Thursday, December 18, 2025
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13 साल की तंजीम निकली कश्मीर में तिरंगा फहराने

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अहमदाबाद।शहर के जुहापुरा में रहने वाली 13 वर्षीय तंजीम अमीर मेराणी 15 अगस्त को श्रीनगर के लालचौक में राष्ट्रध्वज फहराने जा रही है। ट्युलिप स्कूल की आठवीं कक्षा में पढ़ने वाली तंजीम शुक्रवार को अहमदाबाद से श्रीनगर के लिए रवाना हो गई। श्रीनगर रवानगी से पहले गुजरात के मुख्यमंत्री विजय रूपाणी, उप-मुख्यमंत्री नितिन पटेल और मेयर गौतम शाह ने तंजीम को शुभकामनाएं दीं। इस समय तंजीम ट्विटर पर ट्रेंड कर रही है।

तंजीम मेराणी जुहापुरा में रहती हैं। उनके पिता अमीरभाई मेराणी ईंटों का बिजनेस करते हैं। तंजीम अपने माता-पिता के साथ श्रीनगर रवाना हुई है। ये लोग 14 अगस्त को श्रीनगर पहुंचेंगे। 15 अगस्त को देश के 70 वें स्वतंत्रता दिवस को तंजीम श्रीनगर के लाल चौक में राष्ट्रध्वज फहराएंगी। बता दें कि अलगाववादियों ने इसी लाल चौक पर तिरंगे का अपमान किया था।

तंजीम से जब ये पूछा गया कि उसे ये ख्याल कैसे आया तो उसने बताया कि वो लोगों को कश्मीर में पाकिस्तान और आईएसआईएस के झंडे लहराते देखती है, जबकि कश्मीर तो भारत का हिस्सा है तो यहां तिरंगा क्यों नहीं फहराया जाता। तंजीम के पिता आमिर मेरानी का कहना है कि वो अपनी बेटी के इस फैसले के साथ हैं। वे आर्मी के अधिकारियों से निवेदन करेंगे कि वो उनकी बेटी को तिरंगा फहराने दें। अगर आर्मी उनके इस अनुरोध को मानने से मना कर देगी तो वो भूख हड़ताल करेंगे।

 

रियो ओलम्पिक्स – सचिन के कहने पर प्रधानमंत्री मोदी ने दिया एथलीटों को संदेश

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महान क्रिकेटर सचिन तेंदुलकर ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से 70वें स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर अपने भाषण में खिलाड़ियों का जिक्र करने का आग्रह किया जो रियो ओलंपिक के दौरान देश का सम्मान दिलाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं।

हाल में लांच किए गए अपने नए मोबाइल एप्प ‘नमो’ के जरिये प्रधानमंत्री ने देशवासियों से स्वतंत्रता दिवस पर अपने भाषण की सामग्री के बारे में राय मांगी थी। मोदी के एप्प पर अपने पत्र में तेंदुलकर ने प्रधानमंत्री से रियो ओलंपिक में देश के लिए पदक लाने से चूकने वाले और अब भी संघर्ष कर रहे खिलाड़ियों को प्रोत्साहित करने के लिए कुछ शब्द बोलने का आग्रह किया।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्वीट कर करके कहा कि सचिन तेंदुलकर ने उन्हें अपने 15 अगस्त को होने वाले भाषण में रियो ओलंपिक में हिस्सा ले रहे खिलाड़ियों की हौसला अफजाई करने को कहा था लेकिन मोदी ने कहा कि इसके लिए उन्हें 15 अगस्त का इंतजार करने की जरूरत नहीं है।

सचिन के कहने पर प्रधानमंत्री ने एथलीटों को दिया ये संदेश
प्रधानमंत्री ने खिलाड़ियों को अपने संदेश में कहा कि हार और जीत जीवन का हिस्सा है। उन्हें पूरी ताकत के साथ मैदान पर उतरना चाहिए.

प्रधानमंत्री ने कहा कि एथलीटों को पूरी एकाग्रता, मेहनत और ताकत के साथ मैदान पर उतरना चाहिए, देश को उन पर गर्व है और पूरा देश उनके साथ खड़ा है।प्रधानमंत्री ने अपने ट्वीट में कहा कि जिन एथलीटों को अब मैदान पर उतरना है उन्हें परिणाम के बारे में नहीं सोचना चाहिए बस अपना सौ फीसदी देने पर ध्यान देना चाहिए।

 

शहीदों की याद में एक साल में एक लाख दस हज़ार पौधे लगा चुकी है ये गृहिणी

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आज दिन -प्रतिदिन हमारे पर्यावरण की हालत बिगड़ती चली जा रही है। पर्यावरण में हुए असंतुलन के कारण कभी बाढ़, कभी सूखा, कभी अत्यधिक गर्मी, कभी अत्यधिक सर्दी, इसके अलावा ग्लेशियर का पिघलना, ब्लैक होल जैसी समस्याएं उत्पन्न हो गई है। ऐसे में राधिका आनंद जैसी पर्यावरण प्रेमी हो तो निश्चय ही हमारे लिए सौभाग्य की बात है।

दिल्ली में रहने वाली 52 वर्षीय गृहिणी राधिका एक साल में अब तक एक लाख दस हजार फलो के पेड़ लगा चुकी हैं। इनमें आम, इमली, जामुन और कटहल के पेड़ शामिल हैं, जो उत्तर भारत, राजस्थान और महाराष्ट्र के आर्मी क्षेत्रों में लगाए गए हैं। इस कार्य को पूरा करने के लिए राधिका ने कुछ अपनी पूंजी और कुछ अपने मित्रों से आर्थिक सहायता प्राप्त की है और अब आर्मी भी उनके साथ है।

राधिका एक पूर्व एयरफोर्स कर्मी की बेटी हैं। उन्हें बचपन से ही पर्यावरण के सन्दर्भ में कार्य करने का शौक था।

अपने इस काम को आगे बढाते हुए उन्होंने, लगभग 20 साल पहले ‘प्लान्टोलॅाजी’ नाम की एक संस्था की स्थापना की। इस संस्था ने पर्यावरण मंत्रालय, दिल्ली सरकार और अनेक सामाजिक संस्थाओं के साथ मिलकर कई वर्कशॅाप्स किये। इन्होने भारतीय युवाओं से विशेष तौर पर पर्यावरण की रक्षा करने और एक मजबूत एवं स्वस्थ इकोसिस्टम बनाये रखने के उद्देश्य से बातचीत करने के कार्यक्रम भी रखे। 2006 से अब तक वह दिल्ली सरकार की साझेदारी में 500 वर्कशाप कर चुकी हैं।

इस समय ‘प्लान्टोलॅाजी’ संस्था अपने मिशन ‘फलवान’ के अन्तर्गत फल उत्पादन करने वाले वृक्षों को लगा रही है। उनकी वेबसाइट के अनुसार,”यह आन्दोलन आने वाली पीढ़ी को सभी प्रकार के खाद्य पदार्थ उपलब्ध कराने और ज्यादा हरियाली एवं आक्सीजन विकसित कराने के उद्देश्य से है।

अपने मिशन की सफलता के लिए राधिका ने आर्मी के साथ साझेदारी कर ली है और आर्मी भी पौधों की रक्षा में उनकी सहायता कर रही है। वर्कशाप के दौरान उन्हें जितना भी धन मिलता है, उसे वह अपने वृक्षारोपण कार्यक्रम में लगा देती हैं।

अगले साल तक राधिका की दो लाख पौधे लगा देने की योजना है। पौधों की ये भारी मात्रा शहीद हुए जवानों की स्मृति में ‘सेन्टर फॅार आर्म्ड फोर्सेस हिस्टोरिकल रिसर्च (CAFHR)’ के कार्यक्रम ‘इण्डिया रिमेम्बर्स’ के अन्तर्गत लगाये जाएंगे।

राधिका के इस प्रशंसनीय कार्य की जानकारी जैसे-जैसे लोगों तक पहुँच रही है, भारी मात्रा में लोग उनके साथ जुड़ रहे हैं और इस वजह से इस कार्य के प्रति उनकी शक्ति, साहस एवं समर्पण बढ़ता ही जा रहा है।

(साभार – द बेटर इंडिया)

मुस्‍लिम महिलाओं ने पीएम को भेजी राखी, बोलीं- मोदी ने किया देश का सीना चौड़ा

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वाराणसी. मोदी के संसदीय क्षेत्र काशी की मुस्‍लिम महिलाओं ने उनके लिए अपने हाथों से बनाई राखी भेजा है। उन्‍होंने ये राखी शनिवार को स्‍पीड पोस्‍ट से भेजा। इस दौरान उन्‍होंने कहा, ‘मोदी ने विदेशों में इंडिया का सीना चौड़ा किया है। इसके लिए हमलोग अल्‍लाह से उनकी लंबी उम्र की दुआ करते हैं।’

-मोदी को भेजे गए राखी को मुस्लिम महिला फाउंडेशन की महिलाओं ने तैयार किया है।

-फाउंडेशन की सदर नाजनीन अंसारी ने कहा कि कुछ कट्टरपंथी देश में नफरत का बीज बोते हैं।

-हिन्दू-मुस्लिम के बीच खाई तैयार करते है। उनको और आतंकियों के लिए काशी से जवाब दिया गया है।

-सभी मुस्लिम बहनें भारत माता की औलाद हैं।

-जरुरत पड़ी तो मुस्‍लिम महिलाएं कश्मीर पहुंचकर सरहद पर जान न्योछावर कर सकती हैं।

मोदी ने किया विदेशों में भारत का सीना चौड़ा

-वहीं, नजमा परवीन ने बताया कि नरेंद्र मोदी ने विदेशों में भारत का सीना चौड़ा किया है।

-पाकिस्तान के घर में जाकर दोस्ती का पैगाम भी देकर आए।
-सरहद पर अब जवानों के सिर नहीं कटते, बल्कि दुश्मन गोलियां तक नहीं गिन पाता है।

-जबकि शाहजजहां ने कहा कि मुस्लिम बहनों ने मोदी के लिए गीत भी बनाया है।
-गोटा और जरी की राखियां बनाकर उनके लिए भेजा गया है।
-इसका मकसद पूरे देश में अमन-चैन का संदेश देने का है।

-उन्‍होंने बताया कि चित्तौड़ की रानी कर्मावती ने मुग़ल बादशाह को राखी भेजी थी। रक्षा को लेकर जो इतिहास बन गया।

मुस्‍लिम महिलाओं ने संदेश में ये भी लिखा है

-जुबैदा ने बताया कि बनारस की सड़कें, बिजली और पानी की स्थिति काफी ख़राब है।

-इसलिए ये भी संदेश भेजा है कि यहां की ये समस्‍याएं दूर हों।
-जुबैदा ने कहा, ‘हम सबने अल्लाह से मोदी के लिए लंबी उम्र की दुआ मांगी है।’

 

स्मृति ईरानी ने अनोखे तरीके से किया हैंडलूम का प्रचार, सोशल माीडिया से मिलीं तारीफें

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 .यूनियन टेक्सटाइल्स मिनिस्टर स्मृति ईरानी को एचआरडी मिनिस्ट्री से हटाए जाने के फैसले को उनके डिमोशन के रूप में देखा जा रहा था। हालांकि वे इससे निराश नहीं हुईं और सोशल मीडिया का इस्तेमाल करते हुए एक बार फिर ट्विटर पर छा गई । – नरेंद्र मोदी के डिजीटल इंडिया कैंपेन के तहत टेक्सटाइल मिनिस्टर स्मृति ईरानी ने हैंडलूम कैंपेन की घोषणा करते हुए फोटो पोस्ट की।

स्मृति ईरानी ने ट्विटर पर बिहार की बुनी नीली साड़ी में अपनी फोटो शेयर करते हुए लोगों से हैंडलूम का इस्तेमाल करने की अपील की।

– 7 अगस्त (नेशनल हैंडलूम डे) को इस कैंपेन का पूरा स्वरूप देखने को मिला।

 

ईरानी के ट्रेडिशनल ड्रेस में फोटो ट्वीट करने के बाद पॉलिटिशियंस, सेलेब्स और क्रिकेटर्स ने इसे फॉलो किया।

स्मृति ईरानी ने नेशनल हैंडलूम डे पर किए गए अपने ट्वीट में लिखा,’इंडियन हैंडलूम भारतीय संस्कृति और विरासत का प्रतीक है। इस समृद्ध परंपरा को धारण करें और 43 लाख बुनकरों और उनके परिवारों को सपोर्ट करें।

स्मृति ईरानी के इस फोटो को ट्वीट करने के बाद लोगों ने #IWearHandloom से कमेंट करना शुरू कर दिया और राजनेताओं से लेकर क्रिकेटर्स और फैशन से जुड़े कई लोगों ने इसमें हिस्सा लिया।

स्मृति ईरानी की अपील पर विदेश मंत्री सुषमा स्वराज और महिला एवं बाल विकास मंत्री मेनका गांधी ने हैंडलूम की साड़ी और सूट पहना।

समर्थन के लिए स्मृति ईरानी ने सुषमा और मेनका का धन्यवाद दिया।

इसके बाद केंद्रीय मंत्री किरन रिजिजू, पीयूष गोयल, जयंत सिन्हा सबने हैंडलूम से बने कपड़ों की तारीफ की और फोटो भी रिट्वीट की।

 

तीन रंगों की खूबसूरती फैशन को बनाए तिरंगा 

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हर भारतीय की तरह आप हर साल इस दिन का बेसब्री से इंतजार करती होंगी। स्वतंत्रता प्राप्त करने के बाद आजादी के जश्न को पूरे जोश और उमंग के साथ मनाने से बेहतर और क्या हो सकता है? इस साल हम देश की आजादी की 70वीं वर्षगांठ मनाएंगे। ऐसे में आपको भी स्वतंत्रता दिवस मनाना है तो क्या फर्क पड़ता है कि आप देश के किस कोने में हैं, तीन रंगों की खूबसूरती अपने फैशन को दीजिए और शान से मनाइए आजादी का जश्न –

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भारत का हर निवासी स्वतंत्रता दिवस को अपने अंदाज में मनाता है। यह दिन सभी भारतवासियों के लिए खास होता हैं, आप ऐसे में कुछ ड्रेस कैरी करके भी अपने आपको स्वतंत्रता दिवस के लिए तैयार कर सकती हैं। आइए हम आपको बताते हैं कि कैसे आप तिरंगे के रंगों को बेस बनाकर कुछ ड्रेसिस को ट्राई कर सकती हैं।

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ट्राईकलर सलवार कमीज
हालांकि यह थोड़ा मुश्किल है कि आप ट्राईकलर के सलवार कमीज अचानक कहीं से खरीदकर ले आएं। लेकिन आप ऐसे में सफेद रंग के सूती कपड़े का कुर्ता खरीदकर उसमें हरे रंग की सलवार और सैफरॉन रंग का दुपट्टा कैरी कर सकती हैं। यह कॉम्बिनेशन स्वतंत्रता दिवस के मौके पर काफी अच्छा लगेगा।

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 ट्राईकलर साड़ी
अगर आपको साड़ी पहनना काफी पसंद है तो स्वंतत्रता दिवस के इस खास मौके पर आप साड़ी भी पहन सकती हैं। जी हां, आजकल मार्किट में आपको ट्राईकलर की साड़ी भी बड़े ही आराम से मिल जाएगी। अगर किसी कारण आपको मार्किट ना जा पाएं तो आप सफेद रंग की चिकन की कढ़ाई वाली साड़ी में सैफरन का बलाउज पहन लें और हरे रंग की चूड़ियां और बिंदी पहन सकती हैं।

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ट्राईकलर दुपट्टा

आप अपनी डेनिम जीन्स क साथ सफेद कुर्ती पहन सकती हैं, अपने लुक को पूरी तरह से स्वंतत्रता दिवस के लिए तैयार करने के लिए आप एक ट्राईकलर दुपट्टा ऊपर से कैरी कर लें। यकीन मानिए ऐसा करके आप स्वंतत्रता दिवस की लाइमलाइट बन जाएंगी।

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ट्राईकलर कुरती

तीन रंग की या फिर तीनों रंग एक ही कुरती में पहन सकती हैं, आपको यह कुरती काफी आसानी से मिल जाएगी, क्योंकि आजकल हर कोई 15 अगस्त की तैयारी में लगा हुआ है। आप इस प्रिंटिड टीशर्ट को डेनिम जीन्स या शॉर्ट्स के साथ पहन सकती हैं।

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तिरंगे के रंग की चूड़ियां
अगर आपको कोई सुझाव ना समझ आएं तो आप तिरंगे के रंग की चूड़ियां ट्राई कर सकती हैं। आप ऐसे में सफेद रंग के कपड़े पहनकर उनके साथ तिरंगे के रंग की चूड़ियां पहनकर अपने आप को स्वंत्रता दिवस के लिए तैयार कर सकती हैं।

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 ट्राईकलर नेलआर्ट

तिरंगे और देश के लिए अपने प्यार को आप किसी भी तौर पर दिखा सकती हैं। आप अपने नाखूनों पर पेंट कर भी अपने देशभक्ति को व्यक्त कर सकती हैं, इसके अलावा आप अपने नाखूनों को सैफरॉन, सफेद और हरे रंग में भी रंग सकती हैं।

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 ट्राईकलर आई मेकअप

अगर आपके पास तिरंगे के रंग के आईशैडो हैं तो आप उसकी मदद से अपनी आंखों पर आई मेकअप कर सकती हैं। इस स्वतंत्रता दिवस पर अपनी आंखों के जरिए भी आप अपने देश प्रेम को व्यक्त कर सकती हैं।

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छतें रंगकर औऱ जमीन में संगमरमर तराशकर अपना घर संवार रही हैं राधा और सविता!

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किसी निर्माणाधीन इमारत के बनने की कल्पना कीजिए। आपकी कल्पना में ठेकेदार से लेकर मजदूर, बढ़ई, पेन्टर, सब पुरूष ही होंगे। हकीकत भी इस कल्पना के करीब ही है। ऐसी जगहों पर महिलाएं काम करती भी हैं तो वो मजदूरी का ही काम करती हैं। इसके लिए उन्हें पैसे भी नाम मात्र के ही मिलते हैं। जबकि, अगर इन्हें मौका मिले तो अपने कौशल से न सिर्फ अपनेआप को पुरूषों से बेहतर सिद्ध कर सकती हैं, बल्कि सारे काम बिना किसी पुरूष सहयोगी के निबटा सकती हैं।

भुवनेश्वर के सालिया साही झुग्गी में रहने वाली राधारानी की अलग पहचान है। अपने घर और साइट पर अपने काम को बेहतर ढंग से पूरा करने का खाका वो खुद ही तैयार करती हैं। राधारानी 43 साल की हैं और अपनी झुग्गी की अन्य महिलाओं के लिए प्रेरणा हैं।

राधारानी एक कुशल पेन्टर हैं। उन्होंने स्थानीय निर्माणकार्यों के व्यापार में अपनी जगह बना ली है। उनके व्यवहार और काम में दक्षता के कारण सब उनका आदर करते हैं। राधारानी की अपनी टीम है। इस टीम में पाँच महिलाएं हैं। इन महिलाओं को प्रशिक्षण भी राधारानी ने ही दिया है। उनका पूरा ध्यान काम को सही तरीके से समय पर पूरा करने में होता है।

जब राधारानी ने इस काम के लिए कदम बढ़ाए तो उनके लिए राह आसान नहीं थी। पहले तो ठेकेदार ही उनसे काम लेने से मना कर देते थे। वो जहाँ भी काम करतीं, लोग एक महिला पेन्टर को देखकर चौंक जाते थे।

वो बताती हैं, “6 साल पहले मुझे पेन्टिंग का एक ठेका मिला था। मैं सीढ़ी लगाकर अपना काम कर रही थी, तभी इंजीनियर इन-चार्ज ने मुझे पुकारा। जैसे ही मेंने अपने सिर से कपड़ा हटाया, वो मुझे देख कर हैरान रह गए। वो बोले कि उन्होंने कभी कल्पना भी नहीं की थी कि पेन्टरों की किसी टीम की मुखिया एक महिला होगी।“

 राधारानी ने यह काम अपने पति, शंकर प्रधान से सीखा है। उनको इस काम में लाने का फैसला भी पति का ही था। उन्हें अपने दो बच्चों की पढ़ाई के लिए ज्यादा पैसे कमाने की जरूरत थी।कभी-कभी राधारानी को अपने पति से ज्यादा काम और पैसे मिल जाते हैं। राधारानी ने बताया कि उनके पति इस बात से खुश तो होते ही हैं और घर के कामों में उनका हाथ भी बँटाते हैं।

राधारानी की ही तरह सविता सतुआ संगमरमर की एक कुशल कारीगर हैं। हालाँकि, उन्हें कभी-कभी अपने पुरूष साथियों की वजह से दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। सविता की उम्र 45 साल है।

 सविता बड़े गर्व से बताती है,”इस क्षेत्र में लोग महिलाओं के स्वीकार नहीं करते। लोगों की मानसिकता है कि महिलाओं को बस मजदूरी करनी चाहिए। लेकिन मैंने बेहतर काम करके सबको गलत साबित कर दिया।“

 काम के अलावा व्यक्तिगत जीवन में भी सविता संघर्षों से जूझती रहीं। पति ने उन्हें छोड़ दिया तो अपने बच्चे को संभालने के लिए सविता को दिन-रात मेहनत करनी पड़ी। पहले तो उन्होंने मजदूरी करना शुरू किया। पर, जब इससे हालात नहीं सुधरे तो उन्हें और पैसे कमाने की जरूरत महसूस हुई। उन्हें लगा कि ज्यादा पैसे कमाने के लिए किसी काम में कुशल होना पड़ेगा।

सविता ने कहा, “मैंने देखा कि पत्थर के कारीगरों को अच्छे पैसे मिल जाते थे इसलिए मैंने ये काम सीखने का फैसला किया। जब मैंने कुछ कारीगरों से मुझे काम सिखाने के लिए कहा तो उन्होंने मना कर दिया। आखिर एक महिला पत्थर की कारीगरी के काम में कैसे लग सकती है? पर, मैंने उन्हें मना लिया। मैं अपने बच्चे को अच्छी शिक्षा देने के लिए कुछ भी करने के लिए तैयार थी। अब वो कॉलेज में पढ़ता है।“

15 साल से सविता का कद अपने काम में लगातार बढ़ता गया। सविता कहती है ,“मैं पुरूषों की पूरी की पूरी एक टीम के साथ काम करती हूँ। कई बार हमारे बीच मतभेद होते हैं, लेकिन वो जानते हैं कि टीम की इंचार्ज मैं हूँ। पुरूषों की मानसिकता ही होती है महिलाओं से काम लेना या उनका शोषण करना. लेकिन मेरा ख्याल है कि ये काफी हद तक महिलाओं पर निर्भर करता है कि वो उनसे किस लहज़े में निबटती हैं। “

राधारानी और सविता जैसी महिलाओं का दृढ निश्चय और उनके परिवार का सहयोग उन्हें इस क्षेत्र में काफी आगे तक ले जा सकता है। लेकिन, अब भी इनकी संख्या कम ही है।प्रशिक्षण संस्थानों की कमी, सामाजिक प्रतिबंध, निम्न मानसिकता जैसी चीजें इन महिलाओं के रास्तों में बड़ा रोड़ा बन जाती हैं।

राज्य के अन्य हिस्सों की बात करें तो खुर्द जिले के तंगी ब्लॉक से बड़ी संख्या में लोग पलायन करते हैं। इनमें से ज्यादातर मछुवारे हैं जो चिलिका झील में मछलियों की कमी के कारण पलायन कर रहे हैं। हर साल लगभग 5000 लोग निर्माण कार्यों में मजदूरी करने के लिए भुबनेश्वर आते हैं। इनका बाजार (नाका) लगता है, जहाँ से ठेकेदार इनको काम पर रखते हैं। इनके पास मोलभाव करने का कोई अवसर नहीं होता है। ऐसे में महिलाओं की स्थिती और खराब है।

अनिमा बेहरा बताती हैं, ”ठेकेदार पुरूषों को ज्यादा पैसे देते हैं। उन्हें लगता है कि महिलाएं पुरूषों जितना काम नहीं कर सकतीं हैं। वो बस पुरूषों के काम में हाथ भर बटा सकती हैं।“अनिमा जैसी महिलाओं की स्थिति आज बदतर है। लेकिन, उड़ीसा बदलाव की दहलीज पर ही है। राज्य ने  The Building and Other Construction Workers (Regulation of Employment and Conditions of Service) Act 1996,लागू कर दिया है जिसमें निर्माण मजदूरों के लिए 20 से ज्यादा सामाजिक सुरक्षा की गारंटी है।

इन महिलाओं की मदद के लिए, उनकी शिक्षा और शादी में सहयोग के लिए और मातृत्व के लिए सुविधाओं की गारंटी के लिए राज्य श्रम विभाग, इनका पंजीकरण कर के, इन्हें पहचान पत्र दे रहा है। 31 मार्च 2016 तक लगभग 14,24,531 लोगों ने पंजीकरण कराया है।  Odisha Building and Other Construction Workers Welfare Board.के चेयरपर्सन सुभाष सिंह ने बताया, ‘महिलाओं को लेबर ऑफिस आने का समय नहीं मिल पाता है। इनका पंजीकरण हम इनके काम के स्थानों पर जाकर करेंगे। इसके लिए वो विभाग में लोगों की संख्या बढ़ाने का सोच रहे हैं। उड़ीसा राज्य सामाजिक सुरक्षा बोर्ड इन लोगों को अनऑर्गनाइज्ड आइडेन्टिफिकेशन नम्बर कार्ड देने की भी तैयारी कर रहा है।

लेबर कमिश्नररूपा मिश्रा श्रमिकों के भविष्य के लिए काफी आशावादी हैं। उन्होंने बताया कि राज्य सरकार ने 6 RPL (रिकग्निशन ऑफ प्रायर लर्निंग) प्रशिक्षण सहयोगियों के साथ MoU साइन किया है। इससे श्रमिकों के कौशल विकास में मदद ली जाएगी।

“अब तक 47 हजार मजदूर इस प्रशिक्षण का लाभ ले चुके हैं। हम प्रशिक्षण में आने के लिए मजदूरों को 200 रूपए देने पर विचार कर रहे हैं जिससे वो अपना काम छोड़कर आ सकें”, रूपा ने कहा। राधारानी और सविता न सिर्फ कुशल टीम लीडर हैं, बल्कि अपनी साथियों की जरूरत भी समझती हैं। इसलिए वो महिलाओं और पुरूषों को बराबर काम के बराबर पैसे भी देती हैं। ऐसे में नए कानून को लागू करने और श्रमिकों के कौशल विकास की राह थोड़ी आसान अपनेआप हो जाती है।

 

मदरसों पर ध्वजारोहण करें, खुलकर जश्न मनाएं

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बरेली। हर बार जश्ने आजादी के मौके पर सवाल उठता है कि मुसलमान मदरसों और घरों पर झंडा फहरा सकते हैं या नहीं? इस बार दरगाह आला हजरत से इस मसले पर फतवा ही जारी कर दिया गया। साफ कर दिया कि झंडा फहराने या जश्न मनाने में किसी तरह का कोई हर्ज नहीं है।

वतन पर शहीद होने वालों को खिराजे अकीदत (श्रद्धांजलि) पेश करने के सवाल पर कहा है “ऐसे सुन्नी बरेलवी मजहबी रहनुमा और उलमा को पेश की जाए, जिनका अकीदा सही था।” दरगाह से इस सिलसिले में सवाल भी पूछा गया था। जवाब में दरगाह आला हजरत के मुफ्ती ने कहा कि शरीयत के दायरे में रहकर जश्न मनाने में कोई हर्ज नहीं है। इस्लामी कानून के उसूलों का एहतराम करते हुए मुल्क का झंडा भी फहरा सकते हैं।

बेहतर यह है कि आजादी के जश्न में उन मुस्लिम उलमा और मजहबी रहनुमाओं को खिराजे अकीदत पेश करें, जिन्होंने जालिम अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ आवाज उठाई थी। अपनी जान व माल कुर्बान कर दिया। ऐसा करके फिरकापरस्तों की साजिश को भी नाकाम किया जा सकता है, जो मुसलमानों के खिलाफ मुल्क से दुश्मनी का इल्जाम लगाते रहते हैं।

नफरत का माहौल खड़ा करते हैं और तोहमत लगाते हैं। ऐसी ताकतों को जवाब देने के लिए आजादी के जश्न में बढ़ चढ़कर हिस्सा लें। इस जश्न के लिए हमारे बुजुर्गों ने भी कुर्बानियां दी थीं। आजादी की फिजा में सांस लेने की तमन्ना की थी। दरगाह आला हजरत के मदरसा मंजरे इस्लाम के मुफ्ती मुहम्मद सलीम नूरी ने फतवा जारी कर सभी मुसलमानों से जश्ने आजादी में हिस्सा लेने का आह्वान भी किया है।

 

अब स्थानीय भाषाओं में भी बन सकेगा ईमेल एड्रेस; हिन्दी से होगी शुरुआत

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भारत सरकार के इलेक्ट्रानिक और आईटी मंत्रालय द्वारा ईमेल एड्रेस को स्थानीय भाषाओं में बना पाने (जिसकी शुरूआत हिन्दी से होगी) के सन्दर्भ में एक बैठक आयोजित की गई, जिसमें आधुनिक टेक्नोलॉजी की दिग्गज कंपनियों में शुमार माइक्रोसॅाफ्ट , गूगल, रैडिफ के सदस्यों ने मिलकर इस सम्बन्ध में सकारात्मक निर्णय लिया।

इकोनॅामिक टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक मंत्रालय ग्रामीण और अर्द्धग्रामीण क्षेत्रों में भी डिजिटलाइजेशन के लिए प्रयासरत है। इलेक्ट्रानिक्स और आईटी मंत्रालय में ज्वाइन्ट सेक्रेटरी राजीव बंसल का कहना है:

“अगले कुछ सालों में ‘भारत नेट प्रोजेक्ट’ के अन्तर्गत 2,50,000 ग्राम पंचायतों को हाई स्पीड  इन्टरनेट से जोड़ने की योजना है। इस योजना से पहले यह सुनिश्चित हो जाना चाहिए कि वे इसका प्रयोग उचित रूप से कर पाए।”

 इस मीटिंग में शामिल माइक्रोसाफ्ट और रैडिफ के प्रतिनिधियों ने उम्मीद जतायी कि यह टेक्नोलॉजी ईमेल एड्रेस के लिए ऐसी लिपि विकसित करने में सक्षम होगी जो देवनागरी पर आधारित हो। गूगल के चपारो मोंफेर्रेर का कहना  है-

“भविष्य में हम जीमेल एकाउंट में ऐसा कुछ संभव करने की पूरी कोशिश करेंगे।”

 सामान्यतः, ईमेल एड्रेस लैटिन लिपि में लिखे गए कैरेक्टर्स को प्रयोग में लाने में सक्षम है,लेकिन अंतर्देशीय ईमेल फ्रेमवर्क किसी भी स्थानीय भाषा में ईमेल आईडी को सहयोग करता है।इसमें रशियन, ग्रीक, चाइनीज़ और हिन्दी शामिल हैं। यह एड्रेस ए एस सी आई आई(ASCII) कैरेक्टर के स्थान पर यूनिकोड कैरेक्टर का प्रयोग करते हैं।

माइक्रोसॅाफ्ट का कहना है कि उनके सॅाफ्टवेयर का सबसे नया संस्करण अंतर्देशीय ईमेल एड्रेस को सहयोग करता है। गूगल ने भी 2014 से नॅान-लैटिन कैरेक्टर्स(जैसे-चाइनीज़, देवनागरी आदि ) पर आधारित आईडी को पहचानना शुरू कर दिया था। अब इस दिशा में आगे कदम बढ़ाने की आवश्यकता है।

सरकार के इस प्रशंसनीय कार्य से आने वाले समय में भारत के प्रत्येक व्यक्ति की उंगलियों पर दुनिया होगी तथा विकास की गति में तीव्रता आएगी।

 

अब बेटियों के नाम से जाने जा रहे हैं इस गांव के घर

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जमशेदपुर के एक गांव में बेटियों को बढ़ावा देने के लिए एक खास और अनूठी मुहिम चलायी जा रही है। आमतौर पर घरों के बाहर लगी नेम-प्लेट पर घर के मुखिया यानी पिता का नाम होता है. लेकिन इस गांव में अब नेम-प्लेट पर बेटियों के नाम लिखे जा रहे हैं।

झारखण्ड सरकार ने जमशेदपुर के तीरिंग गांव से ये अनोखी पहल की है। सरकार की कोशिश है कि गांव के हर घर की पहचान उसकी बेटी के नाम से हो। मेरी बेटी, मेरी पहचान मुहिम को लेकर गांव के लोगों में भी काफी उत्साह है। तीरिंग गांव, झारखंड का ऐसा पहला गांव है, जहां हर घर के बाहर बेटियों के नाम वाली नीली-पीली नेम-प्लेट लगी हुई है। नेम-प्लेट के इन रंगों के चयन के पीछे एक सोच है। पीला रंग जहां नई सुबह से जुड़ा हुआ है वहीं नीला आसमान की ऊंचाई से.

तीरिंग गाँव आदिवासी बहुल इलाका है। इस गांव में शिशु लिंग अनुपात काफी कम है और साक्षरता दर भी 50 प्रतिशत से कम है। गांव को एक नई दिशा देने के लिए और बेटियों को आगे बढ़ाने के लिए ही ये पहल की गई है. फिलहाल इस गांव के 170 घरों के बाहर बेटी के नाम की नेम पलेट लगा दी गई है।

देश का पिछड़ा राज्य है झारखण्ड 
झारखण्ड में आज भी कन्या भ्रूण हत्या जैसी घटनाएं बदस्तूर जारी हैं. लोग बेटों के लालच में अपनी अजन्मी बेटियों को गर्भ में ही मार डालते हैं। इसके लिए जितने जिम्मेदार मां-बाप हैं उतने ही वो डॉक्टर भी जो कुछ पैसों के लिए इस गैर-कानूनी काम को करते हैं।