गुड़गांव.दिल्ली-एनसीआर में यूं तो कई छोले-कुल्चे के हाथ ठेले लगते हैं, लेकिन गुड़गांव के सेक्टर 14 की एक दुकान खास है। बता दें कि यहां ठेला लगाने वाली महिला की स्टोरी सोशल मीडिया पर चर्चित है। दरअसल, ठेले पर छोले-कुल्चे बेचने वाली महिला ग्रैजुएट और फर्राटेदार अंग्रेजी बोलती है। इस महिला का नाम उर्वशी यादव है।
उर्वशी आर्थिक रूप से संपन्न परिवार की बहू और बेटी हैं। इनके पति एक प्राइवेट कंपनी में मैनेजर थे। उर्वशी का परिवार खुश था इसबीच एक एक्सीडेंट में उनके पति का कूल्हा टूट गया। डॉक्टर बताते हैं कि उनके कूल्हे की सर्जरी करनी होगी। एक्सीडेंट के बाद उर्वशी के पति की नौकरी भी चली गई। उनका परिवार अचानक आर्थिक तंगी से गुजरने लगा। पति की नौकरी जाने के बाद घर की सारी जिम्मेदारी उर्वशी के कंधों पर आ गई। गुड़गांव के सेक्टर 17 में अपने पति, ससुर और बच्चों के साथ रहने वाली उर्वशी ने अपना परिवार चलाने के लिए छोले-कुल्चे का ठेला लगाने का फैसला लिया।
उर्वशी के दो बच्चे हैं और दोनों अभी पढ़ाई कर रहे हैं। वे सुबह सबसे पहले उठकर बच्चों को तैयार कर स्कूल भेजती हैं। पति की देखभाल करने के बाद ओल्ड दिल्ली रोड पर सेक्टर-14 के पास पहुंचती है, जहां वे ठेला लगाती हैं। उर्वशी बताती हैं कि कम पैसे की लागत से ये बिजनेस शुरू हो गया और उन्हें खाना बनाना पसंद है, तो कोई दिक्कत भी नहीं हुई। वे बताती हैं कि अब उनका सपना है कि एक दिन बहुत बड़ा रेस्टोरेंट खोलूं। लोग उर्वशी के जज्बे की तारीफ़ कर रहे हैं। लोगों का कहना है कि वे इतने टेस्टी छोले-कुल्चे बनाती है, जिससे लगता है कि वह घर का खाना खा रहे हैं।
फर्राटेदार अंग्रेजी बोलने वाली महिला लगाती है ठेला, बेच रही छोले-कुल्चे
कैंसर पीड़ित के लिए रियो में जीता मेडल नीलाम करेगा ये खिलाड़ी
अंग्रेजी अखबार ‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ की खबर के अनुसार खिलाड़ी ने मेडल किसी निजी स्वार्थ के लिए नहीं किसी की मदद करने के लिए नीलम करने की घोषणा की है। पोलैंड केपियोत्र मैलाचॉवस्की ने रियो ओलंपिक 2016 में डिस्कस थ्रो में सिल्वर जीता है। मैलाचॉवस्की ने ऐलान किया है कि उनके मेडल बेचने से जो पैसा मिलेगा उसका इस्तेमाल रेयर कैंसर से पीड़ित एक पोलिश बच्चे के इलाज में करेंगे।
मैलाचॉवस्की ने सिल्वर मेडल पदक जीतने के बाद फेसबुक पर लिखा, ‘रियो में मैंने गोल्ड के लिए संघर्ष किया। आज मैं लोगों से अपील करूंगा कि आइए हम सब मिलकर एक ज्यादा मूल्यवान चीज के लिए संघर्ष करें। इस शानदार बच्चे के स्वास्थ्य के लिए.’ समाचार एजेंसी रॉयटर्स के अनुसार डिस्कस थ्रो के मौजूदा विश्व विजेता पियोत्र ने घोषणा की है कि ओलंपिक सिल्वर मेडल बेचने से जो भी पैसा मिलेगा उसे 3 वर्षीय पोलिश बच्चे ओलेक जिमांस्की के इलाज पर खर्च किया जाएगा। ओलेक पिछले दो साल से रेटिनोब्लास्टोमा नाम के आंख के रेयर कैंसर से पीड़ित हैं।
इसरो ने फिर रचा इतिहास, स्क्रैमजेट इंजन का सफल परीक्षण
चेन्नई: भारत ने आज सुबह स्क्रैमजेट इंजन का सफल परीक्षण करते हुए इतिहास रच दिया। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया, ‘यह मिशन सफल रहा और इस दौरान दो स्क्रैमजेट इंजनों का परीक्षण किया गया। उन्होंने बताया कि इस परीक्षण को लेकर अंतिम जानकारी बाद में साझा की जाएगी। उन्होंने बताया कि तय समयानुसार दो स्टेज/इंजन आरएच-560 साउंडिंग रॉकेट ने आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र (एसडीएससी) से उड़ान भरी और इन इंजनों का सिर्फ छह सेकंड के लिए ही परीक्षण किया गया।
स्क्रैमजेट इंजन का प्रयोग केवल रॉकेट के वायुमंडलीय चरण के दौरान होता है। इससे ईंधन में ऑक्सीडाइजर की मात्रा को कम करके प्रक्षेपण पर आने वाले खर्च में कटौती की जा सकेगी। इसका परीक्षण पहले 28 जुलाई को होना था लेकिन वायुसेना के मालवाहन विमान एएच-32 के गत 22 जुलाई के लापता होने के बाद उसकी तलाश में इसरो के जुट जाने के कारण परीक्षण स्थगित कर दिया गया था। तिरुवनंतपुरम के विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र ने स्क्रैमजेट इंजनों को विकसित किया है, जिसका इस्तेमाल आर एच -560 रॉकेट के लिए हो सकता है।
यह इंजन देश का पहला पुन: इस्तेमाल किए जाने वाले प्रक्षेपण यान के निर्माण की इसरो की योजना का एक हिस्सा है। परीक्षण के दौरान इंजन को दो चरणों के आरएच-560 साउंडिंग रॉकेट में लगाया जाएगा और कंवेशनल इंजन के माध्यम से इसे 70 किलोमीटर की ऊंचाई पर प्रक्षेपित किया जाएगा। आर एच का मतलब है रोहिणी क्लास साउंडिंग रॉकेट और 560 इसके व्यास (मिलीमीटर में) का द्योतक है।
राष्ट्रपति ने दी बधाई
इस परीक्षण के बाद आईएसआरओ के चेयरमैन ने इसे एक बड़ी कामयाबी बताई। सफल परीक्षण के लिए राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने ट्वीट कर आईएसआरओ को बधाई दी।
श्रीकृष्ण हमें सिखाते हैं कुशल प्रबंधन तथा प्रशासकीय क्षमता का पाठ
क्या श्रीकृष्ण केवल भगवान हैं?क्या श्रीकृष्ण केवल एक अवतार थे? या कुछ और… यूं तो भगवान श्रीकृष्ण और उनकी लीलाओं से तो हम आप सभी परिचित हैं। उनके विचारों,कर्मों,कलाओं और लीलाओं पर अगर आप ध्यान देंगे तो पाएंगे कि श्रीकृष्ण सिर्फ एक भगवान या अवतार भर नहीं थे। इन सबसे आगे वह एक ऐसे पथ प्रदर्शक और मार्गदर्शक थे,जिनकी सार्थकता हर युग में बनी रहेगी।
श्रीकृष्ण द्वारा गीता में कहे गए उपदेशों का हर एक वाक्य हमें कर्म करने और जीने की कला सिखाता है। जिसकी प्रासंगिकता आज भी उतनी ही है जितनी कल थी। आज के बदलते माहौल और जीवनशैली में भी कान्हा उतने ही महत्वपूर्ण हैं। इतना ही नहीं समाज के आम जनजीवन से हटकर मैनेजमेंट के क्षेत्र में तो कृष्ण को सबसे बड़ा मैनेजमेंट गुरु माना जाता है। आज हम आपको रूबरू करवाते हैं मैनेजमेंट गुरु श्रीकृष्ण से. …….
श्रीकृष्ण यानी बुद्धिमत्ता,चातुर्य,युद्धनीति,आकर्षण,प्रेमभाव,गुरुत्व,सुख,दुख और न जाने क्या-क्या?एक भक्त के लिए श्रीकृष्ण भगवान तो हैं ही,साथ में वे जीवन जीने की कला भी सिखाते हैं। आज के इस कलयुग के लिए गीता के वचन क्या कहते हैं? दरअसल,श्रीकृष्ण में वह सब कुछ है जो मानव में है और मानव में नहीं भी है!
वे संपूर्ण हैं,तेजोमय हैं,ब्रह्म हैं,ज्ञान हैं। इसी अमर ज्ञान की बदौलत आज भी हम श्रीकृष्ण के जीवन प्रसंगों और गीता के आधार पर कार्पोरेट सेक्टर में मैनेजमेंट के सिद्धांतों को गीता से जोड़ रहे है। श्रीकृष्ण ने धर्म आधारित कई ऐसे नियमों को प्रतिपादित किया,जो कलयुग में भी लागू होते हैं। छल और कपट से भरे इस युग में धर्म के अनुसार किस प्रकार आचरण करना चाहिए। किस प्रकार के व्यवहार से हम दूसरों को नुकसान न पहुंचाते हुए अपना फायदा देखें।
जन्माष्टमी के अवसर पर हमने भगवान श्रीकृष्ण के जीवन से कुछ ऐसे ही सूत्र निकालने की कोशिश की है जो आज भी कार्पोरेट कल्चर में अपनाए जाते हैं। निश्चित रूप से मैनेजमेंट के यह सूत्र आज से कई सौ वर्ष पहले के हैं पर आज भी उतने ही सामयिक हैं जितने पहले थे।
श्रेष्ठ प्रबंधक– अर्जुन ने कुरुक्षेत्र में युद्ध के लिए श्रेष्ठ मैनेजर के रूप में भगवान श्रीकृष्ण को चुना था और अंत में विजयी भी हुआ। किसी भी कंपनी में अगर मैनेजर श्रेष्ठ हो,तब वह किसी भी प्रकार के कर्मचारियों से काम करवा सकता है। इसके उलट अगर कंपनी के पास केवल श्रेष्ठ कर्मचारी हैं और उन्हें देखने वाला कोई नहीं है या नेतृत्वकर्ता को खुद ही सही दिशा का ज्ञान नहीं है तब जरूर मुश्किल आ सकती है। ऐसे में सभी कर्मचारी अपनी बुद्धि के अनुसार काम तो करेंगे पर उन्हें सही मार्गदर्शन देने वाला कोई नहीं होगा। ऐसे में कंपनी किस ओर जाएगी,यह कह नहीं सकते।
नैतिक मूल्य व प्रोत्साहन– गीता में श्रीकृष्ण ने कहा है कि युद्ध नैतिक मूल्यों के लिए भी लड़ा जाता है। कौरव व पांडव के बीच युद्ध के दौरान अर्जुन को कौरवों के रूप में अपने ही लोग नजर आ रहे थे। ऐसे में वह धनुष उठाने से मनाकर देते हैं। तब श्रीकृष्ण यद्ध के मैदान में ही अर्जुन को अपने उपदेशों के माध्यम से नैतिकता और अनैतिकता का पाठ पठाते हैं,और युद्ध के लिए प्रोत्साहित करते हैं। इसी तरह आज के प्रबंधकों को भी असंभव लक्ष्य पूरा करने के लिए दिए जाते है। ऐसे में कृष्ण जैसे प्रोत्साहनकर्ता की भी जरूरत है।
अहंकार न करें – गीता में कहा गया है कि अहंकार के कारण नुकसान होता है। कई बार प्रबंधक लगातार सफलता प्राप्त करने के बाद अपनी ही पीठ ठोंकता रहता है। वह यह समझने लगता है कि अब सफलता उसके बाएं हाथ का खेल है। इसके बाद जब उसे असफलता मिलती है तो क्रोध व अन्य विकारों का जन्म होता है। फिर व्यक्ति अपनी आकांक्षाएं पूरी न होने की स्थिति में तुलना करना आरंभ कर देता है। उसे जो कार्य दिया रहता है,उसमें मन नहीं लगता और वह भटक जाता है। इस कारण अहंकार से दूर रहना चाहिए,तब ही सभी तरह की सफलताएं आप पचा पाएंगे।
क्षमाशील बनें – बंधन में रहते हुए प्रबंधक को उद्दण्ड तथा अक्षम सहायक को भी क्षमा करना चाहिए तथा बार-बार उसे आगाह करते रहना चाहिए परंतु जब वह सीमा पार करने लगे और दण्ड देने के अतिरिक्त कोई चारा न हो तो ऐसा दण्ड दिया जाना चाहिए जो दूसरों के लिए भी उदाहरण का काम करे।
विशाल ह्रदय बनें– प्रबंधनकर्ता को हमेशा धैर्य से काम लेना चाहिए। छोटी-छाटी चीजों पर उसे अपना आपा नहीं खोना चाहिए,और जल्दबाजी नहीं दिखानी चाहिए। इसके लिए प्रबंधक को विशाल ह्रदय का होना पड़ेगा। वहीं आवश्यकता पड़ने पर अनुशासन को बनाए रखने के दृष्टिकोण से किसी तरह की कोमलता भी नहीं दिखानी चाहिए।

भीतरी व बाहरी सौन्दर्य का रखें ध्यान – महाभारत के युद्ध के दौरान जब अर्जुन के मन में कृष्ण के को लेकर सवाल पैदा होता है और श्रीकृष्ण से वह पूछ बैठते हैं कि प्रभु आप कौन हैं?इस प्रश्न पर कृष्ण अपना दिव्य स्वरूप प्रकट करते हैं। कृष्ण के इस विराट स्वरूप वाले दृश्य से हमें यह सीख मिलती है कि मैनेजर को अपना स्वरूप कैसा रखना चाहिए। दरअसल,कृष्ण ने संपूर्ण सौंदर्य के बारे में कहा है कि मन की शुद्धता के साथ ही तन का वैभव भी नजर आना चाहिए। ठीक इसी तरह एक मैनेजर को भी अपने लुक्स की तरफ ध्यान देना चाहिए। उसका सौन्दर्य केवल बाहरी नहीं हो,बल्कि भीतरी भी होना चाहिए।
अपडेट रहें- कृष्ण कहते हैं कि कर्म करते रहो,पर साथ में आगे बढ़ने के लिए अपने आपको अपडेट भी करते रहो। अपने ज्ञान को अपडेट किए बिना आप आगे नहीं बढ़ सकते। समय को पहचानें और उसके अनुसार ज्ञान हासिल करें,तभी आप तेजी से आगे बढ़ सकते हैं।
सर्वग्राही बनें- किसी भी प्रबंधक के लिए यह आवश्यक है कि वह अपने क्षेत्र के अतिरिक्त विभिन्न क्षेत्रों के विषय में जितनी अधिक जानकारी रखेगा,वह उतना ही सफल प्रबंधन तथा अपनी टीम का मार्गदर्शन कर सकेगा। इसके लिए जरूरी है कि वह अपने आंख,नांक,कान को खुला रखें और सारी सूचनाओं को अपने तक आने दे। साथ ही अपने अन्य लोगों और कर्मचारियों की राय पर भी गौर करें।
सबको लेकर चले- प्रबंधन में अक्सर ये चुनौती आती है,एक ही वक्त में कोई बहुत आगे निकल जाता है तो कोई थोड़ा पीछे छूट जाता है। ऐसे में बहुत सारे लोग अपनी-अपनी प्रतिष्ठा और अपने अहं को लेकर अ़ड़ जाते हैं तब समस्या जटिल हो जाती है। सभी की प्रतिष्ठा बनी रहे तथा समस्या का समाधान भी हो जाए,यह कुशल प्रबंधक का ही काम होता है। श्रीकृष्ण ने अपनी इस प्रतिभा का अनेक अवसरों पर परिचय दिया।
आत्मनिरीक्षण करें- गीता में श्रीकृष्ण मनुष्य को लगातार आत्मनिरीक्षण के लिए प्रेरित करते हैं। कई बार मनुष्य दूसरों के कहने पर उद्विग्न हो जाता है और कई बार अपने कटु वचनों से दूसरों को उद्विग्न कर देता है। प्रोफेशनल लाइफ में यह दोनों बातें करियर के लिए घातक होती हैं। कान्हा इनसे बचते हुए स्वधर्म का पालन करने की भी सलाह देते हैं।

नवसृजन और जनकल्याण के प्रणेता भगवान श्रीकृष्ण की अनेक छवियां भारतीय जनमानस से जुडी हुई हैं। श्रीकृष्ण में सबसे खास बात यह है कि उनका दर्शन व्यावहारिक था। यही वजह है कि वे दुनिया के पहले मैनेजमेंट गुरु भी कहलाते हैं। जीवन को यथार्थ में देखने की उनकी दृष्टि थी। वे परिस्थिति के अनुसार निर्णय लेते थे। इस लिहाज से उनके प्रबंधन नीति आज भी प्रासंगिकता है। संक्रमण और तथाकथित सुशासन के इस दौर में आज जब पूरे विश्व में नीतियों का संकट है। एक बार फिर श्रीकृष्ण के प्रबंधन और दर्शन की जरूरत महसूस हो रही है।
निःशुल्क टिफ़िन सेवा के बदले बुजुर्गों की दुआएं बटोर रहे है मुंबई के मार्क !
डी’सूजा ने अपनी ख़ुशी उन वृद्धो की मुस्कान में खोज ली है जिन्हें वे पिछले तीन सालों से मुफ्त टिफ़िन सेवा दे रहे हैं। आइये जानते हैं मार्क का ये सफ़र।
८५ वर्षीय डेल्मा एक सेवानिवृत शिक्षिका है। बोरीवली में रहने वाली इस वृद्धा के पास रहने वाला और उन्हें खाना पका कर देने वाला कोई नहीं है। फिर भी हर दोपहर ये अपने बेटे के उम्र के मार्क का स्वागत बड़ी सी मुस्कान के साथ करती है। मार्क रोज़ इनके यहाँ खाना पहुंचाते हैं।
मार्क पिछले ३ सालों से डेल्मा जैसे करीब ४० बुज़र्गों के यहाँ खाना पहुंचा रहे हैं पर आज तक इसके बदले उन्होंने इन लोगों से एक भी पैसा नहीं लिया और न आगे कभी लेने का विचार रखते हैं। मार्क के लिए इनकी दुआएं ही सब कुछ है ।
आई सी कॉलोनी में अपने बेटे और बहु के साथ रहने वाले मार्क बताते हैं, “ मेरे माता पिता अब इस दुनिया में नहीं है। मेरी सास मेरे साथ ही रहती है और हम लोग उनका ख्याल रखते हैं। एक दिन अपने ऑफिस में बैठे बैठे मेरे मन में विचार आया कि हमारे देश में कई बुज़ुर्ग होंगे जो अकेले रहते हैं। वे अपना खाना कैसे पकाते होंगे?”
फुर्सत के क्षणों में किया गया यह मंथन मार्क के लिए एक गंभीर सवाल बन गया और इसका जवाब उन्होंने ने खुद ही बनने की ठानी। मार्क को एक मुफ्त टिफ़िन सेवा आरम्भ करने की सूझी। उन्होंने अपनी पत्नी, य्वोन्न डी’सूजा को ये बात बताई।
मार्क और य्वोंने
बिना देर किये उनकी पत्नी ने अपने पास से ५००० रुपये निकाले और कहा, “ मार्क! यह बहुत अच्छा विचार है। तुम्हे शुरू करना चाहिए।”
१४ नवम्बर २०१२ को दिवाली के दिन, मार्क ने टिफ़िन सेवा आरम्भ कर दी ।
मार्क ने अपने आस पास रहने वाले ऐसे बुजुर्गों के बारे में पता करना आरम्भ किया। उनकी पत्नी, जो आई.सी वीमेन वेलफेयर एसोसिएशन की अध्यक्ष हैं, ने इसमें बहुत सहयोग किया। इस एसोसिएशन में लगभग ३०० सदस्य हैं और उन्होंने उस जगह के आस पास रहने वाले कई वृद्धों का पता दिया।
मार्क बताते हैं, “ ये ऐसे लोग हैं, जो अपने लिए खाना बनाने में असक्षम है। कोई विकलांग है तो किसी का अपने परिवार के लोगों से मतभेद है और उनका ख्याल रखने वाला कोई नहीं है।”
आज करीब ४० लोग इस सेवा का लाभ उठा रहे हैं। एक दिन में मार्क करीब २०-२५ लोगों का खाना पहुंचाते हैं क्यूंकि ऐसे कई लोग है जो रोज़ खाना नहीं मंगवाते। मार्क यह खाना स्वयं ले कर जाते हैं। हर दोपहर १२:४५ से २:३० बजे तक मार्क को घर घर खाना ले जाते हुए देखा जा सकता है।
मार्क ने खाना बनाने के लिए एक रसोइये को रखा है जिसे वे हर महीने 7000 रुपये देते हैं। इसके साथ ही उन्हें हर हफ्ते सब्जी और हर 15 दिन में राशन का सामान लाना पड़ता है। इस सेवा का लाभ उठाने वाले अधिकतर लोग दिन में केवल एक बार खाना मंगवाते हैं जिसे वे रात तक चला लेते हैं। मार्क सोमवार से शुक्रवार तक शाकाहारी भोजन देते हैं जैसे दाल, रोटी, चावल और सब्जी। और सप्ताह के अंत में, जिन लोगों को चाहिए, उन्हें मांसाहारी भोजन जैसे चिकन करी, बिरयानी आदि दिया जाता है। इस दिन टिफ़िन में फल और आइसक्रीम का भी प्रबंध रहता है।
मार्क कहते हैं कि इस काम में उन्हें किसी से कोई भी आर्थिक मदद की ज़रूरत नहीं है। उनका खुद का ‘एस्टेट एजेंसी’ का काम है जहाँ ये रोज़ सुबह 8 से दोपहर के 12 बजे तक रहते हैं। इसके बाद करीब 3 बजे तक वे लोगो को खाना पहुंचा कर वापस ऑफिस चले जाते हैं जहाँ वे रात के 7 बजे तक बैठते है।
वे कहते हैं, “ मैं काम करते रहना चाहता हूँ। मैंने रिटायर होने के बारे में अभी तक नहीं सोचा है ।”
मार्क से यह पूछने पर कि उनको यह सब करने का प्रोत्साहन कहाँ से मिलता है, वे उत्साहित हो कर बताते हैं, “ यह सब आत्म संतुष्टि की बात है। जब मैं इन लोगों तक खाना पंहुचाता हूँ तो ये हमेशा कहते हैं- ‘भगवान् तुम्हारा भला करे मार्क!’ यह सच में बहुत अच्छा लगता है। सभी मेरे लिए मेरे माता – पिता के जैसे हैं ।”
डी’सूजा परिवार का समाज के लिए कुछ करने का जज्बा यहीं ख़त्म नहीं होता। य्वोन्न ने बचपन से बुजुर्गों के लिए एक घर खरीदने का सपना देखा था जिसे अब उन्होंने पूरा कर लिया है। इस दम्पति ने हाल ही में एक फ्लैट ख़रीदा है जिसमे ५ बिस्तर लगाये हैं। यहाँ पर रहने वाली महिलाएं नाम मात्र का किराया देती हैं जिससे य्वोन्न उनकी सारी ज़रूरतों का सामान उन तक पहुंचती है जैसे खाना, दवाइयां आदि। इन लोगों ने यहाँ के लिए एक केयर टेकर को भी रखा है जो दिन भर यहाँ रह कर इनकी देखभाल करता है।
मार्क का अगला सपना एक ऐसी जगह बनाना है जहाँ कैंसर के आखिरी स्टेज से जूझ रहे पीड़ितों की देखभाल की जा सके ।
आज डेल्मा मार्क की टिफ़िन सेवा से बहुत खुश है। उन्हें कम तेल मसाले में पकाया हुआ खाना मिला रहा है । बिलकुल वैसा जैसा उनको चाहिए था ।
मार्क याद करते हैं, “ कुछ महीनों पहले डेल्मा अस्वस्थ थीं। उन्होंने शाम को मुझे फ़ोन कर के पूछा कि क्या मैं उनके लिए खिचड़ी का प्रबंध कर सकता हूँ । मैंने उस दिन अपने ऑफिस का काम छोड़ कर डेल्मा को खाना पहुँचाया ।”
अगर और भी लोग मार्क की टिफ़िन सेवा चाहते हैं तो मार्क इसे सहर्ष बढाने को तैयार है । वे मानते हैं कि सिर्फ पहला कदम उठाने की देर होती है : “ एक बार आप कदम बढ़ा लेते हैंतो फिर सारे रास्ते खुद ही खुल जाते हैं। ”
(साभार – द बेटर इंडिया)
बुज़ुर्गों का अकेलापन से दूर करने के लिए नाटूभाई चला रहे हैं मैरेज ब्यूरो!
नाटूभाई का मानना है प्यार किसी भी उम्र में हो सकता है। इसलिए समाज की परवाह न करते हुए वृद्ध लोगों को शादी कर लेनी चाहिए। नाटूभाई 50 वर्ष से ज्यादा की उम्र के लोगों को जीवनसाथी ढूँढने में मदद कर रहे हैं।
“अकेलापन धीमे जहर की तरह होता है। मुझे लगता है सभी को साथी की जरूरत होती है, खास तौर पर 50-60 की उम्र के लोगों को। अपना ख्याल रखने के लिए, बातें करने के लिए हमें किसी की जरूरत होती है। मुझे लगता है किसी का अपने जीवनसाथी के साथ होना उसकी उम्र को 5-10 साल तक बढ़ा सकता है। कई लोग बुढ़ापे में भी शादी करना चाहते हैं। उन्हें शादी करने का अधिकार भी है। लेकिन सामाजिक बाध्यता के कारण वो शादी नहीं करते हैं। मैं ऐसे लोगों को जीवनसाथी ढूँढने में मदद करना चाहता हूँ।“
‘वीना मूल्य अमूल्य सेवा’ एक अनोखा मैरेज ब्यूरो है, जो वरिष्ठ नागरिकों के लिए काम करता है। इसके जरिए मिलने वाले कई दंपत्ति आज एक खुशहाल जीवन जी रहे हैं।
नाटूभाई योजना मंत्रालय के सेवानिवृत्त्त सुपरिटेंडेंट हैं। भुज में आए विनाशकारी भूकंप के दौरान उनकी नियुक्ति कच्छ में थी। इस भूकंप में अपनो को खोकर कई लोगों की जिंदगी धाराशाई हो गई थी। नाटूभाई जिस तीन-मंजिला इमारत में रहते थे वो पूरी तरह ढह गई। इस हादसे में नाटूभाई नें अपने कई साथियों को खो दिया था।
‘उस दिन छुट्टी थी और मैं अपने घर अहमदाबाद गया हुआ था। इसलिए मैं बच गया। मैंने देखा कि अपने साथी को खो देने के बाद किस तरह लोगों की जिंदगी बिखर गई थी। तब मुझे इन लोगों के लिए कुछ करने का ख्याल आया। 2002 से मैं इस उद्देश्य के लिए काम कर रहा हूँ।’
– नाटू भाई
नाटू भाई 4 लोगों की टीम के साथ काम करते है। हर महीने दो सत्र में बैठक होती है। इन बैठकों में लोग एक दूसरे को जानते हैं और घुलते मिलते हैं।
इनमें से एक सत्र अहमदाबाद में ही होता है, जबकि दूसरा गुजरात के बाहर होता है। अब तक इंदौर, भोपाल, रायपुर, जयपुर, हैदराबाद, चेन्नई, कोलकाता, कश्मीर जैसी जगहों पर बैठक कर चुके हैं। बैठक के 7 से 10 दिन पहले नाटूभाई अखबारों में विज्ञापन देते हैं।
ये पूरे दिन का कार्यक्रम होता है। लोग एक दूसरे से बात करते हैं। VAMS की अगली बैठक दिल्ली पंजाब औऱ केरल में होने वाली है। बैठक में आने वाले शादी के इच्छुक लोगों को अपने साथ फोटो, बायोडाटा, और पहचानपत्र लाना होता है।
इसके अलावा नाटूभाई के पास व्यक्तिगत रूप से भी लोग अपने परिजनों के लिए रिश्ता ढूँढने आते हैं। नाटूभाई के पास लगभग 7,000 वरिष्ठ नागरिक, 10.000 और 1000 दिव्यांगो के बायोडाटा हैं।
VAMS में रिश्ता ढूँढ रहे लोगों का पंजीकरण होता है। उन्हें तलाक के कागज, साथी का मृत्युप्रमाण पत्र देना होता है। नाटूभाई इन वरिष्ठ नागरिकों से मिलकर उनकी समस्याएँ समझते हैं। इसके बाद अपने डाटाबेस से वो सही रिश्ता ढूँढकर लोगों को संपर्क में लाते हैं।
अब तक नाटूभाई 95 दंपत्तियों की शादी करा चुके हैं। 22 जोड़े लिव-इन रिलेशनशिप में रहते हैं।
नाटूभाई ने नवम्बर, 2011 में पहले लिव-इन रिलेशनशिप सम्मेलन का आयोजन किया था। इसमें 300 पुरूष और 70 महिलाओं ने भाग लिया था। वे लोगों को बिना शादी किये साथ रहने का भी समर्थन करते हैं।
नाटूभाई को आमिर खान के शो सत्यमेव जयते में बुलाया गया था। इसके बाद से उनके काम को और प्रसिद्धि मिल गई।
इस मैरेज ब्यूरो की सेवाएँ पूरी तरह नि:शुल्क हैं। ये जाति, धर्म या राज्यों को तवज्जो नहीं देता है। हर साल 250 जोड़े VAMS की सहायता से पिकनिक पर जाते हैं। इनका खर्च भी ब्यूरो ही उठाता है।
“7000 बायोडाटा में से सिर्फ एक हजार बायोडाटा महिलाओं के हैं। 50 पार कर चुकीं महिलाओं को साथी ढूँढना समाज के लिए कलंक के समान है। मैं चाहता हूँ कि ज्यादा से ज्यादा महिलाएँ समाज की रूढ़ियों को तोड़कर नए साथी के साथ नई पारी की शुरूआत करें। उन्हें प्रोत्साहित करने के लिए बैठक में आने वाली महिलाओं की यात्रा का खर्च हम उठाते हैं।”
– नाटूभाई
52 साल की तारा अपनी माँ और बेटे के साथ रहती थीं। अपनी माँ के लिए साथी ढूँढने के उद्देश्य से तारा के बड़े बेटे ने नाटूभाई से संपर्क किया। 2012 में उनकी शादी 57 साल के धनकी जाधव से हो गई। एक अन्य व्यक्ति नाटूभाई के पास अपने ससुर के लिए रिश्ता ढूढने आए थे।
नाटूभाई कहते हैं, “मुझे खुशी होती है कि किस तरह एक नए सदस्य के आ जाने से परिवार में बड़ा बदलाव आ जाता है। किसी को माँ मिल जाती है, किसी को पिता तो किसी को सास-ससुर।
VAMS का काम लोगों से मिले दान से होता है। कुठ व्यक्तिगत प्रायोजक भी VAMS को आर्थिक सहायता देते हैं। नाटूभाई के काम में उनका पूरा परिवार सहयोग करता है।
नाटूभाई ने बताया कि शुरूआती दिनों में एक महिला आई थी जिसके तीन बेटे और दो बेटियाँ थीं। लेकिन, पति की मौत हो जाने के बाद पाँचों बच्चो में से कोई भी उनकी जिम्मेदारी नहीं लेना चाहता था। वो अपनी बहन के साथ रह रही थीं औऱ वृद्धाश्रम जाने वाली थीं। उनकी बहन हमारे पास उनके लिए रिश्ता ढूँढने आई थीं।
शादी के बाद अब उनका अपना नया परिवार है। ये समाज की कड़वी हकीकत है कि बच्चे अपने माँ-बाप का ख्याल रखने के लिये तैयार नहीं हैं। इसलिए वृद्ध लोगों की शादी को हमें नीची नजरों से नहीं देखना चाहिए।
समाज की सोच तथा बुजुर्गो की ज़िन्दगी को बदलने की इस पहल से निश्चित ही समाज एक बेहतर दिशा में बढेगा !
(साभार – द बेटर इंडिया)
जन्माष्टमी पर कान्हा को खिलाएं कुछ खास
गोकुल पीठा
सामग्री : 1 कप ताजा कसा हुआ नारियल, 250 ग्राम मावा, 1/2 कप गुड़, 1/2 टी स्पून इलायची, 2 कप शक्कर, 1 कप मैदा, घी तलने के लिए, चांदी का वर्क, बादाम व काजू की कतरन।
विधि : एक पैन में नारियल, मावा, गुड़ किसा हुआ व इलायची मिलाकर 5 मिनट भूनें। इसके छोटे गोले बनाकर अलग रखें। शक्कर की 1 तार की चाशनी बनाएं। मैदे में पानी मिलाकर गाढ़ा घोल बनाएं। अब नारियल के गोलों को मैदे के घोल में डुबोकर गर्म घी में सुनहरा भूरा होने तक तलें। फिर इन्हें कुछ देर चाशनी में डुबोकर रखें। इन्हें चांदी के वरक, कतरे बादाम एवं कतरे काजू से सजाएं। रसभरे गोकुल पीठे तैयार हैं।
मलाई-मिश्री के लड्डू
सामग्री : 150 ग्राम सूखे खोपरे का बूरा, 200 ग्राम मिल्क मेड, एक कप गाय के दूध की फ्रेश मलाई, आधा कप गाय का दूध, इलायची पावडर, 5 छोटे चम्मच मिल्क पावडर, कुछेक लच्छे केसर।
भरावन मसाला सामग्री : 250 ग्राम मिश्री बारीक पिसी हुई, पाव कटोरी पिस्ता कतरन, 1 चम्मच मिल्कमेड, दूध मसाला एक चम्मच।
विधि :पहले खोपरा बूरा, मिल्क मेड, दूध, मिल्क पावडर और पिसी इलायची को अच्छीतरह मिला लें। तत्पश्चात माइक्रोवेव में पांच-सात मिनट तक इसे माइक्रो कर लें। अब भरावन सामग्री को अलग से एक कटोरे में मिक्स कर लें।एक छोटी कटोरी में 4-5 केसर के लच्छे कम पानी में गला दें। अब माइक्रोवेव से निकले मिश्रण को 10-15 तक सूखने दें, फिर उसमें भरावन मसाला सामग्री डालकर मिश्रण को अच्छीतरह मिलाएं और उसके छोटे-छोटे लड्डू बना लें। सभी लड्डू तैयार हो जाने पर उनके ऊपर केसर का टीका लगाएं। ऊपर से केसर-पिस्ता से सजाएं और मलाई-मिश्री के लड्डू पेश करें।
ये हैं ओलम्पिक्स में लाजवाब प्रदर्शन करने वाली महिलाएं
भारत के लंबे ओलंपिक इतिहास में साक्षी मलिक भारत की केवल चौथी महिला खिलाड़ी हैं जिन्होंने ओलंपिक पदक जीता है। वो भी उस राज्य से जिसे रूढ़िवादी और पुरुष प्रधान समाज के लिए जाना जाता है। हरियाणा में लड़कों के मुकाबले लड़कियों की संख्या कम है। नज़र डालते हैं भारत की महिला ओलंपिक चैंपियनों पर:-
साक्षी मलिक और पी वी सिन्धु : ओलंपिक में पहलवानी में पदक जीतने वाली साक्षी पहली भारतीय महिला हैं। साक्षी हरियाणा की हैं और इससे पहले 2014 के कॉमनवेल्थ गेम्स में उन्होंने सिल्वर मेडल जीता था। एक समय था जब हरियाणा में लड़कियों को कुश्ती खेलने के लिए ज़्यादा प्रोत्साहित नहीं किया जाता था लेकिन पिछले 10 सालों में हालात बदले हैं।साक्षी ने 2002 में अपने कोच ईश्वर दहिया के साथ पहलवानी शुरू की, उन्हें शुरू में विरोध भी झेलना पड़ा। लेकिन आख़िरकर 2016 में उनका सपना पूरा हुआ। ओलंपिक में जाने से पहले बीबीसी को दिए इंटरव्यू में साक्षी ने बताया कि वो पिछले 12 सालों से लगातार रोज़ कम से कम पांच से छह घंटे अभ्यास करती रही हैं। वहीं पी वी सिन्धु ने रजत पदक जीतकर देश का नाम रोशन किया।
साइना नेहवाल : साइना नेहवाल ने 2012 ओलंपिक में कांस्य पदक जीता था। बैडमिंडन में ओलंपिक मेडल जीतने वाली वो पहली भारतीय महिला खिलाड़ी थीं। वो 2010 के दिल्ली राष्ट्रमंडल खेलों में स्वर्ण पदक भी जीत चुकी हैं।ओलंपिक 2012 में कांस्य पदक के लिए साइना का मैच चीनी खिलाड़ी और उस समय की विश्व नंबर 2 ज़िंग वैंग से था। वैंग के घायल होने की वजह से साइना को विजयी घोषित किया गया था और उन्हें कांस्य पदक मिला था। साइना उसके बाद से कई बड़े ख़िताब जीत चुकी हैं। हालांकि इस बार साइना रियो ओलंपिक में पदक नहीं जीत पाईँ।
मेरी कॉम : पांच बार की विश्व चैंपियन मुक्केबाज़ एमसी मेरी कॉम रियो ओलंपिक में तो नहीं खेल पाईं लेकिन 2012 में उन्होंने लंदन ओलंपिक में भारत को मुक्केबाज़ी में पदक दिलाया था। उन्होंने एशियन चैंपियनशिप में चार बार गोल्ड मेडल और 2014 के एशियन गेम्स में भी गोल्ड मेडल जीता था।
कर्णम मल्लेश्वरी : ओलंपिक के इतिहास में पहली भारतीय महिला विजेता होने का श्रेय कर्णम मल्लेश्वरी को जाता है। सिडनी ओलंपिक में उनके मेडल जीतने से पहले भारत की किसी महिला ने ओलंपिक मेडल नहीं जीता था। उन्होंने महिलाओं के 69 किलोवर्ग की भारोत्तोलन प्रतियोगिता में कांस्य पदक जीता था।
इससे पहले 1988 में भारत की एथलीट पीटी ऊषा पदक के बेहद करीब आईं थीं। 1980 में वो किसी ओलंपिक वर्ग के फ़ाइनल में पहुंचने वाली पहली भारतीय महिला बनी थीं। फिर 1984 में हुए लॉस एजेंलिस ओलंपिक में 400 मीटर हर्डल्स में वो चौथे स्थान पर रही थीं और 1/100वें सैकेंड से मेडल जीतने से चूक गई थीं। वहीं 2016 के रियो ओलंपिक में जिम्नास्टिक्स में दीपा कर्मकार भी चौथे नंबर पर रही हैं।
छूटा मोबाइल, आइसक्रीम भी नहीं खाई, सिंधु ने इस तरह तय किया पदक का सफर…
जब बात अनुशासन की आती है तो भारत के दिग्गज बैडमिंटन कोच पुलेला गोपीचंद कोई समझौता नहीं करते और यही वजह रही कि उन्होंने पिछले 3 महीने से पीवी सिंधु को फोन से दूर रखा और रियो पहुंचने पर इस रजत पदक विजेता शटलर को आइसक्रीम भी नहीं खाने दी। जब कुछ हासिल करना होता है तो फिर जिंदगी में कई बलिदान करने पड़ते हैं तथा साइना नेहवाल से लेकर सिंधु तक गोपी के सिद्धांत कभी नहीं बदले। लेकिन जिस दिन उनकी शिष्या सिंधु ओलंपिक में रजत पदक जीतने वाली पहली भारतीय महिला खिलाड़ी बनी उस दिन एक कड़क शिक्षक भी नरम बन गया और उन्होंने बड़े भाई की तरह भूमिका निभाई।
उन्होंने कहा कि अब मिशन पूरा होने के बाद सिंधु भी एक आम 21 वर्षीय लड़की की तरह जिंदगी जी सकती है तथा अपने साथियों को व्हाट्सएप पर संदेश भेजने के अलावा अपनी पसंदीदा आइसक्रीम भी खा सकती है।
सिंधु के रजत पदक जीतने के बाद गोपी ने कहा कि सिंधु के पास पिछले 3 महीने के दौरान उसका फोन नहीं था। पहला काम मैं यह करूंगा कि उसे उसका फोन लौटाऊंगा। दूसरी चीज यहां पहुंचने के बाद पिछले 12-13 दिन से मैंने उसे मीठा दही नहीं खाने दी दिया, जो उसे बहुत पसंद है। मैंने उसे आइसक्रीम खाने से भी रोक दिया था। अब वह जो चाहे, वह खा सकती है।
गोपी ने ओलंपिक से सिंधु के अनुशासन और कड़ी मेहनत की भी तारीफ की। उन्होंने कहा कि पिछला सप्ताह उसके लिए शानदार रहा। पिछले 2 महीनों में उसने जिस तरह से कड़ी मेहनत की, वह बेजोड़ थी।
उन्होंने कहा कि जिस तरह से बिना किसी शिकायत के उसने बलिदान किए, वह शानदार था। वह अब इस क्षण का आनंद लेने की हकदार है और अब मैं वास्तव में चाहता हूं कि वह ऐसा करे। मैं वास्तव में बहुत बहुत खुश हूं। सिंधु अभी 21 साल की है और गोपी को उम्मीद है उनकी पसंदीदा शिष्या अभी काफी कुछ हासिल करेगी।
उन्होंने कहा कि सिंधु अभी युवा है। मेरा मानना है कि इस टूर्नामेंट से उसे काफी कुछ सीखने को मिला है। उसके पास आगे बढ़ने की बहुत क्षमता है। आपको अपना सर्वश्रेष्ठ प्रयास करना चाहिए। उसने हमें गौरवान्वित किया है। मैं उसके लिए वास्तव में खुश हूं।
गोपी ने सिंधु को सलाह दी कि वह स्वर्ण पदक से चूकने के कारण निराश होने के बजाय रजत पद जीतने की खुशी मनाए तथा वह हार के बारे में नहीं सोचे। यह याद करो कि हमने एक पदक जीता है। मैं उससे कहना चाहता हूं कि वह पिछले सप्ताह के प्रयासों को नहीं भूले, जो उसने पोडियम पर दूसरे स्थान पर पहुंचने के लिए किए थे।
गोपी ने कहा कि उसने जो प्रयास किए उससे उसने हम सबको गौरवान्वित किया है। हम बहुत खुश हैं। यह उससे अधिक महत्वपूर्ण मेरे लिए हैं कि हम यह भूल जाएं कि वह मैच हार गई। हम इस पर ध्यान दें कि उसने पदक जीता।
गोपी ने हालांकि कहा कि यदि स्टेडियम में राष्ट्रगान बजता तो उन्हें अधिक खुशी होती। उन्होंने कहा कि मैं भी चाहता था कि हमारा ध्वज थोड़ा और ऊपर फहराया जाता लेकिन यह कहते हुए भी मैं सिंधु की तारीफ करता हूं कि उसने यहां तक पहुंचने के लिए बेहद कड़ी मेहनत की।
उन्होंने कहा कि टूर्नामेंट की बात करें तो विश्व में 10वें नंबर की सिंधु पूरी तरह से एक अलग तरह की खिलाड़ी दिखी। यहां तक कि भारत की स्टार बैडमिंटन खिलाड़ी और लंदन ओलंपिक की कांस्य पदक विजेता साइना नहेवाल ग्रुप चरण से ही बाहर हो गई थी।
गोपी ने कहा कि सिंधु ने चारों मैचों में अच्छा प्रदर्शन किया। फाइनल में भी उसने कड़ी चुनौती पेश की। मुझे वास्तव में गर्व है कि उसने अपनी तरफ से वह सब कुछ किया, जो वह कर सकती थी। मारिन बेहतर खेली। सिंधु को इससे सीख मिली है। उम्मीद है कि अगली बार वह और मजबूत होकर कोर्ट पर उतरेगी।
उन्होंने कहा कि ऑल इंग्लैंड चैंपियन गोपीचंद सिडनी ओलंपिक 2000 के क्वार्टर फाइनल में हार गए थे, लेकिन कोच के रूप में उनकी दो शिष्याओं साइना नेहवाल और अब सिंधु के पास ओलंपिक पदक हैं।
उन्होंने कहा कि जिंदगी में ऐसा एक बार होता है। कई बार लाखों में एक बार और शायद हमारे लिए अरबों में एक। बहुत कम अवसरों पर किसी को पोडियम पर पहुंचने का मौका मिलता है तथा जो इस पूरी यात्रा का हिस्सा होता है उसके लिए यह विशेष क्षण होता है।
गोपी ने कहा कि मैं बहुत खुश हूं। ईश्वर और उन लोगों का आभारी हूं जिन्होंने हमारा समर्थन किया। जवाब देने के लिए मेरे पास मेरा फोन नहीं है लेकिन कई चीजों जैसे प्रधानमंत्री के ट्वीट से हमें कड़ी मेहनत करने की प्रेरणा मिली। हर किसी ने ओलंपिक में अपना सर्वश्रेष्ठ देने का प्रयास किया। उनमें से कुछ लोगों को ही जीत मिली।
उन्होंने कहा कि हमें भी सोने का तमगा पसंद है लेकिन यह उसका पहला ओलंपिक है और जिस तरह से वह खेली उससे मैं गौरव महसूस कर रहा हूं। (भाषा)
उर्जित पटेल रिजर्व बैंक के गवर्नर नियुक्त
नई दिल्ली। सरकार ने रिजर्व बैंक के डिप्टी गवर्नर उर्जित पटेल को रघुराम राजन के स्थान पर केन्द्रीय बैंक का नया गर्वनर नियुक्त किया है। वेआरबीआई के 24वें गवर्नर होंगे। राजन का कार्यकाल चार सितंबर को समाप्त हो रहा है। नए गवर्नर की सूची में कई नामों पर विचार चल रहा था और सरकार ने आखिरकार पटेल को इस पद पर नियुक्त करने का निर्णय लिया है। उल्लेखनीय है कि भारतीय जनता पार्टी नेता सुब्रमण्यम स्वामी द्वारा लगाए आरोपों और इसको लेकर हुई बयानबाजी के बाद राजन ने चार सितंबर को कार्यकाल समाप्त होने पर अध्ययन-अध्यापन की दुनिया में लौटने की घोषणा की थी। इसके बाद नए गवर्नर की नियुक्ति की प्रक्रिया शुरू की गई थी। इससे पहले एसबीआई की प्रमुख अरुंधति भट्टाचार्य, अरविन्द सुब्रमणियन, सुधीर पोखरन, अरविन्द पानगड़िया, कौशिक बसु, अशोक लाहिड़ी और केवी कामथ के नाम भी आरबीआई गवर्नर के लिए सामने आए थे।
कौन हैं उर्जित पटेल : येल यूनिवर्सिटी से पीएचडी डॉ. उर्जित पटेल 7 जनवरी 2013 को डिप्टी गवर्नर के रूप में रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया से जुड़े। वे आईडीएफसी लि. में प्रमुख पॉलिसी ऑफिसर भी रह चुके हैं। डॉ. पटेल को वित्त, ऊर्जा और इन्फ्रास्ट्रक्चर क्षेत्र में 17 वर्षों का लंबा अनुभव है। डॉ. पटेल में ऊर्जा मंत्रालय और आर्थिक मामलों से जुड़े विभाग में भी 1998 से 2001 तक अपनी सेवाएं दे चुके हैं। 1995 से 97 तक डॉ. उर्जित आरबीआई में कंसल्टेंट के रूप में भी सेवाएं दे चुके हैं।













