Thursday, September 18, 2025
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हिन्दी में बद्रीनारायण समेत 23 भाषाओं के साहित्यकारों को साहित्य अकादमी पुरस्कार

साहित्य अकादमी ने इस वर्ष के अकादमी पुरस्कारों की घोषणा कर दी है। हिंदी के लिए इस वर्ष का साहित्य अकादमी पुरस्कार प्रसिद्ध कवि बद्री नारायण को दिया जाएगा. बद्री नारायण को उनके कविता संग्रह तुमड़ी के शब्द को साहित्य अकादमी पुरस्कार 2022 के लिए चुना गया है। साहित्य अकादमी के सचिव के. श्रीनिवासराव ने साहित्य पुरस्कारों की घोषणा करते हुए बताया कि इस बर्ष 23 भाषाओं के लिए पुरस्कार देने का निर्णय किया गया है । इनमें 7 कविता संग्रह, 6 उपन्यास, 2 कहानी संग्रह, दो साहित्यिक समालोचना, तीन नाटक, एक आत्मकथा निबंध, एक संक्षिप्त सिंधी साहित्य इतिहास और एक लेख संग्रह की पुस्तक शामिल है। सचिव के. श्रीनिवासराव बताया कि पुरस्कारों की अनुशंसा 23 भारतीय भाषाओं की निर्णायक समितियों द्वारी की गयी । साहित्य अकादमी के अध्यक्ष डॉ. चंद्रशेखर कंबार की अध्यक्षता में आयोजित अकादमी कार्यकारी मंडल की बैठक में आज इन्हें अनुमोदित किया गया। उन्होंने बताया सम्मानित लेखकों को अगले वर्ष मार्च में सम्मानित किया जाएगा । पुरस्कार विजेता को पुरस्कार स्वरूप एक लाख रुपये की नकद राशि, ताम्रफलक और प्रशस्ति पत्र प्रदान किया जाएगा ।

इन लेखकों को मिलेगा सम्मान
अंग्रेजी भाषा में अनुराधा रॉय को उनके उपन्यास ‘ऑल द लाइब्स वी नेवर लिव्ड’ इस वर्ष का साहित्य अकादमी पुरस्कार प्रदान किया जाएगा। पंजाबी भाषा में सुखजीत के कहानी संग्रह ‘मैं अयंघोष नहीं’, उर्दू भाषा के लिए अनीस अशफ़ाक के उपन्यास ‘ख़्वाब सराब’, बोडो में रश्मि चौधरी के कविता संग्रह ‘सानस्रिनि मदिरा’, मैथिली भाषा में अजित आजाद के कविता संग्रह ‘पेन ड्राइव में पृथ्वी’, मणिपुरी में कोइजम शांतिबाला कविता संग्रह ‘लेइरोन्नुंग’, ओडिआ में गायत्रीबाला पांडा के कविता संग्रह ‘दयानदी’, संस्कृत में जनार्दन प्रसाद पाण्डेय ‘मणि’ के कविता संग्रह ‘दीपमणिक्यम’, संताली में कजली सोरेन जगन्नाथ सोरेन के कविता संग्रह ‘साबरनका बालिरे सानन’ के नाम की घोषणा हुई है ।

क्रिसमस पर बनाएं ड्राई फ्रूट केक

सामग्री –  1 कप मैदा, 1/2 कप दही, 1/4 कप दूध, 1 टी स्पून बेकिंग पाउडर, 1/2 टी स्पून बेकिंग सोडा, 2 टेबलस्पून दूध पाउडर, 4-5 टेबलस्पून ड्राई फ्रूट्स (मिक्स), 1 टी स्पून वनीला एसेंस, 2 टी स्पून बादाम कतरन, 1/2 कप घी, 1/2 कप चीनी पाउडर, 1 चुटकी नमक

विधि – ड्राई फ्रूट केक बनाने के लिए आप सबसे पहले एक बरतन में मैदा को लेकर छान लें। फिर आप इसमें बेकिंग पाउडर, दूध पाउडर और बेकिंग सोडा को भी छानकर डाल दें। इसके बाद आप इन सारी चीजों को अच्छी तरह से मिलाकर मिक्चर तैयार कर लें। फिर आप इसमें एक चुटकी नमक डालें और अच्छी तरह से मिला दें। इसके बाद आप एक दूसरे बाउल में दही, चीनी पाउडर और घी डालकर अच्छी तरह से मिला दें। फिर आप दही के मिक्चर में मैदे के मिश्रण को थोड़ा-थोड़ा डालते हुए मिलाएं। इसके बाद आप इसमें ऊपर से दूध डालें और मिलाकर गाढ़ा पेस्ट तैयार कर लें। फिर आप इसमें वनीला एसेंस डालें और अच्छी तरह से मिला लें। इसके बाद आप इस पेस्ट में बारीक कटे ड्राई फ्रूट्स डालें और अच्छी तरह से मिला लें। फिर आप बेकिंग टीन को लेकर घी से अच्छी तरह से ग्रीस कर लें। इसके बाद आप इसमें केक का तैयार बैटर डालें और जमीन पर करीब दो-तीन बार टैप करें। फिर आप मिश्रण के ऊपर बादाम कतरन को लेकर अच्छी तरह से फैला लें। इसके बाद आप इसको प्रीहीट किए ओवन में 180 डिग्री सेल्सियस पर करीब आधा घंटे तक बेक करें। अब आपका स्वाद और पोषण ले भरपूर ड्राई फ्रूट केक बनकर तैयार हो गया है।

रंग

डॉ. वसुंधरा मिश्र

रंग सिर्फ रंग है
जीवन से जुड़ जीवन में घुल जाते हैं
सुख बनकर मुस्कान में
दुख बनकर रुदन में
नृत्य बनकर थिरकन में
मोती बनकर सागर में
वर्ण बनकर शब्द में
सृष्टि चलती रहती धूरी पर
घुला श्वेत रंग सब रंगों में
अध्यात्म आत्मा से जुड़ा
ऋजु पथ का वाहक
तब का शोधक
रंग दिखा दे जीवन के चित्र
रंग रंग है।
गोरे काले श्याम चितकबरे
नीले बैंगनी गुलाबी पीले
रंगों का जीवन से मिलना
जीवन अर्थ सिखाता
सूखा गीला भारी हल्का
सब रंगों का खेल
भिन्न-भिन्न रूपों का रंग
पहचानो रंगी दीवारों को
सुर असुर देव नर किन्नर
सब रंगों का खेल।
जन-जन रंगे रंगों में
रंग बिरंगी बदरंगी राहों में
लगे हैं मन के दर्पण
पहचानो तो हरे गुलाबी
नहीं तो काले मतवाले
खेल दिखाते बलखाते से
रंग रंग के नाच नचाते
नई गति ताल छंद मृदंग भी बचते
उद्भव स्थिति संहार में घुलकर
प्रकृति और जीवन में खिलते
आओ अपने रंगों को एक सकारात्मक आकार में ढालें
आओ अपने रंगों को एक सकारात्मक आकार में ढालें
एक नया इतिहास रचने का संकल्प बनाएं रंग सिर्फ रंग ही तो हैं ।

कहत ‘भिखारी’ नाई आस नइखे एको पाई, हमरा से होखे के दीदार हो बलमुआ…

पटना । करिके गवनवा, भवनवा में छोड़ि कर, अपने परईलन पुरूबवा बलमुआ, अंखिया से दिन भर, गिरे लोर ढर-ढर, बटिया जोहत दिन बितेला बलमुआ। इन गीतों को सुनकर बिहार के ग्रामीण इलाकों में कभी थके हारे मजदूरों के चेहरे पर रौनक सी आ जाती थी। जी हां, हम बात कर रहे हैं भोजपुरी के शेक्सपियर कहे जाने वाले लोक गायक, संगीतकार और नाट्यकर्मी भिखारी ठाकुर की। बिहार के सारण जिले में 18 दिसबंबर 1887 को पैदा हुए भिखारी ठाकुर एक सार्थक लोक कलाकार थे। उन्होंने सामाजिक समस्याओं और मुद्दों पर बोल-चाल की भाषा में गीतों की रचना की। उसे गाया और मंच पर जीवंत किया। आज भिखारी ठाकुर की जयंती है। 10 जुलाई 1971 को अंतिम सांस लेने वाले भिखारी ठाकुर पर वरिष्ठ लेखक संजीव ने एक उपन्यास ‘सूत्रधार’ की रचना भी की है। अपनी जयंती के दिन भिखारी ठाकुर ट्वीटर पर ट्रेंड कर रहे हैं। उनकी जयंती पर उन्हें याद करते हुए सोशल मीडिया पर ईटी नाउ के एंकर प्रशांत पांडेय कहते हैं भोजपुरी गीत संगीत और लोकनाट्य के अनूठे सूत्रधार भिखारी ठाकुर की जयंती है। भिखारी ठाकुर को महापंडित राहुल सांकृत्यायन ने ‘भोजपुरी का शेक्सपीयर’ कहा था।

‘भिखारी होना बड़ी बात’
भिखारी ठाकुर के बारे में लोक गायक विष्णु ओझा कहते हैं कि देखिए भोजपुरी में माटी से जुड़े हुए कलाकार रहे भिखारी ठाकुर। बाद के दिनों में कई लोगों ने उनकी नकल करने की कोशिश की, लेकिन कोई भी कामयाब नहीं हो पाया। महेंद्र मिश्र और भिखारी ठाकुर भोजपुरिया माटी की शान हैं। विष्णु ओझा ने भोजपुरी के शेक्सपियर को आधुनिक शिक्षा पाठ्यक्रम में लाने की मांग की। उन्होंने कहा कि भिखारी ठाकुर को लेकर राजकीय लोक संगीत कार्यक्रम और सम्मान समारोह का आयोजन होना चाहिए। भिखारी ठाकुर विरह वेदना, बेटी विदाई और सामाजिक समस्याओं के ताने-बाने को लोक संगीत में पिरो देते थे। उनकी खासियत ये थी कि वे हमेशा सामाजिक मुद्दों में अपना संगीत ढूंढ़ते थे। आज भी जब भी भोजपुरी की चर्चा होती है, भिखारी ठाकुर की चर्चा जरूर होती है।

गरीबी में दिन कटे
शिक्षा की रोशनी से दूर, मजबूरी, मुफलिसी और गरीबी के साथ अपमान का घूट पीकर भिखारी ठाकुर ने अपने को जिस तरह भोजपुरी के शेक्सपियर तक पहुंचाया। उस कालखंड की कहानी बड़ी रोचक है। अध्ययन से पता चला कि नाटक और नचनिया बने भिखारी ठाकुर की स्थिति भी कमोवेश वही रही, जो समाज से बिलग चलकर अपनी एक अलग पहचान बनाना चाहता है। उन्हें शुरू में कुछ लोगों से इज्जत मिली, तो कुछ ने ‘भिखरिया’ कहकर अपमानित किया। प्रसिद्ध लेखकर संजीव ने भिखारी ठाकुर के जीवन पर बहुचर्चित उपन्यास ‘सूत्रधार’ लिखा है। उनके शोध बताते हैं कि जन्म से भिखारी ठाकुर आभाव में अपनी जिंदगी घसीटते रहे। पिता दलसिंगार ठाकुर ने जब पढ़ने को स्कूल भेजा, तब काफी दिनों बाद तक भिखारी ठाकुर को ‘राम गति, देहूं सुमति’ लिखने नहीं आया। जब वे स्कूल पहुंचते, तो उस समय के माट साहब उनसे नाई वाला काम लेने लगते।

घर से बाहर निकले
‘सूत्रधार’ में चर्चा है कि मास्टर लोग भिखारी ठाकुर से कहते कि पढ़ लिखकर क्या करेगा, आखिर जवान होकर हाथ में उस्तरा ही पकड़ना है। अबहिए से पैरैटिस कर ले बचवा। भिखारी ठाकुर को स्कूल में मन नहीं लगा और वे भैंसों के साथ चरवाही में भेज दिए गए। उन्हें पढ़ना नहीं आया, लेकिन उसकी जरूरत उन्हें महसूस जरूर हुई। कोई पत्र पढ़ना होता, तो वे मित्र भगवान साह के पास जाते और कहते कि हमरो के पढ़े सिखा द। ‘सूत्रधार’ में चर्चा है कि भिखारी ठाकुर तीस साल की उम्र में रोजी रोटी के लिए परदेश पहुंचे। उस समय का परदेश यानी कोलकाता। उनके एक रिश्तेदार मेदनीपुर जिला में रहते थे, उस जिले के शहर खड़गपुर, जिसका रेलवे प्लेटफार्म विश्व में सबसे लंबा है। वहां जमीन पर बैठकर नाईगिरी करने वाले की जमात में जम गए। रात में खाली होने के बाद वे रामायण का अध्ययन करते। वहीं पर उनके पड़ोसी रामानंद सिंह ने उन्हें सलीके से जीने और लिखने की प्रेरणा दी। उसके बाद कलाकार मन वाले भिखारी ने भोजपुरी की संस्कृति में क्रांति का अध्याय लिखना शुरू किया।

दहेज लोभियों पर प्रहार
भिखारी ठाकुर ने प्रचलित नाटकों से अलग उन्होंने स्वयं नाटक लिखे, जिसे वे ‘नाच’ या ‘तमासा’ कहते थे, जिनमें समाज के तलछट के लोगों के सुख-दुख, आशा-आकांक्षा का चित्रण होता था। ‘बिरहा बहार’ तुलसीकृत रामचरितमानस की तर्ज पर लिखा हुआ ‘धोबी-धोबिन’ का सांगीतिक वार्तालाप था। उन दिनों दहेज से तंग आकर किशोरियों की शादी बूढ़े या अनमेल वरों के साथ कर दी जाती थी। यह भिखारी का ही कलेजा था, जिसने इनके प्रतिकार में ‘बेटी वियोग’ जैसा मर्मांतक नाटक लिखा। ‘बेटी बेचवा’ के नाम से ख्यात यह नाटक उन दिनों भोजपुर अंचल में इतना लोकप्रिय था कि कई जगहों पर बेटियों ने शादी करने से मना कर दिया, कई जगहों पर गांव वालों ने ही वरों को खदेड़ दिया। भिखारी ठाकुर ने इसी दौरान भोजपुरी में दहेज लोभियों और दुल्हा पर व्यंग्य करते हुए एक गीत लिखा। चलनी के चालल दुलहा सूप के फटकारल हे, दिअका के लागल बर दुआरे बाजा बाजल हे। आंवा के पाकल दुलहा झांवा के झारल हे, कलछुल के दागल, बकलोलपुर के भागल हे। सासु का अंखिया में अन्हवट बा छावल हे, आइ कs देखऽ बर के पान चभुलावल हे।आम लेखा पाकल दुलहा गांव के निकालल हे, अइसन बकलोल बर चटक देवा का भावल हे। मउरी लगावल दुलहा, जामा पहिरावल हे, कहत ‘भिखारी’ हवन राम के बनावल हे।
भोजपुरी के ‘भिखारी’
फार्रवर्ड प्रेस पत्रिका में भिखारी ठाकुर के बारे में प्रकाशित संस्मरण में चर्चा है कि 1964 में धनबाद जिले के कुमारधुवी अंचल में प्रदर्शन के दौरान हजारीबाग जिले के पांच सौ मजदूर रोते हुए उठ खड़े हुए। उन्होंने शिव जी के मंदिर में जाकर सामूहिक शपथ ली कि आज से बेटी नहीं बेचेंगे। यह घटना लायकडीह कोलियरी की थी। भिखारी ठाकुर ने अपने नाच और उसके प्रदर्शनों से समाज में प्रवासियों, बेटियों, विधवाओं, वृद्धों व दलित-पिछड़ों की पीड़ा को जुबान दी। पिटाई और प्रताड़ना तक का जोखिम उठाया। मना करने के बावजूद लोग भिखारी का नाटक देखने जाते। संक्रमण और संधान के घटना बहुल इस युग में गंवई चेतना का भी एक उभार आया था। साहित्य, कला और संस्कृति में इस गंवई चेतना ने कतिपय ऐसे स्थलों को भी अपना उपजीव्य बनाया, जहां हिन्दी साहित्य की नजर तक न गई थी। गदर के शौर्य, भारतीयों की दुर्दशा और गिरमिटिया मजदूरों की हूक तत्कालीन भोजपुरी और अवधी तथा अन्य बोलियों में ही सुलभ है, हिन्दी में नहीं. भिखारी इसी युग की भोजपुरी भाषी जनता के सबसे चहेते, सबसे जगमगाते सितारे थे।
(साभार – नवभारत टाइम्स)

1990 बैच के आईपीएस राजविंदर सिंह भट्टी होंगे नए डीजीपी

पटना । बिहार के नए पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) राजविंदर सिंह भट्टी होंगे। 1990 बैच के आईपीएस अधिकारी अभी केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) पूर्वी कमांड में अपर महानिदेशक (एडीजी) के पद पर कार्यरत थे।
वर्तमान में प्रदेश के डीजीपी पद पर कार्यरत संजीव कुमार सिंघल का कार्यकाल सोमवार को पूरा हो  गया । गत रविवार को ही गृह विभाग की ओर से नए डीजीपी के नाम की औपचारिक घोषणा कर दी गई।
पंजाब के रहने वाले बिहार कैडर के आईपीएस
आईपीएस आरएस भट्टी मूल रूप से पंजाब के रहने वाले हैं। लेकिन उनका कैडर बिहार है। बिहार में अपनी सेवा देने के दौरान आईपीएस भट्टी ने कई बड़े बाहुबलियों को धूल चटाई। वहीं कानून व्यवस्था को मजबूत करने के लिए हरसंभव प्रयास किया।
शहाबुद्दीन की गिरफ्तारी में निभाई भी महत्वपूर्ण भूमिका
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार बिहार के बाहुबली नेता शहाबुद्दीन को गिरफ्तार करने की जो विशेष गुप्त योजना बनी थी, उसे आरएस भट्टी ने ही अंजाम दिया था। साल 2005 में विधानसभा चुनाव के वक्त विशेष तौर पर उन्हें केंद्रीय प्रतिनियुक्ति से वापस बिहार लाया गया था। सीवान एसपी के रूप में 5 नवंबर 2005 को आरएस भट्टी की ओर से शहाबुद्दीन की गिरफ्तारी की जिम्मेदारी महिला इंस्पेक्टर गौरी कुमारी को सौंपी थी। गौरी ने शहाबुद्दीन को दिल्ली वाले आवास से गिरफ्तार किया था। उस वक्त एसपी भट्टी सीवान में बैठकर पूरे ऑपरेशन को ऑपरेट कर रहे थे। उसके बाद इन्हें सीवान में डीआईजी के रूप में पदभार सौंपा गया था।
बिहार में डीजी रैंक के है 11 अफसर
बिहार में वर्तमान में डीजी रैंक के 11 अफसर हैं। इनमें से छह केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर राज्य में आए हुए हैं। केंद्र सरकार की ओर से तीन नामों का चयन कर सूची बिहार सरकार के गृह विभाग को भेजी गई थी। इन्हीं तीन नामों से एक को बिहार के डीजीपी के लिए चुनना था। राज्य सरकार की ओर नए डीजीपी के रूप में आईपीएस राजविंदर सिंह भट्टी को चुना गया।

फाइनल हार कर भी दिल जीत गए किलियन एम्बाप्पे

23 साल के एम्बाप्पे ने महान पेले की कर ली है बराबरी
लुसैल । फीफा वर्ल्ड कप 2022  के फाइनल मुकाबले में 79वें मिनट तक अर्जेंटीना के पास 2-0 की बढ़त थी। पहले ही हाफ में लियोनेल मेसी और एंजेल डि मारिया के गोल से टीम को बढ़त मिल गई थी। दूसरे हाफ में भी फ्रांस को मौके नहीं मिल रहे थे। ऐसे में अर्जेंटीना की जीत आसान दिखने लगी थी। लेकिन इन सब के बीच फ्रांस की टीम में एक ऐसा खिलाड़ी था जिसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता था। 23 साल के किलियन एम्बाप्पे।
97 सेकेंड में दागे दो गोल
अर्जेंटीना के निकोलस ओटामेंडी ने बॉक्स के अंदर फ्रांस के खिलाड़ी पर फाउल कर दिया। रेफरी ने इसपर पेनल्टी दे दी। पेनल्टी ली किलियन एम्बाप्पे ने। 80वें मिनट में गोल इसे गोल में बदलकर उन्होंने अपनी टीम की वापसी करवाई। स्कोर 2-1 हो गया। एम्बाप्पे ने गोल का जश्न भी नहीं मनाया क्योंकि अभी भी उनकी टीम पीछे थी।
इसके 97 सेकेंड बाद ही फ्रांस ने दूसरा गोल कर दिया। यह गोल भी किलियन एम्बाप्पे ने दी दागा। 81वें मिनट में थुरम के पास पर बैलेंस खराब होने के बाद भी जोरदार प्रहार करते हुए गोल दाग दिया। इससे मुकाबला 2-2 की बराबरी पर आ गया। एम्बाप्पे ने इस गोल का जश्न जोरदार मनाया। स्टेडियम में फ्रांस के फैंस भी झूम उठे, जो 79 मिनट से शांत बैठे थे।
दूसरे एक्स्ट्रा टाइम में मेसी ने एक बार फिर गोल करके अपनी टीम को आगे कर दिया। लेकिन एम्बाप्पे कहां हार मानने वाले थे। 118 मिनट में पेनल्टी पर गोल करके उन्होंने मुकाबले को एक बार फिर बराबर कर दिया। वह फीफा वर्ल्ड कप के फाइनल में हैट्रिक लगाने वाले सिर्फ दूसरे खिलाड़ी हैं। 1966 में इंग्लैंड ने ज्योफ हर्स्ट ने हैट्रिक लगाई थी। अंत में अर्जेंटीना ने पेनल्टी शूटआउट में मैच जीत लिया लेकिन दिल एम्बाप्पे जीत गए।
टूर्नामेंट में हुए 8 गोल
किलियन एम्बाप्पे के फीफा वर्ल्ड कप 2022 में 8 गोल किये। वह टूर्नामेंट में सबसे ज्यादा गोल करने वाले खिलाड़ी भी रहे और गोल्डन बूट जीता। इसके साथ ही फीफा वर्ल्ड कप के 14 मैच में उनके 12 गोल हो गए हैं। महान पेले ने भी ब्राजील के लिए 14 वर्ल्ड कप मैचों में 12 गोल किये थे। एक्टिव खिलाड़ियों में सिर्फ मेसी के उनसे ज्यादा 13 गोल हैं। लेकिन मेसी ने 26 मैच खेले हैं।

मेसी का सपना पूरा, अर्जन्टीना बना फीफा विश्वकप विजेता

दोहा । महान लियोनेल मेसी का विश्व विजेता बनने का सपना आखिरकार पूरा हो गया। 2014 में खिताब चूकने वाले मेसी की टीम ने फीफा वर्ल्ड कप इतिहास के सबसे रोमांचक फाइनल में फ्रांस को फुल टाइम में 3-3 से स्कोर बराबर रहने के बाद पेनल्टी शूटआउट में 4-2 से हरा दिया। यह अर्जेंटीना का तीसरा खिताब है। इससे पहले उसने 1978 और 1986 में ट्रॉफी अपने नाम की थी। पेनल्टी शूटआउट में अर्जेंटीना के गोलकीपर मार्टिनेज ने कमाल कर दिया। उन्होंने मौके बचाए और मेसी का सपना पूरा कर दिया। इसके साथ ही मेसी का नाम माराडोना के साथ सुनहरे अक्षरों में लिख दिया गया है।

लियोनेल मेसी ने दागा पहला गोल, हाफ आइम तक अर्जेंटीना 2-0 से आगे
लियोनेल मेसी की अगुवाई में अर्जेंटीना ने फ्रांस के खिलाफ विश्व कप फाइनल में हाफटाइम तक 2-0 से बढ़त बना ली थी। मेसी ने 23वें मिनट में पेनल्टी किक पर गोल किया, जो उन्हें उन्हें जब फ्रांस के डेम्बेले के एंजेल डि मारिया पर फाउल करने पर मिला था। इसके 13 मिनट बाद एंजेल डि मारिया ने दूसरा गोल दागा। मेसी के अब विश्व कप में पेले के समान 12 गोल हो गए हैं। वह एक ही विश्व कप में ग्रुप चरण और नॉकआउट चरण के हर मैच में गोल करने वाले पहले खिलाड़ी बने। मेसी का यह रिकॉर्ड 26वां विश्व कप मैच है और उन्होंने जर्मनी के लोथार मथाउस का रिकॉर्ड तोड़ा। वह 2006 से अब तक पांच विश्व कप में 11 गोल कर चुके हैं।
दो मिनट में दो गाल दाग एम्बाप्पे ने पलट दिया पासा
दूसरे हाफ में गेम अर्जेंटीना के पक्ष में जाता दिख रहा था कि किलियन एम्बाप्पे ने दो मिनट में दो गाल दागते हुए पासा ही पलट दिया। एम्बाप्पे ने 80वें मिनट में पेनल्टी पर गोल दागा, जबकि 97 सेकंड बाद गेंद जाल में उलझाते हुए फ्रांस को 2-2 की बराबरी पर ला खड़ा किया। पेरिस सेंट जर्मेन में साथी एम्बाप्पे की रफ्तार के आगे मेसी के सूरमा डिफेंडर पूरी तरह फेल हो गए। अर्जेंटीना की दीवार माने जाने वाले गोलकीपर मार्टिनेज भी असहाय दिखे। इस तरह एम्बाप्पे अब मेसी से एक गोल आगे हो गए।

एक्स्ट्रा टाइम में फिर मेसी-एम्बाप्पे ने दागे गोल, फिर अर्जेंटीना ने शूट किया
इसके बाद दोनों टीमों की ओर से गोल नहीं लग सके। अर्जेंटीना के पास दो मौके थे, लेकिन फ्रांस के डिफेंस ने गोल नहीं होने दिया। मैच को एक्स्ट्रा टाइम के लिए बढ़ाया गया। 108वें मिनट में मेसी ने गोल दागते हुए टीम को 3-2 की बढ़त दिलाई तो पेनल्टी पर गोल दागते 118वें मिनट में स्कोर 3-3 से बराबर कर दिया। बाद में पेनल्टी शूटआउट में मेसी की टीम ने मैदान मारते हुए इतिहास रच दिया।

कब कौन बना चैंपियन
ब्राजील (1958, 1962, 1970, 1994, 2002)
जर्मनी (1954, 1974, 1990, 2014)
इटली (1934, 1938, 1982, 2006)
अर्जेंटीना (1978, 1986, 2022)
फ्रांस दो बार (1998, 2018)
उरुग्वे दो बार (1930, 1950)
इंग्लैंड (1966)
स्पेन (2010)

 

पत्नी सुधा मूर्ति से 10 हजार रुपये का ऋण लेकर नारायण मूर्ति ने शुरू की थी इन्फोसिस

नयी दिल्ली । इन्फोसिस आज देश की दूसरी सबसे बड़ी आईटी कंपनी है। इसकी स्थापना 1981 में एन आर नारायण मूर्ति और उनके छह साथी इंजीनियरों ने सीमित संसाधनों के साथ की थी। लेकिन अपनी चार दशक की यात्रा में इस कंपनी ने कई कीर्तिमान अपने नाम किए हैं। इन्फोसिस साल 1999 में अमेरिकी शेयर बाजार में सूचीबद्ध हुई और यह कारनामा करने वाली पहली भारतीय कंपनी थी। साधारण मध्यमवर्गीय परिवार से ताल्लुक रखने वाले नारायण मूर्ति ने अपनी पत्नी सुधा मूर्ति से 10,000 रुपये लेकर इस कंपनी की नींव रखी थी। आज इसका मार्केट कैप 640,617.19 करोड़ रुपये है और यह रिलायंस इंडस्ट्रीज , टीसीएस और एचडीएफसी बैंक के बाद भारत की चौथी सबसे मूल्यवान कंपनी है। आज यह देश की स्टार्टअप कंपनियों के लिए एक मिसाल है।
दरअसल इन्फोसिस नारायण मूर्ति का दूसरा वेंचर था। इससे पहले उन्होंने 1970 के दशक में पहला वेंचर शुरू किया था लेकिन यह आगे नहीं बढ़ पाया। इसके बाद उन्होंने पटनी कम्प्यूटर में भी नौकरी की लेकिन वहां उनका मन नहीं लगा। उन्होंने एक बार फिर कोशिश करने की सोची। लेकिन इसके लिए उनके पास पैसा नहीं था। नारायण मूर्ति का कहना है कि उनके लिए उनकी पत्नी सुधा मूर्ति सबसे बड़ी ताकत हैं। हर मुश्किल में वो उनके साथ खड़ी रहीं। इन्फोसिस के लिए उन्होंने अपनी पत्नी सुधा मूर्ति से 10 हजार रुपये उधार मांगे। एक इंटरव्यू में सुधा मूर्ति ने बताया कि कैसे उनके पति ने उन्हें पैसे देने के लिए मनाया।
मां की सीख
सुधा से जब पूछा गया कि 10 हजार रुपये देते समय क्या आपको इसे लेकर चिंतित नहीं थी, तो उन्होंने कहा, ‘जब मेरी शादी हुई तो मेरी मां ने मुझे सीख दी थी कि अपने पास कुछ पैसे रखने चाहिए और उनका इस्तेमाल केवल एमरजेंसी में करना चाहिए। इसका इस्तेमाल साड़ी, सोना या कुछ और खरीदने में नहीं होना चाहिए। इसे केवल एमरजेंसी में यूज करना है। मैं हर महीने मूर्ति और अपनी सैलरी में से कुछ पैसे अलग रखती थी। मूर्ति को इसकी जानकारी नहीं थी। ये पैसे में एक बॉक्स में रखती थी। इस बॉक्स में 10,250 रुपये थे।’
सुधा मूर्ति ने कहा, ‘मूर्ति ने सॉफ्टवेयर क्रांति के बारे में बताया। उन्होंने इतिहास का हवाला देते हुए कहा कि हम क्यों पिछड़ गए। जब मैंने उनसे पूछा कि इसमें क्या एमरजेंसी है तो उन्होंने कहा कि मेरा एक सपना है। यह पूरा होगा किया नहीं, मैं नहीं जानता। मैं जानती थी कि वह मेहनती आदमी हैं। अगर मैं यह पैसा नहीं देती को उन्हें ताउम्र इसका मलाल रहता। यह नाकामी से ज्यादा बदतर होता। अगर वह फेल होते तो फिर नौकरी कर लेते। लेकिन मुझे इसका जो मलाल होता वह ज्यादा बदतर होगा। इसलिए मैंने उन्हें केवल 10,000 रुपये दिए और 250 रुपये अपने पास रख लिए।
तीन लाख से ज्यादा कर्मचारी
नारायण मूर्ति के साथ नंदन निलेकणी, एन एस राघवन, एस गोपालकृष्णन, एस डी शिबूलाल, के दिनेश और अशोक अरोड़ा इन्फोसिस के सह संस्थापक थे। ये सभी लोग पटनी कम्प्यूटर में साथ काम करते थे। इन लोगों ने सीमित संसाधनों के दम पर देश की सबसे सफल आईटी कंपनियों में से एक इन्फोसिस की नींव रखी। 31 मार्च, 2022 को इन्फोसिस का रेवेन्यू 16.3 अरब डॉलर था और इसमें 314,000 से अधिक कर्मचारी काम करते हैं। एक अगस्त 2014 को कंपनी ने सभी को चौंकाते हुए विशाल सिक्का को अपना सीईओ बनाया। पहली बार कंपनी का बागडोर किसी आउटसाइडर को सौंपी गई थी। हालांकि उनका कार्यकाल विवादों से भरा रहा और तीन साल बाद उन्होंने पद छोड़ दिया।

बिहार के इस गाँव में 30 साल में 1 रुपये की फीस लेकर आई टी की तैयारी करवाते हैं दुर्गेश्वर

पटना । देश के लाखों बच्चे इंजीनियर और डॉक्टर बनने का सपना देखते हैं। इसके लिए वो पूरी जी-जान लगाकर मेहनत करते हैं। इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने के लिए छात्र आईआईटी की प्रवेश परीक्षा की तैयारी करते हैं, तो वहीं डॉक्टरी की पढ़ाई करने के लिए नीट की। अब तो देश के लगभग हर शहर में लाखों कोचिंग सेंटर खुल गए हैं, जहां बच्चों से मोटी फीस वसूल कर उन्हें इन परीक्षाओं की तैयारी कराई जाती है। आईआईटी और नीट के लिए सबसे प्रसिद्ध शहर राजस्थान का कोटा है, जहां तमाम कोचिंग सेंटर चल रहे हैं। यहां देशभर से बच्चे पढ़ने आते हैं। लेकिन अगर आपसे कहा जाए कि बिहार में एक गांव ऐसा है, जहां लगभग हर घर में आईआईटियंस हैं तो शायद आपको यकीन नहीं होगा। लेकिन ये बिल्कुल सच है। बिहार के गया जिले में आने वाला ‘मानपुर पटवाटोली’ गांव आईआईटी के लिए मशहूर है। इसे ‘बिहार का कोटा’ और ‘आईआईटियंस के गांव’ के नाम से जाना जाता है।
30 साल पहले शुरू हुआ सिलसिला
गांव में करीब 1 हजार परिवार रहते हैं। गांव के हर घर से कोई न कोई इंजीनियर या डॉक्टर है। यहां के बच्चे आज विदेशों में नौकरियां कर रहे हैं। गांव में इंजीनियर बनने का सिलसिला 1992 से शुरू हुआ था। यहां से सबसे पहले जितेंद्र प्रसाद ने आईआईटी की परीक्षा पास की थी। इसके बाद गांव के अन्य बच्चों में भी आईआईटी के प्रति रुझान बढ़ा। अगर बात जितेंद्र की करें तो उन्होंने आईआईटी बीएचयू से इंजीनियरिंग की। इसके बाद उनकी जॉब टाटा स्टील में लगी जहां उन्होंने करीब दो साल नौकरी की इसके बाद वो अमेरिका में नौकरी करने चले गए।
जितेंद्र की सफलता ने गांव के दूसरे बच्चों को बहुत प्रभावित किया। बच्चों ने खुद से ही आईआईटी की तैयारी करना शुरू कर दिया। लेकिन गांव में पढ़ाई के संसाधन नाकाफी थे। इसके बाद बच्चों की मदद करने के लिए गांव के ही दुर्गेश्वर प्रसाद और चंद्रकांत पाटेश्वरी सामने आए। उन्होंने गांव के बच्चों की पढ़ाई के लिए एक लाइब्रेरी शुरू की। इसके साथ ही तैयारी करने वाले बच्चों को फ्री में कोचिंग देना शुरू किया। इन दो युवाओं के प्रयासों का ही नतीजा है कि पिछले साल इनके यहां तैयारी करने वाले 40 बच्चों में से 19 ने आईआईटी की परीक्षा पास की।
प्राथमिक से लेकर जेईई की तैयारी करने वाले बच्चों को पढ़ाते हैं
दुर्गेश्वर प्रसाद ने बताया कि गांव के बच्चों में पढ़ने की ललक है। इसे देखते हुए उन्होंने साल 2013 में वृक्ष नाम की संस्था शुरू की। शुरुआत में उन्होंने गांव के निर्धन और बेसहारा बच्चों को पढ़ाना शुरू किया। पहले उन्होंने बच्चों को प्राथमिक शिक्षा देनी शुरू की। वो क्लास एक से लेकर आठवीं तक बच्चों को पढ़ाते थे। लेकिन धीरे-धीरे वो बच्चों को आईआईटी और नीट के लिए तैयार करने लगे।
उनके सेंटर पर फिलहाल करीब 200 बच्चे पढ़ाई कर रहे हैं। इनमें से 40 बच्चे आईआईटी और नीट की तैयारी कर रहे हैं। वहीं 150 से ज्यादा बच्चे प्राइमरी और अन्य क्लासेस के हैं। दुर्गेश्वर ने इन बच्चों को पढ़ाने के लिए शानदार तरीका निकाला है। उनकी कोचिंग में सीनियर अपने जूनियर्स को पढ़ाते हैं। यानी प्राइमरी के बच्चों को क्लास 8वीं तक के बच्चे पढ़ाते हैं, आठवीं तक के बच्चों को 10वीं तक के बच्चे और इसी तरह उनके सीनियर उन्हें पढ़ाते हैं। लेकिन आईआईटी और नीट की तैयारी करने वाले बच्चों को वो खुद भी पढ़ाते और आसपास के गेस्ट टीचर्स को भी बुलाते हैं।
दुर्गेश्वर बताते हैं कि उनके पढ़ाए हुए कई बच्चे आईआईटी में पढ़ाई कर रहे हैं या फिर देश विदेश में अच्छी नौकरियां कर रहे हैं। जब भी ये बच्चे गांव आते हैं तो कोचिंग सेंटर पर जाकर गांव के बच्चों की वर्कशॉप करते हैं। आईआईटी की तैयारी करने वाले जूनियर बच्चों को परीक्षा की तैयारी के गुर सिखाते हैं। गांव के लोगों के प्रयास का ही नतीजा है जो इस गांव से हर साल 10-12 बच्चों का सिलेक्शन आईआईटी के लिए होता है।
सेंटर पर पढ़ने के लिए ‘वन डे वन रुपये’ स्कीम शुरू की गई है। बच्चों से एक रुपये प्रतिदिन के हिसाब से फीस लेते हैं। इसके लिए भी बच्चों पर कोई दवाब नहीं है, वो देना चाहें तो दें वरना कोई बात नहीं।
केवल 1 रुपये लेते हैं फीस
जब दुर्गेश्वर से हमने पूछा कि गांव में सेंटर चलाने में आने वाला खर्च निकालने के लिए आप क्या करते हैं? तो उन्होंने बताया कि गांव के लोग और आसपास के लोग इस काम में उनकी मदद करते हैं। दो साल पहले जब देश में कोरोना वायरस ने दस्तक दी, तब भी पटवाटोली के बच्चों की तैयारी जारी रही। वृक्ष संस्था के लोगों ने समाज से पुराने मोबाइल और लेपटॉप इकट्ठे किए और बच्चों को दिए ताकि वो ऑनलाइन अपनी पढ़ाई जारी रख सकें। इसके अलावा उन्होंने ‘वन डे वन रुपये’ स्कीम शुरू की है। इसके तहत सेंटर पर पढ़ने वाले बच्चे उन्होंने एक दिन की 1 रुपये फीस देते हैं। उनका मानना है कि इससे बच्चों के पेरेंट्स पर कोई एक्स्ट्रा बोझ नहीं पढ़ता है और सेंटर भी ठीक से चल जाता है।
दुर्गेश्वर बताते हैं कि गांव के बच्चों के बेहतरीन प्रदर्शन को देखकर आसपास के लोग भी अक्सर गांव में आते हैं। साथ ही पास कस्बे के एसबीआई बैंक के मैनेजर ने यहां के बच्चों को कई बार सम्मानित किया है। एसबीआई मैनेजर ने कहा है कि जब भी गांव का कोई बच्चा आईआईटी में सिलेक्ट होगा तो उसे बैंक की तरफ से एजुकेशन लोन की व्यवस्था वो करेंगे। गांव के प्रधान प्रेम नारायण भी इस काम में काफी सहयोग करते हैं। उन्होंने बताया कि गांव में सदियों से पावरलूम का काम होता आ रहा है। यहां दरी और अन्य तरह के कपड़े बनाए जाते हैं। इसलिए पहले इस गांव को ‘बिहार का मैनचेस्टर’ भी कहा जाता था। लेकिन अब गांव का स्वरूप बिल्कुल बदल गया है। गांव के बच्चे बिजनस को करते ही हैं साथ में कई बच्चे आईआईटी और नीट को पास कर रहे हैं। अगर आप कभी गया जाएं तो एक बार आईआईटियंस के इस गांव नें भी जा सकते हैं।
(साभार – नवभारत टाइम्स)

 

अरबों को धूल चटाने वाले शासक नागभट्ट

नयी दिल्ली । भारत के एक महान राजा नागभट्ट-1 ने अरबों को सिखाया था। भारतीय इतिहास में भुला दिए गए प्रतिहार राजा नागभट्ट प्रथम ने अपने शासनकाल के दौरान अरबों को युद्ध में बुरी तरह हराया था। देश की तरफ आंख दिखाने वाले अरबों को इस महान राजा ने न केवल सालों तक सीमा से खेदेड़े रखा बल्कि अपनी अदभुत वीरता से हमेशा दुश्मनों के दांत खट्टे करते रहे।
माना जाता है कि 6-7वीं सदी के दौरान गुर्जर-प्रतिहार राजवंश की स्थापना हरिचंद्र ने की थी। नागभट्ट-1 की राजधानी उज्जैन थी। उनके नाम से दुश्मन खौफ खाते थे। लेकिन इतिहास में नागभट्ट प्रथम को वो स्थान नहीं मिला जिसके वो हकदार थे। अरब की सेनाएं अपनी क्रूरता के लिए विख्यात थीं। वो जहां भी जाते थे वहां कत्लेआम मचा देते थे। सिंध के पतन के बाद अरब आक्रमणकारी भारत समेत आसपास के इलाके में लगातार आक्रमण करते रहते थे। अरब खुद को श्रेष्ठ बताने की होड़ में शामिल रहते थे। तो क्या भारत में अरबों की श्रेष्ठता स्थापित हो पाई थी? इसका जवाब आपको ना में मिलेगा। क्योंकि नागभट्ट प्रथम के रूप में देश को विदेशी आक्रांताओं को धूल चटाने वाला एक महान राजा मिला हुआ था। नागभट्ट प्रथम ने देश को अरबों के आक्रमण से सालों तक बचाकर रखा था।
प्रतिहार राजवंश को अरबों को हमेशा मात देने वाले एक राजवंश के रूप में ही जाना जाता रहा है। अगर अरब आक्रांताओं को दुनिया में कहीं भी सबसे ज्यादा मुश्किल हालात का सामना करना पड़ा तो वो भारत था। नागभट्ट प्रथम के शासनकाल के समय को लेकर हालांकि विवाद है लेकिन माना जाता है कि उनका शासनकाल 730 से 756 के बीच रहा था। ये वही समय था जब सिंध पर अरबों ने कब्जा कर लिया था। नागभट्ट प्रथम का राज मौजूदा वक्त के भरूच, मालवा और ग्वालियर तक फैला हुआ था।
सिंध पर कब्जा करने के बाद अरब आक्रमणकारी भारत पर हमला करने लगे। अरब अपने ताकतवर सेनापति अमीर जुनैद ने सैनिकों को भारत में हमले का आदेश दे दिया। अरब सेनाओं ने सौराष्ट्र और भीलमाला पर कब्जा भी कर लिया। कहा जाता है कि अरब सेनाएं जोधपुर, जैसलमेर, भरूच और मालवा में तबाही मचाते हुए उज्जैन तक पहुंच गए थे। उन्होंने उज्जैन के करीब घेरा बना लिया था। इसके बाद नागभट्ट प्रथम ने पड़ोसी क्षत्रिय राजाओं गोहिल, परमार और चालुक्य के साथ मिलकर एक गठबंधन बना लिया। अरब सेनापति जुनैद 50 हजार सेना के साथ उज्जैन के पास डेरा जमाए हुए था। जब उसे भारतीय राजाओं के गठबंधन की खबर मिली। लेकिन जुनैद को अपनी घुड़सवार सेना की बदौलत बड़ा घमंड था। वो मानकर चल रहा था कि भारतीय सेनाओं को वो हरा देगा।
अरबों के दांत खट्टे कर दिए थे
इधर, नागभट्ट प्रथम ने 40 हजार घुड़सवार और पैदल सेना का मजबूत रक्षा दल तैयार कर लिया। माना जाता है कि मौजूदा समय में सिंध और राजस्थान की सीमा पर दोनों सेनाओं के बीच लड़ाई हुई थी। नागभट्ट ने बेहतरीन सैन्य संचालन की बदौलत अरब सेनाओं के छक्के छुड़ा दिए थे। अपने को बेहद मजबूत मान रहे जुनैद को भारतीय घुड़सवारों के आक्रमण ने चौंका दिया। जिस सर्वोच्चता पर अरब सेनाओं को घमंड था उसे भारतीय सेनाओं ने ध्वस्त कर दिया था। अरबों की योजना चारों खाने चित हो गई थी। भारतीय सेनाओं ने उनके छक्के छुड़ा दिए। नागभट्ट प्रथम की घुड़सवार और पैदल सेना ने अरबों को रौंदना शुरू कर दिया। इस लड़ाई में जुनैद भी मारा गया। इसके बाद अरब सेनाएं युद्ध का मैदान छोड़कर भाग गईं।
अरब को ध्वस्त करने के बाद नागभट्ट प्रथम ने नारायण की उपाधि धारण की। उनकी इस जीत ने उन्हें पश्चिम में देश की सीमा का रक्षक के रूप में स्थापित कर दिया। अरब शासक नागभट्ट प्रथम को जुर्ज शासक को पुकारने लगा। यानी ऐसा राजा जिसने भारत में अरबों के कदम को रोक दिया। हालांकि, सेनापति जुनैद की मौत के बाद उसके सक्सेसर तमीम को भी हार का सामना करना पड़ा। नागभट्ट प्रथम की सेनाओं को ये आभास था कि अरब पलटवार करेंगे। इसलिए उन्होंने इसकी बहुत पहले से तैयारी कर रखी थी। इस राजवंश ने दशकों तक अरबों को भारतीय सीमा से खदेड़े रखा था।
नागभट्ट प्रथम के बाद भी प्रतिहार राजवंश ने अपने इस पूर्व राजा की गरिमा को बनाए रखा और भारत को अरबों के आक्रमण से बचाए रखा। नागभट्ट द्वितीय, महान राजा भोज ने भी अरबों को युद्ध के मैदान में दांत खट्टे कर दिए थे।