साहित्यिकी ने आयोजित की “स्याही की गमक” पर परिचर्चा

कोलकाता :  साहित्यिकी ने गत 19 अप्रैल को भारतीय भाषा परिषद के सभागार में चर्चित साहित्यकार श्री यादवेंद्र की सद्यप्रकाशित पुस्तक “स्याही की गमक” (विदेश की स्त्री कथाकारों की कहानियों का अनुवाद) पर एक परिचर्चा का आयोजन किया। अतिथियों का स्वागत करते हुए सचिव गीता दूबे ने संस्था की गतिविधियों और उपलब्धियों पर प्रकाश डाला।
किताब पर अपनी बात रखते हुए उर्मिला प्रसाद ने कहा कि ‘स्याही की गमक’ में विदेशी स्त्रियों की कहानियों को पढ़ते हुए लगता है कि स्त्रियों की दुनिया बहुत विस्तृत है जिसका हम अंदाज भी नहीं लगा सकते । कहीं भी नहीं लगता कि ये कहानियां अनूदित हैं। लगता है कि हम मौलिक रचना पढ़ रहे हैं। कहानियों में लिंग भेद के साथ ही संप्रदाय विभेद को भी रेखांकित किया गया है।
श्रीपर्णा तरफदार ने कहा कि बात जब साहित्यिक अनुवाद की हो तो कहना पड़ता है कि अनुवादक दो भिन्न भाषाओं के बीच सांस्कृतिक दूत का काम करता है। अनूदित पाठ तभी प्रभाव उत्पन्न कर सकता है जब अनुवादक मूल रचनाकार के भावों को आत्मसात कर पाठकों तक पहुंचाता है। विदेशी महिला कथाकारों की कहानियों को पढ़ते हुए पता चलता है कि विश्व भर में स्त्री की स्थिति और उनकी पीड़ा एक है। ये कहानियां स्त्री विमर्श की सैद्धांतिक संरचना सामने रखती है।
डा आशुतोष ने कहा कि विश्व के समकालीन स्त्री कथा साहित्य अर्थात औरत की नजर से देखी गई दुनिया केवल स्त्री की दुनिया नही है वह सबकी दुनिया है। स्त्री सिर्फ स्त्री की ही कथा नहीं कहती वह समाज के हर पक्ष की कहानी कहती है। ये मानवीय रिश्तों की कहानियां है जिन्हें आज के कहानीकारों को भी पढ़ना चाहिए। यादवेंद्र जी ने अपनी अनुवाद प्रक्रिया पर बात रखते हुए कहा मैं किसी भी तथाकथित विमर्श से बाहर जाकर बात करूंगा। जैसे मैं सोचता हूँ वैसे ही आप सोचते हैं। स्त्रियों की दुनिया अलग नही होती। मैं स्त्री पुरुष लेखन के खांचे में गये बगैर यह बताना चाहता था कि स्त्री लेखन कमतर नहीं है। स्त्रियों ने केवल स्त्रियों के बारे में नहीं लिखा। पूरी दुनिया में लोग करीब करीब एक तरह से सोचते हैं। अनुवाद के लिए कहानियों का चुनाव करते हुए दो चीजों पर ध्यान दिया, समकालीनता और यथास्थितिवाद से विरोध। किसी भी लेखक की कई कहानियों को पढ़ने के बाद मैंने किसी एक कहानी का चयन किया। मैंने विभिन्न भाषाओं की कहानियों को अंग्रेज़ी में पढ़कर उनका अनुवाद किया है। यह मेरे लिए अनुवाद नहीं रिक्रिएशन है।
परिचर्चा में बड़ी संख्या में साहित्यकार और साहित्य प्रेमी उपस्थित थे। नंदलाल शाह, रेवा जाजोदिया, वाणी मुरारका आदि ने भी अपनी बात रखी। अध्यक्षीय वक्तव्य में कुसुम जैन ने कहा कि यह व्यवस्था स्त्री और पुरुष दोनों को नियंत्रित करती है। यादवेंद्र जी को धन्यवाद कि आपने विदेश की तकरीबन 32 कहानियों से हमें रूबरू करवाया। हम आपसे लगातार बेहतर अनुवाद की अपेक्षा रखते हैं और अनुवाद बिल्कुल भी दोयम दर्ज का काम नहीं है। कार्यक्रम का संयोजन और संचालन किया गीता दूबे ने और धन्यवाद दिया अमिता शाह ने।

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