कोलकाता । अंतरराष्ट्रीय क्षत्रिय वीरांगना फाउंडेशन, पश्चिम बंगाल की ओर से होली मिलन उत्सव का आयोजन लिलुआ में किया गया। इस अवसर पर वीरांगना की प्रदेश अध्यक्ष तथा विख्यात गायिका-अभिनेत्री प्रतिभा सिंह ने होली की परम्परा का उल्लेख करते बुराई पर अच्छाई की जीत, वसंत व उल्लास की अभिव्यक्ति से जोड़ा। उन्होंने कहा कि जीवन के रंगों को कभी फीका न पड़ने दें। समारोह में कुमार सुरजीत, राकेश पाण्डेय, बेबी काजल, मसूरी लाल ने होली पर केन्द्रित गीतों का गायन कर सबको झूमने पर मजबूर कर दिया। इस दौरान भोजपुरी के मशहूर गायक व अभिनेता पवन सिंह ने वीडियो काफ्रेंसिंग से वीरांगनाओं को होली की शुभकामनाएं दीं।
कार्यक्रम में वीरांगना की प्रदेश महासचिव प्रतिमा सिंह, उपाध्यक्ष रीता सिंह, कोषाध्यक्ष पूजा सिंह, संगठन सचिव ममता सिंह, सचिव किरण सिंह, पूनम सिंह, कोलकाता इकाई की संरक्षक गिरिजा दारोगा सिंह, गिरिजा दुर्गादत्त सिंह, अध्यक्ष मीनू सिंह, महासचिव इंदु संजय सिंह, कोषाध्यक्ष संचिता सिंह, उपाध्यक्ष ललिता सिंह, पदाधिकारी मीरा सिंह, प्रेमशीला सिंह, सरोज सिंह, विद्या सिंह, सुमन सिंह, रीना सिंह, पूनम सिंह, लाजवंती सिंह, सोदपुर इकाई की अध्यक्ष सुनिता सिंह, पदाधिकारी जयश्री सिंह, मंजू सिंह, बबिता सिंह, पूजा सिंह, बालीगंज की अध्यक्ष सुमन सिंह, महासचिव रीता सिंह, श्यामनगर-आतपुर की सदस्या गुड़िया सिंह व बबिता सिंह, लिलुआ की सदस्या लीला सिंह, नीतू सिंह व सुमन सिंह उपस्थिति थीं। वीरांगना नारी शक्ति की सदस्याओं में पूनम राय, शकुंतला साव, अनिता साव, बबिता, मीनाक्षी तिवारी, बेबी श्री उपस्थित थीं।
वीरांगनाओं ने गीत-संगीत के साथ मनाया होली मिलन उत्सव
भवानीपुर कॉलेज ने फागुन पर गैर शैक्षणिक कर्मचारियों को किया सम्मानित
कोलकाता । फागुन के आगमन के साथ ही भवानीपुर एजूकेशन सोसाइटी कॉलेज के सभी मैनेजमेंट के पदाधिकारियों, शिक्षक, शिक्षिकाओं और विद्यार्थियों ने गैर शैक्षणिक कर्मचारियों को सम्मानित किया। कॉलेज के सभी गैर शैक्षणिक कार्यों के लिए नेपथ्य के नायक दिन रात परिश्रम कर कॉलेज की सुरक्षा का दायित्व बखूबी निभाते हैं। 260 से अधिक संख्या में इन नायकों में सिक्यूरिटी , एकाउंट, एडमिशन, ऑफिशियल, टेक्निकल, कम्प्यूटर, पुस्तकालय, गेम्स एंड स्पोर्ट्स,मडटस्टस्ट सांइस एंड फिजिक्स, इलेक्ट्रोनिक केमेस्ट्री सोसाइटी हॉल, एच आर अॉफिस, टीआईसी, कॉलेज अॉफिस सिस्टम कंट्रोल, आफ्टर नून इवनिंग, इन्फ्रास्ट्रक्चर आदि अनेक विभाग हैं जहाँ वे अपनी-अपनी सेवाओं द्वारा पूरे कॉलेज को सुचारू रूप से चलाने में अपना योगदान दे रहे हैं। कॉलेज के डीन और रेक्टर प्रो दिलीप शाह ने अपने वक्तव्य में बताया कि सभी गैर शैक्षणिक कर्मचारियों बिना कॉलेज नहीं चल सकता यहां तक कि कॉलेज का गेट भी वे ही खेलते हैं, वे रीढ़ की हड्डी हैं।कॉलेज के टीआईसी डॉ सुभब्रत गंगोपाध्याय ने सर्वप्रथम सबसे पुराने कर्मचारी हरि सिंह जी को उपहार देकर सम्मानित किया और फूल बरसाए।इस अवसर पर बहुत से सांस्कृतिक कार्यक्रम किए गए। नृत्य, संगीत और नाट्य प्रस्तुति दी गईं। कार्यक्रम की शुरुआत प्रो रेखा नारिवाल के श्याम और राधा के गीत के साथ हुई। केबीसी शैली में प्रश्नोत्तर का उत्तर गैर शैक्षणिक कर्मचारियों द्वारा दिए गए। कार्यक्रम की जानकारी दी डॉ वसुंधरा मिश्र ने ।
अर्चना संस्था ने मनाई शब्दों की होली
कोलकाता । रंगों का त्योहार है आया, खुशियों की बौछार संग लाया उषा श्राफ की इन पंक्तियों ने होली त्योहार की खुशियों को दुगना कर दिया। अर्चना संस्था के सदस्यों में बनेचंद मालू ने हास्य कविता रामू छुट्टी पर गया है और क्षणिकाएँ, शशि कंकानी ने नवरंग आज बिखेरेंगे हम, हे जी हिलमिल खेले फाग रे, भारती मेहता ने रंग सूखे हों तो भरे नहीं जाते, ज्यादा गीलें हों तो बह जाते हैँ अभिव्यक्ति क्या नपी तुली होनी चाहिए?, विद्या भंडारी ने गीत अरे ए री आलि रंग बिना चित नहीं लागे, मन को रंग दें आज,आज होली है।मृदुला कोठारी ने गीत होली आई सखियों रल मिल होली खेलन चाल।ऐ वृंदावन में धूम मची है फाग मचास।ऐ। प्रकृति के रंगों में रंग है हमारा उत्सव आम अनार जामुनी रंगों में रंग है हमारा उत्सव होली की धूम मचाता है।
कार्यक्रम का संचालन सुशीला चनानी ने किया और अपनी रचनाएं स्वरचित गीत -(होली के विभिन्न रंगो का प्रभाव-फागुन के महीने में उत्सव होली का आता , संग में रंगों की झोली भर लाता है और राजनीतिक ,सामाजिक विभिन्न ,विसंगतियों पर प्रहार करते हुए विभिन्न स्वरचित जोगिरा सुनाये जैसे -नेताजी को देख कर गिरगिट हो गयी दंग । मै भी इतना न बदलूं जितना ये बदले रंग।जोगिया सरदार जोगिरा सरररर—।
वसुंधरा मिश्र ने होरी-आई गीत सुना कर राधा-कृष्ण की बांसुरिया को याद किया। हिम्मत चोरडि़या प्रज्ञा ने गीतिका हमें किसी ने भूल से,आज पिला दी भंग।चढ़ा रंग जब भंग का, खूब हुआ हुड़दंग।।मीना दूगड़ ने हायकू -होली का राम राम, रंगों का पैगाम, तुम्हारे लिए। और होली !होली! होली! होली का शोर चहुँओर है,नाच रहा मन मोर है सुनाई।
चंद्रकांता सुराणा सुराणा ने अपनी रचनाओं होली का त्यौहार है आया, ढेर सारे रंग है लाया/ नानीसा ममता की मूरत है, चांद भी शर्मा जाए ऐसी सूरत है से महफिल में चार चांद लगा दिए। संयोजक इंदू चांडक ने अठखेली करती हवा, नृत्य करे मन मोर। रंग रॅऺगीला मास यह, फागुन अति चितचोर , गीत -रंग है गुलाल है, मस्ती और धमाल है, होली का गीत सुनाया। धन्यवाद ज्ञापन किया बनेचंद मालू ने ।कार्यक्रम की जानकारी दी डॉ वसुंधरा मिश्र ने ।
लिटिल थेस्पियन के 21वें रंग अड्डे की पिचकारी ने बिखेरे साहित्य के रंग
कोलकाता । हाजरा के सुजाता देवी विद्या मंदिर के प्रांगण में 23 मार्च 2024 की शाम निर्धारित समय पर आरंभ हुआ कोलकाता की सुप्रसिद्ध नाट्यसंस्था लिटिल थेस्पियन का 21 वा रंग अड्डा। यह मासिक रंग अड्डा लिटिल थेस्पिएन के संस्थापक और वरिष्ठ रंगकर्मी अजहर आलम और उमा झुनझुनवाला की सोच और मिलन का खूबसूरत परिणाम है। कार्यक्रम का आगाज़ उमा झुनझुनवाला के प्रेरणादायक वक्तव्य से हुआ। उन्होंने रंग अड्डे का मुख्य उद्देश्य विद्यार्थियों के भीतर नाट्य साहित्य के संस्कार को जगाना और नाट्य कला के सभी अंगों से छात्रों को परिचित करवाना बताया। साहित्य के रंगों में पहला रंग अज्ञेय का था जिनका परिचय पाठ खिदिरपुर कॉलेज की छात्रा नेहा मालिक ने किया और उनके उपन्यास नदी के द्वीप के पत्रों पर रोशनी डालते हुए आलेख पठन प्रस्तुत किया खिदिरपुर कॉलेज की प्रोफेसर सुधा गौड़ ने। इस श्रृंखला को आगे बढ़ते हुए साजदा खातून ने जयदेव तनेजा का साहित्यिक परिचय दिया तो वही ज्योतिका प्रसाद ने ने उनके आलेख देहांतर तथा निशा गुप्ता ने शुतुरमुर्ग पर प्रभावशाली प्रस्तुति दी। इस अवसर पर उमा झुनझुनवाला ने 2004 में खेले गए शुतुरमुर्ग नाटक की कुछ रोचक बातें भी साझा की। इस क्रम में ज्योति साह ने नाटककार हृषिकेश सुलभ का परिचय पाठ प्रस्तुत किया।पार्वती कुमारी शॉ ने बिहारी ठाकुर और उनसे परिचित स्त्रियों की दशा को दर्शाता नाटक बटोही’ का शब्दचित्र उकेरा,कथित अंशों का अभिनयात्मक पाठ लिटिल थेस्पियन के कलाकार–संगीता व्यास, सुधा गौड़, राधा ठाकुर, मोहम्मद आसिफ अंसारी,दानिश वारिस ख़ान ने किया। कार्यक्रम का कुशल संचालन प्रियंका सिंह द्वारा संपन्न हुआ। इस रंग रंग अड्डे में मुख्य अथिति के रूप मे उपस्थित थी प्रभात खबर की वरिष्ठ पत्रकार भारती जैनानी, कवियत्री मौसमी प्रसाद तथा वी. अरुणा। उमा जुनझुनवाला ने सभी उपस्थित लोगों को धन्यवाद दिया और बताया कि लिटिल थेस्पियन 17 अप्रैल को अपने संस्थापक- निर्देशक एस.एम. अज़हर आलम का जन्मोत्सव मनाएगा और इस अवसर पर उनके द्वारा निर्देशित नाटक एंडगेम का मंचन करेंगा ।अल्पाहार ,साहित्य और होली के रंगों से संपन्न हुआ 21वा रंग अड्डा।
होली में नोटों पर लग जाए रंग तो क्या करें, क्या कहता है आरबीआई
होली के लिए शहर से लेकर गांव देहात में रंगों में डूब चुका है। रंग,अबीर और पिचकारी की धूम मची है. चारों ओर रंग ही रंग है। होली के रंगों से आप तो रंग ही जाते हैं, कई बार आपकी जेब में रखे नोट भी रंगीन हो जाते हैं। होली के हुड़दंग में, मौज मस्ती में, नोट को संभालना बड़ा मुश्किल हो जाता है। जेब में रखे नोट रंगीन हो जाते हैं। नोट रंगीन हुआ नहीं कि कई बार लोगों के चहरे का रंग उतर जाता है। कई बार इन नोटों को दुकानदार लेने से मना कर देते हैं. बहाने बनाते हैं कि भाई रंग लगा हुआ है, दूसरा नोट दो.
रंगीन नोट के लिए क्या है नियम – होली तो खत्म हो जाती है, लेकिन रंगीन नोटों को चलाने की आपकी कोशिश जारी रहती है। दुकान, पेट्रोल पंप हर जगह आप उस नोट को चलाने की कोशिश करते हैं। रंग लगे नोट यहां वहां सब जगह आपको देखने को मिल जाएंगे, लेकिन क्या आपको पता है कि नोट को साफ सुथरा रखना आपकी जिम्मेदारी है। रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया का नियम के मुताबिक नोटों को साफ-सुधरा रखना आपकी जिम्मेदारी है।
क्या रंगीन नोट चलेंगे? – होली के दौरान कई बार ऐसा भी होता है कि जब आपकी जेब में मौजूद नोट भी रंगीन हो जाते हैं, या फट जाते है। ऐसी स्थिति में जब आप इन नोट को किसी दुकानदार को देते हैं तो वो अक्सर उसे लेने से इनकार कर देता है, लेकिन आपको बता दें कि रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के नियम के मुताबिक दुकानदार ऐसा नहीं कर सकते हैं। वो इन नोट को लेने से मना नहीं कर सकते हैं। आरबीआई के नियम के मुताबिक भले ही नोट रंगीन हैं, लेकिन उनके सिक्योरिटी फीचर प्रभावित नहीं हुए तो बैंक भी उसे लेने से मना नहीं कर सकता है। अगर आपके नोट पर रंग लग गया है तो आप उसे सुखाकर बाजार में वापस चला सकते है। हालांकि जान लें कि नोटों का जानबूझ खराब करना या फिर उससे छेड़छाड़ करना गलत है। रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने इसी के लिए साल 1988 में ‘क्लीन नोट पॉलिसी’ लागू की. आरबीआई एक्ट 1934 की धारा 27 के मुताबिक कोई भी शख्स किसी भी तरीके से नोटों को ना तो नष्ट कर सकता है और न ही उसमें किसी तरह की छेड़छाड़ कर सकता है। नोटों को साफ-सुधरा रखना लोगों की जिम्मेदारी है।
क्या करें अगर नोट में रंग लग जाए – अगर आपने नोट में रंग लग जाए या फिर वो कट-फट जाए तो आपको परेशान होने की जरूरत नहीं है। आप किसी भी बैंक में जाकर इन नोटों को बदल सकते हैं. आरबीआई के नियम के मुताबिक देश के सभी बैंकों में पुराने फटे, मुड़े हुए नोट, रंग लगे नोटों को बदला जा सकता है। इसके लिए बैंक आपसे कोई शुल्क नहीं वसूलेगा. नोट बदलने के लिए जरूरी नहीं है कि आपका खाता उस बैंक में हो।
नोट बदलने पर कितना वापस मिलेगा – अब जान लें कि किसी भी फटे हुए नोट को बैंक में बदलने पर आपको कितना रुपया वापस मिलेगा। बता दें कि बैंक में बदलने पर बैंक आपको उस नोट की स्थिति के मुताबिक पैसा वापस करता है। इसे उदाहरण से समझिए. 2000 रुपये के नोट का 88 वर्ग सेंटीमीटर (सीएम) होने पर पूरा पैसा मिलेगा, लेकिन 44 वर्ग सीएम पर आधा ही पैसा मिलेगा य़ इसी तरह 200 रुपये फटे नोट में 78 वर्ग सीएम हिस्सा देने पर पूरा पैसा मिलेगा। वहीं 39 वर्ग सीएम पर आधा पैसा ही मिलता है। बता दें कि भारतीय रिजर्व बैंक के नियमानुसार हर बैंक को पुराने, फटे या मुड़े नोट स्वीकार करने होंगे बशर्ते वह नकली नहीं होने चाहिए।
(साभार – जी न्यूज)
शुभजिता स्वदेशी : चूड़ियों से शुरुआत और आज घर – घर में हैं सेलो वर्ल्ड के उत्पाद
6 साल की भारतीय मूल की बच्ची बनी दुनिया की सबसे कम उम्र की गेम डेवलपर
छह साल की एक लड़की को गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स (जीडब्ल्यूआर) ने दुनिया की सबसे कम उम्र की वीडियोगेम डेवलपर के रूप में मान्यता दी है।
सिमर खुराना 6 साल और 335 दिन की थीं जब उन्होंने अपना पहला वीडियो गेम बनाया था। विलक्षण लड़की कनाडा के ओंटारियो की रहने वाली है। उसने कोडिंग सीखना शुरू किया और सप्ताह में तीन दिन क्लास में जाती थी। दुनिया भर के कोडर्स उसकी उम्र जानकर हैरान रह गए, क्योंकि इतने छोटे बच्चे को कंप्यूटर प्रोग्रामिंग की दुनिया में कदम रखते हुए देखना आश्चर्यजनक था। उसके पिता, पारस खुराना जानते थे कि वह प्रतिभाशाली है, इसलिए वह एक अच्छे शिक्षक की तलाश कर रहे थे और आखिरकार उसे कोडिंग सीखने में मदद करने के लिए एक शिक्षक मिल गया। गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड से बात करते हुए खुराना ने कहा कि सिमर ने यूट्यूब पर वीडियो देखकर खुद ही गणित सीखा। जब वह किंडरगार्टन में थी तब वह कक्षा 3 का गणित हल करने में सक्षम थी।
उन्होंने कहा कि वह हमेशा हर चीज से शिल्प और खेल बनाती रहती हैं, कभी-कभी बेकार कागज से भी। उन्होंने बताया कि उन्हें लगा कि वह स्वाभाविक रूप से कोडिंग में उत्कृष्ट होंगी क्योंकि उनके पास कौशल का एक आदर्श संयोजन था। इसलिए उन्होंने उसे एक डेमो कोडिंग क्लास लेने के लिए कहा और पाया कि उसे यह पसंद आया और उसने इसमें सफलता हासिल की।
सिमर का पहला वीडियो गेम जिसने विश्व रिकॉर्ड बनाया था उसका नाम “हेल्दी फ़ूड चैलेंज” था। एक डॉक्टर द्वारा उसे जंक फूड खाना बंद करने के लिए कहने के बाद उसे इस खेल का विचार आया। गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड से बात करते हुए सिमर ने बताया कि चूंकि डॉक्टर ने उन्हें स्वस्थ खाने के लिए कहा था, इसलिए उन्होंने स्वस्थ भोजन और जंक फूड के बारे में एक गेम बनाने का फैसला किया। उन्होंने यह भी कहा कि वह बच्चों को स्वस्थ और जंक फूड के बीच अंतर सीखने में मदद करना चाहती थीं और यह भी बताना चाहती थीं कि उन्हें बड़ी मात्रा में जंक फूड का सेवन क्यों नहीं करना चाहिए। सिमर ने कहा कि उन्हें गणित और कोडिंग पसंद है। वह बड़ी होने पर गेम डेवलपर बनने की इच्छा रखती है। उन्होंने गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड में शामिल होने पर खुशी व्यक्त की और भविष्य में और अधिक रिकॉर्ड बनाने के प्रयास की संभावना से इनकार नहीं किया।
होली के उत्साह में बच्चों का रखें खास ख्याल
रंगों का त्योहार होली आने वाली है। इस वर्ष होली 25 मार्च को है। इस पर्व को बच्चों से लेकर बड़े बुजुर्ग तक सभी उत्साह से मनाते हैं। बच्चे तो होली को लेकर अति उत्साहित रहते हैं। पहले से ही अपनी पिचकारी मंगवा लेते हैं, और उसमें पानी भरकर खेला करते हैं। होली वाले दिन तो पिचकारी और रंग लेकर घर के बाहर निकल जाते हैं। दोस्तों, आस पड़ोसियों पर पिचकारी के रंगों की बौछार करने से बच्चों को रोकना मुश्किल हो जाता है। बच्चों के इस उत्साह और मस्ती को देख माता पिता के साथ ही करीबी भी बहुत खुश होते हैं। लेकिन होली में कई बार कुछ लापरवाही रंग में भंग का काम करती हैं। होली के उत्साह में अगर आप बच्चों की मस्ती को नजरअंदाज कर रहे हैं या उनका ध्यान नहीं दे रहे हैं तो त्योहार के मजे में खलल पड़ सकता है। इसलिए होली के दौरान बच्चों का खास ख्याल रखने की जरूरत है, साथ ही कुछ सावधानियां भी बरतनी चाहिए।
गुब्बारों से दूरी – होली में बच्चे नई नई तरह की पिचकारी की डिमांड करते हैं। पिचकारी सिर्फ रंग खेलने के लिए होनी चाहिए। सुरक्षा की दृष्टि से वह खराब न हो। इसलिए ऐसी पिचकारी घर लाएं जो आपके बच्चे या दूसरे बच्चों को चोटिल न कर दें। इसके अलावा होली में अक्सर बच्चे गुब्बारों में पानी भरकर खेलते हैं। एक दूसरे पर पानी भरे गुब्बारे फेंकते हैं जो फटने पर सामने वाले को चोटिल कर सकता है इसलिए होली में रंग वाले गुब्बारे खेलने से बचना चाहिए। बच्चों के लिए होली में पिचकारी और रंग तो लाएं लेकिन गुब्बारे लेकर घर न आएं। साथ ही उन्हें मना करें कि बाहर दोस्तों के रंग वाले गुब्बारों से भी न खेलें।
केमिकल रंगों से बचाएं – आजकल होली में जिन रंगों की उपयोग होता है वह अधिकांश केमिकलयुक्त होते हैं। बाजारों में मिलावट और केमिकल वाले रंग मिलते हैं, जो त्वचा, आंखों को नुकसान पहुंचाते हैं। ऐसे रंगों की पहचान करके ऑर्गेनिक कलर ही लाएं। हालांकि हो सकता है कि दूसरे बच्चे मिलावटी रंगों का उपयोग कर रहे हों, उस से अपने बच्चे को बचाने के लिए कलरफुल और फंकी गॉगल्स पहनाएं ताकि उन की आंखें सुरक्षित रहें। इसके अलावा फुल बांह के कपड़े पहनाएं, जिससे त्वचा ढकी रहे और रंगों के सम्पर्क में आने की संभावना कम रहे।
रखें नजर – बच्चा जब रंग खेलने के लिए घर से बाहर सोसायटी या कॉलोनी में निकले तो आप काम में व्यस्त न हो जाएं। उसे अपने दोस्तों संग खेलने के लिए अकेला न छोड़ें, बल्कि नजर रखें। बीच-बीच में देखें कि आपका बच्चा कहां और किन लोगों के साथ खेल रहा है। अक्सर बच्चे खेलते वक्त गिर जाते हैं या रंग उनकी आंखों में जा सकता है। ऐसे वक्त पर अगर आप सही समय पर उन्हें मदद नहीं करेंगे तो समस्या बढ़ भी सकती है। सुरक्षा की दृष्टि से भी निगरानी जरूरी है।
खान-पान न बिगाड़ दे सेहत – होली में सिर्फ रंग ही नहीं, तला भुना खाना, बहुत अधिक मिठाई और तरह तरह के व्यंजनों का अधिकता से सेवन भी बच्चे के पाचन को बिगाड़ सकता है। फूड पॉइजनिंग का खतरा भी रहता है। इसलिए होली की मस्ती में उनकी सेहत खराब न हो जाए, इसके लिए खानपान का विशेष ध्यान रखें।
और हंसते – हंसते फांसी पर चढ़ गये वे आजादी के मतवाले

ब्रज का परंपरागत फाग उत्सव और नंदगांव की लठमार होली
होली के उत्सव की अगर धूम आपको देखनी है तो आपको ब्रज क्षेत्र में आना होगा. क्योंकि जैसी होली ब्रज में खेली जाती है दुनिया में और कहीं आपको देखने को नहीं मिलेगी। ब्रज की होली उत्सव दुनिया भर में अपनी अनोखी छटा के लिए विश्व प्रसिद्ध है। होली के अवसर पर दूर-दूर से लोग ब्रज में पहुंचते हैं और होली उत्सव के रंग में रंग जाते हैं। ब्रज की होली विशेष इसलिए मानी जाती है क्योंकि यहां राधा कृष्ण के होली खेलने की पौराणिक यादें जीवंत हैं। होली के उत्सव पर अपने इष्ट की एक झलक पाने के लिए श्रद्धालु आतुर नजर आ रहे हैं. राधा रानी और भगवान श्री कृष्ण की एक झलक पाकर उनके साथ होली के उत्सव को मना रहे है तो श्रद्धालु उनके साथ होली खेलने के लिए ब्रज में पहुंच रहे है. इन दिनों ब्रज में श्रद्धालुओं की भारी भीड़ नजर आ रही है।
ब्रज इकलौता क्षेत्र जहां लठमार होली – ब्रज की ऐसी होली जिसमें हुरियारन हाथ में लठ लेकर होली का उत्सव मनाती हैं. आमतौर पर अगर आपको किसी के हाथ में लाठी नजर आएगी तो लगेगा कि कहीं झगड़ा तो नहीं हुआ लेकिन ब्रज इकलौता ऐसा क्षेत्र है जहां लाठी के साथ ही होली खेली जाती है, जिसे कहा जाता है लठमार होली. मथुरा , वृंदावन , बरसाना , रेवती रमण , दाऊजी , रमनरेती जैसे कई धार्मिक पौराणिक स्थल है, जहां पर इन दोनों होली उत्सव की धूम मची है. दूर-दूर से लोग ब्रज की होली के रंग में रंगने के लिए पहुंच रहे है. इसके साथ ही लोग भगवान श्री कृष्ण और राधा रानी के साथ होली खेल रहे हैं.
ब्रज में छाया रंग गुलाल अबीर – मथुरा वृंदावन बरसाना की होली का रंग ही अलग होता है. जहां रंग गुलाल अबीर की अलग छटा छाई रहती है। यहां आने वाले श्रद्धालु होली के रंग में रंगे नजर आ रहे हैं। ब्रज की महारानी राधा रानी और ठाकुर बांके बिहारी लाल के दर्शनों के लिए श्रद्धालु आतुर नजर आ रहे है। मथुरा वृंदावन बरसाना में फाग उत्सव को बड़ी धूमधाम से मनाया जा रहा है जिसमें चारों ओर रंग गुलाल अबीर की छठ छाई हुई है।
परंपरागत और प्राचीन है ब्रज की होली – ब्रज की होली में अनोखे अंदाज नजर आते हैं जो परंपरागत और प्राचीन है। ब्रज की होली में लठमार होली विशेष मानी जाती है. इस दिन हुरियारन अपने हाथों में लठ लेकर चलती है और नंदगांव से होली खेलने आए सखाओ पर लाठी चलाती है। लठमार होली का अलग ही रंग नजर आता है. जिसे देखने के लिए बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहले से ही ब्रज में जमा होने लगते हैं। ब्रज की होली की अनोखी छटा और ब्रज की महारानी राधा रानी- ठाकुर बांके बिहारी लाल के दर्शन कर श्रद्धालुओं अलग ही अनुभूति करते है.
नंदगांव की लट्ठमार होली
साल फाल्गुन माह में मथुरा के नंदगांव में अनोखी लट्ठमार होली खेली जाती है, जो आज है। ऐसा माना जाता है कि इस लट्ठमार होली की परंपरा 17वीं शताब्दी से चली आ रही है। इस लट्ठमार होली परंपरा में नंदगांव की महिलाएं ब्रज के पुरुषों पर लाठियों से हमला करती हैं। और पुरुष खुद को लाठियों के प्रहार से बचाने के लिए ढाल का उपयोग करते हैं। यह परंपरा इतनी प्रसिद्ध है कि इस लट्ठमार होली को देखने के लिए देश-विदेश से लोग आते हैं।लट्ठमार होली का यह त्योहार हर साल फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। सबसे पहले लट्ठमार होली बरसाना में ही खेली जाती है और फिर नंदगांव में। इस परंपरा को शक्ति और साहस का प्रतीक माना जाता है। लट्ठमार होली के दौरान नंदगांव और ब्रज के लोग रंगों, गीतों और नृत्यों के साथ उत्साहपूर्वक जश्न मनाते हैं। इस अवसर पर महिलाएं पारंपरिक पोशाक पहनती हैं।
नंदगांव को खास माना जाता है – कथाओं के अनुसार श्रीकृष्ण के माता-पिता नंद बाबा और माता यशोदा पहले गोकुल में रहते थे। कुछ समय बाद ये नंद बाबा और उनकी मां यशोदा अपने परिवार, गाय-बैल और गोपियों के साथ गोकुल छोड़ कर नंदगांव में बस गये। नंदगांव नंदीश्वर पहाड़ी की चोटी पर स्थित है और इसी पहाड़ी की चोटी पर नंद बाबा ने अपना महल बनाया था और सभी चरवाहों, गोपों और गोपियों ने पहाड़ी के आसपास के क्षेत्र में अपने घर बनाए थे। इस गांव को नंदबाबा द्वारा बसाए जाने के कारण नंदगांव कहा जाता था।
नन्दभवन – नंदगांव के नंद भवन को नंद बाबा की हवेली या महल भी कहा जाता है। इस भवन में काले ग्रेनाइट से बनी भगवान श्री कृष्ण की मूर्ति स्थापित है। वहीं नंद बाबा, मां यशोदा, बलराम और उनकी मां रोहिणी की भी मूर्तियां हैं।
यशोदा कुंड – नंदभवन के पास ही एक सरोवर स्थित है जो यशोदा कुंड के नाम से प्रसिद्ध है। मान्यता है कि माता यशोदा प्रतिदिन यहां स्नान करने आती थीं। और कभी-कभी वे श्रीकृष्ण और बलराम को भी अपने साथ ले आती थीं। झील के किनारे भगवान नरसिम्हा जी का मंदिर स्थित है। यशोदा कुंड के पास ही एक रेगिस्तानी स्थान पर एक अत्यंत प्राचीन गुफा भी स्थित है। ऐसा माना जाता है कि कई साधु-संतों ने यहां ज्ञान प्राप्त किया था।
हाऊ बिलाऊ – यशोदा कुंड के पास भगवान कृष्ण की बचपन की क्रीड़ाओं का स्थान है जिसे हाऊ बिलाऊ के नाम से जाना जाता है। यहां भाई भगवान कृष्ण और बलराम अपने बचपन के दोस्तों के साथ बचपन के खेल खेलते थे। इस जगह को हाउ वन भी कहा जाता है।
नंदीश्वर मंदिर – नंदगांव में भगवान शिव का एक मंदिर भी है जिसे नंदीश्वर महादेव मंदिर के नाम से जाना जाता है। इस मंदिर से जुड़ी एक कहानी में कहा गया है कि भगवान कृष्ण के जन्म के बाद भोले नाथ एक साधु के विचित्र रूप में उनसे मिलने नंदगांव आए थे। लेकिन माता यशोदा ने उनका विचित्र रूप देखकर उन्हें अपने पुत्र से मिलने नहीं दिया। तब भगवान शिव वहां से चले गए और जंगल में जाकर तपस्या करने लगे। इसके बाद भगवान श्री कृष्ण अचानक रोने लगे और चुप नहीं रहे तो माता यशोदा के अनुरोध पर भगवान शिव एक बार फिर वहां आ गए। जैसे ही बालक श्रीकृष्ण ने भगवान शिव को देखा, उन्होंने तुरंत रोना बंद कर दिया और मुस्कुराने लगे। ऋषि के वेश में भगवान शिव ने माता यशोदा से बच्चे को देखने और उसे प्रसाद के रूप में अपना पका हुआ भोजन देने के लिए कहा। तभी से भगवान कृष्ण को भोग लगाने और फिर नंदीश्वर मंदिर में शिवलिंग पर चढ़ाने की परंपरा चली आ रही है। नंदीश्वर मंदिर जंगल में उसी स्थान पर बनाया गया है जहां भगवान शिव ने श्री कृष्ण का ध्यान किया था।
शनि मंदिर – प्राचीन शनि मंदिर पान सरोवर से कुछ दूरी पर कोकिला वन में स्थित है। ऐसा माना जाता है कि जब शनिदेव यहां आए तो भगवान कृष्ण ने उन्हें एक जगह स्थिर कर दिया ताकि ब्रजवासियों को शनिदेव से किसी भी तरह की परेशानी का सामना न करना पड़े। इस मंदिर में हर शनिवार को हजारों भक्त शनि के दर्शन के लिए आते हैं। देव.शनिश्चरी अमावस्या के अवसर पर यहां भव्य मेले का आयोजन किया जाता है।