सृजन सारथी सम्मान -2023 से सम्मानित किये गये डॉ. एस. आनंद
हर दिल के चहेते थे अटल जी
अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त पं. विजयशंकर मेहता “डॉ. हेडगेवार प्रज्ञा सम्मान’ से समादृत
नेफ्रोकेयर इंडिया का ‘ए वॉक फॉर योर किडनी’ अभियान
कोलकाता । नेफ्रोकेयर कीऔर से ‘ए वॉक फॉर योर किडनी’ नामक वॉकथॉन का आयोजन किया गया। एक ऐसा वॉकथॉन, जिसमें लगभग 400 प्रतिभागियों के साथ-साथ मशहूर हस्तियां इसमें शामिल हुए। इस दौरान उन्होंने इस स्वस्थ अभ्यास के प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए अपने कदम से कदम मिलाया। यह वॉकथॉन नेफ्रोकेयर से शुरू होकर होटल गोल्डन ट्यूलिप पर खत्म हुई। इस कार्यक्रम में कई प्रतिष्ठित हस्तियों ने भाग लिया। जिसमे नेफ्रो केयर के संस्थापक और निदेशक डॉ. प्रतीम सेनगुप्ता, नंदिता रॉय (फिल्म निर्माता), शिवप्रसाद मुखर्जी (निदेशक), देबाशीष दत्ता (सचिव मोहन बागान क्लब), गोल्डन ट्यूलिप होटल के निदेशक आशीष मित्तल के अलावा कई अन्य प्रतिष्ठित हस्तियां इसमें शामिल हुए। नेफ्रो केयर के संस्थापक और निदेशक, नेफ्रोलॉजिस्ट डॉ. प्रतीम सेनगुप्ता ने कहा कि हमारा दृढ़ विश्वास है कि प्रतिदिन 30 मिनट की तेज सैर हमारी कई स्वास्थ्य समस्याओं का समाधान कर सकती है। नेफ्रोकेयर इंडिया की इस दूसरी वर्षगांठ पर हम देश भर में अपनी उपस्थिति का विस्तार करके और आने वाले वर्षों में करीब दस लाख लोगों तक पहुंचने के लिए 300 व्यापक और समग्र किडनी देखभाल इकाइयों की स्थापना करके किडनी को स्वास्थ्य और सुनिश्चित करने के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को उजागर करना चाहते हैं। “नेफ्रो केयर इंडिया में हम बीमारी के इन सभी पहलुओं का वैज्ञानिक रूप से विश्लेषण करते हैं और रोगी को समग्र चिकित्सा देखभाल प्रदान करते हैं। एडवांस्ड रीनल केयर इंस्टीट्यूट, जिसकी स्थापना प्रसिद्ध नेफ्रोलॉजिस्ट और अवार्डी, डॉ. प्रतीम सेनगुप्ता ने की थी। स्वास्थ्य किडनी की देखभाल पर ध्यान देने की आवश्यकता और इससे जुड़ी विसंगतियों का शीघ्र पता लगाने के लिए नियमित परीक्षण करने का महत्व और किडनी से संबंधित किसी भी समस्या के समाधान के लिए समग्र उपचार करने का के बारे में लोगों को जागरूक किया गया।
पत्नी को सांस की हुई तकलीफ तो पति ने लगा दिए 500 पौधे
हड़प्पा सभ्यता के लोगों का कारोबार फैला था अफगानिस्तान तक
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स्त्री के अपमान का परिणाम दिखाता द्रोपदी कूप और शिक्षा देता तमिलनाडु का थिमिथि उत्सव

हमारी परम्परा, हमारा इतिहास बार – बार बताता रहा है कि उत्पीड़क का अंत भीषण होता है…महाभारत इस बात का सबसे बड़ा प्रमाण है कि उत्पीड़न करने वाले का परिणाम सर्वनाश होता है और स्त्री पर अत्याचार करने वालों का अंत भयावह होता है। युग बीत जाते हैं, लोग चले जाते हैं मगर इतिहास साक्षी देता रहता है, ऐसा प्रमाण बै कुरूक्षेत्र की भूमि। कहा जाता है कि द्रोपदी के श्राप के कारण आज तक यह नगरी विकास का चेहरा देख नहीं सकी। यहाँ महाभारतकालीन अनेक प्रमाण भरे पड़े हैं । ज्योतिसर और ब्रह्मसरोवर के आसपास कई प्राचीन मंदिर हैं। इन्हीं में से एक है द्रौपदी कूप। यह प्राचीन मंदिर द्रौपदी की कहानी आज भी बताता है. इसी मंदिर के अंदर एक कुआं है, जिसे द्रौपदी कूप कहते हैं। बताया जाता है कि द्रौपदी रोजाना इसी कुएं के जल से स्नान करती थी. महाभारत युद्ध में भीम द्वारा दुशासन को मारने के बाद द्रौपदी ने अपने खुले केश दुशासन के खून से रंगे थे और प्रतिज्ञा पूरी की थी. इसके बाद द्रौपदी ने अपने खुले केशों को इसी कूप में आकर धोया था. यही कारण है कि यह स्थान वर्तमान में द्रौपदी कूप के नाम से जाना जाता है।
प्राचीन कुआं भी है – कुरुक्षेत्र में महाभारत काल का प्राचीन कुआं आज भी देखा जा सकता है. माना जाता है कि इसी स्थान पर महाभारत युद्ध में द्रोणाचार्य ने चक्रव्यूह की रचना की थी और कर्ण ने यहीं पर अभिमन्यु को धोखे से मारा था, जिससे वह वीरगति को प्राप्त हुआ था। इसके बाद भीम ने इस कुएं का निर्माण किया, जहां द्रौपदी ने स्नान कर अभिमन्यु की मृत्यु का बदला लेने की शपथ अर्जुन को दिलाई थी।
बर्बरीक का मंदिर – यहां महाभारत युद्ध में निर्णायक की भूमिका निभाने को आतुर रहे बर्बरीक का मंदिर भी है। बताया जाता है कि यह वही स्थान है, जो महाभारत काल से पहले का है. यहां पर भीम पुत्र घटोत्कच के पुत्र बर्बरीक की प्राचीन मूर्ति स्थापित है, जहां लोग पूजा करते हैं। मान्यता के अनुसार, बर्बरीक के पास ऐसी धनुर्विद्या थी, जिससे वह किसी भी सेना को अकेले ही जीत सकते थे. तब श्रीकृष्ण ने बर्बरीक को वचनों में बांध कर उसका सिर मांग लिया था, लेकिन बर्बरीक ने कहा कि वह तो महाभारत का युद्ध देखना चाहते थे। कथा के अनुसार, तब श्रीकृष्ण ने कहा कि तुम महाभारत का पूरा युद्ध जरूर देख सकोगे. तुमने मुझे सम्मान स्वरूप अपना शीश भेंट किया है, इसलिए कुरुक्षेत्र की पावन धरा पर कलयुग में तुम्हारी भी पूजा होगी। यही कारण है कि आज भी श्रद्धालु जब द्रौपदी कूप को देखने आते हैं तो बर्बरीक की पूजा जरूर करते हैं। मंदिर के पुजारी का कहना है कि बर्बरीक को ही आज खाटू श्याम के नाम से जाना जाता है।