Wednesday, December 17, 2025
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अब वो आसमान तोड़ रही है

सुषमा त्रिपाठी

मानव प्रकाशन

वर्ष -2016

उप्लब्धता – अमेजन

पुस्तक  के बारे में – यह किताब दरअसल एक डायरी है जिसे कविताओं की शक्ल दी गयी है। कविताएं आस -पास के वातावरण और उनसे मिलने वाले अनुभवों का प्रतिफलन है। आप रवीन्द्र सरणी स्थित आनन्द प्रकाशन से किताब खरीद सकते हैं

 

निर्भया फंड : 13 राज्यों में होंगी साइबर फॉरेंसिक लैब और डीएनए टैस्ट सुविधाएं

नयी दिल्ली : महिलाओं के खिलाफ बढ़ रहे मामलों की जांच में तेजी लाने के लिए 12 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में जल्द ही साइबर फॉरेंसिक लैबोरेट्री और डीएनए जांच सुविधाएं मिलेंगीं। गृह मंत्रालय ने बताया कि 131 करोड़ रुपए की लागत से उत्तर प्रदेश, तमिलनाडु, प. बंगाल, मध्य प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर, महाराष्ट्र, पंजाब, राजस्थान, मिजोरम, मणिपुर, त्रिपुरा और दिल्ली स्थित फॉरेंसिक साइंस लैबोरेट्रियों में डीएनए जांच सुविधाएं बनेंगी।
अधिकारियों का कहना है कि इन राज्यों में महिला और बच्चों के खिलाफ ‘साइबर अपराध रोकथाम प्रोजेक्ट’ के तहत साइबर फॉरेंसिक लैबोरेट्री और साइबर फॉरेंसिक प्रशिक्षण सुविधाएं बन रही हैं। वहीं अरुणाचल प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, मध्य प्रदेश, तेलंगाना और उत्तराखंड समेत पांच राज्यों में साइबर फॉरेंसिक लैबोरेट्री पहले से बनी हुई हैं। प्रोजेक्ट के अंतर्गत 410 सरकारी अभियोजकों समेत 3664 कर्मचारियों को प्रशिक्षण दिया गया है। आपको बता दें कि यह कार्य महिला सुरक्षा सुधारने के मकसद से निर्भया फंड के तहत हो रहा है। इस प्रोजेक्ट की समीक्षा और निगरानी का जिम्मा एक एम्पावर्ड समिति के पास है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के मुताबिक 2016 में 12,187 साइबर अपराध दर्ज हुए थे, यह आंकड़ा 2015 से 6.3 फीसदी ज्यादा था, जबकि 2015 में 2014 के मुकाबले साढ़े 20 फीसदी बढ़ोतरी हुई थी।

महिलाओं ने बेलचों से तोड़ दी बर्फ की दीवार, बहाल कर दी ढाई किमी सड़क

केलांग : बर्फ से जाम ढाई किमी सड़क को ग्रामीणों ने खुद ही बहाल कर दिया। महिलाओं ने बढ़-चढ़कर श्रमदान किया। महिलाओं ने ग्रामीणों के साथ मिलकर बर्फ की दीवार तोड़ दी। लाहौल-स्पीति की तोद वैली में कोलंग-खंगसर सड़क बहाल कर लोगों ने खंगसर मतदान केंद्र को जिला मुख्यालय से जोड़ दिया है। भारी बर्फबारी के कारण घाटी में कई संपर्क मार्ग अभी भी बंद पड़े हैं। लाहौल में कृषि सीजन की शुरूआत हो गई है। गांव तक कृषि उपकरण के साथ खाद्य वस्तुओं को पहुंचाना मुश्किल हो गया है।
खंगसर के ग्रामीणों ने खुद इस संपर्क मार्ग को बहाल करने का फैसला लिया। बेलचों से बर्फ हटाने से पहले लोगों ने इस पर मिट्टी डाली। कुछ दिन बाद सड़क पर जमी बर्फ की मोटी परत पिघलना शुरू हो गई। महिला यंगचेन, सुनीता, रिंचेन अंगमो, शरभ डोलमा, यनगजोम, पदमा अंगमो, यंगचेन लामो ने बताया कि करीब दो सप्ताह की मेहनत के बाद सड़क को बहाल कर दिया गया। अब गांव तक वाहन आसानी से पहुंच रहे हैं। उपप्रधान सोनम टशी, ग्रामीण आदर्श, ठीले मिंगयुर और बलदेव ने बताया कि बर्फ हटाने के इस अभियान में महिलाओं ने बढ़-चढ़ कर श्रमदान किया। लोनिवि की मशीनें घाटी के अन्य संपर्क मार्गों पर तैनात होने से खंगसर सड़क बहाली में देरी हो रही थी। ऐसे में ग्रामीणों ने खुद बेलचों की मदद से बर्फ हटाने का फैसला किया। सहायक निर्वाचन अधिकारी अमर नेगी ने कहा कि खंगसर के ग्रामीणों ने विशेषकर महिलाओं ने सड़क से बर्फ हटा कर सामुदायिक सहभागिता की एक मिसाल पेश की है। लोनिवि केलांग सब डिवीजन के सहायक अभियंता किशन लाल ने कहा कि ग्रामीणों की मदद से खंगसर सड़क बहाल हो गई है।

(साभार – अमर उजाला )

भोपाल गैस त्रासदी 20वीं सदी की ‘‘सबसे बड़ी औद्योगिक दुर्घटनाओं’’ में से एक : संरा रिपोर्ट

संयुक्त राष्ट्र : संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि हजारों लोगों को मौत के मुंह में धकेलने वाली 1984 की भोपाल गैस त्रासदी दुनिया की ‘‘सबसे बड़ी औद्योगिक दुर्घटनाओं’’ में से एक है। रिपोर्ट में आगाह किया गया है कि हर साल पेशे से जुड़ी दुर्घटनाओं और काम के चलते हुई बीमारियों से 27.8 लाख कामगारों की मौत हो जाती है। संयुक्त राष्ट्र की श्रम एजेंसी अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) द्वारा जारी रिपोर्ट में कहा गया है कि मध्य प्रदेश की राजधानी में यूनियन कार्बाइड के कीटनाशक संयंत्र से निकली कम से कम 30 टन मिथाइल आइसोसायनेट गैस से 600,000 से ज्यादा मजदूर और आसपास रहने वाले लोग प्रभावित हुए थे।
इसमें कहा गया है कि सरकार के आंकड़ों के अनुसार 15,000 मौतें हुई। जहरीले कण अब भी मौजूद हैं और हजारों पीड़ित तथा उनकी अगली पीढ़ियां श्वसन संबंधित बीमारियों से जूझ रही है तथा उनके अंदरुनी अंगों एवं प्रतिरक्षा प्रणाली को नुकसान पहुंचा है। रिपोर्ट में कहा गया है कि 1919 के बाद भोपाल त्रासदी दुनिया की सबसे बड़ी औद्योगिक दुर्घटनाओं में से एक थी। साल 1919 के बाद अन्य नौ बड़ी औद्योगिक दुर्घटनाओं में चेर्नोबिल और फुकुशिमा परमाणु दुर्घटना के साथ ही राणा प्लाजा इमारत ढहने की घटना शामिल हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि हर साल पेशे से जुड़ी मौतों की वजह तनाव, काम के लंबे घंटे और बीमारियां है। आईएलओ की मनाल अज्जी ने यूएन न्यूज से कहा, ‘‘रिपोर्ट में कहा गया है कि 36 प्रतिशत कामगार बेहद लंबे घंटों तक काम कर रहे हैं मतलब कि हर सप्ताह 48 घंटे से ज्यादा।’’

अबू धाबी में बन रहा है पहला हिन्दू मंदिर, शिलान्यास में हजारों शामिल

दुबई : संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) की राजधानी अबू धाबी में गत शनिवार को पहले हिंदू मंदिर के शिलान्यास कार्यक्रम में हजारों लोग शामिल हुए। इस निर्माण का निर्माण बोचासंवासी श्री अक्षर-पुरूषोत्तम स्वामीनारायण संस्था कर रही है। इस संस्था के आध्यात्मिक प्रमुख महंत स्वामी महाराज ने करीब चार घंटे के इस कार्यक्रम की अध्यक्षता की। इसके बाद मुख्य पूजा स्थल पर पवित्र ईंटें रखी गयीं।
यूएई में भारतीय राजदूत नवदीप सूरी ने इस अवसर पर खाड़ी देश को बधाई देते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का एक बयान पढ़ा। सूरी ने प्रधानमंत्री मोदी के हवाले से कहा कि 130 करोड़ भारतीयों की ओर से प्रिय मित्र और अबू धाबी के क्राउन प्रिंस शेख मोहम्मद बिन जायद अल नाहयान को शुभकामनाएं देना उनका सौभाग्य है। उन्होंने कहा कि निर्माण कार्य पूरा हो जाने के बाद यह मंदिर सार्वभौमिक मानवीय मूल्यों और आध्यात्मिक नैतिकता का प्रतीक होगा जो भारत तथा यूएई दोनों की साझा विरासत है। सूरी ने कहा कि मंदिर वसुधैव कुटुम्बकम यानी पूरी दुनिया एक परिवार है, के वैदिक मूल्यों का प्रतीक है। सूरी ने प्रधानमंत्री मोदी के हवाले से कहा, ‘‘मुझे यकीन है कि यह मंदिर यूएई में रहने वाले 33 लाख भारतीयों और अन्य सभी संस्कृतियों के लोगों के लिए प्रेरणा का स्रोत होगा।’’ अबू धाबी में मंदिर बनाने की योजना को 2015 में मोदी की देश की पहली यात्रा के दौरान स्थानीय सरकार ने मंजूरी दी थी।

नासा के अध्ययन ने की पुष्टि, धरती की सतह का बढ़ रहा तापमान

वाशिंगटन : नासा के अध्ययनकर्मियों द्वारा उपग्रह के जरिए किए गए आकलन ने उन आंकड़ों की पुष्टि की है जिससे पता चला है कि पिछले 15 साल में पृथ्वी की सतह गरम हुई है। अध्ययनकर्मियों ने 2003 से 2007 तक उपग्रह आधारित इन्फ्रारेड मेजरमेंट सिस्टम एआईआरएस (ऐटमॉसफेरिक इन्फ्रा रेड साउन्डर) के जरिए प्राप्त धरती के तापमान का आकलन किया। अध्ययन दल ने इन आंकड़ों को गोडार्ड इन्स्टीट्यूट फॉर स्पेस स्टडीज सरफेस टेंपरेचर एनालाइसिस (जीआईएसटीईएमपी) से मिलान किया। बाद में यह अध्ययन पत्रिका इनवायरनमेंटल रिसर्च लेटर्स में प्रकाशित हुआ। पिछले 15 साल में दोनों डाटा संग्रह के बीच काफी समानता देखने को मिली। अमेरिका में नासा के गोडार्ड स्पेस फ्लाइट सेंटर के जोएल सुसकिंड ने कहा कि एआईआरएस डेटा ने जीआईएसटीईएमपी के लिए पूरक रहा क्योंकि जीआईएसटीईएमपी की तुलना में इसका दायरा ज्यादा रहा और इसने समूची दुनिया को कवर किया। सुसकिंड ने एक बयान में कहा, ‘‘डेटा के दोनों सेट से पता चला कि धरती की सतह इस अवधि में गर्म हुई और 2016,2017 और 2015 क्रम से सबसे गर्म साल रहा। ’

महिला विरोधी टिप्पणी: पंड्या व राहुल पर 20-20 लाख रुपये का जुर्माना

नयी दिल्ली : एक टेलीविजन कार्यक्रम के दौरान महिलाओं के खिलाफ आपत्तिजनक टिप्पणियों को लेकर दो भारतीय क्रिकेटरों हार्दिक पंड्या और लोकेश राहुल पर शनिवार को बीसीसीआई के लोकपाल डी के जैन ने 20-20 लाख रुपये का जुर्माना लगाया। बीसीसीआई की आधिकारिक वेबसाइट पर प्रकाशित आदेश में जैन ने लिखा है कि पंड्या और राहुल के खिलाफ आगे कोई कार्रवाई नहीं की जाएगी। दोनों पहले से ही एक अनंतिम निलंबन की सजा पा चुके हैं और उन्होंने महिलाओं पर अपनी टिप्पणियों के लिए बिना शर्त माफी मांगी है। उन्होंने विश्व कप के लिए चुने गये दोनों खिलाड़ियों पर 20-20 लाख का जुर्माना लगते हुए निर्देश दिया कि वे देश के लिए शहादत देने वाले अर्ध-सैनिक बलों के 10 जवानों की जरूरतमंद विधवाओं को ‘‘भारत के वीर’’ ऐप के जरिये एक-एक लाख रुपये का भुगतान करें। जैन ने इन दोनों खिलाड़ियों को निर्देश दिया कि शेष 10-10 लाख रूपये की राशि वे ‘‘क्रिकेट एसोसिएशन फॉर द ब्लाइंड’’ द्वारा बनाए गए कोष में जमा करें। उन्हें ये सभी भुगतान आदेश की तारीख (19 अप्रैल 2019) से चार सप्ताह के अंदर करना होगा। ऐसा नहीं होने पर बीसीसीआई इन खिलाड़ियों की मैच फीस से ये रकम काट सकता है। जैन ने अपने आदेश में कहा, ‘‘ मुझे यह कहने में कोई संकोच नहीं है कि खिलाड़ी द्वारा की गई टिप्पणियों ने संवेदनशीलता को ठेस पहुंचाई, जिसे टाला जाना चाहिए था यहां तक ​की उन्होंने (पंड्या और राहुल) भी इसे माना। इसलिए, उन्हें सुधार करना चाहिए।’ उन्होंने कहा, ‘‘ इन सभी पहलुओं को ध्यान में रखते हुए, विशेष रूप से इस तथ्य पर कि दोनों खिलाड़ियों ने अपनी कार्रवाई को सही ठहराए जाने के बिना ही माफी मांगी है। उन्होंने समाज के प्रति अपने कर्तव्य को स्वीकार किया है और खुद को उच्च मानकों पर रखने की इच्छा व्यक्त की है। वे पांच एकदिवसीय मैच खेलने से चूक गये, ऐसे में न्याय के हित में यह जुर्माना पर्याप्त होगा।’’ उच्चतम न्यायालय द्वारा नियुक्त बीसीसीआई के लोकपाल न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) डीके जैन ने टीवी चैट शो के दौरान महिलाओं के प्रति विवादास्पद टिप्पणी के मामले में सुनवाई के लिए भारतीय खिलाड़ियों 25 साल के हार्दिक पंड्या और 27 साल के लोकेश राहुल को नोटिस भेजा था। मामले में फैसला आने के बाद दोनों खिलाड़ी अब 30 मई से इंग्लैंड में शुरू होने वाले विश्व कप पर ध्यान दे सकते है। दोनों इंडियन प्रीमियर लीग में अपनी टीमों के लिए अच्छा प्रदर्शन कर रहे है। इससे पहले ‘काफी विद करन’ शो में आपत्तिजनक टिप्पणियों के लिए प्रशासकों की समिति ने पंड्या और राहुल को अस्थाई रूप से निलंबित किया था लेकिन बाद में लोकपाल द्वारा जांच लंबित रहने तक प्रतिबंध हटा दिया गया। चैट शो का विवादास्पद एपिसोड जनवरी के पहले हफ्ते में प्रसारित हुआ था जिसके बाद काफी विवाद हुआ था और सीओए ने आस्ट्रेलिया दौरे के बीच से दोनों को वापस बुला लिया था और अस्थाई तौर पर निलंबित किया था। दोनों ने इसके बाद बिना शर्त माफी मांगी थी और जांच लंबित रहने तक अस्थाई तौर पर उनका प्रतिबंध हटा दिया गया था। पंड्या ने 11 टेस्ट, 45 एकदिवसीय और 38 टी20 अंतरराष्ट्रीय मैचों में भारत का प्रतिनिधित्व किया है जबकि राहुल ने देश के लिए 34 टेस्ट, 14 एकदिवसीय और 27 टी20 अंतरराष्ट्रीय मैच खेले हैं।

ऐसे हुई पृथ्वी की उत्पत्ति

पृथ्वी का गुणगान और उसकी पूजा वेदों में की गई है। ऋग्वेद के अलावा अथर्ववेद के बारहवें मंडल के भूमि सूक्त में पृथ्वी की उत्पत्ति के बारे में बताया गया है। ब्रह्मा और विश्वकर्मा आदि देवताओं के कारण पृथ्वी प्रकट हुई। इस सूक्त में पृथ्वी को माता और मनुष्य को उसकी संतान बताया गया है। इस सूक्त के 63 मंत्रों में पृथ्वी की विशेषता और उसके प्रति मनुष्यों के कर्तव्यों का बोध करवाया गया है। जिस तरह माता अपने पुत्रों की रक्षा के लिए भोजन प्रदान करती है उसी तरह माता की रक्षा करना पुत्रों का भी कर्तव्य होता है।

यामन्वैच्छद्धविषा विश्वकर्मान्तरर्णवे रजसि प्रविष्टाम् ।
भुजिष्यं पात्रं निहितं गुहा यदाविर्भोगे अभवन् मातृमद्भ्यः

अर्थ –  जब विश्वकर्मा ने अंतरिक्ष में हवन किया तो पृथ्वी और उसमें छुपे भोज्य पदार्थ प्रकट हो गए। जिससे धरती पर रहने वाले लोगों का पालन पोषण हो सके।

यानी भगवान विश्वकर्मा ने जब लोककल्याण की भावना से हवन किया तब ब्रह्मा, विष्णु आदी देवता प्रकट हुए और सभी देवताओं में से शक्ति का अंश निकला और एक शक्ति पुंज बन गया। फिर वह शक्ति पुंज धरती के रूप में बदल गया।

पृथ्वी को बताया गया है पवित्र

वेदों में पृथ्वी को पवित्र बताया गया है। शतपथ ब्राह्मण में बताया गया है कि देवता जिस सोमरस का पान करते हैं वो सोमलता यानी एक तरह की दुर्लभ और पवित्र औषधि धरती पर ही उगती है। अथर्ववेद में बताया है कि

यामश्विनावमिमातां विष्णुर्यस्यां विचक्रमे ।
इन्द्रो यां चक्र आत्मनेऽनमित्रां शचीपतिः ।
सा नो भूमिर्वि सृजतां माता पुत्राय मे पयः ॥१०॥

अर्थ –  अश्विनी कुमारों ने जिस धरा का मापन किया, भगवान विष्णु ने जिस पर पराक्रमी कार्य किए और इंद्र देव ने जिसे दुष्ट शत्रुओं को मारकर अपने अधीन किया वह पृथ्वी माता के समान अपने पुत्र को दुग्धपान कराने के समान ही अपनी सभी संतानों को खाद्य पदार्थ प्रदान करें।

पृथ्वी की आयु बढ़ाने के लिए हमारे कर्तव्य

वेदों में पृथ्वी को मां माना गया है। इसलिए इसकी सुरक्षा हमारा कर्तव्य है। धरती को पवित्र और मां का रुप मानते हुए हमें इससे मिलने वाले पदार्थों को व्यर्थ नहीं करना चाहिए। प्रदूषण और गंदगी को बढ़ने से रोकना चाहिए और पृथ्वी पर ज्यादा से ज्यादा पेड़-पाैधे लगाने चाहिए।

1. हमें बिजली बचानी चाहिए। इससे ग्लोबल वाॅर्मिंग की स्थिति से बचा जा सकता है। इसी समस्या के कारण पृथ्वी पर प्राकृतिक असंतुलन बढ़ता है।

2. प्लास्टिक  की चीजों का उपयोग नहीं करना चाहिए। प्लास्टीक के कारण पृथ्वी पर गंदगी लगातार बढ़ रही है।

3. केमिकल और इससे बनी चीजों का इस्तेमाल करने से बचना चाहिए। केमिकल से पृथ्वी पर पानी, हवा और मिट्टी यानी हर तरह से प्रदूषण फैलता है। हमें इसे रोकना चाहिए।

(साभार – दैनिक भास्कर)

साहित्यिकी ने आयोजित की “स्याही की गमक” पर परिचर्चा

कोलकाता :  साहित्यिकी ने गत 19 अप्रैल को भारतीय भाषा परिषद के सभागार में चर्चित साहित्यकार श्री यादवेंद्र की सद्यप्रकाशित पुस्तक “स्याही की गमक” (विदेश की स्त्री कथाकारों की कहानियों का अनुवाद) पर एक परिचर्चा का आयोजन किया। अतिथियों का स्वागत करते हुए सचिव गीता दूबे ने संस्था की गतिविधियों और उपलब्धियों पर प्रकाश डाला।
किताब पर अपनी बात रखते हुए उर्मिला प्रसाद ने कहा कि ‘स्याही की गमक’ में विदेशी स्त्रियों की कहानियों को पढ़ते हुए लगता है कि स्त्रियों की दुनिया बहुत विस्तृत है जिसका हम अंदाज भी नहीं लगा सकते । कहीं भी नहीं लगता कि ये कहानियां अनूदित हैं। लगता है कि हम मौलिक रचना पढ़ रहे हैं। कहानियों में लिंग भेद के साथ ही संप्रदाय विभेद को भी रेखांकित किया गया है।
श्रीपर्णा तरफदार ने कहा कि बात जब साहित्यिक अनुवाद की हो तो कहना पड़ता है कि अनुवादक दो भिन्न भाषाओं के बीच सांस्कृतिक दूत का काम करता है। अनूदित पाठ तभी प्रभाव उत्पन्न कर सकता है जब अनुवादक मूल रचनाकार के भावों को आत्मसात कर पाठकों तक पहुंचाता है। विदेशी महिला कथाकारों की कहानियों को पढ़ते हुए पता चलता है कि विश्व भर में स्त्री की स्थिति और उनकी पीड़ा एक है। ये कहानियां स्त्री विमर्श की सैद्धांतिक संरचना सामने रखती है।
डा आशुतोष ने कहा कि विश्व के समकालीन स्त्री कथा साहित्य अर्थात औरत की नजर से देखी गई दुनिया केवल स्त्री की दुनिया नही है वह सबकी दुनिया है। स्त्री सिर्फ स्त्री की ही कथा नहीं कहती वह समाज के हर पक्ष की कहानी कहती है। ये मानवीय रिश्तों की कहानियां है जिन्हें आज के कहानीकारों को भी पढ़ना चाहिए। यादवेंद्र जी ने अपनी अनुवाद प्रक्रिया पर बात रखते हुए कहा मैं किसी भी तथाकथित विमर्श से बाहर जाकर बात करूंगा। जैसे मैं सोचता हूँ वैसे ही आप सोचते हैं। स्त्रियों की दुनिया अलग नही होती। मैं स्त्री पुरुष लेखन के खांचे में गये बगैर यह बताना चाहता था कि स्त्री लेखन कमतर नहीं है। स्त्रियों ने केवल स्त्रियों के बारे में नहीं लिखा। पूरी दुनिया में लोग करीब करीब एक तरह से सोचते हैं। अनुवाद के लिए कहानियों का चुनाव करते हुए दो चीजों पर ध्यान दिया, समकालीनता और यथास्थितिवाद से विरोध। किसी भी लेखक की कई कहानियों को पढ़ने के बाद मैंने किसी एक कहानी का चयन किया। मैंने विभिन्न भाषाओं की कहानियों को अंग्रेज़ी में पढ़कर उनका अनुवाद किया है। यह मेरे लिए अनुवाद नहीं रिक्रिएशन है।
परिचर्चा में बड़ी संख्या में साहित्यकार और साहित्य प्रेमी उपस्थित थे। नंदलाल शाह, रेवा जाजोदिया, वाणी मुरारका आदि ने भी अपनी बात रखी। अध्यक्षीय वक्तव्य में कुसुम जैन ने कहा कि यह व्यवस्था स्त्री और पुरुष दोनों को नियंत्रित करती है। यादवेंद्र जी को धन्यवाद कि आपने विदेश की तकरीबन 32 कहानियों से हमें रूबरू करवाया। हम आपसे लगातार बेहतर अनुवाद की अपेक्षा रखते हैं और अनुवाद बिल्कुल भी दोयम दर्ज का काम नहीं है। कार्यक्रम का संयोजन और संचालन किया गीता दूबे ने और धन्यवाद दिया अमिता शाह ने।

बिरसा मुंडा पर आधारित बांग्ला नाटक उलगुलान ‘ का मंचन

जयदेव दास

क्रान्तिकारी बिरसा मुंडा का जन्म 1870 के दशक में (1875) में छोटा नागपुर में मुंडा परिवार में हुआ था । मुंडा एक जनजातीय समूह था जो छोटा नागपुर पठार में निवास कारते थे । बिरसा को 1895 में आदिवासी लोगो को भड़काने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया और उन्हें 2 साल की सजा हो गई । और अंततः 1900 मे हैजे के कारण उनकी मौत हो गई। सफेद झंडा बिरसा राज का प्रतीक था। बिरसा मुंडा का जिक्र अचानक करने का कारण उनके जीवन पर आधारित नाटक है जिसकी प्रस्तुति गत 15 अप्रैल को कोलकाता के गिरीश मंच पर की गयी। ‘ उलगुलान ‘ नाटक महाश्वेता देवी के ‘ अरण्य – एर दाबी ‘ बांग्ला उपन्यास से प्रेरित है। भारत सरकार के संस्कृति विभाग की आर्थिक सहायता से गंगारिडी संस्था की प्रस्तुति को अभिजीत सरकार ने निर्देशित किया। लगभग ढाई दर्जन युवा कलाकारों ने ढाई घंटे में बिरसा के जीवन को दर्शकों तक संप्रेषित करने में सब झोक दिया। बिरसा मुण्डा नायक है, जो बचपन से ही विद्रोही प्रकृति का है। वह स्वीकारता है कि जंगल उसकी पालक माँ है, परन्तु अंग्रेजों ने जंगल छीना, अपनी आजादी हड़प ली परिणाम उसका विद्रोह नये स्वर में प्रकट होता है। बिरसा मुण्डा की संघर्ष गाथा नाटककार की प्रतिभूर्ति दर्शाती है। वे आदिवासी समाज का सच हमारे सामने रखना चाहती है कि किस प्रकार गैर-आदिवासियों (दिकू)ने इनके घर नष्ट किये। इन वनवासियों को बेधर किया और इसके विरूद्ध आवाज उठाई तो दिकू लोगों ने अंग्रेज साम्राज्यवादी ताकत से मिलकर इस ‘कौम’ को नेस्तनाबुद किया। होरी का सपना है ‘गाय’, चेप्पन का सपना है ‘नाव’, बिरसा का सपना है ‘भात’। ये छोटे छोटे सपने उनके लिए काल बन जाते है। मुण्डा लोगों के जीवन में भात स्वप्न ही बना रहता है। उनका नित्य भोजन घाटा पीना था, परन्तु बिरसा की माँ करमी को तो घाटा में नमक भी नहीं मिलता था। ऐसी परिस्थिति में भी वे लोग शरीर से तंदुरस्त और स्वस्थ थे। परंतु भीतर से अंधविश्वास और अज्ञानता में डूबे हुए थे। उनकी इस अज्ञानता का लाभ लेकर गाँव के जमींदार, महाजन उनकी जमीन लेते रहते थे। गाँव में अकाल या अतिवृष्टि का ऐलान करके महाजन उनसे कर्ज करने के लिए समजाता रहता था, और वे सहज आस्था के साथ रूपये उधार करते जाते थे।

परिणाम न भरपाई होने पर जमीन का पट्टा उनका हो जाता था। वैसे ही सुगाना मुण्डा जिनके पितृओं के नाम से छोटा नागपुर गाँव बना था, आज वह भिखारी से भी अधम। जिस के पेट में घाटा भी नहीं पड़ता, फटा कपड़ा पहने बिना किसी मकान के घूम रहा है। उसने भी अपनी दो लड़कियों-चम्पा और दासकिर की शादी भी महाजन से सूद देकर पैसे लेकर की। मुण्डाओं का कर्ज प्रतिदिन बढ़ता ही रहता है। महाजन चाहता है कि मुण्डा पट्टा लिख दे, खेत में काम करे, पालकी उठाये, नासमझ बच्चे खेत पर पहरे देंगे, एक दाना भी चोरी न करेंगे और ठाकुर एवम् पूजापाठ से ज्यादा गभराते हैं। अपनी ही जमीन पर यह आदिवासी गुलाम है। अपने भाइयों को गुलामी से आजादी दिलाने के लिए बिरसा ने ‘उलगुलान’ की अलख जगाई। नाटक की कोई भाषा नहीं होती। उक्त नाटक की प्राथमिक भाषा चाहे बांग्ला हो लेकिन बिरसा मुंडा की क्रांतिकारी पुकार सम्पूर्ण भारत के लिए एक ही है ‘ उलगुलान ‘ । नाटक के अपने तत्व होते हैं और उपन्यास के अपने। इसलिए उपन्यास को हूबहू मंच पर उतार देने से प्रस्तुति के लचर होने की सम्भावना सदैव रहती है। अतः नाट्य लेख प्रस्तुति के अनुरूप होना अनिवार्य है। साथ ही ये भी ध्यान देना चाहिए कि जब कोई लेखक हाथों में कलम थामे लिखने को होता है तब रचना खुद ब खुद अपना रूप कविता कहानी उपन्यास नाटक के रूप में ले लेती है। ऐसे में जब लेखक ने उपन्यास के रूप में रचा है तो फिर उसी रूप को नाटक में कैसे थोपें। यदि वही विषय अनिवार्य हो तो नया नाटक लिखना ही बेहतर।

नाट्य समीक्षा
जयदेव दास
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