स्त्री-पुरुष के संबंधों और पितृसत्तात्मक समाज की मानसिकता पर प्रश्न है ‘कोई और रास्ता’

शर्मिला बोहरा जालान
स्त्री पुरुष के संबंधों पर हिंदी में कई नाटक लिखे गए हैं और वे चर्चित भी हुए हैं ,लेकिन हर नाटक इन संबंधों को नए अंदाज नए कोण से देखता और नई प्रस्तुति में पेश करता है। पिछले दिनों युवा कथाकार शर्मिला बोहरा जालान ने प्रसिद्ध नाटककार प्रताप सहगल के नाटक को देखने के बाद यह समीक्षा लिखी है।
यह नाटक भी स्त्री-पुरुष के संबंधों पर केंद्रित है और इसे इसकी मुख्य पात्र इंदुके इर्द गिर्द रचा गया है। इस नाटक का निर्देशन प्रसिद्ध रंगकर्मी निलय रॉय ने किया और मुख्य पात्र का अभिनय उमा झुनझुनवाला ने किया है ।शर्मिला जी ने इस नाटक के जरिए स्त्री-पुरुष के संबंधों और पितृसत्तात्मक समाज की मानसिकता को लेकर कुछ सवाल उठाए हैं।
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“चन्द मुलाकातें
आंधी की तरह आईं
और बवंडर की तरह चली गईं |
रह गए यादों के कुछ सब्ज़ पत्ते
कुछ रोशनी की लकीरें
पानी के कुछ छींटे |”
ये पंक्तियाँ उमा झुंझुनवाला की गहरी आवाज़ में तब सुनी जब ‘कोई और रास्ता’ का प्रीमियर शो देखने का सुअवसर मिला |
एक व्यस्त और जटिलताओं से भरे दिन का अंत यदि एक मार्मिक मंचन को देखते हुए हो तो इसे दिन का अच्छा अंत कहेंगे |
14 जुलाई की शाम को सुप्रसिद्ध नाट्य संस्था ‘लिटिल थेस्पियन’ द्वारा आयोजित नाटक ‘कोई और रास्ता’ को ज्ञानमंच प्रेक्षागार में देखा | यह नाटक प्रसिद्ध नाट्यकार प्रताप सहगल द्वारा लिखा गया एकल नाटक है, जिसकी केंद्रीय पात्र है- इंदु | जिसे प्रसिद्ध थिएटर अभिनेत्री, निर्देशिका और लिटिल थेस्पियन की अध्यक्षा उमा झुनझुनवाला ने निभाया है |
असफल प्रेम विवाह, फिर दूसरा विवाह , कोई और रास्ते की तलाश, ये वे शब्द और पद हैं जो अभी हाल में लिखे इस ताजा नाटक के संसार को खड़ा करते हैं | ये ‘कोई और रास्ता’ के कथा सूत्र हैं | प्रेम एक ऐसा भाव है जिसे साहित्य, संगीत, नृत्य, नाटक, चित्रकला मूर्तिकला, सिनेमा ने अपने केंद्र में रखा है | विश्वास से भरे हुए प्रेम के शुरुआती दिन | इंद्रधनुषी रंग से भरा जीवन | लेकिन हर बार प्रेम अपनी पीठ पर छल , प्रवंचना , निराशा, असफलता, अवसाद क्यों लादे रहता है ! यह कौन बता सकता है ! प्रेम का संसार भंगुर ही होता आया है ऐसा किसी नियम के तौर पर नहीं कहा जा रहा पर अक्सर दिखाई देता है | प्रेम की प्रकृतियों में आते परिवर्तनों को इस प्रस्तुति में देखते हैं | प्रेम की पीड़ा, पराजय, असफलता, भटकाव उतार-चढ़ाव को भी |
‘कोई और रास्ता’ प्रेम पर प्रश्न चिन्ह लगाता है तो विवाह संस्था पर भी | ‘कोई और रास्ता’ की शुरुआत इंदु के द्वारा अपनी पीड़ा को बाँटते हुए होती है| इंदु का असफल प्रेम विवाह है| इंदु अपने जीवन की कथा , अपनी भूलों , अपने भटकाव और भ्रम को, दाम्पत्य जीवन की जटिलता, सामाजिक जीवन में पति की भूमिका को, अपने रोजमर्रा के वास्तविक जीवन को दर्शकों के साथ साझा कर रही है| वह पति पत्नी के बीच प्रेम – आशंका , विश्वास -अविश्वास के झंझावात को बता रही है | पति गौतम में वास्तविक सम्मान और समझ नहीं है | यहाँ मोनोलॉग है| संस्कारों से बंधा स्त्री मन उसकी ऊहापोह को व्यक्त किया गया है | क्या खूब अभिनय है उमा झुनझुनवाला का | निर्देशक निलॉय रॉय के मंचीय प्रयोग ने असफल प्रेम विवाह की त्रासदी और मन की दशा को , मंच की साज-सज्जा, उपकरणों के सजीव और जीवंत प्रयोग द्वारा प्रभावशाली ढंग से प्रेषित किया है | श्वेत और श्याम रंग की पोशाक पात्रों को पहनाई गयी है | पर अधिकतर पात्र काली पोशाक पहनते हैं | कास्ट्यूम , स्टेज प्रापर्टी, संगीत और सेट मुख्य किरदार की आतंरिक और बाह्य दुनिया को प्रकट करने में सफल हैं |
नाटक के केंद्र में है स्त्री, उसकी अस्मिता | पितृसत्तात्मक व्यवस्था | स्त्री ने जब-जब ‘कोई नया रास्ता’ चुना है, उसका जीवन इस प्रयोग से खुशहाल और बेहतर हुआ है | प्रेम भटकाव है तो कभी-कभी कोई और रास्ता चुन लेने पर तसल्ली भी | प्रेम शक्ति देता है तो प्रेमी जब पति बन जाता है सामाजिक स्थिति उसके अंदर के क्रूर और निर्मम व्यक्ति को हमारे सामने खोल कर रख देती है| पुरुष मित्र के रुप में नवीन नामक किरदार जब-जब इंदु के जीवन में आता है उसका जीवन थोड़ा संभलता है , थोडा सहनीय बनता है | नवीन की भूमिका उस सखा की भूमिका है जो उसे हर बार अवसाद से निकालता है | उसकी इच्छाओं, आकांक्षाओं, स्वप्नों को समझता है | इंदु के जीवन की त्रासदी यह है कि उसने प्रेम किया| प्रेम त्रासदी कब बनता है ? प्रेम जब प्रेम नहीं रहता | इंदू की कहानी आम है | पुरानी है| अक्सर पुरानी कहानी से नई पीढ़ी को गुजारना पड़ता है| इंदु नौकरी करती है| नौकरी करना एक बात है | अपने जीवन में घटने वाली दुर्घटना का प्रतिकार करना दूसरी | ऐसा हर स्त्री द्वारा संभव नहीं होता है कि वह पारिवारिक हिंसा का तुरंत प्रतिकार करें | पढ़ी-लिखी, शिक्षित, नौकरीपेशा स्त्री भी दशकों तक पति और उसके घरवालों के द्वारा किए गए अन्याय को झेलती रहती है| उसे अपनी आर्थिक शक्ति का ज्ञान नहीं होता | इस परिदृश्य में नवीन जैसे चरित्र सखा बन कर जीवन को बचाने आते हैं | ‘द सेकेंड सेक्स’ पुस्तक पढने देते हैं | पुराने विचारों से बंधे स्त्री जीवन की गांठे खोलने की कोशिश करते हैं | उसे नया आकाश दिखाते हैं | इंदु ‘द सेकेंड सेक्स’ पुस्तक पढ़ती है | ‘सिमोन द बोउआर’ से प्रभावित होती है | ‘कोई और रास्ता’ इंदु के जीवन को नए आकाश की तरफ ले जाता है |
प्रेम का अस्थायीपन , क्षणभंगुरता उसे साहस प्रदान करती है |
नाटक का प्रारंभ इंदु के द्वारा अपने जीवन के अतीत के पन्नों को पढ़ने से होता है| वह सिलसिलेवार अपनी कहानी सुना रही है| दर्शक उस कहानी से धीरे-धीरे बंधते जा रहे हैं | इंदु का जीवन , उसके एकल संवाद, दर्शक को आसपास के जीवन की स्त्रियों से जोड़ने लगते हैं | दर्शक इंदु की भूमिका में उमा झुनझुनवाला को सुनते हुए उन तमाम स्त्रियों को सुनते हैं जो किसी न किसी फिसलन से लहूलुहान हुई है| सभागार में बैठे दर्शकों का प्रभावशाली प्रस्तुति से तादात्म्य होता है| दर्शकों के मन में कई स्त्रियों का संसार खड़ा हो जाता है जो कहती हैं, यह हमारी ही तो कहानी है | थोड़ी कम, थोड़ी ज्यादा इंदु की कहानी कई स्त्रियों की कहानी है| दर्शक नाटक रस में डूब जाते हैं | स्त्री जीवन की एक पुरानी कहानी नए अनुभवों से दर्शकों को भर देती है |
एक नया रास्ता स्त्री के दिल से होकर निकला है | इंदु ने जब प्रेम किया और मां तथा नवीन के मना करने के बाद भी विवाह किया तो उसने नए रास्ते को ही चुना था और फिर पहले पति के अत्याचार से पीड़ित होकर जब दूसरा विवाह किया तो भी नया रास्ता चुना | रास्ता प्रतीक है| जीवन को गतिमान बनाने का | रास्ते खोलने चाहिए | रास्ता जीवन को, स्त्री जीवन को बदलता है | यह विश्वास यह नाटक हमें दिलाता है।
कोई भी प्रोडक्शन सामूहिक कर्म होता है| कथा, निर्देशन, अभिनय, संगीत, प्रकाश व्यवस्था सब मिलकर किसी भी प्रोडक्शन हो सफल बनाते हैं। संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार से सम्मानित मुरारी रायचौधुरी ने इसका संगीत दिया है| तो दिल्ली से प्रसिद्ध निर्देशक निलय रॉय को आमंत्रित किया गया निर्देशन के लिए| इस तरह यह एक सुंदर प्रस्तुति रही |
(साभार – स्त्री दर्पण फेसबुक पेज)

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