उदयपुर : आजाद हिंद फौज के लिए जर्मनी के जारी 10 में से 9 डाक टिकटों का संग्रह भाणावत के पास उदयपुर में है।| नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने आजाद हिंद फौज के सर्वोच्च सेनापति की हैसियत से देश में पहली बार 21 अक्टूबर, 1943 को अस्थायी सरकार की नींव रखी थी। बोस की इस सरकार को 11 देशों ने मान्यता भी दी थी। आजाद हिंद सरकार ने कई देशों में अपने दूतावास खोले थे। आजाद हिंद फौज की बनी अस्थायी सरकार के 75 वर्ष पूरे हुए। 1943 में आजाद हिंद फौज के लिए नाजी जर्मनी ने अलग-अलग मूल्य के 10 डाक टिकट प्रकाशित किए थे, जिन्हें आजाद हिंद डाक टिकट कहा जाता हैं। इनमें से 9 टिकटों का संग्रह उदयपुर के विनय भाणावत के पास हैं। ये टिकट स्टेट प्रिंटिंग वर्क्स, बर्लिन (जर्मनी) में मुद्रित हुए थे। भारतीय डाक विभाग ने इन टिकटों को अपने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम डाक टिकटों में शामिल किया है।
कहाँ गया आजाद हिंद फौज का साढ़े 5 करोड़ का खजाना?
21 अक्टूबर को पूरे देश ने आजाद हिंद फौज की स्थापना की 75वीं सालगिरह मनायी लेकिन नेताजी सुभाषचंद बोज से जुड़े अभी कई ऐसे दस्तावेज हैं, जो अभी तक सार्वजनिक नहीं हुए हैं। उन्हीं में से एक रहस्य आजाद हिंद फौज के खजाने से जुड़ा है। नेताजी पर कई किताबें लिख चुके लेखक अनुज धर की माँग है कि सरकार उनसे जुड़े सभी गोपनीय दस्तावेजों को सार्वजनिक करे।
नेताजी को दान में मिला था 80 किलो से ज्यादा सोना
अमर उजाला की खबर के मुताबिक नेताजी रहस्यगाथा और इंडियाज बिगेस्ट कवर-अप जैसी किताबों के लेखक अनुज धर ने बताया कि आजाद हिंद फौज को बनाने के लिए पूरे देश ने नेताजी को करोड़ों रुपए का चंदा और 80 किलो से ज्यादा सोना दान में मिला था। वह कहते हैं कि 1951 में जापानी अखबार निपोन टाइम्स ने खजाने की कीमत तकरीबन साढ़े पांच करोड़ रुपए आंकी थी। अपनी रिसर्च के दौरान धर ने विदेश मंत्रालय और पीएमओ से जुड़ी कई फाइलों का अवलोकन किया। इस दौरान उन्होंने पाया कि नेताजी से जुड़े दो लोगों के नाम सामने आए।
मिला केवल 8-10 किलो सोना
वह बताते हैं, कि टोक्यो में इंडियन इंडीपेंडेंस लीग के अध्यक्ष मूंगा राममूर्ति और नेताजी के प्रचार मंत्री एसए अय्यर के नाम उन फाइलों में सामने आए थे, जिन पर आजाद हिंद फौज के खजाने को गायब करने का आरोप लगा था। इन दोनों की मदद जापान में ब्रिटिश एंबेसी में अताशे रहे कर्नल जेजी ने की थी। धर के मुताबिक नेताजी ने अपनी मृत्यु से पहले वह खजाना मंगवाया था। नेताजी के आखिरी जन्मदिन 23 जनवरी 1945 पर जब खजाना तुलवाया गया था, तो नेताजी के वजन से ज्यादा था। वह बताते हैं कि नेताजी की लंबाई 5 फुट 10 इंच थी और वजन तकरीबन 75 किलो था। सरकारी दस्तावेजों में दर्ज है कि अगस्त 1945 में नेताजी की मौत के बाद सरकार के हाथ जो खजाना लगा, वह मात्र 8-10 किलो का ही था।
खजाना जलने की उड़ाई अफवाह
धर बताते हैं, कि राममूर्ति, अय्यर और फिगेस का नाम अकसर ताइवान में नेताजी की हवाई दुर्घटना में मौत के अहम गवाहों के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है। उस समय यह अफवाह उड़ाई गई कि नेताजी की मौत के साथ ही वह खजाना भी जल कर खाक हो गया। राममूर्ति और अय्यर ने ही नेताजी की अस्थियों को टोक्यो के रेंकोजी मंदिर में रखवाया था। बाद में 1951 में अय्यर की गुप्त यात्रा के दौरान राममूर्ति ने कुछ जले हुए जेवरों को टोक्यो स्थित भारतीय मिशन को सौंपा था। उस समय दिल्ली में बैठी सरकार को खजाने की लूट में मूर्ति और अय्यर के शामिल होने की जानकारी थी। बाद में इन आरोपों की टोक्यो में भारतीय दूतावास ने पुष्टि भी की थी।
नेताजी केवल दो सूटकेसों में गए थे सोना
जापान में भारत के राजदूत केके चेत्तुर ने 20 अक्टूबर 1951 को पत्र लिख कर जापान सरकार का हवाला देते हुए कहा था, कि आखिरी उड़ान में नेताजी को केवल दो सूटकेसों में ही सोना और कीमती पत्थर ले जाने की अनुमति दी गई थी। धर बताते हैं कि उस समय जापान में रह रहे भारतीयों के बीच राममूर्ति और अय्यर के रातोंरात अमीर बनने की काफी चर्चाएं हुई थीं। मूर्ति टोक्यो के सम्मानित व्यवसायी बन चुके थे, वे कैडिलैक और क्रिसलर जैसी गाड़ियों के मालिक थे और टोक्यो में उऩका महंगी घड़ियां और कीमती कपड़े बेचने का स्टोर खोल चुके थे।
बाद में ‘अभियुक्त’ बना सरकार में सलाहाकार
चैत्तुर ने नई दिल्ली को भेजी अपनी रिपोर्ट में बताया था कि अय्यर की 1951 में जापान यात्रा का मकसद खजाने के लूट की बंदरबांट और दूतावास को जले जेवर सौंपकर यह दिखाना था कि उन पर लगे आरापों में कोई सच्चाई नहीं है। धर का कहना है कि 01 नवंबर 1955 को विदेश मंत्रालय ने एक गुप्त रिपोर्ट भी बनाई, जिसमें दोनों कथित अभियुक्त सरकार की पूरी कार्रवाई में शामिल रहे। अय्यर के जापान से लौटने पर उनका भव्य स्वागत किया गया और नेहरू सरकार ने 1953 को अय्यर को पंचवर्षीय योजना का सलाहकार नियुक्त कर दिया।
सबसे पहला घोटाला
लेखक अनुज धर के मुताबिक तमाम सबूत होने के बावजूद आज तक साबित नहीं हो पाया कि आजाद हिंद फौज से जुड़ा वह खजाना आखिर कहाँ चला गया। धर इसे स्वतंत्र भारत का पहला घोटाला बताते हैं, क्योंकि यह 1948 में हुए जीप घोटाले से पहले का है। वह कहते हैं कि साथ ही रूस से नेताजी से जुड़े मामलों पर बात करनी चाहिए क्योंकि नेताजी से जुड़ी अभी तक केवल 306 फाइलें ही सामने आई हैं, लेकिन गोपनीय फाइलें अभी भी सरकार के पास हैं, जिन्हें जल्द से जल्द देश के लोगों के सामने रखा जाना चाहिए।
(साभार अमर उजाला)
निर्मल गंगा: मार्च तक 200 घाट, श्मशानघाटों का काम पूरा करने पर जोर: गडकरी
नयी दिल्ली : गंगा को ‘निर्मल’ और ‘अविरल’ बनाने के सपने को पूरा करने के उद्देश्य से सरकार घाट और श्मशानघाट की करीब 200 परियोजनाओं को मार्च 2019 तक पूरा करने पर विचार कर रही है। केंद्रीय जल संसाधन एवं गंगा संरक्षण मंत्री नितिन गडकरी ने यह बात कही।
उन्होंने कहा कि केंद्र गंगा के अलग-अलग हिस्सों में पानी की न्यूनतम मात्रा या पर्यावरणीय प्रवाह को सुनिश्चित करने के लिये विभिन्न कदम उठा रही है।
गडकरी ने कहा, “गंगा को स्वच्छ बनाने के लिये मलजल आधारभूत संचरना, घाट एवं शमशानघाट, नदी के किनारों का विकास, नदी के सतह की सफाई और जलीय जीव-जंतुओं की सुरक्षा के लिये कुल 227 परियोजनायें शुरू की गयी हैं।”
उन्होंने कहा कि गंगा को ‘निर्मल’ (स्वच्छ) और ‘अविरल’ (मुक्त प्रवाह) बनाना उनका सपना है और उनके मंत्रालय इस दिशा में कई कदम उठा रहे हैं। सरकार ने अक्टूबर महीने की शुरुआत में गंगा और उसकी सहायक नदियों में न्यूनतम पर्यावरणीय प्रवाह को अनिवार्य किया गया था। इसके तहत पानी की गुणवता को बनाये रखने और पर्यावरणीय रूप से टिकाऊ कायाकल्प को सुनिश्चित करने के लिये गंगा और उसकी सहायक नदियों के विभिन्न खंडों में साल भर जल का न्यूनतम प्रवाह अनिवार्य रूप से बनाये रखना होगा। गडकरी ने कहा कि सरकार की मार्च 2019 तक 151 घाट और 54 श्मशान घाट परियोजनाओं को पूरा करने की योजना है। उन्होंने कहा कि 138 जगहों पर पानी की गुणवता की निगरानी की जायेगी। इन स्थानों की बीच की दूरी 20 किलोमीटर होगी। इसके अलावा गंगा में ठोस कचड़े से बचाने के लिये वाराणसी, बिठूर, कानपुर, इलाहाबाद, मथुरा, वृंदावन और हरिद्वार में 24 घंटे घाटों की सफाई के लिये परियोजनाएं शुरू की गयी हैं। गडकरी ने कहा कि जैव-विविधता संरक्षण योजनाओं के तहत, गंगा में पायी जाने वाली स्वदेशी जलीय प्रजातियों जैसे डॉल्फिन, कछुए और जलीय पक्षियों के संरक्षण और पुनर्स्थापन के लिए कई परियोजनाएं लागू की जा रही हैं। गंगा नदी के न्यूनतम पर्यावरण प्रवाह को लेकर केंद्रीय मंत्री ने कहा कि इन निर्देशों के कार्यान्वयन के बाद नदी कभी नहीं सुखेगी क्योंकि ये वैज्ञानिक अध्ययन के फलस्वरूप निकले निष्कर्ष हैं।
शिवप्रकाश दास की 2 कवितायें

दीमकें
दीमकें जब पकड़ लेती हैं किसी चीज को,
धीरे–धीरे ही सही सब कुछ चाट जाती हैं,
वह नहीं करती फर्क किसी काठ में,
और न ही किसी धर्म ग्रंथ, या मैक्सिम गोर्की की माँ ’ में,
वह दिन–रात किर्र,किर्र,किर्र की आवाज़ में,
ध्वस्त कर देती हैं एक पूरा वर्तमान,
और अंत में भहरा कर गिरा देती हैं,
आदमी का सुनहरा भविष्य ।
मैं कलम उठाता हूँ ,
और लिखना चाहता हूँ,
इन असंख्य दीमकों के खिलाफ़,
जिनकी आड़ में बैठे,
सेंक रहे हो तुम अपनी गोटियाँ,
ये दीमकें कभी धर्म, कभी भाषा,
कभी जाति बनकर,
करती हैं हमला आदमी पर,
और कर लेती हैं गिरफ्त,
आदमी का विवेक,
जहाँ लगा है विचारों का कारखाना,
वे फहरा देती हैं तुम्हारी विजय पताका,
और इस तरह वे तुम्हारी जीत सुनिश्चित कर,
बढ जाती हैं किसी दूसरे की ओर ।
मैं परिचित हूँ दीमकों की इन कलाबाजियों से,
इसलिए ओ दीमकों के सरताज,
मैं लिखता हूँ तुम्हारे भी खिलाफ़,
और उतार देना चाहता हूँ,
रेशमी जामा तुम्हारे तन से,
दिखला देना चाहता हूँ,
उस रेशमी जामे के पीछे की सच्चाई ,
जहाँ असंख्य दीमकें अपनी बिलबिलाहट के साथ,
तुम्हारे भीतर ही मुस्कुरा रही हैं ।
मंथन
सुना है मंथन जरूरी है स्व’ का
मंथन के बाद ही बदलता है सबकुछ
बदलने लगती है मनुष्य की स्थिति
मैं झांकने लगता हूँ अपने भीतर
शुरू होता है दौर मंथन का
गहराइयों से फूट पड़ता है
विष का फौवारा
विष से मैं परिचित हूँ ,
क्योंकि मंद मुस्कान के साथ
बार–बार परोसा जाता रहा है
उसे मेरे ही सामने
और घोषित किया जाता रहा
मेरी इस मंथन को
अब तक के सारे मंथनों से श्रेष्ठ
इस तरह हरबार सबसे आखिरी में
मेरे हिस्से में सजता रहा
विष और विष से सजा धजा पात्र
मैंने आज भी जारी रखा है
अपने मंथनों का दौर
यानि एक और, एक और
विष प्याले का इंतजार
अमृत कलश से कोशों दूर
आत्म मंथन के द्वारा करना चाहता हूँ
विष से आगे की यात्रा
पर हर बार यह मंथन
एक नई चुप्पी में बदल
कर लेता है मुझे गिरफ्त
कई मोटी जंजीरों में कराहता मन
अमृत कलश की चाह लिए भटकता है हर ठौर
और वह है कि कैद किसी दलदल में
राजकुवरों की हाथों में
सजने को लालायित
बैठा रहता है अपनी पलकें बिछाए ।।
असम पुलिस के अधिकारी को मरणोपरांत कीर्ति चक्र
नयी दिल्ली : उल्फा उग्रवादियों से लड़ने में अदम्य साहस और अनुकरणीय नेतृत्व प्रदर्शित करने के लिए असम पुलिस के एक अधिकारी को मरणोपरांत कीर्ति चक्र से सम्मानित किया गया है। गृह मंत्रालय के एक अधिकारी ने शनिवार को यह जानकारी दी। असम के तिनसुकिया जिले में 19 अप्रैल 2013 को उल्फा उग्रवादियों के साथ मुठभेड़ में इंस्पेक्टर लोहित सोनोवाल शहीद हो गये थे। मुठभेड़ में दो उग्रवादी भी मारे गये थे। गृह मंत्रालय के एक अधिकारी ने बताया कि पुलिस अधिकारी ने अदम्य साहस, कर्तव्य के लिए अनुकरणीय समर्पण प्रदर्शित किया और अपने प्राण न्योछावर किये जिसके लिए उन्हें मरणोपरांत कीर्ति चक्र से सम्मानित किया गया।’’
महिलाओं की अपेक्षा पुरुष कर्मचारी पहली पसंद, रोजगार में पिछड़ रहीं महिलाएं
नयी दिल्ली : वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम द्वारा जारी एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में हर पांच में से चार कंपनियों में 10 फीसद से भी कम महिला कर्मचारियों की भागीदारी है। भारत की ज्यादातर कंपनियां महिलाओं की तुलना में पुरुष कर्मचारियों को भर्ती करना पसंद करती है। रिपोर्ट के मुताबिक इस तरह की मानसिकता रखने वाली कंपनियों की संख्या तेजी से बढ़ रही है।
रोजगार में पिछड़ती महिलाएं
भारत में तकनीक के क्षेत्र से जुड़ी नौकरियों में तेजी से इजाफा हो रहा है। नए अवसर सृजित हो रहे हैं, लेकिन चयन में लिंगभेद की वजह से इसका फायदा महिलाओं से ज्यादा पुरुषों को मिल रहा है।
वैश्विक औसत में पिछड़ता भारत
भारत में महिला कार्यबल की भागीदारी महज 27 फीसद है जो वैश्विक औसत के मुकाबले 23 फीसद कम है। एक तरफ तो भारत में तेजी से नई नौकरियां पैदा हो रही हैं, वहीं दूसरी तरफ महज 26 फीसद महिला कर्मियों की भर्ती देश में महिलाओं की स्थिति पर कई सवाल खड़े करती है।
टेक्सटाइल सेक्टर में महिलाओं का वर्चस्व
बैंकिंग सेक्टर में 61% महिला कर्मचारी, टेक्सटाइल सेक्टर में 64% महिला कर्मचारी।
रिटेल सेक्टर की 79 फीसद कंपनियों में 10% महिला कर्मचारी।
ट्रांसपोर्ट एवं लॉजिस्टिक्स सेक्टर की 77 फीसद कंपनियों में 10% महिला कर्मचारी।
भारत में 27% महिला कार्यबल।
वैश्विक स्तर पर 50% महिला कार्यबल।
3 में से 1 कंपनी देती हैं पुरुष कर्मचारियों को प्राथमिकता।
10 में से 1 कंपनी देती हैं महिला कर्मचारियों को प्राथमिकता।
770 सर्वे में शामिल भारतीय कंपनियां।
770 में से उन कंपनियों की संख्या जहां 50% या अधिक महिला कर्मचारी हैं मात्र 10 है।
546 वे कंपनियां जहां 10 फीसद से कम महिला कर्मचारी।
172 कंपनियों में 5 फीसद महिला कर्मचारी।
164 में कोई महिला कर्मचारी नहीं।
प्रो जीडी अग्रवाल : भगीरथ जिसने माँ गंगा के लिए दी जान
गंगा की सफाई के लिए विशेष कानून की मांग को लेकर 111 दिन से अनशन पर बैठे पर्यावरणविद प्रो. जीडी अग्रवाल उर्फ स्वामी सानंद का ऋषिकेश के एम्स अस्पताल में निधन हो गया। प्रो जीडी अग्रवाल भारत के प्रसिद्ध पर्यावरणविद थे, साथ ही वो महात्मा गांधी चित्रकूट ग्रामोदय यूनिवर्सिटी में पर्यावरण विज्ञान के मानद प्रोफेसर थे। जीडी अग्रवाल ने 2009 में भागीरथी नदी पर हो रहे बांध का निर्माण रुकवाने के लिये उन्होंने आमरण अनशन किया था जिसमें वो सफल रहे थे।
प्रो जीडी अग्रवाल का जन्म 20 जुलाई 1932 को यूपी के मुजफ्फरनगर के कांधला में हुआ था। इनकी शुरुआती शिक्षा गांव के ही स्थानीय प्राथमिक विद्यालय में हुई थी। इसके बाद इन्होंने यूनिवर्सिटी ऑफ रुड़की (IIT Roorkee) से अपना ग्रेजुएशन पूरा किया। प्रो जीडी अग्रवाल केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड में पहले सचिव के रूप में भी नियुक्त थे. इसके अलावा उन्होंने राष्ट्रीय नदी संरक्षण निदेशालय के सलाहकार के रूप में भी उन्होंने अपनी सेवाएं दी थी। प्रो जीडी अग्रवाल यूनिवर्सिटी ऑफ रुड़की में भी विजिटिंग प्रोफेसर रहे थे।
2011 में जीडी अग्रवाल से हो गए स्वामी ज्ञानस्वरुप सानंद
प्रो. जीडी अग्रवाल ने उत्तरप्रदेश सरकार में डिजाइन इंजीनियर के रूप में अपने कॅरियर की शुरुआत की थी। इसके बाद उन्होंने यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया एंड बर्केले से एनवायर्मेंटल इंजीनियरिंग में पीएचडी पूरी की। धीरे-धीरे इनका ध्यान धर्म की और अधिक जाने लगा था जिसके बाद 2011 में ये संन्यासी हो गए और अपना नाम जीडी अग्रवाल से बदल कर स्वामी ज्ञानस्वरुप सानंद कर लिया।
प्रो जीडी अग्रवाल गंगा में बहुत ज्यादा आस्था रखते थे। वो अक्सर कहते थे गंगा उनकी मां है और वो गंगा के लिए अपनी जान भी दे सकते हैं। अपनी मौत से पहले इन्होंने पांच बार अनशन किया था। 2013 में जब इन्होंने गंगा सफाई के लिए हरिद्वार में अनशन किया था उस वक्त प्रशासन ने इसे आत्महत्या की कोशिश कहकर इन्हें जेल में डाल दिया था। इस बार भी गंगा की सफाई के लिए विशेष कानून की मांग करते हुए ये 22 जून से हरिद्वार के उपनगर कनखल के जगजीतपुर स्थित मातृसदन आश्रम में अनशन पर बैठे गए थे। उन्होंने जल भी त्याग दिया था।
श्रीराम ने युद्ध से पूर्व किया था अपराजिता देवी पूजन
महर्षि वेद व्यास ने अपराजिता देवी को आदिकाल की श्रेष्ठ फल देने वाली, देवताओं द्वारा पूजित और त्रिदेव (ब्रह्मा, विष्णु और महेश) द्वारा नित्य ध्यान में लाई जाने वाली देवी कहा है। राम-रावण युद्ध नवरात्रों में हुआ। रावण की मृत्यु अष्टमी-नवमी के संधिकाल में और दाह संस्कार दशमी तिथि को हुआ। इसके बाद विजयदशमी मनाने का उद्देश्य रावण पर राम की जीत यानी असत्य पर सत्य की जीत हो गया। आज भी संपूर्ण रामायण की रामलीला नवरात्रों में ही खेली जाती है और दसवें दिन सायंकाल में रावण का पुतला जलाया जाता है। इस दौरान यह ध्यान रखा जाता है कि दाह के समय भद्रा न हो।
देवी अपराजिता के पूजन का आरंभ तब से हुआ है जब से चारों युगों की शुरुआत हुई। नवदुर्गाओं की माता अपराजिता संपूर्ण ब्रह्माण्ड की शक्तिदायिनी और ऊर्जा उत्सर्जन करने वाली हैं। विजयदशमी को प्रातःकाल अपराजिता लता का पूजन, अतिविशिष्ट पूजा-प्रार्थना के बाद विसर्जन और धारण आदि से महत्वपूर्ण कार्य पूरे होते हैं। ऐसी पुराणों में मान्यता हैं। देवी अपराजिता को देवताओं द्वारा पूजित, महादेव, सहित ब्रह्मा विष्णु और विभिन्न अवतार के द्वारा नित्य ध्यान में लाई जाने वाली देवी कहा है।
विजय दशमी के दिन ‘माता अपराजिता’ का पूजन किया जाता है। विजयदशमी का पर्व उत्तर भारत में आश्विन शुक्ल पक्ष के नवरात्र संपन्न होने के उपरांत मनाया जाता है। शास्त्रों में दशहरे का असली नाम विजयदशमी है, जिसे ‘अपराजिता पूजा’ भी कहते हैं। अपराजिता देवी सकल सिद्धियों की प्रदात्री साक्षात माता दुर्गा का ही अवतार हैं। भगवान श्री राम ने माता अपराजिता का पूजन करके ही राक्षस रावण से युद्ध करने के लिए विजय दशमी को प्रस्थान किया था। यात्रा के ऊपर माता अपराजिता का ही अधिकार होता है।
ज्योतिष के अनुसार माता अपराजिता के पूजन का समय अपराह्न अर्थात दोपहर के तत्काल बाद का है। अत: अपराह्न से संध्या काल तक कभी भी माता अपराजिता की पूजा कर यात्रा प्रारंभ की जा सकती है। यात्रा प्रारंभ करने के समय माता अपराजिता की यह स्तुति करनी चाहिए, जिससे यात्रा में कोई विघ्न उत्पन्न नहीं होता-
शृणुध्वं मुनय: सर्वे सर्वकामार्थसिद्धिदाम्।
असिद्धसाधिनीं देवीं वैष्णवीमपराजिताम्।।
नीलोत्पलदलश्यामां भुजङ्गाभरणोज्ज्वलाम्।
बालेन्दुमौलिसदृशीं नयनत्रितयान्विताम्।।
पीनोत्तुङ्गस्तनीं साध्वीं बद्धद्मासनां शिवाम्।
अजितां चिन्येद्देवीं वैष्णवीमपराजिताम्।।
अपराजिता देवी का पूजन करने से देवी का यह रूप पृथ्वी तत्त्व के आधार से भूगर्भ से प्रकट होकर, पृथ्वी के जीवों के लिए कार्य करता है । अष्टदल पर आरूढ़ हुआ यह त्रिशूलधारी रूप शिव के संयोग से, दिक्पाल एवं ग्राम देवता की सहायता से आसुरी शक्तियां अर्थात बुरी शक्तियों का नाश करता है। दशमी तिथि की संज्ञा ‘पूर्ण’ है, अत: इस दिन यात्रा प्रारम्भ करना श्रेष्ठ माना जाता है। श्री वाल्मीकि रामायण के अनुसार श्रवण नक्षत्र युक्त विजय दशमी को ही भगवान श्री राम ने किष्किंधा से दुराचारी राक्षस रावण का विनाश करने के लिए हनुमानादि वानरों के साथ प्रस्थान किया था। आज तक रावण वध के रूप में विजय दशमी को अधर्म के विनाश के प्रतीक पर्व के रूप में भी मनाया जाता है।
(साभार – लाइव हिन्दुस्तान)
अहिरीटोला के दुर्गा पूजा पंडाल में दिखा यौन कर्मियों का संघर्ष
कोलकाता : बंगाल का विश्व प्रसिद्ध दुर्गापूजा अपनी सज्जा, थीम व कलाकारी को लेकर हर बार चर्चा में होती है। इस बार भी उत्तर कोलकाता में बना एक पंडाल चर्चा का विषय बना हुआ है। इस पंडाल में यौन कर्मियों के जीवन और संघर्ष की दास्तां को उभारा गया है। उत्तर कोलकाता में अहिरिटोला युवकवृंद दुर्गा पूजा पंडाल तक जाने वाली सड़कों पर इस थीम को लेकर पेंटिंग भी बनाई गई हैं। इस पंडाल में सेक्स वर्कर्स के जीवन और उनके संघर्ष को दर्शाने की कोशिश की गई है।
पंडाल को जाने वाली सड़क पर 300 फुट लंबी पेंटिंग बनाने के अलावा दोनों तरफ की दीवारों पर पेंटिंग बनाई गई है। पेंटिंग के माध्यम से सेक्स वर्कर के संघर्ष और उन परिस्थितियों को भी दिखाने की कोशिश की गई है जिसकी वजह से उन्हें यह काम करना पड़ता है। इस पंडाल के माध्यम से उत्तर कोलकाता के चर्चित रेड लाइट एरिया सोनागाछी को दर्शाने की कोशिश की गई है। मालूम हो कि सोनागाछी में हजारों की संख्या में सेक्स वर्कर रहती हैं। पंडाल की थीम को ‘उत्सारितो आलो’ दिया गया है। इस थीम से दुर्गा पूजा के आयोजनकर्ता इन सेक्स वर्कर्स की समाज में सहभागिता और बढ़ाने और उन्हें वह सम्मान देने की कोशिश कर रहे जिसकी वो हक़दार हैं। बता दें दुर्गा पूजा के दौरान दुर्गा की मूर्ति बनाने के लिए इस्तेमाल मिट्टी में किसी वैश्यालय की मिट्टी मिलाने का चलन है।
अहिरिटोला युवकवृंद दुर्गा पूजा समिति के कार्यकारी अध्यक्ष उत्तम साहा ने कहा, ‘हमारे रूढि़वादी समाज ने हमेशा से ही यौन कर्मियों को उपेक्षा की नजर से देखा है। हम यह महसूस करने में असफल रहे हैं कि वे भी किसी की मां और बहन हैं। उनके पास भी एक परिवार है। लोगों की प्रताड़ना और घृणा की जगह उन्हें भी सम्मान और प्यार से जीवन जीने का अधिकार होना चाहिए।’ इस थीम को जमीन पर उतारने और कलाकृतियों को पेंट करने के लिए सेक्स वर्कर्स के लिए काम करने वाले एनजीओ दुरबार महिला समन्वय कमेटी को आमंत्रित किया गया था। संगठन की सचिव काजोल बोस ने कहा, ‘हम पूजा समिति की पहल से बहुत खुश हैं और इस विषय को पूजा का केंद्र बनाना बहुत अच्छा लगा।
रंगोली बयां करेगी सोनागाछी रेड लाइट एरिया के यौनकर्मियों के संघर्ष की कहानी
इस बार उत्तर कोलकाता स्थित अहिरीटोला यूथ एसोसिएशन की ओर से सोनागाछी की यौन कर्मियों को लेकर एक रंगोली (भित्ति चित्र) बनाई गई है। इस रंगोली के माध्यम से एशिया के सबसे बड़े रेड लाइट एरिया सोनागाछी की सेक्स वर्कर्स के जीवन व उनके संघर्ष को उकेरने की कोशिश की गई है। अहिरीटोला इलाके में 300 फीट लंबी सड़क पर रंगोली को बनाया गया है।
अहिरीटोला युवकवृंद पूजा कमेटी के कार्यकारी अध्यक्ष उत्तम साहा ने कहा कि इस रंगोली के पीछे हमारा उद्देश्य लोगों के बीच जागरूकता फैलाना है ताकि वे यौन कर्मियों के जीवन और संघर्ष को जान सकें। उन्होंने कहा कि रंगोली के माध्यम से अहिरीटोला से करीब एक किलोमीटर दूर स्थित सोनागाछी के योनकर्मियों के जीवन को दर्शाया गया है।
आपको यहां बता दें कि माँ दुर्गा की इन मूर्तियों को केवल मिट्टी से ही तैयार किया जाता है। इसके लिए नदी के किनारे की मिट्टी का उपयोग किया जाता है। इसमें किसी भी तरह की अन्य चीज नहीं मिलाई जाती है। आपको जानकर हैरत होगी कि इस मूर्ति की शुरुआत के लिए मूर्तिकार सबसे पहले उस स्थान की मिट्टी लाते हैं जिसे समाज से अलग माना जाता है। यह वह रेड लाइट इलाके होते हैं जहाँ पर देह व्यापार करने वाली महिलाएं रहती हैं। ऐसा करने के पीछे भी एक बड़ा कारण है। दरअसल, प्राचीन समय से इस तरह का काम करने वाली महिलाओं को समाज से अलग माना जाता रहा है। उनकी धार्मिक अनुष्ठानों में भी भागीदारी या तो नहीं रही या फिर नाम मात्र की ही रही है। ऐसे में दुर्गा पूर्जा के दौरान उनके यहाँ की मिट्टी से माँ दुर्गा की मूर्ति की शुरुआत करने को माना जाता है कि इस बड़े धार्मिक अनुष्ठान में उनको भी विधिवत तौर पर शामिल किया गया है।
(साभार – दैनिक जागरण, तस्वीर – इंटरनेट से)
12, 000 कीलों से बनी प्रतिमा, नेत्रहीन भी कर सकते हैं माँ दुर्गा के दर्शन
कोलकाता : पूरे देश भर में नवरात्री की धूम है पर बंगाल की दुर्गा पूजा की बात ही अलग है। कोलकाता में लगे हर एक पंडाल को अलग-अलग तरीके से सजाया जाता है। दूर-दूर से लोग इन पंडालों की सजावट और ख़ासकर, दुर्गा माँ की प्रतिमा को देखने आते हैं। पर क्या आपने कभी सोचा है कि जो लोग देख नहीं पाते, उनका भी तो मन करता होगा माँ की इस ममतामयी मूर्ती को देखने का!
ऐसे ही ख़ास लोगों के लिए इस साल, बालीगंज में समाज सेवी संघ ने अनोखी पहल शुरू की है। दृष्टिहीनों के लिए ख़ास तौर पर व्यवस्था की गयी है कि वे इस दुर्गा पूजा में माँ की प्रतिमा से लेकर पंडाल की सजावट तक, सभी कुछ छू कर महसूस कर सकते हैं।
पंडाल में एक कलाकृति
पूजा के प्रवेश द्वार पर ही दुर्गा माँ के चेहरे की एक विशाल प्रतिमा है, जिसमें तीसरी आंख भी है, और इसे 12,000 लोहे की कीलों से बनाया गया है। इस कलाकृति को छूकर कोई भी दृष्टिहीन व्यक्ति मिट्टी से बने पारंपरिक दुर्गा मूर्तियों के चेहरे की कल्पना कर सकता है।
पंडाल की भीतरी दीवारें भी लोहे के कील व नट-बोल्ट से सजाई गयी हैं ताकि इन्हें छूकर महसूस किया जा सके। इस 73 वर्ष पुरानी दुर्गा पूजा के पूर्व अध्यक्ष दिलीप बनर्जी ने बताया, “हमारे कार्यकर्तायों को यह विचार एक स्कूल में दृष्टिहीन बच्चों के साथ समय बिताने पर आया। जैसे ही लोग मूर्तियाँ और पंडाल बनते देखते हैं, तो दुर्गा पूजा के लिए उत्साहित हो जाते हैं। ऐसे ही दृष्टिहीन लोगों को लकड़ी के तख्तों पर हथोड़े और लोहे की कील आदि की आवाज से पता चलता है कि दुर्गा पूजा की तैयारियां हो रही हैं।”
ब्रेल भाषा में एक दुर्गा मन्त्र पंडाल की दीवारों पर ‘माँ’ और ‘जय माँ दुर्गा’ जैसे शब्द ब्रेल भाषा (वह भाषा जिसे दृष्टिहीन व्यक्ति पढ़ सकते हैं) में लिखे गये हैं। प्रत्येक दृष्टिहीन व्यक्ति को पूजा का विवरण, दुर्गा माँ के मन्त्र आदि की एक शीट भी ब्रेल में दी जाएगी। इसके अलावा पंडाल के बाहर एक आँखों के अस्पताल से भी कुछ कर्मचारी मौजूद होंगे, जहाँ पर पंडाल घुमने के लिए आने वाले लोग चाहे, तो नेत्रदान करने के लिए भी फॉर्म भर सकते हैं।
पंडाल की दीवारों को कील और धागे से सजाया गया है
इस पंडाल को जितना हो सके उतना इस तरीके से सजाया गया है कि दृष्टिहीन व्यक्ति एकदम घर जैसा महसूस करें और साथ ही अन्य लोगों को इन लोगों के प्रति सम्वेदनशील होने की प्रेरणा मिले और साथ ही अपनी आँखें दान करने का हौंसला भी मिले।