Saturday, July 26, 2025
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आप भी पहन सकते हैं ये 5 भारतीय प्रिंट्स

भारतीय  फैशन सिर्फ कपड़ों की बनावट और उसके टाइप्स तक ही सीमित नहीं है, बल्कि ये अपने भव्य और खूबसूरत प्रिंट्स और हैंडलूम के लिए भी जाना जाता है. लेकिन जब बात पुरुषों के फैशन की आती है तो उनके ऑप्शन कुर्ता और चूड़ीदार तक सीमित हो जाते हैं। वैसे आपको जानकर हैरानी होगी कि कई ऐसे खूबसूरत इंडियन प्रिंट्स हैं आप भी पहन सकते हैं –

इकत –डबल साइडेड इकत (जिसमें दोनों तरफ काम किया रहता है) लंबे समय से औरतों के पसंदीदा प्रिंट्स में से एक है। कई बड़े डिजाइनरों के कलेक्शन शर्ट्स और कुर्ता के अलावा ये प्रिंट कभी-कभार टी-शर्ट पर भी दिख जाएगा, जो देखने में बेहद लाजवाब लगता है। अगर आपने अबतक इसे पहना नहीं है तो अब समय आ गया है कि बिना देर किए इसे अपने वॉर्डरोब का हिस्सा बनाएं।

Fabindia-Men-Navy-Ikat-Short-Kurta_45ebf5ccea1bc72f2ebe9abe46ff35ba_imagesअजरक –सिन्ध में जन्मा ये प्रिंट लंबे समय से इंडियन फैशन का ज़रूरी हिस्सा रहा है। जहां औरतें इस प्रिंट्स के कुर्ते और ड्रेसेज़ को काफी पसंद करती हैं वहीं पुरुषों को भी इन प्रिंट्स की अहमियत धीरे-धीरे समझ आने लगी है. डार्क बैकग्राउंड के साथ फ्लोरल और ज्योमेट्रिकल मोटीफ्स से बने इस प्रिंट का पैर्टन एक लय में होता है। इस प्रिंट के शर्ट्स और कुर्ते आपको मार्केट में आसानी से मिल जाएंगे. हालांकि अभी इस प्रिंट ने टी-शर्ट की दुनिया में कदम नहीं रखा है. कॉटन फैब्रिक पर बना ये प्रिंट आपके हर दिन के लुक में एक स्टाइल और क्लास लाता है।

ajrak menसांगानेरी प्रिंट –इस प्रिंट का नाम जयपुर के एक छोटे से शहर सांगानेर पर पड़ा है। इस प्रिंट में आमतौर पर सफेद कपड़े पर ब्लॉक प्रिंटिंग की जाती है, इस ब्लॉक से कपड़े पर भारतीय और मुगल मोटिफ्स के पर्मनेन्ट पैटर्न बनते हैं। जहां इस प्रिंट की साड़ी, बेडशीट और और कुर्तियां काफी आम हैं वहीं, पुरुष भी इस प्रिंट को अलग-अलग तरीके से अपने वॉर्डरोब का हिस्सा बना सकते हैं। इस प्रिंट से आपके एक सिंपल कुर्ते में जहां चार्म आ जाती है वहीं, इस प्रिंट वाले शर्ट्स काफी शानदार लगते हैं. इसके अलावा, इस प्रिंट में आपको कई खूबसूरत नेहरू जैकेट और बंदी मिल जाएंगे।

sanganeriपेज़ली प्रिंट -लमध्यकालीन पर्शिया में जन्मा पेज़ली प्रिंट (बेल और फूल-पौधों वाले प्रिंट्स) इंडिया में मुगल शासन के दौरान आया और हमारे ट्रेडिशन का हिस्सा बन गया. हालांकि लंबे समय से ये प्रिंट औरतों के वॉर्डरोब का हिस्सा रहा है, लेकिन पिछले कुछ सालों में दुनियाभर के कई मेन्सवेयर डिज़ाइनर्स इस प्रिंट्स अपने कलेक्शन का हिस्सा बना चुके हैं. पश्चिमी देशों में इस प्रिंट के ब्लेज़र, टाइ और यहां तक कि सूट्स भी मिल जाएंगे. अगर आपको लगता है कि इस प्रिंट से बना ब्लेज़र कुछ ज़्यादा हो जाएगा, तो एक सिंपल शर्ट या कुर्ता एक बार ज़रूर पहनें।

बाटिक प्रिंट –बंगाल में यह प्रिंट काफी पहना जाता है और यह पुरुष भी पसंद करते हैं। आमतौर पर दिलचस्प रंगों से तैयार किया जाने वाला बाटिक प्रिंट आदमियों के लिए एक कूल ऑप्शन है. बाटिक शर्ट्स लंबे समय से मार्केट में छाए हुए हैं. कई इंडियनवेयर ब्रैंड्स बाटिक प्रिंट्स के साथ पुरुषों के लिए आउटफिट तैयार कर रहे हैं. कैज़ुअल डे आउट पर ट्राउज़र्स के साथ पेयर किया ये प्रिंट आपके स्टाइल और लुक को बढ़ाने का काम करेगा।

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सुकीर्ति गुप्ता के साहित्य के केन्द्र में नारी:वसुमति डागा

महानगर  की संस्था साहित्यिकी ने मंगलवार,21 जून2016 को भारतीय भाषा परिषद में संस्था की संस्थापिका स्वर्गीया सुकीर्ति गुप्ता की पुण्यतिथि के अवसर पर उनके व्यक्तित्व एवं कृतित्व का स्मरण करते हुए एक गोष्ठी का आयोजन किया।अपने स्वागत भाषण में सभी का स्वागत करते हुए किरण सिपानी  ने स्वाभिमान एवं दायित्व बोध से सम्पन्न कवयित्री,कथाकार,, प्राध्यापिका,रंगकर्मी सुकीर्ति  गुप्ता को  महानगर की अनमोल धरोहर कहा।
गोष्ठी की प्रमुख वक्ता डॉ. वसुमति डागा  ने कहा कि उनके साहित्य के केन्द्र में नारी है।महिलाओं  का दोयम दर्जे का स्थान उन्हें स्वीकार्य नहीं था।यही कारण है कि ‘साहित्यिकी’ जैसी संस्था के माध्यम से वे एक ऐसे संगठन की स्थापना करना चाहती थीं जहाँ पुरुष सत्तात्मक समाज का दबाव न हो।सुकीर्ति जी की कविताएं महानगरीय त्रासदी, प्रकृति की रम्यता,समाज के तीनों वर्गों के चित्रण,, नारी के अनेक चित्रों के साथ-साथ बिम्बात्मकता,भावनात्मकता,वर्णनात्मकता एवं तत्सम शब्दावली के अनोखे रंगों से सुसज्जित हैं। विद्या भंडारी एवं संगीता चौधरी ने उनकी कविताओं की सुन्दर आवृत्ति की।वाणी श्री बाजोरिया एवं प्रमिला धूपिया ने स्व रचित कविताओं के माध्यम से स्मरणांजलि दी।विनोदिनी गोयनका,माया गरानी,एवं सरोजिनी शाह ने उनसे संबंधित संस्मरणों को उद्धृत किया।अध्यक्षीय वक्तव्य देते हुए कुसुम जैन ने सुकीर्ति गुप्ता को स्वयं में एक संस्था की संज्ञा देते हुए कहा कि हर  गोष्ठी में उपस्थित रहकर सक्रिय भागीदारी करना एवं साहित्यिक संस्कार देना उनकी अनोखी विशेषता थी।कार्यक्रम का सफल संचालन अमिता शाह ने किया एवं धन्यवाद ज्ञापन रेणु गौरीसरिया ने किया।

रंगकर्मी ने किया बदनाम मंटो का मंचन

शहर के आइसीसीआर हॉल में रंगकर्मी की टीम ने हाल ही में मंटो की कहानियों को अपने अभिनय से जीवंत किया। गौरतलब है कि लगभग एक दशक पहले रंगकर्मी की प्रमुख उषा गागुंली ने मंटो के कहानियों पर आधारित एक नाट्य श्रृंखला की शरूआत की थी, जिसके मार्फत कोलकाता के दर्शक मंटो की कहानियों को मंचित कर स्त्रियों के जीवन के काले पक्षों का उद्घाटन किया जाता रहा है। पिछले दिनों इसी श्रृंखला की पहली कड़ी बदनाम मंटो में काली शलवार, लाइसेंस और हतक कहानियों का मंचन कर मंटो के लेखन के कुछ राज उद्धाटित करने का प्रयास रंगकर्मी ने किया।

काली शलवार में सुल्ताना की भूमिका में कल्पना ठाकुर झा ने अपने अभिनय का लोहा एक बार फिर मनवाया, सुल्ताना की सहेली की भूमिका में करूणा ने भी अपने अभिनय के छाप छोड़े। एक दूसरे नाटक हतक में सेंजुति ने सुगंधी की भूमिका में बदनाम गली की स्त्री के पात्र को न केवल मंच पर सजीव किया वरन् अपने अभिनय से मंटो की स्त्री के चरित्र को उजागर करने में सफल रहीं।

अंत में रंगकर्मी की प्रमुख उषा गांगुली ने कोलकाता के दर्शकों का धन्यवाद दिया और कहा कि बदनाम मंटों की श्रृंखला की अगली कड़ी के साथ वे पुनः उपस्थित होंगी।

फ्रीडा ने ‘लेट गर्ल्स लर्न’ के लिए मिशेल ओबामा से मिलाया हाथ

हॉलीवुड एक्ट्रेस फ्रीडा पिंटो ने सरकारी पहल ‘लेट गर्ल्स लर्न’ के लिए अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा की पत्नी मिशेल ओबामा से हाथ मिलाया है। इस पहल का उद्देश्य लड़कियों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा दिलाने में मदद करना है. फ्रीडा ने बताया कि वह जून के आखिरी और जुलाई की शुरुआत में ‘लेट गर्ल्स लर्न’ पहल के हिस्से के रूप में मिशेल ओबामा, उनकी बेटियों- साशा, मालिया और उनकी दादी मारियन रॉबिनसन के साथ लाइबेरिया, मोरक्को और स्पेन की यात्रा करेंगी। इस यात्रा के दौरान फ्रीडा को युवा लड़कियों से शिक्षा और स्कूली पढ़ाई पूरी करने के महत्व पर बात करनी होगी. लाइबेरिया से इस पहल की शुरुआत करते हुए फ्रीडा और मिशेल एक चर्चा में हिस्सा लेंगी. इस दौरान लाइबेरिया की राष्ट्रपति एलेन जॉनसन सरलीफ भी उनसे मुलाकात करेंगी। पहल के अगले चरण मोरक्को में मिशेल और फ्रीडा का साथ हॉलीवुड एक्ट्रेस मेरिल स्ट्रीप देंगी. इस दौरान वे उन चुनौतियों पर विचार-विमर्श करेंगी, जिनका अफ्रीकी देश की महिलाएं आए दिन सामना करती हैं।

 

महिला लड़ाकू पायलट छुड़ाएंगी दुश्मनों के छक्के

भारतीय वायु सेना के इतिहास ने ऐतिहासिक क्षण देखा क्योंकि  महिला लड़ाकू पायलटों के पहले दस्ते को कड़ी ट्रेनिंग के बाद अहम जिम्मेदारी सौंपी दी गयी है। इंडियन एयरफोर्स में अभी तक महिला पायलट केवल ट्रांसपोर्ट विमान और हेलीकॉप्टर ही उड़ाती रहीं हैं लेकिन अब देश को तीन पहली महिला फाइटर पायलट मिली हैं जो अब सुखोई और तेजस जैसे फाइटर प्लेन से दुश्मनों के छक्के छुड़ाती नजर आएंगी. इंटरनेशनल विमेन्स डे के मौके पर एयरफोर्स चीफ अरूप राहा ने पहले ही इसकी घोषणा की थी।

18 जून को रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर वायु सेना की हैदराबाद स्थित अकादमी में इस दस्ते की सभी तीन महिला पायलटों भावना कांत, अवानी चतुर्वेदी और मोहाना सिंह को वायु सेना की लड़ाकू पायलट शाखा में विधिवत रूप से शामिल किया ये तीनों महिला अधिकारी पिछले एक साल से इस अकादमी में लड़ाकू पायलट के दूसरे चरण का प्रशिक्षण ले रही थीं। इनकी 6 महीने की ट्रेनिंग पिलेट्स ट्रेनर पर हुई और 6 महीने की ट्रेनिंग किरण ट्रेनर पर हुई। 55 घंटे पिलेट्स पर उड़ान भरने के बाद 87 घंटे किरन ट्रेनर पर ट्रेनिंग हुई. वायु सेना में कमीशन के बाद इन महिला पायलटों को बीदर में एक साल की हाई टेक ट्रेनिंग एडवांस हॉक पर दी जाएगी और जून 2017 से ये लडाकू विमान उड़ाना शुरू कर देंगी. पिछले एक साल से हैदराबाद में ट्रेनिंग के दौरान इनकी ट्रेनिंग सुबह 4 बजे से शुरू होकर रात 10 तक बजे चल रही थी। अवनी मध्य प्रदेश के रीवा से हैं. उनके पिता एग्जीक्यूटिव इंजीनियर और भाई आर्मी में हैं। वहीं भावना बिहार के बेगुसराय की रहने वाली हैं। मोहना गुजरात के वडोदरा की हैं। उनके पिता एयरफोर्स में वारंट ऑफिसर हैं। अवनी कहती हैं कि यह एक बहुत ही एडवेंचरस लाइफ है। कोई भी एयर फोर्स अपने फाइटर्स से ही डिफाइन होती है। उधर मोहना कहती हैं कि फाइटर पायलट बनना उनका बचपन का सपना था। 1991 में पहली बार महिला पायलट्स ने हेलिकॉप्टर और ट्रांसपोर्ट एयरक्राफ्ट उड़ाना शुरू किया था। 2012 में 2 विमेन फ्लाइट लेफ्टिनेंट अल्का शुक्ला और एमपी शुमाथि ने लड़ाकू हेलिकॉप्टर्स के लिए ट्रेनिंग पूरी की थी। वायु सेना में अभी महिलाओं को फ्लाइंग ब्रांच की परिवहन तथा हेलिकॉप्टर विंग, नेविगेशन, एरोनॉटिकल इंजीनियरिंग, प्रशासन, लॉजिस्टिक्स, लेखा और शिक्षा विभाग में ही कमीशन दिया जा रहा था।

 

माधवी श्री की कुछ कविताएं

 

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मै ज़िन्दगी की दौड़

नहीं दौड़ सकती

तुम्हारे साथ।

 

मेरी अपनी कुछ मजबूरियाँ है

मेरी अपनी कुछ बंदिशे है

तुमेह समझा नहीं सकती अभी ,

शायद कल तुम समझ पाओ।

 

इसलिए आज तुम्हारे लिए

शुभकामनाये लिए मेरा मन

अलविदा कहता है तुम्हें।

 

जहाँ रहो , तुम

सुखी रहो !

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अपनी कहानी भी अजीब है –

जिसे प्यार किया

पा न सकी ,

जिसने मुझसे प्यार किया

उसे अपना न सकी।

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दिल में अँधेरा होतो

बाहर रोशनी की जरूरत

होती है।

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पुरुष तुम्हें अपने “अभिमान ” से

इतना प्रेम होता है।

किसी स्त्री से तुम

क्या प्रेम कर पाओगे ?

स्त्री और अभिमान में ,

तुम अपना “अभिमान ”

चुनते हो –

फिर स्त्री को विश्वासघातिनि क्यों

कहते हो ?

 

 

###################################

हो सकता है

तुमेह उम्मीद हो –

मै तुमेह फ़ोन करू।

ऐसी उम्मीद मुझे भी

तो हो सकती है।

जब हम एक दूसरे की

उम्मीद पर खरा नहीं उतरे

तो अब एक दूसरे को

कोसने से क्या फायदा ?

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जब मै जीवन के कठिनतम

दौर से गुजर रही थी।

तब तुम शिला  की तरह

एक तरफ बैठे

तमाशा देख रहे थे।

सोचा , गिर कर

तुम्हारे पास चली आउगी।

हर जोगी इस ” पुरुष प्रधान समाज ” से।

नारी का जीवन यूँ भी

कठिन होता है।

थोड़ी कठनाई

तुमने और बढ़ा दी।

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तुम कहते हो

दर्द सिर्फ तुम्हें  मिला।

तुमने कभी अपनी

खुशियाँ गिनी ?

कभी दुआओं की

लिस्ट बनाई ?

एक बार इसे गिनो ,

दुःख कम लगेगा

तुम्हें अपनी झोली में।

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औरत -मर्द का रिश्ता

बड़ा नाजुक होता है।

विश्वास की डोर पर

टिका होता है।

आपसी सहयोग , श्रद्धा ,विश्वास

और सहभागिता पर

निर्भर करता है।

कही तो कुछ कम  होगा –

तभी हम चल न सके साथ – साथ।

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मुझे अभिमान है खुद पर

बिना खुद पर अभिमान करे

क्या कोई जी सकता है ?

 

प्यार भी अभिमान के साथ किया ,

जीऊँगी  भी अभीमान

मरूंगी भी अभिमान के साथ।

 

एक नारी अभिमान के साथ भी

किसी पुरुष से प्रेम कर सकती है।

हर वक़्त समर्पित नारी होना

जरुरी तो नहीं ?

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हर वक़्त कोसते हो

खुद को , परिस्थितियों को।

इतना कुछ पाकर भी

दुखी रहते हो।

दूसरो पर दया

करने से पहले –

खुद पर

दया करना सीखो।

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इस बार होली पर

तुम्हारे प्यार से

रंग गयी।

########################

अभिमान सिर्फ पुरुषो

का ही तो नहीं होता है।

 

स्त्री भी रख सकती है

खुद पर थोड़ा सा अभिमान

 

बस उसकी “कीमत ”

थोड़ा ज्यादा होती है

या यूँ कहे –

उसे “चुकानी” पड़ती है।

########################

खुद के ऐश्वर्या पर

इतना अभिमान है तुम्हें  !

 

थोड़ा वक़्त दो  ,

तपती  धूप  में

जल कर

 

अपना साम्राज्य

बनाना मुझे भी आता है।

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बहुत कठिन होता है

पुरुष  के लिए

अपने  “अंह ” के ऊपर

स्त्री को स्थान देना।

 

पर  भी हासिल

करके  दिखलाऊगी

मैं।

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ज़िन्दगी ने इतना वक़्त

ही नहीं दिया कि

खुलकर रो सकू।

इतना समय ही नहीं मिला कि

अपनी तकलीफों पर

महरम लगा सकूं।

############################

हर बार किसी स्त्री को

अपना अभिमान क्यों

खोना पड़ता है –

किसी पुरुष का

सानिध्य पाने के लिए ?

 

 

############################

तुम मेरी तकलीफो पर

मरहम क्या लगाओगे ?

 

अपनी कविताओ और

काम से फुर्सत कहाँ है तुम्हें ?

 

कविता लिखना आसान है ,

पर किसी के दर्द पर

मरहम लगाना कठिन

बहुत कठिन काम है।

 

इसके लिए पुरस्कार

नहीं मिला करते।

प्रशस्ति पत्र नहीं पढ़ा जाते

आम सभा में।

 

मिलती  है तो बस

मन को एक अकूत शांति।

एक गहरी शांति।

 

(कवियत्री वरिष्ठ पत्रकार हैं)

 

कल्पना झा की कुछ कविताएं

kalpana di

विवेकानंद फ्लाईओवर टूटने पर

माँ ने कुछ दवाइयां मंगवाई थी

और कहा था कि नहाने का मग टूट गया है
लेती आना
बेटा नये क्लास में गया है
उसके लिए नये जूते खरीदने हैं
कल रात ऑफिस से देर से लौटे थे तुम
नाराज़ होकर मुँह फेर कर सो गई थी मैं तुमसे
आज तुम्हारी दी हुई वो नई नीली साड़ी पहन लूंगी
फ़िर सिनेमा देखने चलेंगे
ओह, छत पर पसारे कपड़े उतारे नहीं अब तक
कहीं बारिश हो गई तो घर लौट कर फ़िर सुखाने होंगे उन्हें
पड़ोस की आंटी  के यहाँ पोती हुई है
उसके लिए एक प्यारा सा झुनझुना लूंगी
इस गर्मी आम का अचार डालूंगी
हैलो
सुनो
ये मेरे ऊपर कुछ पहाड़ सा गिर गया है
पर जिंदा हूँ मैं अभी
हाँ जहाँ धूल का ढेर है वहीँ
बायीं ओर ? लोहे हैं
दाहिनी ओर? सीमेंट और बालू
सामने धूल  का अम्बार और कुछ तड़पते हाथ पैर
सुनो, सुन पा रहे हो मुझे
यहाँ बहुत शोर है
सुनो, जल्दी आओ
मेरी पसलियों में कुछ धंसता चला जा रहा है
फेफड़ों में धूल भर चुकी है
सुनो वो बेटे के… स्कूल की फीस…
सुनो…..
सु……….नो …..
सु …..न
…………
………
……..

अब घर नहीं आते पापा
Father-Daughter-Beach

घर के बाहर वाली सड़क पर जब खड़ी होती हूँ अक्सर

दूर धुंधलके से पिता आते हुए दिखते हैं

देर रात गए….
उन्हें देर हो जाया करती थी!
उनके थके हाथों में मटर बादाम
या गर्म जलेबियों का थैला भी दिखता है मुझे
जिसे लपक कर झटपट गायब कर दिया करते थे हम

खिड़की के बाहर दूर तक घास दिखाई पड़ती थी तब
और हर इतवार पिता उसके पार वाले तालाब से नहा कर घर आते थे
उस पूरे रास्ते में एक पगडण्डी सी बन गई थी
जो भीग जाया करती थी

कई कई शाम ढेरों खुशबू लिए आती है
खेल की फुरफुरी, हलवे की नरमी
अख़बारों की फड़फड़ाहट
कुर्सियों या तिपाई पर बैठ कर बतियाते हुए
बहुत ऊँचे ऊँचे लोग
सिक्कों की खनखनाहट सब लेकर पास बैठती है

कई बार अंधेरी रातों में पिता की कराह सुनाई देती है
सहलाने पर एक ढांचा महसूस होता है
उनकी गहरी आँखें अँधेरे से झांकती दिखती हैं कई बार
नींबू निचोड़े दाल की महक सराबोर कर देती है एकबारगी
एक बार सपने में पंखा माँगा था उन्होंने
अगले दिन उनके चिर साथी
सत्तू और चने के साथ दान कर आई थी

रास्ते वही हैं,
बस  समय-समय पर उनकी थोड़ी मरम्मत कर दी जाती है
पगडण्डी जो उन्होंने बनाई थी, धीरे धीरे मिटती गई
घर का पता अब भी वही है
बस अब पिता नहीं लौटते

गायब होता जा रहा है सब कुछ धीरे धीरे
हर शाम गायब हो जाती है एक सुबह
और हर सुबह किसी काले खोह में गुम होती जाती है एक रात
एक के बाद एक लगातार

धीरे धीरे सारी रातें और सारी सुबहें गुम हो जाएँगी
जैसे गुम हुए पिता, उनके पिता, उनके पिता
आराम कुर्सी कभी कभी हवा से हिल जायेगी
पलंग के कोने में दीवार से सटकर लाठी पड़ी रहेगी
और मेरे कानो में बस गूंजता रहेगा
रिंका रिंका रिंका ।

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#कल्पना

(कवियत्री प्रख्यात रंगकर्मी तथा गायिका हैं। फिलहाल एक केन्द्रीय संस्थान में वरिष्ठ अनुवादक के रूप में कार्यरत )

नीलाम्बर ने कविता के नाम की एक अभूतपूर्व साँझ

नीलांबर संस्था द्वारा एक सांझ कविता की विषय पर आईसीसीआर सभागार में एक काव्यपाठ एवं कवि पाठक-संवाद का आयोजन किया गया। इस अवसर पर कविता को लोकप्रिय बनाने के लिए संस्था की ओर से मल्टीमीडिया का सकारात्मक उपयोग कर उसे डिजीटल रूप में प्रस्तुत किया गया। एक सांझ कविता के पहले आयोजन में अशोक सिंह (दुमका), नीलम सिंह, नीलकमल, विमलेश त्रिपाठी, आनन्द गुप्ता और संजय राय ने अपनी कविताओं का पाठ किया। इन कवियों का परिचय और इनकी कविताओं के पाठ बिल्कुल अभिनव ढंग से कराया गया। इस कार्यक्रम में आलोचक को तौर पर प्रो. वेदरमण, प्रियंकर पालीवाल, प्रफुल्ल कोलख्यान ने कविताओं के संबंध में अपने अपने वक्तव्य रखे। प्रो. वेदरमण ने कहा – कविता मूलत:  सिर्फ सुंदर शब्दों का संचयन नहीं है, और संवदनाओं की अतिरेकता कविता के तत्वों को कृत्रिम कर देता है। प्रियंकर पालीवाल ने कहा कि जहाँ बाजार साहित्य को हाशिये पर ला रहा है, वहीं नीलांबर की ये पहल साहित्य मुख्यधारा में शामिल करने की पहल है। प्रफुल्ल कोलख्यान ने कविता के लोक तत्वों पर बात रखते हुए कहा कि इन कवियों से असीम संभावनाएं है। संगोष्ठी के अध्यक्ष प्रो. शंभुनाथ ने कहा ‘ सचमुच कविता की ये सुंदर सांझ थी, यह हमें आशान्वित करती है कि कविता जीवन के बचाने लिए प्रतिबद्ध है। कविता के इस नए रूप से जीवन को देखा जाना अभूतपूर्व है। मैंने ऐसा कार्यक्रम आज तक नहीं देखा था। इस कार्यक्रम में मुक्तिबोध, सर्वेश्वर और अरूण कमल की कविताओं की पर आधारित विडियो फिल्म भी दिखाया गया। इस कार्यक्रम में डिजीटल माध्यम से चर्चित कवियत्री और लेखिका रश्मि भारद्वाज (दिल्ली), समीक्षक निवेदिता भावसर (उज्जैन), कवि एवं लेखक वीरू सोनकर (कानपुर), लेखक एवं प्रो. संजय जायसवाल और अर्चना खंडेलवाल (कोलकाता) एवं राजभाषा अधिकारी विनोद यादव ने भी महत्वपूर्ण योगदान दिया। श्रोता के रूप में आये कवि राज्यवर्द्धन जी ने कहा यह कार्यक्रम मील की पत्थर साबित होगी। कविताओं पर एक कोलाज ममता पाण्डेय, निधि पाण्डेय, पंकज सिंह, सृष्टि सिंह, अभिषेक पाण्डेय अवधेश शाह, प्रदीप तिवारी और विशाल पाण्डेय ने प्रस्तुत किया। प्रिया और पूनम सिंह ने अतिथियो का पारंपरिक रूप से स्वागत किया। संस्था के सचिव ऋतेश पाण्डेय ने कहा कि ये एक सांझ कविता की अनवरत चलता रहेगा, फिलहाल हम आर्थिक रूप से इतने सृदृढ़ नहीं है, लेकिन धीरे धीरे हम इसका विस्तार अलग अलग राज्यों में भी करेंगे। पूरे कार्यक्रम का संचालन ममता पाण्डेय ने किया। धन्यवाद ज्ञापन दिया राहुल शर्मा ने।

लिटिल थेस्पियन ने मंच पर उतारा कहानियों का कथा कोलाज

हाल ही में ज्ञानमंच में कथा कोलाज – 7 के अंतर्गत लिटिल थेस्पियन उमा झुनझुनवाला के निर्देशन में श्रीमती कुसुम खेमानी की तीन कहानियों का मंचन “प्रेम अप्रेम” शीर्षक से किया गया।

कुसुम जी इन तीनों कहानियों के केन्द्र में प्रेम अपने दो प्रबल स्वरूपों में मौजूद है – एक, प्रेम करने की चरम उत्कंठा और दूसरा, प्रेम की उपेक्षा l “एक माँ धरती सी” और “रश्मिरथी माँ” कहानी में माँ के अदम्य साहस का ज़िक्र है कि एक माँ अपने औलाद के लिए कुछ भी कर सकती है वहीँ दूसरी ओर “एक अचम्भा प्रेम” में अपनी जीवनसाथी की मानसिक पीड़ा से आहत एक प्रेमी पति के उस प्रेम का वर्णन है जहाँ प्रेम का अर्थ केवल दूसरों को चाहना मात्र होता है, जिसमे प्रत्याशा नहीं होती, जहाँ प्रेम अँधा होता l

 

सबसे ज्यादा पापा की याद आती है

  • रेखा श्रीवास्तव

फादर्स डे यानी पापा दिवस की चर्चा आते ही आँखों में पापा की छवि बन गयी है। उनकी यादें आने लगी है। 14 साल पहले 3 सितंबर 2002 को अचानक पापा को मैंने खो दिया। पापा को खोना मेरे जीवन का पहला झटका था, अर्थात् उसके पहले मैंने मौत को इतने पास से महसूस नहीं किया था। सबसे बड़ी बात है कि वह बीमार भी नहीं थे, अचानक उन्हें ब्रेन हैमरेज का अटैक हुआ। जिस दिन उन्हें अटैक आया उस दिन मैं महानगर कार्यालय से हावड़ा वाले घर गई थी।  जैसे ही घर पहुँची कि बड़े भैया का फोन आया कि पापा की तबियत बहुत खराब हो गई है, जल्दी से तुम लोग चली जाओ। और जब तक वहाँ पहुँचे वह बेहोश हो चुके थे और उन्हें अस्पताल ले जाने की तैयारी चल रही थी। अस्पताल में दो दिन रहने के बाद वह हमलोगों को छोड़ कर इस दुनिया से चले गये। मुझे उनसे अंतिम बार बात करने का मौका भी नहीं मिला। इसलिए मुझे काफी तकलीफ पहुँची और उनके जाने के बाद मैं बहुत बीमार पड़ गई। मैं अपने पापा की ज्यादा खास नहीं थी। माँ की दुलारी थी। फिर भी पापा और मेरा रिश्ता बहुत प्यारा था।  बचपन से ही हमलोगों को पापा काफी घुमाने ले जाते थे। मामा के यहाँ ले जाते थे। वह न जाने कैसे मेरी जरूरत बिना बोले ही, समझ लेते थे। मुझे बहुत दुख है कि उन्होंने न मेरी शादी देखी और न ही बच्चे तक उनसे मिल पाये और उनका आशीर्वाद ले पाये। मुझे पत्रकारिता से जोड़ने वाले भी मेरे पापा है। पापा ही महानगर न्यूजपेपर ले आये थे, जिसमें डीटीपी ऑपरेटर के लिए आवेदन निकला था और मैं उनके साथ ही महानगर कार्यालय में गई थी और वहाँ ज्वाइन की थी। उनका मुस्कुराता चेहरा आज भी आँखों के सामने आ जाता है। सबसे बड़ी बात है कि मैं उन्हें कभी गु्स्सा करते नहीं देखा, उत्तेजित होते नहीं देखा।  सबसे प्यार से बातें करते थे। आर्थिक समस्या होने के बावजूद वह कभी खींझते नहीं थे। आज इतने वर्षों के बाद भी जब मैं बहुत दुखी या परेशान होती हूँ, तो सबसे ज्यादा पापा को ही याद करती हूँ और न जाने कहाँ से  मेरे अंदर अचानक ताकत आ जाती है। पापा की एक बात मुझे हमेशा याद रहती है कि वह कहते थे, कि जब तक जियो, बिजी रहो। काम करते रहो । एक पल भी जायज न करो। और मैं कोशिश करती हूँ कि उनकी बातों पर अमल कर सकूँ।

(यह संस्मरण है और लेखिका वरिष्ठ पत्रकार हैं)