Saturday, September 20, 2025
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सृजन सारथी सम्मान -2023 से सम्मानित किये गये डॉ. एस. आनंद

कोलकाता । शुभ सृजन नेटवर्क एवं राजस्थान सूचना केंद्र, कोलकाता द्वारा आयोजित शुभ सृजन सारथी -2023 सम्मान समारोह एवं परिचर्चा का आयोजन किया गया । इस कार्यक्रम में पत्रकारिता एवं साहित्य के क्षेत्र में गत 50 वर्षों से सक्रिय डॉ. एस. आनंद को सृजन सारथी सम्मान से सम्मानित किया गया। उनको स्मृति चिह्न राजस्थान सूचना केन्द्र के सहायक निदेशक हिंगलाज दान रतनू  ने प्रदान किया। वहीं शॉल कार्यक्रम अध्यक्ष दैनिक सूत्रकार के सम्पादक अशोक पांडेय एवं प्रधान अतिथि एवं भारतमित्र हिन्दी दैनिक के कार्यकारी सम्पादक वासुदेव ओझा ने पहनाय़ी। अभिनंदन पत्र दैनिक वर्तमान के प्रभारी लोकनाथ तिवारी एवं सलाम दुनिया के सम्पादक सन्तोष कुमार सिंह ने प्रदान की। अभिनंदन पत्र का पाठ डॉ. जयप्रकाश मिश्र ने किया। अपने वक्तव्य में डॉ. एस. आनंद ने हिन्दीभाषा समाज की साहित्य के प्रति उदासीनता और अपनी सृजन यात्रा पर चर्चा की।

इस अवसर पर कोरोना काल, इंटरनेट एवं हिन्दी के पत्रकार विषय पर एक परिचर्चा भी आयोजित की गयी। परिचर्चा में अध्यक्षीय वक्तव्य रखते हुए दैनिक सूत्रकार के सम्पादक अशोक पांडेय ने कहा कि आज इंटरनेट पर सूचनाएं साझा की जा रही हैं, उसे खबर का दर्जा मिल सके इसलिए इंटरनेट पर प्रसारित होने वाली खबरों को लेकर भी प्रिंट मीडिया की तरह कानून बनना चाहिए। इस दिशा में सरकारों को काम करना होगा। भाषा, शैली और खबर पर पकड़ होनी चाहिए। इंटरनेट की पत्रकारिता पर भी अंकुश लगना चाहिए। सलाम दुनिया के सम्पादक सन्तोष कुमार सिंह ने हिन्दी पत्रकारों की चुनौतियों पर चर्चा की और कार्यस्थल के वातावरण को बेहतर बनाने पर जोर दिया। वर्तमान हिन्दी पत्रिका के प्रभारी लोकनाथ तिवारी ने इंटरनेट पर फैल रही फर्जी खबरों पर चिंता जतायी।

मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ पीहू पापिया ने कोरोनाकाल के सकारात्मक प्रभावों की चर्चा की। कोलकाता हिन्दी न्यूज ने कोरोनाकाल के दौरान पत्रकारों की चुनौतियों पर चर्चा की और अखबारों को विश्वसनीय माध्यम बताया। कार्यक्रम में स्वागत भाषण राजस्थान सूचना केन्द्र के सहायक निदेशक हिंगलाज दान रतनू ने दिया। कार्यक्रम का संचालन विवेक तिवारी ने किया जबकि धन्यवाद ज्ञापन शुभ सृजन नेटवर्क के संरक्षक श्रीमोहन तिवारी ने दिया। कार्यक्रम पर बात रखते हुए शुभ सृजन नेटवर्क की प्रमुख सुषमा त्रिपाठी कनुप्रिया ने कहा कि डॉ. एस. आनंद जैसे दिग्गज को सम्मानित करना अपना सम्मान करना है जो साहित्य और पत्रकारिता के महत्वपूर्ण सेतु हैं। हिन्दी के पत्रकारों की अपनी बहुत चुनौतियां रहती हैं और कोरोना काल ने पत्रकारिता और पत्रकारों को प्रभावित किया। यह परिचर्चा एक आवश्यक बातचीत का माध्यम रही।

हर दिल के चहेते थे अटल जी

वरिष्ठ पत्रकार सीताराम अग्रवाल की कलम से
भारत के पूर्व प्रधानमंत्री परम श्रद्धेय अटल बिहारी वाजपेयी का आज (25 दिसम्बर  2022 ) जन्मदिन है। भले ही आज वे सशरीर हमारे बीच मौजूद नहीं हैं, पर उनका व्यक्तित्व व कृतित्व सदैव हमे देदीप्यमान करता रहेगा। इसमें कोई दो राय नहीं कि सिर्फ भारत में ही नहीं विदेशों में भी वे काफी लोकप्रिय हैं। हर पार्टी  के नेता उनका सम्मान करते थे। एक बार कांग्रेस ने कहा था- वाजपेयी जी बहुत अच्छे नेता हैं, पर गलत पार्टी के साथ हैं। वे हर व्यक्ति के दिल में निवास करते थे और आज भी लोग उन्हें बड़ी श्रद्धा के साथ याद करते है। वे वास्तविक अर्थ में जननेता थे। पत्रकार से राजनेता बने भावुक ह्रदय कवि अटल जी के बारे में मैं नीचे एक बहुत पुराना संस्मरण दे रहा हूं, जो उनके महान व्यक्तित्व व सदाशयता की एक झलक है।
संस्मरण-
करीब 58 वर्ष पहले की बात है। तिथि मुझे ठीक से याद नहीं। मैं वाजपेयी जी के भाषणों की भाषा-शैली का कायल था। राजनीतिक समझ उतनी नहीं थी। उनका एक कार्यक्रम सेन्ट्रल एवेन्यू स्थित महाजाति सदन सभागार में धा। जब एक मित्र (उस समय वे जनसंघ के समर्थक थे ) ने मुझसे कार्यक्रम में चलने का आग्रह किया तो मैं तत्काल तैयार हो गया। पास ही में खड़े एक और मित्र ( वे कांग्रेस समर्थक थे ) ने भी जाने की उत्सुकता दिखाई। उनके पास गाड़ी भी थी। बस हम लोग कमरहट्टी (कोलकाता-58) स्थित अपने-अपने घरों से रवाना हो गए। इस बीच और एक मित्र साथ हो लिए। हम चारों करीब 11 किलोमीटर का फासला तय कर महाजाति सदन पहुंचे। हम चारों किशोरों ने रास्ते में ही तय कर लिया था कि कार्यक्रम के बाद यदि स॔भव हुआ तो वाजपेयी जी से मिला जायगा।
कार्यक्रम सम्पन्न होने के बाद हम बाहर उनके निकलने का इंतजार करते रहे। उन दिनों सुरक्षा का कोई खास ताम-झाम नहीं था। हमने अपनी कार उनकी गाड़ी के थोड़ा पीछे लगा दी। हालांकि श्री वाजपेयी जी महाजाति सदन के सामने ही श्री घनश्याम बेरीवाल के मकान में ही रुके थे। पर उस समय हमें इस बारे मे कोई जानकारी नहीं थी। ट्रैफिक के कारण हमारी कार थोड़ी पीछे रह गयी। खैर थोड़ी खोज-बीन के बाद हम श्री बेरीवाल जी के मकान के सामने पहुंचे। हमने अंदाजा लगाया कि वाजपेयी जी इसी मकान में ही रुके हैं। थोड़ी सी झिझक के बाद हम लोगों ने मकान में प्रवेश किया। दोपहर का समय था। आश्चर्य की बात धी कि कहीं कोई नहीं मिला, जिससे हम पूछते। पर वाजपेयी जी से मिलने के अपने इरादे पर हम अडिग थे। हिम्मत करके दूसरा तल्ला (फर्स्ट फ्लोर) पार कर तीसरे तल्ले पर पहुंचे। अभी हम लोग चौथे तल्ले पर जाने की सोच ही रहे थे कि ऊपर से एक सज्जन उतरते नजर आये। उन्होंने पूछा-कहां जायेंगे। एक मित्र ने कहा-वाजपेयी जी से मिलने। उन्होंने कहा- नही मिल सकते। अभी वे आराम कर रहे हैं। थोड़ी देर तक अनुनय-विनय होती रही। कहा गया- हम लोग बड़ी दूर से आये हैं। उन्हें परेशान नहीं करेंगे। सिर्फ़ दूर से देख कर चले जायेंगे। पर उनके  कानों पर जूं तक नहीं  रेंगी। लम्बे तथा अच्छी कद-काठी वाले ये सज्जन  किसी भी तरह हमें जाने नहीं दे रहे थे। अब तक मैं चुपचाप था। वैसे भी चारों में मैं सबसे छोटा था। जब मैंने देखा कि अब हमें वापस जाना ही होगा, तो एक आखिरी कोशिश की। भाषण देने की आदत स्कूल में वाद-विवाद प्रतियोगिताओं के दौरान बन चुकी थी। मैंने ऊंची आवाज में कहना शुरू किया- आप जैसे लोग ही अनावश्यक रूप से लोकप्रिय नेताओं व जनता के बीच दीवार बन कर खड़े हो जाते हैं। इससे न सिर्फ नेता की छवि  खराब होती है, बल्कि पार्टी भी कमज़ोर होती है। और न जाने क्या-क्या। इस बीच ऊपर से आवाज आती है-इन बालकों को ऊपर आने दो। मैंने पीछे घूम कर देखा तो स्वयं वाजपेयी जी चौथे तल्ले के बरामदे में रेलिंग पर झुके हुए बोल रहे थे। और वे मेरी ओर ही देख रहे थे। शायद वे बहुत देर से हमारी बातें सुन रहे थे। मैं तो खुशी के मारे ऐसा उछला,  मानो कारू का खजाना मिल गया हो। सभी का एक ही हाल था।  अब उस सज्जन को हमें पहुंचाने के सिवा चारा नहीं  था। इसके बाद वाजपेयी जी ने पिता जैसा स्नेह देते हुए हमारा परिचय पूछा। प्यार भरी बातें की। बातों का सिलसिला चलता ही रहा। इस बीच एक डाक्टर साहब आये और उन्हें समय का ध्यान दिलाते हुए दवा  लेने का आग्रह किया। वाजपेयी जी ने एक तरह से झिड़कते हुये कहा-तुम्हे दवा की पड़ी है।  देखो ये बच्चे कितनी दूर से मुझसे मिलने आये है। वे बेचारे चले गये। कहां तो हम सिर्फ दो- तीन मिनट के लिए मिलने आये थे, वहां करीब आधा घंटा हो चला था। पता नहीं ये सिलसिला और कितनी देर चलता, पर कई बुलावा आने के बाद इच्छा न रहते हुए भी मैं उठ खड़ा हुआ और चरण स्पर्श करते हुए जाने की आज्ञा मांगी। और हम सभी चल पड़े। मुझे ऐसा आभास हो रहा था कि वे अभी और बतरस के मूड में थे। शायद राजनीतिक बातों से इतर हम लोगों के साथ वार्तालाप उन्हें आनन्दित कर रहा था। ऐसे हैं कवि  ह्रदय हमारे-आपके सबके वाजपेयी जी। वैसे बाद में पत्रकार के रूप में  मैंने उनकी अनगिनत सभाएं, कार्यक्रम वगैरह कवर किये हैं। प्रेस क्लब,कोलकाता में प्रधानमंत्री के रूप में उनकी प्रेस कांफ्रेंस भी कवर की है। ये सब स॔स्मरण फिर कभी।
 पुन: सादर नमन –
कोलकाता 25 दिसम्बर 2023

अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त पं. विजयशंकर मेहता “डॉ. हेडगेवार प्रज्ञा सम्मान’ से समादृत

डॉ. हेडगेवार का स्वप्न था श्रेष्ठ एवं संगठित भारत : रामदत्त चक्रधर
कोलकाता । “आत्म विस्मृत हिन्दू समाज को आत्मबोध कराना एवं राष्ट्रीयता के भाव से संगठन का निर्माण करना डॉ. हेडगेवार की सबसे बड़ी देन है। भारत शक्तिशाली बनेगा तभी विश्व का भला होगा एवं यह तभी हो सकता है जब हिन्दू संगठित होगा। डॉ. हेडगेवार का स्वप्न था श्रेष्ठ. संगठित एवं आत्म निर्भर भारत का निर्माण। उनके द्वारा स्थापित राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में समाज को जागृत करने की असीम शक्ति है।’ – ये उद्गार हैं राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह-सरकार्यवाह श्री रामदत्त चक्रधर के, जो श्री बड़ाबाजार कुमारसभा पुस्तकालय द्वारा स्थानीय जी. डी. बिड़ला सभागार में आज 17 दिसम्बर को आयोजित 34वें डॉ. हेडगेवार प्रज्ञा सम्मान 2023 के समारोह में जीवन प्रबंधन गुरु पंडित विजयशंकर मेहता को सम्मानित करने के उपरांत बतौर प्रधान वक्ता बोल रहे थे। पंडित विजयशंकर मेहता को सम्मान स्वरूप 1 लाख रुपये का चेक एवं मानपत्र प्रदान किया गया।
श्री चक्रधर ने कहा कि बुद्धि, मेधा एवं ज्ञान से ऊपर है प्रज्ञा। इस दृष्टि से प्रज्ञा सम्मान के लिए पंडित मेहता का चयन सर्वथा श्रेयस्कर है। उन्होंने डॉ. हेडगेवार का जीवन प्रसंगों का उल्लेख करते हुए बताया कि श्रेष्ठ विरासत के जीवन मूल्यों को स्थापित करने के लिए सामूहिक प्रयास आवश्यक है। श्री चक्रधर ने बताया कि परिवार व्यवस्था, सामाजिक समरसता, पर्यावरणपूरक जीवन, स्वदेशी की व्याप्ति तथा नागरिक शिष्टाचार आदि पांच मंत्र भारत को समृद्ध बनाने में सहायक होंगे।
सम्मान से समादृत होने के उपरांत पंडित विजयशंकर मेहता ने पुस्तकालय के प्रति आभार व्यक्त करते हुए कहा कि भारत को “राष्ट्रीयता’ शब्द का उपहार डॉ. हेडगेवार की सबसे बड़ी देन है। उन्होंने समाज में व्याप्त चार विसंगतियों यथा राष्ट्र के प्रति भ्रष्टाचार, समाज के प्रति अपराध, व्यवस्था के प्रति निक्कमापन एवं परिवार के प्रति उदासिनता को वर्तमान समस्याओं का मूल बताया। नुमान जी के जीवन प्रसंगों के साथ संघ के क्रियाकलापों की समानता का जिक्र करते हुए उन्होंने समाज में चेतना और सहयोग की आवश्यकता पर बल दिया।
प्रधान अतिथि एवं उद्योगपति श्री सजन कुमार बंसल ने कहा कि संघ के विचारों से प्रेरित होकर ही हमने कोलकाता पिंजरापोल सोसाइटी, वननवंधु परिषद जैसी अनेक संस्थाओं का सफलतापूर्वक संचालन कर पा रहे हैं।
आचार्य श्री राकेश कुमार पाण्डेय ने अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में डॉ. हेडगेवार के स्वतंत्रता प्राप्ति के उपरांत भारत की दशा एवं दिशा चिंतन को रेखांकित करते हुए कहा कि हिन्दुत्व ही राष्ट्र की मूल आत्मा है। उन्होंने हनुमान जी को निर्भिकता एवं सदैव प्रयासरत रहने का प्रेरणारुाोत बताया।
पुस्तकालय के अध्यक्ष श्री महावीर बजाज ने अपने स्वागत भाषण में कहा कि डॉ. हेडगेवार व्यक्ति नहीं, एक विचार है। कार्यक्रम का कुशल संचालन किया डॉ. तारा दूगड़ ने तथा धन्यवाद ज्ञापन किया कुमारसभा के उपाध्यक्ष श्री भागीरथ चांडक ने। प्रारंभ में श्री शिबेन्द्र त्रिपाठी ने “राष्ट्र मंत्रे जागाइलो देश…’ बांग्ला गीत की प्रस्तुति की। सर्वश्री  महावीर प्रसाद रावत, नन्दकुमार लढ़ा, अरुण प्रकाश मल्लावत, अजेन्द्रनाथ त्रिवेदी, अजय चौबे, मोहनलाल पारीक, सत्यप्रकाश राय, संजय मंडल एवं राजेश अग्रवाल “लाला’ ने अतिथियों का माल्यार्पण एवं अंगवस्त्र पहनाकर स्वागत किया। श्री योगेशराज उपाध्याय के वैदिक मंत्रों के साथ पंडित विजयशंकर मेहता का मंत्री श्री बंशीधर शर्मा ने माला, आचार्य राकेश पाण्डेय ने शॉल, श्री सजन बंसल ने श्रीफल एवं श्री रामदत्त चक्रधर ने मानपत्र एवं चेक देकर सम्मान किया। मंच पर संघ के वरिष्ठ प्रचारक श्री गुरुशरण जी एवं श्री बंशीधर शर्मा भी उपस्थित थे। कार्यक्रम में आचार्य राकेश पाण्डेय द्वारा रचित कालगणना की लघु पुस्तिका का पंडित मेहता जी के हाथों विमोचन भी किया गया।
समारोह में सर्वश्री जयंतराय चौधरी, प्रशांत भट्ट, ब्राहृानंद बंग, राधेश्याम बजाज, तेजबहादुर सिंह, महावीर प्रसाद मनकसिया, वास्तुमित्र शिवनारायण मूंधड़ा, गोविन्द सारडा, बुलाकीदास मीमानी, दयाशंकर मिश्र, डॉ. बिन्दे•ारी प्रसाद सिंह, श्रीराम सोनी, राधेश्याम सोनी, चंपालाल पारीक, राजेन्द्र कानूनगो, दुर्गा व्यास, सुदेश अग्रवाल, स्नेहलता बैद, अजय शाह, शंकरलाल अग्रवाल, महेश मोदी, प्रदीप तुल्स्यान, रजत चतुर्वेदी, सीताराम तिवारी, किसनगोपाल सूंठवाल, गंगासागर प्रजापति, ऋषिराज गर्ग, बसंत सेठिया, कमल कुमार गुप्ता, गुरुदत्त शर्मा, बालकिसन आसोपा, नरेश दारुका, संदीप तुल्स्यान, सूर्यकांत अग्रवाल, शशी नारसरिया, नन्दलाल सिंघानिया, डॉ. श्रीबल्लभ नागौरी, घनश्याम सुगला, राजकमल बांगड, जसवंत सिंह, सुरेन्द्र प्रसाद पटवारी, महेन्द्र दूगड़, डॉ. प्रभात सिंह, रविप्रताप सिंह, रामचंद्र अग्रवाल, रामगोपाल सूंघा, मनोज पराशर, सागरमल गुप्त, अरुण सोनी, महेश केड़िया, संजय रस्तोगी, शैलेश बागड़ी प्रभृति कोलकाता एवं हावड़ा के सामाजिक एवं सांस्कृतिक क्षेत्र के अनेक गणमान्य व्यक्ति बड़ी संख्या में उपस्थित थे।
समारोह को सफल बनाने में सर्वश्री मनोज काकड़ा, भागीरथ सारस्वत, गुड्डन सिंह, श्रीमोहन तिवारी, रमाकांत सिन्हा, रोशन शर्मा, नीतिश सिंह, गायत्री बजाज एवं अरुण सिंह प्रभृति सक्रिय थे।

नेफ्रोकेयर इंडिया का ‘ए वॉक फॉर योर किडनी’ अभियान

कोलकाता । नेफ्रोकेयर कीऔर से ‘ए वॉक फॉर योर किडनी’ नामक वॉकथॉन का आयोजन किया गया। एक ऐसा वॉकथॉन, जिसमें लगभग 400 प्रतिभागियों के साथ-साथ मशहूर हस्तियां इसमें शामिल हुए। इस दौरान उन्होंने इस स्वस्थ अभ्यास के प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए अपने कदम से कदम मिलाया। यह वॉकथॉन नेफ्रोकेयर से शुरू होकर होटल गोल्डन ट्यूलिप पर खत्म हुई। इस कार्यक्रम में कई प्रतिष्ठित हस्तियों ने भाग लिया। जिसमे नेफ्रो केयर के संस्थापक और निदेशक डॉ. प्रतीम सेनगुप्ता, नंदिता रॉय (फिल्म निर्माता), शिवप्रसाद मुखर्जी (निदेशक), देबाशीष दत्ता (सचिव मोहन बागान क्लब), गोल्डन ट्यूलिप होटल के निदेशक आशीष मित्तल के अलावा कई अन्य प्रतिष्ठित हस्तियां इसमें शामिल हुए। नेफ्रो केयर के संस्थापक और निदेशक, नेफ्रोलॉजिस्ट डॉ. प्रतीम सेनगुप्ता ने कहा कि हमारा दृढ़ विश्वास है कि प्रतिदिन 30 मिनट की तेज सैर हमारी कई स्वास्थ्य समस्याओं का समाधान कर सकती है। नेफ्रोकेयर इंडिया की इस दूसरी वर्षगांठ पर हम देश भर में अपनी उपस्थिति का विस्तार करके और आने वाले वर्षों में करीब दस लाख लोगों तक पहुंचने के लिए 300 व्यापक और समग्र किडनी देखभाल इकाइयों की स्थापना करके किडनी को स्वास्थ्य और सुनिश्चित करने के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को उजागर करना चाहते हैं। “नेफ्रो केयर इंडिया में हम बीमारी के इन सभी पहलुओं का वैज्ञानिक रूप से विश्लेषण करते हैं और रोगी को समग्र चिकित्सा देखभाल प्रदान करते हैं। एडवांस्ड रीनल केयर इंस्टीट्यूट, जिसकी स्थापना प्रसिद्ध नेफ्रोलॉजिस्ट और अवार्डी, डॉ. प्रतीम सेनगुप्ता ने की थी। स्वास्थ्य किडनी की देखभाल पर ध्यान देने की आवश्यकता और इससे जुड़ी विसंगतियों का शीघ्र पता लगाने के लिए नियमित परीक्षण करने का महत्व और किडनी से संबंधित किसी भी समस्या के समाधान के लिए समग्र उपचार करने का के बारे में लोगों को जागरूक किया गया।

पत्नी को सांस की हुई तकलीफ तो पति ने लगा दिए 500 पौधे

 अब ‘ऑक्सीजन मैन’ बुलाते हैं लोग
पटना । राजधानी पटना से करीब 20 किलोमीटर दूर पुनपुन स्टेशन से अकौना गांव की दूरी करीब तीन से चार किलोमीटर है. यहां के रहने वाले 70 साल के अशोक सिंह उर्फ बंगाली बाबा अपनी पत्नी को स्वस्थ्य रखने के लिए पिछले 13 साल से पौधे लगा रहे हैं। ये सभी पौधे अब पेड़ में तब्दील हो गए हैं. इस इलाके में बंगाली बाबा की तरफ से लगाए गए पेड़ों की संख्या 500 तक पहुंच चुकी है.बंगाली बाबा का कहना है कि जब से उन्होंने ने पेड़ लगाना शुरू किया है. उसके बाद से उनकी पत्नी मनोरमा देवी को सांस लेने के दौरान आने वाली दिक्कत पूरी तरह से ठीक हो चुकी है. साथ ही गांव में पेड़ पौधों की संख्या भी काफी बढ़ गई है. दो दशक पहले पेड़ लगाने के लिए अपने को समर्पित करने वाले बंगाली बाबा आज भी अनवरत नेक कार्य में लगे हुए हैं.
बंगाली बाबा के चलते पूरा गांव ले रहा शुद्ध ऑक्सीजन – किसान तक के मुताबिक मौसम बदलते रहते हैं, लेकिन अशोक सिंह के द्वारा पेड़ लगाने का काम खत्म नहीं हुआ है. वे आज भी सुबह और शाम पेड़ों की देख भाल करते हैं. लोगों को अधिक से अधिक ऑक्सीजन मिले. इसके लिए वे पाकड़, पीपल, बरगद, बेल, कदम व जामुन के पेड़ लगाते हैं. आज इनकी बदौलत पूरा गांव शुद्ध ऑक्सीजन ले रहा है।
पेड़ों की संख्या बढ़ाने से सही हुई मनोरमा देवी की तबीयत – बंगाली बाबा बताते हुए कहा कि साल 2011 में उनकी पत्नी मनोरमा देवी की तबीयत खराब हो गई. गांव में पेड़ों की संख्या बढ़नी शुरू हुई, वैसे- वैसे उनकी पत्नी की सांस से जुड़ी बीमारी खत्म होती चली गई। आगे बंगाली बाबा कहते हैं कि वह बरसात के समय हर साल करीब पचास आस-पास के लोग करते हैं मदद – अकौना गांव के बंगाली बाबा कहते हैं कि पेड़ लगाने का काम तो अकेले शुरू किया था लेकिन आज इस बूढ़े हाथ के साथ मेरा गांव खड़ा है. वहीं पुनपुन बाजार के कई ऐसे लोग हैं जो पेड़ लगवाने के साथ कई तरह से मदद भी करते हैं। वहीं उन लोगों के द्वारा ही बंगाली बाबा के नाम से टी-शर्ट भी दिया गया है, जिससे लोगों को उन्हें पहचाने में दिक्कत नहीं हो सके। वहीं वे बंगाली बाबा के नाम को लेकर बताते है कि आज से 25 साल पहले लोग मुझे अशोक सिंह के नाम से ही जानते थे. लेकिन जब जीविकोपार्जन के लिए बंगाल गया और वहां से आया तो लोगों ने प्यार से बंगाली बाबा कहना शुरू कर दिया। उसके बाद से बंगाली बाबा के नाम से मशहूर हो गया। अब बंगाली बाबा के अलावा लोग उन्हें ऑक्सीजन मैन के नाम से भी पुकारते हैं।से साठ पेड़ लगाते है। पूरे साल उन पेड़ों की देखभाल सुबह- शाम करते हैं। करीब 500 से अधिक पेड़ इनके द्वारा अभी तक लगाया जा चुका है।

हड़प्पा सभ्यता के लोगों का कारोबार फैला था अफगानिस्तान तक

फतेहाबाद । करीब छह हजार साल पहले हरियाणा के फतेहाबाद के गांव कुनाल में पनपी पूर्व हड़प्पाकालीन सभ्यता से संबंधित परतें खुलने वाली हैं। यहां पर पुरातत्व विभाग को इस सभ्यता से संबंधित भट्ठियां मिली हैं। इनमें मनके और मिट्टी के बर्तन बनाने का काम किया जाता था। इन मनकों व अन्य आभूषणों का व्यापार फारस की खाड़ी तक होता था। इनके व्यापार का प्रमुख केंद्र अफगानिस्तान व बलूचिस्तचान था।
फतेहाबाद के गांव कुनाल में मिली पूर्व हड़प्पाकालीन सभ्यता की पहचान पूरे विश्व में है। यहां पर बने एक टीले पर जब पुरातात्विक महत्व के सामान मिलने लगे, तो पुरातत्व विभाग की नजर इस टीले पर पड़ी। पहली बार यहां पर पुरातत्व विभाग ने वर्ष 1986 में खोदाई का काम आरंभ किया था। यहां पर पूर्व हड़प्पा काल से संबंधित अनेक औजार व मनके मिले थे। इसके बाद यहां पर वर्ष 1987, 1989, 1990, 2016, 2017, 2018, 2020 व अब 2023 में खुदाई का काम आरंभ हुआ है।
सरस्वती नदी के किनारे बसा था शहर – सरस्वती नदी के किनारे बसा यह शहर 6 हजार साल पुराना है। पुरातत्व विभाग के अनुसार विश्व में जितनी भी पौराणिक सभ्यताएं हैं वह नदियों के किनारे पर ही बसी थी। मेसोपोटामिया सभ्यता से लेकर हड़प्पा सभ्यता के साथ विश्व में चार सभ्यताएं एक साथ उपजी थी। इनमें एक मिस्त्र व एक चीन में शामिल है। फतेहाबाद के कुनाल में हड़प्पा सभ्यता के जो अवशेष मिले हैं, वह उस समय की बेहतर कारीगरी का प्रतीक है। कुनाल में जो बस्ती बसाई गई थी, वहां पर एक ओर बस्ती में गड्ढ़ा खोदकर उसके घर का रूप देकर लोग रहते थे। यहां पर एक और बात सामने आई है कि इस सभ्यता के लोगों ने अपने घरों के साथ बांस लगाकर पोस्ट होल बनाए हुए थे। यहां पर मिले मृद भांडों पर अलग से कारीगरी की गई है। पहले की खोदाई में यहां पर शिकार के लिए तीरों के ब्लेड, बाट, मनकों को बनाने के लिए प्रयोग किए जाने के लिए प्रयोग होने वाले पत्थर भी मिले हैं। साथ ही यहां पर चांदी का मुकुट व सोने के आभूषणों के साथ-साथ सील व टेरोकोटा के अवशेष भी मिले हैं।
फारस देशों तक होता था कारोबार
कुनाल में सरस्वती नदी के होने का यह महत्व था कि यहां के लोगों की फारस देशों में भी व्यापार था। वह मनके आदि बनाने के लिए फारस देशों से कच्चा माल मंगवाते थे और मनके तैयार करके उनको वापस फारस देशों में भेजते थे। इनके व्यापार का प्रमुख केंद्र अफगानिस्तान व बलूचिस्तचान था।
शाकाहार के साथ करते थे मांसाहार का सेवन
कुनाल में मिले अवशेषों से यह भी ज्ञात हुआ है कि इस सभ्यता के लोग मांसाहारी थे। वह बड़े पशुओं को आग में पकाकर खाते थे। साथ ही यहां पर दालों के दाने व फलों के बीज भी मिले हैं, जिससे साफ है कि यह लोग उस समय से ही खेती में दालों व फलों को उगाते थे।

पायलट से लेकर क्रू मेंबर तक, एयर इंडिया ने 6 दशक बाद बदला लुक

मनीष मल्होत्रा को मिला था दायित्व
नयी दिल्ली । एयर इंडिया ने आज अपने पायलटों और चालक दल के सदस्यों के लिए नई यूनिफॉर्म का अनावरण किया। यह पहली बार है कि एयरलाइन ने 1932 में अपनी स्थापना के बाद से छह दशकों में अपने चालक दल की यूनिफॉर्म में बदलाव किया है। यह बदलाव ऐसे समय में हुआ है जब एयरलाइन विलय के माध्यम से विस्तारा को भी अपने अधीन ला रही है। नई यूनिफॉर्म इस साल के अंत तक शुरू की जाएगी। एयरलाइन ने एक ट्वीट कर ये जानकारी दी। इसने लिखा, “एयर इंडिया के समृद्ध इतिहास का प्रतीक और उज्ज्वल भविष्य का वादा है।” एयरलाइन ने अपने 10,000 से अधिक फ्लाइट क्रू, ग्राउंड स्टाफ और सुरक्षा कर्मियों के लिए लाल, बैंगन और सुनहरे रंग की नई वर्दी डिजाइन करने के लिए फैशन डिजाइनर मनीष मल्होत्रा को नियुक्त किया था। इसने कहा कि ये रंग “आत्मविश्वासपूर्ण, जीवंत नए भारत का प्रतिनिधित्व करते हैं”।
एयर इंडिया के आधिकारिक अकाउंट द्वारा एक्स पर पोस्ट किए गए एक वीडियो में चालक दल के सदस्य नई वर्दी पहने हुए दिखाई दे रहे हैं। इसने लिखा, “पेश है हमारी नई पायलट और केबिन क्रू वर्दी, एयर इंडिया के समृद्ध इतिहास की प्रशंसा और उज्ज्वल भविष्य का वादा। भारत के अग्रणी फैशन डिजाइनर मनीष मल्होत्रा द्वारा परिकल्पित इन वर्दी में तीन सर्वोत्कृष्ट भारतीय रंग – लाल, बैंगनी और सुनहरा शामिल हैं, जो आत्मविश्वासपूर्ण, जीवंत नए भारत का प्रतिनिधित्व करते हैं।” एक बयान में, एयरलाइन ने कहा कि नई वर्दी “इसके चल रहे आधुनिकीकरण कार्यक्रम के हिस्से के रूप में एयर इंडिया की नई वैश्विक ब्रांड पहचान की अभिव्यक्ति में एक और कदम है”। एयरलाइन ने विज्ञप्ति में कहा, “एयर इंडिया को उम्मीद है कि वह 2023 के अंत तक अपने वर्दीधारी कर्मचारियों के लिए नया लुक शुरू कर देगी।” एयर इंडिया एक महत्वाकांक्षी सुधार योजना पर काम कर रही है और उसने इस साल की शुरुआत में बोइंग और एयरबस से 470 विमानों का ऑर्डर दिया है। एयर इंडिया के मुख्य कार्यकारी अधिकारी और प्रबंध निदेशक कैंपबेल विल्सन ने कहा, “एयर इंडिया की चालक दल की वर्दी विमानन इतिहास में दुनिया की सबसे प्रतिष्ठित वर्दी में से एक है, और हमारा दृढ़ विश्वास है कि मनीष मल्होत्रा का अभिनव पहनावा एयर इंडिया के भविष्य की कहानी के लिए एक रोमांचक नया अध्याय लिखेगा। यह हमारी नई पहचान, सेवा सिद्धांतों और वैश्विक विमानन में नए मानक स्थापित करने के हमारे प्रयास के सार को पूरी तरह से दर्शाता है।” डिजाइनर मनीष मल्होत्रा ने कहा कि वह “एयर इंडिया के लिए वर्दी डिजाइन करने का अवसर पाकर सम्मानित महसूस कर रहे हैं”।

74 फ़ीसदी भारतीयों को नहीं मिल रहा है पौष्टिक खाना

नयी दिल्ली । संयुक्त राष्ट्र के खाद एवं कृषि संगठन की हाल ही में एक रिपोर्ट जारी हुई है।इस रिपोर्ट में बताया गया है कि भारत में 2020 में 76 फ़ीसदी लोगों को पौष्टिक आहार नहीं मिल रहा था। 2021 में इसमें मामूली सुधार हुआ है। 74 फ़ीसदी अर्थात 100 करोड लोग अभी भी पौष्टिक आहार से वंचित है। भारत के बाद सबसे खराब स्थिति में पाकिस्तान है। यहां पर 82 फ़ीसदी लोगों को पौष्टिक खाना नहीं मिल रहा है। बांग्लादेश की हालत भारत से बेहतर है। यहां के 66 फ़ीसदी लोगों को पौष्टिक आहार नहीं मिल पा रहा है। पौष्टिक आहार में कमी की वजह महंगाई बताई जा रही है। खाद्य सामग्री की कीमतें जिस तेजी के साथ बढी हैं।उस की तुलना में लोगों की आमदनी नहीं बढ़ी। जिसके कारण पौष्टिक आहार नहीं मिल पा रहा है।
रिपोर्ट में बताया गया है कि भारत में 2021 में प्रति व्यक्ति पौष्टिक आहार का खर्च 250 रुपए था। बांग्लादेश में यही खर्च 267 रुपए था।पाकिस्तान में इसकी लागत 325 रुपए है। भूटान में 441 और नेपाल में सेहतमंद खाने की लागत 383 रुपए है।-2 करोड़ से अधिक बच्चों का वजन कमरिपोर्ट में कहा गया है कि 2022 में 5 साल से कम उम्र के 2.5 करोड़ बच्चे अपने औसत वजन से काफी कम थे।
73.5 करोड़ भुखमरी के शिकार – दुनिया में 2022 में 73.5 करोड़ लोग भुखमरी और कुपोषण के शिकार थे। इनमें सबसे ज्यादा एशियाई देशों में 40 करोड लोग थे। 31 करोड़ से ज्यादा लोग केवल दक्षिण एशिया के थे। रिपोर्ट के अनुसार अफ्रीका में 28.2 करोड़, लैटिन अमेरिका और कैरेबियाई में 4.3 करोड़, ओशनिया में 30 लाख लोग कुपोषित थे। सबसे कम कुपोषित उत्तरी अमेरिका और यूरोप में है।

स्त्री के अपमान का परिणाम दिखाता द्रोपदी कूप और शिक्षा देता तमिलनाडु का थिमिथि उत्सव  

महिला सशक्तीकरण का प्राचीनतम उदाहरण इस घरा पर याज्ञसेनी द्रोपदी हैं जिन्होंने सबसे पहले प्रतिरोध का स्वर ऊंचा किया था। द्रोपदी वह नारी हैं जिन्होंने नारी के लिए निर्धारित मापदंडों को चुनौती दी और त्याग की आड़ में स्त्री जाति पर किए जाने वाले अत्याचारों का विरोध किया। परिवार की प्रतिष्ठा के नाम पर जब स्त्री को खिलौना समझा जा रहा था, जब उसे अग्नि पर चलवाया जा रहा था, ऐसी स्थिति में अपने पर हुए अत्याचारों का सार्वजनिक तौर पर प्रतिरोध द्रोपदी ने किया, पांडवों विशेषकर युधिष्ठिर से सवाल करना और वह भीषण प्रण….13 वर्षों तक खुले केश और और अपमानित हृदय को लेकर रहना, यह याज्ञसेनी ही कर सकती थीं। बहुत से लोग द्रोपदी को महाभारत के युद्ध का कारण मानते हैं मगर क्या यह युद्ध सिर्फ द्रोपदी के अपमान का था…? यह युद्ध तो वह ज्वालामुखी था जिसे फटना ही था…कल्पना कीजिए कि जब महारानी होते हुए द्रोपदी को ऐसा भीषण उत्पीड़न सहना पड़ा तो अगर इसे न रोका जाता तो संसार की सामान्य स्त्रियों का क्या होता ? इतिहास और समाज ने हमेशा सशक्त स्त्रियों की तुलना शांत, सहनशील स्त्रियों को पूजा है, उनकी पूजा की है जिन्होंने पितृसत्तात्मक समाज के अन्याय के आगे सिर झुकाया…..प्रमाण आप सीता में देखिए…और ऐसे असंख्य प्रमाण हैं मगर द्रोपदी सशक्त महिला थीं जिन्होंने स्त्री को सिर उठाकर जीना सिखाया। द्रोपदी से जुड़े स्थल और अनूठी परम्परा को आज हम जानेंगे क्योंकि उत्तर और दक्षिण, भारत के दोनों ओर याज्ञसेनी की पूजा की जाती है। 
एक त्योहार ऐसा भी…जहां अंगारों पर चलकर की जाती है द्रौपदी के मान की रक्षा
भारत अपनी संस्कृति और सभ्यता के लिए जाना जाता है। यहां हर संप्रदाय की अपनी अलग अलग परंपराएं हैं। भारत के कई राज्यों में आज भी ऐसी प्रथाएं प्रचलित हैं, जिन्हें सुन आपको यकीन नहीं होगा। इन्हीं में से एक है तमिलनाडु का थिमिथि रिवाज. तमिलनाडु का थिमिथि रिवाज भारत की सबसे अजीब रीति-रिवाजों और परंपराओं में से एक है। इस रिवाज के अंतर्गत कुछ लोग अंगारों पर चलते हैं. आइए जानते हैं इस रिवाज के बारे में. –
द्रौपदी के मान की रक्षा का रिवाज- क्या कभी आपने असल में ऐसा देखा है? नहीं तो चलिए हम आपको बताते हैं ऐसी ही एक जगह के बारे में जहां आज भी ऐसा किया जाता है।  तमिलनाडु के थिमिथि रिवाज के दौरान लोग अंगारों पर चलते हैं। यहां हर साल अक्टूबर से नवंबर के बीच लगातार पांच दिन इस त्योहार को मनाया जाता है। कहते हैं पांडवों की पत्नी द्रौपदी के मान की रक्षा के लिए ये त्योहार मनाया जाता है।
अंगारों पर चलने की रस्म- इस त्योहार के दौरान अंगारों पर चलने की परंपरा है. पांच के त्योहार में आग पर चलने वाली रस्म दीपावली के एक हफ्ते पहले की जाती है। इसे ऐपासी महीना कहते हैं।
कैसे मनाया जाता है थिमिथि रिवाज- ये त्योहार सिर्फ तमिलनाडु में ही नहीं बल्कि उन सभी जगहों पर मनाया जाता है जहां तमिलनाडु के लोग बहुतायत में हैं। वहीं इसे श्रीलंका, फीजी, सिंगापुर, मलेशिया, मॉरीशस जैसे देशों में भी मनाया जाता है। इस त्योहार को मनाने की तैयारी महीनों पहले शुरू कर दी जाती है। त्योहार को लेकर कुछ बड़े नियमों का पालन करना होता है, जैसे धर्म का पालन करना, पूजा-पाठ करना,  मांस-मछली खाने पर निषेध आदि. त्योहार के दौरान नाटक के जरिए पांडवों और कौरवों के युद्ध के कई दृश्यों को दर्शाया जाता है। श्री मरिअम्मन मंदिर पर दिवाली के एक हफ्ते पहले एक झंडा फहराया जाता है, जो अर्जुन और हनुमान के आगमन को दर्शाता है।
अंगारों के लिए इस्तेमाल होती हैं चंदन की लकड़ी-थिमिथि त्योहार के दौरान सालों से अंगारों पर चलने की प्रथा चली आ रही है। इस दौरान अग्नि पर चलने के भी कई तरह के रिवाज होते हैं। अंगारे पर चलने के लिए चंदन की लकड़ियों का इस्तेमाल किया जाता है। इसके साथ ही अग्नि पर चलने वालों को पहले ही तैयार कर लिया जाता है. अंगारों पर चलने के दौरान व्यक्ति के हाथ पर हल्दी और नीम की पत्तियों को बांधा जाता है।
सबसे पहले अंगारों पर चलता है पुजारी – थिमिथि त्योहार को लेकर कई तरह के नियम होते हैं- जैसे इसकी शुरुआत मुख्य पुजारी से की जाती है। अंगारों पर चलते के दौरान पुजारी के सिर पर एक कलश रखा जाता है। पुजारी के बाद अन्य लोगों की बारी आती है और वो एक एक करके अंगारों पर चलते हैं। कुछ लोग इसे दैवीय शक्ति का प्रदर्शन मानते हैं, जिसके चलते वो ऐसा करते हैं।
द्रौपदी और अर्जुन के विवाह की परंपरा- इस त्योहार के दौरान एक और रिवाज की परंपरा है और वो है द्रौपदी और अर्जुन के विवाह की परंपरा। इसे मनाने का तरीका भी बिल्कुल अलग होता है। इस दौरान हिजड़ों की बलि (इसमें मानव बलि नहीं होती) दी जाती है। कहते हैं कि महाभारत युद्ध से पहले पांडवों की जीत को सुनिश्चि करने के लिए ऐसा किया गया था, जिसके चलते इसे आज भी किया जाता है।
चांदी के रथ के साथ निकलती है यात्रा- बताते हैं कि इस त्योहार के दो दिन पहले एक यात्रा निकाली जाती है। ये यात्रा चांदी के रथ के साथ निकाली जाती है। ये यात्रा पांडवों और कौरवों के बीच चले 18 दिन के युद्ध दर्शाती है।
क्यो मनाया जाता है ये त्योहार- तमिलनाडु में मां मरिअम्मन की पूजा की जाती है। माना जाता है कि द्रौपदी मां मरिअम्मन का ही अवतार थीं। ऐसे में द्रौपदी के मान की रक्षा के लिए लोग इस त्योहार को मनाते हैं।
द्रोपदी कूप : जहां दुःशासन के रक्त से पांचाली ने केश धोकर पूरी की प्रतिज्ञा

हमारी परम्परा, हमारा इतिहास बार – बार बताता रहा है कि उत्पीड़क का अंत भीषण होता है…महाभारत इस बात का सबसे बड़ा प्रमाण है कि उत्पीड़न करने वाले का परिणाम सर्वनाश होता है और स्त्री पर अत्याचार करने वालों का अंत भयावह होता है। युग बीत जाते हैं, लोग चले जाते हैं मगर इतिहास साक्षी देता रहता है, ऐसा प्रमाण बै कुरूक्षेत्र की भूमि। कहा जाता है कि द्रोपदी के श्राप के कारण आज तक यह नगरी विकास का चेहरा देख नहीं सकी। यहाँ महाभारतकालीन अनेक प्रमाण भरे पड़े हैं । ज्योतिसर और ब्रह्मसरोवर के आसपास कई प्राचीन मंदिर हैं। इन्हीं में से एक है द्रौपदी कूप। यह प्राचीन मंदिर द्रौपदी की कहानी आज भी बताता है. इसी मंदिर के अंदर एक कुआं है, जिसे द्रौपदी कूप कहते हैं। बताया जाता है कि द्रौपदी रोजाना इसी कुएं के जल से स्नान करती थी. महाभारत युद्ध में भीम द्वारा दुशासन को मारने के बाद द्रौपदी ने अपने खुले केश दुशासन के खून से रंगे थे और प्रतिज्ञा पूरी की थी. इसके बाद द्रौपदी ने अपने खुले केशों को इसी कूप में आकर धोया था. यही कारण है कि यह स्थान वर्तमान में द्रौपदी कूप के नाम से जाना जाता है।
प्राचीन कुआं भी है – कुरुक्षेत्र में महाभारत काल का प्राचीन कुआं आज भी देखा जा सकता है. माना जाता है कि इसी स्थान पर महाभारत युद्ध में द्रोणाचार्य ने चक्रव्यूह की रचना की थी और कर्ण ने यहीं पर अभिमन्यु को धोखे से मारा था, जिससे वह वीरगति को प्राप्त हुआ था। इसके बाद भीम ने इस कुएं का निर्माण किया, जहां द्रौपदी ने स्नान कर अभिमन्यु की मृत्यु का बदला लेने की शपथ अर्जुन को दिलाई थी।
बर्बरीक का मंदिर – यहां महाभारत युद्ध में निर्णायक की भूमिका निभाने को आतुर रहे बर्बरीक का मंदिर भी है। बताया जाता है कि यह वही स्थान है, जो महाभारत काल से पहले का है. यहां पर भीम पुत्र घटोत्कच के पुत्र बर्बरीक की प्राचीन मूर्ति स्थापित है, जहां लोग पूजा करते हैं। मान्यता के अनुसार, बर्बरीक के पास ऐसी धनुर्विद्या थी, जिससे वह किसी भी सेना को अकेले ही जीत सकते थे. तब श्रीकृष्ण ने बर्बरीक को वचनों में बांध कर उसका सिर मांग लिया था, लेकिन बर्बरीक ने कहा कि वह तो महाभारत का युद्ध देखना चाहते थे। कथा के अनुसार, तब श्रीकृष्ण ने कहा कि तुम महाभारत का पूरा युद्ध जरूर देख सकोगे. तुमने मुझे सम्मान स्वरूप अपना शीश भेंट किया है, इसलिए कुरुक्षेत्र की पावन धरा पर कलयुग में तुम्हारी भी पूजा होगी। यही कारण है कि आज भी श्रद्धालु जब द्रौपदी कूप को देखने आते हैं तो बर्बरीक की पूजा जरूर करते हैं। मंदिर के पुजारी का कहना है कि बर्बरीक को ही आज खाटू श्याम के नाम से जाना जाता है।

कालजयी रचनाओं के प्रणेता कवि प्रदीप

कवि प्रदीप को आप किसी एक गीत या एक रचना के फ्रेम में फिट करके उनके व्यक्तित्व और कृतित्व का आकलन नहीं कर सकते। यह वो गीतकार, गायक और कवि था जिसने जो रचा वो कालजयी हो गया। उसकी लगभग तमाम रचनाएं समय और देशकाल की सीमाओं को तोड़कर इस ब्रह्माण्ड में अमर हो गयी। प्रदीप की रचनाओं में देशभक्ति उछाल मारती है तो प्रेम में समर्पण दिखलाई देता है। यहां टूटते रिश्ते और बिगड़ते माहौल का भी दर्द छलकता है। अधिंकाश गीतों में उन्होंने खुद ही आवाज दी. आज भी सैकड़ों नहीं बल्कि हजारों घर होंगे, जहां दिन की शुरूआत मध्यम ध्वनि में कवि प्रदीप के भजन सुनते हुए होती है। देशभक्ति का ऐसा कोई आयोजन नहीं होता जिसमें प्रदीप के गीत ना गूंजते हों।
दादा साहब फाल्के पुरस्कार और संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार से सम्मानित गीतकार प्रदीप ने 11 दिसंबर, 1998 को मुंबई में अंतिम सांस ली थी। ऐ मेरे वतन के लोगो, आओ बच्चों तुम्हें दिखाएं झांकी हिंदुस्तान की, दे दी हमें आज़ादी, हम लाये हैं तूफ़ान से, दूर हटो ऐ दुनिया वालों, चल चल रे नौजवान सहित कवि प्रदीप के ऐसे तमाम देशभक्ति गीत हैं जिनकी बदौलत नौजवानों की रगों में देशभक्ति उछाले मारती है।
ऐ मेरे वतन के लोगों – ऐ मेरे वतन के लोगों गीत से जुड़ा वाकया तो लगभग हर किसी को पता है कि इस गीत को गाते हुए लता मंगेशकर रो पड़ी थीं।  साठ के दशक में जब चीन ने भारत पर हमला कर दिया था। देश एक प्रकार से अघोषित युद्ध से जूझ रहा था. सीमा पर हमारे सैनिक शहीद हो रहे थे। तब उनकी याद में लता मंगेशकर ने गाया था. मौका था 26 जनवरी, 1963 का दिन। चीन के साथ युद्ध में मिली हार के बाद देश के सैनिकों और नौजवानों में फिर से उत्साह का संचार करने के लिए गणतंत्र दिवस के अवसर पर तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने मुंबई में एक कार्यक्रम आयोजित किया था। इस कार्यक्रम के लिए उन्होंने कवि प्रदीप को एक गीत लिखने के लिए कहा। इस कार्यक्रम के लिए प्रदीप ने लिखा था- ‘ऐ मेरे वतन के लोगों जरा आंख में भर लो पानी’। बताते हैं कि इस गीत को गाते हुए खुद लता मंगेशकर रो पड़ी थीं। इस गीत की बदौलत ही कवि प्रदीप को ‘राष्ट्रकवि’ की उपाधि से सम्मानित भी किया गया। इस गीत से पहले कवि प्रदीप ‘चल-चल रे नौजवान’ और ‘दूर हटो ऐ दुनिया वालों’ जैसे लोकप्रिय गीत लिख चुके थे।
आओ बच्चों तुम्हें दिखाएं झांकी हिंदुस्तान की – वैसे तो कवि प्रदीप की कामयाबी की झोली में तमाम गीत हैं, लेकिन जागृति फिल्म का गीत ‘आओ बच्चों तुम्हें दिखाएं झांकी हिंदुस्तान की’ बहुत ही अनमोल है। आजादी के बाद 1954 में आई फिल्म जागृति में कवि प्रदीप ने इस गीत के माध्यम से ना केवल पूरे हिंदुस्तान की सैर करवाई है बल्कि किस-किस जगह पर किन-किन वीरों ने अंग्रेजों को टक्कर दी, इसका भी उल्लेख किया है। इसी फिल्म का एक गीत है- ‘दे दी हमें आज़ादी बिना खड्ग बिना ढाल, साबरमती के संत तूने कर दिया कमाल’। इसमें उन्होंने महात्मा गांधी के व्यक्तित्व का वर्णन किया है। इस गीत को पाकिस्तान ने भी अपने शब्दों में इस्तेमाल किया है। पाकिस्तान ने इस गीत में साबरमती के संत की जगह कायदे आजम जिन्ना के नाम का इस्तेमाल किया गया. इसके बोल इस प्रकार हैं- ‘यूं दी हमें आज़ादी कि दुनिया हुई हैरान, ऐ क़ायदे आज़म तेरा एहसान है एहसान।’ दरअसल जागृति फिल्म की तर्ज पर ही पाकिस्तान में ‘बेदारी’ फिल्म बनी। ‘बेदारी’ फिल्म में कवि प्रदीप के गीतों को पाकिस्तान के हिसाब से इस्तेमाल किया गया है। आओ बच्चों तुम्हें दिखाएं झांकी हिंदुस्तान की जगह वहां पाकिस्तान शब्द का इस्तेमाल किया गया है। भारत-पाकिस्तान बंटवारे के दौरान देश में जो अराजक हालात हुए उनपर कवि प्रदीप ने बड़े ही मार्मिक गीत लिखे- ‘देख तेरे संसार की हालत क्या हो गई भगवान कितना बदल गया इंसान’ और ‘टूट गई है माला मोती बिखर चले’ जैसे गीत ऐसे ही हालात को बयां करते हैं।
संतोषी मां के गीतों ने मचाया तहलका –  कवि प्रदीप ने जो लिखा या जो गाया, वो कालजयी साबित हुआ। अब ‘संतोषी मां’ फिल्म की ही बात करें तो इसके सभी गीत सुपर-डुपर हिट साबित हुए। गुमनाम चेहरों वाली इस फिल्म ने गीतों की वजह से ही बॉक्स ऑफिस पर रिकॉर्ड तोड़ कमाई की। ‘मैं तो आरती ऊतारूं रे संतोषी माता की’, ‘यहां वहां जहां तहां मत पूछो कहां-कहां है संतोषी माँ’ और ‘करती हूं तुम्हारा व्रत में स्वीकार करो मां’ गीत आज भी मंदिरों और धार्मिक समारोह में सुने जा सकते हैं। यह हाल ‘हरिदर्शन’ फिल्म का है. इसके गीत (भजन) आज भी हिट हैं.
रामचंद्र नारायणजी द्विवेदी से कवि प्रदीप तक का सफर – कवि प्रदीप का जन्म 6 फरवरी, 1915 को महाकाल की नगरी उज्जैन में हुआ था। उनका असली नाम रामचंद्र नारायणीजी द्विवेदी था। कवि प्रदीप की शिक्षा इंदौर के ही शिवाजी राव हाईस्कूल में हुई। इसके बाद उन्होंने इलाहाबाद के दारागंज हाईस्कूल से तालीम हासिल की.उन्होंने लखनऊ विश्वविद्यालय से स्नातक किया। कवि प्रदीप का लेखन की तरफ झुकाव शुरू से ही था। हिंदी काव्य में उनकी गहन रुचि थी। छात्र जीवन में ही वे कवि सम्मेलनों में भाग लेने लगे थे और उनकी रचनाएं खूब पसंद की जाती थीं। 1952 में कवि प्रदीप का विवाह चुन्नीलाल भट्ट की पुत्री सुभद्रा बेन से हुआ था। प्रसिद्ध साहित्यकार सूर्यकांत त्रिपाठी निराला कवि प्रदीप के बारे में साहित्यिक पत्रिका ‘माधुरी’ के एक अंक में लिखते हैं, “आज जितने कवियों का प्रकाश हिन्दी जगत् में फैला हुआ है। उनमें ‘प्रदीप’ का अत्यंत उज्ज्वल और स्निग्ध है। हिंदी के हृदय से प्रदीप की दीपक रागिनी कोयल और पपीहे के स्वर को भी परास्त कर चुकी है. इधर 3-4 साल से अनेक कवि सम्मेलन प्रदीप की रचना और रागिनी से उद्भासित हो चुके हैं।”
कवि से गीतकार – कवि प्रदीप का लक्ष्य तो एक अध्यापक बनना था। इसके लिए उन्होंने टीचर ट्रेनिंग कोर्स- बीटीसी में भी दाखिला लिया। इस दौरान वे एक कवि के रूप में स्थापित हो चुके थे। उन्हें मुंबई में एक कवि सम्मेलन में शामिल होने का न्योता मिला था। कवि सम्मेलन में ‘बाम्बे टॉकीज स्टूडियो’ के मालिक हिंमाशु राय भी मौजूद थे और वे कवि प्रदीप की रचनाओं से बहुत प्रभावित हुए। हिंमाशु राय ने कवि प्रदीप के सामने फिल्म ‘कंगन’ के गीत लिखने का प्रस्ताव रखा।
चल चल रे नौजवान – कवि प्रदीप का एक गीत चल चल रे नौजवान भी अपने समय में बहुत ही लोकप्रिय हुआ। आजादी की लड़ाई में यह गीत नौजवानों में ऊर्जा का संचार करने का काम करता था। यह गीत 1940 में आई फिल्म ‘बंधन’ के लिए कवि प्रदीप ने लिखा था। उस समय आजादी की लड़ाई भी चरम पर थी. ‘चल चल रे नौजवान’ गीत आजादी के मतवालों में नया जोश भरने का काम करता था। आलम ये था कि प्रभात फेरियों में यह गीत गाया जाने लगा। सिंध और पंजाब की विधान सभाओं में यह गीत गाया जाने लगा। बलराज साहनी ने इस गीत को बीबीसी लंदन से प्रसारित करवाने का काम किया. यह गीत 1946 के ‘नासिक विद्रोह’ के दौरान सैनिकों का अभियान गीत बन गया था।