Friday, August 22, 2025
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41 साल बगैर तबादला सेवा दी, शिक्षक सेवानिवृत्त हुआ तो रो पड़ा पूरा गांव

छिंदवाड़ा । मध्यप्रदेश के छिंदवाड़ा जिले में एक शिक्षक की सेवानिवृत्ति से पूरा गांव भावुक हो गया । 41 साल 1 महीने तक सेवा देने के बाद जब शिक्षक का विदाई समारोह हुआ तो विदाई देने के लिए पूरा गांव पहुंच गया। हर किसी के आंखों में आंसू आ गए। ऐसी विदाई देखकर शिक्षक भी भावुक हो गए। ये शिक्षक गांव के स्कूल की पहचान बन चुके थे। इस स्कूल को लोग शिक्षक के पढ़ाने की शैली के कारण जानते थे। दरअसल, छिंदवाड़ा विकासखंड के नेर गांव के प्राथमिक स्कूल में पदस्थ शिक्षक श्रीकांत असराठी एक ही स्कूल में 41 साल तक रहे। कभी उनका तबादला नहीं हुआ। शिक्षक रहते हुए उन्होंने 41 साल 1 महीने का कार्यकाल पूरा किया। सोमवार को जब उनका रिटायरमेंट हुआ तो उन्हें विदाई देने के लिए पूरा गांव मौजूद था। लोगों का कहना था कि ये अपने आप में एक रिकॉर्ड है कि किसी टीचर ने जिस स्कूल से अपनी ड्यूटी ज्वाइन की हो उसी स्कूल से रिटायर हो रहा हो बिना किसी ट्रांसफर के।
2 जुलाई 1982 को हुई थी ज्वाइनिंग
श्रीकांत ने आज से 41 साल पहले 2 जुलाई 1982 को नेर गांव के प्राथमिक स्कूल में शिक्षक की नौकरी ज्वाइन की थी। उस समय बच्चे स्कूल नहीं आते थे तब वो घर-घर जाकर बच्चों को पढ़ाते थे। धीरे-धीरे उनका व्यवहार देखकर परिजनों ने बच्चों को स्कूल भेजना शुरू किया। स्कूल में बच्चों की संख्या बढ़ती गई। अपने पढ़ाने के अलग तरीके और सरल व्यवहार के कारण वह सभी बच्चों के लिए पसंदीदा शिक्षक बन गए।
समय के थे पाबंद
उनको विदाई देने के लिए पहुंचे उनके पूर्व छात्र जनपद पंचायत के उपाध्यक्ष अश्वनी रघुवंशी ने बताया कि हमारे सर, श्रीकांत असराठी समय के बहुत पाबंद रहे हैं। चाहे बारिश के समय हो या सर्दी का सुबह 7 बजे सबसे पहले वही स्कूल पहुंचते थे। कोई बच्चा स्कूल नहीं आता तो उसे घर जाकर स्कूल लेकर आते थे। उनकी इस कर्तव्य निष्ठा का परिणाम था कि उनके पढ़ाए हुए कई बच्चे आज राजनीति, सामाजिक विभिन्न क्षेत्रों में अपना नाम रोशन कर रहे हैं।
विदाई देने पहुंचे 25 स्कूलों के शिक्षक
श्रीकांत असराठी की विदाई की जानकारी लगते ही सिर्फ गांव के लोग ही नहीं बल्कि जन शिक्षा केंद्र के अंतर्गत आने वाले 25 स्कूलों के शिक्षक भी पहुंचे। गांव के लोगों ने शिक्षक का सम्मान किया। वहीं, विभाग ने भी रिटायरमेंट पर शिक्षक का सम्मान किया।

 

प्रेमी युगल में से कोई भी नाबालिग तो लिव इन रिलेशनशिप मान्य नहीं

 हाईकोर्ट ने कहा- संरक्षण भी नहीं मिलेगा
प्रयागराज । इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि केवल बालिग युगल ही लिव इन रिलेशनशिप में रह सकते हैं। यह अपराध नहीं माना जाएगा। युगल में से कोई भी नाबालिग हो तो लिव इन रिलेशनशिप मान्य नहीं है और ऐसे मामले में संरक्षण नहीं दिया जा सकता। ऐसे मामले में यदि संरक्षण दिया गया तो यह कानून और समाज के खिलाफ होगा।
कोर्ट ने कहा कि चाइल्ड प्रोटेक्शन एक्ट के तहत नाबालिग का लिव इन में रहना अपराध है । चाहे पुरुष हो या स्त्री। बालिग महिला का नाबालिग पुरुष द्वारा अपहरण का आरोप अपराध है या नहीं, यह विवेचना से ही तय होगा। केवल लिव इन में रहने के कारण राहत नहीं दी जा सकती। कोर्ट ने याचिका खारिज करते हुए कहा कि अनुच्छेद 226 के तहत हस्तक्षेप के लिए फिट केस नहीं है। यह आदेश न्यायमूर्ति वीके बिड़ला एवं न्यायमूर्ति राजेंद्र कुमार की खंडपीठ ने सलोनी यादव व अली अब्बास की याचिका पर दिया है। याची का कहना था कि वह 19 साल की बालिग है और अपनी मर्जी से घर छोड़कर आई है तथा अली अब्बास के साथ लिव इन में रह रही है। इसलिए अपहरण का केस रद्द किया जाए और याचियों की गिरफ्तारी पर रोक लगाई जाए। कोर्ट ने एक याची के नाबालिग होने के कारण राहत देने से इनकार कर दिया और कहा कि अनुमति दी गई तो अवैध क्रियाकलापों को बढ़ावा मिलेगा। 18 वर्ष से कम आयु का याची चाइल्ड होगा, जिसे कानूनी संरक्षण प्राप्त है। कानून के खिलाफ संबंध बनाना पाक्सो एक्ट काअपराध होगा, जो समाज के हित में नहीं है।
सरकारी वकील का कहना था कि दोनों पुलिस विवेचना में सहयोग नहीं कर रहे हैं। सीआरपीसी की धारा 161 या 164 का बयान दर्ज नहीं कराया। पहली बार महिला ने हाईकोर्ट में पूरक हलफनामा दाखिल करने आई है। दोनों ने बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका भी की है। याची के भाई पर दूसरे नाबालिग याची को बंधक बनाने का आरोप लगाते हुए पेशी की मांग की गई है। हलफनामा दाखिल कर कहा जा रहा कि दोनों लिव इन में हैं इसलिए संरक्षण दिया जाए। एक याची के खिलाफ कौशाम्बी के पिपरी थाने में अपहरण के आरोप में एफआईआर दर्ज है। एफआईआर में प्रयागराज से अपहरण कर जलालपुर घोसी ले जाने का आरोप है। कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए कहा कि मुस्लिम कानून में लिव इन की मान्यता नहीं है। इसे जिना माना गया है। बिना धर्म बदले संबंध बनाने को अवैध माना गया है।
कोर्ट ने कहा कि कानून की धारा 125 के तहत गुजारा भत्ता तलाकशुदा को ही मांगने का हक है। लिव इन रिलेशनशिप शादी नहीं है इसलिए पीड़िता धारा 125 का लाभ नहीं पा सकती। बालिग महिला का नाबालिग से लिव इन में रहना अनैतिक व अवैध है। यह अपराध है। ऐसे लिव इन को कोई संरक्षण नहीं दिया जा सकता।

10वीं पास, कम उम्र में शादी, फिर खड़ी की 36,000 करोड़ की कंपनी

250 रुपये में खरीद 800 में बेचा सामान
आज हम आपको एक ऐसे व्यक्ति के बारे में बताने जा रहे हैं जिसके आगे कई परेशानियां आई । न ठीक से पढ़ाई लिखाई हो पाई और न कुछ करने का समय मिल पाया, कम उम्र में ही शादी के बंधन में बध गए । एक समय तो ऐसा आया जब इन्हें रेलवे स्टेशन पर रात गुजारनी पड़ी । कहते हैं ना हार न मानने वाले की हमेशा जीत होती है. हम बात कर रहे हैं भारतीय उद्योगपति सत्यनारायण नुवाल की ।
सत्यनारायण नुवाल का नाम बहुत कम लोगों ने ही सुना होगा लेकिन इनकी सादगी के किस्से जान हर कोई हैरान हो जाता है । सत्यनारायण नुवाल एक ऐसी शख्सियत हैं, जिन्होंने अपनी मेहनत से अपना बिज़नेस एम्पायर खड़ा किया है. वे आमतौर पर हिंदी में बोलना पसंद करते हैं । उन्होंने घर की जिम्मेदारियों के चलते 10वीं कक्षा के बाद स्कूल छोड़ दिया था पर आज नुवाल 36 हजार करोड़ की कंपनी के मालिक हैं ।
1000 रुपये से बने 36,000 करोड़ की कंपनी के मालिक
राजस्थान के भीलवाड़ा में एक मध्यमवर्गीय परिवार में जन्मे सत्यनारायण नुवाल ने सिर्फ दसवीं तक पढ़ाई की है । 10वीं से आगे वो पढ़ाई नहीं कर पाए । पिता पटवारी थे और 1971 में उनके रिटायर होने के बाद परिवार की जरूरतें पूरी करने के लिए संघर्ष करने लगे । उनके दादाजी छोटी सी परचून की दुकान चलाते थे । नुवाल के दादाजी छोटी सी परचून की दुकान चलाते थे । स्कूल के बाद वो दादाजी की मदद किया करते थे. लेकिन इससे घर चलाना संभव नहीं था । वहीं मात्र 19 साल की उम्र में ही उनकी शादी हो गई जिसके कारण उनकी जिम्मेदारियां और बढ़ गयी ।
पहले व्यवसाय में नहीं मिली सफलता
घर की स्थिति देखते सत्यनारायण नुवाल ने फाउंटेन पेन की स्याही बेचने का काम शुरू किया लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिली. साल 1977 में वो महाराष्ट्र के चंद्रपुर जिले के बल्हारशाह आ गए । यहां उनकी मुलाकात अब्दुल सत्तार अल्लाहभाई से हुई जो कुएं खोदने, सड़कें बनाने और खदानों की खुदाई में काम आने वाले विस्फोटकों के व्यापारी थे. यहीं से उनके जीवन में नया मोड़ आया.
250 रुपये में खरीद 800 में बेचते थे सामान
सत्यनारायण नुवाल 1,000 रुपये महीना देकर अल्लाहभाई के विस्फोटकों के गोदाम के साथ विस्फोटकों को बेचने के उनके लाइसेंस का उपयोग करते हुए धंधा करने लगे । जल्द ही ब्रिटेन की एक फर्म इंपीरियल केमिकल इंडस्ट्रीज के अधिकारियों की उन पर नजर पड़ी और धीरे धीरे उनकी गाड़ी पटरी पर आने लगी । शुरुआत में वो 250 रुपये में 25 किलो विस्फोटक खरीदकर बाजार में 800 रुपये में बेचते थे । 1995 में, उन्होंने भारतीय स्टेट बैंक से 60 लाख रुपये का कर्ज लेकर विस्फोटक निर्माण की छोटी इकाई शुरू की ।
ऐसे मिली सफलता
सन 1996 में उन्हें 6,000 टन विस्फोटक सालाना बनाने का लाइसेंस मिला । शुरुआत के दिनों में नुवाल कोयला खदानों में विस्फोटक की आपूर्ति करने लगे । वर्ष 2010 में सोलर देश की पहली निजी कंपनी थी जिसे भारत सरकार से भारत के रक्षा बलों के लिए हथियार बनाने के लिए विस्फोटक बनाने का लाइसेंस मिला था । साल 2021-22 में चार लाख टन सालाना की क्षमता के साथ वे दुनिया के चौथे सबसे बड़े विस्फोटक निर्माता और पैकेज्ड विस्फोटकों के सबसे बड़े निर्माता बन गए । कंपनी वर्तमान में मेक इन इंडिया मिशन के हिस्से के रूप में विस्फोटक और प्रोपेलेंट से लेकर ग्रेनेड, ड्रोन और वॉरहेड तक सब कुछ बनाती है । सौर उद्योग के लिए बाजार मूल्य एक दशक में 1,700% बढ़ गया. 2012 में 1,765 करोड़ से नवंबर 2022 तक 35,000 करोड़ से अधिक हो बाजार हो गया. सत्यनारायण नुवाल की कुल संपत्ति 2023 में 190 करोड़ डॉलर है. सोलर इंडस्ट्रीज में 73% हिस्सेदारी नुवाल की है. नुवाल की संपत्ति करीब 3 बिलियन डॉलर आंकी गई है ।

सेना के अधिकारियों को मिली नयी वर्दी, समानता लाने की कोशिश

नयी दिल्ली । सेना ने सीनियर लीड के पदों पर तैनात अधिकारियों में एक समान पहचान और दृष्टिकोण को बढ़ावा देने के लिए ब्रिगेडियर और उससे ऊपर के रैंक के अधिकारियों के लिए सामान्य वर्दी अपनाई है। ब्रिगेडियर और उससे ऊपर के रैंक के अधिकारियों के लिए सामान्य वर्दी का निर्णय अप्रैल में सेना प्रमुख जनरल मनोज पांडे की अध्यक्षता में सेना कमांडरों के सम्मेलन के दौरान व्यापक विचार-विमर्श के बाद लिया गया था, जिसे गत मंगलवार को लागू कर दिया गया। नए नियम लागू होने के साथ वरिष्ठ अधिकारी अब अपने से संबंधित हथियारों और सेवाओं के लिए विशिष्ट साज-सामान नहीं रखेंगे। कंधे के चारों ओर लटकने वाली डोरी को भी हटा दिया गया है। ये अधिकारी अब गहरे हरे रंग की बेरी पहनेगे हैं। वे सभी पीतल के रैंक पहनेंगे। इन अधिकारियों में प्रमुख जनरल, लेफ्टिनेंट जनरल और सेना प्रमुख शामिल हैं।
पहले, वरिष्ठ अधिकारियों द्वारा पहनी जाने वाली वर्दी उनके हथियारों के आधार पर भिन्न होती थी। उदाहरण के लिए, गोरखा राइफल्स के जनरलों ने अपनी ट्रेडमार्क टोपी पहना करते थे। विशिष्ट बख्तरबंद रेजिमेंटों के उनके समकक्ष भूरे रंग के जूते पहनते थे, और विशेष बल के जवान प्रसिद्ध मैरून बेरेट पहना करते थे। सभी वरिष्ठ अधिकारी अब से केवल काले जूते पहनेंगे। बेल्ट अब रेजमेंट या सेवा विशिष्ट नहीं है बल्कि बकल पर भारतीय सेना की कलगी है। सभी वरिष्ठ अधिकारियों के लिए शोल्डर रैंक बैज सुनहरे रंग के होंगे। अब तक, गोरखा राइफल्स, गढ़वाल राइफल्स और राजपूताना राइफल्स जैसी राइफल रेजिमेंट के अधिकारी काले रैंक बैज पहनते थे।
साल 2022 में सेना ने एक नई फाइटर वर्दी पेश की जिसे अगले दो वर्षों में सभी सैनिक इसे अपना लेंगे। सेना ने उस समय कहा था कि नई वर्दी सैनिकों को बेहतर केमोफ्लाज, अधिक आराम और डिजाइन में एकरूपता प्रदान करती है।

 

भारत ने तोड़ा इंग्लैंड का 6 साल पुराना रिकॉर्ड, 200 रनों से जीता

भारतीय टीम ने वेस्टइंडीज को तीसरे मैच में 200 रनों से हरा दिया। इसी के साथ टीम इंडिया ने सीरीज में 2-1 की बढ़त ले ली। भारतीय टीम की तरफ से बल्लेबाजों और गेंदबाजों ने कमाल का खेल दिखाया।
तीसरे वनडे में भारत ने वेस्टइंडीज को जीतने के लिए 352 रनों का टारगेट दिया, जिसके जवाब में विंडीज की टीम सिर्फ 151 रनों पर ऑलआउट हो गई। इस मैच में जीत दर्ज करते ही टीम इंडिया ने एक बड़ा रिकॉर्ड अनपे नाम कर लिया।
टीम इंडिया ने किया ये कमाल
भारतीय टीम ने वेस्टइंडीज के खिलाफ 200 रनों से जीत दर्ज की है, जो वेस्टइंडीज की धरती पर वेस्टइंडीज के खिलाफ किसी भी टीम की सबसे बड़ी जीत है। भारत ने इंग्लैंड का रिकॉर्ड तोड़ा है। इंग्लैंड की टीम ने 2017 में वेस्टइंडीज के खिलाफ 186 रनों से जीत दर्ज की थी। वहीं, ऑस्ट्रेलियाई टीम ने वेस्टइंडीज के खिलाफ साल 2008 में 169 रनों से जीत दर्ज की थी।
भारतीय टीम वेस्टइंडीज के खिलाफ लगातार सबसे ज्यादा वनडे सीरीज जीतने वाली टीम है। भारत ने साल 2007 से लेकर साल 2023 तक वेस्टइंडीज के खिलाफ 13 वनडे सीरीज जीती हैं। दूसरे नंबर पर पाकिस्तान की टीम है। पाकिस्तान ने वेस्टइंडीज के खिलाफ साल 1999 से 2022 तक 10 वनडे सीरीज जीती हैं।

डीए पर बड़ा फैसला: 20 साल पहले रिटायर इन कर्मचारियों को मिलेगा 100 प्रतिशत भत्ता

नयी दिल्ली । इंडियन बैंक्स एसोसिएशन यानी आईबीए और बैंक कर्मचारी यूनियनों के बीच हुई बैठक में इस बारे में सहमति बन गई है कि बैंकों से 1 नवंबर 2002 से पहले रिटायर हुए कर्मचारियों को 100 डीए का फायदा दिया जाएगा। ऑल इंडिया बैंक इंप्लाइज एसोसिएशन के महासचिव सी एच वेंकटाचलम ने बताया है कि 28 जून की बैठक की जानकारी साझा करते समय गलती से इसे नवंबर 2022 लिख दिया गया था लेकिन इसका सही वर्ष 2002 ही है। बाद में इसमें सुधार जारी किया गया है।
इस फैसले के बारे में वित्त मंत्रालय को अवगत कराया जाएगा और उसके बाद सेवानिवृत्त कर्मचारियों को बढ़ी हुई पेंशन या फैमिली पेंशन मिलनी शुरू हो पाएगी। वेतन से छुट्टी तक के मुद्दों पर मंथन: पेंशन के साथ साथ वेतन बढ़ाने और बैंकों में हफ्ते में पांच दिन काम और दो दिन छुट्टी के साथ साथ सस्ते हेल्थ इंश्योरेंश के मुद्दे पर भी विचार विमर्श किया जाना था, लेकिन इस पर अभी कोई फैसला नहीं हो सका है। सूत्रों के मुताबिक सभी लंबित मामलों पर 4-6 महीनों के भीतर फैसला ले लिया जाएगा।

ए एम नाईक : जिस कम्पनी में 670 रुपये वेतन पाते थे, वहीं के बॉस बने

2 जोड़ी जूते और 6 शर्ट वाला अरबपति, अब होंगे रिटायर​
नयी दिल्ली । जिस कंपनी में पहली नौकरी करें, वहीं से रिटायर होना किसी के लिए गर्व का पल होता है। कुछ ऐसा ही दिग्गज कंपनी लार्सन एंड टुब्रो के चेयरमैन ए एम नाइक के साथ भी है। करीब छह दशक की कंपनी के साथ जुड़े नाइक 30 सितंबर 2023 को सेवानिवृत्त होने जा रहे हैं। बतौर जूनियर इंजीनियर कंपनी में अपना कॅरियर शुरू करने वाले नाइक 670 रुपये की सैलरी से चेयरमैन के पद तक पहुंचे। अब उसी कंपनी से रिटायर हो रहे हैं। कंपनी ने उनके सम्मान में शेयरहोल्डर्स को छह रुपये का स्पेशल डिविडेंड देने का फैसला किया है। लार्सन एंड टुब्रो (L&T) को बुलंदियों पर पहुंचाने वाले एएम नाइक की कहानी किसी फिल्म की पटकथा से कम नहीं है।
ए एम नाइक लार्सन एंड टुब्रो के एग्जीक्यूटिव चेयरमैन हैं। 9 जून 1942 को गुजरात में जन्मे नाइक बेहद साधारण परिवार से ताल्लुक रखते हैं। उनके पिता और दादा दोनों ही शिक्षक थे, इसलिए उन्होंने बच्चों की पढ़ाई पर पूरा फोकस कियाष आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं होने के बावजूद नाइक को गुजरात के बिड़ला विश्वकर्मा महाविद्यालय से ग्रेजुएशन के लिए भेजा। स्नातक करने के बाद उन्होंने नौकरी का फैसला किया। उन्होंने एल एंड टी कंपनी में नौकरी के लिए आवेदन किया लेकिन उन्हें रिजेक्ट कर दिया गया। कुछ दिन बाद उन्हें नेस्टर बॉयलर्स में नौकरी मिल गई, लेकिन उनका मन एल एंड टी पर ही अटका हुआ था। जब फिर से वहां भर्ती की शुरुआत हुई नाइक ने फिर से आवेदन किया।
​अंग्रेजी सुधारने की सलाह​
एलएंडटी में उस समय आईआईटी के विद्यार्थियों को अधिक वरीयता दी जाती थी। साल 2018 में एक साक्षात्कार में एएम नाइक ने बताया कि पहली बार लार्सन एंड टुब्रो में साक्षात्कार के दौरान उनकी कमजोर अंग्रेजी को सुधारने की सलाह दी गई। हालांकि उन्हें वहां नौकरी मिल गई, लेकिन पहले से भी कम वेतन पर उन्हें जूनियर इंजीनियर के पद पर नियुक्त कर लिया गया। 15 मार्च 1965 में उन्होंने एलएंडटी में नौकरी ज्वाइन कर ली। उस वक्त उनकी तन्ख्वाह 670 रुपये थी।
​670 रुपये की पहली तनख्वाह
उनका वेतन एनएंडटी में 670 रुपये प्रति महीने था। उस वक्त उन्हें लगता था कि वे 1000 रुपये की वेतन पर रिटायर होंगे। छह महीने बीत जाने के बाद उन्हें कंपनी में कंफर्मेशन मिल गया और उनकी तनख्वाह बढ़कर 760 रुपये हो गई। एक साल बाद उनकी तनख्वाह 950 रुपये हो गई। यूनियन एग्रीमेंट के बाद तनख्वाह में 75 रुपये की और बढ़ोतरी हुई और उनका वेतन एक साल बाद ही 1025 रुपये हो गया। जूनियर इंजीनियर से उन्हें असिस्टेंड इंजीनियर बना दिया गया। एक साल में ही उन्होंने अपनी काबिलियत साबित कर दी।
जहां हुए थे रिजेक्ट, बने वहीं के बॉस​
साल 1965 में उन्होंने जहां से अपनी नौकरी शुरू की थी, साल 1999 में वह उसी कंपनी के सीईओ बने। जुलाई 2017 में उन्हें एलएंडटी समूह के चेयरमैन बनाया गया। उनके नेतृत्व में एल एंड टी ने खूब तरक्की की। साल 2023 में कंपनी की कुल सम्पत्ति 41 अरब डॉलर थी। कंपनी ने डिफेंस, आईटी, रियल एस्टेट, हर तरफ अपना दबदबा कायम कर लिया। आज की तारीख में एलएंडटी का 90 फीसदी रेवेन्यू उन कारोबार से आता है, जिसे नाइक ने शुरू किया है।
​2 जोड़ी जूते और 6 शर्ट​
एएम नाइक काम पर फोकस करते हैं, दिखावे पर नहीं। उनका रहन-सहन बेहद साधारण है। वो कभी दिखावा नहीं करते हैं। वह जमीन से जुड़े व्यक्ति हैं। गांव में पले-बढ़े नाइक को कपड़े-फैशन का भी बहुत शौक नहीं रहा है। एक साक्षात्कार में उन्होंने बताया था कि उनकी आलमारी में मात्र 2 जोड़ी जूते, 6 शर्ट और 2 सूट शामिल है। वह इन सब बातों पर बहुत गौर नहीं करते हैं कि उनका वार्डरोब भरा है कि नहीं, उनके पास कितने जूते-चप्पल हैं। बस काम चल जाना चाहिए, उतने सामान ही रखते हैं।
​ए एम नाइक की नेटवर्थ​
नाइक के नेटवर्थ की बात करें तो साल 2017 में नाइक की तनख्वाह 137 करोड़ थी। उनका नेटवर्थ 400 करोड़ रुपये था। वो जितना कमाते हैं, उतना ही दान करने पर भी जोर देते हैं। उन्होंने साल 2016 में अपनी 75 फीसदी संपत्ति दान कर दी। नाइक अपनी संपत्ति का अधिकांश हिस्सा स्कूल-अस्पताल की चैरिटी पर खर्च करते हैं। साल 2022 में उन्होंने 142 करोड़ रुपये दान में दिया था। उन्होंने एक इंटरव्यू के दौरान कहा कि अगर उनके बेटे-बहू भारत नहीं लौटे तो वो अपनी सौ फीसदी संपत्ति दान कर देंगे। नाइक के बेटे और बहू अमेरिका में रहते हैं। अगर उनके बेटे जगनीश ए नाइक गूगल में नौकरी करते हैं। उनकी बहू रचना सेफवे कंपनी में काम करती हैं। बेटी-दामाद भी अमेरिका में डॉक्टर हैं। बच्चों को अमेरिका भेजना वह अपनी सबसे बड़ी गलती मानते हैं। साल 2022 में वो भारत के टॉप 10 दानवीरों में शामिल हुए।

 

बदलने जा रहे हैं जन्म और मृत्यु के पंजीकरण के नियम

जन्म और मृत्यु पंजीकरण (संशोधन) विधेयक 2023 लोकसभा में पारित
नयी दिल्ली । अब कई मामलों में जन्म प्रमाणपत्र के लिए आधार अनिवार्य होने जा रहा है। केंद्र सरकार ने लोकसभा में 26 जुलाई को जन्म और मृत्यु पंजीकरण (संशोधन) विधेयक, 2023 पेश किया। इस विधेयक में जन्म और मृत्यु का राष्ट्रीय और राज्य स्तरीय डेटाबेस तैयार करने का प्रस्‍ताव है। यह विधेयक जन्म और मृत्यु पंजीकरण अधिनियम 1969 में संशोधन करेगा। आखिर यह विधेयक क्यों लाया गया और इसके कानून बनने पर आम लोगों पर क्या असर पड़ेगा? आइए, इन सभी सवालों के जवाब जानते हैं…
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की ओर से केंद्रीय गृह राज्यमंत्री नित्यानंद राय ने इस विधेयक को लोकसभा में पेश किया। इस विधेयक के लागू होने पर जन्म पंजीकरण के दौरान माता-पिता या अभिभावक के आधार नंबर की आवश्यकता होगी। प्रौद्योगिकी और डिजिटलीकरण का लाभ उठाने के लिए, सरकार ने जन्म और मृत्यु प्रमाणपत्रों के इलेक्ट्रॉनिक पंजीकरण और वितरण के लिए विधेयक में खंड शामिल किए हैं, ताकि सार्वजनिक पहुंच को सुविधाजनक बनाया जा सके।
क्या है विधेयक का प्रमुख उद्देश्य?
विधेयक का एक प्रमुख उद्देश्य पंजीकृत जन्म और मृत्यु के लिए राष्ट्रीय और राज्य-स्तरीय डेटाबेस स्थापित करना है। इस पहल से अन्य डेटाबेस के लिए अपडेट प्रक्रियाओं को बढ़ाने, कुशल और पारदर्शी सार्वजनिक सेवाओं और सामाजिक लाभ वितरण को बढ़ावा देने की उम्मीद है।
नया कानून जन्म प्रमाण पत्र को किसी व्यक्ति की जन्म तिथि और स्थान के निश्चित प्रमाण के रूप में स्थापित करेगा।
नए नियम जन्म और मृत्यु पंजीकरण (संशोधन) अधिनियम, 2023 के प्रारंभ होने या उसके बाद जन्मे लोगों पर लागू होगा।
प्रमाणपत्र स्कूलों में प्रवेश, ड्राइविंग लाइसेंस जारी करने, मतदाता सूची तैयार करने, विवाह पंजीकरण, सरकारी रोजगार, सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम, पासपोर्ट और आधार नंबर जारी करने सहित विभिन्न प्रक्रियाओं के लिए महत्वपूर्ण होगा।
इसके अलावा, विधेयक गोद लिए गए, अनाथ, परित्यक्त और सरोगेट बच्चों के साथ-साथ एकल माता-पिता या अविवाहित माताओं के बच्चों के लिए पंजीकरण की प्रक्रिया को आसान बनाएगा।
विधेयक लाने का उद्देश्य जन्म और मृत्यु पंजीकरण अधिनियम, 1969 की 14 धाराओं में संशोधन करना है ।
रजिस्ट्रार को देना होगा मृत्यु का कारण प्रमाणपत्र
एक नए शासनादेश में, सभी चिकित्सा संस्थानों में रजिस्ट्रार को मृत्यु का कारण प्रमाण पत्र प्रदान करना होगा, जिसकी एक प्रति निकटतम रिश्तेदार को दी जाएगी। अंत में, संभावित आपदाओं या महामारी के मद्देनजर बिल मौतों के पंजीकरण और प्रमाणपत्र जारी करने में तेजी लाने के लिए विशेष ‘उप-रजिस्ट्रारों’ की नियुक्ति का प्रस्ताव करता है।
किन मामलों में अनिवार्य होगा जन्म का पंजीकरण?
विधेयक के प्रावधान में कहा गया है कि ऐसे मामलों में जन्म का पंजीकरण अनिवार्य होगा, जहां जन्म जेल या होटल में हुआ हो। इस मामले में जेलर या होटल के प्रबंधक को आधार संख्या प्रदान करनी होगी। यह प्रावधान गोद लिए गए, अनाथ, परित्यक्त, सरोगेट बच्चे और एकल माता-पिता या अविवाहित मां के लिए बच्चे की पंजीकरण प्रक्रिया में भी अनिवार्य होगा।
नया विधेयक इस बात की वकालत करता है कि रजिस्ट्रार जनरल पंजीकृत जन्म और मृत्यु का एक राष्ट्रीय डेटाबेस बनाए रखेंगे, जबकि मुख्य रजिस्ट्रार और रजिस्ट्रार जन्म और मृत्यु से संबंधित राज्यों और स्थानीय क्षेत्राधिकार से डेटा को राष्ट्रीय डेटाबेस में साझा करने के लिए बाध्य होंगे। इस बीच, मुख्य रजिस्ट्रार राज्य स्तर पर एक समान डेटाबेस बनाए रखेंगे। केंद्रीय डेटा भंडार को वास्तविक समय में अपडेट किया जाएगा और सभी व्यक्तिगत डेटाबेस को एक सामान्य प्लेटफार्म पर जोड़ा जाएगा।
आधार की क्या होगी भूमिका?
आधार सरकारी सेवाओं और बैंकिंग सुविधाओं का लाभ उठाने के लिए जरूरी है। यह जन्म और मृत्यु के पंजीकरण के लिए भी अनिवार्य होगा। उदाहरण के लिए, जन्म के दौरान जब चिकित्सा अधिकारी जन्म की रिपोर्ट देगा तो माता-पिता और सूचना देने वाले का आधार नंबर देना अनिवार्य होगा।
विधेयक के लागू होने पर क्या होगा?
विधेयक के लागू होने के बाद जन्म प्रमाणपत्र का उपयोग जन्म लेने वाले लोगों की जन्म तिथि और जन्म स्थान को साबित करने के लिए किया जाएगा।
बर्थ सर्टिफिकेट का उपयोग किसी शैक्षणिक संस्थान में प्रवेश, मतदाता सूची, सरकारी पद पर नियुक्ति और अन्य उद्देश्यों के दौरान भी किया जाएगा।
दस्तावेज का उपयोग प्रवेश, आधार जारी करना, ड्राइविंग लाइसेंस, पासपोर्ट, मतदाता सूची की तैयारी, विवाह पंजीकरण और केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित अन्य सरकारी व्यवस्थाओं जैसे उद्देश्यों के लिए भी किया जाएगा।
राष्ट्रीय डेटाबेस को जनसंख्या रजिस्टर, मतदाता सूची, राशन कार्ड और अन्य जैसे समान डेटाबेस बनाए रखने वाले अन्य अधिकारियों के साथ भी साझा किया जाएगा।
मेडिकल संस्थानों के लिए मृत्यु प्रमाणपत्र मुफ्त में जारी करना अनिवार्य होगा।
डेथ सर्टिफिकेट यानी मृत्यु प्रमाणपत्र के बदले कोई शुल्क नहीं वसूला जाएगा।
विधेयक से क्या फायदा होगा?
एक सामान्य और केंद्रीकृत डेटाबेस जन्म और मृत्यु पंजीकरण प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित करेगा और अन्य एजेंसियों के साथ डेटाबेस साझा करने से दोहराव और ऐसी अन्य त्रुटियों से बचा जा सकेगा। इसका उद्देश्य सभी चिकित्सा संस्थानों के लिए रजिस्ट्रार को मृत्यु के कारण का प्रमाण पत्र और निकटतम रिश्तेदार को उसकी एक प्रति प्रदान करना अनिवार्य बनाना है।
इस विधेयक से पंजीकरण चुनौतियों को दूर करने की भी उम्मीद है, जो निवेश की कमी, सेवाओं की खराब डिलीवरी और केंद्रों पर सीमित कंप्यूटर और इंटरनेट सेवाओं से आती हैं। यह भी माना जा रहा है कि यह बिल मौतों के पंजीकरण को बढ़ाने में सहायक होगा, जो कि ग्रामीण स्तर पर कई मुद्दों के कारण फिलहाल नहीं हो पा रहा है।
डिजिटल जन्म प्रमाणपत्र क्या है?
डिजिटल जन्म प्रमाणपत्र एक एकल दस्तावेज है, जिसका उपयोग किसी व्यक्ति की जन्मतिथि और जन्मस्थान को साबित करने के लिए किया जाता है। इस विधेयक में सभी जन्म और मृत्यु को एक केंद्रीकृत पोर्टल पर पंजीकृत करने का प्रावधान है।
डिजिटल जन्म प्रमाणपत्र के क्या फायदे होंगे?
डिजिटज जन्म प्रमाण पत्र से देश में जन्म तिथि और जन्मस्थान को साबित करने के लिए किसी अन्य दस्तावेज की जरूरत नहीं पड़ेगी। केंद्र सरकार ने डिजिटल जन्म प्रमाण पत्र बनाने के लिए यह पहला कदम उठाया है। विधेयक में प्रावधान किया गया है कि रजिस्‍टर्ड जन्म और मृत्यु का राष्ट्रीय और राज्य स्तरीय डेटाबेस तैयार किया जाएगा। इसके अलावा, विधेयक में जन्म और मृत्यु प्रमाणपत्र में डिजिटल रजिस्ट्रेशन और इलेक्ट्रॉनिक एग्‍जीक्‍यूशन का भी प्रावधान किया गया है।

 

अभिनय छोड़कर की यूपीएससी की तैयारी, अब आईएएस अधिकारी

टेलिविजन की दुनिया छोड़ यूपीएससी परीक्षा पास की
बंगलूरू । कई फिल्में और टीवी शो करने वाली बाल कलाकार एच एस कीर्थाना टीवी की चकाचौंध दुनिया को छोड़ यूपीएससी की तैयारी में अपना समय लगा दिया। हालांकि, उन्होंने छठे प्रयास में यूपीएससी की परीक्षा पास की थी। पांच बार लगातार असफल होने के बाद भी उन्होंने हार नहीं मानी और अपनी कड़ी मेहनत जारी रखी। इसी मेहनत के बल पर वह आज एक आईएएस अफसर है। अभिनेत्री एच एस कीर्थाना ने छठे प्रयास में यूपीएससी की परीक्षा पास की। उनकी पहली पोस्टिंग कर्नाटक के मांड्या जिले में असिस्टेंट कमिश्नर के तौर पर हुई। कीर्थाना गंगा-यमुना, सर्कल इंस्पेक्टर, लेडी कमिश्नर, मुदिना आलिया, उपेन्द्र, ए, हब्बा, डोरे, ओ मल्लिगे जैसे लोकप्रिय दैनिक सीरियल्स और जननी, पुतानी और चिगुरु ज जैसे टीवी सीरियल्स में भी काम कर चुकी हैं।
अभिनेत्री साल 2011 में पहली बार कर्नाटक प्रशासनिक सेवा की परीक्षा में शामिल हुई थी। यहां अच्छे अंकों से पास होने के बाद दो साल तक वह केएएस अफसर के रूप में काम किया। इसके बाद उन्होंने यूपीएससी की परीक्षा के लिए तैयारी शुरू कर दी और साल 2013 में पहली बार यूपीएससी सीएसई की परीक्षा में बैठीं। हालांकि, पांच प्रयास के बाद साल 2020 में उन्हें यूपीएससी में सफलता मिली। वह 167वीं रैंक के साथ आईएएस अधिकारी बनी।

आधुनिक सशक्त स्त्री का प्रगति मार्ग हैं मुंशी प्रेमचंद की ‘कर्मभूमि’ की स्त्रियाँ

सुषमा त्रिपाठी कनुप्रिया
 ‘आज जब मणिपुर, मालदा समेत देश के अन्य स्थानों पर भीड़ स्त्रियों को नग्न कर रही है तो दूसरी तरफ ‘कर्मभूमि’ में वह भीड़ पीड़िता की रक्षा के लिए सामने आती है । आज जब महिला पहलवानों को घसीटा जा रहा है, अपराधी खुलेआम घूम रहे हैं तो वहीं इस उपन्यास में मुन्नी द्वारा उसकी आबरू लूटने वालों की हत्या करने पर वह देवी बना दी जाती है । आज जहाँ ज्योति मौर्य और आलोक मौर्य के अनमेल विवाह में छीछालेदर हो रही है तो सुखदा एवं अमरकान्त अपने अनमेल विवाह की समस्या से जूझते हुए अन्ततः एक दूसरे को समझते और स्वीकार करते हैं । वर्तमान समस्याओं एवं परिस्थितियों को देखते हुए ‘कर्मभूमि’ में एक नयी रोशनी दिखायी पड़ती है।’
मुंशी प्रेमचन्द भारतीय जनमानस के अन्तर को छूने वाले कथाकार हैं । कई स्तरों पर दिशाहारा जनता के मार्गदर्शक हैं तो कई जगहों पर उनकी कलम भी एक सीमा में बंध जाती है । विशेषकर ऐसा तब होता है जब वह अपने साहित्य के नारी पात्रों को गढ़ते हैं तो उन नारी चरित्रों की तेजस्विता मन मोहती है । प्रेमचन्द की कहानियाँ हों या उपन्यास हों, कई स्तरों पर उनकी लेखनी से निकले नारी चरित्र उनकी कृतियों के पुरुष पात्रों पर भारी पड़ते हैं मगर एक समय के बाद उनको पढ़ते हुए ऐसा लगने लगता है कि कथाकार के पुरुष मन और लेखकीय मन में एक द्वन्द्व चलता रहता है । आप प्रेमचन्द की किसी भी रचना को उठाकर देखिए आरम्भ में स्त्रियों की तेजस्विता, उनकी मुखरता…अन्ततः परिस्थितियों के कारण या किसी न किसी रूप में नायकों के आगे झुकती हैं या विनम्र होती है मगर कर्मभूमि में सामंजस्य की राह खुलती है, असहमतियों के बीच सहमति का स्वर है ।
मुंशी प्रेमचन्द ने स्त्रियों की समस्याएं तो उठायीं, उनको अभिव्यक्ति दी परन्तु इस परिप्रेक्ष्य में स्त्रियों को मर्यादा का जितना पाठ पढ़ाते हैं…मर्यादा का वह पाठ उनके पुरुष चरित्रों में नहीं दिखता….वह पुरुष चरित्रों की भर्त्सना करते हैं तो भी कारण बताकर उनको जस्टिफाई करने लगते हैं । स्त्रियों की सामान्य इच्छाएं, उनकी जीवनशैली क्यों मुंशी जी को भोग – विलास लगती है..यह मेरी समझ में नहीं आता । उनके नारी चरित्र सशक्त भी हैं और अपनी समस्याओं से टकराते भी हैं मगर प्रेमचंद को पढ़ते हुए बार – बार लगता है कि वह अपने स्त्री चरित्रों पर नियंत्रण चाहते हैं…वह उनको आकाश तो देते हैं, पंख भी देते हैं मगर उनके पैरों में मर्यादा और नैतिकता की रस्सी भी बांध देते हैं..आप इसे युगीन पुरुष मानसिकता कहिए या तत्कालीन समाज का प्रभाव या फिर मुंशी प्रेमचन्द की अपनी विचारधारा, यह आप पर छोड़ती हूँ । प्रेमचंद के साहित्य के आकाश में स्त्रियों के लिए सीमा बांध दी गयी है जबकि पुरुष चरित्रों के लिए छूट ली गयी है । वह कमजोर पड़कर भी आगे रहते हैं । ‘कर्मभूमि’ में लगभग ऐसा ही है मगर यहाँ टक्कर बराबर की है । बहरहाल मुंशी जी का कथा साहित्य विपुल है इसलिए मैं अपनी आधुनिक और समसामायिक सन्दर्भ में कर्मभूमि पर ही केन्द्रित रखना चाहूँगी जो मुझे निजी तौर पर कर्मभूमि मुंशी जी की सर्वश्रेष्ठ कृति लगती है । आज के सन्दर्भ में जब तत्कालीन घटनाओं पर विचार करती हूँ तो बार – बार मुझे यह चरित्र याद आते हैं जो वर्तमान समाज में नारी की स्थिति को अभिव्यक्त करते हैं । वस्तुतः प्रेमचंद का समय वह समय था जब स्त्रियों का संसार तेजी से बदल रहा था । राष्ट्रीय आन्दोलनों में स्त्रियों की भूमिका बढ़ रही थी और वह नेतृत्व कर रही थीं । कर्मभूमि की नारी पात्रों में नेतृत्व का गुण हैं, वह इसके लिए बड़े से बड़ा कष्ट उठाने को तैयार रहती हैं । पठानिन हो, सलोनी हो, नैना हो, रेणुका देवी हों, सब अपने तरीके से समाज के लिए कुछ करने को तत्पर हैं । इस आलेख में मैं ‘कर्मभूमि’ की प्रभावशाली नायिका सुखदा को केन्द्र में रखकर बात करना चाहूँगी क्योंकि यह वह उपन्यास है जहाँ मुझे लगता है कि नारी चरित्र अपने सर्वोच्च स्तर पर हैं और आज की स्त्री अपने लिए नयी राह निकाल सकती है । ‘आज जब मणिपुर, मालदा समेत देश के अन्य स्थानों पर भीड़ स्त्रियों को नग्न कर रही है तो दूसरी तरफ ‘कर्मभूमि’ में वह भीड़ पीड़िता की रक्षा के लिए सामने आती है । आज जब महिला पहलवानों को घसीटा जा रहा है, अपराधी खुलेआम घूम रहे हैं तो वहीं इस उपन्यास में मुन्नी द्वारा उसकी आबरू लूटने वालों की हत्या करने पर वह देवी बना दी जाती है । आज जहाँ ज्योति मौर्य और आलोक मौर्य के अनमेल विवाह में छीछालेदर हो रही है तो सुखदा एवं अमरकान्त अपने अनमेल विवाह की समस्या से जूझते हुए अन्ततः एक दूसरे को समझते और स्वीकार करते हैं । वर्तमान समस्याओं एवं परिस्थितियों को देखते हुए ‘कर्मभूमि’ में एक नयी रोशनी दिखायी पड़ती है।’ जब आप प्रेमचन्द को पढ़ते हैं तो आप इन घटनाओं की जड़ तक पहुँच जाते हैं । लेखकीय सीमाओं के बावजूद मुंशी जी ने ऐसे नारी चरित्र गढ़े हैं जो भारत की स्त्रियों के लिए एक मार्गदर्शक बन जाती हैं । इन चरित्रों में कर्मभूमि के नायक अमरकान्त की पत्नी सुखदा, बहन नैना, सकीना और मुन्नी का चरित्र लेती हूँ । सुखदा वह चरित्र है जो होना चाहिए और सकीना वह चरित्र है, जैसा प्रेमचंद चाहते हैं तभी तो अमरकान्त के बाद सलीम भी सकीना के प्रेम में पड़ जाता है। उसके त्याग, समर्पण की बात कहकर कहीं – कहीं पर सुखदा के सामने उसे खड़ा कर देने का प्रयास है मगर सुखदा का तेज, उसकी ओजस्विता, उसका सामर्थ्य वह धारधार तलवार है जो हर एक बाधा को खत्म करने का साहस रखती है ।
अमरकान्त के लिए त्याग, सादा जीवन कोई नयी बात नहीं थी । वह उपेक्षा के वातावरण में पला है । विमाता का तिरस्कार उसने झेला है । सुख उसके लिए नयी बात है इसलिए वह रहे या न रहे, उसे कोई फर्क नहीं पड़ेगा मगर सुखदा ने सुख देखा है, ऐश्वर्य देखा है और फिर भी वह एक झटके में अपने स्वाभिमान के लिए छोड़ देने का सामर्थ्य रखती है । अगर वह अपनी गलती समझती है तो उसे स्वीकार करने की शक्ति उसमें है । नैना के घर में जाने पर मनिराम के कटाक्षों के उत्तर देने का सामर्थ्य सुखदा में ही हो सकता है । मुंशी प्रेमचंद ने अनायास ही ऐसा शानदार चरित्र गढ़ दिया है जिसे वह खुद भी चाहें तो उत्कृष्टता के आसन से नीचे उतार नहीं सकते थे । तो सबसे पहले सुखदा की बात की जाए । मुंशी जी उसका परिचय देते हुए लिखते हैं ‘उसकी माता ने बेटे की साध बेटी से पूरी की थी । त्याग की जगह भोग, शील की जगह तेज, कोमल की जगह तीव्र का संस्कार किया था । सिकुड़ने और सिमटने का उसे अभ्यास न था और वह युवक – प्रवृत्ति की युवती ब्याही गयी युवती प्रवृति के युवक से, जिसमें पुरुषार्थ का कोई गुण नहीं । अगर दोनों के कपड़े बदल दिये जाते, तो एक – दूसरे के स्थानापन्न हो जाते । दबा हुआ पुरुषार्थ ही स्त्रीत्व है ।’ समाज में स्त्रियों के लिए जो गुण निर्धारित कर दिये गये हैं, मुंशी प्रेमचन्द इससे बाहर नहीं जाते मगर यह चरित्र प्रखर भी है, मुखर भी है और आगे बढ़ने का साहस भी रखता है । दूसरी तरफ उपन्यास का नायक कई स्थान पर सुखदा के सामने नहीं ठहरता । एक समय ऐसा भी आता है जब खुद को त्यागी समझने वाला अमरकान्त भी सुखदा की माता के कारण बदलने लगता है जिसका उल्लेख कर्मभूमि में इस प्रकार किया गया है- ‘रेणुका देवी के स्नेह के कारण 5 -6 महीने में बदलने लगता है । वह सरल जीवन का उपासक, अच्छा – खासा रईसजादा बन बैठा, रईसजादों के भावों और विचारों से भरा हुआ । उसकी जेब में दस – बीस रुपये पड़े रहते ।’
सुखदा व्यावहारिक है । वह फिल्में देखना पसन्द करती है । सुखदा कहती है – ‘पराधीनता मुझे भी उतनी ही अखरती है जितनी तुम्हें । हमारे पांवों में तो दोहरी बेड़ियां हैं, समाज की अलग, सरकार की अलग लेकिन आगे – पीछे भी तो देखना होता है ।’ वही अमरकान्त से मुन्नी के बारे में पूछती है जिसे गोरों ने सताया था और अमरकान्त को उसका पता लगाने को कहती है – ‘ऐसी होशियारी से पता लगाओ कि किसी को कानों – कान खबर न हो । अगर घर वालों ने उसका बहिष्कार कर दिया हो, तो उसे लाओ । अम्मा को उसे अपने साथ रखने में कोई आपत्ति न होगी और यदि होगी तो मैं अपने पास रख लूंगी ।’
सुखदा में चुनौती देने की शक्ति है । वह स्वाभिमानी है । स्पष्ट रूप से कहती है कि ‘मैं किसी की आश्रित नहीं रह सकती । मेरा दुःख – सुख तुम्हारे साथ है । जिस तरह रखोगे, उसी तरह रहूँगी । मैं भी देखूंगी , तुम अपने सिद्धांतों के कितने पक्के हो’ – ‘मैं प्रण करती हूँ कि तुमसे कुछ न मागूंगी ।’…आगे वह कहती है – ‘जो आदमी एक महल में रहता है,वह एक कोठरी में भी रह सकता है । फिर कोई धौंस तो न जमा सकेगा ।’ लाला समरकान्त की बातों से आहत सुखदा घर छोड़ने को तैयार हो जाती है और अमरकान्त को कहती है – ‘तुम समझते होगे, मैं गहनों के लिए कोने में बैठकर रोऊँगी और अपने भाग्य को कोसूंगी । स्त्रियां अवसर पड़ने पर कितना त्याग कर सकती हैं, यह तुम नहीं जानते । मैं इस फटकार के बाद इन गहनों की ओर ताकना भी पाप समझती हूँ, इन्हें पहनना तो दूर की बात है ।’ आगे वह कहती है – ‘मैं यह भी कहे देती हूँ कि मैं तुम्हारे भरोसे पर नहीं जा रही हूँ । अपनी गुजर भर को आप कमा लूंगी । रोटियों में ज्यादा खर्च नहीं होता । खर्च होता है आडंबर में । एक बार अमीरी की शान छोड़ दो, फिर चार आने पैसे में काम चलता है ।’ वहीं अमरकान्त का हृदय पहले सकीना और उसके बाद मुन्नी पर फिसलता है और कारण यही है कि उसके पुरुषवादी अहं को इन दोनों का व्यवहार मरहम लगाता है । सकीना के साथ जब अमरकान्त को पठानिन देख लेती है तो अमरकान्त दूसरा विवाह करने और धर्म बदलने को भी तैयार रहता है और परिस्थितियों के कारण पलायन कर घर भी छोड़ देता है मगर नायक फिर भी नायक है..। इधर अमरकान्त के घर छोड़ने पर जब सवाल पूछे जाता हैं तो लाला समरकान्त वही कहते हैं जो युगों से कहा जाता रहा है – ‘कृष्ण भगवान ने एक हजार रानियों के साथ नहीं भोग किया था -राजा शान्तनु ने मछुए की कन्या से नहीं भोग किया था – कौन राजा है, जिसके महल में दो सौ रानियां न हों । अगर उसने किया तो कई नई बात नहीं की । तुम जैसों के लिए यही जवाब है । समझदारों के लिए यह जवाब है कि जिसके घर में अप्सरा सी स्त्री हो, वह क्यों जूठी पत्तल चाटने लगा – मोहन भोग खाने वाले आदमी चबैने पर नहीं गिरते ।’ अब इसे क्या समझा जाए…क्या नारी पात्रों के सन्दर्भ में ऐसे कथन की आशा लेखक से की जा सकती है…सम्भवतः नहीं ।अमर के घर छोड़कर चले जाने को सुखदा विश्वासघात मानती है तथा उसका मन अमर के प्रति उपेक्षा से भर जाता है। इस परिस्थिति में उसका आत्माभिमान बढ़ जाता है, सुखदा ने झुकाना नहीं सीखा। वह अमर को पत्र नहीं लिखती है। वह पिता से अलग होने के बाद अमर की इच्छा के विरुद्ध भी बालिका विद्यालय में 50 रुपये पर नौकरी कर लेती है। अमरकान्त अगर किसानों के अधिकार के लिए जेल जाता है तो गरीबों के लिए मकान बनाने हेतु संकल्प लेने वाली सुखदा को शासन भय से जेल में डालता है क्योंकि अछूतों के मंदिर प्रवेश को लेकर उसकी नेतृत्व क्षमता वह पहले देख चुका है । अछूतों पर जब गोलियाँ चलवाई जाती हैं तो वह खुलकर विद्रोह करती है और आन्दोलन का नेतृत्व भी और अन्ततः मंदिर के दरवाजे अछूतों के लिए खोल दिए जाते हैं और वह पूरी तरह बदल जाती है । अब सुखदा नगर की नेत्री है । नगर में जाति – हित के लिए जो काम होता है, सुखदा के हाथों उसका श्रीगणेश होता है । कोई उत्सव हो,कोई परमार्थ का काम हो, कोई राष्ट्र का आंदोलन हो, सुखदा का उसमें प्रमुख भाग होता है । मादक वस्तु बहिष्कार, भजन मंडली, महिलाओं का घर से निकलना और इन गतिविधियों में शामिल होना, सुखदा इनकी प्रेरणा बन जाती है । सुखदा प्रश्न उठाना जानती है – एक स्थान पर प्रो. शांति कुमार से पूछती है -‘ मैं आपसे बेशर्म होकर पूछती हूं, ऐसा पुरुष जो स्त्री के प्रति अपना धर्म न समझे, क्या अधिकार है कि वह स्त्री से व्रत – धारिणी रहने की आशा रखे – आप सत्यवादी हैं । मैं आपसे पूछती हूं, यदि मैं उस व्यवहार का बदला उसी व्यवहार से दूं तो आप मुझे क्षम्य समझेंगे ? ।’ लाला समरकान्त बीमार होते हैं तो वही उनकी देखभाल भी कर लेती है । वस्तुतः सुखदा आधुनिकता और आदर्श का बेजोड़ संगम है ।
प्रो. शांति कुमार के पत्र से जब अमरकांत को आन्दोलन और सुखदा की जानकारी मिलती है तो वह उत्तर में लिखता है और स्वीकार करता है कि सुखदा को पहचानने में उससे भूल हो गयी है । वह लिखता है – ‘मैंने उसे क्या समझा था और वह क्या निकली । मैं अपने सारे दर्शन और विवेक और उत्सर्ग से वह कुछ न कर सका, जो उसने एक क्षण में कर दिखाया । कभी गर्व से सिर उठा लेता हूं, कभी लज्जा से सिर झुका लेता हूं ।’…आगे वह लिखता है -‘ मैं आपसे सत्य कहता हूं, सुखदा मुझे नचा रही है । उस मायाविनी के हाथों में कठपुतली बना हुआ हूं । पहले एक रूप दिखाकर उसने मुझे भयभीत कर दिया और अब दूसरा रूप दिखाकर मुझे परास्त कर रही है ।’ गरीबों के लिए मकान बनाने हेतु जब आंदोलन की जरूरत पड़ती है और जब इसका कारण सुखदा को उसकी गिरफ्तारी होने लगती है तो लाला समरकांत के लाख कहने पर भी सुखदा जमानत की बात स्वीकार नहीं करती बल्कि जेल जाना स्वीकार कर लेती है …वह उसी राह पर चल पड़ती है जिस मार्ग पर अमरकान्त चल रहा था । प्रेमचंद लिखते हैं – ‘अब दोनों एक ही मार्ग के पथिक हैं, एक ही आदर्श के उपासक हैं । उनमें कोई भेद नहीं है,कोई वैषम्य नहीं है । आज पहली बार उसका अपने पति से आत्मिक सामंजस्य हुआ ।’
वहीं अमरकान्त के साथ भी यही स्थिति थी – ‘शासन का वह पुरुषोचित भाव मानो उसका परिहास कर रहा था । सुखदा स्वच्छंद रूप से अपने लिए एक नया मार्ग निकाल सकती है, उसकी उसे लेशमात्र भी आवश्यकता नहीं है, यह विचार उसके अनुराग की गर्दन को जैसे दबा देता था । वह अब अधिक से अधिक उसका अनुगामी हो सकता है ष सुखदा उसे समर क्षेत्र में जाते समय केवल केसरिया तिलक लगाकर संतुष्ट नहीं है, वह उससे पहले समर में कूदी जा रही है, यह भाव उसके आत्मगौरव को चोट पहुंचाता था ।’
गरीब मजदूरों के रहने के लिए वह मकान की योजना बनाती है और क्रियान्वित करने की दिशा में प्रयत्न करती है। अंत में वह निःस्वार्थ कर्म में विश्वास करती है। हर एक शुभ कार्य में वह ईश्वर का महत्वपूर्ण हाथ मानती है। सुखदा का चरित्र इस तथ्य को प्रकट करता है कि श्रद्धा, प्रेम, सम्मान, धन से नहीं बल्कि सेवा से ही मिल सकता है। अपनी सेवा-भावना के कारण ही घर और बाहर दोनों के दायित्व को वह भलीभांति निभा पाती है। परिवार के लिए वह एक ऐसी स्त्री का आदर्श बनती है जो आज्ञाकारिणी पुत्रवधू भी है, स्नेही भाभी भी है और पति की प्रेरणा भी है। इसके साथ ही और इन सबसे ऊपर वह एक जनसेविका भी है। वह ‘स्व’ के तल से ऊपर उठकर ‘पर’ के तल तक पहुँचने वाली एक महान नारी के रूप में सामने आती है।
उपन्यास का दूसरा सशक्त चरित्र है मुन्नी । मुन्नी …जो अपने साथ दुष्कर्म करने वालों को मार डालती है और अदालत में निर्भीक होकर अपना अपराध स्वीकार भी कर लेती है और इसका प्रभाव भी पड़ता है । अदालत में मुन्नी को बचाने के लिए उसे पागल बताया जाता है और लोग साथ होते हैं । इस प्रकरण में एक आदर्श समाज की स्थिति दिखाई पड़ती है जब प्रेमचंद लिखते हैं ‘ जब पुलिस पगली को लेकर चली तो दो हजार आदमी थाने तक उसके साथ गए । अब वह जनता की दृष्टि में साधारण स्त्री न थी । देवी के पद पर पहुँच गयी थी । किसी दैवी शक्ति के बगैर उसमें इतना साहस कहां से आ जाता ।’
सुखदा उसके समर्थन में कहती है – ‘इस भिखारिन का कोई रक्षक न था । उसने अपनी आबरू का बदला खुद लिया । तुम जाकर वकीलों से सलाह लो, फांसी न होने पाए चाहे कितने ही रुपये खर्च हो जाएं ।’ रेणुका देवी मुकदमे का खर्च उठाती हैं । यहाँ एक आदर्श समाज है जहाँ मुन्नी का पति उसके पक्ष में खड़ा होता है, उसके साथ हुई घटना के बाद मुन्नी की और अधिक इज्जत करने लगता है, साथ भी रहना चाहता है मगर मुन्नी खुद को उसके योग्य नहीं समझती और आत्महत्या के लिए गंगा में छलांग लगा देती है मगर बचा ली जाती है और अछूतों की बस्ती में रहने लगती है जहाँ उसे पूरा सम्मान मिलता है मगर एक दिन पति को खोजती हुई जाती है तो उसकी लाश ही मिलती है जो उसकी खोज में पागल हो गया था । यहीं अमरकान्त से उसकी दोबारा भेंट होती है । मुन्नी अमरकान्त के लिए किसी से भी लोहा लेने को तैयार है । जब गाय लेकर लोग आते हैं और अमरकान्त इसे रोकना चाहता है तो उसके समर्थन में गाँव वालों से लड़ती है और जब उसे ताना मिलता है कि क्या उसकी सगाई ठहर गयी है तो वह तीव्र विरोध करती है – ‘उनसे सगाई ही कर लूँगी तो क्या तुम्हारी हंसी हो जाएगी – और जब मेरे मन में वह बात आ जाएगी, तो कोई रोक भी न सकेगा । अब इसी बात पर मैं देखती हूँ कि कैसे घर में सिकार जाता है । पहले मेरी गर्दन पर गंडासा चलेगा ।’ वह गाय के पास बैठकर गंडासा चलाने की चुनौती दे डालती है । अमरकान्त की समाज सुधार यात्रा को मुन्नी का पूरा सहयोग मिलता है और वह भी जेलयात्रा करती है ।
कर्मभूमि का तीसरा चरित्र है नैना । नैना स्वयं अमरकान्त से प्रेम करती थी और अमरकान्त के हृदय में अगर घर वालों के लिए कहीं कोई कोमल स्थान था,तो वह नैना के लिए था । नैना की सूरत भाई से इतनी मिलती – जुलती थी, जैसे सगी बहन हो । इस अनुरूपता ने उसे अमरकान्त के और भी समीप कर दिया था । अमर की फीस के लिए वह अपने कड़े देने को तैयार रहती है । अमरकान्त के लिए वह समरकान्त का घर भी छोड़ देती है । जब आन्दोलन को सम्भालने का समय आता है तो नैना सामने आती है । बेहद शांत और संकोची स्वभाव की नैना न सिर्फ आन्दोलन के समय जनता का नेतृत्व करती है बल्कि उसका पति मनीराम उसकी हत्या भी कर देता है और इस तरह वह अपनी वीरता का परिचय देती है ।
उपन्यास में सकीना, पठानिन, सलोनी जैसे पात्र भी हैं जो प्रेमचंद की कल्पना के अनुरूप हैं, विशेषकर सकीना, जो वैसा प्रेम कर सकती है जैसा पुरुषों को चाहिए । अमरकान्त पहले सकीना के प्रति कमजोर हुआ, फिर मुन्नी से उसे मोह हुआ मगर सुखदा का चरित्र इतना उज्ज्वल है कि अन्ततः वह सुखदा के पास ही लौटता है । आज के परिप्रेक्ष्य में कहूँ तो स्त्री को दूसरों से अपने लिए सम्मान की उम्मीद न रखकर खुद को मजबूत बनाना चाहिए जिससे न सिर्फ वह अपनी रक्षा कर सके बल्कि अपने निर्णय पूरे आत्मविश्वास के साथ, निडरता के साथ ले सके । चुनौतियों का सामना कर सके समय आने पर समाज की रक्षा कर सके और नया समाज गढ़ सके और इसकी राह ‘कर्मभूमि’ से खुलती है ।