Wednesday, September 17, 2025
खबर एवं विज्ञापन हेतु सम्पर्क करें - [email protected]
Home Blog Page 722

माधवी श्री की कुछ कविताएं

 

IMG-20150301-WA0003

मै ज़िन्दगी की दौड़

नहीं दौड़ सकती

तुम्हारे साथ।

 

मेरी अपनी कुछ मजबूरियाँ है

मेरी अपनी कुछ बंदिशे है

तुमेह समझा नहीं सकती अभी ,

शायद कल तुम समझ पाओ।

 

इसलिए आज तुम्हारे लिए

शुभकामनाये लिए मेरा मन

अलविदा कहता है तुम्हें।

 

जहाँ रहो , तुम

सुखी रहो !

###################################

अपनी कहानी भी अजीब है –

जिसे प्यार किया

पा न सकी ,

जिसने मुझसे प्यार किया

उसे अपना न सकी।

###################################

दिल में अँधेरा होतो

बाहर रोशनी की जरूरत

होती है।

###################################

पुरुष तुम्हें अपने “अभिमान ” से

इतना प्रेम होता है।

किसी स्त्री से तुम

क्या प्रेम कर पाओगे ?

स्त्री और अभिमान में ,

तुम अपना “अभिमान ”

चुनते हो –

फिर स्त्री को विश्वासघातिनि क्यों

कहते हो ?

 

 

###################################

हो सकता है

तुमेह उम्मीद हो –

मै तुमेह फ़ोन करू।

ऐसी उम्मीद मुझे भी

तो हो सकती है।

जब हम एक दूसरे की

उम्मीद पर खरा नहीं उतरे

तो अब एक दूसरे को

कोसने से क्या फायदा ?

###################################

जब मै जीवन के कठिनतम

दौर से गुजर रही थी।

तब तुम शिला  की तरह

एक तरफ बैठे

तमाशा देख रहे थे।

सोचा , गिर कर

तुम्हारे पास चली आउगी।

हर जोगी इस ” पुरुष प्रधान समाज ” से।

नारी का जीवन यूँ भी

कठिन होता है।

थोड़ी कठनाई

तुमने और बढ़ा दी।

######################

तुम कहते हो

दर्द सिर्फ तुम्हें  मिला।

तुमने कभी अपनी

खुशियाँ गिनी ?

कभी दुआओं की

लिस्ट बनाई ?

एक बार इसे गिनो ,

दुःख कम लगेगा

तुम्हें अपनी झोली में।

#############################

औरत -मर्द का रिश्ता

बड़ा नाजुक होता है।

विश्वास की डोर पर

टिका होता है।

आपसी सहयोग , श्रद्धा ,विश्वास

और सहभागिता पर

निर्भर करता है।

कही तो कुछ कम  होगा –

तभी हम चल न सके साथ – साथ।

###################################

मुझे अभिमान है खुद पर

बिना खुद पर अभिमान करे

क्या कोई जी सकता है ?

 

प्यार भी अभिमान के साथ किया ,

जीऊँगी  भी अभीमान

मरूंगी भी अभिमान के साथ।

 

एक नारी अभिमान के साथ भी

किसी पुरुष से प्रेम कर सकती है।

हर वक़्त समर्पित नारी होना

जरुरी तो नहीं ?

################################

हर वक़्त कोसते हो

खुद को , परिस्थितियों को।

इतना कुछ पाकर भी

दुखी रहते हो।

दूसरो पर दया

करने से पहले –

खुद पर

दया करना सीखो।

#########################

इस बार होली पर

तुम्हारे प्यार से

रंग गयी।

########################

अभिमान सिर्फ पुरुषो

का ही तो नहीं होता है।

 

स्त्री भी रख सकती है

खुद पर थोड़ा सा अभिमान

 

बस उसकी “कीमत ”

थोड़ा ज्यादा होती है

या यूँ कहे –

उसे “चुकानी” पड़ती है।

########################

खुद के ऐश्वर्या पर

इतना अभिमान है तुम्हें  !

 

थोड़ा वक़्त दो  ,

तपती  धूप  में

जल कर

 

अपना साम्राज्य

बनाना मुझे भी आता है।

############################

बहुत कठिन होता है

पुरुष  के लिए

अपने  “अंह ” के ऊपर

स्त्री को स्थान देना।

 

पर  भी हासिल

करके  दिखलाऊगी

मैं।

#########################

ज़िन्दगी ने इतना वक़्त

ही नहीं दिया कि

खुलकर रो सकू।

इतना समय ही नहीं मिला कि

अपनी तकलीफों पर

महरम लगा सकूं।

############################

हर बार किसी स्त्री को

अपना अभिमान क्यों

खोना पड़ता है –

किसी पुरुष का

सानिध्य पाने के लिए ?

 

 

############################

तुम मेरी तकलीफो पर

मरहम क्या लगाओगे ?

 

अपनी कविताओ और

काम से फुर्सत कहाँ है तुम्हें ?

 

कविता लिखना आसान है ,

पर किसी के दर्द पर

मरहम लगाना कठिन

बहुत कठिन काम है।

 

इसके लिए पुरस्कार

नहीं मिला करते।

प्रशस्ति पत्र नहीं पढ़ा जाते

आम सभा में।

 

मिलती  है तो बस

मन को एक अकूत शांति।

एक गहरी शांति।

 

(कवियत्री वरिष्ठ पत्रकार हैं)

 

कल्पना झा की कुछ कविताएं

kalpana di

विवेकानंद फ्लाईओवर टूटने पर

माँ ने कुछ दवाइयां मंगवाई थी

और कहा था कि नहाने का मग टूट गया है
लेती आना
बेटा नये क्लास में गया है
उसके लिए नये जूते खरीदने हैं
कल रात ऑफिस से देर से लौटे थे तुम
नाराज़ होकर मुँह फेर कर सो गई थी मैं तुमसे
आज तुम्हारी दी हुई वो नई नीली साड़ी पहन लूंगी
फ़िर सिनेमा देखने चलेंगे
ओह, छत पर पसारे कपड़े उतारे नहीं अब तक
कहीं बारिश हो गई तो घर लौट कर फ़िर सुखाने होंगे उन्हें
पड़ोस की आंटी  के यहाँ पोती हुई है
उसके लिए एक प्यारा सा झुनझुना लूंगी
इस गर्मी आम का अचार डालूंगी
हैलो
सुनो
ये मेरे ऊपर कुछ पहाड़ सा गिर गया है
पर जिंदा हूँ मैं अभी
हाँ जहाँ धूल का ढेर है वहीँ
बायीं ओर ? लोहे हैं
दाहिनी ओर? सीमेंट और बालू
सामने धूल  का अम्बार और कुछ तड़पते हाथ पैर
सुनो, सुन पा रहे हो मुझे
यहाँ बहुत शोर है
सुनो, जल्दी आओ
मेरी पसलियों में कुछ धंसता चला जा रहा है
फेफड़ों में धूल भर चुकी है
सुनो वो बेटे के… स्कूल की फीस…
सुनो…..
सु……….नो …..
सु …..न
…………
………
……..

अब घर नहीं आते पापा
Father-Daughter-Beach

घर के बाहर वाली सड़क पर जब खड़ी होती हूँ अक्सर

दूर धुंधलके से पिता आते हुए दिखते हैं

देर रात गए….
उन्हें देर हो जाया करती थी!
उनके थके हाथों में मटर बादाम
या गर्म जलेबियों का थैला भी दिखता है मुझे
जिसे लपक कर झटपट गायब कर दिया करते थे हम

खिड़की के बाहर दूर तक घास दिखाई पड़ती थी तब
और हर इतवार पिता उसके पार वाले तालाब से नहा कर घर आते थे
उस पूरे रास्ते में एक पगडण्डी सी बन गई थी
जो भीग जाया करती थी

कई कई शाम ढेरों खुशबू लिए आती है
खेल की फुरफुरी, हलवे की नरमी
अख़बारों की फड़फड़ाहट
कुर्सियों या तिपाई पर बैठ कर बतियाते हुए
बहुत ऊँचे ऊँचे लोग
सिक्कों की खनखनाहट सब लेकर पास बैठती है

कई बार अंधेरी रातों में पिता की कराह सुनाई देती है
सहलाने पर एक ढांचा महसूस होता है
उनकी गहरी आँखें अँधेरे से झांकती दिखती हैं कई बार
नींबू निचोड़े दाल की महक सराबोर कर देती है एकबारगी
एक बार सपने में पंखा माँगा था उन्होंने
अगले दिन उनके चिर साथी
सत्तू और चने के साथ दान कर आई थी

रास्ते वही हैं,
बस  समय-समय पर उनकी थोड़ी मरम्मत कर दी जाती है
पगडण्डी जो उन्होंने बनाई थी, धीरे धीरे मिटती गई
घर का पता अब भी वही है
बस अब पिता नहीं लौटते

गायब होता जा रहा है सब कुछ धीरे धीरे
हर शाम गायब हो जाती है एक सुबह
और हर सुबह किसी काले खोह में गुम होती जाती है एक रात
एक के बाद एक लगातार

धीरे धीरे सारी रातें और सारी सुबहें गुम हो जाएँगी
जैसे गुम हुए पिता, उनके पिता, उनके पिता
आराम कुर्सी कभी कभी हवा से हिल जायेगी
पलंग के कोने में दीवार से सटकर लाठी पड़ी रहेगी
और मेरे कानो में बस गूंजता रहेगा
रिंका रिंका रिंका ।

***************************************
#कल्पना

(कवियत्री प्रख्यात रंगकर्मी तथा गायिका हैं। फिलहाल एक केन्द्रीय संस्थान में वरिष्ठ अनुवादक के रूप में कार्यरत )

नीलाम्बर ने कविता के नाम की एक अभूतपूर्व साँझ

नीलांबर संस्था द्वारा एक सांझ कविता की विषय पर आईसीसीआर सभागार में एक काव्यपाठ एवं कवि पाठक-संवाद का आयोजन किया गया। इस अवसर पर कविता को लोकप्रिय बनाने के लिए संस्था की ओर से मल्टीमीडिया का सकारात्मक उपयोग कर उसे डिजीटल रूप में प्रस्तुत किया गया। एक सांझ कविता के पहले आयोजन में अशोक सिंह (दुमका), नीलम सिंह, नीलकमल, विमलेश त्रिपाठी, आनन्द गुप्ता और संजय राय ने अपनी कविताओं का पाठ किया। इन कवियों का परिचय और इनकी कविताओं के पाठ बिल्कुल अभिनव ढंग से कराया गया। इस कार्यक्रम में आलोचक को तौर पर प्रो. वेदरमण, प्रियंकर पालीवाल, प्रफुल्ल कोलख्यान ने कविताओं के संबंध में अपने अपने वक्तव्य रखे। प्रो. वेदरमण ने कहा – कविता मूलत:  सिर्फ सुंदर शब्दों का संचयन नहीं है, और संवदनाओं की अतिरेकता कविता के तत्वों को कृत्रिम कर देता है। प्रियंकर पालीवाल ने कहा कि जहाँ बाजार साहित्य को हाशिये पर ला रहा है, वहीं नीलांबर की ये पहल साहित्य मुख्यधारा में शामिल करने की पहल है। प्रफुल्ल कोलख्यान ने कविता के लोक तत्वों पर बात रखते हुए कहा कि इन कवियों से असीम संभावनाएं है। संगोष्ठी के अध्यक्ष प्रो. शंभुनाथ ने कहा ‘ सचमुच कविता की ये सुंदर सांझ थी, यह हमें आशान्वित करती है कि कविता जीवन के बचाने लिए प्रतिबद्ध है। कविता के इस नए रूप से जीवन को देखा जाना अभूतपूर्व है। मैंने ऐसा कार्यक्रम आज तक नहीं देखा था। इस कार्यक्रम में मुक्तिबोध, सर्वेश्वर और अरूण कमल की कविताओं की पर आधारित विडियो फिल्म भी दिखाया गया। इस कार्यक्रम में डिजीटल माध्यम से चर्चित कवियत्री और लेखिका रश्मि भारद्वाज (दिल्ली), समीक्षक निवेदिता भावसर (उज्जैन), कवि एवं लेखक वीरू सोनकर (कानपुर), लेखक एवं प्रो. संजय जायसवाल और अर्चना खंडेलवाल (कोलकाता) एवं राजभाषा अधिकारी विनोद यादव ने भी महत्वपूर्ण योगदान दिया। श्रोता के रूप में आये कवि राज्यवर्द्धन जी ने कहा यह कार्यक्रम मील की पत्थर साबित होगी। कविताओं पर एक कोलाज ममता पाण्डेय, निधि पाण्डेय, पंकज सिंह, सृष्टि सिंह, अभिषेक पाण्डेय अवधेश शाह, प्रदीप तिवारी और विशाल पाण्डेय ने प्रस्तुत किया। प्रिया और पूनम सिंह ने अतिथियो का पारंपरिक रूप से स्वागत किया। संस्था के सचिव ऋतेश पाण्डेय ने कहा कि ये एक सांझ कविता की अनवरत चलता रहेगा, फिलहाल हम आर्थिक रूप से इतने सृदृढ़ नहीं है, लेकिन धीरे धीरे हम इसका विस्तार अलग अलग राज्यों में भी करेंगे। पूरे कार्यक्रम का संचालन ममता पाण्डेय ने किया। धन्यवाद ज्ञापन दिया राहुल शर्मा ने।

लिटिल थेस्पियन ने मंच पर उतारा कहानियों का कथा कोलाज

हाल ही में ज्ञानमंच में कथा कोलाज – 7 के अंतर्गत लिटिल थेस्पियन उमा झुनझुनवाला के निर्देशन में श्रीमती कुसुम खेमानी की तीन कहानियों का मंचन “प्रेम अप्रेम” शीर्षक से किया गया।

कुसुम जी इन तीनों कहानियों के केन्द्र में प्रेम अपने दो प्रबल स्वरूपों में मौजूद है – एक, प्रेम करने की चरम उत्कंठा और दूसरा, प्रेम की उपेक्षा l “एक माँ धरती सी” और “रश्मिरथी माँ” कहानी में माँ के अदम्य साहस का ज़िक्र है कि एक माँ अपने औलाद के लिए कुछ भी कर सकती है वहीँ दूसरी ओर “एक अचम्भा प्रेम” में अपनी जीवनसाथी की मानसिक पीड़ा से आहत एक प्रेमी पति के उस प्रेम का वर्णन है जहाँ प्रेम का अर्थ केवल दूसरों को चाहना मात्र होता है, जिसमे प्रत्याशा नहीं होती, जहाँ प्रेम अँधा होता l

 

सबसे ज्यादा पापा की याद आती है

  • रेखा श्रीवास्तव

फादर्स डे यानी पापा दिवस की चर्चा आते ही आँखों में पापा की छवि बन गयी है। उनकी यादें आने लगी है। 14 साल पहले 3 सितंबर 2002 को अचानक पापा को मैंने खो दिया। पापा को खोना मेरे जीवन का पहला झटका था, अर्थात् उसके पहले मैंने मौत को इतने पास से महसूस नहीं किया था। सबसे बड़ी बात है कि वह बीमार भी नहीं थे, अचानक उन्हें ब्रेन हैमरेज का अटैक हुआ। जिस दिन उन्हें अटैक आया उस दिन मैं महानगर कार्यालय से हावड़ा वाले घर गई थी।  जैसे ही घर पहुँची कि बड़े भैया का फोन आया कि पापा की तबियत बहुत खराब हो गई है, जल्दी से तुम लोग चली जाओ। और जब तक वहाँ पहुँचे वह बेहोश हो चुके थे और उन्हें अस्पताल ले जाने की तैयारी चल रही थी। अस्पताल में दो दिन रहने के बाद वह हमलोगों को छोड़ कर इस दुनिया से चले गये। मुझे उनसे अंतिम बार बात करने का मौका भी नहीं मिला। इसलिए मुझे काफी तकलीफ पहुँची और उनके जाने के बाद मैं बहुत बीमार पड़ गई। मैं अपने पापा की ज्यादा खास नहीं थी। माँ की दुलारी थी। फिर भी पापा और मेरा रिश्ता बहुत प्यारा था।  बचपन से ही हमलोगों को पापा काफी घुमाने ले जाते थे। मामा के यहाँ ले जाते थे। वह न जाने कैसे मेरी जरूरत बिना बोले ही, समझ लेते थे। मुझे बहुत दुख है कि उन्होंने न मेरी शादी देखी और न ही बच्चे तक उनसे मिल पाये और उनका आशीर्वाद ले पाये। मुझे पत्रकारिता से जोड़ने वाले भी मेरे पापा है। पापा ही महानगर न्यूजपेपर ले आये थे, जिसमें डीटीपी ऑपरेटर के लिए आवेदन निकला था और मैं उनके साथ ही महानगर कार्यालय में गई थी और वहाँ ज्वाइन की थी। उनका मुस्कुराता चेहरा आज भी आँखों के सामने आ जाता है। सबसे बड़ी बात है कि मैं उन्हें कभी गु्स्सा करते नहीं देखा, उत्तेजित होते नहीं देखा।  सबसे प्यार से बातें करते थे। आर्थिक समस्या होने के बावजूद वह कभी खींझते नहीं थे। आज इतने वर्षों के बाद भी जब मैं बहुत दुखी या परेशान होती हूँ, तो सबसे ज्यादा पापा को ही याद करती हूँ और न जाने कहाँ से  मेरे अंदर अचानक ताकत आ जाती है। पापा की एक बात मुझे हमेशा याद रहती है कि वह कहते थे, कि जब तक जियो, बिजी रहो। काम करते रहो । एक पल भी जायज न करो। और मैं कोशिश करती हूँ कि उनकी बातों पर अमल कर सकूँ।

(यह संस्मरण है और लेखिका वरिष्ठ पत्रकार हैं)

 

19 जून को ही पहली बार पिता दिवस मनाया गया था

  • रेखा श्रीवास्तव

फादर्स डे यानी पिता का दिन। बच्चा जिस दिन से दुनिया में आता है, उसी दिन से उसका रिश्ता पिता से बनता है और समय के साथ रिश्ता मजबूत हो जाता है। सदियों पहले पिता और बच्चे के रिश्ते में एक दूरी थी। एक सम्मान था। पिता केवल डांटने और अनुशासन के लिए जाने जाते थे। माँ अपने बच्चों को डराने के लिए भी कई बार पिता से शिकायत कर देने की धमकी भी दिया करती थी। पर अब पिता और बच्चों का रिश्ता बदल गया है। फिलहाल बच्चों और पापा के बीच का रिश्ता दोस्ती के रिश्ते के रूप में निखरा है। बच्चे माँ की तुलना में पापा से ज्यादा मिल-जुल कर रह रहे हैं। उनके रिश्ते के बीच एक खुलापन दिख रहा है। जिस समय अनुशासन होता है, तो अनुशासन होता है लेकिन जब दोस्ती होती है तो वे केवल दोस्त होते हैं। एक उम्र के बाद बच्चे अपने पापा को अपने मन की बात ज्यादा अच्छे से समझा पा रहे हैं और पिता भी इसे समझने में आगे बढ़ रहे हैं। पढ़ाई, खेल-कूद व इंटरटेनमेंट अर्थात् सारी दुनिया में ही पिता और उनके बच्चे साथ-साथ देखने को  मिल रहे हैं। बेटी और  पिता का संबंध तो और भी ज्यादा गहरा है। पिता की दुलारी होती है बिटिया। बिटिया अपनी सारी इच्छाओं को पापा के सामने रखती है और पापा उसे काफी हद तक पूरा करने की कोशिश करते हैं। और पापा भी बेटों की तुलना में बेटियों को ज्यादा प्यार करते हैं। वैसे बिटिया भी अपने पापा का ख्याल रखती है और पापा भी अपनी बेटी का नखरा उठाते हैं। पिता और बच्चों के बीच अच्छे रिश्ते के कई कारण हैं। फिलहाल एकल परिवार की संख्या ज्यादा है। एकल परिवार में बच्चों को केवल मम्मी और पापा का ही साथ मिल पा रहा है। दादा-दादी, नाना-नानी, चाचा-बुआ अब दूर रहने लगे हैं और वह अब परिवार की तरह नहीं, मेहमान का रूप ले चुके हैं। इसके अलावा आजकल माँ घर-गृहस्थी के साथ-साथ नौकरी, बिजनेस व अन्य क्षेत्र में भी पहुँच गयी है। इसलिए परिवार में रह रहे बच्चे माँ की तुलना  में पिता के साथ ज्यादा घुलमिल रहे हैं और सबसे बड़ी और अच्छी बात है कि आजकल के पिता भी अपने को पिता कम, बच्चों के दोस्त और उसके साथी बनकर रहते हैं। इससे एक अच्छा वातावरण मिल जाता है। उनके रिश्ते में मिठास भर रहा है। वैसे भी पिता बच्चों के लिए केवल जन्मदाता नहीं, बल्कि संस्कार को एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक पहुँचा रहे हैं।  बच्चों के लिए वैसे हर दिन ही माता-पिता का होता है, लेकिन फिर भी एक दिन पापा के नाम हो जाता है।

फादर्स डे पूरे विश्व में ही मनाया जा रहा है। इंडोनेशिया, फिनलैंड सहित कई देशों  में नवंबर महीने दूसरे रविवार को मनाया जा रहा है । वहीं इजराइल में मजदूर दिवस के दिन ही पिता का दिन मनाया जाता है। इसके अलावा कई देशों में अगस्त, सितंबर और अकटूबर महीने में भी फादर्स डे मनाया जाता है। आस्ट्रेलिया, ब्राजील, बेल्जियम, भारत सहित अधिकतर देशों में जून के तीसरे रविवार को ही पिता दिवस मनाया जा रहा है। इस वर्ष सबसे खास बात यह है कि फादर्स डे की शुरुआत 1909 में 19 जून को हुई थी, और इस वर्ष भी जून का तीसरा रविवार 19 जून को ही पड़ा है। पिछले सौ साल से भी ज्यादा समय से देशभर में पिता दिवस मनाया जा रहा है। इसकी शुरुआत के बारे में कहा जाता है कि मई 1909 में वाशिंगटन के स्पोकेन की रहने वाली सोनोरा स्मार्ट डॉड ने तय किया कि वह अपने पिता को सम्मान देंगी। उसकी माँ एक दुर्घटना में मारी गयी थी, और उसके पिता सिविल वार वेटेरन उसे व उसकी पाँच भाई-बहनों की जिम्मेदारी निभा रहे थे। डॉड ने अपने पिता के जन्मदिन 5 जून को फादर्स डे मनाने की मांग की तथा उस दिन छुट्टी की भी मांग की।  उसके एक साल बाद अर्थात् 1910 में 19 जून को फादर्स डे मनाने की आज्ञा दी गयी। डोडा ने  चर्च में अपने पिता को गुलाब के फूलों का गुलदस्ता उपहार में दिया और उसी दिन से फादर्स डे मनाने की शुरुआत हुई। एक बात स्पष्ट होता है कि चाहे कोई भी देश हो या कोई भी महीना पर पिता दिवस रविवार के ही दिन अर्थात् छुट्टी के दिन ही मनाया जा रहा है। बच्चे अपने पापा के साथ इस दिन को भरपूर खुशियों के साथ मना पा रहे हैं। हमारे यहाँ ग्रीटिंग देना, गिफ्ट देने की परंपरा चल रही है और पिता भी अपने बच्चों के साथ इस दिन का भरपूर लुफ्त उठा रहे हैं।

 

(लेखिका वरिष्ठ पत्रकार हैं)

समलैंगिकता और बाप – बेटे के बीच की कहानी है डियर डैड

पिता हमारी जिंदगी में बेहद खास रिश्ता है और इस रिश्ते के खट्टे – मीठे लम्हों को सजाती है डियर डैड। फिल्म समलैंगिकता पर भी बात करती है जो देश ममें फिलहाल स्वीकृत नहीं है मगर बहस का मुद्दा जरूर है। फिल्म की स्क्रीनिंग हाल ही में महानगर में की गयी जिसमें फिल्म की अभिनेत्री एक्वली खन्ना, निर्माता शान व्यास समेत कई अन्य लोगों ने भाग लिया। फिल्म की कहानी बाप – बेटे के इर्द – गिर्द घूमती है और यह उनके घर दिल्ली से मसूरी (उत्तराखंड) के सफर के दौरान अत्प्रत्याशित संशय, अजनबियों के दौरान अपनी कहानी कहती है। फिल्म में 14 साल का बेटा शिवम और उसके 45 साल के पिता स्वामीनाथन हैं और कहानी उन्हीं के रिश्तों को लेकर चलती है।

अगर किसी लड़के को( जो किशोर हो चुका हो) पता चले कि उसका पिता समलैंगिक है तो उसकी क्या मानसिक हालत होगी? इसका जवाब पाने के लिए आप ‘डियर डैड’ फिल्म देख सकते हैं। तमिल फिल्मों के प्रसिद्ध अभिनेता अरविंद स्वामी ने इसमें पिता (नितिन) की भूमिका निभाई है और हिमांशु शर्मा ने शिवम नाम के किशोर।

नितिन शादीशुदा है और एक बच्चे और एक बच्ची का पिता भी पर एक दिन वो तय करता है कि अपनी पत्नी से तलाक लेगा। तलाक के बाद वह अपनी पसंद की जिंदगी जिएगा। इस बात को अपने पिता से शेयर करने के लिए वह अपने बेटे के साथ कार से निकलता है। उसे अपने बेटे शिवम को उसके स्कूल छोड़ने होता है। रास्ते में नितिन अपने माता-पिता के यहां रूकता है और अपने बीमार पिता को अपनी यौनिकता के बारे में बताता है। इस बात को उसका बेटा शिवम भी सुन लेता है। इससे शिवम को मनोवैज्ञानिक धक्का लगता है और पिता से उसकी दूरी बन जाती है। क्या पिता और पुत्र फिर कभी मनोवैज्ञानिक रूप से एक दूसरे को समझ सकेंगे?

अरविंद स्वामी पिछले पंद्रह वर्षों से फिल्मों से अलग रहे है और एक बार फिर वे इस दुनिया में तब लौटे हैं, जब समलैंगिकता को लेकर समाज में बहस हो रही है। उनकी भूमिका प्रभावशाली जरूर है लेकिन पूरी फिल्म बहुत एकाआयामी और धीमी गति से चलती है। कुछ सीन अच्छे जरूर है। खासकर अंतवाला जिसमें नितिन अपने बेटे को स्कूल के गर्ल्स होस्टल में सीढ़ियां चढ़कर अपने गर्लफ्रेंड से अपनी भावनाओं की इजहार करने के लिए उकसाता है। बाकी फिल्म दर्शक को बांधने वाली नहीं है। बीच में एक बंगाली बाबा को भी लाया गया है जो समलैंगिकता को बीमारी मानता है। बाबा जड़ी बूटी से उसका इलाज करने के दावा करता है पर वह भी एक मजाकिया अंश बन कर ही रह गया है। पर हां समलैंगिकता की वकालत करने वालों को ये फिल्म अच्छी लगेगी।

निर्देशक- तनुज भ्रमर
कलाकार- अरविंद स्वामी, अमन उप्पल, हिमांशु शर्मा

 

दुनिया के सबसे बुजुर्ग ग्रेजुएट बने जापान के शिगेमी हिराता

टोक्यो। जापान के 96 वर्षीय शिगेमी हिराता दुनिया में सबसे अधिक उम्र में ग्रेजुएशन करने वाले शख्स बन गए हैं। उन्होंने क्योटो के विश्वविद्यालय से चीनी मिट्टी कला में स्नातक की परीक्षा पास की है। हिराता ने शुक्रवार को गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड्स की ओर से इसका प्रमाणपत्र भी प्राप्त किया।

मीडिया के अनुसार, हिराता ने इस वर्ष की शुरुआत में यूनिवर्सिटी ऑफ आर्ट एंड डिजायन से कला स्नातक की डिग्री हासिल की थी। 1919 में हिरोशिमा में जन्मे हिराता डिग्री पाने के बाद क्षेत्र में एक सेलेब्रिटी बन गए हैं।

उन्होंने जापान के योमिउरी समाचार पत्र को बताया, “जिन छात्रों का मैं नाम भी नहीं जानता उन्होंने भी मुझे बधाई दी है। इससे मुझे काफी ऊर्जा मिली है।” चीनी मिट्टी कला के अपने पाठ्यक्रम को 11 साल में पूरा करने वाले हिराता जोर देकर कहते हैं, “मैंने रिकॉर्ड नहीं बनाया है। मेरा लक्ष्य 100 साल तक जीने का है। अगर मैं तंदुरुस्त रहता तो कॉलेज जाना काफी मजेदार हो सकता था।”

द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान नौसेना में काम करने वाले हिराता के चार प्रपौत्र हैं। उन्होंने कहा, “मैं खुश हूं। इस उम्र में नई बातें सीखने में सक्षम होना मजेदार है।”

गत वर्ष जापान की ही मिएको नागाओका ने सौ साल की उम्र में 1,500 मीटर फ्रीस्टाइल तैराकी प्रतियोगिता पूरी की थी। इस उम्र में ऐसी प्रतियोगिता पूरी करने वाली वह दुनिया की पहली शख्स हैं। जापान में 2015 में करीब 59,000 व्यक्ति ऐसे थे, जिनकी उम्र सौ साल या उससे अधिक थी।

 

मुक्केबाजी की दुनिया के बेताज बादशाह मोहम्मद अली

दुनिया के सबसे बड़े मुक्केबाजों में से एक माने जाने वाले मोहम्मद अली का 74 साल की उम्र में अमेरिका के फीनिक्स में निधन हो गया। अपने प्रोफेशनल करियर में ज्यादातर फाइट नॉकआउट में जीतने वाले अली, पर्किंसन से हार गए। अली ने चार शादियां की थी जिनसे उन्हें सात बेटियां और दो बेटे थे. आइए आपको बताते हैं अली के बारे में दस बातें –

अली का जन्म 17 जनवरी 1942 को हुआ था. उनका शुरुआती नाम कैसियस मर्सेलुस क्ले जूनियर था।
अली ने 12 साल की उम्र में बॉक्सिंग ट्रेनिंग शुरू की थी और सिर्फ 22 साल की उम्र में 1964 में सोनी लिस्टन को हराकर उलटफेर करते हुए वर्ल्ड हैवीवेट चैंपियनशिप जीत ली थी।
इस जीत के कुछ ही वक्त बाद उन्होंने डेट्रॉएट में वालेस डी फ्रैड मुहम्मद द्वारा शुरू किया गया ‘नेशन ऑफ इस्लाम’ ज्वाइन कर अपना नाम बदल लिया।
अपनी मशहूर जीत के तीन साल बाद उन्होंने यूएस मिलिट्री ज्वाइन करने से इनकार कर दिया. इसके पीछे उन्होंने अमेरिका के वियतनाम युद्ध में भाग लेने के चलते अपनी धार्मिक मान्यताओं के आहत होने का हवाला दिया।
सेना को मना करने के चलते अली को गिरफ्तार कर उनका हैवीवेट टाइटल छीन लिया गया।
कानूनी पचड़ों के चलते अली अगले चार साल तक फाइट नहीं कर पाए। 1971 में अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट ने उनकी सजा पलट दी। अली के युद्ध के लिए ईमानदारी से मना करने के फैसले ने उन्हें ऐसे लोगों का नायक बना दिया जो युद्ध के खिलाफ थे।
कैसियस क्ले के नाम से मशहूर इस बॉक्सर ने 1975 में सुन्नी इस्लाम कबूल कर लिया. इसके तीस साल बाद उन्होंने सूफिज्म का रास्ता पकड़ लिया।
मशहूर पहलवान जॉर्ज वैग्नर से प्रभावित अली प्रेस कॉनफ्रेंस और इंटरव्यू के लिए किसी मैनेजर के भरोसे ना होकर इन्हें खुद ही हैंडल करते थे।
6 फीट 3 इंच लंबे अली ने अपने करियर में 61 फाइटें लड़ी और 56 जीतीं इनमें से 37 का फैसला नॉकआउट में हुआ। उन्हें अपने करियर में सिर्फ पांच बार हार का सामना करना पड़ा।
1अली के कई निकनेम्स में से सबसे मशहूर ‘द ग्रेटेस्ट, द पीपल्स चैंपियन और द लुइसविले लिप’ थे।

 

नीता अंबानी आईओसी में पहली भारतीय महिला

नीता अंबानी आईओसी में पहली भारतीय महिला बन गयी हैं। खेल, सिनेमा और राजनीतिक जगत की कई मशहूर हस्तियों ने उन्हें इसके लिए मुबारकबाद दी है।

केंद्रीय मंत्री हरसिमरत कौर बादल ने ट्वीट किया, “अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक समिति की पहली भारतीय महिला सदस्य नामित होने पर नीता अंबानी को मुबारकबाद।.”

बॉलीवुड अभिनेता शाहरुख़ ख़ान ने लिखा, “ओलंपिक समिति में नामांकन के लिए नीता अंबानी को मुबारकबाद. ऑसम डार्लिंग. अब खेलों को ज़मीनी स्तर पर प्रोत्साहन मिलेगा।”

सचिन तेंदुलकर ने ट्वीट किया, “नीता अंबानी को ओलंपिक समिति में नामांकन के लिए मुबारकबाद। खेलों के विकास के लिए उनका जुनून प्रसंशनीय है। ये भारत और नारी शक्ति के लिए गर्व का क्षण है।.”

भारतीय मुक्केबाज मैरी कॉम ने ट्वीट किया, “नीता अंबानी को मुबारकबाद। वे ज़मीनी स्तर पर काम करके भारत का गौरव बढ़ा रहीं हैं और अब सर्वोच्च स्तर पर भी पहुँच गई हैं। उम्मीद है आपसे जल्द मुलाक़ात होगी।.”

टेनिस खिलाड़ी लिएंडर पेस ने लिखा, “ओलंपिक समिति में नीता अंबानी से बेहतर भारत का प्रतिनिधि और कौन हो सकता है। नीता अंबानी आप पर गर्व है।”

भारत के ओलंपिक पदक विजेता निशानेबाज़ अभिनव बिंद्रा ने लिखा, “बॉलीवुड को नीता अंबानी के समर्थन में इतनी ताक़त से उतरते हुए देखकर अच्छा लग रहा है। ओलंपिक अभियान के लिए ये अभूतपूर्व प्यार है। एक नए युग की शुरुआत।.”

एक और ट्वीट में बिंद्रा ने लिखा, “नीता अंबानी भारत की ओर से ओलंपिक समिति की सदस्य होंगी क्यों न वो सद्भावना संकेत के तौर पर ओलंपिक की टीम को स्पान्सर कर दें।.”

टेनिस खिलाड़ी सानिया मिर्ज़ा ने ट्वीट किया, “ओलंपिक समिति के लिए नामांकन भारत के कोने-कोने तक खेलों को पहुँचाने के नीता अंबानी के प्रयासों का सच्चा प्रमाण है।”

लेखिका शोभा डे ने लिखा, “नीता अंबानी को मुबारकबाद. हां, ये बड़ी बात है और भारत के लिए सम्मान भी.”