलिस को इस बार में जानकारी दे दी।पुलिस ने जानकारी के आधार पर रितू के मां-बाप की तलाश शुरू कर दी। इस दौरान हबीब ने रितू को अपनी सगी बेटी की तरह साथ रखा। हबीब का कहना है कि जब उसने रितू को देखा तो उसे लगा इस बच्ची को भीख मांगने के लिए सड़क पर छोड़ना ठीक नहीं। उसके अनुसार पुलिस को सूचना देने के बावजूद वह रितू के परिवार की तलाश में खुद भी जुटा रहा।
रितू के रिश्तेदारों ने पहचाना
हबीब का कहना है कि ईद पर उन्होंने अपने बच्चों के साथ रितू को भी रफीकाबाद मसूरी के मेले में भेजा था। वहां रीतू के कुछ रिश्तेदार रहते हैं। उन्होंने रीतू को पहचान लिया। इसके बाद उनके रिश्तेदारों ने हबीब से संपर्क कर बता दिया कि रीतू मिल गई है। इसके बाद रितू के परिजनों ने थाना मसूरी पुलिस से संपर्क साधा। पुलिस ने उन्हें रितू के सुरक्षित होने की जानकारी देते हुए मसूरी आने के लिए कहा। परिजन मसूरी पहुंचे जहां पुलिस की मौजूदगी में हबीब ने रितू को उसकी मां मंजू को सौंप दिया। मंजू और उसके रिश्तेदारों ने हबीब का धन्यवाद अदा किया, बेटी को पाकर सभी बहुत खुश थे।
ये हैं यासीन जो 40 साल से कर रहे हैं मंदिरों की रखवाली मगर अपनी सर्जरी के लिए पैसे नहीं
कोलकाता से 125 किलोमीटर दूर मिदनापुर जिले का पथरा गांव में लगभग 300 साल पुराने 84 से ज्यादा मंदिर हुआ करते थे। लेकिन यदि ये मंदिर आज भी खड़े हैं तो इसकी एक वजह है मोहम्मद यासीन पठान। इस काम के लिए 1993 में उन्हें कबीर पुरस्कार जो पिछले साल उन्होंने वापस कर दिया। आज पठान काफी बीमार हैं और पैसे की तंगी के चलते अपनी सर्जरी के लिए फंड जुटा रहे हैं।
पठान बताते हैं कि वह बचपन से अक्सर इन मंदिरों को देखने जाता था। यहीं से मुझे इन पुराने मंदिरों के बारे में जानने की उत्सुकता बढ़ी और मुझे इन मंदिरों से जोड़ दिया। लेकिन समय के साथ इन मंदिरों की हालत बद से बदतर होती जा रही थी। यहां आने वाले लोग जिनमें से ज्यादातर खुद हिंदू थे यहां से ईटें, पत्थर, मंदिर के अवशेष उठा कर ले जाते थे। ऐसे में यासिन ने ठान लिया कि इन मंदिरों और उनके बचे हुए अवशेषों को बर्बाद नहीं होने देंगे। इसी के साथ यासीन ने मंदिरों की निगरानी शुरु कर दी और उन्हें नुकसान पहुंचाने वालों को रोकना शुरु कर दिया।
मुसलमान होने के चलते आई दिक्कत, किया बिरादारी से बाहर
यासिन का लोगों ने विरोध किया क्योंकि वह मुसलमान थे। लोगों ने कहा कि उन्हें मंदिरों में घुसने या उनके बारे में कुछ कहने-करने का अधिकार नहीं है। उनकी बिरादरी के लोगों ने काफिर कह अलग-थलग कर दिया। इसके अलावा उन्हें कई तरह की धमकियां भी दी गई। लेकिन उन्होंने 1992 में इस मामले को लेकर जागरुकता फैलाने और ज्यादा से ज्यादा लोगों को इस मुहिम से जोड़ने के लिए उन्होंने ‘पथरा आर्कियोलॉजिकल कमिटी’ बनाई। जिसमें गांव के मुसलमान और हिंदू शामिल हुए और आस-पास के इलाकों के आदिवासियों को भी इस समिती का हिस्सा बनाया।1998 में प्लानिंग कमीशन के तत्कालीन मेंबर प्रणब मुखर्जी ने इन मंदिरों के लिए 20 लाख रुपए की सहायता राशि घोषित की और आर्क्योलॉजिकल डिपार्टमेंट को इन मंदिरों का जिम्मेदारी सौंपी गई।
केवल 10 हजार रुपए में कर रहे हैं गुजारा
आज पथरा में पक्की सड़की, बिजली और टेलिफोन की सुविधा है। लेकिन 62 साल के यासीन केवल 10 हजार रुपए महीने में गुजारा कर रहे हैं। उन्होंने मंदिर की देखरेख के लिए कई लोन भी लिए। यासीन के चार बच्चे हैं और उनकी किडनी में स्टोन और दिल की बीमारी है। एक इंटरव्यू में वह कहते हैं कि निजी अनुभव भी बेहद खराब रहे। यासीन के मुताबिक वह इलाज के लिए चेन्नई गया। जहां होटल ने उनका वोटर आइकार्ड देखा और कहा कि हम मुस्लिमों को कमरा नहीं देते। यासीन कहते हैं कि साम्प्रदायिक सद्भाव का ताना-बाना कमजोर हो रहा है। इसे देखकर उन्हें काफी दुख है और इसी के चलते उन्होंने अपना सम्मान वापस करने का फैसला किया।
(साभार – दैनिक भास्कर)
बेटी ने की हिंदू लड़के से शादी, मुस्लिम पुलिस ऑफिसर पिता कर रहे मंदिर की सुरक्षा
मुंबई: पुणे के लोनावला में पला बढ़ा और मुंबई में जन्मा एक मुस्लिम पुलिस ऑफिसर अमेरिका के इंडियानापोलिस शहर के सबसे बड़े हिन्दू मंदिर का सुरक्षा कर रहा है। इसे विदेश में हिंदू-मुस्लिम एकता के एक बड़े उदाहरण के रूप में देखा जा रह है।
मंदिर का अभिन्न हिस्सा हैं जावेद..
स्थानीय पुलिस विभाग के लेफ्टिनेंट जावेद खान ताइक्वांडो में ब्लैक बेल्ट और किक बॉक्सिंग में चैंपियन हैं। 2001 से इंडियानापोलिस शहर में रह रहे खान मंदिर के सुरक्षा निदेशक हैं। वह पहली बार 1986 में विभिन्न मार्शल आर्ट चैंपियनशिप में हिस्सा लेने के लिए भारत से अमेरिका गए थे।इंडियानापोलिस में पुलिस ज्वाइन करने से एक साल पहले वे अमेरिका शिफ्ट हुए थे। मंदिर में आने वाले श्रद्धालु उन्हें मंदिर का एक अभिन्न हिस्सा मानते हैं और उनका सम्मान करता है। जावेद खान समय-समय पर मुंबई आते रहते हैं। कुछ महीनों पहले वे मुंबई पुलिस के जवानों को ट्रेनिंग देने के लिए आये थे। कराटे में ग्रैंडमास्टर जावेद खान इंडियानापोलिस में ‘फाइटिंग आर्ट अकादमी’ भी चलाते हैं। वे बच्चों, महिलाओं और बुजुर्गों को आत्मरक्षा की ट्रेनिंग भी देते हैं।
बेटी ने की हिंदू लड़के से शादी
खान का कहना है कि,”हम सब एक हैं, यही मेरा संदेश है। हम सब ईश्वर की संतान हैं। एक ही ईश्वर है जिसकी हम अलग-अलग नाम और रूपों में पूजा करते हैं।” उन्होंने कहा कि कुछ साल पहले उनकी बेटी ने इस हिन्दू मंदिर में एक तेलुगु लड़के से शादी की जिसके बाद वह मंदिर में लोगों को जानने लगे। खान ने कहा, “जल्द ही मुझे लगा कि वहां सुरक्षा की जरूरत है। फिर मैंने अपनी सेवाएं देने की पेशकश की। मैं अब मंदिर का सुरक्षा निदेशक हूं।”उन्होंने कहा, “जब भी मैं मंदिर जाता हूं, मुझे नहीं लगता कि मैं अमेरिका में हूं, मुझे लगता है कि मैं भारत में हूं।”
ढाई घंटे पहले बेटी को दिया जन्म, फिर जान जोखिम में डालकर दी परीक्षा
धनबाद.बोकारो की कविता महतो। गर्भ में नौ माह का बच्चा और दूसरी तरफ परीक्षा। एक तरफ मां बनने की खुशी तो दूसरी तरफ कोर्स पूरा करने का जज्बा। इसी बीच शनिवार को उसे प्रसव पीड़ा हुई। झरिया के चक्रवर्ती नर्सिंग होम में भर्ती कराया गया। जहां सुबह 10:24 बजे उसने बेटी को जन्म दिया। होश में आते ही वो एग्जाम देने की जिद करने लगी। पति निखिल ने बॉन्ड भरकर अपनी जिम्मेदारी पर कविता को एग्जाम सेंटर तक पहुंचाया।
डॉक्टर ने हौसले को किया सलाम…
बता दें कि दोपहर एक बजे धनबाद के पीके राय कॉलेज में बीएड की परीक्षा थी। बच्ची के जन्म के बाद जैसे ही कविता को होश आया, वो डॉक्टर से परीक्षा में जाने की अनुमति मांगने लगी। उसका हौसला देखकर डॉक्टर भी हैरान थे। वे कविता की हालत का हवाला देकर एग्जाम देने से मना कर रहे थे। डॉक्टर के नहीं मानने पर उसने पति निखिल कुमार महतो से परीक्षा दिलाने की मिन्नतें करती रहीं। आखिरकार पत्नी की जिद के आगे निखिल को झुकना पड़ा। उन्होंने कविता की जिंदगी का बॉन्ड भरकर उसे कॉलेज पहुंचाया।
एग्जाम सेंटर में भी दर्द से रही परेशान
जब कविता परीक्षा केंद्र पहुंचीं तो उसकी हालत इतनी अच्छी नहीं थी कि बैठकर परीक्षा दे सके लेकिन वह जिद पर अड़ी रही। उसकी हालत देखकर कॉलेज प्रशासन ने भी कविता और उसके पति से इस बात का बाॅन्ड भरवाया कि वह अपनी मर्जी से परीक्षा में शामिल हो रही हैं।- इस दौरान अगर कुछ होता है तो इसके लिए वे दोनों ही जिम्मेदार होंगे। परीक्षा हॉल में भी कविता तीन घंटे तक दर्द से परेशान रहीं, लेकिन उसके हाथ नहीं रुके। वो लगातार प्रश्नों का जवाब लिखती रही।
बच्ची को पढ़ाई की अहमियत बताऊंगी
कविता ने कहा कि वो किसी भी कीमत पर अपना एक साल बर्बाद नहीं करना चाहती थी। इसलिए उन्होंने फैसला लिया कि बच्चे को जन्म देने के बाद भी परीक्षा दूंगी। भविष्य में बेटी को पढ़ाई की अहमियत समझाऊंगी। इसलिए, भी उन्होंने परीक्षा देना जरूरी समझा। उन्होंने कहा कि फैमिली परीक्षा देने के फैसले का साथ दिया। बता दें कि कविता बचपन से टीचर बनना चाहती हैं।
प्रसव के दो दिन पहले भी दी परीक्षा
कविता ने प्रसव से दो दिन पहले 28 जुलाई को भी पीके राय कॉलेज में आकर परीक्षा दी थी। उसी दिन से बीएड के पहले सेमेस्टर की परीक्षा शुरू हुई थी। उस समय भी डॉक्टरों ने उसे परीक्षा में शामिल न होने की सलाह दी थी, लेकिन वह नहीं मानी। परीक्षा देने की जिद पर अड़ी रहीं। कविता प्रजन्या बीएड कॉलेज बलियापुर में सत्र 2015-17 की स्टूडेंट है।
कविता के पति निखिल सेना में हैं
कविता के पति निखिल सेना में हैं और अभी जम्मू-कश्मीर में तैनात हैं। पत्नी के प्रसव का समय नजदीक आने पर 27 जुलाई को वे धनबाद पहुंचे थे। निखिल ने बताया कि कविता फिलहाल अपने मायके झरिया के कुसमाटांड़ में रह रही है। वहीं के अस्पताल में उसकी डिलिवरी हुई। मुश्किल परिस्थिति के बावजूद वह साल बर्बाद नहीं करना चाहती थी। इसलिए बात माननी पड़ी।
जिंदगी के लिए जरूरी है दोस्तों का साथ
रेखा श्रीवास्तव
हमें अपने जीवन में कुछ रिश्ते जन्म के साथ ही मिल जाते हैं, और कुछ रिश्ते समाज या दुनियादारी के नाते हमें बड़े होने पर सौंप दिया जाता है। पर इस दुनिया में केवल एक ही रिश्ता है, जिसे हम चुनते हैं और हमें हमेशा उनकी जरूरत पड़ती है। जिस दिन हम अपने घर से पहला कदम स्कूल जाने के लिए निकालते हैं, तो सबसे पहले हमें परिवार के बाद एक महत्वपूर्ण रिश्ता मिलता है, जो जिंदगी भर खुशियां देता रहता है। वह रिश्ता है दोस्ती का।
दोस्ती ही एक मात्र ऐसा रिश्ता है, जिसमें कोई जाति, कोई धर्म या कोई अमीर-गरीब, काला-गोरा नहीं होता है। यह रिश्ता केवल सच्चे मन से होता है और एकदम खुलापन होता है। इस रिश्ते की मिठास जिंदगी भरी बनी रहती है। इस रिश्ते को खास महत्व देने के लिए अगस्त महीने के पहले रविवार को दोस्ती दिवस के रूप में मनाया जाता है। इस दिन की शुरुआत अगस्त महीने के आगमन से ही हो जाती है, और दोस्ती और प्यार की महक बिखरने लगी है। वातावरण में भी जैसे दोस्ती का खुमार महसूस होने लगा है। एक तरफ सावन की बहार, और दूसरी तरफ दोस्ती की खुशबू यानी पूरी तरह से माहौल खुशनुमा हो गया है।
दोस्ती का सिलसिला शुरू रखने के लिए इंटरनेट के युग में आजकल फेसबुक और व्हाट्सअप बहुत सक्रिय है। इसके अलावा स्कूल, कॉलेज, कार्यालय और आस-पास रहने वालों में से भी दोस्त की सूची घटती- बढ़ती रहती है। इसके अलावा रोज-रोज मिलने वाले अपरिचित भी कब हमारे दोस्तों की सूची में शामिल हो जाता है, पता ही नहीं चल पाता है। इस बारे में मैं एक बात बताना चाहती हूँ कि मेरी छोटी बेटी इति ने स्कूल जाना शुरू किया है, और रोज उसके नये दोस्त बन रहे हैं। वह छोटी सी बेटी शाम को अपने दोस्तों के नाम और उसके बारे में बताते हुए काफी खुश रहती है, ठीक इसी तरह हम अपने पूरे जीवन भर दोस्त की तलाश करते रहते हैं, और हमें हर पल एक नया दोस्त मिलता रहता है। उसमें से कुछ छूट जाते हैं और कुछ वास्तव में दोस्त बन कर हमारे जीवन में खुशियां बिखरने लगते हैं।
इस दोस्ती भरे माहौल में एक नयापन दिख रहा है, कि आजकल रक्षा बंधन की तरह यह भी रेशम के धागे से बांधा जा रहा है। स्कूल-कॉलेज के बच्चे फ्रेंडशीप बैंड एक-दूसरे की कलाई पर बांध कर दोस्ती दिवस मना रहे हैं। चॉकलेट, आइसक्रीम एक-दूसरे को खिलाकर दोस्ती जैसे रिश्ते को और मजबूत कर रहे हैं। दोस्ती के नाम पर अब लड़के-लड़कियों का भेद लगभग खत्म हो गया है। यह एक अच्छा संकेत है। रिश्ते में विश्वास और अपनापन भी बढ़ा है। पति-पत्नी के रिश्ते में भी दोस्ती की अहम भूमिका है। बल्कि अगर माँ-बेटा, पिता-बेटी, सास-बहू सहित सभी रिश्ते में अगर दोस्ती हो जाये, तब वह रिश्ता और भी मजबूत हो जायेगा।
(लेखिका वरिष्ठ पत्रकार हैं)
विद्यासागर विवि में प्रेमचंद जयंती पर विचार गोष्ठी एवं साहित्यिक प्रतियोगिता
मिदनापुर – विद्यासागर विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग की ओर से प्रेमचंद जयंती का आयोजन विभागीय कक्ष में किया गया। इस अवसर पर उद्घाटन गीत सुजाता सिंह ने प्रस्तुत किया। अध्यक्षीय वक्तव्य देते हुए प्रो. दामोदर मिश्र ने प्रेमचंद को भारतीय समाज का यथार्थवादी लेखक माना। प्रेमचंद ने अपना सारा जीवन साहित्य सृजन में लगाया। आज के संदर्भ में प्रेमचंद विषय पर रत्ना कुमारी, अमर सिंह, प्रियंका अग्रवाल, राफिया खातून, पंकज सिंह, चंदना मंडल, अनिल कु. सरोज, खूशबू यादव, सुजाता सिंह, बरखा देवी, प्रियंका गुप्ता ने अपने मत व्यक्त किया।
प्रेमचंद पर केन्द्रित साहित्य प्रश्न प्रतियोगिता में क्रमश: पहला स्थान मौसमी गोप, अनुराधा मनीषा घोष, दूसरा सुजाता सिंह, के. अनुशा राफिक और तीसरा स्थान सुषमा शर्मा, जी. स्वाती और प्रिया शर्मा को मिला।
आशु भाषण प्रतियोगिता में क्रमश: पहला, दूसरा एवं तीसरा स्थान मौसमी गोप, के अनुशा. एवं प्रियंका अग्रवाल को मिला।
संयोजक संजय जायसवाल ने कहा कि प्रेमचंद ने जीवन की समग्रता को कथा का आधार बनाते हुए नैतिक मूल्यों को जीवन और समाज में स्थापित करने का प्रयास किया। कार्यक्रम का सफल संचालन मौसमी गोप ने किया।
अगर तहेदिल से निभाना है दोस्ती का रिश्ता
आप चाहते हैं, कि आपका कोई बहुत अच्छा दोस्त हो, या आप किसी के खास दोस्त बन सकें, तो आपको कुछ विशेष बातों का ध्यान रखना चाहिए, जो आपकी दोस्ती की उम्र को बढ़ा देती हैं। जरूर पढ़ें यह खास बातें –
दोस्ती के लिए एक बात हमेशा पता होना चाहिए, कि यह रिश्ता विश्वास, प्यार, त्याग और शेयरिंग पर टिका होता है। अगर आप अपने अंदर इन खूबियों को महसूस करते हैं, तो बेशक आपकी दोस्ती लंबी चलने वाली है।
देने की कला होने के साथ, पाने की उम्मीद न रखना बहुत महत्वपूर्ण है। क्योंकि उम्मीद पूरी नहीं होने पर नकारात्मक भावना प्रबल हो जाती है। इसके लिए मानसिक रूप से हमेशा तैयार रहें।
खुद से ज्यादा दूसरों को अहमियत दें, इससे आप किसी के लिए में आसानी से जगह बना सकते हैं। इसके साथ ही न कहने का तरीका भी आना चाहिए।

मुस्कुराहट को अपने जीवन में स्थान दें। मुसकुराता चेहरा सभी को आकर्षित करता है, और दोस्ती करने के लिए प्रेरित करता है
दोस्ती निभाना और विश्वास को बनाए रखना महत्वपूर्ण है। अगर आपको यह कला आती है, तो खूबसूरत दोस्ती के लिए तैयाररहें।
अहम को त्यागकर, किसी की भावनाओं को समझना हर किसी के बस की बात नहीं होती। इसके लिए रिश्ता निभाने का जज्बा चाहिए।इस बात का ध्यान रहना चाहिए।
हर पल किसी की मदद के लिए तैयार रहना, ईश्वर का एक उपहार है। अगर आपको यह उपहार मिला है, तो उससे अपनी दोस्ती के रिश्ते के सजाएं।
सच्चा दोस्त अपने साथी को हर अच्छाई और बुराई के साथ स्वीकार करता है, आपमें भी यह गुण होन चाहिए, तभी आप एक अच्छे दोस्त बन सकते हैं।
सामने वाले के अच्छे गुणों की प्रशंसा की से प्रोत्साहित करना और अवगुणों को शालीनता के साथ समझाना, एक अच्छे दोस्त की पहचान होती है। अगर आप भी ऐसे हैं, तो बेहतर दोस्त हो सकते हैं।
हर हाल में दोस्त का साथ देना, और बुरे वक्त में उसका साथ न छोड़ना, यह काम एक सच्चा दोस्त ही कर सकता है। अगर आप यह कर सकते हैं, तो दोस्ती की दुनिया में आपका स्वागत है।
सही आहार से कम करें आर्थराइटिस का दर्द
आर्थराइटिस की वजह से होने वाला जोड़ों का दर्द रोगी के जीवन का ढर्रा ही बदल देता है। मगर अपने खानपान में कुछ परिवर्तन करके रोगी इस दर्द से काफी हद तक राहत पा सकता है। एक नजर डालते हैं ऐसे खाद्य पदार्थों पर, जो जोड़ों के दर्द में राहत प्रदान कर सकते हैं।
* फाइबर
आर्थराइिटस के कारण होने वाली जोड़ों की सूजन को कम करने में फाइबर की प्रचुरता वाला आहार कारगर हो सकता है। शोधों में पाया गया है कि भोजन में फाइबर की मात्रा बढ़ाने से शरीर में सी-रिएक्टिव प्रोटीन (सीआरपी) का स्तर घट जाता है। सीआरपी सूजन का सूचक होता है। फल और हरी सब्जियां फाइबर का श्रेष्ठ स्रोत होती हैं। खास तौर से गाजर, संतरे, स्ट्रॉबेरी का सेवन बढ़ाने से जोड़ों की सूजन में काफी लाभ होते पाया गया है।
अच्छी वसा
यह तो आप जानते ही होंगे कि सारी वसा स्वास्थ्य के लिए खराब नहीं होती। आर्थराइिटिस की सूजन को कम करने में ओमेगा-3 फैटी एसिड लाभदायक होते हैं। इन्हें मछली, अलसी, अखरोट, सोयाबीन, पालक आदि के माध्यम से लिया जा सकता है। इसके अलावा ऑलिव ऑइल भी फायदा दे सकता है। यह भी पाया गया है कि धीमी आंच पर, देर तक पकाया गया भोजन आर्थराइटिस के रोगियों के लिए, तेज आंच पर झटपट पकाए गए भोजन की तुलना में बेहतर होता है। कारण यह कि तेज आंच पर झटपट पकाए गए भोजन में ‘एडवांस्ड ग्लायकेशन एंड प्रोडक्ट्स” निर्मित हो जाते हैं, जो जोड़ों सहित पूरे शरीर में सूजन बढ़ाने का काम करते हैं।
* फूलगोभी, पत्तागोभी, ब्रॉकली आदि
फूलगोभी, पत्तागोभी, ब्रॉकली व इनसे मिलती-जुलती सब्जियों में मौजूद सल्फोराफेन नामक यौगिक ऑस्टियो आर्थराइटिस के कारण होने वाली कार्टिलेज (उपास्थि/ नर्म हड्डी) की क्षति को कम करता है।
* प्याज-लहसुन
प्याज, हरी प्याज और लहसुन में ‘डायएलाइल डायसल्फाइड” नामक यौगिक होता है, जो अन्य रोगों के अलावा आर्थराइटिस में भी लाभप्रद होता है। यह यौगिक कार्टिलेज को नुकसान पहुंचाने वाले एन्जाइम्स पर लगाम लगाता है और इस प्रकार जोड़ों में दर्द कम करने में योगदान करता है।
* अदरक
अदरक में दर्द व सूजन दूर करने के गुण होते हैं। इसका प्रभाव नॉन-स्टेरॉइडल एंटी-इंफ्लेमेट्री ड्रग्स से मिलता-जुलता होता है। हां, यदि आप रक्त को पतला करने वाली दवाई लेते हैं, तो अदरक का सेवन अपने डॉक्टर से पूछकर करें क्योंकि यह इस दवाई के कार्य को प्रभावित कर सकता है।
* हल्दी
हल्दी के फायदों की लंबी सूची में एक फायदा यह भी है कि इससे जोड़ों की सूजन व दर्द में राहत मिलती है। हल्दी में मौजूद करक्यूमिन जोड़ों की बीमारियों से संबद्ध सूजन को नियंत्रित करने में मददगार होता है।
* विटामिन-सी
विटामिन-सी में मौजूद एंटी-ऑक्सिडेंट्स ऑस्टियोआर्थराइटिस को तेजी से बढ़ने नहीं देते। इसलिए आर्थराइटिस के रोगियों को संतरे, टमाटर, अमरूद, स्ट्रॉबेरी, कीवी आदि का सेवन जरूर करना चाहिए।
* विटामिन-डी
शोध में पाया गया है कि आहार में विटामिन-डी का सेवन करने वाले लोगों में रूमेटॉइड आर्थराइटिस होने की संभावना कम हो जाती है और यह ऑस्टियो आर्थराइटिस की बढ़त को भी रोकता है। तैलीय मछलियों में विटामिन-डी पाया जाता है।
इसके अलावा कुछ डेयरी उत्पादों में भी प्रोसेसिंग के दौरान विटामिन-डी जोड़ा जा सकता है। मगर दिक्कत यह है कि खुद डेयरी उत्पाद आर्थराइटिस का दर्द व सूजन बढ़ा सकते हैं। इसलिए विटामिन-डी के लालच में इनका सेवन करना उल्टे नुकसान कर सकता है। बेहतर यही है कि विटामिन-डी को ध्ाूप के माध्यम से ही ग्रहण किया जाए।






