Tuesday, September 16, 2025
खबर एवं विज्ञापन हेतु सम्पर्क करें - [email protected]
Home Blog Page 85

सृजन प्रतिष्ठान में सर्वश्रेष्ठ जीन कॉक्ट्यू के जन्म उत्सव पर कविता पाठ

कोलकाता ।  सृजन प्रतिष्ठान द्वारा आयोजित पोएट्री अड्डा में गत शनिवार गत आठ जुलाई को फ्रैंच के महान कवि जीन कॉक्ट्यू की कविता उत्सव पर विशद रूप से चर्चा की। जीन कोक्ट्यू का जन्म 5 जुलाई 1889 को फ्रांस में हुआ था और उनकी मृत्यु 74 वर्ष की आयु में मिलि- ए – फोरट फ्रांस में हुई थी।वे 20 वीं सदी के कवि, नाटककार, उपन्यासकार, कलाकार, फिल्म निर्माता, विजुअल आर्टिस्ट और आलोचक के रूप में असाधारण व्यक्तित्व के धनी रहे। सृजन द्वारा आयोजित इस कविता अड्डे में 35 से अधिक संख्या में विभिन्न साहित्य भाषा और संस्कृति के लोगों ने कविताओं का आनंद लिया। इस अवसर पर
सृजन की उपाध्यक्ष, प्रोफ़ेसर कृष्णा सेन और अंग्रेजी समन्वयक अंजना बसु दोनों की उपस्थिति रही। प्रो कृष्णा ने कविता अड्डे के सभी प्रतिभागियों का स्वागत किया और समापन पर धन्यवाद दिया। पलाश भद्र ने अपनी विकलांग बीमारी से जूझने के बावज़ूद जीन कोक्ट्यू के अपने दो उत्कृष्ट बांग्ला अनुवाद भेजे जिन्हें बांग्ला समन्वयक दीपक लाहिड़ी ने बहुत ही शानदार ढंग से पढ़ा।
अड्डे की प्रमुख साहित्य चर्चा डॉ. मोहर दास चौधरी ने की जो कलकत्ता विश्वविद्यालय के फ्रेंच विभाग की विभागाध्यक्ष हैं उन्होंने बहुत ही विस्तार से कविताओं की जानकारी दी और जीन कोक्ट्यू की कविताओं का पाठ अंग्रेजी और फ्रैंच दोनों ही भाषाओं में किया जिसे चिन्मय गुहा द्वारा दिया गया था। फ्रैंच और अंग्रेजी दोनों ही भाषाओं में कॉक्ट्यू की कविताओं को उनके चित्रों के जरिए भी बताया। प्रो मोहर की कोमल और संवेदनशील आवाज़ में उत्कृष्ट प्रस्तुति सुनी गई। साथ ही वाणिज्य दूतावास की सुंदर फ्रांसीसी महिला, डॉ. सॉल्विग ओबेरसीथर भी देर से आईं, हालांकि वे अपनी कविताओं द्वारा कॉक्ट्यू को सृजन अड्डे में फ्रांसीसी स्वाद के साथ जोड़ने में कामयाब रहीं।
अंग्रेजी प्रोफेसर डॉ. अन्नपूर्णा पालित, जो भाषाओं की प्रेमी हैं, कविता अड्डे का सफल संचालन किया प। प्रत्येक कवि द्वारा सुंदर कविताएँ पढ़ी गईं जिनमें – फहद पाशा (उर्दू) , श्रीपर्णा गंगोपाध्याय ( बांग्ला) , अरुणांशु भट्टाचार्य और अंत में 50 वर्षों से लिख रहे कवि सुजीत सरकार…अमनिता सेन और अमित शंकर साहा द्वारा अंग्रेजी में कविताएं पढी़ गईं – ये दोनों वर्षों से सृजनवादी हैं।और अंत में, हमारी स्थापना के बाद से ही सृजन की प्रशंसक, डॉ वसुंधरा मिश्र द्वारा हिंदी कविताओं का पाठ किया गया । सृजन टीम के सदस्य पवन मस्कारा द्वारा याद की गई, विद्या भंडारी ने संपर्क किया और आमंत्रित किया , जो शुरुआत से ही सृजन में नियमित रूप से भाग ले रही थीं ।
सृजन की काव्य टीम के अन्य सदस्यों को भी अद्भुत कवियों को चुनने और उन्हें स्वीकार करने के लिए बधाई दी गई जिनमें सैयद कवसर जमाल और बांग्ला प्रमुख दीपक लाहिड़ी और उर्दू समन्वयक ज़रीना ज़रीन रहीं।
मंच से पढ़ने वाले कवि भी, जिसकी शुरुआत प्रिय नए कवि सुभाष सरकार और निलीन पुतातुंडा, सुमित लाई रॉय और यहां तक ​​कि जरीना ने भी अपने बहुमूल्य दो शेर सुनाए। इसके अलावा कॉलेजों के दो युवा रचनाकारों दीपांजन छेत्री और अनन्या साहा ने अपनी रचनाएं सुनाई। इस अवसर पर डॉ वसुंधरा मिश्र ने साहित्यकार और भाषा प्रेमी वसंत रूंगटा से बातचीत की। सृजन प्रतिष्ठान सन् 2000 से पोएट्री अड्डे के लिए प्रसिद्ध है । सृजन प्रतिष्ठान के संस्थापक वसंत रूंगटा ने सृजन का परिचय दिया और बताया कि अब तक सृजन प्रतिष्ठान अड्डे में विश्व के सर्वश्रेष्ठ 100 कवियों की श्रृंखला पर महत्वपूर्ण चर्चा हो चुकी है जिसे पुस्तक रूप में भी करने का विचार है। सृजन अड्डे से हम विश्व के विभिन्न प्रसिद्ध साहित्य, संस्कृति, कला, फिल्म थियेटर आदि को सामने लाने का प्रयास करते हैं। उन्होंने बताया कि यह एक ऐसा अड्डा है, जहां हमें इन तस्वीरों को पोस्ट करने में सबसे अधिक खुशी मिलती है, डॉ सुजाता दास द्वारा की गई फोटोग्राफी अड्डे का फ्रेम-दर-फ्रेम विवरण देती हैं। हमारे परिवार में हाल ही में शामिल हुई, अनुपमा मैत्रा जो एसोसिएटप्रोफेसर और अंग्रेजी की एचओडी हैं जिन्होंने पिछले महीने विक्रम सेठ पर अड्डा का कुशलतापूर्वक संचालन किया था। जैसा कि आप सृजन सभागार में इन तस्वीरों में देख सकते हैं। पंचायत चुनाव मतदान के बावजूद, हमारे पास यह सृजन अड्डा है जहां हम अपने को साहित्यिक माध्यम से समृद्ध कर सकते हैं । कार्यक्रम की जानकारी दी डॉ वसुंधरा मिश्र ने ।

मोहम्मडन स्पोर्टिंग के प्रशंसकों ने जीती आईएफए शील्ड

कोलकाता । यू. के में आर्बर पार्क में प्रवासी बंगालियों के बीच स्लॉ टाउन फुटबॉल क्लब में पुरुषों, महिलाओं और बच्चों के लिए आयोजित फुटबॉल प्रतियोगिता “आईएफए शील्ड 2023” में पहली बार खेल रहे मोहम्मडन स्पोर्टिंग फैन्स की टीम एसएनयू आईएफए शील्ड यू.के. के विजेता के रूप में उभरी। इस टीम ने भारतीय उच्चायोग की प्रतिष्ठित टीम को 2-0 से हराकर विजेता टीम बनी। जिसके लिए भारत के पूर्व अंतर्राष्ट्रीय खिलाड़ी जूल्स अल्बर्टो खेल रहे थे। महिला वर्ग में पेनल्टी शूटआउट का एक बहुत ही रोमांचक दौर देखा गया, महिला वर्ग में मोहन बागान के प्रशंसकों की टीम ने आईआईएचएम आईएफए शील्ड यू.के. जीता। इस आयोजन में बच्चों की शील्ड ईस्ट बंगाल क्लब के प्रशंसकों की टीम ने जीता।
टूर्नामेंट के सभी खिलाड़ियों ने एसएएफएफ कप विजेता भारतीय टीम के लिए भारतीय उप उच्चायुक्त को बधाई कार्ड पर हस्ताक्षर किया। इस कार्यक्रम में ब्रिटिश रॉयल आर्मी और रॉयल एयर फोर्स के प्रतिनिधियों ने भाग लिया, जिन्होंने भारतीय उप उच्चायुक्त श्री सुजीत घोष के साथ प्रमुख प्रायोजक जीबीएस के प्रतिनिधि ने विजेता टीम को ट्रॉफी सौंपीं।
इस दौरान बंगाली व्यंजनों और मिठाइयों की बिक्री करने वाले कई खाद्य स्टालों के कारण पूरे दिन उत्सव काफी खुशमिजाज रहा। इस कार्यक्रम के प्रायोजक लंदन में ईटीओएस के तुषार फास घोष, कोलकाता के फ्लोरल के सुरजीत नंदी और यू.के. स्थित एडियास के दीपक प्रमाणिक हैं। सभी ने पिछले कुछ महीनों में प्रवासी भारतीयों को शामिल करते हुए जिस तरह से कार्यक्रम आयोजित किया गया, इसपर सभी ने दिल से खुशी जाहिर की। इसका आयोजन करने वाले हेरिटेज बंगाल ग्लोबल के निदेशक. अनिर्बान मुखोपाध्याय ने सभी को उनकी भागीदारी के लिए धन्यवाद दिया और 20 अगस्त को स्वतंत्रता दिवस कप के लिए लंदन सिक्सेस नामक एक प्रवासी क्रिकेट कार्यक्रम आयोजित करने की अपनी योजना की घोषणा की।

एमसीसीआई ने आयोजित किया डॉ. विधान चन्द्र मेमोरियल ओरेशन

कोलकाता । मर्चेन्ट्स चेम्बर ऑफ कॉमर्स ने डॉ. विधान चन्द्र राय मेमोरियल ओरेशन आयोजित किया । इस परिचर्चा का विषय 2030 तक सभी के लिए स्वास्थ्य था । इस अवसर पर कलकत्ता मेडिकल कॉलेज के सीनियर कंसल्टेंट मेडिकल प्रैक्टिसनर, सेवानिवृत्त प्रोफेसर एव मेडिसिन विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो. डॉ. सुकुमार मुखर्जी. मेडिका सुपरस्पेशिलियटी हॉस्पिटल के सीनियर वाइस चेयरमैन एवं सीनियर कंसल्टेंट कार्डियक सर्जन डॉ. कुणाल सरकार, आमरी ग्रुप ऑफ हॉस्पिटल्स के ग्रुप चीफ एक्जीक्यूटिव ऑफिसर एवं निदेशक रूपक बरुआ तथा बेलव्यू क्लिनिक के चीफ एक्जीक्यूटिव ऑफिसर पी.के. टंडन ने सम्बोधित किया । एमसीसीआई ने उल्लेखनीय योगदान के लिए डॉ. सुकुमार मुखर्जी को सम्मानित किया ।
आमरी ग्रुप ऑफ हॉस्पिटल्स के ग्रुप चीफ एक्जीक्यूटिव ऑफिसर एवं निदेशक रूपक बरुआ ने कहा कि भारतीय स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र में वृद्धि होने पर भी वहन करने योग्य चिकित्सा एक गम्भीर मुद्दा है । देश में 50 हजार अस्पतालों में मात्र 3 प्रतिशत ही 100 बेड वाले हैं और मात्र 2 प्रतिशत को ही एनएबीएच से मान्यता प्राप्त है ।
बीसी राय मेमोरियल ओरेशन को सम्बोधित करते हुएमेडिका सुपरस्पेशिलियटी हॉस्पिटल के सीनियर वाइस चेयरमैन एवं सीनियर कंसल्टेंट कार्डियक सर्जन डॉ कुणाल सरकार ने कहा कि आयुष्मान भारत एवं स्वास्थ्य साथी योजना करदाताओं का पैसा है इसलिए एक का दूसरी योजना को खारिज करना जनता के पैसों का दुरुपयोग है ।
तथा बेलव्यू क्लिनिक के चीफ एक्जीक्यूटिव ऑफिसर पी.के. टंडन ने कहा कि जिलों में स्वास्थ्य सेवाओं का हाल देखकर और सभी का शहरों की तरफ ध्यान देते हुए देखकर कहा जा सकता है कि 2030 तक सभी के लिए स्वास्थ्य सेवा उपलब्ध करवा पाना सम्भव नहीं हो सकेगा ।इस अवसर पर एमसीसीआई के अध्यक्ष नमित बाजोरिया ने डॉ. विधान चन्द्र राय के योगदान को स्मरण किया । एमसीसीआई की स्वास्थ्य काउंसिल के चेयरमैन राजेन्द्र खंडेलवाल ने डॉ. विधान चन्द्र राय के योगदान को याद किया ।

‘रक्षा क्षेत्र में आयात पर निर्भरता कम करेगा मेक इन इंडिया’

एमसीसीआई में लेफ्टिनेंट जनरल राणा प्रताप कलिता के साथ विशेष सत्र 

कोलकाता । मर्चेंट्स चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री (एमसीसीआई) हाल ही में “सिविल-मिलिट्री फ्यूजन” पर लेफ्टिनेंट जनरल राणा प्रताप कलिता, पीवीएसएम, यूवाईएसएम, एवीएसएम, एसएम, वीएसएम, जीओसी-इन-सी, पूर्वी कमान के साथ एक विशेष सत्र का आयोजन किया। । फोर्ट विलियम में आयेजित इस विशेष सत्र का केंद्रीय विचार नागरिक-सैन्य संलयन हेतु आगे बढ़ना था जो सहयोग, संसाधनों को साझा करने और राष्ट्रीय समृद्धि के लिए प्रत्येक क्षेत्र की ताकत का लाभ उठाने को बढ़ावा देता है।
लेफ्टिनेंट जनरल राणा प्रताप कलिता, पीवीएसएम, यूवाईएसएम, एवीएसएम, एसएम, वीएसएम, जीओसी-इन-सी, पूर्वी कमान ने अपने संबोधन में नागरिक-सैन्य संलयन रणनीति के सहयोग और कार्यान्वयन के महत्व पर जोर दिया । उन्होंने कहा कि रक्षा, शिक्षा जगत, सरकार और उद्योग के बीच बातचीत से देश की भविष्य की जरूरतों को पूरा करने में मदद मिलेगी। लेफ्टिनेंट जनरल कलिता ने विशिष्ट क्षमताओं और स्वदेशी उत्पादन के विकास के लिए दोहरे उपयोग वाली प्रौद्योगिकी और अनुसंधान एवं विकास में निवेश के लिए क्षमता निर्माण की आवश्यकता पर भी बात की। उन्होंने यह भी बताया कि भारत सरकार ने पहले ही “मेक इन इंडिया” जैसी पहल लागू कर दी है जो देश को रक्षा क्षेत्र के लिए सैन्य हथियारों और उपकरणों के उत्पादन में आत्मनिर्भर बनने और आयात पर निर्भरता कम करने में मदद करती है।
उन्होंने कहा कि रक्षा क्षेत्र बल संरक्षण और स्थिरता, कपड़े और आपूर्ति, ऊर्जा और संचार, चिकित्सा आवश्यकताओं, औद्योगिक क्षमताओं और अपशिष्ट प्रबंधन सहित सैन्य-उद्योग संलयन बनाने के लिए तैयार है। एमसीसीआई के अध्यक्ष नमित बाजोरिया ने कहा कि नागरिक समाज और सेना के बीच सहयोग भी आर्थिक विकास और नवाचार को बढ़ावा दे सकता है। सैन्य अनुसंधान और विकास प्रयासों से अक्सर तकनीकी प्रगति होती है जिसका महत्वपूर्ण नागरिक अनुप्रयोग होता है। सैन्य अनुसंधान एवं विकास को नागरिक अनुसंधान एवं विकास के साथ जोड़कर, सरकारें नवाचार को बढ़ावा दे सकती हैं, नए उद्योग बना सकती हैं और आर्थिक प्रतिस्पर्धात्मकता को बढ़ावा दे सकती हैं। सत्र का समापन एमसीसीआई के तत्कालीन पूर्व अध्यक्ष ऋषभ सी. कोठारी के धन्यवाद ज्ञापन के साथ हुआ ।

शुभजिता के प्रिंट संस्करण की ओर पहला कदम

शुभजिता 7 साल पूरे कर चुकी है और अब तक आपका भरपूर स्नेह मिलता रहा है । यह स्नेह ही है जिसने हमें प्रेरित किया कि अब हम पत्रिका के प्रिंट संस्करण के बारे में विचार करें । वेबसाइट से प्रिंट संस्करण में आना एक लम्बी प्रक्रिया है मगर एक राह यह दिखी कि प्रिंट संस्करण को अगर पीडीएफ के रूप में लाया जा सके तो इस दिशा में प्रयास आरम्भ हो चुका है । शुभजिता की वेबसाइट वैसे ही चलती रहेगी, जैसे कि चलती आ रही है मगर पत्रिका का कलेवर थोड़ा अलग होगा..स्तम्भ वही होंगे, नीतियाँ भी वही होंगी..मतलब पत्रकारिता की सकारात्मक प्रवृत्ति को सहेजना और आगे बढ़ाना मगर अन्तर यह होगा कि पत्रिका में लेख और फीचर को जगह अधिक मिलेगी । आप इसे सकारात्मक फीचर पत्रिका कह सकते हैं जो कि स्त्रियों और युवाओं पर केन्द्रित होगी मगर पुरुष क्षेत्र यथावत रहेंगे और पत्रिका किसी न किसी विशेषांक पर आधारित रहेगी । अब हम इस कड़ी दो परिशिष्ट और जोड़ रहे हैं – परिचर्चा और पाठकों की पाती । 

परिचर्चा में अधिकतम 4 से 5 लोगों की प्रतिक्रियाएं किसी विषय पर ली जाएंगी । नपे – तुले मर्यादित शब्दों में निष्पक्षता के साथ अभिव्यक्त किये गये मत हमारी वेबपत्रिका का हिस्सा बनेंगे ।

पाठकों की पाती – आपके पत्रों का स्वागत है…पत्र यथासम्भव किसी सामाजिक, सांस्कृतिक, शैक्षणिक मुद्दों पर हों और अधिकतम 200 शब्द हों…शुभजिता में भेजी जाने वाली रचनाएं यूनिकोड में टाइप कर के ही भेजी जाएं..जिससे हमें पढ़ने और चयनित होने पर प्रकाशित करने में सुविधा हो । हमारा उद्देश्य पत्रकारिता में युवा हस्तक्षेप को दिशा देना और महिलाओं की पत्रकारिता की दुनिया एक खुला आकाश देना है । 

पत्रिका मूल रूप से पाक्षिक रखने का विचार है..यह आरम्भ है और इस यात्रा में बहुत से मोड़ आएंगे जिनकी सकारात्मकता का हमें विश्वास है । ई संस्करण अपने व्हाट्सऐप अथवा मेल पर मँगाया जा सकता है जिसके लिए सदस्यता शुल्क 40 (प्रति अंक 20 रुपये ) रुपये प्रतिमाह होगा…प्रिंट संस्करण के लिए सहयोग राशि अंक के आधार पर तय होगी ।

किसी भी विषय में शोध कर रहे शोधार्थियों के लेख आमंत्रित हैं । अगला अंक मुंशी प्रेमचन्द जयंती पर केन्द्रित होगा । वाणी प्रवाह के लिए कविताएं, चित्र, वीडियो आमंत्रित हैं ।

अपने पत्र एवं रचनाएं भेजें

[email protected]

स्त्री-पुरुष के संबंधों और पितृसत्तात्मक समाज की मानसिकता पर प्रश्न है ‘कोई और रास्ता’

शर्मिला बोहरा जालान
स्त्री पुरुष के संबंधों पर हिंदी में कई नाटक लिखे गए हैं और वे चर्चित भी हुए हैं ,लेकिन हर नाटक इन संबंधों को नए अंदाज नए कोण से देखता और नई प्रस्तुति में पेश करता है। पिछले दिनों युवा कथाकार शर्मिला बोहरा जालान ने प्रसिद्ध नाटककार प्रताप सहगल के नाटक को देखने के बाद यह समीक्षा लिखी है।
यह नाटक भी स्त्री-पुरुष के संबंधों पर केंद्रित है और इसे इसकी मुख्य पात्र इंदुके इर्द गिर्द रचा गया है। इस नाटक का निर्देशन प्रसिद्ध रंगकर्मी निलय रॉय ने किया और मुख्य पात्र का अभिनय उमा झुनझुनवाला ने किया है ।शर्मिला जी ने इस नाटक के जरिए स्त्री-पुरुष के संबंधों और पितृसत्तात्मक समाज की मानसिकता को लेकर कुछ सवाल उठाए हैं।
******
“चन्द मुलाकातें
आंधी की तरह आईं
और बवंडर की तरह चली गईं |
रह गए यादों के कुछ सब्ज़ पत्ते
कुछ रोशनी की लकीरें
पानी के कुछ छींटे |”
ये पंक्तियाँ उमा झुंझुनवाला की गहरी आवाज़ में तब सुनी जब ‘कोई और रास्ता’ का प्रीमियर शो देखने का सुअवसर मिला |
एक व्यस्त और जटिलताओं से भरे दिन का अंत यदि एक मार्मिक मंचन को देखते हुए हो तो इसे दिन का अच्छा अंत कहेंगे |
14 जुलाई की शाम को सुप्रसिद्ध नाट्य संस्था ‘लिटिल थेस्पियन’ द्वारा आयोजित नाटक ‘कोई और रास्ता’ को ज्ञानमंच प्रेक्षागार में देखा | यह नाटक प्रसिद्ध नाट्यकार प्रताप सहगल द्वारा लिखा गया एकल नाटक है, जिसकी केंद्रीय पात्र है- इंदु | जिसे प्रसिद्ध थिएटर अभिनेत्री, निर्देशिका और लिटिल थेस्पियन की अध्यक्षा उमा झुनझुनवाला ने निभाया है |
असफल प्रेम विवाह, फिर दूसरा विवाह , कोई और रास्ते की तलाश, ये वे शब्द और पद हैं जो अभी हाल में लिखे इस ताजा नाटक के संसार को खड़ा करते हैं | ये ‘कोई और रास्ता’ के कथा सूत्र हैं | प्रेम एक ऐसा भाव है जिसे साहित्य, संगीत, नृत्य, नाटक, चित्रकला मूर्तिकला, सिनेमा ने अपने केंद्र में रखा है | विश्वास से भरे हुए प्रेम के शुरुआती दिन | इंद्रधनुषी रंग से भरा जीवन | लेकिन हर बार प्रेम अपनी पीठ पर छल , प्रवंचना , निराशा, असफलता, अवसाद क्यों लादे रहता है ! यह कौन बता सकता है ! प्रेम का संसार भंगुर ही होता आया है ऐसा किसी नियम के तौर पर नहीं कहा जा रहा पर अक्सर दिखाई देता है | प्रेम की प्रकृतियों में आते परिवर्तनों को इस प्रस्तुति में देखते हैं | प्रेम की पीड़ा, पराजय, असफलता, भटकाव उतार-चढ़ाव को भी |
‘कोई और रास्ता’ प्रेम पर प्रश्न चिन्ह लगाता है तो विवाह संस्था पर भी | ‘कोई और रास्ता’ की शुरुआत इंदु के द्वारा अपनी पीड़ा को बाँटते हुए होती है| इंदु का असफल प्रेम विवाह है| इंदु अपने जीवन की कथा , अपनी भूलों , अपने भटकाव और भ्रम को, दाम्पत्य जीवन की जटिलता, सामाजिक जीवन में पति की भूमिका को, अपने रोजमर्रा के वास्तविक जीवन को दर्शकों के साथ साझा कर रही है| वह पति पत्नी के बीच प्रेम – आशंका , विश्वास -अविश्वास के झंझावात को बता रही है | पति गौतम में वास्तविक सम्मान और समझ नहीं है | यहाँ मोनोलॉग है| संस्कारों से बंधा स्त्री मन उसकी ऊहापोह को व्यक्त किया गया है | क्या खूब अभिनय है उमा झुनझुनवाला का | निर्देशक निलॉय रॉय के मंचीय प्रयोग ने असफल प्रेम विवाह की त्रासदी और मन की दशा को , मंच की साज-सज्जा, उपकरणों के सजीव और जीवंत प्रयोग द्वारा प्रभावशाली ढंग से प्रेषित किया है | श्वेत और श्याम रंग की पोशाक पात्रों को पहनाई गयी है | पर अधिकतर पात्र काली पोशाक पहनते हैं | कास्ट्यूम , स्टेज प्रापर्टी, संगीत और सेट मुख्य किरदार की आतंरिक और बाह्य दुनिया को प्रकट करने में सफल हैं |
नाटक के केंद्र में है स्त्री, उसकी अस्मिता | पितृसत्तात्मक व्यवस्था | स्त्री ने जब-जब ‘कोई नया रास्ता’ चुना है, उसका जीवन इस प्रयोग से खुशहाल और बेहतर हुआ है | प्रेम भटकाव है तो कभी-कभी कोई और रास्ता चुन लेने पर तसल्ली भी | प्रेम शक्ति देता है तो प्रेमी जब पति बन जाता है सामाजिक स्थिति उसके अंदर के क्रूर और निर्मम व्यक्ति को हमारे सामने खोल कर रख देती है| पुरुष मित्र के रुप में नवीन नामक किरदार जब-जब इंदु के जीवन में आता है उसका जीवन थोड़ा संभलता है , थोडा सहनीय बनता है | नवीन की भूमिका उस सखा की भूमिका है जो उसे हर बार अवसाद से निकालता है | उसकी इच्छाओं, आकांक्षाओं, स्वप्नों को समझता है | इंदु के जीवन की त्रासदी यह है कि उसने प्रेम किया| प्रेम त्रासदी कब बनता है ? प्रेम जब प्रेम नहीं रहता | इंदू की कहानी आम है | पुरानी है| अक्सर पुरानी कहानी से नई पीढ़ी को गुजारना पड़ता है| इंदु नौकरी करती है| नौकरी करना एक बात है | अपने जीवन में घटने वाली दुर्घटना का प्रतिकार करना दूसरी | ऐसा हर स्त्री द्वारा संभव नहीं होता है कि वह पारिवारिक हिंसा का तुरंत प्रतिकार करें | पढ़ी-लिखी, शिक्षित, नौकरीपेशा स्त्री भी दशकों तक पति और उसके घरवालों के द्वारा किए गए अन्याय को झेलती रहती है| उसे अपनी आर्थिक शक्ति का ज्ञान नहीं होता | इस परिदृश्य में नवीन जैसे चरित्र सखा बन कर जीवन को बचाने आते हैं | ‘द सेकेंड सेक्स’ पुस्तक पढने देते हैं | पुराने विचारों से बंधे स्त्री जीवन की गांठे खोलने की कोशिश करते हैं | उसे नया आकाश दिखाते हैं | इंदु ‘द सेकेंड सेक्स’ पुस्तक पढ़ती है | ‘सिमोन द बोउआर’ से प्रभावित होती है | ‘कोई और रास्ता’ इंदु के जीवन को नए आकाश की तरफ ले जाता है |
प्रेम का अस्थायीपन , क्षणभंगुरता उसे साहस प्रदान करती है |
नाटक का प्रारंभ इंदु के द्वारा अपने जीवन के अतीत के पन्नों को पढ़ने से होता है| वह सिलसिलेवार अपनी कहानी सुना रही है| दर्शक उस कहानी से धीरे-धीरे बंधते जा रहे हैं | इंदु का जीवन , उसके एकल संवाद, दर्शक को आसपास के जीवन की स्त्रियों से जोड़ने लगते हैं | दर्शक इंदु की भूमिका में उमा झुनझुनवाला को सुनते हुए उन तमाम स्त्रियों को सुनते हैं जो किसी न किसी फिसलन से लहूलुहान हुई है| सभागार में बैठे दर्शकों का प्रभावशाली प्रस्तुति से तादात्म्य होता है| दर्शकों के मन में कई स्त्रियों का संसार खड़ा हो जाता है जो कहती हैं, यह हमारी ही तो कहानी है | थोड़ी कम, थोड़ी ज्यादा इंदु की कहानी कई स्त्रियों की कहानी है| दर्शक नाटक रस में डूब जाते हैं | स्त्री जीवन की एक पुरानी कहानी नए अनुभवों से दर्शकों को भर देती है |
एक नया रास्ता स्त्री के दिल से होकर निकला है | इंदु ने जब प्रेम किया और मां तथा नवीन के मना करने के बाद भी विवाह किया तो उसने नए रास्ते को ही चुना था और फिर पहले पति के अत्याचार से पीड़ित होकर जब दूसरा विवाह किया तो भी नया रास्ता चुना | रास्ता प्रतीक है| जीवन को गतिमान बनाने का | रास्ते खोलने चाहिए | रास्ता जीवन को, स्त्री जीवन को बदलता है | यह विश्वास यह नाटक हमें दिलाता है।
कोई भी प्रोडक्शन सामूहिक कर्म होता है| कथा, निर्देशन, अभिनय, संगीत, प्रकाश व्यवस्था सब मिलकर किसी भी प्रोडक्शन हो सफल बनाते हैं। संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार से सम्मानित मुरारी रायचौधुरी ने इसका संगीत दिया है| तो दिल्ली से प्रसिद्ध निर्देशक निलय रॉय को आमंत्रित किया गया निर्देशन के लिए| इस तरह यह एक सुंदर प्रस्तुति रही |
(साभार – स्त्री दर्पण फेसबुक पेज)

‘वैचारिक प्रतिबद्धता की मिसाल, क्रांतिकारी एवं हँसमुख व्यक्तित्व की प्रखर वक्ता थीं प्रो. रेखा सिंह’

कोलकाता । सेठ आनंदराम जयपुरिया कॉलेज की दिवंगत प्राध्यापिका प्रो. रेखा सिंह की स्मृति में उनके मित्रों, सहकर्मियों एवं विद्यार्थियों द्वारा महाजाति सदन एनेक्सी में 15 जुलाई 2023 को स्मरण सभा का आयोजन किया गया । प्रदीप सिंह ने अपने शोक प्रस्ताव में उनके बहुआयामी व्यक्तित्व पर प्रकाश डालते हुए प्रो. रेखा सिंह को श्रद्धांजलि दी। उन्हें याद करते हुए महानगर के शिक्षाविदों, साहित्यकारों एवं विद्यार्थियों ने अपनी स्मृतियाँ साझा की । डॉ. शम्भुनाथ ने डॉ. रेखा सिंह को हँसमुख एवं सरल व्यक्तित्व का बताते हुए कहा कि वह प्रखर वक्ता थीं और उनमें वैचारिक प्रतिबद्धता थी। डॉ. चन्द्रकला पांडेय ने अपनी शिष्या को स्मरण करते हुए कहा कि रेखा सिंह ने हजारों छात्राओं में अपनी प्रतिभा के बीज रोप दिये हैं । डॉ. कमलेश जैन ने उनको जुझारू एवं कर्मठ व्यक्तित्व का बताया । प्रो. हितेन्द्र पटेल ने कहा कि राजनीति में सक्रिय प्रो. रेखा सिंह ने हिन्दीभाषी लड़कियों की पारम्परिक छवि को तोड़ा । बाबू लाल शर्मा ने कहा कि उनमें दूसरों का सहयोग करने की भावना थी । मृत्युंजय श्रीवास्तव ने कहा कि रेखा सिंह की अपने विषय पर गहरी पकड़ थी । डॉ. इतु सिंह ने दुष्यंत की कविता के साथ उनको याद किया । स्मरण सभा में प्रो. रेखा सिंह के सहकर्मी सूरज साव ने उनके क्रांतिकारी व्यक्तित्व को याद किया । इस अवसर पर प्रो. सत्यप्रकाश तिवारी, प्रो. अल्पना नायक, ऋतेश पांडेय, आदित्य गिरी, मधु सिंह समेत कई अन्य लोगों ने अपनी स्मृतियाँ साझा कीं। अलका सरावगी, प्रो. अमरनाथ, प्रो. विभा समेत कई लोगों के शोक संदेशों का पाठ भी किया गया। कुसुम जैन ने अपनी कविता के माध्यम से उन्हें नमन किया। स्मरण सभा का संचालन तान्या चतुर्वेदी ने किया और उनकी सहायता की, मधु सिंह ने। इस अवसर पर प्रो. सिंह की छात्राओं ने उनकी प्रिय कविताओं का पाठ किया एवं गीत प्रस्तुत किये । डॉ. गीता दूबे ने कहा कि रेखा सिंह हमारे बीच हमेशा मौजूद रहेंगी। उन्होंने पूरे साहस और जीवंतता के साथ अपना जीवन जीया।

बारिश में इस तरह सुखाएं गीले कपड़े

हम मानसून का इंतजार करते हैं, क्योंकि तब तक आप गर्मी, पसीना, धूल और प्रदूषण से परेशान रहते हैं, फिर मूसलाधार बारिश अचानक इन सभी समस्याओं को खत्म कर देती है, लेकिन फिर नई समस्याएं भी पैदा हो जाती हैं। इस मौसम में आप गीले कपड़े आसानी से नहीं सुखा सकते क्योंकि कई दिनों तक धूप नहीं मिलती है। कई बार कपड़ों को ठीक से न सुखाने के कारण उनमें नमी रह जाती है, जिससे बदबू आने लगती है। आइए जानें कि बरसात के मौसम में कपड़ों को कैसे सुखाएं।
तौलिये का प्रयोग करें
गीले कपड़ों को सुखाने के लिए आप तौलिए का भी इस्तेमाल कर सकते हैं। इसके लिए आप सबसे पहले एक गीले कपड़े को निचोड़ लें, फिर इसे सूखे तौलिये के बीच लपेट लें। अब इसे दोबारा निचोड़ें. ऐसा करने से तौलिए से ज्यादातर नमी निकल जाएगी और फिर आप इसे पंखे के नीचे आसानी से सुखा सकते हैं।
पंखे के नीचे सुखाएं
यह सबसे आम और सरल तरीका है इसलिए इसे लगभग हर घर में आजमाया जाता है। सबसे पहले गीले कपड़ों को निचोड़कर बाथरूम के नल पर लटका दें और अधिकतर पानी निकल जाने दें। जब यह सूख जाए तो इसे छत या टेबल फैन के पास रख दें और पंखे को पूरी गति से चलाएं। तेज हवाओं के कारण कपड़े जल्दी सूख जाते हैं।
अखबार का प्रयोग करें
अगर आप गहरे रंग के कपड़े सुखाना चाहते हैं तो अखबार का इस्तेमाल कर सकते हैं। इसके लिए आप गीले कपड़े को उल्टा कर लें और फिर उसे अखबार के बीच रखकर मजबूती से दबाएं। अगर कपड़े तुरंत नहीं सूखते हैं तो इस प्रक्रिया को दोहराएं। ध्यान रखें कि इस ट्रिक का इस्तेमाल हल्के रंग के कपड़ों पर नहीं करना चाहिए, क्योंकि अखबार पर छपी स्याही आपकी पसंदीदा पोशाक को खराब कर सकती है।
दबाएँ
जब तमाम कोशिशों के बाद भी कपड़े गीले हों तो उन्हें सुखाने के लिए इलेक्ट्रिक प्रेस का इस्तेमाल करें। आप पहले लिबास को लोहे के बोर्ड पर रखें और धीरे-धीरे उसके ऊपर प्रेस चलाएं। इससे कपड़े जल्दी सूख जाएंगे और आप उन्हें पहनकर तुरंत बाहर जा सकते हैं।
हेयर ड्रायर का प्रयोग करें
अगर सावधानी न बरती जाए तो कई बार डायरेक्ट प्रेस हमारे कपड़ों को नुकसान पहुंचा सकती है, अगर आपको ऐसा डर है तो आप इसकी जगह हेयर ड्रायर का इस्तेमाल कर सकते हैं। इसकी गर्म हवा से कपड़े जल्दी सूख जाते हैं।

इन आसान तरीकों से करें पीतल की चीजों की सफाई

बाजार में पीतल से बने बर्तन से लेकर मूर्ति तक बिकते हैं। पीतल के बर्तन में पूजा करना शुभ माना जाता है। इसीलिए खासतौर पर मंदिर के बर्तन और मूर्तियां पीतल की बनाई जाती हैं। पीतल की वस्तुएं बहुत खूबसूरत लगती हैं, चाहे वह बर्तन हों या घर की साज-सज्जा की वस्तुएं। पीतल की वस्तुएं कुछ उपयोग के बाद अपनी चमक खो देती हैं। वह काला पड़ने लगता है। ऐसे में क्या आप भी इसका इस्तेमाल बंद कर देते हैं? आपको ऐसा नहीं करना चाहिए. आज इस आर्टिकल में हम आपको पीतल के बर्तन साफ ​​करने का घरेलू तरीका बताएंगे।
सॉस से पोंछ लें
नाश्ते का स्वाद बढ़ाने से लेकर सफाई तक, कई घरेलू कामों में सॉस का इस्तेमाल किया जाता है। कभी-कभी पीतल की मूर्ति की चमक फीकी पड़ जाती है। आप मिट्टी के बर्तनों से लेकर मूर्तियों तक सब कुछ साफ करने के लिए सॉस का उपयोग कर सकते हैं। बस मूर्ति पर चटनी की कुछ बूंदें डालें। थोड़ी देर बाद मूर्ति को साफ गीले कपड़े से पोंछ लें।
सिरके से साफ करें
शौचालय पर पीले दाग हटाने से लेकर दागदार गहनों की सफाई तक हर चीज में सिरके का उपयोग किया जा सकता है। जानिए पीतल की वस्तुओं को सिरके से कैसे साफ और चमकाया जा सकता है। पीतल की वस्तुओं को साफ करने के लिए नीचे दिए गए चरणों का पालन करें। 1/2 कप सिरका1 चम्मच नमक लें । एक कटोरे में 1/2 कप सिरका और 1 चम्मच नमक डालें। अब इस तरल पदार्थ में कपड़े को भिगो लें। इससे मूर्ति को साफ करें । मूर्ति को कुछ देर तक कपड़े से रगड़ें। अंत में मूर्ति को पोंछना न भूलें। आप देखेंगे कि मूर्ति बिल्कुल साफ हो गई है.
बेकिंग सोडा काम करेगा
बेकिंग सोडा एक ऐसी चीज है जिसका इस्तेमाल खाने से लेकर घर की साफ-सफाई और दाग-धब्बे हटाने तक हर चीज में किया जाता है। क्या आपके घर में पीतल की वस्तुओं की चमक फीकी पड़ गई है? पीतल को नया जैसा दिखाने के लिए आप बेकिंग सोडा का इस्तेमाल कर सकते हैं। बेकिंग सोडा के एक बार प्रयोग से पीतल की खोई हुई चमक वापस आ जाएगी।
2-3 चम्मच बेकिंग सोडा और नींबू का रस लें । एक कटोरी में 2-3 बड़े चम्मच बेकिंग सोडा में आधा नींबू का रस निचोड़ लें। अब इसे मिलाएं, ताकि यह पेस्ट बन जाए, अब इस पेस्ट को किसी पुराने ब्रश की मदद से पीतल के बर्तन पर लगाएं। इसे कुछ मिनट तक ब्रश से अच्छे से रगड़ें।
टूथपेस्ट काम करेगा
जिस तरह टूथपेस्ट की मदद से दांतों को साफ किया जाता है। इसी तरह आप टूथपेस्ट का इस्तेमाल जूतों से लेकर बर्तन तक साफ करने के लिए कर सकते हैं। इसके लिए आपको ब्रश पर थोड़ा सा टूथपेस्ट लगाना होगा और उसे पीतल पर रगड़ना होगा। कम से कम 5 मिनट तक साफ करें। अंत में पीतल को साफ गीले कपड़े से पोंछ लें।
13

दुनिया का इकलौता पहाड़ जिस पर बने हैं 900 मंदिर

दुनिया विविधताओं से भरी हुई है। इसके अलग-अलग भागों में मौजूद विभिन्न प्रकार की चीजें लोगों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करती हैं, जिनमें नदी, झरने, झील और पहाड़ भी शामिल हैं और इन्हीं सब चीजों में शामिल है दुनिया का इकलौता पहाड़, जिस पर 900 मंदिर मौजूद हैं।
यह दुनिया का इकलौता पहाड़ है, जिस पर इतनी बड़ी संख्या में मंदिर बने हुए हैं। खास बात यह है कि यह पहाड़ आपको भारत में देखने को मिल जाएगा, जो कि बड़ी संख्या में लोगों की आस्था का केंद्र बना हुआ है। हालांकि, क्या आपको पता है कि भारत के किस राज्य में यह पहाड़ स्थित है और क्या है इसके पीछे की कहानी। यदि नहीं, तो इस लेख के माध्यम से हम इस पहाड़ के बारे में जानेंगे।
कौन-सा है यह अनोखा पर्वत
दुनिया का यह इकलौता पर्वत पालीताना शत्रुंजय नदी के तट पर शत्रुंजय पर्वत कहलाता है, जिस पर करीब 900 मंदिर बने हुए हैं। अधिक मंदिर होने की वजह से यह लोगों की आस्था का भी केंद्र है। हर साल यहां पर बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं।
किस राज्य में है यह पर्वत
भारत के यह अनोखा पर्वत गुजरात के भावनगर जिले में स्थित है। यह भावनगर शहर से करीब 50 किलोमीटर दूर दक्षिण-पश्चिम में पड़ता है। यह पर्वत जैन धर्म का प्रमुख तीर्थ है। इस पर्वत पर पहले जैन तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव ने ध्यान किया था और अपना पहला उपदेश भी दिया था। पर्वत का प्रमुख मंदिर भी जैन धर्म के पहले तीर्थंकर को ही समर्पित है।
मंदिर जाने के लिए चढ़नी पड़ती हैं 3000 सीढ़ियां
इस पर्वत पर मुख्य मंदिर अधिक ऊंचाई पर स्थित है। ऐसे में यहां तक पहुंचने के लिए श्रद्धालुओं को करीब 3,000 सीढ़ियों को चढ़ना पड़ता है। इस पर्वत पर 24 में से 23 तीर्थंकर भी पहुंचे थे। ऐसे में धार्मिक दृष्टि से इस पर्वत का अधिक महत्व है।
संगमरमर से बना हुआ है मंदिर
इस पर्वत पर बना मंदिर संगमरमर से बना हुआ है, जो कि यहां आने वाले श्रद्धालुओं को एकाएक अपनी ओर आकर्षित करता है। यहां पहले मंदिर का निर्माण 11वीं शताब्दी में किया गया था। वहीं, मंदिरों को विशेष नक्काशी का ध्यान रखते हुए बनाया गया है। जिस समय इस मंदिर पर सूरज की रोशनी पड़ती है, तो यह मंदिर और भी चमक उठता है। वहीं, चंद्रमा की रोशनी में भी यह मोती जैसा लगता है।
दुनिया के इकलौते शाकाहारी शहर में है मंदिर
भारत में यह मंदिर दुनिया के इकलौते पालीताना शहर में मौजूद है, जो कि कानूनी रूप से शाकाहारी है। इस शहर में मांसाहार का बिल्कुल भी सेवन नहीं किया जाता है, जो कि इसे दुनिया के बाकी शहरों से अलग बनाता है।
(साभार – जागरण जोश)