लड़कों में आजकल दाढ़ी बढ़ाने का चलन बढ़ गया है। पहले जहाँ क्लीन शेव चेहरे को आकर्षक माना जाता था, वहीं आजकल हल्की या घनी दाढ़ी का जमाना है। भरे हुए चेहरों पर अक्सर घनी दाढ़ी कूल लगती है। लेकिन कई लोगों के साथ समस्या ये होती है कि उन्हें दाढ़ी घनी नहीं आती है या उतनी घनी नहीं आती है, जितनी उनके लुक के लिए जरूरी होती है। ऐसे में अगर आप कुछ आसान टिप्स को आजमाएं, तो आप भी कुछ दिन में पा सकते हैं हैंडसम दाढ़ी वाला लुक।
ये हैं दाढ़ी बढ़ाने के लिए जरूरी विटामिन्स
स्वास्थ्य की तरह बालों की ग्रोथ में भी विटामिन का अहम रोल होता है। इसलिए अपने नियमित आहार में विटामिन बी को शामिल करें। विटामिन बी1, बी6 और बी12 भी बालों को जल्दी बढ़ाने में मदद करता है। साथ ही बायोटीन का सेवन करें। यह भी बालों को तेजी से बढ़ाने के लिए जाना जाता है। यह आपको फिश, सी फूड, अंडे, अनाज, दूध, दही, बीन्स, मीट और हरी सब्जियों में अच्छी मात्रा में मिलेगा।
एक्सफोलिएशन है जरूरी
आप अपनी त्वचा को साफ रखें। सुबह और शाम क्लींजर से कलीन करें। अगर आप हफ्ते में कम से कम एक बार चेहरे की त्वचा को एक्सफोलिएशन करेंगे तो इससे दाढ़ी को तेजी से बढने में मदद मिलेगी। एक्सफोलिएट डेड स्किन सेल्स को हटाने से नए बालों के विकास को प्रोत्साहन मिलेगा। आप चाहें तो पुरुषों की त्वचा के लिए बना कोई अच्छा एक्सफोलिएट मास्क भी इस्तेमाल कर सकते हैं।
नियमित ट्रिमिंग करें
दाढ़ी को नियमित ट्रिम करने या शेव करने से धीरे-धीरे दाढ़ी घनी होने लगती है। अलग-अलग लोगों के चेहरे पर अलग-अलग तरह से दाढ़ी उगती है। किसी के पूरे गाल पर बाल उगते हैं तो किसी के कुछ हिस्सों पर बाल नहीं कम आते हैं या नहीं आते हैं। ऐसे में अपनी दाढ़ी और चेहरे के लुक के अनुसार आपको समय-समय पर दाढ़ी ट्रिम भी करनी चाहिए। इसके अलावा लंबी दाढ़ी को शेप में लाने के लिए भी ट्रिमिंग जरूरी है।
दाढ़ी की सफाई जरूरी है
सर के बालों की तरह चेहरे के बालों को भी साफ-सफाई की ज़रूरत पड़ती है। दाढ़ी के बालों की सफाई के लिए शैंपू का प्रयोग किया जा सकता है। सप्ताह में दो बार शैंपू करने से दाढ़ी के बाल स्वस्थ रहते हैं। इससे डैंड्रफ का खतरा भी कम हो जाता है और बालों का रूखापन भी खत्म हो जाता है। ध्यान रखें दाढ़ी की सफाई में ठंडे या सामान्य पानी का प्रयोग करें। गर्म पानी के प्रयोग से बाल धीरे-धीरे सख्त हो जाते हैं।
ऑलिव ऑयल से बढ़ाएं दाढ़ी
ऑलिव ऑयल के प्रयोग से आपकी दाढ़ी के बाल मुलायम रहते हैं और ये इन्हें बढ़ाने में भी मदद करता है। ऑलिव ऑयल में मॉश्चराइजर के गुण भी होते हैं इसलिए ये आपके चेहरे की नमी को लॉक करता है, जिससे चेहरा खुरदुरा नहीं लगता। ऑलिव ऑयल को हल्का गर्म करके रोज रात में सोने से पहले चेहरे पर लगाएं। इससे आपकी दाढ़ी घनी होगी।
( साभार – ओनली माई हेल्थ)
हैंडसम दाढ़ी लुक चाहिए, तो अपनाएं ये तरीके
रेलवे में एयरपोर्ट जैसे नियम! ट्रेन से 20 मिनट पहले पहुँचना होगा स्टेशन
नयी दिल्ली : भारतीय रेलवे अब एयरपोर्ट की तरह सुरक्षा जाँच की व्यवस्था करने जा रहा है। नयी सुरक्षा व्यवस्था के तरह एयरपोर्ट की ही तरह स्टेशनों पर भी ट्रेनों के तय प्रस्थान समय से कुछ समय पहले प्रवेश की अनुमति बंद दी जा सकती है। साथ ही यात्रियों को सुरक्षा जाँच की प्रक्रिया पूरी करने के लिए 15 से 20 मिनट पहले पहुँचना होगा। हालांकि अभी तक यह व्यवस्था लागू नहीं की गई है।
रेलवे सुरक्षा बल के महानिदेशक अरुण कुमार ने पीटीआई को बताया कि उच्च तकनीक वाली इस सुरक्षा योजना को इस महीने शुरू हो रहे कुम्भ मेला के मद्देनजर इलाहाबाद में और कर्नाटक के हुबली रेलवे स्टेशन पर पहले से ही शुरू कर दिया गया है। साथ ही 202 रेलवे स्टेशनों पर योजना को लागू करने के लिए खाका तैयार कर लिया गया है।
उन्होंने बताया, ‘योजना रेलवे स्टेशनों को सील करने की है. यह मुख्यत: प्रवेश बिंदुओं की पहचान करने और कितनों को बंद रखा जा सकता है, यह निर्धारित करने के संबंध में है। कुछ इलाके हैं, जिन्हें स्थायी सीमा दीवारें बनाकर बंद कर दिया जाएगा, अन्य पर आरपीएफ कर्मियों की तैनाती होगी और उसके बाद बचे बिंदुओं पर बंद हो सकने वाले गेट होंगे।
कुमार ने कहा, ‘प्रत्येक प्रवेश बिंदु पर आकस्मिक सुरक्षा जाँच होगी. बहरहाल, हवाईअड्डों के उलट यात्रियों को घंटों पहले आने की जरूरत नहीं होगी बल्कि प्रस्थान समय से केवल 15-20 मिनट पहले आना होगा ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि सुरक्षा प्रक्रिया के चलते देर न हो.’ उन्होंने कहा कि सुरक्षा बढ़ेगी, सुरक्षाकर्मियों की संख्या नहीं।
जिम में पसीना न बहाएं, कुछ देर सीढ़ियां चढ़ लें
आजकल ज्यादातर लोग जिम में पसीना बहाकर अपना वजन कम करते हैं तो कुछ लोग फिट रहने की कोशिश करते हैं। लेकिन एक सर्वे में इस बात का खुलासा हुआ है कि रोजाना 1 घंटे जिम में पसीना बहाने से बेहतर है कि आप 15 मिनट सीढ़ियां चढ़ लें। सर्वे में इस बात का खुलासा हुआ कि जो लोग केवल एक मंजिल सीढियां चढ़कर अपने घर या ऑफिस जाते हैं, वह उनके आधे किलोमीटर ट्रेडमील पर चलने के बराबर हो जाता है।
सीढ़ियां चढ़ने के होते हैं इतने फायदे
सीढियां चढ़ना हार्ट और लंग्स के लिए जिम से ज्यादा फायदेमंद हैं। अगर आप रोजाना सीढ़ियां चढ़ते हैं तो आपकी थाई तो शेप में रहती है साथ ही मसल्स भी फ्लेक्सेबिल हो जाती हैं।
पूरी बॉडी की फिटनेस के लिए भी सीढ़ियां चढ़ना बेहद फायदेमंद है। इसके बाद आप जोड़ों की प्रॉब्लम जैसी चीजों से बचे रहेंगे।
सीढ़ियां चढ़ने से एड्रेनलिन हॉर्मोन एक्टिव हो जाता है। यह हॉर्मोन हार्ट की मसल्स तक ब्लड सर्कुलेशन बनाए रखने और हार्ट बीट नॉर्मल रखने के लिए बहुत जरूरी है।
ऊपर चढ़ने के दौरान जब बॉडी का 70-85 डिग्री का एंगल बनता है, तो यह पॉश्चर लोअर बॉडी के लिए और 135 डिग्री का एंगल अपर बॉडी के लिए बहुत फायदेमंद होता है।
सीढ़ियां चढ़ने से मसल्स में फैट इकट्ठा नहीं हो पाता और शरीर शेप में रहता है। यह टेंशन कम करने के साथ व्यक्ति को फोकस करने में भी मदद करता है।
‘स्पर्शज्ञान’: नेत्रहीनों के लिए देश का पहला ब्रेल अख़बार!
थोराट : महाराष्ट्र के स्वागत थोराट, फरवरी 2008 से भारत का पहला ब्रेल अख़बार ‘स्पर्शज्ञान’ चला रहे हैं। मराठी भाषा में प्रकाशित होने वाला 50 पन्नों का यह अख़बार, महीने की 1 तारीख़ और 15 तारीख़ को प्रकाशित होता है। ‘स्पर्शज्ञान’ का मतलब होता है ‘स्पर्श करके ज्ञान अर्जित करना’! स्वागत थोराट का यह अख़बार महाराष्ट्र के 31 जिलों में मौजूद नेत्रहीन स्कूलों और नेत्रहीनों के विकास से जुड़ी विभिन्न स्वंय सेवी संस्थाओं को मुफ्त में दिया जाता है। एक इंटरव्यू के दौरान थोराट ने बताया था कि उनकी शुरुआत अख़बार की 100 प्रतियों के साथ हुई थी, लेकिन अब वे 400 से ज्यादा प्रतियाँ प्रकाशित करते हैं।
स्वागत थोराट पेशे से स्वतंत्र पत्रकार और थियेटर निर्देशक रहे हैं। वे नियमित अन्तराल पर दूरदर्शन और कई अन्य मीडिया संस्थानों के लिए डॉक्युमेंट्री बनाते थे। इसी सिलसिले में उनको एक बार दूरदर्शन के ‘बालचित्र वाहिनी’ कार्यक्रम के लिए डॉक्यूमेंट्री बनाने का मौका मिला जो कि नेत्रहीनों के बारे में थी। इसी दौरान थोराट को नेत्रहीन बच्चों से सीधा मिलने, उन्हें जानने और उनके बारे में ज्यादा से ज्यादा समझने का मौका मिला। थोराट ने जाना कि कोई भी शारीरिक अक्षमता इन बच्चों की कल्पना और आगे बढ़ने के जज़्बे को नहीं रोक सकती।
साल 1997 में थोराट ने एक मराठी नाटक ‘स्वतंत्रयाची यशोगथा’ का निर्देशन किया। इस नाटक में पुणे के दो स्कूलों के 88 नेत्रहीन बच्चों ने हिस्सा लिया। यह नाटक इतना सफल रहा कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर इसकी चर्चा हुई। इस नाटक में 88 नेत्रहीन कलाकारों को शामिल करने के लिए इसका नाम गिनीज़ बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में दर्ज किया गया। थोराट ने बताया,
“जब मैं इस नाटक के मंचन के लिए इन बच्चों के साथ यात्रा कर रहा था तो मैंने देखा कि ये बच्चे आपस में देश दुनिया की उन चीजों के बारे में बात कर रहे थे जो इन्होने पहले कहीं पढ़ी थी या सुनी थी। तब मुझे अहसास हुआ कि ये बच्चे और ज्यादा जानने को इच्छुक हैं और ये उनकी जरूरत भी है।”
इसके बाद थोराट ने ठान लिया कि वे देश में नेत्रहीन लोगों के लिए जरुर कुछ करेंगे। इसके लिए उन्होंने अपनी बचत से लगभग 4 लाख रूपये खर्च कर एक ब्रेल मशीन खरीदी और मुंबई में एक ऑफिस भी किराये पर लिया। जिसके बाद 15 फरवरी, 2008 को ‘स्पर्शज्ञान’ का पहला अंक प्रकाशित हुआ।
थोराट कहते हैं कि हमारे समाज में नेत्रहीन लोगों के लिए बहुत कुछ होने की जरूरत है। आज उनकी टीम में छह लोग हैं। उन्हीं के प्रयासों के चलते साल 2012 में रिलायंस फाउंडेशन ने भी ब्रेल लिपि में एक हिंदी अख़बार ‘रिलायंस दृष्टि’ की शुरुआत की। रिलायंस दृष्टि का संपादन भी स्वागत थोराट ही करते हैं।
स्वागत थोराट के जैसे ही एक और समाज सेवी उपासना मकाती ने भी साल 2013 में नेत्रहीन लोगों के लिए ब्रेल लिपि में एक लाइफस्टाइल मैगज़ीन ‘व्हाइट प्रिंट‘ शुरू की। अंग्रेजी भाषा में प्रकाशित होने वाली यह मैगज़ीन देश की पहली लाइफस्टाइल ब्रेल मैगज़ीन है।
थोराट का कहना है कि सभी पुस्तकालयों में दृष्टिहीन छात्रों के लिए ब्रेल लिपि में पुस्तकों का एक विभाग अलग से होना चाहिए। हालांकि, शुरू में लोगों को थोराट का काम समझ नहीं आता था पर अब उनके और भी दोस्त व साथी उनका साथ दे रहे हैं। इस अख़बार में सामाजिक मुद्दों, अंतरराष्ट्रीय मामलों, प्रेरक जीवनी के अलावा शिक्षा, स्वास्थ्य, राजनीति, संगीत, फिल्म, थियेटर, साहित्य और खानपान से जुड़ी ख़बरें होती हैं।
आज हमारे देश में इस तरह के अख़बारों की मांग दिन-प्रतिदिन बढ़ रही है और इस पर थोराट कहते हैं“मैं उस दिन का सपना देख रहा हूँ जब इन लोगों (दृष्टिहीन) को इनका एक एक दैनिक अख़बार मिलेगा। मुझे उम्मीद है कि कोई एक मीडिया हाउस तो ऐसा अख़बार शुरू करेगा, और अगर नहीं तो कुछ सालों में, मैं एक दैनिक ब्रेल अख़बार जरुर शुरू करूँगा।”
(साभार – द बेटर इंडिया)
स्वामी विवेकान्द के शिक्षा सम्बन्धी विचार
स्वामी विवेकानन्द का नाम लेते ही सिर श्रद्धा से झुक जाता है, नई सोच और जो कहो वो कर दिखाने का जज्बा रखने वाले विवेकानन्द एक अभूतपूर्व मानव थे। अगर आज उनके बताए गए रास्तों पर हमारे देश के युवागण चले तो वो दिन दूर नहीं जब हमारा देश वैसा ही बन जाएगा जैसा बनाने का सपना बापू ने देखा था।
स्वामी विवेकानन्द ने पूरे जीवन चरित्र के निर्माण पर बल दिया। वह ऐसी शिक्षा चाहते थे जिससे बालक का सर्वांगीण विकास हो सके। बालक की शिक्षा का उद्देश्य उसको आत्मनिर्भर बनाकर अपने पैरों पर खड़ा करना था न कि केवल नौकरी करना ।’

‘निषेधात्मक शिक्षा’
स्वामी विवेकानन्द ने प्रचलित शिक्षा को ‘निषेधात्मक शिक्षा’ की संज्ञा देते हुए कहा है कि आप उस व्यक्ति को शिक्षित मानते हैं जिसने कुछ परीक्षाएं उत्तीर्ण कर ली हों तथा जो अच्छे भाषण दे सकता हो, पर वास्तविकता यह है कि जो शिक्षा जनसाधारण को जीवन संघर्ष के लिए तैयार नहीं करती, जो चरित्र निर्माण नहीं करती, जो समाज सेवा की भावना विकसित नहीं करती और जो शेर जैसा साहस पैदा नहीं कर सकती, ऐसी शिक्षा से क्या लाभ? इसलिए विवेकानंद ने सैद्धान्तिक शिक्षा के बजाय व्यावहारिक शिक्षा पर बल दिया ।
एक नजर विवेकानंद के शिक्षा-दर्शन के सिद्दांत पर
शिक्षा ऐसी हो जिससे बालक का शारीरिक, मानसिक एवं आत्मिक विकास हो सके।
शिक्षा ऐसी हो जिससे बालक के चरित्र का निर्माण हो।
शिक्षा ऐसी हो जिससे मन का विकास हो।
शिक्षा ऐसी हो जिससे बुद्धि विकसित हो और बालक आत्मनिर्भन बने।
बालक एवं बालिकाओं दोनों को समान शिक्षा
बालक एवं बालिकाओं दोनों को समान शिक्षा
बालक एवं बालिकाओं दोनों को समान शिक्षा देनी चाहिए।
धार्मिक शिक्षा, पुस्तकों द्वारा न देकर आचरण एवं संस्कारों द्वारा देनी चाहिए।
पाठ्यक्रम में लौकिक एवं पारलौकिक दोनों प्रकार के विषयों को स्थान देना चाहिए।
शिक्षा का प्रचार एवं प्रसार
शिक्षा, गुरू और घर में प्राप्त की जा सकती है।
शिक्षक एवं छात्र का सम्बन्ध अधिक से अधिक निकट का होना चाहिए।
सर्वसाधारण में शिक्षा का प्रचार एवं प्रसार किया जाना चाहिये।
तकनीकी शिक्षा की व्यवस्था
तकनीकी शिक्षा की व्यवस्था
देश की आर्थिक प्रगति के लिए तकनीकी शिक्षा की व्यवस्था की जाए।
मानवीय एवं राष्ट्रीय शिक्षा परिवार से ही शुरू करनी चाहिए।
(साभार)
इल्हान बनीं हिजाब पहनकर शपथ लेने वाली पहलीअमेरिकी मुस्लिम महिला
वॉशिंगटन : अमेरिका में पिछले साल नवम्बर में मध्यावधि चुनावों में जीत हासिल करने के बाद कांग्रेस तक पहुंची दो मुस्लिम महिलाओं में से एक इल्हान उमर ने एक और इतिहास रच दिया है। इल्हान हिजाब पहनकर शपथ लेने वाली पहली अमेरिकी मुस्लिम महिला हैं। गुरुवार को उन्होंने अपने सिर पर हिजाब बांधकर शपथ ली।
इल्हान 14 साल की उम्र में सोमालिया से एक शरणार्थी के तौर पर अमेरिका आईं थी। डेमोक्रेट पार्टी से चुनी गईं 37 वर्षीय इल्हान ने हाउस फ्लोर पर सिर ढकने पर लगे प्रतिबंध को खत्म करने की शुरुआत की। डेमोक्रेट्स सदस्यों के नियमों के पैकेज को मंजूरी मिलने की वजह से उनके लिए राह आसान बनी। इस पैकेज के तहत सिर पर धार्मिक कपड़ा बांधने की इजाजत दी गई है। हालांकि बेसबॉल टोपी या हैट पहनकर शपथ लेने की अनुमति अभी भी नहीं दी गई है। यही नहीं इल्हान ने पवित्र कुरान पर हाथ रखकर पद की शपथ ली।
नियम के खिलाफ आवाज उठाई – इल्हान उमर ने नवंबर में चुनाव जीतने के बाद से ही इस नियम के खिलाफ आवाज उठानी शुरू कर दी थी। जीत के बाद उन्होंने ट्वीट करते हुए कहा था, ‘मेरे सिर पर स्कार्फ किसी अन्य ने नहीं बल्कि मैंने खुद बांधा है। यह मेरी पसन्द है, जिसकी रक्षा पहले संशोधन से की गई है। और यह आखिरी प्रतिबंध नहीं है, जिसके खिलाफ मैं आवाज उठाने वाली हूँ।’ स्पीकर चुनी गईं नेन्सी पैलॉसी और सदन नियम समिति के चेयरमैन जिम मैक्गवर्न ने उनकी माँग को स्वीकार करते हुए इस बदलने वाले नियमों के पैकेज में शामिल किया था। हालांकि उनके साथ चुनी गई दूसरी मुस्लिम महिला राशिदा तालिब हिजाब नहीं पहनती हैं।
180 साल पुराना प्रतिबंध – सदन में किसी भी तरह की टोपी, स्कार्फ या अन्य कपड़ा बांधने पर रोक का नियम करीब 180 साल पुराना है। वर्ष 1837 से इस पर प्रतिबंध लगा हुआ था। ब्रिटिश संसद के जमाने से चले रहे नियम के तहत सदन में प्रत्येक सदस्यों या मेहमानों को अपनी टोपी उतार कर रखनी पड़ती थी।
शरणार्थी शिविर में बीता बचपन – सोमालिया में गृह युद्ध छिड़ने के बाद 1991 में इल्हान का परिवार केन्या के शरणार्थी कैंप में रहने लगा। यहीं इल्हान का बचपन बीता और उनकी राजनीति में रुचि बढ़ने लगी। बेहतर भविष्य की तलाश में उनका परिवार 1995 में अमेरिका आ गया। वह अमेरिकी प्रांत मिनेसोटा की प्रतिनिधि सभा के लिए भी चुनी गईं।
हिन्दी मेले के प्राक रजत जयन्ती वर्ष में बही सृजनात्मक बयार
कोलकाता में सात दिवसीय हिंदी मेले का प्राक रजत जयन्ती वर्ष समाप्त हुआ। हिंदी मेला भारतीय संस्कृति की एक टूट रही कड़ी को बचाने का प्रयास है। यह हिंदी समाज को अपनी साहित्यिक विरासत और उच्च मूल्यों को बचाये रखने की प्रेरणा देता है। अपराजिता में हिन्दी मेले के प्राक रजत जयन्ती वर्ष की सिलसिलेवार रपट दी जा रही है –
पहला दिन – उद्घाटन और लघु नाटक प्रतियोगिता
युवाओं के बीच इसकी लोकप्रियता हिंदी के प्रति उनके गहरे प्रेम का सबूत है। आज राममोहन हॉल में सांस्कृतिक पुनर्निर्माण मिशन द्वारा आयोजित हिंदी मेला के पहले दिन नाट्योत्सव का उद्धाटन करते हुए प्रसिद्ध साहित्यकार विजय बहादुर सिंह ने यह बात कही। आज से 6 दिनों तक हिंदी मेला इसी इलाके के फेडरेशन हॉल में चलेगा। हिंदी मेला का यह मंच का नाम कवि केदारनाथ सिंह को समर्पित है। उद्धाटन समारोह में प्रसिद्ध पत्रकार विश्वंभर नेवर ने कहा कि हिंदी मेला निरंतर 24 सालों तक सफलता पूर्वक करते रहना बंगाल में हिंदी के सम्मान को बनाए रखने का एक बड़ा संकल्प है। इसे हिंदी भाषियों का व्यापक सहयोग मिलना चाहिए। रामनिवास द्विवेदी ने कहा कि हिंदी मेला कलकत्ते का गौरव और हिंदी भाषियों के आत्मविश्वास का प्रतीक है। संस्था के महासचिव डॉ राजेश मिश्र ने कहा कि हिंदी मेले के रजक जयंती वर्ष का आगाज है इस साल का हिंदी मेला। मिशन के अध्यक्ष डॉ शंभुनाथ ने कहा कि हिंदी मेला युवाओं का, युवाओं द्वारा और युवा के लिए एक राष्ट्रीय अभियान है। इसका लक्ष्य एक ऐसी संस्कृति का निर्माण करना है जिसमें सहिष्णुता, भाईचारा और नए सृजन का प्रवेश हो। हिंदी मेला एक सांस्कृतिक उपलब्धि है। इस अवसर पर दिवंगत रचनाकारों के प्रति श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए दो मिनट का मौन रखा गया। नाट्योत्सव में विश्वविद्यालयों, कॉलेजों और नाट्य संगठनों को मिलाकर कुल 20 दलों ने हिस्सा लिया।

इसमें प्रेसीडेंसी विश्वविद्यालय, विद्यासागर विश्वविद्यालय, आर.बी.सी कॉलेज, खुदीराम बोस सेंट्रल कॉलेज, राजा नरेंद्र लाल खान वुमेन कॉलेज, आर.बी.सी. सांध्य कॉलेज, मनींद्रचंद्र कॉलेज, महाराजा श्रीशचंद्र कॉलेज, नारायणा स्कूल, आदर्श बालिका विद्यालय, आर्य कन्या महाविद्यालय, नैहट्टी आनंद स्वरूप हाई स्कूल, इंद्रा द गुरुकुल, भोजपुरी साहित्य विकास मंच, विलीभ, नीलांबर नाट्य दल, रेनेसां नाट्य दल, इग्नू, हमारा प्रयास, फॉस्ट ट्रैक संस्था, रिषी स्टडी मिशन और दिनेश क्लासेस संस्था ने हिस्सा लिया। नाटक के निर्णायक मंडल में थे महेश जायसवाल, प्लावन बसु और सुशील कांति। नाट्योत्सव का संचालन ममता पांडेय और अनिता राय ने किया। हिंदी मेला के पहले दिन धन्यवाद देते हुए मिशन के संयुक्त महासचिव प्रो. संजय कुमार जायसवाल ने कहा कि हिंदी मेला कट्टरवाद और अपसंस्कृति के समानान्तर स्वस्थ भारतीय संस्कृति का मंच है। हिंदी मेले के पहले दिन हुए लघु नाटक प्रतियोगिता में श्रेष्ठ प्रस्तुति का शिखर सम्मान विद्यासागर विश्वविद्यालय (मिदनापुर), श्रेष्ठ निर्देशक पंकज सिंह, ऋषि बंकिम चंद्र सांध्य महाविद्यालय, श्रेष्ठ अभिनेत्री कौशिकी बोस, नारायणा स्कूल, श्रेष्ठ अभिनेता विशाल पांडेय, नीलांबर कोलकाता, श्रेष्ठ बाल अभिनेता का पुरस्कार पीयूष चौधरी, स्टडी मिशन को मिला।
दूसरा दिन – रंगों और ज्ञान में बिखरी सृजनातत्मकता
हिंदी मेला के दूसरे दिन हिंदी ज्ञान प्रतियोगिता में विद्यार्थियों ने बड़े उत्साह से भाग लिया। इस अवसर पर स्कॉटिश चर्च कॉलेज की डॉ. गीता दूबे ने कहा कि यह प्रतियोगिता विद्यार्थियों के मस्तिष्क को मुक्त और उर्वर बनाने के लिए है। आज हिंदी के विद्यार्थी अपनी भाषा, अपने समाज और अपनी सभ्यता को जाने बिना विकास की दौड़ में पिछड़ जाएंगें। खिदिरपुर कॉलेज की प्रो. इतु सिंह ने कहा कि हिंदी मेला ज्ञान का संगम है और इससे हिंदी की सांस्कृतिक क्षमता का बोध होता है। इस युग में युवाओं को परीक्षा की तैयारी के अलावा भी देश-दुनिया का ज्ञान रखना होगा। रितेश पांडेय ने चित्रांकन प्रतियोगिता के संदर्भ में कहा कि विद्यार्थियों ने गांधी की अहिंसा पर सुंदर चित्र बनाकर अपने देश के मूल स्वर को रंगों के माध्यम से व्यक्त किया है। चित्रकला रंगों के जरिए सृष्टि एवं समाज की कलात्मक अभिव्यक्ति है। चित्रांकन और कविता पोस्टर में बड़े पैमाने पर शिशुओं और युवाओं ने भाग लिया। चिंत्राकन प्रतियोगिता के शिशु वर्ग में शिखर सम्मान लोपामुद्रा सेन, ओरियंटल पब्लिक स्कूल, प्रथम स्थान प्रथमा साव, कांकीनाड़ा सेंट्रल स्कूल, द्वितीय स्थान लावण्या साव, तृतीय स्थान अनामिका घोष, साउथ काजीपाड़ा ब्यॉज प्राइमरी स्कूल, चतुर्थ स्थान अलीना परवीन, पंचम स्थान ऋषभ राय, डेफ्फोडिल हाई स्कूल एवं षष्ट्म स्थान नेहा उराव को प्राप्त हुआ।

अ वर्ग में शिखर सम्मान सुनीता चौरसिया, रिसड़ा विद्यापीठ, प्रथम स्थान राजकुमारी बरमन, द्वीतीय स्थान राजदीप साहा, दिल्ली पब्लिक स्कूल, तृतीय स्थान श्री राव, हरिप्रसाद प्राइमरी, चतुर्थ स्थान प्रीति साव, सोहनलाल देवरालिया बालिका विद्यापीठ, पंचम स्थान सुनीता कुमारी साव, जयपुरिया कॉलेज, षष्ट्म स्थान अर्चना झा, सोहनलाल देवरालिया, सप्तम स्थान निधि साव, सेंट ल्यूक डे स्कूल को प्राप्त हुआ है। कविता पोस्टर प्रतियोगिता में शिखर सम्मान आदित्य प्रकाश साव, आमडांगा सरकारी आईटीआई कॉलेज, प्रथम स्थान पर रहमत अली, कांकीनाड़ा हिमायतुल गुर्बा हाई स्कूल, द्वीतीय स्थान पर अनामिका सिंह, भवानीपुर एडुकेशन सोसाइटी, तृतीय स्थान पर कार्तिक सुरोलिया, बेथुन कॉलेज, चतुर्थ स्थान पर स्वाती रेक्ता, गोप कॉलेज(मिदनापुर) हैं। हिंदी ज्ञान प्रतियोगिता वर्ग अ का शिखर सम्मान आदर्श हिंदी हाई स्कूल को मिला।
तीसरा दिन – काव्य आवृत्ति में दिखी युवाओं व साहित्य की प्रखरता
सांस्कृतिक पुनर्निर्माण मिशन द्वारा आयोजित हिंदी मेला के तीसरे दिन बच्चों और नौजवानों ने फेडरेशन हॉल में हिंदी की श्रेष्ठ कविताओं की गंगा उतर आई। निराला, अज्ञेय, दिनकर, मुक्तिबोध, नागार्जुन, केदारनाथ अग्रवाल, सर्वेश्वर दयाल सक्सेना, राजेश जोशी, अरुण कमल, विनोद कुमार शुक्ल, कुमार अंबुज, अवतार सिंह पाश और विशेषकर केदारनाथ सिंह की कविताओं का पूरे आरोह-अवारोह और गहरी भावनाओं के साथ आवृति की गई। हिंदी में काव्य आवृति परंपरा के उत्कर्ष पर टिप्पणी करते हुए कवि राज्यवर्द्धन ने कहा कि विद्यार्थियों द्वारा अधिक से अधिक कविताएं कंठस्थ करना और पाठ करना उनमें अच्छी भाषा के संस्कार पैदा करते हैं। डॉ रिषिकेश रॉय का कहना था कि नौजवानों द्वारा काव्य आवृति का निरंतर अभ्यास नई पीढ़ी की मानवता पर आस्था की सूचना है। प्रो. सुनंदा चौधरी राय ने कहा कि जैसा मैंने अनुभव किया कि हिंदी मेला वास्तव में दृष्टि बोध की तैयारी का मंच है। यहां विद्यार्थी अपने व्यक्तित्व को निखारने का सक्षम प्रयास करते हैं। उन्होंने यह भी कहा कि कविता के चमन को कंठस्थ करना और एक बड़े श्रोताओं के समक्ष पाठ करना एक नई संस्कृति की नींव रखना है। हिंदी के विद्यार्थी पाठ्यक्रम से बाहर जाकर हिंदी की श्रेष्ठ कविताओं को अपने जीवन का अंग बना रहे हैं।

कविता विद्वेष और हिंसा के विरुद्ध मानवता की आवाज है। सुनीता श्रीवास्तव ने कहा कि हिंदी को आगे बढ़ाने में हिंदी मेला मील पत्थर की तरह महत्वपूर्ण भूमिका निभाता रहा है। हिंदी मेला का यह आयोजन हिंदी भाषियों को एक सशक्त मंच प्रदान करता है। रिंतेश पांडेय ने कहा कि काव्य आवृति मेला ने कविताओं को विद्यार्थों और उनके माध्यम से जनता में लोकप्रिय बनाने का कार्य किया है। संजय राय ने कहा कि काव्य संस्कार तैयार करने में काव्य आवृति जैसी प्रतियोगिताओं की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। पूरा का पूरा दिन कविताओं के बीच बिताना एक सुखद अनुभव होता है। सौमित्र जायसवाल ने कहा कि कविताएं मनोयोग से सुनना भी एक कला है। ममता पांडेय ने काव्य आवृति का संचालन करते हुए काव्य आवृति को एक चुनौतीपूर्ण कला है। काव्य आवृति प्रतियोगिता के शिशु वर्ग का शिखर सम्मान नलिनी साहा, सेंट ल्यूक्स डे स्कूल, प्रथम पुरस्कार लावण्या साव, सेंट ल्यूक्स डे स्कूल, द्वितीय पुरस्कार अन्वी साव, गुरुकुल ग्लोबल स्कूल, चतुर्थ स्थान पर अनुप्रिया सिंह, द हेरिटेज स्कूल, विशेष पुरस्कार निंकुज नागोरी, अस्मी सिंह, इशिका चौहान, लीजा कर्मकार, वैष्णवी कुमारी साव को मिला। वर्ग अ का शिखर सम्मान नेहल मोदी, महादेवी बिड़ला अकादमी, प्रथम स्थान रौनक पांडेय, डॉन बास्को लिलुआ स्कूल, द्वितीय उदयवीर अग्रवाल, लक्ष्मीपत सिंघानिया, तृतीय स्थान स्वाती सिंह, सेठ सूरजमल जालान बालिका विद्यालय, अश्विका सिंह विशेष पुरस्कार नीरव नागोरी, दिव्यांशु सिंह, जेबा परवीन, जयप्रकाश यादव को मिला।
चौथा दिन – काव्य संगीत, लोकगीत व भाव नृत्य से जुड़कर निखरा साहित्य
सांस्कृतिक पुनर्निर्माण मिशन के हिंदी मेला का चौथा दिन काव्य संगीत,लोकगीत और भाव नृत्य को समर्पित था। शुरूआत गांधी के प्रिय भजन वैष्णव जन तो तैने कहिए जे पीर पराई जाने के गायन से हुई। कबीर, मीरा, प्रसाद, नागार्जुन और दुष्यंत कुमार की कविताओं को संगीत पर प्रस्तुत की गईं। लोकगीत और भाव नृत्य में युवाओं के अलावा बच्चों की प्रस्तुतियों ने श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया। कवि विमलेश त्रिपाठी ने कहा कि हिंदी मेला नई प्रतिभाओं को सामने लाने का एक बड़ा मंच है जिसने देश भर के साहित्यकारों को आकर्षित किया। उमा दगमान ने कहा कि हमें गर्व है कि हिंदी मेला के रूप में इतना बड़ा आयोजन होता है। यह हिंदी भाषियों के आत्मसम्मान का प्रतीक है। डॉ सुमिता गुप्ता ने कहा कि हिंदी मेला की कोशिश हिंदी काव्य को संगीत और नृत्य से जोड़ने की है, ताकि उसकी लोकप्रियता बढ़े। साहित्य को कलाओं से जोड़ना जरूरी है।

पीयूष कांत राय ने कहा कि लोकगीत आम जनता के ह्दय का स्पंदन है जिसे बाजारू लोकगीत विकृत कर रहे हैं। हिंदी मेला इसे लेकर जागरूकता पैदा कर रहा है। डॉ राजेश मिश्र ने लोकगीत को स्वस्थ रूप देन की अपील की। काव्य संगीत प्रतियोगिता में शिखर सम्मान प्रीति साव, फास्ट ट्रैक ट्युटोरियल, प्रथम पुरस्कार संयुक्त रूप से आयुष पांडेय, ऑक्सफोर्ड हाई स्कूल और तृषांणिता बनिक, प्रेसीडेंसी वी.वी, द्वितीय अनीष पांडेय, मैथोडिस्ट स्कूल, तृतीय पुरस्कार रश्मि त्रिपाठी, सोहनलाल देवरालिया बालिका विद्यालय, विशेष पुरस्कार रितविक मित्रा मुस्ताफी, शिवांगी कुमारी, हरप्रसाद प्राइमरी स्कूल, मधु सिंह, विद्यासागर विश्वविद्यालय(मिदनापुर) को प्राप्त हुआ। पिछले दिन हुई काव्य आवृति प्रतियोगिता वर्ग क में शिखर सम्मान शुभ्रस्वपना मुखोपाध्याय, बेथुन कॉलेज, प्रथम पुरस्कार कीर्तिका सुरोलिया, द्वितीय रेशमी सेन शर्मा प्रेसीडेंसी विश्वविद्यालय, तृतीय अंकिता द्विदेदी, राजा नरेंद्र लाल खान महिला कॉलेज, विशेष पुरस्कार रुम्पा कुमारी साव, वर्दवान वि.वि, श्वेता तिवारी, सुनील दास, सेंट पॉल, आशीष यादव, कांचरापाड़ा कॉलेज, सलोनी शर्मा, विद्यासागर विश्वविद्यालय को मिला।
पाँचवां दिन – कवि सम्मेलन तथा पुस्तक लोकार्पण
24वें हिंदी मेले में कोलकाता के अलावा वर्दवान, उत्तर 24 परगना और हावड़ा के युवा कवियों ने अपनी कविता का पाठ किया। इनका साथ वरिष्ठ कवियों ने दिया। कवि सम्मेलन की परंपरा को समृद्ध करते हुए 50 कवियों ने अपनी रचनाओं का पाठ किया जिसका फोकस स्त्री आत्म सम्मान, भाईचारा और दुनिया में हिंसा से छाया भय विशेष रूप से था। इस अवसर पर विमलेश त्रिपाठी के नए कविता संकलन ‘यह मेरा दूसरा जन्म है’ का लोकार्पण हिंदी मेला में विशेष अतिथि के रुप में उपस्थित डॉ विजय बहादुर सिंह, अवधेश प्रधान और किशन कालजयी ने किया। जिन कवियों ने रचना पाठ किया उनमें काली प्रसाद जायसवाल, शैलेंद्र शांत,महेश जायसवाल, हीरालाल जायसवाल, विनोद प्रकाश गुप्ता, रेणु द्विवेदी, शैलेष गुप्ता, राजवर्धन, सेराज खान बातिश, सुषमा त्रिपाठी, रितेश पांडेय, विमलेश त्रिपाठी, संजय राय,आनंद गुप्ता, ममता पांडेय, अभिज्ञात, राजेश मिश्रा, रौनक आफरोज, नागेंद्र पंडित, शिव प्रकाश दास, पंकज सिंह, राहुल शर्मा, मधु सिंह, अनुप यादव, सूर्यदेव राय, रूपेश कुमार यादव, तृषाणिता बनिक, गुड़िया राय, मुकेश मंडल, बागी विकास, जितेंद्र जितांशु, राहुल गौड़, जितेंद्र सिंह, अनिला राखेचा, शैलेंद्र सिंह, नीति सिंह, सुरेश शॉ, रंजित सिन्हा, अभिषेक महत्तो, पार्वती शॉ, शहजादी खातून, अजय सिंह, सौरभ झा, रामकेश सिंह, प्रियंका गोप आदि कवि शामिल थे।

हिंदी मेले के पांचवें दिन ‘गांधी प्रासंगिक है’ विषय पर वाद-विवाद और आशु भाषण प्रतियोगिता का आयोजन किया गया। जिसमें विभिन्न शिक्षण संस्थाओं के कुल 44 प्रतिभागियों ने भाग लिया। बतौर निर्णायक डॉ विवेक सिंह ने कहा कि वाद-विवाद प्रतियोगिता के जरिए हिंदी मेला के इस मंच ने विद्यार्थियों के बीच गांधी को विमर्श का विषय बनाया। डॉ प्रीति सिंघी ने कहा कि आशु भाषण विद्यार्थियों के बौद्धिक क्षमता को बढ़ाता है। वाद विवाद प्रतियोगिता वर्ग अ में शिखर सम्मान अद्रिजा पाल, केंद्रीय विद्यालय(आईआईटी खड़गपुर), प्रथम स्थान शेख साहिल, आदर्श हिंदी हाई स्कूल, द्वितीय स्थान पर संयुक्त रूप से पूर्णिमा सिंह, नारायणा स्कूल और अंकित कुमार, आदर्श हिंदी हाई स्कूल, तृतीय प्राची सिंह, सोहनलाल देवरालिया बालिका विद्यालय, प्रमोद तिवारी, सेंट ल्यूक्स को मिला। वर्ग क का शिखर सम्मान प्रिया शर्मा, विद्यासागर कॉलेज, प्रथम स्थान राजेश सिंह, कलकत्ता विश्वविद्यालय, द्वितीय मनीष गुप्ता, प्रेसीडेंसी विश्वविद्यालय, महेश कुमार, दक्षिण बिहार केंद्रीय विश्वविद्यालय, शेख एजाज अहमद, खिदिरपुर कॉलेज को प्राप्त हुआ। इस अवसर पर राजेंद्र केडिया, महेश लोधा, नरेंद्र जी धानुका ने गांधी 150 संस्था के तहत प्रतिभागियों को प्रोत्साहित किया। पिछले दिन हई लोकगीत एकल प्रतियोगिता में शिखर सम्मान आयुष पांडेय, प्रथम राजेश सिंह, कलकत्ता वि.वि, प्रीति साव, फॉस्ट ट्रैक, द्वितीय अदिती दुबे, हावड़ा नवज्योति, तृतीय नैना प्रसाद, विशेष पुरस्कार पूजा सिंह, सूर्यदेव राय को मिला। लोकगीत दल प्रतियोगिता का शिखर सम्मान हावड़ा नवज्योति दल, प्रथम सपना कुमारी एवं दल, द्वितीय प्रीति साव एवं दल, खुदीराम बोस सेंट्रल कॉलेज को मिला। भाव नृत्य एकल प्रतियोगिता का शिखर सम्मान अभिस्मिता दास गुप्ता, प्रथम मनीषा चक्रवर्ती, द्वितीय रश्मि वर्मा, तृतीय पूर्णिमा हल्दार को मिला। भाव नृत्य समूह प्रतियोगिता का शिखर सम्मान ज्योति गिरी एवं दल , प्रथम तिथि दास, द्वितीय डफोडिल हाई स्कूल, तृतीय सोहनलाल देवरालिया, चतुर्थ अदिति दूबे एवं दल, पंचम कोमला झा एवं दल को मिला
छठां दिन – संगोष्ठी में दिया गया गाँधी की विरासत को सहेजने का सन्देश
सांस्कृतिक पुनर्निर्माण मिशन द्वारा आयोजित 24वें हिंदी मेला के राष्ट्रीय परिसंवाद के अवसर पर कहा गया कि गांधी वर्तमान भय और हिंसा के माहौल में सबसे अधिक प्रासंगिक हैं। गांधावादी चिंतक आत्माराम सरावगी ने कहा कि आज गांधी के बिना उनका भी काम नहीं चल रहा है जो गांधी के विरोधी हैं। गांधी को कई बार मारने की कोशिश हुई लेकिन दुनिया में गांधी पर रोज चिंतन चल रहा है। कलकत्ता विश्वविद्यालय के डॉ आशुतोष जी ने कहा कि आज के भारत में नई मशीनें और कृत्रिम मेधा आने से बेरोजगारी बढ़ रही है, ऐसे में साधारण लोगों में आत्मनिर्भरता कैसे आएगी जो गांधी का स्वप्न था। आज बाजार में सबसे ज्यादा किसानों की हालत खराब है। प्रेसीडेंसी विश्वविद्यालय के प्रो. वेदरमण ने कहा कि गांधी का व्यक्तित्व भीतर और बाहर से एक था, उनका दोहरा व्यक्तित्व नहीं है। गांधी का संदेश है कि यह अकेले रहने का युग नहीं है। भागलपुर विश्विद्यालय के डॉ किशन कालजयी ने कहा कि आजादी के पहले से 21वीं सदी में गैर-बराबरी बढ़ी है। गांधी अंतिम जन तक राष्ट्र की शक्ति पहुंचाने के बारे में कहते थे।

पहले सत्र का अध्यक्षीय भाषण रखते हुए बनारस हिंदु विश्वविद्यालय के प्रो. अवधेश प्रधान ने कहा कि गांधी जो परंपरागत राजनीतिज्ञों और अंग्रेजी सत्ता के लिए बड़े असुविधाजनक थे। उन्होंने विचार की नई जमीन तोड़ी और सत्य तथा अहिंसा का प्रचार किया उन्होंने जमीनी सच को राष्ट्रीय सच बनाया। उन्होंने हिंदी को देश को जोड़ने वाली भाषा घोषित किया। गांधी पर परिसंवाद के दूसरे सत्र में डॉ गीता दूबे ने कहा कि गांधी को जानने के लिए गांधी की राह से गुजरते हुए उनके पूरे जीवन को जानना होगा। केरल केंद्रीय विश्वविद्यालय के राम विनोद रे ने कहा कि गांधी ने खादी और हिंदी के जरिए भारत को जोड़ने का काम किया। गांधीवादी चिंतक डॉ शंकर सान्याल ने कहा कि गांधी शांति और अंहिसा के पुजारी हैं। उनके बिना भारत की कल्पना नहीं की जा सकती। रांची विश्वविद्यालय के प्रो. अरुण कुमार ने कहा कि ज्ञान का वर्गीकरण घातक होता है। उन्होंने गांधी को आमजन का प्रतिनिधि बताया। डॉ शंभुनाथ ने कहा कि गांधी के आदर्शों से वर्तमान यथार्थ की दूरी काफी बढ़ गई है। गांधी ने बड़ा काम यह किया कि उन्होंने लोगों के मन से भय दूर कर आत्मविश्वास पैदा किया। गांधी देश में निर्भीकता की आवाज हैं। इस मौके पर श्री राम निवास द्विवेदी ने हिंदी मेला से जुड़े वरिष्ठ सदस्यों का शॉल ओढ़ा कर सम्मान किया। कार्यक्रम का सफल संचालन संजय राय, राहुल शर्मा, अंजली सिंह, रजनीश कुमार मिश्र, राहुल गौड़, अनिल गौड़ ने किया। धन्यवाद ज्ञापन मिशन के संयुक्त महासचिव प्रो. संजय कुमार जायसवाल ने किया।

सातवाँ दिन – युवा शिखर सम्मान के साथ नाट्य व पत्रकारिता सम्मान
सात दिवसीय हिंदी मेले का समापन साहित्य उत्सव के साथ नए साल का अभिनंदन करते हुए हुआ। युवाओं और बच्चों ने श्रेष्ठ कविताओं का गायन, आवृत्ति, और उन पर आधारित नृत्य प्रस्तुत किए जिन्हें काफी सराहा गया। स्त्री उत्पीड़न का विरोध अधिकांश नृत्यों का केंद्रीय विषय था।
लगभग 200 प्रतिभागियों को उपहार, नगद सम्मान राशि और स्मृति चिह्न प्रदान किए गए। माधव शुक्ल नाट्य सम्मान से पुरस्कृत कल्पना ठाकुर ने कहा कि पिछले 24 सालों से हिंदी मेला से नई कला प्रतिभाएं सामने आ रही हैं। उन्होंने कहा कि साहित्य और कलाएं हमारी सांसें हैं और इनके बिना जीवन में सच्चा आनंद संभव नहीं है।

हिंदी मेले में युगल किशोर सुकुल पत्रकारिता सम्मान से नवाजी गई मनोज्ञा लोइवाल ने कहा कि युवाओं में सबसे ज्यादा जरूरी यह आत्मविश्वास पैदा करना है कि उन्हें पत्रकारिता, कला और साहित्य के क्षेत्र में अपना सर्वश्रेष्ठ देना है। इसके लिए बाधाओं और बंधनों से जूझना होगा। डॉ शंभुनाथ, प्रो. इतु सिंह, प्रो. विभा कुमारी, श्री राम निवास द्विवेदी, डॉ अवधेश प्रसाद सिंह, प्रियंकर पालीवाल, दिनेश साव, रामाशंकर सिंह, महेश जायसवाल और जितेंद्र सिंह के हाथों से पुरस्कार प्रदान किए गए। कार्यक्रम का सफल संचालन डॉ राजेश मिश्र, डॉ सुमिता गुप्ता, पीयूष कांत राय, नवोनिता दास, प्रो. मंटू कुमार, पूजा गुप्ता, पंकज सिंह, मिथिलेश साव, सुशील पांडेय और दिव्या प्रसाद ने किया। धन्याद ज्ञापन डॉ अनिता राय ने किया।
नहीं रहे अभिनेता कादर खान
मुम्बई : बॉलीवुड के दिग्गज अभिनेता कादर खान का 81 साल की उम्र में कनाडा में निधन हो गया। उनकी लंब अर्से से तबीयत खराब थी और कुछ दिन पहले उन्हें एक अस्पताल में भर्ती करवाया गया था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने कादर खान के निधन पर दुख जताया है। प्रधानमंत्री ने अपने ट्वीट में कहा कि कादर खान जी ने अपने अद्भुत अभिनय कौशल से फिल्मी स्क्रीन को आलोकित किया, उनका हास्य विनोद का अंदाज अनोखा था ।
पीएम मोदी ने कहा कि वे एक शानदार पटकथा लेखक थे और कई अविस्मरणीय फिल्मों से जुड़े रहे। उन्होंने कहा कि उनके निधन से दुखी हूं। उनके परिवार एवं प्रशंसकों के प्रति संवेदना प्रकट करता हूं। वहीं, कांग्रेस अध्यक्ष ने फेसबुक पर पोस्ट लिखर शोक प्रकट किया। राहुल गांधी ने पोस्ट में कहा, ‘मुझे जाने-माने अभिनेता कादर खान जी के निधन के बारे में सुनकर दुख हुआ। मैं उनके परिवार, मित्रों और दुनिया भर में मौजूद प्रशंसकों के प्रति गहरी संवेदना प्रकट करता हूं।’ उन्होंने कहा, ‘हमें कादर खान की कमी हमेशा महसूस होगी।’
बॉलीवुड के दिग्गज अभिनेता कादर खान का 81 साल की उम्र में कनाडा में निधन हो गया। उनकी लंब अर्से से तबीयत खराब थी और कुछ दिन पहले उन्हें एक अस्पताल में भर्ती करवाया गया था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने कादर खान के निधन पर दुख जताया है। प्रधानमंत्री ने अपने ट्वीट में कहा कि कादर खान जी ने अपने अद्भुत अभिनय कौशल से फिल्मी स्क्रीन को आलोकित किया, उनका हास्य विनोद का अंदाज अनोखा था ।
पीएम मोदी ने कहा कि वे एक शानदार पटकथा लेखक थे और कई अविस्मरणीय फिल्मों से जुड़े रहे। उन्होंने कहा कि उनके निधन से दुखी हूं। उनके परिवार एवं प्रशंसकों के प्रति संवेदना प्रकट करता हूं। वहीं, कांग्रेस अध्यक्ष ने फेसबुक पर पोस्ट लिखर शोक प्रकट किया। राहुल गांधी ने पोस्ट में कहा, ‘मुझे जाने-माने अभिनेता कादर खान जी के निधन के बारे में सुनकर दुख हुआ। मैं उनके परिवार, मित्रों और दुनिया भर में मौजूद प्रशंसकों के प्रति गहरी संवेदना प्रकट करता हूं।’ उन्होंने कहा, ‘हमें कादर खान की कमी हमेशा महसूस होगी।’
72 साल पहले एक आंदोलन में बिछड़ गए थे पति-पत्नी अब मिले
कन्नूर : केरल का एक विवाहित जोड़ा पूरे 72 साल बाद मिला है। 93 वर्षीय ईके नारायणन नाम्बियार को वषर्ष 1946 में केरल के गांव कवुम्बई के किसान आंदोलन में जेल जाने के चलते पत्नी शारदा (अब 89 वर्षीय) से बिछुड़ना पड़ा था।
शादी के समय शारदा केवल 13 साल की थीं जबकि नारायणन महज 17 साल के थे। 72 साल बाद केरल के पारासिनिकादवू में शारदा के बेटे भार्गवन के घर पर नारायणन से शारदा की मुलाकात हुई। इस मुलाकात में दोनों की ही आंखें भरी हुई थीं और हजारों अनकही बातों के बावजूद दोनों ही एकदम चुप बैठे थे।
भावनाओं के आवेग के बीच नारायणन अपनी पहली पत्नी शारदा के पास चुपचाप बैठे रहे। शारदा ने अपने आंसू पोंछते हुए कहा, ‘मेरे मन में किसी के प्रति कोई गुस्सा नहीं है। मैं किसी से नाराज नहीं हूं।’ इसके बाद सिर झुकाए बैठी शारदा से नारायणन ने पूछा कि वह कुछ कह क्यों नहीं रहीं? वह चुपचाप क्यों है?
शारदा से शादी के महज दस महीने बाद नारायणन और उनके पिता थालियान रमन नाम्बियार भूमिगत हो गए थे। थालियान रमन नाम्बियार ने ही कवुम्बई गांव के इस आंदोलन का नेतृत्व किया था। इन दोनों को दो महीने बाद ही ब्रिटिश पुलिस ने पक़़ड लिया और भूमि संघषर्ष के इस मामले में जेल में डाल दिया। इसके चलते रमन और नारायण को ढूंंढते मालाबार की विशेष पुलिस घर तक आ पहुंची थी। इसके बाद नन्हीं दुल्हन को उसके पिता के घर भेज दिया गया।
नारायणन के भतीजे मधु कुमार ने बताया कि उसके बाद उस घर को तहस-नहस करके आग के हवाले कर दिया गया। नारायणन को आठ साल की कैद हुई थी। उन्होंने अपनी सजा कन्नूर, विय्यूर और सलेम की जेलों में काटी। इस दौरान सलेम की जेल में 11 फरवरी, 1950 को नारायणन के पिता थालियान रमन नाम्बियार की गोली मार कर हत्या कर दी गई। इस ऐतिहासिक संघर्ष के जीवित पुरोधा नारायणन को भी 22 गोलियां लगी थीं। बताया जाता है कि तीन गोलियां अब भी उनके शरीर में ही हैं। कुछ साल बाद युवा शारदा के परिवार ने उनकी किसी और से शादी कराने का फैसला किया।
1957 में जेल से रिहा होने के बाद नारायणन ने भी दूसरी शादी कर ली। कई सालों के बाद अचानक शारदा का बेटा और आर्गेनिक खेती करने वाला भागर्वन नारायणन के रिश्तेदारों के बीच जा पहुंचा। उन लोगों ने जब अपने परिवार का इतिहास सुना तो शारदा और नारायणन को फिर से मिलाने का फैसला किया। अब विधुर हो चुके नारायणन अपने कुछ रिश्तेदारों के साथ शारदा से दशकों बाद मिलने के लिए भार्गवन के घर पर पहुंचे।
शारदा भी तीस साल पहले ही विधवा हो गई थीं। उनके छह बच्चे हुए जिनमें से अब सिर्फ चार जीवित हैं। भार्गवन ने बताया कि पहले तो उनकी मां ने नारायणन से मिलने और बात करने से इनकार कर दिया। लेकिन काफी आग्रह के बाद वह मिलने के लिए राजी हो गई।
भार्गवन ने बताया कि मुलाकात के समय दोनों ही बेहद भावुक हो गए थे। भार्गवन के परिवार ने ‘सादया’ (शानदार भोज) की व्यवस्था की थी। इस दौरान दोनों परिवारों ने आगे भी एक-दूसरे से संपर्क बनाए रखने का वादा किया। नारायणन की पोती शांता कवुम्बई ने कवुम्बई के संघर्ष पर एक उपन्यास ‘दिसंबर 30’ लिखा था। दरअसल, 1946 दिसंबर में कवुम्बई गांव के लोगों ने अपने जिले में पूनम खेती की मांग रखी थी। यह फसल बदल कर खेती करने का तरीका है। लेकिन इसके खिलाफ पुलिस ने जबर्दस्त कार्रवाई की थी। पुलिस की कार्रवाई में पांच किसान मारे गए थे।
100 वर्ष पूर्व बोहरा समाज ने महू में बनाया था पहला शॉपिंग मॉल
महू : मध्यभारत का पहला मॉल इंदौर से 30 किमी दूर सैन्य छावनी महू में खुला था…1891 में। एक बोहरा व्यापारी द्वारा छोटा बाजार में राजाबल्ली नाम से खोला गया यह स्टोर इंदौर के बाजारों से कहीं आगे था। उस जमाने में व्यापारी इंग्लैंड से सामान लाते थे और अंग्रेज अफसरों और राजे-रजवाड़ों को बेचते थे। यह इतना मशहूर था कि आसपास के रईस खरीदारी के लिए महू आते थे। लगभग 127 साल पुराने इस संदर्भ को किताब की शक्ल दी गई है। दाऊदी बोहरा समाज के धर्मगुरू सैयदना डॉ. मुफद्दल सैफुद्दीन साहब के 75वें जन्मदिन के मौके पर उन्हें यह किताब उन्हें भेजी गई।
छावनी के निर्माण के साथ ही दाऊदी बोहरा समाज के लोग व्यापारी और कॉन्ट्रेक्टर के रूप में महू आए थे। छावनी परिषद और इंफेंट्री स्कूल की लाइब्रेरी के दस्तावेजों का हवाला देते हुए इस पुस्तक के लेखक और इतिहास के शोधकर्ता डेंजिल लोबो बताते हैं-‘1919 में एमजी रोड पर अमरजी बिल्डिंग में 34 दुकानों का एक शॉपिंग माल था। जहां अंदर तक बग्घियां जा सकती थीं। यह इमारत आज भी है। इसी इमारत के सामने महू की सबसे ऊंची इमारत अब्बास बिल्डिंग भी बोहरा व्यापारी ने ही बनवाई थी। यहां से पूरा शहर देखा जा सकता था। इससे भी पहले 18वीं सदी में भी यहां बोहरा व्यापारियों की कई प्रतिष्ठित दुकानें थीं। इनमें जी.केदारभॉय एंड सन्स के पास घोड़ों- बग्घियों के सामान का शोरूम था। जहां अंग्रेजों और रजवाड़ों द्वारा खेले जाने वाले पोलो के उपकरण भी मिलते थे।’
रेडक्रास अस्पताल भी बोहरा समुदाय की देन
महू में पहला प्रसूति अस्पताल लाने का बड़ा श्रेय भी बोहरा समुदाय को जाता है। जिसके पीछे एक दुखद और भीषण हादसा है। शहर के व्यापारी मुल्ला कायद जौहर बताते हैं- ‘1930 में शादी समारोह के लिए महू से इंदौर जा रही समाजजन की एक बस किशनगंज क्रॉसिंग में ट्रेन से टकरा गई थी। हादसे में एक छोटी बच्ची को छोड़कर बाकी सभी 40 बोहरा मारे गए थे। सभी परिवारों ने रेलवे से मिले मुआवजे की राशि दान कर दी थी। उससे रेडक्रॉस की मदद से अस्पताल बनवाया। घटना का जिक्र भी किताब में है।
(साभार- दैनिक जागरण)





