Wednesday, September 17, 2025
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पटवारी से बने आईपीएस अधिकारी, 6 साल में मिली 12 सरकारी नौकरियां

आमतौर पर कोई भी एक सरकारी नौकरी मिलना नेमत की तरह है । लेकिन कुछ ऐसे लोग हैं जिन्हें एक के बाद एक नौकरियां मिलती जाती हैं । इसके पीछे उनकी लगन, मेहनत और प्रतिभा होती है. ऐसे ही हैं गुजरात कैडर के आईपीएस अधिकारी प्रेमसुख डेलू. राजस्थान के बीकानेर जिले के निवासी आईपीएस प्रेमसुख डेलू को एक के बाद एक 12 नौकरियां मिली । उनका चयन पटवारी से लेकर कांस्टेबल और तहसीलदार जैसे 12 पदों पर हआ । आखिर में उनका यह सफर पूरा हुआ यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा पर जाकर. वह यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा क्रैक करके आईपीएस बने ।
पिता चलाते थे ऊंट गाड़ी
राजस्थान के बीकानेर के रहने वाले प्रेमसुख डेलू का जन्म एक सामान्य से किसान परिवार में हुआ था । उनके पिता ऊंट गाड़ी चलाते थे और उससे सामान ढोते थे । प्रेमसुख डेलू बचपन से ही अपने परिवार को गरीबी से जंजाल से निकालना चाहते थे और उनका पूरा ध्यान पढ़ाई पर था । उन्होंने 10वीं तक की पढ़ाई गांव के ही सरकारी स्कूल से की । आगे की पढ़ाई बीकानेर के सरकारी डूंगर कॉलेज से की । प्रेमसुख डेलू इतिहास से एमए किया. जिसमें वह गोल्ड मेडलिस्ट रहे. पीजी के बाद उन्होंने इतिहास में यूजीसी नेट-जेआरएफ परीक्षा पास की । हालांकि उन्होंने प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी 2010 में ग्रेजुएशन पूरा करने के बाद ही शुरू कर दिया था । इसके लिए प्रेरित उनके भाई ने किया जो राजस्थान पुलिस में कांस्टेबल हैं ।
सबसे पहले पटवारी बने प्रेमसुख डेलू
आईपीएस प्रेमसुख डेलू को सबसे पहले पटवारी की नौकरी मिली । इसके बाद राजस्थान ग्रामसेवक परीक्षा में दूसरा स्थान हासिल किया लेकिन उन्होंने तैयारी जारी रखी और राजस्थान की सहायक जेलर भर्ती परीक्षा न सिर्फ पास की बल्कि टॉपर रहे । जेलर का पद ग्रहण करते इसके पहले ही वह राजस्थान पुलिस में सब इंस्पेक्टर बन गए । तब तक वह यूजीसी नेट परीक्षा पास करने के साथ बीएड भी कर चुके थे । अब उन्हें कॉलेज में लेक्चरर की नौकरी मिल गयी । इसके बाद उन्होंने यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा देने का फैसला किया । इसके बाद उनका चयन राजस्थान पीसीएस परीक्षा के जरिए तहसीलदार पद पर हुआ ।
तहसीलदार पद पर रहते हुए की सिविल सेवा की तैयारी
तहसीलदार जैसा बेहद व्यस्तता और जिम्मेदारी भरा पद संभालते हुए भी उन्होंने आईएएस बनने का सपना नहीं छोड़ा। वह ऑफिस ड्यूटी खत्म होने के बाद पढ़ते रहे। आखिरकार साल 2015 में दूसरे प्रयास में यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा में कामयाबी मिली. वह आईपीएस बन गए। प्रेमसुख डेलू की ऑल इंडिया रैंक 170 थी. उनकी पहली पोस्टिंग गुजरात के अमरेली जिले में एसीपी के पद पर हुई ।

 क्रिकेटर ऋषभ पंत की कार दुर्घटनाग्रस्त, खतरे से बाहर, हालत में सुधार

हरियाणा रोडवेज बस चालक बना ‘देवदूत’

रुड़की । दिल्ली से रुड़की में मां से मिलने आ रहे क्रिकेटर ऋषभ पंत रुड़की के निकट नारसन में सड़क हादसे का शिकार हो गये। हादसा इतना भीषण था कि मर्सिडीज बेंज कार करीब दो सौ मीटर तक डिवाइडर की रेलिंग तोड़ते हुए दूसरी तरफ जाकर पलट गई। इसके बाद कार में आग लग गई। कार दुर्घटना में घायल हुए भारतीय क्रिकेट टीम के विकेटकीपर बल्लेबाज ऋषभ पंत की हालत में अब काफी सुधार है। देहरादून के मैक्स अस्पताल में उनका इलाज चल रहा है। गत दिवस उन्हें आइसीयू से प्राइवेट वार्ड में शिफ्ट किया गया था।
आग लगने से पूर्व ही क्रिकेट हिम्मत दिखाते हुए कार से बाहर निकल आये। ऋषभ पंत अपनी मां को सरप्राइज देने के लिए उनसे मिलने आ रहे थे। हादसे की वजह नींद की झपकी रही। हालांकि अब इसके अलग – अलग कारण बताये जा रहे हैं । ऋषभ पंत को रुड़की के सक्षम अस्पताल में उपचार देने के बाद देहरादून के मैक्स अस्पताल में रेफर किया गया।
भारतीय किक्रेट टीम के स्टार विकेटकीपर बल्लेबाज ऋषभ पंत शुक्रवार अल सुबह मां सरोज पंत से मिलने दिल्ली से अपनी मर्सिडीज कार में रुड़की आ रहे थे। सुबह करीब साढ़े पांच बजे इनकी कार नेशनल हाईवे 334 पर नारसन कस्बे में पहुंची तो क्रिकेटर ऋषभ पंत को नींद की झपकी आ गई। जिससे उनकी मर्सिडीज कार अनियंत्रित होकर डिवाइडर की रेलिंग तोड़ते हुए करीब दो सौ मीटर दूर जाकर पलट गई।
बस चालक सुशील कुमार बस के परिचालक के साथ मौके पर पहुंचे
हादसे होते देख सामने से आ रही हरियाणा रोडवेज बस भी रुक गई। बस चालक सुशील कुमार बस के परिचालक के साथ मौके पर पहुंचे। इसी बीच मौके से कुछ दूरी पर स्थित डेयरी संचालक कुशलवीर सिंह कर्मचारियों को लेकर राहत बचाव के लिए मौके पर पहुंचे।
पुलिस कंट्रोल रूम को सूचना दी गई। घायल ऋषभ पंत कार से बाहर निकलते ही सड़क पर गिर गये। इसी बीच तेज धमाके के साथ ही कार में भीषण आग लग गई।
ऋषभ पंत की पीठ पर बैग लटका हुआ था। जैसे ही घायल क्रिकेटर को एंबुलेंस में ले जाने लगे तो बैग से गिरे कुछ रुपये लोग उठाकर ले गये। घायल क्रिकेटर को रुड़की में दिल्ली रोड स्थित सक्षम अस्पताल ले जाया गया। यहां पर उन्हें प्राथमिक उपचार दिया गया। इसी बीच एसपी देहात स्वप्न किशोर सिंह, खानपुर विधायक उमेश कुमार सक्षम अस्प्ताल पहुंचे।
पुलिस ने गाड़ी भेजकर ऋषभ पंत की मां को भी अस्पताल बुला लिया। करीब दो घंटे तक उपचार के बाद ऋषभ को देहरादून स्थित मैक्स अस्पताल के लिए रेफर कर दिया गया।
हादसे के प्रत्यक्षदर्शी कुशलवीर सिंह ने बताया कि हादसा इतना भीषणा था कि कार दो सौ मीटर तक पलटते हुए सड़क के दूसरी तरफ गिरी। वहीं एसपी देहात स्वप्न किशोर ने बताया कि हादसे के पांच मिनट बाद ही पुलिस मौके पर पहुंच गई थी।
क्रिकेटर ने सीट बेल्ट लगाई होती तो उन्हें कार से बाहर आने में काफी देर हो सकती थी। उन्होंने बताया कि नींद की झपकी आने से हादसा हुआ है। मौके पर लगे सीसीटीवी कैमरे का फुटेज पुलिस ने हासिल कर लिया है।

पीएम मोदी ने हावड़ा-न्यू जलपाईगुड़ी वंदे भारत एक्सप्रेस को दिखाई हरी झंडी

कोलकाता । 30 दिसम्बर 2022 को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पश्चिम बंगाल को बड़ी सौगात दी। पीएम मोदी अपने पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के तहत हावड़ा-न्यू जलपाईगुड़ी वंदे भारत एक्सप्रेस को हरी झंडी दिखाई। प्रधानमंत्री की मां हीराबेन के निधन हो जाने के कारण उनको अपना बंगाल दौरा रद करना पड़ा, लेकिन इसके बावजूद पीएम वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए यहां पूर्व निर्धारित कार्यक्रम में शामिल हुए। पीएम मोदी ने अहमदाबाद स्थित राजभवन से वर्चुअल माध्यम से बंगाल में कनेक्टिविटी से जुड़ी रेलवे की 7,600 करोड़ रुपये से ज्यादा की विभिन्न परियोजनाओं का भी शुभारंभ किया।
कोलकाता मेट्रो जोका-तारातला खंड का उद्घाटन
पीएम ने इसके साथ ही कोलकाता मेट्रो की पर्पल लाइन के जोका-तारातला खंड का भी उद्घाटन किया। दक्षिण कोलकाता के जोका, ठाकुरपुकुर, साखेर बाजार, बेहला चौरास्ता, बेहला बाजार और तारातला जैसे छह स्टेशनों वाले 6.5 किलोमीटर के इस मेट्रो खंड का निर्माण 2,475 करोड़ रुपये से अधिक की लागत से किया गया है। कोलकाता शहर के दक्षिणी हिस्सों और दक्षिण 24 परगना के यात्रियों को इस परियोजना से बेहद फायदा होगा। इस मौके पर हावड़ा स्टेशन पर आयोजित कार्यक्रम में बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, राज्यपाल सीवी आनंद बोस, रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव सहित रेलवे के वरिष्ठ अधिकारी गण मौजूद रहे। पीएम ने इस दौरान राज्य में चार और रेल परियोजनाओं का भी उद्घाटन किया।
इनमें बोइंची-शक्तिगढ़ तीसरी लाइन, डानकुनी-चंदनपुर चौथी लाइन, निमतिता- न्यू फरक्का डबल लाइन और अम्बारी फालाकाटा-न्यू मयनागुड़ी-गुमानीहाट दोहरीकरण परियोजना शामिल है। इसके साथ ही प्रधानमंत्री 335 करोड़ रुपये से अधिक की लागत से विकसित किए जाने वाले न्यू जलपाईगुड़ी रेलवे स्टेशन के पुनर्विकास की भी आधारशिला रखीं। रेल मंत्री अश्वनी वैष्णव ने इस मौके पर कहा कि इन परियोजनाओं के शुभारंभ से बंगाल के लोगों को काफी लाभ मिलेगा।
कार्यक्रम में मौजूद बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने पीएम मोदी की मां के निधन पर दुख जताते हुए उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की। ममता ने कहा कि मां से बढ़कर कुछ भी नहीं है। मेरी संवेदनाएं आपके साथ है। इससे पहले ममता के हावड़ा स्टेशन पर कार्यक्रम स्थल पर पहुंचते ही भाजपा समर्थकों ने नारेबाजी की, जिसको लेकर मुख्यमंत्री ने नाराजगी व्यक्त की। बाद में रेल मंत्री सहित रेलवे के वरिष्ठ अधिकारियों ने ममता को मनाया

क्योंकि पुस्तकालय सिर्फ पुस्तकालय नहीं होते

मुझे याद है कॉलेज के दिनों में पुस्तकालय एक सुकून भरी जगह होती थी, जहाँ से हटने का मन नहीं करता था । दिल उखड़ा हो या दिमाग..किताबों के पीछे सब कुछ भूल जाने की वजह होती थी । क्लास खत्म हो जाती, तब भी किसी न किसी बहाने से लाइब्रेरी कार्ड ठीक करने के लिए या किसी और काम से बहुत देर तक रुकी रहती थी । साल का दूसरा दिन किताबों के नाम रहता है और किताबें जहाँ संरक्षित की जाती हैं, वह जगह होती है पुस्तकालय…मगर क्या पुस्तकालय होते हैं…? हजारों पुस्तकों को सम्भालना, सहेजना और उसके पाठकों के जरिए समाज को समझना और जरूरत पड़ने पर सही भूमिका निभाना…आसान नहीं होता..मगर हम पुस्तकालयों को भी कमतर समझने की भूल करते हैं और पुस्तकाध्यक्ष यानी लाइब्रेरियन को भी..क्योंकि हमारे लिए वह ऐसी जगह है जो हमारी पहुँच में है और हम उसकी इज्जत करते हैं जो पहुँच के बाहर हो ।

इसी महीने वसंत पंचमी है और वसंत पंचमी के दिन ही शुभजिता (तब अपराजिता) की शुरुआत हुई थी…आज 7 साल हो गये हैं और 7 साल के बाद हम अपनी तरफ से छोटा सा योगदान देने का प्रयास करने को तत्पर हैं…उन लोगों को..जिनके योगदान का महत्व समझना बाकी है। इसी कड़ी में शुभ सृजन नेटवर्क की ओर से सृजन सारथी सम्मान प्रो. प्रेम शर्मा को प्रदान किया गया और युवाओं के अवदान को सामने रखने के उद्देश्य से आरम्भ किया जा रहा है..शुभजिता सृजन प्रहरी सम्मान ।

प्रथम शुभजिता सृजन प्रहरी सम्मान 2023  हम जिस व्यक्तित्व को सम्मानित करने जा रहे हैं…उनको सम्मानित करना अपने आप में स्वयं को सम्मानित करना है । हम सभी सृजन कर्म में रत हैं, पुस्तकें हमारा पाथेय हैं..जीवन की आधारशिला हैं और इनको संरक्षित करना एक बहुत बड़ा दायित्व है । पुरानी पुस्तकों के पीले पड़े पन्ने इतिहास सुनाते हैं । कहने का मतलब यह है कि पुस्तकें इतिहास की यात्रा हैं और पुस्तकों को संरक्षित करना इतिहास को, संस्कृति को, भाषा को, साहित्य को और जीवन को संरक्षित करना है । निश्चित रूप से यह आसान तो बिल्कुल नहीं है । पुस्तकालय आपको देखने में बहुत साधारण सी जगह शायद लग सकती है मगर असाधाराण सृजनात्मक क्षण यहीं पर जन्म लेते हैं । पुस्तकालयों का महत्व हमेशा से रहा है और सामाजिक क्रांति की मौम अभिव्यक्ति यहीं पर स्थान पाती है ।
हरिवंश राय बच्चन लिखते हैं कि मेल कराती मधुशाला मगर विनम्रतापूर्वक उनके इस कथन से असहमति है । मनुष्य का मेल आवश्यकता करवाती है और बाजार अपने आर्थिक सहयोग से उस आवश्यकता की पूर्ति करता है । बगैर आर्थिक शक्ति के सदुपयोग के समाज में सृजनात्मकता का संरक्षण सम्भव नहीं है और सृजनात्मकता का संरक्षण तभी होगा जब संस्थाएं अपने अस्तित्व के लिए आत्मनिर्भर बनेंगी । स्वतंत्र अभिव्यक्ति का उद्घोष उधार की वाणी से नहीं हो सकता और आत्मनिर्भरता का स्वर रोजगार से मुखरित होता है, जिसके लिए कौशल की आवश्यकता पड़ती है और वह कौशल, प्रशिक्षण आपको या तो शिक्षण संस्थान से मिलता है अथवा पुस्तकालयों से मिल सकता है । विशेष रूप से पुस्तकालय इसलिए महत्व रखते हैं क्योंकि आर्थिक विषमता यहाँ बाधा नहीं बनती और पुस्तकालय चाहे तो कौशल और प्रशिक्षण को प्रोत्साहित करके न सिर्फ युवाओं को आत्मनिर्भर बना सकते हैं बल्कि स्वयं भी आत्मनिर्भर बन सकते हैं और देश के विकास में योगदान दे सकते हैं । अधिक से अधिक कार्यक्षेत्रों में विशेष रूप से पुस्तक लेखन को प्रोत्साहित करके पुस्तकालयों की संख्या बढ़ाकर प्रशिक्षणमूलक, व्यक्तित्व विकास मूलक गतिविधियाँ संचालित कर युवा वर्ग को पुस्तकालयों के प्रति आकर्षित किया जा सकता है ।
सेठ सूरजमल जालान पुस्तकालय सिर्फ पुस्तकालय ही नहीं है, यहाँ एक शिक्षण संस्थान भी संचालित किया जाता रहा है और यहाँ पर पीढ़ियाँ बनती हैं और पुस्तकालय में आने वाले युवाओं को न सिर्फ शैक्षणिक अपितु मानसिक रूप से सम्बल देना, प्रोत्साहित करना उनको जीवन के रणक्षेत्र में खड़ा करता है और यही सामाजिक प्रगति का मार्ग है । पिछले लगभग 25 वर्षों से श्री तिवारी यही कार्य करते आ रहे हैं और बगैर किसी अपेक्षा के करते आ रहे हैं, अपने शब्दों से न जाने कितनों को इन्होंने भटकने से बचाया, न जाने कितनों को रोजगार पाने में, सामाजिक और पारिवारिक उलझनों से टकराने में सहायता की है, कभी अनुवाद से, कभी प्रूफ देखकर, कभी सम्पादन सहयोग से तो कभी सही परामर्श से न जाने कितने लेखकों को, पुस्तकों को अप्रकाशित रह जाने से बचाया । उन युवाओं से पूछिए कि उस परामर्श का कितना महत्व होता है जब जीवन में कोई हाथ पकड़ने वाला नहीं होता, जब बार – बार लगता है कि नहीं हो पा रहा और इतने में कोई आकर समाधान दे और कहे कि आगे बढ़ो…सब हो जाएगा ।

संवाद की परम्परा को बचाना, सृजन के उत्साह को बचाना, पुस्तकों को बचाना…यह एक साधारण सी कुर्सी पर बैठा व्यक्ति ही करता है जो देखा जाए तो किसी पद पर नहीं है, उसके पास कोई सत्ता नहीं है, वह संस्था या संगठन का सर्वेसर्वा भी नहीं है मगर वह है…वह आधार है..नींव की वह ईंट है जो दिखती नहीं है मगर जिसके बगैर सृजन के क्षेत्र के महल खड़े हो ही नहीं सकते । …राष्ट्र निर्माण में यही उनका बड़ा योगदान है । पुस्तकालय सिर्फ पुस्तकालय नहीं होते…यहाँ सिर्फ पुस्तकें ही नहीं होतीं..यहाँ देश का वर्तमान और भविष्य पलता है । मेरा आग्रह है तमाम पुस्तकालयों से कि अपना महत्व समझिए….और पूरे आत्मविश्वास के साथ देश के निर्माण को गति दीजिए ।
तिवारी जी को इस सम्मान को स्वीकृत करने के लिए आभार…आप सचमुच सृजन के प्रहरी हैं…अशेष मंगलकामनाएं…नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं आप सभी को…। बने रहिए हमारे साथ ।

वर्तमान सभ्यता और आदिवासी पर राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन

कोलकाता। सांस्कृतिक पुनर्निर्माण मिशन द्वारा आयोजित हिंदी मेला में ‘वर्तमान सभ्यता और आदिवासी:साहित्य,समाज और संस्कृति’ विषय पर एक दिवसीय राष्ट्रीय परिसंवाद का आयोजन किया गया। पहले सत्र में अध्यक्षीय वक्तव्य देते हुए वरिष्ठ आलोचक रवि भूषण ने कहा कि पूंजीवादी सभ्यता प्रकृति से मनुष्य को विच्छिन्न कर रहा है और वह पृथ्वी पर संकट उत्पन्न कर धरती के अनमोल रत्नों को लूट रहा है। प्रसिद्ध कथाकार भगवानदास मोरवाल ने कहा कि आदिवासी समाज सबसे सभ्य समाज है और हमें इस समाज से संवाद स्थापित करना चाहिए। लेखक एवं आईपीएस अधिकारी मृत्युंजय कुमार सिंह ने कहा कि आदिवासी जनजाति को समझने और उनकी समस्याओं पर भी बात करने की जरूरत है। विद्यासागर विश्वविद्यालय के संथाली विभाग के प्रो. श्यामाचरण हेमब्रम ने कहा कि हमें अपनी भाषा को नहीं भूलना चाहिए क्योंकि जब हम भाषा भूल जाते हैं तब अपनी संस्कृति भी भूलते हैं। सिधो कानू बिरसा विश्वविद्यालय के संथाली विभाग के प्रो. डॉ ठाकुर प्रसाद मूर्मू ने कहा कि आदिवासी समाज पर औद्योगिक विकास के कारण खतरा बढ़ा है।
खिदिरपुर कॉलेज के हिंदी विभाग की प्रो. इतु सिंह ने कहा कि जिस प्रकार आदिवासी प्रकृति की पूजा करते हैं उसी तरह हमें भी प्रकृति से प्रेम करना चाहिए ताकि हम प्रकृति के दोहन से बच सकें। कॉलिम्पोंग के गोरूबथान कॉलेज के हिंदी विभाग के विभागाध्यक्ष दीपक कुमार ने कहा कि नदियों का सूखना, तालाबों का खत्म होना सिर्फ आदिवासियों के लिए ही नहीं मानवजाति के लिए चिंता का विषय है। साहित्य अकादमी,कलकत्ता पूर्वी क्षेत्र के सदस्य एवं आलोचक देवेंद्र देवेश ने कहा कि हमें आदिवासी साहित्य लेखन को प्रोत्साहित करना चाहिए और उसके अनुवाद पर भी ध्यान देना चाहिए।इस अवसर पर शिक्षा के क्षेत्र में विशिष्ट योगदान के लिए प्रो. चंद्रकला पांडे और प्रो.अवधेश प्रधान को प्रो.कल्याणमल लोढ़ा-लिली लोढ़ा शिक्षा सम्मान से सम्मानित किया गया। प्रो.चंद्रकला पांडे ने कहा कि एक शिक्षक अपने जीवन में कई पीढ़ी को गढ़ने के दायित्व का निर्वाह करता है।प्रो. अवधेश प्रधान ने कहा कि यह शिक्षा सम्मान मेरे लिए आत्मसमीक्षा का अवसर भी है। हिंदी मेला का यह मंच एक सांस्कृतिक प्रतिरोध और हमारी पहचान का मंच है।द्वितीय सत्र की अध्यक्षता करते हुए मोहनदास नैमिशराय ने कहा कि आदिवासी समाज को हमें समझने की जरूरत है।आज की व्यवस्था ब्लैक लोगों की व्यवस्था नहीं करता। एक्टविस्ट हिमांशु कुमार ने कहा कि पूंजीपति आदिवासियों का शोषण कर रहे और यदि हम यह सोच रहे हैं कि यह शोषण सिर्फ आदिवासियों तक ही सीमित रहेगा और हम बच जाएंगे तो हम गलती कर रहे हैं।
प्रसिद्ध लेखिका मधु कांकरिया ने आदिवासियों की समस्या को भूमंडलीकरण से जोड़कर अपनी बात रखी।
डॉ गीता दूबे ने कहा कि हमलोग कच्चे माल की तरह अपने स्वार्थ की पूर्ति के लिए आदिवासियों का प्रयोग कर रहे हैं। तथा सभ्यता का एक शहरी पैमाना तैयार करके उसमें जबरन आदिवासियों को सभ्य बनाने की कोशिश कर रहे हैं जिससे हम उनसे उनकी पहचान छीन रहे हैं। युवा आदिवासी लेखिका पार्वती तिर्की ने आदिवासी जीवन दर्शन के आधार पर अपनी बातें रखी।
इस अवसर पर बीएचयू के शोधार्थी महेश कुमार, इलाहाबाद के वेदप्रकाश सिंह, हाजीपुर की प्रतिभा पराशर, विद्यासागर विश्वविद्यालय की उष्मिता गौड़ा और प्रकाश त्रिपाठी ने आलेख पाठ किया। रचनात्मक लेखन का प्रथम पुरस्कार शिलांग के रेमन लोंग्कू, द्वितीय पंकज सिंह और तृतीय गौतम कुमार साव को मिला। कार्यक्रम का सफल संचालन राहुल शर्मा, मधु सिंह, श्रद्धांजलि सिंह, पूजा गुप्ता ने किया। पहले सत्र का धन्यवाद ज्ञापन डॉ प्रीति सिंघी और द्वितीय सत्र का सुरेश शॉ ने किया।

कोविड – हेटेरो की दवा निर्माकॉम को डब्ल्यूएचओ की मंजूरी

कोलकाता । दवा कंपनी ‘हेटेरो’ ने कोविड-19 की मौखिक दवा निर्माट्रेलविर के जेनेरिक स्वरूप के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन पूर्व अहर्ता दवा कार्यक्रम (डब्ल्यूएचओ पीक्यू) के तहत स्वीकृति मिलने की सोमवार को घोषणा की। कंपनी ने एक प्रेस विज्ञप्ति में बताया कि ‘फाइजर’ की कोविड-19 मौखिक वायरल रोधी दवा ‘पैक्सलोविड’ के किसी जेनेरिक स्वरूप को पहली बार शुरुआती मंजूरी मिली है।

विज्ञप्ति में कहा गया है कि डब्ल्यूएचओ ने कोरोना वायरस से मामूली या मध्यम रूप से संक्रमित उन मरीजों को निर्माट्रेलविर और रिटोनाविर देने की मजबूत सिफारिश की है, जिनके अस्पताल में भर्ती होने का अधिक खतरा है। ऐसे मरीज या तो बुजुर्ग हो सकते हैं, या उनकी प्रतिरोधक क्षमता कम हो सकती है या फिर हो सकता है कि उनका टीकाकरण न हुआ हो। हेटेरो द्वारा उपलब्ध कराए गए मिश्रित पैक निर्माकॉम में 150 एमजी की निर्माट्रेलविर (दो गोली) और 100 एमजी रिटोनाविर (एक गोली) है। यह दवा केवल चिकित्सक की सलाह पर ही उपलब्ध है और संक्रमित पाए जाने के बाद जल्द से जल्द एवं लक्षणों की शुरुआत से पांच दिन के भीतर इस दवा को लिया जाना चाहिए। विज्ञप्ति में बताया गया कि निर्माकॉम का उत्पादन भारत में हेटेरो की इकाइयों में किया जाएगा।

हेटेरो ग्रुप ऑफ कंपनीज के प्रबंध निदेशक वामसी कृष्ण बांदी ने कहा, ‘‘निर्माकॉम के लिए डब्ल्यूएचओ की शुरुआती मंजूरी मिलना कोविड-19 के खिलाफ लड़ाई में महत्वपूर्ण कदम है, क्योंकि इससे हमें इस अहम नवोन्मेषी एंटीरेट्रोवायरल दवा तक लोगों की पहुंच बढ़ाने में मदद मिलेगी। हम भारत में 95 एलएमआईसी (कम एवं मध्यम आय वाले देशों) में किफायती दाम पर निर्माकॉम को शीघ्र उपलब्ध कराने के लिए प्रतिबद्ध हैं।

साहित्यिकी ने ‘मधुपुर आबाद रहे’ पर आयोजित की परिचर्चा

कोलकाता । महिलाओं के लेखन को दिशा देने और उपयुक्त मंच प्रदान करने के लिए समर्पित संस्था साहित्यिकी ने पिछले दिनों अपनी सदस्य लेखिका गीता दूबे के पहले काव्य संकलन- ‘मधुपुर आबाद रहे’ पर एक विशेष परिचर्चा का आयोजन जनसंसार सभागार में किया। साहित्यिकी की सचिव मंजू रानी गुप्ता ने कार्यक्रम का संचालन करते हुए गीता दूबे की कविताओं में बहुआयामी परिदृश्य का जिक्र किया और उसे शुभकामनाएं दीं। उसके पश्चात मधुपुर आबाद रहे संग्रह से कुछ कविताओं का पाठ बाल कथा लेखिका बबिता मांधणा ने किया।
परिचर्चा में भाग लेते हुए मुख्य वक्ता के तौर पर उपस्थित प्रख्यात आलोचक अरुण होता ने कहा कि इस संग्रह की कविताएँ स्व से ऊपर उठ कर पर की संवेदना को मुखरित करते हुए अपने समय की बड़ी चिंताओं और समस्याओं को विभिन्न बिंबों और भाव बोध के साथ व्यक्त करती हैं। स्त्री संवेदना, प्रेम, पर्यावरण, भूमंडलीकरण, प्रकृति- सौंदर्य, विवाह, कोरोना काल आदि कविताएँ शिल्प और विषय के स्तर पर विविधता लिए हैं।

जानी मानी समीक्षक और शिक्षाविद् इतु सिंह ने गीता दूबे की कविताओं पर अपने वक्तव्य में कहा कि नारी जीवन के संघर्ष और अनुभव के अलावा जिस तत्व ने मुझे सबसे ज़्यादा आकर्षित किया,वह प्रेम है पर उस पर कहीं पर्दा पड़ा है, उन कविताओं का दरवाज़ा जाने कब खुलेगा। गीता की कविताएँ अंतरजगत की अपेक्षा बहिर्जगत के आवेग की ज़्यादा हैं, वह उन्हें व्यथित करती हैं। उनकी छोटी कविताएँ अल्प शब्दों में ही बहुत कुछ कह जाती हैं और देर तक हमें स्पंदित करती रहती हैं और यह उनकी छोटी कविताओं का जादू है।
वरिष्ठ कवि पत्रकार रावेल पुष्प ने कहा कि गीता की अधिकतर कविताएं नारी मन की व्यथा का इज़हार करती हैं और वे रूमानियत के प्रतीक चांद की चाहत नहीं करतीं बल्कि तपते हुए सूरज को मांगती हैं जिसकी तेज रोशनी में वे तपकर निखर सकें। इसके अलावा बाबूलाल शर्मा,शंभुनाथ, आशुतोष सिंह, विजय गौड़ ने भी गीता दूबे के काव्य संकलन की कविताओं की विविधता के साथ उनके विभिन्न साहित्यिक पहलुओं का भी जिक्र किया।
गीता दूबे ने आभार व्यक्त करते हुए अपने काव्य लेखन के विभिन्न पड़ावों का जिक्र किया । उन्होंने कहा कि कविताएं तो उनकी सखी की तरह हैं, जिनसे वे अपने मन की बातें दिल खोलकर बखूबी कर सकती हैं। अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में वरिष्ठ लेखिका रेणु गौरीसरिया ने पुनरावृत्ति से बचते हुए कहा कि गीता की कविताओं में प्रेम का शाश्वत अद्भुत राग सर्वत्र बिखरा हुआ है। धर्म, राजनीति और समाज में व्याप्त विद्रूपताएँ और विसंगतियों से उपजी कचोट उनकी कविताओं में स्पष्ट झलकती है।
इस परिचर्चा की महत्वपूर्ण उपस्थिति में शामिल थे- सर्वश्री शैलेन्द्र,शर्मिला बोहरा जालान, उमा झुनझुनवाला, प्रेम कपूर, सुषमा हंस, सुषमा त्रिपाठी, सूफ़िया यास्मीन, दुर्गा व्यास, अनिता ठाकुर, प्रमिला धूपिया, नमिता जायसवाल, सरिता बेंगानी, चंदा सिंह, कविता कोठारी, अल्पना नायक, रचना पांडेय, प्रीति सिंघी, लिली शाह, सत्य प्रकाश तिवारी, रोहित राम, विशाल सिंह, पूर्ति खंडूरी, महेन्द्र नारायण पंकज, शाहिद फरोगी, सेराज खान बातिश, प्रभाकर चतुर्वेदी तथा अन्य।
इस जीवन्त परिचर्चा तथा अच्छी उपस्थिति से जन संसार सभागार एक बार फिर गुलजार हो गया।

 

पंकज त्रिपाठी अगली फिल्म में बनेंगे अटल बिहारी वाजपेयी

भारतीय जनता पार्टी के ओजस्वी नेता और देश के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी के 98वें जन्मदिन पर देश विदेश में मनाया गया । इसी मौके पर उनकी जीवनी पर बनने जा रही फिल्म ‘मैं अटल हूं’ की पहली झलक जारी कर दी गई है। इस फिल्म में अटल बिहारी वाजपेयी का किरदार निभाने का मौका अभिनेता पंकज त्रिपाठी को मिला है और पंकज ने इस पहली झलक में अटल का जो रूप धरा है, उसे देखकर सभी हतप्रभ हैं। फिल्म ‘मैं अटल हूं’ की इस तस्वीर में पंकज त्रिपाठी कवि अटल बिहारी वाजपेयी जैसी भंगिमा में दिखते हैं। इस रूप को धरने के लिए पंकज ने कई घंटे तक गहन साधना सा धैर्य मेकअप के दौरान बनाए रखा। फिल्म की निर्माता कंपनियों भानुशाली स्टूडियोज और लेजेंड स्टूडियोज ने पंकज की इस खास छवि को रचने के लिए दिग्गज कलाकारों की मदद ली है। मेकअप और प्रोस्थेटिक्स के इन जानकारों ने अटल बिहारी वाजपेयी के जन्मदिन के दिन तक पंकज को इस रूप में लाने के लिए महीनों तक अभ्यास किया है।

अटल बिहारी वाजपेयी की बायोपिक कही जा रही फिल्म ‘मैं अटल हूं’ में पूर्व प्रधानमंत्री के राजनीतिक जीवन के अलावा उनके एक प्रतिष्ठित कवि होने, लोकप्रिय जननेता होने और मानवीय गुणों से भरपूर एक उत्कृष्ट प्रशासक होने की छवियां प्रस्तुत की जाएंगी। उत्कर्ष नैथानी लिखित इस फिल्म पर राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार विजेता निर्देशक रवि जाधव काम शुरू कर चुके हैं। विनोद भानुशाली, संदीप सिंह, सैम खान और कमलेश भानुशाली की टीम इस फिल्म को मिलकर बना रही है। फिल्म के सह निर्माताओं के रूप में जीशान अहमद और शिव शर्मा भी इससे जुड़े हुए हैं।पंकज कहते हैं, ‘अटल जी जैसे मानवीय राजनेता को पर्दे पर चित्रित करना मेरे लिए सम्मान की बात है। वह न केवल एक राजनेता थे, बल्कि उससे कहीं अधिक वह एक उत्कृष्ट लेखक और एक प्रसिद्ध कवि थे। उनके नक्शे कदम चलना मेरे जैसे अभिनेता के लिए किसी सौभाग्य से कम नहीं है।’ मराठी फिल्मों ‘नटरंग’ और ‘बालगंधर्व’ के लिए चर्चित रहे राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार विजेता निर्देशक रवि जाधव इस फिल्म का निर्देशन करेंगे और ये फिल्म अगले साल अटल बिहारी वाजपेयी के जन्मशती वर्ष का शुभारंभ करेगी।

नाट्योत्सव से 28वें हिंदी मेला की शुरुआत

प्रसिद्ध रंगकर्मी उमा झुनझुनवाला को ‘माधव शुक्ल नाट्य सम्मान’

कोलकाता। आज लघु नाटक की प्रस्तुतियों से सात दिवसीय 28वाँ हिंदी मेला शुरू हो गया। इस बार नाटक में आदिवासी जीवन से जुड़ें विषयों के अलावा ‘अंधेर नगरी’ (भारतेंदु), ‘सद्गति’ (प्रेमचंद), ‘सलाम’ (ओमप्रकाश वाल्मीकि) तथा अन्य सात नाटकों की प्रस्तुति की गई। उद्घाटन समारोह में वरिष्ठ पत्रकार विश्वम्भर नेवर ने कहा कि हिंदी मेला में हिंदी मेला के आयोजकों का संकल्प ही इतने बड़े आयोजन की सफलता की वजह है। इस अवसर पर प्रसिद्ध रंगकर्मी उमा झुनझुनवाला को ‘माधव शुक्ल नाट्य सम्मान’ प्रदान किया गया। उमा झुनझुनवाला ने अपने वक्तव्य में कहा कि यह पुरस्कार सामाजिक स्वीकृति है। नाटक एक बहुत चुनौतीपूर्ण कला है और हम लोगों को कलकत्ते से बड़ा प्यार मिला है। बनारस के प्रसिद्ध रंगकर्मी नरेंद्र आचार्य ने कहा कि हिन्दीत्तर प्रदेश में हिंदी मेला हिंदी के लिए गर्व है।
प्रो संजय जायसवाल ने अतिथियों का स्वागत करते हुए कहा कि हिंदी मेला का उद्देश्य नई पीढ़ी को मातृभाषा से प्रेम तथा उदार राष्ट्रीय संस्कृति से जोड़ना है। डॉ राजेश मिश्र ने वार्षिक विवरण प्रस्तुत करते हुए कहा कि हिंदी मेला के इतने लंबे काल से चलते रहना लेखकों के अलावा साहित्यप्रेमियों और नौजवानों के भारी समर्थन का फल है। हिंदी मेला के संरक्षक रामनिवास द्विवेदी ने कहा कि हिंदी मेला को बड़े कर्मठ संस्कृति कर्मियों और साहित्य प्रेमियों का बल है। ऐसा मेला हिंदी प्रदेशों में भी होना चाहिए। उद्घाटन समारोह के अध्यक्ष डॉ शम्भुनाथ ने कहा कि हिंदी मेला का आयोजन तब से हो रहा है, लिटरेरी फेस्टिवल का नामोनिशान नहीं था। छोटे साधनों से आयोजित ऐसे मेलों से बड़े मूल्यों की रक्षा संभव है। हिंदी मेला भारतीय भाषाओं का आंगन है। बतौर निर्णायक पंकज देवा ने कहा कि हिंदी मेला का यह मंच नाट्य विधा को विद्यार्थियों से जोड़ रहा है। प्लाबन बसु ने कहा कि हमें नाटक कार्यशाला का आयोजन कर इन प्रतिभागियों को प्रशिक्षण देना चाहिए। महेश जायसवाल ने विजयी प्रतिभागियों को भविष्य की संभावना कहा।
नाट्योत्सव का संचालन अनिता राय, नमिता जैन, लिली साहा, श्रीप्रकाश गुप्ता, पूजा गोंड, ज्योति चौरसिया ने किया। इस आयोजन में विशेष रूप से डॉ सुमिता गुप्ता, वेद प्रकाश शर्मा, धर्मेंद्र यादव, वीरू सिंह, निशा राजभर, आकांक्षा साव, हरे कृष्ण यादव सक्रिय थे। नाट्योत्सव में दर्शकों की भारी उपस्थिति थी।
इस वर्ष का शिखर सम्मान- कलाकार मंच, प्रथम- विद्यासागर विश्वविद्यालय, द्वितीय- स्टडी मिशन नाट्य दल, सर्वश्रेष्ठ अभिनेता- चंदन भगत, सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री- प्रज्ञा झा, सर्वश्रेष्ठ निर्देशक- पार्बती रघुनंदन, सर्वश्रेष्ठ बाल कलाकार- रक्षा कुमारी को मिला। धन्यवाद ज्ञापन श्रीप्रकाश गुप्ता ने दिया।