Friday, December 19, 2025
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400सीसी नई बजाज पल्सर अब इस नाम से बाजार में आएगी

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बजाज की सबसे चर्चित आगामी 400सीसी पल्सर का नाम कंपनी ने बदल दिया है। अब बाइक को बजाज पल्सर वीएस400 के नाम से जाना जाएगा। ऑटो एक्स 2016 के दौरान प्रदर्शित होने वाला कॉन्सेप्ट मॉडल सीएस400 मोनिकर के साथ पेश किया गया था। यहां सीएस का आशय ‘क्रूजर स्पोर्ट’ से था। लेकिन लीक ब्रॉशर के मुताबिक अब बाइक को वीएस400 नाम दिया गया है।

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तस्वीर

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ड़ॉ. इंदिरा चक्रवर्ती सिंह

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तस्वीर

कभी पुरानी नहींं होती

आईना नया हौ या पुराना

रेखाएं कच्ची हों या पक्की

उनके बीच होता तो वही है

जो था

जैसा था

जस का तस

बाकी तो मुलम्मा है।

सरकते समय का आभास

भले बीतने का संकेत दे

पर दरवाजे के उस पार तो वही आहट

जो समय के शुरू होने के साथ था

भीतर तो वही इंतजार

आहटों का लेखा – जोखा

बिंदास, दौड़ने की ललक

लहरों के साथ

लहरों पर सवार होकर

क्षितिज तक पहुँचने की लालसा

तस्वीर के बनने से लेकर

आज तक

उतनी ही हरी है।

जब मुल्लमे का पुख्तापन

मूल को अँगूठा दिखा रहा है

पर

तस्वीर तो तस्वीर है

जिसकी उम्र नहीं होती

और, भीतर का बच्चा तो बच्चा है

जो बड़ा होने का नाम नहीं लेता

पर उस मुलम्मे का क्या करे कोई

जो उस पर चढ़े बिना बाज नहीं आता।।

(कवियत्री सेठ सूरजमल जालान गर्ल्स कॉलेज की वरिष्ठ एसोसिएट प्रोफेसर हैं)

रक्षाबंधन पर बनाएं कुछ मीठा

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आम संदेश

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सामग्री– 2 कप ताजा छेना, 1 कप आम का पल्‍प, 1/2 कप शक्‍कर या स्‍वादानुसार, 2 चम्‍मच पिस्‍ते और बादाम, 1/2 चम्‍मच इलायची पाउडर

विधि – एक पैन में शक्‍कर और आम का पल्‍प डालें। इसे तब तक पकाएं जब तक कि चीनी गल ना जाए और आम का पल्‍प पूरी तरह से गाढा ना हो जाएग। फिर इसमें छेना मिलाएं और लगातार चलाते रहें। इसे गाढा बनाना है। फिर इसमें इलायची पावडर, बादाम और पिस्‍ते काट कर मिलाइये। जब छेना पैन को छोड़ना शुरु कर दे, तब आंच बंद करें और छेने को एक प्‍लेट में निकालें। अपने हाथों से इसे मसल लें और देंखे कि यह मुलायम हो गया है या नहीं। अब तुरंत ही इस मिश्रण से गोल गोल पेडे़ बनाएं और ऊपर से पिस्‍ते तथा बादाम से गार्निश करें। आप इसे सर्व कर सकते हैं।

चॉकलेट पेड़ा

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सामग्री- 1/4 कप मैदा, 2 चम्मच मिल्‍क पाउडर- 2 चम्‍मच, 2 चम्मच घी, आधा कप चीनी, 1 चम्मच कोको पाउडर, 1/4 कप पानी, 2 चम्मच कटा हुआ पिस्‍ता।

विधि- एक पैन में घी गरम करें और उसमें मैदा डाल कर आंच को बंद कर दें। मैदे को घी के साथ अच्‍छी तरह से मिक्‍स कर के किनारे रख दें। एक अलग पैन में चीनी और पानी डाल कर चाश्‍नी तैयार करें। उसके बाद इसमें कोको पाउडर मिक्‍स करें और आंच को बंद कर दें। पैन को स्‍टोव से उतारे और उसमें घी में फ्राई किया हुआ मैदा डालें। मिक्‍स करें और उसमें मिल्‍क पावडर डाल कर गाढा घोल तैयार करें। एक बार जब मिश्रण पूरी तरह से मिक्‍स हो जाए तब इसे 5 मिनट के लिये ठंडा होने के लिये रख दें। अपनी हथेलियों पर थोड़ा सा घी लगाएं और पेडे के मिश्रण से छोटी छोटी लोइयां काट कर उसके पेडे तैयार करें। पेडे के बीच में कटा हुआ पिस्‍ता और मिशमिश लगाएं। पेड़े को या तो ठंडा कर के सर्व करें या फिर गरमा गरम सर्व करें।

 

 

 

देसी अंदाज में कहिए – मुल्क मेरी इबादत है

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तीन रंग तिरंगे में ही नहीं हर भारतीय के जीवन में बहुत खास होते हैं। हम सब इस दिन को खास बनाना चाहते हैं और हमें यकीन है कि आप भी कुछ ऐसा ही सोचते हैं। तीन रंगों का परिधान आपकी आजादी के जश्न में जोश भर देगा और आप भीड़ में से अलग दिखेंगे।

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यह सही है कि अधिकतर पुरुषों को बेहद तामझाम पसंद नहीं आता मगर इसकी जरूरत भी नहीं है। आप हैंडलूम का कुरता पहनिए या शर्ट में तिरंगे के रंग को जगह दीजिए या फिर एक्सेसरीज में। एक जैैकेट और सफेद शर्ट आपका पूरा लुक बदल सकती है और अगर यह खादी है तो समझिए बात बन गयी।

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आपके लुक को पूरा करने के लिए एक्सेसरीज पर ध्यान देना जरूरी है और इसमें आपकी घड़ी और जूते आपकी मदद कर सकते है। आप चाहे जो भी पहनें मगर सबसे अधिक जरूरी है कि आपकी पसंद में बनावटीपन बिलकुल नहीं होना चाहिए और जो भी करें, पूरे दिल से करें।

स्तनपान के प्रति जागरुकता लाने के अभियान को मिला माधुरी का साथ

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केन्द्र सरकार की ओर से हाल ही में स्तनपान के प्रति जागरुकता लाने के उद्देश्य से केन्द्रीय स्वास्थ्य व परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा मदर्स एब्सल्यूट एफेक्शन (माँ) की शुरुआत की गयी और इस अभियान को सिने तारिका तथा यूनिसेफ की सेलेब्रिटी एडवोकेट माधुरी दीक्षित का साथ मिला। माधुरी ने स्तनपान के फायदों की जानकारी इस कार्यक्रम में दी। उन्होंने कहा कि बच्चे के जन्म के एक घंटे के भीतर और 6 माह तक स्तनपान बच्चे के विकास के लिए जरूरी है। केन्द्रीय स्वास्थ्य तथा परिवार कल्याण मंत्री जे पी नड्डा ने स्तनपान को प्राकृतिक तथा किफायती तरीका बताते हुए इसका प्रचार करने पर जोर दिया। इस कार्यक्रम में उपस्थित स्वास्थ्य व परिवार कल्याण राज्य मंत्री फागन सिंह कुलस्त ने कहा कि यह माँ और बच्चे के बीच रिश्ते को सकारात्मक मजबूती देता है। केन्द्रीय मंत्री अनुप्रिया पटेल ने कहा कि बच्चे की रक्षा करने के लिहाज से स्तनपान का विशेष महत्व है।

सावन की फुहार का रिश्ता राखी के त्योहार से बाजार तक

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रेखा श्रीवास्तव 

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जनवरी से जून महीने तक तपते धूप से त्रस्त लोगों के लिये जुलाई महीना राहत की सांस लाता है। अगस्त महीने के आते-आते सुहाने मौसम के साथ वातावरण भी भक्तिमय  हो जाता है। होली के बाद खत्म हुए पर्व-त्योहार का आगमन भी वैसे इसी महीने से होता है। नागपंचमी, रक्षाबंधन, जन्माष्टमी, सावन इत्यादि सभी इस महीने में ही आता है। दुर्गा पूजा की शुरुआत यानी खूंटी पूजा भी इसी महीने हुई और पंडाल निर्माण कार्य शुरू हो गया है। इस सबके साथ इस महीने के मध्य यानी 15 अगस्त को स्वतंत्रता दिवस। हमारे देश को स्वतंत्र कराने वाले देशप्रेमी को हम याद करते हैं, और अपना झंडा फहराते हैं। यानी पूरी तरह से हर वर्ग के लोगों के लिए अगस्त महीना उत्साह से भरा है। माहौल में केसरिया, हरा एवं सफेद रंग पूरी तरह से भर जाता है। स्वतंत्रता दिवस के मौके के लिए हर तरफ केसरिया व हरे रंग के तिरंगे लहलहाते दिख रहे हैं। बाजारों में भी झंडे की मांग बढ़ गई है। स्कूल, कॉलेज में भी केसरिया रंग अपने बलिदानों, त्यागों के संदेश सुना रहा है। वहीं दूसरी तरफ सावन महीने में कांवड़ लेकर तारकेश्वर, बैद्यनाधाम जाने वाले श्रद्धालु भी केसरिया रंग के कपड़े पहनकर माहौल भक्तिमय कर रहे हैं। हरा रंग मन में हरियाली भर रहा है। एक तरफ झंडे में लहलहाता है, तो दूसरी तरफ सावन महीने में महिलाएँ हरी चूड़ी, हरी साड़ियां पहनकर शंकर भगवान की पूजा कर रही है। यानी कुल मिलाकर अगस्त महीने में माहौल केसरिया व हरा-भरा हो गया है। अभी तक फ्रेंडशीप का खुमार उतरा भी नहीं कि अगले हफ्ते में रक्षा-बंधन पर्व की तैयारी चल रही है। यह पर्व वैसे तो केवल भाई-बहनों  का है, पर समय के साथ इसने भी अपना दायरा बढ़ा लिया है। अब दो दोस्त भी एक दूसरे को रक्षा बंधन बांध कर अपनी दोस्ती को मजबूत कर रहे हैं। इसके अलावा एकल परिवार में अगर भाई न हो तो, बहनें  भी एक-दूसरे को बांध कर यह पर्व खुशी-खुशी मनाने की तैयारी चल रही है।  इसके लिए बाजारों में पिछले एक-डेढ़ महीने से ही रंग-बिरंगी राखियाँ सजी हुई है। पतले धागे से लेकर बड़े आकार का स्पंज, छोटा भीम, डोरेमन से लेकर कृष्ण तक की राखियाँ कलाई पर सजने के लिए तैयार है। वैसे तो गली-कुची के इलाके में भी राखियाँ खूब बिक रही है, पर बड़ाबाजार का सत्यनारायण पार्क, राममंदिर, हावड़ा एसी मार्केट जैसे हिंदी भाषी इलाकों में ज्यादा सजी दिख रही है। इस होड़ में मॉल भी पीछे नहीं है, पर वहाँ महंगी राखियाँ होने की वजह से सब लोग खरीद नहीं पा रहे हैं। वहीं दूसरी तरफ कूरियर सर्विस वाले भी रक्षा बंधन को लेकर नयी-नयी स्कीमें देते रहते हैं। इस बार एक कूरियर सर्विस ने तो हद कर दी। बिहार, यूपी या किसी भी राज्य में राखी भेजने वालों की लॉटरी करेगा और विजेता को विदेश जाने का टिकट गिफ्ट देगा। मतलब हद हो गई कि भेजिए राखी कहीं भी, पर हो सकता है कि आपको विदेश घूमने का मौका मिल जाये।

पिछले दो दिनों से कोलकाता के मेदिनीपुर की एक खबर पिता ने अपने बेटे की हत्या करवा दी ने तूल पकड़ लिया है। चाहे न्यूज पेपर हो या न्यूज चैनल इसी खबर को बार-बार प्रसारित किया जा रहा है और इस विषय पर चर्चाएं भी हो रही है। सही बात है कि हमारे घर का मुखिया अर्थात् पिता ही अगर धीरज खो ले तो फिर परिवार का क्या होगा। पर सोचिए यह हमारे समाज को क्या हो रहा है। हम किस तरफ जा रहे हैं। धीरज के रूप में सख्त जाने वाले पिता ने भी अपनी चुप्पी तोड़ ली है। अब वह भी अपराधी की कतार में खड़े हो रहे हैं। एक परिवार में सदियों से जाना जाता है कि माँ अपने बच्चों को मारती-पिटती भी है, और फिर उसे सीने से लगाकर प्यार भी करती है। पर जब वह अपना धीरज पर पिता तो केवल एक छत होता है जो अपने बच्चों की रक्षा करता है, पर अभी समय ऐसा आ गया है कि पिता का धैर्य भी खत्म होता जा रहा है। चाहे संपत्ति का मामला हो या कोई भी मुद्दा पर आज वह इतना गंभीर हो गया है कि अपने ही सुपुत्र को मौत के घाट उतारा जा रहा है। इस तरह की घटना हमें बता रही है कि हमारी मानसिक स्थिति की स्थिति चिंताजनक होती जा रही है। हम संयुक्त परिवार से एकल परिवार, मुहल्ले से फ्लैट तक तो जरूर पहुँच गये हैं, पर हमारे अंदर कितना खोखलापन होता जा रहा है कि हमारा धीरज खत्म के कगार पर है। हम छोटी-छोटी चीजों पर ही बेकाबू होने लगे हैं। पहले हम अपनी समस्याओं को शेयर करते थे, और मन हल्का हो जाता है पर आज स्थिति पूरी तरह से उलट गया है। फेसबुक और व्हाट्सअप जैसी सुविधा होने के बावजूद हम केवल अपने खुशी के पल को ही शेयर करते हैं, और मुश्किल और दुख में केवल अकेले रह जा रहे हैं और ऐसी स्थिति में ही हत्या या आत्महत्या जैसे हादसे हो रहे हैं। पिछले दिनों एक और खबर आयी थी कि एक पिता ने अपने बेटे को सिर्फ इसलिए मौत के घाट उतार दिया क्योंकि बेटा  पितानुसार खेल में जीत हासिल नहीं दर्ज नहीं कर पाया था। यह खबर भी शर्मनाक है, पर आज की स्थिति यही करवा रही है। एक तरफ तो हमारी इच्छाएं, सपने और महत्वकांक्षाएं बढ़ गये हैं और उसके लिए जैसे हमारे पास धीरज  की कमी हो गई है।  आज की स्थिति यह है कि हम कम समय में ज्यादा कुछ पाने की चाह में लगे हैं। ऐसे में हम अपने धीरज को खोते जा रहे हैं और क्राइम जैसी घटनाएं बढ़ रही है। टीवी पर दिखाये जाने वाले क्राइम कार्यक्रम भी हमारी सोच को बदल नहीं पा रहा है। हम समझ रहे हैं कि हमारी प्रवृत्ति सही नहीं, पर फिर भी हम उसी होड़ में बढ़ते जा रहे हैं।

(लेखिका वरिष्ठ पत्रकार हैं)

शान से फहराएं तिरंगा पर इन बाताें का रखें ध्यान

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आजादी का जश्न मनाते समय ध्यान देने की जरूरत है। राष्ट्रीय ध्वज फहराते समय उसकी मर्यादा का ध्यान रखें। ध्वज फहराने और उतारने के नियम तय हैं। ऐसे में राष्ट्रीय ध्वज के अपमान पर तीन साल तक की सजा हो सकती है। राष्ट्रीय पर्व 15 अगस्त और 26 जनवरी को कागज के झंडे लेकर चलने का अधिकार भारतीय नागरिकों को मिला है। इसमें प्लास्टिक के झंडे शामिल नहीं हैं। तिरंगे के सम्मान में ऐसे कई नियम हैं, जानें वे नियम क्या हैं।

ऐसा होता है अपना तिरंगा
राष्ट्रीय ध्वज में ऊपर केसरिया, बीच में सफेद और नीचे हरा रंग होता है। अगर ध्वज की लंबाई दो मीटर है तो चौड़ाई तीन मीटर होनी चाहिए। तीनों पट्टी बराबर साइज की होती हैं। बीच में नीले रंग का चक्र होता है। इसमें 24 तीली होती हैं। चक्र अशोक स्तंभ सारनाथ से लिया गया है। यह गतिशीलता का प्रतीक है।
इस तरह फहराएं तिरंगा
26 जनवरी 2002 को लागू भारतीय ध्वज संहिता 2002 में प्रावधान है कि ध्वज ऐसी जगह फहराया जाना चाहिए जहां से स्पष्ट दिखे। सरकारी भवनों पर रविवार या छुट्टी वाले दिन भी सूर्योदय से सूर्यास्त तक तिरंगा फहराया जा सकता है। झंडे को धीरे-धीरे आदर के साथ फहराया और उतारा जाता है। फहराने और उतारते समय बिगुल की आवाज होनी चाहिए। सभा या मंच पर झंडा फहराते समय वक्ता का मुंह श्रोताओं की तरफ हो और झंडा वक्ता के दाहिने तरफ होना चाहिए। अधिकारी की गाड़ी पर अगर ध्वज लगा है तो वह सामने की तरफ बीचोबीच या कार की दाहिनी तरफ होना चाहिए।

इन बातों का रखें ध्यान
ध्वज फटा या मटमैला नहीं होना चाहिए। किसी दूसरे झंडे या पताका को राष्ट्रीय ध्वज से ऊंचा या बराबर नहीं रखना चाहिए। ध्वज पर कुछ भी लिखा या छपा नहीं होना चाहिए।
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फटने पर इस तरह करें निस्तारण
अगर ध्वज फट जाता है या मटमैला हो जाता है तो उसके निस्तारण का भी नियम है। खंडित ध्वज को एकांत में जलाकर या मर्यादा के अनुकूल नष्ट किया जाता है। एकांत में जलाकर या दफनाकर नष्ट करना चाहिए। गंगा में विसर्जन भी किया जा सकता है।
ऐसा होने पर माना जाएगा अपमान
राष्ट्रीय ध्वज को झुका देना, आधा झुकाकर फहराना, रुमाल के रूप में प्रयोग, किसी तरह का सामान ले जाने के लिए प्रयोग, जमीन पर छूना, उल्टा फहराना ध्वज का अपमान माना जाता है। 2005 से पहले ध्वज को ड्रेस के रूप में भी प्रयोग नहीं किया जा सकता था। 5 जुलाई 2005 को सम्मानित तरीके से कमर से ऊपर वेशभूषा या वर्दी में इसके प्रयोग की अनुमति दी गई। स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस पर ध्वज में फूल की पंखुड़ियां बांधी जा सकती हैं। बाकी दिनों में ऐसा नहीं कर सकते।

अपमान पर तीन साल तक की सजा
राष्ट्रीय गौरव अपमान निवारण अधिनियम 1971 के तहत धारा 2 में राष्ट्रीय ध्वज के अपमान पर सजा का प्रावधान है। इसके तहत तीन साल तक कैद और जुर्माना या दोनों ही दिया जा सकता है। अगर दूसरी बार भी अपमान किया जाता है तो हर बार एक वर्ष की सजा और होगी। सजा पाने वाले को छह साल तक किसी भी तरह का चुनाव लड़ने का अधिकार नहीं होगा।

 

राष्ट्रपति की बेटी को भेजा अश्लील मैसेज, शख्स को सोशल मी‌डिया पर बेनकाब कर खोली पोल

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राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी की बेटी शर्मिष्ठा मुखर्जी ने फेसबुक पर चौंकाने वाला खुलासा किया है। शर्मिष्ठा ने अपने फेसबुक पेज पर ऐसे शख्स को बेनकाब किया है जो उन्हें अश्लील मैसेज भेजता था।

शर्मिष्ठा ने अपनी फेसबुक पोस्ट में उस शख्स की चैट भी शेयर की है, और लिखा है कि पार्थ नाम का शख्स मुझे लगातार अश्लील मैसेज भेज रहा है।

पहले मेरे दिमाग में आया कि मैं उस शख्स को ब्लॉक कर दूं , फिर मुझे लगा कि ऐसे तो उसकी हिम्मत बढ़ेगी और वो दूसरे लोगों को भी इस तरह के मैसेज करेगा।

सिर्फ उसके लिए ब्लॉक करना काफी नहीं होगा। मैं उस शख्स की प्रोफाइल और उसके मैसेज के स्क्रीन शॉट पोस्ट कर रही हूं। मैने उसे भी ये पोस्ट टैग किया है।

इस पोस्ट को ज्यादा से ज्यादा शेयर करें। क्योंकि इसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। शर्मिष्ठा को लिखे गए ये संदेश इतने अश्लील हैं कि उसे दिखा पाना भी संभव नहीं है।

राष्ट्रपति की बेटी को सोशल मीडिया पर भेजे गए संदेश वाकई चौंकाने वाले हैं। शर्मिष्ठा ने अपनी फेसबुक प्रोफाइल पर उनको भेजी गई पूरी अश्लील चैट की आपबीती शेयर की है।

 

ये धागे से बंधे रिश्ते है, रंग और गहराते जाते हैं

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सावन  के रिमझिम मौसम के साथ ही भारत में त्योहारों की रंग-बिरंगी श्रृंखला आरंभ हो जाती है। यह त्योहार रिश्तों की खूबसूरती को बनाए रखने का बहाना होते हैं। यूं तो हर रिश्ते की अपनी एक महकती पहचान होती है। भाई-बहन का रिश्ता एक भावभीना अहसास जगाता है। रक्षाबंधन का पर्व इसी रेशमी रिश्ते की पवित्रता का प्रतीक है।

यह रिश्ता जीवन के विविध उतार-चढ़ाव से गुजरते हुए भी एक गहरे, बहुत गहरे अहसास के साथ हमेशा ताजातरीन और जीवंत बना रहता है। मन के किसी कच्चे कोने में बचपन से लेकर युवा होने तक की, स्कूल से लेकर बहन के बिदा होने तक की और एक-दूजे से लड़ने से लेकर एक-दूजे के लिए लड़ने तक की असंख्य स्मृतियां परत-दर-परत रखी होती है।

बस, भाई-बहन के फुरसत में मिलने भर की देर है, यादों के शीतल छींटे पड़ते ही अतीत के केसरिया पन्नों से चंदन-बयार उठने लगती है। एक ऐसी सौंधी-सुगंधित सुवास जो मन के साथ-साथ पोर-पोर महका देती है।

भाई का नन्हा-सा दिल पहली बार जब छोटी-सी गुलाबी-गुलाबी बहन को देखता है तब अनजानी, अजीब-सी अनुभूतियों से भर उठता है। थोड़ी-सी जिम्मेदारी, थोड़ी-सी चिंता, थोड़ा-सा प्यार, थोड़ी-सी खुशी, थोड़ी-सी जलन, थोड़ा-सा अधिकार ऐसी ही मिलीजुली भावनाओं के साथ भाई-बहन का बचपन गुलजार होता है।

मनोविज्ञान कहता है, अक्सर बड़े भाई-बहन अपने नवागत भाई या बहन को लेकर असुरक्षित महसूस करते हैं। वह मन ही मन खुद को उपेक्षित और अवांछित भी समझ सकते हैं।

यहां परिवार और परवरिश दोनों की अहम भूमिका होती है। घर के बड़े हंसी-मजाक में भी कभी बच्चे को यह अहसास ना कराएं कि नए बच्चे के आगमन से उसकी अहमियत कम हो जाएगी। इस उम्र में बैठा उनका यह डर ग्रंथि बनकर रिश्तों की डोर कमजोर कर सकता है। भाई और बहन के बीच स्वस्थ रिश्ते  की बुनियाद रखने की जिम्मेदारी माता-पिता की होती है।

खासकर भाई अगर बड़ा है तो उसे नई बहन के प्रति संवेदनशील बनाने के लिए शिक्षा दें कि यह नन्ही जान उसके साथ खेलने और पढ़ने के लिए लाई गई है। उसके अकेलेपन को दूर करने के लिए उसे भेजा गया है। जैसे-जैसे वह बड़ी होगी उसकी खुशियों का सबब बनेगी।

अगर बहन बड़ी है तो उसे यह अहसास दिलाएं कि छोटा भाई आने से उसको मिलने वाले प्यार में कमी नहीं होगी ना व्यवहार में बदलाव आएगा। लड़कियां  यूं भी मानसिक रूप से इस मामले में मजबूत होती है उन्हें बस इतना भर बताया जाना चाहिए कि इस छोटे प्राणी को अभी ज्यादा देखभाल की जरूरत है।

भाई-बहन के रिश्ते के मनोविज्ञान का बस इतना ही सच है कि उन्हें स्वस्थ वातावरण (Atmosphere) में बिना किसी भेदभाव के खिलने-खेलने-पनपने का अवसर दीजिए। प्यार की सौगात से तो ईश्वर ने स्वयं उन्हें नवाजा है आप उन्हें उस प्यार को महकाने की खुशनुमा भावनात्मक बगिया दीजिए।

याद कीजिए अपने बचपन  की शरारतें। क्या भाई-बहन के बिना वे इतनी मोहक और मासूम हो सकती थी? नहीं ना? ठीक इसी तरह आज के बचपन को भी खुलकर जीने दीजिए।

बचपन की मयूरपंखी स्मृतियां उनके भविष्य की भी मुस्कान बने इसलिए बहुत जरूरी है कि बड़ा भाई अपनी छुटकी बहन के उल्टे-सीधे नाम रखें, बहुत जरूरी है कि दोनों साथ-साथ उछले-कूदे, गिरे-पड़े, धमाधम धिंगामुश्ती करें। जरूरी है कि पेड़ पर चढ़े और मिट्टी में सने, जरूरी है कि एक दूसरे के खिलौनों को तोड़े-छुपाए।

सोचिए अगर आपने यह सब उन्हें नहीं करने दिया तो कल बड़े होकर वे क्या याद करेंगे? यह कि मेरा बस्ता तुम्हारे बस्ते से ज्यादा भारी था, या यह कि मैंने तुमसे ज्यादा कोचिंग ली, या यह कि कंप्यूटर का माउस  तुमने तोड़ा था और मार मुझे पड़ी थ‍ी। इन यादों में बचपन तो होगा लेकिन टूटते-बिखरते अनारों से ठहाके नहीं होंगे, बेसाख्ता फूट पड़ती हंसी के फव्वारे नहीं होंगे, मीठी चुटकियां नहीं होगी, चटपटी सुर्खियां नहीं होंगी।

इन बातों में वह बचपन होगा जो नटखट लम्हों और भोली नादानियों से जुदा होगा। इसलिए सभी नन्हे भाई-बहन को हर पल साथ में ही तीखी-मीठी नोकझोंक के साथ गुजारने दीजिए। उनके रिश्तों के अमलतास हमेशा खिले रहेंगे।

आज सारे त्योहार तकनीक और आधुनिकता की भेंट चढ़ गए हैं। रक्षाबंधन  का त्योहार भी अछूता नहीं रहा। लेकिन इसके बावजूद सबसे बड़ी बात यह है कि रिश्तों की गर्माहट, आंच, तपन या उष्मा कुछ भी कह लीजिए, वह बरकरार है।

आज भी भाई का मन अपनी बहन के लिए उतना ही पिघलता है, आज भी बहन का प्यार भाई के लिए उतना ही मचलता है। यह बात और है कि तरीके बदल गए हैं, भावाभिव्यक्तियां बदल गई हैं, अंदाज बदल गए हैं मगर अहसास वही है।

चाहे इंटरनेट पर अदृश्य राखी पहुंचे या मोबाइल  पर कोई भावुक-सा मैसेज  चमके, चाहे हाथों में ‘मेरे प्यारे भैया’ का टैग लगी राखी हो या लिफाफे में पसीने की कमाई से भीगा शगुन हो। यह प्यारा रिश्ता अपनी गहराई और गंभीरता नहीं भूल सकता।

 

तो क्या इरोम शर्मिला हार गईं?

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वो नौ अगस्त का दिन था. स्वतंत्रता दिवस के ठीक छह दिन पहले. उसी दिन इरोम शर्मिला को अपनी भूख हड़ताल तोड़नी थी. हर बार की तरह उन्हें सुबह कोर्ट लाया गया.

बाहर वीडियो कैमरे में उन्हें क़ैद करने का लालच छोड़ मैं अंदर कोर्टरूम में आकर बैठ गई.

पूरे समय मेरी नज़र इरोम पर थीं. स्लेटी रंग की मणिपुरी फेकन, पैरों में मामूली चप्पल, बड़े-बड़े नाखून जो वो अब काटती नहीं हैं..

धीमी आवाज़ में जज से बोली – “मैं आज़ाद होना चाहती हूँ. क्यों लोग मुझे आम इंसान की तरह नहीं देख सकते.”

कोर्ट की कार्रवाई अपनी गति से चलती रही. इरोम की बेसब्री साफ़ झलक रही थी.

वो अपनी सीट से उठीं और बोली- क्या हम और तेज़ी से काम कर सकते हैं? दूसरे पक्ष के वकील ने कहा आप चाहें तो दूसरी तारीख़ ले सकती हैं.

पर 15 साल और 9 महीनों, 4 दिन की भूख हड़ताल के बाद अब वो और इंतज़ार करने के मू़ड में नहीं थी.

मुझे थोड़ी भूख सी लगने लगी तो एहसास हुआ कि दोपहर हो चुकी थी. तुरंत दिमाग़ में ख़्याल आया -भूख तो इरोम को भी लगती होगी.

भूख लगना और खाना खाना इतनी स्वाभाविक प्रक्रिया है कि इससे पहले मैंने खाने को इस नज़रिए से कभी देखा ही नहीं। शायद कुछ दिन मुझे खाना खाते वक़्त हमेशा इरोम की बातें याद आएँगी. कुछ दिन इसलिए क्योंकि हमें चीज़ों को जल्द ही भूल जाने की आदत है.

सोचती हूँ क्या शर्मिला को भी यूँ ही भुला दिया जाएगा. इंफ़ाल में मीडियावालों का इतना जमावड़ा शायद इससे पहले कभी नहीं हुआ. सबने ख़बर की और फिर चले भी गए.

पर इरोम शर्मिला एक ख़बर भर से कहीं ज़्यादा है.

अस्पताल के उनके कमरे में इरोम शर्मिला से मैंने पूछा था कि भूख हड़ताल तोड़ने के बाद अब वो कहाँ रहेंगी. इस सवाल के जवाब ने मुझे गहरे तक हिला दिया था.

इरोम का जवाब था, “सुना है कि कोई संस्था है जिसने मुझे पनाह देने का प्रस्ताव रखा है”.

अफ़्स्पा क़ानून के ख़िलाफ़ जिसके साए तले पिछले 16 सालों में एक पूरे राज्य के लोगों ने शरण ले रखी थी, आज अपने सर पर एक छत के लिए पनाह की ज़रूरत है.

इरोम के इर्द-गिर्द जितनी परतों को मैं खोलती चली गई, वो गुत्थी मुझे उतनी ही उलझी हुई सी नज़र आती है.

एक हस्ती जिसने जीवन के 16 साल सिर्फ़ और सिर्फ़ एक क़ानून के नाम कर दिए.और फिर बिना वो मक़सद पूरा हुए उन्होंने हड़ताल तोड़ दी.

तो क्या ये इरोम की हार है? अगर नहीं तो क्या उस समाज ने इरोम को धोखा दिया है जिसके लिए इरोम लड़ रही थीं?

वो महिलाएँ जो ख़ुद को सेना की कथित ज़्यादती का शिकार मानती हैं, जो लड़ते-लड़ते ख़ुद बूढ़ी हो गई, जो कदम-कदम पर इरोम के साथ रहीं, जिन्हें इरोम ने अपने नए फ़ैसले के बारे में पहले से कुछ नहीं बताया- क्या उनका इरोम पर ग़ुस्सा जायज़ है ?

लेकिन 16 साल पहले हड़ताल पर जाने से पहले भी तो इरोम ने किसी ने इजाज़त नहीं ली थी। क्या ये लोग इसलिए नाराज़ हैं कि इरोम ने भूख हड़ताल तोड़ दी? या इसलिए कि अब कोई ऐसा नहीं है जिसके कंधों पर उम्मीदों का बोझ डालकर लोग अपनी रोज़र्मरा की ज़िंदगी बिताते रहें ?

इरोम ने कोर्ट में बार-बार कहा था, “मुझे आज़ादी चाहिए, 16 सालों में मेरी ज़मीर को एक तरह से क़ैद करके रख लिया गया है.” इरोम को ज़मानत तो मिल गई है पर क्या वो वाकई आज़ाद हो पाईं हैं?

(साभार – बीबीसी हिन्दी)