चंडीगढ़ : पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट ने एक याचिका पर सुनवाई करते हुए यह स्पष्ट कर दिया कि जब तक बच्चे की भलाई के लिए जरूरी न हो तब तक नाबालिग के नाम सम्पत्ति को बेचने के आदेश कोर्ट भी जारी नहीं कर सकता है। हालांकि मां द्वारा बताई गई परिस्थितियों पर गौर करने के बाद हाईकोर्ट ने सम्पत्ति बेचने की अनुमति दे दी।
याचिका दाखिल करते हुए नाबालिग की माँ ने हाईकोर्ट को बताया कि उसके ससुर ने बैंक से 40 लाख रुपये का कर्ज लिया था। इस दौरान उन्होंने अपनी वसीयत अपने पोते के नाम कर दी थी। बैंक का कर्ज चुकाने से पहले ही जून 2016 में उनकी मौत हो गई। इस दौरान बैंक लगातार पैसे की अदायगी के लिए दबाव डालने लगा। बैंक ने सम्पत्ति को बेचने का निर्णय ले लिया।
इसे बचाने के लिए याचिकाकर्ताओं ने बाहर से पैसा लेकर बैंक को भुगतान किया क्योंकि यदि बैंक सम्पत्ति बेचता तो वह औने-पौने दामों पर बिकती जबकि इसकी कीमत 60 लाख से अधिक है। अब बाहर से लिए गए पैसे का भुगतान करने के लिए उनके पास सम्पत्ति बेचने के अलावा कोई और जरिया नहीं है। बैंक की ओर से बताया गया कि सम्पत्ति की एवज में लिए गए कर्ज का भुगतान किया जा चुका है। सभी पक्षों को सुनने के बाद हाईकोर्ट ने अपना फैसला सुनाते हुए कहा कि बच्चे के माता-पिता को भी कोर्ट की अनुमति के बिना नाबालिग की सम्पत्ति बेचने का अधिकार नहीं है। कोर्ट का भी यह फर्ज बनता है कि नाबालिग की सम्पत्ति बेचने की अनुमति तभी दी जाए जब उसका प्रयोग बच्चे की भलाई के लिए हो। इस मामले में यदि याचिकाकर्ता बैंक के कर्ज का भुगतान नहीं करते तो सम्पत्ति का औने-पौने दाम में बिकना तय था। याचिकाकर्ता ने बाहर से पैसा लेकर प्रापर्टी को बिकने से बचाया है ऐसे में उन्हें इस सम्पत्ति को बेचने की अनुमति देना उचित है क्योंकि यह नाबालिग के भी हित में है।
नाबालिग की सम्पत्ति नहीं बेच सकते माता-पिता : हाईकोर्ट
संक्रांति में भरिए तिल की मिठास
तिल रोल

सामग्री :आधी कटोरी ड्राईफ्रूट्स/मेवे, 3 कप सफेद तिल, एक बड़ा चम्मच गुलाब जल, 3 बड़ा चम्मच घी, डेढ़ कप कॉर्न सीरप, डेढ़ छोटा चम्मच नमक, डेढ़ कप पानी, 3 कप चीनी
विधि : सबसे पहले कड़ाही रखें और इसमें तिल डालकर हल्का सुनहरा होने तक भून लें। इसे एक प्लेट में निकालकर रख लें। अब एक पैन में पानी, चीनी, कॉर्न सिरप और नमक मिलाकर गाढ़ा होने तक उबाल लें। इसमें गुलाब जल और घी डालकर अच्छी तरह मिक्स कर लें और ठंडा होने के लिए रख दें। अब हथेली पर घी लगाएं और गाढ़े मिश्रण को हाथ से अच्छी तरह मिला लें।. इस मिश्रण को बराबर भागों में बांट लें। हर भाग में सिके हुए तिल व ड्राई फ्रूट्स की स्टफिंग करें. रोल के ऊपर भी तिल लगाएं। – स्वादिष्ट तिल के रोल सर्व करने के लिए तैयार हैं।
नोट – आप चाहें तो चीनी के बजाय खजूर, गुड़ या फिर कोकोनट शुगर का इस्तेमाल कर सकते हैं।
तिल की बर्फी

सामग्री : 150 ग्राम सफ़ेद तिल, 150 ग्राम खोया (मावा), 150 ग्राम पिसी हुई चीनी, 50 ग्राम बादाम (कतरन), 50 ग्राम पिस्ता (कतरन), 1 बड़ा चम्मच घी
विधि : एक कड़ाही में तिल डालकर हल्का गुलाबी होने तक सेक लीजिये.। इन तिलों को एक मिक्सी में डालकर दरदरा पीस लीजिये.।अब मावे को हाथ से मसल लीजिये। इस मावे को एक कड़ाही में डालकर हल्का गुलाबी होने तक सेक लीजिये।
मावा ठंडा होने पर इसमें तिल, पिसी हुई चीनी और ड्राई फ्रूट्स मिला लीजिये। अब इसमें 1 बड़ा चम्मच घी मिलाइये। एक थाली में थोड़ा सा घी लगाकर इसे चिकना कर लीजिये। अब सारा मिश्रण थाली में डालिये और इसे हाथों से अच्छी तरह दबा दबाकर थाली में भर लीजिये। 15 मिनट बाद इसके चौकोर टुकड़े मनपसंद आकार में काट लीजिये। आप चाहें तो इसे बेहद खूबसूरत आकृतियों में बिस्किट कटर्स से भी काट सकते हैं। इसे कमरे के तापमान पर परोसिये।
नोट -तिल की बर्फी प्रायः 7 दिन तक खराब नहीं होती। इसमें घी की मात्रा आपको खोये की गुणवत्ता के अनुसार बदलने की जरुरत पढ़ सकती है। यदि खोये में चिकनाई कम है तो घी की मात्रा थोड़ी अधिक कर लीजिये ताकि बर्फी का मिश्रण आपस में अच्छी तरह जुड़ सके।
कुम्भ 2019 : प्रयागराज में आस्था का समागम
प्रयागराज में ‘कुम्भ’ कानों में पड़ते ही गंगा, यमुना एवं सरस्वती का पावन सुरम्य त्रिवेणी संगम मानसिक पटल पर चमक उठता है। पवित्र संगम स्थल पर विशाल जन सैलाब हिलोरे लेने लगता है और हृदय भक्ति-भाव से विहवल हो उठता है। श्री अखाड़ो के शाही स्नान से लेकर सन्त पंडालों में धार्मिक मंत्रोच्चार, ऋषियों द्वारा सत्य, ज्ञान एवं तत्वमिमांसा के उद्गार, मुग्धकारी संगीत, नादो का समवेत अनहद नाद, संगम में डुबकी से आप्लावित हृदय एवं अनेक देवस्थानो के दिव्य दर्शन प्रयागराज कुम्भ का महिमा भक्तों को दर्शन कराते हैं। प्रयागराज का कुम्भ मेला अन्य स्थानों के कुम्भ की तुलना में बहुत से कारणों से काफी अलग है। सर्वप्रथम दीर्घावधिक कल्पवास की परंपरा केवल प्रयाग में है। दूसरे कतिपय शास्त्रों में त्रिवेणी संगम को पृथ्वी का केन्द्र माना गया है, तीसरे भगवान ब्रह्मा ने सृष्टि-सृजन के लिए यज्ञ किया था, चौथे प्रयागराज को तीर्थों का तीर्थ कहा गया है, लेकिन सबसे महत्वपूर्ण कारण है यहाँ किये गये धार्मिक क्रियाकलापों एवं तपस्यचर्या का प्रतिफल अन्य तीर्थ स्थलों से अधिक माना जाना। मत्स्य पुराण में महर्षि मारकण्डेय युधिष्ठिर से कहते हैं कि यह स्थान समस्त देवताओं द्वारा विशेषतः रक्षित है, यहाँ एक मास तक प्रवास करने, पूर्ण परहेज रखने, अखण्ड ब्रह्मचर्य धारण करने से और अपने देवताओं व पितरों को तर्पण करने से समस्त मनोकामनायें पूर्ण होती हैं। यहाँ स्नान करने वाला व्यक्ति अपनी 10 पीढ़ियों को पुनर्जन्म के चक्र से मुक्त कर देता है और मोझ प्राप्त कर लेता है। यहाँ केवल तीर्थयात्रियों की सेवा करने से भी व्यक्ति को लोभ-मोह से छुटकारा मिल जाता है। उक्त कारणों से अपनी पारंपरिक वेशभूषा में सुसज्जित सन्त- तपस्वी और उनके शिष्यगण एक ओर जहाँ अपनी विशिष्ठ मान्यताओं के अनुसार त्रिवेणी संगम पर विभिन्न धार्मिक क्रियाकलाप करते हैं तो दूसरी ओर उनको देखने हेतु विस्मित भक्तों का तांता लगा रहता है।
प्रयागराज का कुम्भ मेला लगभग 50 दिनों तक संगम क्षेत्र के आस-पास हजारों हेक्टेअर भूमि पर चलने के चलते विश्व के विशालतम अस्थायी शहर का रूप ले लेता है। समस्त क्रियाकलाप, सारी व्यवस्थायें स्वतः ही चलने लगती हैं। आदिकाल से चली आ रही इस आयोजन की एकरूपता अपने आप में ही अद्वितीय है। लगातार बढ़ती हुई जनांकिकीय दबाव और तेजी से फैलते शहर जब नदियों को निगल लेने को आतुर दिखायी देते हैं ऐसे में कुम्भ जैसे उत्सव नदियों को जगत जननी होने का गौरव देते प्रतीत होते हैं। सनातन काल से भारतीय जनमानस के रगो में बसी, उनके रक्त में प्रवाहित होती अगाध श्रद्धा एवं आस्था ही अमृत है। उनका अमर विश्वास ही प्रलय में अविनाशी “अक्षयवट” है, ज्ञान, वैराग्य एवं रीतियों का मिल ही संगम है और आधार धर्म प्रयाग है। स्वतंत्रता के पश्चात् विभिन्न नियमों के बनने से कुम्भ मेला को आयोजित करने में कतिपय परिवर्तन होते गये। सरकार ने तीर्थयात्रियों को मूलभूत सुविधायें उपलब्ध कराने के लिए प्राविधान किये। सरकार ने कुम्भ की महत्ता को महसूस करते हुए और मेला का भ्रमण करने वाले तीर्थयात्रियों की भारी संख्या की आवश्यकता को समझते हुए जनहित में बहुत से कदम उठाये हैं जिससे कि तीर्थयात्रियों को सुविधाओं के साथ-साथ सुरक्षा व्यवस्था, बेहतर यातायात व्यवस्था, प्रकाश व्यवस्था एवं चिकित्सा सेवायें की उपलब्धता सुनिश्चित हो सके। यह कहना मुश्किल है कि सरकार के प्राविधान करने के पूर्व ये सुविधायें उपलब्ध कराने की जिम्मेदारी किसकी थी। हालॉंकि वांछित कानूनों के पास होने के बाद मूलभूत सुविधायें उपलब्ध कराने का दायित्व सरकार का हो गया है। इसी क्रम में प्रयागराज मेला प्राधिकरण-2018 का गठन कुम्भ जैसे उत्सव आयोजित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण सोपान है। प्रयागराज मेला प्राधिकरण के गठन से कुम्भ 2019 कुम्भ मेला भ्रमण करने वाले भक्तों को मूलभूत सुविधायें उपलब्ध कराना सुनिश्चित होगा। कुम्भ की दिव्यता और भव्यता को बढ़ाने के लिए नई तकनीकों का प्रयोग किया जा रहा है।
पेशवाई (प्रवेशाई)
कुम्भ के आयोजनों में पेशवाई का महत्वपूर्ण स्थान है। ‘‘पेशवाई’’ प्रवेशाई का देशज शब्द है जिसका अर्थ है शोभायात्रा जो विश्व भर से आने वाले लोगों का स्वागत कर कुम्भ मेले के आयोजन को सूचित करने के निमित्त निकाली जाती है। पेशवाई में साधु-सन्त अपनी टोलियों के साथ बड़े धूम-धाम से प्रदर्शन करते हुए कुम्भ में पहुँचते हैं। हाथी, घोड़ों, बग्घी, बैण्ड आदि के साथ निकलने वाली पेशवाई के स्वागत एवं दर्शन हेतु पेशवाई मार्ग के दोनों ओर भारी संख्या में श्रद्धालु एवं सेवादार खडे़ रहते हैं जो शोभायात्रा के ऊपर पुष्प वर्षा एवं नियत स्थलों पर माल्यापर्ण कर अखाड़ों का स्वागत करते हैं। अखाड़ों की पेशवाई एवं उनके स्वागत व दर्शन को खड़ी अपार भीड़ पूरे माहौल को रोमांच से भर देती है।
सांस्कृतिक संयोजन
उत्तर प्रदेश राज्य सरकार एवं भारत सरकार ने भारत की समृद्ध व विभिधतापूर्ण सांस्कृतिक विरासत का निदर्शन कराने हेतु सभी राज्यों के संस्कृति विभागों को गतिशील किया है। कुंभ मेला, 2019 में पांच विशाल सांस्कृतिक पंडाल स्थापित किये जायेंगे। जिनमें जनवरी, 2019 में एवं आगे दैनिक आधार पर सांगीतिक प्रस्तुति से लेकर पारंपरिक एवं लोक नृत्य के सांस्कृतिक कार्यक्रमों की एक श्रृंखला आयोजित की जायेगी। पंडालों के वर्गीकरण में गंगा पंडाल सभी पण्डालों से अधिक वृहदाकार होगा जिसमें सभी बड़े कार्यक्रमों का आयोजन किया जा सकेंगा। प्रवचन पण्डाल और 4 सम्मेलन केन्द्र जो उच्चतम गुणवत्ता की सुविधायें यथा मंच, प्रकाश और ध्वनि प्रसारण तंत्र के साथ आयोजन हेतु स्थापित किये जाने हैं जिसमें अखाड़ों की सहायता से विभिन्न आध्यात्मिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जा सकेगा। संस्कृतिक कार्यक्रमों एवं प्रस्तुतियों की समय सारिणी व कैलेण्डर हेतु इस वेबस्पेस पर नजर रखें।
नए और आकर्षक टूरिस्ट वॉक
उत्तर प्रदेश सरकार अपने वर्तमान सुनियोजित पर्यटक भ्रमण पथों में नवसुधार करेगी तथा प्रयागराज आने वाले सम्भावित पर्यटकों के लिए नवीन पथ भी आरम्भ करेगी। टूर आपरेटरो द्वारा प्रदत्त सेवा की गुणवत्ता में उन्नयन हेतु पर्यटन विभाग द्वारा संवेदनशीलता तथा विकास विषयक कार्यशालायें आयोजित की जायेगी।
पर्यटक-भ्रमण-पथों का विवरण प्रयागराज पर्यटन की बेवसाइट पर उपलब्ध होगी। इन पथो का संक्षिप्त विवरण निम्नवत् है :
यात्रा का आरंभ बिन्दु: शंकर विमान मण्डपम।
पहला पड़ाव: बड़े हनुमान जी का मंदिर।
दूसरा पड़ाव: पतालपुरी मंदिर।
तीसरा पड़ाव: अक्षयवट।
चौथा पड़ाव: इलाहाबाद फोर्ट।
भ्रमण का अंतिम बिन्दु: रामघाट (भ्रमण रामघाट पर समाप्त होगा)
जलमार्ग
जल परिवहन प्राचीन काल से नदियों, झीलों व समुद्र के माध्यम से मानव सभ्यता की सेवा करता आ रहा है। जल पर्यटन सदैव समस्त पर्यटन का महत्वपूर्ण हिस्सा रहा है और सदैव अन्य की अपेक्षा इसके विकास को वरीयता दी गयी है। कुम्भ 2019 के पावन पर्व पर भारतीय अंतर्देशीय जल मार्ग प्राधिकरण यमुना नदी पर संगम घाट के निकट फेरी सेवाओं का संचालन कर रहा है। इस सेवा के लिए जल मार्ग सुजावन घाट से शुरू होकर रेल सेतु (नैनी की ओर) के नीचे से वोट क्लब घाट व सरस्वती घाट से होता हुआ किला घाट में समाप्त होगा। इस 20 किमी0 लम्बे जल मार्ग पर अनेक टर्मिनल बनाये जायेंगे और बेहतर तीर्थयात्री अनुभवों के लिए मेला प्राधिकरण नौकायें व बोट उपलब्ध करायेगा।
(साभार – उत्तर प्रदेश सरकार की वेबसाइट)
अरुणिमा सिन्हा ने रचा एक और कीर्तिमान, फतह की अंटार्कटिका की सबसे ऊँची चोटी
नयी दिल्ली : एक पैर के सहारे दुनिया की छह प्रमुख पर्वत चोटियों पर तिरंगा लहराकर विश्व कीर्तिमान स्थापित कर चुकी भारत की महिला पर्वतारोही अरुणिमा सिन्हा ने एक अपने नाम एक और बड़ी उपलब्धि दर्ज कर ली है। उन्होंने दुनिया की सबसे ऊंची पर्वत चोटियों में शामिल अंटार्कटिका के ‘विन्सन मैसिफ़’ हिल पर भी तिरंगा फहराने में कामयाबी हासिल कर ली है। अरुणिमा को अंटार्कटिका का सवोर्च्च शिखर फतह करने पर बधाई प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बधाई दी। प्रधानमंत्री ने अपने आधिकारिक ट्विटर हैंडल पर लिखा, ‘अरुणिमा सिन्हा को सफलता की नई ऊंचाई पर पहुंचने के लिए बधाई। वह भारत का गर्व हैं, जिसने अपनी मेहनत व लगन से खुद की पहचान बनाई है। उन्हें भविष्य के प्रयासों के लिए शुभकामनाएं।’
दुनिया भर की सात सबसे ऊंची पर्वत चोटियों को कर चुकी हैं फतह
गौरतलब है कि अरुणिमा माउंट एवरेस्ट को फतह करने वाली पहली दिव्यांग महिला हैं। उन्होंने अपनी हालिया सफलता को लेकर ट्वीट करते हुए प्रधानमंत्री मोदी को टैग किया था। अरुणिमा ने अपने ट्वीट में लिखा, ‘इंतजार खत्म हुआ, मुझे आपके साथ यह साझा करते हुए खुशी हो रही है कि माउंट विन्सन (अंटार्कटिका की सबसे ऊंची चोटी ) पर चढ़ाई करने वाली दुनिया की पहली दिव्यांग महिला का विश्व रिकॉर्ड हमारे देश के नाम पर हो गया है। सभी के आशीवार्द व प्रार्थना के लिए आभार, जय हिंद।’ कृत्रिम पैर के सहारे एवरेस्ट (एशिया) फतह करने वाली दुनिया की एकमात्र महिला अरुणिमा अब तक किलीमंजारो (अफ्रीका), एल्ब्रूस (रूस), कास्टेन पिरामिड (इंडोनेशिया), किजाश्को (ऑस्ट्रेलिया) और माउंट अंककागुआ (दक्षिण अमेरिका) पर्वत चोटियों को फतह कर चुकी हैं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अरुणिमा को तिरंगा देकर किया था विदा
‘विन्सन मैसिफ़’ पर चढ़ाई से पहले अरुणिमा सिन्हा ने राजधानी दिल्ली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात की थी। प्रधानमंत्री ने उन्हें अंटार्कटिका के सर्वोच्च शिखर पर लहराने के लिए तिरंगा देकर विदा किया और कामयाबी के लिए आशीर्वाद व शुभकामनाएं दीं थीं। अपनी आखिरी मंजिल की तरफ बढ़ने से पहले उन्होंने अपने आलोचकों का शुक्रिया अदा किया था। उन्होंने कहा था कि मैंने जब एवरेस्ट पर फतह की थी तब दोनों हाथ उठाकर जोर से चिल्लाना चाहती थी। मुझे पागल, विकलांग कहने वालों से कहना चाहती थी कि देखो मैंने कर दिखाया। गौरतलब है कि अरुणिमा सिन्हा वॉलीबॉल की खिलाड़ी थीं। अप्रैल, 2011 में लखनऊ से नई दिल्ली के सफर में कुछ बदमाशों ने उन्हें चलती ट्रेन से धक्का दे दिया था। दुर्घटना में उन्होंने अपनी एक टांग गंवा दी। अरुणिमा को उनकी उपलब्धियों के लिए पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है। उन्हें ब्रिटेन की एक प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय ने डॉक्टरेट की मानद उपाधि से भी सम्मानित किया है।
क्रिकेट को तेंदुलकर देने वाले गुरू रमाकांत आचरेकर का निधन
मुम्बई : क्रिकेट जगत को सचिन तेंदुलकर जैसा खिलाड़ी देने वाले मशहूर कोच रमाकांत आचरेकर का बुधवार को निधन हो गया । वह 87 वर्ष के थे । उनके एक परिजन के अनुसार पिछले कुछ दिनों से वह बढती उम्र से जुड़ी बीमारियों से जूझ रहे थे। आचरेकर ने अपने कैरियर में सिर्फ एक प्रथम श्रेणी मैच खेला लेकिन उन्हें सर डॉन ब्रेडमैन के बाद दुनिया के सबसे बड़े क्रिकेटर तेंदुलकर को तलाशने और तराशने का श्रेय जाता है । क्रिकेट को अलविदा कह चुके तेंदुलकर के नाम बल्लेबाजी के लगभग सारे रिकार्ड है । उन्होंने टेस्ट में सर्वाधिक 15921 और वनडे में सबसे ज्यादा 18426 रन बनाये हैं । आचरेकर उनके बचपन के कोच थे और तेंदुलकर ने अपने कैरियर में उनकी भूमिका का हमेशा उल्लेख किया है । आचरेकर यहां शिवाजी पार्क में उन्हें क्रिकेट सिखाते थे ।तेंदुलकर ने पिछले साल एक कार्यक्रम में अपने कैरियर में आचरेकर के योगदान के बारे में कहा था ,‘‘ सर मुझे कभी ‘वेल प्लेड’ नहीं कहते थे लेकिन मुझे पता चल जाता था जब मैं मैदान पर अच्छा खेलता था तो सर मुझे भेलपुरी या पानीपुरी खिलाते थे ।’’ आचरेकर को 2010 में पद्मश्री से नवाजा गया था । तेंदुलकर के अलावा वह विनोद कांबली, प्रवीण आम्रे, समीर दिघे और बलविंदर सिंह संधू के भी कोच रहे ।
शरणागत

रज्जब कसाई अपना रोजगार करके ललितपुर लौट रहा था। साथ में स्त्री थी, और गाँठ में दो सौ-तीन सौ की बड़ी रकम। मार्ग बीहड़ था, और सुनसान। ललितपुर काफी दूर था, बसेरा कहीं न कहीं लेना ही था; इसलिए उसने मड़पुरा नामक गाँव में ठहर जाने का निश्चय किया। उसकी पत्नी को बुखार हो आया था, रकम पास में थी, और बैलगाड़ी किराए पर करने में खर्च ज्यादा पड़ता, इसलिए रज्जब ने उस रात आराम कर लेना ही ठीक समझा।
परंतु ठहरता कहाँ? जात छिपाने से काम नहीं चल सकता था। उसकी पत्नी नाक और कानों में चाँदी की बालियाँ डाले थी, और पैजामा पहने थी। इसके सिवा गाँव के बहुत से लोग उसको पहचानते भी थे। वह उस गाँव के बहुत-से कर्मण्य और अकर्मण्य ढोर खरीद कर ले जा चुका था।
अपने व्यवहारियों से उसने रात भर के बसेरे के लायक स्थान की याचना की। किसी ने भी मंजूर न किया। उन लोगों ने अपने ढोर रज्जब को अलग-अलग और लुके-छुपे बेचे थे। ठहरने में तुरंत ही तरह-तरह की खबरें फैलती, इसलिए सबों ने इन्कार कर दिया।
गाँव में एक गरीब ठाकुर रहता था। थोड़ी-सी जमीन थी, जिसको किसान जोते हुए थे। जिसका हल-बैल कुछ भी न था। लेकिन अपने किसानों से दो-तीन साल का पेशगी लगान वसूल कर लेने में ठाकुर को किसी विशेष बाधा का सामना नहीं करना पड़ता था। छोटा-सा मकान था, परंतु उसके गाँववाले गढ़ी के आदरव्यंजक शब्द से पुकारा करते, और ठाकुर को डरके मारे ‘राजा’ शब्द संबोधन करते थे।
शामत का मारा रज्जब इसी ठाकुर के दरवाजे पर अपनी ज्वरग्रस्त पत्नी को ले कर पहुँचा।
ठाकुर पौर में बैठा हुक्का पी रहा था। रज्जब ने बाहर से ही सलाम कर के कहा ‘दाऊजू, एक बिनती है।’
ठाकुर ने बिना एक रत्ती-भर इधर-उधर हिले-डुले पूछा – “क्या?”
रज्जब बोला – “दूर से आ रहा हूँ। बहुत थका हुआ हुँ। मेरी औरत को जोर से बुखार आ गया है। जाड़े में बाहर रहने से न जाने इसकी क्या हालत हो जायगी, इसलिए रात भर के लिए कहीं दो हाथ जगह दे दी जाय।”
“कौन लोग हो?” ठाकुर ने प्रश्न किया।
“हूँ तो कसाई।” रज्जब ने सीधा उत्तर दिया। चेहरे पर उसके बहुत गिड़गिड़ाहट थी।
ठाकुर की बड़ी-बड़ी आँखों में कठोरता छा गई। बोला – “जानता है, यह किसका घर है? यहाँ तक आने की हिम्मत कैसे की तूने?”
रज्जब ने आशा-भरे स्वर में कहा – “यह राजा का घर है, इसलिए शरण में आया हुआ है।”
तुरंत ठाकुर की आँखों की कठोरता गायब हो गई। जरा नरम स्वर में बोला – “किसी ने तुमको बसेरा नहीं दिया?”
“नहीं महाराज,” रज्जब ने उत्तर दिया – “बहुत कोशिश की, परंतु मेरे खोटे पेशे के कारण कोई सीधा नहीं हुआ।” वह दरवाजे के बाहर ही एक कोने से चिपट कर बैठ गया। पीछे उसकी पत्नी कराहती, काँपती हुई गठरी-सी बन कर सिमट गई।
ठाकुर ने कहा- “तुम अपनी चिलम लिए हो?”
“हाँ, सरकार।” रज्जब ने उत्तर दिया।
ठाकुर बोला- “तब भीतर आ जाओ, और तमाखू अपनी चिलम से पी लो। अपनी औरत को भीतर कर लो। हमारी पौर के एक कोने में पड़े रहना।
जब वह दोनों भीतर आ गए, तो ठाकुर ने पूछा – “तुम कब यहाँ से उठ कर चले जाओगे?” जवाब मिला- “अँधेरे में ही महाराज। खाने के लिए रोटियाँ बाँधे हूँ इसलिए पकाने की जरूरत न पड़ेगी।”
“तुम्हारा नाम?”
“रज्जब।”
थोड़ी देर बाद ठाकुर ने रज्जब से पूछा – “कहाँ से आ रहे हो?” रज्जब ने स्थान का नाम बतलाया।
“वहाँ किसलिए गए थे?”
“अपने रोजगार के लिए।”
“काम तुम्हारा बहुत बुरा है।”
“क्या करूँ, पेट के लिए करना ही पड़ता है। परमात्मा ने जिसके लिए जो रोजगार नियत किया है, वहीं उसको करना पड़ता है।”
“क्या नफा हुआ?” प्रश्न करने में ठाकुर को जरा संकोच हुआ, और प्रश्न का उत्तर देने में रज्जब को उससे बढ़ कर।
रज्जब ने जवाब दिया- “महाराज, पेट के लायक कुछ मिल गया है। यों ही।” ठाकुर ने इस पर कोई जिद नहीं की।
रज्जब एक क्षण बाद बोला- “बड़े भोर उठ कर चला जाऊँगा। तब तक घर के लोगों की तबीयत भी अच्छी हो जायगी।”
इसके बाद दिन भर के थके हुए पति-पत्नी सो गए। काफी रात गए कुछ लोगों ने एक बँधे इशारे से ठाकुर को बाहर बुलाया। एक फटी-सी रजाई ओढ़े ठाकुर बाहर निकल आया।
आगंतुकों में से एक ने धीरे से कहा – “दाऊजू, आज तो खाली हाथ लौटे हैं। कल संध्या का सगुन बैठा है।”
ठाकुर ने कहा – “आज जरूरत थी। खैर, कल देखा जायगा। क्या कोई उपाय किया था?”
“हाँ”, आगंतुक बोला – “एक कसाई रुपए की मोट बाँधे इसी ओर आया है। परंतु हम लोग जरा देर में पहुँचे। वह खिसक गया। कल देखेंगे। जरा जल्दी।”
ठाकुर ने घृणा-सूचक स्वर में कहा – “कसाई का पैसा न छुएँगे।”
“क्यों?”
“बुरी कमाई है।”
“उसके रुपए पर कसाई थोड़े लिखा है।”
“परंतु उसके व्यवसाय से वह रुपया दूषित हो गया है।”
“रुपया तो दूसरों का ही है। कसाई के हाथ आने से रुपया कसाई नहीं हुया।”
“मेरा मन नहीं मानता, वह अशुद्ध है।”
“हम अपनी तलवार से उसको शुद्ध कर लेंगे।”
ज्यादा बहस नहीं हुई। ठाकुर ने सोच कर अपने साथियों को बाहर का बाहर ही टाल दिया।
भीतर देखा कसाई सो रहा था, और उसकी पत्नी भी। ठाकुर भी सो गया।
सबेरा हो गया, परंतु रज्जब न जा सका। उसकी पत्नी का बुखार तो हल्का हो गया था, परंतु शरीर भर में पीड़ा थी, और वह एक कदम भी नहीं चल सकती थी।
ठाकुर उसे वहीं ठहरा हुआ देख कर कुपित हो गया। रज्जब से बोला – “मैंने खूब मेहमान इकट्ठे किए हैं। गाँव भर थोड़ी देर में तुम लोगों को मेरी पौर में टिका हुआ देख कर तरह-तरह की बकवास करेगा। तुम बाहर जाओ इसी समय।”
रज्जब ने बहुत विनती की, परंतु ठाकुर न माना। यद्यपि गाँव-भर उसके दबदबे को मानता था, परंतु अव्यक्त लोकमत का दबदबा उसके भी मन पर था। इसलिए रज्जब गाँव के बाहर सपत्नीक, एक पेड़ के नीचे जा बैठा, और हिंदू मात्र को मन-ही-मन कोसने लगा।
उसे आशा थी कि पहर – आध पहर में उसकी पत्नी की तबीयत इतनी स्वस्थ हो जायगी कि वह पैदल यात्रा कर सकेगी। परंतु ऐसा न हुआ, तब उसने एक गाड़ी किराए पर कर लेने का निर्णय किया।
मुश्किल से एक चमार काफी किराया ले कर ललितपुर गाड़ी ले जाने के लिए राजी हुआ। इतने में दोपहर हो गई। उसकी पत्नी को जोर का बुखार हो आया। वह जाड़े के मारे थर-थर काँप रही थीं, इतनी कि रज्जब की हिम्मत उसी समय ले जाने की न पड़ी। गाड़ी में अधिक हवा लगने के भय से रज्जब ने उस समय तक के लिए यात्रा को स्थगित कर दिया, जब तक कि उस बेचारी की कम से कम कँपकँपी बंद न हो जाय।
घंटे-डेढ़-घंटे बाद उसकी कँपकँपी बंद तो हो गई, परंतु ज्वर बहुत तेज हो गया। रज्जब ने अपनी पत्नी को गाड़ी में डाल दिया और गाड़ीवान से जल्दी चलने को कहा।
गाड़ीवान बोला – “दिन भर तो यहीं लगा दिया। अब जल्दी चलने को कहते हो।”
रज्जब ने मिठास के स्वर में उससे फिर जल्दी करने के लिए कहा।
वह बोला – “इतने किराए में काम नहीं चलेगा, अपना रुपया वापस लो। मैं तो घर जाता हूँ।”
रज्जब ने दाँत पीसे। कुछ क्षण चुप रहा। सचेत हो कर कहने लगा – “भाई,
आफत सबके ऊपर आती है। मनुष्य मनुष्य को सहारा देता है, जानवर तो देते नहीं। तुम्हारे भी बाल-बच्चे हैं। कुछ दया के साथ काम लो।”
कसाई को दया पर व्याख्यान देते सुन कर गाड़ीवान को हँसी आ गई। उसको टस से मस न होता देख कर रज्जब ने और पैसे दिए। तब उसने गाड़ी हाँकी।
पाँच-छ: मील चले के बाद संध्या हो गई। गाँव कोई पास में न था। रज्जब की गाड़ी धीरे-धीरे चली जा रही थी। उसकी पत्नी बुखार में बेहोश-सी थी। रज्जब ने अपनी कमर टटोली, रकम सुरक्षित बँधी पड़ी थी।
रज्जब को स्मरण हो आया कि पत्नी के बुखार के कारण अंटी का कुछ बोझ कम कर देना पड़ा है – और स्मरण हो आया गाड़ीवान का वह हठ, जिसके कारण उसको कुछ पैसे व्यर्थ ही दे देने पड़े थे। उसको गाड़ीवान पर क्रोध था, परंतु उसको प्रकट करने की उस समय उसके मन में इच्छा न थी।
बातचीत करके रास्ता काटने की कामना से उसने वार्तालाप आरंभ किया –
“गाँव तो यहाँ से दूर मिलेगा।”
“बहुत दूर, वहीं ठहरेंगे।”
“किसके यहाँ?”
“किसी के यहाँ भी नहीं। पेड़ के नीचे। कल सबेरे ललितपुर चलेंगे।”
…………………………..
“कल को फिर पैसा माँग उठना।”
“कैसे माँग उठूँगा? किराया ले चुका हूँ। अब फिर कैसे माँगूँगा?”
“जैसे आज गाँव में हठ करके माँगा था। बेटा, ललितपुर होता, तो बतला देता !”
“क्या बतला देते? क्या सेंत-मेंत गाड़ी में बैठना चाहते थे?”
“क्यों बे, क्या रुपया दे कर भी सेंत-मेंत का बैठना कहाता है? जानता है, मेरा नाम रज्जब है। अगर बीच में गड़बड़ करेगा, तो नालायक को यहीं छुरे से काट कर फेंक दूँगा और गाड़ी ले कर ललितपुर चल दूँगा।”
रज्जब क्रोध को प्रकट नहीं करना चाहता था, परंतु शायद अकारण ही वह भली भाँति प्रकट हो गया।
गाड़ीवान ने इधर-उधर देखा। अँधेरा हो गया था। चारों ओर सुनसान था। आस-पास झाड़ी खड़ी थी। ऐसा जान पड़ता था, कहीं से कोई अब निकला और अब निकला। रज्जब की बात सुन कर उसकी हड्डी काँप गई। ऐसा जान पड़ा, मानों पसलियों को उसकी ठंडी छूरी छू रही है।
गाड़ीवान चुपचाप बैलों को हाँकने लगा। उसने सोचा – गाँव आते ही गाड़ी छोड़ कर नीचे खड़ा हो जाऊँगा, और हल्ला-गुल्ला करके गाँववालों की मदद से अपना पीछा रज्जब से छुड़ाऊँगा। रुपए-पैसे भली ही वापस कर दूँगा, परंतु और आगे न जाऊँगा। कहीं सचमुच मार्ग में मार डाले !
गाड़ी थोड़ी दूर और चली होगी कि बैल ठिठक कर खड़े हो गए। रज्जब सामने न देख रहा था, इललिए जरा कड़क कर गाड़ीवान से बोला – “क्यों बे बदमाश, सो गया क्या?”
अधिक कड़क के साथ सामने रास्ते पर खड़ी हुई एक टुकड़ी में से किसी के कठोर कंठ से निकला, “खबरदार, जो आगे बढ़ा।”
रज्जब ने सामने देखा कि चार-पाँच आदमी बड़े-बड़े लठ बाँध कर न जाने कहाँ से आ गए हैं। उनमें तुरंत ही एक ने बैलों की जुआरी पर एक लठ पटका और दो दाएँ-बाएँ आ कर रज्जब पर आक्रमण करने को तैयार हो गए।
गाड़ीवान गाड़ी छोड़ कर नीचे जा खड़ा हुआ। बोला – “मालिक, मैं तो गाड़ीवान हूँ। मुझसे कोई सरोकार नहीं।”
“यह कौन है?” एक ने गरज कर पूछा।
गाड़ीवान की घिग्घी बँध गई। कोई उत्तर न दे सका।
रज्जब ने कमर की गाँठ को एक हाथ से सँभालते हुए बहुत ही नम्र स्वर में कहा – “मैं बहुत गरीब आदमी हूँ। मेरे पास कुछ नहीं है। मेरी औरत गाड़ी में बीमार पड़ी है। मुझे जाने दीजिए।”
उन लोगों में से एक ने रज्जब के सिर पर लाठी उबारी। गाड़ीवान खिसकना चाहता था कि दूसरे ने उसको पकड़ लिया।
अब उसका मुँह खुला। बोला – “महाराज, मुझको छोड़ दो। मैं तो किराए से गाड़ी लिए जा रहा हूँ। गाँठ में खाने के लिए तीन-चार आने पैसे ही हैं।”
“और यह कौन है? बतला।” उन लोगों में से एक ने पुछा।
गाड़ीवान ने तुरंत उत्तर दिया – “ललितपुर का एक कसाई।”
रज्जब के सिर पर जो लाठी उबारी गई थी, वह वहीं रह गई। लाठीवाले के मुँह से निकला – “तुम कसाई हो? सच बताओ !”
“हाँ, महाराज!” रज्जब ने सहसा उत्तर दिया – “मैं बहुत गरीब हुँ। हाथ जोड़ता हूँ मत सताओ। मेरी औरत बहुत बीमार है।”
औरत जोर से कराही ।
लाठीवाले उस आदमी ने अपने एक साथी से कान में कहा – “इसका नाम रज्जब है। छोड़ो। चलें यहाँ से।”
उसने न माना। बोला- “इसका खोपड़ा चकनाचुर करो दाऊजू, यदि वैसे न माने तो। असाई-कसाई हम कुछ नहीं मानते।”
“छोड़ना ही पड़ेगा,” उसने कहा – “इस पर हाथ नहीं पसारेंगे और न इसका पैसा छुएँगे।”
दूसरा बोला- “क्या कसाई होने के डर से दाऊजू, आज तुम्हारी बुद्धि पर पत्थर पड़ गए हैं। मैं देखता हूँ!” और उसने तुरंत लाठी का एक सिरा रज्जब की छाती में अड़ा कर तुरंत रुपया-पैसा निकाल देने का हुक्म दिया। नीचे खड़े उस व्यक्ति ने जरा तीव्र स्वर में कहा – “नीचे उतर आओ। उससे मत बोलो। उसकी औरत बीमार है।”
“हो, मेरी बला से,” गाड़ी में चढ़े हुए लठैत ने उत्तर दिया – “मैं कसाइयों की दवा हूँ।” और उसने रज्जब को फिर धमकी दी।
नीचे खड़े हुए उस व्यक्ति ने कहा – “खबरदार, जो उसे छुआ। नीचे उतरो, नहीं तो तुम्हारा सिर चकनाचूर किए देता हूँ। वह मेरी शरण आया था।”
गाड़ीवाला लठैत झख-सी मार कर नीचे उतर आया।
नीचेवाले व्यक्ति ने कहा – “सब लोग अपने-अपने घर जाओ। राहगीरों को तंग मत करो।” फिर गाड़ीवान से बोला – “जा रे, हाँक ले जा गाड़ी। ठिकाने तक पहुँच आना, तब लौटना, नहीं तो अपनी खैर मत समझियो। और, तुम दोनों में से किसी ने भी कभी, इस बात की चर्चा कहीं की, तो भूसी की आग में जला कर खाक कर दूँगा।”
गाड़ीवान गाड़ी ले कर बढ़ गया। उन लोगों में से जिस आदमी ने गाड़ी पर चढ़ कर रज्जब के सिर पर लाठी तानी थी, उसने क्षुब्ध स्वर में कहा – “दाऊजू, आगे से कभी आपके साथ न आऊँगा।”
दाऊजू ने कहा – “न आना। मैं अकेले ही बहुत कर गुजरता हूँ। परंतु बुंदेला शरणागत के साथ घात नहीं करता, इस बात को गाँठ बाँध लेना।”
बांग्ला लेखक दिव्येंदु पालित का निधन
कोलकाता : साहित्य अकादेमी पुरस्कार विजेता सुप्रसिद्ध बांग्ला लेखक दिव्येंदु पालित का उम्र संबंधी बीमारी के चलते यहां निधन हो गया। परिवार ने बताया कि पूर्वाह्न 11 बजे जाधवपुर के एक निजी अस्पताल में 79 वर्षीय लेखक ने अंतिम सांस ली। उनके परिवार में एक बेटा है। उनकी पत्नी का पहले ही निधन हो चुका है। पालित को उनके उपन्यास ‘अनुभब’ के लिए 1998 में साहित्य अकादेमी पुरस्कार दिया गया था। उम्र संबंधी बीमारियों के चलते वह पिछले तीन साल से अपने घर में ही रहते थे।
मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने ट्वीट किया, ‘‘वरिष्ठ लेखक दिव्येंदु पालित का चला जाना बेहद दुखद है। मेरी शोक संवेदना उनके परिवार के साथ है।’ दिव्येंदु पालित का जन्म बिहार के भागलपुर में 1939 में हुआ था और उन्होंने जाधवपुर विश्वविद्यालय से तुलनात्मक साहित्य का अध्ययन किया था। उनकी पहली लघुकथा ‘छन्दोपातन’ का प्रकाशन 1955 में हुआ था।
5 साल का बाल मज़दूर, जिसे कभी कैलाश सत्यार्थी ने बचाया था, बना रेप पीड़ितों का वकील
23 वर्षीय अमर लाल कभी भी वकील बनने का अपना सपना पूरा नहीं कर पाते यदि नोबेल पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी न होते। आज अमर लाल नोएडा में कानून की पढ़ाई कर रहे हैं। बाल मज़दूरी के शिकार, अमर को पाँच साल की उम्र में सत्यार्थी के बचपन बचाओ आंदोलन (बीबीए) के ज़रिये बचाया गया था। तब से उनके जीवन में लगातार बदलाव आया है।
“जब भाईसाहब जी (कैलाश सत्यार्थी) ने मुझे देखा तो मैं एक टेलीफोन पोल को ठीक करने के लिए काम कर रहा था। मैं पाँच साल का था जब मुझे बचपन बचाओ आंदोलन ने छुड़वाया था। मैं एक वकील बनकर समाज की भलाई के लिए अपना योगदान देना चाहता हूँ,” अमर ने डेक्कन हेराल्ड को बताया। सत्यार्थी ने जिन भी बच्चों का जीवन संवारा है, वे सब उन्हें प्यार से ‘भाईसाहब जी’ बुलाते हैं। सत्यार्थी ने हाल ही में बहुत गर्व के साथ अमर के बारे में सोशल मीडिया पर साझा किया।
उन्होंने ट्वीट किया, ”आज, मेरा बेटा अमर लाल एक 17 साल की रेप सर्वाइवर के लिए अदालत में खड़ा हुआ। इस युवा वकील के माता-पिता के रूप में यह हमारे लिए गर्व का क्षण है, जिसे हमने 5 साल की उम्र में बाल मज़दूरी से बचाया था। अपनी पढ़ाई पूरी करने तक अमर बाल आश्रम में रहा। अभी और आगे जाना है।”
अमर अपने परिवार से पहले सदस्य है, जो पढ़-लिख कर यहाँ तक पहुंचे है। उन्होंने बताया, “हम बंजारा समुदाय से आते हैं। हमेशा एक जगह से दूसरी जगह पर पलायन करते रहने की वजह से हमें कभी भी स्कूल जाने का मौका नहीं मिल पाता है।”अमर मूल रूप से राजस्थान से हैं। वकालत की डिग्री हासिल कर, अमर रेप पीड़ितों के लिए लड़ना चाहते हैं।
ऐसी ही एक कहानी किंसु कुमार की है, जिसे बीबीए ने आठ साल की उम्र में दिसंबर 2003 में बचाया था। किंसु अब राजस्थान में बी.टेक के छात्र हैं और एक दिन आईएएस अधिकारी बनने का सपना देखते हैं। किंसु कभी मिर्ज़ापुर (उत्तर प्रदेश) में गाड़ियों को धोने का काम करते थे। उन्हें भी दूसरों की तरह बाल मज़दूरी का शिकार होने से बचाया गया था।
2016 में ‘सेव द चिल्ड्रन’ द्वारा किये गये सर्वे की रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में लगभग 380.7 लाख़ लड़के और 80.8 लाख़ लड़कियाँ बाल मज़दूरी के शिकार हैं। लेकिन इसके खिलाफ़ एक मुहीम छेड़ते हुए, सत्यार्थी के बचपन बचाओ आंदोलन ने 87,000 से भी अधिक बच्चों को विभिन्न तरीके के उत्पीड़न और शोषण से मुक्त करवाया है।
(साभार – द बेटर इंडिया )
सामाजिक समरसता का प्रतीक मकर संक्रांति और ‘उत्तरायण’
देश के प्रमुख त्योहारों में से एक मकर संक्रांति 14 जनवरी को मनाई जाती है. लेकिन कभी-कभी ये त्योहार 13 या 15 जनवरी को भी हो सकता है. यह इस बात पर निर्भर करता है कि सूर्य कब धनु राशि को छोड़ मकर राशि में प्रवेश करता है। इस दिन से सूर्य की उत्तरायण गति की शुरुआत होती है, इसी वजह से इसको ‘उत्तरायणी’ भी कहते हैं। आइए जानते हैं, भारतीय समाज में आखिर क्यों मकर संक्रांति का इतना महत्त्व है।
जुड़ी हैं कई पौराणिक कथाएं
कहा जाता है कि इस दिन भगवान विष्णु ने असुरों का संहार कर लंबे समय से देवताओं और असुरों के बीच जारी युद्ध के समाप्ति की घोषणा की थी। साथ ही सभी असुरों के सिरों को मंदार पर्वत में दबा दिया था। इस तरह यह दिन बुराइयों और नकारात्मकता को खत्म करने का दिन भी माना जाता है।
यह भी कहा जाता है कि गंगाजी को धरती पर लाने वाले राजा भगीरथ ने अपने पूर्वजों के लिए इस दिन तर्पण किया था। मकर संक्रांति के दिन ही गंगाजी राजा भगीरथ के पीछे-पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होकर सागर में जा मिली थीं इसलिए मकर संक्रांति पर देश भर में कई जगहों पर गंगा किनारे गंगा सागर में मेला लगता है।
यशोदा जी ने जब कृष्ण जन्म के लिए व्रत किया था, तब सूर्य देवता उत्तरायण हो रहे थे और उस दिन मकर संक्रांति थी। कहा जाता है तभी से मकर संक्रांति व्रत का प्रचलन शुरू हुआ। महाभारत में भी इसी दिन का उल्लेख किया गया है, क्योंकि भीष्म पितामह ने मकर संक्रांति के दिन प्राण त्यागे थे और मोक्ष प्राप्त किया था। इससे पहले वे बाणों की शैया पर कष्ट सहते हुए उत्तरायण का इंतजार करते रहे।
मान्यता है कि दक्षिणायन अंधकार की अवधि है, इसलिए उस वक्त मृत्यु होने पर मनुष्य को मुक्ति नहीं मिलती। वहीं, सूर्यदेव का उत्तरायण होना शुभ माना जाता है, क्योंकि यह प्रकाश की अवधि होती है इसलिए भीष्म पितामह ने शरीर त्याग करने के लिए इसी दिन को सबसे उपयुक्त माना.इस पर्व से जुड़ी एक पुरानी मान्यता यह भी है कि इस दिन भगवान सूर्य अपने बेटे शनि से मिलने स्वयं उसके घर जाया करते हैं। चूंकि शनिदेव मकर राशि के स्वामी हैं, इसलिए इस दिन को मकर संक्रांति के नाम से जाना जाता है।
पर्व एक, मनाने की विधियां अनेक
भारत के अलग-अलग प्रदेशों में मकर संक्रांति के पर्व को अलग-अलग तरीकों से मनाया जाता है। हर प्रांत में इसका नाम और मनाने का तरीका अलग-अलग होता है।आंध्र प्रदेश, केरल और कर्नाटक में इसे केवल संक्रांति कहा जाता है और तमिलनाडु में इसे पोंगल पर्व के रूप में मनाया जाता है। पंजाब और हरियाणा में इस समय नई फसल का स्वागत किया जाता है और संक्रांति से एक दिन पहले लोहड़ी पर्व के तौर पर मनाया जाता है।
वहीं असम में बिहू के रूप में इस पर्व को उल्लास के साथ मनाया जाता है। ऐसी मान्यता है कि मकर संक्रांति के दिन गंगा, यमुना और सरस्वती के त्रिवेणी संगम, प्रयाग में सभी देवी-देवता अपना स्वरूप बदलकर स्नान के लिए आते हैं इसलिए मान्यता है कि इस दिन गंगा और दूसरी पवित्र नदियों में स्नान करने से सभी कष्टों का निवारण हो जाता है।
अलग-अलग प्रांतों और मान्यताओं के हिसाब से इस पर्व के पकवान भी अलग-अलग होते हैं, लेकिन उत्तर भारत में दाल और चावल से बनी खिचड़ी इस पर्व की प्रमुख पहचान बन चुकी है। खासतौर से गुड़ और घी के साथ खिचड़ी खाने का विशेष महत्व है।
इसके अलावा, मकर संक्रांति के पर्व में तिल और गुड़ का भी बेहद महत्व है। इस दिन सुबह जल्दी उठकर तिल का उबटन लगाकर स्नान किया जाता है। इसके अलावा तिल और गुड़ के लडडू और इनसे बने कई तरह के पकवान भी बनाए जाते हैं और एक-दूसरे को भेंट किये जाते हैं। बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल में दही-चूड़ा और तिल के पकवान खाने और खिलाने का रिवाज है।
महादेवी वर्मा की दो देशभक्तिपरक कविताएं

मस्तक देकर आज खरीदेंगे हम ज्वाला
मस्तक देकर आज खरीदेंगे हम ज्वाला!
जो ज्वाला नभ में बिजली है,
जिससे रवि-शशि ज्योति जली है,
तारों में बन जाती है,
शीतलतादायक उजियाला!
मस्तक …
फूलों में जिसकी लाली है,
धरती में जो हरियाली है,
जिससे तप-तप कर सागर-जल
बनता श्याम घटाओं वाला!
मस्तक …
कृष्ण जिसे वंशी में गाते,
राम धनुष-टंकार बनाते,
जिसे बुद्ध ने आँखों में भर
बाँटी थी अमृत की हाला!
मस्तक …
जब ज्वाला से प्राण तपेंगे,
तभी मुक्ति के स्वप्न ढलेंगे,
उसको छू कर मृत साँसें भी
होंगी चिनगारी की माला!
मस्तक देकर आज खरीदेंगे हम ज्वाला!
ध्वज गीत: विजयनी तेरी पताका!

विजयनी तेरी पताका!
तू नहीं है वस्त्र तू तो
मातृ भू का ह्रदय ही है,
प्रेममय है नित्य तू
हमको सदा देती अभय है,
कर्म का दिन भी सदा
विश्राम की भी शान्त राका।
विजयनी तेरी पताका!
तू उडे तो रुक नहीं
सकता हमारा विजय रथ है
मुक्ति ही तेरी हमारे
लक्ष्य का आलोक पथ है
आँधियों से मिटा कब
तूने अमिट जो चित्र आँका!
विजयनी तेरी पताका!
छाँह में तेरी मिले शिव
और वह कन्याकुमारी,
निकट आ जाती पुरी के
द्वारिका नगरी हमारी,
पंचनद से मिल रहा है
आज तो बंगाल बाँका!
विजयनी तेरी पताका!
(साभार – हिन्दी कविता)





