नयी दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर कर मुस्लिम महिलाओं को मस्जिद में नमाज पढ़ने की इजाजत देने की गुहार की गई है। वकील आशतोष दुबे की ओर से दायर इस याचिका में कहा गया कि मुस्लिम महिलाओं पर मस्जिद में जाकर नमाज पढ़ने पर रोक गैरकानूनी और असंवैधानिक है। यह मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है। याचिका में कहा गया कि कुरान और हदीस में लिंग के आधार पर कोई भेदभाव नहीं है। इस तरह की परंपरा महिलाओं की गरिमा के भी खिलाफ है। याचिका में कहा गया है कि पुरुषों की तरह महिलाओं का भी इबादत करने का संवैधानिक अधिकार है। याचिका में कहा गया है कि अभी जमात-ए-इस्लामी और शिया समुदाय के फिरकों में ही मुस्लिम महिलाओं को मस्जिद में नमाज पढ़ने की इजाजत है जबकि सुन्नी समुदाय के कई फिरको में इसकी मनाही है। यहां तक कि जहां मुस्लिम महिलाओं को नमाज के लिए मस्जिद में जाने की इजाजत है वहां उनके लिए अलग जगह है। इस पर कोर्ट ने केन्द्र और राज्य से जवाब माँगा है।
हंसी के बेताज बादशाह रहे चार्ली चैपलिन मूक युग के उन महान कलाकारों में से हैं, जिन्हें आज भी उनके महत्वपूर्ण योगदान के लिए याद किया जाता है। अभिनेता होने के साथ- साथ चार्ली भी क्लासिक हॉलीवुड युग के एक महत्वपूर्ण फिल्म निर्माता, संगीतकार और संगीतज्ञ भी रहे। चार्ली चैपलिन का जन्म 16 अप्रैल 1889 को लंदन के वॉलवर्थ में हुआ था
दुनिया भर को हंसाने वाले इस आदमी का जीवन खुद अवसाद से भरा रहा। मां मंच अभिनेत्री थीं, चार्ली के पिता शराबी थे और मां को मानसिक बीमारी के चलते बाद में पागलखाने जाना पड़ा। एक अभिनेता और फिल्म निर्माता-निर्देशक की हैसियत से उन्होंने जो कीर्तिमान स्थापित किए उन्हें तोड़ पाना संभवतः किसी के भी बस की बात नहीं।
बिना कुछ बोले पूरी दुनिया को हंसाने वाले चार्ली चैपलिन ने अपने सफर की शुरुआत 13 वर्ष की आयु में ही कर दी थी। उन्होंने अपने 75 वर्ष के फिल्मी सफर में अभिनता, निर्देशक, लेखक, निर्माता और संगीतज्ञ की सारी जिम्मेदारियो को बखूबी निभाया। चार्ली अपनी कॉमिक एक्टिंग के साथ- साथ अपनी चाल के लिए भी काफी पसंद किये गए और आज भी उनके चलने के स्टाइल को कॉपी किया जाता है। उन्होंने एक से एक यादगार भूमिकाएं अदा की। दुनिया में शायद ही कोई ऐसा देश, नगर या कस्बा होगा जहां के लोगों ने इस महान व्यक्तित्व के बारे में न सुन रखा हो। सबसे ऊपर उनकी छवि एक हंसोड़ मसखरे की है, जिसे बच्चे-बूढ़े और सभी आयु वर्गों के लोगों के बीच समान प्रसिद्धि प्राप्त हुई। 6 जुलाई, 1925 को वह टाइम मैग्जीन के कवर पर आने वाले पहले एक्टर बने। 1973 में ‘लाइम-लाइट’ में बेस्ट म्युजिक के लिए ऑस्कर अवॉर्ड से सम्मानित चार्ली को 1975 में महारानी एलिजाबेथ द्वितीय द्वारा नाइट की उपाधि दी गयी। उन्हें दो मानद अकादमी पुरस्कार भी दिए गए।
हिटलर जैसे तानाशाह का चार्ली ने अपनी फिल्म ‘द ग्रेट डिक्टेटर’ में खुलकर मजाक उड़ाया था। वामपंथ का समर्थन करने के कारण चार्ली पर अमेरिका ने बैन भी लगा दिया था। चार्ली चैपलिन के जिस हैट, छड़ी और छोटी मूंछों वाले किरदार को हम पहचानते हैं, उसका नाम ट्रैम्प है। चार्ली चैपलिन जितने अच्छे कलकार थे उतने ही सादगी भरे इंसान भी थे। उन्हें फिल्मों में उनके योगदान के साथ- साथ उनके विचारों के लिए भी सराहा जाता है। दुनिया को बिना कुछ बोले हँसाने वाले इस कलाकार ने बीमारी के चलते 25 दिसंबर 1977 को दुनिया को अलविदा कह दिया।
विख्यात नाटककार चार्ल्स मैकआर्थर को एक स्क्रीनप्ले लिखने के लिए हॉलीवुड बुलाया गया था। साहित्य से गहरा जुड़ाव रखने वाले चार्ल्स मैकआर्थर की समझ में नहीं आ रहा था कि अच्छा स्क्रीनप्ले कैसे लिखा जाए। उन्हें विजुअल जोक्स लिखने में परेशानी हो रही थी। ‘आप मुझे ये बताइये कि मैं फिफ्थ एवेन्यू में टहल रही एक मोटी औरत को केले के छिलके पर फिसलता हुआ कैसे दिखाऊं कि लोग उस पर हंसें भी? इसे हजारों दफा लिखा-किया जा चुका है।’ मैकआर्थर ने कहा। ‘लोगों को हंसाने का सबसे अच्छा तरीका क्या है? क्या मुझे पहले केले का छिलका दिखाना चाहिए, उसके बाद मोटी औरत को उसकी तरफ आते हुए, और उसके बाद वह फिसल जाती है?’
‘ऐसा कुछ भी नहीं!’ एक क्षण को झिझके बगैर चार्ली चैप्लिन बोले- ‘आप मोटी औरत को आते हुए दिखाइए, फिर आप केले के छिलके को दिखाइए, उसके बाद आप केले के छिलके और मोटी औरत दोनों को एक साथ दिखाइए, इसके बाद वह औरत केले के छिलके पर पैर धरेगी और सामने के मैनहोल में गायब हो जाएगी।’
दूसरा किस्सा- मोंटे कार्लो में एक प्रतियोगिता चल रही थी। इस में प्रतिभागियों को चार्ली चैप्लिन जैसा बन कर आना था। चार्ली चैप्लिन खुद उस में भाग लेने पहुंच गए और उन्हें तीसरा स्थान मिला। चार्ली के कुछ विचार
हंसी के बिना बिताया हुआ दिन, बर्बाद किया हुआ दिन है।
मेरी जिंदगी में बेशुमार दिक्कतें हैं लेकिन यह बात मेरे होंठ नहीं जानते, वो सिर्फ मुस्कुराना जानते हैं।
आईना मेरा सबसे अच्छा दोस्त है क्योंकि जब मैं रोता हूं तो वो कभी नहीं हंसता।
अगर आप जमीन पर देखेंगे तो कभी इंद्रधनुष नहीं देख पाएंगे।
बिना कुछ करे कल्पना का कोई मतलब नहीं है।
आप किसका अर्थ जानना चाहते हैं? ज़िन्दगी इच्छा है, अर्थ नहीं।
नयी दिल्ली : ऐसे कारोबारी जिनका सालाना टर्नओवर दो करोड़ रुपये से अधिक है वो अब वित्त वर्ष 2017-18 के लिए जीएसटी ऑडिट रिपोर्ट ऑनलाइन फाइल सकते हैं। जीएसटी नेटवर्क (जीएसटीएन) ने अपने पोर्टल पर इसका फॉर्मेट मुहैया करा दिया है। देश में जीएसटी एक जुलाई 2017 से लागू हुआ था। इसके पहले वर्ष 2017-18 की ऑडिट रिपोर्ट कारोबारियों को 30 जून तक दाखिल करनी है। सरकार ने 31 दिसंबर 2018 को एनुअल रिटर्न के फार्म- जीएसटीआर-9, जीएसटीआर-9ए और जीएसटीआर-9सी नोटिफाई किए थे। मार्च में इन्हें भरने की तारीख तीन माह बढ़ाकर 30 जून 2019 कर दी थी। जीएसटीएन ने जीएसटीआर-9सी रिटर्न फॉर्म ऑफलाइन भी उपलब्ध कराया है। करदाता इसे भरकर पोर्टल पर अपलोड कर सकते हैं। जीएसटी के तहत रजिस्टर्ड सभी करदाताओं के लिए जीएसटीआर-9 सालाना रिटर्न है। जीएसटीआर-9ए रिटर्न कंपोजिशन स्कीम चुनने वाले करदाताओं के लिए है। जीएसटीआर-9सी एक रिकॉन्सिलेशन स्टेटमेंट है। यह चार्टर्ड अकाउंटेंट या कॉस्ट अकाउंटेंट से सत्यापित और हस्ताक्षरित होना चाहिए। इसे एनुअल रिटर्न के साथ फाइल करना आवश्यक है।
पेरिस : पेरिस के सबसे पुराने और दुनियाभर में मशहूर नॉट्र डाम कैथेड्रल में सोमवार को भीषण आग लग गई थी। हालांकि चर्च को दोबारा पहले जैसा बनाने के लिए कई लोग आगे आए। अभी तक चर्च के पुनर्निर्माण के लिए करीब 70 करोड़ डॉलर का फंड आ चुका है। बता दें आग लगने से कैथोलिक चर्च के शिखर और छत भी ढह गए हैं। फ्रांस के तीन बड़े अमीर परिवारों ने इस फंड में बड़ा हिस्सा दिया है। इन अरबपतियों में एलवीएमएच ग्रुप, केरिंग और लॉरियाल के दिग्गज शामिल हैं। मंगलवार तक तीनों द्वारा दिए गया कुल फंड 56.5 करोड़ डॉलर पहुंच गया।
एलवीएमएच और उसके सीईओ बर्नार्ड अर्नाल्ट ने 22.6 करोड़ डॉलर देने का वादा किया है। वहीं लॉरियाल कंपनी चलाने वाले बेटेनकोर्ट मेयेर्स परिवार ने भी करीब इतने ही पैसे देने का वादा किया है। इसके अलावा केरिंग कंपनी चलाने वाले पिनॉल्ट परिवार ने 11.3 करोड़ डॉलर देने का वादा किया है। केरिंग ग्रुप के सीईओ फ्रैंकोइस-हेनरी पिनॉल्ट ने सोमवार को ही एक समाचार एजेंसी से कहा कि नॉट्र-डाम के पूरी तरह से पुनर्निर्माण के प्रयास के लिए पैसा पिनॉल्ट परिवार की निवेश फर्म द्वारा भुगतान किया जाएगा। बता दें पिनॉल्ट गुच्ची और यवेस सेंट लॉरेंट फैशन हाउस के मालिक भी हैं। इन बड़े परिवारों के अलावा फ्रांस की अन्य कंपनियों ने भी चर्च के पुनर्निर्माण के लिए पैसे देने का वादा किया है। यहां तेल और गैस की कंपनी टोटल (टीओटी) ने 11.3 करोड़ डॉलर देने का वादा किया है। टेक ऑर कंस्लटिंग कंपनी कैपजेमिनी ने 11 लाख डॉलर देने को कहा है। वहीं कई अन्य कंपनियों द्वारा दिए गए फंड से कुल 70 करोड़ डॉलर एकत्रित हो चुके हैं।
फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुअल मैक्रों ने चर्च को दोबारा बनाने की बात कही है। 12वीं शताब्दी के इस कैथेड्रल में आग लगने के बाद मैक्रों घटनास्थल की ओर रवाना हुए। उन्होंने कहा कि उनकी सारी संवेदनाएं कैथोलिक लोगों और पूरे फ्रांस के लोगों के साथ हैं, जो इस दुर्घटना से आहत हुए हैं। मैक्रों ने कहा है, “मेरे सारे देशवासियों की तरह मैं भी आज बहुत दुखी हूं। मुझे ये देखकर बहुत तकलीफ हो रही है कि हमारा एक हिस्सा जल रहा है।” 850 साल पुराना ये चर्च यूनेस्को के वर्ल्ड हेरिटेज में शामिल है। इस आग को काबू में करने के लिए करीब 400 दमकलकर्मी लगाए गए थे। आग को करीब नौ घंटे बाद काबू में किया गया। वहीं आग पूरी तरह बुधवार दोपहर तक बुझी। पेरिस फायर ब्रिगेड के चीफ जीन क्लाउडी गैलेट का कहना है, “हम ये मान सकते हैं कि नॉट्र डाम कैथेड्रल का मुख्य ढांचा सुरक्षित और संरक्षित है। साथ ही दो अन्य टावर भी सुरक्षित हैं।
तेलगु अभिनेत्री साईं पल्लवी अपनी पहली ही फिल्म ‘फिदा’ से दर्शकों का दिल जीतने में कामयाब रहीं थी। पल्लवी अपने अलग रोल के लिए जानी जाती हैं। अब साईं को लेकर एक दिलचस्प खबर आ रही है कि उन्होंने 2 करोड़ रुपए का विज्ञापन करने से मना कर दिया है। रिपोर्ट्स के अनुसार साईं ने 2 करोड़ रुपये की एक शानदार ब्रांड डील को ठुकरा दिया है। साईं पल्लवी को एक फेस क्रीम का विज्ञापन करने के लिए इतनी बड़ी राशि ऑफर की गई थी। लेकिन उन्होंने इस डील को मना कर दिया। दरअसल, साईं को पिंपल्स की समस्या है ऐसे में उनका मानना है कि किसी फेयरनेस क्रीम का विज्ञापन करना ठीक नहीं है। हालांकि उनकेफैंस सोशल मीडिया पर उन्हें पिंपल्स यानी मुँहासों के कारण इस अवसर को नहीं छोड़ने का सुझाव दे रहे हैं लेकिन साईं पल्लवी किसी की बात सुनने को तैयार नहीं हैं। हाल ही में साईं पल्लवी ने सौंदर्य प्रसाधनों के बारे में अपनी नापसंद को लेकर बात करते हुए कहा था कि वह सुंदर दिखने के लिए कभी भी मेकअप का इस्तेमाल नहीं करतीं। साईं ने कॉस्मेटिक उत्पादों के समर्थन नहीं करने का फैसला किया है क्योंकि उनका मानना है कि मेकअप के कारण कोई अच्छा नहीं दिख सकता। साईं के वर्क फ्रंट की बात करें तो वह हाल ही में फिल्म अथिरन में फहाद फासिल के साथ काम करती नजर आई थीं। साईं फिलहाल सेल्वराघवन की फिल्म एनजीके की रिलीज का इंतजार कर रही हैं। इस फिल्म में वह सूर्या और राणा दग्गुबाती के साथ काम करती नजर आएंगी।
ब्यूनर्स आयर्स : पढ़ने-लिखने की कोई उम्र नहीं होती। 99 वर्षीय यूसेबिया लियोनॉर का भी यही मानना है। उम्र के इस पड़ाव पर वह स्कूल में पढ़ाई कर रही हैं। उनके इस फैसले हर कोई आश्चर्यचकित है और खुश भी। यूसेबिया अर्जेंटीना के ब्यूनर्स आयर्स प्रांत में रहती हैं और हाल ही में इनका एक वीडियो भी वायरल हुआ है, जिसमें यूसेबिया के एक स्कूल में दिखाई दे रही हैं और दूसरे विद्यार्थियों के साथ पढ़ाई भी कर रही हैं। यूसेबिया को आज भी पढ़ाई पूरी न कर पाने का मलाल नहीं है। उनके मुताबिक, पारिवारिक कारणों और मां की मौत की वजह से बेहद कम उम्र में पढ़ाई छोड़नी पड़ी थी। यूसेबिया कहती हैं कि मैंने पढ़ाई छोड़ी थी लेकिन उम्मीदें नहीं। इसलिए मैं वापस इसे पूरा करना चाहती हूं।
कुछ महीने पहले यूसेबिया ने ब्यूनर्स आयर्स प्रांत के लेप्रिडा स्थित एक प्राइमरी स्कूल दाखिला लिया। यह ऐसा स्कूल है जहां बड़ी उम्र वाले लोग अपनी शिक्षा पूरी करते हैं। सबसे खास बात रही कि यूसेबिया स्कूल में एक भी दिन अनुपस्थित नहीं रहीं। हर मंगलवार, बुधवार और गुरुवार दोपहर 1 बजे स्कूल की एक टीचर इन्हें लेकर क्लास में पहुंचती है। यूसेबिया कहती हैं कि जब आपकी उम्र ढलती तो याद्दाश्त काफी हद तक कम होने लगती है। मुझे समय का फर्क अच्छी तरह मालूम है लेकिन मैंने कुछ नहीं सोचा और स्कूल पहुंची। मैं पहले का पढ़ा हुआ सब कुछ भूल चुकी हूं। कैसे लिखते और पढ़ते हैं, यह भी याद नहीं। हालांकि वह पढ़ने-लिखने में समर्थ हैं। यूसेबिया सिर्फ पढ़ाई ही पूरी नहीं करना चाहतीं बल्कि अलग-अलग विषयों में अपना इंट्रेस्ट भी दिखाती हैंं। इसके अलावा वह कम्प्यूटर चलाना भी सीखना चाहती हैं। वह कहती हैं कि मैं खुद को थोड़ा सा परेशान भी करना चाहती हूं। आसपास रहने वाले लोग उनकी इस हौसले को सलाम करते हैं।
नयी दिल्ली : लोकसभा चुनाव के माहौल में चुनावी चंदे की पारदर्शिता को लेकर जारी बहस के बीच सूचना के अधिकार (आरटीआई) से खुलासा हुआ है कि सियासी दलों को चंदा देने वाले गुमनाम लोगों ने सबसे महंगे चुनावी बॉन्ड खरीदने के प्रति भारी रुझान दिखाया। सियासी दलों को एक मार्च 2018 से 24 जनवरी 2019 की अवधि में 99.8 फीसद चुनावी चंदा सबसे महंगे बॉन्ड से मिला।
मध्यप्रदेश के नीमच निवासी सामाजिक कार्यकर्ता चंद्रशेखर गौड़ ने भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) से आरटीआई के जरिये मिले आँकड़ों के हवाले से “पीटीआई-भाषा” के साथ यह अहम जानकारी साझा की। उन्होंने बताया कि गुमनाम चंदादाताओं ने सरकारी क्षेत्र के इस सबसे बड़े बैंक की विभिन्न शाखाओं के जरिये एक मार्च 2018 से 24 जनवरी 2019 तक सात चरणों में पांच अलग-अलग मूल्य वर्ग वाले कुल 1,407.09 करोड़ रुपये के चुनावी बॉन्ड खरीदे। ये बॉन्ड एक हजार रुपये, दस हजार रुपये, एक लाख रुपये, दस लाख रुपये और एक करोड़ रुपये के मूल्य वर्गों में बिक्री के लिये जारी किए गए थे।
आरटीआई के तहत मुहैया कराए गए आँकड़ों के मुताबिक आलोच्य अवधि में चंदादाताओं ने दस लाख रुपये मूल्य वर्ग के कुल 1,459 बॉन्ड और एक करोड़ रुपये मूल्य वर्ग के कुल 1,258 चुनावी बॉन्ड खरीदे। यानी दोनों सबसे महंगे मूल्य वर्गों में कुल मिलाकर 1,403.90 करोड़ रुपये के चुनावी बॉन्ड खरीदे गए। सियासी दलों को दिए गए चुनावी चंदे का यह आंकड़ा सभी पांच मूल्य वर्गों के बॉन्ड की बिक्री की कुल रकम यानी 1,407.09 करोड़ रुपये का लगभग 99.8 फीसद है। आंकड़ों से पता चलता है कि आलोच्य अवधि में एक लाख रुपये मूल्य वर्ग के कुल 318 चुनावी बॉन्ड की खरीद से 3.18 करोड़ रुपये, 10,000 रुपये मूल्य वर्ग के कुल 12 बॉन्ड की खरीद से 1.20 लाख रुपये और 1,000 रुपये मूल्य वर्ग वाले कुल 24 बॉन्ड की खरीद से 24,000 रुपये का चुनावी चंदा दिया।
हालांकि, आरटीआई से यह खुलासा भी हुआ है कि सम्बद्ध सियासी दलों ने आलोच्य अवधि के दौरान खरीदे गए 1,407.09 करोड़ रुपये के चुनावी बॉन्ड में से 1,395.89 करोड़ रुपये के चुनावी बॉन्ड को ही भुनाया गया। यानी 11.20 करोड़ रुपये के चुनावी बॉन्ड बिना भुनाए रह गए जिनमें एक करोड़ रुपये मूल्य वर्ग वाले 11 बॉन्ड, दस लाख रुपये मूल्य वर्ग के दो बॉन्ड और 1,000 रुपये मूल्य वर्ग के 15 बॉन्ड शामिल हैं।
आरटीआई के आँकड़ों से एक और अहम बात सामने आती है कि सातों चरणों में ऐसा एक भी चरण नहीं है, जिसमें दस लाख रुपये और एक करोड़ रुपये के मूल्य वर्गों वाले चुनावी बॉन्ड नहीं बिके हों। यानी सियासी दलों को चंदा देने वालों का रुझान सबसे महंगे मूल्य वर्ग के दोनों बॉन्ड की ओर हर बार बना रहा। गौड़ ने अपनी अर्जी में यह भी पूछा था कि आलोच्य अवधि में किन-किन सियासी दलों ने कुल कितनी धनराशि के चुनावी बॉन्ड भुनाए? हालांकि, एसबीआई ने इस प्रश्न पर आरटीआई अधिनियम के सम्बद्ध प्रावधानों के तहत छूट का हवाला देते हुए इसका खुलासा करने से इनकार कर दिया।
सियासी सुधारों के लिए काम करने वाले स्वैच्छिक समूह एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) ने चुनावी बॉन्ड की बिक्री पर रोक की गुहार लगाते हुए उच्चतम न्यायालय का दरवाजा खटखटाया है। इस मामले में अदालत ने चुनावी बॉन्ड के जरिये राजनीतिक फंडिंग पर रोक लगाने से गत शुक्रवार को हालांकि इनकार कर दिया। लेकिन उसने इस प्रक्रिया में पारदर्शिता लाने के लिये कई शर्तें लगा दीं। प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता और न्यायमूर्ति संजीव खन्ना की पीठ ने अपने अंतरिम आदेश में सभी राजनीतिक पार्टियों को निर्देश दिया कि वे चुनावी बॉन्ड के जरिये प्राप्त चंदे की रसीदें और चंदा देने वालों की पहचान का ब्योरा सीलबंद लिफाफे में चुनाव आयोग को 30 मई तक सौंपें।
अमृतसर : जलियांवाला बाग नरसंहार की बरसी पर ब्रिटिश सरकार ने एक बार फिर माफी मांगी है और इसे शर्मनाक घटना करार दिया है। भारत में ब्रिटिश उच्चाुयक्त डोमिनिक एक्यूथ ने कहा कि 100 साल पहले हुई यह घटना एक बड़ी त्रासदी थी। यहां जो भी हुआ उसका हमें हमेशा खेद रहा है। यह बेहद शर्मनाक था। ब्रिटिश उच्चायुक्त ने शहीद स्मारक पर श्रद्धांजलि अर्पित की। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी शहीदों को श्रद्धांजलि दी है। उन्होंने ट्वीट कर शहीदों को याद किया। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी और पंजाब के सीएम कैप्टन अमरिंदर सिंह ने जलियांवाला बाग पहुंचकर शहीदों को श्रद्धांजलि दी। जलियांवाला बाग नहरसंहार के 100 वर्ष पूरे होने पर शताब्दी श्रद्धांजलि समारोह आयोजित किया गया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शहीदों को किया याद और श्रद्धांजलि दी, राहुल गांधी जलियांवाला बाग पहुंचे।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्वीट में लिखा, ‘आज, जब हम भयावह जलियांवाला बाग नरसंहार के 100 वर्षों का निरीक्षण करते हैं, तो भारत उस घातक दिन पर शहीद हुए सभी लोगों को श्रद्धांजलि देता है।उनकी वीरता और बलिदान को कभी भुलाया नहीं जा सकेगा।उनकी स्मृति हमें उस भारत के निर्माण के लिए और भी अधिक मेहनत करने के लिए प्रेरित करती है जिस पर उन्हें गर्व होगा।’ ब्रिटिश उच्चायुक्त के अलावा कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी, पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह सहित कई गण्यमान्य लोगों ने शहीद स्मारक पर श्रद्धांजलि अर्पित की। इस मौके पर जलियांवाला बाग और इसके आसपास के क्षेत्र में कड़ी सुरक्षा है। जलियांवाला बाग के मुख्य द्वार सहित पूरे क्षेत्र में पुलिस व अर्द्ध सैनिक बलोें के जवान तैनात हैं।
जलियांवाला नरसंहार के 100 साल होने पर शहर में सुबह से ही काफी संख्या में लाेग पहुंच रहे हैं। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी और पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह भी सुबह जलियांवाला बाग पहुंचे। उनके साथ कैबनेट मंत्री नवजोत सिंह सिद्धू सहित अन्य मंत्री भी थे। उन्होंने जलियांवाला बाग के शहीद स्मारक पर शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित की।
ब्रिटिश उच्चायुक्त सुबह जलियांवाला बाग पहुंचे और वहां शहीद स्मारक पर 100 साल पहले मारे गए शहीदों को श्रद्धांजलि दी। उन्होंने शहीद स्मारक पर पुष्पांजलि अर्पित की। इसके बाद उन्होंने जलियांवाला बाग का अन्य हिस्सों को देखा। ब्रिटिश उच्चायुक्त डोमिनिक ने इसके बाद जलियांवाला बाग के विजिटर बुक पर अपने उद्गार लिखे। उन्होंने लिखा- 100 साल पहले हुई यह घटना एक बड़ी त्रासदी थी। यहां जो भी हुआ उसका हमें हमेशा खेद रहा है। यह बेहद शर्मनाक था। हम इतिहास को दोबारा नहीं लिख सकते। उच्चायुक्त ने जलियांवाला बाग के विजिटर बुक पर लिखा हम भारत और ब्रिटेन के बीच मजबूत रिलेशनशिप चाहते हैं।
रामचरितमानस के अनुसार भगवान राम और माता सीता के दो पुत्र लव-कुश थे जिनका जन्म वाल्मीकि आश्रम में हुआ था। लेकिन क्या आप जानते हैं कि वाल्मीकि के जिस आश्रम कहां था अगर नहीं तो हम आपको बताते है वह मध्यप्रदेश के अशोकनगर जिले के मुंगावली तहसील के करीला गांव में था इसे करीला माता मंदिर के नाम से जाना जाता है। प्रचलित मान्यताओं के अनुसार यहीं लव और कुश का जन्म हुआ था। इस मंदिर में सीता जी की तो पूजा की जाती है लेकिन भगवान राम की पूजा नहीं होती। यहां उनकी प्रतिमा भी स्थापित नहीं की गई है। रामनवमी के अवसर वर जानते हैं इस मंदिर के बारे में….
रंगपंचमी पर यहाँ मेला लगता है।
यहां प्रचलित मान्यताओं के अनुसार रंगपंचमी के मौके पर ही लव-कुश का जन्म हुआ था। तभी से रंगपंचमीउ पर लव-कुश के जन्म की खुशियां मनाई जाती है। मेला लगता है बधाई गीत गाए जाते हैं और बुंदेलखंड का पारंपरिक राई नृत्य श्रद्धाभाव से कराया जाता है।अप्सराओं और बेड़नियों ने किया था नृत्यमाना जाता है कि लव-कुश के जन्म के समय बधाई गीत गाए गए थे और स्वर्ग से अप्सराओं ने तक उतरकर नृत्य किया था। इस अवासर पर बेड़िया जाति की हजारों नृत्यांगनाओं ने भी नृत्य किया था।
मंदिर में यह मान्यता प्रचलित है कि यदि मंदिर में जो भी मन्नत मांगी जाती है वह पूरी हो जाती है। इसके बाद लोग श्रद्धा के साथ यहां राई और बधाई नृत्य करवाते हैं।
इसके लिए बेड़िया जाति की महिलाएं करीला मंदिर में नृत्य करती हैं। इस मंदिर में ही माता जानकी के साथ ही वाल्मीकि और लव-कुश की भी प्रतिमाएं हैं।
इस जगह के बारे में स्थानीय लोगों के बीच एक कथा जानकी मंदिर के बारे में 200 वर्षों पुरानी एक कथा आज भी प्रचलित है।
यहां के लोगों का मानना है कि विदिशा जिले के ग्राम दीपनाखेड़ा के महंत तपसी महाराज को एक रात सपना आया कि करीला ग्राम में एक टीले पर स्थित आश्रम है, जिसमें माता जानकी और लवकुश कुछ समय तक रहे थे।
यह वाल्मीकि आश्रम वीरान पड़ा है, जिसे जागृत करो। दूसरे दिन सुबह ही महाराज ने करीला पहाड़ी पर देखा तो वहां एक वीरान आश्रम था।
वे खुद ही साफ-सफाई में जुट गए और उन्हें देख सैकड़ों लोग इसकी सफाई व्यवस्था में जुट गए। देखते ही देखते आश्रम साफ हो गया।
महीनों से मन बेहद-बेहद उदास है। उदासी की कोई खास वजह नहीं, कुछ तबीयत ढीली, कुछ आसपास के तनाव और कुछ उनसे टूटने का डर, खुले आकाश के नीचे भी खुलकर सांस लेने की जगह की कमी, जिस काम में लगकर मुक्ति पाना चाहता हूं, उस काम में हज़ार बाधाएं; कुल ले-देकर उदासी के लिए इतनी बड़ी चीज नहीं बनती। फिर भी रात-रात नींद नहीं आती। दिन ऐसे बीतते हैं, जैसे भूतों के सपनों की एक रील पर दूसरी रील चढ़ा दी गई हो और भूतों की आकृतियां और डरावनी हो गई हों। इसलिए कभी-कभी तो बड़ी-से-बड़ी परेशानी करने वाली बात हो जाती है और कुछ भी परेशानी नहीं होती, उल्टे ऐसा लगता है, जो हुआ, एक सहज क्रम में हुआ; न होना ही कुछ अटपटा होता और कभी-कभी बहुत मामूली-सी बात भी भयंकर चिंता का कारण बन जाती है।
अभी दो-तीन रात पहले मेरे एक साथी संगीत का कार्यक्रम सुनने के लिए नौ बजे रात गए, साथ में जाने के लिए मेरे एक चिरंजीव ने और मेरी एक मेहमान, महानगरीय वातावरण में पली कन्या ने अनुमति मांगी। शहरों की आजकल की असुरक्षित स्थिति का ध्यान करके इन दोनों को जाने तो नहीं देना चाहता था, पर लड़कों का मन भी तो रखना होता है, कह दिया, एक-डेढ़ घंटे सुनकर चले आना।
रात के बारह बजे। लोग नहीं लौटे। गृहिणी बहुत उद्विग्न हुईं, झल्लायीं; साथ में गए मित्र पर नाराज होने के लिए संकल्प बोलने लगीं। इतने में ज़ोर की बारिश आ गई। छत से बिस्तर समेटकर कमरे में आया। गृहिणी को समझाया, बारिश थमेगी, आ जाएंगे, संगीत में मन लग जाता है, तो उठने की तबीयत नहीं होती, तुम सोओ, ऐसे बच्चे नहीं हैं। पत्नी किसी तरह शांत होकर सो गईं, पर मैं अकुला उठा। बारिश निकल गई, ये लोग नहीं आए। बरामदे में कुर्सी लगाकर राह जोहने लगा। दूर कोई भी आहट होती तो, उदग्र होकर फाटक की ओर देखने लगता। रह-रहकर बिजली चमक जाती थी और सड़क दिप जाती थी। पर सामने की सड़क पर कोई रिक्शा नहीं, कोई चिरई का पूत नहीं। एकाएक कई दिनों से मन में उमड़ती-घुमड़ती पंक्तिया गूंज गईं :
“मोरे राम के भीजे मुकुटवा
लछिमन के पटुकवा
मोरी सीता के भीजै सेनुरवा
त राम घर लौटहिं।”
(मेरे राम का मुकुट भीग रहा होगा, मेरे लखन का पटुका (दुपट्टा) भीग रहा होगा, मेरी सीता की मांग का सिंदूर भीग रहा होगा, मेरे राम घर लौट आते।)
बचपन में दादी-नानी जांते पर वह गीत गातीं, मेरे घर से बाहर जाने पर विदेश में रहने पर वे यही गीत विह्वल होकर गातीं और लौटने पर कहतीं – ‘मेरे लाल को कैसा वनवास मिला था।’ जब मुझे दादी-नानी की इस आकुलता पर हंसी भी आती, गीत का स्वर बड़ा मीठा लगता। हां, तब उसका दर्द नहीं छूता। पर इस प्रतीक्षा में एकाएक उसका दर्द उस ढलती रात में उभर आया और सोचने लगा, आने वाली पीढ़ी पिछली पीढी की ममता की पीड़ा नहीं समझ पाती और पिछली पीढ़ी अपनी संतान के सम्भावित संकट की कल्पना मात्र से उद्विग्न हो जाती है। मन में यह प्रतीति ही नहीं होती कि अब संतान समर्थ है, बड़ा-से-बड़ा संकट झेल लेगी। बार-बार मन को समझाने की कोशिश करता, लड़की दिल्ली विश्वविद्यालय के एक कॉलेज में पढ़ाती है, लड़का संकट-बोध की कविता लिखता है, पर लड़की का ख्याल आते ही दुश्चिता होती, गली में जाने कैसे तत्व रहते हैं! लौटते समय कहीं कुछ हो न गया हो और अपने भीतर अनायास अपराधी होने का भाव जाग जाता, मुझे रोकना चाहिए था या कोई व्यवस्था करनी चाहिए थी, पराई लड़की (और लड़की तो हर एक पराई होती है, धोबी की मुटरी की तरह घाट पर खुले आकाश में कितने दिन फहराएगी, अंत में उसे गृहिणी बनने जाना ही है) घर आई, कहीं कुछ हो न जाए!
मन फिर घूम गया कौसल्या की ओर, लाखों-करोड़ों कौसल्याओं की ओर, और लाखों करोड़ों कौसल्याओं के द्वारा मुखरित एक अनाम-अरूप कौसल्या की ओर, इन सबके राम वन में निर्वासित हैं, पर क्या बात है कि मुकुट अभी भी उनके माथे पर बंधा है और उसी के भीगने की इतनी चिंता है? क्या बात है कि आज भी काशी की रामलीला आरम्भ होने के पूर्व एक निश्चित मुहुर्त में मुकुट की ही पूजा सबसे पहले की जाती है? क्या बात है कि तुलसीदास ने ‘कानन’ को ‘सत अवध समाना’ कहा और चित्रकूट में ही पहुंचने पर उन्हें ‘कलि की कुटिल कुचाल’ दीख पड़ी? क्या बात है कि आज भी वनवासी धनुर्धर राम ही लोकमानस के राजा राम बने हुए हैं? कहीं-न-कहीं इन सबके बीच एक संगति होनी चाहिए।
अभिषेक की बात चली, मन में अभिषेक हो गया और मन में राम के साथ राम का मुकुट प्रतिष्ठित हो गया। मन में प्रतिष्ठित हुआ, इसलिए राम ने राजकीय वेश में उतारा, राजकीय रथ से उतरे, राजकीय भोग का परिहार किया, पर मुकुट तो लोगों के मन में था, कौसल्या के मातृ-स्नेह में था, वह कैसे उतरता, वह मस्तक पर विराजमान रहा और राम भीगें तो भीगें, मुकुट न भीगने पाए, इसकी चिंता बनी रही। राजा राम के साथ उनके अंगरक्षक लक्ष्मण का कमर-बंद दुपट्टा भी (प्रहरी की जागरूकता का उपलक्षण) न भीगने पाए और अखंड सौभाग्यवती सीता की मांग का सिंदूर न भीगने पाए, सीता भले ही भीग जाएं। राम तो वन से लौट आए, सीता को लक्ष्मण फिर निर्वासित कर आए, पर लोकमानस में राम की वनयात्रा अभी नहीं रूकी। मुकुट, दुपट्टे और सिंदूर के भीगने की आशंका अभी भी साल रही है। कितनी अयोध्याएं बसीं, उजड़ीं, पर निर्वासित राम की असली राजधानी, जंगल का रास्ता अपने कांटों-कुशों, कंकड़ों-पत्थरों की वैसी ही ताजा चुभन लिये हुए बरकरार है, क्योंकि जिनका आसरा साधारण गंवार आदमी भी लगा सकता है, वे राम तो सदा निर्वासित ही रहेंगे और उनके राजपाट को सम्भालने वाले भरत अयोध्या के समीप रहते हुए भी उनसे भी अधिक निर्वासित रहेंगे, निर्वासित ही नहीं, बल्कि एक कालकोठरी में बंद जिलावतनी की तरह दिन बिताएंगे।
सोचते-सोचते लगा की इस देश की ही नहीं, पूरे विश्व की एक कौसल्या है; जो हर बारिश में विसूर रही है – ‘मोरे राम के भीजे मुकुटवा’ (मेरे राम का मुकुट भीग रहा होगा)। मेरी संतान, एश्वर्य की अधिकारिणी संतान वन में घूम रही है, उसका मुकुट, उसका ऐश्वर्य भीग रहा है, मेरे राम कब घर लौटेंगे; मेरे राम के सेवक का दुपट्टा भीग रहा है, पहरुए का कमरबंद भीग रहा है, उसका जागरण भीग रहा है, मेरे राम की सहचारिणी सीता का सिंदूर भीग रहा है, उसका अखंड सौभाग्य भीग रहा है, मैं कैसे धीरज धरूं? मनुष्य की इस सनातन नियति से एकदम आतंकित हो उठा ऐश्वर्य और निर्वासन दोनों साथ-साथ चलते हैं। जिसे एश्वर्य सौंपा जाने को है, उसको निर्वासन पहले से बदा है। जिन लोगों के बीच रहता हूं, वे सभी मंगल नाना के नाती हैं, वे ‘मुद मंगल’ में ही रहना चाहते हैं, मेरे जैसे आदमी को वे निराशावादी समझकर बिरादरी से बाहर ही रखते हैं, डर लगता रहता है कि कहीं उड़कर उन्हें भी दुख न लग जाए, पर मैं अशेष मंगलाकांक्षाओं के पीछे से झांकती हुई दुर्निवार शंकाकुल आंखों में झांकता हूं, तो मंगल का सारा उत्साह फीका पड़ जाता है और बंदनवार, बंदनवार न दिखकर बटोरी हुई रस्सी की शक्ल में कुंडली मारे नागिन दिखती है, मंगल-घट औंधाई हुई अधफूटी गगरी दिखता है, उत्सव की रोशनी का तामझाम धुओं की गांठों का अम्बार दिखता है और मंगल-वाद्य डेरा उखाड़ने वाले अंतिम कारबरदार की उसांस में बजकर एकबारगी बंद हो जाता है।
लागति अवध भयावह भारी,
मानहुं कालराति अंधियारी।
घोर जंतु सम पुर नरनारी,
डरपहिं एकहि एक निहारी।
घर मसान परिजन जनु भूता,
सुत हित मीत मनहुं जमदूता।
वागन्ह बिटप बेलि कुम्हिलाहीं,
सरित सरोवर देखि न जाहीं।
कैसे मंगलमय प्रभात की कल्पना थी और कैसी अँधेरी कालरात्रि आ गई है? एक-दूसरे को देखने से डर लगता है। घर मसान हो गया है, अपने ही लोग भूत-प्रेत बन गए हैं, पेड़ सूख गए हैं, लताएं कुम्हला गई हैं। नदियों और सरोवरों को देखना भी दुस्सह हो गया है। केवल इसलिए कि जिसका ऐश्वर्य से अभिषेक हो रहा था, वह निर्वासित हो गया। उत्कर्ष की ओर उन्मुख समष्टि का चैतन्य अपने ही घर से बाहर कर दिया गया, उत्कर्ष की, मनुष्य की ऊर्ध्वोन्मुख चेतना की यही कीमत सनातन काल से अदा की जाती रही है। इसीलिए जब कीमत अदा कर ही दी गई, तो उत्कर्ष कम-से-कम सुरक्षित रहे, यह चिंता स्वाभाविक हो जाती है। राम भीगें तो भीगें, राम के उत्कर्ष की कल्पना न भीगे, वह हर बारिश में हर दुर्दिन में सुरक्षित रहे। नर के रूप में लीला करने वाले नारायण निर्वासन की व्यवस्था झेलें, पर नर रूप में उनकी ईश्वरता का बोध दमकता रहे, पानी की बूंदों की झालर में उसकी दीप्ति छिपने न पाए। उस नारायण की सुख-सेज बने अनंत के अवतार लक्ष्मण भले ही भीगते रहें, उनका दुपट्टा, उनका अहर्निशि जागर न भीजे, शेषी नारायण के ऐश्वर्य का गौरव अनंत शेष के जागर-संकल्प से ही सुरक्षित हो सकेगा और इन दोनों का गौरव जगज्जननी आद्याशक्ति के अखंड सौभाग्य, सीमंत, सिंदूर से रक्षित हो सकेगा, उस शक्ति का एकनिष्ठ प्रेमपाकर राम का मुकुट है, क्योंकि राम का निर्वासन वस्तुत: सीता का दुहरा निर्वासन है। राम तो लौटकर राजा होते हैं, पर रानी होते ही सीता राजा राम द्वारा वन में निर्वासित कर दी जाती हैं। राम के साथ लक्ष्मण हैं, सीता हैं, सीता वन्य पशुओं से घिरी हुई विजन में सोचती हैं – प्रसव की पीड़ा हो रही है, कौन इस वेला में सहारा देगा, कौन प्रसव के समय प्रकाश दिखलाएगा, कौन मुझे संभालेगा, कौन जन्म के गीत गाएगा?
कोई गीत नहीं गाता। सीता जंगल की सूखी लकड़ी बीनती हैं, जलाकर अंजोर करती हैं और जुड़वां बच्चों का मुंह निहारती हैं। दूध की तरह अपमान की ज्वाला में चित्त कूद पड़ने के लिए उफनता है और बच्चों की प्यारी और मासूम सूरत देखते ही उस पर पानी के छीटे पड़ जाते हैं, उफान दब जाता है। पर इस निर्वासन में भी सीता का सौभाग्य अखण्डित है, वह राम के मुकुट को तब भी प्रमाणित करता है, मुकुटधारी राम को निर्वासन से भी बड़ी व्यथा देता है और एक बार और अयोध्या जंगल बन जाती है, स्नेह की रसधार रेत बन जाती है, सब कुछ उलट-पलट जाता है, भवभूति के शब्दों में पहचान की बस एक निशानी बच रहती है, दूर उंचे खड़े तटस्थ पहाड़, राजमुकुट में जड़ें हीरों की चमक के सैकड़ों शिखर, एकदम कठोर, तीखे और निर्मम –
पुरा यत्र स्रोत: पुलिनमधुना तत्र सरितां
विपर्यासं यातो घनविरलभाव: क्षितिरुहामू।
बहो: कालाद् दृष्टं ह्यपरमिव मन्ये वनमिंद
निवेश: शैलानां तदिदमिति बुद्धिं द्रढयति।
राम का मुकुट इतना भारी हो उठता है कि राम उस बोझ से कराह उठते हैं और इस वेदना के चीत्कार में सीता के माथे का सिंदूर और दमक उठता है, सीता का वर्चस्व और प्रखर हो उठता है।
कुर्सी पर पड़े-पड़े यह सब सोचते-सोचते चार बजने को आए, इतने में दरवाजे पर हल्की-सी दस्तक पड़ी, चिरंजीवी निचली मंजिल से ऊपर नहीं चढ़े, सहमी हुई कृष्णा (मेरी मेहमान लड़की) बोली – दरवाजा खोलिए। आंखों में इतनी कातरता कि कुछ कहते नहीं बना, सिर्फ इतना कहा कि तुम लोगों को इसका क्या अंदाज होगा कि हम कितने परेशान रहे हैं। भोजन-दूध धरा रह गया, किसी ने भी छुआ नहीं, मुंह ढांपकर सोने का बहाना शुरू हुआ, मैं भी स्वस्ति की सांस लेकर बिस्तर पर पड़ा, पर अर्धचेतन अवस्था में फिर जहां खोया हुआ था, वहीं लौट गया। अपने लड़के घर लौट आए, बारिश से नहीं संगीत से भीगकर, मेरी दादी-नानी के गीतों के राम, लखन और सीता अभी भी वन-वन भीग रहे हैं। तेज बारिश में पेड़ की छाया और दुखद हो जाती है, पेड़ की हर पत्ती से टप-टप बूंदें पड़ने लगती हैं, तने पर टिके, तो उसकी हर नस-नस से आप्लावित होकर बारिश पीठ गलाने लगती है। जाने कब से मेरे राम भीग रहे हैं और बादल हैं कि मूसलाधार ढरकाये चले जा रहे हैं, इतने में मन में एक चोर धीरे-से फुसफुसाता है, है, राम तुम्हारे कब से हुए, तुम, जिसकी बुनाहट पहचान में नहीं आती, जिसके व्यक्तित्व के ताने-बाने तार-तार होकर अलग हो गए हैं, तुम्हारे कहे जानेवाले कोई भी हो सकते हैं कि वह तुम कह रहे हो, मेरे राम! और चोर की बात सच लगती है, मन कितना बंटा हुआ है, मनचाही और अनचाही दोनों तरह की हज़ार चीजों में। दूसरे कुछ पतियाएं भी, पर अपने ही भीतर परतीति नहीं होती कि मैं किसी का हूं या कोई मेरा है। पर दूसरी ओर यह भी सोचता हूं कि क्या बार-बार विचित्र-से अनमनेपन में अकारण चिंता किसी के लिए होती है, वह चिंता क्या पराए के लिए होती है, वह क्या कुछ भी अपना नहीं है? फिर इस अनमनेपन में ही क्या राम अपनाने के लिए हाथ नहीं बढ़ाते आए हैं, क्या न-कुछ होना और न-कुछ बनाना ही अपनाने की उनकी बढ़ी हुई शर्त नहीं है?
तार टूट जाता है, मेरे राम का मुकुट भीग रहा है, यह भीतर से कहा पाऊं? अपनी उदासी से ऐसा चिपकाव अपने संकरे-से-दर्द से ऐसा रिश्ता, राम को अपना कहने के लिए केवल उनके लिए भरा हुआ हृदय कहां पाऊं? मैं शब्दों के घने जंगलों में हिरा गया हूं। जानता हूं, इन्हीं जंगलों के आसपास किसी टेकड़ी पर राम की पर्णकुटी है, पर इन उलझानेवाले शब्दों के अलावा मेरे पास कोई राह नहीं। शायद सामने उपस्थित अपने ही मनोराज्य के युवराज, अपने बचे-खुचे स्नेह के पात्र, अपने भविष्यत् के संकट की चिंता में राम के निर्वासन का जो ध्यान आ जाता है, उनसे भी अधिक एक बिजली से जगमगाते शहर में एक पढ़ी-लिखी चंद दिनों की मेहमान लड़की के एक रात कुछ देर से लौटने पर अकारण चिंता हो जाती है, उसमें सीता का ख्याल आ जाता है, वह राम के मुकुट या सीता के सिंदूर के भीगने की आशंका से जोड़े न जोड़े, आज की दरिद्र अर्थहीन, उदासी को कुछ ऐसा अर्थ नहीं दे देता, जिससे जिंदगी ऊब से कुछ उबर सके?
और इतने में पूरब से हल्की उजास आती है और शहर के इस शोर-भरे बियाबान में चक्की के स्वर के साथ चढ़ती-उतरती जंतसार गीति हल्की-सी सिहरन पैदा कर जाती है। ‘मोरे राम के भीजै मुकुटवा’ और अमचूर की तरह विश्वविद्यालयीय जीवन की नीरसता में सूखा मन कुछ जरूर ऊपरी सतह पर ही सही भीगता नहीं, तो कुछ नम तो हो ही जाता है, और महीनों की उमड़ी-घुमड़ी उदासी बरसने-बरसने को आ जाती है। बरस न पाए, यह अलग बात है (कुछ भीतर भाप हो, तब न बरसे), पर बरसने का यह भाव जिस ओर से आ रहा है, उधर राह होनी चाहिए। इतनी असंख्य कौसल्याओं के कण्ठ में बसी हुई जो एक अरूप ध्वनिमयी कौसल्या है, अपनी सृष्टि के संकट में उसके सतत उत्कर्ष के लिए आकुल, उस कौसल्या की ओर, उस मानवीय संवेदना की ओर ही कहीं राह है, घास के नीचे दबी हुई। पर उस घास की महिमा अपरम्पार है, उसे तो आज वन्य पशुओं का राजकीय संरक्षित क्षेत्र बनाया जा रहा है, नीचे ढंकी हुई राह तो सैलानियों के घूमने के लिए, वन्य पशुओं के प्रदर्शन के लिए, फोटो खींचनेवालों की चमकती छवि यात्राओं के लिए बहुत ही रमणीक स्थली बनाई जा रही है। उस राह पर तुलसी और उनके मानस के नाम पर बड़े-बड़े तमाशे होंगे, फुलझड़िया दगेंगी, सैर-सपाटे होंगे, पर वह राह ढंकी ही रह जाएगी, केवल चक्की का स्वर, श्रम का स्वर ढलती रात में, भीगती रात में अनसोए वात्सल्य का स्वर राह तलाशता रहेगा – किस ओर राम मुड़े होंगे, बारिश से बचने के लिए? किस ओर? किस ओर? बता दो सखी।