Wednesday, December 17, 2025
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कुम्भ मेले में 3डी प्रोजेक्शन मैपिंग के जरिए समुद्र मंथन होते देख सकेंगे श्रद्धालु

प्रयागराज : अहमदाबाद की कंपनी ब्लिंक 360 ने कुम्भ मेले में लोगों को 3डी प्रोजेक्शन मैपिंग के जरिए समुद्र मंथन और रामायण का वीडियो दिखाने की तैयारी की है। यह एक नई प्रौद्योगिकी है जिसका उपयोग अभी तक विशाल इमारतों पर होता रहा है लेकिन कुंभ में इसका उपयोग हॉल के भीतर छोटे ढांचे पर होगा।

ब्लिंक 360 के प्रबंध निदेशक लोवालेन रोजारियो ने पीटीआई भाषा को बताया, “हमने सबकुछ अपने स्टूडियो में तैयार किया है। हम प्रोजेक्शन मैपिंग की अवधारणा खास तौर पर इस कुम्भ मेले के लिए लेकर आए हैं।”
रोजारियो ने बताया, “समुद्र मंथन की कहानी को पर्दे पर उतारने में हमें डेढ़ महीने का समय लगा और करीब 100 लोगों ने इस परियोजना पर काम किया है। इस फिल्म के लिए वृंदावन के प्रेम मंदिर का सेट तैयार किया गया है। हम इसी सेट पर पूरी फिल्म दिखाएंगे।”
उन्होंने बताया, “यह सिर्फ एक कहानी नहीं है, बल्कि इसमें विजुअल इफेक्ट भी है। यह पूरी फिल्म एनिमेटेड है। प्रोजेक्शन मैपिंग आमतौर पर एक ढांचे पर की जाती है। हमने फोम से एक कृत्रिम मॉडल बनाया है। यह कुल मिलाकर 3जी प्रोजेक्शन होगा। 3डी फिल्म देखने के लिए व्यक्ति को 3डी चश्मा पहनना पड़ता है, लेकिन यहां आपको 3डी चश्मा नहीं पहनना पड़ेगा।”
रोजारियो ने बताया, “हमने स्वयं यह टेक्नोलॉजी पेश की है। अभी तक प्रोजेक्शन मैपिंग का उपयोग विशाल इमारतों पर किया जाता रहा है। लेकिन हमने हॉल के भीतर छोटे ढांचे पर यह शुरू किया है।”
उन्होंने बताया कि कुम्भ मेला क्षेत्र के सेक्टर एक स्थित हॉल में एक शो में 400 लोगों के बैठने की व्यवस्था है। हम एक घंटे में दो शो चलाएंगे और एक शो सात मिनट का होगा। ये वीडियो हिंदी भाषा में हैं और प्रति व्यक्ति 50 रुपये का शुल्क लिया जाएगा। उन्होंने बताया कि कंपनी ने इस आयोजन के लिए करीब डेढ़ करोड़ रुपये का निवेश किया है और हमें लोगों से अच्छी प्रतिक्रिया मिलने की उम्मीद है।

नौकरी के लिए खाड़ी देशों में जाने वालों की संख्या 5 साल में 62 फीसदी गिरी

नयी दिल्ली : भारतीयों को खाड़ी देशों में प्रवास करने की मंजूरी साल 2017 के मुकाबले, 2018 के नंवबर माह (11 अवधि तक) तक 21 फीसदी कम हुई है। ये संख्या 2.95 लाख है। इससे पहले 2014 में ये संख्या 7.76 लाख थी। जो 2018 में 62 फीसदी तक कम हो गई है। ये आंकड़े ई-माइग्रेट इमिग्रेशन डाटा से लिए गए हैं। जो ईसीआर (इमिग्रेशन चेक रिक्वायर्ड) रखने वाले श्रमिकों को प्रवासन की मंजूरी देता है।
साल 2018 के दौरान बड़ी संख्या में लोग यूएई गए थे। जो कुल प्रवास करने वालों की संख्या का 35 फीसदी (1.03 लाख) है। इसके अलावा 65 हजार श्रमिक सऊदी अरब और 52 हजार श्रमिक कुवैत गए हैं। इससे पहले 2017 में भारतीय श्रमिकों के लिए खाड़ी देशों में सबसे पसंदीदा जगह सऊदी अरब था। 22 अगस्त 2017 में निताकत स्कीम आने के बाद विश्लेषण किया गया तो पता चला कि श्रमिकों की संख्या घटने लगी है। जिसमें भारतीय श्रमिक भी शामिल हैं। यह स्कीम स्थानीय श्रमिकों के संरक्षण के लिए लाई गई थी। इससे पहले 2014 में 3.30 लाख श्रमिक सऊदी अरब गए थे जो कि पहले के मुकाबले काफी कम संख्या थी।
केवल कतर ही ऐसा देश है जहां बीते सालों के मुकाबले 2018 में प्रवासियों के जाने की संख्या बढ़ी है। 2018 में कतर में प्रवास करने के लिए 32,500 को मंजूरी दी गई है। यह संख्या 2017 में 25,000 हजार थी। जो कि अब 31 फीसदी बढ़ गई है। मुंबई स्थित लेबर रिक्रूटर का कहना है कि ऐसा इसलिए है क्योंकि कतर 2022 में फुटबॉल वर्ल्ड कप आयोजित करने वाला है। इसलिए यहां श्रमिकों की मांग बढ़ी है। हालांकि ऐसी खबरें भी आई हैं कि यहां भारतीय श्रमिकों को काम के बदले भुगतान नहीं किया जा रहा है। खबर ये भी आई है कि एक कन्सट्रक्शन एजेंसी ने करीब 600 श्रमिकों को वेतन नहीं दिया है।
वाशिंगटन हेडक्वार्टर थिंक थैंक, द मिडल ईस्ट इंस्टीट्यूट का कहना है कि करीब 6-7.5 लाख भारतीय श्रमिक प्रवासी कतर में काम कर रहे हैं। ये संख्या कतर के स्थानीय श्रमिकों से दो गुना अधिक है। हालांकि बीते कुछ सालों में कतर ने भी श्रमिकों के संरक्षण के लिए कई योजनाओं की शुरुआत की है।
एक सवाल के जवाब में बीते साल दिसंबर में विदेश मंत्रालय ने कहा था कि श्रमिकों की संख्या गिरने का मुख्य कारण खाड़ी देशों में आर्थिक मंदी का होना है। ऐसा इसलिए क्योंकि तेल के दामों में उतार चढ़ाव आया है। इसके अलावा ये देश सरकारी और निजी दोनों क्षेत्रों में पहले अपने नागरिकों को काम देते हैं, बाद में किसी और देश के नागरिकों को। बता दें बड़ी संख्या में भारतीय श्रमिक जिनके पास ईसीआर पासपोर्ट होता है, वो खाड़ी देशों में टूरिस्ट वीजा पर जाते हैं। इसके बाद ये अपने वीजा को रोजगार वीजा में बदलवा लेते हैं।

2020 के राष्ट्रपति चुनाव में डोनाल्ड ट्रंप को चुनौती देंगी तुलसी गबार्ड

अमेरिकी सदन की पहली हिंदू सांसद तुलसी गबार्ड ने कहा है कि वह 2020 के राष्ट्रपति चुनावों की दावेदार होंगी। सांसद एलिजाबेथ वारन के बाद 37 वर्षीय गबार्ड डेमोक्रेटिक पार्टी से राष्ट्रपति पद की दूसरी महिला दावेदार हैं।
राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को 2020 में चुनौती देने के लिए अब तक 12 से ज्यादा डेमोक्रेटिक नेताओं ने राष्ट्रपति पद के लिए अपनी दावेदारी की घोषणा कर दी है। हवाई से अमेरिकी हाउस ऑफ रिप्रजेंटेटिव्स में चार बार की डेमोक्रेट सांसद रह चुकी हैं।
गबार्ड ने सीएनएन को बताया, ‘मैंने चुनाव में खड़ा होना तय किया है और अगले हफ्ते के अंदर-अंदर औपचारिक घोषणा कर दूंगी।’ गबार्ड ने बचपन में ही हिंदू धर्म अपना लिया था और वह भारतीय-अमेरिकियों के बीच खासी लोकप्रिय हैं।
अगर वह निर्वाचित होती हैं तो वह सबसे युवा एवं अमेरिका की पहली महिला राष्ट्रपति होंगी। इसके अलावा वह पहली गैर ईसाई एवं पहली हिंदू होंगी जो शीर्ष पद पर काबिज होंगी। हालांकि अमेरिकी राजनीतिक पंडित उनके जीतने की बहुत ज्यादा संभावना नहीं जता रहे हैं।

सूखा 2500 साल पुराना पुष्करणी सरोवर, चार फीट से नीचे पहुँचा जलस्तर

वैशाली : बिहार के वैशाली जिले में स्थित 2500 साल पुराना अभिषेक पुष्करणी सरोवर पूरी तरह से सूख गया है। जिसकी वजह से इलाके का जलस्तर 4 फीट से नीचे चला गया है। सरोवर सूखने के कारण आसपास के गांव के हैंडपंप भी सूखने लगे हैं। इसकी एक वजह तिरहुत नहर में पर्याप्त मात्रा में पानी न होना है। सरोवर से 4 किलोमीटर दूर मानिकपुर से गुजरने वाली तिरहुत नहर बरसात के दिनों में पानी से लबालब भर जाती थी। जिससे सरोवर कभी नहीं सूखता था।

तस्वीर साभार – दैनिक भास्कर

जल संसाधन विभाग के अधिकारी अब फिर से तिरहुत नहर से इसमें पानी लाने का विचार कर रहे हैं। इस परियोजना के लिए जल संसाधन विभाग को 25 दिनों का समय दिया गया है। इसके अलावा सरोवर को 550 मीटर लंबा और 300 मीटर चौड़ा किया जाएगा। पुष्करणी के नजदीक ही बौद्ध समुदाय का बनवाया हुआ विश्व शांति स्तूप है। जहां हर साल लाखों की संख्या में लोग पहुंचते हैं। ऐतिहासिक लिच्छवी गणराज्य में जब भी किसी शासक का निर्वाचन होता था तो उनका इसी सरोवर के पानी से अभिषेक करवाया जाता था। सरोवर के पवित्र जल से शुद्ध होकर लिच्छवियों के शासक गणतांत्रित सभागार में बैठा करते थे। आस-पास के लोग सरोवर में शुभ मुहूर्त में स्नान किया करते थे। इस सरोवर को एक तरह से गंगा का दर्जा प्राप्त था।

110 साल पुराने पेड़ पर बनाई अनोखी लाइब्रेरी

अगर आप किताबें पढ़ने के शौकीन हैं तो आपके लिए यह रोमांचक खबर हो सकती है। एक शख्स ने लगभग 100 साल पुराने पेड़ पर ही लाइब्रेरी बना डाली है। कई पुस्तक प्रेमियों किंडल या स्मार्टफोन पर मिलने वाली किताबों को पढ़ना पसंद करते हैं।लिहाजा, लिटिल फ्री लाइब्रेरी संस्था ने एक क्रिएटिव लाइब्रेरी को पेश की है। करीब 100 साल पुराने पेड़ पर संस्था ने जो लाइब्रेरी बनाई है, उसे देखकर आपका भी मन लाइब्रेरी में जाकर किताब पढ़ने का होने लगेअमेरिका के इडाहो राज्य में एक आर्टिस्ट ने घर के बाहर सूखे पेड़ में छोटी लाइब्रेरी बनाई है। इसमें बच्चों की 70 से ज्यादा किताबें रखी हैं। आर्टिस्ट शारले एमिटेज हॉवर्ड ने बताया कि लाइब्रेरी को बनाने में 73 डॉलर (करीब 5,133 रुपए) खर्च हुए हैं।गा।लिटिल फ्री लाइब्रेरी एक गैर-लाभकारी संगठन है, जो दुनिया भर में पुस्तकालयों के निर्माण और उनके कायाकल्प का काम करता है। शारले एमिटेज हॉवर्ड ने लिटिल ट्री लाइब्रेरी को अपने घर के पीछे लगे लगभग 100 साल पुराने पेड़ पर रचनात्मक तरीके से बनाया है। एक लाइब्रेरियन के रूप में वह एक आरामदायक, सुंदर पढ़ने के माहौल के महत्व को समझती हैं।शारले एमिटेज ने फेसबुक पर लिखा कि हमें एक विशाल पेड़ को हटाना था, जो 110 साल पुराना था और सड़ रहा था। इसलिए मैंने इसे एक लाइब्रेरी में बदलने का फैसला किया। मैं हमेशा से यह करना चाहती थी। मैंने पूरे पेड़ के हटाने की बजाय उसे कुछ बेहतर बनाने में बदल दिया। लोगों को यह क्रिएटिविटी काफी पसंद आ रही है।शारले ने पेड़ के निचले हिस्से को काटकर अलमारी का रूप दिया है। उसके अंदर छोटी-छोटी एलईडी लाइटें और बाहर एक बल्ब लगाया है। रिपोर्ट के मुताबिक, दुनियाभर में 75 हजार फ्री छोटी लाइब्रेरी रजिस्टर्ड हैं, उनमें से ये सबसे अलग है।उन्होंने पेड़ के तने पर एक छत बनाई और अंदर नक्काशी करके उसमें एक दरवाजा लगाया। इसके साथ ही लाइट की व्यवस्था कर शारले ने इसे बेहतरीन लाइब्रेरी में बदल दिया। इस लाइब्रेरी से मुफ्त में किताब लेकर पढ़ी जा सकती हैं। दुर्भाग्य से पेड़ इतना बड़ा नहीं है कि उसके अंदर बैठकर पढ़ने की व्यवस्था हो, लेकिन फिर भी उसे देखकर आपको अच्छा लगेगा।स लाइब्रेरी में वयस्कों की फिक्शन, बच्चों की किताबें सहित कई अन्य किताबें उपलब्ध हैं। बताते चलें कि लिटिल फ्री लाइब्रेरी परियोजना लोगों को दुनिया भर में इसी तरह की लघु पुस्तकालय बनाने के लिए प्रोत्साहित करती है। 88 देशों में 75,000 से अधिक पुस्तकालय अब तक बनाए जा चुके हैं। इस लाइब्रेरी में कोई भी कोई भी व्यक्ति किताबें दान कर सकता है।

12 साल के इन्तजार के बाद 101 साल की पाकिस्तानी महिला बनी ‘भारतीय’

जोधपुर :  100 साल से ऊपर की पाकिस्तानी हिंदू जमुना माई वह दिन शायद ही कभी भूल पाएंगी जब उन्हें 12 साल का इन्तजार करने के बाद भारतीय नागरिकता मिली। जिलाधिकारी ने दावा किया है कि 101 साल की जमुना सबसे वृद्ध महिला हैं जिन्हें कि भारतीय नागरिकता मिली है। राजस्थान के जोधपुर की एक छोटी सी बस्ती सोढा री धानी में पाकिस्तान से आए 6 हिंदू प्रवासियों का परिवार रहता है।
परिवार ने अपने सबसे वृद्ध सदस्य को मिली नागरिकता का जश्न मनाया। भारतीय नागरिकता अधिनियम 1955 के अंतर्गत उनके आवेदन को गत शुक्रवार को मंजूरी मिल गई। वह पिछले 12 सालों से इसके लिए कोशिशें कर रही थीं। अब उन्हें उम्मीद है कि उनके परिवार के सदस्यों को भी जल्द भारतीय नागरिकता मिल जाएगी।
अधिकारियों का कहना है कि जोधपुर में लगे नागरिकता कैंप के दौरान उन्हें पता चला कि एक आवेदनकर्ता का जन्म 1988 का है। रिकॉर्ड्स के अनुसार आवेदनकर्ता माई का जन्म अविभाजित पंजाब में हुआ था। जोधपुर के एडीएम जवाहर चौधरी ने कहा, ‘माई के दस्तावेज को मंजूरी दी गई और उन्हें शुक्रवार को नागरिकता प्रमाणपत्र दिया गया।’ माई और उनके परिवार को स्थानीय प्रशासन ने एक दो कमरों वाला घर दिया हुआ है।
नागरिकता मिलने के बाद माई ने डांस करके और परिवार को मिठाई खिलाकर अपनी खुशी जाहिर की। उन्होंने कहा, ‘मेरे परिवार को भी इसी तरह का आईडी कार्ड दिया जाना चाहिए।’ अगस्त 2006 में 15 सदस्यों वाले मेघवाल परिवार ने धार्मिक वीजा पर अटारी-वाघा सीमा के जरिए भारत में प्रवेश किया था। यहां आने से पहले परिवार की आय का स्रोत जमींदार की जमीन पर खेती करने से होता है। दशकों तक उनका शोषण होता रहा। उनसे ज्यादा देर काम करवाया जाता, कम तनख्वाह दी जाती और कोई छुट्टी नहीं मिलती थी।

दुनिया के मेहनती लोगों में सबसे आगे हैं भारतीय युवा

अमेरिका के बहुराष्ट्रीय प्रबंधन संस्थान क्रोनोस की हाल में जारी एक रिपोर्ट में कहा गया है कि विदेशों में काम करने वाले युवाओं में सबसे अधिक मेहनती भारतीय युवा हैं। इंटरनेशनल वर्कफोर्स मैनेजमेंट कंपनी क्रोनोस इन्कॉर्पोरेटेड की ओर से ये सर्वे कराया गया है।
भारत दुनिया का सबसे मेहनती देश
रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत दुनिया का सबसे मेहनती देश है। यहां के लोग ऐसे हैं जो लगातार 5 दिनों तक काम करते हैं। सर्वे में शामिल कर्मचारियों से जब ये सवाल किया गया कि वह मौजूदा वेतन पर कितने दिन काम करते हैं, तो उन्हें जवाब में 69 फीसदी भारतीयों ने कहा कि वह पांच दिनों तक काम करते हैं।
दूसरे स्थान पर है मैक्सिको
रिपोर्ट में दूसरे नंबर पर मैक्सिको के लोग हैं। सर्वे में पता चला है कि अगर सैलरी में कोई बदलाव न हो तो दुनियाभर के 34 फीसदी लोग हफ्ते में चार दिन जबकि 20 फीसदी लोग हफ्ते में तीन दिन काम करना चाहते हैं। मैक्सिको के लोग भारत के बाद दूसरे स्थान पर हैं, यहां के 43 फीसदी कर्मचारी पांच दिनों तक काम करने की चाहत रखते हैं। 27 फीसदी के साथ अमेरिकी कर्मी तीसरे नंबर पर हैं। जो पांच दिनों तक काम करने से खुश हैं। वहीं ऑस्ट्रेलिया के 19 फीसदी और फ्रांस के 17 फीसदी लोगों को पांच दिनों तक काम करने में कोई परेशानी नहीं है।
1 दिन काम करने के लिए 20 फीसदी वेतन छोड़ने को तैयार
सर्वे में सबसे दिलचस्प बात ये है कि करीब 35 फीसदी कर्मचारी ऐसे हैं जो हफ्ते में केवल एक ही दिन काम करने के लिए अपनी 20 फीसदी सैलरी छोड़ने को तैयार हैं। ऑस्ट्रेलिया और ब्रिटेन के कर्मियों का कहना है कि वह अधिकतर घंटों तक काम नहीं कर पाए। उनका कहना है कि उन्हें अपना काम पूरा करने के लिए दिन में पर्याप्त समय नहीं मिल पाता है। अनुसंधान फर्म बीआई वर्ल्डवाइड के एक सर्वे में ये भी कहा गया है कि अधिकतर भारतीय काम में डूबे रहते हैं। इस सर्वे में कहा गया है कि 51 फीसदी भारतीय कर्मचारी पूरी लगन के साथ काम करते हैं। वैश्विक स्तर पर काम में डूबने वाले लोगों में भारतीयों के बाद चीनी लोगों का नंबर आता है। काम में डूबने वाले लोगों में चीन के 49 फीसदी, अमेरिका के 38 फीसदी, ब्राजील के 36 फीसदी, कनाडा के 28 फीसदी और ब्रिटेन के 24 फीसदी लोग हैं।

सपा-बसपा में गठबन्धन, दो सीटें कांग्रेस के लिए छोड़ी, कांग्रेस अकेले लड़ेगी

लखनऊ : भाजपा के खिलाफ आज लखनऊ से सपा-बसपा ने गठबंधन कर आगामी लोकसभा चुनाव साथ लड़ने का एलान कर दिया। दोनों पार्टियां राज्य की 38-38 लोकसभा सीट से चुनाव लड़ेंगी। जबकि शेष 2 सीट को कांग्रेस के लिए छोड़ दिया गया है। इस कदम से कांग्रेस नाराज है और पार्टी ने कहा कि उसे कमतर आँकना बुआ -बबुआ की भूल है। बहरहाल , कांग्रेस अब यूपी में सभी सीटों पर अकेले चुनाव लड़ने की तैयारी में है
विगत दिनों आरएलडी के अजित सिंह ने भी यह घोषणा की थी कि उनकी पार्टी भी प्रदेश में बन रही महागठबंधन का हिस्सा होगी। हालांकि सीट के बटवारे पर पूछे गए सवाल पर उन्होंने कहा कि इस मुद्दे पर अभी कोई बात नहीं हुई है। आरएलडी 4 लोकसभा सीटों की मांग कर रही है जबकि महागठबंधन इन्हें 3 सीट ही देना चाहता है। सूत्रों के अनुसार अजित सिंह ने बागपत या बुलंदशहर की सीट पर भी दावेदारी की मांग की है। इस गठबंधन में पीस पार्टी और निषाद पार्टी भी शामिल होंगे। जबकि यह भी कहा जा रहा है कि वर्तमान में राज्य सरकार के कैबिनेट मंत्री ओमप्रकाश राजभर को भी शामिल करने की कोशिशे की जा रही है। रायबरेली और अमेठी सीट को कांग्रेस के लिए छोड़ दिया गया है। जबकि कहा यह जा रहा है कि पीस पार्टी और निषाद पार्टी के लिए भी एक-एक सीट छोड़ी जाएगी। हालांकि अभी सीटों को लेकर कोई भी आधिकारिक घोषणा होना बाकी है। ज्ञात हो कि प्रदेश के मुखिया योगी आदित्यनाथ की परंपरागत सीट से भी निषाद पार्टी के उम्मीद्वार ने उपचुनाव में जीत हासिल की थी। इसलिए आगामी चुनाव में भी यह सीट निषाद पार्टी को मिल सकती है। जबकि बस्ती सीट पीस पार्टी के मुखिया मोहम्मद अयूब को दी जा सकती है।

कोलंबिया यूनिवर्सिटी ने माना, सुश्रुत सर्जनी के जनक थे

नयी दिल्‍ली : प्राचीन भारतीय में नाक और प्लास्टिक सर्जरी की उत्पत्ति के बारे में सोचिए। मौजूदा समय में प्लास्टिक सर्जरी एक आधुनिक विलासिता है। यह पता चला है कि कॉस्मेटिक और शरीर की पुनर्संरचना की जड़ें 2500 से अधिक वर्षों तक वापस चली जाती हैं। यह सामान्‍य धारणा है कि प्लास्टिक सर्जरी में “प्लास्टिक” एक कृत्रिम सामग्री को संदर्भित करता है, जब कि यह वास्तव में ग्रीक शब्द प्लास्टिकोस से निकलता है, जिसका अर्थ है ढालना या रूप देना। 6 वीं शताब्दी ईसा पूर्व में पैदा हुए सुश्रुत नाम के एक भारतीय चिकित्सक को व्यापक रूप से ‘सर्जरी का जनक’ माना जाता है। उन्‍होंने चिकित्सा और सर्जरी पर दुनिया के शुरुआती कार्यों में पहली बार विस्‍तार से लिखा। यही कारण है कि कोलंबिया यूनिवर्सिटी ने माना है कि सुश्रुत सर्जनी के जनक थे। सुश्रुत संहिता में 1,100 से अधिक रोगों के बारे में जानकारी दी गई है। रोग प्रजनन में सैकड़ों औषधीय पौधों के उपयोग और सर्जिकल प्रक्रियाओं बारे में निर्देश दिए गए थे जिसमें तीन प्रकार के त्वचा की कलम और नाक के पुनर्निर्माण शामिल है। त्‍वचा कलम में त्वचा के टुकड़ों को शरीर के एक हिस्से से दूसरे हिस्से में लगाया जाता है। सुश्रुत का ग्रंथ माथे की की लटकती हुर्इ त्‍वचा के टुकड़े का प्रयोग नाक का संधान करने के लिए पहला लिखित रिकॉर्ड मिलता है। जिसमें एक तकनीक जो आज भी उपयोग की जाती है, जिसे माथे से त्वचा की पूरी मोटाई का टुकड़ा नाक को फिर से बनाने के लिए उपयोग किया जाता है। उस समय उस प्रक्रिया की जरूरत वाले रोगियों में आम तौर पर वे लोग शामिल होते थे जो चोरी या व्यभिचार के लिए सजा के रूप में अपनी नाक खो चुके थे।
मौजूदा दौर में सर्जन आघात, संक्रमण, जलने के साथ-साथ ऊतकों की सुरक्षात्मक परतों को खोने वाले क्षेत्रों को बहाल करने के लिए त्वचा के कलम का उपयोग करते हैं साथ ही उन क्षेत्रों को पुनर्स्थापित करने के लिए जहां सर्जिकल हस्तक्षेप ने त्वचा को नुकसान हुआ है, जैसा कि मेलेनोमा (त्‍वचा संबंधी ट्यूमर) हटाने से हो सकता है। आश्चर्यजनक रूप से इन तकनीकों को सुश्रुत संहिता में विस्‍तार से समझाया गया है और दुनिया इससे प्रेरणा लेती है। सुश्रुत संहिता में सर्जरी से जुड़े विभिन्न पहलुओं को विस्तार से बताया गया है। इस किताब के अनुसार सुश्रुत शल्य चिकित्सा के किये 125 से अधिक स्वनिर्मित उपकरणों का उपयोग किया करते थे, जिनमे चाकू, सुइयां, चिमटियां की तरह ही थे, जो इनके द्वारा स्वयं खोजे गये थे। ऑपरेशन करने के 300 से अधिक तरीकें व प्रक्रियाएँ इस किताब में वर्णित है। सुश्रुत संहिता में cosmetic surgery, नेत्र चिकित्सा में मोतियाबिंद का ओपरेशन करने में ये पूर्ण दक्ष थे. तथा अपनी इस रचना में पूर्ण प्रयोग विधि भी लिखी है। इसके अतिरिक्त ऑपरेशन द्वारा प्रसव करवाना, टूटी हड्डियों का पता लगाकर उन्हें जोड़ना वे भली-भांति जानते थे। ये अपने समय के महान शरीर सरंचना, काय चिकित्सा, बाल रोग, स्त्री रोग, मनोरोग चिकित्सक थे।

मेहरम’ के बिना हज पर जाएंगी 2340 महिलाएं, मिलेंगी विशेष सुविधाएं

नयी दिल्ली : ‘मेहरम’ (पुरुष साथी) के बिना हज पर जाने की इजाजत मिलने के बाद इस साल 2340 महिलाएं अकेले हज पर जाने की तैयारी में हैं। यह संख्या पिछले साल के मुकाबले करीब दोगुनी है। भारतीय हज समिति के मुताबिक, ‘मेहरम’ के बिना हज पर जाने के लिए कुल 2340 महिलाओं का आवेदन मिला और सभी को स्वीकार कर लिया गया। इन महिलाओं के रहने, खाने, परिवहन और दूसरी जरूरतों के लिए विशेष सुविधाएं मुहैया कराई जाएंगी। हज कमेटी के मुख्य कार्यकारी अधिकारी मकसूद अहमद खान ने ‘पीटीआई-भाषा’ को बताया, ‘इस बार कुल 2340 महिलाएं मेहरम के बिना पर हज पर जा रही हैं। जितनी भी महिलाओं ने बिना मेहरम के हज पर जाने के लिए आवेदन किया, उन सबके आवेदन को लॉटरी के बिना ही स्वीकार कर लिया गया।’ पिछले साल करीब 1300 महिलाओं ने आवेदन किया था। नई हज नीति के तहत पिछले साल 45 वर्ष या इससे अधिक उम्र की महिलाओं के हज पर जाने के लिए ‘मेहरम’ होने की पाबंदी हटा ली गई थी। ‘मेहरम’ वो शख्स होता है जिससे इस्लामी व्यवस्था के मुताबिक महिला की शादी नहीं हो सकती अर्थात पुत्र, पिता और सगे भाई ।
मेहरम की अनिवार्य शर्त की वजह से पहले बहुत सारी महिलाओं को परेशानी का सामना करना पड़ता था और कई बार तो वित्तीय एवं दूसरे सभी प्रबन्ध होने के बावजूद सिर्फ इस पाबंदी की वजह से वे हज पर नहीं जा पाती थीं। खान ने कहा कि पिछले साल की तरह इस बार भी ‘मेहरम’ के बिना हज पर जाने के लिए ज्यादातर आवेदन केरल से आए, हालांकि इस बार उत्तर प्रदेश, बिहार और कुछ उत्तर भारतीय राज्यों से भी महिलाएं अकेले हज पर जा रही हैं। उन्होंने कहा, ‘बिना मेहरम के जा रही महिलाओं को हज के प्रवास के दौरान विशेष सुविधाएं दी जाएंगी। उनको रहने, खाने और परिवहन की बेहतरीन सुविधाएं दी जाएंगी। उनकी सुरक्षा का भी पूरा ध्यान दिया जाएगा और मदद के लिए पिछले साल की तरह ‘हज सहायिकाएं’ भी मिलेंगी।’ भारतीय हज समिति को 2019 में हज के लिए ढाई लाख से ज्यादा आवेदन मिले जिनमें 47 फीसदी महिलाएं हैं। इस साल 1.7 लाख लोग हज पर जाएंगे।