कोलकाता । रिंग्स ऑफ होप 25 कार्यक्रम में भवानीपुर एडुकेशन सोसाइटी कॉलेज के प्रतिभाशाली खिलाड़ियों को सम्मानित किया गया। जुबली हॉल में आयोजित स्पोर्ट्स फेलिसिटेशन सेरेमनी में दो सौ पचास खिलाड़ियों ने हिस्सा लिया। यह कार्यक्रम तीन अगस्त को दस बजे से दो बजे दोपहर तक चला। हुआ। रिंग्स ऑफ होप कार्यक्रम का का प्राथमिक उद्देश्य उन छात्र छात्राओं को सम्मानित करना है जिन्होंने विभिन्न खेल विषयों में उत्कृष्ट प्रदर्शन किए हैं ।खेल के क्षेत्र में युवा एथलीटों को प्रेरित करने के लिए इस कार्यक्रम में उन खिलाड़ियों को सम्मानित किया जिन्होंने राज्य, राष्ट्रीय और विश्वविद्यालय स्तर पर अपने संचालन, खेल कौशल और उपलब्धियों के माध्यम से शिक्षा संस्थान के लिए लगातार असाधारण स्तरों पर प्रदर्शन किया है । 30 से अधिक खेलों के एथलीटों को उनकी उपलब्धियों के लिए मान्यता प्रदान की गई । कई विद्यार्थियों ने राज्य और राष्ट्रीय टूर्नामेंट में हमारे कॉलेज का प्रतिनिधित्व किया है, और हमारी संस्था की खेल प्रतिष्ठा में योगदान दिया । मुख्य अतिथि, पूर्व क्रिकेटर और स्पोर्ट्सेन्थसिअस्ट, लक्ष्मी रतन शुक्ला ने प्रेरणादायक शब्दों द्वारा अपने वक्तव्य द्वारा छात्रों को और भी अधिक ऊंचाइयां प्राप्त करने के लिए प्रेरित किया। हमारे प्रबंधन के सदस्य उमेश खट्टर और जितेंद्र भाई शाह, उपस्थित थे, पुरस्कार विजेताओं को प्रोत्साहित और बधाई दे रहे थे। भवानीपुर कॉलेज के छात्र मामलों के रेक्टर और डीन प्रो दिलीप शाह की उपस्थिति में सभी खिलाड़ियों को सम्मानित किया गया, जिनका समर्थन खेल प्रतिभा के लिए महत्वपूर्ण है। इसके अतिरिक्त सभी विशेष खेल के प्रमुख कोच बास्केटबॉल – मनप्रीत सिंह ग्रेवाल; कबड्डी – स्वरुप घोष; क्रिकेट – सुनील पांडे; फुटबॉल – प्रताप सेनापती और चेस बॉक्सिंग – अशुतोष कुमार झा और कॉलेज के खेल अधिकारियों भाविन परमार और रूपेश गांधी ने खिलाड़ियों को सम्मानित किया । रिंग्स ऑफ होप पुरस्कार समारोह कड़ी मेहनत, लचीलापन और स्पोर्ट्समैनशिप की भावना का उत्सव रहा। इस कार्यक्रम ने पूरे छात्र छात्राओं के समुदाय को ही नहीं बल्कि शिक्षाविदों को भी एक्स्ट्रा करिकुलर और को-करिकुलर में उत्कृष्टता प्राप्त करने के लिए प्रेरित किया। इस कार्यक्रम का समापन जितेंद्र भाई शाह और उमेश खट्टर द्वारा धन्यवाद ज्ञापन के साथ हुआ। उमेश खट्टर ने सभी प्रतिभागियों, आयोजकों, मेहमानों, स्वयंसेवकों के प्रति आभार व्यक्त किया, जिन्होंने इस सम्मान समारोह को संभव बनाया। इस कार्यक्रम की जानकारी हिंदी मीडिया प्रभारी डॉ वसुंधरा मिश्र ने दी।
1 सितंबर से दिल्ली-वॉशिंगटन डीसी के लिए एयर इंडिया की उड़ान सेवाएं बंद
नयी दिल्ली । एयर इंडिया ने सोमवार को घोषणा की है कि वह 1 सितंबर से दिल्ली और वॉशिंगटन डीसी के बीच सीधी उड़ानें अस्थायी रूप से बंद कर रहा है। यह फैसला कुछ संचालन से जुड़ी वजहों के चलते लिया गया है ताकि एयर इंडिया अपने पूरे रूट नेटवर्क की विश्वसनीयता बनाए रख सके। यह सेवा रोकने का मुख्य कारण एयर इंडिया के बेड़े में विमान की अस्थायी कमी है। एयर इंडिया ने पिछले महीने 26 बोइंग 787-8 विमानों का रीफिटिंग (नई सजावट और सुविधाएं) कार्यक्रम शुरू किया है। इस बड़े बदलाव का मकसद यात्रियों को बेहतर अनुभव देना है, लेकिन इसके कारण कई विमान लंबे समय तक सेवा से बाहर रहेंगे। यह प्रक्रिया 2026 के अंत तक जारी रहेगी।
इसके अलावा, पाकिस्तान के हवाई क्षेत्र के अब भी बंद होने से लंबी दूरी की उड़ानों का रूट लंबा और जटिल हो गया है, जिससे संचालन में और दिक्कतें आ रही हैं। जिन यात्रियों ने 1 सितंबर 2025 के बाद वॉशिंगटन डीसी के लिए एयर इंडिया से टिकट बुक किए हैं, उन्हें एयर इंडिया की तरफ से संपर्क किया जाएगा। उन्हें अन्य विकल्प दिए जाएंगे, जिसमें दूसरी उड़ानों पर बुकिंग या पूरा रिफंड जैसा ऑप्शन शामिल है।
एयर इंडिया वॉशिंगटन डीसी के लिए सीधी उड़ान बंद कर रही है, लेकिन यात्री अब भी एयर इंडिया के चार अमेरिकी गेटवे (न्यूयॉर्क, नेवार्क, शिकागो और सैन फ्रांसिस्को) से एक स्टॉप के साथ यात्रा कर सकते हैं। इन रूट्स पर एयर इंडिया की साझेदारी अलास्का एयरलाइंस, यूनाइटेड एयरलाइंस और डेल्टा एयर लाइंस के साथ है, जिससे यात्रियों को एक ही टिकट और सीधे गंतव्य तक चेक-इन बैगेज की सुविधा मिलेगी।
एयर इंडिया अब भी भारत और उत्तरी अमेरिका के छह शहरों के बीच सीधी उड़ानें जारी रखेगी, जिनमें कनाडा के टोरंटो और वैंकूवर भी शामिल हैं। एयर इंडिया ग्रुप में एयर इंडिया (फुल-सर्विस इंटरनेशनल एयरलाइन) और एयर इंडिया एक्सप्रेस (लो-कॉस्ट रीजनल एयरलाइन) शामिल हैं। इसकी शुरुआत 1932 में जेआरडी टाटा ने की थी।
लोकसभा ने आयकर विधेयक को दी मंजूरी
-विपक्ष के हंगामें के बीच कई बिल पास
नयी दिल्ली । मानसून सत्र के 16वें दिन भी संसद के दोनों सदनों में विपक्ष का हंगामा जारी रहा। हालांकि, आज हंगामे के बीच ही गत 11 अगस्त को लोकसभा और राज्यसभा में कई विधेयक पारित किए गए। बावजूद इसके विपक्षी सांसदों का शोर शराबा जारी रहा जिसके कारण दोनों सदनों के कार्यवाही को स्थागित करनी पड़ी। विपक्ष के हंगामे के कारण सोमवार को लोकसभा की कार्यवाही दो बार के स्थगन के बाद मंगलवार सुबह 11 बजे तक के लिए स्थगित कर दी कई। वहीं, राज्यसभा में भी कुछ ऐसा ही हुआ। राज्यसभा में सोमवार को भारतीय जनता पार्टी एवं अन्य दलों के सदस्यों ने मणिपुर में शांति एवं स्थिरता कायम करने की आवश्यकता पर बल देते हुए कहा कि राज्य में आतंरिक रूप से विस्थापित हुए लोगों का पुनर्वास किया जाना चाहिए, वहीं बीजद ने राज्य को वित्तीय पैकेज देने की मांग की। लोकसभा ने सोमवार को आयकर संबंधी उस नए विधेयक को स्वीकृति प्रदान कर दी, जो आयकर अधिनियम, 1961 का स्थान लेगा। बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) और कथित ‘वोट चोरी’ के मुद्दे पर विपक्ष के सदस्यों की नारेबाजी के बीच वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने आयकर (संख्यांक 2) विधेयक, 2025 लोकसभा में पारित करने के लिए पेश किया, जिसे सदन ने ध्वनिमत से अनुमोदित किया। इस विधेयक में प्रवर समिति की लगभग सभी सिफारिशों को शामिल किया गया है। लोकसभा ने कराधान विधि (संशोधन) विधेयक, 2025 को मंजूरी दी, जिसका उद्देश्य एकीकृत पेंशन योजना के अंशधारकों को कर छूट प्रदान करना है।
संसद ने गोवा विधानसभा में अनुसूचित जनजाति (एसटी) समुदाय के लिए सीट आरक्षित करने के प्रावधान वाले एक अहम विधेयक को सोमवार को मंजूरी प्रदान कर दी। राज्यसभा ने इस विधेयक को संक्षिप्त चर्चा के बाद ध्वनिमत से पारित कर दिया। लोकसभा इसे पहले ही मंजूरी दे चुकी है। वाणिज्यिक जलपोतों के स्वामित्व की पात्रता मानदंडों और अंतरराष्ट्रीय व्यापार के अवसरों का विस्तार करने के प्रावधान वाले ‘वाणिज्य पोत परिवहन विधेयक, 2024’ को सोमवार को संसद की मंजूरी मिल गई। लोकसभा में यह विधेयक छह अगस्त को पारित किया गया था। राज्यसभा ने आज जब इस विधेयक को ध्वनिमत से मंजूरी दी, तब विपक्षी सदस्य बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण के मुद्दे पर चर्चा की अनुमति न दिए जाने और सदन में नेता प्रतिपक्ष मल्लिकार्जुन खरगे को बोलने का मौका न दिए जाने पर विरोध जताते हुए सदन से बहिर्गमन कर चुके थे। लोकसभा ने सोमवार को राष्ट्रीय खेल शासन विधेयक, 2025 तथा राष्ट्रीय डोपिंग रोधी (संशोधन) विधेयक, 2025 को पारित कर दिया और केंद्रीय युवा मामले एवं खेल मंत्री मनसुख मांडविया ने कहा कि ये विधेयक देश में एक पारदर्शी, जवाबदेह और विश्व स्तरीय खेल वातावरण के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे।
भारत बना अमेरिका का सबसे बड़ा स्मार्टफोन सप्लायर : अश्विनी वैष्णव
-11 वर्षों में उत्पादन 6 गुना बढ़ा
मुंबई। केंद्रीय रेल एवं आईटी मंत्री अश्विनी वैष्णव ने रविवार को कहा कि भारत, अमेरिका का सबसे बड़ा स्मार्टफोन सप्लायर बन गया है। बेंगलुरु में मेट्रो परियोजनाओं के उद्घाटन के अवसर पर, केंद्रीय मंत्री ने कहा कि पिछले 11 वर्षों में भारत का इलेक्ट्रॉनिक्स उत्पादन छह गुना बढ़कर 12 लाख करोड़ रुपये हो गया है। इसी अवधि के दौरान इलेक्ट्रॉनिक निर्यात आठ गुना बढ़कर 3 लाख करोड़ रुपये पर पहुंच गया है। वैष्णव ने टेक सप्लाई चेन में देश की मजबूत होती स्थिति पर कहा, “भारत दुनिया में मोबाइल फोन का दूसरा सबसे बड़ा निर्माता बन गया है।”
वित्त वर्ष 26 की पहली तिमाही में अमेरिका में आयात किए गए सभी स्मार्टफोन में भारत का हिस्सा 44 प्रतिशत था, जो पिछले वर्ष की इसी अवधि के केवल 13 प्रतिशत से एक बड़ी छलांग है।
चीन में असेंबल किए गए अमेरिकी स्मार्टफोन शिपमेंट में आई गिरावट का सबसे ज्यादा लाभ भारत ने उठाया है, जिसका मुख्य कारण एप्पल की ‘चाइना प्लस वन’ रणनीति है।
सरकारी आंकड़ों के अनुसार, भारत में अब 300 मोबाइल मैन्युफैक्चरिंग यूनिट्स हैं, जो 2014 में केवल दो थीं। वित्त वर्ष 14 में भारत में बिकने वाले 26 प्रतिशत मोबाइल फोन की ही स्थानीय स्तर पर मैन्युफैक्चरिंग की जाती थी, जो अब बढ़कर 99.2 प्रतिशत पर पहुंच गई है।
देश में बने मोबाइल फोन की वैल्यू वित्त वर्ष 14 के 18,900 करोड़ रुपये से बढ़कर वित्त वर्ष 24 में 4.22 लाख करोड़ रुपये हो गई है। भारत अब चीन और वियतनाम के साथ ग्लोबल इलेक्ट्रॉनिक्स मैन्युफैक्चरिंग में एक प्रमुख खिलाड़ी है, जहां कंपनियां सप्लाई चेन में विविधता लाने के लिए उत्पादन को स्थानांतरित कर रही हैं।
मोबाइल फोन का शुद्ध निर्यात वित्त वर्ष18 में 0.2 अरब डॉलर से बढ़कर वित्त वर्ष 25 में 24.1 अरब डॉलर हो गया।
बंगाल में आठ हजार से अधिक डाक्टरों व स्वास्थ्य कर्मियों की होगी भर्ती
कोलकाता। एक बार फिर डाक्टरों और स्वास्थ्य कर्मियों पर बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की ममता बरसी है। अधिकारिक सूत्रों ने बताया कि, विधानसभा चुनाव से पहले पश्चिम बंगाल सरकार ने आठ हजार से अधिक डॉक्टरों और स्वास्थ्यकर्मियों की नियुक्ति की करने का फैसला किया है। इस भर्ती की जिम्मेदारी वेस्ट बंगाल हेल्थ रिक्रूटमेंट बोर्ड को सौंपी गई है। आधिकारिक सूत्रों के अनुसार, एक हजार ८४८ पद डॉक्टरों के लिए होंगे। इनमें एक हजार २२७ पद जनरल ड्यूटी मेडिकल ऑफिसर और ६२१ पद स्पेशलिस्ट डॉक्टरों के लिए हैं। इन स्पेशलिस्ट पदों में ४७ असिस्टेंट प्रोफेसर के पद भी शामिल हैं। नर्सों के लिए कुल ५,०१८ पद निकाले गए हैं, जिनमें बेसिक बीएससी नर्सिंग के दो हजार ३३०, पोस्ट बेसिक बीएससी नर्सिंग के २५२, महिला जीएनएम के २,०९२ और पुरुष जीएनएम के ३४४ पद हैं। इसके अलावा ६०० से अधिक मेडिकल टेक्नोलॉजिस्ट, ३५० फार्मासिस्ट और ३१ रेडियोफिजिसिस्ट की नियुक्ति की जाएगी। साथ ही ऑडियोलॉजिस्ट, स्पीच पाथोलॉजिस्ट, फैसिलिटी मैनेजर, फार्मेसी कॉलेज, ड्रग लैब और नर्सिंग कॉलेजों के शिक्षकों के पद भी भरे जाएंगे। स्पेशलिस्ट डॉक्टरों के लिए एमडी या एमएस की डिग्री अनिवार्य होगी, जबकि कुछ पदों के लिए डीएम या एमसीएच जैसी सुपर स्पेशलाइजेशन डिग्री जरूरी होगी। असिस्टेंट प्रोफेसर के पदों में सबसे ज्यादा रिक्तियां जनरल मेडिसिन (४८), एनेस्थेसियोलॉजी (४७) और जनरल सर्जरी (४३) में हैं। ऑनलाइन आवेदन १३ अगस्त से शुरू होकर ३ सितंबर दोपहर दो बजे तक स्वीकार किए जाएंगे। आवेदन के साथ शैक्षणिक योग्यता, अनुभव और अन्य आवश्यक दस्तावेज जमा करने होंगे। राज्य सरकार का कहना है कि इस भर्ती से जिला और ग्रामीण अस्पतालों में स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार के साथ साथ मेडिकल कॉलेजों में शिक्षकों की कमी भी दूर होगी।
भारत से जुड़े कई रोचक तथ्य
आपको यह तो पता होगा की भारत 100 मिलियन वर्षो पहले एक द्वीप हुआ करता था। तक़रीबन 50-60 मिलियन साल पहले, भारत का एशियाई महाद्वीप से टकराव हुवा और इस तरह दुनिया की छत यानि हिमालय का जन्म हुआ। गज़ब तथ्य, है ना? भारत अपनी समृद्ध विरासत और संस्कृति के लिए प्रसिद्ध है। भारत की प्रतिभा यहाँ नहीं रुकती है। वास्तव में, भारत की समृद्धि इसके इतिहास, कला, प्राचीन तकनीकों, विज्ञान और बहुत कुछ के संदर्भ में अथाह है। भारत अनगिनत चीजों का आविष्कारक रहा है। आज हम आपको ऐसे ही 30 रोचक तथ्य बताएँगे भारत के विषय में।
1. दिमाग का खेल शतरंज भारत ने दुनिया को एक उपहार के रूप में दिया है। गुप्त साम्राज्य के दौरान लगभग 1500 साल पहले इसका आविष्कार किया गया था। इसे प्राम्भ में चतुरंग के नाम से जाना जाता है।
2. पुरे विश्व को स्वस्थ और तंदुरुस्त बनाने वाले योग का जन्म ईसा पूर्व 5 वीं शताब्दी के लगभग प्राचीन भारत में हुवा था। आज समस्त संसार के लोग योग के द्वारा अपने शरीर को स्वस्थ बना रहे है, क्यों है ना
3. समस्त विश्व में सबसे ज्यादा वर्षा वाली जगह भारत के मेघालय में स्थित “मॉनसिनराम” नामक गांव है। यह स्थान चेरापूंजी से 15 कि.मी. दूर है, इस गांव में हर साल औसतन 11,872 mm बारिश होती है, जिसकी वजह से यह धरती का सबसे नम स्थान भी है।
4. भारत एक विशाल राष्ट्र है, यहाँ सैकड़ो भाषाएं और बोलियाँ बोली जाती है, भारत में सबसे ज्यादा हिंदी भाषा का प्रयोग किया जाता है, किन्तु हिंदी के बाद सबसे ज्यादा अंग्रेजी का प्रयोग किया जाता है। भारत विश्व का 24वां देश हैं जहां सबसे ज्यादा अंग्रेजी बोली जाती है।
5. दुनिया के प्राचीन शहरों में से एक ‘काशी’ पवित्र गंगा नदी के तट पर स्थित है, बनारस या वाराणसी का पवित्र शहर सनातन काल से ही बसा हुवा है, इतिहासकारों की माने तो तक़रीबन 3-4 हजार वर्ष पहले यह शहर बसा था। किन्तु हिंदू पौराणिक कथाओं और ग्रंथो के अनुसार यह प्राचीन शहर भगवान शिव ने लगभग 5000 वर्ष पहले इस पवित्र शहर की नींव रखी थी।
6. सर्वधर्म एकता और मानवता का सन्देश देते हुवे भारत में स्वर्ण मंदिर में नस्ल, धर्म और वर्ग को किनारे करके प्रतिदिन 50 हजार से ज्यादा आगंतुकों को शाकाहारी भोजन कराता है। क्यों है ना गर्व करने वाली बात।
7. भारत में प्राचीन काल से ही में जल संचयन को महत्व दिया जाता था, और यहाँ जल संचयन की एक विकसित प्रणाली थी । इसके उदाहरण के रूप में आपको ‘कल्लनई बांध’ मिलता है, यह बांध दुनिया में चौथा सबसे पुराना बांध है। जो अभी भी सुचारु रूप से सही सलामत और कार्य कर रहा है। मौर्य सम्राटों के द्वारा 320 ई.पू. ‘सुदर्शन’ नामक एक कृत्रिम झील का निर्माण भी करवाया गया था। “चित्तौगढ़ किले” में करीब 50 हजार लोगो के लिए एक वर्ष तक पानी उपलब्ध रहे इतने तालाब और बावड़ियाँ बनी है।
8. प्राचीन खगोलशास्त्री और गणितज्ञ आर्यभट्ट ने सौर मंडल एवं चन्द्रमा की गणना को 499 ई में ही समझा दिया था । उनकी पुस्तक आर्यभटीय में विस्तार से सभी का उल्लेख है, और अन्य खगोलीय पिंडों की गति को दर्शाया गया है, जिनको आज हम पढ़ते है।
9. वर्तमान में तो शिक्षा के कई जरिये और संस्थाए बन गई है, लेकिन भारत में करीब 700 ईसा पूर्व ही विश्व का पहला विश्वविद्यालय ‘तक्षिला‘ बन गया था, जहाँ पढ़ने के लिए हजारों छात्रों विश्व भर से आते थे, और भारतीय संस्कृति की शिक्षा प्राप्त कर विश्व के कोने-कोने में फैलाते थे।
10. विश्व में सबसे बड़ा धार्मिक मेला “कुम्भ” भी भारत में ही भरता है, वर्ष 2011 में कुंभ मैले में 75 मिलियन से ज्यादा तीर्थयात्रियों जमा हुवे थे । कहते है की यह संख्या इतनी अधिक थी की अंतरिक्ष से भी कुम्भ की भीड़ दिखाई दे रही थी।
11. भारत दुनिया का पहला देश है, जिसके ‘चीनी’ उत्पादन और उसके शुद्विकरण की तकनीक का विकास किया था। बाद में हमसे विश्व के कई दूसरे देशों ने यहाँ आकर इस तकनीक को सीखा है।
12. मैग्नेटिक हिल लद्दाख की एक पहाड़ी है, जहाँ पर गुरुत्वाकर्षण के विपरीत चीजें होती है। इस जगह पर आप सड़क पर अपनी गाड़ी रोकिये और उसको न्यूट्रल कर दे, आप देखंगे की आपकी गाड़ी ऊंचाई की तरफ जाने लगेगी सिवाय ढलान में जाने के।
13. विश्व का सबसे ऊँचा पूल ‘बेलीपुल’ भारत के हिमाचल पर्वत में द्रास और सुरु नदियों के बीच लद्दाख घाटी में बना हुवा है। इसका निर्माण अगस्त 1982 में भारतीय सेना द्वारा किया गया था।
14. विशाल देश भारत में डाकघरों का बहुत बड़ा जाल मौजूद है, भारत में करीब 1,55,015 डाकघर बने हुवे है। इनमे सबसे अलग डाकघर श्रीनगर की डल झील में बना डाकखाना है। यह एक बड़ी नाव में तैरता हुवा डाकखाना है इसकी शुरुआत साल 2011 में की गई थी
15. प्राचीनकाल से ही भारत में महिला सशक्तिकरण को विशेष महत्त्व दिया जाता था, यहाँ महिलाएं खुलकर उन सभी मुद्दों पर बात कर सकती थी, जिन्हे आज हम सार्वजानिक रूप में बात करने से कतराते है। भारत में महिलाओं को अपना जीवन साथी चुनने “स्वयंवर” का अधिकार प्राप्त था।
16. भारत के आश्चर्यो में देखें तो यहाँ साप-सीढ़ी का खेल, सतरंज यानि चतुरंग, बटन का अविष्कार, शैंपू की खोज,संख्या पाई की गणना, हीरा उत्पादन, शून्य की खोज, बीजगणित की गणना, त्रिकोणमिति के साथ-साथ चंद्रमा पर पानी की मौजूदगी को दर्शाना। क्यों आपको गर्व नहीं है की आप भारतीय हो।
17. प्राचीन भारत की सिंधु घाटी सभ्यता विश्व की तीन सबसे पुरानी सभ्यताओं में से एक थी, यह सभ्यता 1300 ई.सा पूर्व तक अस्तित्व में थी। यहाँ के लोगों का बौद्धिक विकास बहुत अधिक था। इस सभ्यता के लोगों का जीवन स्तर उच्य कोटि का था। उन्होंने कपास से रुई निकाली, जस्ता खनिज निकाला, स्टेपवेल (बावडिया) का निर्माण किया, सीवरेज और ड्रेनेज सिस्टम का उच्य स्तर पर निर्माण करवाना क्यों है न गज़ब।
18. आज क्रिकेट का दीवाना कौन नहीं है, हिमाचल प्रदेश की एक जगह “चायल” यह ऐसा स्थान है, यहाँ पर 2,444 मीटर के ऐल्टिट्यूड पर यह पूरी दुनिया का सबसे ऊंचा क्रिकेट ग्राउंड बना है। जहां एक मिलिट्री स्कूल भी है। इसे साल 1893 में बनाया गया था
19. आज हम जगह-जगह मार्बल और ग्रेनाइट के महल देखते है, बड़े-बड़े किलों में इनकी कारीगरी देखते है, जो देखने में अतिसुन्दर प्रतीत होते है, लेकिन विश्व में पहला ग्रेनाइट का मंदिर ब्रिहदेश्वरा मंदिर तमिल नाडू में 11वी शताब्दी में बना था। इसके निर्माण में 5 वर्ष लगे थे।
20. वर्तमान में डाक्टरों ने चिकित्सा पद्दति में बहुत महारथ प्राप्त कर ली है, किन्तु भारत मे 2600 वर्ष ई. पू. ही शल्य चिकित्सा का अविष्कार हो चूका था, इसका प्रमाण प्राचीन ग्रंथो में मिलता है, की हमारे चिकित्सक मोतियाबिंद, हड्डी जोड़ने और पथरी निकलने जैसी जटिल शल्य चिकित्सा करते थे, क्यों है ना गजब।
21. देशभक्ति और देश सेवा की भावना हर भारतीय के मन में कूट-कूट कर भरी है, लेकिन उत्तरप्रदेश के जौनपुर जिले में एक छोटा सा गाँव है माधोपट्टी उस गाँव के लोगों ने इस भावना को अपना सबकुछ माना है, क्योंकि यकीन मानिये इस छोटे से गाँव में 50 से अधिक आईएएस – आईपीएस और अन्य सिविल सेवा में अधिकारी है, क्यों है ना गजब तथ्य।
22. वर्तमान में हर कोई पैसो के पीछे दीवाना है, लेकिन क्या आपको है की जब भारत आजाद हुवा और हमारे देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेंद्रप्रसाद की नियुक्ति हुई थीं, तब उन्होंने अपनी तनख्वाह का आधा भाग ही लिया था, उन्होंने कहाँ की उनको इतने ही पैसो की आवश्यकता है। उनके 12 वर्ष के लम्बे कार्यकाल के अंत में उन्होंने अपनी आय का केवल 25% लिया था। उस समय राष्ट्रपति का वेतन 10,000 रूपए होता था।
23. आज हम बड़े-बड़े जहाज देखते है, इनका आकार इतना बड़ा भी होता है की पूरा एक गाँव समा जाये, किन्तु विश्व में पहली बार नौकायन की कला का अविष्कार भारत में लगभग 6000 हजार वर्ष पूर्व महान सिंधु घाटी सभ्यता में हुवा था, क्यों है ना गजब।
24. भारत सनातन काल से ही समृद्ध देश रहा है, पूरी दुनिया के कुल सोने का 11 प्रतिशत सोना तो भारत की महिलाओं के पास ही है, और 1986 तक आधिकारिक तौर पर केवल भारत में ही हीरा निकलता था।
25. आज हम चन्द्रमा और मंगल गृह तक की यात्रा कर चुके है, लेकिन भारत की इसरो ने अपना पहला रॉकेट 1963 में त्रिवेंद्रम की एक जगह थुम्बा में एक चर्च से अपना पहला रॉकेट लाँच किया है, रॉकेट को साईकिल पर इस लांचिग पेड पर लाया गया था। आज हम इस को विक्रम साराभाई स्पेस सेंटर के नाम से जानते है, क्यों है ना गजब।
26. इंटरनेट की इस दुनिया में कंप्यूटर और सॉफ्टवेयर का बोलबाला है, इसी प्रतिस्पर्धा में आज भारत भी किसी अन्य देश से पीछे नहीं है, आज भारत करीब 90 से अधिक देशों में अपने यहाँ बने सॉफ्टवेयर निर्यात करता है।
27. भारत हमेशा से ही कृषि प्रधान और पशु-पालन में अग्रणी देश रहा है, पुरे विश्व में सबसे अधिक दुग्ध उत्पादन भारत में ही होता है, यहाँ करीब 150 मिलियन टन दुग्ध उत्पादन होता है, जो की एक विश्व रिकार्ड है, जो 2015 में बना था।
28. राजस्थान के बीकानेर जिले में एक स्थान है देशनोक यहाँ ही स्थित “श्री करणी माता” के मंदिर में आपको सैकड़ो चूहे देखने को मिल जायेंगे, इनकी संख्या इतनी ज्यादा है की आप मंदिर में पैर उठा के नहीं चल सकते हे, इसलिए इस प्रसिद्ध मंदिर को चूहों का मंदिर भी कहाँ जाता है क्यों है ना आश्चर्जनक।
29. भारत का विज्ञान प्राचीन काल से अच्छा रहा है, उसके कुछ उदहारण आपको ऊपर पढ़ने को मिल जायेंगे लेकिन इसका जीता जागता उदहारण है, जयपुर में बना जंतर-मंतर यह दुनिया की सबसे बड़ी पत्थर से बनी वैधशाला है, इसका निर्माण सवाई जयसिंह जी ने 1727 ई. में करवाया था। यह वैधशाला सटीक मौसम और ग्रहों की स्थिति को दर्शाती है।
30. उत्तर भारत में बहुत से किले और गढ़ बने हुवे है, यह सभी किले भारत की उत्तरी सीमा की लुटेरों से रक्षा करते थे। इन्ही किलों में से एक है राजस्थान के जैसलमेर में बना हुवा “सोनार किला” इस किले का आकार बहुत बड़ा है, सबसे बड़ी बात यह किला आज भी पूर्ण रूप से बसावट को लिए हुवे है, समस्त जैसलमेर शहर की 25% आबादी आज भी इस किले में रहती है क्यों है ना आश्चर्यचकित ।
देवघर के बाबा बैद्यनाथ धाम में 53.91 लाख से अधिक श्रद्धालुओं ने किया जलार्पण
रांची । देवघर के विश्व प्रसिद्ध बाबा बैद्यनाथ धाम में श्रद्धालुओं की भीड़ कम होने का नाम नहीं ले रही है। बैद्यनाथ धाम में श्रद्धालुओं का सैलाब लगातार उमड़ रहा है। शुक्रवार तड़के 04:09 बजे से मंदिर का पट खुलते ही जलार्पण शुरू हो गया। सभी श्रद्धालुओं को बीएड कॉलेज से तिवारी चौक, शिवराम झा चौक, नेहरू पार्क, क्यू कॉम्प्लेक्स होते हुए जिला प्रशासन की ओर से कड़ी सुरक्षा के बीच जलार्पण कराया जा रहा है। सभी कांवड़िए कतारबद्ध होकर बाबा का जयघोष करते हुए जलार्पण कर रहे है। कांवड़िये सुल्तानगंज से जल लेकर 105 किलोमीटर की पैदल यात्रा कर देवघर के बाबा बैद्यनाथ धाम पहुंचकर जलार्पण करते हैं। जिला प्रशासन के अनुसार सावन मेला में अब तक कुल 53 लाख 91 हजार 871 से अधिक श्रद्धालुओं ने बाबा बैद्यनाथ पर जर्लापण किया है। देश के हर कोने और विदेश से भी भक्त भोलेनाथ को जलार्पण करने आ रहे हैं। उपायुक्त नमन प्रियेश लकड़ा और पुलिस अधीक्षक अजित पीटर डुंगडुंग मंदिर परिसर और रूट लाइन का जायजा ले रहे हैं। एसपी ने बताया कि मंदिर और मेला क्षेत्र में कुल 564 मजिस्ट्रेट और 9650 पुलिस बल की तैनाती की गई है। साथ ही सीआरपीएफ की चार कम्पनी, दो एसपी, एनडीआरएफ की टीम को लगाया गया है। उपायुक्त ने बताया कि मेला में 101 स्थानों पर श्रद्धालुओं के आवासन की व्यवस्था की गयी है। मेला में कुल 81चिकित्सकों और पारा 449 मेडिकल स्टाफ को लगाया गया है। श्रद्धालुओं के लिए 50 एम्बुलेंस लगाए गए हैं। अब तक मंदिर को 7,36,44,295 रूपये आय के रूप में प्राप्त हुए हैं। मंदिर और मेला क्षेत्र की निगरानी के लिए 765 सीसीटी कैमरा, 200 एआई कैमरा और 10 ड्रॉन कैमरा कार्यरत हैं। वहीं, इस श्रावणी मेला में ऑनलाईन चैट बोर्ड क्यूआर कोड से प्राप्त 782 शिकायतों का निष्पादन किया गया।
अमेरिका ने भारत पर लगाया 25 प्रतिशत अतिरिक्त कर
– कुल 50 प्रतिशत हुआ टैरिफ
-भारत ने जताया था विरोध
वॉशिंग्टन । ट्रंप की तरफ से बुधवार शाम को भारत पर अतिरिक्त 25 प्रतिशत टैरिफ लगाने का कार्यकारी आदेश साइन किया गया है। अमेरिका की तरफ से कहा गया कि यह फैसला भारत द्वारा रूसी तेल की लगातार खरीद के जवाब में लिया गया है। इसके साथ ही भारत पर अमेरिका ने कुल 50 प्रतिशत टैरिफ की घोषणा कर दी है। बता दें कि एक अगस्त को ही अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारतीय आयात पर 25 प्रतिशत टैक्स लगाने के अध्यादेश पर हस्ताक्षर किए थे। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने बुधवार को एक कार्यकारी आदेश जारी कर भारत से आने वाले सामानों पर 25% अतिरिक्त टैरिफ लगा दिया, जिसमें कहा गया कि भारत प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से रूसी तेल का आयात करता है।हाल ही में एक अमेरिकी चैनल को दिए साक्षात्कार में ट्रंप ने कहा था कि भारत सबसे ज्यादा शुल्क लगाने वाला देश है। हम भारत के साथ बहुत ही कम कारोबार करते हैं, क्योंकि वह काफी ज्यादा शुल्क लगाता है। भारत एक अच्छा कारोबारी साझेदार देश नहीं है। वह हमारे साथ बहुत कारोबार करता है, लेकिन हम उसके साथ कारोबार नहीं करते। इसलिए ही हमने उन पर 25 प्रतिशत टैक्स लगाने का फैसला किया। कुछ दिन पहले ट्रंप ने सोशल हेंडल ट्रुथ पर लिखा था कि भारत रूस की युद्ध मशीनरी को ईंधन दे रहा है। मैं इससे खुश नहीं हूं। इस पर भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने कहा था कि अमेरिका रूस से अभी भी यूरेनियम और पैलेडियम खरीद रहा है। ऐसे में भारत को निशाना बनाना ठीक नहीं है।
कई दुर्गा पूजा समितियों ने ममता सरकार की आर्थिक सहायता ठुकराई
-आरजी कर पीड़िता को न्याय देने की मांग
कोलकाता । पश्चिम बंगाल में आर.जी. कर मेडिकल कॉलेज की महिला डॉक्टर के साथ दुष्कर्म और हत्या की घटना को एक वर्ष से अधिक समय बीत चुका है, लेकिन पीड़िता और उसके परिवार को अब तक न्याय नहीं मिला है। इस मामले में न्याय की मांग को लेकर राज्य के कई सामुदायिक दुर्गा पूजा समितियों ने इस बार भी राज्य सरकार की ओर से दी जाने वाली वार्षिक आर्थिक सहायता लेने से साफ इनकार कर दिया है। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने पिछले सप्ताह घोषणा की थी कि इस वर्ष प्रत्येक सामुदायिक दुर्गा पूजा समिति को दी जाने वाली वार्षिक सहायता राशि बढ़ाकर 1.10 लाख रुपये कर दी जाएगी, जो पिछले वर्ष 85 हजार रुपये थी। लेकिन इस घोषणा के कुछ ही दिनों बाद नदिया जिले के रानाघाट स्थित ‘चारेर पल्लि सर्वजनिन दुर्गा पूजा समिति’ और दक्षिण 24 परगना के जयनगर की ‘7 एंड 14 पल्लि सर्वजनिन दुर्गा पूजा समिति’ ने स्पष्ट कर दिया कि वे यह राशि स्वीकार नहीं करेंगे। दोनों समितियों के आयोजकों का कहना है कि जब तक आर.जी. कर पीड़िता और उसके माता-पिता को न्याय नहीं मिल जाता, तब तक वे किसी भी तरह की सरकारी सहायता नहीं लेंगे। इन समितियों ने पिछले वर्ष भी 85 हजार रुपये की सरकारी सहायता को अस्वीकार कर दिया था, जब पूरे राज्य में इस जघन्य अपराध को लेकर विरोध प्रदर्शन हो रहे थे। ‘7 एंड 14 पल्लि सार्वजनिन दुर्गा पूजा समिति’ के आयोजक तुषार रॉय ने कहा कि 1.10 लाख रुपये की राशि उनके लिए मायने रखती है, क्योंकि इससे पूजा के आयोजन में काफी मदद मिल सकती है, लेकिन समाज का हिस्सा होने के नाते उनका फर्ज है कि वे न्याय की मांग से पीछे न हटें। उन्होंने बताया कि समिति के सदस्यों ने सर्वसम्मति से निर्णय लिया है कि पूजा के खर्चों में कटौती कर वे बिना सरकारी सहायता के ही कार्यक्रम करेंगे। वहीं, रानाघाट (उत्तर-पूर्व) विधानसभा क्षेत्र के भाजपा विधायक और ‘चारेर पल्लि सर्वजनिन दुर्गा पूजा समिति’ के प्रमुख आयोजक पार्थ सारथी चटर्जी ने कहा कि यह सरकार महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित नहीं कर पा रही है, राज्य के कर्मचारियों को महंगाई भत्ता देने में विफल है और युवाओं को रोजगार देने की स्थिति में भी नहीं है। ऐसे में, इस सरकार से दान स्वीकार करना न केवल अनुचित है बल्कि दुर्गा पूजा जैसी हमारी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत का भी अपमान है।
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पराक्रमी बाजीप्रभु देशपांडे, जो शिवाजी की रक्षा करते हुए बलिदान हुए..
बाजी प्रभु देशपांडे का जन्म चंद्रसेनीय कायस्थ प्रभु वंश के एक परिवार में वर्तमान पुणे क्षेत्र के भोर तालुक में मावळ प्रांत में हुआ था। बाल्यकाल से ही उनके हृदय में भारतवर्ष से बाहरी मुग़ल हमलावरों को नेस्तनाबूत कर बाहर का रास्ता दिखा देने का जज़्बा था और शिवाजी की सेना में एक अभिन्न हिस्सा बनकर कार्य करना उनके इसी स्वप्न को वास्तविकता में बदलने वाला था। यही नहीं, स्वयं शिवाजी ने भी बाजी प्रभु के अभूतपूर्व उत्साह और सामरिक सूजबूझ को देखते हुए उन्हें अपनी सबल सेना के दक्षिणी कमान को सौंपा, जो की आधुनिक कोल्हापुर के इर्द गिर्द उपस्थित था।
शिवाजी का साथ
बाजी प्रभु देशपांडे ने आदिलशाही नामक राजा के सेनापति अफ़ज़ल ख़ान को शिकस्त देने में अत्यंत ही अहम भूमिका अदा की थी। छत्रपति शिवाजी अफ़ज़ल ख़ान से अपने होने वाले द्वंद्व युद्ध के अभ्यास के लिए एक अति बलवान और अफ़ज़ल जितने ही लम्बे चौड़े प्रतिद्वंदी को ढूँढ रहे थे और यहीं पर बाजी प्रभु अपने साथ सूरमा मराठा योद्धाओं की एक खेप लेकर आये, जिनमें विसजी मुरामबाक भी था, जो अपनी कद काठी में अफ़ज़ल ख़ान जितना ही विशालकाय था। शिवाजी और बाजी प्रभु के नेतृत्व में मराठा सेनाओं ने अपनी कूटनीतिक और सामरिक चातुर्य से अफज़ल खान को मृत्यु के द्वार पहुँचा दिया और इस प्रबल जोड़ी ने आदिलशाह की अति विशाल सेनाओं तक की नाक में दम कर दिया। वस्तुतः मराठा सेनाएं अपनी छापामार और घात लगाकर वार करने की क्षमता के कारण युद्धभूमि में इस्लामी हमलावरों के खिलाफ बेहद ही सफल रही। साथ ही, आदिलशाह जैसे अनेकों मुग़ल और मुसलमान शासकों पर समूल विध्वंस कर देने वाले आक्रमणों के द्वारा मराठा सेनाओं ने अपने वर्षों से ज्वलंत स्वप्न को पूर्ण किया और इन शासकों द्वारा भारतवर्ष के मूल निवासी हिन्दू जनसंख्या पर किये गए अत्याचारों का भरपूर उत्तर दिया।
पन्हाला दुर्ग पर आदिलशाह का आक्रमण
इन दिनों शिवाजी ने अपनी सेना को पन्हाला क़िले के इर्द-गिर्द इकठ्ठा कर लिया था। आदिलशाह को किसी तरह खबर मिल गयी। उसने तुरंत अपनी एक विशाल सेना के द्वारा पन्हाला क़िले के समीप एक तीव्र हमला बोल दिया। हमला इतना भीषण था कि मराठा सेना को भारी नुकसान का सामना करना पड़ा। वहां से निकलकर बचना शिवाजी के लिए अति महत्वपूर्ण हो गया था। युद्ध कई माह तक चलता रहा। आदिलशाह का प्रबल सेनापति सिद्दी जोहर अपनी जेहादी सेनाओं के द्वारा खूब कहर बरपा रहा था और उसने काफ़ी सफलता भी हासिल की, जब उसने मराठा सेनाओं की रसद और संपत्ति को नष्ट कर दिया।
हमले को नाकाम करने के सभी उपाय विफल हुए जा रहे थे। शिवाजी के कुशल सेनापति नेताजी पालकर ने भी हर संभव प्रयास किया। अंततः शिवाजी ने एक अति गोपनीय विकल्प चुना। उन्होंने अपने एक वकील को सिद्दी जोहर के पास इस करार को लेकर भेजा कि हम एक ससमझौता करने के लिए तैयार हैं। यह सुनते ही आदिलशाह की सेनाओं ने कुछ हल्का रुख इख्तियार करा और महीनों से चल रहे संग्राम में एक अल्प विराम तो लग ही गया। दरअसल यह शिवाजी की पन्हाला क़िले से अपनी सेनाओं को सुरक्षित बचा लाने की रणनीति का हिस्सा थ। आदिलशाह की दस हज़ार सैनिकों की जेहादी सेना से बचना एक जटिल कार्य था।
इसी योजना के अंतर्गत गुरु पूर्णिमा या आषाड़ व्याध पूर्णिमा की एक रात्रि को 600 बेहद ही चुनिंदा और सक्षम योद्धाओं की टोली को लेकर शिवाजी और बाजी प्रभु इस योजना को अंजाम देने के लिए निकल चले। वे दो गुटों में बंटे। एक छद्म गुट की अगुवाई शिवाजी के हमशक्ल शिवा नवी कर रहे थे और दूसरे की खुद शिवाजी महाराज जिसमें बाजी भी थे। मुग़ल सेना ने शिवा नवी की सेना पर आक्रमण कर अपनी सारी क्षमता और ऊर्जा उस दिशा में ही लगा दी। आदिलशाह की जेहादी सेनाओं ने शिवा नवी को अगुवा कर लिया और उनका शीर्ष मर्दन कर दिया। शिवा नवी के इस महान् बलिदान के कारण शिवाजी महाराज और बाजी प्रभु द्वारा संचालित डालों को अपनी मुहीम के लिए और अधिक समय मिल गया।
इस छद्मावरण का पता चलते ही मुग़ल सेनाएं छटपटा कर अपने बाल नोचने लगीं और असली शिवाजी की तलाश में निकल पड़ी। परन्तु तब तक शिवाजी और उनकी सेनाएं पुरजोर लगाकर वहाँ से जितनी दूर हो सके निकल चुकी थी। मुग़लों की 4000 सैनिकों की फ़ौज को चकमा देते हुए सेना के अश्वों का दौड़-दौड़ कर जब सारा बल समाप्त होने की कगार पर ही था, तभी वे घोड़े कीन्द दर्रे के पार पहुँच गए, जिससे बाद में शिवाजी ने पावन कीन्द का नाम दिया और यही वह ऐतिहासिक पल था, जब बाजी प्रभु ने अपने ऊपर मुग़लों को पूरी तरह से धूल चटाने की ज़िम्मेदारी ली। उन्होंने अपने साथ कुछ 300 मराठा सैनिकों को लिया और शिवाजी महाराज से आगे बढ़ने के लिए कहा। इस प्रकार वे मुग़लों से लड़कर शिवाजी और उनकी बची हुई सेना को सकुशल विशालगढ़ क़िले तक पहुँचाने में मददगार रहे। शिवाजी यह सुनकर बाजी प्रभु की वीरता से स्तब्ध रह गए और अनमने भाव से अपनी सेना के साथ विशालगढ़ की ओर चल दिए।
कीन्द में मराठा सूरमाओं ने अपने जौहर का वह सैलाब बरपाया, जिसका इतिहास साक्षी है। हर हर महादेव की प्रचंड हुंकारों के साथ ही मराठा सेना भूखे शेरों की तरह मुग़लों पर टूट पड़ी। बाजी प्रभु की सेना की संख्या बहुत ही अल्प थी। मुग़ल सेना का सिर्फ एक सौवां हिस्सा। हर तरफ़ भीषण नरसंहार का मंज़र फ़ैल चूका था। जिहादी अपने आक्रमणों में बर्बरता का उपयोग करे जा रहे थे। पर बाजी प्रभु देशपांडे उस वीरता की परम गाथा का नाम है, जो की शत्रु की रह में एक भीमकाय चट्टान की तरह खड़े रहे। उन्होंने दोनों हाथों में एक तलवार ली और अपनी पूर्ण शक्ति से मुग़लों को मौत के घात उतारते रहे। शीघ्र ही उनके तन पर चोटों और घावों की संख्या इतनी बढ़ गयी कि ऐसा लगने लगा मानो कभी भी उनके प्राण तन को त्याग सकते हैं, परन्तु अपने मनो-मस्तिष्क की असीम गहराइयों में समाये उस विश्वास और शक्ति के चलते वे अपनी अंतिम सांस तक लड़ते रहे और जिहादी मुग़लों को छठी का दूध याद दिला दिया। उनका शरीर रक्त से लथपथ और तलवारों और भालों के घावों से छलनी हो गया था। पर वे डटे रहे। वे तब तक डटे रहे, जब तक उन्होंने उन तीन तोपों के दागे जाने की ध्वनि नहीं सुन ली जो शिवाजी के विशालगढ़ क़िले में सुरक्षित पहुँच जाने के चिन्ह के रूप में पूर्व निर्धारित की गई थी।
उधर शिवाजी महाराज की सेना को भी विशालगढ़ में पहले से मौजूद एक और मुग़ल सरदार की सेना का सामना करना पड़ा। उनसे जूझते हुए लगभग सुबह ही हो चली थी और सूर्योदय तक आखिरकार शिवाजी ने उन तीन तोपों को दाग दिया जो बाजी प्रभु को एक इशारा थी। बाजी प्रभु यद्यपि तब तक जीवित तो थे, परन्तु लगभग मरणासीन हो चुके थे। उनके सभी साथी सैनिक हर हर महादेव का उद्घोष करते हुए बाजी प्रभु देशपांडे को उठाकर दर्रे के पार पहुँच गए। परन्तु तभी, एक वीर, विजयी मुस्कान के साथ बाजी ने अपनी अंतिम सांस ली और परमात्मा में लीन हो गए। इसी के साथ भारतीय इतिहास के पन्नों पर वीर बाजी प्रभु देशपांडे का नाम कभी ने मिट सकने वाली स्याही से अंकित हो गया। उनका स्वर्णिम बलिदान भारतीय स्वराज की ओर उठे सबसे पहले कदमों में से एक था। देशभक्ति ही नहीं, यह सम्पूर्ण मानव जाति के लिए परिस्थितियों के झुकने वाले जज़्बे का एक दिल दहला देने वाला प्रमाण था।
बाजी प्रभु देशपांडे की वीरगति का समाचार सुनकर शिवाजी का हृदय भर आया। बाजी प्रभु को एक भाव भीनी श्रद्धांजलि देते हुए उन्होंने घोड़ कीन्द दर्रे का नाम पावन कीन्द रखा, जो दर्शाता था कि बाजी प्रभु के रक्त से वह पावन हो चुका था।
(साभार – विकिपीडिया)