चार्ली चैपलिन : जिन्दादिल हरफनमौला अभिनेता, जिसने हिटलर का उड़ाया मजाक

हंसी के बेताज बादशाह रहे चार्ली चैपलिन मूक युग के उन महान कलाकारों में से हैं, जिन्हें आज भी उनके महत्वपूर्ण योगदान के लिए याद किया जाता है। अभिनेता होने के साथ- साथ चार्ली भी क्लासिक हॉलीवुड युग के एक महत्वपूर्ण फिल्म निर्माता, संगीतकार और संगीतज्ञ भी रहे। चार्ली चैपलिन का जन्म 16 अप्रैल 1889 को लंदन के वॉलवर्थ में हुआ था
दुनिया भर को हंसाने वाले इस आदमी का जीवन खुद अवसाद से भरा रहा। मां मंच अभिनेत्री थीं, चार्ली के पिता शराबी थे और मां को मानसिक बीमारी के चलते बाद में पागलखाने जाना पड़ा। एक अभिनेता और फिल्म निर्माता-निर्देशक की हैसियत से उन्होंने जो कीर्तिमान स्थापित किए उन्हें तोड़ पाना संभवतः किसी के भी बस की बात नहीं।
बिना कुछ बोले पूरी दुनिया को हंसाने वाले चार्ली चैपलिन ने अपने सफर की शुरुआत 13 वर्ष की आयु में ही कर दी थी। उन्होंने अपने 75 वर्ष के फिल्मी सफर में अभिनता, निर्देशक, लेखक, निर्माता और संगीतज्ञ की सारी जिम्मेदारियो को बखूबी निभाया। चार्ली अपनी कॉमिक एक्टिंग के साथ- साथ अपनी चाल के लिए भी काफी पसंद किये गए और आज भी उनके चलने के स्टाइल को कॉपी किया जाता है। उन्होंने एक से एक यादगार भूमिकाएं अदा की। दुनिया में शायद ही कोई ऐसा देश, नगर या कस्बा होगा जहां के लोगों ने इस महान व्यक्तित्व के बारे में न सुन रखा हो। सबसे ऊपर उनकी छवि एक हंसोड़ मसखरे की है, जिसे बच्चे-बूढ़े और सभी आयु वर्गों के लोगों के बीच समान प्रसिद्धि प्राप्त हुई। 6 जुलाई, 1925 को वह टाइम मैग्जीन के कवर पर आने वाले पहले एक्टर बने। 1973 में ‘लाइम-लाइट’ में बेस्ट म्युजिक के लिए ऑस्कर अवॉर्ड से सम्मानित चार्ली को 1975 में महारानी एलिजाबेथ द्वितीय द्वारा नाइट की उपाधि दी गयी। उन्हें दो मानद अकादमी पुरस्कार भी दिए गए।
हिटलर जैसे तानाशाह का चार्ली ने अपनी फिल्म ‘द ग्रेट डिक्टेटर’ में खुलकर मजाक उड़ाया था। वामपंथ का समर्थन करने के कारण चार्ली पर अमेरिका ने बैन भी लगा दिया था। चार्ली चैपलिन के जिस हैट, छड़ी और छोटी मूंछों वाले किरदार को हम पहचानते हैं, उसका नाम ट्रैम्प है। चार्ली चैपलिन जितने अच्छे कलकार थे उतने ही सादगी भरे इंसान भी थे। उन्हें फिल्मों में उनके योगदान के साथ- साथ उनके विचारों के लिए भी सराहा जाता है। दुनिया को बिना कुछ बोले हँसाने वाले इस कलाकार ने बीमारी के चलते 25 दिसंबर 1977 को दुनिया को अलविदा कह दिया।

विख्यात नाटककार चार्ल्स मैकआर्थर को एक स्क्रीनप्ले लिखने के लिए हॉलीवुड बुलाया गया था। साहित्य से गहरा जुड़ाव रखने वाले चार्ल्स मैकआर्थर की समझ में नहीं आ रहा था कि अच्छा स्क्रीनप्ले कैसे लिखा जाए। उन्हें विजुअल जोक्स लिखने में परेशानी हो रही थी। ‘आप मुझे ये बताइये कि मैं फिफ्थ एवेन्यू में टहल रही एक मोटी औरत को केले के छिलके पर फिसलता हुआ कैसे दिखाऊं कि लोग उस पर हंसें भी? इसे हजारों दफा लिखा-किया जा चुका है।’ मैकआर्थर ने कहा। ‘लोगों को हंसाने का सबसे अच्छा तरीका क्या है? क्या मुझे पहले केले का छिलका दिखाना चाहिए, उसके बाद मोटी औरत को उसकी तरफ आते हुए, और उसके बाद वह फिसल जाती है?’
‘ऐसा कुछ भी नहीं!’ एक क्षण को झिझके बगैर चार्ली चैप्लिन बोले- ‘आप मोटी औरत को आते हुए दिखाइए, फिर आप केले के छिलके को दिखाइए, उसके बाद आप केले के छिलके और मोटी औरत दोनों को एक साथ दिखाइए, इसके बाद वह औरत केले के छिलके पर पैर धरेगी और सामने के मैनहोल में गायब हो जाएगी।’
दूसरा किस्सा- मोंटे कार्लो में एक प्रतियोगिता चल रही थी। इस में प्रतिभागियों को चार्ली चैप्लिन जैसा बन कर आना था। चार्ली चैप्लिन खुद उस में भाग लेने पहुंच गए और उन्हें तीसरा स्थान मिला।
चार्ली के कुछ विचार
हंसी के बिना बिताया हुआ दिन, बर्बाद किया हुआ दिन है।
मेरी जिंदगी में बेशुमार दिक्कतें हैं लेकिन यह बात मेरे होंठ नहीं जानते, वो सिर्फ मुस्कुराना जानते हैं।
आईना मेरा सबसे अच्छा दोस्त है क्योंकि जब मैं रोता हूं तो वो कभी नहीं हंसता।
अगर आप जमीन पर देखेंगे तो कभी इंद्रधनुष नहीं देख पाएंगे।
बिना कुछ करे कल्पना का कोई मतलब नहीं है।
आप किसका अर्थ जानना चाहते हैं? ज़िन्दगी इच्छा है, अर्थ नहीं।

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